Virgin Girl Sex Masti
नमस्कार दोस्तों, मैं आपका अशोक फिर से हाज़िर हूँ अपनी कहानी को पूरा करने के लिए. दोस्तों आपने मेरी कहानी कुंवारी बॉस को अपनी रंडी बना लिया 1 के पिछले भाग में पढ़ा होगा की कैसे मेरी कुंवारी बॉस सौम्या मुझसे अपनी कुंवारी चूत फडवाली थी. अब आगे – Virgin Girl Sex Masti
रात की खून भरी बुर की चुदाई के बाद दूसरे दिन मेरी नींद उसकी मधुर आवाज से खुली, वो मेरे लिये चाय बना कर लाई थी। इस समय उसने कपड़े पहन रखे थे। मैं उसकी आवाज सुनकर उठा और बेड टी का मजा लिया। मैं चाय पीकर यह सोचकर लेटने लगा कि तीन दिन तक अब मौज ही मौज होगी, क्योंकि सौम्या ऑफिस नहीं जायेगी और मुझे भी रूकने के लिये बोलेगी.
पर यहाँ तो उल्टा ही हो गया, जैसे मैं वापस लेटने लगा, उसने मुझे तुरन्त ही झिड़क दिया और तैयार होकर ऑफिस जाने के लिये बोली. और वो भी खुद लंगड़ाते हुए रसोई की तरफ चल दी। मैं उठा और उसके पीछे रसोई आ गया और दर्द के बारे में पूछा तो बोली- मजा लेने के लिये कुछ तो चुकाना ही पड़ेगा।
‘तुम ऑफिस जाओगी?’
‘हाँ बिल्कुल!’ वो बोली.
‘तो तुम भी तैयार हो जाओ, हम दोनों ही साथ चलते हैं।’
‘नहीं, तुम अकेले जाओगे और मैं अकेली!’
मैं उसकी बात समझ गया था। मैं तैयार हो गया, सौम्या ने मुझे नाशता करा दिया और टिफिन भी दे दिया। मैं टिफिन लेकर निकल पड़ा. करीब 1 घंटे के बाद सौम्या भी ऑफिस आ गई, हम दोनों की फॉर्मल बात चीत हुई और फिर दिन भर हम लोग अपना काम करते रहे। आज मुझे सौम्या और भी सेक्सी लग रही थी।
मेरा मन काम में नहीं लग रहा था। पर मुझे किसी तरह समय बिताना था. ऑफिस छूटने के एक घंटे पहले सौम्या अपनी किसी सहेली या फिर बहन से बात कर रही थी और उसके बाद बिना किसी को बताये ऑफिस से निकल गई। ऑफिस छूटने के बाद जब मैं घर पहुंचा, लेकिन सौम्या घर नहीं आई थी, मेरे पास उसका नम्बर भी नहीं था।
मैं क्या करूँ? मैं इसी उधेड़बुन में था कि सौम्या ने मुझसे बोला था कि तीन दिन तक वो घर में अकेली है और वो इसीलिये मेरे साथ मेरे घर आई थी, लेकिन क्या मेरे से कोई गलती हो गई कि वो बिना मुझे बताये कहाँ चली गई? मेरे दिमाग में उसके घर जाने की बात आने लगी कि तभी डोर बेल बजी, दरवाजा खोला तो सौम्या बाहर खड़ी थी। उसे देखते ही मेरे मुंह से निकला- कहाँ थी तुम?
‘क्यों बहुत बैचेन हो रहे हो मेरे बिना?’ वो बोली।
‘तुम कुछ बता कर नहीं गई थी न इसलिये!’
अन्दर आकर कुर्सी पर बैठते हुए बोली- बस मैं अपनी बहन के यहाँ गई थी।
‘कोई खास कारण से गई थी वहाँ पर?’ मैंने पूछा तो उसने हाँ में सर हिलाया.
मैं उससे बात करते हुए चाय बना रहा था, मैंने उसे चाय सर्व करते हुए उसके दर्द के बारे में पूछा तो बोली- हल्की जलन सी है।
फिर हम लोग चाय पीते हुए बात करने लगे. तभी मेरा ध्यान उसके चेहरे पर गया, काफी चिकना था और जो उसकी हल्की-हल्की मूँछें थी, वो भी बिल्कुल साफ थी और सबसे बड़ी उसके जिस्म से बहुत ही सेक्सी सुंगध आ रही थी तो मैं उसके और करीब गया और एक कुत्ते जैसे सूंघने लगा.
वो बोली- क्या कर रहे हो?
‘कुछ नहीं, तुम्हारे जिस्म से बहुत ही सेक्सी खुशबू आ रही है, इसलिये कुत्ते जैसा सूंघ रहा हूँ।’
इस समय सौम्या सफेद रंग का बॉटम और सफेद रंग की शर्ट पहनी थी और सफेद रंग की हील भी पहने हुए थी, मैंने उसके हाथ को पकड़ा और खड़े होने का इशारा किया, वो समझ गई और कुर्सी से उठ कर खड़ी हो गई, इस समय उसकी लम्बाई और मेरी लम्बाई के बराबर थी.
मैं घूमते हुए उसके पीछे गया और उसके कंधे पर अपनी ठोढ़ी टिकाकर उसके गाल से अपने गाल सटाकर बोला- सौम्या, तुम बहुत सुन्दर लग रही हो और तुम्हारे अन्दर से आती हुई महक मुझे और मदहोश करते हुए तुम्हारा दीवाना बना रही है। सौम्या भी मेरे गालों को सहला रही थी।
मैंने उसकी कमीज के बटन खोलना शुरू किया, उसने झट से मेरा हाथ पकड़ा और बोली- ये क्या अभी से? रात में करना।
‘सौम्या मेरी गलती नहीं है, तेरे इस सेक्सी रूप ने मुझे बेकाबू कर दिया है, इसलिये… मत रोको मुझे!’
और फिर मैंने कमीज के बटन को खोलकर उसके जिस्म से अलग कर दिया और उसकी चुची ब्रा के ऊपर से दबाने लगा. उसने अपने दोनों हाथ की माला बनाकर मेरी गर्दन पर डाल दी, मेरे हाथ जब उसकी चुची को सहलाते हुए उसकी बगल में गये तो वहां बिल्कुल भी बाल नहीं थे, मुझे उसकी बगल को सहलाने में बड़ा मजा आ रहा था। कहाँ कल रात में झंगाड़ था बालों को, आज वो जंगल पूरी तरह से साफ था।
मैंने उसकी बगल को सहलाते हुए पूछा- सौम्या, कहाँ से बनवाकर आ रही हो?
‘अपनी दीदी के यहाँ!’
मेरी मदहोशी तुरन्त ही खत्म हो गई, ‘क्या?’ मैं चौंक कर पूछा।
‘हाँ!’
‘तो उनको पता लग गया है कि तुम यहाँ पर हो?’
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‘नहीं, बस कल रात जब तुम मुझसे प्यार कर रहे थे तो मुझे बड़ा अजीब लग रहा था, कि मेरे पूरे जिस्म में बाल ही बाल थे फिर भी तुम मुझे प्यार कर रहे थे, इसलिये मैंने सोचा कि आज मैं तुम्हारे लिये अच्छे से तैयार होकर आऊँगी।’
‘एक बात और बताऊँ?’ उसने मेरी आँखों में आँखें डालते हुए कहा- जब दीदी मेरी वैक्सिंग कर रही थी, तो मैं सिर्फ तुम्हारे बारे में सोच रही थी और पता नहीं कब मेरा पानी छुट गया, दीदी ने तुरन्त पूछा कि मेरी जिंदगी में कौन है?
‘तो तुमने क्या बताया?’
‘कुछ नहीं!’
अब मुझे सौम्या को देखने की बड़ी इच्छा हो रही थी, मैंने सौम्या की ब्रा को उससे अलग किया, फिर उसकी बॉटम और पेंटी को उससे अलग किया, मेरी नजर जब उसकी चिकनी चूत पर पड़ी तो मुझे लगा कि वास्तविक खजाना तो अब दिखाई पड़ रहा है। क्या उभारदार गुलाबी रंग की चूत थी उसकी!
मैं अपने घुटने पर आ गया और मेरी उंगलियाँ उसकी चिकनी और सफाचट चूत को केवल सहला रही थी। अब बाल का नामोनिशान नहीं था… क्या मुलायम चूत लग रही थी! मैंने सौम्या से कुर्सी पर बैठने के लिये कहा, मैं उसकी चूत को अच्छे से देखना चाहता था, कल रात तो कुछ समझ में भी नहीं आया था।
मैंने उसकी चूत की फांकों को फैलाया, उसकी लाल-लाल गहराई में उसकी चॉकलेटी कलर की पुतिया छुपी हुई थी। मैंने एक बार प्रशंसा भरी नजर से सौम्या को देखा और फिर बिना उसके उत्तर के इंतजार के मेरे होंठ उस महहोश कर देने वाली चूत से टच हो गये।
शुरू में तो मैं चूम रहा था, लेकिन कब मेरी जीभ उसकी चूत पर चलने लगी, उसकी पुतिया को होंठों के बीच फंसा कर लॉलीपॉप की तरह चूस रहा था। मुझे तो पता ही नहीं चला कि कब मेरे दांत उसकी चूत के उभारों को काटने लगे, वासना इतनी प्रबल हो रही थी कि मैं उसकी चूत को खा जाना चाहता था.
वो मेरे बालो को सहला रही थी, लेकिन वो जल्दी ही खलास हो गई और उसका पानी मेरे मुंह में गिर रहा था। वो शायद संकोचवश मेरे मुंह को अपनी चूत से अलग करना चाह रही थी, लेकिन वो असफल हो रही थी और फिर उसने प्रयास करना बंद कर दिया। उसकी चूत के रस को चाटते हुए, नाभि से होते हुए उसके दूध को पीते हुए मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए, उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया.
मैंने होंठ चूमने के बाद पूछा- सौम्या मैंने तुम्हारी मलाई चखी, मुझे बहुत पसंद आई, क्या तुम मेरी मलाई चखोगी?
वो खड़ी हुई और मेरे एक-एक कपड़े उतार कर मुझे अपनी जगह बैठाकर खुद नीचे बैठ गई और मेरे लंड को अपने मुंह में भर लिया। बहुत प्यार से वो मेरे लंड को चूस रही थी, उम्म्ह… अहह… हय… याह… कभी वो लंड को पूरा मुंह में भर लेती तो कभी सुपारे के खोल को खीचकर अग्रभाग पर अपनी जीभ चलाती तो कभी टट्टों को भी बारी-बारी से मुंह में भर लेती।
इधर मैं भी उसकी दोनों चुची से खेल रहा था। जब उसने काफी देर मेरा लंड चूस लिया, तो मैंने उसे अपनी गोदी में उठाया और बेड पर लेटा दिया और उसकी दोनों जांघों के बीच बैठकर उसकी चूत पर लंड सेट किया, उसकी चूत अभी भी धधक रही थी, मैंने एक जोर का झटका दिया.
‘आह…’ बस उसके मुंह से निकला। मैंने तुरन्त ही अपने आपको काबू में किया और रूक गया और फिर धीरे-धीरे करके लंड को उसकी चूत के अन्दर पेबस्त किया। मैं उसके ऊपर लेट गया और उसकी चुची को अपने मुंह में भर लिया।
‘अशोक, तुम बहुत अच्छे हो। मैं आज दुनिया के सब सुख पा गई!’
मुझे लगा कि ये उसके इमोशन हैं. मैंने अपना काम चालू रखा। अब मैं धीरे-धीरे अपने लंड को आगे पीछे करने लगा और धक्के की स्पीड भी धीरे-धीरे बढ़ाने लगा। एक जैसी पोजिशन में धक्के मारते मारते मैं थकने लगा तो मैं चित लेट गया और सौम्या को अपने ऊपर कर लिया और फिर उसकी चूत में लंड डालकर नीचे से अपनी कमर उठा-उठाकर उसको चोदने लगा।
सौम्या भी अब समझ चुकी थी, वो भी मुझे चोदने की कोशिश कर रही थी, हालांकि उसके इस प्रयास से उसकी चूत से लंड बाहर आ जा रहा था। लेकिन एक बार जब वो समझ गई तो एक एक्सपर्ट की तरह वो भी मुझसे खेलने लगी। फिर मेरे कहने से वो सीधी बैठ गई, उसके इस तरह के थोड़े प्रयास में ही मेरा लंड जवाब देने लगा था.
मैंने सौम्या को अपने से नीचे उतारा और उससे बोला- अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी चूत के बाहर अपना पानी निकाल सकता हूँ और अगर तुम चाहो तो मेरी मलाई को अपने मुंह में ले सकती हो! मेरी बात सुनने के बाद उसने मेरे लंड को अपने मुंह में भर लिया और जब तक कि मेरी मलाई की एक एक बूंद को चाट नहीं ली तब तक उसने मेरे लंड को अपने मुंह से अलग नहीं किया।
थोड़ी देर हम दोनों चिपक कर लेटे रहे। अब दूसरी बार सौम्या की बुर की चुदाई करके मुझे और शायद उसे भी काफी सुकून मिला. साढ़े सात का टाईम हो रहा था, दोनों उठे, बारी-बारी से नहाने गये और फिर तैयार होने लगे, खाना खाने के हमारे पास दो विकल्प थे, एक घर में बना कर खाने का और दूसरे होटल में जाकर खाने का…
मैंने सौम्या से पूछा तो होटल का तो उसने मना कर दिया, फिर हम दोनों ने मिलकर खाना बनाया और खाना खाकर छत पर चले गये। गर्मी बहुत पड़ रही थी, हवा नहीं चल रही थी, मैंने कई बार सौम्या से वापस नीचे चलने के लिये बोला, लेकिन ‘थोड़ी देर रूको, थोड़ी देर रूको’ कह कर वो बात टाल देती थी।
मुझे गर्मी बहुत लग रही थी, तो मैंने अपनी लोअर और गंजी को उतार दिया, और एक टेबल फेन ऑन करके उसके सामने बैठ गया। सौम्या का ध्यान जब मेरी ओर गया और उसने मुझे केवल अंडरवियर में देखा तो वो भी अपनी कुर्ती और बॉटम को उतारकर पेंटी और ब्रा में बैठ गई।
मेरे मन में मजा लेने की बात आई, मैंने सौम्या से कहा- देखो, मैं केवल जांघिये में हूँ और जबकि तुमने ऊपर और नीचे दोनों पहन रखे हैं।
वो उठी और मेरी तरफ पीठ करके बोली- लो ब्रा की हुक खोल दो, मैं भी केवल पेंटी में आ जाती हूँ।
मैंने उसकी ब्रा उतार दी और वो मेरे सामने पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए बोली- लो, अब ठीक है?
मैं अपने पैर को उसकी जांघों के बीच में रखकर अंगूठे से उसकी बुर को कुरदते हुए बोला- हाँ अब ठीक है!
उसकी छोटी-छोटी तनी हुई चुची मुझे आमंत्रण दे रही थी कि ‘आओ और मुझे पियो।’
तभी सौम्या भी अपने अंगूठे से मेरे लंड को सहलाने का प्रयास कर रही थी। धीरे-धीरे उसके द्वारा मेरे लंड को सहलाये जाने से लंड महाराज अकड़ने लगे। इधर मैं भी उसकी बुर पर लगातार अपने अंगूठे से आक्रमण कर रहा था, जिसके ऐवज में सौम्या अपनी आँखें बन्द किये अपने होंठों को चबाने में विवश हो गई।
मेरा लंड तन चुका था, मैंने अपनी चड्डी उतारी और लंड को आजाद कर दिया, उसके बाद मैं उठकर सौम्या के पास गया, मेरे अंगूठे का टच हटने से उसने अपनी आँखें अचकचा कर खोल दी। मेरी उंगलियां अब सौम्या की पेंटी की इलास्टिक पर फंस चुकी थी, सौम्या ने भी अपनी कमर उचका कर पेंटी उतरवाने में मेरी मदद की।
फिर हम दोनों छत पर पड़े गद्दे पर लेटे, मैं 69 की अवस्था में आना चाहता था, मैंने सौम्या के मुंह के पास अपने लंड को टिका दिया और लेटकर उसकी बुर को चूमने लगा। सौम्या मेरे लंड को चूसने लगी. कुछ देर के बाद मैं नीचे लेट गया और सौम्या को उसी तरह से मेरे ऊपर आने को कहा, अब सौम्या की बुर मेरी तरफ थी और मुंह मेरे लंड पर था.
सौम्या ने पानी छोड़ दिया था, मेरी जीभ लपलापाती हुई अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच गई, इधर सौम्या भी मेरे लंड से खेल रही थी, पूरा का पूरा लंड वो मुंह के अन्दर भर लेती, और फिर अन्दर अपनी जीभ फिराती, कभी मेरी जांघ को चाटती और अंडे को मुंह में भरती और जब लंड को वापस चूसती तो अंडे को खूब अच्छे से मलती।
काफी देर तक यह चलता रहा, फिर मैंने सौम्या को जमीन पर पटक दिया और उसके ऊपर चढ़कर लंड को बुर में डाल दिया और फिर चोदा चोदी शुरू हो गई, सौम्या उम्म्ह… अहह… हय… याह… की आवाज के साथ हिलती रहती और बीच-बीच में अपनी कमर को उठाती जाती और लंड को अपनी बुर के और भी अन्दर लेने का प्रयास करती।
अब कभी मैं उसके ऊपर चढ़कर चुदाई करता तो कभी वो मेरे ऊपर चढ़कर मेरा बाजा बजाती, इसी तरह अगले दस मिनट तक गुत्थमगुत्थी होती रही और फिर अन्त में एक बार फिर 69 की अवस्था में आकर दोनों ने एक दूसरे के रस का आनन्द लिया।
फिर वो मेरे बगल में आकर लेट गई, शायद उसका अभी मन नहीं भरा था कि वो मेरे मुंह में अपनी चूची को ठूंसती हुई बोली- अशोक मेरा दूध पियो!
वो बारी-बारी से अपने स्तन को मेरे मुंह में भरती और मैं उसको चूसता। उसके बाद वो मेरे बगल में आकर लेट गई, हम दोनों के चेहरे एक दूसरे के सामने थे, वो बहुत खुश नजर आ रही थी, मैंने उसके गालो को सहलाना जारी रखा और वो मेरे मुरझाये हुए लंड को अपने हाथों में लेकर खेल रही थी।
तभी मैंने उसकी एक टांग को अपने कमर के ऊपर चढ़ाया और अपनी एक उंगली को उसकी गांड के अन्दर डालने का प्रयास करने लगा तो वह मेरा हाथ पकड़कर बाहर निकालते हुए बोली- क्या कर रहे हो?
मैंने कहा- कुछ नहीं, तुम्हारी गांड के छेद को ढीला कर रहा हूँ, ताकि लंड को उसके अन्दर डालूं।
तब वो कुछ नहीं बोली और मैं धीरे-धीरे उसकी गांड में उंगली डालने लगा और वो मुझसे कस कर चिपकी हुई थी। मैं पूरी स्वंतत्रता के साथ उसकी गांड में उंगली अन्दर डाले जा रहा था, बीच-बीच में वो अपने दर्द का अहसास मुझे कराती जाती थी लेकिन उसने मुझे अपनी गांड में उंगली करने से नहीं रोका.
हालांकि वो भी मेरे गांड में उंगली करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसका हाथ मेरे कूल्हे तक ही आ पा रहा था। इस तरह से काफी देर तक लगातार प्रयास करते रहने से मेरी दो उंगलियाँ उसकी गांड के अन्दर आसानी से आने जाने लगी। इधर मेरा लंड भी तैयार हो गया था.
मैंने सौम्या को पट लेटने को कहा और बोला- हो सकता है कि जितना दर्द तुम्हारी बुर को हुआ था, उससे ज्यादा गांड में हो, लेकिन एक बार दर्द सहने के बाद जैसे तुम बुर का मजा पा रही हो, गांड का भी मजा पाओगी.
फिर मैंने सौम्या से उसकी गांड फैलाने को बोला, उसने अपने कूल्हे को पकड़कर गांड को फैला दिया, मैंने अच्छे से थूक उड़ेल कर उसकी गांड को गीला किया और लंड को उसकी गांड में डालने का प्रयास किया। करीब सात आठ बार टच करके निकालना और फिर अन्दर डालने की कोशिश में सुपारा भर अन्दर जा पाया था कि सौम्या बोली- काफी दर्द हो रहा है.
मेरे भी सुपारे में जलन हो रही थी तो भी मैं सौम्या को ढांढस बंधाते हुए थोड़ा बर्दाश्त करने की सलाह दे रहा था। मैं सुपारे को बाहर नहीं निकालना चाह रहा था तो थोड़ा और जोर लगाते मेरा लंड करीब एक सेंटीमीटर और अन्दर गया.
सौम्या बोली- अशोक निकाल लो!
‘बस हो गया!’ मैं भी उसको ढांढस बंधाते हुए बोला.
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अब जितना लंड अन्दर गया था उसी को मैं थोड़ा-थोड़ अन्दर बाहर करने लगा, इसी बीच उसने अपना हाथ कूल्हे से हटा लिया. चूंकि वो विवश थी, पर थोड़ा और प्रयास करने पर लंड आधा जा चुका था और लंड ने बड़े प्यार से गांड के अन्दर अपनी जगह बना ली थी। इस तरह करते-करते मेरा पूरा लंड सौम्या की गांड के अन्दर धंस चुका था।
मैं सौम्या की पीठ पर लेट गया और उससे बोला- कैसा लग रहा है?
वो बोली- अगर निकाल लो तो मेरा दर्द खत्म हो जायेगा।
‘जान चिन्ता मत करो, जिस तरह तुम्हें बुर की चुदाई का मजा मिला है, उसी तरह तुम्हें गांड चुदाई का मजा मिलेगा।
और वास्तव में जब लंड ने पूरे गांड में जगह बना ली और आसानी से अन्दर बाहर होने लगा, तो सौम्या को भी मजा आने लगा। अब वो दर्द से चिल्लाने के बजाये आह-ओह, आह-ओह करने लगी और तब तक करती रही जब तक कि मैं उसकी गांड में झड़ नहीं गया।
उसके बाद सौम्या मुझसे चिपक गई, उसकी गांड मेरे लंड से टच कर रही थी, उसकी पीठ मेरे सीने से और मेरे दोनों हथेलियां उसकी चूचियों पर थी. पता नहीं कब नींद आ गई, लेकिन आधी रात को सौम्या की सिसकी और रोने की आवाज से मेरी नींद टूट गई, देखा कि सौम्या अपने घुटने को अपनी छाती से चिपकाये हुए कराह रही थी और बार बार अपनी गांड को सहला रही थी।
मैंने सौम्या को अपनी तरफ करते हुए कहा- क्या हुआ?
‘मेरे पीछे बहुत जलन हो रही है।’
मैं समझ चुका था कि मामला क्या है, मैं नीचे गया, सोफ्रामाईसिन की ट्यूब और हल्का कुनकुना पानी और सेवीलॉन तथा कुछ कॉटन लाकर सौम्या की गांड को सेविलॉन और कुनकुने पानी से साफ किया और फिर सोफ्रामाईसिन लगाकर उसको अपने सीने से चिपका लिया।
थोड़ी देर तक तो वो सुबकती रही, फिर वो नींद के आगोश में समा गई और मैं भी सो गया। पहले बुर की चुदाई… फिर गांड की चुदाई… दर्द तो होना ही था. सुबह जब मेरी नींद खुली तो सौम्या रसोई में थी और लंगड़ाकर चल रही थी, मैंने शरारत में पूछा- क्या हुआ?
तो उसने जोर से चिकुटी काटते हुए कहा- रात में (अपनी गांड की तरफ इशारा करते हुए) जो तुमने अपने इसको (मेरे लंड की तरफ इशारा करते हुए) डाला है, उसी का नतीजा है। मैंने उसे पीछे से चिपकाया और गर्दन को चूमते हुए कहा- डार्लिंग, बस पहली बार ही दर्द होता है, उसके बाद बहुत मजा आता है।
अपनी कोहनी को मेरे पेट पर मारते हुए बोली- मैं ही पागल थी कि तुम्हारी बातों में आ गई और अब दर्द बर्दाश्त कर रही हूँ।
मैंने नीचे बैठते हुए बोला- लाओ देखूं तो अब क्या हालत है।
हालांकि वो इस समय गाउन पहने हुए थी लेकिन अन्दर कुछ भी नहीं पहने थी, मैंने उसके गाउन उठाते हुए और उसके कूल्हे को फैलाते हुए देखा- अरे अब तो सही हो रहा है। बहुत ज्यादा समय तक तुम नहीं लंगड़ाओगी। तब तक चाय तैयार हो गई थी और हम दोनों ने चाय साथ पी, चाय पीने के बाद मैं उठा और बाथरूम की तरफ चलने लगा तो सौम्या बोली- कहाँ?
मैंने उसे घड़ी दिखाते हुए कहा- देखो, जल्दी नहा धोकर तैयार होना है, नहीं तो ऑफिस की देर हो जायेगी।
‘मतलब मैं यहाँ चल नहीं पा रही हूँ और तुम्हें ऑफिस जाने की पड़ी है?’
मैंने उसके गालों को अपने हाथों के बीच लेते हुए कहा- नहीं जान, मैं तो नहीं जाना चाहता लेकिन अभी तुम ही कहती, इसलिये मैं तैयार होने जा रहा था, अब तुम मना करती हो तो नहीं जाता।
‘हाँ मत जाओ, आज तीसरा दिन है, मेरे घर के सभी लोग शाम तक आ जायेंगे और मैं चाहती हूँ कि भले ही कुछ घंटे और ही सही मैं तुम्हारी बांहों में बिताना चाहती हूँ।’
मैं खड़ा हो गया और अपनी बाहों को फैलाते हुए कहा- आओ, मैं भी बड़ी ही बेसब्री से अपनी बांहों में तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ।
सौम्या मेरे से चिपक गई और थोड़ा इमोशनल होते हुए बोली- भले ही मुझे थोड़ा दर्द हुआ हो, लेकिन तुमने मुझे खुशियां बहुत दी हैं। तुमने तो मेरी भी बात मानी है।
मैं तो नंगा था ही, मैंने कहा- मेरे साथ नहाओगी?
उसने सर हिलाकर सहमति दी।
‘ठीक है मैं पॉटी होकर आ रहा हूँ जब मैं आवाज दूं तो तुम आ जाना।’
‘ठीक है।’
मैं चलने लगा तो उसके जिस्म पर पड़े हुए गाउन की तरफ मेरी नजर गई तो मैंने बोला- आज कपड़े कोई नहीं पहनेगा!
उसने मुस्कुराते हुए अपना गाउन उतार दिया।
मेरे मुंह से निकल पड़ा- हाय रे, मार डाला तुमने!
सौम्या ने मुस्कुराते हुए कहा- मार-मार कर मेरा कचूमर तुमने निकाल दिया और इल्जाम भी हमी पर लगा रहे हो?
फ्रेश होने के बाद मैंने सौम्या को आवाज दी, फिर हम दोनों मिलकर नहाने लगे, मैंने उसे नहलाया और उसने मुझे नहलाया। हालांकि उसकी लम्बाई काफी छोटी थी, इसलिये मेरा लंड उसके पेट में लड़ रहा था और वो आसानी से मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में भर कर मसल रही थी।
मैंने सौम्या को गोद में उठाया उसने अपने पैरों की कैंची मेरी कमर पर लगा दी और अपनी बांहों का हार मुझे पहना दिया. शॉवर का पानी हम दोनों के ऊपर गिर रहा था… मेरे होंठ सौम्या के होंठों से मिल रहे थे, दोनों जोर-जोर से एक दूसरे के होंठ को चूम रहे थे, मैं अपनी जीभ उसके मुंह में डाल रहा था और वो बड़े ही प्यार से मेरी जीभ को लॉली पॉप समझ कर चूसती और फिर वो अपनी जीभ मेरे मुंह के अन्दर भर देती।
मैंने इसी बीच पूछ लिया- अब तुम्हें उल्टी तो नहीं होती?
वो बोली- मतलब?
मैंने कहा- मेरा रस पीने के बाद जो तुम्हें उल्टी महसूस होती है वो अब होती है या नहीं?
बड़ी ही मासूमियत से वो बोली- अब चाहे रस किसी का भी हो, अब मुझे मजा आता है।
हम लोग नहा चुके थे, सौम्या और मैं रसोई में नाश्ता कर रहे थे। अभी भी हम दोनों नंगे थे और एक-दूसरे में समा जाना चाहते थे। सौम्या कमरे में आकर जमीन पर पाल्थी मार कर बैठ गई और मैंने उसकी गोदी पर सर रख दिया, सौम्या मेरे बाल सहलाने लगी, लेकिन मेरे नथूने में उसकी बुर की महक घुसती जा रही थी.
मेरे बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था, मैं पट लेट गया और उसकी बुर पर अपनी लपलपाती हुई जीभ को चलाने लगा। थोड़ी देर तो सौम्या इसी तरह से अपनी बुर चटवाती रही, लेकिन कुछ देर बाद ही उसने अपने पैरों को फैला दिया। मैं बुर चाट रहा था और वो मेरी पीठ और बालों को सहला रही थी। थोड़ी देर बाद हम दोनों एक बार 69 की अवस्था में आ गये।
69 वाली अवस्था निपटाने के बाद मैंने सौम्या से सेन्डिल पहनने को कहा, उसने सेन्डिल पहनी और मेरे बताने के अनुसार उसने अपने दोनों हाथ को बेड के पायदान पर टिका दिया, लेकिन पूछ ही बैठी- अब क्या करने वाले हो?
‘अब तुम्हारी बुर की चुदाई पीछे से करूंगा।’
इतना कहने के बाद मैंने सौम्या की टांगों को हल्का सा फैलाया और अपने लंड पर थूक लपेटने के बाद उसकी बुर पर भी थूक लपेट दिया और एक हल्का सा धक्का दिया, लंड मेरा उसकी बुर को आधा कवर कर चुका था। चूंकि लगातार चुदाई चलने से उसकी बुर खुल चुकी थी, इसलिये ज्यादा कोई परेशानी नहीं हुई।
मैंने एक बार लंड को थोड़ा बाहर निकाला और दूसरा झटका दिया, उम्म्ह… अहह… हय… याह… इस बार मेरा पूरा लंड अन्दर जा चुका था। सौम्या के दोनों सन्तरे मेरे हाथ में थे। उसकी बुर को चोदने के साथ-साथ उसकी चूची को दबाने का मजा भी आ रहा था। सौम्या भी मजे से आह-ओह करके चुदाई का आनन्द ले रही थी।
अब उसकी बुर ढीली पड़ रही थी और थोड़ा बहुत गीलापन लेने लगी थी, क्योंकि अब लंड और बुर के मिलन से फच-फच की आवाज आ रही थी। थोड़ी देर इस अवस्था में करने के बाद, मैंने सौम्या को पलंग पर चित किया और उसकी टांगों को हवा में उठाकर अपनी तरफ खींचा.
सौम्या का जिस्म आधा हवा में लटक गया और उसकी बुर मेरे लंड से टकराने लगी, अब लंड उसकी बुर में आसानी से जा रहा था। एक बार मेरा लंड फिर युद्ध भूमि में चला गया था। उसका जिस्म आधा हवा में था, उसने अपने दोनों हाथ गद्दे पर टिका दिये और ओह-ओह करके मजा लेने लगी.
मैंने सौम्या से कहा- चिल्लाना हो तो खुलकर चिल्ला सकती हो।
करीब 20-25 धक्के इस तरह मारने के बाद मैंने सौम्या को पूरी तरह से हवा में कर दिया, मतलब मैंने सौम्या के आधे लटके हुए जिस्म को बहुत ही प्यार से पलंग से हटाकर हवा में लटका दिया, और उसके बाद अपने जिस्म से चिपका लिया। उसके बाद सौम्या ने मुझे पलंग पर लेटने को कहा और खुद मेरे लंड की सवारी करने लगी। वो उछल रही थी, उसकी चूची भी उछल रही थी। सौम्या अपनी आँखें बन्द किये हुए उछालें भर रही थी।
मैंने सौम्या से कहा- सौम्या, एक बार फिर पहले वाली अवस्था में आ जाओ!
‘क्यों?’ उसने हाथ मटका कर प्रश्न पूछा.
‘तुम्हारी गांड मारनी है।’
बिना कुछ कहे वो मेरे ऊपर से उतर गई और उसी तरह खड़ी हो गई। मैंने अपनी हथेली सौम्या की तरफ करके उस पर थूकने उड़ेलने के लिये कहा, उसने मेरे कहे अनुसार किया, फिर मैंने भी उस थूक में अपने थूक को मिलाया और सौम्या की गांड में लगा दिया.
और फिर थोड़ा बहुत मेरी जीभ ने उसकी गांड को गीला कर दिया, उसके बाद उंगली अन्दर डालकर उसे खोलने का प्रयास कर रहा था, जब समझ में आ गया कि अब लंड अन्दर जा सकता है तो मैंने अपना सुपारा सौम्या की गांड में सेट किया और हल्का सा धक्का दिया.
‘आह…’ बस इतना ही बोल पाई थी.
दो-तीन बार ऐसा दोहराने के बाद लंड करीब आधा से ज्यादा अन्दर चला गया था, मैं अब धीरे-धीरे अन्दर बाहर कर रहा था। इस तरह करते-करते लंड अपनी जगह बना चुका था, सौम्या को भी मजा आने लगा था, वो एक हाथ से अपनी बुर को सहलाती जाती और बीच-बीच में थूक भी अपनी बुर में लगाती जाती, शायद उसकी बुर में खुजली बढ़ रही थी.
मैंने भी उसकी बुर और गांड की खुजली एक साथ मिटाने की तैयारी की और उसकी बुर और गांड को एक साथ चोदने लगा। अब मेरी स्पीड बढ़ती जा रही थी और उधर सौम्या भी अपने एक्शन से बता रही थी कि वो भी चरम पर पहुंच चुकी है।
इधर मुझे भी एहसास हो रहा था कि मेरा माल भी बाहर आने को तैयार है, मैंने सौम्या की बुर से लंड निकाला और लंड को उसके मुंह की तरफ ले गया, सौम्या किसी मंझे हुए खिलाड़ी की तरह मेरे लंड को चूसने लगी और लंड से निकलते हुए रस को पीने लगी.
जब उसने मेरे लंड का रस पूरी तरह से पी लिया तो मैंने सौम्या को एक बार फिर पलंग पर लेटाया और उसकी टांग को हवा में उठाकर उसकी बुर पर अपनी जीभ लगा दी और उसके बुर से बहते हुए रस का सेवन करने लगा। एक दौर खत्म हो चुका था… मेरा लंड मुरझा चुका था और सौम्या भी सुस्त हो चुकी थी।
सौम्या उठकर बैठ चुकी थी लेकिन इतनी सुस्ती छाने के बाद भी मुझे उसके मम्मे आकर्षित कर रहे थे, खासतौर पर उसके मम्मों के बीचोबीच भूरे-काले रंग के बिन्दी, जो तने हुए थे और मुझे बताने की कोशिश कर रहे थे कि सौम्या अभी भी चाह रही है कि मैं उसके मम्मो को पियूं।
सौम्या शायद मेरे मन के भाव को समझ गई थी, इसलिये अपने मम्मे को पकड़कर मेरे मुंह में डालते हुए बोली- मेरे प्रियतम, लो इसको पियो!
मैं बारी-बारी से उसके दोनों निप्पल को चूसने लगा। मैं उसके दूध को पीने का मजा ले रहा था और सौम्या अपने कोमल हाथों से मेरे जिस्म को सहला रही थी खासतौर से जांघ और लंड के आस पास की जगह को! लेकिन लंड महराज अभी मूड में नहीं थे.
तभी सौम्या ने मुझे बिस्तर पर धकेल दिया और मेरे ऊपर लेट गई और मेरे हाथों को पकड़ कर अपने मम्मों के ऊपर रख दिए। मेरे लिये आसान था, वो ऊपर से मेरे लंड को किसी तरह से अपनी बुर पर टच करने की कोशिश करती, इधर मैं उसकी चूची को मसलने के साथ-साथ उसके मुलायम बुर को भी सहला रहा था.
उसकी दोनों फांकों को मल रहा था और दाने को अपनी उंगलियों के बीच लेकर उसे बड़ी ही बेदर्दी के साथ मसल रहा था। जबकि सौम्या मेरे लंड के सुपारे को अपने नाखून से रगड़ रही थी. धीरे धीरे लंड टाइट होने लगा और उसकी बुर से टकराने लगा।
अब सौम्या एकदम से पल्टी और मेरे जिस्म से खेलने लगी, वो मेरे निप्पल को अपने दांतों से काट रही थी तो कभी उसके ऊपर अपनी जीभ चला रही थी। धीरे-धीरे वो अपनी जीभ को मेरे पूरे जिस्म पर चलाती जा रही थी, वो नाभि तक पहुंच चुकी थी, मेरे दोनों पैरों के एड़ी कूल्हों से टच करने लगी।
सौम्या अब मेरे पैरों के बीच में आ चुकी थी और वो मेरे लंड को अपने मुंह के अन्दर लेकर मेरे अंडों के मसल रही थी, हालांकि अंडे दबने के कारण मुझे कुछ दर्द से महसूस होने लगा था, लेकिन मजा भी बहुत आ रहा था. फिर वो मेरे अण्डों को अपने मुंह में भरकर अपनी एक उंगली को मेरे गांड के अन्दर डालने लगी.
मैं कुछ चिहुंका, लेकिन सोचकर कि मैंने भी इसकी गांड में उंगली भी की थी और गांड मारी भी थी, मैंने अपनी कमर थोड़ा सा हवा में उठा लिया ताकि उसको आसानी हो जाये। फिर सौम्या ने मेरे कूल्हे को अच्छे से फैलाया और अपनी जीभ लगा दी।
मैंने पूछा- सौम्या यह क्या कर रही हो?
वो कुछ बोली नहीं और अपना काम जारी रखा. जब फोर प्ले से वो फुर्सत पा गई तो वो नीचे से ऊपर की तरफ बड़े ही अदा से आने लगी और एक बार फिर मेरे ऊपर चढ़ गई और इस बार मेरे लंड को अपनी बुर के अन्दर भर लिया और लेटे ही लेटे वो अपनी कमर चलाने लगी, मेरा लंड उसकी बुर के अन्दर इधर से उधर टहलने लगा।
वो लगातार ऐसा ही करती जा रही थी, मैंने पूछा- अगर थक गई हो तो नीचे आ जाओ?
वो बोली- नहीं, मुझे बहुत मजा आ रहा है।
मैं बोला- जब मेरा निकलने वाला होगा और तुम समय से नहीं हटी तो मेरा पूरा माल तुम्हारे अन्दर ही चला जायेगा।
‘नहीं, मैं समय से हट जाऊंगी।’
काफी देर तक वो इस अवस्था में करती रही, मेरा माल निकलने को था, मैंने सौम्या को बताया तो वाकयी में वो हट गई और उसके हटते ही मेरा माल मेरे जांघ के आसपास गिरने लगा। सौम्या निःसंकोच उस वीर्य को चाटने लगी। वास्तव में हम दोनों थक चुके थे।
सौम्या मेरे सीने से लगकर लेट गई, थोड़ी देर तक वो मेरे सीने के बालों से खेलती रही और मैं उसके सर को सहलाता रहा। फिर वो उठी और टॉयलेट चली गई, उसके लौटने के बाद मैं भी फ्रेश होने चल दिया। अब भूख लगने लगी थी, ऑर्डर पर खाना मँगाया गया। खाना खत्म-खत्म होने तक सौम्या के जाने का टाईम हो चला था, वो जाने की तैयारी कर रही थी.
हालांकि वो अभी पेंटी और ब्रा में ही थी और वो मुझे इतनी सेक्सी लग रही थी, खासतौर से उसकी गांड कि मेरा लंड एक बार फिर टनटना गया और मैंने पीछे से उसको कस कर जकड़ लिया, उसके गालों और गले को बेतहाशा चूमने लगा.
वो मेरे गालों को सहलाते हुए बोली- क्या हुआ?
‘कुछ नहीं, इस ब्रा और पेंटी में तुम मुझे बहुत सेक्सी लग रही हो, इन कपड़ों में तुम्हारा जिस्म मेरे दिमाग में हावी होता जा रहा था और मेरा लंड भी टनटना गया।’ मैंने सोच लिया था कि मैं इन शब्दों को खुलकर बोलूंगा इसलिये मैं बिना रूके सौम्या से बोलता जा रहा था कि और सोच रहा हूँ कि तुम्हारी गांड और बुर की चुदाई एक बार और कर लूं।
वो मेरी तरफ घूमी और मेरी आंखों में आंखें डालकर देखते हुए बोली- तो साहब आपको मैं पेंटी और ब्रा में गजब की सेक्सी दिख रही हूँ और आपका लंड टनटना गया है, इसलिये आप मेरे गांड और बुर में अपना लंड डालना चाहते है। देखूं तो मैं भी जरा आपके लंड को?
कह कर नीचे बैठ गई और मेरे टनटनाये हुए लंड पर अपनी उंगलियों को नचाते हुए बोली- वास्तव में मेरे साहब का लंड टनटना गया है।
अपनी उंगली मेरे लंड पर चलाते हुए बोली- मेरी बुर और गांड में आपको तभी जाने दूंगी, जब आप मेरी शर्त मानेंगे?
मैंने पूछा- क्या?
तो मुझे चुप कराते हुए बोली- मैं आपसे नहीं, आपके लंड से बात कर रही हूँ।
मेरा लंड तो टाईट था ही और झटके भी खा रहा था। मेरा लंड सौम्या की बात पर ऊपर नीचे की ओर झटका खा रहा था, ऐसा लगा कि वो अपनी सहमति दे रहा हो।
सौम्या बोली- हाँ ये हुई न बात! तो शर्त यह है कि इसके बाद आप मुझसे मेरी बुर और गांड की डिमांड नहीं करेंगे।
लंड ने एक बार फिर अपनी सहमति दे दी।
प्यार से लंड को चपत लगाते हुए बोली- ये हुई न बात! कहकर लंड को अपने मुंह में भर लिया और आईसक्रीम की तरह चूसने लगी। कुछ देर चूसने के बाद सौम्या खड़ी हुई और अपनी पेंटी उतारने लगी.
मैंने उसे रोकते हुए कहा- नहीं इस बार तुम पेंटी पहने ही रहो, बस थोड़ा झुक जाओ!
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वो झुक गई। मैंने उसकी पेंटी को एक किनारे किया और उसकी गांड और बुर को थोड़ा सा चाटकर गीला किया। उसके बाद लंड महराज को अन्दर प्रवेश करा दिया। चुदाई का दौर शुरू हो चुका था। मैं उसकी गांड और बुर को बारी-बारी से चोद रहा था और वो भी आह-ओह करके मेरा उत्साह बढ़ा रही थी।
8-10 मिनट तक मेरे लंड और उसकी बुर और गांड के बीच चोदा चोदी होती रही कि अचानक सौम्या चिल्लाई- अशोक, मेरे अन्दर से कुछ निकल रहा है! इतना कहकर वो ढीली पड़ गई।
अंत में मैं जब झड़ने को हुआ तो एक बार फिर सौम्या ने अपने मुंह में मेरा पूरा माल ले लिया। फिर दोनों लोग अपने आपको साफ किये और सौम्या घर जाने के लिये तैयार हुई।
मेरे होंठों को चूमते हुए बोली- इन तीन दिनों को मैं भूल नहीं सकती। जिन्दगी भर मेरे अहसास में यह दिन रहेगा।
उसके बाद वो चली गई। हालांकि उसके बाद सौम्या से मिलना केवल ऑफिस में होता है। अब सौम्या में इतना बदलाव मेरे प्रति आया है कि वो अब मेरा ध्यान ऑफिस में रखती है और मैं यह ध्यान रखता हूँ कि मेरी वजह से वो दूसरों के सामने रूसवा न हो।