Sister In Law Fuck
पिछले तीन दिनों की व्यस्तता के बाद भी आज मेरे चेहरे पर थकान का कोई भाव नहीं था आखिर आज मेरे घर मेरी स्वप्न सुन्दरी यानि ड्रीम गर्ल जो आने वाली थी। मैं आफिस से जल्दी घर आ गया और नहा धोकर अपनी पत्नी ‘अर्चना’ से तैयार होने को कहा। Sister In Law Fuck
अर्चना बोली, “तृप्ति से मिलने के लिये मुझे कहने की जरूरत नहीं है वैसे भी आज 2 साल बाद तृप्ति मुझसे मिलने वाली है। मैं तो बहुत पहले से तैयार बैठी हूँ, तुम ही लेट हो।”
तृप्ति अर्चना की बचपन की सहेली थी। जिसने 5 साल पहले मेरी शादी में मुझे सबसे ज्यादा छेड़ा था और शायद मुझे जीजा साली के रिश्ते का पूर्ण रूपेण आनन्द का अनुभव कराया था। मैंने घड़ी देखी उसकी ट्रेन के आने का समय 6 बजे का था और साढ़े पांच बज चुके थे.
मैंने समय ना गंवाते हुए गाड़ी की चाबी उठाई और मोबाइल उठा कर 139 डायल किया ताकि गाड़ी की वर्तमान स्थिति का जायजा लिया जा सके। इंक्वायरी से पता चला कि ट्रेन 2 घंटे लेट है। मैंने मरे मन से यह बात अर्चना को बताई।
अर्चना बोली- चलो अच्छा हुआ यहीं पता चल गया, नहीं तो स्टेशन पर 2 घंटे काटना कितना मुश्किल हो जाता।
मैं टाइम पास करने के लिये अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर उस पर गेम खेलने लगा पर समय था कि कट ही नहीं रहा था। 2 घंटे मानो बरसों लग रहे थे, बड़ी मुश्किल से 1 गेम पूरा किया ऐसा लगा जैसे 1 घंटा तो हो गया होगा, पर घड़ी में देखा तो पौने छह: ही बजे थे, समय काटे नहीं कट रहा था कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
कमोबेश यही स्थिति अर्चना की भी थी मैंने मोबाइल से तृप्ति का नम्बर डायल किया तो उसका नम्बर ‘पहुँच से बाहर है’ का संदेश मिला। मेरे लिये एक एक पल काटना मुश्किल हो रहा था। आखिर समय बिताने के लिये मैंने अर्चना को चाय बनाने का आग्रह किया, और आंख बंद करके पास पड़े हुए सोफे पर लेट गया।
‘मुझे सेहरा बंधा हुआ था, बारात लड़की वालों के दरवाजे पर खड़ी थी, मिलनी हो रही थी, प्रवेश द्वार पर मेरी निगाह गई तो गहरे नीले रंग के स्लीवलेस सूट में शायद गोरा कहना उचित नहीं होगा, इसीलिये दूधिया रंग बोल रहा हूँ, तो बिल्कुल दूधिया रंग के चेहरे वाली सुन्दरी पर मेरी निगाह जाकर टिक गई उसके सूट की किनारी पर सुनहरा गोटा लगा था।
पूरे सूट पर रंगबिरंगे फूलों का डिजाइन, कानों में मैचिंग बड़े-बड़े झुमके, बहुत खूबसूरत लहराते हुए बाल, और इन सबसे अलग उसके बिल्कुल गुलाबी होंठ, जैसे खुद गुलाब की पंखुडि़याँ ही वहाँ आकर बैठ गई हों, कहर ढा रही थीं। वहाँ बहुत सारी लड़कियों का झुंड था, सभी दरवाजे पर मेरा वैलकम करने के लिये खड़ी थी.
परन्तु मेरी निगाह रह-रह कर उस एक अप्सरा के चेहरे पर ही जा रही थी वो पास खड़ी लड़कियों से बीच-बीच में बात करके मुस्कुरा रही थी। मैं तल्लीनता से सिर्फ उसी के खूबसूरत चेहरे को निहार रहा था और उसके चेहरे में बची उस खूबसूरती को ढूंढने की कोशिश कर रहा था जिसको देखने से मैं वंचित रह गया हूँ।’
तभी अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे किसी ने धक्का दिया हो। मेरी आँख खुल गई, मैं स्वप्न से जागा तो मेरी पत्नी के हाथ में चाय की प्याली लिये खड़ी थी और मुझे जोर जोर से हिलाकर जगा रही थी। मेरी आंख खुलते ही वो मुझ पर बरस पड़ी और बोली- मेरी सहेली के आने का समय हो गया है और तुम हो कि नींद के सागर में गोते लगा रहे हो।
अब मैं उसको क्या बताता कि जो दिव्य-स्वप्न मैं देख रहा था वो मेरे कितने करीब आने वाला था! मैंने चाय की प्याली हाथ में ली और सिप-सिप करके चाय पीना शुरू किया। अब मैं अर्चना के साथ इधर उधर की बातें करके खुद को सामान्य करने की कोशिश कर रहा था।
इसे भी पढ़े – कुंवारी बुर वीर्य से लबालब भर गई
चाय खत्म करने के बाद मैंने घड़ी देखी सवा सात बज चुके थे, तभी मेरा मोबाइल बजा। मैंने देखा यह तृप्ति का ही काल था। मैंने फोन उठाया, “हैल्लो!”
उधर से तृप्ति की मीठी चाशनी जैसी आवाज आई, “हैल्लो जीजाजी, मेरी गाड़ी बस 15-20 मिनट में स्टेशन पहुँचने वाली है, बताओ कहाँ मिलोगे?”
“तुम जहाँ बोलो, वहाँ मिल लेंगे!” दिल तो सही कहना चाह रहा था पर मैंने खुद पर काबू करने की कोशिश की और तृप्ति से कोच नम्बर और सीट नम्बर पूछ कर उसको बता दिया कि मैं उसके कोच पर ही उसको लेने आ रहा हूँ। इतनी बात करके मैंने फोन काट दिया और अर्चना को जल्दी से चलने को कहा।
अर्चना बोली- अब बहुत लेट हो गया है रात हो गई है, आप कार ले जाओ, तृप्ति को ले आओ, तब तक मैं खाने की तैयारी करती हूँ। मेरी तो जैसे लाटरी ही लग गई। आज बरसों के बाद मैं तृप्ति को देखने वाला था और 4 किलोमीटर का सफर मुझे उसके साथ अकेले तय करना था अपनी कार में।
यही सोचते सोचते मैं बाहर आ गया गैराज से कार निकाली और स्टेशन की ओर चल दिया। जब तक मैं स्टेशन पर पहुँचा तो उसकी गाड़ी के पहुंचने की घोषणा हो चुकी थी। मेरे प्लेटफार्म पर पहुँचने से पहले तृप्ति की गाड़ी वहाँ खड़ी थी। मैंने तेजी से कोच नम्बर बी-2 के दरवाजे की तरफ अपने कदम बढ़ाये और अन्दर जाकर उसकी सीट नम्बर 16 को प्यार से निहारा।
तृप्ति वहाँ नहीं थी, मुझे उस सीट से जलन हो रही थी जिस पर 7 घंटे का सफर तय करके तृप्ति आ रही थी, सोचा कि काश इस सीट की जगह मेरी गोदी होती तो कितना अच्छा होता। सोचते सोचते मैं गाड़ी से बाहर आया और तृप्ति को फोन मिलाया। तभी किसी ने मेरी पीठ पर हाथ मारा, मैंने मुड़ कर देखा तो चुस्त पंजाबी सूट में मेरे पीछे तृप्ति खड़ी मुस्कुरा रही थी। मैं उसके गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठों को देखकर वहीं जड़वत हो गया।
तभी तृप्ति बोली, “जीजा जी, आपके साथ घर ही जाऊँगी स्टेशन पर ऐसे मत घूरो, घर जा कर घूर लेना।”
मैंने एक बार फिर से खुद को नियंत्रित करने की कोशिश की और बिना कुछ भी बोले उसके हाथ से अटैचीकेस लिया और वापस कार की तरफ चल दिया।
तृप्ति भी मेरे पीछे-पीछे चलती हुई बोली, “लगता है जीजाजी नाराज हैं मुझसे कोई बात भी नहीं कर रहे।”
अब मैं उस को क्या बताता कि 5 साल बाद उसको दोबारा देखकर मैं अपने होशोहवास खो चुका हूँ, फिर भी मैंने बात को सम्भालने की कोशिश करते हुए बोला, “ऐसा नहीं है यार, दरअसल अर्चना घर में तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रही है तो इसीलिये तुमको जल्दी से जल्दी से घर ले जाना चाहता हूँ।”
तृप्ति बोली, “जीजाजी, इसीलिये तो मैं आपकी फैन हूँ क्योंकि आप अर्चना का बहुत ध्यान रखते हैं मेरे हिसाब से आप नम्बर 1 पति हो इस दुनिया के।”
मैं उसकी तरफ देखकर मुस्कुराया और उसका अटैची केस कार की डिक्की में धकेल दिया। मैंने कार का स्टेयरिंग सम्भाला और बराबर वाली सीट पर उसको बैठाया। अब मेरे सपनों की तृप्ति मुझसे बस कुछ इन्च की दूरी पर बैठी थी और मैं उसकी खुशबू को अपने नथुनों में महसूस कर पा रहा था।
मैंने धीरे धीरे कार को आगे बढ़ाना शुरू किया। कोशिश कर रहा था कि यह 4 किलोमीटर का सफर 4 घंटे में कटे और तृप्ति से इधर उधर की बातें करके खुद को संयत कर लूँ। तभी तृप्ति सीट पर मेरी तरफ तिरछी हो गई और अपना दांया पांव सीट पर रखके बैठ गई अब मैं थोड़ी सी नजर घुमाकर उसको अच्छी तरह देख सकता था, जैसे ही मैंने उसकी तरफ नजर घुमाई मेरी निगाह उसके गले में पड़ी गोल्डन चेन पर गई।
उसके गले के नीचे दूधिया बदन पर वो गोल्डन चेन चमक रही थी। मेरी निगाह उस चैन के साथ सरकती हुई उसके लॉकेट पर गई। लाकेट का ऊपरी हिस्सा जो चेन में फंसा हुआ था वो ही दिखाई दे रहा था बाकी का लॉकेट नीचे उसकी दोनों पहाडि़यों के बीच की दूधिया घाटी में कहीं खो गया था। मेरी निगाहें उस लाकेट के बहाने उस दूधिया घाटी का निरीक्षण करने लगी।
तभी शायद उसने मेरी निगाहों को पकड़ लिया और बोली, “जीजाजी, काबू में रहिये, सीधे घर ही चल रहे हो! ऐसा ना हो कि घर जाते ही अर्चना आपकी क्लास लगा दे।”
इतना बोलकर वो हंसने लगी। मैं एकदम सकपका गया और निगाह सीधी करके गाड़ी चलाने लगा। उसने जो लाइन अभी एक सैकेण्ड पहले बोली, मैं मन ही मन उस को समझने की कोशिश करने लगा कि वो मुझे निमंत्रण दे रही थी या चेतावनी। जो भी था, पर मुझे उसका साथ अच्छा लग रहा था और मैं चाह रहा था कि काश समय कुछ वक्त के लिये यहीं रुक जाये।
यही सोचते सोचते पता ही नहीं चला कि कब हम घर पहुँच गये। अर्चना दरवाजे पर ही खड़ी हम लोगों का इंतजार कर रही थी। जैसे ही मैंने गाड़ी रोकी, तृप्ति कूद कर बाहर निकली और अर्चना को गले से लगाकर मिली। मैं भी गाड़ी गैराज में लगाकर तृप्ति का सामान लेकर घर के अंदर दाखिल हुआ।
तब तक तृप्ति मेरे सोफे पर आसन ग्रहण कर चुकी थी। अर्चना उसके सामने वाले दूसरे सोफे पर बैठी थी। मैं तेजी से अंदर जाकर सोफे पर तृप्ति के बराबर में जाकर बैठ गया मैं नहीं चाहता था कि किसी भी स्थिति में मेरे हाथ से वो जगह निकले। दोनों सहेलियाँ एक दूसरे को गले लगाकर मिलीं।
मैंने भी मन में सोचा कि एक बार यह अप्सरा मुझसे भी गले मिल ले पर शायद मेरी किस्मसत ऐसी नहीं थी पर तृप्ति के बराबर में बैठने का सुख मैं अनुभव कर रहा था। तभी अर्चना ने आदेश दिया कि खाना तैयार है, आप दोनों फ्रैश हो जाओ।
मैंने तुरन्त तृप्ति को बाथरूम का रास्ता दिखाया और तौलिया उसके हाथ में थमाया। वो मुँह पर पानी मार कर मुँह धोने लगी और मैं उसके चेहरे पर पड़ने के बाद गिरने वाली पानी की बूंदों को देख रहा था एक एक बूंद मोती की तरह चमक रही थी मुँह और हाथ धोने के बाद तौलिये से पोंछकर वो बाहर आ गई और मैं अंदर जाकर हाथ मुँह धोने लगा।
बाहर आकर मैंने भी उसी तौलिये से मुँह पौंछा। तृप्ति की खुशबू उस तौलिये पर मैं महसूस कर रहा था। मैंने देखा कि दोनों सहेलियाँ मिलकर खाना लगा रही हैं। डाइनिंग टेबल पर घरेलू बातचीत और हल्का-फुल्का मजाक चलता रहा। खाना खाकर हम लोग टीवी देखकर आइसक्रीम खाने लगे।
तभी अर्चना ने कहा कि तृप्ति अभी तू सो जा कल सुबह उठकर तुझे औघड़नाथ मंदिर ले चलेंगे, घूम आना।
मैं समझ गया कि सोने का आदेश मिल चुका है और एक आदर्श पति की तरह मैं दूसरे कमरे में सोने चला गया क्योंकि मेरे कमरे में तो आज मेरी पत्नी के साथ मेरी स्वप्न सुन्दरी को सोना था। मैं प्रात:काल अपने समय पर उठा और अपना ट्रैक सूट पहन कर जागिंग के लिये तैयार हुआ तभी देखा कि अर्चना और तृप्ति बातों में तल्लीन थी।
मैंने पूछा, “सारी रात सोई नहीं क्या?”
तृप्ति बोली, “जीजा जी, आज गलती से मैं आपके बिस्तर पर सो गई इसीलिये आपकी बीवी को नींद नहीं आई। लगता है आपने इसकी आदत खराब कर दी है, इसको आपकी बांहों में सोना अच्छा लगता है, तभी सुबह 5 बजे उठ गई और मुझे भी जगा दिया।”
मैंने मुस्कुरा कर कहा, “हम जिसको प्यार देते हैं इतना ही देते हैं कि फिर वो हमारे बिना रह नहीं पाता।”
“तभी तो आपसे टिप्स लेने आई हूँ कि कैसे आप जैसा पति ढूंढू अपने लिये? जो मुझे भी इतना ही प्यार करे।” इतना बोलकर वो मुस्कुराने लगी।
मेरे तो पूरे बदन में यह सुनकर घंटियाँ बजने लगी। मन हो रहा थी कि सुबह की उस अलसाई सी खूबसूरती को आगे बढ़कर बाहों में भर लूँ, पर खुद पर नियंत्रण करते हुए मैंने अर्चना को बोला- मैं टहलने जा रहा हूँ!
तभी तृप्ति बोली, “रुकिए जीजा जी, मैं भी चलती हूँ, आपके साथ। थोड़ा सा फ्रैश हो जाऊँगी। फिर वापस आकर, मंदिर जाने के लिये तैयार भी होना है।”
अर्चना बोली, “आप लोग जल्दी आ जाना, तब तक मैं नहा धोकर तैयार हो जाती हूँ।”
पत्नी रानी का आदेश प्राप्त करने के बाद मेरे कदम बाहर दरवाजे की तरफ बढ़े, मेरे पीछे पीछे तृप्ति भी बाहर आ गई, कुछ तो सुबह सुबह बाहर का मौसम वैसे ही खुशगवार होता है, पर आज मुझे ज्यादा ही खुशगवार लग रहा था, मैं तृप्ति से ढेर सारी बातें करना चाहता था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मुझे पता था कि समय बहुत कम है 4 दिन बाद तृप्ति वापिस चली जायेगी। पर मेरे साथ समस्या यह थी कि मेरी इमेज पत्नी-भक्त की थी और मैं किसी के सामने अपनी को छवि खराब नहीं करना चाहता था, और वास्तव में मुझे शायद अर्चना से अधिक प्यार किसी से नहीं था।
पर यह भी सत्य है कि तृप्ति को सामने पाकर मैं उसकी अद्वीतीय सुन्दरता पर आसक्त था। इसी अंर्तद्वन्द्व में मैं हल्के हल्के दौड़ रहा था। मेरे साथ साथ तृप्ति भी दौड़ लगा रही थी। थोड़ी ही देर में हम पार्क तब पहुँच गये, पर तब तक तृप्ति तो थक चुकी थी और बोली, “जीजा जी वापिस चलो, मैं और नहीं दौड़ सकती।”
“बस इतना ही स्टेमिना है तुम्हारा? बातें तो बहुत बड़ी बड़ी करती हो।” मैंने कहा।
मेरे इतना बोलते है उसको स्त्रीयोचित जोश आ गया और फिर से मेरे पीछे दौड़ने लगी। पार्क का एक चक्कर लगाते ही वो बोली, “जीजा जी अब तो मैं गिरने वाली हूँ, खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा।”
मैंने उसको एक बैंच पर बैठने की सलाह दी और बस 2 चक्कर लगाने के बाद घर चलने को कहा। पर जैसे ही मैं एक चक्कर लगाकर वहाँ वापस आया तो देखा कि वो पसीने से तरबतर बैंच पर लेटी थी और बुरी तरह हांफ रही थी, मैंने नजदीक जा कर पूछा, “क्या हुआ?”
“पानी!” उसने हल्की सी आवाज में कहा। मैं स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए सामने नल पर पानी लेने को भागा, पर मेरे पास पानी लेने के लिये कोई गिलास तो था ही नहीं। मैंने नल चलाया और दोनों हाथ की औंक बनाकर पानी भरा और उसके लिये लेकर आया, मैंने अपने हाथ लेटी अवस्था में ही उसके गुलाब की पंखुड़ी जैसे खूबसूरत होंठों पर लगा दिया और उसको पानी पिलाने लगा, वो सारा पानी पी गई।
मैंने पूछा “और लाऊँ?”
अब उनसे लेटे लेटे ही अपनी कातिल नजरों को मेरी तरफ घुमाया और मुस्कुरा कर बोली, “अगर इतने प्यार से पानी पिलाओगे तो सारा दिन यहीं लेटकर पानी पीती रहूँगी मैं।”
मैं तो उसका जवाब सुनकर धन्य हो गया। मन ही मन गद्गद् मैंने वापस चलने को पूछा, तो वो दो मिनट रुकने का इशारा करने लगी। मैं उसके बराबर में ही खड़ा था, कि अचानक मेरी निगाह उसके टॉप के अन्दर फंसी पर्वत की दोनों चोटियों पर गई, जो ऊपरी आवरण को चीर कर बाहर आने को बेताब लग रही थी।
मेरी तो निगाह वहाँ जाकर एकदम ही रुक गई।उन दोनों को ऊपर नीचे होते देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे वो मेरे जीवन में आने वाले किसी तूफान की मौन चेतावनी दे रहे हों। गौर से देखने पर मुझे अहसास हुआ कि तृप्ति ने टॉप के नीचे कोई अधोवस्त्र नहीं पहना था.
क्योंकि उन पहाडि़यों की ऊपरी चोटी पर स्थित अंगूर के दाने का अहसास हो रहा था, ऐसी अनुभूति हो रही थी जैसे वर्षों से प्यासे किसी राही को एक छोटे से जल स्रोत का पता चल गया हो, मेरी शारीरिक परिस्थितियों ने विषम रूप धारण करना प्रारम्भ कर दिया, जिसकी परिणीति मेरी पैंट के ऊपरी मध्य हिस्से में देखी जा सकती थी।
मुझे जैसे ही लिंग जागृत होने का अहसास हुआ। मैंने खुद को संभाला और तृप्ति की तरफ देखा तो पाया कि वो मेरे लिंगोत्थान की प्रक्रिया का अध्ययन कर रही थी। इस बार पकड़े जाने की बारी उसकी थी। अचानक हम दोनों की निगाहें एक दूसरे से मिली और तृप्ति ने शरमा कर नजरें नीची कर ली।
मैंने पूछा “घर चलें?”
तो बिना कोई आवाज किये तृप्ति से सहमति में सिर हिला दिया और मेरे पीछे पीछे चल दी। हम लोगों ने बात करते हुए पैदल घर की ओर प्रस्थान किया। माहौल हल्का करने के लिये मैंने ही बात करनी शुरू की।
“हाँ तो आज मैडम का क्या क्या प्रोग्राम है?”
“हम तो आपके डिस्पोजल पर हैं जो प्रोग्राम आप बना देंगे, वही हमारा प्रोग्राम होगा।”
“पक्का?”
“हाँ जी!”
“देख लो बाद में कहीं मुकर मत जाना अपनी बात से?”
“अरे जीजाजी, मुझे पता है आप कभी मेरा बुरा नहीं करेंगे और आप तो मेरे ड्रीम ब्वा्य हो, मैं आपकी हर बात मानती हूँ।”
मैंने सोचा कि लगे हाथ मैं भी कुछ अरमान निकाल लूँ, मैंने कहा, “यार तुम भी मेरी ड्रीम गर्ल हो! पर पहले क्यों नहीं मिली। नहीं तो आज अर्चना की जगह तुम ही मेरे साथ होती मेरी ड्रीम गर्ल!”
‘हा..हा..हा..हा..’ वो हंसने लगी और मुस्कुराते हुए बोली, “लगता है आज घर जाकर आपकी सारी हरकतें अर्चना को बतानी पड़ेंगी, वैसे भी आप इधर उधर बहुत ताकते हो।”
“हर इंसान अपनी जरूरत को ताकता है साली जी, मैं अपनी जरूरत को ताकता हूँ और आप अपनी।” यह बोलकर मैं मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखने लगा।
उसने एकदम मेरी ओर मुस्कुरा कर देखा पर मुझे अपनी ओर देखकर आँखें नीची कर ली।
इसे भी पढ़े – रंडी की तरह रात भर चुदवाती रही चाची मुझसे
‘हाय रे…’ उसकी यह कातिल अदा ही मेरी जान निकालने के लिये काफी थी। आज पहली बार मुझे लगा कि शायद मैं ही बुद्धू था और सोचा कि कोशिश करके देखते हैं क्या पता बात बन ही जाये। मैंने फैसला किया कि कुछ सधे हुए तरीके से प्रयास करूँगा ताकि यदि बात ना भी बने तो बिगड़े तो बिल्कुल भी नहीं।
मैंने वार्तालाप जारी रखते हुए दिमाग चलाना भी जारी रखा और बीच का रास्ता सोचते सोचते ही कट गया, घर आ गया। घर पहुँचकर मैंने देखा कि अर्चना नहा-धोकर तैयार खड़ी थी उसके गीले बालों की महक मुझे बहुत पसन्द थी तो मैं जाकर उससे चिपक गया पीछे-पीछे तृप्ति भी मेरे कमरे में आ गई, और हंसकर बोली, “जीजा जी सम्भल कर, घर में कोई और भी है!”
मैंने भी थोड़ी सी हिम्मत दिखाते हुए कहा, “कोई और नहीं है बस मेरी प्यारी साली है, और साली तो आधी घरवाली होती है।”
“यह बात तो सही है।” यह बोलकर अर्चना ने मेरी बात का समर्थन किया तो जैसे मुझे संजीवनी मिल गई।
मैंने तृप्ति को नहाने के लिये कहा और खुद ब्रश करने चला गया।
थोड़ी ही देर में तृप्ति नहाकर बाथरूम से बाहर निकली तो ऐसा लगा जैसे कोई अप्सरा सीधे स्वर्ग से उतरकर आ रही हो, उसके गीले बालों से टपकती हुई पानी की बूंदें किसी मोती की तरह लग रही थी। उसके गोरे गालों पर भी पानी की बूंदें मादक लग रही थी सफेद रंग के आसमानी किनारी वाले सूट में तृप्ति किसी कामदेवी से कम नहीं लग रही थी, स्लीवलैस सूट गहरा गोल गला अन्दर तक की गोलाईयाँ दिखा रहा था।
वो मुझे देखकर मुस्कुराने लगी और मैं उसको देखकर!
तभी वो बोली, “नहाना नहीं है क्या?”
मैंने कहा, “आज तुम अपने हाथ से नहला दो, क्या पता मैं भी इतना सुन्दर हो जाऊँ!”
वो हंसते हुए बोली, “अर्चना है ना, हम दोनों को मार मार कर बाहर निकाल देगी।”
तभी अन्दर से अर्चना की आवाज आई- अगर तृप्ति तैयार है नहलाने को, तो मुझे कोई परेशानी नहीं है।
इतना सुनकर तृप्ति ने शर्म से सर नीचे झुका लिया और मुझे बाथरूम की तरफ धक्का देकर बोली- अब जाओ और नहा लो।
मैं भी समय न गंवाते हुए तुरन्त नहाने चला गया।
मैं तेजी से नहाकर बाहर निकला और तैयार होकर और बाहर जाकर गैराज से कार की जगह बाईक निकाल ली। अब देखना यह था कि बाईक पर मेरे पीछे अर्चना बैठती है या तृप्ति, क्योंकि मैं इस मामले में प्रयास तो कर सकता था जबरदस्ती नहीं।
दोनों सहेलियाँ बातें करती हुई बाहर आ गई, तभी अर्चना ने तृप्ति से बीच में बैठने को कहा तो तृप्ति ने हिचकते हुए मनाकर दिया।
अर्चना ने कहा, “तू दुबली पतली है बीच में आराम से आ जायेगी, अगर मैं बीच में बैठूंगी तो तू पीछे से गिर सकती है।”
परिस्थिति को समझते हुए तृप्ति बीच में बैठ गई और मुझे लगा जैसे बाबा औघड़नाथ ने घर से ही मेरी मुराद सुन ली।
मैंने बाईक स्टार्ट की और दोनों को बैठाकर धीरे धीरे मंदिर की तरफ बढ़ने लगा मैं इस सफर का पूरा पूरा आनन्द लेना चाहता था। बार बार तृप्ति के दोनों खरबूजे मेरी कमर में घुसे जा रहे थे और मुझे पूरा आनन्द दे रहे थे। कुछ दूर चलने के बाद शायद तृप्ति को समझ में आ गया कि मैं इस आनन्द का मजा ले रहा हूँ, और उसने मेरी कमर में हल्के से चिकोटी काटी, मेरे मुँह से आवाज निकली, “आहहहहहह…!”
“क्या हुआ?” अर्चना ने पूछा।
“कुछ नहीं!” बोलकर मैंने बाईक आगे बढ़ा दी और फिर से मजा लेने लगा।
तभी मेरी निगाह बाईक पर लगे पीछे देखने वाले शीशे पर गई तो देखा कि तृप्ति हल्के हल्के मुस्कुरा रही है और बार बार अपने मोटे मोटे खजबूजे मेरी कमर में टकराकर पीछे कर रही थी। मैं समझ गया कि वो भी मौके का मजा ले रही है। मैंने धीरे धीरे आगे बढ़ने का निर्णय किया।
मंदिर से दर्शन करने के बाद वापिस लौटते समय तृप्ति खुद ही मुझसे सटकर बीच में बैठ गई और इस बार मुझे एक बार भी प्रयास नहीं करना पड़ा। तृप्ति खुद ही मुझे आगे से पकड़ कर बैठ गई और दोनों खरबूजों को मेरी कमर में गाड़ दिया। मेरे लिये यह शुभ संकेत था।
घर पहुँच कर जल्दी से नाश्ता करके मैं बाहर अपने काम के लिये निकल गया। जब 2 घंटे बाद जब वापस आया तो दोनों को आपस में बातें करते हुए पाया। रविवार होने के कारण मेरे पास बहुत समय था। बस उसको प्रयोग कैसे करूँ, यह सोचने लगा। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
1 बजे मैंने अर्चना से कहा, “तुम खाना बना लो, खाना खाकर हम लोग 3 बजे फिल्म देखने चलेंगे और शाम को 6 बजे के बाद किसी मॉल में चलेंगे और रात का खाना बाहर से खाकर ही वापस आयेंगे।”
मेरी बात सुनकर दोनों सहेलियाँ बहुत खुश हो गई। अर्चना तुरन्त खाना बनाने चली गई। मैं और तृप्ति दोनों बैठकर टीवी देखने लगे। तृप्ति मेरे बिल्कुल बराबर में बैठी टीवी देख रही थी, मैं टीवी के बजाय बार-बार तृप्ति को ही देख रहा था।
तृप्ति ने मेरी निगाह को पकड़ा और मुस्कुराने लगी, बोली, “जीजू, टीवी की हीरोइनें मुझसे कहीं ज्यादा सुन्दर हैं, उधर ध्यान दो।”
मैंने कहा, “बिल्कुल ध्यान उधर ही है।”
“पर आप तो मुझे देख रहे हो।” उसने नजरें झुकाते हुए कहा।
मैं बोला, “हां, बिल्कुल, दरअसल मैं टीवी में दिखने वाली हीरोइनों को अपने बराबर में बैठी हीरोइनों से तुलना कर रहा हूँ।”
“क्या तुलना की आपने?” उसने पूछा।
मैं बोला, “होठों को मिलाया, तो देखा कि तुम्हारे होंठ बिना लिप्स्टिक के जितने गुलाबी है, उतना गुलाबी करने के लिये उनको लिपस्टिक लगानी पड़ रही है। तुम्हारे गाल टमाटर की तरह लाल हैं। देखते ही खाने को दिल करता है। तुम्हारी दोनों स्लीवलेस गोरी गोरी बाजू, ऐसा लग रहा है, जैसे एक तरफ गंगा और दूसरी तरफ जमना एक साथ नीचे उतर रही हों। तुम्हारे लहराते हुए बाल, दिल पर छुरियाँ चलाते हैं।”
मैंने देखा कि उनसे शरमा कर नजरें नीचे कर ली। पर एक बार भी उनसे मेरी किसी बात का विरोध नहीं किया। मेरे लिये तो यह भी शुभ संकेत ही था। पर मैं जो कहना चाह रहा था, बहुत प्रयास के बाद भी हिम्मत नहीं कर पा रहा था।
पर कोशिश करके मैंने अपनी बात को जारी रखा और बोला, “भगवान ने तुमको यह तो सुन्दरता दी है, इसकी तो कोई सानी ही नहीं है।”
अचानक उसने निगाह ऊपर की और पूछा, “क्या?”
मैंने तुरन्त उसके वक्ष की तरफ इशारा किया, यह देखकर उसने अपने दुपट्टे से अपने वक्ष को ढकने की कोशिश की।
तभी मैंने उनका हाथ रोका, “कम से कम ऐसा अन्याय मत करो, दूर से ही सही कम से कम नैन सुख ले लेने दो।”
वो बोली, “जीजू, आप शायद कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ रहे हो।”
“अरे यार, साली आधी घरवाली होती है, कम से कम दूर से तो उसकी सुन्दरता निहारने का अधिकार है ना?” यह बोलकर मैंने उसकी दूधिया बाजू पर बहुत प्यार से हाथ फेरा, तो मुझे ऐसा लगा जैसे किसी मखमली गद्दे पर हाथ फेरा हो।
“सीईईई…!” की आवाज निकली उसके मुँह से।
पर मुझे लगा कि उसको मेरा इस तरह हाथ फेरना अच्छा लगा, तो मैंने एक बार और प्रयास किया।
“आहहह…” उसके मुँह से निकली।
मैंने पूछा-क्या हुआ?
उसने रसोई की तरफ झांककर देखा और वहाँ से संतुष्ट होकर बोली, “जीजू गुदगुदी होती है! रहने दो ना!”
उनका इतना बोलना था, कि मैंने तुरन्त अपना हाथ पीछे खींच लिया, और चुपचाप टीवी देखने लगा। उसने बड़ी मासूमियत से मेरी तरफ देखा और पूछा, “नाराज हो गये क्या?”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
वो बोली, “अच्छा कर लो, पर धीरे धीरे करना, बहुत गुदगुदी होती है।”
मैंने तुरन्त आज्ञा का पालन किया और फिर से उसकी गोरी-गोरी बाहों पर अपनी उंगलियों को फेरना शुरू कर दिया। इस बार उनके होठों से कोई आवाज नहीं निकल रही थी, पर उसके शरीर में होने वाले कंपन को मैं महसूस कर पा रहा था। अब हम दोनों का ध्यान टीवी को छोड़कर अपनी अंगक्रीड़ा पर केन्द्रित हो गया था और हम उसका पूरा पूरा आनन्द ले रहे थे। मैंने गौर से देखा उसका आंखें बंद थी और पूरे बदन में कंपन था।
उसने रसोई की तरफ झांककर देखा और वहाँ से संतुष्ट होकर बोली, “जीजू गुदगुदी होती है! रहने दो ना!”
उनका इतना बोलना था, कि मैंने तुरन्त अपना हाथ पीछे खींच लिया, और चुपचाप टीवी देखने लगा। उसने बड़ी मासूमियत से मेरी तरफ देखा और पूछा, “नाराज हो गये क्या?”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
वो बोली, “अच्छा कर लो, पर धीरे धीरे करना, बहुत गुदगुदी होती है।”
मैंने तुरन्त आज्ञा का पालन किया और फिर से उसकी गोरी-गोरी बाहों पर अपनी उंगलियों को फेरना शुरू कर दिया। इस बार उनके होठों से कोई आवाज नहीं निकल रही थी, पर उसके शरीर में होने वाले कंपन को मैं महसूस कर पा रहा था।
अब हम दोनों का ध्यान टीवी को छोड़कर अपनी अंगक्रीड़ा पर केन्द्रित हो गया था और हम उसका पूरा पूरा आनन्द ले रहे थे। मैंने गौर से देखा उसका आंखें बंद थी और पूरे बदन में कंपन था। उसके गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठों पर भी हल्का हल्का कंपन था।
मैंने बहुत धीमी आवाज में कहा- तृप्ति, तुम्हारे होंठ बहुत सुन्दर हैं। उनसे मेरी तरफ हल्की सी आँख खोल कर देखा और पूछा, “सिर्फ होंठ क्या?”
“नहीं, सुन्दर तो पूरा बदन है तुम्हारा, पर कहीं से तो शुरुआत करनी थी ना!” मैं बोला।
“ओह, तो यह शुरुआत है, जनाब की; तो अन्त कहाँ करने वाले हो?” पूछकर वो कनखियों से मुझे देखने लगी।
अब मैं तो कोई जवाब ही नहीं दे पाया उसको, मैंने कहा- मैंने तुमको आज तक साड़ी में नहीं देखा है, मेरा बात मान लो, आज मूवी देखने साड़ी पहन कर चलना। “बस इतनी सी बात जीजू, आपका हुक्म सर-आखों पर!”
तभी अर्चना की आवाज आई- खाना तैयार है। जल्दी से डायनिंग टेबल पर आइये। बहुत बुरा लग रहा था उस समय वहाँ से उठना। पर पत्नी रानी का आदेश था तो पालन तो करना ही था। हम लोग बाहर आ गये और जल्दी से खाना खाकर तैयार हो कर मूवी देखने निकल गये।
इसे भी पढ़े – ठाकुर मेरी बहन को बेदर्दी से चोदने लगा
इस बार मैंने फिर से बाईक का प्रयोग करना ही उचित समझा। चूंकि अर्चना ने कोई विरोध नहीं किया इसीलिये मुझे कोई परेशानी भी नहीं हुई। तृप्ति ने क्रीम रंद की हल्की कढ़ाई वाली साड़ी पहनी थी। पतली स्टैप वाला ब्लाउज, जिसमें से उसके दोनों गोरे कंधे साफ दिखाई दे रहे थे। ब्लाउज के अंदर से झांकता दूधिया यौवन जैसे मुझे पुकार रहा था।
मैं खुद बहुत अधीर था। पर खुद पर काबू रखना बहुत जरूरी था। मैं अर्चना से बहुत प्यार करता था। उसकी निगाह में गुनाहगार नहीं बनना चाहता था। और मैं यह भी नहीं चाहता था कि कहीं से भी तृप्ति को ये महसूस हो कि मैं सिर्फ उसके यौवन का दीवाना हूँ इस सबके बावजूद भी मैं दिल के हाथों मजबूर था। दिमाग तो कल रात से बस एक ही काम कर रहा था।
तृप्ति मेरे पीछे बाईक पर बैठ चुकी थी। इस बार वो पूरा सहयोग कर रही थी। या शायद मेरे साथ सहज महसूस करने लगी थी। पर मुझे अच्छा लग रहा था। अर्चना के बैठने के बाद मैंने बाईक को धीरे धीरे आगे बढ़ाया। तृप्ति से हाथ आगे करके मुझे कस के पकड़ लिया, और मुझसे चिपक कर बैठ गई।
थियेटर पहुँच कर हमने मूवी ’रब ने बना दी जोड़ी’ की तीन टिकट ली और अन्दर जा पहुँचे। हमेशा की तरह अर्चना कोने वाली सीट पर बैठ गई और मैं उसके बराबर में। तृप्ति मेरे बराबर में आकर बैठ गई। इस प्रकार मैं अब दोनों के बीच में था, और दोनों ओर से महकती खुशबू का आनन्द ले रहा था।
हॉल में अंधेरा हो चुका था। जब से तृप्ति आई थी मैंने एक बार भी अर्चना से छेड़छाड़ नहीं की थी इसीलिये मैंने पहले अर्चना को चुना और उसकी बाजू को पकड़ कर उस पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। अर्चना ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। तो मैंने वो ही हरकत जारी रखी थोड़ी ही देर में अर्चना पर मेरी हरकत का असर दिखाई देने लगा।
उसकी सांसें तेज चलने लगी। उसने अपना हाथ मेरी जांघ पर रख लिया और वो भी धीरे धीरे मेरी जांघ सहलाकर आनन्दानुभूति करने लगी। हम लोग अपनी अंगक्रीड़ा और मूवी का मजा एक साथ ले रहे थे। हम दोनों की इस प्रेमक्रीड़ा के फलस्वरूप मेरा लिंग भी अंगड़ाई लेने लगा.
जैसे-जैसे अर्चना मेरी जांघ पर मस्ती से हाथ फेर रही थी, वैसे वैसे ही उसका परिणाम अपने लिंग पर मैं महसूस कर रहा था। मैंने घूमकर अर्चना की तरफ देखा उसकी निगाह सामने फिल्मी के पर्दे पर थी और हाथ की उंगलियाँ मेरी जांघों पर।
और शायद उसको भी अनुमान हो गया था कि उसकी इस धीमी मालिश का असर होने लगा है अचानक उसने मेरी जांघ से हाथ हटाया और सीधे मेरा लिंग पेंट के उपर से ही पकड़ लिया। उस समय वो अपने पूर्ण रूप में था। अर्चना के हाथ में जाने के बाद तो वो नाचने लगा।
अचानक मेरे मुँह से ‘हम्म…’ की आवाज हुई। शायद मेरे बांई ओर बैठी तृप्ति ने उस आवाज को सुना। उनसे मेरी तरफ देखा। सौभाग्य ऐसा कि उस समय मेरी निगाह भी उसी को निहार रही थी। हम दोनों की नजरें आपस में टकराई तो उसने बिना कोई आवाज किये नजरों के इशारे से आँखें ऊपर की ओर मटका कर पूछा- क्या हुआ?
मैंने भी बिना किसी आवाज के सिर्फ गरदन हिला कर ही जवाब दिया- कुछ नहीं। पर तब तक वो मेरे साथ और मेरे द्वारा होने वाली हर हरकत को देख चुकी थी। इस बार जब हमारी निगाहें मिली तो उसने मुस्कुरा कर निगाहें नीची कर ली और मैंने मौका ना गंवाते हुए अपने बांयें हाथ से उसकी दांयीं बाजू को पकड़ा और उस पर धीरे धीरे उंगलियों फिराने लगा।
उसने बाजू छुड़ाने की नाकाम कोशिश की पर मैंने मजबूती से पकड़ी थी इसीलिये वो बाजू नहीं छुड़ा पाई। एक प्रयास के बाद उसने समर्पण कर दिया। और अब मेरे दोनों हाथ हरकत कर रहे थे दांया अर्चना के साथ और बांया तृप्ति के साथ हालांकि तृप्ति से मुझे मेरी हरकत का प्रतिफल नहीं मिल रहा था। पर अर्चना से मिलने वाले प्रतिफल से मैं संतुष्ट था।
तभी मैंने महसूस किया कि तृप्ति ने अपना बांये हाथ से मेरे बांये हाथ की उंगलियों पकड़ ली हैं और अब मेरी और उसकी उंगलियों आपस में खेल रही थी। अर्चना का हाथ मेरी पैंट के ऊपर लिंग पर हल्के हल्के चल रहा था। तृप्ति का ध्यान मूवी से हट चुका था। अब वो लगातार मेरे हाथ की उंगलियों से खेल रही थी और उसकी निगाहें अर्चना के उस हाथ पर थी जो लगातार मेरे लिंग के ऊपर से खेल रहा था।
इंटरवल में कुछ खाने पीने के बाद मूवी फिर से शुरू हुई और हम लोगों की क्रीड़ा भी। मूवी का पूरा पूरा आनन्द लेने के बाद हम लोग मॉल में चले गये और इधर उधर घूमते रहे वातावरण का आनन्द लेते रहे। अर्चना को अकेले में साथ पाकर मैंने आज अपनी सैक्स की इच्छा जाहिर कर दी।
अर्चना ने कहा, “तृप्ति के जाने तक सब्र कर लो। उसके बाद जो चाहो कर लेना।”
मैं भी अर्चना को छेड़ने के मूड में था, मैंने कहा “देख लो, तुमको पता है मुझे रोज ही तुम्हारी जरूरत पड़ती है एक रात मैं बिना तुम्हारे गुजार चुका हूँ, ऐसा ना हो कहीं गलती से मेरा हाथ तुम्हारी जगह तुम्हारी सहेली पर चला जाये।”
इतना बोल कर मैं हंसने लगा।
“मार खाओगे तुम!” कहकर अर्चना ने भी मेरे साथ हंसना शुरू कर दिया।
तभी तृप्ति आ गई और बोली- क्या बात बहुत खुश लग रहे हो दोनों, क्या हुआ? अर्चना ने कहा, “ये तेरे जीजा जी तुझे आधी से पूरी घरवाली बनाने के मूड़ में थे जो जरा इनको प्यार से समझा दिया कि कहीं पूरी के चक्कर में से आधी भी हाथ से ना निकल जाये।”
इसी तरह हंसते, बात करते हम लोग रात को डिनर करके घर वापस आ गये। घर आते ही अर्चना थकान के कारण तुरन्त सोने की तैयारी करने लगी। पर मेरी आँखों से तो नींद कोसों दूर थी मुझे तो आज कुछ करना था मूवी के बीच में मेरा ऐसा मूड बन चुका था कि अब रुकना मुश्किल था।
तभी अर्चना की आवाज आई, “तृप्ति, मैं तो बहुत थक गई हूँ, सोने जा रही हूँ। फ्रिज में दूध रखा है अपने जीजू को पिला देना।”
तब तक मैं टीवी ऑन करके न्यूज देखने लगा और तृप्ति फ्रैश होने चली गई। मैं भी फ्रैश होकर निक्कर और बनियान पहन कर टीवी देखने लगा। फ्रैश होने के बाद तृप्ति भी ड्राइंग रूम में मेरे साथ बैठ कर टीवी देखने लगी। 5 मिनट बाद तृप्ति बोली, “जीजू मैं चेंज करके आती हूँ।”
“अर्चना सो गई क्या?” मैंने पूछा।
वो बोली- हाँ जी, और बोलकर सोई थी कि आपको दूध पिला दूं।
कहकर वो मुस्कुराई और वहाँ से जाने लगी। मैंने एक बार झांककर अपने बैडरूम में देखा, अर्चना सच में सो चुकी थी। मैंने एकदम तृप्ति का हाथ पकड़ा और रोक लिया।
वो बोली, “क्या है अब?”
“थोड़ी देर मेरे पास बैठो ना मैं तुमको साड़ी में देखना चाहता था।”
“तो देख तो लिया, दोपहर से आपके साथ साड़ी में ही तो हूँ।”
“पर तब सिर्फ तुम पर ध्यान नहीं था ना अगर बुरा ना मानो तो थोड़ी देर मेरे पास ऐसे ही रहो, साड़ी में।”
मेरे इतना बोलते ही वो मेरे एकदम सामने आकर खड़ी हो गई और बोली, “लो जी भर कर देख लो।”
उसके दोनों गुब्बारे एकदम तने हुए थे ऐसा लग रहा था जैसे मुझे ही पुकार रहे थे कि आकर हमसे खेलो। मैं भी खड़ा हुआ और उसके बिल्कुल सामने पहुँच गया। मैंने पूछा, “कैसे खुद को इतना मेंटेंन रखती हो?”
वो हंसने लगी और बोली- ऐसा कुछ नहीं है सब आपकी आंखों का धोखा है।
तब तक मैं उसके एकदम सामने खड़ा था, एकदम नजदीक! मैंने फिर से उसकी गोरी गोरी बाजुओं पर अपनी उंगलियाँ फेरी।
“उईईई…” वो एकदम सिहर उठी।
मैं बोला “क्या हुआ?”
तृप्ति ने कहा, “मीठी मीठी गुदगुदी होती है।”
मैंने पूछा- अच्छी नहीं लगी क्या?
तो उसने नजरें लज्जा से नीची कर ली। मैं मौके का फायदा उठाते हुए एकदम उसके पीछे आ गया, और पीछे से उसकी कमर में हाथ डालकर उसके पेट पर उंगलियाँ फिराने लगा। उसने खुद को कसकर दबा लिया। अब उसकी आंखें बंद, बाजू तनी हुई, होंठ फड़फड़ाते हुए, ऊ… ऊ… आहहह.. ई… आह.. .सी…आहहह..सीईईई… की हल्की हल्की आवाज लगातार उसके मुँह से निकल रही थी।
मैं लगातार कोई 10 मिनट तक उसके वस्त्ररहित अंगों पर अपनी उंगलियाँ फिराता रहा और तृप्ति ऐसे ही ‘आहहहह… ई… आह… सीईईई…’ की आवाज के साथ कसमसा रही थी। मैंने धीरे धीरे अपनी उंगलियों का जादू तृप्ति के पेट के ऊपरी हिस्से पर चलाना शुरू किया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
‘हम्म…सीईईई…’ की लयबद्ध आवाज के साथ उसके अंगों की थिरकन मैं महसूस कर रहा था। मेरी ऊपर की ओर बढ़ती उंगलियों का रास्ता उसके ब्लाउज के निचले किनारे ने रोक लिया। अभी मैंने जल्दबाजी ना करते हुए उससे ऊपर न जाने का फैसला किया और तृप्ति की आनन्दमयी सीत्कार का आनन्द लेते हुए उसके वस्त्रविहीन अंगों से ही क्रीड़ा करने लगा।
इसे भी पढ़े – मौसी को स्ट्रॉबेरी फ्लेवर कंडोम पसंद है
उसके पेट पर उंगलियों की थिरकन मुझे मलाई का अहसास करा रही थी। इतनी कोमल त्वचा पर उंगलियाँ फेरने से मेरी उंगलियाँ खुद-ब-खुद हर इधर-उधर फिसल जाती। जिसका अहसास मुझे तृप्ति के मुँह से निकलने वाली सीत्कार तुरन्त करा रही थी।
मैंने एक कदम और बढ़ाते हुए पीछे से पकड़े पकड़े ही तृप्ति को अपनी ओर खींच लिया। वो भी बिल्कुल किसी शिकार की तरह अपने शिकारी की ओर आ गई। अब तृप्ति के सुन्दर शरीर का पिछला हिस्सा मेरे अगले हिस्से से टकरा रहा था। पर शायद बीच में कुछ हवा का आवागमन हो रहा था।
अचानक तृप्ति थोड़ा और पीछे हटी और खुद ही पीछे से मुझसे चिपक गई। हम दोनों के बीच की दूरी अब हवा भी नहीं नाप पा रही थी। मेरा पुरुषत्व अपना पूर्ण आकार लेने लगा, जो शायद तृप्ति को भी उसके नितम्बों के बीच अपनी उपस्थिति का आभास करा रहा था। तृप्ति के नितम्बों की थरथराहट उनकी स्थिति की भनक मुझे देने लगी…, मेरा मुँह उसके कंधे पर ब्लाउज और गर्दन के बीच की गोरे अंग पर टकराने लगा।
मैंने मुँह को उसके कान के नजदीक ले जाकर हल्के से बताया, “तुम सच में बहुत सुन्दर हो, तृप्ति।”
“जी…जू…, आपने बस सामने से साड़ी… में… देखने को बोला था…, प्लीज… अब मुझे जाने दीजिए..।” हल्की सी मिमियाती आवाज में बोलकर वो पीछे से मुझमें समाने का प्रयास करने लगी। मैं तृप्ति की मनोदशा, हया को समझ रहा था। पर बिना उसकी इच्छा के मैं कुछ भी नहीं करना चाहता था। या यूं कहूँ कि मैं चाहता था कि तृप्ति इस खेल को खुलकर खेले।
“मैं तो तुम्हारे पीछे खड़ा हूँ। आगे की तरफ रास्ता खुला है…, चाहो तो जा सकती हो…, मैं रोकूंगा नहीं…” मैंने उसके कान में फुसफुसाकर कहा।
“छोड़ो…अब…मुझे…” बोलती वो मुझसे बेल की तरह लिपटने सी लगी…, उसकी लज्जा और शर्म मैं समझ रहा था।
अचानक मैंने अपने होंठ उसके कान के नीचे के हिस्से पर रख दिये…, “आहहहहह…” की आवाज की साथ वो दोहरी होती जा रही थी। अब मेरी उंगलियों के साथ मेरे होंठ भी तृप्ति के सुन्दर बदन में संवेदनशील अंगों को तलाश और उत्तेजित करने का काम करने लगी।
मेरे होंठ लगातार उसके कान के नीचे के हिस्से पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। तृप्ति गर्दन इधर उधर घुमाकर होने वाली आनन्दानुभुति का आभास कराने लगी। लगातार चुम्बन करते करते मैंने उसके कंधे पर पड़े साड़ी के पल्लू को दांत से पकड़कर नीचे गिरा दिया…
जिसका शायद उसे आभास नहीं हुआ, वैसे भी अब वो जिस दुनिया में पहुँच चुकी थी वहाँ शायद वस्त्रविहिन होना ही अधिक सुखकारी होता है। मेरा एक हाथ अब उसके नाभि वाले भाग को सहला रहा था। जबकि दूसरा हाथ वहाँ से हटकर गर्दन के नीचे ब्लाउज के गले के खुले हिस्से में सहलाने का काम करने लगा। मुँह से लगातार तृप्ति के गर्दन एवं कान के निचले हिस्से पर चुम्बन जारी थे।
उसका विरोध, “जी…जू… बस अब और… नहीं…” की हल्की होती कामुक आवाज के साथ घटता जा रहा था। मैंने उसको प्यार से पकड़ कर आगे की तरफ घुमाया। देखा उसकी बंद आँखें, गुलाब की पंखुड़ी जैसे नाजुक गुलाबी फड़फड़ाते होंठ, मेरी छाती पर सीधी पड़ने वाली गर्म गर्म सांसें… तृप्ति के कामान्दित होने का एहसास कराने लगी।
अब मेरे हाथ उसकी पीठ और गर्दन के पीछे की तरफ सहला रहे थे। मैंने अपने होठों को बहुत प्यार से उसके गुलाबी होठों पर रखा, तृप्ति शायद इस चुम्बन के लिये तैयार हो चुकी थी उसके होंठ मेरे होठों के साथ अठखेलियाँ करने लगे। मैंने महसूस किया कि तृप्ति के हाथ भी मेरी कमर पर आ गये।
हम लोग लगातार कुछ मिनटों तक आलिंगनबद्ध रहे। मैंने ही अलग होने की पहल की। क्योंकि मुझे अभी आगे बहुत लम्बा रास्ता तय करना था। मैंने देखा तृप्ति की आंखें अब खुल चुकी थी। हम दोनों की नजरें मिली…, हया की गुड़िया बनी तृप्ति नजरें झुकाकर मेरे सीने में छिपने का असफल प्रयास करने लगी।
मैंने उसी अवस्था में तृप्ति के कान के नीचे फिर से चूमना शुरू कर दिया। तृप्ति वहीं जड़ अवस्था में खड़ी थी। मैंने धीरे धीरे नीचे से उसकी साड़ी को पेटीकोट से बाहर निकाला और अलग कर दिया। इसके बाद तृप्ति के मोहक चेहरे को दोनों हाथ से पकड़ कर ऊपर किया। हम दोनों की दूसरे की नजरों में डूबने का प्रयास कर रहे थे।
तभी तृप्ति ने कहा “जी…जू…”
“हम्म..”
“मुझे बहुत जोर से लगी है…”
“क्या …?”
“मुझे टायलेट जाना है…”
मैंने ड्राइंग रूम के साथ अटैच टायलेट की ओर इशारा करते हुए कहा- चली जाओ, और फ्रैश होने के बाद वहीं रखा अर्चना का नाईट गाउन पहन लेना। तृप्ति मुझसे अलग होकर टायलेट में चली गई। मैं भी उसके टायलेट जाते ही अपने बैडरूम में गया और अर्चना को निहारा।
मैं अर्चना से बहुत प्यार करता था और किसी भी सूरत में उसको धोखा नहीं देना चाहता था पर इस बार शायद में अपने आपे में नहीं था। मैं अर्चना को देखकर असमंजस की स्थिति में बाहर आया। मैं खुद पर से अपना नियंत्रण खो चुका था।
अर्चना को निहारने के बाद मैं वापस ड्राइंग रूम में वापस आया और टीवी बंद करने के साथ ही लाइट बंद करके गुलाबी रंग का जीरो वाट का बल्ब जलाकर ड्राइंग रूम का बिस्तर ठीक करने लगा… अब उस गुलाबी प्रकाश में मैं तृप्ति का इंतजार करने लगा। तभी टायलेट का दरवाजा खुला ‘काम की देवी’ तृप्ति मेरे सामने नहाई हुई नाइट गाउन में थी…
“अरे वाह, नहा ली?” मैं बोला।
“हां, वो सारी टांगें गीली गीली चिपचिपी हो गई थी…” उसने कहा।
“तुम्हारे अपने ही रस से।” कहकर मैं हंसने लगा।
वो नजरें नीचे करके मुस्कुरा रही थी। मैं उसके नजदीक गया… और उसको बताया इस खेल में अगर साथ दोगी तो ज्यादा आनन्द आयेगा, अगर ऐसे शर्माती रहोगी तो मुझे तो आनन्द आयेगा पर तुम अधूरी रह जाओगी।
तृप्ति बोली, “जीजू, 10 बज गये हैं, अब सो जाना चाहिए, आप सो जाओ मैं आपके लिये दूध बना कर लाती हूँ।”
मैंने अपनी बाहें उसकी तरफ बढ़ा दी और वो किसी चुम्बक की तरह आकर मुझसे लिपट गई।
मैंने कहा- दूध तो मैं जरूर पियूंगा, पर आज ताजा दूध पीयूंगा।
मैंने उसको बाहों में भरा और बिस्तर पर ले गया। मैंने महसूस किया कि उसकी सांसें धौंकनी की तरह बहुत तेज चल रही थी। तृप्ति के नथूनों से निकलने वाली गरम गरम हवा मुझे भी मदहोश करने लगी। बिस्तर पर लिटाकर मैंने बहुत प्यार से उसके दोनों उरोजों को सहलाया।
“जी…जू…अब बरदाश्त नहीं हो रहा है प्लीज अब मुझे जाने दो…” कहते कहते तृप्ति से मेरा सिर पकड़कर अपनी दोनों पहाडि़यों के बीच की खाई में रख दिया…
मैंने महसूस किया उसने अभी ब्रा पहनी हुई थी। नाईट गाऊन के आगे के दो हुक खोलने पर उसकी गोरी पहाडियों के अन्दर का भूगोल दिखाई देने लगा। मैंने उसके होठों को पुन: भावावेश में चूमना शुरू कर दिया। तृप्ति मेरे होठों को अपने होठों में दबा दबाकर चूस रही थी।
मैंने तृप्ति को बिल्कुल सीधा करके बिस्तर पर लिटाया, और लगातार उसको चूमता रहा। पहले होंठ, फिर गाल, आंखें कान, गले और जहाँ जहाँ मेरे होंठ बिना रुकावट के तृप्ति के बदन को छू सकते थे लगातार छू रहे थे। तृप्ति के बदन की गरमाहट मैं महसूस कर रहा था।
उसने दोनों हाथों को मेरी कमर के दोनों ओर से लपेट कर मुझे पकड़ लिया। मेरे होंठ लगातार तृप्ति के बदन के ऊपरी नग्न क्षेत्र का रस चख रहे थे। मैंने एक हाथ से नीचे से नाईट गाऊन धीरे धीरे ऊपर खिसकाना शुरू किया। गाऊन उसकी पिंडलियों से ऊपर करने के बाद मैंने धीरे धीरे तृप्ति की गोरी पिंडलियों को जैसे ही छुआ…
मुझे लगा जैसे किसी रेशमी कपड़े के थान पर हाथ रख दिया हो। मेरे हाथ खुद-ब-खुद पिंडलियों पर फिसलने लगे। तृप्ति को भी शायद इसका आभास हो गया था। उसकी सिसकारियाँ इस बात की गवाही देने लगीं। आहह… जी… जू… आहहह… अब… बस… करो… की बहुत हल्की सी परन्तु मादक आवाज मेरे कानों में पड़ने लगी।
इसे भी पढ़े – नौकर का बड़ा लौड़ा पसंद आया मुझे
हम दोनों की बीच होने वाली चुम्बन क्रिया तृप्ति को लगातार मदहोश कर रही थी। मेरा एक हाथ तृप्ति की पिंडलियों से खेलता खेलता ऊपर की ओर आ रहा था, साथ में गाऊन भी धीरे धीरे ऊपर सरक रहा था। हम्म… सीईअईई… आहहह… की आवाज के साथ तृप्ति की कामुक सिसकारियाँ भी लगातार तेज होती जा रही थी।
तृप्ति की दोनों टांगें अपने आप हौले हौले खुलने लगी। अचानक मेरा हाथ किसी गीली चीज से टकराया मैंने नीचे देखा… मेरा हाथ तृप्ति की पैंटी के ऊपर फिसल रहा था। गुलाबी रंग की नीले फूलों वाली पैंटी तृप्ति के यौवन रस से भीगी हुई महसूस हुई। मैंने एक तरफ से तृप्ति का नाइट गाऊन उसके नीचे से निकालने के लिये जैसे ही खींचा तृप्ति से अपने नितम्ब ऊपर करके तुरन्त नाइट गाऊन ऊपर करने में मेरी मदद की।
मैंने तृप्ति के ऊपरी हिस्से को बिस्तर से उठाकर नाइट गाऊन को उसके बदन से अलग कर दिया… और वो काम सुन्दरी मेरे सामने सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी वैसे तो उस समय वो गुलाबी रंग की ब्रा उस पर गजब ढा रही थी पर फिर भी वो मुझे तृप्ति और मेरे मिलने में बाधक दिखाई दी।
मैंने हौले से तृप्ति के कान में कहा, “दूध नहीं पिलाओगी क्या?”
मैंने तृप्ति के ऊपरी हिस्से को बिस्तर से उठाकर नाइट गाऊन को उसके बदन से अलग कर दिया… और वो काम सुन्दरी मेरे सामने सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी वैसे तो उस समय वो गुलाबी रंग की ब्रा उस पर गजब ढा रही थी पर फिर भी वो मुझे तृप्ति और मेरे मिलने में बाधक दिखाई दी।
मैंने हौले से तृप्ति के कान में कहा, “दूध नहीं पिलाओगी क्या?”
“हम्म… आहहह… पि…यो… ना… मैंने… कब… रोका…है…” की दहकती आवाज के साथ तृप्ति से मुझे अपने सीने पर कस लिया। तृप्ति को थोड़ा सा ऊपर उठाकर अपने दोनों हाथ उसके पीछे की तरफ ले गया, और उसकी ब्रा के दोनों हुक आराम से खोल दिये। मैं लगातार यह कोशिश कर रहा था कि मेरी वजह से तृप्ति को जरा सी भी तकलीफ ना हो।
हुक खुलते ही ब्रा खुद ही आगे की ओर आ गई और दोनों दुग्धकलश मेरे हाथों में आ गये। दोनों के ऊपर भूरे रंग की टोपी बहुत सुन्दर लग रही थी। मैंने दोनों हाथों से दुग्धकलशों का ऊपर रखे अंगूर के दानों से खेलना शुरू कर दिया। तृप्ति ने भी कामातुर होकर अपने दोनों हाथ मेरे हाथों पर रख दिये और अपने होंठ मेरे होंठों पर सटा दिये।
मैंने जैसे ही अपने होंठ तृप्ति के होठों से अलग किये, उसने अपने होंठ मेरी छाती पर रख दिये और लगातार चुम्बन करने लगी। तृप्ति के चुचूक बहुत ही सख्त हो चुके थे… खेलते खेलते मैंने अपना मुँह तृप्ति के बायें चूचुक पर रख दिया। मेरे इस हमले के लिये शायद वो तैयार नहीं थी। तृप्ति कूदकर पीछे हो गई, मैंने पूछा- क्या हुआ?
“बहुत गुदगुदी हो रही है!” वो बोली।
मैंने कहा, “चलो छोड़ो फिर!”
“थोड़ा हल्के से नहीं कर सकते क्या…?” उसने पूछा। मैं फिर से आगे बढ़ा और उसका बायां चुचूक अपने मुँह में ले लिया। तृप्ति लगातार मेरे सिर को चूमने लगी। मैं उसके दोनों चुचूकों का रस एक-एक करके पी रहा था… उसके हाथ मेरी पीठ पर चहलकदमी कर रहे थे और मेरे हाथ तृप्ति की पिंडलियों एवं योनि-प्रदेश को सहलाने लगे।
तभी मैंने महसूस किया कि तृप्ति के हाथ मेरी पीठ पर फिसलते फिसलते मेरे अंडरवियर के अंदर मेरे नितम्बों को सहला रहे थे। मैंने पूछा, “इलास्टिक से तुम्हारे हाथों में दर्द हो सकता है अगर कहो तो मैं अंडरवियर उतार दूं?” उसने कोई जवाब नहीं दिया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैंने इस प्रतिक्रया को उसका “हां” में जवाब मानते हुए खुद ही अपना खुद ही थोड़ा सा ऊपर होकर अपना अंडरवीयर निकाल दिया। अब तृप्ति खुलकर मेरे नितम्बों से खेल रही थी और मैं उसके चुचूक से। मेरे नितम्बों से खेलते खेलते वो बार बार मेरे गुदा द्वार को सहला रही थी। मैं उसके अंदर की उत्तेजना को महसूस कर रहा था वो मिमियाती हुई बार-बार हिलडुल रही थी।
आखिर मैंने पूछ ही लिया, “जानेमन, सब ठीक है न?”
“पूरे बदन में चींटियाँ सी रेंगने लगी हैं, बहुत बेचैनी हो रही है।” बोलकर वो अपने नितम्बों को बार बार ऊपर उछाल रही थी…
मैं उसकी मनोदशा समझ रहा था पर अभी उसको और उत्तेजित करना था। मैं जानता था कि उत्तेजना की कोई पराकाष्ठा नहीं होती। यह तो साधना की तरह है जितना अधिक करोगे, उतना ही अधिक आनन्द का अनुभव होगा, और तृप्ति उस आनन्द से सराबोर होने को बेताब थी।
मैंने भी तृप्ति को वो स्वर्गिक आनन्द देने का पूरा पूरा मन बना लिया था। मैं तृप्ति के ऊपर से उसके अंगूरों को छोड़कर खड़ा हो गया। मैं पहली बार उसके सामने आदमजात नग्नावस्था में था पर तृप्ति पर उसका कोई असर नहीं था, वो तो अपनी ही काम साधना में इतनी लीन थी कि बिस्तर पर जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी, बार बार अपने हाथ और नितम्बों को उठा का बिस्तर पर पटक रही थी।
मम्म… सीईई… आईई ईई… हम्मम… आहह… की नशीली ध्वनि मेरी उत्तेजना को और बढ़ा रही थी…मैंने थोड़ा सा आगे खिसकते हुए अपने उत्तेजित लिंग को तृप्ति के होंठों से छुआ। इस बार शायद वो पूरी तरह से तैयार थी तृप्ति ने घायल शेरनी की तरह मेरे लिंग पर हमला करके मेरे लिंग का अग्रभाग अपने जबड़ों में कैद कर लिया।
मुँह के अन्दर तृप्ति लिंग के अग्रभाग पर अपनी जुबान से मालिश कर रही थी जिसका जिसकी अनुभूति मुझे खड़े-खड़े हो रही थी। जब तक मैं होश में आता तब तक तृप्ति अपना एक हाथ बढ़ाकर मेरे लिंग की सुरक्षा में डटी नीचे लटकती दोनों गोलियों पर भी अपनी कब्जा कर चुकी थी।
मैंने धीमे धीमे अपने नितम्बों को आगे-पीछे सरकाना शुरू किया पर यहाँ तृप्ति ने मेरा साथ छोड़ दिया, वो किसी भी हालत में पूरा लिंग अपने मुँह में लेने को तैयार नहीं थी, बहुत प्रयास करने के बाद भी वो सिर्फ लिंग के अग्रभाग से ही खेल रही थी। 2-3 बार प्रयास करने के बाद भी तृप्ति जब मेरा साथ देने का तैयार नहीं हुई तो मैंने अधिक कोशिश नहीं की।
तृप्ति एक हाथ से लगातार मेरे अण्डकोषों से खेल रही थी। अचानक तृप्ति ने दूसरे हाथ से मेरा हाथ पकड़ा और अपनी योनि को ओर ठेलने लगी पर मैं अभी उसे और तड़पाना चाहता था। तृप्ति लगातार गों…गों…गों… की आवाज के साथ मेरे लिंग को चाट रही थी और मेरा हाथ अपनी योनि की ओर बढ़ा रही थी।
मैंने देखा तृप्ति अपनी दोनों टांगों को बिस्तर पर पटक रही थी। मैंने एक झटके में अपना लिंग तृप्ति के मुख से बाहर निकाल लिया और उससे अलग हो गया… तृप्ति ने आँखें खोली और बहुत ही निरीह द़ष्टि से मुझे देखने लगी जैसे किसी वर्षों के प्यासे को समुद्र दिखाकर दूर कर दिया गया हो।
मुझे उसकी हालत पर दया आ गई… मैं तेजी से रसोई की ओर गया और फ्रिज में से मलाई की कटोरी उठा लाया। कटोरी तृप्ति के सामने रख कर मैंने मलाई अपने लिंग पर लगाने को कहा क्योंकि मैं जानता था कि मलाई तृप्ति को बहुत पसन्द है इसीलिये वो यह काम तुरन्त कर लेगी।
तृप्ति हल्की टेढ़ी हुई और एक उंगली में मलाई में भरकर नजाकत से मेरे लिंग पर लपेटने लगी। उसकी नाजुक उंगली और ठंडी मलाई का असर देखकर मेरा लिंग भी ठुमकने लगा… जिसको देखकर तृप्ति के होठों पर शरारत भरी मुस्कुराहट आ रही थी। मैंने तृप्ति को फिर से नीचे लिटाया और उसके चेहरे के दोनों तरफ टांगें करके घुटनों के बल बैठ गया।
अब मेरा लिंग बिल्कुल तृप्ति के होठों के ऊपर से छू रहा था… तृप्ति ने सड़प से लिंग को अपने मुँह में ले लिया और मलाई चाटने लगी। मैंने भी उसको मेहनताना देने की निर्णय करते हुए अपना मुँह उसकी योनि के ऊपर चढ़ी पैंटी पर ही रख दिया। पैंटी पर सफेद चिपचिपा पदार्थ लगा बहुत गाढ़ा हो गया था… ऐसा लग रहा था जैसे अभी तक की प्रक्रिया में तृप्ति कई बार चरम को प्राप्त कर चुकी हो।
मैंने आगे बढ़कर तृप्ति की पैंटी के बीच उंगली फंसाई और उसको नीचे की ओर खिसकाना शुरू किया। तृप्ति ने भी तुरन्त नितम्ब उठाकर मुझे सम्मान दिया। पैंटी तृप्ति की टांगों में नीचे सरक गई। तृप्ति की योनि के ऊपर बालों का झुरमुट जंगल में घास की तरह लहलहा रहा था।
जिसे देखकर ही मेरा मूड खराब हो गया। फिर भी मैंने योनि के बीच उंगली करके तृप्ति के निचले होंठों तक पहुँचने का रास्ता साफ कर लिया… मैंने अपने हाथ की दो उंगलियों से योनि की फांकें खोल कर अपनी जीभ सीधे अन्दर सरका दी.. आह…अम्म… की मध्यम ध्वनि के साथ तृप्ति ने लिंग को छोड़ दिया और तड़पने लगी…
मैं लगातार तृप्ति की योनि का रसपान करता रहा। मेरे नथुने उसकी गहराई की खुशबू से सराबोर हो गये, उसकी उत्तेजना और तेजी से बढ़ने लगी… तृप्ति ने तेजी से अपने नितम्बों को ऊपर नीचे पटकना शुरू कर दिया… तृप्ति लगातार अपने शरीर को इधर उधर मरोड़ रही थी… पर योनि को मेरी जीभ पर ठेलने का प्रयास कर रही थी।
अचानक तृप्ति का शरीर अकड़ने लगा…और वो धम्मे से बिस्तर पर पसर गई। मैंने तृप्ति के चेहरे की ओर देखा को लगा जैसे गहरी नींद में है। मैं तृप्ति के ऊपर से उठा और अपना मुँह धोने के लिये बाथरूम की तरफ बढ़ गया। अभी मैं मुँह को धोकर बाहर निकल ही रहा था तो देखा की तृप्ति भी गिरती पड़ती बाथरूम की तरफ आ रही है, मैंने पूछा- क्या हुआ ?
उसने मरी हुई लेकिन उत्तेजक आवाज में कहा, “धोना है और पेशाब भी करना है…”
मैं सहारा देकर उसको बाथरूम की तरफ ले गया। तृप्ति अन्दर जाकर फर्श पर उकडू बैठ गई और पेशाब करने लगी… उसकी योनि से निकलते हुआ हल्के पीले रंग के पेशाब की बूंदें फर्श पर पड़ते सोने की सी बारिश का अहसास करा रही थी।
तभी तृप्ति की निगाह मुझ पर पड़ी… उसने शर्माते हुए नजरे नीचे कर ली और मुझसे बोली “जीजू, आप बहुत गन्दे हो, क्या देख रहे हो जाओ यहाँ से, आपको शर्म नहीं आती मुझे ऐसे देख रहे हो।”
मैंने जवाब दिया, “मुझे शर्म नहीं और प्यार आ रहा है तुमने तो चरमसुख पा लिया पर मैं अभी भी अधूरा तड़प रहा हूँ।”
तृप्ति हा..हा..हा…हा.. करके हंसती हुई बोली, “आप जानो! मैं क्या करूं?”
इसे भी पढ़े – होटल के लड़के साथ मेरी बीवी का सेक्स
और पानी का मग उठाकर योनि के ऊपर के जंगल की धुलाई करने लगी। मैंने उसका एक हाथ पकड़कर अपने उत्थित लिंग पर रख दिया। तृप्ति वहीं बैठकर मेरा लिंग प्यार से सहलाने लगी तो मैंने तृप्ति को फर्श से उठने को कहा और टायलेट में लगी वैस्टर्न स्टाइल की सीट पर बैठने को कहा।
योनि साफ करने के बाद तृप्ति टायलेट की सीट पर बैठ गई और मेरे लिंग से खेलने लगी। वो बार बार अपनी जीभ निकालती लिंग के अग्रभाग तो हल्के से चाटती और तुरन्त जीभ अन्दर कर लेती जैसे मेरे लिंग को चिढ़ा रही हो। उसके इस खेल में मुझे बहुत मजा आ रहा था।
कुछ पलों में ही मुझे लिंग से बाढ़ आने का आभास होने लगा। मैंने लिंग को पकड़कर तृप्ति के मुँह में ठेलने का प्रयास किया पर उसने मुँह बंद कर लिया। मेरे पास अब सोचने का समय नहीं था। किसी भी क्षण मेरा शेर वीरगति को प्राप्त हो सकता था, मैंने आगे बढ़कर अपना लिंग उसके स्तंनों के बीच की घाटी में लगा दिया।
मैं दोनों हाथों से तृप्ति के स्तनों को पकड़कर लिंग पर दबाव बनाने लगा, असीम आनन्द की प्राप्ति हो रही थी, वो घाटी जिसमें से कभी मेरे सपनों के अरमान बह जाते थे। आज लिंग का प्रसाद बहने वाला था। अभी मैं उस आनन्द की कल्पना ही कर रहा था कि लिंग मुख से एक पिचकारी निकली जो सीधी उसके गले पर टकराई और फिर धीरे धीरे छोटी छोटी 3-4 पिचकारियों और निकली.
जिसके साथ तृप्ति के दोनों स्तनों पर मेरी मलाई फैल गई। अब मेरा शेर तृप्ति के सामने ढेर हो चुका था, मैंने तृप्ति से कहा, “तुमको मलाई बहुत पसन्द है ना! खाओगी क्या?” वो सिर्फ मुस्कुरा कर रह गई। मैं पीछे मुड़कर लिंग धोने लगा तभी उसने सीट से खड़े होकर शावर चला दिया।
हम दोनों के बदन इतने गरम थे कि लग रहा था शावर का पानी भाप बनकर उड़ जायेगा। मैंने पानी से तृप्ति के दोनों स्तनों को साफ किया, और अपनी बात तृप्ति के सामने रखी…”यार तुम इतनी सुन्दर हो, ऐसे लगता है जैसे साक्षात् अप्सरा धरती पर आ गई हो, पर नीचे देखो बालों का कैसे झुरमुट पैदा कर रखा है तुमको अपनी सफाई का ध्यान रखना चाहिए।”
तृप्ति बोली, “मुझे नहीं पता था कि आप मेरे साथ ये सब करने वाले हो, और बहुत दिनों से समय नहीं मिला सफाई का घर जाकर करूंगी अब।”
मैंने कहा, “तुम रूको मैं अभी अपनी शेविंग किट लाता हूँ और सफाई कर देता हूँ।”
वो शर्माते हुए बोली, “जो कर चुके हो वो कम है क्या जीजा जी?”
तब तक मेरी शेविंग किट मेरे हाथों में आ चुकी थी। मैंने शेविंग क्रीम, ब्रश और रेजर निकाला, तथा तृप्ति को फिर से वैर्स्टन स्टाइल वाली सीट पर बैठने को कहा। थोड़ा सा ना-नुकुर करने के बाद तृप्ति सीट पर बैठ गई। वो पहले ही भीगी हुई थी इसीलिये क्रीम लगाने में समय नहीं लगा। मैं तेजी से क्रीम लगाकर झाग पैदा करने लगा। तृप्ति फिर से सीईईई…सीईईई…की आवाज निकाल रही थी।
मैंने पूछा, “कुछ परेशानी है क्या?”
“बहुत गुदगुदी हो रही है…” तृप्ति बोली।
मैंने देखा कि वो आंख बंद करके बैठी उस प्रक्रिया का पूरा आनन्द ले रही थी। मैंने उसको बता दिया कि अब हिलना बिल्कुल नहीं है नहीं तो रेजर से कट सकता है। इसी के साथ रेजर से जंगल की सफाई शुरू कर दी। मुश्किल से 1 मिनट बाद ही वो घना जंगल, सफाचट मैदान में बदल गया।
जिसके बिल्कुल बीच से एक बिल्कुल पतली सुरंग का रास्ता जा रहा था। अब वो सुरंग इतनी सुन्दर लग रही थी कि देखकर ही लिंगदेव फिर से मुँह उठाने लगे। मैंने तृप्ति की योनि को पानी से अच्छी तरह धोकर तौलिये से पौंछा और समय न गंवाते हुए उसको गोदी में उठाकर वापस कमरे में लाकर बिस्तर पर लिटा दिया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
अब वो अपने पूरे होश में आ चुकी थी और पुन: अपना पुराना राग आलापने लगी, तृप्ति बोली, “जीजू अब और नहीं प्लीज! अब जाने दीजिये।”
मैंने कहा, “यार इतनी मेहनत से जंगल साफ किया है कम से कम उसका मेहनताना तो दोगी ना।”
“अब नहीं!” बोलकर वो उठने लगी।
मैंने तय किया था कि किसी भी स्तर पर तृप्ति के साथ जबरदस्ती नहीं करूंगा इसीलिये मैं तुरन्त पीछे हट गया, और बोल दिया “ठीक है अगर तुम नहीं चाहती तो जा सकती हो।”
बिस्तर पर लेटी-लेटी वो तिरछी नजरों से मुझे देखती रही, फिर बोली, “जीजू, आपसे एक बात पूछूं क्या?”
“हाँ पूछो।”
“आप इतने अच्छे क्यों हो?”
“क्यों अब मैंने क्या कर दिया?”
“मैं इस समय आपके सामने बिल्कुल नंगी लेटी हूँ, आप कुछ भी करते तो मैं मना नहीं कर पाती, पर आप मेरे एक बार मना करने पर ही पीछे हट गये।”
“देखो तृप्ति, सैक्स प्यार का विषय है, सैक्स के बिना प्यार अधूरा है, और दो लोग जब सैक्स करते हैं तो वो उन दोनों को शारीरिक रूप से कम बल्कि मानसिक रूप से अधिक जोड़ता और संतुष्ट करता है, और आप जबरदस्ती से ना तो किसी का प्यार पा सकते हैं ना ही दे सकते हैं और ना ही किसी को जबरदस्ती संतुष्ट कर सकते हैं। इसीलिये जबरदस्ती का सैक्स मुझे पसन्द नहीं है।”
तृप्ति मेरी बात को बहुत गौर से सुन रही थी, वो बोली, “इस समय अगर आपकी जगह और कोई भी होता और मैं उसके सामने ऐसे नंगी लेटी होती तो शायद मेरे लाख मना करने पर भी वो मेरी नहीं सुनता चाहे सहमति से चाहे जबरदस्ती पर वो मेरे साथ सबकुछ कर गुजरता।”
“सॉरी तृप्ति पर मैं वैसा नहीं हूँ, तुम उठो, अपने कपड़े पहनो और जाकर सो जाओ।” बोलकर मैं बराबर में पड़े हुए सोफे पर बैठ गया, और तृप्ति को देखकर मुस्कुराने लगा।
तृप्ति बिस्तर से उठी और बोली, “जीजा जी, इसीलिये तो मैं हमेशा से आपकी फैन हूँ। काश मेरी किस्मत में भी आप जैसा कोई होता।” बोलकर वो सोफे पर ही आ गई।
मैंने कहा, “नहीं तृप्ति, अब तुम जाओ।”
पर तृप्ति सोफे पर मेरे दोनों ओर अपने पैर फैलाकर मेरी ओर मुँह करके मेरी गोदी में बैठ गई। मेरा लिंग फिर से उसकी योनि से टकराने लगा पर मैंने खुद पर कंट्रोल करते हुए उसको नीचे उतरने को कहा।
“जीजा जी, सच में दिमाग बोल रहा है कि मुझे चले जाना चाहिए, पर दिल साथ नहीं दे रहा मैं क्या करूं?” वो बोली।
“यह तो तुमको सोचना है।” मैंने कहा।
तृप्ति सोफे पर मेरे दोनों ओर अपने पैर फैलाकर मेरी ओर मुँह करके मेरी गोदी में बैठ गई। मेरा लिंग फिर से उसकी योनि से टकराने लगा पर मैंने खुद पर कंट्रोल करते हुए उसको नीचे उतरने को कहा।
“जीजा जी, सच में दिमाग बोल रहा है कि मुझे चले जाना चाहिए, पर दिल साथ नहीं दे रहा मैं क्या करूं?” वो बोली।
“यह तो तुमको सोचना है।” मैंने कहा।
अचानक तृप्ति से पैंतरा बदला और बोली, “बहुत नखरा कर रहे हो, सीधे सीधे लाइन पर आ जाओ अब नहीं तो आज आपका ही रेप हो जायेगा…” कहकर उसने अपने नरम और गरम होंठ मेरे होठों पर लगा दिया।
“आहहह…” क्या मुलायम होंठ हैं तृप्ति के। शायद उस वक्त मैं उसके लिये कोई यही शब्द भी नहीं सोच पा रहा था। पर उस आनन्द की कल्पना भी मेरे लिये मुश्किल थी। मैं उसके होठों को लॉलीपॉप की तरह चूसने लगा और वो मेरे। हम दोनों फिर से उसी खुमार में खोने लगे।
तृप्ति मेरी गोदी में नंगी बैठी थी मेरा लिंग लगातार उसकी योनि और गुदा को छू रहा था। वो फिर से जाग गया था। लिंग देव अब नई सवारी करने के लिये तैयार हो गये। तृप्ति ने अपने नितम्ब तेजी से हिलाने शुरू कर दिये। मुझे लगने लगा कि उसकी इस हरकत से तो यहीं बैठे बैठे मैं फिर से डिस्चार्ज हो जाऊँगा।
मैंने तृप्ति को फिर से गोदी में उठाया और बिस्तर पर पटक दिया। बिस्तर पर गिरते ही मेरा लिंग फिर से उसकी आंखों के सामने था, जिसे उसने तुरन्त अपने होठों के हवाले कर दिया। मैं तृप्ति के दोनों ओर पैर करके उसके ऊपर आ गया। अभी मैं तृप्ति को और तड़पाने के मूड में आ गया था।
बमुश्किल तृप्ति के मुँह से अपना लिंग निकालने के बाद मैंने फिर से उसके होठों पर अपने होंठ रख दिया और प्रगाढ़ चुम्बन में तृप्ति को बांधने लगा। अब तृप्ति भी खुलकर खेल रही थी। वो मेरे होठों को जबरदस्त तरीके से चूसने लगी। मैंने अपने दोनों हाथों को तृप्ति के दोनों स्तनों पर रख दिया और तेजी से दबाने लगा।
‘उम्म… आह… धीरे… और करो…’ की आवाज तृप्ति के मुँह से आने लगी।
मैंने तुरन्त अपने होंठ तृप्ति की गर्दन पर रख दिये। उसको चेहरे, गर्दन, कंधे पर किस करना शुरू कर दिया। पर वो शायद मुझसे भी ज्यादा आतुर थी। तृप्ति ने मुझे हल्का सा धक्का मारकर बराबर में बिस्तर पर नीचे लिटा दिया और खुद मेरे ऊपर आ गई। मेरे दोनों हाथों को पकड़ कर खुद ही अपने पके हुए आमों पर रख दिया…
अब तृप्ति मेरे पूरे बदन पर धीरे धीरे चुम्बन करने लगी, माथे पर, गालों पर, होठों पर फिर ठोड़ी पर, कंधे पर, कानों पर लगातार उसकी चुम्बन वर्षा हो रही थी, मैं नीचे लेटा तृप्ति की हर हरकत देख रहा था, वो किस करते करते नीचे की ओर सरकने लगी मेरी छाती पर आकर लगातार चूमने और चाटने लगी।
उसके बाद बाजू पर हाथों पर, नाभि पर… ‘आहह…’ लिंग के चारों ओर भी तृप्ति का चुम्बन जारी था। इस बार आह… भरने की स्थिति मेरी बन चुकी थी। शर्मिली हिरनी से तृप्ति भूखी शेरनी बन चुकी थी, मैं उसके अन्दर की औरत को बाहर निकाल चुका था। मेरी जांघों पर उसकी उंगलियाँ गुदगुदी पैदा करने लगी।
नीचे जाते जाते उसका चुम्बन मेरे पैरों के अंगूठे तक पहुँच गया। वहीं से तृप्ति पलटी और मेरे मुँह की तरफ पीठ करके ऊपर की ओर आने लगी अब तृप्ति की योनि बिल्कुल मेरे मुँह के ऊपर थी। वो मेरा लिंग अपनी मुँह में सटक चुकी थी। मैंने भी अपनी जुबान निकाल कर उसकी योनि की दरार पर रख दी।
‘हम्म…’ ये क्या? तृप्ति की योनि के दोनों सांवले सलोने होंठ तो अपने आप ही फुदक रहे थे। ओह आज समझ में आया कि योनि को लोग ‘फुद्दी’ क्यों बोलते हैं, तृप्ति की योनि सच में फुद्दी बन चुकी थी, वो अपने आप ही फुदक रही थी। मैंने अपनी जीभ से उसकी दरार की चाटना शुरू कर दिया और हाथों को फिर से उसके बूब्स पर रख कर उसके दाने को सहलाने लगा।
उसकी दरार में से बूंद बूंद रस टपक रहा था जो मेरी जबान में लगकर पूरी दरार पर फैल रहा था। तृप्ति की चिकनी योनि चमचमा रही थी। अब चाटने में बहुत आनन्द आ रहा था। मैं लगातार उसकी फुद्दी की दरार को ऊपर से चाट रहा था। तृप्ति खुद ही चूतड़ आगे पीछे हिला-हिला कर मुझे मजा देने लगी।
कुछ देर बाद वो अपनी योनि को मेरी जीभ पर दबाने लगी। मैं फिर भी उसकी दरार को ही चाटता रहा। क्योंकि मैं चाहता था कि अब तृप्ति अपने मन की करे। तभी तृप्ति ने बीच में से अपना एक हाथ पीछे निकालकर फुद्दी के दोनों होठों को अलग अलग कर मेरी जीभ के उपर रख दिया।
मेरी जीभ तृप्ति की योनि के अन्दर की दीवारों का निरीक्षण करने लगी। अन्दर से मीठा रस टपक रहा था। मैं उस रस को चाटने लगा और तृप्ति नितम्ब हिला-हिला कर मेरी मदद करने लगी। मैंने अपना एक हाथ बाहर निकला कर ऊपर किया और तर्जनी उंगली धीरे से तृप्ति की गुदा में सरकाने की कोशिश की। “आह…नहीं…” की आवाज के साथ वो कूद कर आगे हो गई, ओर मेरी तरफ देखकर बोली, “आप इतने बदमाश क्यों हो?”
मैंने बिना कोई जवाब दिये अपने उंगली तृप्ति की योनि में घुसा दी और अच्छी तरह गीली करके फिर से उसकी कमर पकड़कर गुदा में उंगली सरकाने लगा थोड़ा सा प्रयास करने के बाद उंगली का अगला हिस्सा उसके पिछले बिल में घुस गया। अब मैंने योनि और गुदा दोनों रास्तों से तृप्ति की अग्नि को भड़काना शुरू कर दिया।
इसे भी पढ़े – दीदी मेरे लिए बिकनी पहन कर आई
तृप्ति पागलों की तरह मेरे ऊपर धमाचौकड़ी करने लगी…कुछ ही सैकेन्डों में उसका बदन अकड़ने लगा और वो मेरे ऊपर धड़ाम से गिर गई। तृप्ति का पूरा शरीर पसीने से तरबतर था। मैंने अपना एक हाथ बाहर निकला कर ऊपर किया और तर्जनी उंगली धीरे से तृप्ति की गुदा में सरकाने की कोशिश की।
“आह…नहीं…” की आवाज के साथ वो कूद कर आगे हो गई, ओर मेरी तरफ देखकर बोली, “आप इतने बदमाश क्यों हो?”
मैंने बिना कोई जवाब दिये अपने उंगली तृप्ति की योनि में घुसा दी और अच्छी तरह गीली करके फिर से उसकी कमर पकड़कर गुदा में उंगली सरकाने लगा थोड़ा सा प्रयास करने के बाद उंगली का अगला हिस्सा उसके पिछले बिल में घुस गया। अब मैंने योनि और गुदा दोनों रास्तों से तृप्ति की अग्नि को भड़काना शुरू कर दिया।
तृप्ति पागलों की तरह मेरे ऊपर धमाचौकड़ी करने लगी… कुछ ही सैकेन्डों में उसका बदन अकड़ने लगा और वो मेरे ऊपर धड़ाम से गिर गई। तृप्ति का पूरा शरीर पसीने से तरबतर था। अब मैं उठकर बैठ गया और तृप्ति को अपनी गोदी में बैठा कर उसके पूरे बदन को चाटने लगा।
उसके नग्न बदन का नमकीन पसीना मेरी प्यास को और भी बढ़ा रहा था। गर्दन के पीछे, पीठ पर नितम्बों पर पेट पर नाभि पर जांघों पर मैंने अपने जीभ की छाप छोड़ दी। तृप्ति लगभग बेहोशी की हालत में मेरी गोदी में थी। वो अपने सहारे से बैठ भी नहीं पा रही थी जैसे ही मैंने हल्का सा हाथ हटाया वो धम्म से बिस्तर पर जा गिरी।
अब मेरी हिम्मत भी जवाब देने लगी थी, मैंने तृप्ति को नीचे उतारा और उसके नितम्बों के नीचे बराबर में पड़े सोफे की एक गद्दी लगा दी जिससे उसकी योनि ऊपर उठ गई। तृप्ति को बिस्तर पर सीधा लिटाकर मैं नीचे की तरफ उसकी टांगों के बीच में आ गया।
अर्द्धमूर्छा की अवस्था में भी तृप्ति को इतना होश था कि मेरी स्थिति जानकर वो मेरी तरफ ही सरकने लगी मैंने अपना लिंग पकड़ा और तृप्ति की फुदकती हुई फुद्दी की दरार पर हौले हौले घिसना शुरू कर दिया। अब वो शायद इंतजार करने के मूड़ में नहीं थी इसीलिये उसने खुद ही अपना हाथ आगे बढ़ाया और अपनी दो उंगलियों से योनि का दरवाजा खोलकर मेरे लिंग का स्वागत किया।
मैं अभी भी लिंग को योनि के ऊपर ही टकराकर मजा ले रहा था। तभी तृप्ति की रूंआसी सी आवाज निकली, “जी…जू… आप… बहुत…तड़पा… चुके…हो… प्लीज… अब… अन्दर… कर… दो… ना।”
मुझे तृप्ति पर तरस आने लगा और मैंने धीरे धीरे अपने शेर को किसी चूहे की तरह उसके बिल में घुसाना शुरू कर दिया। पर उसकी ‘आहह… हम्म…’ की आवाज सुनकर मैं रूक गया।
तभी वो बोली, “अब… रूको… मत… प्लीज… पूरा… डाल… दो…।”
मैंने एक झटके में बचा हुआ लिंग अन्दर सरका दिया। तृप्ति ने अपनी दोनों टांगें उठाकर मेरे कंधों पर रख दी। मैंने भी अपने दोनों हाथों को तृप्ति के स्तनों पर रखा और अपने घोड़े को सरपट दौड़ाने लगा। “आह…ऊह…सीईईई…” की आवाज के साथ वो मस्त सवारी कर रही थी।
कुछ जोरदार धक्कों के बाद आखिर मेरा घोड़ा शहीद हो गया। तृप्ति की टांगें फिर से अकड़ने लगी। वो टांगों से मुझे धक्का देने लगी। मैंने बहुत प्यार से अपने चूहे बन चुके शेर को बाहर निकाला और बराबर में लेट गया। तृप्ति अपने हाथ से मेरे लिंग को सहलाने लगी।
मैंने कहा- धोकर आता हूँ!
जैसे ही मैं बिस्तर से खड़ा हुआ, मेरे लटके हुए लिंग को देखकर तृप्ति हंसने लगी।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
वो बोली- यह चूहे जैसा शेर थोड़ी देर पहले कितना दहाड़ रहा था!
मैं भी उसके साथ हंसने लगा।
“हा.. हा.. हा.. हा..” हंसते हंसते हम दोनों बाथरूम में गये और एक दूसरे के अंगों को अच्छी तरह धोकर साफ किया, तौलिये से पौंछने के बाद तृप्ति बाथरूम से बाहर निकली, मैं भी तृप्ति के पीछे पीछे बाहर निकला।
तभी मेरी निगाह तृप्ति के नितंबों के बीच के संकरी खाई पर गई मैंने चलते चलते ही उसमें उंगली करनी शुरू कर दी।
तृप्ति कूद कर आगे हो गई और बोली, “अब जरा एक बार टाइम देख लो।”
मैंने घड़ी देखी, 3.30 बजे थे।
तृप्ति ने जाकर पहले ब्रा, पैंटी पहनी फिर नाइट गाऊन उठाया और बाहर निकल गई, मैंने भी जल्दी से टी-शर्ट और निक्कर डाल ली। तब तक तृप्ति दो गिलास में गर्म दूध बना कर ले आई। हम दोनों ने एक साथ बैठ कर दूध पिया, फिर तृप्ति अर्चना के साथ सोने चली गई और मैं अपना बिस्तर ठीक करके वहीं सो गया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
सुबह करीब 5.30 बजे मेरे बदन में हरकत होने के कारण मेरी आंख खुल गई। मैंने देखा मेरे बराबर में अर्चना लेटी हुई थी। रात की अलसाई सी अवस्था में, जुल्फें अर्चना के हसीन चेहरे को ढकने की कोशिश कर रही थी। पर अर्चना इससे बेखबर मेरी बगल में लेटी थी मेरी निक्कर में हाथ डालकर मेरे लिंग को सहला रही थी।
मुझे जागता देखकर अर्चना की हरकत थोड़ी से तेज हो गई, मैं जाग चुका था, अर्चना को पास देखकर मैंने उसको सीने से लगाया, मैंने पूछा- आज जल्दी उठ गई?
अर्चना बोली, “रात तुम्हारा मूड था ना, और मुझे नींद आ रही थी तो मैं जल्दी सो गई, अभी पानी पीने को उठी थी तो तुमको सोता देखकर मन हुआ कि मौका भी है और अभी तो तृप्ति भी सो रही है ना, तो क्यों ना इश्क लड़ाया जाये।” बोलकर अर्चना ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। पर रात की थकान मुझ पर हावी थी। या यूं कहूँ कि मेरे दिल में चोर था मैंने अपनी प्यारी पत्नी को धोखा जो दिया था।
कुछ देर कोशिश करने के बाद अर्चना ने ही पूछा लिया, “क्या हुआ मूड नहीं है क्या?”
अब मैं क्या जवाब देता पर अब मेरी अंर्तरात्मा मुझे कचोट रही थी, रात को जोश अब खत्म हो चुका था, अर्चना मुझसे बार बार पूछ रही थी, “बोलो ना क्या हुआ? मूड खराब है क्या?”
पर मैं कुछ भी नहीं बोल पा रहा था, मेरी चुप्पी अर्चना को बेचैन करने लगी थी आखिर वो मेरी पत्नी थी। यह ठीक है कि यौन संबंध में शायद प्रेयसी पत्नी से अधिक आनन्द विभोर करती है पर पत्नी के प्रेम की तुलना किसी से भी करना शायद पति की सबसे बड़ी बेवकूफी होगी।
मैं अर्चना के प्रेम को महसूस कर रहा था। अर्चना को लगा शायद मेरी तबियत खराब है, यह सोचकर अर्चना बोली- डाक्टर को बुलाऊँ या फिर चाय पीना पसन्द करोगे?
मैंने बिल्कुल मरी हुई आवाज में कहा, “एक कप चाय पीने की इच्छा है तुम्हारे साथ।”
मुझे लग रहा था कि अगर अर्चना को कुछ पता चल गया तो शायद यह मेरी उसके साथ आखिरी चाय होगी। जैसे जैसे समय बीत रहा था मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। अर्चना उठकर चाय बनाने चली गई। मेरी आंखों से नींद गायब थी। फिर भी आँखों के आगे बार बार अंधेरा छा रहा था, जीवन धुंधला सा दिखाई देने लगा।
मैं उठकर टायलेट गया, पेशाब करके वापस आया, और एक सख्त निर्णय ले लिया, कि कुछ भी हो जाये मैं अपनी प्यारी पत्नी से कुछ नहीं छुपाऊँगा। फिर भी मैं इससे होने वाले नफे-नुकसान का आंकलन लगातार कर रहा था। हो सकता है यह सब सुनकर अर्चना कुछ ऐसा कर ले कि मेरा सारा जीवन ही अंधकारमय हो जाये।
यह भी संभव था कि अर्चना मुझे हमेशा के लिये छोड़कर चली जाये या शायद मुझे इतनी लड़ाई करे कि मैं चाहकर भी उसको मना ना पाऊँ! कम से कम इतना तो उसका हक भी बनता था। इन सब में कहीं से भी कोई उम्मीद की किरण दिखाई नहीं थी। मैं अर्चना को सब कुछ बताने का निर्णय तो कर चुका था।
पर मेरे अंदर का चालाक प्राणी अभी भी मरा नहीं था। वो सोच रहा था कि ऐसा क्या किया जाये कि अर्चना को सब कुछ बता भी दूं पर कुछ ज्यादा अनिष्ट भी ना हो। बहुत देर तक सोचने के बाद भी कुछ सकारात्मक सुझाव दिमाग में नहीं आ रहा था। तभी किसी ने मुझे झझकोरा।
मैं जैसे होश में आया, अर्चना चाय का कप हाथ में लेकर खड़ी थी, बोली- क्या बात है? आजकल बहुत खोये खोये रहते हो? हमेशा कुछ ना कुछ सोचते रहते हो। आफिस में सब ठीक चल रहा है ना कुछ परेशानी तो नहीं है ना? जानू, कोई भी परेशानी है तो मुझसे शेयर करो कम से कम तुम्हारा बोझ हल्का हो जायेगा। आखिर मैं तुम्हारी पत्नी हूँ।
अर्चना की अन्तिम एक पंक्ति ने मुझे ढांढस बंधाया पर फिर भी जो मैं उसको बताने वाला था वो किसी भी भारतीय पत्नी के लिये सुनना आसान नहीं था। मैंने चाय की घूंट भरनी शुरू कर दी, अर्चना अब भी बेचैन थी, लगातार मुझसे बोलने का प्रयास कर रही थी। पर मैं तो जैसे मौन ही बैठा था, शेर की तरह से जीने वाला पति अब गीदड़ भी नहीं बन पा रहा था।
तभी अचानक पता नहीं कहाँ से मुझमें थोड़ी सी हिम्मत आई, मैंने अर्चना को कहा, “मैं तुमको कुछ बताना चाहता हूँ?”
अर्चना ने कहा- हाँ बोलो।
मैंने चाय का कप एक तरफ रख दिया और अर्चना की गोदी में सिर रखकर लेट गया, वो प्यार से मेरे बालों में उंगलियाँ चलाने लगी। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और शादी की रात से लेकर आज रात तक की हर वो बात तो मैंने अर्चना से छुपाई थी अर्चना को एक-एक करके बता दी।
वो चुपचाप मेरी हर बात सुनती रही, मैं किसी रेडियो की तरह लगातार बोलता जा रहा था। मैंने किसी बात पर अर्चना का प्रतिक्रिया जानने की भी कोशिश नहीं कि क्योंकि उस समय मुझे उसको वो सब बताना था जो मैंने छुपाया था। सारी बात बोलकर मैं चुप हो गया और आँख बंद करके वहीं पड़ा रहा।
तभी मेरे गाल पर पानी की बूंद आकर गिरी, मैंने आँखें खोली और ऊपर देखा तो अर्चना की आंखों में आंसू थे तो टप टप करके मेरे गालों पर गिर रहे थे! मैं अन्दर से बहुत दुखी था, अर्चना के आंसू पोंछना चाहता था पर वो आंसू बहाने वाला भी तो मैं ही था। मैंने अर्चना की खुशियाँ छीनी थी मैं अर्चना का सबसे बड़ा गुनाहगार था।
मैंने बोलने की कोशिश की, “जानू!”
“चुप रहो प्लीज!” बोलकर अर्चना ने और तेजी से रोना शुरू कर दिया।
मेरी हिम्मत उसके आँसू पोंछने की भी नहीं थी। मैं चुपचाप अर्चना की गोदी से उठकर उसके पैरों के पास आकर बैठ गया और बोला, “मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ, चाहे तो सजा दे दो, मैं हंसते हंसते मान लूंगा, एक बार उफ भी नहीं करूंगा, पर तुम ऐसे मत रोओ प्लीज…” अर्चना वहाँ से उठकर बाहर निकल गई, मैं कुछ देर वहीं बैठा रहा।
बाहर कोई आहट ना देखकर मैं बाहर गया तो देखा अर्चना वहाँ नहीं थी। मैने अर्चना को पूरे घर में ढूंढा पर वो कहीं नहीं थी। मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई, इतनी सुबह अर्चना कहाँ निकल गई। मैंने मोबाइल उठाकर अर्चना को नम्बर पर फोन किया उसका मोबाइल मेरे बैड रूम में रखा था।
तो क्या फिर अर्चना सबकुछ यहीं छोड़कर चली गई? वो कहाँ गई होगी? मैं उसको कैसे ढूंढूंगा? कहाँ ढूंढूंगा? सोच सोच कर मेरी रूह कांपने लगी। मुझे ऐसा लगा जैसी जिदंगी यहीं खत्म हो गई। अगर मेरी अर्चना मेरे साथ नहीं होगी, तो मैं जी कर क्या करूंगा? पर मेरा जो भी था अर्चना का ही तो था। सोचा कम से कम एक बार अर्चना मिल जाये तो सबकुछ उसको सौंप कर मैं हमेशा के लिये उसकी जिंदगी से दूर चला जाऊँगा।
बाहर निकला तो लोग सुबह सुबह टहलने जा रहे थे। किससे पूछूं कि मेरी बीवी सुबह सुबह कहीं निकल गई है किसी ने देखा तो नहीं? मन में हजारों विचार जन्म ले रहे थे। शायद अर्चना अपने मायके चली गई होगी। तो बस स्टैण्ड पर चलकर देखा जाये?
नहीं, हो सकता है वो स्टेशन गई हो। पर कैसे जायेगी, वो आज तक घर का सामान लेने वो मेरे बिना नहीं गई, इतने बड़े शहर में वो कहीं खो गई तो?कहीं किसी गलत हाथों में पड़ गई तो मैं क्या करूंगा? मैंने अर्चना को ढूंढने का निर्णय किया। घर के अन्दर आकर उसकी फोटो उठाई, सोचा कि सबसे पहले पुलिस स्टेशन फोन करके पुलिस को बुलाऊँ वहाँ मेरा एक मित्र भी था।
पर अंदर तृप्ति सो रही थी अगर उसको से सब पता चल गया कि मेरे और उसके संबंधों की वजह से अर्चना घर से चली गई है तो पता नहीं वो क्या करेगी? मेरी तो जैसे जान ही निकली जा रही थी। आंखों से आंसू टपकने लगे। मैंने टेलीफोन वाली डायरी ओर अपना मोबाइल उठाया ताकि छत पर जाकर शांति से अपने 2-4 शुभचिन्तकों को फोन करके बुला लूं।
बता दूंगा कि पति-पत्नी का आपस में झगड़ा हो गया था और अर्चना कहीं चली गई है। कम से कम कुछ लोग तो होंगे मेरी मदद करने को। सोचता सोचता मैं छत पर चला गया। छत कर दरवाजा खुला हुआ था जैसे ही मैंने छत पर कदम रखा। सामने अर्चना फर्श पर दीवार से टेक लगाकर बिल्कुल शान्त बैठी थी।
मुझे तो जैसे संजीवनी मिल गई थी, मैं दौड़ अर्चना के पास पहुँचा, हिम्मत करके उससे शिकायत की और पूछा, “जानू, बिना बताये क्यों चली आई। पता है मेरी तो जान ही निकल गई थी।”
उसने होंठ तिरछे करके मेरी तरफ देखा जैसे ताना मार रही हो। पर गनीमत थी की उसकी आंखों में आंसू नहीं थे। मैं अर्चना के बराबर में फर्श पर बैठ गया, मोबाइल जेब में रख लिया और अर्चना का हाथ पकड़ लिया। मैं एक पल के लिये भी अर्चना को नहीं छोड़ना चाहता था पर चाहकर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था। अभी मैं अर्चना से बहुत कुछ कहना चाहता था पर शायद मेरे होंठ सिल चुके थे।
इसे भी पढ़े – नए नए लंड का चस्का लगा मेरी चूत को
मैं चुपचाप अर्चना के बराबर में बैठा रहा, उसका हाथ सहलाता रहा। मेरे पास उस समय अपना प्यार प्रदर्शित करने का और कोई भी रास्ता नहीं था। अर्चना बहुत देर तक रोती रही थी शायद उसका गला भी रूंध गया था। मैं वहाँ से उठा नीचे जाकर अर्चना के पीने के लिये पानी लाया गिलास अर्चना को पकड़ा दिया। वो फिर से रोने लगी। मैं उसके बराबर में बैठ गया और उसका सिर अपनी गोदी में रख लिया।
तभी अर्चना बोला, “मुझे पता है तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो, इसीलिये शायद जो रात को हुआ वो तुमने सुबह ही मुझे बता दिया तुम्हारी जगह कोई भी दूसरा होता तो शायद इसकी भनक तक भी अपनी पत्नी को नहीं लगने देता। मुझे तुम्हारे प्यार के लिये किसी सबूत की जरूरत नहीं है, ना ही मुझे तुम पर कोई शक है पर खुद पर काबू नहीं कर पा रही हूँ मैं क्या करूं?”
मैं चुप ही रहा।
थोड़ी देर बाद अर्चना फिर बोली, “मुझे नहीं पता था कि कभी कभी किसी की जुबान से निकली बात सच भी हो जाती है?”
इस बार चौंकने की बारी मेरी थी, मैंने पूछा, “मतलब?”
“तृप्ति और मैं बचपन की सहेलियाँ हैं हम एक साथ खाते थे एक साथ पढ़ते थे एक साथ ही सारा बचपन गुजार दिया हमने। मम्मी पापा अक्सर हमारी दोस्ती पर कमेंट करते थे और बोलते थे कि तुम दोनों की शादी भी किसी एक से ही कर देंगे और हम दोनों हंसकर हाँ कर देते थे। मुझे भी नहीं पता था कि एक दिन हमारा वो मजाक सच हो जायेगा।”
“नहीं अर्चना, तुम गलत सोच रही हो, ऐसा कुछ भी नहीं है, मेरी पत्नी की बस तुम हो और तुम ही रहोगी। मैं मानता हूँ मुझसे गलती हुई है पर मैं जीवन में तुम्हारा स्थान कभी किसी को नहीं दे सकता।” बोलकर मैं अर्चना के सिर को सहलाने लगा।
कुछ देर बैठने के बाद मैंने अर्चना को घर चलने के लिये कहा। वो भी उठकर मेरे साथ नीचे चल दी। हम लोग अन्दर पहुँचे तब तक 7.30 बज चुके थे। तृप्ति भी जाग चुकी थी और हम दोनों को ढूंढ रही थी।
जैसे ही हमने अन्दर पैर रखा, तृप्ति बोली, “कहाँ चले गये थे तुम दोनों? मैं कितनी देर से ढूंढ रही हूँ।”
“ऐसे ही आंख जल्दी खुल गई थी तो ठण्डी हवा खाने चले गये थे छत पर।” अर्चना ने तुरन्त जवाब दिया।
मैं उसके जवाब से चौंक गया। वो बिल्कुल सामान्य व्यव्हार कर रही थी। मैंने भी सामान्य होने की कोशिश की और अपने नित्यकर्म में लग गया।