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कॉलेज गर्ल ने पहली चुदाई का मजा लिया

फ़रवरी 13, 2025 by hamari

Lover Valentine Sex

इस कहानी की मुख्य पात्र है श्रृष्टि जिसे सब श्रृष्टि के नाम से ही बुलाते थे। वो एक छोटे से शहर में पैदा हुई थी और एक मध्यम वर्ग परिवार से थी। दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई के बाद उसे आगे की पढ़ाई के लिए अपने शहर से दूर दूसरे शहर में जाना पड़ा। माँ बाप की इच्छा थी कि उनकी बेटी पढ़ लिख कर कुछ बन जाए ताकि कल जब उसकी शादी हो तो कम दहेज से काम चल जाए। Lover Valentine Sex

श्रृष्टि पढ़ाई में अच्छी थी पर जब वो अपने छोटे से शहर से निकल कर बड़े शहर में गई तो वहाँ की हवा ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया। वो सरकारी बस में बैठ कर जाती थी। जो लोग ऐसी बसों में सफर करते हैं उनको पता है कि उन बसों में भीड़ कितनी होती है। इन्ही बसों की भीड़ में श्रृष्टि को अपने बदन पर पराये लोगों के हाथों का स्पर्श पहली बार महसूस हुआ था।

कमसिन जवान लड़की के बदन पर जब इन हाथों का स्पर्श हुआ तो बदन एक अलग सी अंगड़ाई लेने लगा था। शुरू शुरू में तो श्रृष्टि को यह अजीब लगा पर फिर धीरे धीरे उसे भी इन सब में मज़ा आने लगा। बस की भीड़ में अक्सर कोई ना कोई मर्द जब श्रृष्टि से चिपक के खड़ा होता तो श्रृष्टि में बदन में बेचैनी होने लगती।

कभी कभी कोई मजनूँ जब उसकी गांड में ऊँगली लगा देता तो वो उचक पड़ती थी। पहले पहले तो वो अक्सर इन सब हरकतों से बचने की कोशिश करती रहती थी पर अब उसे ये अच्छा लगने लगा था। अब जब कोई मर्द उस से चिपक कर अपना लण्ड उसकी गांड से सटा कर खड़ा हो जाता तो वो अपनी गांड पीछे कर के उस लण्ड का पूरा एहसास अपनी गांड पर महसूस करने की कोशिश करती। इन सब में उसे अब बहुत मज़ा आता था।

शहर में भी बहुत से लड़के उसके आगे पीछे उस से दोस्ती करने के लिए घूमने लगे थे पर वो किसी को घास नहीं डालती थी। पर फिर इस कमसिन कबूतरी की जिंदगी एक अलग मोड़ लेने लगी। और एक दिन… वो दिन श्रृष्टि की जिंदगी बदल गया। उस दिन उसका अठारहवां जन्मदिन था।

शहर में उसकी एक महिला अध्यापिका (जिसका नाम सविता था) ने अपने घर पर श्रृष्टि का जन्मदिन मनाने का प्रबन्ध किया। और फिर आधी छुट्टी के बाद वो श्रृष्टि और उसकी एक दो दूसरी सहेलियों को लेकर अपने घर चली गई। वह पर उन सबने मिल कर श्रृष्टि के जन्मदिन का केक काटा और सबने खाया और फिर नाच गाना हुआ।

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उसके बाद सविता ने उन सबको टीवी पर एक फिल्म दिखाई। फिल्म जैसे ही शुरू हुई सब लड़कियाँ शर्म के मारे एक दूसरे का मुँह देखने लगी। यह एक अश्लील फिल्म थी जिसमे दो नंगे बदन एक दूसरे से लिपटे हुए वासना के समंदर में गोते लगा रहे थे। एक मर्द जो बिल्कुल नंगा होकर अपने लंबे से और मोटे से लण्ड को एक बिल्कुल नंगी लड़की की चूत में डाल कर बहुत जोर जोर से अंदर-बाहर कर रहा था।

वो लड़की भी मस्ती के मारे आहें भर रही थी। यह देख कर सब लड़कियाँ पानी पानी हो रही थी। पर सविता ने उनको समझाया कि जिस उम्र में वो सब हैं, उन्हें इस सब का ज्ञान होना बहुत जरुरी है। फिर सविता ने उन सबको विस्तार से लण्ड, चूत और चुदाई के बारे में बताया।

उस दिन जब श्रृष्टि अपने घर वापिस आई तो बहुत बेचैन थी। रह रह कर उसकी आँखों के सामने फिल्म के वही चुदाई के दृश्य घूम रहे थे। सोच सोच कर उसकी चूत बार बार गीली हो रही थी। ऐसा नहीं था कि पहले कभी श्रृष्टि की चूत गीली नहीं हुई थी पर आज जितनी गीली कभी नहीं हुई थी।

रात को सोने के बाद भी वही सब कुछ आँखों के सामने घूमता रहा और ना जाने कब श्रृष्टि का हाथ अपनी चूत पर चला गया और वो उसको सहलाने लगी। चूत को सहलाने में उसे बहुत मज़ा आ रहा था। कुछ ही देर बाद उसकी चूत में कसमसाहट सी होने लगी और बदन अकड़ने लगा तो वो जोर जोर से अपनी चूत को अपनी उंगली से रगड़ने लगी और फिर पहली बार श्रृष्टि की चूत से मस्ती का झरना बह निकला।

बदन एकदम से हल्का हो गया और फिर वो नींद के आगोश में खो गई। उस दिन के बाद से श्रृष्टि की चूत में बहुत खुजली होने लगी। अब उसकी नजरें लड़कों की पेंट में कैद लण्ड को ताकती थी। उसका दिल करने लगा था कि कोई आये और अपना लण्ड फिल्म की तरह से उसकी चूत में डाल कर उसकी चूत की खुजली मिटा दे। पर दिल के किसी कोने में एक डर था जो उसे यह सब करने से रोक रहा था।

सविता मैडम अब बहुत अच्छी लगने लगी थी और अब वो सविता मैडम से हर बात कर लेती थी। एक दिन बातों बातों में ही श्रृष्टि ने सविता को बता दिया कि जब से उसने वो फिल्म देखी है उसके नीचे बहुत खुजली रहने लगी है। सविता यह सुन कर बहुत खुश हो गई।

फाइनल पेपर जल्द ही होने वाले थे तो सविता ने श्रृष्टि के पापा के पास फोन करके उसको पेपर होने तक अपने पास रख कर पेपर की तैयारी करवाने की बात कही। रोज आने जाने की दिक्कत और बिना पैसे की ट्यूशन दोनों ही मतलब की बात थी। श्रृष्टि के पापा ने हाँ कर दी। और फिर श्रृष्टि शहर में सविता के पास ही रहने लगी।

सविता… वो एक तीस-बतीस साल की तलाकशुदा औरत थी। सविता का बदन एकदम भरा भरा सा था। बड़े बड़े चूचे, नीचे पतली कमर और फिर नीचे मस्त गोल गोल गाण्ड। खूबसूरत बदन की मालकिन सविता की शादी छ: साल पहले हुई थी पर चार साल की विवाहित जिंदगी में सविता ने कोई सुख नहीं देखा था।

फिर दो साल पहले उसके पति ने एक दूसरी औरत के लिए सविता को तलाक दे दिया। तब से सविता अकेली ही रह रही थी और स्कूल में नौकरी करके अपना गुज़ारा कर रही थी। श्रृष्टि के आने से सविता का अकेलापन दूर हो गया था। पहली ही रात सविता ने श्रृष्टि को फिर से वही ब्लू फिल्म दिखाई और फिर कपड़े उतार कर श्रृष्टि को बाहों में भर कर बिस्तर पर लेट गई।

श्रृष्टि को तो कुछ पता नहीं था पर उसकी मास्टरनी सविता पूरी माहिर थी। बेड पर लेटते ही सविता ने श्रृष्टि के बदन को चूमना चाटना शुरू कर दिया। सविता श्रृष्टि के बदन को अपनी जीभ से चाट रही थी। और श्रृष्टि के बदन में कीड़े दौड़ने लगे थे। बदन में सरसराहट सी हो रही थी।

सविता ने श्रृष्टि के होंठ चूमे, उसकी चूचियों को अपने होंठो से चूमा और अपने दांतों से श्रृष्टि के चूचकों को काटा तो श्रृष्टि की चूत में ज्वालामुखी भड़क उठा। श्रृष्टि का बदन उबलने लगा था। ऐसा एहसास की चूत में पानी का दरिया बहने लगा था। सविता ने श्रृष्टि की नाभि को चूमते हुए जब जीभ को गोल गोल घुमाया तो श्रृष्टि की चूत बिना लण्ड के फटने को हो गई।

सविता ने श्रृष्टि की नाभि से होते हुए जब जीभ नीचे श्रृष्टि की चूत पर लगाई तो श्रृष्टि अपने ऊपर कण्ट्रोल नहीं रख पाई और झड़ गई। उसकी चूत ने जवानी का रस सविता के मुँह पर फेंक दिया। सविता को जैसे बिन मांगी मुराद मिल गई। वो जीभ घुमा घुमा कर सारा यौवन रस चाट गई।

ऐसे ही एक डेढ़ महीना दोनों मज़े करती रही। सविता खुद भी श्रृष्टि की चूत चाट चाट कर उसका रस निकालती और फिर श्रृष्टि से अपनी चूत चटवा कर अपना पानी निकलवाती। अब श्रृष्टि की चूत लण्ड का मज़ा लेने के लिए बेचैन होने लगी थी। उसने अपने मन की बात सविता को बताई तो सविता उस से नाराज हो गई।

सविता मर्दजात से नफरत करती थी। तलाक के बाद से ही सविता को मर्द दुश्मन जैसा दिखने लगा था। उसको तो लेस्बियन सेक्स में ही आनंद आता था। श्रृष्टि को उसने इसी काम के लिए तैयार किया था। पर श्रृष्टि को तो अब अपनी चूत में लण्ड लेने की लालसा बढ़ती जा रही थी।

जल्दी ही श्रृष्टि के पेपर हो गए और श्रृष्टि फिर से अपने शहर आ गई। अपने शहर में आते ही श्रृष्टि को बेहद खालीपन महसूस होने लगा। उसको सविता के साथ का मज़ा सताने लगा। चूत का कीड़ा उसको अब बेहद बेचैन रखता था। उसकी निगाहें अब सिर्फ लण्ड देखने को बेचैन रहती थी। वो उस आग में जल रही थी जिसे सिर्फ और सिर्फ एक मस्त लण्ड ही ठंडी कर सकता था।

वो हर रात अपनी पैंटी उतार कर अपनी चूत रगड़ती और अपना पानी निकालती। ऐसा करने पर उसे ओर उसकी चूत को शांति तो मिल जाती थी पर लंड लेने की कसक अभी तक उसके दिल मे फँसी हुई थी बार बार उसके सामने वही फिल्म घूम जाती थी. बार बार उसकी इच्छा होती थी की कोई आए ओर उसकी चूत मे अपना लंड पूरा दल दे ओर उसे मस्त कर दे पर अपने गाओं मे उसे ये काम रिस्की लग रहा था.

इस कारण वो कॉलेज के फिर से चालू होने की बाट देख रही थी. जैसे तैसे करके कॉलेज की छुट्टियाँ ख़त्म हुई. वो फिर एक बार सहर मे थी ओर बस के सफ़र ने फिर से उसके दिल मे लंड की चाह बढ़ा दी थी. कॉलेज के पहले ही दिन उसकी टक्कर एक लड़के से हो गई जो अपने दोस्त को कुछ बताता हुआ उसके अंदर ही घुसा चला आया था.

वो खुद भी नीची नज़रें किए हुए चल रही थी इस कारण उसे वक़्त पर देख नही सकी ओर दोनो की टक्कर हो गई. टक्कर लगने के कारण वो दोनो ही संभाल नही पाए ओर श्रृष्टि नीचे गिर पड़ी ओर वो लड़का उसके उपर आ गिरा. गिरने से खुद को बचाने के चक्कर मे लड़के के दोनो हाथ सामने आ गये ओर सीधे श्रृष्टि के चूंचो पर आ गये थे.

पहले तो वो भूचक्का रह गया पर फिर उसने मौका देखते हुए हल्के से एक चूंची दबा दी. चूंची के दब्ते ही श्रृष्टि के मूह से एक सिषकारी निकल गई. पर तभी वो संभाल गई ओर ज़्यादा आवाज़ नही निकली. ओर उसे खड़ा होने को कहने लगी. वो जब खड़ा होने लगा तो उसकी चूत पर उसके लंड की रगड़ लग गई. यानी इस बीच उसका लंड खड़ा हो गया था. श्रृष्टि को लगा की अगर कॉसिश की जाए तो इस लड़के से चूद जा सकता है.

खड़े होते ही श्रृष्टि ने कहा सॉरी मेरा ध्यान कही ओर था इस करम मैं आपको देख नही सकी.

नही नही ऐसी कोई बात नही है. मैं खुद ही कहीं ओर देख कर चल रहा था इस कारण टक्कर हो गई आप क्यू सॉरी बोल रही है सॉरी तो मुझे बोलना चाईए. नही ग़लती तो है ही. खैर जाने दीजिए. ही. मेरा नाम जन्मेजय है मैं b. A. फाइनल मे पढ़ता हू.  

मेरा नाम श्रृष्टि है. मैं b.A. सेकेंड येअर मे पढ़ती हू.

गुड. यानी हम दोनो ही एक ही स्ट्रीम के है ओर हमारी मुलाकात आज हो रही है वो भी इस तरह. चलो कॉफी पीते है.

श्रृष्टि तो चाहती ही ये थी की वो किसी तरह से उससे दोस्ती कर ले ओर जल्द से जल्द चुद ले जिससे उसे पता चल सके की लंड का एहसास कैसा होता है. दोनो कॉलेज कॅंटीन मे आ गए ओर जन्मेजय ने कॉफी का ऑर्डर दे दिया ओर साथ मे स्नॅक्स का भी. दोनो बहूत देर तक बाते करते रहे. इस बीच उसने श्रृष्टि से पूछा की तुम रहती कहाँ हो तो श्रृष्टि ने कहा की मैं तो गाव से अप डाउन करती हू.

क्यू यही रह जया करो ना. तुम्हारा गाव तो बहुत दूर है.

नही पापा अफोर्ड नही कर पाते है. अप डाउन ही ठीक है.

लास्ट येअर क्या किया था पुरे साल अप डाउन किया था किया था क्या.

नही लंस्ट एअर हाफ सेशन तो अप डाउन किया था फिर सविता मेडम ने अपने पास रख लिया था.

वो तो बहुत चंडाल ओरात है तू कहाँ फँस गई उसके चुंगल मे.

क्यू ऐसा क्या है.

क्यू तुझे नही मालूम जन्मेजय ने श्रृष्टि को घूरते हुए पूछा उसने तेरे साथ कुच्छ नही किया क्या.

क्या नही किया.

जन्मेजय श्रृष्टि को नाराज़ नही करना चाहता था इस कारण उसने उसे ज़्यादा कुरेदने की जगह सविता मेडम की सच्चाई बताने मे ही भलाई समझी.

अरे वो मेडम तो लेज़्बीयन है. लड़कियों के साथ पता नही क्या क्या करती रहती है.

पर मेरे साथ तो कुछ नही किया उन्होने.

हो सकता है तुम या तो मेडम को पसंद नही आई होगी या तुम्हे ट्रेन करने की फ़ुर्सत नही मिली होगी वरना अभी तक वो तुम्हे भी लेज़्बीयन बना चुकी होती.

श्रृष्टि ने सोचा की जन्मेजय को कुछ ओपन किया जाए. उसने अंजान बनते हुए पूछा “वैसे ये लेज़्बीयन क्या होता है”.

पहले तो जन्मेजय बहुत हंसा फिर उसने श्रृष्टि को अविस्वसनीयता से देखा ओर कहा जाने दे.

नही यार मुझे सच मे नही पता अब बता ना क्या होता है.

अरे यार वो लड़की लड़की के साथ करती है ना उसे लेज़्बीयन कहते है.

लड़की लड़की के साथ क्या करती है? उसने फिर अंजान बनने की कोशिश की.

वही जो लड़की को लड़के के साथ करना चाहिए.

यार पहेली मत बुझाओ सॉफ सॉफ बताओ. लड़की लड़के ले साथ क्या करती है?

“अरे यार अब तू सुनना ही चाहती है तो सुन, सेक्स”.

छि छि कितने गंदे हो तुम लड़की के साथ ऐसे बात करते है क्या.

अरे इतनी देर से ढके छुपे शब्दों मे बता रहा हू तो समझती नही है ओर जब बताया तो कहती है ऐसे कहते है क्या.

पर यार वो करने के लिए तो ल..!

क्या?

कुच्छ नही.

“अरे तुम कुछ कह रही थी” अब जन्मेजय उसके मज़े ले रहा था.

कहा ना कुछ नही. अब मैं जा रही हू.

अरे बैठो एक बार.

अगर मैं तुम्हारे रहने की समस्या हाल कर दू तो.

कैसे. श्रृष्टि ने इंटेरेस्ट लेते हुए उसकी तरफ देखा.

करता हू कुछ. तुम ऐसा करो अपना मोबाइल नंबर मुझे दे दो. मैं कुछ करता हू.

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श्रृष्टि सोच रही थी साले तू कुच्छ कर्त्ता ही तो नही है. मेरी पॅंटी कब से गीली हो रही है. चल मोबाइल नंबर तो ले. कुछ गंदे sms ही भेजेगा. श्रृष्टि वहाँ से चल पड़ी. दिन भर क्लासस मे बिज़ी रही ओर उसके बाद वापस घर की तरफ चल दी दिन भर की घाग दौर मे उसे इस बात का भी ध्यान नही रहा की उसने जन्मेजय को कुच्छ कम बताया था ओर उसका फोन या मेसेज आ सकता है. घर पहुँचटगे ही माँ ने पुच्छ आ गई बेटा.

जी माँ आ गई.

चल बेटा नहा धो ले मैं तेरे लिए कुच्छ पका देती हू तक गई होगी मेरी बेटी.

नही माँ भूख नही है.

क्यू नही है भूख कुच्छ कहा तो होगा नही तूने वहाँ पर.

आप लोग परवाह करते है क्या मेरी. रोज इतनी दूर बस मे धक्के खाती हुई शहर जाती हू ओर आती हू. क्या क्या सहन करना पड़ता है मुझे. बस की भीड़. यहाँ वहाँ छूते हुए हाथो का एहसास. ओर दिन भर भूखे रहना.

तो बेटा क्या कर सकते है यहाँ हमारे गाव मे तो कॉलेज है नही. जो हम तुम्हे शहर ना भेजें. ओर पढ़ने की ज़िद भी तो तुम्हारी ही थी हम तो तुम्हे खुश देखना चाहते है. बोलो तुम क्या चाहती हो हम तो वैसे ही कर लेंगे तुम बताओ क्या करना चाहती हो मैं तुम्हारे पिताजी को मना लूँगी.

माँ मैं शहर मे ही रह कर पढ़ना चाहती हू. रोज इतना लंबा सफ़र मुझसे नही होता. वो भी इतनी भीड़ मे.

वहाँ कहाँ रहेगी. मेरी बेटी रहनी की सलीके की जगह भी तो होनी चाहिए.

मेरी एक सहेली रहती है कमरा ले कर उसके पिताजी भी चाहते है की वो किसी दूसरी लड़की के साथ रहे. दोनो लड़कियाँ साथ रह लेंगी. मैने आज पहली बार माँ से झूठ बोला क्यूंकी मैं हर हालत मे शहर मे रहना चाहती थी. अगर लड़की का नाम ना लेती तो घर वाले रहने की इजाज़त नही देते. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

पिछली बार जब मैं सविता मेडम के साथ रहने गई थी तब घर से किसी ने जा कर देखने की ज़रूरत नही समझी थी. श्रृष्टि ने सोचा की लड़की का नाम लूँगी तो घर वाले इस बार भी बिना देखे उसे रहने की इजाज़त दे देंगे. वैसे भी जन्मेजय ने कहा तो था ही की वो कोई जुगाड़ लगाएगा. तो हो सकता है वो किसी ना किसी लड़की के साथ ही रहने का जुगाड़ लगाए. तो घर पर पहले बताने मे ऐतराज ही क्या है.

ठीक है बेटा मैं तुम्हारे बाबूजी से बात कर लूँगी. पर बेटी लड़की तो अच्छे घर की है ना.

हन माँ अच्छे घर की ही है मेरी तो अच्छी सहेली है साथ ही पढ़ती है मेरी तय्यरी भी हो जाएगी.

शाम को जब श्रृष्टि आराम कर रही थी तब उसने ऐसे ही खेलते हुए मोबाइल ओताया तो देखा उसमे एक मेसेज नये नंबर से था.

ये किसका मेसेज है. सोचते हुए श्रृष्टि ने मेसेज खोल लिया.

अरे ये तो जन्मेजय का मेसेज है.

मेसेज मे लिखा संदेश पढ़ कर श्रृष्टि के माथे पर बल पड़ गये. संदेश था “श्रृष्टि मैं बहुत घुमा यहाँ वहाँ पर तुम्हारे लिए किसी कमरे का इंतज़ाम नही हो सका है. मैं तुम्हारे रहने का इंतज़ाम मेरी किसी जानने वाली लड़की के साथ करना चाहता था पर ज़्यादातर लड़कियाँ आजकल आज़ाद रहना चाहता है. सब के बाय्फ्रेंड होते है वो वो अपनी आज़ादी के साथ समझौता नही करना चाहती. अगर तुम्हारे अर्जेंट है शहर मे रहने की तो मुझे एक मिस कॉल करो हम बात कर लेते है.”

पहले तो मैने सोचा की कॉल करू या ना करू घर से ही अप डाउन कर लू. पर उसी समय चूत ने कहा साली अपना ही सोच रही है मेरा क्या होगा. चल शहर चल. कर कॉल. मैने भी फोन उठ कर कॉल कर दिया. उसने तो लिखा था की मिस कॉल कर देना पर मैने कॉल ही किया दूसरी तरफ से जन्मेजय की मदमाती आवाज़ आई “हेलो”.

“हेलो, जन्मेजय बोल रहे हो क्या”.

“हां, जन्मेजय बोल रहा हू, बोलो श्रृष्टि” दूसरी तरफ से आवाज़ आई.

तुमने मेसेज किया था.

हां दरअसल तुम्हारे लिए रूम का इंतज़ाम नही हो सका है. इस लिए ही मैने तुम्हे मेसेज किया था. वैसे कुछ दिन तुम मेरी एक दोस्त के पास तुम्हारे रहने का इंतज़ाम कर सकता हू. अगर तुम चाहो तो.

पर उससे क्या होगा.

अरे होगा क्या अभी कुछ दिन तुम उसके साथ रह लो फिर जब तुम्हारे लिए रहने की व्यवस्था हो जाएगी तो तुम उस रूम को छोड़ कर अपने रूम मे रहने लगना.

पर इस तरह तो घरवाले नही मानेंगे. क्या कहूँगी उनसे की मेरे पास रहने का इंतज़ाम नही है पर फिर भी मैं हर हाल मे शहर मे रहना चाहती हू. मैं ऐसे नही कर सकती.

अरे तुम्हे ये सब कहने की आवास्यकता ही कहाँ है. तुम वहाँ तब तक रह सकती हो जब तक तुम चाहो. जीतने दिन भी तुम्हारे रहने का इंतज़ाम ना हो सके उतने दिन तुम आराम से वहाँ पर रहो. मेरी दोस्त शहर मे ज़्यादा रहती ही नही है. तो तुम्हे ज़्यादा तकलीफ़ भी नही होगी.

पर ऐसी कौन दोस्त है तुम्हारी.

अरे है यार. पक्की दोस्त है तुम्हे रहना हो तो बता देना मैं उससे बात कर लूँगा.

अच्छा ठीक है तुम उससे बात कर लो अगर वो हां करती है तो मैं घरवालो से बात कर लूँगी ओर वहाँ पर सिफ्ट हो जाऊंगी. मैं मन ही मन खुश हो रही थी की चलो इसकी दोस्त ज़्यादातर शाहर मे नही रहती है वरना मुझे तो लग रहा था की अगर इसकी दोस्त के साथ रही तो मुझे इसके नज़दीक आने का मौका ही नही मिलेगा. पर जब दोस्त आती जाती रहती है तब तो मौका ही मौका है.

कुच्छ देर बाद मैं माँ के पास गई ओर बोली माँ मैने तुम्हे कहा था ना की पापा से बात कर लेना. बात की क्या तुमने.

अरे बेटी तुम्हारे पापा तो दिन भर कम करके अभी घर आए है. तुम बेफ़िक्र रहो मैं उनसे रात मे बात कर लूँगी. तुम शहर मे रह लेना पर अपना ख़याल रखना ओर लड़कों से दूर ही रहना ये लड़के लड़कियों को खराब कर देते है. तुम अभी बच्ची हो तुम्हे दुनियादारी का कुछ पता नही है. हमेशा अपनी सहेली के साथ ही रहना. ओर हां तुम्हारे पापा पहले तुम्हारे साथ तुम्हारी सहेली से मिल कर आएँगे फिर उसके बाद ही भेजेंगे तसल्ली करके. वैसे अच्छी लड़की तो है ना वो तुम्हारी सहेली.

मैं मन ही मन सोच रही थी. मम्मी हमेशा रात मे ही पापा से बात क्यू करती है जब कोई इंपॉर्टेंट बात करनी होती है. ओर मम्मी हमेशा ऐसा क्यू समझती है की मुझे दुनिया दारी का पता नही है मुझे सब पता है ओर इस दुनियादारी को सीखनी ही तो मैं शहर जा रही हू. अगर हो सका तो जन्मेजय से मैं दुनियादारी पूरी तरह से सीख कर ही आउन्गी.

सहेली का इंतज़ाम तो जन्मेजय कर ही देगा फिर चाहे पापा देख कर आए या मम्मी देख कर आए क्या फ़र्क़ पड़ता है आराम से तसल्ली करें उसके बाद मुझे खुल्ला छोड़ें. पिछली बार सविता मेडम के साथ कुछ ज़्यादा मज़ा नही आया क्यूंकी वो तो हमेशा चूत ही चटवाती रहती थी पर मुझे तो एक कड़कड़ाता लॅंड चाहिए.

ओर इस बार मुझे लगता है की मेरी हसरत पूरी होगी. क्यूंकी अब मैं शहर मे रहने जा रही हू. बस मे तो लंड को अपनी गांद पर कपड़ों के उपर से ही महसूस करके रह जाना पड़ता था. अब आराम से चूत के अंदर तक महसूस करूँगी.

चल खाना खा ले.

“आअँ क्या कहा.” श्रृष्टि एक दम से जैसे नींद से जागी. वो जागते जागते पता नही कहाँ खो गई थी ओर माँ के खाना खाने की बात पर वापस धरातल पर आ गई थी. पर ये सब सोचते सोचते उसने महसूस किया की उसे जांघों के बीच फिर एक बार कुच्छ गीला महसूस हो रहा है. “हाए कब तक इस गीली चूत को तरसना पड़ेगा”.

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अगले दिन उसने एक बार फिर से भीड़ से भारी बस का चुनाव किया शहर जाने के लिए जिसमे आस पास के ज़्यादातर लोग शहर जाते थे ओर किसी तरह वो बस मे अंदर घुसने मे कामयाब हो गई. उसे पता था की सामने से तो कोई च्छेड़ने की हिम्मत करेगा नही.

सब उसके पीछे से ही हाथ लगाएँगे तो उन्हे पूरा मौका देने के लिए वो एक सीट पर बैठी लड़की के पास उसकी तरफ मूह करके खड़ी हो गई जिससे उसकी गांद पीछे वालों के लिए एकदम खुल्ला नज़ारा पेशकर रही थी बस मे आस पास खड़े मनचलों का दिल उसकी गांद पर हाथ फिराने को मचलने लगा.

एक दो ने उसकी गांद पर हाथ फिराया भी मगर इस तरह जैसे ग़लती से हाथ लग गया हो. उसने किसी तरह की प्रतिकारिया नही दी. पिच्छले दिनो उसने एक लड़के को गांद पर हाथ फिराने के लिए डाँट दिया था तो कई दीनो तक किसी लड़के ने उसकी गांद पर हाथ नही फिराया. वो तरसती ही रह गई.

अब कुच्छ दिनो से लड़कों की फिर से हिम्मत हुई थी वो उन्हे दुबारा डाँट कर नुकसान नही उठना चाहती थी. उस लड़के ने फिर से अपना हाथ उसकी गांद पर फिराया जैसे तसल्ली कर लेना चाहता हो की वो दाँटेगी या नही. जब उसने देखा की श्रृष्टि ने उसे मूड कर भी नही देखा है.

तो उसकी हिम्मत बढ़ी ओर उसने अब अपना हाथ उसकी गांद पर स्थाई रूप से रख दिया था पर साथ ही वो उससे सॅट कर खड़ा हो गया था जिससे किसी को ये पता ना चले की वो उसकी गांद पर हाथ फिरा रहा है. ओर अगर श्रृष्टि भी उसे कुच्छ कहना चाहे तो वो भीड़ का बहाना कर सके.

कुच्छ देर तक ऐसे ही नितंबों पर हाथ फिरने के बाद उसने अपने हाथो को उसकी अस्स क्रॅक मे फिराना सुरू कर दिया था श्रृष्टि को उससे इतनी हिम्मत की उम्मीद नही थी. अब उसकी साँस बहुत गहरी हो चली थी उसे लड़के का हाथ ऐसे प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी नंगी गांद की दरार मे हो.

वो गहरी गहरी साँस लेने लगी. फिर लड़के ने हिम्मत करके उसकी दरार मे उंगली डाल दी ओर सीधा उसकी गांद पर उंगली का दबाव दिया. उसे मज़ा तो बहुत आया पर साथ ही उसके मूह से आवाज़ निकल गई ‘आओउ’ अब ज़्यादातर यात्रियों का ध्यान उसकी तरफ हो गया था तो उसे अब कुच्छ ना कुच्छ करना ही था अपना बचाव करने के लिए.

तो उसने झट से पीछे घूमते हुए उस लड़के के गालपर एक चांटा रसीद कर दिया. ओर उसे गालियाँ निकलते हुए कहने लगी क्या तुम्हारे घर मे माँ बहने नही है जो इस तरह की हरकत करते हो. वो लड़का भौंचक्का रहा गया की कहाँ तो वो मज़े ले रही थी ओर कहाँ उसके गाल पर एक छाँटा रसीद कर दिया.

इतने मे एक अंकल ने कहा ऐसे बदमाशों के कारण हमारी बहू बेटियों का बाहर निकलना मुश्किल होता जा रहा है. मारो साले को ओर बस की भीड़ ने उसे मारना सुरू कर दिया. श्रृष्टि चुप चाप उसको पीटते हुए देखती रही. वो इस पचदे मे पड़ना नही चाहती थी. वैसे भी उसे तो अब शहर मे रहना था जहाँ उसके लिए लंड लगभग तय्यार था उसे तो कुच्छ हवा देने की ही आवास्यकता थी.

कुच्छ ही देर मे वो बस स्टॉप पर उतेरी ओर कॉलेज की तरफ चल दी. कॉलेज पहुँच कर उसकी नज़रें जन्मेजय को ही तलाश कर रही थी. कॉलेज मे बहुत देर तक इधर उधर टहलने के बाद आख़िर उसने सोचा की जन्मेजय को कॉल ही कर लेना चाहिए वो सोच रही थी की वो कॉल करेगी तो जन्मेजय पता नही क्या सोचेगा.

पर अब जब वो मिल ही नही रहा था तो उसे कॉल करना ही पड़ेगा. कॉल लगाने पर जन्मेजय का मोबाइल पर रिंग जा रही थी पर वो फोन पिक नही कर रहा था. पतगा नही क्या बात है फोन क्यू नही उठा रहा है. क्या करू क्या ना करू. ये सोचते सोचते उसने सोचा की चल क्लास ही ले लू. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

वो क्लास की तरफ चल पड़ी. पर फिर उसे फिर से एहसास हुआ की उसकी पॅंटी तो सुबह से ही गीली हो रही है जबसे था उसने सोचा था की वो जन्मेजय से मिलेगी ओर उसे पटाएगी जिससे वो कुछ आगे बढ़े ओर कुछ करे ओर उसकी चूत की खुजली का इलाज हो सके फिर वो बस की घटना जिसमे उस लड़के ने उसकी गांद के छेद पर उंगली लगा कर उसे ओर हॉर्नी बना दिया था.

उसने सोचा क्या करू इसे कैसे शांत करू. चूत को शांत करने का कोई ज़रिया नज़र ना आता देख उसने सोचा की ओर कुछ नही तो लोगों को उसकी चूत के दर्शन ही करवा दे जिससे हो सकता है उसकी चूत कुछ शांत होई जाए. ये सोचते ही उसकी चूत ओर पानी छोड़ने लगी.

वो ये सोचने लगी की क्या किया जा सकता है. इतने मु उसे विचार आया की चूत दिखाने का सबसे सूटबल आइडिया पेशाब करना हो सकता है. तो उसने कॅंटीन के पास ही अपनी सलवार का नाडा खोला ओर सलवार के साथ पॅंटी को नीचे खींचते हुए नीचे बैठ गई.

कॅंटीन मे इस समय बहुत भीड़ थी ओर जयदातर लोग उसे ही देख रहे थे. उसे क्या उसकी चूत को देख रहे थे. जो पीछे की तरफ थे उनको उसकी मस्तानी गांद के दोनो ग्लोबे बहतेरीन तरीके से दिखाई दे रहे थे. उसने आप को नंगा तो कर दिया लोगों के बीच मे पर अब उसे बहुत ज़्यादा शर्म आने लगी थी.

इस क्राण उसने अपना मूह एकदम नीचे झुका लिया. अब वो बीच मे उठ भी तो नही सकती थी वरना उसकी पॅंटी ओर सलवार उसके मूत से भर जाती. पूरी तरह से मूतने मे उसे कोई २ मिनिट लग गये थे क्यूंकी बहुत देर से उसने मूता जो नही था इस कारण उसका ब्लॅडडर पूरा भरा हुआ था.

मूतने के बाद वो झट से खड़ी हो गई. तब तक वहाँ पर अच्छी ख़ासी भीड़ लग चुकी थी. उसने झट से अपनी सलवार का नाडा बंद किया ओर वो फटाफट वहाँ से भाग कर क्लास की तरफ चल दी. क्लास मे अंदर घुसते ही उसे फिज़िक्स के प्रोफेसर नज़र आए.

मे ई कम इन सर.

येस कम इन. क्लास मे टाइम से आया करो.

सॉरी सिर, बस लेट हो गई थी. उसने बहाना बनाया.

क्लास मे बैठने के बाद उसने विचार किया की आज तो उससे बहुत बड़ी ग़लती हो गई उसे इस तरह से कॉलेज कॅंपस सभी लड़कों के सामने अपनी चूत की नुमाइश नही करनी चाईए थे. वो तो उसका मूह धूप की वजह से स्कार्फ से ढाका हुआ था वरना सभी लड़के उसे पहचान लेते ओर उसका कॉलेज मे निकलना मुश्किल हो जाता. आगे से उसने ऐसा ना करने की कसम खाई. वो क्लास मे आ तो गई थी पर दिल अभी भी बाहर जन्मेजय को ही तलाश कर रहा था.

अगर उसे जन्मेजय मिल जाता तो वो क्लास मे झाँकति भी नही. मन मसोस कर वो क्लास मे बैठी रही. ओर हर दो मिनिट मे वो जन्मेजय का नंबर ट्राइ कर रही थी.  पर आज पता नही क्या हो गया था वो फोन ही नही उठा रहा था. इसी तरह क्लास ख़त्म हो गई. क्लास की घंटी बजने पर प्रोफेसर क्लास से चला गया ओर उसी समय जन्मेजय ने फोन पिक किया.

क्या है ये जन्मेजय. वो जन्मेजय पर भड़क गई. मैं कब्से तुम्हारा नंबर मिला रही हू पर एक तुम हो की फोन उठा ही नही रहे हो

अरे यार क्लास मे था ओर फोन वाइब्रट पर था. तुम्हारी घंटी का पता नही चला अब पीरियड ख़त्म हुआ तो देखा. मैं तुम्हे फोन मिलने ही वाला था की तुम्हारा फोन फिर से आ गया. हन बताओ क्या बात है कैसे फोन कर रही थी.

कहाँ हो तुम इस समय.

मैं तो क्लास के बाहर ही हू. हॉल २१ पर.

ओक मैं अभी आती हू वहाँ,

अरे यार यहाँ आ कर क्या करोगी. ऐसा करते है की कॅंटीन मे मिलते है.

“कॅंटीन. ना बाबा ना वहाँ नही वहाँ पर तो बहुत भीड़ होती है लड़के हर वक़्त लड़कियों को घूरते रहते है.”

उसकी कॅंटीन के नाम से ही गांद फट रही थी. की लड़के उसे पहचान लेंगे क्यूंकी चाहे उसका चहरा उस समय स्कार्फ से ढाका हुआ हो पर ड्रेस को तो सब पहचान ही रहे होंगे. ओर लड़के तो अब वहाँ से हिलेंगे भी नही की क्या पता कब कोई ओर लड़की वहाँ पर आ कर मूतने के बहाने अपनी चूत दिखाने लगे. तो कॅंटीन जाना तो बहुत रिस्की था.

तुम ऐसा करो बाहर गेट पर मिलो आज पढ़ने का मूड नही है. कही बाहर चलते है.

ओक आ जाओ. मैं गेट पर पहुँचता हू. जाई की तो जैसे लॉटरी लग गई थी की आज एक लड़की उसके साथ बाहर घूमने जाना चाह रही थी. वो फटाफट बाहर की तरफ भगा क्यूंकी श्रृष्टि की क्लास तो गेट के पास ही थी पर उसका कॉलेज के लास्ट मे था उसे टाइम लगने वाला था. किसी तरह मरते पड़ते वो मैं गाते तक पहुँचा ओर श्रृष्टि के साथ साथ गाते पर पहुच गया. श्रृष्टि ने उसकी तरफ देख कर मुश्कुराया. वो भी मुश्कुराया.

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हाए.

हाए. कैसी हो.

बढ़िया हू.

बोलो कहाँ चलॉगी.

तुमने अपनी फ्रेंड से बात की थी क्या.

अरे यार कल रात ही तो तुमसे बात हुई थी सुबह कॉलेज आ गया था तो बात कब करता आज कर लूँगा.

जन्मेजय तुम मेरे रहने का इंतज़ाम कर दोगे ना. उसने सशंकित सी आवाज़ मे उससे पूछा.

अरे यार करवा दूँगा. वो मेरी कोई बात नही टालती है. तुम एक बार तोड़ा रूको तो तुम तो घोड़े पर सवार हो कर आती हो.

“जन्मेजय मैं गाओं से उप डाउन नही कर सकती.”

इतने मे जन्मेजय ने एक ऑटो वाले को रुकने का इशारा किया. दोनो ऑटो मे बैठ गये.

यार दो चार दिन तो उप डाउन कर ही सकती हो.

तुम्हे पता है मेरे साथ बस मे क्या क्या होता है. क्या क्या झेलती हू मैं. वो जन्मेजय को रिझाने की गरज से उसे खुल कर बताना चाहती थी जिससे वो उसकी तरफ खींच सके. उसे क्या पता था की कल की कॉल के बाद ही जन्मेजय तो उसके नाम की दो बार मूठ मार चुका था. पर अंजान बनते हुए उसने पूछा “क्यू, क्या हुआ. मुझे बताओ अगर कोई परेशानी है तो.

आज सुबह एक लड़का बस मे भीड़ का फ़ायडा उठता हुआ मेरे पीछे आ कर खड़ा हो गया.

तो?

तो, क्या. उसने अपना मेरे चूतदों के बीचे मे लगाने की कोशिश की जब कामयाब नही हुआ तो उसने मेरे चूतदों पर हाथ फिराया ओर फिर बीच की दरार मे हाथ फियरने लगा. मैं उस समय बहुत ज़्यादा दर गई थी इस कारण मैं उसका विरोध भी नहि कर पाई. उसका हौसला बढ़ गया ओर उसने मेरे पीछे के छेद मे कपड़ों के उपर से ही उंगली डालने की कोशिश की. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

जन्मेजय की तो हालत ही खराब हो गई थी. उसने एक्सपेक्ट ही नही किया था की श्रृष्टि उसे ये घटना बताएगी ओर वो भी इतने खुले शब्दों मे. उसका लॅंड तो एकदम से तन कर खड़ा हो गया था ओर अब उसके लिए पॅंट मे मुश्किलें खड़ी कर रहा था. वो लंड को अड्जस्ट करना चाहता था पर श्रृष्टि के सामने कैसे करे.

वही श्रृष्टि ने उसकी पॅंट मे लंड के कारण बने उभर को देख लिया था ओर वो उसकी हालत को समझ रही थी इस कारण उसे अड्जस्टमेंट का मौका देने के की गरज से उसने बाहर देखने का नाटक किया जबकि उसकी तिरछी नज़र से उसे लंड को अड्जस्ट करते हुए देख रही थी.

मेरे पीछे उसके हाथ लगने के कारण छिल भी गया है. ओर ये कह कर वो रोने का नाटक करने लगि. ओर जन्मेजय के कंधे पर अपना सिर रख दिया. तुम जल्द से जल्द मेरे लिए मकान का इंतज़ाम करो ना.

अरे अभी वही तो जा रहे है.

कुच्छ ही देर मे एक मकान के सामने उसने ऑटो को रुकने का इशारा किया. ऑटो वेल को किराया चकने के बाद जैसे ही वो घर की तरफ मुड़े तो उन्होने देखा की मकान के तो ताला लगा हुआ है.

घर पर ताला देख कर श्रृष्टि की तो जैसे मैय्या ही चुद गई. इतनी मुश्किल से तो उसे जन्मेजय मिला था उसने सोचा था की वो कम से कम उसे घर तो दिला देगा चुद तो वो जाएगी ही. पर जब मकान दिलाने की बारी आई तो उस पर भी ताला. ना जाने कहा चली गई है इसकी दोस्त.

पता नही कहाँ चुदति फिर रही होगी. यहाँ मेरी चूत का तो उसे ख़याल ही नही है. दूसरी तरफ जन्मेजय ने अपनी जेब मे हाथ डाला ओर उसमे से झट से एक चाबी निकली ओर घर के ताले पर लगा दी ओर ताला बिना किसी हिल हुज्जत के खुल गया.

“अबे तेरी इसके पास तो चाबी है घर की, आज तो ऐश हो गई. घर की चाबी है तब तो बहुत सी संभावनाए हो सकती है. चल श्रृष्टि जल्दी कर अंदर चल” श्रृष्टि ये सोचते हुए उसके पीछे अंदर भागी. अंदर जा कर उसने देखा की मकान बहुत ही करीने से सज़ा रखा था. बढ़िया इंटीरियर था उस मकान का. या श्रृष्टि ने गाव के सिंपल मकान देखे थे तो उसे ये कुछ ज़्यादा पसंद आ रहा था. उसने पहले भाग भाग कर पूरा मकान देखा ओर फिर से ड्रॉयिंग रूम मे आ गई.

“जन्मेजय मकान तो सुन्दर है”

“पता है” जन्मेजय केवल इतना कह सका.

क्या तुम्हारी दोस्त मुझे इस मकान मे रखेगी.

उसे रखना पड़ेगा. तुम्हे मैं जो लाया हू.

क्या?

कुछ नही.

पता नही तुम कभी कभी बड़ी अजीब सी बातें करते हो.

अब यहाँ रहोगी तो मुझसे मिलना तो होगा ही तो तुम सब समझ जाओगे.

बाथरूम कहाँ है.

सामने बाए तरफ.

श्रृष्टि बाथरूम देखने चली गई. ओर जन्मेजय उसे सारे मकान को खुश हो कर देखते हुए देखता रहा. एक मिनिट मे ही श्रृष्टि वापस आ गई.

“अरे यार बाथरूम तो बहुत ही खूबसूरत है.”

“है तो”.

यार बाथरूम देख कर मेरी तो नहाने की इच्छा होने लगी है. श्रृष्टि ने उसे कुछ जलवा दिखाने की सोची.

“तो नहा लो”. जन्मेजय ने भी सोचा कुछ मौका मिल सकता है चुदे ना चुदे पर इसके नाज़ुक अंगों के दर्शन तो हो ही जाएँगे ही.

पर मेरे पास टॉवेल तो है नही. मैं नाहोँगी कैसे

अरे यार तुम नहाओ तो सही. टवल मैं ला कर देता हू ना.

ओके ला दो.

तुम जाओ नहाओ मैं ले कर आता हू.

नही तुम ले कर आ जाओ मैं उसके बाद नहा लूँगी.

अरे जाओ ना यार मुझे पता है क्या टॉवेल कहाँ रखा है, इतनी देर मे तुम नहा तो लोगि. नही तो तुम खड़ी इंतजार करती रहोगी ओर मैं टॉवेल ढूंढता रहूँगा.

ओके. पर जल्दी करना.

तू जा तो सही यार.

श्रृष्टि दिल मे तो यही चाहती थी की वो उसे एक बार नंगा देख ले फिर उसके बाद वो रुकना भी चाहेगा तो भी खुद को रोक नही पाएगा. वो चीज़ ही ऐसी थी. ये सोचती हुई श्रृष्टि बाथरूम मे घुस गई. ओर जन्मेजय टॉवेल ढूँढने का बहाना करने लगा. बाथरूम मे घुस कर श्रृष्टि ने अपने आप को कपड़ों की गिरफ़्त से आज़ाद कर दिया ओर ब्रा पॅंटी मे आ गई.

ओर अपने आप को  सामने लगे आदमकद आईने मे देखने लगी. ऐसा करते हुए उसका खुदका दिल खुद पर आ गया. ओर वो अब अपने आप को ब्रा उतारने से रोक नही पाई. ओर उसके हाथ खूदबा खुद पीछे पीठ की तरफ चले गये ओर उसके दोनो पन्छि आज़ाद हो गये. उसकी चूंचियाँ इतनी बड़ी थी की उन्हे वो बड़ी मुश्किल से ३६डी साइज़ की ब्रा मे क़ैद रख पाती थी. चूं

चियों के आज़ाद होते ही वो उच्छलने लगी ओर उसने दोनो को पकड़ लिया ओर उन्हे खुद ही मसालने लगी, सुबह बस के इन्सिडेंट के बाद उसे बहुत सेक्स चढ़ा हुआ था इस कारण वो अपनी चूंचियों से खेलने लगी थी. कुच्छ देर बाद उसे जन्मेजय का ख़याल आया ओर उसने जन्मेजय को आवाज़ दी की क्या हुआ तोवेल नही मिला क्या.

जन्मेजय सायद बाहर ही खड़ा था वो झट से वहाँ आ गया.. श्रृष्टि ने जान बुझ कर बाथरूम का दरवाजा बंद नही किया था. अगर बंद कर देती तो फिर जन्मेजय अंदर कैसे आता ओर वो चुदति कैसे. जन्मेजय ने जब दरवाजा आधा खोल लिया ओर लगभग अंदर आ चुका.

तब जा कर श्रृष्टि ने उसके अंदर आने का विरोध किया जिससे वो अंदर भी आ जाए ओर ये भी ना सोचे की वो उससे चूड़ने को मरी जा रही है. ओर दूसरी तरफ जन्मेजय ने तय कर लिया था की वो किसी ना किसी तरह से रूम मे अंदर घुस जाएगा जिससे उसको छोड़ने के चान्स बन सके.

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उसके अंदर आते ही श्रृष्टि बोली “अरे अरे क्या करते हो अंदर कहाँ आ रही हो देखते नही मैं अंदर नंगी हू.”

कहाँ हो नंगी तुमने तो चड्डी पहन रखी है?

धत्त. बेशर्म कही के चलो बाहर जाओ.

उसने जन्मेजय को बाहर जाने को कहा पर ना तो उसने अपनी बड़ी बड़ी चूंचियों को छुपाने की कोशिश की ना ही उसने उसे बाहर निकालने की कोशिश की.

“अरे यार जाता हू पर वो तुम कह रही थी ना की एक लड़के ने तुम्हे पीछे उंगली लगा दी थी जिससे तुम्हारे पीछे छिल गया था. दिखाओ तो सही कहाँ लगाया था कही ज़्यादा तो नही लगा.”

अब जन्मेजय उसके इकलौते बचे कपड़े को भी उसके बदन से आज़ाद कर देना चाहता था. इस कारण उसने उसे वो घाव दिखाने की पेशकस रखी जो की लगा ही नही था ओर जिसके बारे मे उसे भी पूरा अंदाज़ा था की कोई घाव होगा ही नही.

“चुप करो तुम ओर बाहर जाओ. ये कोई दिखाने की जगह है. तुम्हे शर्म नही आती एक नंगी खड़ी लड़की के बाथरूम मे घुस आए हो.”

वो बार बार उसे अपने नंगे होने की बात पर ज़ोर दे रही थी. जिससे वो उसके बदन पर पूरी तरह नज़र डाले ओर उसे वही लिटा कर उसकी चूत के पानी का कोई इलाज अकरे. पर उपरी मन से बाहर जाने को कह रही थी.

अरे यार तुम्हारी मर्ज़ी पर मैं ये कह रहा था की अगर घाव गहरा हुआ तो तुम्हे तकलीफ़ होगी तुम ये घाव डॉक्टर को दिखा पाओगे क्या. अभी तुमने कपड़े तो निकल ही रखे है तो तुम्हे नंगा होना ही नही पड़ेगा ओर अब तुम मेरे सामने नंगी तो हो ही गई हो तो दिखा दो घाव.

ना.

यार दिखा दे समझा कर यार.

एक शर्त पर दिखौँगी.

बोल क्या शर्त है.

तू केवल घाव ही देखेगा ओर कही नज़र नही डालेगा.

ओर क्या देखना है मुझे.

मैं कह रही हू कही नही देखेगा. प्रॉमिस कर.

दिल ही दिल मे श्रृष्टि सोच रही थी की एक बार चड्डी उतरने दे फिर तुझे पता भी नही चलेगा की तू खुद कौन है ओर क्या देख रहा है. मेरी मस्त गांद ने तुझे पागल ना कर दिया ना तो देखना. बहुत देर तक नखरे करने के बाद श्रृष्टि ने सोचा की अगर अब उसने नही दिखाई तो अब ये चला जाएगा ओर फिर उसकी चुद्ने की इच्छा अधूरी ही रह जाएगी तो वो उसे अपनी गांद दिखाने को राज़ी हो गई.

उसने अपनी चड्डी पीछे की तरफ से थोड़ी सी नीचे सरका दी. लो देख लो. जन्मेजय की तो जैसे साँसे ही रुक गई थी. वो श्रृष्टि के दोनो मस्त गोलैईयों को देख जा रहा था बल्कि श्रृष्टि ने चड्डी सिर्फ़ पीछे से थोड़ी सी नीचे की थी जिससे जन्मेजय उसकी गांद का छेद ना देख पाए ओर थोडा ओर तरसे. जाई पहले तो उसकी गोलैईयों को देख कर ही रस पान करता रहा फिर उसने ओर देखने की इच्छा के चलते उसे कहा की कहाँ लगी है यहाँ तो कुच्छ नज़र ही नही आ रहा है.

नही नज़र आ रहा है तो नही लगी होगी अब तुम जाओ.

पर यार तुम तो कह रही थी की बहुत ज़ोर से लगी थी फिर नज़र क्यू नही आ रही है. ज़रूर अंदर लगी है. तुम ज़रा चड्डी थोड़ी ओर हटाओ.

ओर नही हटेगी चड्डी अगर देखनी हो तो देख लो इतने मे से ही.

ओक मैं कोशिश करता हू. बेचारा क्या करता अगर उसे नाराज़ कर दे तो चूत से हाथ धो बैठेगा. ये सोच कर उसने एक आइडिया उसे किया. उसने उसे कहा अच्छा ठीक है तुम तोड़ा सा आगे तो झुक जाओ जिससे मैं रोशनी मे देख सकु. इस बार श्रृष्टि आगे को झुक गई. ओर श्रृष्टि के झुकते ही जन्मेजय ने उसके दोनो नितंबों को पकड़ लिया श्रृष्टि यही चाहती थी पर थोडा कुन्मुनाई ओ थोडा कसमसाई. ओर बोली क्या करते हो. ऐसे मत करो नही तो मैं नही देखने दूँगी.

अरे यार तेरी चड्डी को हाथ लगाया है क्या मैने जितनी तूने सरकई थी उतनी ही तो है. ये हटे हुए उसने उसकी गांद की दरार मे अपना हाथ फिरना शुरू कर दिया. अभी तक उसे गांद का च्छेद नज़र नही आ रहा था फिर भी वो उसकी गांद सहला रहा था.

क्या करते हो छ्चोड़ो ना.

अरे कुच्छ नही बस देख रहा हू कहा लगी है. यहाँ तो कुच्छ नज़र नही आ रहा है सयद तुम्हारी गांद के छेद पर लगी हो. वहाँ बहुत जोखिम होता है. घाव हो जाता है ओर आदमी बैठ भी नही पाता है.

ज़रा चड्डी नीचे तो कर. ज़रा चेक कर लू.

पर तुम इधर उधर नज़र नही दौदाओगे. उसने जैसे रटा रटाया सवाल फिर दोहरा दिया.

अरे नही यार मैं तो तुझे ठीक करना चाहता हू. एक बार देखने दे.

ठीक है तो करदो नीचे पर ज़रा सी करना.

श्रृष्टि चाहती थी की वो खुद उसकी चड्डी को नीचे कर दे वरना अगर उसे करना पड़ेगा तो शरमाते हुए वो थोड़ी सी ही चड्डी को नीचे कर पाएगी. जन्मेजय भी यही चाहता था की श्रृष्टि खुद चड्डी को नीचे करने की जगह उसे नीचे करने दे. ओर अपनी इच्छा पूरी होते ही जन्मेजय ने श्रृष्टि की चड्डी के एलास्टिक मे दोनो तरफ से उंगली डाली ओर एक झटके मे उसे घुटनो तक उतार दिया.

इतना तो श्रृष्टि ने भी नही सोचा था उसने तो सोचा था की जन्मेजय उसकी चड्डी थोड़ी सी ही नीचे करेगा इतनी की उसे गांद आसानी से नज़र आने लगे पर जन्मेजय नो तो उसे पूरा नंगा कर दिया था उसकी गांद तो एकदम फूल की तरह खिल कर उसके सामने आ ही गई थी उसकी चूत भी दोनो टाँगों के बीच मे से उसे नज़र आने लगी थी. वो चूत को अभी उसे नही दिखना चाह रही थी वो अभी उसे ओर तड़पाना चाहती थी.

पर अब क्या कर सकती थी. एक बार उसने कोशिश की की किसी तरह वो अपनी चड्डी को वापस उपर खिच सके उसने जैसे ही चड्डी को उपर खींचने की कोशिश की तो चड्डी उपर हो नही रही थी उसीकि छड़ी उसके घुटनो मे फँस गई थी उसने घुटनो से चड्डी उपर करने के लिए टांगे थोड़ी सी चौड़ी की तो जन्मेजय ने मौका देख कर उसकी चड्डी पूरी तरह से नीचे कर दी. ओर साथ ही उसकी चूत ओर खुल कर दिखने लगी.

हाए राम तुमने तो मुझे पूरा नंगा कर दिया. किसी लड़की की मजबूरी का ऐसे फायदा उठाते है क्या.

पर जन्मेजय ने उसकी बातों का किसी तरह का कोई जवाब नही दिया उसने जब मूड कर देखा तो पाया जन्मेजय तो अपने कपड़े उतार रहा है सारे कपड़े उसने जल्दी से उतार दिए थे बस अब वो अपनी चड्डी उतार रहा था. श्रृष्टि उसे देख कर मन ही मन बहुत खुश हो रही थी पर साथ ही उसे दर्शाना नही चाहती थी की उसे इस बात का ही इंतजार है ओर वो यहाँ पर चूड़ने ही आई है.

वो बोली “अरे ये तुम क्या कर रहे हो, तुम्हे शर्म नही आती पहले तो एक लड़की को मजबूर करके नंगा कर दिया ओर जब वो बेचारी अपने कपड़े पहनने की कोशिश कर रही है तो तुम उसकी मदद करने की जगह खुद नंगे हो रहे हो. ये क्या हरकत है चलो कपड़े पहनो ओर मुझे भी पहनाओ.

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पर ना तो श्रृष्टि ने उसे रोकने की कोशिश की ना ही खुद अपनी चड्डी को उपर किया वो तो जैसे झुकी हुई खड़ी थी उसी तरह खड़ी रही. जिससे उसकी चूत जन्मेजय को सॉफ तौर पर नज़र आती रहे. ओर वो ललचाता रहे.

क्या हुआ कहाँ हो तुम अभी तक तुमने कपड़े क्यू नही पहने यार प्लीज़ कम से कम अपने इस औजार को तो छिपा लो ये मेरी तरफ अकड़ रहा है उसने जन्मेजय को उकसाने को कहा. ओर प्लीज़ जल्दी से देख कर बताओ ना की चोट तो नही लगी है. फिर तुम चाहे कपड़े पहनो या नं पहनो मैं तो कपड़े पहन लू. देखो ना प्लीज़ ओर ऐसा कहते हुए उसने अपनी गांद अदा से मटका दी.

अब जन्मेजय उसके पास आया ओर उसकी गांद पर हाथ फिरने लगा. ओर फिर वो पीछे बैठ गया ओर उसके दोनो चुततादों को चौड़ा करके उसकी गांद के च्छेद को देखने लगा. श्रृष्टि अब बहुत खुश थी क्यूंकी अब उसे पता था की वो चूड़ेगी ही चूड़ेगी. क्यूंकी अब जन्मेजय उसकी गांद का मुआयना जो कर रहा है. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

कुच्छ देर तक तो जन्मेजय उसकी गांद का खूबसूरत भूरा छेद देखता रहा फिर उसने आगे बढ़ते हुए उसकी गांद के च्छेद पर अपनी ज़ुबान रख दी. श्रृष्टि इस बात की तो बिल्कुल आशा ही नही कर रही थी. एक दम से उसके बदन मे सिरहन दौड़ गई. वो काँप उठी इस आनंद के हिलोरे से उसकी आँखें बंद हो चुकी थी.

जन्मेजय अब उसकी गांद से ले कर चूत तक लगातार चाते जा रहा था. ओर वो इस आनंद के सागर मे डुबकी लगा रही थी ओर सोच रही थी की मर्द तो मर्द ही होता है उसकी हर बात मे आनंद होता है. ओर वो आज पूरी तरह मज़े लेने कीआ इरादा करके ही आई थी.

अब बस उसे इंतजार था तो जन्मेजय के लॅंड का जो की उसकी चूत से बस कुच्छ ही दूर था ओर जिसके वो दर्शन तो कर ही चुकी थी जन्मेजय ने उसकी चड्डी को पूरी तरह स उसकी टाँगों से निकल दी थी ओर अब वो एकदम नंगी जन्मेजय के सामने थी ओर अब उसने फ़ैसला की या की अब ओर नखरे करने की जगह मज़े लेने चाहिए ओर वो जन्मेजय से चिपक गई.

उसकी चूंचिया जन्मेजय की च्चती मे धँस गई थी ओर उसकी चूत के मुहाने पर जन्मेजय का लॅंड टक्कर मार रहा था. उसने अपने होठों को जन्मेजय के होतो पर रख दिया ओर एकदम कस कर उसकी चुम्मि लेने लगी. उसने जन्मेजय का उपरी होत लगभग काट ही लिया था. जन्मेजय भी उसमे खो सा गया था.

फिर वो नीचे घुटनो के बाल बैठ गई ओर उसने जन्मेजय के लॅंड को अपने मूह मे ले लिया ओर उसे बेतहाशा चूसने लगी. जन्मेजय तो सोच रहा था की उसे श्रृष्टि को लॅंड चूसने के लिए मानना पड़ेगा ओर पता नही वो हाँ करेगी या नही पर यहाँ तो नज़ारा ही अलगा है श्रृष्टि खुद आगे हो कर उसके लॅंड को चूस रही है. वो भी इस अदा से की उसका मूह खुला का खुला रह गया था. अब धीरे धीरे उसके मूह से आहे निकालने लगी है.

आआआः ईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई मेरी ज़ाआाआआअँ ओर ज़ोर से चूस पूरा नचोड़ दे इसे. आआहह.

अब जन्मेजय ने श्रृष्टि के सर को पकड़ कर अपने लॅंड ऑर लगा दिया ओर आगे पीछे करने लगा. श्रृष्टि समझ गई की उसे बहुत मज़ा आने लगा है ओर वो नही चाहती थी की जन्मेजय अभी अपना वीर्या निकल ले. उसने जन्मेजय के लॅंड को अपने मूह से बाहर निकल दिया.

जन्मेजय तो जैसे आसमान से गिर पड़ा हो. एकदम से उसने आँखें खोली ओर श्रृष्टि की तरफ देखने लगा. पर तब तक श्रृष्टि ने बाथरूम मे लगे वाश्बेसिन के दोनो किनारों पर अपने हाथ लगा कर. झुक कर खड़ी हो गई थी जिसके कारण उसके सामने चूत पूरी खुल कर दिखाई दे रही थी.

ओर फिर उसने अपनी दोनो टाँगों को चौड़ा कर लिया ओर पीछे मूड कर जन्मेजय की तरफ देखने लगी. जन्मेजय तो जैसे आसमान से गिर पड़ा हो. एकदम से उसने आँखें खोली ओर श्रृष्टि की तरफ देखने लगा. पर तब तक श्रृष्टि ने बाथरूम मे लगे वाश्बेसिन के दोनो किनारों पर अपने हाथ लगा कर. झुक कर खड़ी हो गई थी जिसके कारण उसके सामने चूत पूरी खुल कर दिखाई दे रही थी.

ओर फिर उसने अपनी दोनो टाँगों को चौड़ा कर लिया ओर पीछे मूड कर जन्मेजय की तरफ देखने लगी. जन्मेजय भी अब तक समझ चुका था की चुदाई को श्रृष्टि तरस रही है ओर अब ज़्यादा देर करना घातक हो सकता है ओर वो जो इतने दिन से चिड़िया को दाना दल रहा था वो चिड़िया अब उसके जाल मे फँश चुकी है ओर अब वो जैसे चाहे वैसे उसे चोद सकता है.

ओर उसने झट से अपने लॅंड को उसकी चूत पर लगा दिया. श्रृष्टि की चूत कुच्छ तो खुल चुकी थी टांगे चौड़ी करने के कारण बाकी श्रृष्टि ने जैसे ही महसूस किया की लॅंड उसकी चूत के द्वार पर दस्तक दे रहा है तो उसने अपने दोनो हाथों से चूत के दोनो होठ खोल लिए जिससे उसकी चूत पूरी खुल जाए ओर जन्मेजय को चूत मे लॅंड पेलने मे कोई दिक्कत ना आए.

वैसे टाँगें चौड़ी करने का ओर चूत को पूरा खोलने का एक कारण ओर भी था. उसकी एक सहेली थी जो अभी नई नई शादी के बाद वापस अपने पिहर आई हुई थी वो रोज ही उसे अपनी चुदाई के किससे सुनती रहती थी ओर श्रृष्टि उसे उकसा उकसा कर चुदाई की बातें पूछती रहती थी. इस कारण उसे इस बात का अच्छी तरह ज्ञान था की जब लॅंड चूत मे जाता है तो बहुत दर्द होता है चूत फट जाती है ओर चूत मे से खून भी निकालने लगता है.

इन सब डर के बावजूद भी श्रृष्टि अपनी चूत मे लॅंड डलवाना चाहती थी क्यूंकी उसने चूत मे जीभ कई बार डलवाई हुई थी ओर वो जानती थी की अगर जीभ इतना मज़ा दे सकता है तो लॅंड कितना मज़ा दे सकता है. ओर आज लॅंड उसकी चूत पर आख़िरकार दस्तक दे ही रहा है. ओर उसकी चूत भी आंशु बहा कर लॅंड का स्वागत कर रही है.

जन्मेजय ने उसकी गुलाबी चूत को देखा ओर श्रृष्टि के चूत की फांकों को खोलने के कारण जो चूत खुल कर उसके सामने आई थी तो उसे सॉफ नज़र आ रहा था की श्रृष्टि पूरी तरह से कुँवारी है. जन्मेजय उसे बेदर्दी से चोद्ने का मूड बना रहा था पर ये सब देख कर वो समझ गया की अगर आज बेदर्दी से चोडा तो श्रृष्टि फिर कभी भी चुदाई के पूरे मज़े नही ले पाएगी ओर हमेशा सेक्स से घबराती रहेगी. इस कारण उसे आराम से ही चोडेना होगा.

ये सोच कर जन्मेजय ने अपने लॅंड को एक बार फिर से वहाँ से हटा लिया श्रृष्टि ये अपेक्षा नही कर रही थी. वो घबरा कर पीछे मूडी तब तक जन्मेजय बाथरूम से बाहर निकल गया था. श्रृष्टि ने सोचा की जन्मेजय गया क्यू क्या उसे मेरी चूत पसंद नही आई मैने तो आज तक किसी से चुडवाया भी नही है ओर इसे फिर भी मेरी चूत पसंद नही आई तो इसे कैसी चूत पसंद है.

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अब मैं किसे पटौँगी चूत का उद्घाटन करने के लिए. श्रृष्टि इस उधेड़बुन मे मशगूल थी की इतने मे जन्मेजय फिर से बाथरूम मे घुसा. श्रृष्टि उसी पोज़िशन मे खड़ी सोच रही थी जन्मेजय ने उसकी चूत को अपने दोनो हाथों से चौड़ा किया तब कही जा कर श्रृष्टि को होश आया.

ओर उसने चैन की साँस लिकी चलो जन्मेजय गया नही है वो वापस आगेया है उसने उसी समय भगवान का लाख लाख शुक्रिया अदा किया की उसने जन्मेजय को फिर से वापस भेज दिया. उसे क्या पता था की जन्मेजय तो उसकी चूत पर ओर लॅंड पर लगाने के लिए क्रीम लेने गया था कमरे मे.

जन्मेजय ने अब उससे कहा की तुम प्लीज़ अपने दोनो चुतताड थोड़े चौड़े कर लो जिससे मैं तुम्हारी चूत मे क्रीम लगा सकूँ. श्रृष्टि अब अपनी बेवकूफी पर मुश्कुरा दी. अरे ये तो क्रीम लाने गया था ओर मैं पता नही क्या क्या सोचने लगी. ओर उसने झट से अपने दोनो हाथों से अपनी चूत के दोनो फाड़ चौड़ी कर दी ओर जन्मेजय ने झट से अपने हाथ मे ले रखी खूब सारी क्रीम श्रृष्टि की चूत मे घुसेड दी.

ओर उंगली से उसे अंदर करने लगा जब भी वो उंगली श्रृष्टि की चूत मे डालता क्रीम को अंदर करने के लिए तब तक श्रृष्टि के मूह से शीष्कारी निकल जाती. कुच्छ देर ऐसे ही करते रहने के बाद जाए ने उसकी चूत को छ्चोड़ दिया ओर अब वो अपने लॅंड पर क्रीम लगा रहा था.

श्रृष्टि को ये सब समझ नही आरहा था तो उसने पूच्छ ही लिया की तुम ये क्रीम क्यू लगा रहे हो पहले तो चूत पर क्रीम लगाई ओर अब लॅंड पर भी लगा रहे हो. इनको गोरा बनाना है क्या. श्रृष्टि तो क्रीम का एक ही मतलब जानती थी. गोरा करना.

जन्मेजय केवल मुश्कुरा दिया ओर बोला समझ जाएगी तू ओर अपने तननाए हुए लॅंड को श्रृष्टि की चूत पर लगा दिया. चूत पर लॅंड का एहसास होते ही श्रृष्टि एकदम सिंहार गई ओर बेसब्री से लॅंड के चूत मे घुसने का इंतजार करने लगी. जन्मेजय ने बड़े ही प्यार से अपने लॅंड को चूत के मुहाने पर रखा ओर उसे चूत पर दबाने लगा.

 इतने प्यार से लॅंड घुसने के बावजूद श्रृष्टि के मूह से आआआआआआआआआआआआआअहह की आवाह निकल गई जन्मेजय ने आहा क्या हुआ श्रृष्टि दर्द हो रहा है क्या. श्रृष्टि तब तक अपने दर्द को दबा चुकी थी उसने कहाँ नही जन्मेजय तुम करो दर्द नही हो रहा है ओर अगर मैं दर्द से चीखून भी तो तुम मत रुकना वरना हम कभी भी मज़ा नही ले पाएँगे.

जन्मेजय उसकी जिंदादिली को देख कर हैरान था. उसने एक बार फिर से चूत के मूह पर लॅंड कगाया ओर इस बार कुच्छ ज़्यादा ज़ोर देते हुए लॅंड को चूत पर धकेलने लगा. लॅंड की टोपी चूत के अंदर घुस गई थी श्रृष्टि चिल्लई आआआआआआआआहह. मर् गई रे. मेरी चूत फट गई रे.

पर इस बार जन्मेजय रुका नही ओर उसने श्रृष्टि की चूत मे फँसे लॅंड को थोड़ा सा पीछे किहिंचा ओर फिर एक जोरदार झटका मारा ओर लॅंड क्रीम की चिकनाई होने की वजह से पूरा का पूरा उसकी चूत के अंदर समा गया. चूत इस अप्रत्याशित हमले के लिए तय्यार नही थी लॅंड के पहले ही झटके मे चूत की झिल्ली एकदम खींच गई.

ओर जब जन्मेजय ने दुबारा से झटका मारा तो लॅंड श्रृष्टि की चूत की कोमार्य झिल्ली को तार तार करते हुए जड़ तक उतार गया. श्रृष्टि का तो दर्द के मारे बुरा हाल था वो ये नही जानती थी की चूत मे लॅंड लेना इतना मुश्किल होता है वो तो सोच रही थी की बस चूत पर लॅंड लगाया ओर अंदर बाहर कर लेते होंगे पर आज जब वो खुद चुड रही है तो लग रहा है जैसे उसकी चूत की तो माँ चुद गई है.

एक दम बुरा हाल हो गया था उसकी चूत तो जैसे फट कर दो टुकड़े हो गई थी. उसने जन्मेजय को अपने हाथ से रुकने का इशारा किया तो जन्मेजय रुक गया क्यूंकी उसे भी श्रृष्टि की तकलीफ़ सॉफ नज़र आ रही थी. श्रृष्टि काफ़ी मुश्किल से सांश ले रही थी.  कुछ देर तक वो दोनो ऐसे ही खड़े रहे श्रृष्टि वैसे ही झुकी हुई लॅंड चूत मे लिए हुए ओर जन्मेजय उसके पीछे अगले हुक़म के इंतजार में.

कुच्छ देर बाद जब श्रृष्टि की चूत मे दर्द कम हो गया तो उसने अपने चुतताड पीछे की तरफ ढकेले. जिससे लॅंड कुच्छ श्रृष्टि की चूत मे ओर अंदर चला गया ये इस बात का इशारा था की अब तुम चोद सकते हो. जन्मेजय ने झट से फिर झटके मरने शुरू कर दिए. ओर अब तो श्रृष्टि भी चुदाई का पूरा अनानद ले रही थी.

ओर अपनी गांद को जन्मेजय की तरफ बार बार उछाल रही थी कह रही थी हाआँ जन्मेजय ओर ज़ोर से छोड़ो मुझे बहुत दिन हो गये है इस चूत को पानी फेंकते हुए आज इसकी कस कर मार ले फिर ये लॅंड लॅंड ना चिल्लाए. हाए मैं कब से तुमसे चूड़ना चाह रही थी मेरे राजा चोद डाल मुझे मस्त कर दे मेरे राजा. अया ओर ज़ोर से आआहह मार डाला ले हरामी मेरी चूत फाड़ डाली रे तूने रे मज़ा आ गया रे ओर मार मेरी चूत को.

ऐसे कहते कहते श्रृष्टि की चूत मे संकुचन होने लगा ओर उसने जन्मेजय के लॅंड को अपनी गिरफ़्त मे ले लिया ओर जन्मेजय को ऐसा महसोस होने लगा जैसे उसका लॅंड कही फँस गया हो पर फिर भी वो झटके मारे जा रहा था. थोड़ी ही देर मे श्रृष्टि की चूत पानी छ्चोड़ देती है ओर चूत की कसावट की ताब ना लाते हुए जन्मेजय का लॅंड भी देर सारा विर्य उसकी चूत मे डाल देता है.

विर्य की गर्मी का एहसास होते ही श्रृष्टि को एक तरह की संत्स्ती मिलती है. की आख़िरकार वो आज चुद गई थी उसकी दिली तमन्ना पूरी हो गई थी. अब चुदाई के बाद दोनो ने साथ मे स्नान किया ओर एक दूसरे को खूब मल मल कर नहलाया जन्मेजय श्रृष्टि के साबुन लगा रहा था ओर श्रृष्टि जन्मेजय के साबुन लगा रहे थे.

दोनो जब नहा चुके तो बाहर आ गये ओर बाहर आ कर कपड़े पहनने लगे. श्रृष्टि कपड़े पहन रही थी ओर जन्मेजय उसे देखे जा रहा था. उसे श्रृष्टि बहुत पसंद आ रही थी. पहले तो वो सोच रहा था की श्रृष्टि उसे चोदने को मिल जाए तो अच्छा है ओर अब जब वो उसे भोग चुका था. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

तो उसे इस बात का एहसास हो रहा था की श्रृष्टि तो एक अनछुइ कली थी जिसे उसने भोगने के चक्कर मे खराब कर दिया है ओर वो इस बात पर बहुत पश्चाताप कर रहा था. क्यूंकी जब वो श्रृष्टि को छोड़ने के लिए उसकी चूत पर अपना लंड लगा रहा था.

तब उसने उसकी चूत का मुहाना सॉफ तौर पर देखा था वो एकदम कुँवारी थी वो केवल उससे चुडाने के लिए ही यहाँ पर आई थी पर ये भी तो था की वो किसी ओर से भी तो चुद सकती थी उसे कोई लड़कों की कमी तो थी नही. जिस भी लड़के को वो इशारा करती वो ही उसे चोदने को दौड़ पड़ता. पर उसने मुझे चुना ज़रूर कोई कारण है.

इसे भी पढ़े – पापा के शराबी दोस्तों ने मुझे जबरदस्ती चोदा

उसने श्रृष्टि को पुछा श्रृष्टि एक बात बताओ.

बोलो.

तुम यहाँ पर मुझसे चूड़ने आई थी ना. सॉफ सॉफ बताना.

मुझसे ऐसी बातें मत करो तुम मुझे शर्म आती है.

अरे बताओ ना चूड़ने के टाइम तो शर्म नही आई.

वो वक़्त ओर होता है उस टाइम शर्म नही आती है पर अब तो आ रही है.

नही तुमको बताना पड़ेगा.

हाँ.

अगर आज मैं तुम्हे नही मिलता तो क्या तुम किसी ओर से चुद लेती.

चुप करो तुम हर कुछ बकते रहते हो. तुममे ओर ओरों मे फ़र्क नही है क्या.

“वही फ़र्क तो जाना चाहता हू”.

जन्मेजय जैसे कोई फ़ैसला करना चाहता हो.

मैं तुमसे प्यार करती हू, यार ओरों से नही करती, अगर मुझे हर किसी से चूड़ना होता तो बस मे मुझे लड़का छेद ही रहा था उसी से करवा लेती पर मुझे तो सिर्फ़ तुमसे प्यार है. बस वाले लड़के की तो मैने पिटाई भी करवा दी थी.. क्या तुम्हे इतनी सी बात समझ नही आती क्या.

तुम मुझसे प्यार करती हो तो क्या तुम मुझसे शादी करोगी.

श्रृष्टि ने उसे आश्चर्या से देखा जैसे उसने श्रृष्टि के मन की बात पकड़ ली हो. “क्यू नही करूँगी मेरे लिए इससे अच्छी बात क्या हो सकती है”.

पर तुम्हारे माँ बाप क्या कहेंगे. क्या वो मानेंगे

मेरे माँ बाप को तो मैं मना लूँगी पर तुम्हारे माँ बाप का क्या होगा.

मेरे माँ बाप तो मुझे बहुत पहले कह चुके की बेटा हम तो तेरी शादी तेरी ही पसनद की लड़की से करेंगे., मैने लड़कियाँ चोदि तो बहुत है ओर जिस लड़की के कमरे मे आज हम चुदाई कर रहे है उसे तो वो रोज चोद्ता है पर प्यार पहली बार हुआ है.

मैं तुमसे प्यार करता हू ओर तुमसे शादी करना चाहता हू. अगर तुम मानो.

मेरा तो तन मन धन सब तुम्हारा है

मुझे तो तेरा तन ओर मन ही चाहिए धन नही चाहिए. मैं अपने पापा से बात करूँगा. तुम भी अपने पापा से बात करके देख लो.

मेरे माँ बाप मुझसे बहुत प्यार करते है वो शादी के लिए मना नही करेंगे.

जन्मेजय ने श्रृष्टि की तरफ अपनी बाहें फैला दी ओर श्रृष्टि उसके आगोश मैं आ कर उसके प्यार के संसार मे खो गई.

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