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कामातुर बहु गलती से ससुर से चुद गई

जून 29, 2024 by hamari

Cute Bahu Yoni Sambhog

मित्रो, मैं एक सरकारी विभाग में उच्च पद पर कार्यरत हूँ, मेरे रिटायर होने में बस अब कुछ ही वर्ष शेष हैं। मैंने अपना सारा जीवन सादगी और कर्मठता से जिया है, अपनी पत्नी के अलावा कभी भी किसी दूसरी के साथ इसके पहले सम्भोग नहीं किया था और न ही मैं इन चक्करों में कभी पड़ा। Cute Bahu Yoni Sambhog

हाँ, कभी कभी अपने इस दोस्त के साथ महीने दो महीने में पीने पिलाने का दौर चल जाता है बस! मेरे घर में मेरी पत्नी, एक पुत्र और एक पुत्री है। बेटे का विवाह पिछले साल ही कर दिया था, वह भी एक बैंक में अच्छे पद पर कार्यरत है।

मेरे बेटे की पत्नी तृप्ति भी बहुत सुन्दर और शालीन है, उसने एम बी ए कर रखा है लेकिन कोई जॉब नहीं किया। उसे गृहणी रहते हुए मालकिन बने रहना ज्यादा पसन्द है। मेरी बिटिया ने बी टेक किया और अब वो भी एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर है।

बेटी का ब्याह भी अभी तीन दिन पहले ही संपन्न हुआ है। अब बात उस रात की – बिटिया का ब्याह और विदा हुए तीसरा दिन था। घर अभी भी मेहमानों से भरा हुआ था। थकावट तो बहुत थी पर मानसिक शांति और सुकून भी बहुत आ चला था।

आप सब तो जानते ही हैं कि शादी ब्याह में इंसान चकरघिन्नी बन के रह जाता है। काफी कुछ निपट चुका था लेकिन अभी भी बहुत काम बाकी था कई लोगों का हिसाब किताब करना था, शामियाना वाला, केटरर वगैरह! मन इस उधेड़बुन में उलझा था कि, मेरी पत्नी, की आवाज ने मेरी तन्द्रा भंग की।

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‘चाय पियोगे जी?’ वो पूछ रही थी।

दोपहर बाद के चार बजने वाले थे सो चाय पीने का मन तो हो ही रहा था, मैंने उसकी तरफ देख के सहमति दे दी।

‘अभी लाई!’ वो बोली।

कुछ ही देर में वो दो कप चाय लिये आई और मेरे बगल में कुर्सी डाल कर बैठ गई।

मैंने देखा थकान के चिह्न उसके चेहरे पर भी झलक रहे थे।

मैंने चाय की चुस्की ली फिर मुस्कुरा के उसकी तरफ देखा।

‘ऐसे क्यों देख रहे हो? चाय अच्छी नहीं लगी क्या?’

‘चाय तो अच्छी है, लेकिन आज तो मेरा मन हो रहा है एक महीने से ऊपर हो गया!’ मैंने कहा और धीरे से उसकी जांघ पर हाथ रखा।

‘हटो जी, आप को तो एक ही बात सूझती है हमेशा! बच्चे बड़े हो गये, शादियाँ हो गईं लेकिन आप को तो बस एक ही चीज दिखाई देती है!’

‘अब क्या करूं… तुम हो ही ऐसी प्यारी प्यारी!’ मैंने उसे मक्खन लगाया।

‘सब समझती हूँ इस चापलूसी का मतलब!’ कहते हुए उसने मेरा हाथ अपनी जांघ पर से हटा दिया।

‘अरे मान भी जा न। आज बहुत मूड बन रहा है मेरा, मेरा यह छोटू बेचैन है तेरी मुनिया से मिलने को!’

‘कोई चान्स नहीं है, घर मेहमानों से भरा पड़ा है! कुछ दिन और सब्र कर लो, फिर मिल लेना अपनी मुनिया से!’ वो बोली और उठ कर निकल ली।

मैंने भी वक़्त की नजाकत को समझते हुए अपना ध्यान दूसरी जरूरी बातों पे लगाया और मेहमानों के डिनर और सोने के इंतजाम करने में व्यस्त हो गया। सब कुछ निपटने के बाद आधी रात से ऊपर ही हो चुकी थी, सब लोग जहाँ तहाँ सोये पड़े थे, मेरा मन भी सोने का हो रहा था, इसी चक्कर में मैंने सारे घर का चक्कर लगा लिया लेकिन कहीं भी कोई गुंजाइश नहीं मिली।

तभी मुझे छत पर बनी कोठरी का खयाल आया। वो कोठरी कोई आठ बाई दस का कमरा था, जिसमें बेकार का सामान पड़ा रहता था जिसे न हम इस्तेमाल में लाते हैं और न ही फेंकते बनता है, जैसे कि सभी के घरों में कोई ऐसी जगह होती है।

मैंने वहीं सोने का सोच के गद्दों के ढेर में से दो गद्दे और तकिये कंधे पे रख लिये और ऊपर छत पर चला गया। वहाँ कोठरी में भी सब अस्त व्यस्त सा पड़ा था और मुसीबत यह कि वहाँ का बल्ब पता नहीं कब फ्यूज हो चुका था तो रोशनी का कोई इंतजाम नहीं था।

मैंने जैसे तैसे करके वहाँ बिखरे सामान को खिसका कर इतनी जगह बना ली कि गद्दे बिछ जायें। मैंने अपना बिस्तर बिछा लिया और सोने की तैयारी की। दरवाजा बंद करने को हुआ तो देखा कि अन्दर से बंद करने को कोई कुंडी चिटकनी वहैरह थी ही नहीं, अतः मैंने किवाड़ यूं ही भिड़ा दिये और लेट गया।

उस दिन पता नहीं क्यों, पूरे बदन में अजीब से मस्ती छाई हुई थी। हालांकि थकान भी काफी थी लेकिन मन कुछ करने का बहुत कर रहा था। बीवी ने तो पल्ला झाड़ ही लिया था लेकिन अपना हाथ जगन्नाथ तो हमेशा से है ही!

सब लोग नीचे सो रहे थे मैं ऊपर की मंजिल पर उस एकान्त कोठरी में जहाँ किसी के आने की कोई संभावना नहीं थी, टाइम भी रात के बारह बजे से ऊपर का ही हो रहा था। अतः सब तरफ से निश्चिन्त होकर मैं लेट गया और अपने कसमसाते लिंग को कपड़ों के ऊपर से ही सहलाने लगा।

मेरे छोटू जी भी जल्दी ही तन के खड़े हो गये, मैंने भी उन्हें अपनी मुट्ठी में ले लिया और हौले हौले सहलाने लगा। धीरे धीरे आहिस्ता आहिस्ता कुछ सोचते हुए तीन उँगलियों से लिंग मुंड की त्वचा को ऊपर नीचे करना मुझे बहुत अच्छा लगता है, हस्त मैथुन करने के लिये मैं शुरुआत ऐसे ही करता रहा हूँ।

जब लगता है कि अब मामला बस के बाहर हो गया है, तभी मैं पूरे लिंग को मुट्ठी में जकड़ कर पूरी स्पीड से हस्तमैथुन करता हुआ स्खलित होना पसन्द करता हूँ। ऐसे में समय भी बहुत ज्यादा लगता है और छूट भी बहुत तेज और आनन्द दायक होती है।

वैसे ही करते करते मैं सारे कपड़े उतार कर पूरी तरह से निर्वस्त्र हो गया और बड़े आराम से धीरे धीरे मुठ मारने लगा। ऐसे करते करते कुछ ही मिनट हुए होंगे कि तभी कोठरी का दरवाजा धीरे से खुलने की चरमराहट जैसी आवाज आई और साथ में खुशबू का एक झोंका सा अन्दर घुसा। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

मैं सन्न रह गया और मेरे हाथ लिंग को पकड़े हुए जहाँ के तहाँ रह गये। दरवाजे पर कोई साया सा खड़ा था। तभी उस साए ने भीतर कदम रखा और अपने पीछे दरवाजा वापिस भिड़ा दिया और मेरे पहलू में आ के लेट गया। उसके बदन से उठती भीनी भीनी महक से पूरी कोठरी रच बस गई। अचानक उस साये ने मेरी तरफ करवट ली और मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया।

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‘सॉरी जानू, देर हो गई आने में! गुस्सा तो नहीं हो ना?’ कहते हुए वो मेरे नंगे बदन पर चूम चूम के हाथ फिराने लगी।

उसकी आवाज को पहचान कर जैसे मेरे ऊपर वज्रपात हुआ और दिमाग सुन्न सा हो गया। मेरी इकलौती पुत्रवधू तृप्ति मेरे नंगे जिस्म को सहलाते हुए बोल रही थी। मेरी बहू के उरोज मुझसे चिपके हुए थे और वो मुझे गलती से अपना पति समझ कर मुझसे चूमा चाटी करने लगी थी। कुछेक पल के लिये मैं जड़वत हो गया, साँसें बेतरतीब हो गईं और पसीना आने लगा और लगा कि हार्ट अटैक आ जाएगा।

बहू तृप्ति लगातार मुझे अपने अंक में समेट रही थी और मेरे सीने पर फिरतीं उसकी हथेलियाँ मुझे जहाँ तहाँ जकड़ने लगीं थीं। फिर उसने अपना एक पैर उठा के मेरे ऊपर रखा, उसकी मांसल जांघ का उष्ण स्पर्श मुझे अपने सीने पर महसूस हुआ और फिर उसने मेरी कमर के पास अपनी एड़ी अड़ा कर मुझे और कस लिया।

‘पता है गुस्सा हो मुझसे! ग्यारह बजे का बोला था न आपने, अब तो शायद एक बजने वाला होगा। क्या करती वो जबलपुर वाली इंदौर वाली और झांसी वाली भाभियाँ उठने ही नहीं दे रहीं थीं। सब अपने अपने रात के किस्से सुना रहीं थी कि उनके वो कैसे कैसे क्या क्या करते हैं!’

‘हेल्लो जी, कुछ तो कहिये… सच में सो गये क्या.. उठो न पूरे दो महीने होने वाले हैं जब हमने वो किया था। आ भी जाओ अब!’ कहते कहते मेरी बहू तृप्ति ने अपनी बाहों में मुझे कस लिया और चूमने लगी।

‘हे ईश्वर यह कैसी घड़ी आन पड़ी मुझ पे!?!’ मैंने मन ही मन भगवान् का स्मरण किया। अपने जीवन में कभी किसी पर स्त्री को छूना तो दूर, कभी कुदृष्टि से भी नहीं देखा और आज मेरी पुत्रवधू जिसे मैंने हमेशा अपनी बेटी ही समझा, मेरी बेटी जिसका विवाह अभी तीन दिन पहले ही हुआ है, यह तृप्ति तो उससे भी दो वर्ष छोटी है उम्र में।’

‘क्या करूँ मैं? तृप्ति को डांट दूँ? बता दूँ उसको कि मैं उसका पति नहीं ससुर हूँ?… नहीं नहीं.. अगर ऐसा किया तो वो शर्म से जीवन भर मुझसे आँख नहीं मिला पाएगी और क्या पता वो लज्जावश और कोई घातक कदम उठा ले तो?’

ये सब सोच के मैंने चुपचाप और निष्क्रिय रहना ही ठीक समझा। मन ही मन भगवान से प्रार्थना भी कर रहा था कि मैं बेक़सूर हूँ, विवश हूँ, मुझे क्षमा करना और जो इस अँधेरी कोठरी में घट रहा है वह सदैव अँधेरे में ही रहे… इसी में हम सबका, इस घर का कल्याण है।

उधर तृप्ति कामातुरा होकर मुझे अपने से चिपटाए हुए मुझे चूम रही थी। अचानक उसका हाथ मुझे सहलाते हुए नीचे की तरफ फिसल गया और मेरा तना हुआ कठोर लिंग उसके हाथ से छू गया। मेरा मन तो बुझा हुआ था और छटपटा रहा था कि इस विवशता से कैसे मुक्ति मिले…

लेकिन मेरा लिंग अविचल खड़ा था उस पर मेरा कोई वश नहीं रह गया था। ‘अच्छा जी, आप तो बोल नहीं रहे लेकिन आपके ये लल्लू जी तो कुछ और ही कह रहे हैं। देखो, मेरे आते ही ये कैसे तन खड़े होकर सैल्यूट मार रहा है मुझे! आखिर पहचानता है न मुझे!’ कहते हुए तृप्ति ने मेरा लिंग अपनी मुटठी में जकड़ लिया और चमड़ी को ऊपर नीचे करते हुए उसे सहलाने लगी.

कभी मेरे अन्डकोषों को सहलाती, कभी लिंग के ऊपर उगे हुए बालों में अपनी उंगलियाँ फिराती। उसके कोमल हाथों का स्पर्श और महकते हुए जवान जिस्म की तपिश मुझे बेचैन किये दे रही थी, मैं बस जैसे तैसे खुद पर कंट्रोल रख पा रहा था।

‘सुनो जी, आपका ये लल्लू जी आज कुछ बदला बदला सा क्यों लग रहा है मुझे? जैसे खूब मोटा और लम्बा हो गया हो पहले से?’ वो मुझे चिकोटी काटते हुए बोली।

मैं क्या जवाब देता उसे… मैं तो बस उस पर से ध्यान हटाने की कोशिश में अपनी साँसों पर ध्यान लगाए था। अचानक वह मुझसे अलग हुई और उसके कपड़ों की सरसराहट मुझे सुनाई दी, मैं समझ गया कि उसने अपने कपड़े उतार दिये हैं। और फिर उसका नंगा बदन मुझसे लिपट गया।

‘अब आ भी जाओ राजा, और मत तरसाओ मुझे… समा जाओ मुझमें! देखो आपकी ये पिंकी कैसे रसीली हो हो के बह रही है।’ वो बोली और मेरा हाथ पकड़ कर अपनी योनि पर रख कर दबा दिया।

उसकी गुदगुदी पाव रोटी जैसी फूली और योनि रस से भीगे केशों का स्पर्श मुझे भीतर तक हिला गया। फिर तृप्ति मेरा हाथ दबाते हुए अपनी गीली योनि पर फिराने लगी, मक्खन सी मुलायम उष्ण योनि ने मेरा स्पर्श पाते ही अपनी फांकें स्वतः ही खोल दीं और मेरी उंगलियाँ बह रहे रस से गीलीं हो गई।

मैं अभी भी क्रियाहीन और अविचल पड़ा था। हालांकि मेरे संस्कारों पर वासना हावी होने लगी थी, रूपसी कामिनी सम्पूर्ण नग्न हो कर मुझसे लिपटी हुई मुझे सम्भोग करने के लिये उकसा रही थी, मचल रही थी, आमंत्रित कर रही थी, झिंझोड़ रही थी।

उसकी गर्म साँसें और परफ्यूम से महकता हुआ बदन मेरे भीतर आग भरने लगा था, मेरी कनपटियाँ तपने लगीं और मेरा बदन भी जैसे विद्रोह करने पर उतारू हो गया। उधर तृप्ति अभी भी मेरा हाथ पकड़े हुए अपनी योनि पर फिरा रही थी और मेरी उंगलियाँ योनि रस से भीगी हुईं केशों को ऊपर तक गीला किये दे रहीं थीं।

मैंने अपने मन को फिर पक्का किया और अपना हाथ उससे छुड़ाते हुए अलग कर लिया। लेकिन बहूरानी तो बुरी तरह से जैसे कामाग्नि में जल रही थी, उसने मेरा हाथ पुनः पकड़ लिया और अपने बाएं नग्न स्तन पर रख दिया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

मेरी हथेली में उसकी कड़क घुंडी और मुलायम रुई के फाहे जैसे मृदु कोमल उरोज का मादक स्पर्श हुआ। एक बार तो मन किया कि दबोच लूं उसे और चूस लूं। लेकिन पुत्रवधू के रिश्ते का ख्याल आते ही मैं रुक गया। मेरा हाथ अभी भी बहू के स्तन पर रखा था और उसकी सांसों, धड़कन का स्पंदन मैं अपनी हथेली पर महसूस कर रहा था।

मैंने एक बार फिर अपने जी कड़ा करके सम्बन्धों की मर्यादा तार तार होने से बचाने की कोशिश कि और तृप्ति से खुद को छुडाया और दूसरी तरफ करवट ले ली। लेकिन होनी तो प्रबल थी। बहूरानी पर तो जैसे साक्षात् रति देवी सवार थी उस रात! मेरे करवट लेते ही बहू मेरे ऊपर से लुढ़क कर मेरे सामने की तरफ आ गई।

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‘आज क्या हो गया आपको? अब ऐसा भी क्या गुस्सा जी, ऐसे तो कभी भी नहीं किया आपने!’

मैं चुप रहा, बस इसी सोच में था कि जैसे तैसे इस पाप के कुएं से बाहर निकल पाऊं बस!

‘अच्छा ये लो, आज मुंह में लेकर चूसती चूमती हूँ इसे। आप हमेशा कहते थे न कि एक बार मुंह में ले के प्यार कर दो इसे। लेकिन मैंने कभी नहीं मानी आपकी बात…’ बहू बोली और मेरा लंड पकड़ कर उस पर झुक गई और अपनी जीभ की नोक से उसे छुआ, फिर फोरस्किन को नीचे खिसका के सुपारा अपने मुंह में ले लिया।

उस अँधेरी कोठरी में मैं विवश था पर लंड नहीं, वह तो बहू के मुंह में प्रवेश करते ही फूल के कुप्पा हो गया। बहू ने पूरा सुपारा अपने मुंह में भर लिया और एक बार चूसा जैसे पाइप से कोल्ड ड्रिंक चूसते हैं। एक बार चूस के उसने तुरन्त मुंह हटा लिया, शायद पहली बार होने की वजह से।

बहू ने फिर मेरे लंड की चमड़ी को चार छः बार ऊपर नीचे किया जैसे मुठ मारते हैं और फिर लंड को फिर से अपने मुंह में भर लिया, इस बार उसने पूरा सुपारा मुंह में ले लिया, मुंह को ऊपर नीचे करने लगी जिससे लगभग एक तिहाई लंड उसके मुंह में आने जाने लगा।

कुछ देर ऐसे ही करने में बाद तृप्ति बहूरानी मेरे ऊपर आ गई और लंड को मेरे पेट पर लिटा दिया और अपनी चूत से लंड को दबा दबा के रगड़ा मारने लगी। बहू के इस तरह रगड़ने से उसकी चूत के होंठ स्वतः ही खुल गये और मेरा लंड उसकी चूत के खांचे में फिट सा हो गया। तृप्ति जल्दी जल्दी अपनी चूत को मेरे लंड पे घिसने लगी, उसकी बुर से रस बहता हुआ मेरे पेट तक को भिगो रहा था।

अचानक उसकी रगड़ने की स्पीड बहुत तेज हो गई और उसके मुंह से सिसकारियाँ निकलने लगीं ‘आह, जानू, कितना अच्छा लग रहा है इस तरह! आपके लल्लू पर अपनी पिंकी ऐसे रगड़ने का मज़ा आज पहली बार मिल रहा है… आह ओह… उई माँ… बस मैं आने ही वाली हूँ मेरे राजा… जानू। इसे एक बार घुसा दो न प्लीज, उम्म्ह… अहह… हय… याह… फिर मैं अच्छे से आ जाऊँगी!

ऐसा कहते हुए तृप्ति अपनी चूत को कुछ ऐसे एंगल से लंड पर रगड़ने लगी कि वो उसकी चूत में चला जाए। लेकिन मैंने वैसा होने नहीं दिया इस पर तृप्ति खिसिया कर पागलों की तरह अपनी चूत को मेरे लंड पर पटक पटक कर रगड़ते हुए मज़ा लेने लगी।

तृप्ति अपनी चूत मेरे लंड पर इस तरह से रगड़ने लगी कि लंड उसकी चूत में चला जाए. लेकिन मैंने ऐसा नहीं होने दिया. इस पर तृप्ति खिसिया कर पागलों की तरह चूत को मेरे लंड पर पटकते, रगड़ते हुए मजा लेने लगी.

इधर मेरा हाल भी बुरा था और मैं जैसे किसी अग्नि परीक्षा से गुजर रहा था, मैं मन को बार बार आ रहे मज़े से भटकाने की कोशिश कर रहा था पर लंड पर मेरा कोई वश नहीं था, वो तो जवान कसी हुई नर्म गर्म चूत के लगातार हो रहे वार से आनन्दित होता हुआ मस्त था.

मैंने इस बार अपना ध्यान पूरी ताकत से हटाया और इधर उधर की बातें सोचने लगा. उधर तृप्ति की चूत मेरे लंड पे रगड़ती हुई संघर्षरत थी और झड़ जाने की भरपूर कोशिश कर रही थी. यहाँ वहाँ की बातें सोचते सोचते मुझे याद आने लगा जब मैं अपने बेटे की शादी से पहले तृप्ति को देखने गया था…

उसका वो भोला सा मासूम चेहरा मेरी आँखों के सामने घूम गया. मैंने तो पहली नज़र में ही तृप्ति को पसंद कर लिया था, अच्छे घर की पढ़ी लिखी कुलीन कन्या थी, उसे भला कौन नापसन्द कर सकता था. जब वो पहली बार मेरे सामने आई तो डरी हुई सी, घबराई हुई सी मेरे सामने सोफे पर बैठ गई थी, पत्नी मेरे साथ थी, उसने भी मुझे आँख के इशारे से कह दिया था कि उसे लड़की पसन्द है.

फिर बेटे की शादी भी हो गई और तृप्ति मेरी बहू बन कर घर आ गई. कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस बहू को मैंने हमेशा अपनी सगी बेटी की तरह ही प्यार दिया उसकी चूत में कभी मेरा लंड जाएगा. वो सब सोचते सोचते मेरा ध्यान भंग हुआ क्योंकि तृप्ति के नाखून मेरे कन्धों में गड़ रहे थे और वो लगातार अपनी चूत मेरे बिछे हुए लंड पर रगड़ती हुई अपनी मंजिल की तरफ पहुँच रही थी.

मेरा बदन भी किसी रिफ्लेक्स एक्शन की तरह अनचाहे ही तृप्ति का साथ देने लगा था और मैं अपनी कमर उठा उठा कर बहू रानी को सहयोग दे रहा था. मेरा दिमाग जैसे कुंद हो गया था, कुछ भी सोचने समझने की हालत में नहीं था और शरीर तो जैसे विद्रोह पर उतारू हो गया था.

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अचानक अनचाहे ही मैंने तृप्ति को अपनी बाहों में जोर से भींच लिया, उसके सुकोमल स्तन मेरे कठोर सीने से पिस गये. फिर मैंने पलटी मारी, अगले ही क्षण तृप्ति मेरे नीचे थी, मैंने झुक कर उसके फूल से गालों को चूमा और उसका निचला होंठ अपने होंठों में कैद करके चूसने लगा.

तृप्ति ने भी अपनी बाहें मेरे गले में लपेट दीं और मुझे चुम्बन देने लगी. सब कुछ जैसे अनायास ही हो रहा था, पता नहीं कब मेरी जीभ बहू के मुंह में चली गई और वो उसे चूसने लगी. फिर अपनी जीभ निकाल के मेरे मुख में धकेल दी.

नवयौवना के चुम्बन का आनन्द ही अलग होता है, मुझे अपनी शादी की शुरुआत के दिन याद हो आये. अब मैं तृप्ति की गर्दन चूम रहा था, कभी कान की लौ यूं ही चुभला देता और वो मेरे नीचे मचल रही थी चुदने के लिये… बार बार अपनी कमर उठा उठा कर मुझे जैसे उलाहना दे रही थी कि अब जल्दी से पेल दो लंड को!

लेकिन मैं अपने अनुभव से जानता था कि खुद पर काबू कैसे रखना है और अपनी संगिनी को कैसे चुदाई का स्वर्गिक आनन्द देना है. मैं बहूरानी को चूमता हुआ नीचे की तरफ उतर चला और उसका दायां मम्मा अपने मुंह में भर के पीने लगा, साथ ही बाएं मम्मे को मुट्ठी में ले के धीरे धीरे खेलने लगा उससे!

मेरी हरकतें बहूरानी को कामोन्माद से भर रहीं थीं और अब वो मुझे अपने से लिपटाने लगी थी. मैं भी अत्यंत उत्तेजित हो चुका था, बढ़ती उत्तेजना में मैंने बहूरानी के दोनों स्तन मुट्ठियों में जकड़ कर उसके गाल काटना शुरू कर दिया.

‘राजा जानू, गाल मत काटो ना जोर से! निशान पड़ जायेंगे तो सवेरे मैं पापा मम्मी को कैसे मुंह दिखा पाऊँगी?’ बहूरानी बहुत भोलेपन से बोली.

मुझे उसकी बात सुन मन ही मन हंसी आई कि तेरे पापा ही तो तेरे गाल काट रहे हैं और अब तेरी चूत भी मारेंगे! फिर मैंने बहूरानी के गाल काटना छोड़ के उसके स्तनों को ताकत से गूंथते हुए पीना शुरू कर दिया.

“जानू, अब सब्र नहीं होता… समा जाओ मुझमें! अब और मत सताओ राजा!’ बहूरानी की शहद सी मीठी कामुक थरथराती हुई आवाज मेरे कानों में गूंजी.

पर मैं तो अपनी ही धुन में मग्न था, मैं उसे पेट पर से चूमते हुए उसकी नाभि में जीभ से हलचल मचाते हुए उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में ले लिया. बहू की पाव रोटी सी फूली गुदाज, नर्म चूत पर हल्की हल्की झांटें थीं और चूत से जैसे रस का झरना सा धीरे धीरे बह रहा था.

मुझसे भी सब्र नहीं हुआ और मैं चोदने की मुद्रा में उसकी टांगों के बीच बैठ गया. तृप्ति ने तुरन्त अपनी टाँगें उठा कर अपने हाथों में पकड़ लीं, कोठरी के उस अँधेरे में दिख तो कुछ रहा नहीं था, मैंने अंदाज से अपने लंड को उसकी चूत से भिड़ाया और उसकी रसीली दरार में ऊपर से नीचे तक रगड़ने लगा.

‘अब घुसा भी दो जल्दी से… क्यों पागल बना रहे हो मुझे?’ बहू मिसमिसाती हुई सी बोली.

मैंने उस अँधेरे में बहूरानी की चूत का छेद अपनी उंगली से तलाशा और फिर सुपाड़े को की चूत के छेद पर टिकाया और फिर धकेल दिया आगे की तरफ! चूत की चिकनाई की वजह से सुपारा गप्प से समा गया उसकी चूत में!

‘उई माँ… धीरे से डालो, कितना मोटा लग रहा है यह आपका आज!’ बहूरानी थोड़े दर्द भरे स्वर में विचलित होकर बोली.

लेकिन मैंने उसके दर्द की परवाह किये बगैर लंड को थोड़ा और आगे हांक दिया.

‘उफ्फ जानू, आपका यह लल्लू कितना मोटा लग रहा है आज! मेरी पिंकी की नसें खिंच गईं पूरी!’ बहूरानी बोली और फिर अपने हाथ चूत पे ले जाकर टटोलने लगी.

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अभी मेरा सिर्फ सुपारा और जरा सा और ही घुसा था उसकी चूत में, अभी भी कोई सात आठ अंगुल बाहर था चूत से! मैं इसी स्थिति में कुछ देर रुका रहा, फिर जब बहूरानी की चूत ने मेरा लंड ठीक से एडजस्ट कर लिया तो मैंने लंड को जरा सा पीछे खींच कर एक करार शॉट लगा दिया. पूरा लंड फचाक से उसकी चूत में समा गया और मेरी झांटें बहूरानी की झांटों से जा मिलीं.

‘हाय राम… लगता है फट गई! उफ्फ.. आज पहली बार इतनी चौड़ी कर दी आपने! भीतर की नसें टूट सी गईं हैं.’ बहू कराहते हुए बोली.

मैं चुपचाप रहा और शांत लेटा रहा उसके ऊपर!

मेरा लंड बहूरानी की चूत में फंस सा गया था, जैसे किसी ने ताकत से मुट्ठी में जकड़ रखा हो. मैंने एक बार लंड को पीछे खींचना चाहा तो लंड के साथ चूत भी खिंचती सी लगी मुझे! मैं रुक गया, फिर मुझे लगा कि बहूरानी अपनी चूत को ढीला और शिथिल करने का प्रयास कर रही थी.

उस रात कोई पच्चीस छब्बीस साल बाद मेरे लंड को कसी हुई जवान चूत नसीब हुई थी. मुझे ठीक वैसा ही अनुभव हो रहा था जैसा कि मेरी शादी की शुरू के दिनों में मेरी पत्नी चूत देती थी. कुछ ही देर बाद बहूरानी ने गहरी सुख की सांस ली और मेरी पीठ को सहलाते हुए अपनी कमर को हल्के से उचकाया जैसे उलाहना दे रही थी कि अब चोदो भी या ऐसे ही पड़े रहोगे?

बहूरानी का संकेत पाकर मैंने लंड को पीछे लिया और फिर से धकेल दिया गहराई तक! बदले में बहूरानी के नाखून मेरी पीठ में गड़ गये और उसने अपनी चूत को उछाल कर जवाबी कार्यवाही की. फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा.. तेज और तेज! मैं लंड को खींच खींच कर फिर उसकी चूत में पेलता और बहूरानी पूरी लय ताल के साथ साथ निभाती हुई अपनी कमर उठा उठा के अपनी चूत देती जाती!

जब मैंने अपनी झांटों से बहूरानी के भागंकुर को रगड़ना शुरू किया तो जैसे वो उत्तेजना के मारे पगला सी गई और किलकारी मार कर मेरे कंधे में अपने दांत जोर से गड़ा दिए और मेरे बाल अपनी मुट्ठियों में कस लिए और किसी हिस्टीरिया के मरीज की तरह पगला के अपनी चूत उछाल उछाल के मेरा लंड सटासट लीलने लगी अपनी चूत में… और उसकी चूत से रस का झरना सा बहते हुए मेरी झांटों को भिगोने लगा.

मैंने भी अपने धक्कों की स्पीड और बढ़ा दी, अब उस अँधेरी कोठरी में चुदाई की फचफच और बहूरानी की कामुक कराहें और किलकारियां गूँज रही थी- ‘राजा, बहुत मज़ा आ रहा आज तो और जोर से करो न… फाड़ डालो इसे आज!

बहूरानी सटासट चलते लंड का मज़ा लेती हुई मुग्ध स्वर में बोली. मेरी उत्तेजना भी अब चरम पर थी, मैं झड़ने की कगार पर था, मैंने बहूरानी के दोनों मम्मे कस के अपनी मुट्ठियों में जकड़ लिए और पूरी बेरहमी से उसकी चूत चुदाई करने लगा.

बहूरानी भी तरह तरह की सेक्सी आवाजें निकालती हुई अपनी चूत मुझे परोसने लगी. मेरी भोली भाली सौम्य सी लगने वाली बहू तृप्ति कितनी कामुक और चुदाई में सिद्धहस्त थी मुझे उस रात साक्षात अनुभव हुआ.

अपनी चूत को सिकोड़ सिकोड़ के कैसे लंड लेना है उसे बहुत अच्छे से पता था, वो मज़ा लेना जानती थी और मज़ा देना भी जानती थी. मेरा बेटा सच में भाग्यशाली था जो उसे ऐसी प्यारी बीवी मिली थी. इसके पहले तो मैं सिर्फ यही जानता था की तृप्ति पढ़ाई में इंटेलिजेंट और खाना बनाने में ही कुशल है बस!

‘जानू, निहाल हो गई आज मैं… ऐसा मज़ा पहले क्यों नहीं दिया आपने? बस चार छः करारे करारे शॉट और लगा दो, मैं आने ही वाली हूँ.’ बहूरानी मेरा गाल चूमते हुए बोली.

मैं भी झड़ जाने को बेचैन था, मैंने कुछ आखिरी धक्के बहूरानी के मनमाफिक लगा कर उसे अपने सीने से लिपटा लिया और मेरे लंड से वीर्य की पिचकारियाँ निकल निकल के चूत में भरने लगीं. मेरे झड़ते ही बहूरानी ने मुझे कस के पूरी ताकत से भींच लिया और अपनी टाँगें मेरी कमर में लॉक कर दीं.

वो भी झड रही थी लगातार और उसका बदन धीरे धीरे कंप कंपा रहा था. जब बहू की चूत से स्पंदन आने शुरू हुए तो उस जैसा अलौकिक सुख मुझे शायद ही कभी मेरी पत्नी की चूत ने दिया हो. बहू रानी की चूत सिकुड़ सिकुड़ कर मेरे लंड को जकड़ती छोड़ती हुई सी वीर्य की एक एक बूँद निचोड़ रही थी.

बहुत देर तक हम दोनों इसी स्थिति में पड़े रहे, फिर बहूरानी ने अपनी टाँगें फैला दीं, मेरा लंड भी झड़ कर ढीला हो सिकुड़ गया फिर चूत ने उसे बाहर धकेल दिया. उधर बहूरानी गहरी गहरी साँसें भरती हुई खुद को संभाल रही थी, वो मुझसे एक बार फिर से लिपटी और मुझे होंठों पर चूम लिया. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

मैंने उसके मुंह से अपने वीर्य की गंध महसूस की जो संभोग के उपरान्त कुछ ही स्त्रियों के मुंह से आती है. ऐसा कहीं पढ़ा था मैंने पहले… उस रात यह खुद अनुभव किया. जल्दी ही बहूरानी का बाहुपाश शिथिल होने लगा और वो जम्हाई लेने लगी. रात के तीन पहर लगभग बीत चुके थे, शायद तीन तो बज ही गये होंगे!

‘जानू, मैं तो सोऊँगी अब… आप भी सो जाओ, सुबह जल्दी उठ कर मेहमानों की चाय बनवाना मेरे जिम्मे है न!’ वो बोली और जल्दी से उसने अपने पूरे कपड़े पहन लिए और मुझसे लिपट कर सोने लगी. वासना का तूफ़ान निकल जाने के बाद मुझे आत्मग्लानि होने लगी कि ये सब कैसे क्या हो गया! मन को सांत्वना इस बात की जरूर रही कि मैंने अपनी बहूरानी का नग्न शरीर नहीं देखा, उसके स्तन, योनि इत्यादि अंग जिन्हें स्त्रियां हमेशा जतन से छुपा के रखती हैं, उन पर मेरी नज़र नहीं पड़ी.

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कोठरी के उस अँधेरे में काम वासना का एक तूफ़ान उठा और चुपचाप से गुजर गया. बहूरानी मुझसे लिपटी हुई किसी अबोध बालिका की तरह मीठी नींद सोने लगी थी. कुछ ही देर में उसकी साँसों के उतार चढ़ाव से मुझे स्पष्ट अनुभव हुआ कि वह थक कर चूर हुई गहरी नींद में सो चुकी थी. अब मैं क्या करूं? यह यक्ष प्रश्न भी मुझे बार बार कचोट रहा था. और मुझे तृप्ति पर आश्चर्य भी हो रहा था कि कोई स्त्री ऐसी कैसे हो सकती है कि चुद जाए और यह भी न पहचान सके कि चोदने वाला उसका पति ही है या कोई और!!

बहरहाल जो भी हो, जो होना था, वो चुका था. तृप्ति के गहरी नींद में सो जाने के बाद मैंने उसे धीरे से अपने से छुड़ाया और अपने कपड़े पहन दबे पांव कोठरी से निकल कर नीचे चला गया. पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था, हर कोई गहरी नींद में था. घड़ी में देखा तो साढ़े तीन हो चुके थे. बाहर पंडाल लगा था, मैंने गद्दों के ढेर में से दो गद्दे निकाले और सोये मेहमानों के बगल में बिछा ओढ़ के सो गया.

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