Bhai Bahan Hot Kahani
मैं 20 साल की लड़की हूँ। यह मेरी असली कहानी है। मैं अपने बारे में शुरू से बताती हूँ। मैं अपने घर में अपने भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर हूँ। सबसे बड़े भैया हैं जो आर्मी में हैं। उनकी शादी नहीं हुई है। मुझसे छोटा एक भाई है। मैं हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करती हूँ। Bhai Bahan Hot Kahani
एक दिन मेरे भैया मुझसे मिलने हॉस्टल आए। मैं उन्हें देखकर बहुत खुश हुई। वो सीधे आर्मी से मेरे पास ही आए थे और अब घर जा रहे थे। मैंने भी उनके साथ घर जाने का मन बना लिया और कॉलेज से 8 दिन की छुट्टी लेकर मैं और भैया घर के लिए रवाना हो गए। जिस ट्रेन से हम घर जा रहे थे, उसमें मेरा रिजर्वेशन नहीं था, सिर्फ भैया का था।
इसलिए हमें सिंगल बर्थ ही मिली। ट्रेन में बहुत भीड़ थी। अभी रात के 11 बजे थे। हम इस ट्रेन से सुबह घर पहुंचने वाले थे। मैं और भैया उस अकेली बर्थ पर बैठ गए। सर्दियों के दिन थे। आधी रात के बाद ठंड बहुत हो जाती थी। भैया ने बैग से कंबल निकालकर आधा मुझे उढ़ा दिया और आधा खुद ओढ़ लिया।
मैं मुस्कुराती हुई उनके साथ सटकर बैठ गई। सारी सवारियां सोने लगी थीं। ट्रेन अपनी रफ्तार से भागी जा रही थी। मुझे भी नींद आने लगी थी और भैया को भी। भैया ने मुझे अपनी गोद में सिर रखकर सो जाने के लिए कहा। भैया का इशारा मिलते ही मैं उनकी गोद में सिर टिका और पैरों को फैला लिया।
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मैं उनकी गोद में आराम के लिए अच्छी तरह ऊपर को हो गई। भैया ने भी पैर समेटकर अच्छी तरह कंबल में मुझे और खुद को ढंक लिया और मेरे ऊपर एक हाथ रखकर बैठ गए। तब तक मैंने कभी किसी पुरुष को इतने करीब से टच नहीं किया था। भैया की मोटी-मोटी जांघ ने मुझे बहुत आराम पहुंचाया।
मेरा एक गाल उनकी दोनों जांघों के बीच रखा हुआ था और एक हाथ से मैंने उनके पैरों को कौलियों में भर रखा था। तभी मेरे सोते हुए दिमाग ने झटका सा खाया। मेरी आंखों से नींद गायब हो गई। वजह थी भैया की जांघ के बीच का स्थान फूलता जा रहा था। और जब मेरे गाल पर टच करने लगा तो मैं समझ गई कि वो क्या चीज है।
मेरी जवानी अंगड़ाइयां लेने लगी। मैं समझ गई कि भैया का लंड मेरे बदन का स्पर्श पाकर उठ रहा है। ये ख्याल मेरे मन में आते ही मेरे दिल की गति बढ़ गई। मैंने गाल को दबाकर उनके लंड का जायजा लिया जो जिप वाले स्थान पर तन गया था। भैया भी थोड़े से कसमसाए थे।
शायद वो भी मेरे बदन से गर्म हो गए थे। तभी तो वो बार-बार मुझे अच्छी तरह अपनी टांगों में समेटने की कोशिश कर रहे थे। अब उनकी क्या कहूं, मैं खुद भी बहुत गर्म होने लगी थी। मैंने उनके लंड को अच्छी तरह से महसूस करने की गरज से करवट बदली। अब मेरा मुंह भैया के पेट के सामने था।
मैंने करवट लेने के बहाने ही अपना एक हाथ उनकी गोद में रख दिया और सरकते हुए पैंट के उभरे हुए प्लेस पर आकर रुकी। मैंने अपने हाथ को वहां से हटाया नहीं बल्कि दबाव देकर उनके लंड को देखा। उधर भैया ने भी मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे अपने से चिपका लिया।
मैंने बिना कुछ सोचे उनके लंड को उंगलियों से टटोलना शुरू कर दिया। उस वक्त भैया भी शायद मेरी हरकत को जान गए। तभी तो वो मेरी पीठ को सहलाने लगे थे। हिचकोले लेती ट्रेन जितनी तूफानी रफ्तार पकड़ रही थी, उतना ही मेरे अंदर तूफान उभरता जा रहा था।
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भैया की तरफ से कोई रिएक्शन न होते देख मेरी हिम्मत बढ़ी और अब मैंने उनकी जांघों पर से अपना सिर थोड़ा सा पीछे खींचकर उनकी जिप को धीरे-धीरे खोल दिया। भैया इस पर भी कुछ कहने की बजाय मेरी कमर को कस-कसकर दबा रहे थे। पैंट के नीचे उन्होंने अंडरवियर पहन रखा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मेरी सारी झिझक न जाने कहां चली गई थी। मैंने उनकी जिप के खुले हिस्से से हाथ अंदर डाला और अंडरवियर के अंदर हाथ डालकर उनके हैवी लंड को बाहर खींच लिया। अंधेरे के कारण मैं उसे देख तो न सकी मगर हाथ से पकड़कर ही ऊपर-नीचे करके उसकी लंबाई-मोटाई को नापा। 7-8 इंच लंबा, 3 इंच मोटा लंड था।
बजाय देर के मेरे दिल के सारे तार झनझना गए। इधर मेरे हाथ में लंड था, उधर मेरी पैंट में कसी बुर बुरी तरह फड़फड़ा उठी। इस वक्त मेरे बदन पर टाइट जींस और टी-शर्ट थी। मेरे इतना करने पर भैया भी अपने हाथों को बिना झिझक होकर हरकत देने लगे थे।
वो मेरी शर्ट को जींस से खींचने के बाद उसे मेरे बदन से हटाना चाह रहे थे। मैं उनके दिल की बात समझते हुए थोड़ा ऊपर उठ गई। अब भैया ने मेरी नंगी पीठ पर हाथ फेरना शुरू किया तो मेरे बदन में करंट दौड़ने लगा। उधर उन्होंने अपने हाथों को मेरी अनछुई चूचियों पर पहुंचाया, इधर मैंने सिसकी लेकर झटके खाते लंड को गाल के साथ सटाकर जोर से दबा दिया।
भैया मेरी चूचियों को सहलाते-सहलाते धीरे-धीरे दबाने भी लगे थे। मैंने उनके लंड को गाल से सहलाया। भैया ने एक बार बहुत जोर से मेरी चूचियों को दबाया तो मेरे मुंह से कराह निकल गई। दोनों में इस समय भले ही बातचीत नहीं हो रही थी मगर एक-दूसरे के दिलों की बातें अच्छी तरह समझ रहे थे।
भैया एक हाथ को सरकाकर पीछे की ओर से मेरी पैंट की बेल्ट में अपना हाथ घुसा रहे थे। मगर पैंट टाइट होने की वजह से उनकी थोड़ी-थोड़ी उंगलियां ही अंदर जा सकीं। मैंने उनके हाथ को सुविधा अनुसार मनचाही जगह पर पहुंचने देने के लिए अपने हाथ नीचे लाई और पैंट की बेल्ट को खोल दिया।
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उनका हाथ अंदर पहुंचा और मेरे भारी चूतड़ों को दबोचने लगा। उन्होंने मेरी गांड को भी उंगली से सहलाया। उनका हाथ जब और नीचे यानी जांघों पर पैंट टाइट होने के कारण न पहुंच सका तो वो हाथ को पीछे से खींचकर सामने की ओर लाए। इस बार उन्होंने मेरी पैंट की जिप खुद खोली और मेरी बुर पर हाथ फेराया।
बुर पर हाथ लगते ही मैं बेचैन हो गई। वो मेरी फूली हुई बुर को मुट्ठी में लेकर भींच रहे थे। मैंने बेबसी से अपना सिर थोड़ा सा ऊपर उठाकर भैया का सुपारा चूमा और उसे मुंह में लाने की कोशिश की परंतु उसकी मोटाई के कारण मैंने उसे मुंह में लेना उचित न समझा और उसे जीभ निकालकर चाटने लगी।
मेरी गर्म और खुरदरी जीभ के स्पर्श से भैया बुरी तरह आवेशित हो गए। उन्होंने आवेश में भरकर मेरी गीली बुर को टटोलते हुए एक झटके से बुर में उंगली घुसा दी। मैं सिसकी भरकर उनके लंड सहित कमर से लिपट गई। मेरा दिल कर रहा था कि भैया फौरन अपनी उंगली को निकालकर मेरी बुर में अपना लंड ठूंस दें।
मेरी ये इच्छा भी जल्द ही पूरी हो गई। भैया मेरी टांगों में हाथ डालकर अपनी तरफ खींचने लगे थे। मैंने उनकी इच्छा को समझकर अपना सिर उनकी जांघों से उतारा और कंबल के अंदर ही अंदर घूम गई। अब मेरी टांगें भैया की तरफ थीं और मेरा सिर बर्थ के दूसरी तरफ था।
भैया ने अब अपनी टांगों को मेरे बराबर में फैलाया, फिर मेरे कूल्हों को उठाकर अपनी टांगों पर चढ़ा लिया और धीरे-धीरे करके पहले मेरी पैंट खींचकर उतार दी और उसके बाद मेरी पैंटी को भी खींचकर उतार दिया। अब मैं कंबल में पूरी तरह नीचे से नंगी थी। अब शायद मेरी बारी थी।
मैंने भी भैया की पैंट और अंडरवियर को बहुत प्यार से उतार दिया। अब भैया ने थोड़ा आगे सरककर मेरी टांगों को खींचकर अपनी कमर के इर्द-गिर्द करके पीछे की ओर लिपटवा दिया। इस समय मैं पूरी की पूरी उनकी टांगों पर बोझ बनी हुई थी। मेरा सिर उनके पंजों पर रखा हुआ था।
मैंने जरा सा कंबल हटाकर आसपास की सवारियों पर नजर डाली, सभी नींद में मस्त थे। किसी का भी ध्यान हमारी तरफ नहीं था। फिर मेरी नजर भैया की तरफ पड़ी, उनका चेहरा आवेश के कारण लाल भभूका हो रहा था। वो मेरी ओर ही देख रहे थे, न जाने क्यों उनकी नजरों से मुझे बहुत शर्म आई। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
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और मैंने वापस कंबल के अंदर अपना मुंह छुपा लिया। भैया ने फिर मेरी बुर को टटोला। मेरी बुर इस समय पूरी तरह रस से भरी हुई थी। फिर भी भैया ने ढेर सारा थूक उस पर लगाया और अपने लंड को मेरी बुर पर रखा। उनके गर्म सुपारे ने मेरे अंदर आग धक दी।
फिर उन्होंने टटोलकर मेरी बुर के मुहाने को देखा और अच्छी तरह सुपारा बुर के मुंह पर रखने के बाद मेरी जांघें पकड़कर हल्का सा धक्का दिया मगर लंड अंदर नहीं गया बल्कि ऊपर की ओर हो गया। भैया ने इसी तरह एक-दो बार और ट्राई किया। वो आसपास की सवारियों की वजह से बहुत सावधानी बरत रहे थे।
इस तरह जब वो लंड न डाल सके तो खीजकर अपने लंड को मेरी बुर के आसपास मसलने लगे। मैंने अब शर्म त्यागकर मुंह खोला और उन्हें सवालिया निगाहों से देखा। वो बड़ी बेबस निगाहों से मुझे देख रहे थे। मैंने सिर और आंखों के इशारे से पूछा, “क्या हुआ?”
तब वो थोड़े से नीचे झुककर धीरे से फुसफुसाए, “आसपास सवारियां मौजूद हैं बब्बी, इसलिए मैं आराम से काम करना चाहता था मगर इस तरह होगा ही नहीं, थोड़ी ताकत लगानी पड़ेगी।”
“तो लगाओ न ताकत भैया।” मैं उखड़े स्वर में बोली।
“ताकत तो मैं लगा दूंगा परंतु तुम्हें कष्ट होगा, क्या बर्दाश्त कर लोगी?”
“आप फिक्र न करें। कितना ही कष्ट क्यों न हो, मैं एक उफ तक न करूंगी। आप लंड डालने में चाहे पूरी शक्ति ही क्यों न झोंक दें।”
“तब ठीक है। मैं अभी अंदर करता हूँ।” भैया को इत्मिनान हो गया। और इस बार उन्होंने दूसरी ही तरकीब से काम लिया। उन्होंने उसी तरह बैठे हुए मुझे अपनी टांगों पर उठाकर बिठाया और दोनों को अच्छी तरह कंबल से लपेटने के बाद मुझे अपने पेट से चिपकाकर थोड़ा सा ऊपर किया और इस बार बिल्कुल छत की दिशा में लंड को रखकर और मेरी बुर को टटोलकर उसे अपने सुपारे पर टिका।
मैं उनके लंड पर बैठ गई। अभी मैंने अपना भार नीचे नहीं गिराया था। मैंने सुविधा के लिए भैया के कंधों पर अपने हाथ रख लिए। भैया ने मेरे कूल्हों को कसकर पकड़ा और मुझसे बोले, “अब एकदम से नीचे बैठ जाओ।” मैं मुस्कुराई और एक तेज झटका अपने बदन को देकर उनके लंड पर चपक से बैठ गई।
उधर भैया ने भी मेरे बदन को नीचे की ओर दबाया। अचानक मुझे लगा जैसे कोई तेज धार खंजर मेरी बुर में घुस गया हो। मैं तकलीफ से बिलबिला गई। क्योंकि मेरी और भैया की मिलीजुली ताकत के कारण उनका विशाल लंड मेरी बुर के बंद दरवाजे को तोड़ता हुआ अंदर समा गया और मैं सरकती हुई भैया की गोद में जाकर रुकी।
मैंने तड़पकर उठना चाहा परंतु भैया की गिरफ्त से मैं आजाद न हो सकी। अगर ट्रेन में बैठी सवारियों का ख्याल न होता तो मैं बुरी तरह चीख पड़ती। मैं मचलते हुए वापस भैया के पैरों पर पड़ी तो बुर में लंड तनने के कारण मुझे और पीड़ा का सामना करना पड़ा। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैं उनके पैरों पर पड़ी-पड़ी बिन पानी मछली की तरह तड़पने लगी। भैया मुझे हाथों से दिलासा देते हुए मेरी चूचियों को सहला रहे थे। करीब 10 मिनट बाद मेरा दर्द कुछ हल्का हुआ तो भैया कूल्हों को हल्के-हल्के हिलाकर अंदर-बाहर करने लगे। फिर दर्द कम होते-होते बिल्कुल ही समाप्त हो गया।
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और मैं असीमित सुख के सागर में गोते लगाने लगी। भैया धीरे से लंड खींचकर अंदर डाल देते थे। उनके लंड के अंदर-बाहर करने से मेरी बुर से चपक-चपक की अजीब-अजीब सी आवाजें पैदा हो रही थीं। मैंने अपनी कुहनियों को बर्थ पर टिकाकर बदन को ऊपर उठा रखा था और खुद थोड़ा सा आगे सरककर अपनी बुर को वापस उनके लंड पर धकेल देती थी। इस तरह से आधे घंटे तक धीरे-धीरे से चोदा-चोदी का खेल चलता रहा और अंत में मैंने जो सुख पाया उसे मैं बयान नहीं कर सकती।
भैया ने तौलिया निकालकर पहले मेरी बुर को पोंछा जो खून और हम दोनों के रस और बीज से सनी हुई थी। उसके बाद मैंने उनके लंड को पोंछा और फिर बारी-बारी से बाथरूम में जाकर फ्रेश हुए और कपड़े पहने। मेरे पूरे बदन में मीठा-मीठा दर्द हो रहा था। यहीं से हम दोनों भाई-बहन न होकर प्रेमी-प्रेमिका बन गए। अब जब भी भैया घर आते हैं, मुझे बिना चोदे नहीं मानते। मुझे भी उनका इंतजार रहता है। मगर अभी तक किसी और को मैंने अपना बदन नहीं सौंपा है और न कोई इरादा है। आगे राम जाने।
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