Bahu Sexy Ass Fuck
मेरी उम्र सताईस वर्ष है, मेरा रंग सांवला जरुर है लेकिन लोगों का कहना है की मेरे नयन नक्श बहुत आकर्षक हैं, मैं इकहरे बदन की दुबली पतली और लंबी युवती हूँ, मेरी पतली कमर ने मुझे सिर से पांव तक सुन्दर बना रखा है, मेरे पति ने सुहागरात को बताया था कि जब वे शादी से पहले मुझे देखने गये थे मेरी सूरत देखे बिना मेरी कद काठी पर ही मोहित हो गये थे और जब सुरत देखी तो हाल बेहाल हो गया था. Bahu Sexy Ass Fuck
मेरी शादी बीस वर्ष कि उम्र में हुई थी, मैं छह वर्षीय एक बेटे की मां भी हूँ, उसके बाद मैं गर्भवती नहीं हुई, कीसमे कया खामी आ गई है यह जानने की हमने कभी कोशिश नहीं की और ना ही कभी विचार विमर्श किया, मै कभी अपने पति से और बच्चे के लिए कहती हूँ तो यह कह कर टाल जाते हैं कि एक लाडला है तो, वही बहुत है, और बच्चे नहीं होते तो ना हों, कया करना है?
लेकिन बच्चों के मामले में मैं तृप्त या संतुस्ट नहीं हूँ, कम से कम दो तीन बच्चे तो होने ही चाहिये, इसलिये मैं पति के विचारों से सहमत नहीं हूँ, मेरे मन में एक या दो बच्चों की माँ बनने की लालसा बनी रहती है. मेरी एक पड़ोसन ने मुझे सलाह दी” तुम अपने पति के साथ अस्पताल जाकर चेक करवाओ, इलाज असंभव नहीं है, पहले एक बच्चा पैदा कर चुकी हो तो स्पष्ट है कोई छोटी मोटी खराबी आ गई है, इलाज हो जायेगा तो फिर गर्भवती हो सकोगी.”
मैनें पति को बताया तो डांट पिला दी, “डाक्टरों के पास चक्कर लगाना मुझे पसनद नहीं है और ना ही मुझे और बच्चों की जरूरत है, तुम्हे क्यों इतनी जरुरत महसूस हो रही है की पड़ोस में रोना रोती फिर रही हो,? भगवान ने एक लड़का दिया है उसी का अच्छी तरह पालन पोषण करो और खुश रहो.”
यह एक साल पहले की बात है, मेरे पति एक अस्पताल में ही नौकरी करते हैं, कभी दिन की तो कभी रात की डयूटी लगती है, मेरे कोई देवर जेठ नहीं है, दो ननदें और ससुर जी हैं, एक ननद की शादी मुझसे भी पहले हो चुकी थी, दूसरी की शादी पिछले साल ही हुई है, अपने लड़के को हमने स्कूल में डाल दिया है.
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शुरू में ही पता लगने लगा की वह पढ़ने में तेज निकलेगा, उसे मैं बहुत प्यार करती हूँ, उसके खान पान और पहनावे का भी ध्यान रखती हूँ, फीर भी जी नहीं भरता, हर समय सोचती रहती हूँ की एक बच्चा और हो जाता तो अच्छा होता, बेशक चाहे बेटी ही हो जाये, और बच्चा पाने की लालसा लुप्त नहीं हो पा रही थी,
इस लालसा के चलते मेरा मन बहकने लगा, मेरी नीयत खराब होने लगी की मैं अपने पति के किसी मित्र से शारीरिक संबन्ध बना कर एकाध बच्चा और पैदा कर लूँ, मन बहकने के दौरान मेरी मती भ्रष्ट हो जाती, मैं एक बार भी नहीं सोच पाई की पति के वीर्य में खराबी है या मेरी बच्चेदानी खराब हो गई है? नहीं सोचा की अगर मुझमें खराबी आ गई होगी तो गैर मर्द से संबन्ध बनाने से भी गर्भवती कैसे हो जाउंगी,?
बस लगातार यही सोचती रही की गैर मर्द से सहवास करुँगी तो मेरी लालसा पुरी हो जायेगी. मेरे पति के कई मित्र हैं, दो तो इतने गहरे मित्र हैं की अक्सर मिलने घर तक चले आते हैं, जब पतिदेव ने एकदम निराश कर दिया तो मेरा ध्यान उनके दोनों मित्रों की ओर स्वभाविक रूप से चला गया.
वे दोनों भी शादी शुदा और दो दो बच्चों के पिता हैं, उनसे मैं कभी पर्दा नहीं करती थी, पति के सामने भी हंसती बोलती थी, उनकी नजरों में मेरे यौवन की लालसा सदैव झलकती थी, लेकिन मैं नजरन्दाज कर जाती थी, क्योंकि मुझे उनकी जरूरत मासुस नहीं होती थी, मेरे पति भी हिर्ष्ट पुष्ट और मेरी पसन्द के पुरुष थे.
लेकिन चूँकि उन्होंने मुझे निराश किया इसलिए वे मेरी नजरों में बुरे बन गये थे, और इसलिए मैं उनके मित्रों की ओर आकर्षित हो गई, पहले जब उनके मित्र आते और पति ना होते तो लौट जाते थे लेकिन अब पति नहीं होते तो उनके मित्रों से बैठने, चाय पिने का अनुरोध करती हूँ, कभी एक आता कभी दूसरा आता.
मेरे अनुरोध को ये अपना सौभाग्य समझते इसलिये बैठ जाते, चाय के बहाने उन्हें कुछ देर के लिये रोकती और मुस्कुरा मुस्कुरा कर बातें करती, कभी उनकी बिबियों के बारे में पूछती कभी उनकी प्रेमिकाओं की बातें करके छेड़ती, वे मेरी बातें रस ले ले कर सुनते और खुद भी मजाक करते, वे दोनों ही मेरे रुप सौन्दर्य के आगे नतमस्तक थे.
मैं भी उनके पौरुष के आगे झुकने का मन बना चुकी थी, लेकिन मेरी लज्जा हमारे बिच आड़े आ रही थी, इसलिये हम एक दुसरे की ओर धीरे धीरे झुक रहे थे, हालांकि मैं दोनों से शारीरिक संबन्ध बनाने की जरूरत महसूस नहीं कर रही थी, क्योंकि मैं बदनाम होना नहीं चाहती थी.
चारा मैं दोनों के आगे फेंक रही थी, जो भी पहले चुग जाये ये भाग्य के ऊपर मैंने छोड़ दिया था, दोनों एक साथ कभी नहीं आये, एकाध बार ऐसा मौका आया लेकिन ना मैंने बैठने के लिये कहा और ना ही वे बैठते थे, दोनों अपनी अपनी गोटी सेट करने मैं लगे थे, इसलिये एक साथ बैठ कर दोनों ही मुझसे हंसी ठिठोली कैसे करते?
पापा जी यानि मेरे ससुर जी एक दुर्घटना में चार साल पहले अपने दायें पांव का पंजा खो चुके हैं, इसलिये काम धंधा उनके बस का रहा नहीं, जरूरत भी क्या है,? अपना मकान है, इकलौता बेटा कमा ही रहा है, इसलिये वे घर में ही बेकार पड़े रहते हैं, उनकी उम्र लगभग सैंतालिस साल है. दिन भर घर में पड़े पड़े ऊब जाते हैं इसलिये शाम को चार बजे बाजार घुमने चले जाते हैं, चलने में दिक्कत होती है इसलिये धीरे धीरे चलते हैं.
वापिस लौटने में उन्हें दो तीन घंटे लग जाते हैं, पति के मित्रों से हंसी मजाक करने का मुझे यही समय मिलता था, वे हर रोज आकर बैठते भी नहीं थे. एक शाम मैं इनके एक मित्र के साथ बैठी चाय पी रही थी, चाय पीने के दौरान एक दुसरे को झुकने की चेष्टाएँ जारी थी, आधा घंटा बीत चुका था, उस दिन जाने के लीये उठते समय उसने पहली बार अपनी चाहत प्रकट की, ” जाने का मन ही नहीं होता, जी चाहता है आपके साथ बैठा रहूँ,”
मैनें मुस्कुरा दिया. ठीक उसी समय पापा जी आ गये, उस रोज एक ही घंटे में वापस लौट आये थे, उन्हें देख कर मित्र तो चला गया, चाय की दो प्यालियों को देख कर पापा जी ने कुछ तो अर्थ लगाया ही होगा, विदाई के समय मेरी मुस्कान कुछ अलग ही तरह की थी, इसे देख कर तो पापा जी का आशंकित हो जाना स्वाभाविक ही था, फिलहाल उस वक्त पापा जी ने कुछ नहीं कहा-पूछा.
मेरा छह वर्षीय बेटा पापा जी से बहुत घुला मिला हुआ है, ज्यादा समय वह पापा जी के पास ही पढता और खेलता है, वह खाना खा चुका होता है तो भी पापा जी के साथ एक दो कौर जरूर खाता है, उसे नींद भी पापा जी के पास ही आती है, मेरे पति नाईट ड्यूटी में होते हैं तो मुन्ने को सो जाने के बाद अपने बिस्तर पर उठा लाती हूँ, नाईट ड्यूटी नहीं होती तो पापा जी के पास ही सोने देती हूँ.
उस दिन तो नहीं अगले दिन जब मेरे पति की नाईट ड्यूटी लग गई तब पापा जी बोले थे, खाना पीना हो चुका था, मुन्ना तो सो चुका था, पापा जी भी सोने की तैयारी कर रहे थे, मैं मुन्ने को उठाने पहुंची तो पापा जी पूछने लगे, “कल वो कैसे बैठा था? क्या कह रहा था?”
“मैं चाय का घुंट भरने ही जा रही थी की वो आ गया, उसे यह बता कर की ये अभी ड्यूटी से नहीं आये हैं, यों ही कह दिया चाय पिलो, वो रूक गया, मैं एक और प्याली ले आई, अपनी चाय देनी पड़ गई….” मैं छण भर के लिए रूक कर तुरन्त ही बोल पड़ी,” वह किसी विशेषग्य के बारे में बता रहा था, कह रहा था उसे दिखा लो, कोई खराबी आ गई होगी, इलाज से खराबी दुर हो जायेगी, “तब तक आप आ गये और वो चला गया.”
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“मेरे आते ही वह चला गया, इसीलिए सोचने को मजबूर हो गया हूँ,” पापा जी कहने लगे, “बहु तुम यहाँ बैठो, मैं तुम्हे समझाता हूँ, आ जाओ.”
मैं बैठने से हिचकी, वे मेरे पति के पिता थे, मैं उनके बराबर बैठने की हिम्मत नहीं कर पाई, वे मेरे संकोच को समझ गये, दुबारा बैठने के लिये नहीं कहा और अपनी बात बोलने लगे-
“देखो…ना तुममें खराबी है और ना ही मेरे लड़के में कोई खराबी है, मेरा लड़का ही बेवकुफी कर रहा है, जिसके कारण हर कोई सोचने लगा की अब तुम्हे बच्चे नहीं होंगे, उस मुर्ख को कितनी बार समझाया की नाईट ड्यूटी मत लगवाया करो, लेकिन वह मानता ही नहीं, रात भर अस्पताल में ड्यूटी करेगा यहाँ कुछ करेगा ही नहीं तो बच्चे कैसे होंगे.”
मैं पापा जी की बात समझ कर लज्जा उठी, एक नजर उनकी और देखा और शांत खड़ी रही, वे सही बात कह रहे थे, मुझे ऐसा ही लगा, क्योंकि नाईट ड्यूटी कर के वो सबेरे आते थे और दिन भर खर्राटे मार कर सोते थे, शाम को फिर चले जाते थे, नाईट ड्यूटी नहीं होती तो वे मेरे साथ सोते थे. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
लेकिन महीने में दो या तीन बार ही संभोग करते थे, मेरे दिमाग में यह बात भी बैठ गई थी की जब तक अंधाधुन संभोग ना किया जाये गर्भ नहीं ठहरता, गर्भ की बात तो अलग, मैं जवानी के दौर से गुजर रही थी, मैं खुद को अतृप्त महसूस करती थी, मेरा यौवन संभोग के बिना प्यासा रहने लगा था.
आगे पापा जी बोले, “आज वह सलाह दे रहा है डाक्टर के पास जाने की, कल कहेगा मैं तुम्हे माँ बना सकता हूँ, मानता हूँ की भरपुर जवान और सुन्दर युवती को पुरुष का भरपुर सहवास चाहिये, माँ बनने की लालसा हर औरत में होती है, तुम्हे एक बच्चा हो चुका है, लेकिन एक ही काफी नहीं है, कम से कम तीन, नहीं तो दो तो होने ही चाहिये.
लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की तुम उसके दोस्तों से मेल जोल बढाओ और उसके सहवास से माँ बनो, ये आज कल के छोकरे बिन पैंदी के लोटे हैं, कभी इधर लुढ़कते हैं कभी उधर, इनमें गंभीरता नाम की चीज होती ही नहीं है, ये अपने दोस्तों तक बिना हिचके बात पहुंचा देते हैं, फिर बदनामी मिलती है, तुम उससे बातें करना बन्द कर दो, कोई गंभीर आदमी होता तो मैं मना नहीं करता, माँ बनने के और भी उपाय हैं,”
” क्या…..?” मैं अकस्मात ही पूछ बैठी.
वे मुस्कुराये फिर बोले, “तुम मुन्ने को ले जाकर बिस्तर पर लिटा आओ तो बताता हूँ, ऐसा उपाय है कि सोने पर सुहागा, घर कि इज्जत घर से बाहर नहीं जायेगी और तुम्हे दो तीन बच्चे भी मिल जायेंगे, फिर अधूरी प्यास भी तुम्हे बैचैन करती होगी.”
चूँकि मुझे माँ बनने का रास्ता चाहिये था, इसलिए पापा जी के पास मैंने वापस आने का मन बना लिया, मैं झुकी, मुन्ने को उठा कर खड़ी होने लगी, तभी पापा जी ने मेरे वक्ष पर उभरी गोलाइयों को छूते हुवे पूछा, “मुन्ने को लिटा कर आओगी ना.”
मैं हडबडा गई, मुन्ना हाँथ से छूटते छूटते बचा, लेकिन जब मैं उनके कमरे से बाहर निकल आई तो सोचने लगी, पापा जी का सहवास आसानी से मिल रहा है, बुरा तो नहीं है, घर कि इज्जत घर में ढकी रहेगी, वे खुद किसी से चर्चा करेंगे तो पहले उन पर ही थु थु होगी. मन से तो मैं तैयार हो गई, लेकिन मुन्ने को लिटाने के बाद मैं बाहर कि ओर कदम नहीं उठा पा रही थी.
कुछ देर तक खड़ी रही,साहस जुटाती रही कि मेरे कदम दरवाजे की ओर बढ़ जायें, लेकिन हमारे संबंध ने मेरे पावों में बेड़ियाँ सी डाल दी थी, मेरा मन और तन अजीब सी गुदगुदी से भर उठा था, केवल एक दरवाजा लांघते ही पापा जी के कमरे में दाखिल हो जाना था, लेकिन मुझे लग रहा था कि सफ़र बहुत लंबा तय करना पड़ेगा.
बहुत देर बाद भी जब हिम्मत नहीं कर पाई तो स्विच ऑफ़ करके मुन्ने के पास बिस्तर पर बैठ गई, जितना कठिन था पापा जी की ओर कदम उठाना उतना ही कठिन लग रहा था हार कर मुन्ने के पास बिस्तर पर लेट जाना, बैठ जरूर गई, लेकिन लेटने का मन नहीं हो रहा था, दरवाजा खुला था, मेरे पति नाईट ड्यूटी पर नहीं होते तो बीच का दरवाजा बंद कर लेती थी.
पापा जी के कमरे में बत्ती जल रही थी, वे शायद मेरे आने की राह देख रहे थे, निराश होकर वे भी उठे और बत्ती बुझा कर लेट गये, मेरा निचला होंठ दांतों के निचे दब गया, पापा जी ने जितनी लिफ्ट दे दी थी उसके आगे बढ़ने में शायद वे भी संकोच कर रहे थे, हो सकता है मेरी असहमती समझ कर पीछे हट गये हों, मैं पछताने लगी, मन अभी भी कशमकश में पड़ा हुआ था की उनके पास चली जाऊं या नहीं?
एक लंबी सांस छोड़ कर मैंने अपना माथा अपने घुटनों में झुका लिया, एक तरफ मेरी माँ बनने की लालसा थी तो दूसरी तरफ हमारा पवित्र संबंध, स्थिति ने मुझे अधर में लटका कर छोड़ दिया था, थोडी देर बाद पापा जी की आवाज मेरे कानों में पड़ी, “बहु आज पानी मेरे पास नहीं रखा क्या?”
” अभी लाती हूँ,” कह कर मैं झट उठ पड़ी, स्विच ऑन करके पानी लेने नल की ओर तेजी से बढ़ गई, मुझे अच्छी तरह याद था की मुन्ने को उठाने गई थी तो रोज की तरह पानी लेकर गई थी, मालूम होते हुवे भी पापा जी ने पानी माँगा था, इसे मैंने पापा जी का स्पष्ट आमंत्रण माना.
मुझे भी उनके पास जाने का बहाना मिल गया था, इसलिए पानी रख आई हूँ यह बात मैंने भी भुला दी, अब दोबारा पानी लेकर जाने पर फंस कर रह जाना लाजमी था, इसलिए मुन्ने के लिये मैंने बत्ती जला दी थी ताकि अँधेरे में आँख खोले तो डर ना जाये, पानी ले जाकर यथास्थान रखने के लिये झुकी तो मैंने कहा, “पानी तो रख ही गई थी, रखा तो है.”
पापा जी ने मेरी बांह पकड़ कर कहा “हाँ पानी तो पहले ही रख गई थी, मैंने पानी के बहाने यह पूछने बुलाया है की क्या तुम मेरी बात का बुरा मान गई?”
मैंने कहा “नहीं तो”.
“अगर बुरा नहीं माना है तो आओ, बैठ जाओ ना.”
कहते हुवे उन्होंने मेरी बांह खिंची, मै संभल नहीं पाई या ऐसा भी समझ सकते हैं कि मैंने संभलना नहीं चाहा, लड़खड़ा कर बैठ सी गई.
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“शर्माओ मत बहु, यह तो समस्या के समाधान की बात है, और बच्चे पाने के लिये तुमने जो कदम उठाना चाहा वह गलत नहीं था, गलत तो वह लड़का है जिसकी ओर मैंने तुम्हारा झुकाव देखा, तुम इतनी सुन्दर हो की तुम्हे किसी का भी सहवास मिल जायेगा, लेकिन बाहरी किसी एक आदमी की आगोश में जाओगी तो उसके अनेक दोस्त भी तुम्हे अपनी आगोश में बुलायेंगे.
मज़बूरी में तुम्हे औरों का भी दिल खुश करना पड़ेगा, तुम इनकार करोगी तो चिढ़ कर वे तुम्हे बदनाम करेंगे, नहीं इनकार करोगी तो भी बात एक दुसरे दोस्तों तक पहुँचेगी और तुम चालू औरत के रुप में बदनाम हो जाओगी, खानदान की नाक कटेगी सो अलग, मैं घर का सदश्य हूँ, हमारे संबन्ध ऐसे हैं कि किसी को संदेह तक नहीं होगा, मैं तुम्हारी बदनामी की बात सोच भी नहीं सकता, क्योंकि खुद मेरा मुंह काला हो जायेगा, अब शर्म छोडो और आओ मेरी आगोश में समा जाओ,”
कह कर पापा जी ने मुझे अपनी ओर खिंचा और बाँहों में बाँध लिया, मैंने जरा भी विरोध नहीं किया ओर उनके सीने में दुबक गई, समर्पण ही मेरे पास एक मात्र रास्ता था, पापा जी यानि मेरे ससुर बुढे नहीं हुवे हैं, अभी अधेडावस्था में पहुंचे हैं लेकिन युवा दिखने में की चेष्टा में सफल हैं.
हमसे एक पीढी उपर जरूर हैं, लेकिन उनको सुन्दरता की परख ही नहीं है बल्कि रुप सौंदर्य को भोगने का आधुनिक ज्ञान भी है, यह मुझे उसी रात पता चल गया था, मैं उनके अगले कदम की प्रतीछा सांस रोक कर रही थी, सहसा ही मेरी रुकी हुई लंबी सांस छुट गई.
“क्या हुआ? प्यास बहुत तड़पा रही है ना,” कहने के साथ ही उन्होंने मेरे जिश्म को कस कर भींच दिया.
“आह!” मैं कराह उठी,इसके साथ ही मैंने चेहरा भी उठा दिया, आँखें चार हुई तो लज्जावश मेरी पलकें बंद हो गई, मै तैयार नहीं थी, सहसा ही पापा जी ने अपने तपते होंठों को मेरे होंठों से चिपका दिया, मेरी थरथराती सांस फिर छुट गई.
“वाह!” होंठ उठा कर बोले” बहुत हसीन हो तुम,तुम्हारी साँसों की खुशबु चमेली के फूल जैसी है”.
प्रशंशा सुन कर मेरा मन झूम उठा, लेकिन झेंप कर मैंने अपनी आँखें चुरा ली,तब पापा जी ने मेरी ठोडी पकड़ कर चेहरा उपर उठा दिया, मेरी पलकें बंद ही थी, मेरी साँसे भारी हो गई थी, पापा जी ने मेरी दोनों आँखों को चुमते हुवे कहा,” अब आँखें ना चुराओ जानेमन, पलकें खोल दो जरा देखुं तो तुम्हारी झील जैसी आँखों की गहराई कितनी है.”
उनके डायलोग सुन कर मुझे हंसी आ गई, मेरी पलकें उठ गई, आँखें मिलते ही मैंने उनके गले में बाहें डाल कर अपनी ठोडी उनके कंधे पर टिका दी, तब पापा जी मेरी नंगी कमर को सहलाने लगे, मेरी साँसे तेज तेज चलने लगी थी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
“तुम्हारी पतली कमर बड़ी कातिल है, जब जब नजर पड़ती थी आह भर कर रह जाता था.”
मैंने धीरे से चुटकी ली “यानि नीयत पहले से खोटी है?”
वे एकदम से आवेश में आ गये, उन्होंने मुझे कंधे से अलग करके चीत गिरा दिया, मेरे दोनों पाँव उनकी गोद में ही सिकुड़े पडे थे, उन्होंने मेरे पांव के पंजों को दोनों हांथों में उठा लिया और पल भर तक घुर घुर कर देखने के बाद जी जान से चूमने लगे, ” तुम्हारे पांव तो कमल के फूल जैसे हैं, ऐसे ही पांवों को चरणकमल की उपाधि दी गई है.”
मेरे पांवों को चुम चुम कर पापा जी ने मुझे आसमान के सिंहासन पर बैठा दिया था, इतनी प्रशंशा पहले किसी के मुंह से नहीं सुनी थी, पति से भी नहीं, मुझे बहुत अच्छे पुरुष लगे पापा जी, पांवों को छोड़ कर पापा जी ने दोनों हाँथ मेरी कमर में डाल कर पहले तो उसे नापा फिर उचका कर उठा लिया.
मेरा लंबा जिस्म पुल की भाँती बिच से उठ गया, वे मुस्कुराते हुवे मेरे पेट को कुछ छण देखते रहे फिर नाभि पर होंठ रख कर चुमने लगे, मेरा अंग अंग सिहर उठा था, नाभि चुमने के बाद मेरी कमर वापस बिस्तर पर रख दिया और थोडा झुक कर मेरे उरोजों को टटोलने लगे, मेरे कमरे में रौशनी थी, उसकी रोशनी से पापा जी का कमरा भी हल्का हल्का रोशन था.
“इन सबको थोडी देर के लिये उतार फेंको ना, ये मजा किरकिरा कर रहे हैं,” कह कर वे ब्लाउज का हूक खोलने लगे.
मैं छिपी नजरों से उनका मुंह ताक लेती थी, धीरे धीरे मेरी हिचक भी दुर होती जा रही थी, पापा जी ने ब्लाउज, ब्रेजियर उतारने के बाद साडी भी खींच दी, मेरे उन्मत उरोजों ने उन्हें इस कदर आकर्षित कर लिया की साडी के बाद पेटीकोट को भूल ही बैठे, उन्होंने पहले तो अपने हांथों को उभारों पर हल्के से रखा और हल्के हल्के सहलाते रहे, फिर धीरे धीरे दबाने लगे, दबाव भी बढ़ता गया, आखिर में उन्होंने निर्दयता के साथ भींच दिया,
“उई री माँ” मैं सीत्कार कर उठी, साथ ही मैनें उनके हांथों पर हाँथ रख कर राहत देने के लिये आँखों ही आँखों से अनुरोध किया, वे मान गये, खिसक कर मेरी बगल में आ बैठे और उरोजों को सहलाने लगे, काम क्रीड़ा से उन्होंने मुझे पर्याप्त आनंदित कर दिया था, मैंने फिर अपने निचले होंठ को दांतों तले दबाया तो वे मेरे चेहरे पर झुक कर बोले,” तुम अपने होंठों को घायल मत करो, मेरे हवाले कर दो”
मैनें होंठ को मुक्त कर दिया, उसी समय उन्होंने अपने होंठों के बिच दबा कर चुसना सुरु कर दिया, मेरी साँसे एकदम तेज हो गई, पिंजरे में फंसी मैना की भाँती मैं छटपटा रही थी और वे होंठों का स्वाद ले रहे थे, उन्होंने मेरी एक बांह उठा कर अपने गले पर लपेट दी और दुसरे हाँथ की उंगुलियां पकड़ कर अपने गुप्तांग की ओर ले जाने लगे.
“तुम्हारा खिलौना यह है, तुम भी खेलो.”
अगले ही पल उनका लिंग मेरी मुट्ठी में था, उसका स्पर्श बहुत आनन्ददायक लगा, भयभीत होने की उम्र मैं पार कर चुकी थी, पापा जी का कद मेरे पति से लंबा ही था, शायद इसीलिए उनके लिंग की लंबाई भी कुछ अधिक थी और कोई अन्तर नहीं था.
मैं लिंग को धीरे धीरे सहलाने लगी, होंठों पर दर्द महसुस होने लगा तो मैं उनकी गर्दन पीछे की ओर धकेलने लगी, वे समझ गए, मुंह उठा कर मेरी आँखों में आँखें डाल कर पूछा “मेरे साथ आनन्द आ रहा है या नहीं.”
मैंने मुस्कुरा कर उनके गाल पर हलकी सी चपत लगाईं और नाक चढा कर बोली, “बहुत आनन्द आ रहा है.”
“तुम्हारी यही अदा तो कातिल है,” कह कर उन्होंने मेरी नाक पर एक चुंबन अंकित कर दिया ओर मुस्कुराने लगे.
मैनें पुछा “मेरे साथ आप कैसा महसुस कर रहे हैं.”
“तुम्हारे सहवास का जो आनन्द मुझे मिल रहा है, वह पहले कभी नहीं मिला, तुम सुन्दरता की एक मिशाल हो,” कह कर उन्होंने मेरे उरोजों के अग्रभाग को बारी बारी से चुमा फीर एक को मुंह में डाल लिया.
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मैं पापा जी से ऐसी उम्मीद नहीं रखती थी, मेरे पति भी उरोजों को पहले चूसा करते थे, पापा जी के मुंह में पड़े उरोज के अग्रभाग पर गर्मी महसुस हुई तो मेरा रोम रोम उत्तेजना से खडा हो गया, मेरी साँसे रुकने सी लगी, उत्तेजना के कारण मेरे होंठों पर सिसकारियां उभर आई थीं, बारी बारी से उन्होंने दोनों उरोजों को देर तक चुसा, होंठ दर्द करने लगे तो मुंह उठा कर मेरे चेहरे की ओर देखा.
“क्या हुआ,” मैंने मुस्कान बिखेरते हुए पुछा.
“तुम तो चुप पड़ी हो, कुछ ना कुछ तुम भी करती रहती तो मुझे विश्राम मिलता रहता, थक गया ना.”
मैं हंस दी “आप मेरी बारी आने दें तब ना.”
इतना कहना था की उन्होंने मेरे बगल में हाँथ डाल कर अपने जिश्म से चिपका लिया और चित्त हो गये, मेरा समूचा जिश्म उनके उपर फ़ैल गया, मेरे होंठ उनके होंठों से जा लगे, मैंने धीरे धीरे होंठों को हरकत दी और फिर सिसिया कर चूसने लगी,बीच बीच में मैं होंठों को दांतों तले दबा लेती तो वे पीड़ा से कसमसा उठते, चुंबन लेते हुवे मैंने अपनी कमर से निचे का भाग तिरछा करके उनके उपर से निचे उतार लिया.
उनका गुप्तांग कपडों के बीच से झाँक रहा था, पहले तो मैनें उसे पकडा फिर छोड़ कर उन्हें निःवस्त्र करने लगी, कुल एक ही वस्त्र था उसे उतारते ही वे पुर्णतः निःवस्त्र हो गये, तब उनके होंठों पर से मुंह उठा कर मैनें लिंग का सम्पूर्ण दीदार किया और हाँथ से सहलाते हुवे जायजा लिया, मेरा अनुमान सही था, पापा जी के लिंग की लंबाई मेरे पति से ज्यादा थी, मोटा उतना ही था.
पापा जी ने पुछा “इतने गौर से क्या देख रही हो?”
मैंने उनकी ओर देखे बिना ही जवाब दिया, “आपका बहुत बड़ा है.”
“इससे भी बड़ा होना चाहिये, लिंग जितना ही लंबा और मोटा होता है, स्त्रियों को सम्भोग का उतना ही ज्यादा आनन्द और संतोष प्राप्त होता है, इसे देख कर घबराओ मत,” कह कर उन्होंने मेरा मुखड़ा अपनी ओर खींच लिया, “तुम चेहरा इधर तो रखो, बहुत सुन्दर हो, मुझे जी भर के देखने दो.”
उन्होंने मेरे चेहरे को हथेलियों में बाँध सा लिया, मुझे भी अपना रुप उन्हें दिखाने में आनन्द आ रहा था, उत्तेजना के कारण मेरी नाशिकाएं फुल और पीचक रही थी, चेहरा तमतमा गया था, जैसे सारे जिश्म का खून चेहरे पर ही जमा हो गया हो, यह सब सही था तभी तो पापा जी ने थोडा तिरछा करके मेरा चेहरा झुकाया और गाल अपने होंठों पर रख लिया.
उन छणों में मैं वास्तविक सम्बंध को एकदम भूल बैठी, मैं इस गुमान में बहुत खुश हो उठी थी की मेरा जिश्म और हुस्न मेरे एक मनपसंद पुरुष के आगोश में है, प्रभावित हो कर मैंने अपना गाल उठाया और उनके गाल पर रख कर चूमने लगी, मेरी हिचक सहसा ही लुप्त हो गई, मैं उन्हें इस तरह प्यार करने लगी मानो वे मेरी पसंद के मनपसंद युवक हों.
मैनें उनकी बाजुओं को चुमा, चौड़े सीने को बार बार चुमा, उसके बाद उनके वक्ष पर सीर टीका कर समर्पण कर दिया, उनके हाँथ मेरे पेट की और तेजी से बढ़े, नाभी पर सहलाने के बाद पेटीकोट उतार दिया, मैं उनके सीने पर टिकी हुई थी, मेरी पीठ पर बाहों को कसा और अपने साथ साथ मुझे भी उठा कर खडा कर दिया.
हम दोनों एकदम निःवस्त्र अवस्था में एक दुसरे की बाहों में बंधे खड़े थे, उनका कठोर लिंग मेरी नाभी से एक इंच निचे चुभ रहा था और मेरे दोनों उरोज उनके जिस्म से दबे हुवे थे, उन्होंने मेरी ठोढी को छुवा तो मैंने अपना मुखड़ा उपर की और उठा दिया, उन्होंने मेरे होंठों पर गहरा चुंबन अंकित कर के मुझे अपने से अलग कर दिया.
वे मेरा निःवस्त्र बदन देखना चाहते थे, इसलिए स्वयं ही दो फुट पीछे सरक कर मेरे बदन का अवलोकन करने लगे, कुछ छण बाद वे बैठ गये फीर थोड़ा उठ कर उपर से निचे तक नजर दौड़ाने लगे, मेरे बदन ने उन्हें कितना प्रभावित किया यह उनके चेहरे पर स्पष्ट झलक रहा था. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैनें मुस्कुरा कर पूछा “मुझे शर्म लग रही है, बैठ जाऊं?”
उन्होंने बाहें फैला कर मेरा स्वागत किया, मैं झुक कर उनकी बाहों में गिर पड़ी, ठुनक कर बोली “अब ज्यादा मत तडपाइये, मेरा दम घुट रहा है.”
लुढ़कते हुवे वे मुझे निचे करके मेरे उपर आ गये, मेरे गुप्तांग को टटोलते हुवे दो चार चुटकियाँ काटी, फिर कहने लगे “तुम तो पहले से ही तैयार हो”.
“आप भी तो तैयार हैं.”
मेरे कहते ही उन्होंने फिर मेरे होंठों को चुसना सुरु कर दिया, मुझे होंठों पर जलन महसूस होने लगी थी, पता नहीं मेरे होंठों का रस उन्हें कितना अच्छा लग रहा था, बार बार चूसने लगते थे, मैनें उनका लिंग पकड़ कर पुरी ताकत से दबाया तो वे उठते हुवे बोले “तुम बताओ तुम्हे कौन सा आसन पसन्द है”.
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“पहले तो वे (मेरे पति) इसी तरह चित लिटा कर जाँघों के बिच बैठते थे, लेकिन अब अक्सर वे चित लेट कर मुझे अपने उपर बैठाते हैं, उस तरह थकान जरूर मुझे परेशान करती है लेकिन आनन्द बहुत आता है, फिलहाल आपको जो आसन पसन्द हो उसी को आजमाइये! मम्मी जी को कौन सा आसन पसन्द था, वही बताइये”.
उन्होंने मुझे पेट के बल लिटा कर घुटनों को मोड़ने का निर्देश दिया, घुटनों को मोडा तो मेरा पिछला हिस्सा उपर उठ गया, जबकि मेरा वक्ष और चेहरा तकिये से चिपका हुआ था, उन्होंने बताया “इसे धेनु आसन कहते हैं, इस आसन से गर्भ आसानी से ठहर जाता है, तुम्हे पसन्द ना हो तो चित्त लेट जाओ.”
“नहीं यही आसन ठीक है, पता तो चले की इस आसन से कितना आनन्द आता है.”
वे मेरे पीछे घुटनों के पास ही बैठे थे, मेरी स्वीकृती मिलते ही वे भी अपने घुटनों पर खड़े हो गये, तब उनका लिंग मेरे गुदाद्वार से आ टकराया, मैं डर गई, तभी उन्होंने हाँथ लगा कर लिंग मुण्ड को योनिद्वार पर पहुंचा दिया, फिर मेरे गुदाद्वार पर अंगुली रख कर पुछा, “इसके मैथुन का आनन्द कभी उठाया है?”
मैंने कहा “बहुत दर्द होता है, एक बार इन्होनें प्रयास किया था, मेरी जान निकलने लगी तो छोड़ दिया.”
“ज्यादा जोश के कारन बेरहमी कर बैठा होगा, वरना गुदा – मैथुन में भी बहुत आनन्द प्राप्त होता है, कभी मैं कर के दिखाऊंगा, पीड़ा हो तो बताना,” कह कर वे अपना लिंग योनिद्वार में प्रवेश कराने लगे.
लिंग मुण्ड का प्रवेश तो सामान्य ही लगा, लेकिन मुण्ड प्रवेश के बाद दो पल को वे रुके फिर एक ऐसा तेज झटका दिया की संपूर्ण लिंग प्रवेश करके अंतड़ियों में चुभने लगा, मैं कराह कर थोड़ा आगे हो गई, तब उन्होंने मेरी कमर पकड़ कर वापस ही नहीं बल्कि खुद भी आगे सरक आये, जिससे मुझे तकलीफ होने लगी. उनके लिंग की लंबाई ज्यादा जो थी, कराहते हुवे मैं फिर आगे होने का प्रयास करने लगी, लेकिन उन्होंने सफल नहीं होने दिया.
तब मैनें कहा “थोड़ा रहम कीजिये, जितनी चादर है उतना ही पैर पसारिये, तकलीफ हो रही है.”
उन्होंने मेरी कमर थपथपा कर कहा “एकाध बार ही तकलीफ होगी, मेरा संसर्ग पहली बार मिला है ना, धीरज रखो, अभी इतना मजा आने लगेगा जितना तुम सोच भी नहीं सकती.”
इतना कह कर वे थोड़ा पिछड़े और फिर पुरी तेजी से आ सटे. “आह” मैं कराह उठी. पापा जी का जोश दोगुना हो गया, वे उसी रफ़्तार से जल्दी जल्दी घर्षण करने लगे, मैं लगातार कराहती रही, मुझे पेट में चुभन थोड़ा तकलीफ दे रही थी, अन्यथा उनके लंबे लिंग का घर्षण बड़ा आनन्ददायक लग रहा था, इसमें संदेह नहीं, घर्षण का आनन्द ही उठाने के लिये मैं पीड़ा सहने के लिये मजबूर थी.
उन्होंने विश्राम के दौरान पुछा “मेरे सहवास में मजा आ रहा है ना बहु”.
“मजा तो जरूर आता लेकिन दर्द के कारन मजा किरकिरा हो गया है, आज फंस गई हूँ, आइन्दा आपके पास कभी नहीं आउंगी, आप मजा कम पीड़ा ज्यादा पहुंचा रहे हैं.”
वे रूक गये, लिंग को तुंरत थोड़ा सा पीछे खिंच कर कहने लगे “ऐसा क्यों कहती हो? लो अब खुश हो?”
“हाँ अब ठीक है.”
“ठीक है तो लो अब मजा ही मजा उठाओ,” कह कर सावधानी के साथ घर्षण करने लगे, मैनें कराहना बंद कर दिया था, लेकिन जब मैं मंजिल के करीब पहुँचने लगी तो सीसीयाते हुवे बोल पड़ी “पुरी ताकत लगा दीजिये, पहले की तरह, प्लीज.”
इतना कहना था की वे पहले जैसी धुन में आ गये, मैं फिर कराहने लगी, अगले ही छण स्खलित हो गई तो उनकी जांघ को दबोचते हुवे बोली “बस..बस…प्लीज रूक जाइए,” वे रुकने के मूड में नहीं थे, लेकिन जल्दी ही वे भी स्खलित हो गये, तब रूक जाना उनकी मजबूरी थी, झुक कर उन्होंने अपना मुंह मेरी कमर पर रख दिया और हांफने लगे.
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इस तरह मेरा अवैध संबन्ध ससुर जी से स्थापित हो गया तो हम अक्सर काम क्रीडा करने लगे, मेरे पति नाईट ड्यूटी में होते तो नाईट के समय और दिन की ड्यूटी पर होते तो दिन के समय पापा जी के आगोश में पहुँच जाती, मेरा मुन्ना नादान ही था, और कोई देखने वाला था नहीं. हम स्वछन्द हो कर वासना का खेल खेलने लगे थे. छह महीने तक मैं गर्भवती नहीं हुई तो अवैध संबन्ध पर पछतावा होने लगा, मुझे यकीन हो गया की कुछ खराबी मेरे अन्दर ही आ गई है, इसलिए गर्भ नहीं ठहर रहा है, निराश हो चली थी की एकाएक पता चला, मेरी कामना पुरी हो गई.
मैनें ससुर जी को और पतिदेव को भी गर्भवती होने की सुचना दी तो पतिदेव बहुत खुश हुवे, मुझे शुभकामना दी, “लो तुम्हारी कामना पुरी हो गई, और बच्चों के लिये तरस रही थी, इश्वर ने तुम्हारी इच्छा पुरी कर दी, अब जरा सावधानी बरतना.” मेरे पति और मेरे ससुर दोनों ही बहुत खुश थे, मेरा पुरा ध्यान रखते, मैंने एक खुबसूरत बच्चे को जन्म दिया, मैंने अपने ससुर जी के सहयोग से बाद में एक और बच्चे को जन्म दिया, अभी भी ससुर जी पुरे जोश से मुझे संभोग का आनन्द देते हैं, अब मैं गर्भ निरोधक गोलियों का प्रयोग करती हूँ और शारीरिक सुख भोग रही हूँ.