Train Toilet Me Girl Chudai
रात के ठीक ढाई बज रहे थे। गर्मी अपने चरम पर थी। लखनऊ जंक्शन की प्लेटफॉर्म पर खड़ी ट्रेन के जनरल कोच में इतनी भीड़ थी कि पैर रखने की जगह भी नहीं बची थी। मैं, अर्जुन शर्मा, २७ साल का लखनऊ का लड़का, दिल्ली से अपने छोटे-मोटे कपड़े के होलसेल बिज़नेस का काम निपटाकर वापस घर लौट रहा था। Train Toilet Me Girl Chudai
टिकट कन्फर्म नहीं हुआ था, इसलिए जनरल में ही चढ़ गया। मेरा बैग कंधे पर, एक हाथ ऊपर की रॉड पर, दूसरा बैग को सीने से चिपकाए। मेरी सफ़ेद टी-शर्ट पसीने से पूरी तरह भीग चुकी थी, बदन से नमकीन पसीने की बू आ रही थी। ट्रेन रुकी। कानपुर से नई भीड़ चढ़ी।
लोग एक-दूसरे को धक्का दे रहे थे। तभी मेरी नज़र उस पर पड़ी। उसका नाम बाद में पता चला – निशा मेहरा। २४ साल की दिल्ली की लड़की, करोल बाग की। अभी कानपुर अपनी मौसी के यहाँ दस दिन बिताकर लौट रही थी। फ्रीलांस ग्राफ़िक डिज़ाइनर।
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कद ५ फुट ४ इंच, गोरा रंग, लंबे घने काले बाल, भरी हुई छातियाँ – ३६डी, कमर पतली, गाँड भारी और गोल। नीली प्रिंटेड कुर्ती, सफ़ेद सलवार, दुपट्टा कंधे पर ढीला लटकता हुआ। पसीने से कुर्ती चिपकी हुई थी, निप्पल्स कपड़े पर साफ़ उभार बना रहे थे।
उसकी खुशबू – चमेली का इत्र और पसीने का मिश्रण – सीधी मेरी नाक में घुस रही थी। हमारी नज़रें एक पल को मिलीं। उसने शर्मा कर नज़रें नीची कर लीं, पर होंठों पर हल्की सी मुस्कान थी। वो मेरे ठीक सामने आकर खड़ी हो गई।ट्रेन चली। पहला झटका लगा।
उसकी पीठ मेरी छाती से टकराई। उसने संभलने की कोशिश की, पर भीड़ ने फिर धकेल दिया। अब हम पूरी तरह चिपक चुके थे। उसकी मुलायम गाँड मेरे लंड पर दब रही थी। मैंने कुछ नहीं कहा। बस धीरे से कमर आगे की। उसने भी पीछे को हल्का सा दबाव डाला।
बस यही इशारा था।मैंने उसकी पतली कमर पर हाथ रख दिया। वो सिहर गई, पर हटी नहीं। उसकी साँसें तेज़ हो गईं। मेरे लंड ने जींस फाड़ने की कोशिश शुरू कर दी। सात इंच का मोटा, नसें फूली हुईं। वो महसूस कर रही थी। उसने अपना दुपट्टा मुँह पर रख लिया और धीरे से सिसकी भरी।
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“कितना मोटा है…” उसने मेरे कान में फुसफुसाया।
“पूरा अंदर लेने की हिम्मत है?” मैंने भी कान में कहा।
वो हल्का सा मुस्कुराई। अब हर झटके में हम खुलकर रगड़ रहे थे। उसकी सलवार पूरी गीली हो चुकी थी। मेरी जींस पर भी गीला निशान। उसने अपनी टाँगें थोड़ी चौड़ी कर दीं। अब मेरा लंड उसकी चूत की शेप ले चुका था। वो खुद ही आगे-पीछे करने लगी। उसकी सिसकारियाँ दब रही थीं।
“बस… जा रही हूँ…” उसने कहा।
“झड़ जा… पूरा माल मेरे लंड पर छोड़ दे…”
मैंने उसकी कमर कस ली। वो काँपने लगी। उसने मेरा कंधा पकड़ा, दाँत गड़ा दिए और पूरी तरह झड़ गई। उसकी चूत से इतना पानी निकला कि मेरी जींस घुटनों तक गीली हो गई। उसकी देह ढीली पड़ गई। मैंने भी तीन ज़ोर के झटके दिए और अपनी जींस के अंदर ही झड़ गया। “Train Toilet Me Girl Chudai”
गर्म धारें एक के बाद एक। हम दोनों हाँफ रहे थे। उसने आँखें खोलीं और सीधे मेरी आँखों में देखा। “टॉयलेट…” सिर्फ़ इतना कहा। हम भीड़ को चीरते हुए टॉयलेट पहुँचे। इंडियन वाला था, गंदा, पर लॉक लगा। मैंने उसे अंदर धकेला, खुद घुसा और चिटकनी लगा दी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
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दरवाज़ा बंद होते ही उसने मुझे दीवार से सटा दिया। उसके होंठ मेरे होंठों पर। जीभ अंदर तक। उसने मेरी जींस खींची। मेरा लंड अभी भी तना हुआ था, हमारे माल से चिपचिपा। “चूस इसे…” मैंने उसके बाल पकड़ के मुँह में घुसा दिया।
वो घुटनों पर बैठी और गले तक ले लिया। उसकी लार टपक रही थी। वो मुझे देख रही थी, आँखों में आग। मैंने उसे उठाया, घुमाया, दीवार पर हाथ टिकवाए। सलवार-पैंटी नीचे। उसने खुद गाँड पीछे की। मैंने उसकी चूत से पानी लिया और गाँड के छेद पर मला।
“पहली बार?” मैंने पूछा।
“हाँ… पर आज फाड़ दो…” उसने कहा।
एक झटके में पूरा लंड गाँड में।
“आआआह्ह्ह… मादरचोद… फट गई…” वो चीखी।
“सह ले… आज तेरी गाँड को चूत बना दूँगा…”
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और फिर शुरू हुआ जंगली खेल। ट्रेन की रफ़्तार और मेरे धक्कों की रफ़्तार एक। हर धक्के में “पुच्छ-पुच्छ”। उसकी गाँड लाल हो गई थप्पड़ों से। वो खुद गाँड पीछे ठेल रही थी।
“हाँ… और तेज़… फाड़ दे… आज मुझे पूरा बर्बाद कर…”
“ले… आज तेरी गाँड में अपना बच्चा डाल दूँगा…”
उसने अपनी चूत रगड़ते हुए दो बार और झड़ी। मैंने आखिरी दस जानलेवा धक्के मारे और उसकी गाँड में सारा माल उड़ेल दिया। इतना माल कि बाहर टपकने लगा। लंड निकाला तो छेद खुला पड़ा था, सफ़ेद माल बह रहा था। उसने पलट कर मेरा लंड चूस के साफ़ किया। “Train Toilet Me Girl Chudai”
“अगली बार मुँह में भी डालना…” उसने कहा।
सुबह हो चुकी थी। उसका स्टेशन आया। वो उतरी। जाते-जाते पलटी, आँख मारी और गायब हो गई। नाम नहीं पता, बस निशा… और वो रात… हमेशा याद रहेगी।
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