Antarvasana Chudai
मेरा नाम मनीषा है ये मेरी कहानी है. मैं अपनी फॅमिली का इंट्रो देती हूँ मेरे घर मे 4 लोग है. मेरे पिताजी रिटायर्ड आर्मी ऑफीसर है, मैं बचपन से ही उनके बहादुरी के किस्से सुनती आई हूँ, मेरे पिताजी छोटे से गाँव से बिलॉंग करते है, गाँव से होने से मेरे पिताजी को कसरत करने का बहुत शौक था. Antarvasana Chudai
मेरे पिताजी तो बचपन से कुश्ती खेलते आ रहे थे, जब वो जवान हुए तो सबने कहा कि मेरे पिताजी एक तो पोलीस बन सकते है या आर्मी मे जा सकते है, पिताजी ने पोलीस मे जाने का ट्राइ लिया पर लास्ट स्टेज पर पैसे ना देने से उनका सलेक्शन नही हुआ था तो पिताजी आर्मी मे चले गये.
आर्मी मे जाते ही पिताजी ने अपने दिमाग़ का इस्तेमाल करके बहुत कारनामे किए, उनके चर्चे शहर मे भी होते है, सब उनकी बहुत इज़्ज़त करते है, पर मैं ने एक बात नोटीस की, जब भी पिताजी छुट्टियों मे घर आते तो सोसाइटी की औरतें अपनी बाल्कनी मे ज़्यादा देर खड़ी रहती.
किसी ना किसी बहाने से औरतें हमारे घर ज़रूर आ जाती, औरतों के आने का टाइम ज़्यादातर सुबह या शाम के समय होता था जब पिताजी कसरत करते है मेरी कुछ सहेलियो ने कहा कि मेरे पिताजी का अफियर है सोसायटी की औरत के साथ, मेरी एक सहेली ने कहा कि उसने अपनी माँ और मेरे पिताजी को कमरे से बाहर निकलते हुए भी देखा पर मुझे इन बातों पे विश्वास नही था.
और अब तो मेरे पिताजी रिटायर्ड भी हो गये है लेकिन लगते है पूरे फिट. दोपहर मे मेरे पिताजी किसी ना किसी के घर चले जाते थे बाते करने क्यूँ कि उनको अकेले अच्छा नही लगता. मेरी माँ उनका क्या कहना, पिताजी ड्यूटी पर जाते तो वो घर मे पड़ी रहती, पूजापाठ पर ज़्यादा ही विश्वास रखती थी.
मेरी माँ और पिताजी की शादी तो जल्दी हो गयी थी पर दोनो मे प्यार बहुत था जब भी पिताजी छुट्टियो मे घर आते तो माँ कुछ दिन बस सोती ही रहती थी. तब मैं छोटी थी तो समझ ही नही पाई कि पिताजी जब भी घर आते है तो माँ दोपहर मे क्यूँ सोती है. इस का पता जवान होते ही अपने आप चल गया, रात भर प्यार करेंगे तो दोपहर मे तो सोना ही था.
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लेकिन पिताजी दोपहर मे घूमने जाते उतना ही माँ को आराम मिलता था. माँ देखने मे कुछ खास नही थी फिर भी पिताजी उनको बहुत प्यार करते थे, जब पिताजी घर मे होते तो माँ को एक पल के लिए चैन नही होता, मैं ने बहुत बार देखा कि पिताजी जिस दिन आते उसके दूसरे दिन माँ लंगड़ा कर चलती है.
माँ तो पिताजी की हर बात मानती थी इस के बाद मेरा नंबर आता है. मैं मनीषा, मैं अपनी माँ पर नही गयी, दिखने मे सुंदर हूँ, सोसायटी की बहुत से लड़के पीछे पड़े रहते थे, पर मैं ने किसी को लिफ्ट नही दी मुझे डर भी था पिताजी का. पिताजी जब गुस्सा होते है तो मैं तो कमरे से बाहर ही नही निकलती जिस से बाय्फ्रेंड के चक्कर मे कभी पड़ी ही नही बस अपनी पढ़ाई मे खोई रहती और सहेलियो के साथ हँसी मज़ाक हो जाता.
ज़्यादा कुछ बताने लायक नही था मेरी लाइफ के बारे मे फिगर भी नॉर्मल ही थी, फिर नंबर आता है मेरे भाई का उसको पिताजी गधा कहते थे बस ज़्यादातर सोता ही रहता था. पिताजी की कोई कमी नही थी उसमे अपनी ही दुनिया मे खोया रहता था ऐसी है मेरी फॅमिली.
पिताजी ड्यूटी पर रहते थे, माँ मंदिर मे, मैं अपनी पढ़ाई या सहेलियो के साथ मस्ती करती तो मेरा भाई बस सोता रहता बड़ी अजीब थी हमारी फॅमिली. हमारे घर मे 2 बेडरूम थे एक बेडरूम माँ और पिताजी का तो दूसरे बेडरूम को मैं अपने भाई के साथ शेर करती हूँ प्राइवसी तो कभी मिली ही नही.
पर जब से पिताजी ने रिटायरमेंट लिया तब से वो घर मे ही रहते है उनकी एज भी कुछ ज़्यादा नही थी उनको कोई भी जॉब मिल सकती थी पर वो अब अपनी लाइफ अपने मर्ज़ी से जीना चाहते थे. पिताजी के घर मे रहने पर माँ तो दोपहर मे बस सोती ही रहती, अब हर दिन उनके मज़े थे लेकिन वो भी थक जाती.
जिस से उन्होने अपने कुछ काम कम कर दिए, मंदिर मे जाना कीर्तन मे जाना, सब बंद हो गया मुझे भी अब सलवार कमीज़ से काम चलाना पड़ रहा था. जीन्स और टीशर्ट तो बस अलमारी मे पड़े पड़े खराब हो रहे थे पता नही पिताजी घर पर क्यूँ है. लेकिन जैसे ही दोपहर के 12 बज जाते तो पिताजी घर से बाहर जाते और बराबर शाम के 5 बजे घर आ जाते जैसे कोई ड्यूटी हो.
पर मुझे क्या है मैं तो अपनी पढ़ाई कर रही थी. ये मेरा लास्ट एअर था, और उसके बाद मेरी शादी होगी ये पक्का था मेरा ग्रड्यूशन कंप्लीट हो गया. मेरी पढ़ाई पूरी होते ही पिताजी ने मेरी शादी करने की सोची मैं ने तो शरमाने की जगह हाँ कर दी मेरे अंदर आग जो लगी हुई थी उस आग को बुझाना भी तो था.
माँ ने तो मेरे लिए लड़के भी देखने सुरू कर दिए. पिताजी ने ये काम माँ को ही दिया और पिताजी बिज़ी थे दोपहर के कामो मे माँ ने कई रिश्ते निकाल लिए. उसमे टीचर वाला लड़का सबको पसंद आया टीचर होने से वो भी गॉव कॉलेज मे क्या कहने ना कोई डिमॅंड थी और ना ज़्यादा उमीदे थी.
लड़का अच्छा था, सिंपल था, अकेला था, , ना कोई शौक था. मेरी माँ को तो लड़का पसंद आ गया गॉव जॉब जो थी और अकेला लड़का होने से मैं राज करूँगी घर पर तो माँ ने लड़के वाले से बात की. पिताजी को भी रिश्ता पसंद आया पिताजी ने एक झटके मे हाँ कर दी.
सब तय होने लगा मैं तो खुश थी शादी से अब मेरी उंगली को आराम मिलेगा मेरी सील भी टूटेगी मेरी सुहागरात होगी. मेरी सहेली तो मुझे डरा रही थी सुहागरात के लिए पर मैं इसका ही इंतज़ार कर रही थी. एक अच्छा दिन देख कर मेरी शादी भी कर दी घर वालो ने मेरी शादी हो गयी ये सपने जैसा ही था.
शादी अच्छी हुई पिताजी की एकलौती बेटी जो थी पर मेरी शादी तो ऐसे लग रही थी जैसे कोई फैशन शो हो. सभी सोसायटी की औरत ऐसे तय्यार होकर आई थी जैसे आज मेरी नही उनकी सुहागरात हो. मेरे हज़्बेंड का नाम विकास है, वो एक गॉव कॉलेज मे टीचर है, सिंपल से रहते है, ना कोई शौक है, दिखने मे अच्छे है बिल्कुल पर्फेक्ट थे मेरे लिए.
विकास को एक बड़ी बहन है और दूसरी छोटी बहन है, इनका कोई रोल नही है तो इनके बारे मे फिर कभी बताउन्गि. विकास के पिता की डेत कुछ साल पहले हो चुकी थी. विकास की शादी उसके माँ ने करवाई. जब मैं ने अपनी सास को देखा तो लगा कि ये विकास की बड़ी बहन होगी इस उमर ने भी खुद को क्या मेनटेन करके रखा था.
इनको देख कर इनकी एज का पता ही नही चलता जो देखे बस देखता रह जाए. सर से लेकर पैरो तक खुसबसूरती की मूरत थी इनकी फिगर ऐसी थी कि मुझे भी मात दे और साड़ी ऐसे पहनती है कि पल्लू नीचे गिरा तो सबके लंड खड़े हो जाए उनकी कमर ही देख रहे थे पंडितजी, और शादी पर तो ध्यान ही नही था पंडित जी का मेरे पिताजी को समधन अच्छी मिल गई.
शादी के 6 महीने बाद मैं ने सबको खुश खबरी सुनाई मैं प्रेगेनॅट थी. विकास मेरी ननद और मेरी सास तो बहुत ज़्यादा खुश थे. मेरी सास ने तो सबको ये बात बताई. मेरे पड़ोसी मेरी सास को कहते थे कि वो किसी भी आंगल से दादी नही दिखती मेरे माँ बनने की बात सुनते ही माँ और पिताजी मुझसे मिलने आ गये.
मेरे शादी के बाद पहली बार पिताजी मेरे ससुराल मे आए थे वरना हमेशा माँ ही आती थी मिलने. पता नही पिताजी मना क्यूँ करते थे पर अब वो नाना बनने वाले थे तो उनको आना ही पड़ा मेरे ससुराल में. मेरी शादी के समय पिताजी शादी की तैयारी मे इतने खोए थे कि ठीक से किसी से बात भी नही हुई उनकी समधी तो थे नही ऐसे मे विकास के मामा से ही बात हुई.
विकास की तरफ से विकास के मामा और मामी ही सब देख रहे थे ऐसे मे पिताजी की मेरी सास से कभी बात ही नही हुई. पर आज पिताजी मुझसे मिलने आ गये. माँ तो मुझे देखते ही मेरे गले लग गयी मेरे पिताजी वो भी खुश थे. लेकिन जैसे ही मेरी सास उनके कमरे से बाहर आई तो पिताजी बस उनको ही देखते ही रह गये.
शादी मे कभी ठीक से देख भी नही पाए पर अब पिताजी तो जैसे मेरी सास को ही देखे जा रहे थे. मेरी सास तो मेरी माँ से बात कर रही थी पर मेरे पिताजी ने मेरे घर आने के बाद मुझसे बात भी नही की वो तो मेरी सास के सामने वाली चेयर पर जाकर बैठ गये ताकि मेरी सास को देख सकें.
मेरी सास तो मेरी माँ से बाते करने मे खोई हुई थी जिस से उनका ध्यान मेरे पिताजी पर नही गया पर थोड़ी देर बाद माँ फ्रेश होने के लिए चली गयी. मैं तो किचन मे चाइ बना रही थी. पर मेरा ध्यान पिताजी की तरफ ही था. मेरी माँ के बातरूम मे जाते ही मेरी सास का ध्यान मेरे पिताजी पर गया पर उनसे बात कैसे करे समझ नही आ रहा था.
पिताजी- नमस्ते.
समधन-जी, आपने कुछ कहा.
पिताजी- नमस्ते.
समधन-नमस्ते.
पिताजी- आप तो अपनी समधन मे खोई हुई थी.
समधन- हाँ वो इतने दिनो बाद मिली तो बहू के बारे मे बता रही थी.
पिताजी- क्यूँ क्या हुआ, मेरी बेटी ने कुछ गुस्ताख़ी की हो तो बताइए, अगर आपको परेशन किया हो तो उससे मैं बात करता हूँ.
समधन- जी नही ऐसी कोई बात नही, बहू तो मेरा पूरा ध्यान रखती है.
पिताजी- अगर कुछ बात हो तो आप मुझे बता सकती है, उसको तो आपकी सेवा करनी चाहिए.
समधन- जी ऐसी कोई बात नही है.
पिताजी- वैसे आप को देख कर लगता है मेरी बेटी ने घर को अच्छे से संभाला है.
समधन- हाँ अब तो बहू घर का काम करती है मुझे तो आराम मिलता है.
पिताजी- ये क्या बोल रही है आप, आराम हराम होता है, अगर आप आराम करेगी तो आपके सुंदर बदन पर चर्बी दिखने लगेगी.
समधन- क्या?
पिताजी- मेरा मतलब है कि आराम करते रहने से बीमारी लग जाती है.
समधन- ऐसा कुछ नही होगा, मैं रोज सुबह योगा करती हूँ.
पिताजी- ये तो अच्छी बात है, मैं भी सुबह कसरत करता हूँ.
समधन- हाँ बताया था बहू ने कि आप खुद को फिट रखते है.
पिताजी- फिट रहना पड़ता है वैसे आपने भी खुद को अच्छे से मेनटेन किया है.
समधन- जी शुक्रिया.
पिताजी- वैसे एक बात कहूँ तो बुरा नही लगेगा आपको.
समधन- कहिए.
पिताजी- आप इस एज मे भी जवान लड़की से ज़्यादा खूबसूरत लगती है.
इस बात से मेरी सास शॉक्ड हो गयी और शरमाने लगी. औरतें तो तारीफ की भूखी होती है.
पिताजी- आप तो शर्मा गयी.
समधन- आप भी ना, मैं अब दादी बनने वाली हूँ.
पिताजी- मैं तो आपको माँ बनाने का सोच रहा हूँ.
ये बात पिताजी ने धीरे से कही.
समधन- कुछ कहा आपने.
पिताजी- एक बार आप खुद को मिरर मे देखना तो पता चलेगा आपको.
समधन- आप भी ना, बस भी कीजिए, बच्चे सुन लेंगे तो क्या कहेंगे.
पिताजी- यही कहेंगे कि भगवान की बनाई हुई खूबसूरत मूरत की तारीफ कर रहा हूँ.
समधन- ऐसा कुछ नही है, और लगता है आपको आदत है औरतों की तारीफ करने की.
पिताजी- हमारी किस्मत इतनी अच्छी कहाँ है, मेरी बीवी की तारीफ करूँगा तो आपकी बेइज़्ज़ती हो जाएगी, सालो हो गये किसी की तारीफ किए.
समधन- तभी आज रुक नही रहे हो.
पिताजी- शुरू तो करने दो आप खुद कहेंगी रूको मत. (धीरे से कहा)
समधन- कुछ कहा आपने.
पिताजी- आपकी तारीफ तो दिल से निकली है.
समधन- बड़े आशिक़ मज़ाक के लगते हो आप.
पिताजी- आपको बुरा लगता होगा तो सॉरी बोल देता हूँ, पर क्या करूँ पहली बार किसी से ऐसे बात कर रहा हूँ, वरना आर्मी वालो का तो पता ही है लेफ्ट राइट करते रहना पड़ता है.
समधन- समझ सकती हूँ, उसी लिए कुछ कहा नहीं.
पिताजी- ऐसे तो हमारी अच्छी जमेगी.
समधन- क्या?
पिताजी- मेरी बीवी को इस तारा बात करना पसंद नही, पर अब आप मिल गयी है तो अपनी ये इच्छा पूरी कर लूँगा.
समधन- क्यूँ नही, मैं भी बोर हो जाती हूँ बैठ बैठ तो कुछ दिन आपका साथ मिल जाएगा.
पिताजी- कुछ दिन क्या पूरी ज़िंदगी आपके साथ बिता दूं.
समधन- क्या कहा.
मैंने आकर बीच मे उनको रोक लिया.
मनीषा- पिताजी नाश्ता.
समधन- लीजिए नाश्ता कर लीजिए.
पिताजी- आप नही लेंगी.
समधन- मैं ज़्यादा आयिली नही खाती.
पिताजी- देखो मनीषा कुछ सीखो अपनी सास से.
पिताजी अपनी सास की तारीफ करने का कोई मोका नही छोड़ रहे थे.
समधन- वो भी सीख जाएगी, अभी तो वो माँ बन रही है.
पिताजी- पर आप ने तो तीन बच्चो के बाद भी अपना कितना ख़याल रखा, वो भी आप अकेली थी फिर भी.
समधन- जी हालात सिखा देते है.
पिताजी- पर आपने अकेली ने बच्चों को पढ़ाया लिखाया ये क़ाबिले तारीफ है.
समधन- मुश्किले बहुत आई पर मैं डरती नही मुश्किलो से.
पिताजी- ये हुई ना बात, ये आर्मी वाली बात कही.
समधन- जी शुक्रिया.
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ऐसे इधर उधर की बाते हुई पहले दिन ही पिताजी ने मेरी सास की इतनी तारीफ की जैसे आज ही उनको जीत लेना चाहते हो. इस तरह पिताजी और मेरी सास की कहानी शुरू हो गयी. पिताजी तो कोई चान्स नही छोड़ते थे मेरी सास से बात करने का जब भी मेरी सास अकेली मिलती तो उनकी मीठी मीठी बाते शुरू हो जाती पर मेरी माँ के सामने बिल्कुल चुप रहते.
रात के खाने पर भी पिताजी ने तारीफ के फूल बाँध दिए जो सब्जी मेरी सास ने बनाई उसकी तारीफ सबसे ज़्यादा हो रही थी और पिताजी ने बस उसी सब्जी पे हाथ सॉफ किया. मेरे हॅज़्बेंड भी अपने सास ससुर को देख कर खुश लगे पर उनके कॉलेज मे एग्ज़ॅम चलने से वो थोड़े बिज़ी थे. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
पिताजी और माँ तो गेस्ट रूम मे सो गये फिर नेक्स्ट दिन. मैं तो दिन भर काम करने से सोती रही पर मेरी सास जिनको सुबह सुबह योगा करने की आदत थी तो वो जल्दी उठ कर योगा करने को तैयार हुई. वही मेरे पिताजी को भी सुबह कसरत करना था पर यहाँ मेरे ससुराल में एक दिन से ऐसी क्या नुकसान होगा पर उनको तो मेरी सास को योगा करते हुए देखना था.
तो पिताजी भी उठ कर कसरत करने को छत पर चले गये. हम सब तो सोते रहे लेकिन पिताजी इसका पूरा फ़ायदा उठा रहे थे मेरी सास तो पहले से योगा कर रही थी जब से विकास कमाई करने लगा था तो मेरी सास खुद का ध्यान रखती अच्छे से रहती आराम करती लाइफ को अपने तरह से जी रही थी.
मेरी सास तो सलवार कमीज़ पहन कर योगा कर रही थी जैसे पिताजी छत पर आए तो उनकी आँखो मे चमक आ गयी. मेरी सास को इस तरह नये आसान मे देख कर जैसे पटाखे फूटने लगे मेरी सास सुर्य नमस्कार कर रही थी जहाँ वो झुक कर अपने पैरो को छु रही थी.
इस पोज़ीशन मे मेरी सास के कमीज़ उपर हो गयी तो उनकी गांड का शेप अच्छे से पिताजी को दिख रहा था. पिताजी को इतने अच्छे नज़ारे की उम्मीद नही थी पर आज की सुबह तो बन गयी. पिताजी वैसे ही मेरी सास को देखने लगे जब मेरी सास को लगा कि कोई उनके पीछे है तो वो पलट गयी. पिताजी को देख कर नॉर्मल हो गयी.
समधन- आप.
पिताजी- आप अपना योगा करते रहिए.
समधन- पर आप यहाँ, इतनी सुबह.
पिताजी- आपको बताया था ना, कि मैं कसरत करता हूँ सुबह उठ कर.
समधन- सॉरी भूल गयी थी.
पिताजी- आज भी मेरी नींद जल्दी खुल गयी तो सोचा ताज़ी हवा का आनद लिया जाए इस लिए छत पर आया तो आप मिल गयी.
समधन- हाँ वो मैं भी ताज़ी हवा मे योगा कर रही थी, आप भी अपनी कसरत कीजिए.
पिताजी- यहाँ कहाँ, यहाँ कुछ समान नही है.
समधन- तो फिर.
पिताजी- आप अपना योगा लीजिए, मैं बस टहल लूँगा.
समधन- मैं आपके सामने.
पिताजी- कोई बात नही, हम तो एक फॅमिली है ना.
समधन- पर.
पिताजी- चलो आपकी मुश्किल आसान करता हूँ, आप सूर्य नमस्कार कर रही थी ना.
समधन- हां.
पिताजी- तो मैं भी वही करता हूँ, आपको कंपनी मिल जाएगी, और कोई परेशानी नही होगी.
समधन- ठीक है.
और मेरी सास ने पिताजी के लिए जगह बना दी पिताजी ने अपनी शर्ट निकाल दिया और बनियान मे आ गये. इस से तो मेरी सास थोड़ी शरमाने लगी पर उननो देखा कि पिताजी नॉर्मल थे तो वो भी योगा करने लगे. दोनो साथ साथ योगा करने लगे पर पिताजी को तो बस मेरी सास को देखना था.
मेरी सास के बदन को अपने आँखो मे बंद करना था लेकिन वो योगा करते हुए भी मेरी सास को ही देख रहे थे. फिर अचानक मेरी सास की कमीज़ उनके गान्ड मे फस गयी ये देख कर तो पिताजी का लंड खड़ा हो गया. उन्होने अपनी योगा करना बंद कर दिया और जब मेरी सास नयी पोज़ीशन मे आई जहाँ उनका एक पैर मुड़ा हुआ था और मेरी सास उपर देख रही थी.
उस वक्त पिताजी से कंट्रोल नही हुआ और उन्होने मेरे सास के बदन को टच कर दिया इस से तो मेरी सास शॉक्ड हो गयी और उतने वाली थी कि पिताजी ने उनको रोक दिया. पिताजी समझ गये थे कि उनसे ग़लती हो गयी पर पिताजी तो उस खेल मे मास्टर थे उन्होने बात संभाल ली.
पिताजी- आप ग़लत कर रही है.
समधन- क्या?
पिताजी- आपकी कमर को और मुड़ना चाहिए.
समधन- मैं जवान नही हूँ जो इतनी झुक जाउ.
पिताजी- पर आप कर सकती है, इस से आपके पीट का दर्द ख़तम हो जाएगा.
समधन- मुझसे इस से ज़्यादा नही होता.
पिताजी- आप वैसे ही रहिए मैं आपकी मदद करता ही.
मेरी सास कुछ कर पाती उस से पहले पिताजी ने उनकी कमर अपने हाथो से पकड़ ली. मेरी सास की पतली कमर पकड़ते ही पिताजी तो जैसे खो ही गये. उनके हाथ तो फिसला कर नीचे जाना चाहता था पर पिताजी ने कंट्रोल किया और मेरे सास को पीछे की तरफ झुकने मे मदद की. मेरी सास को इस से आराम मिला और जब आसान पूरा हुआ तो मेरी सास को हल्का हल्का लगने लगा.
समधन- अब अच्छा लग रहा है.
पिताजी- देखा, अब आपको पीठ मे दर्द नही होगा.
समधन- बड़ा अच्छा लग रहा है.
पिताजी- आप ना सब आसन अच्छे से नही कर रही है जिस से आपको अच्छे रिज़ल्ट जल्दी नही मिल रहे है.
समधन- क्या मतलब.
पिताजी- देखा कैसे मैं ने आपको एक मिनिट मे अच्छा रिज़ल्ट दिलाया.
समधन- पर मुझसे जितना होता है उतना करती हूँ.
पिताजी- मैं आपको बताता हूँ, अगर आप चाहे तो.
समधन- आपको बहुत कुछ पता है, मुझे बताइए ताकि आगे जाकर मैं अकेली योगा कर सकूँ.
पिताजी- ठीक है, आपके बाकी के आसान तो ठीक है पर जब आप झुकती है तब अच्छे से नही करती.
समधन- ठीक ही तो करती हूँ, मेरे हाथ पैरो को टच हो जाते है.
पिताजी- उतना ही नही होता इस आसान मे, देखिए मैं दिखाता हूँ.
और पिताजी ने आगे झुक कर हाथो से पैरो को पकड़ लिया फिर पिताजी ने अपने सर को घुटनों से चिपका दिया. ये देख कर मेरी सास देखती रह गयी. इस एज मे भी मेरे पिताजी सारे आसन कितने अच्छे से करते है.
पिताजी- देखा, इस आसन मे सर को घुटनों से लगाना पड़ता है.
समधन- मुझसे नही होगा.
पिताजी- धीरे धीरे करना पड़ता है.
समधन- ट्राइ करती हूँ.
पिताजी- आप कीजिए मैं मदद करूँगा.
और मेरी सास ने आसन ले लिया हाथो से पैरो को पकड़ कर झुक गयी पर सर घुटनों तक जा नही रहा था. पिताजी ने मेरी सास के सर को थोड़ा दबाया और वैसे ही मेरे सास के सर को दबा कर छोड़ देते, इस से मेरी सास को अच्छा लगने लगा फिर मेरे पिताजी मेरी सास के पीछे आ गये.
तभी मैं मेरी सास के लिए दूध लेकर उपर आ गयी थी पर सीडियो पर ही रुक कर देखने लगी. पिताजी मेरी सास के पीछे आ गये और मेरी सास की गांड को देखने लगे मैं पिताजी को मेरी सास की गांड को घूरते हुए देखने लगी पिताजी का तो हाथ अपने लंड पर था. मेरी सास अभी भी उसी आसन मे थी तभी मेरे पिताजी ने कुछ सोचा.
पिताजी- अब खड़ी होकर फिर से ट्राइ करना इस बार सर को पहले घुटने को लगाने का ट्राइ करना.
समधन- जी.
और मेरी सास जब झुकने को तैयार हुई तो मेरे पिताजी एक स्टेप आगे आ गये जैसे मेरी सास झुक गयी तो पीछे से पिताजी को चिपक गयी. पिताजी का खड़ा लंड रगड़ते हुए मेरी सास की गांड मे फस गया. इस से तो मेरी सास शॉक्ड हो गयी. उनको इस बात की उम्मीद नही थी. वो उठने वाली थी कि पिताजी ने पीछे से उनके सर को दबाए रखा.
पिताजी- वैसे ही रहिए.
समधन- एक मिनिट, मुझे प्राब्लम हो रही है.
पिताजी- देखिए बस हो गया.
और पिताजी भी मेरी सास के उपर झुक गये ऐसा करते ही उनका लंड तो अच्छे से मेरी सास की गांड पर रगड़ने लगा. मेरी सास को पिताजी का लंड फील हो रहा था. उनको कुछ समझ नही आ रहा था. पिताजी मेरी सास के उपर झुके हुए थे पर पिताजी मेरी सास की गांड को फील कर रहे थे.
अपने लंड की ताक़त दिखा रहे थे. पर इतनी जल्दबाज़ी अच्छी नही थी. तो पिताजी ने उनको छोड़ दिया. पर मेरी सास सोक्ड थी. उनको समझ मे नही आया कि ये जान बुझ कर हुआ कि अंजाने में जब वो खड़ी हुई तो पिताजी से आँखे नही मिला रही थी. पर पिताजी नॉर्मल होकर बात कर रहे थे.
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पिताजी- देखा, आप तो जल्दी सीख गयी.
समधन- ह्म्म्म्मम.
पिताजी- क्यूँ क्या हुआ.
समधन- कुछ नहीं.
पिताजी- अब बताइए कैसा लग रहा है.
समधन- अच्छााअ.
पिताजी- क्यूँ क्या हुआ, आपकी आवज़ बदल गयी है.
समधन- लगता है आज के लिए इतना योगा काफ़ी है.
पिताजी- ऐसे करते रहना योगा, देखना बीमारी दूर रहेंगी.
मेरी सास ने जवाब नही दिया और सीडियो की तरफ आ रही थी कि मैं उपर आ गयी.
मनीषा- माजी आपका दूध.
समधन- रहने दे, मेरे लिए नहाने का पानी डाल.
पिताजी- बेटा मुझे दो समधन का दूध, मैं पी लेता हूँ.
समधन का दूध इस बात पर ज़्यादा ही ज़ोर दिया पर मेरी सास वहाँ से चली गयी. और पिताजी अपनी समधन का दूध पी कर अपनी क्रीम निकालने के लिए नीचे चले गये. मैं तो बस देखती रह गयी. मेरे पिताजी ऐसे होंगे सोचा नही था पिताजी तो मेरी सास से मस्ती करना चाहते थे.
खुले आसमान के नीचे मेरी सास को अपने लंड की ताक़त दिखा दी और चालाकी तो देखो कि पिताजी बिल्कुल नॉर्मल थे और मेरे सामने समधन का दूध पी लिया. मैं तो पिताजी की बात समझ गयी पर पता नही मेरी सास समझी कि नहीं मेरी सास तो कन्फ्यूज़ थी शायद. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
इतने सालो बाद किसी लंड का टच किसी भी औरत को घायल कर सकता है. और औरत मेरी सास जैसी हॉट हो तो उनका पानी निकल जाए. मेरी सास के साथ थोड़ी छेड़ छाड़ से पिताजी खुश थे. पिताजी काफ़ी देर तक छत पर रहे फिर नाश्ता करते हुए मेरी सास पिताजी से नज़रें नही मिला पाई.
मेरी सास ट्राइ कर रही थी कि वो पिताजी से दूर रहे. पिताजी भी स्टेप बाइ स्टेप चल रहे थे. मेरी माँ तो इस बात से अंजान थी. फिर दिन तो कैसे निकल गया पता ही नही चला, पिताजी दिनभर कमरे मे ही थे. वो मेरी सास के सामने नही आए पिताजी बहुत चालाक थे वो जानबूझ कर मेरी सास से दूर रह रहे थे ताकि मेरी सास को लगे कि सब कुछ अचानक हो रहा है.
पिताजी बस खाने के समय ही मेरी सास से मिल पाए पर रात का खाना कुछ नया अड्वेंचर लेकर आया. रात मे खाने के लिए मेरे हज़्बेंड के साथ सब थे. मेरी माँ और सास एक दूसरे के पास बैठे थे तो पिताजी दोनो के सामने थे पिताजी ने जानबूझ कर अपनी चेयर दोनो के सामने अड्जस्ट की खाना शुरू हो गया.
विकास तो अपने ही धुन मे थे तो मेरी ननद तो अपनी ही दुनिया मे रहती है. इस बीच मेरा स्पून नीचे गिर गया, मुझे डाइनिंग टेबल की आदत नही थी जिस से ऐसी ग़लती हो जाती है. पर जब मैं नीचे झुकी तो मेरी आँखे फटी की फटी रह गई पिताजी का पैर आगे चला गया था.
पिताजी अपने पैर से सामने वाले के पैर को रगड़ रहे थे. सामने वाले की साड़ी के अंदर पैर था पिताजी का और धीरे धीरे सहला रहे थे तभी सोचु पिताजी की हाइट इतनी कम कैसे हो गयी, वो झुक कर बैठे थे ताकि खाते हुए मज़ा ले सके मुझे लगा कि पिताजी माँ के पैर को सहला रहे थे पर जब ठीक से देखा तो वो मेरी सास के पैर थे और मेरी सास भी कुछ नही बोल रही थी.
वो चुप छाप खाना खा रही थी उनको क्या हो गया. उनको ये सब रोकना चाहिए था शायद वो डर की वजह से चुप रही. मेरी सास के एक्सप्रेशन बदल रहे थे क्या उनको मज़ा आ रहा था. पिताजी माँ का पैर समझ कर ये सब कर रहे थे पिताजी बड़े चालाक निकले, माँ का नाम लेकर मेरी सास को सिड्यूस कर रहे है.
मुझे पता था कि इस्पे पिताजी क्या कहेंगे कि सॉरी समधन जी मुझे लगा कि ये मनीषा की माँ है. और मेरी सास कहेंगी कि ग़लती आपकी नही है पर आगे से ध्यान रखा कीजिए यही होगा पर डाइनिंग टेबल के नीचे पिताजी पूरा मज़ा ले रहे थे. उनके पैर तो घुटने तक गये थे मेरी सास के पिताजी बस अपने ही मज़े मे खोए थे.
मेरी सास बड़ी मुश्किल से खाना खा रही थी उनकी चूत से पानी निकल रहा होगा पर पिताजी घुटने से उपर नही गये और जा भी नही सकते थे पर मेरी माँ का खाना जल्दी हो गया. ये पिताजी को पसंद नही आया अभी तो मज़ा आ रहा था. लेकिन माँ के खड़े होते ही पिताजी समझ गये कि वो फस सकते है. इसलिए पिताजी ने अपने पैर पीछे ले लिए पिताजी के पैर अलग होते ही मेरी सास रिलॅक्स हो गयी वरना उनके अंदर की प्यासी औरत जाग जाती.
पर पिताजी समझ गये कि उनको मेरी सास से माफी माँगनी पड़ेगी सबका खाना हो गया खाना होते ही विकास सबके लिए पान लाने चले गये. फिर सास थोड़ा रिलॅक्स होने के लिए छत पर चली गयी ये मोका देख कर पिताजी भी छत पर गये. पिताजी को उपर जाते हुए देख कर मैं भी देखने गयी की क्या होगा. मेरी सास तो पिताजी को देखते ही हड़बड़ा गयी.
पिताजी- सुनिए.
समधन- आप यहाँ.
पिताजी- मुझे माफ़ कर दीजिए.
समधन- माफी, किस लिए.
पिताजी- वो खाना खाते हुए, मुझे लगा मेरी बीवी है, पर ग़लती से आप के साथ, मैं बहुत शर्मिंदा हूँ.
समधन- (ये तो माफी माँग रहे है, शायद ग़लती से हुआ होगा) कोई बात नहीं.
पिताजी- मैं बहुत शर्मिंदा हूँ, प्लीज़ इसके लिए मेरी बेटी को तंग मत करना.
समधन- ये आप क्या बोल रहे है, शायद वो ग़लती से हो गया होगा.
पिताजी- मुझे लगा कि मेरी बीवी है, जिस से मैं.
समधन- लार आपको ध्यान रखना चाहिए, अपने घर मे ठीक है पर दूसरो के यहाँ ये ठीक नही होता.
पिताजी- जी, ये पहली और आख़िरी ग़लती होगी, मुझे ऐसा नही करना चाहिए था.
समधन- आपको ऐसा नही करना चाहिए वो भी दूसरो के घर में.
पिताजी- ग़लती हो गयी, पर क्या करूँ कुछ दिनो से.
समधन- कुछ दिनो से क्या.
पिताजी- वो एक हफ्ते से मेरी बीवी ने मना किया था, और अब जाके उसने हाँ कहा तो मैं खुद को रोक नहीं पाया.
समधन- मना किया था.
पिताजी- वो होता हैना कि हर महीने औरते एक हफ्ते के लिए मना करती है.
समधन- समझ गयी, पर थोड़ा ध्यान रखा कीजिए, और आपको शर्मिंदा होने की ज़रूरत नही है (इसमे इनकी ग़लती नही है.)
पिताजी- सुक्रिया, और पिताजी वहाँ से नीचे आ गये.
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बड़े भोले बन गये थे मेरे पिताजी और इस भोलेपन पर मेरी सास नरम पड़ गयी पिताजी ने मज़ा भी ले लिया और अच्छे भी बने रहे ये तो बस शुरुआत थी. पहला दिन तो बड़ा अच्छा गया पिताजी के लिए पर उनको यहाँ से जल्दी जाना था. ऐसे मे पिताजी कुछ ज़्यादा नही कर पाएँगे.
लेकिन नेक्स्ट दिन विकास की छुट्टी थी और माँ पिताजी पहली बार घर आए तो उनको ड्रेस लेकर देने का सोचा विकास ने पिताजी भी अपने दामाद को गिफ्ट देना चाहते थे. सबकी रज़ामंदी से हम दोपहर को शॉपिंग करने चले गये मेरी ननद तो कुछ ज़्यादा ही खुश थी.
उनको शॉपिंग करने जो मिलेगा विकास कुछ काम से पहले मार्केट चले गये उन्होने कहा कि वो हमे वही मिलेंगे हम सब बस से मार्केट चले गये. और आज मार्केट दिन था तो भीड़ ज़्यादा थी. पर कोई बात नहीं मार्केट आते ही हमे विकास मिल गये और हम शॉपिंग करने लगे.
पहले विकास को ड्रेस खरीद कर दिया पिताजी ने फिर उसी शॉप से पिताजी के लिए विकास ने गिफ्ट लिया जेंट्स की शॉपिंग होते ही बच गयी हम लेडीस हमारी शॉपिंग तो एक साथ होगी, हम सब बड़े शॉप मे गये मेरी ननद तो अपने भाई को अपने साथ मॉडर्न कपड़ो के शॉप मे ले जाना चाहती थी और हमें साड़ी की शॉप मे जाना था.
तो पिताजी ने कहा कि विकास तुम मेरी ननद को ड्रेस दिलाओ मैं इनके साथ साड़ी की शॉप मे जाता हूँ विकास को आइडिया अच्छा लगा. हम डिवाइड हो गये. फिर सारी की शॉप मे मैं माँ को सारी लेकर देने लगी. पिताजी और मेरी सास थोड़ी दूर ही थे.
पिताजी- आप नही लेंगी साड़ी.
समधन- मैं, मैं ऐसी साड़ी नही पहनती.
पिताजी- पर क्यूँ.
समधन- मैं विधवा हूँ.
पिताजी- ये कोई बात नही हुई, हल्के कलर की साड़ी लेनी चाहिए.
समधन- जी नही मैं ऐसी ठीक हूँ.
पिताजी- तो सफेद साड़ी मे भी डिज़ाइन होती है, आपको ट्राइ करना चाहिए.
समधन- इनको तो लेने दीजिए.
पिताजी- मुझे पता है आप नही लेंगी, चलिए मेरे साथ.
और मेरी सास के कुछ कहने से पहले पिताजी उनका हाथ पकड़ कर शॉप की दूसरी तरफ गये मेरी सास तो शॉक्ड ही थी.
समधन- ये आप क्या कर रहे है.
पिताजी- देखिए बहनजी, आप समधन है और आपको मेरी तरफ से एक गिफ्ट लेना ही होगा.
समधन- (बहनजी) ठीक है.
फिर पिताजी शॉप वाले को वाइट साड़ी दिखाने को बोलने लगे.
पिताजी- भैया वाइट साड़ी मे कुछ दिखाना.
और शॉप वाले ने अच्छी अच्छी साड़ी निकाल ली जो सिंपल के साथ अच्छी भी थी पिताजी अपनी समधन को साड़ी दिखाने लगे. समधन ने एक दो साड़ी सेलेक्ट की.
शॉपवाला- आपकी बीवी पे ये साड़ी अच्छी दिखेगी.
शॉपवाला तो पिताजी और मेरी सास को पति पत्नी समझने लगे. मेरी सास उसकी ग़लतफहमी दूर करने वाली थी कि पिताजी ने उनको रोक लिया.
पिताजी- ये आप क्या कर रही है.
समधन- वो हमे.
पिताजी- जाने दीजिए उसके कहने से हम पति पत्नी थोड़े बन जाएँगे.
समधन- पर.
पिताजी- आपको साड़ी पसंद है ना.
समधन- हाँ.
पिताजी- तो चलिए.
और पिताजी ने मेरी सास को साड़ी खरीद कर दी पिताजी मन ही मन मे खुश थे कि शॉप वाले ने उनको पति पत्नी समझा. मेरी सास को अच्छा नही लगा ये पर पिताजी खुश थे कि समधन को उन्हे साड़ी दी. फिर हम ने शॉपिंग पूरी कर ली पर समान बहुत हो गया और अंधेरा भी हो गया ऐसे मे घर जाने का प्राब्लम हमारे सामने था. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
विकास के पास बाइक थी तो सबने कहा कि मुझे और विकास को बाइक से जाना चाहिए पर मैं पिताजी और मेरी सास को अकेला नही छोड़ना चाहती थी इस लिए मेरे दोनो ननद को विकास के साथ भेजा साथ ही उनके पास आधे से ज़्यादा बॅग दिए ताकि हम आराम से घर आ सके विकास अपनी बहनों के साथ घर चले गये और हम बस से घर जाने वाले थे.
हमने शॉपिंग कर ली और विकास को उनकी बहनों के साथ बाइक पर घर भेज दिया मुझे देखना था कि पिताजी अब क्या करेंगे मेरी सास के साथ हम तो एक बात भूल ही गये कि अंधेरा हो गया था और आज मार्केट दिन था ये बात हमारे दिमाग़ मे तब आई जब बस स्टॉप पे सारी बसें फुल भरके आने लगी. हर बस देखते ही उसके अंदर जाने का मन नही कर रहा था खचाखच भरी हुई थी बस.
समधन- लगता है हमने ग़लती की, आज कोई बस खाली नही मिलेंगी.
मनीषा- आज मार्केट दिन और फेस्टिवल होने से भीड़ ज़्यादा है.
पिताजी- अब क्या करे.
माँ- कोई टॅक्सी ले.
मनीषा- यहाँ से हमारे एरिया तक टॅक्सी को दूसरा पर्मिट लेना पड़ता है जिस से कोई टॅक्सी उधर नही जाती.
समधन- हमे बस से ही जाना होगा.
पिताजी- सब साथ रहना, नेक्स्ट बस मे चढ़ना होगा वरना अंधेरा बढ़ता जाएगा.
मनीषा- सबको पता हैना कहाँ उतरना है, क्यूँ कि शायद हमे दूर दूर खड़ा होना पड़ेगा बस मे.
सब ने हाँ मे गर्दन घुमा दी. और नेक्स्ट बस आते ही हम बस मे चढ़ गये बस मे जाना मुश्कूल था फिर भी हम अंदर चले गये. अंदर भी भीड़ ज़्यादा थी पर हम अंदर आ गये. मैं ने देखा कि माँ मेरे आगे ही खड़ी थी पर मेरी सास और पिताजी मेरे पीछे थे पर बीच मे कुछ लोग आ गये थे.
ये तो मेरे पिताजी के लिए गोल्डन चान्स था. पर मैं ने देखा कि पिताजी थोड़े दूर ही थे मेरी सास से. मैं ने सबको आवज़ दी तो सब ने हाँ ने जवाब दिया. और हम घर के लिए निकल पड़े. मैं माँ के पास थी क्यूँ कि उनको इतनी भीड़ की आदत नही थी. और मेरी सास आराम से इस भीड़ को संभाल सकती है. बस चालू हो गयी.
पर बस के अंदर सिर्फ़ एक लाइट थी जो आगे की तरफ थी और बाकी की रोशनी बाहर से आ रही थी दूसरी गाडियो की. हर स्टॉप पे कुछ लोग उपर आ जाते ऐसा करते करते पिताजी मेरी सा के पास आकर खड़े हुए. पर मेरी सास को ये पता नही था वो तो बस अपना स्टॉप आने का इंतज़ार कर रही थी.
सब अच्छा ही चल रहा था. लेकिन जब बस एक टनल से जा रही थी तो आगे भीड़ होने से बस बीच मे रुक गयी. टनल के बीच मे बस रुकने से बस मे ज़्यादा रोशनी नही थी इस तरह बस रुकने से सारे पॅसेंजर गुस्सा हो गये
पर आगे ट्रफ़िक जाम हो गया था जिस से कुछ देर बस टनल के बीच मे फसि रहेगी. ये देख कर मैं ने माँ को कहा कि यहीं आंटी के पास बैठ जाओ तो आंटी ने जगह दी, और मैं मेरी सास को देखने आई.
जब मैं अपनी सास के पास आई तो मेरी सास की आँखे बंद थी और वो पोल को पकड़े हुए थी मैं ने ठीक से देखा तो इनकी साड़ी घुटने तक उपर थी पर मुझे कुछ दिख नही रहा था पर जब एक आदमी ने अपना मोबाइल फोन करने के लिए निकाला तो देखा कि मेरी सास के पीछे मेरे पिताजी खड़े थे. सारी पिक्चर मेरे सामने आ गयी.
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थोड़ी कहानी पिताजी की ज़ुबानी
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जब बस टनल के अंदर आई तो मैं समधन के पास आ गया और बस टनल मे रुकते ही मेरी तो लॉटरी लग गयी. और बस मे अंधेरा था और भीड़ भी ज़्यादा थी. मेरे सामने मेरी समधन थी और मेरी समधन को पता नही था कि उनके पीछे मैं हूँ. इतना अच्छा मोका मैं हाथ से कैसे जाने दे सकता हूँ.
बस मे भीड़ और अंधेरा उपर से हम टनल मे फसे हुए थे. मैं इस का फ़ायदा उठाने लगा मैं समधन से चिपकने लगा. समधन को पता था कि भीड़ मे ये सब चलता है इस का कुछ नही कर सकते चुप छाप अपने स्टॉप का इंतज़ार करो समधन चुप चप खड़ी थी तो मैं इसका फ़ायदा उठाने लगा.
मैं अपने लंड को मसल कर जल्दी खड़ा करने लगा ताकि समधन के साथ मज़ा ले सकूँ. मैं लंड मसल कर समधन के बदन को छु रहा था. पर समधन वैसी ही खड़ी रही मैं जहाँ खड़ा था वाहा एक कपल बैठा था, वो औरत अपने हज़्बेंड के साथ थी पर उसका हज़्बेंड सो रहा था और खिड़की की तरफ था.
वो औरत आगे की तरफ झुकी थी और वो भी सो रही थी जिस से मुझे अब कोई प्राब्लम नही होगी मेरा लंड तो खड़ा हो गया जिस से मैं समधन से चिपक गया. लंड सीधा जाकर मेरी समधन की गांड की दरार मे फस गया
मेरे लंड को अपनी गांड पर महसूस करते ही वो पीछे देखने वाली थी कि मैंने आवज़ बदल कर बात की-
पिताजी- ज़रा भी हिलने की कॉसिश की तो चाकू तुम्हारे पेट मे घुसा दूँगा.
मेरी इस धमकी से समधन डर गयी. उनको कुछ समझ नही आ रहा था.
पिताजी- चुप चाप खड़ी रहो वरना.
समधन तो बहुत डर गयी.
इस डर का फ़ायदा उठाते हुए मैं और समधन के पास गया और उनकी कमर पर अपना हाथ डाल दिया. मेरे ऐसा करते ही समधन थरथर काँपने लगी. पर उनमे हिम्मत ही नही हो रही थी कि देखे कि कौन है, मैने इसका फ़ायदा उठाते हुए, मैं ने समधन को कस के पीछे खीच लिया तो मेरा लंड और उनकी गांड के अंदर गया और समधन के मूह से आह निकल गयी.
समधन को कुछ समझ नही आ रहा था और मैं समधन की नाभि मे उंगली घुमा रहा था. तो समधन मस्ती मे आ गयी. मैं धीरे धीरे अपनी कमर हिला रहा था ताकि उनको नशा चढ़ने लगे साथ ही उनकी कमर को मसल्ने
लगा मुझे लगा नही था ये इतने आसानी से होगा.
काम बनता हुआ देख कर मैं ने अपना एक हाथ ले जाकर उनकी चूत पर रख दिया और साड़ी के उपर से उनकी चूत मसल्ने लगा. मेरे हाथो का जादू समधन पर चलने लगा. समधन इतने दिन से चुदाई से दूर थी तो उनकी चूत को मसल्ते ही उनकी आँखे बंद हो गयी. समधन तो मस्ती मे आ गयी.
उनके मस्ती मे आते ही मैं आगे बढ़ने लगा. उनकी चूत से पानी निकालने लगा इधर मेरा लंड गांड मे घुसता जा रहा था. पर इतना फ़ायदा उठा रहा था तो और एक स्टेप आगे बढ़ जाता हूँ. और मैने चूत मसल्ते हुए उनकी साड़ी घुटने तक उपर की और उनकी कमर मे फसा दी ताकि नीचे ना हो.
ये तो समधन को पता ही नही चला साड़ी आधी उपर होते ही मैं ने उनके साड़ी के अंदर हाथ डाल कर उनकी पैंटी नीचे की इसकी उनको उम्मीद नही थी पर वो तो मज़ा ले रही थी. उनको इतना मज़ा आ रहा था और डर की वजह से चुप ही रही पैंटी नीचे होते ही मैं ने अपने लंड को बाहर निकाल लिया.
मैं चुदाई नही करने वाला था. मुझे आराम से समधन की चुदाई करनी थी. और मेरा लंड लेते ही वो दर्द से चिल्लाएगी जो अच्छा नही था मेरे लिए इस लिए मैं बस उनका और मेरा पानी रगड़ कर निकालने वाला था पैंटी नीचे होते ही मैं ने अपना नंगा लंड उनकी गांड मे रगड़ना शुरू किया.
साड़ी पीछे से पूरी उपर थी जिस से मैं समधन की नंगी गांड को दबा रहा था क्या सॉफ्ट गांड थी. जब समधन मुझे मिलेंगी तो इस गांड को फाड़ ही डालूँगा. नंगे लंड का टच मिलते ही समधन मस्ती मे झूलने लगी मेरा लंड उनकी गांड और चूत दोनो से रगड़ रहा था साथ ही मैं उनकी चूत को हाथो से मसल भी रहा था. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
बड़ा मज़ा आ रहा था. अब इतना मज़ा आ रहा था जब सच मे आराम ने चुदाई करूँगा तो कितना मज़ा आएगा. मैं लंड को अच्छे से उनकी चूत और गांड से रगड़ने लगा. धीरे धीरे कमर आगे पीछे भी कर रहा था. समधन के बदन को मसल्ने मे मज़ा आ रहा था. उनकी चूत पर बाल थे फिर भी कोई बात नही जल्दी काटने को बोलूँगा.
पिताजी- अपने बाल काट लिया करो.
समधन ने हाँ मे गर्दन घुमाई और लंड का मज़ा लेने लगी. मैं भी उनकी चूत और गांड को मसल्ने का मज़ा ले रहा था. सब चुप चाप अंधेरे मे हो रहा था. इतना मज़ा मिल रहा था कि क्या बताऊ. बस लग रहा था कि चूत मे लंड डाल दूं पर मैं ने कंट्रोल बनाए रखा और हम दोनो एक साथ झड गये.
समधन ने तो बहुत पानी निकाला तो मैं ने उनकी गांड की दरार मे अपना वीर्य निकाला समधन दोनो तरह के पानी को एंजाय करने लगी. पानी निकलते ही वो ठंडी पड़ गयी उनका बदन ढीला पड़ गया. मेरा तो काम बन गया समधन का मज़ा ले लिया. ये मेरे लिए सपने जैसा था. पर मेरे लंड ने भी सम्धन की चूत को किस कर ही लिया.
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पिताजी ने मेरी सास के साथ वो भी बस मे इतने लोगो के सामने मेरी सास ने भी नही रोका. मेरी सास की हालत देख कर तो उनकी मस्ती का पता चल रहा था उनके पैरो से पानी नीचे आ रहा था पिताजी तो इस से खुश थे पर उन्होने होश से काम लिया और जल्दी अपना लंड पॅंट मे डालकर ठीक से खड़े हुए.
साथ ही धीरे से मेरी सास की साड़ी जो कमर मे घुसा दी थी उसको निकाल कर साड़ी ठीक की और जल्दी से कुछ पीछे हो गये. मेरी सास और पिताजी के बीच मे कुछ लोग आ गये. मेरी सास तो इसी नशे मे खोई थी पर अचानक बस शुरू हुई तो सबको झटका लगा. मेरी सास होश मे आई.
बस टनल से निकलने लगी. मेरी सास थोड़ी डरी हुई थी. उन्होने इधर उधर देखा तो उनपे कोई शक नही हुआ जिस से मेरी सास रिलॅक्स हो गयी कि किसी ने देखा नहीं. पर जल्दी ही मेरी सास ने अपनी पैंटी जो घुटनों मे फसि थी उसको उपर की मेरी सास ने खुद को ठीक किया.
फिर धीरे से पीछे देखा तो उनके पीछे जो आदमी खड़ा तो उसने स्माइल की मेरी सास को देख कर. मेरी सास को लगा कि इसी ने किया है मेरी सास को उसपर बहुत गुस्सा आ रहा था. बस शुरू होते ही झटके लगने लगे. वो आदमी भी कमीना निकला वो मेरी सास से चिपक रहा था.
शायद उसने मेरे पिताजी को देखा होगा मस्ती करते हुए जिस से वो भी अब मज़ा ले रहा था. इस बार भी मेरी सास चुप थी बदनामी के डर से उस आदमी को तो मज़ा आ रहा था. और जल्दी हमारा स्टॉप आया तो हम नीचे उतर गये तो मेरी सास के पीछे वाला आदमी भी उतर गया पर उतरते समय उसका धक्का ज़ोर से लगा मेरी सास को. जिस से मेरी सास रोड पर गिरते गिरते बच गयी. पिताजी ने ये देखते ही उस आदमी का शर्ट पकड़ लिया. वो आदमी तो डर गया.
मनीषा- माजी आप ठीक है ना.
मेरी सास ने देखा कि पिताजी ने उस आदमी को पकड़ रखा था तो मेरी सास को उसको सबक भी सिखाना था. पिताजी को देखते ही मेरी सास के अंदर हिम्मत आ गयी.
पिताजी- आप ठीक हैना, इसको तो मैं छोड़ूँगा नहीं.
समधन- बहुत बदतमीज़ इंसान है ये, बस मे बार बार टकरा रहा था जानबूझ कर.
ये सुनते ही पिताजी गुस्सा हो गये और उस आदमी को मारने लगे. वो आदमी बिचारा मेरे पिताजी के हाथो से मार खाने लगा भीड़ जमा होते ही लोगो ने भी उसकी पिटाई की. मस्ती मेरे पिताजी ने की और मार कोई और खा रहा था पर इस तरह उस आदमी को मारने से पिताजी हीरो बन गये.
मेरी सास खुश हो गयी उस आदमी की पिटाई देख कर और पिताजी को शुक्रिया कहा. पिताजी ने मस्ती भी की और हीरो भी बन गये. पर वो आदमी भीड़ से भाग निकला पर उसकी अच्छी पिटाई हुई. मेरे पिताजी मेरी सास की नज़रो मे हीरो बन गये. मेरी सास को अब अच्छा लग रहा था.
फिर हम घर आ गये लेकिन उस दिन के बाद तो मेरी सास और पिताजी मे बातें बढ़ गयी. पिताजी ने उनकी इज़्ज़त जो बचाई थी इस बाद के बस दोनो बहुत फ्रॅंक हो गये. अब तो हसी मज़ाक चलता रहा इस इन्सिडेंट के बाद पिताजी को जाना था पर मेरी सास ने कुछ दिन रोक लिया.
फिर तो पिताजी ने कोई छेड़छाड़ नही की क्यूँ कि अब तो सब अच्छे से एंजाय कर लिया था जिस से अभी कुछ करना ठीक नही समझा. पिताजी हीरो वाली इमेज से मेरी सास को इम्प्रेस करने को काफ़ी थी. मैं बस देखने के सिवा कुछ नही कर सकती थी. फिर कुछ दिन बाद पिताजी और माँ अपने घर चले गये.
तब जाके मैं ने चैन की साँस की लेकिन ये तो शुरुआत थी. पिताजी ने खून चख लिया था अब पता नही क्या होगा. लेकिन कुछ महीनो बाद मैं माँ बन गयी. एक बेटे को जनम दिया सब खुश थे. लेकिन मेरे पिताजी डबल खुश थे क्यूँ कि मेरी सास से मुलाकात होगी.
मेरी डेलिवरी मेरे घर पर हुई. मेरी माँ और पिताजी ने मेरा बहुत ध्यान रखा. और अब सबको खुशख़बरी दे रहे थे मेरी सास को तो पिताजी ने फोन करके बताया कि वो दादी बन गयी. सब मुझसे मिलने आ गये. सब खुश थे. मैं माँ बन गयी एक बेटे को जनम दिया. मुझे और मेरे बेटे को देखने सभी रिश्तेदार आए थे पिताजी तो बस मेरी सास का इंतज़ार कर रहे थे. जैसे मेरी सास आई तो पिताजी ने उनको बधाई दी.
पिताजी- बधाई हो समधनजी.
समधन- आपको भी बधाई हो.
पिताजी- लीजिए मूह मीठा कीजिए.
और पिताजी ने अपने हाथो से मेरी सास को मिठाई खिलाई. और मेरी सास ने भी पिताजी को मिठाई खिला दी.
पिताजी- चलिए आपको पोते से मिलवा देता हूँ.
समधन- मैं मिल लूँगी.
पिताजी- आप हमारे शहर आई है, आपकी खातिरदारी तो करने दीजिए.
समधन- जैसा आप ठीक समझे.
और पिताजी ने मेरे बेटे को अपनी गोद मे लिया और जानबूझ कर खुद मेरी सास की गोद मे दिया इस बहाने से उन्होने मेरी सास के बूब्स को टच भी कर लिया. पर मेरी सास तो पोते को देखने की खुशी मे थी. पिताजी कोई चान्स नही छोड़ते थे मोका देखते ही चोका मार देते.
ऐसा ही चलता रहा इस बीच मैं हॉस्पिटल से भी आ गयी. मेरी सास मेरे यहाँ ही रुकी थी. वो अपने पोते को गोद मे लेकर ही रहती. और पिताजी तभी मेरे बेटे को प्यार करते. ऐसा करने से मेरी सास के बूब्स को टच कर लेते. मैं बस देखती रह जाती. पिताजी तो मेरी सास के आस पास ही रहते.
पिताजी- कितना प्यारा है?
समधन- हाँ, इसका नाम भी इसके जैसा प्यारा रखेंगे.
पिताजी- आप ही अच्छा नाम सोचिए, आपकी तरह प्यारा नाम.
समधन- राज कैसा रहेगा.
पिताजी- अच्छा है, आपने सोचा तो मैं मना कैसे कर सकता हूँ.
समधन- अले अले अले.
पिताजी- लगता है इसको भूक लगी है देखिए आपके दूध को मूह लगा रहा है.
समधन- आप भी ना, ऐसे थोड़े कहते है.
पिताजी- उसको दूध ही तो कहते है, बेटा उस मे दूध नही है.
समधन- वो बच्चा है उसको क्या पता.
पिताजी- वैसे एक बात कहूँ, आपको देख कर लगता है इनमे बहुत दूध होता होगा.
पिताजी की बात से मेरी सास शॉक्ड हो गयी.
समधन- ये आप क्या बोल रहे हो.
पिताजी- मैं तो बस जानना चाहता था ताकि बेटी को दूध ना निकले तो क्या करना चाहिए.
समधन- वो हम औरतों का काम है आप दूर रहे.
पिताजी- तो मर्दो का काम क्या सिर्फ़ उसमे दूध भरना है प्यार करके.
समधन- आप भी ना, जाइए बच्चे के दूध पीने का समय हो गया है.
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ऐसी छेड़छाड़ तो चलती रहती मेरे पिताजी और सास के बीच में पर कुछ दिन बाद मेरी सास वापस चली गयी तो मैं रिलॅक्स हो गयी. माँ तो मेरा ही ख़याल रखती ऐसे मे पिताजी बाहर घूम आते. मुझे पिताजी का असली चेहरा दिखाई दे रहा था. इस लिए एक बार मैं ने पिताजी की अलमारी चेक की तो उसमे मुझे बहुत से कॉंडम दिखे. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
इतने सारे कॉंडम और रोज कॉंडम कम होते थे पर माँ तो मेरे पास ही रहती. मतलब पिताजी दोपहर मे घूम कर नही चुदाई करके आते है. मुझे तो अपनी सास को बचा कर रखना होगा. लेकिन जल्दी ही मेरे बेटे का नाम करण का प्रोग्राम शुरू हो गया. विकास तो जल्दी आ गये. उनको कुछ काम भी था हमारे शहर मे और मुझसे प्यार करने भी मिलेगा.
फिर मेरी सास भी आ गयी. नाम करण का अच्छा प्रोग्राम रखा गया प्रोग्राम दोपहर मे रखा ताकि मेहमान सुबह आकर शाम तक वापस जा सके. हमारा घर 2 बीएचके था जिस मे ज़्यादा लोग रह नही पाएँगे. बस मेरे घर वाले और ससुराल वालो के ही रहने का इंतज़ाम किया था.
बस सब अच्छे से हो जाए पर मुझे अपने पिताजी और सास पर नज़र रखनी होगी. मेरे बेटे का नामकरण था. विकास पहले ही आ चुके थे. विकास की माँ बर्तडे के एक दिन पहले गाँव आ कर अच्छे से 2 3 दिन रह कर जाने का प्लान बना कर आ गयी. विकास अपनी माँ को लेने के लिए बस स्टॉप पर चले गये विकास अपनी माँ को लेकर घर आ गया. मैं अपनी सास को देख कर उनके पैर छु कर अपने संसकार की झलक दिखाई.
माजी- नमस्ते समधन जी, आने मे कोई तकलीफ़ तो नही हुई.
समधनजी- पोते से मिलने की खुशी के सामने दूसरी तरफ ध्यान नही गया. बस थोड़ा प्राब्लम हुआ था पर उतना तो होता ही है.
माजी- मनीषा समधनजी के लिए नाश्ता टी बना लो.
समधन- इसकी का ज़रूरत है. पहले तो मैं पोते से मिलना चाहती हूँ.
और मैं अपने बेटे को लेकर आ गयी.
समधन- मेरा प्यारा बच्चा, अपनी दादी को याद किया ना, और अपनी नानी को परेशान किया कि नही.
माजी- बड़ा होगा तो हमे परेशान करना शुरू करेगा.
माजी- उसका तो हक है, वो तंग नही करेगा तो कौन करेगा.
समधन- वो तो है. बहू तो हमारे यहाँ अच्छे से घुल मिल गयी थी कि उसकी बहुत याद आती है.
माजी- मनीषा ने आपका दिल जीत लिया है ये सुनकर अच्छा लगा.
समधन- एक बात कहूँ, बच्चों के बिना मन नही लगता.अब पोते के साथ हर दिन भर रहूंगी.
माजी- वो तो है, आपका पोता तो बड़ा होकर आपकी तरह बन जाएगा.
समधन- मुझे भी ऐसा ही लगता है.
माजी- लीजिए, नाश्ता भी आ गया.
समधन- बेटी रहती है तो काम करने मे मदद मिलती है.
माजी- हा, अभी तो मैं ही पूरा काम करती हूँ अगर मनीषा ठीक होती तो मुझे काम ना करने दे.
समधन- वो तो है वैसे आपका बेटा नही दिख रहा.
माजी- वो तो अपने दोस्तो के पास गया है.
माजी- वैसे एक बात कहूँ आपकी बेटियाँ बड़ी हो गयी है, उनके शादी के लिए कुछ सोचा है.
समधन- विकास देख रहा है.
माजी- अब तो आपको दादी बना हुआ देख कर लगता है मैं भी जल्दी दादी बन जाउ.
समधन- क्यूँ नही, वैसे अब मैं 2 3 दिन रुक कर जाउन्गी.
माजी- इतनी क्या जल्दी है.आप कुछ दिन तो रुकेंगी ना यहाँ पर.
समधन- हाँ, इतने दिन बाद पोते से मिलने आई हूँ, कुछ दिन रुक कर जाउन्गी.
माजी- आप फ्रेश होकर आराम कीजिए.
मनीषा- सासू माँ कहाँ रुकेंगी.
माजी- तुम्हारे साथ…
समधन- मनीषा के साथ तो पोता होगा और विकास रहेगा, मैं आपके साथ सो लूँगी. इसी बहाने से आप के साथ बातें हो जाएगी.
माजी- पर.
समधन- पर वर कुछ नही, लड़के के तरफ से हूँ, समधन हूँ, इतना तो हक रखती हूँ.
माजी- हाँ हाँ, क्यूँ नही, मनीषा मेरे कमरे मे समान रख दो.
मनीषा- पिताजी, वो कहाँ सोएंगे.
माजी- उस कमरे मे तीन लोग रह सकते है.
मैं समान रखने चली गयी.
समधन- वैसे समधी जी कहीं दिख नही रहे.
पिताजी- समधन ने बुलाया और समधी हाज़िर है.
समधन- नमस्ते.
माजी- आप बाते कीजिए, मैं बॅग अंदर रखती हूँ.
पिताजी ने सब्जी का बॅग माँ को दिया. माँ बॅग लेकर रसोई घर मे चली.
पिताजी- कहिए आने मे कोई तकलीफ़ तो नही हुई.
समधन- जी, सफ़र लंबा था पर ठीक हुआ.
पिताजी- आप बता देती तो अपने दोस्त की कार भेज देता.
समधन- इसकी क्या ज़रूरत है.
पिताजी- आप समधन हो, शादी मे खातिरदारी अच्छे से नही कर पाया. अगर समधी जी होते तो, अब तो आप ही की सेवा करनी होगी.
समधन- आप भी ना, जितना मिलता है उसी मे मैं खुश हूँ.
पिताजी- ये लीजिए आपके लिए जलेबी लाया हूँ, गरम है, खा कर देखिए.
समधन- जलेबी, काफ़ी दिन हो गये खाए हुए, और एक जलेबी उठा ली.
पिताजी- एक से क्या होगा.
और पिताजी ने इधर उधर देखा और किसी को पास मे ना देख कर समधन को अपने हाथ से जलेबी खिलाने लगे.
समधन- नही नही, मैं खा लूँगी.
पिताजी- हमारे हाथ से तो एक खानी पड़ेगी.
समधन ने जलेबी का एक बाइट ले लिया. और पिताजी ने बाकी की जलेबी खा ली. समधन ने पिताजी को अपनी जलेबी खाते हुए देख लिया पर कुछ कहा नही.
पिताजी- और कहिए कैसा लगा हमारा शहर.
समधन- अभी देखा कहाँ है.
पिताजी- आप अगर रुक रही होगी तो मैं दिखा दूँगा. काफ़ी बड़ा है.
समधन- क्या?
पिताजी- शहर, शहर काफ़ी बड़ा है.
समधन- कुछ दिन रुकने वाली हूँ.
पिताजी- फिर तो आपको दिखना होगा.
समधन- दिखा दीजिएगा. सुना है यहाँ देखने लायक बहुत चीज़े है.
पिताजी- दूर दूर से लोग आते है देखने के लिए. आपको पसंद आएगा.
समधन- वो देखने के बाद बता दूँगी. अच्छा मैं फ्रेश होकर आती हूँ.
पिताजी- आप तो ऐसे ही अच्छी लग रही है.
समधन- मैं सफ़र करके आई हूँ, अपने बेटे के ससुराल मे अच्छी तो दिखना होगा.
पिताजी- जैसे आपकी मर्ज़ी, आप फ्रेश हो जाइए मैं आपके लिए सेंट भेज देता हूँ.
समधन- नही, मैं नही लगाती सेंट.
पिताजी- लगा कर देखो, पूरे सोसायटी मे आपकी महक फैल जाएगी.
समधन- आप भी ना, ठीक है भिजवा दीजिएगा.
मेरी सास बाथरूम मे चली गयी. और पिताजी ने समधन के लिए सेंट निकाल कर मेरे के हाथो भेज दिया. मेरा छोटा भाई घर को सजाने मे लग गया. और मेरी छोटी ननद उसकी मदद करने लगी. समधन जब फ्रेश होकर आई और नये कपड़े पहन कर उस पे सेंट लगाया तो, सेंट की स्मेल से समधन खुश हो गयी. समधन की खुश्बू पूरे घर मे फैल गयी. सब ने समधन के सेंट की तारीफ की. समधन अपने समधी के दिए हुए सेंट से अपनी तारीफ सुनकर खुश हो गयी.
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पिताजी- क्या बात है समधनजी, काफ़ी खुश लग रही है.
समधन- हाँ, आपके दिए सेंट की वजह से खुश हूँ. कहाँ से लिया है सेंट.
पिताजी- आपको पसंद आया.
समधन- हाँ, मैं रख लूँ इसे, आप दूसरा ले लेना.
पिताजी- वो आपके लिए स्पेशल बनाया था. वो आपके लिए है.
समधन- मैं जान सकती हूँ, इतनी मेहरबानी क्यूँ.
पिताजी- मेरी समधन की पूरे सोसायटी मे तारीफ हो.
समधन- मुझे तारीफ सुन ना पसंद नही है.
पिताजी- पर मैं तो सोसायटी को दिखाना चाहता हूँ कि मेरी समधन कुछ कम नही है.
समधन- ऐसे तो मेरा जीना मुश्किल होगा, सब मुझसे मिलने आएँगे.
पिताजी- मेरे होते हुए कोई आपको परेशान नही कर सकता.
मनीषा– सासू माँ खाना लगा दूं.
समधन- हाँ लगा दे.
मैं ने बीच मे आकर पिताजी का मूड ऑफ किया. पिताजी को मुझपर बहुत गुस्सा आ रहा होगा और हम सबने मिलकर खाना खा लिया. समधन के आने से पिताजी खुश थे. दोस्तों अभी के लिए इतना ही, कहानी के अगले भाग में मैं बताउंगी कैसे मेरी सास को पापा ने अपने लौड़े पर झुलाया. तब तक के लिए बाय बाय…
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