Brother Sister Incest Taboo
मेरा नाम ग़ालिब है और मैं 21 साल का एक युवक हूँ, मेरी बाजी का नाम नूरजहाँ है। उसकी उमर क़रीब 25 साल है। बाजी मुझसे 4 साल बड़ी हैं। हम लोग एक मिडल-कलास फ़ैमिली है और एक छोटे से फ्लैट में मुंबई में रहते हैं। हमारा घर में एक छोटा सा हाल, डायनिंग रूम दो बेडरूम और एक किचन है। बाथरूम एक ही था और उसको सभी लोग इस्तेमाल करते थे। हमारे पिताजी और अम्मी दोनों नौकरी करते हैं। Brother Sister Incest Taboo
बाजी मुझको ग़ालिब कह कर पुकारती हैं और मैं उनको बाजी कह कर पुकारता हूँ। शुरू शुरू में मुझे सेक्स के बारे कुछ नहीं मालूम था क्योंकि मैं हाई स्कूल में पढ़ता था और हमारे बिल्डिंग में भी अच्छी मेरे उमर की कोई लड़की नहीं थी। इसलिए मैंने अभी तक सेक्स का मज़ा नहीं लिया था और ना ही मैंने अब तक कोई नंगी लड़की देखी थी। हाँ मैं कभी कभी पॉर्न मैगजीन में नंगी तस्वीर देख लिया करता था।
जब मुझे लड़कियों के तरफ़ और सेक्स के लिए इंटेरेस्ट होना शुरू हुआ। मेरे नज़रों के आसपास अगर कोई लड़की थी तो वो नूरजहाँ बाजी ही थी। बाजी की लंबाई क़रीब क़रीब मेरे तरह ही थी, उनका रंग बहुत गोरा था और उनका चेहरा और बोडी स्ट्रक्चर हिंदी सिनेमा के जीनत अमान जैसा था। हाँ उनकी चूचियाँ जीनत अमान जैसे बड़ी बड़ी नहीं थी।
मुझे अभी तक याद है कि मैंने अपना पहला मुठ मेरी बाजी के लिए ही मारा था। एक सन्डे सुबह सुबह जैसे ही मेरी बाजी बाथरूम से निकली मैं बाथरूम में घुस गया। मैंने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपने कपड़े खोलने शुरू किए। मुझे जोरो की पेशाब लगी थी। पेशाब करने के बाद मैं अपने लंड से खेलने लगा।
एकाएक मेरी नज़र बाथरूम के किनारे बाजी के उतरे हुए कपड़ों पर पड़ी। वहाँ पर बाजी अपनी नाइटगाऊन उतार कर छोड़ गई थी। जैसे ही मैंने बाजी का नाइटगाऊन उठाया तो देखा कि नाइटगाऊन के नीचे बाजी की ब्रा पड़ी थी। जैसे ही मैंने बाजी की काले रंग की ब्रा उठाई तो मेरा लंड अपने आप खड़ा होने लगा।
मैंने बाजी का नाइटगाऊन उठाया तो उसमें से बाजी के नीले रंग का पैंटी भी नीचे गिर गई। मैंने पैंटी भी उठा ली। अब मेरे एक हाथ में बाजी की पैंटी थी और दूसरे हाथ में बाजी की ब्रा थी। ओह भगवान ! बाजी के अन्दर वाले कपड़े चूमने से ही कितना मज़ा आ रहा है यह वही ब्रा है जिसमें कुछ देर पहले बाजी की चूचियाँ जकड़ी हुई और यह वही पैंटी हैं जो कुछ देर पहले तक बाजी की फुद्दि से लिपटी थी।
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यह सोच सोच करके मैं हैरान हो रहा था और अंदर ही अंदर गरमा रहा था। मैं सोच नहीं पा रहा था कि मैं बाजी की ब्रा और पैंटी को लेकर क्या करूँ। मैंने बाजी की ब्रा और पैँटी को लेकर हर तरफ़ से छुआ, सूंघा, चाटा और पता नहीं क्या क्या किया। मैंने उन कपड़ों को अपने लंड पर मला, ब्रा को अपने छाती पर रखा।
मैं अपने खड़े लंड के ऊपर बाजी की पैंटी को पहना और वो लंड के ऊपर तना हुआ था। फिर बाद में मैं बाजी की नाइटगाऊन को बाथरूम के दीवार के पास एक हैंगर पर टांग दिया। फिर कपड़े टांगने वाला पिन लेकर ब्रा को नाइटगाऊन के ऊपरी भाग में फँसा दिया और पैँटी को नाइटगाऊन के कमर के पास फँसा दिया।
अब ऐसा लग रहा था की बाजी बाथरूम में दीवार के सहारे ख़ड़ी हैं और मुझे अपनी ब्रा और पैँटी दिखा रही हैं। मैं झट जाकर बाजी के नाइटगाऊन से चिपक गया और उनकी ब्रा को चूसने लगा और मन ही मन सोचने लगा कि मैं बाजी की चुची चूस रहा हूँ। मैं अपना लंड को बाजी की पैँटी पर रगड़ने लगा और सोचने लगा कि मैं बाजी को चोद रहा हूँ।
मैं इतना गरम हो गया था कि मेरा लंड फूल कर पूरा का पूरा टनटना गया था और थोड़ी देर के बाद मेरे लंड ने पानी छोड़ दिया और मैं झड़ गया। मेरे लंड ने पहली बार अपना पानी छोड़ा था और मेरे पानी से बाजी की पैंटी और नाइटगाऊन भीग गया था। मुझे पता नहीं कि मेरे लंड ने कितना वीर्य निकाला था लेकिन जो कुछ निकला था वो मेरे बाजी के नाम पर निकला था।
मेरा पहले पहले बार झड़ना इतना तेज़ था कि मेरे पैर जवाब दे गए, मैं पैरों पर ख़ड़ा नहीं हो पा रहा था और मैं चुपचाप बाथरूम के फ़र्श पर बैठ गया। थोड़ी देर के बाद मुझे होश आया तो मैं उठ कर नहाने लगा। शोवर के नीचे नहा कर मुझे कुछ ताज़गी महसूस हुई और मैं फ़्रेश हो गया।
नहाने बाद मैं दीवार से बाजी की नाइटगाऊन, ब्रा और पैंटी उतारा और उसमें से अपना वीर्य धोकर साफ़ किया और नीचे रख दिया। उस दिन के बाद से मेरा यह मुठ मारने का तरीक़ा मेरा सबसे फ़ेवरेट हो गया। हाँ, मुझे इस तरह से मैं मारने का मौक़ा सिर्फ़ इतवार को ही मिलता था.
क्योंकि इतवार के दिन ही मैं बाजी के नहाने के बाद नहाता था। इतवार के दिन चुपचाप अपने बिस्तर पर पड़ा देखा करता था कि कब बाजी बाथरूम में घुसे और बाजी के बाथरूम में घुसते ही मैं उठ जाया करता था और जब बाजी बाथरूम से निकलती तो मैं बाथरूम में घुस जाया करता था।
मेरे अम्मी और पिताजी सुबह सुबह उठ जाया करते थे और जब मैं उठता था तो अम्मी रसोई के नाश्ता बनाती होती और पिताजी बाहर बाल्कोनी में बैठ कर अख़बार पढ़ते होते या बाज़ार गये होते कुछ ना कुछ समान ख़रीदने। इतवार को छोड़ कर मैं जब भी मैं मारता तो तब यही सोचता कि मैं अपना लंड बाजी की रस भरी फुद्दि में पेल रहा हूँ।
शुरू शुरू में मैं यह सोचता था कि बाजी जब नंगी होंगी तो कैसा दिखेंगी? फिर मैं यह सोचने लगा कि बाजी की फुद्दि चोदने में कैसा लगेगा। मैं कभी कभी सपने ने बाजी को नंगी करके चोदता था और जब मेरी आँख खुलती तो मेरा शॉर्ट भीगा हुआ होता था। मैंने कभी भी अपना सोच और अपना सपने के बारे में किसी को भी नहीं बताया था और न ही बाजी को भी इसके बारे में जानने दिया.
मैं अपनी स्कूल की पढाई ख़त्म करके कालेज जाने लगा। कॉलेज में मेरी कुछ गर्ल फ़रेंड भी हो गई। उन गर्ल फ़रेंड में से मैंने दो चार के साथ सेक्स का मज़ा भी लिया। मैं जब कोई गर्ल फ़रेंड के साथ चुदाई करता तो मैं उसको अपने बाजी के साथ कम्पेयर करता और मुझे कोई भी गर्ल फ़रेंड बाजी के बराबर नहीं लगती।
मैं बार बार यह कोशिश करता था मेरा दिमाग़ बाजी पर से हट जाए, लेकिन मेरा दिमाग़ घूम फिर कर बाजी पर ही आ जाता। मैं हमेशा 24 घंटे बाजी के बारे में और उसको चोदने के बारे में ही सोचता रहता। मैं जब भी घर पर होता तो बाजी तो ही देखता रहता, लेकिन इसकी जानकारी बाजी की नहीं थी।
बाजी जब भी अपने कपड़े बदलती थी या अम्मी के साथ घर के काम में हाथ बटाती थी तो मैं चुपके चुपके उन्हे देखा करता था और कभी कभी मुझे सुडोल चुची देखने को मिल जाती (ब्लाउज़ के ऊपर से) थी। बाजी के साथ अपने छोटे से घर में रहने से मुझे कभी कभी बहुत फ़ायदा हुआ करता था।
कभी मेरा हाथ उनके शरीर से टकरा जाता था। मैं बाजी के दो भरे भरे चुची और गोल गोल फुद्दिड़ों को छूने के लिए मरा जा रहा था. मेरा सबसे अच्छा पास टाइम था अपने बालकोनी में खड़े हो कर सड़क पर देखना और जब बाजी पास होती तो धीरे धीरे उनकी चुचियों को छूना।
हमारे घर की बाल्कोनी कुछ ऐसी थी की उसकी लम्बाई घर के सामने गली के बराबर में था और उसकी संकरी सी चौड़ाई के सहारे खड़े हो कर हम सड़क देख सकते थे। मैं जब भी बालकोनी पर खड़े होकर सड़क को देखता तो अपने हाथों को अपने सीने पर मोड़ कर बालकोनी की रेल्लिंग के सहारे ख़ड़ा रहता था।
कभी कभी बाजी आती तो मैं थोड़ा हट कर बाजी के लिए जगह बना देता और बाजी आकर अपने बगल ख़ड़ी हो जाती। मैं ऐसे घूम कर ख़ड़ा होता की बाजी को बिलकुल सट कर खड़ा होना पड़ता। बाजी की भारी भारी चुन्ची मेरे सीने से सट जाता था। मेरे हाथों की उंगलियाँ, जो की बाल्कोनी के रेल्लिंग के सहारे रहती वे बाजी के चूचियों से छु जाती थी।
मैं अपने उंगलियों को धीरे धीरे बाजी की चूचियों पर हल्के हल्के चलत था और बाजी को यह बात नहीं मालूम था। मैं उँगलियों से बाजी की चुन्ची को छू कर देखा की उनकी चूची कितना नरम और मुआयम है लेकिन फिर भी तनी तनी रहा करती हैं कभी कभी मैं बाजी के फुद्दिड़ों को भी धीरे धीरे अपने हाथों से छूता था।
मैं हमेशा ही बाजी की सेक्सी शरीर को इसी तरह से छू्ता था. मैं समझता था की बाजी मेरे हाक्तों और मेरे इरादो से अनजान हैं बाजी इस बात का पता भी नहीं था की उनका छोटा भाई उनके नंगे शरीर को चाहता है और उनकी नंगी शरीर से खेलना चाहता है लेकिन मैं ग़लत था। फिर एक बाजी ने मुझे पकड़ लिया।
उस दिन बाजी किचन में जा कर अपने कपरे बदल रही थी। हाल और किचन के बीच का पर्दा थोड़ा खुला हुआ था। बाजी दूसरी तरफ़ देख रही थी और अपनी कुर्ता उतार रही थी और उसकी ब्रा में छुपा हुआ चुची मेरे नज़रों के सामने था। फ़िर रोज़ के तरह मैं टी वी देख रहा था और बाजी को भी कंखिओं से देख रहा था।
बाजी ने तब एकाएक सामने वाले दीवार पर टंगा शीशे को देखा और मुझे आँखे फ़िरा फ़िरा कर घूरते हुए पाया। बाजी ने देखा की मैं उनकी चूचियों को घूर रहा हूँ। फिर एकाएक मेरे और बाजी की आँखे मिरर में टकरा गयी मैं शर्मा गया और अपने आँखे टी वी तरफ़ कर लिया।
मेरा दिल क्या धड़क रहा था। मैं समझ गया की बाजी जान गयी हैं की मैं उनकी चूचियों को घूर रहा था। अब बाजी क्या करेंगी? क्या बाजी अम्मी और पिताजी को बता देंगी? क्या बाजी मुझसे नाराज़ होंगी? इसी तरह से हज़ारों प्रश्ना मेरे दिमाग़ में घूम रहा था। मैं बाजी के तरफ़ फिर से देखने का साहस जुटा नहीं पाया।
उस दिन सारा दिन और उसके बाद 2-3 दीनो तक मैं बाजी से दूर रहा, उनके तरफ़ नहीं देखा। इन 2-3 दीनो में कुछ नहीं हुआ। मैं ख़ुश हो गया और बाजी को फिर से घुरना चालू कर दिया। बाजी में मुझे 2-3 बार फिर घुरते हुए पकड़ लिया, लेकिन फिर भी कुछ नहीं बोली। मैं समझ गया की बाजी को मालूम हो चुका है मैं क्या चाहता हूँ।
ख़ैर जब तक बाजी को कोई एतराज़ नहीं तो मुझे क्या लेना देना और मैं मज़े से बाजी को घुरने लगा. एक दिन मैं और बाजी अपने घर के बालकोनी में पहले जैसे खड़े थे। बाजी मेरे हाथों से सट कर ख़ड़ी थी और मैं अपने उँगलियों को बाजी के चूची पर हल्के हल्के चला रहा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मुझे लगा की बाजी को शायद यह बात नहीं मालूम की मैं उनकी चूचियों पर अपनी उँगलियों को चला रहा हूँ। मुझे इस लिए लगा क्योंकी बाजी मुझसे फिर भी सट कर ख़ड़ी थी। लेकिन मैं यह तो समझ रहा थी क्योंकी बाजी ने पहले भी नहीं टोका था, तो अब भी कुछ नहीं बोलेंगी और मैं आराम से बाजी की चूचियों को छू सकता हूँ.
हमलोग अपने बालकोनी में खड़े थे और आपस में बातें कर रहे थे, हमलोग कालेज और स्पोर्ट्स के बारे में बाते कर रहे थे। हमारा बालकोनी के सामने एक गली था तो हमलोगों की बालकोनी में कुछ अंधेरा था. बाते करते करते बाजी मेरे उँगलियों को, जो उनकी चूची पर घूम रहा था, अपने हाथों से पकड़कर अपने चूची से हटा दिया।
बाजी को अपने चूची पर मेरे उंगली का एहसास हो गया था और वो थोड़ी देर के लिए बात करना बंद कर दिया और उनकी शरीर कुछ अकड़ गयी लेकिन, बाजी अपने जगह से हिली नहीं और मेरे हाथो से सट कर खड़ी रही। बाजी ने मुझे से कुछ नहीं बोली तो मेरा हिम्मत बढ गया और मैं अपना पूरा का पूरा पंजा बाजी की एक मुलायम और गोल गोल चूची पर रख दिया।
मैं बहुत डर रहा था। पता नहीं बाजी क्या बोलेंगी? मेरा पूरा का पूरा शरीर कांप रहा था। लेकिन बाजी कुछ नहीं बोली। बाजी सिर्फ़ एक बार मुझे देखी और फिर सड़क पर देखने लगी। मैं भी बाजी की तरफ़ डर के मारे नहीं देख रहा था। मैं भी सड़क पर देख रहा था और अपना हाथ से बाजी की एक चूची को धीरे धीरे सहला रहा था।
मैं पहले धीरे धीरे बाजी की एक चूची को सहला रहा था और फिर थोड़ी देर के बाद बाजी की एक मुलायम गोल गोल, नरम लेकिन तनी चूची को अपने हाथ से ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा। बाजी की चूची काफ़ी बड़ी थे और मेरे पंजे में नहीं समा रही थी।
थोड़ी देर बाद मुझे बाजी की कुर्ता और ब्रा के उपर से लगा की चूची के निपपले तन गयी और मैं समझ गया की मेरे चूची मसलने से बाजी गरमा गयी हैं बाजी की कुर्ता और ब्रा के कपड़े बहुत ही महीन और मुलायम थी और उनके ऊपेर से मुझे बाजी की निपपले तनने के बाद बाजी की चूची छूने से मुझे जैसे स्वर्ग मिल गया था।
किसी जवान लड़की के चूची छूने का मेरा यह पहला अवसर था। मुझे पता ही नहीं चला की मैं कब तक बाजी की चूचियों को मसलता रहा। और बाजी ने भी मुझे एक बार के लिए मना नहीं किया। बाजी चुपचाप ख़ड़ी हो कर मुझसे अपना चूची मसलवाती रही। बाजी की चूची मसलते मसलते मेरा लंड धीरे धीरे ख़ड़ा होने लगा था।
मुझे बहुत मज़ा आ रहा था लेकिन एकाएक अम्मी की आवाज़ सुनाई दी। अम्मी की आवाज़ सुनते ही बाजी ने धीरे से मेरा हाथ अपने चूची से हटा दिया और अम्मी के पास चली गयी उस रात मैं सो नहीं पाया, मैं सारी रात बाजी की मुलायम मुलायम चूची के बारे में सोचता रहा.
दूसरे दिन शाम को मैं रोज़ की तरह अपने बालकोनी में खड़ा था। थोड़ी देर के बाद बाजी बालकोनी में आई और मेरे बगल में ख़ड़ी हो गयी मैं 2-3 मिनट तक चुपचाप ख़ड़ा बाजी की तरफ़ देखता रहा। बाजी ने मेरे तरफ़ देखी। मैं धीरे से मुस्कुरा दिया, लेकिन बाजी नहीं मुस्कुराई और चुपचाप सड़क पर देखने लगी। मैं बाजी से धीरे से बोला- छूना है, मैं साफ़ साफ़ बाजी से कुछ नहीं कह पा रहा था।
और पास आ बाजी ने पूछा – क्या छूना चाहते हो ग़ालिब? साफ़ साफ़ बाजी ने फिर मुझसे पूछी।
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तब मैं धीरे से बाजी से बोला, तुम्हारी दूध छूना बाजी ने तब मुझसे तपाक से बोली, क्या छूना है साफ़ साफ़ मैं तब बाजी से मुस्कुरा कर बोला, तुम्हारी चूची छूना है उनको मसलना है। अभी अम्मी आ सकती है ग़ालिब, बाजी ने तब मुस्कुरा कर बोली।
मैं भी तब मुस्कुरा कर अपनी बाजी से बोला, जब अम्मी आएगी हमें पता चल जायेगा मेरे बातों को सुन कर बाजी कुछ नहीं बोली और चुपचाप नज़दीक आ कर ख़ड़ी हो गयी, लेकिन उनकी चूची कल की तरह मेरे हाथों से नहीं छू रहा था। मैं समझ गया की बाजी आज मेरे से सट कर ख़ड़ी होने से कुछ शर्मा रही है अबतक बाजी अनजाने में मुझसे सट कर ख़ड़ी होती थी।
लेकिन आज जान बुझ कर मुझसे सात कर ख़ड़ी होने से वो शर्मा रही है क्योंकी आज बाजी को मालूम था की सट कर ख़ड़ी होने से क्या होगा। जैसे बाजी पास आ गयी और अपने हाथों से बाजी को और पास खीच लिया। अब बाजी की चूची मेरे हाथों को कल की तरह छू रही थी।
मैंने अपना हाथ बाजी की चूची पर टिका दिया। बाजी के चूची छूने के साथ ही मैं मानो स्वर्ग पर पहुँच गया। मैं बाजी की चूची को पहले धीरे धीरे छुआ, फिर उन्हे कस कस कर मसला। कल की तरह, आज भी बाजी का कुर्ता और उसके नीचे ब्रा बहुत महीन कपड़े का था, और उनमे से मुझे बाजी की निपपले तन कर खड़े होना मालूम चल रहा था।
मैं तब अपने एक उंगली और अंगूठे से बाजी की निपपले को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा। मैं जितने बार बाजी की निपपले को दबा रहा था, उतने बार बाजी कसमसा रही थी और बाजी का मुँह शरम के मारे लाल हो रहा था। तब बाजी ने मुझसे धीरे से बोली, ग़ालिब धीरे दबा, लगता है मैं तब धीरे धीरे करने लगा.
मैं और बाजी ऐसे ही फाल्तू बातें कर रहे थे और देखने वाले को एही दिखता की मैं और बाजी कुछ गंभीर बातों पर बहस कर रहे रथे। लेकिन असल में मैं बाजी की चुचियोंको अपने हाथों से कभी धीरे धीरे और कभी ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था। थोड़ी देर अम्मी ने बाजी को बुला लिया और बाजी चली गयी ऐसे ही 2-3 दिन तक चलता रहा।
मैं रोज़ बाजी की सिर्फ़ एक चूची को मसल पाता था। लेकिन असल में मैं बाजी को दोनो चुचियों को अपने दोनो हाथों से पाकर कर मसलना चाहता था। लेकिन बालकोनी में खड़े हो कर यह मुमकिन नहीं था। मैं दो दिन तक इसके बारे में सोचता रहा.
एक दिन शाम को मैं हाल में बैठ कर टी वी देख रहा था। अम्मी और बाजी किचन में डिनर की तैयारी कर रही थी। कुछ देर के बाद बाजी काम ख़तम करके हाल में आ कर बिस्तर पर बैठ गयी बाजी ने थॉरी देर तक टी वी देखी और फिर अख़बार उठा कर पढने लगी।
बाजी बिस्तर पर पालथी मार कर बैठी थी और अख़बार अपने सामने उठा कर पढ रही थी। मेरा पैर बाजी को छू रहा था। मैंने अपना पैरों को और थोड़ा सा आगे खिसका दिया और और अब मेरा पैर बाजी की जांघो को छू रहा था। मैं बाजी की पीठ को देख रहा था।
बाजी आज एक काले रंग का झीना टी शर्ट पहने हुई थी और मुझे बाजी की काले रंग का ब्रा भी दिख रहा था। मैं धीरे से अपना एक हाथ बाजी की पीठ पर रखा और टी शर्ट के उपर से बाजी की पीठ पर चलाने लगा। जैसे मेरा हाथ बाजी की पीठ को छुआ बाजी की शरीर अकड़ गया।
बाजी ने तब दबी जवान से मुझसे पूछी, यह तुम क्या कर रहे हो तुम पागल तो नहीं हो गये अम्मी अभी हम दोनो तो किचन से देख लेगी”, बाजी ने दबी जवान से फिर मुझसे बोली। “मा कैसे देख लेगी?” मैंने बाजी से कहा। “क्या मतलब है तुम्हारा? बाजी ने पूछी। “मेरा मतलब यह है की तुम्हारे सामने अख़बार खुली हुई है अगर अम्मी हमारी तरफ़ देखेगी तो उनको अख़बार दिखलाई देगी.”
मैंने बाजी से धीरे से कहा। “तू बहुत स्मार्ट और शैतान है बाजी ने धीरे से मुझसे बोली.
फिर बाजी चुप हो गयी और अपने सामने अख़बार को फैला कर अख़बार पढने लगी। मैं भी चुपचाप अपना हाथ बाजी के दाहिने बगल के ऊपेर नीचे किया और फिर थोड़ा सा झुक कर मैं अपना हाथ बाजी की दाहिने चूची पर रख दिया। जैसे ही मैं अपना हाथ बाजी के दाहिने चूची पर रखा बाजी कांप गयी मैं भी तब इत्मिनान से बाजी की दाहिने वाली चूची अपने हाथ से मसलने लगा।
थोड़ी देर दाहिना चूची मसलने के बाद मैं अपना दूसरा हाथ से बाजी बाईं तरफ़ वाली चूची पाकर लिया और दोनो हाथों से बाजी की दोनो चूचियों को एक साथ मसलने लगा। बाजी कुछ नहीं बोली और वो चुप चाप अपने सामने अख़बार फैलाए अख़बार पढ्ती रही। मैं बाजी की टी शर्ट को पीछे से उठाने लगा।
बाजी की टी शर्ट बाजी के फुद्दिड़ों के नीचे दबी थी और इसलिए वो ऊपेर नहीं उठ रही थी। मैं ज़ोर लगाया लेकिन कोई फ़ैदा नहीं हुआ। बाजी को मेरे दिमाग़ की बात पता चल गया। बाजी झुक कर के अपना फुद्दिड़ को उठा दिया और मैंने उनका टी शर्ट धीरे से उठा दिया।
अब मैं फिर से बाजी के पीठ पर अपना ऊपेर नीचे घूमना शुरू कर दिया और फिर अपना हाथ टी शर्ट के अंदर कर दिया। वो! क्या चिकना पीठ था बाजी का। मैं धीरे धीरे बाजी की पीठ पर से उनका टी शर्ट पूरा का पूरा उठ दिया और बाजी की पीठ नंगी कर दिया। अब अपने हाथ को बाजी की पीठ पर ब्रा के ऊपेर घूमना शुरू किया। जैसे ही मैंने ब्रा को छुआ बाजी कांपने लगी।
फिर मैं धीरे से अपने हाथ को ब्रा के सहारे सहारे बगल के नीचे से आगे की तरफ़ बढा दिया। फिर मैं बाजी की दोनो चुचियों को अपने हाथ में पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा। बाजी की निपपले इस समय तनी तनी थी और मुझे उसे अपने उँगलेओं से दबाने में मज़ा आ रहा था।
मैं तब आराम से बाजी की दोनो चूचियों को अपने हाथों से दबाने लगा और कभी कभी निपपल खिचने लगा. मा अभी भी किचन में खाना पका रही थी। हम लोगों को अम्मी साफ़ साफ़ किचन में काम करते दिखलाई दे रही थी। मैं यह सोच सोच कर खुश हो रहा की बाजी कैसे मुझे अपनी चुचियों से खेलने दे रही है और वो भी तब जब अम्मी घर में मौजूद हैं।
मैं तब अपना एक हाथ फिर से बाजी के पीठ पर ब्रा के हूक तक ले आया और धीरे धीरे बाजी की ब्रा की हूक को खोलने लगा। बाजी की ब्रा बहुत टाईट थी और इसलिए ब्रा का हूक आसानी से नहीं खुल रहा था। लेकिन जब तक बाजी को यह पता चलता मैं उनकी ब्रा की हूक खोल रहा हूँ, ब्रा की हूक खुल गया और ब्रा की स्ट्रप उनकी बगल तक पहुँच गया।
बाजी अपना सर घुमा कर मुझसे कुछ कहने वाली थी की अम्मी किचन में से हाल में आ गयी मैं जल्दी से अपना हाथ खींच कर बाजी की टी शर्ट नीचे कर दिया और हाथ से टी शर्ट को ठीक कर दिया। अम्मी हल में आ कर कुछ ले रही थी और बाजी से बातें कर रही थी।
बाजी भी बिना सर उठाए अपनी नज़र अख़बार पर रखते हुए अम्मी से बाते कर रही थी। अम्मी को हमारे कारनामो का पता नहीं चला और फिर से किचन में चली गयी जब अम्मी चली गयी तो बाजी ने दबी ज़बान से मुझसे बोली, सोनू, मेरी ब्रा की हूक को लगा “क्या? मैं यह हूक नहीं लगा पाउंगा,” मैं बाजी से बोला.
“क्यों, तू हूक खोल सकता है और लगा नहीं सकता? बाजी मुझे झिड़कते हुए बोली। “नही, यह बात नहीं है बाजी। तुम्हारा ब्रा बहुत टाईट है !” मैं फिर बाजी से कहा।
बाजी अख़बार पढते हुए बोली, मुझे कुछ नहीं पता, तुमने ब्रा खोला है और अब तुम ही इसे लगाओगे.” बाजी नाराज़ होती बोली।
“लेकिन बाजी, ब्रा की हूक को तुम भी तो लगा सकती हो?” मैं बाजी से पूछा। ” बुधू, मैं नहीं लगा सकता, मुझे हूक लगाने के लिए अपने हाथ पीछे करने पड़ेंगे और अम्मी देख लेंगी तो उन्हे पता चल जाएगा की हम लोग क्या कर रहे थी, बाजी मुझसे बोली.
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या करूँ। मैं अपना हाथ बाजी के टी शर्ट नीचे से दोनो बगल से बढा दिया और ब्रा के स्ट्रप को खीचने लगा। जब स्ट्रप थोड़ा आगे आया तो मैंने हूक लगाने की कोशिश करने लगा। लेकिन ब्रा बहुत ही टाईट था और मुझसे हूक नहीं लग रहा था।
मैं बार बार कोशिश कर रहा था और बार बार अम्मी की तरफ़ देख रहा था। अम्मी ने रात का खाना क़रीब क़रीब पका लिया था और वो कभी भी किचन से आ सकती थी। बाजी मुझसे बोली, यह अख़बार पकड़। अब मुझे ही ब्रा के स्ट्रप को लगाना परेगा.” मैं बगल से हाथ निकल कर बाजी के सामने अख़बार पाकर लिया और बाजी अपनी हाथ पीछे करके ब्रा की हूक को लगाने लगी.
मैं पीछे से ब्रा का हूक लगाना देख रहा था। ब्रा इतनी टाईट थी की बाजी को भी हूक लगाने में दिक्कत हो रही थी। आख़िर कर बाजी ने अपनी ब्रा की हूक को लगा लिया। जैसे ही बाजी ने ब्रा की हूक लगा कर अपने हाथ सामने किया अम्मी कमरे में फिर से आ गयी अम्मी बिस्तर पर बैठ कर बाजी से बातें करने लगी।
मैं उठ कर टोइलेट की तरफ़ चल दिया, क्योंकी मेरा लंड बहुत गरम हो चुका था और मुझे उसे ठंडा करना था. दूसरे दिन जब मैं और बाजी बालकोनी पर खड़े थे तो बाजी मुझसे बोली, हम कल रत क़रीब क़रीब पकड़ लिए गये थे। मुझे बहुत शरम आ रही मुझे पता है और मैं कल रात की बात से शर्मिंदा हूँ। तुम्हारी ब्रा इतना टाईट थी की मुझसे उसकी हूक नहीं लगा” मैंने बाजी से कहा।
बाजी तब मुझसे बोली, मुझे भी बहुत दिक्कत हो रही थी और मुझे अपने हाथ पीछे करके ब्रा की स्ट्रप लगाने में बहुत शरम आ रही बाजी, तुम अपनी ब्रा रोज़ कैसे लगती मैंने बाजी से धीरे से पूछा। बाजी बोली, हूमलोग फिर बाजी समझ गयी की मैं बाजी से मज़ाक कर रहा हूँ तब बोली, तू बाद में अपने आप समझ जाएगा. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
फिर मैंने बाजी से धीरे से कहा, मैं तुमसे एक बात कहूं? हाँ -बाजी तपाक से बोली.
“बाजी तुम सामने हूक वाले ब्रा क्यों नहीं पहनती, मैंने बाजी से पूछा। बाजी तब मुस्कुरा कर बोली, सामने हूक वाले ब्रा बहुत महंगी है। मैं तपाक से बाजी से कहा, कोइ बात नही। तुम पैसे के लिए मत घबराओ, मैं तुम्हे पैसे दे दूंगा।
मेरे बातों को सुनकर बाजी मुस्कुराते हुए बोली, तेरे पास इतने सारे पैसे हैं चल मुझे एक 100 का नोट दे। मैं भी अपना पर्स निकाल कर बाजी से बोला, तुम मुझसे 100 का नोट ले लो बाजी मेरे हाथ में 100 का नोट देख कर बोली, नही, मुझे रुपया नहीं चाहिए। मैं तो यूँही ही मज़ाक कर रही “लेकिन मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ। बाजी तुम ना मत करो और यह रुपये तुम मुझसे ले और मैं ज़बरदस्ती बाजी के हाथ में वो 100 का नोट थमा दिया।
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बाजी कुछ देर तक सोचती रही और वो नोट ले लिया और बोली, मैं तुम्हे उदास नहीं देख सकती और मैं यह रुपया ले रही हूँ। लेकिन याद रखना सिर्फ़ इस बार ही रुपये ले रही हूँ। मैं भी बाजी से बोला, सिर्फ़ काले रंग की ब्रा ख़रीदना। मुझे काले रंग की ब्रा बहुत पसंद है और एक बात याद रखना, काले रंग के ब्रा के साथ काले रंग की पैँटी भी ख़रीदना बाजी। बाजी शर्मा गयी और मुझे मारने के लिए दौड़ी लेकिन मैं अंदर भाग गया.
अगले दिन शाम को मैं बाजी को अपने किसी सहेली के साथ फ़ोन पर बातें करते हुए सुना। मैं सुना की बाजी अपने सहेली को मार्केटिंग करने के लिए साथ चलने के लिए बोल रही है।
मैं बाजी को अकेला पा कर बोला, मैं भी तुम्हारे साथ मार्केटिंग करने के लिए जाना चाहता हूँ। क्या मैं तुम्हारे साथ जा सकता हूं बाजी कुछ सोचती रही और फिर बोली, सोनू, मैं अपनी सहेली से बात कर चुकी हूँ और वो शाम को घर पर आ रही है और फिर मैंने अम्मी से भी अभी नहीं कही है की मैं शोपिन्ग के लिए जा रही हूं।
मैं बाजी से कहा, तुम जाकर अम्मी से बोलो कि तुम मेरे साथ मार्केट जा रही हो और देखना अम्मी तुम्हे जाने देंगी। फिर हम लोग बाहर से तुम्हारी सहेली को फ़ोने कर देंगे की मार्केटिंग का प्रोग्राम कँसेल हो गया है और उसे आने की ज़रूरत नहीं है ठीक है ना, “हाँ, यह बात मुझे भी ठीक लगती है मैं जा कर अम्मी से बात करती हूं और यह कह कर बाजी अम्मी से बात करने अंदर चली गयी अम्मी ने तुरंत बाजी को मेरे साथ मार्केट जाने के लिए हाँ कह दी.
उस दिन कपड़े की मार्केट में बहुत भीड़ थी और मैं ठीक बाजी के पीछे ख़ड़ा हुआ था और बाजी के चुतड़ मेरे जांघों से टकरा रहा था। मैं बाजी के पीछे चल रहा था जिससे की बाजी को कोई धक्का ना मार दे। हम जब भी कोई फूटपाथ के दुकान में खड़े हो कर कपड़े देखते तो दी मुझसे चिपक कर ख़ड़ी होती और उनकी चूची और जांघे मुझसे छू रहा होता।
अगर बाजी कोई दुकान पर कपड़े देखती तो मैं भी उनसे सट कर ख़ड़ा होता और अपना लंड कपड़ों के ऊपर से उनके चुतड़ से भिड़ा देता और कभी कभी मैं उनके फुद्दिड़ों को अपने हाथों से सहला देता। हम दोनो ऐसा कर रहे थे और बहाना मार्केट में भीड़ का था। मुझे लगा कि मेरे इन सब हरकतों बाजी कुछ समझ नहीं पा रही थी क्योंकि मार्केट में बहुत भीड़ थी.
मैंने एक जीन्स का पैंट और टी-शर्ट खरीदा और बाजी ने एक गुलाबी रंग की पंजाबी ड्रेस, एक गर्मी के लिए स्कर्ट और टॉप और 2-3 टी-शर्ट खरीदी। हम लोग मार्केट में और थोड़ी तक घूमते रहे। अब क़रीब 7.30 बज गए थे। बाजी ने मुझे सारे शॉपिंग बैग थमा दिए और बोली- आगे जा कर मेरा इंतज़ार करो, मैं अभी आती हूँ।
वो एक दुकान में जा कर खड़ी हो गई। मैंने दुकान को देखा, वो महिलाओं के अंडरगारमेंट की दुकान थी। मैं मुस्कुरा कर आगे बढ़ गया। मैं देखा कि बाजी का चेहरा शर्म के मारे लाल हो चुका है, और वो मेरी तरफ़ मुस्कुरा कर देखते हुए दुकानदार से बातें करने लगी। कुछ देर के बाद बाजी दुकान पर से चल कर मेरे पास आई। बाजी के हाथ में एक बैग था।
मैं बाजी को देख कर मुस्कुरा दिया और कुछ बोलने ही वाला था कि बाजी बोली- अभी कुछ मत बोल और चुपचाप चल।
हम लोग चुपचाप चल रहे थे। मैं अभी घर नहीं जाना चाहता था और आज मैं बाजी के साथ अकेला था और मैं बाजी के साथ और कुछ समय बिताने के लिए बेचैन था।
मैंने बाजी से बोला- चलो कुछ देर हम लोग समुंदर के किनारे पर बैठते हैं और भेलपुरी खाते हैं।
“नहीं, देर हो जाएगी !” बाजी मुझसे बोली।
लेकिन मैंने फिर बाजी से कहा- चलो भी बाजी। अभी सिर्फ़ 7.30 बजे हैं और हम लोग थोड़ी देर बैठ कर घर चल देंगे और अम्मी जानती हैं कि हम दोनों साथ-साथ हैं, इसलिए वो चिंता भी नहीं करेंगी।
बाजी थोड़ी सोच कर बोली- चल समुंदर के किनारे चलते हैं।
बाजी के राज़ी होने से मैं बहुत खुश हुआ और हम दोनों समुंदर के किनारे, जो कि मार्केट से सिर्फ़ 10 मिनट का पैदल रास्ता था, चल दिए। हमने पहले एक भेलपुरी वाले से भेलपुरी ली और एक मिनरल वाटर की बोतल ली और जाकर समुंदर के किनारे बैठ गए।
हम लोग समुंदर के किनारे पास-पास पैर फैला कर बैठ गए। अभी समुंदर का पानी पीछे था और हमारे चारों तरफ़ बड़े-बड़े पत्थर पड़े हुए थे। वहाँ खूब ज़ोरों की हवा चल रही थी और समुंदर की लहरें भी तेज़ थी। इस समय बहुत सुहाना मौसम था। हम लोग भेलपुरी खा रहे थे और बातें कर रहे थे।
बाजी मुझ से सट कर बैठी थी और मैं कभी-कभी बाजी के चेहरे को देख रहा था। बाजी आज काले रंग की एक स्कर्ट और ग्रे रंग का ढीला सा टॉप पहनी हुई थी। एक बार ऐसा मौका आया जब बाजी भेलपुरी खा रही थी, तो एक हवा का झोंका आया और बाजी की स्कर्ट उनकी जाँघ के ऊपर तक उठ गई और बाजी की जांघें नंगी हो गई।
बाजी ने अपने जाँघों को ढकने की कोई जल्दी नहीं की। उनने पहले भेलपुरी खाई और आराम से रूमाल से हाथ पोंछ कर फिर अपनी स्कर्ट को जाँघों के नीचे किया और स्कर्ट को पैरों से दबा लिया। वैसे तो हम लोग जहाँ बैठे थे वहाँ अंधेरा था, फिर भी चाँदनी की रोशनी में मुझे बाजी के गोरी-गोरी जाँघों का पूरा नज़ारा मिला। बाजी की जाँघों को देख कर मैं कुछ गर्म हो गया।
जब बाजी ने अपनी भेलपुरी खा चुकी तो मैं बाजी से पूछा- बाजी, क्या हम उन बड़े-बड़े पत्थरों के पीछे चलें?
बाजी ने फ़ौरन मुझसे पूछा- क्यों?
मैंने बाजी से कहा- वहाँ हम लोग और आराम से बैठ सकते हैं।
बाजी ने मुझसे मुस्कुराते हुए पूछा- यहाँ क्या हम लोग आराम से नहीं बैठे हैं?
“लेकिन वहाँ हमें कोई नहीं देखेगा !” मैंने बाजी की आँखों में झाँकते हुए धीरे से बोला।
तब बाजी शरारत भरी मुस्कान के साथ बोली- तुझे लोगों के नज़रों से दूर क्यों बैठना है?
मैंने बाजी को आँख मारते हुए बोला- तुम्हें मालूम है कि मुझे क्यों लोगों से दूर बैठना है।
बाजी मुस्कुरा कर बोली- हाँ मालूम तो है, लेकिन सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए बैठेंगे। हम लोग को वैसे ही काफ़ी देर हो चुकी है। और बाजी उठ कर पत्थरों के पीछे चल पड़ी।
मैं भी झट से उठ कर पहले अपने बैग संभाला और बाजी पीछे-पीछे चल पड़ा। वहाँ पर दो बड़े-बड़े पत्थरों के बीच एक अच्छी सी जगह थी। मुझे लगा वहाँ से हमें कोई देख नहीं पाएगा। मैंने जा कर वहीं पहले अपने बैग को रखा और फिर बैठ गया। बाजी भी आकर मेरे पास बैठ गई।
बाजी मुझसे क़रीब एक फ़ुट की दूरी पर बैठी थी। मैंने बाजी से और पास आ कर बैठने के लिए कहा। बाजी थोड़ा सा सरक कर मेरे पास आ गई और अब बाजी के कंधे मेरे कंधों से छू रहे थे। मैंने बाजी के गले बाहें डाल कर उनको और पास खींच लिया। मैं थोड़ी देर चुपचाप बैठा रहा और फ़िर बाजी के कान के पास अपना मुँह ले जाकर धीरे से कहा- तुम बहुत सुंदर हो।
“सोनू, क्या तुम सही बोल रहे हो?” बाजी ने मेरे आँखों में आँखें डाल कर मुझे चिढ़ाते हुए बोली।
मैंने बाजी के कानों पर अपना होंठ रगड़ते हुए बोला- मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ। मैं तुम्हारे लिए पागल हूँ।
बाजी धीरे से बोली- मेरे लिए?
मैंने फिर बाजी से धीरे से पूछा- मैं तुम्हें क़िस कर सकता हूँ?
बाजी कुछ नहीं बोली और अपनी सर मेरे कंधों पर टिका कर आँखें बंद कर लीं। मैंने बाजी की ठोड़ी पकड़ कर उनका चेहरा अपनी तरफ़ घुमाया। तो बाजी ने एक मेरी आँखों में झाँका और फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं। मैं अब तक बाजी को पकड़े-पकड़े गर्म हो चुका था और मैंने अपने होंठ बाजी के होंठों पर रख दिए। ओह ! भगवान बाजी के होंठ बहुत ही रसीले और गर्म थे।
जैसे ही मैंने अपना होंठ बाजी के होंठ पर रखे। बाजी की गले से एक घुटी-सी आवाज़ निकल गई। मैं बाजी को कुछ देर तक चूमता रहा। चूमने से मैं तो गर्म हो ही गया और मुझे लगा कि बाजी भी गर्मा गई है। बाजी मेरे दाहिने तरफ़ बैठी थी। अब मैं अपने हाथ से बाजी की एक चूची पकड़ कर दबाने लगा। मैं इत्मीनान से बाजी की चूची से खेल रहा था क्योंकि यहाँ अम्मी के आने का डर नहीं था।
मैं थोड़ी देर तक बाजी की एक चूची कपड़ों के ऊपर से दबाने के बाद मैंने अपना दूसरा हाथ बाजी की टॉप के अंदर घुसा दिया और उनकी ब्रा के ऊपर से उनकी चूची मींज़ने लगा। मुझे हाथ घुसा कर बाजी की चूची दबाने में थोड़ा अटपटा सा लग रहा था.
और इसलिए मैंने अपने हाथों को बाजी के टॉप में से निकाल कर अपने दोनों हाथों को उनकी कमर के पास रखा और धीरे-धीरे बाजी के टॉप को उठाने लगा और फिर अपने दोनों हाथों से बाजी की दोनों चूचियों को पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगा।
बाजी मुझे रोक नहीं रही थी और मुझे कुछ भी करने का अच्छा मौक़ा था। मैं अपने दोनों हाथों से बाजी की दोनों चूचियों को पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से मसल रहा था। बाजी बस अपने गले से घुटी-घुटी मस्त सिसकारियाँ निकाल रही थी। मैं अपने दोनों हाथों को बाजी के पीछे ले गया और उनकी ब्रा के हुक खोलने लगा।
जैसे ही मैंने बाजी की ब्रा का हुक खोला तो ब्रा गिर कर उनके मम्मों पर लटक गई। बाजी कुछ नहीं बोली। मैं फिर से अपने हाथों को सामने लाया और बाजी की चूचियों पर से ब्रा हटा कर उनकी चूचियों को नंगा कर दिया। मैंने पहली बार बाजी की नंगी चूची पर अपना हाथ रखा। जैसे ही मैं बाजी की नंगी चूचियों को अपने हाथों से पकड़ा।
बाजी कुछ कांप सी गई और मेरे दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया। मैं अब तक बहुत गर्मा गया था और मेरा लौड़ा खड़ा हो चुका था। मुझे बहुत ही उत्तेजना चढ़ गई थी। मैं सोच रहा था झट से अपने पैंट में से अपना लौड़ा निकालूँ और बाजी के सामने ही मुट्ठ मार लूँ। लेकिन मैं अभी मुट्ठ नहीं मार सकता था। मैं अब ज़ोर-ज़ोर से बाजी की नंगी चूचियों को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर मसल रहा था।
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मैं बाजी की चूची को दबा रहा था, रगड़-रगड़ कर मसल रहा था और कभी-कभी उनके निप्पलों को अपने उँगलियों में पकड़ कर मसल रहा था। बाजी के निप्पल इस वक़्त अकड़ कर कड़े हो गए थे। जब-जब मैं निप्पलों को अपने उँगलियों में पकड़ कर उमेठता था, तो बाजी छटपटा उठती। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैंने बहुत देर तक चूचियों को पकड़ कर मसलने के बाद, अपना मुँह नीचे करके बाजी के एक निप्पल को अपने मुँह में ले लिया। बाजी ने अभी भी अपनी आँखें बंद कर रखी थी। जब बाजी की चूची पर मेरा मुँह लगा तो बाजी ने अपनी आँखें खोल दी और देखा कि मैं उनके एक निप्पल को अपने मुँह में भर कर चूस रहा हूँ, वो भी गर्मा गई।
बाजी की साँसे ज़ोर-ज़ोर से चलने लगीं और उनका बदन उत्तेजना से काँपने लगा। बाजी ने मेरे हाथों को कस कर पकड़ लिया। इस वक़्त मैं उनकी दोनों दुद्दुओं को बारी-बारी से चूस रहा था। अब बाजी के गले से अजीब-अजीब सी आवाजें निकलने लगीं। उन्होंने मुझे कस कर अपनी छाती से चिपटा लिया और थोड़ी देर के बाद शांत हो गई।
मेरा चेहरा नीचे की तरफ़ था और बाजी की चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से चूस रहा था। मुझे पर बाजी के पानी की खुशबू आई। ओह माय गॉड! मैंने अपनी बाजी की फुद्दि की पानी सिर्फ़ उनकी चूची चूस-चूस कर निकाल दिया था?
मैं अपना हाथ बाजी की चूची पर से हटा कर उनकी चूचियों को हल्के से पकड़ते हुए उनके होंठों को चूम लिया। मैंने अपना हाथ बाजी के पेट पर रख कर नीचे की तरफ़ ले जाने लगा और धीरे-धीरे मेरा हाथ बाजी की स्कर्ट के हुक तक पहुँच गया।
बाजी मेरा हाथ पकड़ कर बोली- अब और नीचे मत ले।
मैंने बाजी से पूछा- क्यों?
बाजी तब मेरे हाथों को और ज़ोर से पकड़ते हुए बोली- नीचे अपना हाथ मत ले जाओ, अभी उधर बहुत गंदा है।
मैंने झट से बाजी को चूम कर बोला- गंदा क्यों हैं? क्या तुम झड़ गईं।
बाजी ने बहुत धीमी आवाज़ में कहा- हाँ, मैं झड़ गई हूँ।
मैंने फिर बाजी से पूछा- बाजी मेरी वजह से तुम झड़ गईं हो?
“हाँ ग़ालिब, तुम्हारी वजह से ही मैं झड़ गई हूँ। तुम इतना उतावले थे कि मैं अपने आप को संभाल ही नहीं पाई।” बाजी ने मुस्कुरा कर मुझसे कहा।
मैंने भी मुस्कुरा कर बाजी से पूछा- क्या तुम्हें अच्छा लगा?
बाजी मुझे पकड़ कर चूमते हुए बोली- मुझे तुम्हारी चूची चुसाई बहुत अच्छी लगी, और उसके बाद मुझे झड़ना और भी अच्छा लगा।
बाजी ने आज पहली बार मुझे चूमा था।
बाजी अपने कपड़ों को ठीक करके उठ खड़ी हो गई और मुझसे बोली- ग़ालिब, आज के लिए इतना सब काफ़ी है, और हम लोगों को घर भी लौटना है।
मैंने बाजी को एक बार फिर से पकड़ चुम्मा लिया और सड़क की तरफ़ चलने लगे। मैंने सारे बैग फिर से उठा लिए और बाजी के पीछे-पीछे चलने लगा।
थोड़ी दूर चलने के बाद वे मुझसे बोली- मुझे चलने में बहुत परेशानी हो रही है।
मैंने फ़ौरन पूछा- क्यों?
बाजी मेरी आँखों में देखती हुई बोली- नीचे बहुत गीला हो गया है। मेरी पैन्टी बुरी तरह से भीग गई है। मुझे चलने में बहुत अटपटा लग रहा है।
मैंने मुस्कुराते हुए बोला- बाजी मेरी वजह से तुम्हें परेशानी हो गई है न?
बाजी ने मेरी एक बाँह पकड़ कर कहा- ग़ालिब, यह ग़लती सिर्फ़ तुम्हारी अकेले की नहीं है, मैं भी उसमें शामिल हूँ।
हम लोग चुपाचाप चलते रहे और मैं सोच रहा था की बाजी की समस्या को कैसे दूर करूँ? एकाएक मेरे दिमाग़ में एक बात सूझी।
मैंने फ़ौरन बाजी से बोला- एक काम करते हैं। वहाँ पर एक पब्लिक टॉयलेट है, तुम वहाँ जाओ और अपने पैन्टी को बदल लो। अरे तुमने अभी-अभी जो पैन्टी खरीदी है, वहाँ जा कर उसको पहन लो और गन्दी हो चुकी पैन्टी को निकाल दो।
बाजी मुझे देखते हुए बोली- तेरा आईडिया तो बहुत अच्छा है। मैं जाती हूँ और अपने पैन्टी बदल कर आती हूँ।
हम लोग टॉयलेट के पास पहुँचे और बाजी ने मुझसे अपनी ब्रा और पैन्टी वाला बैग ले लिया और टॉयलेट की तरफ़ चल दीं।
जैसे ही बाजी टॉयलेट जाने लगी, मैंने बाजी से धीरे से बोला- तुम अपनी पैन्टी चेंज कर लेना तो साथ ही अपनी ब्रा भी चेंज कर लेना। इससे तुम्हें यह पता लग जाएगा कि ब्रा ठीक साइज़ की हैं या नहीं !!
बाजी मेरी बातों को सुन कर हँस पड़ी और मुझसे बोली- बहुत शैतान हो गए हो और स्मार्ट भी।
बाजी शर्मा कर टॉयलेट चली गई। क़रीब 15 मिनट के बाद बाजी टॉयलेट से लौट कर आईं। हम लोग बस स्टॉप तक चल दिए हम लोगों को बस जल्दी ही मिल गई और बस में भीड़ भी बिल्कुल नहीं थी। बस क़रीब-क़रीब ख़ाली थी। हमने टिकट लिया और बस के पीछे जा कर बैठ गए।
सीट पर बैठने के बाद मैंने बाजी से पूछा- तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली न?
बाजी मेरी तरफ़ देख कर हँस पड़ी।
मैंने फिर बाजी से पूछा- बताओ ना बाजी। क्या तुमने अपनी ब्रा भी चेंज कर ली है?
तब बाजी ने धीरे से बोला- हाँ ग़ालिब, मैंने अपनी ब्रा चेंज कर ली है।
मैं फिर बाजी से बोला- मैं तुमसे एक रिक्वेस्ट कर सकता हूँ?
बाजी ने मेरी तरफ देखा और कहा- हाँ बोल।
“मैं तुम्हें तुम्हारे नये पैन्टी और ब्रा में देखना चाहता हूँ।” मैंने बाजी से कहा।
बाजी फ़ौरन घबरा कर बोली- यहाँ? तुम मुझे यहाँ मुझे ब्रा और पैन्टी में देखना चाहते हो?
मैंने बाजी को समझाते हुए बोला- नहीं, यहाँ नहीं, मैं घर पर तुम्हें ब्रा और पैन्टी में देखना चाहता हूँ।
बाजी फिर मुझसे बोली- पर घर पर कैसे होगा। अम्मी घर पर होगी। घर पर यह संभव नहीं हैं।
“कोई समस्या नहीं हैं, अम्मी घर पर खाना बना रही होगी और रसोई में जाकर अपने कपड़े चेंज करोगी। जैसे तुम रोज़ करती हो। लेकिन जब तुम कपड़े बदलो। रसोई का पर्दा थोड़ा सा खुला छोड़ देना। मैं हॉल में बैठ कर तुम्हें ब्रा और पैन्टी में देख लूँगा।”
बाजी मेरी बात सुन कर बोली- नहीं ग़ालिब, फिर भी देखते हैं।
फिर हम लोग चुप हो गए और अपने घर पहुँच गए। हमने घर पहुँच कर देखा कि अम्मी रसोई में खाना बना रही हैं। हम लोगों ने पहले 5 मिनट तक रेस्ट किया और फिर बाजी अपनी मैक्सी उठा कर रसोई में कपड़े बदलने चली गई। मैं हॉल में ही बैठा रहा।
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रसोई में पहुँच कर बाजी ने पर्दा खींचा और पर्दा खींचते समय उसको थोड़ा सा छोड़ दिया और मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुरा दी और हल्के से आँख मार दी। मैं चुपचाप अपनी जगह से उठ कर पर्दे के पास जा कर खड़ा हो गया। बाजी मुझे सिर्फ़ 5 फ़ीट की दूरी पर खड़ी थी और अम्मी हम लोग की तरफ़ पीठ करके खाना बना रही थी।
अम्मी बाजी से कुछ बातें कर रही थी। बाजी अम्मी की तरफ़ मुड़ कर अम्मी से बातें करने लगी फिर बाजी ने धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उठा कर अपने सर के ऊपर ले जाकर धीरे-धीरे अपनी टी-शर्ट को उतार दी। टी-शर्ट के उतरते ही मुझे आज की खरीदी हुई ब्रा दिखने लगी। वाह क्या ब्रा थी।
फिर बाजी ने फ़ौरन अपने हाथों से अपनी स्कर्ट की इलास्टिक को ढीला किया और अपनी स्कर्ट भी उतार दी। अब बाजी मेरे सामने सिर्फ़ अपनी ब्रा और पैन्टी में थी। बाजी ने क्या मस्त ब्रा और मैचिंग की पैन्टी खरीदी है। मेरे पैसे तो पूरे वसूल हो गए। बाजी ने एक बहुत सुंदर नेट की ब्रा खरीदी थी और उसके साथ पैन्टी में भी खूब लेस लगा हुआ था।
मुझे बाजी की ब्रा से बाजी की चूचियों के आधे-आधे दर्शन भी हो रहे थे। फिर मेरी आँखें बाजी के पेट और उनकी दिलकश नाभि पर जा टिकीं। बाजी की पैन्टी इतनी टाइट थी कि मुझे उनके पैरों के बीच उनकी फुद्दि की दरार साफ़-साफ़ दिख रही थी। उसके साथ-साथ बाजी की फुद्दि के होंठ भी दिख रहे थे।
मुझे पता नहीं कि मैं कितनी देर तक अपनी बाजी को ब्रा और पैन्टी में अपनी आँखें फाड़-फाड़ कर देखता रहा। मैंने बाजी को सिर्फ़ एक या दो मिनट ही देखा होगा। लेकिन मुझे लगा कि मैं कई घंटो से बाजी को देख रहा हूँ। बाजी को देखते-देखते मेरा लौड़ा पैंट के अंदर खड़ा हो गया और उसमें से लार निकलने लगी। मेरे पैर कामुकता से कांपने लगे।
सारे वक़्त बाजी मुझसे आँखें चुरा रही थी। शायद बाजी को अपने छोटे भाई के सामने ब्रा और पैन्टी में खड़ी होना कुछ अटपटा सा लग रहा था। जैसे ही बाजी ने मुझे देखा, तो मैंने इशारे से बाजी पीछे घूम जाने के लिए इशारा किया। बाजी धीरे-धीरे पीछे मुड़ गई लेकिन अपना चेहरा अम्मी की तरफ़ ही रखा। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैं बाजी को अब पीछे से देख रहा था। बाजी की पैन्टी उनके फुद्दिड़ों में चिपकी हुई थी। मैं बाजी के मस्त फुद्दिड़ देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि अगर मैं बाजी को पूरी नंगी देखूँगा तो शायद मैं अपने पैंट के अंदर ही झड़ जाउँगा।
थोड़ी देर के बाद बाजी मेरी तरफ़ फिर मुड़ कर खड़ी हो गई और अपनी मैक्सी उठा ली और मुझे इशारा किया कि मैं वहाँ से हट जाऊँ। मैंने बाजी को इशारा किया कि अपनी ब्रा उतारो और मुझे नंगी चूची दिखाओ। बाजी बस मुस्कुरा दी और अपनी मैक्सी पहन ली।
मैं फिर भी इशारा करता रहा लेकिन बाजी ने मेरी बातों को नहीं माना। मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी और मैं पर्दे के पास से हट कर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया। बाजी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गई। अपने कपड़ों को अल्मारी में रखने के बाद बाजी बाथरूम चली गई।
मैं समझ गया कि अब बात नहीं बनेगी और मैं पर्दे के पास से हट कर हॉल में बिस्तर पर बैठ गया। बाजी भी अपने कपड़ों को लेकर हॉल में आ गई। अपने कपड़ों को अल्मारी में रखने के बाद बाजी बाथरूम चली गई। मैं बाजी को सिर्फ़ ब्रा और पैन्टी में देख कर इतना गर्मा गया था कि अब मुझको भी बाथरूम जाना था और मुट्ठ मारना था। मेरे दिमाग़ में आज शाम की हर घटना बार-बार घूम रही थी।
पहले हम लोग शॉपिंग करने मार्केट गए, फिर हम लोग समुंदर के किनारे गए, फिर हम लोग एक पत्थर के पीछे बैठे थे। फिर मैंने बाजी की चूचियों को पकड़ कर मसला था और बाजी चूची मसलवा कर झड़ गई, फिर बाजी एक पब्लिक टॉयलेट में जाकर अपनी पैन्टी और ब्रा चेंज की थी।
एकाएक मेरे दिमाग़ यह बात आई कि बाजी की उतरी हुई पैन्टी अभी भी बैग में ही होगी। मैंने रसोई में झाँक कर देखा कि अम्मी अभी खाना पका रही हैं और झट से उठ कर गया और बैग में से बाजी उतरी हुई पैन्टी निकाल कर अपनी जेब में रख ली।
मैंने जल्दी से जाकर के बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और अपना जीन्स का पैंट उतार दिया और साथ-साथ अपना अंडग़ालिबयर भी उतार दिया। फिर मैंने बाजी की गीली पैन्टी को खोला और और उसे उल्टा किया। मैंने देखा कि जहाँ पर बाजी की फुद्दि का छेद था वहाँ पर सफ़ेद-सफ़ेद गाढ़ा-गाढ़ा फुद्दि का पानी लगा हुआ है, जब मैंने वो जगह छुई तो मुझे चिपचिपा सा लगा।
मैंने पैन्टी अपने नाक के पास ले जाकर उस जगह को सूंघा। मैं धीरे-धीरे अपने दूसरे हाथ को अपने लौड़े पर फेरने लगा। बाजी की फुद्दि से निकली पानी की महक मेरे नाक में जा रही थी, और मैं पागल हुआ जा रहा था। मैं बाजी की पैन्टी की फुद्दि वाली जगह को चाटने लगा। वाह बाजी की फुद्दि के पानी का क्या स्वाद है, मज़ा आ गया।
मैं बाजी की पैन्टी को चाटता ही रहा और यह सोच रहा था कि मैं अपनी बाजी की फुद्दि चाट रहा हूँ। मैं यह सोचते-सोचते झड़ गया। मैं अपना लंड हिला-हिला कर अपना लंड साफ़ किया और फिर पेशाब की और फिर बाजी की पैन्टी और ब्रा अपने जेब में रख कर वापस हॉल में पहुँच गया।
थोड़ी देर के बाद जब बाजी को अपनी भीगी पैन्टी का याद आई तो वो उसको बैग में ढूँढने लगी। शायद बाजी को उसे साफ़ करना था। बाजी को उनकी पैन्टी और ब्रा बैग में नहीं मिली। थोड़ी देर के बाद बाजी ने मुझे कुछ अकेला पाया तो मुझ से पूछा- मुझे अपनी पुरानी पैन्टी और ब्रा बैग में नहीं मिल रही है।
मैंने बाजी से कुछ नहीं कहा और मुस्कुराता रहा।
“तू हँस क्यों रहा हैं? इसमें हँसने की क्या बात है।” बाजी ने मुझसे पूछा।
मैंने बाजी से पूछा- तुम्हें अपनी पुरानी पैन्टी और ब्रा क्यों चाहिए? तुम्हें तो नई ब्रा और पैन्टी मिल गई।
तब कुछ-कुछ समझ कर मुझसे पूछा- उनको तुमने लिया है?
मैं भी कह दिया- हाँ, मैंने लिया है। वो दोनों अपने पास रखना है, तुम्हारी गिफ़्ट समझ कर।
तब बाजी बोली- ग़ालिब, वो गंदे हैं।
मैं मुस्कुरा कर बाजी से बोला- मैंने उनको साफ़ कर लिया।
लेकिन बाजी ने परेशान हो कर मुझसे पूछा- क्यों?
मैंने बाजी से कहा- मैं बाद में दे दूंगा।
अब अम्मी कमरे आ गई थीं। इसलिए बाजी ने और कुछ नहीं पूछा।
अगले सुबह मैंने बाजी से पूछा- क्या वो मेरे साथ दोपहर के शो में सिनेमा जाना चाहेंगी?
बाजी ने हँसते हुए पूछा- कौन दिखायेगा?
मैं भी हँस के बोला- मैं।
बाजी बोली- मुझे क्या पता तेरे को कौन सा सिनेमा देखने जाना है।
मैंने बाजी से बोला- हम लोग न्यू थियेटर चलें?
वो सिनेमा हॉल थोड़ा सा शहर से बाहर है।
“ठीक है, चल चलें।” बाजी मुझसे बोली।
असल में बाजी के साथ सिनेमा देखने का सिर्फ़ एक बहाना था। मेरे दिमाग़ में और कुछ घूम रहा था। सिनेमा के बाद मैं बाजी को और कहीं ले जाना चाहता था। पिछले कई दिनों से मैंने बाजी की मुसम्मियों को कई बार दबाया था और मसला था और दो तीन-बार चूसा भी था।
अब मुझे और कुछ चाहिए था और इसीलिए मैं बाजी को और कहीं ले जाना चाहता था। मुझे बाजी को छूने का अच्छा मौक़ा सिनेमा हॉल में मिल सकता था, या फिर सिनेमा के बाद और कहीं ले जाने के बाद मिल सकता था। जब बाजी सिनेमा जाने के लिए तैयार होने लगी तो मैं धीरे से बाजी से कहा- आज तुम स्कर्ट पहन कर चलो।
बाजी बस थोड़ा सा मुस्कुरा दी और स्कर्ट पहनने के लिए राज़ी हो गई। ठंड का मौसम था इसलिए मैं और बाजी ने ऊपर से जैकेट भी ले लिया था। मैंने आज यह सिनेमा हॉल जान बूझ कर चुना था क्योंकि यह हॉल शहर से थोड़ा सा बाहर था और वहाँ जो सिनेमा चल रहा था। वो दो हफ़्ते पुरानी हो गया था।
मुझे मालूम था कि हॉल में ज्यादा भीड़ भर नहीं होगी। हम लोग वहाँ पहुँच कर टिकट ले लिया और हॉल में जब घुसे तो किसी और सिनेमा का ट्रेलर चल रहा था। इसलिए हॉल के अंदर अंधेरा था। जब अंदर जा कर मेरे आँखें अंधेरे में देखने में कुछ अभ्यस्त हो गईं, तो मैंने देखा कि हॉल में कुछ लोग ही बैठे हुए हैं और मैं एक किनारे वाली सीट पर बाजी को ले जाकर बैठ गया।
हम लोग जहाँ बैठे थे उसके आस पास और कोई नहीं था। और जो भी हॉल में बैठे थे वो सब किनारे वाली सीट पर बैठे हुए थे। हम लोग भी बैठ गए सिनेमा देखने लगे। मैं सिनेमा देख रहा था और दिमाग़ में सोच रहा था मैं पहले बाजी की चूची को दबाऊंगा, मसलूँगा और अगर बाजी मान गई तो फिर बाजी की स्कर्ट के अंदर अपना हाथ डालूँगा।
मैंने क़रीब 15 मिनट तक इंतज़ार किया और फिर अपनी सीट पर मैं आराम से पैर फैला कर बैठ गया। नूरजहाँ बाजी मेरे दाहिने तरफ़ बैठी थी। मैं धीरे से अपना दाहिना हाथ बढ़ा कर बाजी की जाँघों पर रख दिया। फिर मैं धीरे-धीरे बाजी की जाँघों पर स्कर्ट के ऊपर से हाथ फेरने लगा। बाजी कुछ नहीं बोली।
बाजी बस चुपचाप बैठी रही और मैं उनकी जाँघों पर हाथ फेरने लगा। अब मैं धीरे-धीरे बाजी की स्कर्ट को पैरों से ऊपर उठाने लगा जिससे कि मैं अपना हाथ स्कर्ट के अंदर डाल सकूँ। बाजी ने मुझको रोका नहीं और ऊपर से मेरे कानों के पास अपनी मुँह लेकर के बोली- कोई देख ना ले।
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इधर-उधर देख कर मैंने भी धीरे से बोला- नहीं कोई नहीं देख पाएगा।
बाजी फिर से बोली- स्क्रीन की लाइट काफ़ी ज़्यादा है और इसमें कोई भी हमें देख सकता है।
मैंने बाजी से कहा- अपना जैकेट उतार कर अपनी गोद में रख लो।
बाजी ने थोड़ी देर रुक कर अपनी जैकेट उतार कर अपनी गोद में रख ली। और इससे उनकी जाँघ और मेरा हाथ दोनों जैकेट के अंदर छुप गया। मैं अब अपना हाथ बाजी के स्कर्ट के अंदर डाल कर के उनके पैरों और जाँघों को सहलाने लगा।
बाजी फिर फुसफुसा कर बोली- कोई हमें देख ना ले।
मैंने बाजी को समझाते हुए कहा- हमें कोई नहीं देख पाएगा। आप चुपचाप बैठी रहो।
मैंने अपना हाथ अब बाजी के जाँघों के अंदर तक ले जाकर उनकी जाँघ के अंदरूनी भाग को सहलाने लगा और धीर-धीरे अपना हाथ बाजी की पैन्टी की तरफ़ बढ़ाने लगा। मेरा हाथ इतना घूम गया की बाजी की पैन्टी तक नहीं पहुँच रहा था।
मैंने फिर हल्के से बाजी के कानों में कहा- थोड़ा नीचे खिसक कर बैठो न।
बाजी ने हँसते हुए पूछा- क्या तुम्हारा हाथ वहाँ तक नहीं पहुँच रहा है।
“हाँ” मैंने दबी जुबान से बाजी को बोला।
बाजी धीरे से हँसते हुए बोली- तुमको अपना हाथ कहाँ तक पहुँचाना है?
मैं शर्माते हुए बोला- तुमको मालूम तो है।
बाजी मेरी बातों को समझ गई और नीचे खिसक कर बैठी। मेरा हाथ शुरू से बाजी के स्कर्ट के अंदर ही घुसा हुआ था और जैसे ही बाजी नीचे खिसकी मेरा हाथ जा करा अपने आप बाजी की पैन्टी से लग गया। फिर मैं अपने हाथ को उठा कर पैन्टी के ऊपर से बाजी की फुद्दि पर रखा और ज़ोर से बाजी की फुद्दि को छू लिया। यह पहली बार था की अपने बाजी की फुद्दि को छू रहा था। बाजी की फुद्दि बहुत गर्म थी। मैं अपनी उंगली को बाजी की फुद्दि के छेद के ऊपर चलाने लगा।
थोड़ी देर के बाद बाजी फुसफुसा कर बोली- रुक जाओ, नहीं तो फिर से मेरी पैन्टी गीली हो जायेगी।
लेकिन मैंने बाजी की बात को अनसुनी कर दी और बाजी की फुद्दि के छेद को पैन्टी के ऊपर से सहलाता रहा।
बाजी फिर से बोली- प्लीज़, अब मत करो, नहीं तो मेरी पैन्टी और स्कर्ट दोनों गंदी हो जायेगीं।
मैं समझ गया कि बाजी बहुत गर्मा गई हैं। लेकिन मैं यह भी नहीं चाहता था कि जब हम लोग सिनेमा से निकलें तो लोगों को बाजी गंदी स्कर्ट दिखे। इसलिए मैं रुक गया। मैंने अपना हाथ फुद्दि पर से हटा कर बाजी की जाँघों को सहलाने लगा। थोड़ी देर के इंटरवल हो गया। इंटरवल होते ही मैं और बाजी अलग-अलग बैठ गए और मैं उठ कर पॉपकॉर्न और पेप्सी ले आया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैंने बाजी से धीरे से कहा- तुम टॉयलेट जाकर अपनी पैन्टी निकाल कर नंगी होकर आ जाओ।
बाजी ने आँखें फाड़ कर मुझसे पूछा- मैं अपनी पैन्टी क्यों निकालूँ?
मैं हँस कर बोला- निकाल लेने से पैन्टी गीली नहीं होगी।
बाजी ने तपाक से पूछा- और स्कर्ट का क्या करें? क्या उसे भी उतार कर आऊँ?
“सिंपल सी बात है जब टॉयलेट से लौट कर आओगी तो बैठने से पहले अपनी स्कर्ट उठा कर बैठ जाना” मैंने बाजी को आँख मारते हुए बोला।
बाजी मुस्कुरा कर बोली- तुम बहुत शैतान हो और तुम्हारे पास हर बात का जबाब है।
जैसा मैंने कहा था, बाजी टॉयलेट में गई और थोड़ी देर के बाद लौट आई। जब मैं बाजी को देख कर मुस्कुराया तो बाजी शर्मा गई और अपनी गर्दन झुका ली। हम लोग फिर से हॉल में चले गए जब बैठने लगी तो अपनी स्कर्ट ऊपर उठा ली, लेकिन पूरी नहीं।
हम लोगों के जैकेट अपने-अपने गोद में थी और हम लोग पॉपकॉर्न खाना शुरू किया। थोड़ी देर के बाद हम लोगों ने पॉपकॉर्न खत्म किए और फिर पेप्सी भी खत्म कर लिया। फिर हम लोग अपनी-अपनी सीट पर नीचे हो कर पर फैला कर आराम से बैठ गए थोड़ी देर के बाद मैंने अपना हाथ बढ़ा कर बाजी की गोद पर रखी हुई जैकेट के नीचे से ले जाकर के बाजी की जाँघों पर रख दिया।
मेरे हाथों को बाजी की जाँघों से छूते ही बाजी ने अपने जाँघों को और फैला दिया। फिर बाजी ने अपने फुद्दिड़ थोड़ा ऊपर उठा करके अपने नीचे से अपनी स्कर्ट को खींच करके निकाल दिया और फिर से बैठ गए अब बाजी हॉल के सीट पर अपनी नंगी फुद्दिड़ों के सहारे बैठी थी।
सीट की रेग्जीन से बाजी को कुछ ठंड लगी पर वो आराम से सीट पर नीचे होकर के बैठ गई। मैं फिर से अपने हाथ को बाजी की स्कर्ट के अंदर डाल दिया। मैं सीधे बाजी की फुद्दि पर अपना हाथ ले गया। जैसे ही मैं बाजी की नंगी फुद्दि को छुआ, बाजी झुक गई जैसे कि वो मुझे रोक रही हो।
मुझे बाजी की नंगी फुद्दि में हाथ फेरना बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे फुद्दि पर हाथ फेरते-फेरते फुद्दि के ऊपरी भाग पर कुछ बाल का होना महसूस हुआ। मैं बाजी की नंगी फुद्दि और उसके बालों को धीरे धीरे सहलाने लगा। मैं बाजी की फुद्दि को कभी अपने हाथ में पकड़ कर कस कर दबा रहा था, कभी अपने हाथ उसके ऊपर रगड़ रहा था और कभी-कभी उनकी क्लिट को भी अपने उँगलियों से रगड़ रहा था।
मैं जब बाजी की क्लिट को छेड़ रहा था तब बाजी का शरीर कांप सा जाता था। उनको एक झुरझुरी सी होती थी। मैंने अपनी एक उंगली बाजी की फुद्दि के छेद में घुसेड़ दी। ओह भगवान फुद्दि अंदर से बहुत गर्म थी और मुलायम भी थी। फुद्दि अंदर से पूरी रस से भरी हुई थी।
मैं अपनी उंगली को धीरे-धीरे फुद्दि के अंदर और बाहर करने लगा। थोड़ी देर के बाद मैंने अपनी दूसरी उंगली भी फुद्दि में डाल दी। ये तो और भी आसानी से फुद्दि में समा गई। मैंने दोनों उँगलियों से बाजी फुद्दि को चोदना शुरू किया।
बाजी की तेज सांसों की आवाज मझे साफ़-साफ़ सुनाई दे रही थी। थोड़ी देर के बाजी का शरीर अकड़ गया, कुछ ही देर के बाद बाजी शांत हो कर सीट पर बैठ गई। अब बाजी की फुद्दि में से ढेर सारा पानी निकलने लगा। फुद्दि की पानी से मेरा पूरा हाथ गीला हो गया।
मैं थोड़ी देर रुक कर फिर से बाजी की फुद्दि में अपनी उंगली चलाने लगा। थोड़ी देर के बाजी दोबारा झड़ी। फिर मुझे जब लगा कि सिनेमा अब खत्म होने वाला है, तो मैंने अपना हाथ बाजी की फुद्दि पर से हटा लिया। जैसे ही सिनेमा खत्म हुआ, मैं और बाजी उठ कर बाहर निकल आए।
बाहर आने के बाद मैंने बाजी से कहा- अगले शो में जो भी उस सीट पर बैठेगा उसका पैंट या उसकी साड़ी भीग जाएगी।
बाजी मेरे बातों को सुन कर बहुत शर्मा गई और मुझसे नज़र हटा ली। बाजी टॉयलेट चली गई हो सकता अपनी फुद्दि और जाँघों को धो कर साफ़ करने के लिए और अपनी पैन्टी फिर से पहनने के लिए गई हों।
अभी सिर्फ़ तीन बजे थे और मैंने बाजी से बोला- तो बहुत टाइम है और अम्मी भी घर पर सो रही होंगी। क्या तुम अभी घर जाना चाहती हो? वैसे मुझे कुछ प्राइवेट में चलने का इच्छा हैं। क्या तुम मेरे साथ चलोगी?
बाजी मेरी आँखों में झाँकती हुई बोली- प्राइवेट में चलने की क्या बात हैं? वैसे मैं भी अभी घर नहीं जाना चाहती।
मैं बोला- प्राइवेट का मतलब है कि किसी होटल में जाना हैं?
बाजी बोली- सिर्फ़ होटल? या और कुछ?
मैं बाजी से बोला- सिर्फ़ होटल या और कुछ! मतलब?
बाजी बोली- तेरा मतलब होटल के कमरा से है?
“हाँ मेरा मतलब होटल के कमरे से ही है।” मैंने कहा।
बाजी ने तब मुझसे फिर पूछा- होटल के कमरे में ही क्यों?
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मैंने बाजी की बातों को सुन कर यह समझा कि बाजी ने अभी भी होटल चलने के लिए ना नहीं किया हैं। मैंने बाजी की आँखों में झाँकते हुए बोला- अभी तक मैंने कई बार तुम्हारी चूची को छुआ, दबाया, मसला और चूसा है, फिर मैंने तुम्हारी फुद्दि को भी छुआ और उसके अंदर अपनी उंगली भी डाली।
और तुमने कभी भी मना नहीं किया। मैं आगे बढ़ने से रुका तो इस बात से कि हमारे पास पूरी प्राइवेसी नहीं थी। इस बात के डर से कि कोई आ ना जाए, या हमें देख न ले। इसलिए मैं चाहता हूँ कि अब होटल के कमरे में जाकर हम लोगों को पूरी प्राइवेसी मिले।
मैं इतना कह कर रुक गया और बाजी की तरफ़ देखने लगा की अब बाजी भी कुछ बोले। जब बाजी कुछ नहीं बोली तो मैंने फिर उनसे कहा- तुम क्या चाहती हो?
बाजी मुझसे बोली- मतलब यह हुआ कि तुम इसलिए मेरे साथ होटल जाना चाहते हो ताकि वहाँ जा कर तू मुझे अच्छी तरफ़ से छू सके। मेरे दूध को चूस सके और मेरे पैरों के बीच अपना हाथ डाल कर मज़ा ले सके?
“ठीक कह रही हो, बाजी। मैं जब भी तुम्हें छूता हूँ तो हम लोगों के पास प्राइवेसी ना होने की वजह से रुकना पड़ता है, जैसे आज सिनेमा हॉल में ही देख लो” मैंने बाजी से कहा।
“तो तू मुझे ठीक से और बिना डर के छूना चाहता है। मेरी चूची पीना चाहता है, और मेरी टांगो के बीच हाथ डाल कर अपनी उंगली डाल कर देखना चाहता है?” बाजी ने मुझसे पूछा।
मैंने तब थोड़ा झल्ला कर बाजी से कहा- तुम बिल्कुल सही कह रही हो। और मुझे लगता हैं कि तुम भी यही चाहती हो।
बाजी कुछ नहीं बोली और मैं उनकी चुप्पी को उनकी हाँ समझ रहा था। फिर बाजी थोड़ी देर तक सोचने के बाद बोली- कमरे में जाने का मतलब होता है कि हम वो सब भी???
मैंने तब बाजी को समझाते हुए कहा- लेकिन तुम चाहोगी तभी। नहीं तो कुछ नहीं।
बाजी फिर भी बोली- पता नहीं ग़ालिब, यह बहुत बड़ा क़दम है।
मैंने तब फिर से बाजी को समझाते हुए बोला- बाबा, अगर तुम नहीं चाहोगी तो वो सब काम नहीं होगा और वही होगा जो जो तुम चाहोगी। लेकिन मुझे तुम्हारी दोनों मुसम्मियाँ बिना किसी के डर के साथ पीना है बस !
मैं समझ रहा था कि बाजी मन ही मन चाह तो रही थी कि मैं उनकी चूची को बिना किसी डर के चूसूं और उनकी फुद्दि से खेलूँ।
बाजी बोली- बात कुछ समझ में नहीं आ रही है। लेकिन यह बात तो तय है कि मैं अभी घर नहीं जाना चाहती हूँ।
इसका मतलब साफ़ था कि बाजी मेरे साथ होटल में और होटल के कमरे में जाना चाहती हैं।
इसलिए मैंने पूछा- तो होटल चलें? बाजी मेरे साथ चल पडीं। मैं बहुत खुश हो गया। बाजी मेरे होटल में चलने के लिए राज़ी हो गई है।
मैं खुशी-खुशी होटल की तरफ़ चल पड़ा। मैं इतना समझ गया था कि शायद बाजी मुझे खुल कर अपनी चूची और फुद्दि मुझसे छुआना चाहती हैं और हो सकता हैं कि वो बाद में मुझसे अपनी फुद्दि भी चुदवाना भी चाहती हों। यह सब सोच-सोच कर मेरा लंड खड़ा होने लगा।
मैं सोच रहा था कि आज मैं अपनी बाजी को ज़रूर चोदूंगा। मैं बहुत खुश था और गर्म हो रहा था। मुझे यह मालूम था कि उस सिनेमा हॉल के पास दो-तीन ऐसे होटल हैं जहाँ पर कमरे घंटे के हिसाब से मिलते हैं। मैं एक दो बार उन होटलों में अपने गर्ल-फ्रेंड के साथ आ चुका हूँ।
मैं वैसे ही एक होटल में अपनी बाजी को लेकर गया और वहाँ बात करके एक कमरा तय और कमरे का किराया भी दे दिया। होटल का वेटर हम लोगों को एक कमरे में ले गया। मैं वैसे ही एक होटल में अपनी बाजी को लेकर गया और वहाँ बात करके एक कमरा तय और कमरे का किराया भी दे दिया। होटल का वेटर हम लोगों को एक कमरे में ले गया।
जैसे ही वेटर वापस गया, मैंने कमरे के दरवाज़े को अच्छी तरह से बंद किया। मैंने कमरे की खिड़की को भी चेक किया और उनमें पर्दा डाल दिया। तब तक बाजी कमरे में घुस कर कमरे के बीच में खड़ी हो गई। बाजी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था और वो चुपचाप खड़ी थी।
मैं तब बाथरूम में गया और बाथरूम की लाइट को जला करके बाथरूम का दरवाज़ा आधा बंद कर दिया, जिससे कि कमरे में बाथरूम से थोड़ी बहुत रोशनी आती रहे। फिर मैंने कमरे की रोशनी को बंद कर दिया। बाजी आराम से बिस्तर के एक किनारे पर बैठ गई। कमरे में रोशनी बहुत कम थी, लेकिन हम लोग एक दूसरे को देख पा रहे थे।
मैं अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा और बाजी से बोला- तुम भी अपने कपड़े उतार दो। बाजी ने भी कपड़े उतारने शुरू कर दिए। जैसे ही अपना पैंट खोला तो मैंने देखा की बाजी भी अपनी ब्रा और पैन्टी उतार रही हैं। अब बाजी मेरे सामने बिल्कुल नंगी हो चुकी थी।
मैं समझ गया कि बाजी भी आज अपनी फुद्दि चुदवाना चाहती हैं। अब मैं धीरे-धीरे बिस्तर की तरफ़ बढ़ा और जा कर बाजी के बगल में बैठ गया। पलंग पर बैठ कर मैंने बाजी को अपनी बाहों में भर लिया और उनको अपने पैरों के बीच खड़ा कर दिया। कमरे की हल्की रोशनी में भी मुझे अपनी बाजी की नंगी जवानी और मादक बदन साफ़-साफ़ दिख रहा था और मुझे उनकी नंगी चूचियों को पहली बार देख कर मज़ा आ रहा था।
मैंने अब तक बाजी को सिर्फ़ कपड़ों के ऊपर से देखा था और मुझे पता था की बाजी का बदन बहुत सुडौल और भरा हुआ होगा, लेकिन इतनी अच्छी फिगर होगी ये नहीं पता था। बाजी की गोल संतरे सी चूची, पतली सी कमर और गोल-गोल सुंदर से फुद्दिड़ों को देख कर मैं तो जैसे पागल ही हो गया। मैं धीरे से अपने हाथों में बाजी की चूचियों को लेकर के धीरे-धीरे बड़े प्यार से दबाने लगा।
“बाजी तुम्हारी चूचियाँ बहुत प्यारी हैं बहुत ही सुंदर और ठोस हैं।” मैंने बाजी से कहा और बाजी ने मुस्कुरा कर अपने हाथ मेरे कंधों पर रख दिए।
मैंने झुक करके अपने होंठ उनकी चूचियों पर रख दिए। मैं बाजी की चूचियों के निप्पलों को चूसने लगा और बाजी सिहर उठी। मैं अपने मुँह को और खोल करके बाजी की एक चूची को और मेरे मुँह में भर लिया और चूसने लगा। मेरा दूसरा हाथ बाजी की दूसरी चूची पर था और उसको धीरे-धीरे दबा रहा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
फिर मैं अपना मुँह जितना खुल सकता खोल करके बाजी की चूची को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा। अपने दूसरे हाथ को मैं धीरे से नीचे लाकर के बाजी फुद्दि को पहले सहलाया और फिर धीरे से अपनी एक उंगली फुद्दि के अंदर कर घुसेड़ दी। मैं कुछ देर तक अपने मुँह से बाजी की मुसम्मी चचोरता रहा और अपने दूसरे हाथ की उंगली बाजी की फुद्दि के अंदर-बाहर करता रहा।
मुझे लगा रहा था कि बाजी आज अपनी फुद्दि मुझसे ज़रूर चुदवायेंगी। थोड़ी देर के बाद मैंने अपना मुँह बाजी की चूची पर से हटा कर बाजी को इशारे से पलंग पर लेटने के लिए बोला। बाजी चुपचाप पलंग पर लेट गई और मैं भी उनके पास लेट गया। फिर मैं बाजी को अपने बाहों में भर कर उनकी होठों को चूमने और फिर चूसने लगा।
मेरा हाथ फिर से बाजी की चूचियों पर चला गया और बाजी की बड़ी-बड़ी चूचियों को अपने हाथों ले कर बड़े आराम से मसलने लगा। इस वक़्त बाजी की चूचियों को मसलने में मुझे किसी का डर नहीं था और बड़े आराम से बाजी की चूचियों को मसल रहा था।
चूची मसलते हुए मैंने बाजी से बोला- तुम्हारी चूचियों का जबाब नहीं, बड़ी मस्त मुस्म्मियाँ हैं। मन करता है कि मैं इन्हें खा जाऊँ।
मैंने अपना मुँह नीचे करके बाजी की चूची के एक निप्पलों को अपने मुँह में भर कर धीरे-धीरे चूसने लगा। थोड़ी देर के बाद मैंने अपना एक हाथ नीचे करके बाजी की फुद्दि पर ले गया और उनकी फुद्दि से खेलने लगा, और थोड़ी देर के बाद अपनी एक उंगली फुद्दि में घुसेड़ कर अंदर-बाहर करने लगा। बाजी के मुँह से मादक सिसकारियाँ निकलने लगीं।
थोड़ी देर के बाद बाजी की फुद्दि ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया। मैं समझ गया की बाजी अब चुदवाने के लिए तैयार हैं। मैं भी बाजी के ऊपर चढ़ कर उनको चोदने के लिए बेताब हो रहा था। थोड़ी देर तक मैं बाजी की चूची और फुद्दि से खेलता रहा और फिर उनसे सट गया।
मैंने बाजी के ऊपर झुकते हुए बाजी से पूछा- तुम तैयार हो? बोलो ना बाजी क्या तुम अपनी छोटे भाई का लौड़ा अपनी फुद्दि के अंदर लेने के लिए तैयार हो?
उस समय मैं मन ही मन जानता था कि बाजी की फुद्दि मेरा लंड खाने के लिए बिल्कुल तैयार है। और बाजी मुझे चोदने से ना नहीं करेंगी।
बाजी तब मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली- ग़ालिब, क्या मैं इस वक़्त ना कर सकती हूँ? इस समय तू मेरे ऊपर चढ़ा हुआ है और हम दोनों नंगे हैं।
बाजी ने अपना हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी। तब मैंने अपने लंड को अपने हाथ में लेकर बाजी की फुद्दि से भिड़ा दिया।
फुद्दि पर लंड लगते ही बाजी “आह! अहह्ह्ह ! ग़ालिब ओहह्ह्ह्ह!” करने लगी।
मैंने हल्के से अपने कमर हिला कर बाजी की फुद्दि में अपने लंड का सुपाड़ा फँसा दिया। बाजी की फुद्दि बहुत टाइट थी लेकिन वो इतना रस छोड़ रही थी कि फुद्दि का रास्ता बिल्कुल चिकना हो चुका था। जैसे ही मेरा लंड का सुपाड़ा बाजी की फुद्दि में घुसा, बाजी उछल पड़ीं और चीखने लगीं- “मेरिई चूऊत फटीईईए जा रहिईई हैंईई निकाल अपना लंड ग़ालिब मेरी चूऊऊत से ईईए है मैं मर गईई मेरिईई चूऊऊओत फआआट गईई”.
मैंने बाजी के होठों को चूमते हुए बोला- बाजी, बस हो गया और थोड़ी देर तक तकलीफ़ होगी और फिर मज़ा ही मजा है। लेकिन बाजी फिर भी गिड़गिड़ाती रही।
मैंने बाजी की कोई बात नहीं सुनी और उनकी चूचियों को अपने हाथों से मज़बूती से पकड़ते हुए एक और ज़ोरदार धक्का मारा और मेरा पूरा का पूरा लंड बाजी की फुद्दि की में घुस गया। बाजी की फुद्दि से खून की कुछ बूँद निकल पड़ीं।
मैं अपना पूरा लंड डालने के बाद चुपचाप बाजी के ऊपर लेटा रहा और बाजी की चूचियों को मसलता रहा। थोड़ी देर के बाद बाजी ने मेरे नीचे से अपनी कमर उठाना शुरू कर दी। मैं समझ गया कि बाजी की फुद्दि का दर्द खत्म हो गया है और वो अब मुझसे खुल कर चुदवाना चाहती हैं।
मैंने भी धीरे से अपना लौड़ा थोड़ा सा बाहर खींचा और उसे फिर बाजी की फुद्दि में हल्के झटके के साथ घुसेड़ दिया। बाजी की फुद्दि ने मेरा लंड कस कर पकड़ रखा था और मुझे लंड को अंदर-बाहर करने में थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ रही थी। लेकिन मैं भी नहीं रुका और धीरे-धीरे अपनी स्पीड बढ़ाना शुरू कर दी।
बाजी भी मेरे साथ-साथ अपनी कमर उठा-उठा कर मेरे हर धक्कों का जबाब बदस्तूर दे रही थी। मैं जान गया कि बाजी की फुद्दि रगड़-रगड़ कर लंड खाना चाहती है। मैंने भी बाजी को अपनी बाहों में भर कर उनकी चूचियों को अपने मुँह में भर कर धीरे-धीरे लंड उठा-उठा करके धक्के मारना शुरू किया। अब मेरा लंड आसानी से बाजी की फुद्दि में आ-जा रहा था।
बाजी भी अब मुझे अपने बाहों में भर करके चूमते हुए अपनी कमर उचका रही थी और बोल रही थी, “भाई, बहुत अच्छा लग रहा है और ज़ोर-ज़ोर से चोदो मुझे। मेरी फुद्दि में कुछ चींटियाँ सी रेंग रही हैं। अपने लंड की रगड़ से मेरी खाज दूर कर दो। चोदो और ज़ोर-ज़ोर से चोदो मुझे।
मैं अब अपना लंड बाजी की फुद्दि के अंदर डाल कर कुछ सुस्ताने लगा।
बाजी तबा मुझे चूमते हुए बोली- क्या हुआ, तू रुक क्यों गया? अब मेरी फुद्दि की चुदाई पूरी कर और मुझे रगड़-रगड़ कर चोद करके मेरी फुद्दि की प्यास बुझा ग़ालिब, मेरे जालिम भाई।
मैं बोला- चोदता हूँ बाजी। थोड़ा मुझे आपकी फुद्दि में फँसे लौड़े का आनंद तो उठा लेने दो। अभी मैं तुम्हारी फुद्दि चोद-चोद कर फाड़ता हूँ।
मेरी बाजी बोली- साले तुझे मजा लेने की पड़ी है, अभी तो तू मुझे जल्दी-जल्दी चोद। ग़ालिब, मैं मरी जा रही हूँ।
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मैं उनकी बात सुन कर ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने लगा और बाजी भी मुझे अपने हाथ और पैरों से जकड़ कर अपने फुद्दिड़ उछाल-उछाल कर अपनी फुद्दि चुदवाने लगी।
मैंने थोड़ी देर तक बाजी की फुद्दि में अपना लंड पेलने के बाद बाजी से पूछा- कैसा लग रहा है, अपने छोटे भाई का लंड अपनी फुद्दि में डलवा कर?
मैं अब बाजी से बिल्कुल खुल कर बातें कर रहा था। और उन्हें अपने लंड से छेड़ रहा था।
“ग़ालिब, यह काम हम लोगों ने बहुत ही बुरा किया। लेकिन मुझे अब बहुत अच्छा लग रहा है।” बाजी मुझे अपने सीने से चिपकाते हुए बोली।
थोड़ी देर के बाद मैं फिर से बाजी की फुद्दि में अपना लंड तेज़ी से पेलने लगा। कुछ देर के बाद मुझे लग रहा था कि मैं अब झड़ने वाला हूँ। इसलिए मैंने अपना लंड बाजी की फुद्दि से निकाल कर अपने हाथ से पकड़ लिया और पकड़े रखा।
मैंने बाजी से कहा- अपने मुँह में लोगी?
बाजी ने पहले कुछ सोचा फिर अपना मुँह खोल दिया। मैंने लौड़ा उनके मुँह में दे दिया और अपना वीर्य उनके मुँह में छोड़ दिया। बाजी ने मेरा माल अपने मुँह में भर लिया और उसको गुटक लिया। बाजी ने आसक्त भाव से मेरी तरफ देखा और मैंने अपने होंठ उनके होंठों से लगा दिए। भाई बहन की इस चुदाई ने भले ही समाज की मर्यादाओं को भंग कर दिया हो, पर मेरी और मेरी बाजी की कामनाओं को तृप्त कर दिया था। अब बाजी मेरी दीवानी हो चुकी थी हम दोनों में कोई पर्दा नहीं था.