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चाचाजी के बार बार आग्रह से आख़िर मैंने यहा गर्मी की छुट्टी अपने गाँव वाले घर में बिताने का फ़ैसला किया. मैं जब गाँव पहुँचा तो चाचाजी बहुत खुश हुए. चाची को पुकारते हुए बोले. “लो, मनीष आ गया तुम्हारा साथ देने को. मनीष बेटे, अब मैं निश्चिंत मन से दौरे पर जा सकता हूँ नहीं तो महीना भर अकेले रह कर तुम्हारी चाची बोर हो जाती.” Desi Kama Sutra Porn
शीला चाची मुस्कराती हुई मेरी ओर देखकर बोली. “हाँ लल्ला, बहुत अच्छा किया जो आ गये. वैसे मैंने अपनी भांजी को भी फ़ोन किया है, शायद वो भी आ जाए अगले हफ्ते. तेरे आने का पक्का नहीं था ना इसलिए”.
चाचाजी सामान अपनी बैग में भरते हुए बोले. “चलो, दो से तीन भले. मैं तो चला. भाग्यवान सभाल कर रहना. वैसे अब मनीष है तो मुझे कोई चिंता नहीं. मनीष बेटे चाची का पूरा ख़याल रखना, उसकी हर ज़रूरत पूरी करना, अब महीने भर घर को और चाची को तेरे सहारे ही छोड़. कर जा रहा हूँ” चाचाजी ने बैग उठाई और दौरे पर निकल गये.
मेरे राजीव चाचा बड़े हैम्डसम आदमी थे. गठीला स्वस्था बदन और गेहुआँ रंग. मेरे पिताजी के छोटे भाई थे और गाँव के बड़े पुश्तैनी घर में रहते थे. वहीं रहकर एक अच्छी कंपनी के लिए आस पास के शहरों में मार्केटिँग की नौकरी करते थे इसलिए अक्सर बाहर रहते थे.
गाँव के घर में चाची के सिवाय और कोई नहीं था. चाचाजी ने पाँच साल पहले बत्तीस की आयु में शादी की थी, वह भी घर वालों की ज़िद पर, नहीं तो शादी करने का उनका कभी इरादा नहीं था. शीला चाची उनसे सात आठ साल छोटी थीं. वे शादी में सिर्फ़ पच्चीस छब्बीस साल की होंगी.
उन्हें अब तक कोई संतान नहीं हुई थी. घर वालों को इसमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ था क्योंकि चाचाजी को पहले से ही शादी मे दिलचस्पी नहीं थी. मुझे तो लगता है कि उन्होंने कभी शीला चाची का चुंबन भी नहीं लिया होगा, संभोग तो दूर की बात रही.
मैं चाचाजी की शादी में छोटा था, करीब दस ग्यारह साल का रहा होऊंगा. तब शादी के जोड़े में लिपटी वह कमसिन सुंदर चाची मुझे बहुत भा गयी थीं. उसके बाद इन पाँच सालों में मैं उन्हें बस एक बार दो दिन के लिए मिला था. गाँव आने का मौका भी नहीं मिला.
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आज उन्हें फिर देखा कर मुझे बड़ा अच्छा लगा. सच बात तो यह है कि बहुत संयम बरतने पर भी ना मान कर मेरा लंड खड़ा होने लगा. मुझे बड़ा अटपटा लगा क्योंकि चाचाजी की मैं इज़्ज़त करता था. उनकी जवान पत्नी की ओर मेरे ऐसे विचार मन में आने से मुझे शर्म सी लगी. पर एक तो मेरा सोलह साल का जोश, दूसरे शीला चाची का भरपूर जोबन.
वे अब तीस इकतीस साल की भरी पूरी परिपक्व जवान महिला थीं और घूँघट लिए हुए साड़ी साड़ी में भी उनका रूप छुपाए नहीं छुप रहा था. वे बड़ा सा सिंदूर लगाई हुई थीं और बिना लिपस्टिक के भी उनके कोमल उभरे होंठ लाल लाल गुलाब की पंखुड़ियो से लग रहे थे.
साड़ी उनके बदन में लिपटी हुई थी, फिर भी उसमें से भी उनके वक्ष का उभार नहीं छुपता था. हरी चूड़ियाँ पहने उनकी गोरी बाँहें देखा कर सहसा मेरे मन में विचार आ गया कि चाची का बदन नग्न कैसा दिखेगा? अपने इस कामुक मन पर मैंने फिर अपने आप को कोस डाला.
मेरी नज़र शायद उन्होंने पहचान ली थी क्योंकि मेरी ओर देखकर चाची बड़ी शरारती नज़र से देख कर बोलीं. “कितने जवान हो गये हो लल्ला, इतना सा देखा था तुझे. शादी कर डालो अब, गाँव के हिसाब से तो अब तक तुम्हारी बहू आ जाना चाहिए.”
उनके बोलने के और मेरी ओर देखने के अंदाज से मैं एक बात तुरंत समझ गया. शीला चाची बड़ी “चालू” चीज़ थीं. कम से कम मेरे साथ तो बहुत इतरा रही थीं. मैं थोड़ा शरमा कर इधर उधर देखने लगा. हम अब अकेले थे इसलिए वी घूँघट छोड़. कर अपने कपड़े ठीक करते हुए मुझसे गप्पें लगाने लगी. उनके बाल भी बड़े लंबे खूबसूरत थे जिसका उन्होंने जुड़ा बाँध रखा था.
“चाय बना कर लाती हूँ लल्ला.” कहकर वे चली गयीं.
अब साड़ी उनकी कमर से हट गयी थी और उस गोरी चिकनी कमर को देखकर और उनके नितंब डुलाकर चलने के अंदाज से ही मेरा लंड और कस कर खड़ा हो गया. वे शायद इस बात को जानती थीं क्योंकि जान बुझ कर अंदर से पुकार कर बोलीं. “यहीं रसोई में आ जाओ लाला. हाथ मुँह भी धो लो”.
मेरा ऐसा कस कर खड़ा था कि मैं उठ कर खड़ा होने का भी साहस नहीं कर सकता था, चल कर उनके सामने जाने की तो दूर रही. “बाद में धो लूँगा चाची, नहा ही लूँगा, चाय आप यहीं ले आइए ना प्लीज़.” वे चाय ले कर आईं. मेरी ओर देखने का अंदाज उनका ऐसा था कि जैसे सब जानती थीं कि मेरी क्या हालत है.
बातें करते हुए बड़ी सहज रीति से उन्होंने अपना ढला हुआ आँचल ठीक किया. यह दस सेकंड का काम करने में उन्हें पूरे दो मिनिट लगे और उन दो मिनिटों में पाँच छह बार नीचे झुककर उन्होंने अपनी साड़ी की चुन्नटे ठीक कीं. इस सारे कार्य का उद्देश्य सिर्फ़ एक था, अपने स्तनों का उभार दिखा कर मेरा काम तमाम करना जिसमें शीला चाची शत प्रतिशत सफल रहीं.
उस लाल लो-काट की चोली में उनके उरोज समा नहीं पा रहे थे. जब वे झुकीं तो उन गोरे मांसल गोलों के बीच की खाई मुझे ऐसी उत्तेजित कर गई कि अपने हाथों को मैंने बड़ी मुश्किल से अपने लंड पर जाने से रोका नहीं तो हस्तमैथुन के लिए मैं मरा जा रहा था.
मेरा हाल देखा कर चाची ने मुझ पर तरस खाया और अपना छिछोरापन रोक कर मेरा कमरा ठीक करने को उपर चली गईं. मुझे अपना लंड बिताने का समय देकर कुछ देर बाद बातें करती हुई मुझे कमरे में ले गयी. “शाम हो गयी है मनीष, तुम नहा लो और नीचे आ जाओ. मैं खाने की तैयारी करती हूँ.”
“इतनी जल्दी खाना चाची?” मैंने पूछा.
वे मेरी पीठ पर हाथ रख कर बोलीं. “जल्द खाना और जल्द सोना, गाँव में तो यही होता है लल्ला. तुम भी आदत डाल लो.” और बड़े अर्थपूर्ण तरीके से मेरी ओर देखकर वे मुस्कराने लगीं.
मैं हडबड़ा गया. किसी तरह अपने आप को समहाल कर नहाने जाने लगा तो पीछे से चाची बोली. “जल्दी नहाना अच्छे बच्चों जैसे, कोई शरारत नहीं करना अकेले में” और खिलखिलाती हुई वे सीढ़ियाँ उतर कर रसोई में चली गईं. मैं थोड़ा शरमा गया क्योंकि मुझे लगा कि उनका इशारा इस तरफ था कि नहाते हुए मैं हस्तमैथुन ना करूँ.
चाची के इस खेल से मेरे मन में एक बड़ी हसीन आशा जाग उठी. और वह आशा विश्वास में बदल गयी जब मैं नहा कर रसोई में पहुँचा. अब मैं पूरी तैयारी से आया था. मन मार कर किसी तरह मैंने अपने आप को हस्तमैथुन करने से रोका था. बाद में लंड को खड़ा पेट से सटाकर और जांघिया पहनकर उपर से उसी पर मैंने पाजामे की नाड़ी बाँध ली थी और उपर से कुर्ता पहन लिया था.
अब मैं चाहे जितना मज़ा ले सकता था, लंड खड़ा भी होता तो किसी को दिखता नहीं. चाची रसोई की तैयारी कर रही थीं. मैं वहीं कुर्सी पर बैठ कर उनसे बातें करने लगा. चाची ने कुछ बैंगन उठाए और हांसिया लेकर उन्हें काटने मेरे सामने ज़मीन पर बैठ गयीं.
अपनी साड़ी घुटनों के उपर कर के एक टाँग उन्होंने नीचे रखी और दूसरी मोड. कर हँसिए के पाट पर अपना पाँव रखा. फिर वे बैंगन काटने लगीं. उनकी गोरी चिकनी पिंडलियों और खूबसूरत पैरों को मैं देखता हुआ मज़ा लेने लगा. वे बड़े सहज भाव से सब्जी काट रही थीं. अचानक मुझे जैसे शौक लगा और मेरा लंड ऐसे उछला जैसे झड. जाएगा.
हुआ यहा कि चाची ने आराम से बैठने को थोड़ा हिल डुलकर अपनी टाँगें और फैलाईं. इस से उनकी गोरी नग्न जांघें तो मुझे दिखी हीं, उनके बीच काले घने बालों से आच्छादित उनके गुप्ताँग का भी दर्शन हुआ. शीला चाची ने साड़ी के नीचे कुछ नहीं पहना था! मैं शरमा गया और बहुत उत्तेजना भी हुई.
पहले मैने यह समझा कि उन्हें पता नहीं है कि उनका सब खजाना मुझे दिख रहा है इसलिए झेंप कर नज़र फिरा कर दूसरी ओर देखकर मैं उनसे बातें करने लगा. पर वे कहाँ मुझे छोड़ने वाली थीं. दो ही मिनिट में शरारत भरे अंदाज में वी बोलीं. “चाची क्या इतनी बुरी है लल्ला की बात करते समय उसकी ओर देखना भी नहीं चाहते?”
मैंने मुड कर उनकी ओर देखा और कहा. “नहीं चाची, आप तो बहुत सुंदर हैं, अप्सरा जैसी, मुझे तो लगता है आप को लगातार देखता रहूं पर आप बुरा ना मान जाएँ इसलिए घूरना नहीं चाहता था.”
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“तो देखो ना लाला. ठीक से देखो. मुझे भी अच्छा लगता है कि तेरे जैसा कोई प्यारा जवान लडका प्यार से मुझे देखे. और फिर तो तू मेरा भतीजा है, घर का ही लड़का है, तेरे तकने को मैं बुरा नहीं मानती” कहकर उस मतवाली नारी ने अपनी टाँगें बड़ी सहजता से और फैला दीं और बैंगन काटती रही.
अब तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. चाची मुझे रिझा रही थीं. मैं भी शरम छोड़. कर नज़र गढ़ा कर उनके उस मादक रूप का आनंद लेने लगा. गोरी फूली बुर पर खूब रेशमी काले बाल थे और मोटी बुर के बीच की गहरी लकीर थोड़ी खुल कर उसमें से लाल लाल योनिमुख की भी हल्की झलक दिख रही थी.
पाँच मिनिट के उस काम में चाची ने पंद्रह मिनिट लगाए और मुझसे जान बुझ कर उकसाने वाली बातें कीं. मेरी गर्ल फ्रेन्ड्स हैं या नहीं, क्यों नहीं हैं, आज के लडके लड़कियाँ तो बड़े चालू होते हैं, मेरे जैसा सुंदर जवान लडक अब तक इतना दबा हुआ क्यों है इत्यादि इत्यादि. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैं समझ गया कि चाची ज़रूर मुझ पर मेहरबान होंगी, शायद उसी रात. मैं खुश भी हुआ और चाचाजी का सोच कर थोड़ी अपराधीपन की भावना भी मन में हुई. आख़िर चाची उठीं और खाना बनाने लगीं. मैं बाहर के कमरे में जाकर किताब पढने लगा. अपनी उबलती वासना शांत करने का मुठ्ठ मारने के सिवाय कोई चारा नहीं था इसलिए मन लगाकर जो सामने दिखा, पढता रहा.
कुछ समय बाद चाची ने खाने पर बुलाया और हम दोनों ने मिल कर बिलकुल यारों जैसी गप्पें मारते हुए खाना खाया. खाना समाप्त करके मैं अपने कमरे में जाकर सामान अनपैक करने लगा. सोच रहा था कि चाची कहाँ सोती हैं और आज रात कैसे कटेगी.
तभी वे उपर आईं और मुझे छत पर बुलाया. “मनीष, यहाँ आ और बिस्तर लगाने में मेरी मदद कर.”
मैं छत पर गया. मेरा दिल डूबा जा रहा था. गरमी के दिन थे. सॉफ था कि सब लोग बाहर खुले में सोते थे. ऐसी हालत में क्या बात बननी थी चाची के साथ. छत पर दो खाटे थीं. हमने उनपर गद्दियाँ बिछाईं. “गरमी में बाहर सोने का मज़ा ही और है लाला” कहा कर मुझे चिढ़ाती हुई वे मच्छरदानियाँ लेने चली गयीं.
वापस आईं तो दोनों मच्छरदानियाँ फटी निकलीं. शीला चाची मेरी नज़रों में नज़र डाल कर बोलीं. “मच्छर तो बहुत हैं मनीष, सोने नहीं देंगे. गरमी इतनी है कि नीचे सोया नहीं जाएगा. ऐसा कर, तू खाटे सरकाकर मिला ले, मैं डबल वाली मच्छरदानी ले आती हूँ. तू शरमाएगा तो नहीं मेरे साथ सोने में? वैसे मैं तेरी चाची हूँ, माँ जैसी ही समझ ले.”
मैं शरमा कर कुछ बुदबूदाया. चाची मंद मंद मुस्कराकर डबल मच्छरदानी लेने चली गयीं. वापस आईं तो हम दोनों उसे बाँधने लगे. मैंने साहस करके पूछा. “चाची, आजू बाजू वाले देखेंगे तो नहीं.” वी हँस पडी. “इसका मतलब है तूने छत ठीक से नहीं देखी.” मैंने गौर किया तो समझ गया. आस पास के घरों से हमारा मकान बहुत उँचा था. दीवाल भी अच्छी उँची थी. बाहर का कोई भी छत पर नहीं देख सकता था.
तभी चाची ने मीठा ताना मारा. “और लोग देखें भी तो क्या हुआ बेटे. तू तो इतना सयाना बच्चा है, तुरंत सो जाएगा सिमट कर.” मैंने मन ही मन कहा की चाची मौका दो तो दिखाता हूँ की यहा बच्चा तुम्हारे मतवाले शरीर का कैसे रस निकालता है.
आख़िर चाची नीचे जाकर ताला लगाकर बत्ती बुझाकर उपर आईं. मैं तब तक मच्छरदानी खोंस कर अपनी खाट पर लेट गया था. चाची भी दूसरी ओर से अंदर आकर दूसरी खाट पर लेट गईं. पास से चाची के बदन की मादक खुशबू ने फिर अपना जादू दिखाया और मेरा मस्त खड़ा हो गया.
चाची भी गप्पें मारने के मूड में थीं और फिर वही गर्ल फ्रेन्ड वाली बातें मुझसे करने लगीं. मेरा लंड अब तक अपनी लगाम से छूटकर पाजामे में तम्बू बना कर खड़ा हो गया था. हल्की चाँदनी थी इसलिए काफ़ी सॉफ सब दिख रहा था. लंड के तम्बू को छुपाने के लिए मैं करवट बदल कर पीठ चाची की ओर करके लेट गया तो हँस कर उन्होंने मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे फिर अपनी ओर मोडा.
“शरमाओ मत लल्ला, क्या बात है, ऐसे क्यों बिचक रहे हो?”
मुझे अपनी ओर खींचते हुए उनका हाथ मेरे लंड को लगा और वे हँसने लगीं. “तो यह बात है, सचमुच बड़ा हो गया है मेरा प्यारा भतीजा. पर यह क्यों हुआ रे, किसी गर्लफ़्रेंड की याद आ रही है?” कह कर उन्होंने सीधा पाजामे के उपर से ही मेरे लंड को पकड़. लिया और सहलाने लगीं.
अब तो मेरा और रुकना मुश्किल था. मैं सरक कर उनकी ओर खिसका और उनके शरीर पर अपनी बाँह डालकर चिपट गया जैसे बच्चा माँ से चिपटता है. उनके सीने में मुँह छुपाकर मैं बोला. “चाची क्यों तरसाती हैं मुझे? आप को मालूम है कि आपके रूप को देखकर शाम से मेरा क्या हाल है.”
चाची ने मेरा मुँह उपर किया और ज़ोर से मुझे चूम लिया. “तो मेरा भी हाल कुछ अच्छा नहीं है लल्ला. तेरे इस प्यारे जवान शरीर को देखकर मेरा क्या हाल है, मैं ही जानती हूँ.”
कुछ भी बातें करने का अब कोई मतलब नहीं था. हम दोनों ही बुरी तरह से कामातुर थे. एक दूसरे को लिपट कर ज़ोर ज़ोर से एक दूसरे के होंठ चूमने लगे. चाची के उन रसीले होंठों के चुंबन ने कुछ ही देर में मुझे चरम सुख की कगार पर लाकर रख दिया.
उनका आँचल अब ढल गया था और चोली में से उबल कर बाहर निकल रहे वे उरोज मेरी छाती से भिड़े हुए थे. मेरा उत्तेजित शिश्न कपडो के उपर से ही उनकी जांघों को धक्के मार रहा था. मेरे मुँह से एक सिसकारी निकली और चाची ने चुंबन तोड. कर मेरे लंड को टटोला और फिर मुझे चित लिटा दिया.
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“लल्ला अब तुम्हारी खैर नहीं, मुझे ही कुछ उपाय करना होगा.” कहकर वे मेरे बाजू में बैठ गयीं और पाजामे के बटन खोल कर मेरे जांघीए की स्लिट में से उन्होंने मेरा उछलता लंड बाहर निकाल लिया. चाँदनी में मेरा तन्नाया लंड और उसका सूजा लाल सुपाडा देख कर उनके मुँह से भी एक सिसकारी निकल गयी. उसे हाथ में लेकर पुचकारते हुए वे बोलीं. “हाय कितना प्यारा है, मैं तो निहाल हो गयी मेरे राजा.”
और झुक कर उन्होंने मेरा सुपाडा मुँह में ले लिया और चूसने लगीं. उनकी जीभ के स्पर्श से मैं ऐसा तडपा जैसे बिजली छू गयी हो. झुकी हुई चाची की चोली में से उनके मम्मे लटक कर रसीले फलों जैसे मुझे लुभा रहे थे. इतने में चाची ने आवेश में आकर अपना मुँह और खोला और मेरा पूरा लंड जड. तक निगल लिया जैसे गन्ना हो. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
“चाची, यहा क्या कर रही हैं? मैं झड. जाऊन्गा आप के मुँह में” कहकर मैंने उनका मुँहा हटाने की कोशिश की तो उन्होंने हल्के से अपने दाँतों से मेरे लंड को काट कर मुझे सावधान किया और आँख मार दी. उनकी नज़र में गजब की वासना थी. फिर मुँह से मेरे लंड को जकड कर उसपर जीभ फिराती हुई वी ज़ोर ज़ोर से मेरा लौडा चूसने लगीं.
दो ही मिनिट में मैंने मचल कर उनके सिर को पकड़. लिया और कसमसा कर झड. गया. मुझे लग रहा था कि वे अब मुँह में से लंड निकाल लेंगी पर वे तो ऐसे चूसने लगीं जैसे गन्ने का रस निकाल रही हों. पूऱा वीर्य निगल कर ही उन्होंने मुझे छोड़ा.
मैं चित पड़ा हान्फता हुआ इस स्वर्गिक स्खलन का मज़ा ले रहा था. मुँह पोंछती हुई चाची फिर मुझ से लिपट गयी और मेरे गालों और होंठों को बेतहाशा चूमने लगीं. “लल्ला, तुम तो एकदम कामदेव हो मेरे लिए, मैं तो धन्य हो गयी तेरा प्रसाद पाकर” “आप को गंदा नहीं लगा चाची?” “अरे बेटे तू नहीं समझेगा, यह तो एकदम गाढी मलाई है मेरे लिए. अब तू देखता जा, इन दो महीनों में तेरी कितनी मलाई निकालती हूँ देख.”
मुझे बेतहाशा चूमते हुए वे फिर बोलीं. “तुम बड़े पोंगा पंडित निकले लल्ला. शाम से तुझे रिझा रही हूँ पर तू तो शरमा ही रहा था छोकरियों की तरह.” मैंने उनके गाल को चूम कर कहा. “नहीं चाची, मैं तो कब का आपका गुलाम हो गया था. बस डर लगता था कि चाचाजी को पता चल गया क्या सोचेंगे.”
वे मुझे प्यार से चपत मार कर बोलीं. “तो इसलिए तू दबा दबा था इतनी देर. मूरख कहीं का, उन्हें सब मालूम है.” मेरे आश्चर्य पर वे हँसने लगीं.
“ठीक कहा रही हूँ मनीष. मैं कब से भूखी हूँ. तेरे चाचाजी भले आदमी हैं पर अलग किस्म के हैं. उन्हें ज़रा भी मेरे शरीर में दिलचस्पी नहीं है. इतने दिन मैंने सब्र किया, ऐसे भले आदमी को मैं धोखा नहीं देना चाहती थी. परपुरुष की ओर आँख उठा कर भी नहीं देखा.
पर पिछले महने मैं इनसे खूब झगडी. आख़िर जिंदगी ऐसे कैसे कटेगी. वे भी जानते और समझते हैं. बोले, अच्छा जवान लडका घर में ही है, उसे बुला लिया कर जब मान चाहे. तू उसके साथ कुछ भी कर, मुझे बुरा नहीं लगेगा. इसलिए तो तीन माह से वे तुझे आने का आग्रह कर रहे हैं. और तू है कि इतने दिनों में आया है.”
मेरे मन का बोझ उतर गया. मेरा रास्ता सॉफ था. मैंने चाची से पूछा कि आख़िर क्यों राजीव चाचा को उन जैसी सुंदर स्त्री से भी लगाव नहीं हैं. वी हँस कर टाल गयीं. मुझे चूमते हुए बोलीं कि बाद में समय आने पर बताएँगी. और देर ना करके मैंने कस कर चाची को बाँहों में भर लिया.
उनकी वासना अब तक चौगुनी हो गयी थी. झट से अपने ब्लाउज के सामने वाले बटन उन्होंने खोल दिए और उनके मोटे मोटे स्तन उछल कर बाहर आ गये. स्तनों की घुंडियाँ एकदमा तन कर अंगूर जैसी खडी थीं. उन्होंने झुक कर एक स्तन मेरे मुँह में दे दिया और मुझ पर चढ. कर मेरे उपर लेट गयीं.
मुझे बाँहों में भींच कर अपनी टाँगों में मेरी कमर जकड. कर वे उपर से धक्के लगाने लगीं मानों काम क्रीडा कर रही हों. उनका तना मूँगफली जैसा निपल मुँह में पाकर मुझे ऐसी खुशी हुई जैसी एक बच्चे को माँ का निपल चूसते हुए होती है. मैंने भी अपनी बाँहें उनके इर्द गिर्द भींच लीं और निपल चूसता हुआ उनकी चिकनी पीठ और कमर पर हाथ फेरने लगा.
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फिर उनके नितंब साड़ी के उपर से ही दबाने लगा. वे ऐसी बिचकीं कि जैसे बिच्छू ने डंक मारा हो. मेरे चेहरे को उन्होंने छाती पर और कसकर भींच लिया और आधा स्तन मेरे मुँह में ठूंस दिया. उसे चूसता हुआ मैं अब सोचने लगा कि चाची चोदने को मिले तो क्या आनंद आए.
दस ही मिनिट में मेरा जवान लंड फिर ऐसा खड़ा हो गया था जैसे कभी बैठा ही ना हो. किसी तरह निपल मुँह में से निकाल कर चाची से बोला. “शीला चाची, कपड़े निकाल दीजिए ना, आपका यह बदन देखने को मैं मरा जा रहा हूँ.” वे बोलीं. “नहीं लल्ला, कुछ भी हो, हम छत पर हैं, पूरा नंगा होने में कम से कम आज की रात सावधानी करना ठीक है. कल से देखेंगे और दोपहर को तो घर में हम अकेले हैं ही”.
“तो चाची, प्लीज़ चोदने दीजिए ना, मैं पागल हो जाऊन्गा नहीं तो.” वे इतरा कर अपने उरोज मेरे गालों पर रगड़ती हुई बोलीं. “इतनी जल्दी क्या है राजा, और मज़ा नहीं करोगे? बहुत उतावले हो लल्ला तुम, सब्र करना सीखो. तभी स्वर्ग का आनंद पाओगे” कहते हुए उन्होंने अपना दूसरा स्तन मेरे मुँह में दे दिया.
मैं उनका निपल चूसने में जुट गया. हमारी सुखी चुदाई फिर शुरू हो गयी. मैं नीचे से और वे उपर से ऐसे धक्के लगा रहे थीं जैसे रति कर रही हों पर बीच में अभी भी कपड़े थे. दस बीस मिनिट मस्ती में गुजर गये. उन्हें भोगने को अब मैं बेताब था.
आख़िर मेरी उत्तेजना देखकर उन्होंने मेरे कान में फुसफुसा कर कहा. “मनीष बेटे, मेरे साथ उनसठ का खेल खेलोगे? तुझे उज्र तो नहीं है?” मैं पहले समझा नहीं फिर एकदम दिमाग़ में बात आ गयी कि चाची सिक्सटी नाइन की बात कर रही हैं. मेरा रोम रोम सिहर उठा. मानों उन्होंने मेरे मन की बात कहा दी थी. किताबों में पढ़ा और चित्रा देखे थे पर अब यह मतवाली रसीली चाची खुद ही यह करने को मुझे कह रही थी.
असल में कल से जब से मुझे उनकी गोरी गोरी बुर के दर्शन हुए थे, उस मुलायम बुर को चोदने को तो मैं आतुर था ही, पर उसके भी पहले मेरे मन में यही बात आई थी कि अगर इस रसीली चूत में मुँह मारने मिले तो क्या बात है. चाची के मुँह से मेरे मन की बात सुन कर मैं चहक उठा. मेरे लंड में आए अचानक उछाल से वे समझ गयीं कि उनका भतीजा भी उनके रस का प्यासा है.
मेरे मुँह से अपना निपल खींच कर वे उलटी तरफ से मेरे सामने लेट गयीं. “तो सिक्सटी नाइन करेगा मेरे साथ मेरा राजा. मैं तो समझती थी कि तुझे शायद अच्छा ना लगे.” मैंने उत्सुक स्वर में कहा “क्या बात करती हो चाचीज़ी. मैं तो मरा जा रहा हूँ इस अमृत के लिए. शाम से मुँह में पानी भरा है.”
अपनी साड़ी उपर कर के खिलखिलाते हुए उन्होंने अपनी एक टाँग उठाई और मेरे सिर को अपनी जीँघों में खींचते हुए बोलीं. “तो आ जाओ लल्ला, इतना रस पिलाऊन्गि की तृप्त हो जाओगे” उनकी साड़ी अब कमर के उपर थी और मोटी मांसल जांघें एकदम नंगी थीं. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
उनकी निचली जाँघ को मैं तकिया बनाकर लेट गया और उंगलियों से उनकी रेशमी झान्टे बाजू में कर के उस खजाने को देखने लगा. धुंधली चाँदनी में बहुत सॉफ तो नहीं दिख रहा था पर फिर भी उस लाल चूत की झलक से मैं ऐसा मस्त हुआ कि सीधा उस निचले मुँह का चुंबन ले लिया.
पास से उसकी मादक खुशबू ने मुझे पागल सा कर दिया. जीभ निकालकर मैं चाची की बुर चाटने लगा. वह बिलकुल गीली थी. गाढा छिपचिपा शहद जैसा रस उसमें से टपक रहा था. उस कसैले खट्टे मीठे स्वाद से विभोर होकर मैं बेतहाशा चाची की चूत चाटने और चूसने लगा.
चाची साँस रोककर देख रही थीं कि मैं क्या करता हूँ. मेरे इस अधीरता से चूत चाटना शुरू करने पर वे मस्ती से कराह उठीं. “हाय लल्ला, तू तो जादूगर है, ज़रा भी सिखाना नहीं पड़ा. बस ऐसा कर कि बीच बीच में जीभ भी डाल दिया कर अंदर.” और फिर उन्होंने मेरे लंड पर ताव मारना शुरू कर दिया. पहले उसे खूब चूमा, चाटा और फिर मुँह में लेकर चूसने लगीं.
आधे घंटे तक हम एक दूसरे के गुप्ताँग को चूसने का मज़ा लेते रहे. चाची तो पाँच मिनिट में ही झड. गयी थीं. उनकी झडती चूत ने मुझे खूब पानी चखाया. बाद में वे दो बार और स्खलित हुईं. बीच में मैंने उनके कहने पर उनकी मखमली चूत में जीभ भी डाल दी और अंदर बाहर कर के उसे जीभ से ही चोदा.
चाची ने मुझे खूब देर टंगाया आख़िर असहनीय कामना से जब मैं धक्के लगाकर उनके मुँह को चोदने लगा तभी उन्होंने ज़ोर से चूसकर मुझे स्खलित किया. हम दोनों बिलकुल तृप्त हो गये थे पर फिर भी नींद से कोसों दूर थे. पेशाब लगी थी इसलिए हमने उठ कर वहीं छत पर बाजू में बनी नाली में मूता.
चाची ने भी बेझिझक मेरे सामने ही बैठकर पेशाब किया. उनकी बुर से निकलती मूत्र की तेज रुपहली धार देखकर मेरे मन में एक अजीब रोमांच हो उठा. वापस बिस्तर पर आकर हम एक दूसरे से चिपट गये और चूमा चाटी करते रहे. चाची मुझसे अब गंदी गंदी बातें करने लगीं. मुझे उत्तेजित करने का यह तरीका था. मैंने भी उनसे पूछा कि उनके जैसी गरमागरम नारी ने अपने उपर इतने साल कैसे संयम रखा.
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वे हँसने लगीं. “कौन कहता है मैंने संयम रखा? खूब मज़ा लिया मैंने.”
मैंने कहा. “चाची आप तो कह रही थीं कि किसीसे आपने संबंध नहीं रखे” मेरे लंड को मुठ्ठी में लेकर दबाती हुई वे बोलीं. “अरे संबंध नहीं रखे तो और भी रास्ते हैं. तू खुद को ही देख. आज तक तूने किसी स्त्री से संबंध नहीं किया ना? पर मज़ा लेता है कि नहीं?”
मैं समझ गया कि हस्तमैथुन की बात हो रही है. मेरी उत्तेजना महसूस करके चाची हँसने लगीं. “चल, तुझे भी कभी दिखाऊन्गि औरतें क्या करती हैं खुद के साथ. हमेशा याद रखेगा. अरे गाँव की लडकियाँ तो माहिर होती हैं इस कला में.”
मुझे चाची के स्तन दबाने का बहुत मन हो रहा था. जब उनसे कहा तो वे मेरी ओर पीठ करके लेट गयीं. पीछे से उनसे चिपट कर मैंने उनके मम्मे दबाने शुरू कर दिए. बड़ा मज़ा आया. ख़ास कर उनके कड़े निपल मेरे हथेलियों में चुभाते तो बड़ा अच्छा लगता. स्तन मर्दन करते हुए मैं पीछे से उनके नितंबों के बीच के गहरी लकीर में लंड जमा कर रगडने लगा. उन मांसल चूतडो के घर्षण से जल्द ही मेरा फिर से तन्ना कर खड़ा हो गया.
“अब तो चोदने दो चाची” मैं मचल उठा.
वे इतरा कर बोलीं. “ठीक है लल्ला, आ जाओ मैदान में, पर देख, मैं कहे देती हूँ, इतने दिनों बाद चुदवाने का मौका मिला है. मन भर कर चुदवाऊन्गि. घंटे भर तक मेहनत करना पड़ेगी बिना झडे. नहीं तो कट्टी. बोलो है मंजूर?”
मैंने मान लिया, जबकि मन में लग रहा था कि ऐसी मादक नारी को बिना झडे चोदना तो असंभव है. चाची साड़ी उपर करके चित लेट गयीं. मेरा तकिया उन्होंने अपने चूतडो के नीचे रख कर अपनी कमर उँची कर ली और टाँगें फैला कर तैयार हो गयीं. उस खुली रिसती बुर को देखकर मुझे नहीं रहा गया और फिर मैं झुक कर उसे चूसने लगा. चाची ने मना नहीं किया बल्कि प्यार से चुसवाती रहीं.
“मेरे प्यारे लल्ला, लगता है अपनी चाची की चूत बहुत भा गयी है तुझे. चूस बेटे चूस, मन भर कर चूस, तेरे ही लिए है मेरा सब रस.”
एक बार उन्हें झडा कर मैने फिर रस चाटा और आख़िर वासना सहन ना होने से उठ बैठा. उनकी टाँगों के बीच बैठकर अपना सुपाडा उनके योनिद्वार पर रखा और ज़ोर से पेल दिया. चाची की बुर काफ़ी टाइट थी फिर भी इतनी गीली थी कि एक ही बार में पूरा लंड जड. तक चाची की चूत में उतर गया.
चाची सुख से सिसक उठीं. “शाब्बास मेरे शेर, अब आया मज़ा. चोद अब मन लगा कर, चढ. जा मुझपर, ढीली कर दे मेरी कमर धक्के मार मार कर, तुझे मेरी कसम लाला.”
मैं सपासाप चाची को चोदने लगा. इतना सुख कभी नहीं मिला था. अपनी पहली चुदाई और वह भी ऐसी मस्त औरत के साथ, मैं तो निहाल हो गया. उस रात मैंने सच में एक घंटा नहीं तो फिर भी बीस-एक मिनिट शीला चाची को चोदा. एक तो दो बार झडने से अब मेरे लंड का संयम बढ़. गया था.
दूसरे शीला चाची ने भी बार बार दुहाई देकर और धमाका कर मुझे झडने नहीं दिया. जब भी उन्हें लगता कि मैं स्खलित होने वाला हूँ, वे कस कर अपनी टाँगों में मेरी कमर पकड़. कर और मुझे बाँहों में भर कर स्थिर कर देतीं. लंड का मचलना कम होने पर ही छोडती.
छोड़ते हुए मैंने उन्हें खूब चूमा. कई बार ज़ोर से धक्के लगाता हुआ मैं उनके रसीले होंठों को अपने दाँतों में दबाकर चूसता रहता, यहाँ तक कि उनकी साँस रुक सी जाती. बीच बीच में झुक कर उनके निपल मुँह में लेकर चूसता हुआ उन्हें हचक हचक कर चोदता, यहा सब कलाएँ मैंने ब्लू फिल्मों में देखी थीं इसलिए काम आईं.
चाची ने बीच में झड. कर तृप्ति से हन्फते हुए कहा भी कि लगता नहीं की यह मेरी पहली चुदाई है पर मैंने उनकी कसम देकर उनको विश्वास दिलाया. आख़िर जब मैं थक कर चूर हो गया तो चाची से गिडगिडा कर स्खलित होने की इजाज़त माँगी. तीन चार बार झड. कर भी उनकी चुदासी पूरी मिटी नहीं थी पर मेरी दशा देखकर तरस खा कर बोलीं. “ठीक है लल्ला, आज छोड़. देती हूँ, पर कल देख तेरा क्या हाल करती हूँ.”
वह आखरी पाँच मिनिट की चुदाई बहुत जोरदार थी. चाची ने भी मुझे खूब उकसाया. “चोद राजा चोद अपनी चाची को, तोड. दे मेरी कमर, फाड़. दे मेरी चूत, और चोद लल्ला, मार धक्का, हचक के मार.” मेरे शक्तिशाली धक्कों से खाट भी चरमराने लगी. लगता था कि टूट ना जाए, आस पास वाले सुन ना लें पर अब तो मुझ पर भूत सवार था.
उधर चाची भी मेरा साथ देते हुए नीचे से चूतड. उछाल उछाल कर चुदवा रही थीं. उनकी चूड़ियाँ हमारे धक्कों से हिल डुलकर बड़े मीठे अंदाज में खनक रही थीं. उस आवाज़ से मैं पूरा मदहोश हो गया था. इसलिए मैं ऐसा झडा कि मेरे मुँह से चीख निकल जाती अगर चाची ने मेरा मुँह अपने होंठों में पहले ही दबा कर ना रखा होता.
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उस अपूर्व कामतृप्ति के बाद मैं ऐसा सोया कि सुबह सूरज सिर पर आ जाने पर ही नींद खुली. चाची पहले ही उठ कर नीचे चली गयी थीं. जब मुझे जगाने चाय लेकर आईं तो नहा भी चुकी थीं. शायद मंदिर भी हो आई थीं क्योंकि सिंदूर में थोड़ा गुलाल लगा था.
साड़ी नीली साड़ी में लिपटी उस रूपवती नारी को देखकर मैं फिर उनसे लिपटकर चुंबन माँगने ही वाला था कि उन्होंने उंगली मुँह पर लगाकर मना कर दिया. मैं समझ गया कि अब दिन निकल आया है और छत पर ऐसा करना ठीक नहीं. मैं चाय पी रहा था तब चाची ने सामने बैठ कर मुस्कराते हुए पूछा. “तो कैसे कटी रात मेरे प्यारे लल्ला की?”
मैं दबे स्वरों में उनकी आँखों में देखता हुआ कृताग्यता से बोला. “शीला चाची, आपने तो मुझे स्वर्ग पहुँचा दिया. मैं तो आपका गुलाम हो गया, अब आप जो कहेंगी, वही करूँगा.” वे प्यार से हँसने लगीं. “ठीक है लल्ला, गुलाम ही बना कर रखूँगी तुझे. देख तुझे क्या क्या नज़ारे दिखाती हूँ. अब नीचे चलो और नहा लो.”
मैं नहाकर तैयार हुआ. दोपहर तक बस टाइम पास किया क्योंकि घर में काम करने वाली नौकरानी आ गयी थी और वह खाना बनाने तक और हमारा खाना होकर बर्तन माँजने तक रुकी थी. आख़िर एक बजे वह गयी और चाची ने दरवाजा अंदर से लगा लिया. मैं तो तैयार था ही, बल्कि सुबह से उनके उस मतवाले शरीर के लिए प्यासा था. तुरंत उनसे चिपक गया.
हम वहीं सोफे पर बैठ कर एक दूसरे के चुंबन लेने लगे. “लल्ला, ऐसे नहीं, चुंबन का असली मज़ा लेने को जीभ का प्रयोग ज़रूरी है.” कहते हुए चाची ने अपनी जीभ से मेरे होंठों को खोला और उसे मेरे मुँह के अंदर डाल दिया. मैं उस रसीली जीभ को चूसने लगा और उस मीठे मुखरस का खूब मज़ा उठाया. जीभ से जीभ भी लड़ाई गयी और मैंने भी अपनी जीभ चाची के मुँह में डाल कर उनके दाँत, मसूडे, तालू इत्यादि को खूब चाटा.
चूमाचाटी के बाद चाची मुझे उपर अपने कमरे में ले गयीं. अब तक मेरा लौडा तन्ना कर उठ खड़ा हुआ था. चाची ने दरवाजा बंद करके मेरे पास आकर मेरा हाथ पकडकर कहा. “लल्ला, कल तुम मुझे नंगी देखना चाहते थे ना, चलो आज तुम्हें दिखाती हूँ जन्नत का नज़ारा. पर पहले तुम अपने सब कपड़े उतारो. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैं तुरंत नग्न हो गया. थोड़ी शरम अब भी लग रही थी पर जब मैंने चाची की नज़र की चमक देखी तो शरम पूरी तरह जाती रही. मेरे भरे पूरे नग्न किशोर जवान शरीर को देखकर वे बोलीं. ” बड़ा प्यारा है मेरा गुलाम, ऐसा सबको थोड़े ही मिलता है. भरपूर गुलामी कराऊन्गि तुझसे लल्ला.” मेरे तन कर खड़े लंड को देख कर वे चाहक पड़ीं. “बहुत मस्त है लल्ला तेरा सोंटा. चल इसे नापते हैं, कितना लंबा है.”
मुझे पलंग पर बिठा कर वे एक स्केल ले आईं और मेरा लंड नापा. छह इंच का निकाला. “बड़ा मजबूत है राजा, कितना गोरा भी है, और ये सुपाडा तो देख, लगता है जैसे लाल टमाटर हो, और ये नसें, हाय लल्ला, मैं वारी जाऊ तुझपर. साल भर में अपनी चाची को चोद चोद कर आठ इंच का ना हो जाए तो कहना” कहकर वे उससे खेलने लगीं.
“चाची, अब आप भी नंगी हो जाओ ना प्लीज़.” वे मुस्काराकर खडी हो गयीं और साड़ी उतारने लगीं. “एक शर्त पर लल्ला. चुपचाप बैठना और मैं कहूँ वैसा करना. और अपने लंड को बिलकुल हाथ नहीं लगाना. नहीं तो मुठ्ठ मारने लगोगे मेरा माल देखकर.”
साड़ी और पेटीकोट निकलते ही मेरा और तन्नाने लगा. क्योंकि अब उनकी गोरी कदलीस्तम्भ जैसी मोटी जांघें नंगी थी. बस एक काली पैंटी उनके गुप्तांगों को छिपाए थी. चोली निकालकर जब उन्होंने फेंकी तो मैंने बड़ी मुश्किल से अपना हाथ लंड पर जाने से रोका.
सिर्फ़ ब्रेसियार और पैंटी में लिपटी अर्धनग्न चाची तो गजब ढा रही थी. उनका शरीर बड़ा मांसल था, थोड़ा और माँस होता तो मोटापा कहलाता पर अभी तो वह जवानी का माल था. थोड़ी देर शीला चाची ने मुझे तंग किया. इधर उधर घूमी, कमरे में चली, सामान बटोरा और टाइम पास किया; सिर्फ़ मुझे अपने अधनन्गे रूप से और उत्तेजित करने को.
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आख़िर मैं उठकर उनके सामने घुटने टेक कर बैठ गया और उनकी पैंटी में मुँहा छुपा दिया. उस मादक खुशबू को लेते हुए मैंने उनसे मुझे और तंग ना करने की मिन्नत की. मेरी हालत देखकर हँसते हुए उन्होंने इजाज़त दे दी. “ठीक है लल्ला, लो तुम ही उतारो बाकी के कपड़े.” मैंने खड़े होकर काँपते हाथों से चाची की ब्रा के हुक खोले और उसे उतारकर नीचे डाल दिया. ब्रेसियर से छूटते ही उनके भारी मांसल स्तन स्तन थोड़े लटक कर डोलने लगे. मैंने उन्हें हाथों में लेकर झुक कर बारी बारी से चूमना शुरू कर दिया.
“थोड़े लटक गये हैं राजा, दस साल पहले देखते तो कडक सेब थे.” “मेरे लिए तो ये स्वर्ग के रसीले फल हैं चाची. काश इनमें दूध होता तो मैं पी डालता.” “दूध भी आ जाएगा बेटे, बस तू ऐसे ही मेरी सेवा करता रह.” सुनकर उनकी बात के पीछे का मतलब समझ कर मुझे रोमांच हुआ पर मैं चुप रहा. गोरे उरोजो के बीच लटका काला मंगल सूत्र बड़ा प्यारा लग रहा था. किसी शादीशुदा औरत की वह निशानी हमारे उस कामसंबंध को और नाजायज़ और मसालेदार बना रही थी. मेरी नज़र देख कर चाची ने पूछा. “उतार दूँ बेटे मंगल सूत्र?” मैंने कहा. “नहीं चाची, बहुत प्यारा लगता है तुम्हारे स्तनों के बीच.”