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अब्बा ने बेटी से जिस्मानी सम्बन्ध बनाये

दिसम्बर 18, 2025 by hamari Leave a Comment

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मैं सुबह सवेरे उठी तो न तो अम्माँ घर पर थीं और न ही बाबा (फादर) घर पर थे। दोनों छोटे भाई अभी तक सोए हुए थे। मैं हैरान थी कि अम्माँ और बाबा कहाँ चले गए। मैं पड़ोसियों के पास गई तो मालूम हुआ कि वो लोग भी कहीं गए हुए हैं। अब तो और भी हैरानी थी कि सब लोग कहाँ चले गए हैं। काफी देर तक मैं परेशान रही और बिल आखिर अम्माँ घर आ गईं। Paki Baap Beti Sex

अम्माँ को देखते ही मैंने पूछा कि कहाँ गई थीं। अम्माँ बहुत ही परेशान थीं। मैंने उन्हें एक ग्लास पानी दिया और दोबारा पूछा कि वो कहाँ गई थीं। उन्होंने कुछ देर तक खामोशी इख्तियार की और फिर कहा कि शमा घर से भाग गई है। मेरी ऊपर की साँस ऊपर ही रह गई और मैं इस खबर से दहशतज़दा हो गई।

शमा मेरी क्लास फेलो थी और हम दोनों प्राइमरी से लेकर मैट्रिक तक एक साथ ही थे। हम दोनों ने मैट्रिक ही में थे और कल ही तो वो मेरे साथ क्लास में थी और बिलकुल नॉर्मल थी। मैंने अम्माँ से पूछा कि शमा किस के साथ भागी है तो अम्माँ ने कहा कि अपने पड़ोसी के साथ।

मैं शमा के पड़ोसियों को जानती थी और उस फैमिली में एक शादीशुदा जोड़ा था और एक और आदमी जो खातून का भाई था, साथ रहता था जो उम्र में २४ साल का था जबकि शमा मेरी तरह सिर्फ १५ साल की थी। हम सब सो गवार थे और अम्माँ ने बताया कि शमा की अम्माँ, अब्बू, बहनें और भाइयों की हालत बहुत ही खराब है।

हम सब सोग वार थे और समझ में नहीं आ रहा था कि इन हालत में क्या किया जाए और ये कि शमा कहाँ गई। पूरे मुहल्ले में अजीब सा खौफ था और हर शख्स अपनी बहन-बेटियों को शक की नज़र से देखने लगा था। वक्त गुज़रता गया और मैं कॉलेज में दाखिल हो गई और लोग भी शमा को भूल चुके थे।

एक दिन मैं कॉलेज से जो कि हैदराबाद में था वापस आ रही थी कि अचानक मेरी नज़र शमा पर पड़ी जो बस स्टॉप पर खड़ी थी। मैंने उसे देखा तो लपक कर उसके पास पहुँच गई। उसने मुझे देखा तो बहुत खुशी हुई। मैं उससे मिलकर बहुत ही खुश और हैरान थी। मैं उससे बातें करने लगी और पूछा कि वो क्यों घर से चली गई।

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उसने जो बात मुझे बताई मैं तो काँप गई और मेरे पैरों से ज़मीन निकल गई। शमा ने कहा कि उसके घर से चले जाने की वजह ये थी कि उसका अब्बू उससे ज़्यादती करना चाहते थे। मेरा पूरा जिस्म पसीने से भीग गया कि कोई बाप अपनी बेटी के साथ ज़्यादती कर सकता है।

बाप तो बेटियों की इज़्ज़त के रखवाले होते हैं और फिर शमा के अब्बू तो मौलवी साहब थे और निहायत ही शरीफ आदमी थे, फिर ये कैसे मुमकिन था। मुझे शमा पर बहुत ही अफसोस था। मैं घर आ गई और सारे रास्ते में इसी सोच में डूबी हुई थी कि कोई बाप कैसे अपनी बेटी के साथ ऐसा कर सकता है।

मैंने किसी से कुछ नहीं कहा, बस खामोश रही और किसी को बताती भी तो क्या। बाबा घर में ही थे और मैंने उनकी तरफ देखा तो मेरे दिल में अजीब सी नफरत हो गई हालांकि मेरे बाबा तो मुझ पर जान छिड़कते थे और बहुत ही शरीफ आदमी थे लेकिन शमा के अब्बू भी तो शरीफ थे।

मैं कई दिन तक इसी सोच में रही और जब-जब बाबा का सामना होता मेरे अंदर एक खौफ सा पैदा हो जाता। रफ्ता-रफ्ता ये बातें भी ज़हन से निकल गईं और मैं नॉर्मल हो गई। मैं सेकंड ईयर में आ गई और तमाम तर तवज्जुह पढ़ाई की तरफ थी। मेरी क्लास में बहुत सी सहेलियाँ थीं और उनमें चंद एक बहुत ही करीबी थीं जिनमें कनीज़ मेरे बहुत करीब थी और मैंने उसको शमा के बारे में बताया कि किस तरह उसके अब्बू ने अपनी बेटी की इज़्ज़त लूटनी चाही थी।

कनीज़ भी ये बातें सुनकर हैरान हो गई और अक्सर इसी वाकये के बारे में ज़िक्र करती थी कि क्या कोई अपनी बेटी और बहन के बारे में सोच भी सकता था। हम दोनों में गहरी दोस्ती थी और इतनी गहरी कि हम कपड़े भी एक जैसे ही पहनते थे। कनीज़ भी मेरी तरह ही अपने फादर को बाबा और मदर को अम्माँ कहती थी।

हमारे शूज़, पेन, पर्स और कॉलेज बैग भी एक जैसे रंग के ही थे। मैं स्कूल से वापस आई और नहा कर खाना वगैरह खा कर सोने के लिए बेडरूम में आ गई। मेरे घर में चाचा और उनकी फैमिली आई हुई थी और चाचा-चाची के अलावा उनकी १० साल की बेटी और १८ साल का बेटा सज्जाद भी था जो आम बात थी और वो लोग अक्सर आया करते थे।

शमा को उठी और अपने भाइयों को उनका होमवर्क कराने में मशरूफ हो गई। रात को डिनर के बाद अपने बेडरूम में आ गई और कुछ देर तक टीवी देखने के बाद मैं सो गई। दूसरे दिन छुट्टी थी इसलिए देर तक सोने का प्रोग्राम था। रात को किसी वक्त मेरी आँख खुली और हैरान थी कि मैं क्यों जग गई जबकि मैं बहुत ही गहरी नींद की आदि हूँ और मुझे बेदार करने के लिए अम्माँ या बाबा को बहुत कोशिश करनी होती थी।

नींद का सेहर ज़रा खत्म हुआ तो मैंने महसूस किया कि कोई मेरे बेड पर है। मैं समझ गई कि मेरा छोटा भाई जो सिर्फ ५ साल का था मेरे बेड पर होगा और कभी-कभी वो रात को मेरे बेड पर आ जाता था क्योंकि दोनों भाइयों का बेडरूम अलग था और बाबा का बेडरूम रात को बंद होता था।

मैंने महसूस किया कि भाई मेरी थाइज़ को सहला रहा है और वो भी मेरी शलवार नीचे कर के। मैं डर गई और हैरान भी कि ये सब क्यों कर रहा है और पहले तो कभी उसने ये कुछ नहीं किया। अब मैं संभल गई और आहिस्ता-आहिस्ता मुझे एहसास हुआ कि वो मेरा भाई तो नहीं था, कोई और था।

ये महसूस करके मेरे जिस्म में कंपकंपी सी दौड़ गई कि ये कौन है। मैंने डर के मारे चीखना शुरू कर दिया और उस शख्स ने मेरी चीख सुनी तो मेरा मुँह पर हाथ रख दिया। मैं खुद को छुड़ाने के लिए हाथ-पैर चलाने लगी लेकिन वो बहुत ही ताकतवर था। इसी दौरान उसने मेरी शलवार उतार दी लेकिन मैंने तहिया किया हुआ था कि मैं जान दे दूँगी लेकिन अपनी इज़्ज़त लुटने नहीं दूँगी।

मैं मुँह पर उस शख्स का हाथ रखने के बावजूद चीखने की कोशिश कर रही थी। मेरी शलवार उतर चुकी थी और मैं जान गई कि वो शख्स सज्जाद के अलावा कोई और नहीं हो सकता। सज्जाद के बारे में चाचा अक्सर बाबा से उसकी आवारा गर्दी के बारे में शिकायत करते थे।

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मुझे दुख हुआ कि जिसे मैं भाई समझती थी वो ही मेरी इज़्ज़त को पामाल कर रहा था। सज्जाद की ताकत के सामने मैं बेबस थी और मैंने सज्जाद को अपने से दूर हटाने की कोशिश की तो मालूम हुआ कि वो नंगा था और मैं समझ गई कि मेरी इज़्ज़त बचना मुश्किल है। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

मैंने एक और कोशिश की कि किसी तरह साइड लैंप को ऑन कर दूँ ताकि वो कम अज़ कम इसी खौफ से मुझे छोड़ दे या कम अज़ कम मुझे शोर मचाने का मौका मिल जाए। मैंने बड़ी मुश्किल से अपना हाथ टेबल लैंप तक पहुँचाया और लैंप जला दिया। कमरा रोशन हुआ तो मुझ पर मानो पहाड़ टूट पड़ा क्योंकि वो शख्स मेरे बाबा थे।

बाबा ने मुझे देखा तो कोई परेशान नहीं हुए बल्कि बिलकुल नॉर्मल थे। अब मैं चीख कर बुलाती तो भी किसको बुलाती जिसको आवाज़ें देना चाह रही थी अपनी इज़्ज़त के लिए, वो ही मेरी इज़्ज़त लूट रहा था। मैं दुख और शर्मो-हया के मारे डूब गई। मेरी शलवार खुली हुई थी और बाबा मेरी टांगों के दरमियान आकर बैठ गए।

उन्होंने मेरे हैरान और मेरी आँखों से बहने वाले आँसुओं की कोई परवाह नहीं की और मैं फिर भी अम्माँ को बुलाने के लिए चीख सकती थी लेकिन वहाँ तो चाचा, चाची और सज्जाद के अलावा सब ही सुन सकते थे। और वो सब मेरी चीख पर कमरे में आकर मुझे और बाबा को इस हालत में देखते तो क्या होता।

मैं ये सब कुछ सोच रही थी और मेरे सगे बाबा अपनी बेटी से सेक्स करने चाह रहे थे। बाबा ने मेरी चूत पर अपने हाथों से अपना थूक (लार) लगाया और इसी तरह अपने लंड को भी गीला किया। मैं खामोश लेटी हुई सब कुछ बस देख रही थी जैसे मैं एक लाश हूँ और दिमाग सोचने-समझने की सलाहियत से महरूम हो चुका था।

बाबा ने अपना लंड मेरी चूत पर रखा और उसे अंदर डालने लगे। उनका लंड मेरी चूत में दाखिल हो रहा था और मैं लाश होने के बावजूद दर्द नहीं बल्कि कयामत महसूस कर रही थी। बाबा का लंड ज़रा ही अंदर आया था कि मेरी चीख निकलनी शुरू हो गई।

बाबा जो कि मुकम्मल नंगे थे जबकि मेरी शलवार उतर चुकी थी और मेरी शर्ट अभी जिस्म पर ही थी। बाबा ने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और मुझे चूमने लगे। मैंने बाबा की आँखों में देखा, वहाँ कोई शर्मिंदगी नहीं थी। मैंने कहा कि बाबा मैं आपकी बेटी हूँ मुझे छोड़ दें वरना मैं खुदकुशी कर लूँगी।

बाबा ने सुना तो मेरी बात की परवाह नहीं की और कहा कि अजीब बात है तुम्हारा दिल भी चाहता है और अब खुदकुशी भी कर रही हो। इस से पहले कि मैं कोई जवाब देती वो अपने काम में मस्त हो गए। उन्होंने अपना लंड को और अंदर करना शुरू कर दिया और मेरे होंठों को ऐसे चूसने लगे कि मैं कुछ बात ही न कर सकूँ।

लंड से मेरी चूत में जो तकलीफ हो रही थी वो मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। बाबा का लंड मेरी चूत के टुकड़े-टुकड़े कर रहा था और मैं भी दर्द में सब भूल गई थी कि मेरे साथ क्या हो रहा है और कौन कर रहा है। लंड और अंदर आ रहा था और तकलीफ थी कि बढ़ती जा रही थी।

मैं नेदामत और नफरत में दर्द को झेल रही थी और सिवाय बर्दाश्त करने के कुछ भी नहीं कर पा रही थी। बाबा अपनी बेटी की चूत में लंड अंदर ही अंदर कर रहे थे। बाबा का लंड अंदर आकर रुक चुका था और मैं अपनी चूत के साथ-साथ रो रही थी। मेरे दिमाग में बाबा के लफ्ज़ गूँज रहे थे कि मेरा दिल चाह रहा था।

दर्द में थी और सिवाय तकलीफ के कुछ भी नहीं सोच रही थी कि क्या हो रहा है और बाबा ने क्यों कहा कि मेरा दिल चाह रहा था। बाबा का लंड अंदर-बाहर हो रहा था और मेरी चूत से गरम-गरम सी चीज़ खारिज हो रही थी। मैं इतना तो जानती थी कि ये गरम-गरम मेरी चूत का वो खून है जो मेरे अपने बाबा, मेरे सगे बाबा ने लूटा है और मैं अब कुँवारी नहीं रही।

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बाबा मेरी चूत से बहने वाले खून से बेखबर सिर्फ और सिर्फ बेटी से सेक्स करने और उसके होंठों को चूस रहे थे। बाबा का लंड अंदर-बाहर हो रहा था और हर बार मैं एक नई और शदीद तकलीफ से दोचार हो रही थी। बाबा के लंड की रफ्तार बहुत तेज़ हो चुकी थी और उनके होंठों में दबे मेरे मुँह से सहमी-सहमी दर्द की चीखें दम तोड़ रही थीं।

बाबा के लंड से मुझे सिर्फ नफरत अंगेज़ तकलीफ हो रही थी और मैं जिस शख्स से दुनिया में सबसे ज़्यादा नफरत महसूस कर रही थी वो मेरे बाबा थे। बाबा का लंड अब बिजली रफ्तारी से मेरी चूत के चीथड़े उड़ा रहा था और इज़्ज़त तो वो लूट ही चुके थे।

काफी देर तक बाबा का लंड मेरी चूत उधेड़ रहा था और मैं इस हालत में बाबा के हाथों मर जाने की ख्वाहिश कर रही थी। बाबा ने कुछ ज़बरदस्त झटके लगाए अपनी बेटी की चूत में और फिर उनके लंड से गरम-गरम पानी मेरी चूत में खारिज होना शुरू हो गया। उनका लंड उनकी बेटी की चूत में खारिज हो रहा था और उनके होंठ अभी तक मेरे होंठों को चूस रहे थे।

काफी देर तक मेरे साथ इसी तरह किस और सेक्स करने के बाद उनका लंड कुछ-कुछ सिमटने लगा और आहिस्ता-आहिस्ता बेटी की चूत को हमेशा के लिए यूज़्ड चूत का नाम देकर बाहर निकल रहा था। बाबा का लंड बाहर निकल चुका था और बाबा भी मुझसे अलग हो चुके थे। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

बाबा नंगे ही मेरे बेड पर बैठे हुए थे और मेरी शलवार बेड पर दूर पड़ी हुई थी। मेरी आँखें अब तक भी भीगी हुई थीं लेकिन आँसू खुश्क हो रहे थे। बाबा ने मुझे देखा और कहा कि अब तो खुश हो, मैंने तुम्हारी ख्वाहिश पूरी कर दी, अब तो किसी और के साथ सेक्स नहीं करोगी।

मैं सब कुछ सुन रही थी और समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या और क्यों कह रहे हैं। मैं बाबा की तरफ देख रही थी और मेरे नंगे बाबा बेड पर से उठ गए। मैं सोच रही थी कि उनके कपड़े तो बेड पर पड़े हैं और ये क्या करने वाले हैं या कहाँ जा रहे हैं।

वो सामने टेबल पर गए, मेरा कॉलेज बैग उठाया, और उसमें से कुछ तलाश कर रहे थे। मैं हैरान थी कि वो मेरे बैग में से क्या तलाश कर रहे हैं। सब कुछ तो हो चुका था और मैंने अपने नंगे होने या दोबारा शलवार पहनने के बारे में कुछ सोचा ही नहीं, बस नंगे बाबा को देख रही थी कि वो मेरे बैग में क्या ढूँढ रहे हैं।

उन्होंने एक हरी रंग की डायरी निकाली और मेरे बेड पर आ गए। मैं घबरा गई कि ये डायरी तो मेरी नहीं है और न ही मैं डायरी लिखती हूँ। बाबा मेरे करीब आकर मेरे साथ ही पहलू में लेट गए। उन्होंने डायरी में से कुछ तस्वीरें निकालीं और मुझे दिखाईं। तस्वीरें देखकर मेरा तो रंग फक हो गया और मुझे एहसास भी हो गया कि मैं गलती से कनीज़ का बैग ले आई थी।

बाबा एक-एक करके तस्वीरें देखा रहे थे। वो तस्वीरें कैप्शन के साथ थीं और हर तस्वीर में बाप मुख्तलिफ अंदाज़ में अपनी बेटी से सेक्स कर रहा था और बेटी अपने बाप के लंड को बहुत ही प्यार से चूस रही थी और बाप अपनी बेटी के साथ सेक्स करने के अलावा चूत को चाट भी रहा था।

ये तस्वीरें कोई १० थीं और हर तस्वीर में बाप-बेटी का रंगीन सेक्सी मंज़र था। मेरा तो हलक खुश्क हो गया और फिर बाबा ने मुझे डायरी का एक सफ्हा खोल कर मेरे सामने कर दिया। उस सफ्हे पर कनीज़ की राइटिंग थी और काफी तवील था, पूरे दो पेज पर कुछ लिखा हुआ था।

बाबा ने कहा कि पढ़ो और मैं तो बाबा की हर बात पर अमल कर रही थी। कनीज़ ने लिखा था: “बाबा मैं भी चाहती हूँ कि आपके साथ सेक्स करूँ और आपके लंड को चूसूँ और मेरी ख्वाहिश है बाबा कि आप मेरी चूत को भी चाटें। जब से मैंने आपको अम्माँ को चोदते हुए देखा और जब से सुना कि शमा का साथ उसके अब्बू सेक्स करना चाहते थे मैं तरप गई हूँ।”

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मैं पढ़ती जा रही थी और बाबा के हाथ मेरी चूत को फिर से सहला रहे थे और उनका हाथ मेरी शर्ट के नीचे से मेरे बूब्स तक पहुँच रहा था। मेरी हालत बहुत ही बुरी हो रही थी। मैं सब समझ गई कि बाबा ने ये डायरी और तस्वीरें देखीं और समझे कि मैंने लिखा है क्योंकि उस बैग को मेरा ही समझ रहे थे।

बाबा का हाथ मेरे बूब्स को सहला रहा था और मैं आगे पढ़ रही थी। कनीज़ ने लिखा था कि “बाबा कितनी बार मैं आपके बेड पर बैठी, कितनी बार मैंने सोते हुए अपनी शर्ट ऊपर उठाई लेकिन आप क्यों नहीं समझते कि मैं आपके बगैर मर जाऊँगी, मैं कब तक अपनी उंगलियों से चूत को ज़ख्मी करती रहूँगी”।

मैं पहले पढ़ती तो शायद डायरी बंद कर देती लेकिन जब मैं पढ़ रही थी मेरी शलवार उतरी हुई थी और नंगे बाबा मेरे बूब्स को सहला रहा था और उनका हाथ मेरी चूत को भी सहला रहा था। मैं सीधी लेटी हुई थी और बाबा मेरी तरफ करवट करके मुझे डायरी पढ़ते हुए देख रहे थे और नंगी तस्वीरें मेरे बराबर पहलू में पड़ी हुई थीं।

कनीज़ ने लिखा हुआ था: “मैं कोई एक लड़की तो नहीं हूँ जिसका अपने बाप से चुदवाने का दिल चाहता है। बाबा मैंने कितनी बार आपको बाथरूम में और अम्माँ को चोदते हुए देखा था और आपको क्या मालूम कि अम्माँ से जलने लगी हूँ। मेरे किसी और से चुदवाने का दिल नहीं चाहता लेकिन आप ही मेरे सब कुछ हैं। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

बाबा मैं जब भी उंगलियों को चूत में डालती हूँ तो लगता है कि आपका प्यारा गोरा-गोरा लंड मेरी चूत में है। अब मुझसे रहा नहीं जाता, जब भी अम्माँ नाना के घर जाएँगी मैं नंगी होकर आपके बेड पर आ जाऊँगी फिर देखती हूँ कि आप कैसे अपनी बेटी को चोदने से इंकार करते हैं।”

मैं पढ़ती जा रही थी और मेरे अंदर एक नई सेक्सी लड़की जानम हो रही थी। बाबा के हाथ अब भी चूत और बूब्स को मसल रहे थे। डायरी में कनीज़ ने अपने बाबा के साथ जो सेक्स की ख्वाहिश की थी और जितनी तफ्सील बयान की थी वो पढ़कर मैं जज़्बाती हो गई।

मैंने पूरी डायरी पढ़ी और समझ गई कि बाबा ने ये सब कुछ पढ़ा और समझे कि मैंने लिखा है। अब मैं बाबा को क्या बताऊँ, बाबा तो मुझे चोद चुके थे और अब तो मैं भी जज़्बाती हो गई। कनीज़ के इस जुमले ने कि वो दुनिया की अकेली लड़की तो नहीं है जो अपने बाबा से चुदवाना चाहती है, दुनिया में कितनी ही लड़कियाँ बाप से सेक्स करती हैं।

मैंने डायरी पढ़कर अपने पहलू में रख दी और अपने बाबा की तरफ करवट की। बाबा मेरी तरफ देख रहे थे। मैंने बाबा से नहीं कहा कि वो डायरी मेरी नहीं कनीज़ की है। मैंने उनकी तरफ करवट की तो वो मेरी तरफ ही देख रहे थे। मैंने एक लफ्ज़ नहीं कहा और बाबा से चिपक कर उनके होंठों को किस करने लगी।

मेरे बाबा एक हसीन नौजवान थे और उनकी उम्र उस वक्त ३८ साल की थी। स्पोर्ट्स में दिलचस्पी की वजह से वो बहुत ही मज़बूत और पुरकशिश थे और हम सब की आँखें नीली थीं क्योंकि हम मेमन कम्युनिटी की जिल्द गोरी होती है, इस वजह से हम सब ही गोरे थे।

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मैंने ज्योंही बाबा को गले लगाया बाबा ने पहली बार खुशी से मुझे भी गले लगा लिया और मुझे प्यार करने लगे। बाबा ने मुझे काफी प्यार किया और फिर मेरी शर्ट उतार दी। मैं नंगी और बाबा के बराबर ६ फीट की हूँ। मेरा जिस्म बहुत ही खूबसूरत और मेरे बूब्स भी काफी बड़े लेकिन तने हुए थे।

मेरे गोल्डन बाल और नीली आँखों ने कॉलेज में और फैमिली में लड़के क्या लड़कियों को भी दीवाना बनाया हुआ था और कनीज़ तो बार-बार कहती थी कि अगर वो लड़की होती तो मुझे ज़रूर चोदती। मैंने कभी न नंगी तस्वीरें देखी थीं और न ही कभी कोई गंदा नॉवेल पढ़ा था।

बाबा ने मुझे पूरा नंगा किया और मेरे पहलू में बैठकर मेरे बूब को चूसने लगे। बाबा ने पहली बार मेरे बूब्स को चूसा था और उनकी ज़बान ने निप्पल को छुआ ही था कि उनकी बेटी किसी और दुनिया में पहुँच चुकी थी। बाबा मेरे बूब्स को चूसते हुए मेरी चूत की तरफ चले गए और वहाँ चूसने लगे।

बाबा ने वहाँ ज़बान से चाटा तो उनकी गीली और गरम-गरम ज़बान ने पूरे बदन में कोहराम मचा दिया। बाबा मेरी टांगों के दरमियान बैठकर मेरी चूत को चाट रहे थे और उनकी ज़बान की नोक चूत के अंदर जाने की कोशिश कर रही थी। बाबा ने चूत के साथ-साथ मेरी दोनों रानें भी चाटीं और जहाँ-जहाँ बाबा की ज़बान जा रही थी एक नई लज़्ज़त और लुत्फ का सेहर मेरी रूह में समा रहा था।

बाबा ने मुझे एक करवट किया और मेरी बैक से मेरी गर्दन को चाट रहे थे। गर्दन पर चाटने से तो मेरे पूरे जिस्म में झुरझुरी सी पैदा हो गई और लगा कि यही सबसे सेक्सी हिस्सा है मेरे जिस्म का। बाबा मेरी कमर को चाट रहे थे और हाथों से मेरे बूब्स को दबोचा हुआ था। बाबा के हाथों में बूब्स की गिरफ्त बहुत ही मज़बूत थी और हाथों के सहलाने से बूब भी खुश हो रहा था।

बाबा मेरे हिप तक पहुँच चुके थे कि मेरी नज़र बेड पर बिखरी हुई एक तस्वीर पर पड़ी जिसमें बेटी अपने बाबा के लंड को चूस रही थी। एक तरफ मैं वो तस्वीर देख रही थी और दूसरी तरफ मेरे बाबा पीछे से मेरी चूत को चाट रहे थे। बाबा ने मुझे सीधा लिटाया और मेरे पहलू में आ गए।

मैंने वही तस्वीर बाबा के हाथों में दी और खुद उठकर बाबा की टांगों के दरमियान बैठ गई। बाबा तस्वीर देखकर समझ गए कि मैं क्या करने वाली हूँ। मैंने ज़िंदगी में पहली बार बाबा के लंड को देखा और वो बहुत ही बड़ा और मोटा था। बाबा के लंड पर नीली-नीली वेन्स की लहरें अजब बहार का नज़ारा दे रही थीं।

बाबा का लंड तस्वीर वाले लंड से बड़ा था और मेरे सामने लंड मस्ती में लहरा रहा था। मैंने कभी किसी का लंड नहीं देखा था लेकिन अपने बाबा का लंड न जाने क्यों मुझे इतना अच्छा और अपना-अपना लग रहा था कि वो तस्वीर न भी देखती तो मैं उनका लंड को चूम लेती। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

मैंने बाबा के लंड को अपने नाज़ुक हाथों से थामा तो उनका लंड मुस्कुरा दिया। अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था, मैं झुकी और बाबा के जानू लंड पर अपनी ज़बान रख दी। बाबा का लंड सुलग रहा था और कहीं मेरी चूत से निकले हुए खून के मोटे चिपके हुए थे। मैंने लंड के ऊपर सजी हुई नन्ही सी सुर्ख सी आँख पर ज़बान रख दी और उसपर ज़बान फेरने लगी।

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ज़बान ने छुआ ही था कि लंड को जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो वो और मचलने लगा। मैंने उसको एक हाथ से थामा हुआ था और लंड के मुँह के नीचे बने हुए रेड कलर के रिंग को ज़बान से चिढ़ाने लगी। लंड हाथों में से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था। जैसे शरारती बच्चा माँ की गोद से निकलने की कोशिश कर रहा हो।

मैंने लंड को नीचे से ऊपर की तरफ चाटना शुरू कर दिया। मैं देख ही नहीं रही थी कि हसीन बाबा क्या कर रहे हैं, बस लंड को पकड़ पागल हो गई थी। सारा लंड मैंने अपनी नाज़ुक ज़बान से गीला कर दिया था और फिर लंड को अपने मुँह में लेने लगी। बाबा का लंड मेरे मुँह में भर चुका था और पूरा ही लंड मेरे मुँह में समा चुका था।

बाबा का लंड अभी काफी बाहर था और मैं पूरे लंड को इस तरह चूस रही थी जैसे कुल्फी चूसते हैं। मैंने बाबा की तरफ देखा तो बाबा अपने लंड को अपनी सगी, जवान, हसीन तरीन, नंगी बेटी के मुँह में पकड़ मुस्कुरा रहे थे। मैं लंड चूसने में मगन थी और मस्त थी। ऐसा लग रहा था कि मैं लंड खा ही जाऊँगी और लंड को छोड़ने का दिल ही नहीं चाह रहा था क्योंकि ये मेरे अपने सगे बाबा का लंड था और मेरा था।

बाबा ने हाथ बढ़ाकर मेरे सिर पर रख दिया और अपने लंड को मेरे मुँह में अंदर-बाहर करने लगे। मेरी चूत जो कि कुछ देर पहले रो रही थी अब खुशी में रक्स कर रही थी और मचलते हुए कभी अपने होंठ बंद कर रही थी कभी खोल रही थी। मैंने काफी देर तक लंड को चूसा और मेरी रूह मेरे जिस्म में नाच रही थी।

लंड चूसते हुए मैंने लंड को अपनी दोनों बूब्स के दरमियान किया और दोनों हाथों से दोनों बूब्स को दबा कर लंड को उनके दरमियान जकड़ लिया। बूब्स के दरमियान दहकता हुआ लंड एक आग सी पैदा कर रहा था। मैंने लंड को छोड़ा और बाबा के ऊपर उल्टे होकर लेट गई।

बाबा ने मुझे लिटाते ही लिटाते सीने से लगा लिया और प्यार करने लगे। गीला-गीला जवान लंड मेरी टाँगों के बीच में चूत के करीब फँसा हुआ था। बाबा ने कहा कि अब तो खुदकुशी नहीं करोगी। मैंने बाबा के होंठों को अपने होंठों में लिया और कहा कि बाबा खुदकुशी करूँगी अगर कभी अपने अपनी बेटी को सेक्स करने से मना किया।

बाबा ये सुनकर खुश हो गए और ज़ोर-ज़ोर से प्यार करने लगे। बाबा कहने लगे कि मेरा पेन कहीं गुम हो गया था उसको तलाश करते हुए तुम्हारे बैग से डायरी नीचे गिर गई और फिर मैंने वो तस्वीरें देखीं और तुम्हारी डायरी पढ़ी। मैं खुश हूँ कि मैंने डायरी पढ़ ली वरना मेरी बेटी कब तक परेशान होती।

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मैं कुछ न बोली कि वो मेरी नहीं कनीज़ की डायरी थी, कम अज़ कम डायरी पर नाम तो पढ़ लिया होता। मैं चुप थी और खुश भी कि कनीज़ की डायरी ने मुझे नई ज़िंदगी दी है। बाबा जानू ने मुझे पहलू में लिटाया और खुद मेरी टाँगों के दरमियान बैठ गए। एक बार मेरे नंगे जिस्म को देखा और कहा कि नाज़िश तुमसे खूबसूरत जिस्म दुनिया में हो ही नहीं सकता।

मैंने मसनूई गुस्सा दिखाया और कहा कि नाज़िश नहीं मुझे बेटी कहें, मैं आपकी सगी बेटी ही रहना चाहती हूँ। बाबा की ज़बान से उस वक्त बेटी का लफ्ज़ बहुत अच्छा लगता है जब उनकी ज़बान पर मैं और मेरी चूत में उनका लंड होता है। उस लम्हे की किफायत लफ्ज़ों में बयान नहीं की जा सकती, सिर्फ अज़ीमुश्शान एहसास ही होता है।

बाबा ने कहा बेटी मैं कितना खुश नसीब हूँ कि मेरी बेटी इस कदर हसीन है और उसका सब कुछ मेरा है। बाबा मेरी टाँगों के दरमियान बैठे थे और उन्होंने मेरी चूत में लंड को डालना चाहा। मैं वो कयामत का दर्द भूल नहीं पाई थी सो मैंने बाबा से कहा कि क्रीम लगा लें, दोबारा दर्द नहीं बर्दाश्त करूँगी।

बाबा बेड से उठ गए और मेरी ड्रेसिंग टेबल से क्रीम उठा लाए। उन्होंने पहले अपने लंड पर खूब क्रीम लगाई और फिर मेरी चूत को क्रीम से अंदर तक भर दिया। ठंडी-ठंडी क्रीम गरम-गरम चूत पर बहुत ही लज़्ज़त अमेज़ लग रही थी। बाबा ने लंड को मेरी चूत पर रखने से पहले मेरी टाँगों के दरमियान फासले को खूब चौड़ा किया।

वो अपने घुटनों के बल बैठे हुए थे और उनका लंड मेरी चूत पर था। बाबा वही बाबा जिनसे मुझे कुछ देर पहले नफरत थी और अब वही बाबा मेरे महबूब बन गए थे। लंड चूत के अंदर जा रहा था और दर्द तो बहुत था लेकिन जब बेटी बाबा के लंड से प्यार करने लगे हो तो दर्द क्या हसियत रखता है। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

लंड अंदर दाखिल हो रहा था और मैं अपने बाबा के लंड को पहली बार महसूस कर रही थी एक मज़े और एक मोहब्बत से जबकि पहले वही लंड मेरे लिए खुदकुशी का पैगाम था और अब निशात से भरपूर ज़िंदगी का पैगाम था। बाबा अभी लंड को अंदर ही डाल रहे थे और मैं दर्द में इज़ाफा महसूस कर रही थी।

बाबा मेरे ऊपर आ गए और मेरे होंठों पर अपने होंठ रखते हुए कहा कि मेरी प्यारी बेटी को तकलीफ तो नहीं हो रही। मैंने बाबा जानू को अपने बाँहों में समेट लिया और कहा कि बाबा अब आप मेरे हैं, आपकी हर चीज़ मेरी है और जो प्यारा होता है वो दर्द नहीं मज़ा देता है।

बाबा मुझे प्यार करने लगे और अपना लंड भी आहिस्ता-आहिस्ता मेरे अंदर डालने लगे। लंड से दर्द तो था लेकिन पॉंड्स क्रीम ने आसानी कर दी थी। कुछ और अंदर आने से दर्द में इज़ाफा हो रहा था और मैंने अपनी टाँगों को बाबा की कमर के गिर्द कर लिया और लंड को अंदर आते हुए मैं चूत को खूब भींच रही थी और अब लंड मेरी चूत की मरज़ी से अंदर आ रहा था।

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मैं चूत को ढीली करती तो लंड अंदर आ जाता और जब दर्द महसूस होता था, कुछ देर के लिए चूत को टाइट कर लेती। बाबा और अम्माँ एक दूसरे को खूब प्यार कर रहे थे और बाबा के लंड का मज़ा तो शायद दुनिया का सबसे अज़ीम और हसीन मज़ा था जो कि मेरे वुजूद का एक हिस्सा बन चुका था।

अजीब मज़ा था कि लंड था तो चूत के अंदर लेकिन उसका मज़ा जिस्म ओ रूह के एक-एक हिस्से में नाच रहा था। बाबा ने मेरे होंठों को खूब सुर्ख कर दिया था चूम-चूम कर और मैंने भी बाबा के होंठ और गालों को बिलकुल थका दिया था। बाबा का लंड पूरी तरह अंदर आ चुका था और अब बाबा लंड को अंदर-बाहर करने लगे थे।

बाबा ने मेरी टाँगों को अपने कंधों पर रखा हुआ था और इस तरह उनका लंड और गहराई और ताकत से अंदर-बाहर आ रहा था। मैंने बाबा को दोनों हाथों से भींचा हुआ था और लंड को चूत के ज़रिए वुसूल कर रही थी। लंड की रफ्तार तेज़-तर हो रही थी और मैं भी बाबा का साथ देते हुए उछल-उछल कर लंड को लपक रही थी।

क्या छोटी सी चूत और किस तरह लंड को पकड़ पागल हो रही थी। बाबा ने अपने हाथों से मेरे दोनों बूब्स को थामा हुआ था और कभी होंठों को कभी बूब्स को प्यार कर रहे थे। मेरे घुटने मेरे बाज़ू के करीब थे और बाबा मेरे सीने से चिपटे हुए थे। वो महज़ अपनी हिप को ऊपर उठा कर लंड को अंदर-बाहर कर रहे थे।

अब रफ्तार तेज़ हो रही थी और मुझे भी एहसास हो रहा था कि मेरी ज़िंदगी में पहली बार मेरे पूरे बदन और पूरी रूह का जूस एक जगह जमा हो रहा था। बाबा जानू की साँसें कुछ तेज़ होने लगीं और लंड अपनी इंतेहाई रफ्तार को पहुँच चुका था। बाबा ने मुझे बहुत ही ज़ोर से थामा हुआ था और उनके प्यार करने में भी सख्ती आ चुकी थी।

कुछ शदीद झटकों ने मेरी चूत को इशारा कर दिया था कि मेरे अज़ीम बाबा के लंड से कुछ खारिज होने वाला है। बाबा के लंड ने चूत के अंदर एक झुरझुरी ली और चूत के अंदर ही उबल पड़ा। मेरी चूत ने ये देखा तो मेरे जिस्म का तमाम करंट एक जगह जमा हुआ और चूत के बिलकुल आखिरी हिस्से से एक सैलाब निकल पड़ा।

चूत के अंदर मेरी चूत का सैलाब मेरे जानी बाबा के लंड को गुस्ल चुदाई दे रही थी और मेरे एक-एक अंग से मज़े का जूस चूत की तरफ जमा होकर खारिज हो रहा था। ऐसा सुकून और ऐसी तस्कीन कि मैं बयान नहीं कर सकती। सुरूर और राहत ने मेरे पूरे जिस्म ओ रूह को अपनी गोद में ले लिया था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

गोया बाबा मेरी चूत में एक घंटा पहले खारिज हो चुके थे लेकिन उस वक्त तो कुछ एहसास नहीं हुआ था और अब तो मैं आसमानों की सैर कर रही थी। बाबा ने मुझे निढाल कर दिया था और खुद भी निढाल होकर मेरे ऊपर लेटे हुए थे। मैंने घड़ी देखी तो रात के तीन बज रहे थे और मेरी अम्माँ अपने कमरे में गहरी नींद में बेखबर सो रही थीं।

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उनको क्या मालूम कि उनकी प्यारी बेटी किस कदर खुशियाँ मना रही थी। बाबा मेरे साथ ही चिपटे हुए थे और मैं भी उनके साथ ही लिपटी हुई थी। बाबा जाने लगे तो मैंने रोक लिया कि कुछ देर रुक जाएँ। मेरा दिल चाह रहा था कि वो मैं नंगी अपने बाबा के गरम-गरम नंगे जिस्म के साथ सिमट कर सो जाऊँ। बाबा को मैं खुशी से चूम रही थी और थक चुकी थी। न जाने कब मैं अपने बाबा के नंगे जिस्म के साथ लिपटे हुए सो गई। सुबह आँख खुली तो मैंने खुद को नंगी ही पाया और बाबा न जाने किस वक्त उठकर चले गए थे।

मैं उठी और अपने कपड़े पहने और देखा कि कनीज़ की डायरी और तमाम तस्वीरें बैग में रख दी थीं। सिर्फ एक तस्वीर मेरे सिरहाने रखी थी और वो बाबा ने ही रखी थी। उस तस्वीर में बाप अपनी बेटी को बैक होल से चोद रहा था। मैं तस्वीर देखकर मुस्कुरा दी कि मेरे बाबा का पैगाम मुझे मिल गया कि वो अपनी बेटी को बैक होल से भी करना चाहते हैं। मैंने तस्वीर को चूमा और कहा कि बाबा आज ही रात को मैं भी आपसे पीछे से चुदवाऊँगी। और फिर रात को अपने बाबा की ये ख्वाहिश भी पूरी कर दी और बेहद मज़ा आया।

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