Virgin Lover XXX Kahani
मैं आनंद उत्तर प्रदेश के एक छोटे शहर से हूँ। मैं पेशे से इंजीनियर हूँ और एक आईटी कंपनी में जॉब करता हूँ। कहानी शुरू करने से पहले कुछ पुरानी बातें बताना चाहता हूँ। मेरी दसवीं की पढ़ाई के बाद बाबा का ट्रान्स्फर यहाँ हुआ, सो मेरे एग्जाम खत्म होते ही पूरा परिवार यहाँ शिफ्ट हो गया। Virgin Lover XXX Kahani
जिस किराए के मकान में हम रह रहे थे वो बाबा के सहकर्मी का ही था। वे हमारे पड़ोसी थे.. उनके परिवार में वो अंकल, आंटी और उनकी एक बेटी थी। उसका नाम आकांक्षा था, वो मुझसे कुछेक माह बड़ी थी.. वो मेरी अच्छी दोस्त बन गई थी। हम दोनों 12 वीं तक तो अलग-अलग कॉलेज में पढ़ते थे.. लेकिन इंजीनियरिंग के लिए एक ही कॉलेज में एड्मिशन मिला।
इसके बाद हमारी दोस्ती और बढ़ती गई और ये दोस्ती प्यार में कब बदल गई, पता ही नहीं चला। मैंने शायद थर्ड इयर में आकांक्षा से अपने दिल की बात की, उसे भी ये सब पता था और वो भी मुझे चाहती थी। बस प्यार के साथ-साथ हम दोनों में नज़दीकियाँ भी बढ़ती चली गईं।
लेकिन यह एक छोटा शहर था, तो मिलना या इन नज़दीकियों को बढ़ाना इतना आसान नहीं था। हमें अपनी दिली ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए भी छुप-छुप कर मिलना पड़ता था। नज़दीकियों की बात करें तो एक-दूसरे को बांहों में लेने से बढ़कर हम कुछ नहीं कर पाए थे।
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हम दोनों को आगे बढ़ना तो था.. पर बेबस थे। हम अपनी प्यास बुझाने के लिए बस फोन पर प्यार भरी बातें करके मन को तसल्ली दे देते थे। लेकिन इसी बीच हमें अपने प्यार को अगले पड़ाव पर ले जाने का एक मौका मिला। इससे पहले कि मैं आगे लिखूं, पहले आपको आकांक्षा के बारे में बता दूँ।
आकांक्षा काफ़ी स्लिम थी, पर मैं उसके नयन-नक्श का दीवाना था। उसकी भूरी आंखें, दूध सा सफेद रंग, लंबे बाल और सबसे प्यारी बात कि हंसते समय उसके गाल पे एक डिंपल पड़ जाता था। उस वक्त मुझे नशा सा छा जाता था, साथ ही वो टाइट जीन्स और टी-शर्ट में क़यामत लगती थी, जिसकी वजह उसकी फिगर थी।
आकांक्षा की एक सबसे खास सहेली थी पल्लवी.. जो हमारे ही ग्रुप में थी। पल्लवी हम दोनों के बारे में सब जानती थी। एक दिन हमारे टर्म एंड की छुट्टियों के दौरान पल्लवी ने मुझे और आकांक्षा को खाने पर उसके घर बुलाया। उसके घर वाले 2-3 दिन के लिए कहीं शहर से बाहर गए थे। इसी समय उसे मुझे मुकेश से मिलवाना था, जिससे वो प्यार करती थी।
मुकेश किसी दूसरे कॉलेज से था, आकांक्षा उससे मिल चुकी थी, पर मैं नहीं मिला था। सो हम दोनों उस दिन शाम पल्लवी के घर मिले.. हमने उस शाम काफी मस्ती की। दोनों जोड़ों ने एक-दूसरे के काफ़ी सारे प्यार भरे फोटो खींचे, फिर खाना खाया और फिर ऐसे ही बातचीत करते हुए बैठे। फिर पल्लवी ने आकांक्षा को कुछ इशारा किया और मुकेश को लेके बगल के कमरे में चली गई। उधर से बस दरवाजा बंद होने की आवाज़ आई।
मैंने आकांक्षा से पूछा- ये क्या है?
तो उसने बस मुस्कुरा के मुझे बांहों में भर लिया, मुझे तो जैसे जन्नत नसीब हुई हो। मैंने भी आकांक्षा को कस के बांहों में दबोच लिया और उसके गले पे किस करने लगा। आकांक्षा ने मुझे और जोर से दबोच लिया, जिसके कारण उसकी चूची मेरे छाती में गड़ी जा रही थीं। फिर मैंने आकांक्षा के होंठों को अपने होंठों से पीने लगा, हम दोनों भी पागल हो रहे थे। हम लगभग 15 मिनट बाद अलग हुए।
मैंने आकांक्षा से पूछा- पल्लवी को ये सब पता है क्या?
तो उसने बताया कि पल्लवी का ही सारा प्लान था, वो मुकेश से चुदवाना चाहती थी इसलिए ये सब प्लान बनाया है। इससे मेरे अन्दर भी किसी के अचानक आने का टेंशन खत्म हुआ और मैंने उठ के पहले हॉल में आने वाला दरवाजा बंद कर दिया और वापस सोफा पे आके आकांक्षा को बांहों में भर लिया।
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उसे बांहों में उठा के उसे अपनी गोदी में बिठा लिया और वापस उसके होंठ पीने लगा। आकांक्षा अपने हाथ मेरे बालों में फेर रही थी और मेरे होंठों को आहिस्ते-आहिस्ते चूस रही थी। मैं उसके होंठों को जोरों से चूसने लगा, हमारी जबान एक-दूसरे से मिल गई। आकांक्षा आहें भरते हुए मेरा साथ दे रही थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
फिर मैंने आकांक्षा के बाल खोल दिए और एक हाथ से उसके बालों से खेलने लगा। फिर मैं आकांक्षा के गले पे किस करने लगा, आकांक्षा बस ‘सी.. सीईइ..’ की आवाज़ निकालते हुए मज़े ले रही थी। मैं उसके गले से होते हुए कानों के इर्द-गिर्द किस करना शुरू किया और हाथों से उसे और जोरों से दबोच लिया।
अब उसकी चूचियां मेरे सीने से रगड़ खा रही थीं। आकांक्षा भी गर्म हो चुकी थी, वो भी खुद से मेरे सीने में अपने मम्मे दबाने लगी। इस बीच आकांक्षा ने अपने दोनों पैरों से मेरे कमर को जकड़ लिया। उससे हुआ यूँ कि मेरा लंड जो तन कर जीन्स से बाहर आने को तैयार था.. वो जाकर आकांक्षा की चुत पर रगड़ खा गया। आकांक्षा लंड के अहसास से एकदम से उछल पड़ी।
वो कहने लगी- इसे अभी शांत करो.. ये सब शादी के बाद ही मिलेगा।
मैंने भी हाँ में हाँ मिलाते हुए, उसे वापस पकड़ लिया और अपने सीने से लगा लिया और उसके बाद अपने हाथ उसकी कमर से होते हुए उसकी टी-शर्ट के ऊपर से ही उसकी चूची मसलने लगा। वो बस आहें भरते हुए मज़े ले रही थी। अब मैंने जानबूझ कर अपना लंड वापस उसकी कॅप्री के ऊपर से ही उसके चूत पर रगड़ दिया।
वो कुछ बोले इसके पहले मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया। अब मैं वापस उसके होंठों को चूसने लगा। आकांक्षा भी इससे गर्म होकर अपनी चूत मेरे तने हुए लंड पे रगड़ने लगी। मैं ये देख अपना एक हाथ उसके टॉप में डाल कर ब्रा के ऊपर से उसकी चूची दबाने लगा।
अह.. क्या जन्नत थी.. उसके चूचे बिल्कुल किसी गुब्बारे से थे, उनको जितना दबाओ उतना ही वापस फूलते थे। मम्मों को मसलने से आकांक्षा और गर्म हो गई और उसने मुझे कसके पकड़ लिया। मैं भी अपने दूसरा हाथ उसकी टी-शर्ट में डाल उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा और धीरे से उसकी ब्रा का हुक खोल दिया।
अब आकांक्षा मचलने लगी और कहने लगी- इन्हें पी लो आनंद, खा जाओ इन्हें..
मैंने भी देर ना करते हुए उसकी टी-शर्ट को उसके गले तक ऊपर कर दिया और मेरे सामने उसके दोनों कबूतर उछल कर निकल आए। अह.. क्या मस्त चूचे थे यारों.. उसके मम्मे दूध से सफेद, बिल्कुल गोल और उस पर गुलाबी निप्पल आह.. मैं तो जैसे किसी दूसरी दुनिया में ही पहुँच गया।
मैं उसका एक निप्पल अपने मुँह में लेकर चूसने लगा और दूसरे हाथ से दूसरे कबूतर को दबोच लिया। आकांक्षा के मुँह से धीरे-धीरे बस ‘आहा.. खा जाओ आनंद.. धीरे.. उम्म्म्म.. कब से तड़प रहे थे ये..’ बस ऐसे शब्द सुनाई दे रहे थे। मैंने बारी-बारी उन्हें चूसा।
इसी बीच आकांक्षा ने अपनी चूत का दबाव मेरे लंड पर बढ़ा दिया और फिर अपने हाथ से जीन्स के ऊपर से ही लंड को मसलने लगी। इसी कारण मैं झड़ गया, शायद पहली बार था इसलिए। मैंने भी अपना हाथ आकांक्षा की कॅप्री के अन्दर डाल दिया और पेंटी के ऊपर से चूत मसलने लगा।
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उसकी चूत काफ़ी पानी छोड़ रही थी, उसी कारण उसकी पैंटी भी गीली हो गई थी। मैंने पाया कि उसकी चूत काफ़ी तप गई थी। मैंने उसकी पैंटी थोड़ा बाजू कर उसकी चुत में अपनी उंगली डाल दी, वो पागलों की तरह तड़प उठी। उसकी चूत काफ़ी कसी हुई थी।
इसके बाद उसने भी मेरा लंड बाहर निकाल लिया। लंड झड़ने के कारण पूरा लंड चिपचिपा हो गया था, सो आकांक्षा ने उसे अपने पर्स से टिश्यू निकाल साफ कर दिया और हाथों से लंड को मुठ मारने लगी। मैंने वापस उसके होंठों पे एक जोरदार किस की और उसे गोदी में उठा कर वहीं सोफे पे लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़ गया।
उसके चूचे मुँह में भर लिए। वो मेरा सिर अपने हाथों में पकड़ अपने सीने में दबाने लगी और आहें भरने लगी। मैंने उसके मम्मे चूसते हुए, चाटते हुए नीचे बढ़ रहा था। आकांक्षा बस धीरे-धीरे आहें भरते हुए ‘उम्म्म्म.. अहहाअ.. बहुत अच्छा लग रहा है.. मुझे और प्यार करो ना..’
वो ऐसे बड़बड़ा रही थी, इससे मेरा जोश बढ़ रहा था। मेरा लंड वापस पूरा तन चुका था। मैं चूमते हुए उसकी नाभि पर रुक गया और उसके इर्द-गिर्द चाटने लगा। आकांक्षा को जैसे होश ही ना रहा.. वो मेरा सर और दबाने लगी। मैंने अपनी जीभ उसकी नाभि में डाल दी और चूसने लगा। मैंने उसके नाभि चूसते हुए उसकी कॅप्री उसके घुटनों तक खींच दी और अपना तना हुआ लंड उसकी नंगी जांघों पे रगड़ने लगा।
आकांक्षा तड़पने लगी और कहने लगी- जल्दी करो आनंद मुझे और बर्दाश्त नहीं होगा.. मेरी प्यास बुझा दो, डाल दो अपना लंड मेरी चुत में..
मैंने कहा- रुक जाओ जान, पूरा मज़ा तो लो अपने प्यार का।
मैंने उसकी पैंटी भी उसके घुटने तक उतार दी। मैं उसकी चूत देख पागल हो गया.. बिल्कुल साफ़ और गुलाबी, गर्म होने वजह से फूली-फूली थी। मेरा जी कर रहा था कि खा जाऊं। मैं चुत की चुम्मी लेने को बढ़ा, तभी आकांक्षा ने मना कर दिया।
वो कहने लगी- प्लीज़ पहले मेरी चूत में अपना लंड डाल दो और मुझे अपने में समेट लो; प्लीज़ जल्दी करो.. पल्लवी आ गई तो मेरी प्यास अधूरी रह जाएगी।
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मैं तो भूल ही गया था कि हम पल्लवी के घर पर हैं। मैंने उसकी बात मानते हुए उसके पैरों के बीच आ गया और उसके ऊपर चढ़ गया। मैं उसके होंठों वापस चूमने लगा। इस वक्त मैं तो जैसे कोई सपना देख रहा था। मैं उसे चूमते हुए अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ने लगा। आकांक्षा तो जैसे किसी मछली जैसे तड़प रही थी और अपने चूतड़ उठा-उठा कर लंड को अपनी चुत के अन्दर लेना चाह रही थी।
वो बोली- प्लीज़ तड़पाओ मत ना..
मैंने भी उसकी बात मानते हुए उसे लंड को अपने चूत के मुख पर पकड़े रहने को कहा और लंड का जोर चूत पर देने लगा। आकांक्षा की चूत पानी छोड़ने के कारण काफी चिकनी हो गई थी, इसलिए लंड का सुपारा आसानी से चूत में समा गया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
आगे जोर देने पर आकांक्षा तड़पने लगी, तो मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में दबा लिया और एक झटका लगा दिया। आकांक्षा की आंखें आसुओं से भर आई, वो छटपटाने लगी। मैंने उसे दबाए रखा और होंठों को चूसते हुए उसके मम्मे दबाने लगा।
मैंने उसके होंठ छोड़े तो कहने लगी- बहुत जलन हो रही है, प्लीज़ निकाल दो अपना लंड, मुझे नहीं बर्दाश्त हो रहा है। मैं उसे समझाने की कोशिश कर रहा था पर कोई फायदा नहीं था। उसे वाकयी काफ़ी तकलीफ़ हो रही थी। फिर भी मैं वैसे ही लंड डाले उसके गले पे, गालों पर चूम रहा था.. पर कुछ फायदा नहीं हुआ।
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तभी हमने दूसरे कमरे से कुछ आवाज़ सुनी.. हमें लगा कि शायद पल्लवी और मुकेश आ रहे हैं, सो हम अलग होके अपने कपड़े ठीक कर हॉल का दरवाजा खोल कर वापस सोफे पे बैठ गए। आकांक्षा पूरी लाल हो गई थी, उसके गोरे निखार के वजह से पहचान में आ रहा थी कि ये बहुत रोई है। पर सोफे पर बैठने के बाद उसने मुझे किस कर थैंक्स कहा और बोलीं- आनंद आज मुझे बहुत अच्छा लगा.. मैं अपने अपने आपको पूरा महसूस कर रही हूँ.. थैंक्यू वेरी मच..
और उसने एक चुम्मी दी और बोली- आई लव यू.. मुझे बहुत अच्छा लगा कि तुमने कोई ज़बरदस्ती नहीं की। इतने में अन्दर से कमरे के दरवाजे की आवाज़ आई, हम थोड़ा ढंग से बैठ गए। पल्लवी आई और आकांक्षा को देख मुस्कुराने लगी, मुकेश उसके पीछे-पीछे आके हम दोनों से मिला और बाद में वो जल्दी में निकल गया। मैं भी थोड़ी देर बाद निकल गया.. आकांक्षा, उस रात पल्लवी के घर ही रुक गई। सो ऐसा था हमारे प्यार का पहला पड़ाव, अधूरा रहा, पर यादगार रहा।