Rajamahal Hindi Sex Kahani
महारानी सुवर्णा की पीठ अपनी छाती से लिपटाए हुए महाराज भाग्यवर्धन के हाथ महारानी की बगलों के नीचे से जा कर, महारानी के चूचको का मर्दन कर रहे थे। हथेलियों के नीचे मखमली गुदाज़ स्तनों की रगड़ और धीरे धीरे तनते हुए कुचाग्रों का घर्षण महाराज के शिश्न को मादकता प्रदान कर रहे थे। Rajamahal Hindi Sex Kahani
कहने के आवश्यकता नहीं की दोनों के शरीर पर कपड़े की एक चिंदी भी नहीं थी। सामने लगे हुए आदमक़द आईने में, लाजवश और महाराज के सतत चुंबनों की रगड़ से महारानी के सुनहरी रंगत लिए कपोल शनैः शनैः गुलाबी होते स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे थे।
तभी पीछे अपनी पीठ पर स्त्री कपोलों के स्पर्श से चौंक कर पीछे देखने पर महाराज के नयन छोटी महारानी की नटखट चितवन में उलझ कर रह गए। बड़ी महारानी सुवर्णा जितनी धीर गंभीर लाजवंती, छोटी महारानी आरूषा उतनी ही चपला, चंचल और नटखट।
महारानी आरुषा ने महाराज की पीठ पर चुंबनों और दंतक्षत की बौछार कर दी। अब दो दो सुंदरियों के बीच उलझे हुए महाराज ने उत्तेजित हो कर महारानी सुवर्णा को घुमा कर अपने आलिंगन में जकड़ते हुए उनके अधरों का पान आरंभ कर दिया।
महाराज के अधर महारानी के अधरों को काफी समय तक पीने के बाद उनके दोनों गालों को बारी बारी से मुंह में ले कर चूसने लगे। महारानी सुवर्णा की चिबुक भी अछूती नहीं रही।उसका भी स्वाद दशहरी आम की गुठली के समान लिया गया और अंत में उनकी लंबी ग्रीवा से फिसलते हुए महाराज के होंठ महारानी के कोमल किंतु गठे हुए उरोजों पर आ कर थम गए।
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अपने उरोजों और कुचाग्रों पर महाराज के अधरों और जिव्हा के कुशल घर्षण और चूषण के बावजूद महारानी के मुंह से कभी कभार हल्की सी सिसकारी के अतिरिक्त कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं आ रही थी।वो तो जैसे केवल पत्नी का कर्तव्य ही निभा रही थीं।
उधर बूटे से कद और छरहरे बदन की मालकिन छोटी महारानी आरूषा पूरे जोश में महाराज की पीठ पर अपने अधरों जिव्हा और दांतों से चित्रकारी करने के साथ साथ आगे हाथ बढ़ा कर महाराज के दोनों चूषकों को भी अपनी उंगलियों से मरोड़ मरोड़ कर खड़ा करने में व्यस्त थीं।
“अब आप दोनों एक दूसरे के साथ कुछ समय बिताइए” बोल कर महाराज भाग्यवर्धन सिंह ने पलंग के एक ओर बैठ कर मदिरा का पात्र अपने होंठों से लगा लिया। उधर आरुषा सुवर्णा को अपने ऊपर खींच कर मखमली गद्दों पर कल्लोल क्रीडा में व्यस्त हो गईं।
परस्पर आलिंगन करते हुए आरुषा ने सुवर्णा के पूरे चेहरे पर चुंबनो की बौछार कर दी। होंठों को देर तक चूसे जाने के बाद आखिर सुवर्णा ने अपना मुंह तनिक खोलते हुए आरुषा की जीभ को अपने मुंह में मार्ग दे ही दिया। फिर क्या था, आरुषा की जिव्हा सुवर्णा के मुंह में स्वच्छंद नृत्य करने लगी।
थोड़ा उत्तेजित होते हुए सुवर्णा ने भी संकोच के साथ ही सही किन्तु अपनी जीभ भी आरुषा की जीभ से भिड़ानी और उसके मुंह में घुसानी आरंभ कर दी। आरुषा अपनी जीभ सुवर्णा के मुंह में गोल गोल घुमाती और जब सुवर्णा की जीभ उसके मुंह में प्रवेश पा जाती तो उसे मदमस्त हो कर चूसती।
इस दौरान आरुषा के सुडौल उरोज लगातार सुवर्णा की छातियों का मर्दन कर रहे थे। घनिष्ठ चुंबन के साथ साथ दोनों की छातियाँ एक दूसरी की छातियों की मालिश कर रही थीं। महाराज धीरे धीरे मदिरा के घूंट लेते हुए दोनों को दिलचस्पी के साथ निहार रहे थे।
आहिस्ता से अपने मुख को अलग करते हुए आरुषा ने अब सुवर्णा की गुदाज छातियों पर पूरा ध्यान केन्द्रित किया और उनका सत्कार अपने हाथों और मुंह से करना शुरू कर दिया। पूरे पूरे स्तनों को मुंह में भर कर चूसा, कुचाग्रों को जीभ से चाटा चूमा और अंगूर की तरह चूसा।
साथ ही दूसरी चूचि को हाथ से सहलाना, भींचना और मसलना भी जारी रक्खा। कुछ समय पश्चात सुवर्णा के मुख से निकलती उफ्फ्फ्फ्फफ्फ् श्ह्ह्ह्ह्ह्ह् की हल्की हल्की सिसकारियों से यह अनुमान लगाना कठिन नहीं रहा की अब वो भी कुछ सक्रिय भूमिका निभाना चाह रही हैं।
आरुषा ने आसन बदला और सुवर्णा के सिरहाने जा कर घोड़ी बनते हुए अपनी एक चूचि उसके मुंह में में दे दी और खुद भी आगे की ओर झुकते हुए उसकी भी एक कुचाग्र अपने मुंह में ले कर चुभलानी शुरू कर दी। महारानी सुवर्णा भी लाज का कुछ कुछ त्याग करते हुए अपने मुंह में जबरन घुसे आ रहे आरुषा के कुचाग्रों पर अपनी जिव्यहा और अधरों से प्रतिदान दे रही थी।
आरुषा बारी बारी से अपने दायीं और बाईं चूचि सुवर्णा के मुंह में घुसेड़ रही थी और स्वयं भी उसकी दोनों मांसल स्तन द्वय का बारी बारी आनंद ले रही थीं। महाराज भी अपने निरंतर तनते जा रहे लिंग को सहलाते हुए दोनों सुंदरियों के मध्य चल रही इस अद्भुत काम क्रीडा का आनंद ले रहे थे।
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इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए आरुषा ऐसे ही कोहनी और घुटनों के सहारे कुचों से आगे पेट पर चुम्मियाँ लेती हुई सुवर्णा की नाभि पर पहुँचीं और अपनी जीभ से नाभि चोदन करने लगीं। अपनी नाभि में जीभ की अठखेलियाँ महसूस करके सुवर्णा ने ज़ोर की फुरफुरी ली और इधर आरुषा अपने मिशन पर आगे बढ़ते हुए अंतिम गंतव्य की ओर अग्रसर हुईं।
किन्तु अंतिम आक्रमण से पहले आस पास के भूगोल का जायजा लेना आवश्यक समझ कर सुवर्णा की कदली स्तम्भ के समान गोरी जंघाओं का अपनी जीभ होंठ और गरम साँसों से निरीक्षण किया और फिर योनि की दरार पर जीभ फेरते हुए काम कनिका पर ध्यान केन्द्रित करा।
पहले देर तक अपनी काम प्रवीण जिव्हा से कभी कोमल कभी कठोर घर्षण किया तो कभी अपने होंठोंके बीच दबा दबा कर किशमिश की तरह चूसा।छोटी महारानी की काम प्रवीनता और उस पर इस उल्टे-पुलटे आसन के कारण आँखों के सामने लहराती उनकी पानी टपकाती योनि और कंपकंपाती भगनासिका के दर्शन, महारानी सुवर्णा का अपने ऊपर नियंत्रण खो रहा था।
उन्होने जतन से बनाई अपनी धीर गंभीर छवि की चिंता भूल कर आरुषा के मांसल नितंब दबोच कर अपनी ओर खीचे और जीभ योनि के अंदर घुसा दी। सुवर्णा की जिव्हा आरुषा की योनि में ऐसे ही अठखेलियाँ कर रही थी जैसे कुछ देर पहले दोनों की जीभें एक दूसरे के मुंह में करी थी।
अपनी योनि का भी सत्कार होते देख आरुषा दोगुने उत्साह से सुवर्णा के गुप्तांगों का स्वाद लेने लगी। अब तो दोनों ही एक बदन दो जान की तर्ज़ पर एक दूसरे को भींच भींच कर पी रही थीं, चाट रही थीं ,चूस रही थी। पूरा कक्ष आःह्हछ उफ्फ्फ्फ्फफ्फ् श्ह्ह्ह्ह्ह्ह्आह्हह ह्ह्ह मांम्म्म् उहउ उउउ उफ्फ मर गई! जैसी आवाज़ों से गूंज रहा था।
इस समय कोई देखता तो दोनों युवतियों को राजपरिवार की गरिमाशील महारानियों के बजाय कामातुर वैष्याएँ ही समझता। अब महाराज के लिए भी खुद पर काबू रख पाना कठिन हो गया , कभी अपने शिश्न को ज़ोर ज़ोर से दबाते, कभी अपने निपल्स को उमेठते।
अंत में उन्होने भी कामुक क्रीडा में सम्मिलित होने का निश्चय किया और मदिरा का प्याला एक ओर रख कर उन दोनों के पास आ कर आरुषा की पीठ पर हल्के हल्के चुंबन लेने लगे। बीच बीच में दांतों से हल्के से कचकचा भी देते।
महाराज की इन सब हरकतों से आरुषा और उत्तेजित हो कर सुवर्णा की कामकणिका का भुरता बनाने लगी और जवाब में सुवर्णा भी ज़ोर ज़ोर से सिसकारियाँ लेते हुए आरुषा की योनि पर अपनी जिव्हया से प्रहार करने लगीं।
महाराज की आँखों के हल्के इशारे को समझ कर अब आरुषा सुवर्णा के मुख पर उकड़ू बैठ कर उनको अपने गुदाद्वार के भी दर्शन देने लगीं और साथ ही साथ सुवर्णा के स्तन द्वय को भी दबाने मींजने लगीं। सुवर्णा भी दोनों हाथों में लड्डू समझ कर छोटी महारानी के दोनों छिद्रों का स्वाद अपनी जीभ और होंठों से लेने में व्यस्त हो गईं।
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तभी सुवर्णा की दोनों जंघाओं के बीच स्थान ले चुके महाराज ने अपना लन्ड सुवर्णा के योनिद्वार पर रख कर एक ज़ोर का धक्का मारा। इतनी देर की कामुक हरकतों से पानी की झील बनी हुई बड़ी महारानी की चिकनी योनि में महाराज का लौडा बिना किसी प्रतिरोध के घुसता चला गया।
इस अप्रत्याशित आक्रमण से चौंक कर सुवर्णा के मुंह से एक ज़ोर की चीख निकलने को हुई लेकिन तभी आरुषा के अपनी गुदा उनके मुंह पर दाब देने के कारण केवल ऊंहउंह ऊंहउंहऊंहउंहउम्म्म की गुंगुआहट में बदल कर रह गई। अब महाराज ने सुवर्णा की मांसल छातियों से खेलते हुए हल्के हल्के धक्के लगाने शुरू कर दिये।
साथ ही साथ अपने चेहरे के सामने झूलती आरुषा की चूचियों को मुंह में ले कर पीने भी लगे। महाराज काफी समय तक कभी आरुषा तो कभी सुवर्णा के उरोजों से खेलते रहे। दो दो जोड़ी उरोजों को कभी सहलाते तो कभी दबाते, कभी भींचते तो कभी चूचकों को मुंह में ले कर रसगुल्ले की तरह चूसने लगते।
अपनी चूचियों पर महाराज के कामकौशल और गुदा और योनि पर अपने ही वश के बाहर हुई बड़ी महारानी की जीभ का आक्रमण, छोटी महारानी की हालत बुरी हो रही थी। कभी अपने दूध जबरन महाराज के मुंह में घुसाने का प्रयास करतीं तो कभी योनि और गुदा सुवर्णा के चेहरे पर रगड़तीं।
उधर सुवर्णा का हाल तो और बुरा हो रखा था। अपने मुंह , वक्ष और योनि तीनों पर ही काम बाणों के निरंतर प्रहार से उनकी उत्तेजना लाज और गांभीर्य के सारे बंधन तोड़ने को उतावली थी। महाराज के धक्के और योनिमार्ग में किसी घोड़े के समान लंबे और मोटे लंड के घर्षण के साथ साथ सुवर्णा की छटपटाहट बढ़ती जा रही थी।
साथ ही साथ महाराज ने पूरे मनोयोग से सुवर्णा की चूचियों को बारी बारी से किसी भूखे बालक के समान जोर जोर से पीना जारी रखा था। अब आरूशा आलथी पालथी मार कर सुवर्णा का सर अपनी गोद में ले कर बैठ गयी।
महाराज ने भी बगलों के नीचे से बाहें ले जा कर सुवर्णा को गहरे आलिंगन में भींचा और उनके मुख और कपोलों पर चुपडा हुआ आरूषा का कामरस चाट चाट कर साफ़ करने लगे। फिर सुवर्णा का गाल अपने मुंह में रसीले सेब की तरह चूसते हुए अंतिम प्रहार शुरू करा।
बड़ी महारानी भी अब महाराज के धक्कों का उत्तर अपने कूल्हे उछाल उछाल कर बराबर से दे रही थीं। उनकी ऊऊ ऊऊई ईई आअई ईईईई उफ्फ्फ फ्फ्फ् की आवाज़ें वातावरण को उन्मादित कर रही थीं। महाराज बारी बारी से उनके दोनो कपोलों ठोड़ी और होंठों को रसीले फलों की भांति चूसते हुए अपनी रफ्तार बढ़ा रहे थे।
अंत में बड़ी महारानी सुवर्णा एक जोर की आह्हह ह्ह्ह मांम्म्म् उहउ उउउ उफ्फ मर गई!की चीख के साथ स्खलित हो गईं।महाराज स्वयं भी स्खलित हो कर उनके ऊपर निढाल लुढ़क गए। महाराज सुवर्णा के बगल में लेटे हाँफ रहे थे।
कुछ संयत होते ही उनकी दृष्टि स्वयं अपने ही हाथों से अपने कुचों को सहलाती और भगनासिका को मसलती महारानी आरुषा पर पड़ी। महाराज ने बूटे से कद वाली छोटी महारानी को एक गुड़िया की भांति उठा कर अपने वक्ष पर खींच लिया और इतनी देर से उनके द्वारा किए गए सहयोग के प्रतिदान स्वरूप उनके उत्तेजना से लाल मुखारविंद पर चुंबनों की बौछार कर दी।
आरुषा अपने वक्ष महाराज के चौड़े सीने पर मसल रही थीं। चूमा चाटी से जरा सी मुक्ति पाते ही, उन्होंने मुंह झुका कर महाराज के एक चूचक को मुंह में ले कर चूसना शुरू कर दिया।कभी उनके कोमल अधर महाराज के निपल्स को चिड़िया के कोमल पंखों के समान सहलाने लगते तो कभी जीभ एक जोरदार रगड़ मार देती।
आरुषा के प्रवीण काम कौशल के चलते महाराज के चूचकों के साथ साथ लौड़े में भी हरकत आने लगी। अब आरुषा ने नीचे खिसकते हुए महाराज के शिश्न को धीरे धीरे अपने कोमल अधरों से सहलाना शुरू। पूरी लंबाई तक जीभ से चाटा और सुपाड़े को किसी रसगुल्ले के समान चूसने लगीं।
अपने लौड़े को छोटी महारानी की देखभाल में छोड़ कर महाराज बगल में निढाल पड़ी सुवर्णा को अपनी ओर खींच कर उनके वक्षों को मींजते हुए उनके अधरों का पान करने लगे। यह देख आरुषा ने भी अपनी उँगलियाँ महाराज के वीर्य से अब तक लबालब भरी सुवर्णा की भग गुहा में घुसेड़ दीं और उँगलियों से ही उनका चोदन करने लगी।
अंत में आरुषा उचक कर महाराज के फिर से कठोर हो चुके शिश्न पर अपना भगद्वार रख कर बैठती चली गईं और निरंतर काम क्रीडा से गीली और चिकनी हो चुकी चूत में जड़ तक अंदर जा चुके लंड पर उछल उछल कर घुड़सवारी गाँठने लगीं।
सुवर्णा ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर आरुषा की कामकणिका को मसल मसल कर अभी तक अपनी योनि में चल रही उंगली चोदन की क्रिया का प्रतिदान देते हुए उनकी कामोत्तेजना को पराकाष्ठा पर पहुंचाना शुरू कर दिया।
महाराज भी अपने एक मुक्त हाथ से आरुषा की गेंदों के समान उछलती चूचियों से खेलने लगे और फिर उनको भी खींच कर अपनी छाती से लिपटा लिया। अब दोनों महारानियाँ महाराज के दोनों अंकों में आलिंगन बद्ध थीं, सुवर्णा की योनि आरुषा की उँगलियों को निचोड़ रही थी तो आरुषा की योनि महाराज के लंड को.
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और महाराज, वह तो अपने लंड पर आरुषा की चूत, मुंह में कभी सुवर्णा की तो कभी आरुषा की जीभ और दोनों की ही चूचियों के स्पर्श सुख में स्वर्ग की सैर कर रहे थे। यह तिकड़ी अपने अपने स्वर्गीय आनंद में लीन एक दूसरे का अंग मर्दन करती फुदक रही थी। ऐसी हालत में तीनों ही कितनी बार स्खलित हुए कोई गिनती नहीं, और अंत में निढाल हो कर निद्रा के आगोश में समा गए। अचानक अपने दोनों कंधों पर पर दबाव से परेशान हो कर महाराज ने अपनी बाहें मुक्त करने के लिए करवट बदली.
तो “लकी क्या कर रहे हो? अब सोने दो ना” की आवाज़ से चौंक कर अपने आपको अपने पेंटहाउस के मास्टर बेडरूम में अपनी दोनों मानस सुंदरियों के आगोश में पाया। तो यह महाराज, महारानी वगैरह क्या कोई सपना था? दोनों के काम शर से उत्तेजित लेकिन कन्फ़्यूज्ड लूक्स को देख कर मैंने पूछा “क्या तुमने भी कोई सपना देखा है?” उनके चेहरों की रंगत देख कर मैं समझ गया की तीनों का एक कॉमन सपना देखना कोई संयोग नहीं, बल्कि किसी सुदूर दिक्काल की स्मृति की वापसी है। क्रमशः शेष अगले अंक में।