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आनंदी को उसकी माँ की चुदाई दिखा कर पेला

जून 30, 2023 by hamari

Village Teen Sex

मैं बिहार के एक गाँव का हूँ। बंगलौर में, इंजिनियरिंग कर रहा हूँ। उम्र 22 साल, रंग गोरा और मजबूत कद काठी। सेक्स के बारे में, उस समय मैं ज़्यादा कुछ नहीं जानता था। बस कभी कभार पेड़ पर, झाड़ियों में छुप कर गाँव की लड़कियों और औरतों को नहाते और उनको अपनी छातियों को मलते देखा है। Village Teen Sex

मेरी गाँव में, काफ़ी लंबी चौड़ी जमींदारी है। बड़ी सी हवेली है। नौकर चाकर। घर में, वैसे तो कई लोग हैं। पर, मुख्य हैं – मेरे पापा, माँ, चाचा और चाची। सोहन, हमारी हवेली का मुख्य नौकर है और उसकी पत्नी, माधुरी मुख्य नौकरानी। मेरे पापा, करीब 52 के होंगे और माँ करीब 48 की।

मेरा जन्म, इस हवेली में हुआ है और यहीं पर मैंने अपना पूरा बचपन और जवानी के कुछ साल बिताए हैं। सोहन की उम्र, तकरीबन 42 की होगी और माधुरी की करीब 36–37 की। उनकी बेटी आनंदी की उम्र, तकरीबन 17-18 की होगी। जो की, मेरे से करीब 5 साल छोटी थी।

बचपन में, आनंदी मेरे साथ ही ज़्यादातर रहती थी। मैं उसे पढ़ाता था और हम साथ में खेला भी करते थे। हमारा पूरा परिवार, सोहन और माधुरी को बहुत मानता था। मैं तांगे पर बैठा था और तांगा, अपनी रफ़्तार से दौड़ रहा था। मेरे गाँव का इलाक़ा, अभी भी काफ़ी पिछड़ा हुआ है और रास्ते की हालत तो बहुत ही खराब थी।

जैसे तैसे, मैं अपने गाँव के करीब पहुँचा। यहाँ से मुझे, करीब पाँच किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी थी। शाम हो आई थी। मैंने जल्दी जल्दी, चलना शुरू कर दिया। गाँव पहुँचते पहुँचते, रात हो गई थी। मेरे घर का दरवाजा, खुला हुआ था।

मुझे ताजूब नहीं हुआ क्योंकि मेरे परिवार का यहाँ काफ़ी दबदबा है। मैं अंदर घुसा और सोच रहा थे की सब कहाँ गये और तभी मुझे, आनंदी दिखाई पड़ी। मैंने उसको आवाज़ लगाई। वो तो एकदम से हड़बड़ा गई और खुशी से दौड़ कर, मेरे सीने से आ लगी।

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उसने मुझे, अपने बाहों में भर लिया। मैंने भी उसको अपनी बाहों में भर कर, ऊपर उठा लिया और उसे घुमाने लगा। वो डर गई और नीचे उतारने की ज़िद करने लगी। मैंने उसकी एक ना सुनी और उसे घूमता ही रहा। तभी एकदम अचानक से, मुझे उसकी “जवानी” का एहसास हुआ।

एकदम से गदराई हुई छाती, मेरे सीने से दबी हुई थी। एक करेंट सा लगा, मुझे। रोशनी हल्की थी, इसलिए मैं चाह कर भी उसकी चूचियाँ नहीं देख पाया पर देखने की क्या ज़रूरत थी। मैं उसके बूब्स का दबाव, भली भाँति समझ रहा था।

मैंने धीरे से, आनंदी को उतार दिया। आनंदी खड़ी होकर, अपनी उखड़ी हुई साँस को व्यवस्थित करने लगी। मैं उस साधारण रोशनी में भी, उसके सीने के उतार चढ़ाव को देख रहा था। एक मिनट बाद, वो मेरी तरफ झपटी और मेरे सीने पे मुक्के मारने लगी।

मैं हंसता हुआ, उसकी तरफ लपका तो वो भागने लगी। मैंने पीछे से, उसको दबोच लिया। वो, हंस रही थी। मुझे उसकी निश्चल हँसी, बहुत ही प्यारी लगी लेकिन मेरे मन में “शैतान” जागने लगा था। जब मैंने उसको दबोचा तो जान बुझ कर, मैं उसके पीछे हो गया और पीछे से ही उसको अपने बाहों के घेरे में ले लिया।

बचपन के साथी थे, हम इसलिए उसको कोई एतराज नहीं था। ऐसा, मैं सोच रहा था। मैंने धीरे से, अपना उल्टा हाथ उसके सीधे मम्मे पर रख दिया और बहुत ही हल्के से दबा भी दिया। हे भगवान!! मैंने कभी भी सोचा ना था की लौंडिया की चूची दबाने में, इतना मज़ा आता है। मेरे मुँह से एक सिसकारी, निकलते निकलते रह गई।

मैंने उसे यूँ ही दबाए हुए पूछा – घर के सब लोग, कहाँ गये हैं.. !!

उसने उसी मासूमियत से जवाब दिया की सब लोग पास के गाँव में शादी में गये हैं और घर पर उसके माँ और पिताजी के अलावा और कोई नहीं है.. !!

बात करते हुए, मैं उसकी चूची को सहला रहा था। वो घाघरा चोली में थी और उसने कोई ब्रा नहीं पहनी थी। मैं बता नहीं सकता, साहब की मैं कौन से आसमान पर उड़ रहा था। उसकी मस्त चूची का ये एहसास ही, मुझे पागल किए दे रही थी।

पर मैं हैरान था की उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया क्यूँ नहीं हो रही है। हम आँगन में खड़े थे और मैं बहुत हल्के हल्के, उसकी चूचियों को सहला रहा था और वो हंस हंस के मुझसे बात किए जा रही थी। उसने खुद को मुझसे छुड़ाने की ज़रा भी कोशिश नहीं की।

मुझे एक झटका सा लगा। क्या आनंदी एकदम इनोसेंट (मासूम) है और उसे सेक्स के बारे में कुछ भी नहीं पता। मेरे मन ने मुझे धिक्कारा और मैं एक दम से, जैसे होश में आया और आनंदी को छोड़ दिया। फिर उसने मेरा सूटकेस उठाया और हम दोनों, मेरे कमरे की तरफ चल पड़े। नहा धो कर, मैंने शॉर्ट और बनियान पहन लिया और अपने कमरे की खिड़की पर खड़ा हो गया।

हमारे गाँव में लाइट कम ही आती है, इसलिए लालटेन से ही ज़्यादातर काम होता है। बरामदे की लालटेन की रोशनी आँगन में पड़ रही थी और चाँद की रोशनी भी। तभी मैंने माधुरी को, आँगन में आते हुए देखा। उसके हाथ में, कुछ सामान था। वो सामान को एक तरफ रख कर खड़ी हुई थी की आँगन में, मेरे चाचा ने प्रवेश किया।

चाचा – क्या रे, माधुरी.. !! भैया भाभी, सब आए की नहीं.. !!

माधुरी – कहाँ मालिक, अभी कहाँ.. !! उनको तो लौटने में, काफ़ी देर हो जाएगी.. !!

चाचा – और सोहन.. !!

माधुरी – वो तो शहर गये हैं.. !! कुछ कोर्ट का काम था.. !! बड़े मालिक ने भेजा है.. !! शायद, आज ना आ पाए.. !!

चाचा – हूँ.. !! तो फिर आज पूरे घर में कोई नहीं है.. !!

माधुरी – जी मालिक.. !!

चाचा – अच्छा, ज़रा पानी पिला दे.. !!

मैं अपनी खिड़की पर ही खड़ा था, जो की दूसरी मंज़िल पर है। उन दोनों को ही, मेरे आगमन का पता नहीं था। चाचा खटिया पर बैठ कर, अपने मूँछो पर ताव दे रहे थे। अचानक, वो उठे और उन्होंने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया। उनकी ये हरकत, मुझे बड़ी अजीब लगी।

दरवाज़ा बंद करने की क्या ज़रूरत थी। मेरा माथा ठनका। मैं कुछ सोच पता इसके पहले ही, माधुरी एक प्लेट में गुड और जग में पानी ले कर आई। चाचा ने पानी पिया और उठ खड़े हुए। माधुरी जैसे ही जग लेकर घूमी, चाचा ने उसका हाथ पकड़ लिया।

कहानी को बीच में रोकते हुए, मैं माधुरी के बारे मैं कुछ बता दूँ। एकदम, “मस्त माल” है। 5 फीट 4 इंच की लंबाई, मेहनत कश शरीर, पतली कमर, भरा पूरा सीना – 36 साइज़। एकदम से उठाव लिया हुआ, मानो उसके स्तन आपको चुनौती दे रहे हो की आओ और ध्वंस कर दो, इन गगनचुंबी पर्वत की चोटियों को। भारी भारी गाण्ड, मानो दो बड़े बड़े खरबूजे। जब चलती है तो गाँव वालों में, हलचल मच जाती है।

सारे गाँव वाले सोहन से जलते थे की साले ने क्या तक़दीर पाई है। मस्त चोदता होगा, यह माधुरी को और माधुरी भी इसे निहाल कर देती होगी। मैंने खुद कई बार लोगों को उसकी छातियों की तरफ या फिर, उसके गाण्ड की तरफ ललचाई नज़रों से घूरते हुए देखा है। मैं तब, इसका मतलब नहीं जानता था। खैर, चाचा के इस बर्ताव से माधुरी हड़बड़ा गई। चाचा ने उसे अपनी तरफ खींचा तो वो जैसे होश में आए।

माधुरी – मालिक, ये आप क्या कर रही हैं.. !!

चाचा – क्यों क्या हुआ.. !! तू मेरी नौकरानी है.. !! तुझे मुझे हर तरह से, खुश रखना चाहिए.. !!

माधुरी – नहीं मालिक.. !! मैं और किसी की बीवी हूँ.. !!

चाचा – साली, रांड़.. !! नखरे मारती है.. !! सालों से, कम से कम 100 बार तुझे चोद चुका हूँ.. !! कौन जाने, आनंदी मेरी बेटी है या सोहन की.. !!

माधुरी ने ठहाका लगाया और बोली – अरे मालिक, आपको तो गुस्सा आ गया.. !! आओ, मेरे मालिक मेरा दूध पिलो और अपना दिमाग़ ठंडा करो.. !! असल में, मैं तो खुद कब से इस घड़ी का इंतज़ार कर रही थी की किसी दिन यह घर खाली मिले और आनंदी के बापू भी घर में ना रहें.. !!

उस दिन आप के साथ, “पलंग कबड्डी” खेला जाए.. !! पर मालिक, मैं औरत हूँ.. !! थोड़ा नखरा दिखना तो बनता है.. !! आपने तो मुझे रांड़ बना दिया.. !! वैसे, सच में मालिक आप बड़ा मस्त चोदते हैं.. !! मैं तो आपके चोदने के बाद, 2–3 दिन आनंदी के बापू को छूने भी नहीं देती.. !! इतना “नशा” रहता है, आपसे चुद कर.. !!

इतना कहते कहते, माधुरी ने चाचा की धोती में हाथ डाल दिया। चाचा भी उसकी दोनों मस्त चूचियों पर पिल पड़े और ज़ोर ज़ोर से, उसे दबाने और मसलने लगे। माधुरी ने चाचा का हथोड़ा बाहर निकाला और उसे ज़ोर से चूमने लगी। मैं खिड़की पर खड़ा सब देख रहा था और मन ही मन, सोच रहा था की कैसे इस माधुरी को चोदा जाए।

अगर मौका मिले तो उसको “ब्लैक मेल” किया जा सकता है। घर पर शायद संभव ना हो सके पर बहाने से, उसे खेत में ले जाकर तो चोद ही सकते हैं। अभी भी साली, क्या मस्त माल लगती है। मेरे मुँह में, जैसे पानी आ गया। मेरा लण्ड, हरकत करने लगा था।

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तभी माधुरी ने, चाचा से कहा – मालिक, आज तो घर में कोई नहीं है.. !! क्यों ना आज, कमरे में आराम से “चुदाई चुदाई” खेले.. !! हर बार, आप मुझे खेत में ही चोदे हैं.. !! वो भी हड़बड़ी में.. !! आज मैं, आपको पूरा सुख देना चाहती हूँ और पूरा सुख लेना भी चाहती हूँ.. !!

चाचा भी फ़ौरन तैयार हो गये और माधुरी को गोद में उठा कर, अपने कमरे की तरफ चल दिए। मैं थोड़ा दुखी हो गया क्यों की अब ये चुदाई देखने को नहीं मिलेगी। चाचा का कमरा, आँगन के पास निचली मंज़िल में था। मेरे कमरे के बाहर, छत के दूसरे कोने में दो कमरे और एक बाथरूम बना हुआ था।

सोहन का परिवार, उसी में रहता था। मैंने आनंदी को अपने कमरे की तरफ, आते हुए सुना। मैंने झट से अपना लण्ड शॉर्ट के अंदर किया और बाहर की तरफ आया। आनंदी सामने से, आ रही थी। मैं तुरंत दरवाजे के पीछे छुप गया और जैसे ही, आनंदी मेरे कमरे के सामने से निकली मैंने पीछे से उसको दबोच लिया।

मैं सावधान था इसलिए मेरा एक हाथ, उसके मुँह पर और एक हाथ उसके सीने पर रखा और ज़ोर से उसकी लेफ्ट चूची को दबा दिया। आनंदी के मुँह से एक घुट घुटि चीख निकल गई पर मुँह पे हाथ होने की वजह से, चीख बाहर नहीं निकली।

जब उसने मुझे देखा तो राहत की साँस लेते हुए, बोली – छोटे मालिक.. !! अपने तो मुझे डरा ही दिया था.. !!

मैने उसके मुँह से अपना हाथ हटाया और फिर पीछे से दोनों हाथ, उसकी दो चूचियों पर रखा और ज़ोर से दबा दिया।

वो हड़बड़ा गई और बोली – क्या करते हो.. !! दर्द होता है.. !!

मैंने फिर से, उसकी दोनों चूचियों को ज़ोर से दबाया।

उसने सवालिया निगाहों से मुझे देखा और कहा – आज, आपको हुआ क्या है.. !! ऐसे भी कोई दबाता है क्या.. !! मुझे लगता नहीं क्या.. !! और झट से, मेरे से दूर चली गई।

मेरे मुँह में, पानी भरा हुआ था। क्या मस्त चुचे थे, यार। एकदम.. !! एकदम.. !! अब क्या बोलूं। आप समझ जाइए। मेरा मन तो उसका दूध पीने का कर रहा था। लेकिन, उसकी बातों ने ये सिद्ध कर दिया था की वो एकदम भोली है और सेक्स के बारे में कुछ नहीं जानती।

मुझे लगा की मेरी किस्मत खुलने वाली है। आज तो मैं इसको, चोद कर ही रहूँगा। ज़्यादा से ज़्यादा, ये अपनी माँ से शिकायत करेगी और मेरे पास माधुरी को काबू में रखने का “तुरुप का इक्का” तो था ही। साली, नीचे कमरे में चाचा से चुदवाने की तैयारी कर रही थी।

मैंने आनंदी से पूछा – तुझे दुख रहा है.. !!

आनंदी – हाँ.. !!

मैं – ला, अच्छे से दबा दूँ.. !! नहीं तो हमेशा, ऐसा ही दुखेगा.. !!

आनंदी झट से, मेरे पास आ गई। मैंने उसकी छातियों को, हौले हौले दबाया। वो कुछ ना बोली, बस ऐसे ही खड़ी रही। कोई “एक्सप्रेशन” भी नहीं था, चेहरे पर। मुझे पूरा विश्वास हो गया की सचमुच, उसे कुछ पता नहीं है। मैंने एक प्लान बनाया और उससे बोला – एक मिनट, मेरे कमरे में बैठ और मैं अभी आता हूँ.. !! मैं नीचे उतरा।

मुझे पता ही था की चाचा और माधुरी के अलावा, घर मैं सिर्फ़ मैं और आनंदी ही थे। चाचा और माधुरी की लापरवाही की मुझे पूरी आशा थी इसलिए मैंने बगल के कमरे में जा कर, दरवाजे के की होल से अंदर झाँका। सिर्फ़ चाचा ही दिख रही थे और वो हाथ में ग्लास ले कर, पलंग पर बैठे थे।

माधुरी, शायद नहाने गई थी। मैं घूम कर बाथरूम के पीछे गया और खिड़की के साइड से झाँक कर देखा तो मेरा अंदाज़ा सही निकला। माधुरी, पूरी नंगी हो कर नहा रही थी। बाथरूम में, कमरे की रोशनी आ रही थी। वो पर्याप्त तो नहीं थी पर फिर भी मैं माधुरी को उस रूप मैं देख कर पगला गया।

हाय!! क्या मस्त लग रही थी। पानी उसके जिस्म पर गिर रहा था और पूरा बदन एकदम “मलाई मक्खन” की तरह दिख रहा था। वो बड़ी बड़ी चूचियाँ, जो आज तक सबके लिए सपना थीं, मेरे आँखों के सामने “नंगी” थीं। बड़ी मुश्किल से, मैंने अपने आप को संभाला और और आगे बढ़ कर पीछे के स्टोर रूम में चला गया।

खोजते खोजते, मुझे दरवाजे में एक बड़ा छेद दिखाई दिया। आँखें गड़ाई तो अंदर चाचा के कमरे का पूरा सीन दिखाई पड़ रहा था। मेरी इच्छा तो वही रुक कर, चाचा से माधुरी की चुदाई की पूरी फिल्म देखने का था पर ऊपर आनंदी बैठी थी।

उसको चोदने की इच्छा, इस फिल्म से ज़्यादा मायने रखती थी। मैं ये सोच रहा था की आनंदी को कैसे पटाया जाए। वो तो सेक्स के बारे में, कुछ भी नहीं जानती थी। जब ऊपर पहुँचा तो देखा, वो मेरे कमरे पर कुर्सी पर बैठी है। मैंने उससे, बात चीत शुरू की।

मैं – आनंदी और सुना.. !! आज कल, क्या हो रहा है.. !!

आनंदी – कुछ नहीं.. !! बस, ऐसे ही.. !!

मैं – तो सारा दिन बस मटरगस्ति हो रही है.. !! पढ़ाई लिखाई का क्या हुआ.. !!

आनंदी – नहीं.. !! अब, मैं स्कूल नहीं जाती.. !! घर पर ही रहती हूँ.. !!

मैं धीरे से उसके पीछे खड़ा हो गया और उसके कंधों पर हाथ रख कर बोला – और सेक्स.. !! कभी सेक्स किया है.. !!

आनंदी – क्या बोले.. !! मैं कुछ समझी नहीं.. !!

मैं – तुझे सेक्स के बारे में, कुछ नहीं पता.. !!

आनंदी – नहीं.. !! ई क्या होता है.. !!

मैं – वो जिंदगी का सबसे बड़ा आनंद होता है.. !! अच्छा, एक बात बता.. !! तेरे माँ बापू, तेरी शादी की बात नहीं करते.. !!

आनंदी (शरमाते हुए) – हाँ करते हैं ना.. !! जब तब, मुझे टोकते रहते हैं.. !! ये मत करो, वो मत करो.. !! अब तेरी शादी होने वाली है.. !! वहाँ ससुराल में, यही सब करेगी क्या.. !! ऐसे.. !! मेरे को तो, उसकी कोई बात ही समझ में नहीं आती है.. !!

मैंने उसे धीरे से अपनी ओर खींचा और उसे अपने बाहों में भर कर बोला – तू तो बहुत भोली है.. !! इतनी बड़ी हो गई पर है बिल्कुल बच्ची ही.. !!

वो मेरे से चिटक गई और गुस्से से बोली – मैं बच्ची नहीं हूँ.. !!

मैंने कहा – अच्छा.. !! और हँसने लगा।

तो उसने तुरंत साँस भर कर अपना सीना फूला लिया और बोली – देखो.. !! क्या मैं बच्ची लगती हूँ.. !! नहीं ना.. !! मैं अब बड़ी हो गई हूँ.. !! मैंने हंसते हंसते, उसको अपनी बाहों में भर लिया और उसका सिर चूम लिया। मैंने फिर धीरे धीरे उसके होठों पर एक छोटा सा किस किया तो वो बोली – छोड़िए ना.. !! क्या करते हो.. !!

मैंने उससे कहा – तुम बड़ी तो हो गई हो.. !! पर, अब तुम्हें बड़े वाले काम भी करने होंगे.. !! वो मेरी तरफ देखने लगी.. !!

मैंने पूछा – सच बता, कभी क्या तूने अपने माँ पापा को “पलंग पोलो” खेलते देखा है.. !!

आनंदी – क्या.. !! मैं समझी नहीं.. !!

मैं – तेरे माँ पापा, रात को साथ सोते हैं.. !!

आनंदी – हाँ.. !!

मैं – तो फिर, तू कहाँ सोती है.. !!

आनंदी – बगल वाले, कमरे में.. !!

मैं – तूने कभी रात को माँ पापा के कमरे में उनको बिना बताए, झाँक कर देखा है.. !!

आनंदी – नहीं.. !! मैं जब रात को सोती हूँ तो फिर सुबह ही मेरी नींद खुलती है, वो भी माँ के जगाने पर.. !! बहुत चिल्लाती है, वो.. !! कहती है की मैं एकदम बेहोश सोती हूँ.. !! रात को कोई अगर, मेरा गला भी काट जाएगा तो मुझे पता भी नहीं चलेगा.. !! और वो हंसने लगी।

मैंने अपना जाल फेंका – तू जानना चाहेगी की रात को तेरे सोने के बाद, तेरे माँ पापा कैसे “पलंग पोलो” खेलते हैं.. !!

आनंदी – सच में, आप मुझे दिखाएँगें.. !!

मैं – हाँ!! पर एक शर्त है की तू एकदम मुँह पे ताला लगा कर रहेगी.. !! चाहे कुछ भी हो जाए, एक आवाज़ नहीं निकलेगी.. !!

आनंदी – ठीक है.. !!

मैं – खा, मेरी कसम.. !!

आनंदी (झिझकते हुए) – आपकी कसम.. !!

मैं आनंदी को लेकर, नीचे उतरा। मैंने इशारा कर दिया था की कोई आवाज़ ना हो। मैं आनंदी को, उसकी “माँ की चुदाई” दिखाने ले जा रहा था। उसके बाद, मैं उसको आज की रात ही भरपूर चोद कर युवती से औरत बनाने वाला था। दबे पाँव, हम स्टोर रूम में आ गये।

मैंने छेद में आँख लगाई तो देखा, माधुरी एकदम नंगी हो कर चाचा के लिए जाम बना रही थी और चाचा बिस्तर पर बैठ कर, अपने हथियार में धार दे रहे थे। माधुरी के हाथ से ग्लास लेकर, चाचा ने साइड टेबल पर रखा और माधुरी को अपनी तरफ खींच लिया।

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माधुरी मुस्कुराते हुए, उनके पास आ गई। चाचा ने अपने दोनों हाथों से उसके दोनों “अमृत कलश” को थाम लिया और उसे सहलाते हुआ बोले – आज तो बहुत मज़ा आएगा.. !! लगता है, आज तेरी जवानी फिर से वापस आ गई है, माधुरी.. !! मां कसम, बड़ा मज़ा आ रहा है.. !!

फिर दोनों, एक दूसरे के लिप्स चूसने लगे। मैं धीरे से हटा और आनंदी को भीतर देखने का इशारा किया। आनंदी ने छेद में आँख डाल कर, देखना शुरू किया। मैं तैयार था। जैसे ही, आनंदी ने भीतर देखा उसकी तो जैसे साँस ही रुक गई।

वो झटके से ऊपर उठी तो मैंने उसके मुँह पर हाथ रख दिया और स्टोर रूम से बाहर ले आया। आनंदी के पैरों मैं जैसे जान ही नहीं रह गई थी। मैं उसे खींचता हुआ, थोड़ी दूर पर ले गया। फिर, मैंने उसके मुँह से हाथ हटाया। उसने बड़ी अजीब सी नज़रों से मुझे देखा और कहा – ये क्या हो रहा था, भीतर.. !! माँ, कैसे मालिक के सामने ऐसे खड़ी थी और मालिक ये क्या कर रहे थे.. !!

अब मैं, वाकई दंग रह गया। एक जवान गाँव की 16-17 साल की लड़की और उसे सेक्स के बारे में, कुछ भी नहीं पता। सच में.. !! ??? मैंने आनंदी के चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर कर उसके हाथ पर एक चुंबन लगा दिया.

और बोला – इसे ही “पलंग पोलो” कहते हैं.. !! वो दोनों “जवानी का खेल” खेल रहे हैं। जो की हर मर्द एक औरत के साथ खेलता है। तुम भी खेलोगी, एक दिन और तुम्हें बहुत ही मज़ा आएगा। ये इंसान की जिंदगी का, सबसे बड़ा आनंद होता है। और देखना चाहोगी.. !! – मैंने पूछा। वैसे तुम्हें बता दूँ अभी तो ये बस शुरुआत ही है.. !! इस खेल में, अभी दोनों खिलाड़ी बड़े बड़े पैंतरे दिखाएँगें.. !!

आनंदी के चेहरे पर, अजीब सा “भाव” था। वो आगे बढ़ी और फिर से, छेद में आँख गड़ा कर देखने लगी। चाचा पलंग पर पैर फैला कर बैठे थे और माधुरी का स्तन चूस रहे थे। एक हाथ में, एक स्तन दबोचे हुए थे और दूसरे हाथ से, उसकी गाण्ड सहला रहे थे। उनका मुँह, दूध पीने में व्यस्त था।

माधुरी, अपने दोनों हाथों से चाचा का लण्ड सहला रही थी। फिर उसने अपने आप को छुड़ाया और चाचा के लौड़े पर टूट पड़ी। उसने पूरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया और “चुसूक चुसूक” चूसने लगी, जैसे जिंदगी में पहली बार, लोलीपोप चूस रही हो।

चाचा की आँखें आनंद से बंद हुई जा रही थीं और उनके मुँह से आनंद की सीत्कार निकल रही थी – आह ओफफ्फ़.. !! और ज़ोर से, मेरी रानी.. !! और ज़ोर से.. !! कितना मज़ा आ रहा है.. !! करीब पाँच मिनट तक, ये चलता रहा। फिर मैंने आनंदी को हटाया और खुद आँख लगा के देखने लगा।

चाचा अब माधुरी को पलंग पर लिटा कर, उसकी चूत चूस रहे थे। तभी आनंदी ने मुझे हटाया और खुद, फिर से देखने लगी। उसका चेहरा तमतमा रहा था और उसकी साँसें तेज हो रही थीं। मैं उसके सीने के उतार चढ़ाव को बखूबी महसूस कर रहा था।

माधुरी भी आनंद में सरोवार थी और हल्के हल्के सिसकारियाँ ले रही थी – मालिक क क क, बहुत मज़ा जा आ रहा है.. !! आह आँह.. !! फूह यान्ह.. !! आ आ आ आ आ आ आ आ उंह.. !! आआ ज़ोर से चूसो ना.. !! ये मादार चोद, सोहन तो कभी भी मेरी चूत नहीं चाटता है.. !!

इयान्ह ह ह ह ह ह आह आ आ आ आह ह हा.. !! आप ना मिले होते तो, मैं इस आनंद से वंचित ही रह जाती.. !! ओ मेरी माँ मज़ा गया, मेरे मालिक.. !! उफ्फ मा ह उंह आह.. !! आप मुझे, अपने पास ही रख लीजिए.. !! मैं आपकी दासी बन के रहूंगी, मेरे मालिक.. !! और ज़ोर से.. !! हाँ.. !! और ज़ोर से.. !!

और फिर, वो चाचा के मुँह मे ही झड़ गई। झर झर, जैसे झरना बहता है उसका रस वैसे ही फुट पड़ा और चाचा ने एक बूँद भी बाहर जाने नहीं दी। सब का सब ही, चाट गये। मैं इस बीच मौका देख कर, आनंदी के पीछे से चिपक कर खड़ा हो गया था।

आनंदी थोड़ा हिली, पर मैं पीछे से ना हटा। आनंदी ने फिर से, अपनी आँख छेद में लगा दी। मैंने धीरे धीरे, उसकी पीठ सहलाना शुरू किया। फिर आगे बढ़ते हुए, उसकी गर्दन भी सहलाने लगा। मैं समझ रहा था की आनंदी की साँसे और तेज हो रही थीं।

मैंने धीरे से उसका लहंगा उठा कर, उसकी कमर तक चढ़ा दिया और उसकी गाण्ड पर हाथ फेरने लगा। आनंदी, चिहुंक उठी और उसने गुस्से से मेरी तरफ देखा और अपना लहंगा नीचे कर लिया। मैं भी मौके की नज़ाकत को समझते हुए, 2 मिनट के लिए चुप चाप खड़ा हो गया और आनंदी को भीतर का मज़ा लेने दिया।

अंदर चाचा और माधुरी, पलंग पर पड़े हाँफ रहे थे। फिर चाचा उठे और माधुरी से चिपक गये और फिर से, उसका दूध पीने लगे। थोड़ी देर बड़ा, उन्होंने अपना लण्ड माधुरी के मुँह में पेल दिया और माधुरी उसे मज़े लेकर चूसने लगी।

चाचा का हथियार तो पहले से ही तैयार था। चाचा ने माधुरी को उठाया और बिस्तर पर पटक दिया और खुद भी, माधुरी के ऊपर चढ़ गये। चाचा ने अपना हथियार सेट किया और एक झटके में उसे, माधुरी की चूत में पेल दिया। माधुरी, गरगरा उठी।

ओह!! मेरे मालिक.. !! अन्म आह इस्स.. !! आह आह अहहहाहा आह अह आ आ अहहा.. !! इयै याया आ आ या अय हेया.. !! आह आह अहहाहा हहाहा आइ इह इयाः आह.. !! आ आ आ आ स स स स स स स स स.. !! इनहया याः इया या या या या या ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह.. !! उई माआअ.. !! आहा आहा अया।

चाचा ने उसके दूध को बेदर्दी से निचोड़ते हुए, धक्का लगाना शुरू कर दिया। माधुरी, सिसकारियाँ ले रही थी। उसकी चूत तो वैसे भी गरम ही थी और ऊपर से चाचा का लण्ड, जबरदस्त धौंक रहा था। कमरे में फूच फूच की आवाज़ गूँज रही थी।

माधुरी अब “जल बिन मछली” की तरह, तड़प रही थी। मेरे मालिक.. !! और ज़ोर से.. !! फाड़ दो, इसको आज.. !! चोद दो, सारी ताक़त लगा के.. !! ज़ोर लगा के, मेरी जान.. !! ज़ोर से, ज़ोर से.. !! मार डाल, मुझे.. !! छोड़ना मत और चोदो.. !! और ज़ोर से, दम लगा के.. !! आह आँह.. !! फूह यान्ह.. !! आ आ आ आ आ आ आ आ उंह.. !! इयान्ह ह ह ह ह ह आह आ आ आ आह ह हा.. !! उफ्फ मा ह उंह आह.. !!

वो बकती जा रही थी और चाचा, पेलते जा रहे थे। चूत और लण्ड के बीच “घमासान युद्ध” हो रहा था और हम दोनों, मूक दर्शेक बन कर इस युद्ध का मज़ा ले रहे थे। मैं अपनी मंज़िल की तरफ, धीरे धीरे बढ़ रहा था। मैंने फिर से, आनंदी का लहंगा ऊपर उठना शुरू किया।

आनंदी की साँस धौकनी की तरह चल रही थी। लेकिन, उसने छेद से आँख नहीं हटाई। मैंने धीरे से, उसकी गाण्ड पर हाथ रखा। उसने, कोई पैंटी नहीं पहनी थी। नंगी गाण्ड को छूने से, मुझे जैसे एक ज़ोर का झटका लगा। पहली बार, किसी की गाण्ड पर हाथ रखा था।

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उफ!! कितनी नरम थी, गाण्ड। धीरे धीरे, मैंने उसको सहलाना शुरू कर दिया। आनंदी ने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और वो अंदर की तरफ ही देखती रही। मैं थोड़ी देर तक, गाण्ड सहलाने के बाद उसके पैरों के बीच में अपना हाथ ले गया।

एकदम से मुझे हाथ हटाना पड़ा क्योंकि वो जगह तो भट्टी की तरह दहक रही थी। आनंदी भी थोड़ा सा मचली, पर फिर से स्थिर हो गई। मैं धीरे धीरे, उसकी चोली की गाँठ ढीली करने लगा। अब मेरा हाथ आराम से, उसकी चोली के भीतर जा सकता था।

मैंने एक लंबी साँस भरी और अपना हाथ धीरे धीरे, उसकी चूची की तरफ बड़ाने लगा। मेरा लण्ड एक दम तन गया था और शॉर्ट में एक टेंट बन रहा था। जब मेरी उंगली ने उसकी निप्पल को छुआ तो आनंदी के मुँह से, सिसकारी निकल पड़ी।

मैंने फ़ौरन उसका मुँह अपने हाथ से दबा दिया और उसके कान में फुसफुसाया – कोई आवाज़ नहीं, वरना मारे जाएँगे.. !!

अंदर चाचा ने, अपनी रफ़्तार बढ़ा दी थी। माधुरी अपने दोनों पैरो को फैला कर लेटी थी और चाचा उस पर चढ़े हुए थे। घच घच.. !! पच पच.. !! फॅक फूच.. !! आवाज़ हो रही थी। चाचा दे दाना दान, दे दाना दान चोद रहे थे और माधुरी चीख रही थी।

वो आनंद के सागर में, पूरी तरह डूबी हुई थी। बहुत मज़ा आ रहा है, मालिक.. !! और ज़ोर से, करो ना.. !! और फिर माधुरी का जिस्म अकडने लगी वो चिल्लाई – अन्म आह इस्स.. !! आह आह अहहहाहा आह अह आ आ अहहा.. !! इयै याया आ आ या अय हेया.. !! आह आह अहहाहा हहाहा आइ इह इयाः आह.. !! आ आ आ आ स स स स स स स स स.. !! इनहया याः इया या या या या या ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह.. !! उई माआअ.. !!

चाचा, अब पूरी रफ़्तार से माधुरी की चूत को रौंदने लगे। फिर, एक साथ दोनों की साँस रुक गई और चिल्लाते हुए दोनों झड़ गये। चाचा माधुरी के ऊपर ही, निढाल हो कर गिर पड़े। माधुरी ने अपने पैरों को चाचा की कमर से लपेट लिया आर चाचा को अपनी बाहों में भर लिया और लेटे लेटे हाँफने लगे।

माधुरी ने उनको एक प्यारा सा चुंबन दिया और पस्त हो कर, लेट गई। ये सब देख कर, आनंदी की हालत खराब हो रही थी। उसको लग रहा था की उसकी चूत में जैसे, “आग” लगी हो। मेरा सहलाना उसको, अच्छा लग रहा था। मैंने जब उसकी एक चूची को दबोचा तो वो तिलमिला गई और फिर जब मैंने उसके निप्पल को टच किया तो वो थरथरा गई और उठ कर खड़ी हो गई।

मेरा हाथ उसकी चूची पर ही था, मैंने हौले से उसको फिर से दबाया तो उसने मेरा हाथ हटा दिया और वहाँ से निकल गई। वो ठीक से, चल नहीं पा रही थी। शायद इतना सब कुछ देख कर, खुद को संभाल पाना उसके लिए संभव ना था। मैं भी उसके पीछे पीछे, वहाँ से निकल आया। वो सीढ़ियों पर सहारा ले कर, चढ़ रही थी।

मैं भी उसके पीछे पीछे, ऊपर चढ़ा। वो मेरे कमरे के सामने थोड़ा रुकी और आगे बढ़ गई। मैने सोचा – आज नहीं तो फिर कभी नहीं.. !! उसने अभी अभी, अपनी “माँ” को चुदते देखा है। इंसान ही तो है। ज़रूर “गरम” हो गई होगी। इससे अच्छा मौका, मुझे मिलने वाला नहीं था।

मैंने उसका हाथ पकड़ कर, अपनी तरफ खींचा और बिना विरोध के वो मेरी बाहों में आ गई। मैंने उसे धकेलते हुए, अपने कमरे में ले आया और अपने बेड की तरफ धकेला। वो मेरे बिस्तर पर, भड़भाड़ा कर गिर पड़ी। जैसे उसमें, कोई जान ही नहीं बची हो।

मैंने उसे पानी पिलाया और उसकी तरफ देखने लगा। वो मारे शरम के, आँखें बंद कर के लेटी हुई थी। मैंने हिम्मत की और आगे बढ़ा। मैंने उसकी चुचियों को उसकी चोली के ऊपर से ही सहलाने लगा। उसने एक बार आँख खोल कर, मेरी तरफ देखा और फिर आँखें बंद कर लीं।

मेरा हौसला अब बढ़ गया। मैंने उसे एक साइड मैं धकेला और फिर उसकी चोली की सारी डोरी खोल दी। उसने आँखें बंद कर रखीं थीं और उसी तरह उसने अपने हाथों को आगे सीने पर बाँध लिया। मैंने उसकी बाहों को सहलाते हुए, उसके हाथों को हाटने की कोशिश की पर उसने नहीं हटाए।

मैं मुस्काराया। वो शर्मा रही थी। मैंने झुक कर, उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए और उसे चूसने लगा। आनंदी ने, कोई प्रतिक्रिया नहीं की। मैंने फिर और ज़ोर से, उसके होठों को अपने होठों में दबाते हुए एक लंबा सा किस किया।

मैं उसके होंठ, ज़ोर ज़ोर से चूस रहा था। फिर मैंने अपनी जीभ उसके होठों को ज़ोर दे कर खोलते हुए, उसके मुँह में डाल दी। मुझे भी उसकी जीभ की हरकत महसूस हुई और फिर तो जैसे, हम एक दूसरे के होठों से ही पीने की कोशिश कर रहे थे।

मैं उसकी जीभ चूस रहा था तो कभी, वो मेरी जीभ चूस रही थी। मैं धीरे से उसकी बगल में लेट गया और मेरे हाथ, उसके जिस्म पर चारों तरफ फेरने लगा। मेरी साँसें गरम हो रही थी। मैं बिल्कुल पगला गया था और आनंदी की साँस भड़क रही थी।

उसकी पहली सिसकारी सुनाई दी, मुझे – उन्म: मैं और जोश में आ गया और ज़ोर लगा कर, उसका हाथ उसके सीने से हटा दिया और पीछे हाथ डाल कर, उसकी चोली निकाल फेंकी। उसने झट से, अपने हाथों से अपना सीना ढँक लिया। मैंने उसकी आँखों में आँखें डाल कर, उसका हाथ वहाँ से हटा दिया।

जैसे, एक “बिजली” सी चमकी। उसके दोनों “अमृत कलश” मेरे सामने थे। पूरे नंगे। मैंने उसकी आँखों में झाँका और अपने होंठ उसके गोल, गोरे, बेहद मुलायम स्तन पर गड़ा दिए। उसकी अन्ह: निकल गई और वो – इस्स स स स स स.. !! सिसकारियाँ लेने लगी।

मेरे दोनों हाथ, उसके नग्न उरेज को मसल रहे थे। साहब, कितना मज़ा आ रहा था की मैं बयान नहीं कर सकता। मैं पहले तो धीरे से और फिर पागलों की तरह उसके चुचक चूसने और मसलने लगा। आनंदी, हाँफती हुई बोली – धीरे.. !! धीरे.. !! बहुत दर्द होता है.. !!

लेकिन, मुझे होश कहाँ था। मन कर रहा था की उसकी पूरी चूची को ही, अपने मुँह में घुसा लूँ। उसके निप्पल, एकदम सख़्त हो गये थे। एक “किशमिश के दाने” के बराबर पर उसे चूसने और काटने में बड़ा ही आनंद आ रहा था। आनंदी के मुँह से लगातार सिसकारियाँ फुट रही थीं – नहीं स स स स स.. !! उन्हम्मह म म म म म.. !! आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ.. !!

उसके हाथ, मेरे बालों में घूम रहे थे और वो अपने हाथों से मेरा सिर अपने छाती में दबा रही थी। अचानक, आनंदी ने अपने दोनों पैर ऊपर उठाए और मेरी कमर पे लपेट दिए। उसकी साँस, धौकनी की तरह चल रही थी। हम दोनों ही, पसीने में नहा चुके थे।

मैं धीरे धीरे, नीचे की तरफ बढ़ रहा था। मेरे हाथ, उसके जिस्म को चूमते ही जा रहे थे। मैं नाभि पर आ कर रुक गया। एक छोटा सा छेद था। नाभि का छेद, बहुत ही संवेदनशील होता है। मैंने अपनी जीभ उस छेद में घुमाई तो आनंदी कराह उठी – उन्हम्म.. !! इनयः इस्स उफ्फ फूहस आह हह आ आ आ आह उन्म आह आ हह आह.. !!

मैं धीरे धीरे से उसकी नाभि को काट रहा था और चूस रहा था। हम दोनों काफ़ी गरम हो चुके थे और हमारे मुँह पूरे लाल हो गये थे। मैं फिर ऊपर आ गया और कभी उसके होठों को तो कभी उसके दूध को चूस रहा था। आनंदी की कराह भी बढ़ती जा रही थी। लेकिन वो, गाँव की “शरीफ” लड़की थी।

उसकी आँखें, अभी भी बंद थीं। मैं उसके ऊपर से उठ पड़ा और बगल में बैठ कर चाँद की रौशनी में उसका चेहरा निहार रहा था। वो आनंद में डूबी हुई, अपने हाथ खुद ही चबा रही थी। मैंने धीरे से पुकारा – आनंदी.. !! उसने अपनी आँखें खोली और मेरी तरफ देखा।

मैंने उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया और बोला – आई लव यू.. !!

वो बोली – क्या.. !! ??

मैंने कहा – मैं तुमसे प्यार करता हूँ, आनंदी.. !!

वो एक टक मुझे ताकती रही और फिर एक झटके में उठ कर, मेरे से लिपट गई। मैंने अपने होंठ उसकी तरफ बढ़ाए और उसने भी वही किया। हम फिर से एक दूसरे के होठों को चूस रहे थे। मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाली तो फ़ौरन उसने उसे अपने दांतो से दबा लिया और हल्के हल्के काटने लगी और चूसने लगी।

मैंने उसे लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़ गया। अपना हाथ मैंने, उसके घाघरे के ऊपर से ही उसकी चूत पर रख दिया। वो जैसे, बिल्कुल तिलमिला गई। मैंने महसूस किया की वो नीचे पूरी गीली हो गई है। मैंने उसके घाघरे का नाडा खींचा तो उसने एक हल्का सा विरोध किया और अपने घाघरे को पकड़ कर लेटी रही।

मैंने फिर से कोशिश की तो वो सिर हिला कर “ना ना” करने लगी। मैं हंस पड़ा और ज़बरदस्ती उसकी डोरी खींच दी और घाघरे को नीचे सरका दिया। मेरे सामने “जन्न्त की गुफा का दरवाजा” दिखाई पड़ रहा था। गुफा के बाहर हल्की हल्की झाड़ियाँ उगी हुई थीं, जो की मुलायम रेशमी बालों की थीं।

उफ्फ!! नंगी चूत.. !! मैंने अपना हाथ उसकी नंगी चूत पर रख दिया और धीरे धीरे रगड़ने लगा। एक बार मैंने सोचा की अपना लण्ड उसके मुँह में दूँ पर फिर मैंने फ़ैसला किया की पहली बार है, पहले चोद ही लेता हूँ। “चूसना चूसाना” अगली बार, कर लेंगे। मैंने उसकी टाँगों को खोल दिया और अपनी एक उंगली, उसकी चूत में डाल दी।

नहीं गई, जनाब। बड़ा ही तंग रास्ता था, उस जन्नत की गुफा का। मैं उठा और तेल की शीशी ले कर, फिर से पलंग पर आ गया। मैंने अपने लण्ड पर बढ़िया से तेल लगाया और फिर आनंदी की चूत में भी तेल लगाने लगा। आनंदी, कसमसा रही थी। मैंने निशाना लगाया और धीरे से, अपने लण्ड को उसकी चूत पर रख कर सहलाने लगा।

आनंदी, अब घबराने लगी थी। मैंने धीरे से पुश किया। मैं जानता था की इसकी चूत बहुत ही ज़्यादा टाइट होगी और अगर, मैंने ज़ोर ज़बरदस्ती की तो ये चिल्लाने लगेगी, दर्द के मारे। फिर तो, बवाल होने की पूरी संभावना थी। नीचे चाचा और माधुरी चोदा चादी करने के बाद, एक ही बिस्तर में एक दूसरे से गुथम गुत्था सो रहे थे। अगर, वो उठ जाते तो मेरी तो खैर नहीं थी।

इसलिए, मैंने आनंदी से कहा – आनंदी, अब मैं तुझे चोदने जा रहा हूँ.. !! मेरी बात ध्यान से सुनो.. !! जब मैं अपना लण्ड तुम्हारी चूत में डालूँगा तो तुम्हें थोड़ा दर्द होगा.. !! क्योंकि ये तुम्हारा पहली बार हैं.. !! इसलिए.. !! लेकिन, कुछ देर बाद ये दर्द चला जाएगा और तुम्हें मैं भरपूर मज़ा और आनंद दूँगा.. !! तो प्लीज़, एकदम आवाज़ नहीं करना.. !! ठीक है.. !! क्यूंकी अगर किसी ने सुन लिया तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी.. !!

आनंदी ने कोई जवाब नहीं दिया। बस “हाँ” में सिर हिला दिया।

मैंने फिर कहा – आनंदी, ये मेरा वादा है मैं तुम्हें भरपूर सुख दूँगा.. !! इतना मज़ा तुम्हें पहले कभी नहीं आया होगा.. !! तुमने तो खुद माधुरी को आनंद में चीखते हुए, सुना ही है.. !!

आनंदी ने फिर सिर हिलाया। मैं अब तैयार था। मैंने अपने लण्ड को उसकी चूत पर रखा और रगड़ने लगा। आनंदी, सनसना रही थी। उसका शरीर मारे उत्तेजना के काँप रहा था। मैंने फिर शुभारंभ किया।  टोपी को घुसने में ही, मुझे बहुत तकलीफ़ हो रही थी।

ना जाने, आगे क्या होने वाला था। मैंने अपने तेल लगे हुए लण्ड को, छेद पर रखा और एक ज़ोर का झटका लगाया। साथ ही, मैंने आनंदी के मुँह पर अपना हाथ ढक्कन की तरह चिपका दिया। आनंदी के मुँह से, घुट घुटि चीख निकल गई।

उसको लगा जैसे, किसी ने उसकी चूत में एक “दो धारी तलवार” डाल दी है। उसकी आँखों से, आँसू छलक आए। मैंने अपना हाथ नहीं हटाया और एक और झटका लगाया। अभी तक सिर्फ़ सुपाड़ा ही अंदर गया था। मुझे खुद, काफ़ी जलन हो रही थी।

आनंदी मेरे नीचे से निकलने के लिए तड़प रही थी और पूरे ज़ोर से, मुझे धकेलने की कोशिश कर रही थी। मैं जानता था की अगर, आज मैं हार गया तो ये चिड़िया कभी मेरे फंदे में नहीं आईगी। उसकी चूत भी, बहुत ज़्यादा टाइट थी।

मैंने अपने दाँतों को दबाते हुए, एक और धक्का मारा। करीब 80% तक, मेरा लण्ड उसकी चूत में धँस गया था। मैंने अपना हाथ नहीं हटाया था। आनंदी जैसे, रहम की भीख माँग रही थी। मैंने उसको फुसफुसा के बोला – एकदम शांत पड़ी रहो, वरना और दर्द होगा.. !! अभी 2-3 मिनट में, सब ठीक हो जाएगा.. !!

मैं उसके ऊपर लेट गया और उसके दूध को चूसने लगा और उसके निप्पल को अपने दाँतों से सहलाने लगा। थोड़ी देर बाद, आनंदी का जिस्म थोड़ा ढीला पड़ा और वो थोड़ा शांत हुई तो मैंने फाइनल धक्का मारा। मेरा लण्ड पूरी तरह, आनंदी की चूत की गिरफत में था।

मैं फिर शांत पड़ा रहा। थोड़ी देर बाद, मैंने अंदर बाहर करना शुरू किया। बहुत धीरे धीरे। आनंदी के जिस्म में भी, हरकत होने लगी थी। उसने अपनी बाहों का हार, मेरी गर्देन के चारों तरफ डाल दिया था और अपनी कमर भी थोड़ा थोड़ा उठाने लगी थी।

मैं समझ गया की शिकार अब चुदवाने के लिए, तैयार है। मैंने दूसरा गियर डाला और स्पीड थोड़ी और बढ़ा दी। कसम लण्ड के बाल की!! इतना मज़ा मैंने कभी भी महसूस नहीं किया था। मैं नहीं जानता था की लौंडिया को चोदने में इतना मज़ा आता है।

हम “मिशनरी पोज़िशन” में चुदाई कर रहे थे। आनंदी भी हाँफ रही थी और सिसकारी भर रही थी। उसका दर्द अब ख़त्म हो गया था और वो अपनी जवानी लूटा कर, जवानी के मज़े लूट रही थी। उसके हाथ मेरी पीठ पर काफ़ी तेज़ी से घूम रहे थे और मैं “जबरदस्त चुदाई” कर रहा था।

मेरी रफ़्तार टॉप गियर पर थी और हम दोनों के मुँह से, आहें निकल रही थीं। मैं बीच बीच में झुक कर, उसकी चूचियों को अपने मुँह में दबोच लेता था और ज़ोर ज़ोर से चूसते हुए उसको चोद रहा था। आनंदी की सिसकारियाँ, अब चीख में बदल रही थीं पर वो मेरे कहे मुताबिक, सावधान थी और हल्के हल्के ही चीख रही थी।

आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ.. !! उन्हम्म.. !! इनयः इस्स उफ्फ फूहस आह हह आ आ आ आह उन्म आह आ हह आह.. !! आह आह अहह.. !! नहीं स स स स स.. !! उन्हम्मह म म म म म.. !! आहम्म उईईए सस्स्शह.. !! अहहआहम्म.. !! मर र र र र र गई ई ई ई ई ई.. !! या या आह आ आ आ ह ह ह ह ह.. !!

अचानक आनंदी का शरीर अकड़ने लगा और वो ज़ोर से मचलने लगी। उसकी बाहों का दायरा कसने लगा और वो ज़ोर से मेरी छाती में चिपक कर, झड़ गई। मैंने अपने लण्ड पर उस के उबाल की गरमी को महसूस किया। आनंदी अब, निढाल पड़ी थी ।

मैंने और रफ़्तार बड़ाई और उसको दबा दबा के चोदने लगा। उसका “कामरस” उसकी चूत में मेरे लण्ड के घर्षण से फूच फूच की आवाज़ पैदा कर रहा था। मैं तो सातवें आसमान की सैर कर रहा था और धक्के लगाए जा रहा था। 1-2 मिनट के बाद, मेरी साँस भी रुकने लगी।

मेरी गोलियों में तनाव पैदा होने लगा और मैं भी गया। मैंने दना दना कई फव्वारे खोल दिए, आनंदी की चूत में और गले सा अजीब सी आवाज़ निकालते हुए, आनंदी के ऊपर ही गिर पड़ा। मैं आनंद के सागर में हिलोरे ले रहा था और मुझे पता था की आनंदी भी हिलोरे ले रही होगी।

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थोड़ी देर बाद, आनंदी कसमासने लगी और मुझे धकेलने लगी। मैं उठा और पलट कर वहीं सो गया। सुबह भोर में जब मेरी आँखें खुली तो सुबह हो गये थी और पेट में चूहे दौड़ रहे थे। भूख के मारे, बुरा हाल था। अचानक, मुझे होश आया की आनंदी बिल्कुल “नंगी” मेरे पास ही सो रही थी। उसकी नंगी काया को देखते ही, मेरा लण्ड फिर से जोश में आने लगा। उसके होठों पर, एक प्यारी सी मुस्कान तैर रही थी। उसके दूध, खुली रौशनी में बहुत ही प्यारे लग रहे थे। मैं अपने को रोक ना पाया और उसकी एक निप्पल को चूसने लगा और दूसरी छाती को, अपने हाथों से मसलने लगा।

आनंदी की आँख खुल गई। उसने भी तुरंत प्यार से मुझे अपनी बाहों में समेट लिया और फिर, हम एक दूसरे के होठों का रस पीने लगे। अचानक, मुझे झटका लगा और मैं हड़बड़ा के उठ गया। आनंदी से बोला – जल्दी कपड़े पहनो और निकलो.. !! किसी ने देख लिया तो गजब हो जाएगा। वो भी हड़बड़ा के उठी और अपनी चोली और लहंगा पहन कर, धीरे से वहाँ से निकल गई। शुक्र था की अभी घर के लोग सो कर नहीं उठे थे क्योंकि सब रात को शादी से, बहुत देर से आए थे।

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