Bengali Wife Sex
प्यारे साथियो आपके लिए एक अंतरजातीय सेक्स कहानी लाया हूँ . भाइयो मेरा मकसद सिर्फ़ मनोरंजन करना और करवाना है किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नही आशा करता हूँ आप इस कहानी को सिर्फ़ मनोरंजन की दृष्ट से ही देखेंगे. ये सच्ची घटना है,मेरी माँ और हमारे मकान मालिक, विजय के बीच हुए सेक्स की. Bengali Wife Sex
मेरा नाम शौकत है. मैं पहले अपने माँ, और बाप के साथ कोलकाता में रहता था. मेरा बाप एक राजनैतिक पार्टी का कार्यकर्ता था, और माँ स्टेट बॅंक ऑफ इंडिया में काम करती थी. मेरी माँ एक बेहद खूबसूरत बंगाली औरत थी, उसका कद लगभग 5’5” था, फिगर 37द-31-38 थी.
उसके लंबे बाल थे जो उसकी कमर तक पहुँचते थे, वो गोरे गदराए बदन, सुडोल बाहों और वक्ष की मालकिन थी. सेक्स में मेरी रूचि तब हुई जब मैं 11 साल का था. स्कूल में दोस्त लोग सेक्स की बातें करते और मस्तराम जैसी किताबें पढ़ते. कुछ दोस्त अपने माँ-बाप के सेक्स की बातें करते.
मैं भी अपने माँ-बाप के सेक्स देखने की कोशिश करता, पर मेरे माँ-बाप के बीच सेक्स बहुत ही कम होता था. कभी कभी महीने में एक दो बार वो लोग सेक्स करते, उसमें भी उनका सेक्स कभी 5-7 मिनिट से ज़्यादा नही चलता था. मेरा एक दोस्त था संजय, वो अक्सर अपने बाप और उसकी सेक्रेटरी के सेक्स के किस्से सुनाता.
मेरी भी बहुत इच्छा होती अपनी माँ को सेक्स करते देखने की. पर मेरे बाप को सेक्स में कोई रूचि नहीं थी, बात तब की हैं जब में 12 साल का था, माँ की उम्र तब 39 साल थी. पार्टी के चक्कर में मेरे बाप का एक लोकल नेता से झगड़ा हो गया. वो नेता वेस्ट बंगाल कमिटी का मेंबर था, और उसकी पहुँच बहुत उपर तक थी.
बदला लेने के लिए उसने माँ का ट्रान्स्फर मुर्शीदाबाद के डोंकल इलाक़े में करा दिया. अब माँ के पास और कोई चारा नहीं था, वैसे भी घर उसी की सेलरी से चलता था, इसलिए वो नौकरी भी नहीं छोड़ सकती थी. बाप ने कोशिश की ट्रान्स्फर रुकवाने की, पर कुछ ना हुआ.
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फिर उन्होने फ़ैसला किया मैं और मेरी माँ डोंकल चले जाएँगे, क्यूंकी यही एक रास्ता बचा था. डोंकल बांग्लादेश की सीमा से बस 5 किमी दूर था, ये पूरा मोमडन इलाक़ा था, यहाँ की 95% जनसंख्या हिंदू थी, 5% हिंदू थे, जो की सब दलित थे यहाँ माहौल बहुत कन्सर्वेटिव था.
कोलकाता में तो माँ स्लीव्ले ब्लाउस वाली ट्रॅन्स्परेंट साड़ियाँ पहनती थी. यहाँ वो साड़ियाँ नही पहन सकती थी, ऐसे माहौल में साड़ी पहनती तो पूरा बाज़ार पागल हो जाता. इसलिए माँ अब सलवार कमीज़ पहनने लगी, पर उसके टाइट सलवार कमीज़ में भी उसके गदराए बदन को देख के लोग उसको घूरते थे.
यहाँ घर ढूँढने में भी दिक्कत थी, माँ के बॅंक मॅनेजर ने बॅंक के पास ही अज़ीम गंज इलाक़े में एक घर ढूँढ दिया. घर का मालिक एक पहलवान था, उसकी डोंकल में बहुत बड़ी मिठाई की दुकान थी, सभी होटेलों में उसी की दुकान से मिठाई जाता था. उसकी दुकान भी घर के पास ही थी. उ
सका नाम विजय था, वो एकदम जैसा दिखता था, उसका कद 6 फुट, बदन हटटा-कॅटा, चौड़ी छाती, थोड़ा काला रंग था. उसने मूछें नहीं रखी थीं, पर वो लंबी दाढ़ी का मालिक था. वो हमेशा पठानी कुर्ता पाजामा या कुर्ता लुंगी पहनता था. कभी कभी सर पे टोपी भी पहन लेता था.
मिठाई की दुकान चलाने के साथ साथ वो पहलवानी भी करता था, और अखाड़े में कुश्ती करता था, इसलिए वो सांड जैसा दिखता था. उसका घर काफ़ी बड़ा था, नीचे वो खुद रहता था, उपर का फ्लोर हमें किराए पर दे दिया. उसने शादी नहीं की थी, उसकी उम्र लगभग 42 साल की थी.
वो लोकल मुनिसिपल काउन्सिल का काउन्सिलर भी था, इसलिए थोड़ी गुंडागर्दी भी करता था, मैने कई बार उसे फोन पे गाली गलोच करते सुना था, पर माँ और मेरे साथ बहुत प्यार से बात करता था. मुझे खिलोने या चॉक्लेट देता, माँ को हसाने की कोशिश करता. इसका एक कारण था, मैने देखा वो माँ को बहुत अजीब नज़र से घूरता था, माँ के बदन और उसकी मटकती गाँड को निहारता.
वो उसको उसी नज़र से देखता जिस नज़र से एक ठरकी आदमी एक खूबसूरत औरत को देखता है. शायद माँ को भी ये बात पता थी, इसलिए वो उससे ज़्यादा बात नहीं करती थी, हालाँकि वो कभी कभी अपनी बातों से माँ को हंसा देता था. उसे शायरी भी आती थी, इसलिए वो उसको गालिब के शेर सुनाता.
धीरे-धीरे मैने देखा माँ की झिझक कम होने लगी थी, वो भी अब उसे खुल के बात करती. बातों बातों में कभी कभी विजय माँ के बदन को छू देता. अब तो वो कभी कभी हमारे साथ ही रात का खाना ख़ाता. एक महीने के बाद सब नॉर्मल सा लगने लगा था. जो डर था की हम एक इलाक़े में जा रहे हैं वो कम हो गया था.
माँ अब विजय के साथ घुल मिल गयी थी, मुझे भी वो अच्छा लगने लगा था. तकरीबन एक महीने बाद की बात है, रविवार का दिन था. मैं उपर अपने कमरे में बैठ के होमवर्क कर रहा था. मैने देखा माँ मेरे कमरे के बाहर खड़ी छुप के नीचे आँगन की तरफ देख रही थी.
काफ़ी देर तक नीचे देखने के बाद वो अंदर आ गयी. मैं बाहर गया और आँगन की तरफ़ देखा, वहाँ डंब-बेल और कुछ फिज़िकल एक्सर्साइज़ का सामान पड़ा था. मैं समझ नहीं पाया माँ क्या देख रही थी. जैसे ही मैं अंदर आने लगा, नीचे विजय आँगन में आया.
वो केवल एक छोटे से लंगोट में था, उसका पूरा बदन पसीने से भीगा हुआ था. क्या बदन था उसका, एकदम डब्ल्यूडब्ल्यू एफ के पहलवानों जैसा, पर उसके बाल बहुत थे. पूरा बदन और पीठ बालों से भरी हुई थी. मुझे समझने में देर ना लगी, माँ विजय को कसरत करते हुए देख रही थी.
ऐसे मर्दाना बदन को देख के कोई भी औरत गर्म हो जाए. मैने सोचा माँ विजय के पसीने से भरे मर्दाना जिस्म को देख रही थी. एक महीने से वो अपने पति से दूर थी. वैसे भी उसका पति सेक्स में कम ही रूचि रखता था, उसकी शारीरिक ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रहीं थी.
वो तो बस ऐसे ही एक नंगे पहलवान को देख के नयनसुख प्राप्त कर रही थी, और अपने अंदर की आग को तृप्त कर रही थी. मुझे भी अजीब सी उत्तेजना हुई, मेरी माँ एक ग़ैर मर्द की तरफ़ आकर्षित थी, क्या वो इससे ज़्यादा कुछ करेगी, या बस ऐसे ही विजय को नंगा देख के अपनी आप को शांत करेगी?
अगले ही दिन एक और घटना हुई. मैं उपर अपने कमरे में बैठ के होमवर्क कर रहा था. तभी मुझे माँ और विजय की हँसने की आवाज़ सुनाई पड़ी. मैं बाहर आ के देखने लगा. वो दोनों नीचे आँगन में खड़े थे. माँ ने काले रंग का टाइट सलवार सूट पहना था, वो एकदम बला सी सुंदर लग रही थी. विजय एक कुर्ते और लुँगी में था.
वो उसको शायरी सुना रहा था, और उसके खूबसूरत गोरे बदन की तारीफ कर रहा था. माँ भी मुस्कुरा रही थी. तभी अचानक विजय ने माँ को अपनी बाहों में भर लिया, और उसे चूमने की कोशिश करने लगा. माँ एकदम से चौंक गयी, उसने अपने आप को विजय की बाहों से छुड़ाने की कोशिश की और अपना मुँह फेर लिया ताकि विजय उसको किस ना कर सके.
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वो बोली, “क्या कर रहें हैं आप?”
विजय बोला, “माँ जी आपको प्यार करने की कोशिश कर रहा हूँ.”
माँ, “छोड़िए मुझे प्लीज़, मैं शादीशुदा हूँ, ऐसी हरकत मत कीजिए मेरे साथ.”
विजय, “आप भी तो मुझे चाहती हो!”
माँ, “क्या कह रहे हैं आप?”
विजय, “कल आप मुझे छुप-छुप के देख रही थीं, सच बताइए!”
माँ के पास कोई जवाब नहीं था, विजय ने उसकी चोरी पकड़ ली थी.
विजय, “देखिए मुझे आप बहुत अच्छी लगती हैं, मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ. आप मुझसे प्यार नहीं करती?”
माँ, “पर मैं शादीशुदा हूँ, मेरा 12 साल का बच्चा है, मैं आपके साथ रिश्ता नहीं बना सकती.”
मैने सोचा माँ ने साफ मना नहीं किया बल्कि अपने शादीशुदा होने का बहाना लगाया.
विजय, “अगर मैं आपको पसंद हूँ तो इसमें बुरा क्या है? आपको किसी से डर लगता है?”
माँ, “नही ये रिश्ता नहीं बन सकता, मैं एक हिंदू औरत हूँ, और आप हिंदू, ये रिश्ता समाज को मंज़ूर नहीं होगा.”
विजय, “तो हम किसी को पता नहीं चलने देंगे. आपकी बातों से मुझे लगा था आपके और आपके पति में प्यार नहीं है, मैं आपको वो प्यार दे सकता हूँ जो आप ढूँढ रही हो. मान जाइए माँ जी प्लीज़, मैं आपको बहुत प्यार करूँगा, मुझसे अब आपसे दूर नही रहा जाता.”
माँ, “नहीं ये ग़लत है.”
विजय, “कुछ ग़लत नहीं है, आपको प्यार का पूरा हक़ है, अगर आपका पति अपना फ़र्ज़ नही निभा रहा तो आपको हक़ है की आप बाहर से वो प्यार पायें जो हर औरत की चाहत होती है.”
माँ चुप रही. विजय ने अभी भी माँ को अपनी मज़बूत बाहों में जकड़ा हुआ था. मुझे बहुत उत्तेजना हो रही थी, मेरी माँ को एक लंबी दाढ़ी और मूछों वाले मर्द ने अपनी मज़बूत बाहों में जकड़ा हुआ था, और वो बेबस छटपटा रही थी.
विजय बोला, “मैं चाहता तो आपके साथ ज़बरदस्ती भी कर सकता था, पर उससे आपको दुख होता. और वैसे भी मर्ज़ी में जो मज़ा है वो ज़बरदस्ती में नहीं. मैं चाहता हूँ कि आप अपनी मर्ज़ी से मेरे साथ सेक्स करें मैं आपको जाने देता हूँ, पर मैं तब तक कोशिश करूँगा जब तक आप खुद चलके मेरी बाहों में नहीं आतीं.”
माँ उपर आ गयी, मैने नाटक किया जैसे मैने कुछ सुना या देखा नहीं. रात भर मुझे नींद नहीं आई, मेरी आखों में वही दृश्य घूम रहा था, मेरे माँ एक ग़ैर मर्द, विजय की बाहों में. मैं यही सोच रहा था क्या मेरी माँ मुस्लिम समाज की मर्यादाओं को तोड़ते हुए शादीशुदा होते हुए भी एक ग़ैर हिंदू मर्द से शारीरिक रिश्ता बनाएगी और क्या वो उसके साथ सेक्स करेगी? वैसे भी वो प्यासी है, कब से उसने सेक्स नही किया है.
मुझे संजय के किस्से याद आए, कैसे एक शादीशुदा औरत नजीबा संजय के बाप मोतीलाल के साथ सेक्स करती थी. संजय बताता था, मोतीलाल ऑफीस में या अपने घर में दिन रात नजीबा के साथ सेक्स करता था, और नजीबा भी मोतीलाल के प्यार में पागल थी.
मैं तो पहले ही अपनी माँ को सेक्स करते देखना चाहता था. क्या मेरी माँ एक हिंदू मर्द से सेक्स करेगी? ये ख्याल ही मेरे लिए बहुत एग्ज़ाइटिंग था. रात के सन्नाटे में मुझे माँ के कमरे से गरम आहें सुनाई दे रही थी, मैं समझ गया, शाम की घटना के बाद माँ भी गर्म थी.
माँ विजय से शारीरिक रिश्ता बनाने से डर रही थी, क्यूंकी, एक तो वो शादीशुदा थी, और दूसरा, विजय एक हिंदू था. कहाँ एक शुद्ध मुस्लिम औरत, माँ, और कहाँ एक पहलवान हिंदू मर्द विजय . एक मुसलमान औरत होते हुए वो एक हिंदू के साथ सेक्स करने के बारे में सोच भी कैसे सकती थी.
कहाँ उसका पति पार्टी का कार्यकर्ता था और मुस्लिम धर्म का प्रचार करता था, और कहाँ वो एक पहलवान हिंदू मर्द से सेक्स का सपना देख रही थी. पर क्या वो अपनी सेक्स की आग को भुजाने के लिए अपनी शादी और धर्म को भुला के एक हिंदू मर्द की बाहों में जाएगी?
पता नहीं क्यों, मैं चाहता था कि ऐसा ही हो, मेरी मुस्लिम माँ, सब कुछ भुला के उस हिंदू मर्द के बिस्तर में जाए और उस हिंदू मर्द से वो प्यार पाए जो हर औरत का हक़ होता है, और जिस प्यार को वो अपने पति से नहीं प्राप्त कर पाई थी. अगले 2-3 दिनों तक विजय ने माँ से बात नहीं की, पर वो माँ को अपना मर्दाना जिस्म दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था.
वो सिर्फ़ एक लुंगी में घूमता, उसकी बालों वाली चौड़ी छाती देख के माँ के जिस्म में आग लग जाती थी. माँ भी मौका ढूँढती रहती विजय के आधे नंगे शरीर को देखने की. 2 दिन यही चलता रहा. विजय जान भूझ कर माँ के सामने सिर्फ़ लंगोट या लुंगी में घूमता.
माँ का धैर्य टूट रहा था, उसका दिमाग़ मना कर रहा था एक हिंदू मर्द से शारीरिक रिश्ता बनाने को, पर उसका दिल नहीं मान रहा था, वो भूखी थी एक मर्द के प्यार के लिए. और आख़िर वही हुआ, माँ के सब्र का बाँध टूट गया, ये बात भुलाते हुए की वो एक मुस्लिम औरत है और विजय एक हिंदू, वो अब उसके साथ सेक्स करने के लिए पागल थी.
उस घटना के बाद तीसरे दिन मैं घर पे बैठा पढ़ रहा था. माँ बॅंक से 3 बजे ही वापिस आ गयी, वैसे 5:30 बजे तक आती थी. आते ही अपने कमरे में घुस गयी, कहते हुए की मेरी तबीयत ठीक नहीं है. कुछ देर बाद मुझे उसके कमरे से आवाज़ आई. मैं कान लगा के सुनने लगा. वो फोन पर विजय के साथ बात कर रही थी.
माँ, “…..मुझसे भी अब रहा नहीं जाता, आपके बिना.”
माँ, “पर शौकत को पता नहीं चलना चाहिए.”
माँ, “नींद की गोलियाँ, दूध में?”
माँ, “ठीक है. पर शॉपिंग किस लिए?”
माँ, दुल्हन जैसे सजके? पर किस लिए?”
माँ, “ठीक है, जैसे आप कहो.” और उसने फोन रख दिया.
मैं समझ गया मेरी माँ उस मर्द से शारीरिक रिश्ता बनाने के लिए तैयार हो गयी है. आज रात ही उनका सेक्स का प्लान है, तभी वो दूध में नींद की गोलियाँ मिलाने की बात कर रही थी, ताकि में पूरी रात बेहोश रहूं. तब माँ और विजय निश्चिंत होकर अपने सेक्स का आनंद उठा सकते हैं.
कितनी प्यास भरी थी मेरी माँ में उस हिंदू के लिए. थोड़ी देर में विजय भी घर आ गया. माँ बोली की विजय उसको डॉक्टर के पास लेकर जा रहा है. करीब दो घंटे बाद वो लौटे. लग रहा था जैसे माँ ब्यूटी पार्लर जा के आई है, उसने हाथों और कलाइओं में मेहन्दी लगा रखी थी.
उसके पास एक बड़ा सा शॉपिंग बॅग था, जिसे उसने झट से अपने कमरे में छुपा दिया. डॉक्टर तो बहाना था, विजय तो उसे शॉपिंग ले के गया था, जैसे मैने माँ की बातों से सुना था. वो ब्यूटी पार्लर भी गयी थी अपने नये प्रेमी के लिए सजने. बॅग में क्या था ये मुझे पता नहीं चला उस वक़्त.
रात 8 बजे खाना खाया. फिर माँ ने मुझे दूध का गिलास दिया, मुझे पता था इसमें नींद की गोलियाँ हैं, मैं दूध का गिलास लेकर अपने कमरे में आ गया और पीछे की खिड़की से बाहर फेंक दिया. अब माँ निश्चिंत थी. 9 बजे मैंने सोने का नाटक किया, जबकि वैसे मैं आम तौर पर 10 बजे सोता था.
माँ एक बार मेरे कमरे में आई और मुझे हल्के से हिलाया. मैने सोने का नाटक किया. फिर वो चली गयी और मेरे कमरे को बाहर से बंद कर दिया. मैं झट से उपर रोशनदान की तरफ बढ़ा जहाँ से उसके कमरा के अंदर सब साफ़ दिखाई देता था. माँ ने बॅग खोला और उसमें से नयी लाल रंग की साड़ी निकाली.
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और उसके बाद नयी काले रंग की ब्रा और पैंटी निकाली. फ़िर वो नहाने चली गयी. 20 मिनिट बाद वो बाहर आई. उसके बाल भीगे हुए थे. उसने लाल रंग का ब्लाउस और पेटीकोट पहना था. ब्लाउस स्लीवेलेस्स, बॅकलेस और बेहद छोटा था, अंदर से काली ब्रा दिखाई दे रही थी, उसका पूरा मिड-रिफ भी दिखाई दे रहा था, उसने पेटीकोट अपनी नाभि से 2 इंच नीचे पहना था.
फिर माँ आईने के सामने बैठ के शिंगार करने लगी. नयी लाल रंग की चूड़ीयाँ पहनी, जैसे एक नयी नवेली दुल्हन पहनती है, फिर आँखों में काजल लगाया, होठों पे लाल लिपस्टिक और लिपलाइनर, हल्का मेक-अप भी लगाया. उसने अपना मंगलसूत्र अपने सुडोल वक्षों के बीच रखा.
आख़िर में उसने उठ के साड़ी पहनी, साड़ी पूरी ट्रॅन्स्परेंट थी, नीचे से उसका छोटा स्लीव्ले ब्लाउस, मिड-रिफ, और पेटीकोट साफ़ दिखाई दे रहे थे. वो बिल्कुल एक नयी नवेली दुल्हन लग रही थी, जैसे तैयार हो अपनी सुहाग रात मनाने के लिए. पर ये सुहाग रात वो अपने पति के साथ नहीं बल्कि एक ग़ैर मर्द के साथ मनाने जा रही थी.
मेरी माँ, सजी सँवरी हुई थी एक नयी दुल्हन की तरह, सिर्फ़ उस विजय के साथ सेक्स करने के लिए. और फिर वो उठ के चल दी, नीचे जाने के लिए, विजय के कमरे में. मैं झट से रोशनदान से नीचे उतरा और पीछे की खिड़की से बाहर टेरेस पर आ गया.
विजय के कमरे में छत के पास एक रोशनदान था जो टेरेस में खुलता था. मैं दौड़ता हुआ वहाँ पहुँचा. अंदर लाइट जल रही थी और सब साफ़ दिखाई दे रहा था. विजय भी बिस्तर पर तैयार बैठा था. उसने गहरे सफेद रंग का कुर्ता-पाजामा पहना हुआ था.
वो बिल्कुल एक मर्द जैसा दिख रहा था, जैसे आम तौर पर हिंदू दिखते हैं. और मेरी माँ इसी हिंदू के साथ सेक्स करने के लिए बेताब थी. माँ ने दरवाज़ा खटखटाया, दरवाज़ा खुला था, माँ अंदर आ गयी. विजय उसे देख के बिस्तर से उठा. माँ ने दरवाज़ा अंदर से बंद किया.
विजय और माँ दोनों एक दूसरे की तरफ बढ़े. दोनों एक दूसरे के सामने खड़े थे, और एकदम शांत खड़े एक दूसरे की आँखों में झाँक रहे थे. माँ आगे बढ़ी और विजय से लिपट गयी. सिर्फ़ एक महीने में ही मेरी माँ को उस कट्टर हिंदू ने पटा लिया था, और आज वो औरत खुद चलके उस हिंदू की बाहों में आई थी, ताकि उस हिंदू के साथ उसके बिस्तर पर सेक्स कर सके.
विजय ने भी माँ को अपनी बाहों में भर किया और कस के जकड़ लिया. माँ ने अपनी बाहें विजय के गले में डालीं और उससे चिपक गयी. माँ ने अपना सर विजय की मर्दाना चौड़ी छाती में छुपा लिया. विजय के हाथ माँ की कमर और गाँड को सहला रहे थे.
1-2 मिनिट तक माँ और विजय ऐसे ही एक दूसरे के बदन से लिपटे रहे. फिर विजय ने एक हाथ से माँ के चेहरे को अपनी छाती से हटाया, और उपर की तरफ किया. विजय ने आगे की तरफ झुक के अपने होंठ माँ के लाल होठों पर लगा दिए. जैसे ही विजय के होंठ मेरी माँ माँ के लाल होठों पर पड़े, माँ के बदन में जैसे करंट दौड़ गया हो.
उसको झटका लगा और उसने विजय को और कस के पकड़ लिया. और वो भी पूरी तमक से विजय को चूमने लगी. विजय ने सिर्फ़ अपने होंठ माँ के होठों से छूहाए थे, पर माँ ने तो विजय के होठों को ऐसे चूसना शुरू किया जैसे आज क़यामत की रात हो और विजय से सेक्स करने का बस यही एक मौका हो उसके पास.
क्या मादक दृश्य था. मेरी माँ एक नयी नवेली हिंदू दुल्हन की तरह सजी हुई एक मूछों वाले से लिपटी हुई थी और उसके गरम होठों को अपने लाल होठों से चूस रही थी. क्या किस्मत थी विजय की, उस मादक खूबसूरत मुस्लिम औरत के लाल होठों के शहद का मज़ा वो विजय ले रहा था, नाकि माँ का पति.
माँ अपनी एडियाँ उठाए विजय को चूम रही थी और विजय ने अपना मुँह आगे झुकाया हुआ था, क्यूंकी विजय 6 फुट लंबा था और माँ 5 फुट 5 इंच. फिर विजय ने माँ को अपनी मज़बूत बाहों में उठा लिया. अब उनके मुँह एक दूसरे के सामने थे, उनका किस और पॅशनेट हो गया.
अब तो माँ और विजय एक दूसरे के जीभ भी चाटने लग गये थे. माँ के हाथ अब विजय के कुर्ते के अंदर थे और कुर्ते के अंदर से विजय के पीठ को सहला रहे थे. विजय ज़ोर ज़ोर से माँ की गाँड को मसल रहा था. 10 मिनिट तक दोनों एक दूसरे के होठों का स्वाद चखा, बिना रुके.
ऐसा तगड़ा किस तो मैने हॉलीवुड मूवीस में भी नहीं देखा था. क्या मस्त हो के किस कर रही थी मेरी माँ उस को.. फिर विजय ने माँ को छोड़ दिया और अपने पैरों के सहारे खड़ी हुई. माँ ने विजय के कुर्ते के बटन खोलने शुरू किए.
विजय ने कुर्ता निकालने में माँ की मदद की. फिर विजय ने माँ के पल्लू को हटाया और उसकी साड़ी का पल्लू नीचे ज़मीन पर गिरा दिया. माँ ने खुद अपनी साड़ी अपने पेटीकोट से निकाली और नीचे फेंक दी, विजय के कुर्ते के उपर.
अब माँ विजय के सामने सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज पहने खड़ी थी. फिर माँ विजय के छाती के बालों के साथ खेलने लगी, उसके निपल्स को अपने होठों में लेके चूसने और दाँतों में लेके काटने लगी. वो अपनी जीभ से विजय की छाती को चाट रही थी.
माँ, “तेरे बड़े बाल हैं, बहुत इच्छा थी बालों वाली छाती चाटने की, आज पूरी हुई.”
विजय, “तेरे पति की छाती पर बाल नहीं हैं?”
माँ, “नहीं.”
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3-4 मिनिट तक माँ ऐसे ही विजय की छाती से खेलती रही. विजय धीरे धीरे माँ के बदन को सहलाता रहा. फिर माँ ने विजय के पाजामे का नाडा खोल दिया. विजय ने सफेद रंग का फ्रेंचिए अंडरवेर पहना हुआ था, जिसमें बहुत बड़ा तंबू बना हुआ था. मैं सोच रहा था, कितना बड़ा होगा विजय का लोड़ा. माँ अंडरवेर के उपर से ही विजय के लंड को सहलाने लगी.
फिर से दोनों का किस शुरू हो गया. कुछ देर बाद विजय ने माँ के ब्लाउस के बटन खोलने शुरू किए. माँ ने अपनी दोनों बाहों को खोल कर अपने ब्लाउस को अपने शरीर से अलग कर दिया और नीचे फेंक दिया, अपनी साड़ी और विजय के कुर्ते के उपर. विजय ने उसकी ब्रा की हुक खोल दी. माँ ने ब्रा निकाल के अपने ब्लाउस के उपर फेंक दी.
अब वो उपर से नंगी थी. क्या मस्त दूध थे माँ के, एकदम सफेद, और बीच में पिंकिश ब्राउन निपल्स (चुचियाँ) एकदम तने हुए थे, मतलब ये था माँ पूरी गरम हो चुकी थी. विजय ने आगे झुक के लेफ्ट दूध की निपल को चूसना चालू किया और राइट को अपने हाथ में लेके दबाना शुरू किया.
वो माँ के निपल पे अपनी जीभ फिराता, और दाँत से काटता. दो-तीन बार विजय ने माँ के निपल पर थूका और फिर अपनी जीभ से चाटा. वो दूसरे दूध की निपल को अपने अंगूठे और उंगली में लेके ज़ोर ज़ोर से दबा रहा था. क्या गर्म सीन था, मेरी माँ आधी नंगी खड़ी थी, और एक नंगे मूछों वाले मर्द के सामने और वो उसके दूध चूस रहा था.
विजय, “क्या गोरे और शहद जैसे मीठे हैं तेरे दूध.” जिस दूध को चूसने का हक़ सिर्फ़ उसके पति का था, उनको मेरी माँ एक कट्टर हिंदू को चुस्वा रही थी. माँ के उभारों का रस उसका पति नही बल्कि उसका मकान मालिक ले रहा था.
माँ का एक हाथ विजय के सर में था, और अपने हाथ से उसके मुँह को अपने उभारों पर दबा रही थी, और कह रही थी, “और ज़ोर से चूस, खा जा इनको, तेरे लिए हैं अब मेरे ये दूध, जितना रस पीना है पी ले, रुक मत, दबा और ज़ोर से.” दूसरे हाथ से माँ विजय के लंड को सहला रही थी.
मैने देखा अब माँ का हाथ विजय के अंडरवेर के अंदर था और अब वो उसके लंड को अपने हाथ में लेके सहला रही थी. फिर माँ ने अपने हाथ से विजय का अंडरवेर निकाल दिया. विजय अब पूरा नंगा खड़ा था माँ के सामने. माँ पीछे हटी, विजय के मुँह से उसके निपल छूट गये. माँ ने विजय के लंड की तरफ़ देखा. वो थोड़ी सी चौंकी हुई बोली, “क्या बड़ा लंड है तेरा! कितना बड़ा है ये?”
विजय, “10” का है. तेरे पति का कितना बड़ा था?”
माँ, “अरे उसका तो 4.5” का ही था, लगता था जैसे 10 साल के किसी बच्चे का हो. तेरा कितना कसा हुआ है.
विजय, “पहले कभी देखा नही तूने लंड?”
माँ, “नहीं आज पहली बार देखा है. जो सुना था वैसा ही है.”
विजय, “क्या सुना था?”
माँ, “वही, बहुत बड़े और कसे हुए होते हैं लंड. सुपाड़ा भी कितना बड़ा है तेरे लंड का.”
विजय, “तो चूस ना अपने लाल लाल होठों में लेके.”
माँ, “मैने पहले कभी चूसा नही है अपने पति का, उसको पसंद नहीं था, वो सेक्स से थोड़ा घबराता था, कहता था सेक्स करने से पाप लगता है.”
विजय, “चूसना आता है?”
माँ, “नहीं.”
विजय, “कोई बात नहीं, लोलीपोप तो चूसा होगा ना बचपन में, बस वैसे ही समझ ले, मेरा लंड एक लोलीपोप है.”
माँ विजय के आगे बैठ गयी अपने घुटनों के सहारे, और विजय के 10” लंड को अपने दोनों हाथों में लेके सहलाने लगी. फिर धीरे से उसने अपनी जीभ से उसके सुपाड़े को चाटना शुरू किया.
विजय बोला, “अब अपनी जीभ से पूरे लंड को चाट सुपाड़े से लेके जड तक.”
माँ ने वैसा ही किया. 1-2 मिनिट तक वो ऐसे ही करती रही.
विजय, “अब थूक और अपने हाथ से थूक को मेरे लंड पे रगड़.”
माँ ने वैसा ही किया. विजय का लंड अब माँ के थूक से चमक रहा था. विजय, “अब धीरे धीरे इसको अपने मुँह में ले, और अपने मुँह को आगे पीछे कर. मेरे लंड को अपने होठों में जकड़ ले कस के और अपने को मुँह हिला जैसे मैने बताया.” माँ एक स्कूल की छात्रा के तरह विजय की हर एक इन्स्ट्रक्षन को मान रही थी.
विजय, “अब मेरी आंडो को अपने होठों में ले, और अपनी तरफ खींच. हाँ ऐसे ही.”
विजय, “अब सब बारी बारी से रिपीट कर, कभी सुपाड़े को चाट, कभी लंड को जीभ से सहला, कभी थूक के रगड़, कभी अपने होठों में लेके चूस और कभी आंडो के साथ खेल. समझ गयी?”
माँ ऐसे ही कर रही थी. विजय का लंड चूस्ते वक़्त वो बहुत ही मादक अंदाज़ से विजय की आँखों में झाँक रही थी.
विजय बोला, “रुक.”
माँ ने उसका लंड छोड़ दिया. विजय टेबल की तरफ गया और वहाँ से डिगई-कॅम उठाया. फिर वो माँ के सामने आ के खड़ा हो गया. माँ ने फिर से उसका लंड चूसना शुरू किया, विजय माँ को अपने कॅम में रेकॉर्ड करने लग गया. मुझे यकीन नहीं हो रहा था. मेरी माँ आधी नंगी बैठी थी, सिर्फ़ एक लाल पेटीकोट में, एक नंगे मूछों वाले, मिठाई खाने वाले पहलवान मर्द के सामने और पूरी मस्ती में उसका 10” लंबा लोड़ा चूस रही थी.
माँ ने ज़रा भी ना सोचा उसका पति पार्टी का कार्यकर्ता है, और यहाँ वो मुस्लिम परिवार से होते हुए भी मिठाई खाने वाले के सामने आधी नंगी बैठी हुई उसका लोड़ा चूस रही थी. 15 मिनिट तक माँ विजय के कसे हुए लंड को चूस्ती रही.
विजय, “मेरा निकलने वाला है.”
माँ, “क्या करना है अब?”
विजय, ‘रुक मत, चूस्ती रह, और वीर्य को अपने मुँह पर गिरा देना या मुँह में अंदर ले लेना.”
माँ चूस्ती रही, पर इसके पहले की विजय का निकलता उसने अपना लोड़ा माँ के मुँह से निकाल लिया.
माँ, “क्या हुआ?”
विजय, “ऐसे ही बैठी रह.” विजय ने अपना लोड़ा हाथ में पकड़ा और ज़ोर ज़ोर से हिलाना शुरू किया. दूसरे हाथ से वो अभी भी वीडियो बना रहा था. 2 मिनिट बाद विजय का छूट गया. विजय ने अपना लोड़ा पकड़ के माँ के मुँह पे रख दिया. विजय के लंड से थिक सीमेन का पहला शॉट माँ की आँखों पर पड़ा.
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विजय ने लोड़ा घुमा के सुपाड़ा माँ के माथे पे लगाया, जहाँ उसने लाल सिंदूर पहना था. दूसरा शॉट उसकी माँग में पड़ा, जहाँ माँ ने अपने हिंदू सुहाग की निशानी लाल सिंदूर को पहना था, अब वहाँ लंड की गाढ़ी मलाई पड़ी थी. फिर विजय ने अपना लंड घुमा के माँ के लाल होठों पर लगाया और बाकी का सीमेन छोड़ दिया. माँ के लाल होंठ अब विजय के सीमेन से सफेद हो गये थे. 1-1.5 मिनिट तक विजय के लंड से थिक सीमेन का ईजॅक्युलेशन हुआ. माँ का पूरा चेहरा, उसकी माँग, माथा, आँखें, नाक, होंठ विजय के थिक सीमेन से चमक रहे थे.
विजय, “अब इसको होठों पर लगी मलाई को चूस ले और निगल जा.”
माँ, “ह्म्म्म्म म, मस्त टेस्टी है तेरी मलाई.” फिर विजय ने कॅम बेड की तरफ़ फेंक दिया और माँ को अपनी बाहों में उठाया. और कस के जकड़ लिया. फिर माँ के होठों को अपने होठों में लेके चूसा. माँ भी विजय से कस के चिपक गयी और उसके दूध विजय की बालों वाली छाती से दबे हुए थे. मेरी माँ आधी नंगी एक नंगे मर्द से लिपटी हुई थी. उसके माँग में लाल सिंदूर की जगह एक लंड की मलाई थी, और वो पूरे मज़े से उस हिंदू मर्द को अपने लाल होठों का रस चखा रही थी.
विजय, “जा धो ले, फिर बिस्तर पर करते हैं प्यार.”
दोस्तों अभी मेरी माँ की चुदाई की कहानी बाकि है, आगे की कहानी अगले भाग में…
Raman deep says
कोई लड़की भाभी आंटी तलाकशुदा महिला जिसकी चूत प्यासी हो ओर मोटे लड से चुदवाना चाहती हो तो मुझे कॉल और व्हाट्सएप करे 7707981551 सिर्फ महिलाएं….लड़के कॉल ना करे
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