Workplace Sex Stories
मैं सरकारी दफ़्तर में ऑडिटिंग ऑफ़िसर हूँ। हमारी दफ़्तर की शाखाएँ पूरे भारत में हैं और अक्सर मुझे काम के सिलसिले में दूसरे शहर की ब्रांच में 2-3 महीनों के लिए जाना पड़ता है। एक बार मुझे काम के सिलसिले में गोंडा के क़रीब 15 किलोमीटर दूर एक गाँव में जाना पड़ा। वहाँ मुझे 6 महीने का काम था। Workplace Sex Stories
वहाँ पहुँचते ही इस बार मुझे रहने लायक कोई होटल नहीं मिला, इसलिए मैंने वहाँ की एक सराय में कुछ दिनों के लिए रहने का इंतज़ाम किया। वहाँ मेरे लिए सिर्फ़ सोने और नहाने का इंतज़ाम था। दोनों टाइम खाना मुझे होटल में ही खाना पड़ता था। मैंने सोचा चलो 6 महीने की ही तो बात है, किसी तरह गुज़ारा कर लूँगा और मैं नियमित रूप से रूम से दफ़्तर में काम करने लगा।
सराय में केवल मैं रात 8:30 बजे के बाद ही एंट्री कर सकता था, इसलिए मैं दफ़्तर में देर रात 8 बजे तक रुककर काम करता था। वहाँ ज़्यादा कर्मचारी नहीं थे। मेरे लिए सिर्फ़ एक चपरासी थी जिसका नाम मालती बाई था। वो करीब 29 साल की, गेहुँआ रंग की, शरीर में ठीक-ठाक – न ज़्यादा मोटी, न ज़्यादा पतली, न ज़्यादा पढ़ी-लिखी विधवा महिला थी।
उसकी हाल ही में इस दफ़्तर में नौकरी लगी थी क्योंकि उसका पति भी इसी दफ़्तर में चपरासी था और एक ट्रेन एक्सीडेंट में उसकी मौत हो गई थी। इसलिए उसके पति की जगह उसे नौकरी मिल गई थी। उसका एक ही 15 साल का लड़का था जो पढ़ाई करता था। वो अपने बच्चे को ख़ूब पढ़ाना चाहती थी।
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वो बहुत शांत स्वभाव वाली थी। लेकिन उसका शरीर आकर्षक था। कोई भी उसे देखकर ललचाई नज़रों से देखता था, पर उसके विधवा रूप को देखकर लोग उससे सहानुभूति जताते थे। वो दफ़्तर में मेरा ख़ूब ख़याल रखती थी। उसके इस तरह ख़याल रखने से मैंने अनुमान लगाया कि एक तो मैं हेड ऑफ़िस का उच्च वर्गीय कर्मचारी था.
और दूसरा ये कि वो मुझे ख़ुश रखकर अपना अस्थायी पद स्थायी कराना चाहती होगी। ख़ैर जो भी कारण हो, मैं अपने काम में मशगूल रहता था। जब-जब पानी, चाय या फ़ाइल की ज़रूरत होती तो मैं बेल मारकर उसे बुलाता था और वो सबका इंतज़ाम कर देती थी।
और सबसे बड़ी बात ये थी कि जब मैं रात देर तक दफ़्तर में रहता था तो वो भी रात 8 बजे तक रुकती थी। तब दफ़्तर में वॉचमैन, मैं और मालती बाई ही होते थे। शाम को सब कर्मचारियों के जाने के बाद वो मेरे केबिन में आकर कुछ न कुछ काम करती रहती थी। सराय जाते वक़्त मैं उसे घर पहुँचा कर फिर सराय पर जाता था।
एक दिन बातों ही बातों में मैंने मालती से कहा, “मालती, मुझे कई दिन हो गए हैं मटन खाए हुए।”
वो बोली, “साहब जी, मैं आपको बनाकर खिलाऊँगी। आप शनिवार को मेरे घर आजाना, मैं आपको दोपहर में मटन बनाकर खिला दूँगी।”
मैंने कहा, “एक शर्त है, मटन के पैसे मैं दूँगा।” और कहते हुए उसे 200 रुपये दे दिए।
शनिवार को दफ़्तर की छुट्टी रहती है। मैं सराय से नहा-धोकर करीब 10 बजे निकला (हम सुबह-सुबह 10 बजे सराय से निकल जाते हैं और शाम को 8 बजे ही एंट्री मिलती थी)। पहले तो मैं बाज़ार घूमा और शराब की दुकान से बीयर लेकर वहीं शराब की दुकान में बीयर पी और मालती के घर की ओर चल पड़ा। रास्ते से उसके बेटे के लिए कुछ फल और बिस्कुट ख़रीद लिया।
जब मालती के घर पहुँचा तो मालती काफ़ी ख़ुश हुई और शानदार तरीक़े से स्वागत किया। जब वो मुझे अपने बेटे से मिलवाई तो बोली, “बेटा, ये हमारे बड़े साहब हैं और समझो कि ये तुम्हारे मामा जैसे हैं।”
और जब मैंने उसके बेटे को फल-बिस्कुट दिए तो वो काफ़ी ख़ुश होकर कहने लगा, “मामा जी, आप कितने अच्छे हैं!” और वो बाहर नाचता हुआ खेलने चला गया। मालती का मकान तो बड़ा था पर उसमें केवल 2 कमरे थे। एक तो स्टोर रूम जैसा था और एक कमरा शायद बेडरूम होगा। लेकिन उसका आँगन बहुत बड़ा था और बड़े आँगन के एक कोने में छोटा सा किचन बना हुआ था, उस पर शेड था ताकि खाना बनाते वक़्त धूप-बारिश से बचा रहे। दूसरी तरफ़ एक छोटा सा बाथरूम और एक टॉयलेट था।
मुझे मालती ने आँगन में खाटिया डालकर बिठाया और बोली, “साहब जी, खाने से पहले कुछ पीना पसंद करेंगे? क्योंकि मेरा भाई जब भी मिलने आता है वो शराब पीता है। उसकी शराब की बोतल में कुछ शराब बची है, अगर आप चाहें तो ले आती हूँ।”
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मैंने कहा, “चलो आप कहती हो तो थोड़ी पी लेता हूँ।”
फिर वो शराब की बोतल, ग्लास और पापड़ लाई और मुझे कहा, “साहब, कमरे में चलिए, वहाँ ठंडक रहेगी।” और वो मुझे अपने कमरे में ले जाकर पलंग पर बिठा दिया और ख़ुद मेरे सामने प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ गई।
पीते-पीते मैं उसके परिवार वालों के बारे में बातें करता रहा। उसने बताया कि जब से उसका बेटा हुआ है तब से उसका पारिवारिक जीवन दुखों से घिरा रहा। उसका पति रोज़-रोज़ शराब पीकर आता था और खाना खाकर बिस्तर पर खर्राटे मारने लगता था। सुबह वो उसे उठाया करती थी और ज़बरदस्ती दफ़्तर भेजती थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मेरे पति के हिस्से में जो भी ज़मीन-जायदाद थी, इस मकान को छोड़कर मेरे देवरों ने हड़प लिया। खेत छोड़िए इन बातों को। अब तो मेरा उद्देश्य केवल बेटे को पढ़ा-लिखाकर बड़ा साहब बनाना है, बाक़ी ईश्वर की मर्ज़ी। “वैसे साहब, आप रोज़-रोज़ इतनी रात 8 बजे तक क्यों काम करते हो और सुबह भी आप जल्दी आ जाते हो?”
तब मैंने उसे सराय के नियमों के बारे में बताया कि मैं रात 8:30 बजे के बाद ही सराय में एंट्री कर सकता हूँ और सुबह 8:30 बजे तक ही सराय में रुक सकता हूँ। इसलिए मुझे दफ़्तर जल्दी आना पड़ता है और देर तक रुकना पड़ता है और खाना भी मुझे बाज़ार से खाना पड़ता है। यहाँ पर डंग का कोई होटल नहीं है जहाँ मैं रुक सकूँ, खाना खा सकूँ। ख़ैर कुछ ही महीनों की बात है, सहन कर लूँगा।
तब वो बोली, “साहब, आप बुरा न मानें तो जब तक आप यहाँ हैं, क्या आप हमारे गरीब खाने में रुक सकते हैं?”
मैंने कहा, “ये तो बहुत अच्छी बात है। मैं कल से ही तुम्हारे घर आकर रहने लगूँगा।”
और खाना खाकर थोड़ा आराम करके रात 8 बजे मैं उसके घर से निकला और समयानुसार सराय पहुँच गया।
रविवार को सुबह मैं अपना सामान समेटकर उसके घर 11 बजे पहुँचा। उसने मेरा सामान अपने कमरे में रख दिया और बोली, “साहब, मैं कमरे के सामने आपके लिए सोने का इंतज़ाम कर दूँगी। आप रात को वहाँ सो जाना। हालाँकि मकान छोटा है लेकिन आशा है कि सराय से तो अच्छा होगा।”
मैंने कहा, “चिंता मत करो मालती, मैं एडजस्ट कर लूँगा।” और फिर मैं बाज़ार गया और कुछ सब्जियाँ, ब्रेड-बटर लेकर आया।
रात में खाना खाने के बाद हम सब कमरे के सामने बिस्तर लगाकर सोने की तैयारी करने लगे। मेरे साथ उसका बेटा सोने की ज़िद करने लगा तो मालती ने उसका बिस्तर मेरे साथ लगा दिया और अपना बिस्तर कुछ ही दूरी में लगाकर हम सब करीब रात 10:30 बजे सो गए।
सुबह मालती ने मुझे उठाया। मैं फ्रेश होकर उसके साथ नाश्ता किया। जब से यहाँ आया था तब से घर का खाना तो दूर, नाश्ता भी नसीब नहीं हुआ था। फिर पहले मैं दफ़्तर पहुँचा। करीब आधे घंटे बाद मालती अपने बेटे को स्कूल छोड़कर दफ़्तर पहुँच गई।
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उस दिन मैंने दफ़्तर में सबको बता दिया था कि सराय की समस्या देखकर मालती ने मेरे लिए उसके घर रहने का इंतज़ाम कर दिया है। सब कर्मचारी ख़ुश हुए और बोले, “साहब जी, ये तो बड़ी अच्छी बात है। इस बहाने आप उसकी देखभाल भी करेंगे और बेचारी को आपके द्वारा दिए हुए किराए से एक्स्ट्रा इनकम होगी।”
फिर मैं रोज़ 6:30 बजे दफ़्तर से निकल जाता था। मालती कभी-कभी मेरे साथ घर लौटती थी या कभी-कभी 6 बजे दफ़्तर से निकल जाती थी। हम लोग रात को कमरे के बाहर ही सोते थे। मेरे साथ मालती का बेटा सोता था और उसके बगल में मालती सोती थी।
मालती अक्सर मेरे सामने ऐसे बैठती थी कि उसका साड़ी का पल्लू नीचे गिरा हुआ होता था जिससे उसकी चूचियों का उभार साफ़ नज़र आता था। मालती का बाथरूम एक कोने में था और बाथरूम का दरवाज़ा नीचे से करीब 2 फ़ुट ऊँचा था। और अक्सर जब वो नहाकर पेशाब करती थी तब मुझे उसके बड़े-बड़े चूतड़ दिखाई देते थे।
उसकी गांड को देखकर मेरा लंड फड़कने लगता था पर उसके शांत स्वभाव के मारे मेरी हिम्मत नहीं होती थी। एक बार हम लोगों की शुक्रवार से लेकर सोमवार तक दफ़्तर की छुट्टी थी। 4 दिन छुट्टी होने के कारण मैं काफ़ी मूड में था। उसका कारण ये था कि गुरुवार को हमने खाना खाकर बातें करते-करते हमेशा की तरह कमरे के बाहर सो गए।
अचानक रात करीब 1 बजे मेरी नींद खुली तो मुझे सिसकारियों की आवाज़ें सुनाई दीं। मैंने आवाज़ की तरफ़ देखा तो मालती सिसकारियाँ भर रही थी। चाँद की रोशनी में मुझे उसका खुला हुआ ब्लाउज़ दिखा और उसकी साड़ी-पेटीकोट कमर तक ऊँचा हुआ था।
वो अपने दाहिने हाथ से खीरा (ककड़ी) को अपनी चूत के अंदर-बाहर कर रही थी और बायें हाथ से अपनी दाहिनी चूची को मसल-मसलकर दबाते हुए ऊऊफ़्फ़्फ़ ह्ह्हाआआ ऊउईईईई ह्ह्हऊऊऊम्म्म्म कह रही थी। यह नज़ारा देखकर तो मैं दंग रह गया। मैंने अब तक उसे काफ़ी अच्छी औरत समझा था।
कुछ ही मिनटों में वो हाँफ़ने लगी। मैं समझ गया कि वो झड़ चुकी थी। फिर उसने अपना ब्लाउज़ और साड़ी ठीक किया और सो गई। पर मेरी आँखों में नींद नहीं थी और बार-बार मन में विचार आ रहे थे कि मैं तो उसे इज़्ज़तदार औरत समझकर सम्मान करता था, लेकिन वो तो काफ़ी आगे निकल गई। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
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ख़ैर, मैंने अपने मन को मना कर सोचा, आख़िर वो भी तो एक औरत है, उसकी भी तो कोई चाहत होगी जैसे हर मर्दों की होती है। मर्द तो बेशर्म होते हैं, पर औरत जात कैसे अपने को बेशर्म होकर मर्द की तरह किसी से भी चुदवा सकती है? यह सोचते-सोचते पता नहीं कब मुझे नींद आ गई।
सुबह जब मेरी आँख खुली तो मालती नहा रही थी और सुबह-सुबह मुझे उसकी गांड के दर्शन हो गए। तब मैंने सोच लिया, दीनू बेटा छोड़ ये लज्जा-शरम और बजा दे मालती का बाजा। ख़ैर, उठकर मैंने उसके बेटे को उठाया और चाय बनाने लगा।
जब वो नहाकर वापस आई तो उसने केवल पेटीकोट को अपनी चूचियों पर बाँध रखा था और बालों को तौलिये से लपेटा था। मुझे देखकर वो चौंक गई और बोली, “साहब, आज तो छुट्टी है, आप जल्दी उठ गए। आपने चाय क्यों बनाई, मुझे आवाज़ दे देते।”
मैंने कहा, “आप नहा रही थीं तो सोचा चलो आज मैं ही चाय बना देता हूँ।” और दो कप में चाय डालने लगा।
जब उसे ध्यान आया कि वो तो केवल पेटीकोट में है तो शरमाते हुए वो कमरे में चली गई। मैं भी चाय का कप लेकर उसके कमरे में गया और बोला, “लो मालती, चाय लो। तुम हमेशा मेरे लिए चाय-पानी लाकर देती हो, आज मैं तुम्हें चाय दे रहा हूँ।”
तब उसने कहा, “साहब जी, आप चाय टेबल पर रख दीजिए, मैं पी लूँगी।”
मैं टेबल पर चाय रखकर नहा-धोकर फ्रेश होकर आँगन में बैठ गया। वो नाश्ता लेकर आई और हम तीनों – माँ-बेटा और मैं – नाश्ता करने लगे। आज मुझे महसूस हुआ कि मालती अलग अंदाज़ में मुझसे बतिया रही थी और आज तो वो काफ़ी ख़ूबसूरत भी लग रही थी।
फिर मैंने मालती से कहा, “चलो आज मटन खाएँगे। मैं बेटे को स्कूल छोड़कर आऊँगा और आते वक़्त मटन भी लेकर आऊँगा। तब तक तुम मटन की तैयारी कर लो।”
फिर मैंने उसके बेटे को स्कूल छोड़ा और व्हिस्की की 2 बोतलें और मटन लेकर आया। मालती मटन बनाने लगी और मैं आँगन में बैठकर व्हिस्की पीने लगा। पीते-पीते मैं मालती को भी देख रहा था। वो खाना बनाते-बनाते मुझसे बात भी कर रही थी। मुझे बार-बार उसकी गांड जो आज सुबह-सुबह देखी थी, अब भी मेरी नज़रों के सामने घूम रही थी।
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मैं केवल लुंगी और बनियान पहने हुए था। उसने सफ़ेद रंग का महीन ब्लाउज़ और साड़ी पहनी हुई थी। उसका सारा काम जब ख़त्म हुआ तो हम लोगों ने खाना खाया और मैं कमरे के बाहर थोड़ी देर के लिए सो गया और वो कमरे में जाकर सो गई। शाम को उसने मुझे 5:30 बजे उठाकर चाय दी। फिर कुछ देर हम लोग बातें करने लगे। उसका बेटा स्कूल से आ चुका था।
तब मैंने मालती से कहा, “चलो बाज़ार घूमकर आते हैं।” तो वो तैयार हो गई और बेटे को भी तैयार करके हम लोग बाज़ार पहुँच गए।
बाज़ार में मैंने उसके बेटे को एक ड्रेस दिलाया और उसे नाइटी दिलाई और सब्जासब्जियाँ लेकर करीब 8 बजे हम घर पहुँचे। घर पहुँचकर उसने नाइटी पहन ली और मुझे दिखाई, “साहब जी, यह मुझे पर जँच रही है क्या?” उसे नाइटी में देखकर मैं दंग रह गया क्योंकि नाइटी महीन कपड़े की गुलाबी रंग की थी जिसमें से उसकी चूचियों के निप्पल झलक रहे थे। मैंने कहा, “बहुत ख़ूब जँच रही है, ज़रा पीछे घूमकर दिखाओ।”
वो पीछे मुड़ी तो मुझे रोशनी में नाइटी ने अंदर से उसकी गांड दिखाई दे रही थी। उसने ब्रा या पैंटी नहीं पहनी थी।
मैंने कहा, “मालती जी, इसमें तो आप बहुत ख़ूबसूरत दिखाई दे रही हो।”
वो लजा के मारे लाल-लाल हो गई और फिर वो काम करने लगी और मैं व्हिस्की पीने लगा। रात करीब 11 बजे हम खाना खाकर बिस्तर पर लेट गए। मुझे कब नींद आई पता ही नहीं चला। और जब नींद खुली तो देखकर हैरान हो गया था। उसका बेटा मेरे बगल से उठकर उसके बगल में सोया था।
मालती मेरे क़रीब ही लेटी थी और उसकी नाइटी का बटन खुला हुआ था जिसमें से उसकी एक चूची बाहर निकली हुई थी। उसकी नाइटी उसके कमर तक सरकी हुई थी। उसका बायाँ हाथ मेरी छाती पर था और एक पैर जो कि बिलकुल नंगा था मेरे टाँगों पर रखा हुआ था।
यह सब देखकर तो मेरा लंड फनफनाता हुआ खड़ा हो गया। मैंने आहिस्ता से लंड को बाहर निकालकर सोने का नाटक करते हुए उसके और क़रीब सरक गया। मेरा मुँह उसकी चूची पर था और लंड उसके जाँघों के बीच से उसके चूत के मुँहाने पर था।
इसी पोज़िशन में कुछ देर तक पड़ा रहा। मेरे लंड पर उसकी चूत की गर्मी महसूस हो रही थी कि अचानक मैंने देखा कि उसका पैर मेरे पैर से हट चुका था और वो उठकर शायद बाथरूम जाने लगी तो मैं डर के मारे ऐसे ही लंड को बाहर निकाले सोने का नाटक करता रहा।
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कुछ देर बाद वो वापस आई तो मैंने धीरे से आँख खोलकर देखा कि वो मेरे लंड पर तेल की डिब्बी से तेल डाल रही थी। फिर उसने अपनी चूत पर ढेर सारा तेल लगाकर जैसे पहले सोई थी उसी अवस्था में मेरे पैरों के ऊपर पैर रखकर नाइटी को कमर तक सरका कर लंड को जाँघों के बीच से अपनी चूत के मुँहाने पर रखा।
और धीरे से मेरी ओर चिपक गई जिस कारण मेरे लंड का आधा सुपाड़ा उसकी चूत में समा गया। उसकी इस हरकत से मेरी हिम्मत बढ़ी और मैं भी उससे लिपट गया और गांड हिलाकर ज़ोर से झटका मारा तो लंड का सुपाड़ा उसकी चूत में घुस गया।
वो समझ गई कि मैं जग गया हूँ तो वो कान में फुसफुसाते हुए बोली, “चलो कमरे में चलते हैं, यहाँ पर बेटा उठ जाएगा तो गज़ब हो जाएगा।”
हम दोनों कमरे में आए और दोनों एकदम से नंगे हो गए। मैंने उसे पीठ के बल लिटाकर उसके पैरों के बीच आ गया और उसकी गांड के नीचे एक तकिया रखा और उसके दोनों पैरों को ऊपर उठाकर लंड को चूत की मुँहाने पर रखकर एक ज़ोरदार धक्का मारा तो लंड का सुपाड़ा उसकी गरम-गरम चूत में समा गया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
फिर और कसकर धक्का मारा तो लंड सरसराता हुआ आधा उसकी चूत में घुस गया। वो बोली, “ऊऊफ़्फ़्फ़ साहब जी, आपका लंड तो बहुत बड़ा है, दर्द हो रहा है, ज़रा आहिस्ता-आहिस्ता डालिए।”
फिर मैंने आहिस्ता-आहिस्ता कमर हिलाकर लंड को चूत के अंदर-बाहर करने लगा। थोड़ी देर तक ऐसे ही करता रहा। फिर जोश में आकर कसकर धक्का मारा तो मेरा लंड पूरा उसकी चूत को चीरता हुआ उसकी बच्चेदानी से टकरा गया। उसके मुँह से निकला, “ऊऊईईई माँ मर गई रे, धीरे डालो दर्द हो रहा है।”
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फिर मैं थोड़ी देर चूत में लंड डाले उसे चूमने लगा और चूचियों को सहलाने लगा। जब वो नॉर्मल हुई तो मैंने पम्पिंग शुरू कर दी। अब उसे मज़ा आने लगा और मेरे हर धक्के में अपनी गांड ऊँची उठाकर लंड राज को चूत रानी में लेने लगी और सिसकारियाँ भरते हुए बोल रही थी, “ऊऊफ़्फ़ चोदो मुझे ज़ोर-ज़ोर से चोदो। कई सालों से इस भूखी चूत ने लंड नहीं खाया है। फाड़ डालो आज इस चूत को अपने मोटे लंड से। और ज़ोर से मेरे राजा, और ज़ोर से चोद।” मैं फटाफट कमर हिलाकर उसकी चूत में लंड अंदर-बाहर कर रहा था।
जब लंड उसकी चूत में पूरा चला जाता था तब मेरा अंडकोष उसकी गांड से भिड़ जाया करता था। पूरे कमरे में चुदाई की फचाफच की आवाज़ें गूँजने लगीं। वो अब तक 2 बार झड़ चुकी थी। थोड़ी देर बाद मैंने उसकी चूत में झड़ गया। दोनों पसीने से लथपथ थे और हाँफ़ रहे थे। कुछ देर ऐसे ही पड़े रहे। फिर उठकर कपड़े पहनकर अपनी-अपनी जगह पर सो गए। अब मैं हर रात उसे चोदा करता था और वो भी मुझसे मज़े ले-लेकर चुदवाती थी। लेकिन मालती ने कभी भी मुझे उसकी गांड मारने नहीं दी थी।
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