Virgin Bhanji First Sex
मुझसे बड़ी मेरी चार बहनें हैं। ओजस्वी मेरी सबसे बड़ी दीदी की लड़की है। वो मुझे 7-8 साल छोटी है। जब मैंने उसे चोदा था तब उसकी उम्र 18 साल से ज्यादा नहीं रही होगी। पर इस उम्र में ही वो बड़ी-बड़ी लड़कियों को मात देने लगी थी। गजब की खूबसूरती पाई थी। Virgin Bhanji First Sex
उसके सीने पर उसकी चूचियाँ बड़े-बड़े नागपुरी सन्तरों के जैसी तनी रहती थीं। उसकी फिगर 34:24:34 की थी जो उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रही थी। बात तब ही है जब मेरे जीजा जी की तबियत खराब हो गई थी। मुझे मम्मी को लेकर उनके घर जाना पड़ा।
मेरा मन तो नहीं था, पर जाना पड़ा। सोचा था कि मम्मी को छोड़ कर दूसरे ही दिन वापस आ जाऊँगा, पर वहाँ तो कहानी कुछ और ही हो गई। एक दिन के बजाय एक महीना रूक कर आया वो भी तब आया, जब पिता जी ने फोन करके बुलाया।
दरअसल जिस दिन गया, उसी दिन रात ओजस्वी की कुंवारी चूत हाथ लग गई। फिर भला आने का क्या मन करता। उस दिन शाम को हल्का-हल्का अन्धेरा हो चला था। जिस कमरे में जीजा जी सोये थे, मोहल्ले की कुछ औरतें उन्हें देखने आई थीं।
मम्मी और दीदी उनके साथ बात कर रही थीं। मैं भी वहीं दूसरी चारपाई पर रजाई ओढ़े आधा अन्दर आधा बाहर लेटा था। बिजली थी नहीं.. ओजस्वी थोड़ी देर बाद एक मोमबत्ती जला कर लाई, जिससे थोड़ा बहुत उजाला हो गया था।
वो उसे टेबल के ऊपर रख कर मेरी ही रजाई में आ कर अपना पैर डाल कर बैठ गई और औरतों की बातें सुनने लगी। ओजस्वी कुछ इस तरह से बैठी थी कि उसकी तनी हुई दोनों चूचियाँ मेरी नजर के सामने थीं। जिन्हें देख कर मेरा लण्ड अपना नियन्त्रण खोने लगा था।
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मैं अन्धेरे का पूरा फायदा उठाते हुए उसकी ऊचाईयों को अपनी आँखों से नाप रहा था। थोड़ी देर में ही ओजस्वी ने अपना पैर कुछ इस तरह से फैलाया कि उसका पैर मेरे पैर से टकराने लगा। उसके कोमल चिकने पैरों के स्पर्श ने मेरी भावनाओं को और भड़काने वाला काम किया।
मैंने उसे आजमाने के लिए अपने पैरों को जानबूझ कर आगे-पीछे करने लगा जिससे मेरा पैर ओजस्वी के चिकने पैरों से रगड़ खाते रहे। ओजस्वी ने कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं दी, बस हल्की सी मुस्कान के साथ एक बार देखा और फिर सामान्य हो गई।
जिससे मेरी हिम्मत को थोड़ा बल मिला। अब मैं अपने पैर को ओजस्वी के पैरों के और करीब ले जाने की कोशिश करने लगा। ओजस्वी ने भी अपना पैर हटाया नहीं, बस एक-दो बार इधर-उधर किया। जब भी वो मेरी तरफ देखती मुस्कुरा देती थी, जिससे मुझे और हिम्मत मिल जाती थी।
अब मैं पूरी तरह से रजाई के अन्दर घुस गया। सिर्फ मेरी मुन्डी ही बाहर थी। मैं अपनी क्रिया धीरे-धीरे तेज करने लगा। मेरा लण्ड तन कर लोहे की रॉड बन चुका था। काफी देर तक ऐसे ही करने के बाद जब मुझे लगने लगा कि ओजस्वी को भी मजा आ रहा हैं, तो मैंने धीरे-धीरे अपना पैर ओजस्वी के पैर के ऊपर चढ़ा लिया।
उसकी टाँगें एकदम संगमरमर की तरह चिकनी और कोमल थीं। इस बार ओजस्वी ने मेरी तरफ नहीं देखा, पर मैंने गौर किया कि ओजस्वी के चेहरे पर गम्भीरता के भाव उभरने लगे थे। जैसे वो अपने आप को सामान्य दिखाने की कोशिश कर रही हो। मैं मौके का फायदा उठाता जा रहा था।
मैंने अपने पैरों को उसकी मोटी चिकनी जाँघों तक पहुँचा चुका था। जब मैंने अपना हाथ उसके पेट पर रखा तो वो काँप उठी और झट से मेरे हाथ को पकड़ कर नीचे कर दिया, पर अपने पैरों को अलग नहीं किया। थोड़ी देर के बाद मैंने दोबारा कोशिश की।
इस बार भी उसने मेरे हाथ को हटाने की कोशिश की, पर मैंने बल के साथ उसके हाथ के दबाव का नाकाम कर अपना हाथ उसके पेट से हटने नहीं दिया। ओजस्वी ने मेरा हाथ नहीं छोड़ा। मैं ऐसे ही कुछ देर उसके चिकने पेट को सहलाता रहा।
फिर अपने हाथ को ऊपर की ओर खिसकाना शुरू किया तो पहले तो मेरा हाथ रोकने की हल्की कोशिश की, पर जब मैं नहीं माना तो उसने करवट ले ली और मेरी तरफ पीठ करके रजाई ऊपर तक खींच अपने हाथ से दबा लिया।
अब क्या था मैंने थोड़ा सा आगे खिसक कर उसकी चूचियों को ब्रा के ऊपर से ही अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया और हौले-हौले से दबाते हुए उसकी मस्त नरम चूचियों का भरपूर जायजा लेने लगा। मुझे गजब का मजा आ रहा था। इस समय मैं सारे रिश्ते-नाते भूल कर ओजस्वी की चूचियों के साथ खेल रहा था।
थोड़ी ही देर बाद ओजस्वी को भी मजा आने लगा। वो हल्का सा पीछे आ गई जिससे मेरे हाथ में उसकी दोनों चूचियाँ आसानी से पकड़ में आने लगें। अब मैं उसकी दोनों चूचियों के साथ मजे से खेल रहा था। काफी देर तक ऐसे ही खेलने के बाद मेरा मन उसकी नंगी चूचियों को छूने की इच्छा होने लगी, पर उसकी दोनों चूचियाँ ब्रा में एकदम टाईट कसी थीं।
हाथ अन्दर जाने का कोई प्रश्न ही नहीं बनता था। तो मैं उसकी ब्रा का हुक खोलने की कोशिश करने लगा, पर ब्रा भी काफी कसी थी। उसका हुक आसानी से खुलने का नाम ही नहीं ले रहा था। तो ओजस्वी ने मेरी मदद के लिए अपनी पीठ को थोड़ा सा घुमा दिया जिससे हुक आसानी से खुल गया।
अब क्या था मैंने झट से हाथ बढ़ा कर उसकी ब्रा के अन्दर डाल दिया और थोड़ा जोर से दबा दिया। ओजस्वी के मुँह से हल्की सी चीख निकल पड़ी। उसने मेरा हाथ फौरन पकड़ लिया। मैं भी थोड़ा सतर्क हो गया। फिर हल्के से दो-तीन बार दबा कर जैसे ही मैंने दूसरी चूची को पकड़ा कि बिजली आ गई।
ओजस्वी ने झट से मेरा हाथ अपनी टी-शर्ट से खींच कर बाहर निकाल दिया और रजाई से बाहर आ गई। ओजस्वी जब खड़ी हुई तो उसकी दोनों चूचियां टी-शर्ट के अन्दर लटक रही थीं क्योंकि मैंने उसकी ब्रा खोल दी थी। ओजस्वी मेरी तरफ देखे बिना ही कमरे में भाग गई।
मेरा सारा मजा किरकिरा हो गया था। उसके जाने के बाद जब मैंने अपना लण्ड पकड़ा तो देखा, मेरा लण्ड मस्ती का रस छोड़ने लगा था। बिजली आने के कुछ ही देर बाद पड़ोस की सारी औरतें भी चली गईं। उनके जाने के बाद मम्मी और दीदी भी रसोई में चली गईं।
थोड़ी देर में ओजस्वी मेरे और जीजा जी के लिए खाने की थाली ले कर आई। ओजस्वी मुझसे नजरें तो नहीं मिला रही थी, पर उसके होंठों पर शर्मीली मुस्कान फैली हुई थी। मुझे समझते देर नहीं लगी कि ओजस्वी को भी इस खेल में मजा आया है।
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मेरी तो जैसे लाटरी लग गई थी। मेरे खुशी का ठिकाना नहीं था। मैं भूल गया कि ओजस्वी मेरी भाँजी है और वो भी मुझसे 7-8 साल छोटी है। मैं तो बस उस कुंवारी चूत को चोदने की सोचने लगा। रात में मम्मी और दीदी एक कमरे में मैं और जीजा जी एक कमरे में सो रहे थे, पर मेरी आँखों में नीद कहाँ थी मैं तो सबके सोने का इन्तजार कर रहा था।
थोड़ी ही देर में जीजा जी की नाक बजने लगी, मतलब वो सो चुके हैं। मैंने उठ कर मम्मी और दीदी की आहट ली। उनके कमरे में भी खामोशी थी। पूरी तरह से यकीन करने के बाद मैं ओजस्वी के कमरे की ओर बढ़ा। ओजस्वी अभी सोई नहीं थी, वो अभी पढ़ रही थी।
मुझे देख चौंक गई और थोड़ा मुस्कुरा कर बोली- क्या हुआ मामा.. सोये नहीं?
मैंने पीछे से उसके कन्धे पर हाथ रखा तो वो अपना सर ऊपर उठा कर मुझे देखने लगी। मैंने झुक कर उसके होंठों को चूम लिया। ओजस्वी एकदम से घबरा कर खड़ी हो गई।
‘मामा यह क्या कर रहे हैं?’
अभी वह सम्भल भी नहीं पाई थी कि मैंने उसे अपनी बाँहों में खींच लिया। और वो कुछ बोल पाती कि मैंने उसके होंठों को अपने मुँह में कैद कर लिया और उसके गुलाब की पखुरियों जैसे होंठों का रस पीने लगा। ओजस्वी ने मुझे हल्के से पीछे धकेल दिया और बोली ‘यह क्या कर रहे हो… कोई देख लेगा…’ ओजस्वी मेरी इस हरकत से एकदम घबरा गई थी।
मैंने उसकी आँखों में देखते हुए बोला- ओजस्वी तुम बड़ी खुबसूरत हो।
यह सुन कर ओजस्वी थोड़ा शर्मा गई।
मैंने धीरे से बोला- ओजस्वी , एक पप्पी दो ना..
पहले तो उसने शर्मा कर नजरें नीचे कर लीं और फिर बनावटी गुस्सा दिखाते हुए आँखें तरेर कर बोली- शर्म नहीं आती.. आप मेरे मामा हैं…
साथ ही उसके होंठों पर एक शरारत भरी मुस्कान भी थी। जो मुझे बहुत अच्छी लगी।
मैंने झट से कहा- जिसने की शरम.. उसके फूटे करम..
मैंने उसका हाथ पकड़ कर दुबारा अपनी बाँहों में खींच लिया।
ओजस्वी सकुचाती सी बोली- मामा प्लीज छोड़ो ना.. ऐसा मत करो… पागल हो गए हो क्या?
पर मैं उसकी बातों को अनसुना कर उसके चेहरे को चूमने लगा। वो शर्म से लाल होने लगी थी।
वो बार-बार मुझे यही कहने लगी- मामा प्लीज… अब छोड़ दो बहुत हो गया…
मैंने उसके होंठों को चूमते हुए बोला- अभी तो शुरू हुआ है… अभी कैसे छोड़ दूँ।
मैंने उसकी एक चूची को पकड़ के हौले से दबा दिया।
ओजस्वी सिहर उठी और झट से मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- मामा यह गलत है, बड़ी बदनामी होगी।
पर उसकी चूची को पकड़ते ही मेरी मस्ती और भड़क उठी थी।
मैं बोला- गलत कुछ नहीं है… मेरी जान, यही तो जवानी का असली मजा है। जो जी भर के लूटा जाता है…
यह कहते हुए मैंने अपना एक हाथ उसकी पीठ को सहलाने और दूसरे हाथ से उसकी चूची को दबाते हुए उसके बालों को हटा कर उसकी गरदन पर चूमने लगा तो ओजस्वी मुझसे कस कर लिपट गई। अब ओजस्वी में भी मस्ती छाने लगी थी। वो भी कसमाने लगी थी। उसका विरोध अब केवल मुँह से ही रह गया था।
‘मामा प्लीज, मुझे डर लग रहा है, आप समझते क्यों नहीं… कोई आ जाएगा।’
‘डरो मत, कोई नहीं आएगा.. मैं सब चैक करके आया हूँ, सब सो रहे हैं।’ मैं मुस्कुरा कर बोला.
तो वो मुक्के से मेरी पीठ पर मारते हुए शर्मा के बोली- तुम बड़े गन्दे हो… और मेरे सीने से चिपक गई। उस वक्त ओजस्वी स्कर्ट और टाईट टी-शर्ट पहने हुई थी, जिसमें उसकी चूचियां काफी सख्ती से मेरे सीने में चुभने लगी थीं जो मेरी मस्ती को ओर बढ़ा रही थीं।
ओजस्वी अब मेरे धीरे-धीरे मेरे बस में आ रही थी, अब उसकी कुंवारी चूत मेरे लौड़े से कुछ ही दूर थी। मैंने प्यार से उसका चेहरा ऊपर उठा कर बोला- मैं गन्दा हूँ या अच्छा अभी थोड़ी देर बाद पता चलेगा। यह कहते हुए मैंने उसकी टी-शर्ट को उसके बदन से खींच के बाहर निकाल दिया।
ओजस्वी शर्मा कर अपनी दोनों चूचियों को ढकने की कोशिश करने लगी, पर मैंने झट से उसे अपनी बाँहों में खींचा तो वो एकदम मेरे सीने से चिपक गई। शर्मा के बस इतना बोली- मामा… यह क्या कर रहे हो… मुझे शर्म आती है।
मैंने उससे कहा- बस दो मिनट रूको, सारी शर्म अपने आप खत्म हो जाएगा।
मैंने उसके चेहरे पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। ओजस्वी भी अब मदहोश होने लगी थी। मदहोशी से उसकी दोनों आँखें बन्द हो गई थीं। उसके होंठ मस्ती से काँपने लगे थे। अब उसके चेहरे पर वासना की झलक साफ नजर आने लगी थी।
मेरा हाथ उसकी नंगी पीठ पर सरकने लगा था। मैंने धीरे से उसकी ब्रा का हुक भी खोल दिया। ब्रा का हुक खुलते ही उसकी दोनों चूचियाँ आजाद हो गईं। ओजस्वी ने पहले ही अपनी आँखें बन्द कर ली थीं। ब्रा को अलग किया तो उसकी दूध जैसी गोरी और मस्त चूचियाँ मेरी आँखों के सामने फुदकने लगी थीं।
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जिन्हें देखते ही मेरा लण्ड जो पहले से ही कड़क था और सख्त हो कर झटके मारने लगा। ओजस्वी ने शर्मा कर अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लिया। उसकी चूचियाँ क्या गजब थीं दोस्तों.. मैं तो एकदम मस्त हो उठा। मैंने फौरन उसकी चूचियों को अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया और कस कर दबा दिया।
ओजस्वी के मुँह से तीखी चीख निकल पड़ी- उई मां… मामा क्या करते हो.. दर्द होता है।
‘हाय ओजस्वी … तेरी चूचियाँ इतनी मस्त हैं कि मैं तो इन्हें देखते ही पागल हो गया… कसम से इतनी मस्त चूचियाँ तो मैंने आज तक नहीं देखीं।’
मैं उनसे प्यार से खेलने लगा। मैंने जैसे ही उसकी मस्त चूचियों को प्यार से सहलाते हुए दबाना शुरू किया वो सिहरने लगी। मैंने पागलों की तरह उसकी चूचियों को दबाना शुरू कर दिया और वो सिसकारियाँ भर रही थी ‘ई.. ई.. स स…सी आ… आहहह…’
मैंने उससे पूछा- क्या हुआ ओजस्वी ?
ओजस्वी शर्मा गई और मुस्कुरा कर बोली- कुछ नहीं…
मैंने एक चूची को फिर जोर से दबा दिया… और मजाक से बोला- कुछ नहीं…
वो एकदम से चिहुंक उठी- उई.. मामा दर्द होता है…
‘तो सच-सच बताओ.. मजा आ रहा है या नहीं?’
‘हाँ बाबा.. आ रहा है… पर तेज में नहीं.. धीरे-धीरे से करो ना..’
ओजस्वी का जवाब सुन कर मैं तो खुशी से झूम उठा और ओजस्वी को गोद में उठा कर बिस्तर पर लिटाते हुए बोला- बस ओजस्वी देखती जाओ… आगे और मजा आएगा।
मन ही मन मैं अपनी सगी भांजी की कुंवारी चूत के उदघाटन के आनन्द को महसूस करते हुए मैं उसकी आँखों के सामने ही अपने सारे कपड़े उतारने लगा। ओजस्वी ने शर्म के मारे अपना चेहरा अपने दोनों हाथों से ढक लिया। मैं मुस्कुराता हुआ उसके बगल में जाकर लेट गया और उसके हाथों को उसके चेहरे से हटाया और पूछा- क्या हुआ?
तो वो बोली- तुम कितने गन्दे हो… मेरे सामने कपड़े उतारते हुए शर्म नहीं आती?
‘मेरी जान, शर्माऊँगा तो तुम्हारी कुंवारी चूत की चुदाई कैसे करूँगा…’
मैंने झटके से उसके बदन से उसकी स्कर्ट और पैन्टी को खींच कर उससे अलग कर दिया।
‘मामा प्लीज मत करो ना.. मुझे शर्म आती है।’
वो अपने दोनों हाथों से अपनी चूत को छुपाने की कोशिश करने लगी।
मैंने कहा- ठीक है.. तुम शर्म करो.. मैं अपना काम करता हूँ।
मैंने उसके ऊपर लेट कर उसके होंठों को चूसना शुरू कर दिया, साथ ही उसकी चूचियों को भी मसलने लगा। मेरा लण्ड ओजस्वी के हाथों के ऊपर रगड़ खा रहा था। ओजस्वी ज्यादा देर ऐसे नहीं रह सकी। वो अपने दोनों हाथ ऊपर लाकर मुझे बांधने लगी, उसका एक हाथ मेरे सिर पर बालों को सहला रहे थे, तो दूसरा मेरी पीठ पर सरक रहा था।
जिससे साफ समझ में आ रहा था कि उसे भी भरपूर आनन्द आने लगा था। उसके होंठ काँपने लगे थे और मुँह से मदमोह सिसकारियाँ निकलने लगी थीं। उसका हाथ हटते ही मेरा लण्ड उसकी कुंवारी चूत के संपर्क में आ गया, जिसकी रगड़ उसको और मदहोश करती जा रही थी।
मैं धीरे से अपना एक हाथ नीचे सरका कर उसकी चूत का जायजा लेने लगा जो कि पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। मैंने जैसे ही अपना हाथ उसकी कुंवारी चूत पर रखा… उसका हाथ हटते ही मेरा लण्ड उसकी कुंवारी चूत के संपर्क में आ गया, जिसकी रगड़ उसको और मदहोश करती जा रही थी।
मैं धीरे से अपना एक हाथ नीचे सरका कर उसकी चूत का जायजा लेने लगा जो कि पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। मैंने जैसे ही अपना हाथ उसकी कुंवारी चूत पर रखा… ओजस्वी बड़ी जोर से सिसिया उठी- ई…ई. ई…सस.. जैसे मैंने उसकी कमजोरी पर हाथ रख दिया हो।
ओजस्वी अपना पिछवाड़ा उचकाने लगी। उसकी कुंवारी चूत काफी गीली हो चुकी थी। मेरा लण्ड भी गुलाटें मारने लगा था। मुझसे भी अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मैंने उसकी कमर के नीचे एक तकिया रख उसकी कमर को थोड़ा ऊँचा उठा कर झट से अपने लण्ड को सुपारा उसकी छोटी सी सुरंग पर रख दिया।
सुपारे की गर्मी से ओजस्वी एकदम चिहुंक गई और मुझे कस कर पकड़ते हुए बोली- हाय मामा… ये क्या है.. तुम क्या कर रहे हो?
मैं भी अब तक काफी मदहोश हो चुका था, पूरी मस्ती के नशे में धुत्त हो कर बोला- हाय ओजस्वी .. अब तैयार हो जाओ… मैं अपना लण्ड तुम्हारी कुंवारी चूत में पेलने जा रहा हूँ.. आ आ आहह… मैंने अपना लण्ड कुंवारी चूत में चाँप दिया।
करीब एक इन्च लण्ड ही अन्दर घुसा था कि ओजस्वी जोर से चीख उठी- उई माँ… मर गई… मामा बाहर निकालो.. बड़ा दर्द हो रहा है। उसकी चीख इतनी तेज थी कि मैं भी डर गया। मैंने झट से उसके मुँह पर हाथ रख दिया और उसे चुप कराते हुए बोला- ओजस्वी धीरे बोलो.. आवाज बाहर चली जाएगी।
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मैंने उसका मुँह हाथ से बन्द कर दिया। उसकी आवाज मुँह के अन्दर की दबी रह गई। वो मुझे अपने ऊपर से धकेलने लगी। मुझे लगा कहीं काम बिगड़ ना जाए.. मैं धीरे-धीरे धक्का लगा कर अपना लण्ड उसकी चूत की गहराई तक पहुँचाने की कोशिश करने लगा। क्योंकि मैं जानता था कि पूरा लण्ड चले जाने के बाद दर्द तो अपने आप खत्म हो जाएगा।
ओजस्वी दर्द से छटपटाने लगी, पर मुँह पर हाथ रखने की वजह से उसकी आवाज बाहर नहीं निकल पा रही थी। छेद अभी काफी छोटा था, इसलिए थोड़ी परेशानी तो मुझे भी हो रही थी, पर चार-पाँच बार के प्रयास के बाद मेरा पूरा लण्ड उसकी पूरी गहराई में घुस गया। ओजस्वी दर्द से रोने लगी थी, उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे।
मैं उसे समझाते हुए बोला- रोओ मत ओजस्वी .. अब दर्द नहीं होगा.. अब मजा आएगा..
मैंने अपने लण्ड को धीरे-धीरे अन्दर-बाहर करना चालू किया। पहले तो मुझे भी थोड़ी तकलीफ हुई, पर जब उसकी चूत के रस ने मेरे लण्ड के रास्ते को आसान बना दिया तो लण्ड पेलने में मुझे मजा आने लगा। अब मैं अपना लण्ड पूरा जड़ तक उसकी बुर में चांपने लगा।
ओजस्वी की आँखों से अभी आंसू बह रहे थे, पर उसने अब चीखना बन्द कर दिया था। जिससे मुझे थोड़ी राहत मिली। मैंने अपना हाथ जैसे ही उसके मुँह से हटाया तो वो धीरे से बोली- प्लीज मामा निकालो ना… बहुत दर्द हो रहा..
मैंने उसे समझाते हुए बोला- बस बेटा थोड़ा और बर्दाश्त कर लो.. अब तो मजा ही मजा है..
ये कहते हुए अपनी कमर ऊपर उठा कर एक हल्के झटके के साथ अपना लण्ड फिर चांप दिया। इस बार ओजस्वी के मुँह से एक हल्की सी हिचकी निकली और आँखें बन्द हो गईं। मैं समझ गया कि इस बार उसे आनन्द का अनुभव हुआ है, तो मैं धीरे-धीरे अपने लण्ड को आगे-पीछे करने लगा।
मेरी इस क्रिया से ओजस्वी को एक नया अनुभव मिल रहा था क्योंकि वो अपने दोनों होंठों को अपने मुँह के अन्दर दबा कर अपनी आँखें कस कर मूंदने लगी थी, साथ ही साथ उसकी दोनों बाँहें मुझे कसने लगी थीं। उसके चेहरे के तनाव भरे भाव बता रहे थे कि उसे इस समय जो अनुभव मिल रहा था उसके लिए बिलकुल नया है।
कुछ पल रूक कर मैंने उससे पूछा- ओजस्वी अब कैसा लग रहा है?
तो ओजस्वी बोली- मामा तकलीफ तो अभी हो रही है.. पर अच्छा भी लग रहा है।
यह बात उसने थोड़ा शर्माते हुए बोली। मैं तो खुशी से झूम उठा।
मैंने कहा- बस देखती जाओ.. सारा दर्द खत्म हो जाएगा.. बस मजा ही मजा आएगा।
मैंने जोश में एक जोरदार धक्का जड़ दिया, ओजस्वी चीख उठी- मामा… क्या करते हो… दर्द होता है.. धीरे-धीरे करो ना…
‘ओह सारी….मैं जरा जोश में आ गया था।’
‘जोश में मेरी जान ही निकाल दोगे क्या?’
‘अरे नहीं मेरी रानी… डोन्ट वरी.. अब प्यार से पेलूँगा..’
मैं उसके एक मम्मे को हौले से दबाने लगा।
ओजस्वी के मुँह से मीठी सिसकारी फूट पड़ी ‘सीसी…सी.मामाअअअआ..’ ओजस्वी ने मेरी पीठ पर हल्के से मुक्का मारते हुए बोली- तुम बड़े शैतान हो।
मैंने मुस्कुरा कर पूछा- लो… भला मैंने क्या शैतानी की?
मैंने मासूम सा चेहरा बना कर बोला। ओजस्वी खिलखिला कर हँस पड़ी और अपने दोनों पैरों को मेरी कमर में कस कर बाँध लिया। साथ ही मेरे चेहरे पर चुम्बन की झड़ी लगा दी। मैं भी खुशी से झूम उठा और खुशी से उसकी दोनों चूचियों को हॉर्न की तरह दबाते हुए धक्के की गति थोड़ी बढ़ा दी।
जिससे ओजस्वी का आनन्द भी बढ़ गया क्योंकि उसकी सिकारियाँ अब तेज होने लगी थीं। ‘आआहहह… ओह माँ…. मामा…आ..सी. ई…’ ओजस्वी की मस्ती को देख कर मेरी मस्ती भी दुगनी होने लगी थी। ओजस्वी की सिसकारी हर पल बढ़ने ही लगी थी उसके साथ ही मेरे लण्ड की गति भी बढ़ती जा रही थी।
‘आहहह… आहहह… उई.. हाय ये क्या हो रहा है मामा..’
‘यही तो जिन्दगी का असली मजा है मेरी जान…आहहह….मुझे तो बहुत मजा आ रहा है…हाय ओजस्वी तुमको कैसा लग रहा है?’
‘हाय मामा..आह्ह.. बहुत मजा आ रहा है… आआहहह… ऐसा मजा तो पहले कभी किसी चीज में नहीं मिला आआआहहह…’
अब तक तो मेरी मस्ती भी अपनी चरम सीमा को छूने लगी थी। ओजस्वी के साथ मेरे मुँह से भी मस्ती भरे स्वर निकलने लगे थे।
‘सच ओजस्वी मैं अब तक न जाने कितनी लड़कियों को चोद चुका हूँ.. पर तुम्हारी चूत को चोदने में जो मजा आ रहा है, मुझे पहले कभी नहीं मिला… हाय ओजस्वी बहुत मजा आ रहा है…’
‘आहहहह….मामा मुझे भी बहुत मजा आ रहा है।’
मैं उसके चेहरे पर चुम्बन करने लगा तो ओजस्वी भी मुझे चूमने लगी। अब तक ओजस्वी की चूत काफी पानी छोड़ चुकी थी क्योंकि अब मेरा लण्ड बड़ी आसानी से अन्दर-बाहर आ जा रहा था। साथ ही ‘फच.. फच’ की ध्वनि भी उभर रही थी। जो चुदाई के इस माहौल को और मोहक बनाने लगी थी।
कुछ देर पहले जिस कमरे में खामोशी थी। अब चुदाई के मधुर संगीत से गूंज रहा था। जहाँ एक ओर घर के सारे लोग गहरी नींद में सो रहे थे, वहीं दूसरी ओर मामा-भाँजी की चुदाई का खेल चल रहा था। जहाँ एक ओर घर खामोशी थी, वहीं दूसरी ओर हम दोनों मामा-भाँजी की मस्ती भरी सिसकारीयाँ कमरे में गूँज रही थीं।
मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे ओजस्वी जैसी माल की कुंवारी चूत को चोदने का ऐसा मौका भी मिलेगा। इस पल हम दोनों ही मस्ती के अथाह सागर में गोते लगा रहे थे, जिसका कोई वर्णन नहीं किया जा सकता।
हर पल हमारी चुदाई की गति बढ़ती ही जा रही थी। करीब बीस मिनट तक मैं ओजस्वी को ऐसे ही चोदता रहा साथ उसकी मस्त दूध जैसी चूचियों को भी दबाता मसलता रहा। ओजस्वी भी मस्ती में पागल हो चुकी थी। वो अब खुल कर मेरा साथ दे रही थी।
अचानक ओजस्वी की सिसकारी और तेज हो गई और वो चिल्ला कर बोली- हाय मामा मुझे न जाने ये क्या हो रहा है आआहहह… जैसे मेरी चूत से कुछ निकल रहा है..आहहहहह… उसने मुझे कस कर पकड़ लिया। मैं समझ गया कि ओजस्वी अपनी चरम सीमा को पार कर गई है।
अब मेरी बारी थी, मैंने भी अपनी रफ्तार बढ़ा दी। करीब 6-7 कड़क धक्के लगाने के बाद ही मैंने भी अपना पूरा का पूरा लण्ड ओजस्वी की चूत में पेल दिया और पूरी तरह से उसके ऊपर ढह गया। मेरा लण्ड अपने गरम-गरम वीर्य का गुबार ओजस्वी की चूत में छोड़ने लगा।
वीर्य की गर्मी मिलते ही ओजस्वी एकदम गनगना गई और मुझसे कस कर चिपक गई। मैंने भी उसे कस कर जकड़ लिया। हम दोनों एक-दूसरे को इस कदर कस कर पकड़े हुए थे, जैसे एक-दूसरे में ही समा जाएँगे। हम दोनों की सांसें इतनी तेज चल रही थीं जैसे हम दोनों कोई लम्बी दौड़ लगा कर आए हों।
करीब 5 मिनट के बाद जब हम थोड़ा सामान्य हुए तो एक-दूसरे से अलग हुए। ओजस्वी अपनी बुर को खून से सना देख कर डर गई, पर जब मैंने उसे समझाया कि पहली चुदाई में खून निकलता ही है, अब दुबारा नहीं निकलेगा.. तो वो सामान्य हुई।
मैंने जब धीरे से उसके कान में पूछा- क्यों ओजस्वी मजा आया या नहीं?
तो वो शर्मा गई। ‘धत…’ और दौड़ कर बाथरूम में भाग गई। मैं वैसे ही बिस्तर पर पड़ा रहा। थोड़ी देर में जब वह वापस आई और मुझे वैसे ही नंगा लेटे देखा तो बोली- क्या मामा.. आपने अभी कपड़े नहीं पहने।
मैंने धीरे से कहा- अभी एक बार और तुम्हें चोदने का मन कर रहा है।
दुबारा चोदने के नाम पर ओजस्वी ने शर्मा कर गर्दन झुका ली और शर्मा कर बोली- मामा.. अब बस भी करो ना…
मैंने कहा- बस एक बार… बस एक बार और चोदने दो ना.. मेरा मन अभी नहीं भरा…
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एक बार चुदाई का मजा मिलने के बाद उसका भी मन भी झूम उठा था। इस बार ओजस्वी ने कुछ नहीं बोला। मैंने उसे अपनी बाँहों में उठा कर एक बार फिर बिस्तर पर लिटा दिया और उसके कामुक अंगों के साथ खेलना शुरू कर दिया। वो पहले थोड़ी देर शर्माती रही, पर जैसे-जैसे उसे मजा मिलता गया, वो भी मेरा साथ देने लगी। फिर क्या था पल भर में एक बार फिर से पूरा कमरा हम दोनों मामा-भाँजी की मस्ती भरी सिसकारियों से गूंजने लगा।
इस तरह मैंने उस रात अपनी भाँजी की चार बार चुदाई की। दीदी के घर गया था सिर्फ दो दिन के लिए और पूरा एक महीना रह कर आया। पहले एक-दो दिन तो वो थोड़ा शर्माती रही, पर उसके बाद वो मेरे साथ पूरी तरह से खुल गई। अब वो खुल कर मेरे साथ चुदाई की बातें करने लगी थी। जब भी मौका मिलता तो वो खुद मुझे चोदने को लिए कहती। इस तरह पूरे एक महीने में मैंने दिन-रात जब भी मौका मिला, मैंने ओजस्वी को जी भर कर चोदा।