Nonveg Incest Story
मेरे पिता मिल में काम करने वाले एक सीधे साधे आदमी थे उनमें बस एक खराबी थी, वे बहुत शराब पीते थे अक्सर रात को बेहोशी की हालत में उन्हें उठा कर बिस्तर पर लिटाना पड़ता था पर माँ के प्रति उनका व्यवहार बहुत अच्छा था और माँ भी उन्हें बहुत चाहती थी और उनका आदर करती थी. Nonveg Incest Story
मैंने बहुत पहले माँ पर हमेशा छाई उदासी महसूस कर ली थी पर बचपन में इस उदासी का कारण मैं नहीं जान पाया था मैं माँ की हमेशा सहायता करता था सच बात तो यह है कि माँ मुझे बहुत अच्छी लगती थी और इसलिए मैं हमेशा उसके पास रहने की कोशिश करता था माँ को मेरा बहुत आसरा था और उसका मन बहलाने के लिए मैं उससे हमेशा तरह तरह की गप्पें लडाया करता था.
उसे भी यह अच्छा लगता था क्योंकि उसकी उदासी और बोरियत इससे काफ़ी कम हो जाती थी. मेरे पिता सुबह जल्दी घर से निकल जाते थे और देर रात लौटते फिर पीना शुरू करते और ढेर हो जाते उनकी शादी अब नाम मात्र को रह गई थी, ऐसा लगता था बस काम और शराब में ही उनकी जिंदगी गुजर रही थी.
और माँ की बाकी ज़रूरतों को वे नज़रअंदाज करने लगे थे दोनों अभी भी बातें करते, हँसते पर उनकी जिंदगी में अब प्यार के लिए जैसे कोई स्थान नहीं था. मैने पढने के साथ साथ पार्ट-टाइम काम करना शुरू कर दिया था इससे कुछ और आमदनी हो जाती थी पर यार दोस्तों में उठने बैठने का मुझे समय ही नहीं मिलता था.
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प्यार व्यार तो दूर रहा जब सब सो जाते थे तो मैं और माँ किचन में टेबल के पास बैठ कर गप्पें लडाते माँ को यह बहुत अच्छा लगता था उसे अब बस मेरा ही सहारा था और अक्सर वह मुझे प्यार से बाँहों में भर लेती और कहती कि मैं उसकी जिंदगी का चिराग हूँ.
बचपन से मैं काफ़ी समझदार था और दूसरों से पहले ही जवान भी हो गया था सोलह साल का होने पर. अब मैं धीरे धीरे माँ को दूसरी नज़रों से देखने लगा किशोरावस्था में प्रवेश के साथ ही मैं यह जान गया था कि माँ बहुत आकर्षक और मादक नारी थी उसके लंबे घने बाल उसकी कमर तक आते थे.
और तीन बच्चे होने के बावजूद उसका शरीर बड़ा कसा हुआ और जवान औरतों सा था अपनी बड़ी काली आँखों से जब वह मुझे देखती तो मेरा दिल धडकने लगता था. हम हर विषय पर बात करते यहाँ तक कि व्यक्तिगत बातें भी एक दूसरे को बताते मैं उसे अपनी प्रिय अभिनेत्रियों के बारे में बताता वह शादी के पहले के अपने जीवन के बारे में बात करती.
वह कभी मेरे पिता के खिलाफ नहीं बोलती क्योंकि शादी से उसे काफ़ी मधुर चीज़ें भी मिली थीं जैसे कि उसके बच्चे, माँ के प्रति बढ़ते आकर्षण के कारण मैं अब इसी प्रतीक्षा में रहता कि कैसे उसे खुश करूँ ताकि वह मुझे बाँहों में भरकर लाड दुलार करे और प्यार से चूमे जब वह ऐसा करती तो उसके उन्नत स्तनों का दबाव मेरी छाती पर महसूस करते हुए मुझे एक अजीब गुदगुदी होने लगती थी.
मैं उसने पहनी हुई साड़ी की और उसकी तारीफ़ करता जिससे वह कई बार शरमा कर लाल हो जाती काम से वापस आते समय मैं उसके लिए अक्सर चॉकलेट और फूलों की वेणी ले आता हर रविवार को मैं उसे सिनेमा और फिर होटल ले जाता सिनेमा देखते हुए अक्सर मैं बड़े मासूम अंदाज में उससे सट कर बैठ जाता.
और उसके हाथ अपने हाथों में ले लेता जब उसने कभी इसके बारे में कुछ नहीं कहा तो हिम्मत कर के मैं अक्सर अपना हाथ उसके कंधे पर रख कर उसे पास खींच लेता और वह भी मेरे कंधे पर अपना सिर रखकर पिक्चर देखती अब वह हमेशा रविवार की राह देखती खुद ही अपनी पसंद की पिक्चर भी चुन लेती.
पिक्चर के बाद अक्सर हम एक बगीचे में गप्पें मारते हुए बैठ जाते एक दूसरे से मज़ाक करते और खिलखिलाते एक दिन माँ बोली “अमित अब तू बड़ा हो गया है, जल्द ही शादी के लायक हो जाएगा तेरे लिए अब एक लड़की ढूँढना शुरू करती हूँ”. मैंने उसका हाथ पकडते हुए तुरंत जवाब दिया “अम्मा, मुझे शादी वादी नहीं करनी मैं तो बस तुम्हारे साथ ही रहना चाहता हूँ”.
मेरी बात सुनकर वह आश्चर्य चकित हो गई और अपना हाथ खींच कर सहसा चुप हो गई “क्या हुआ अम्मा? मैंने कुछ ग़लत कहा?” मैंने घबरा कर पूछा वह चुप रही और कुछ देर बाद रूखे स्वरों में बोली “चलो, घर चलते हैं, बहुत देर हो गई है”. मैंने मन ही मन अपने आप को ऐसा कहने के लिए कोसा पर अब जब बात निकल ही चुकी थी तो साहस करके आगे की बात भी मैंने कह डाली.
“अम्मा, तुम्हें ग़लत लगा तो क्षमा करो पर सच तो यही है कि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ तुम्हारी खुशी के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ” काफ़ी देर माँ चुप रही और फिर उदासी के स्वर में बोली “ग़लती मेरी है बेटे यहा सब पहले ही मुझे बंद कर देना था लगता है की अकेलेपना के अहसास से बचाने के लिए मैंने तुझे ज़्यादा छूट दे दी इसलिए तेरे मन में ऐसे विचार आते हैं”.
मैं बोला “ग़लत हो या सही, मैं तो यही जानता हूँ कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो” वह थोड़ा नाराज़ हो कर बोली “पागलपन की बातें मत करो सच तो यह है कि तू मेरा बेटा है, मेरी कोख से जनमा है” मैंने अधीर होकर कहा “अम्मा, जो हुआ सो हुआ, पर मुझसे नाराज़ मत हो मैं अपना प्यार नहीं दबा सकता तुम भी ठंडे दिमाग़ से सोचो और फिर बोलो”.
माँ बहुत देर चुप रही और फिर रोने लगी मेरा भी दिल भर आया और मैंने उसे सांत्वना देने को खींच कर अपनी बाँहों में भर लिया वह छूट कर बोली “चलो, रात बहुत हो गयी है, अब घर चलते हैं”. इसके बाद हमारा घूमने जाना बंद हो गया मेरे बहुत आग्रह करने पर भी वह मेरे साथ नहीं आती थी और कहती थी कि मैं किसी अपनी उम्र की लड़की के साथ पिक्चर देखने जाऊ.
मुझसे वह अभी भी दूर रहती थी और बोलती कम थी पर जैसे मेरे मन में हलचल थी वैसी ही उसके भी मन में होती मुझे सॉफ दिखती थी. एक दो माह ऐसे ही गुजर गये इस बीच मेरा एक छोटा बिज्निस था, वह काफ़ी सफल हुआ और मैं पैसा कमाने लगा एक कार भी खरीद ली माँ मुझ से दूर ही रहती थी.
मेरे पिता ने भी एक बार उससे पूछा कि अब वह क्यों मेरे साथ बाहर नहीं जाती तो वह टाल गयी एक बार उसने उनसे ही कहा कि वे क्यों नहीं उसे घुमाने ले जाते तो काम ज़्यादा होने का बहाना कर के वे मुकर गये शराब पीना उनका वैसे ही चालू था उस दिन उनमें खूब झगड़ा हुआ और आख़िर माँ रोते हुए अपने कमरे में गई और धाड से दरवाजा लगा लिया.
दूसरे दिन बुधवार को जब मेरे भाई बहन बाहर गये थे, मैंने एक बार फिर साहस करके उसे रविवार को पिक्चर चलने को कहा तो वह चुपचाप मान गई मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा और मैं उससे लिपट गया उसने भी मेरे सीने पर सिर टिकाकर आँखें बंद कर लीं मैंने उसे कस कर बाँहों में भर लिया.
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यह बड़ा मधुर क्षण था हमारा संबंध गहरा होने का और पूरा बदल जाने का यह चिन्ह था मैंने प्यार से उसकी पीठ और कंधे पर हाथ फेरे और धीरे से उसके नितंबों को सहलाया वह कुछ ना बोली और मुझसे और कस कर लिपट गयी मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ कर उसका सिर उठाया और उसकी आँखों में झाँकता हुआ बोला “अम्मा, मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ, जो भी हो, मैं तुझे अकेला नहीं रहने दूँगा”.
फिर झुक कर मैंने उसके गाल और आँखें चूमी और साहस करके अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए माँ बिलकुल नहीं विचलित हुई बल्कि मेरे चुंबन का मीठा प्रतिसाद उसने मुझे दिया मेरी माँ का वह पहला चुंबन मेरे लिए अमृत से ज़्यादा मीठा था. उसके बाद तो उसमें बहुत बदलाव आ गया हमेशा वह मेरी राह देखा करती थी और लाई हुई वेणी बड़े प्यार से अपने बालों में पहन लेती थी.
जब भी हम अकेले होते, एक दूसरे के आलिंगन में बँध जाते और मैं उसके शरीर को सहलाकार अपनी कुछ प्यास बुझा लेता माँ का यह बदला रूप सबने देखा और खुश हुए कि माँ अब कितनी खुश दिखती है मेरी बहन ने तो मज़ाक में यह भी कहा कि इतना बड़ा और जवान होने पर भी मैं छोटे बच्चे जैसा माँ के पीछे घूमता हूँ मैंने जवाब दिया की आख़िर अम्मा का अकेलापन कुछ तो दूर करना हमारा कर्तव्य है.
उस रविवार को अम्मा ने एक बहुत बारीक शिफान की साड़ी और एकदम तंग ब्लओज़ पहना उसके स्तनो का उभार और नितंबों की गोलाई उनमें निखार आया था वह बिलकुल जवान लग रही थी और सिनेमा हाल में काफ़ी लोग उसकी ओर देख रहे थे वह मुझसे बस सात आठ साल बड़ी लग रही थी इसलिए लोगों को यही लगा होगा कि हमारी जोड़ी है.
पिक्चर बड़ी रोमान्टिक थी माँ ने हमेशा की तरह मेरे कंधे पर सिर रख दिया और मैंने उसके कंधों को अपनी बाँह में घेरकर उसे पास खींच लिया पिक्चर के बाद हम पार्क में गये रात काफ़ी सुहानी थी माँ ने मेरी ओर देखकर कहा “अमित बेटे, तू ने मुझे बहुत सुख दिया है इतने दिन तूने धीरज रखा आज मुझे बहुत अच्छा लग रहा है”.
मैंने माँ की ओर देख कर कहा “अम्मा, आज तुम बहुत हसीन लग रही हो और सिर्फ़ सुंदर ही नहीं, बल्कि बहुत सेक्सी भी” अम्मा शरमा गयी और हँस कर बोली “अमित, अगर तू मेरा बेटा ना होता तो मैं यही समझती कि तू मुझ पर डोरे डाल रहा है”.
मैंने उसकी आँखों में आँखें डाल कर कहा “हाँ अम्मा, मैं यही कर रहा हूँ” माँ थोड़ा पीछे हटी और काँपते स्वर में बोली “यह क्या कह रहा है बेटा, मैं तुम्हारी माँ हूँ, तू मेरी कोख से जन्मा है और फिर मेरी शादी हुई है तेरे पिता से”.
मैं बोला “अम्मा, उन्होंने तुम्हें जो सुख देना चाहिए वह नहीं दिया है, मुझे आजमा कर देखो, मैं तुम्हे बहुत प्यार और सुख दूँगा” माँ काफ़ी देर चुप रही और फिर बोली “अमित, घर चलना चाहिए नहीं तो हम कुछ ऐसा कर बैठेंगे जो एक माँ बेटे को नहीं करना चाहिए तो जिंदगी भर हमें पछताना पड़ेगा”.
मैं तडप कर बोला “अम्मा, मैं तुम्हे दुख नहीं पहुँचाना चाहता पर तुम इतनी सुंदर हो कि कभी कभी मुझे लगता है कि काश तुम मेरी माँ ना होतीं तो मैं फिर तुम्हारे साथ चाहे जो कर सकता था” मेरे इस प्यार और चाहत भरे कथन पर माँ खिल उठी और मेरे गालों को सहलाते हुए बोली “मेरे बच्चे, तू भी मुझे बहुत प्यारा लगता है, मैं तो बहुत खुश हूँ कि तेरे जैसा बेटा मुझे मिला है क्या सच में मैं इतनी सुंदर हूँ कि मेरे जवान बेटे को मुझ पर प्रेम आ गया है?”
मैंने उसे बाँहों में भरते हुए कहा “हाँ अम्मा, तुम सच में बहुत सुंदर और सेक्सी हो”. अचानक मेरे सब्र का बाँध टूट गया और मैंने झुक कर माँ का चुंबन ले लिया माँ ने प्रतिकार तो नहीं किया पर एक बुत जैसी चुपचाप मेरी बाँहों में बँधी रही अब मैं और ज़ोर से उसे चूमने लगा सहसा माँ ने भी मेरे चुंबन का जवाब देना शुरू करा दिया.
उसका सम्यम भी कमजोर हो गया था अब मैं उसके पूरे चेहरे को, गालों को, आँखों को और बालों को बार बार चूमने लगा अपने होंठ फिर माँ के कोमल होंठों पर रख कर जब मैंने अपनी जीभ उनपर लगाई तो उसने मुँह खोल कर अपने मुख का मीठा खजाना मेरे लिए खुला कर दिया. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
काफ़ी देर की चूमाचाटी के बाद माँ अलग हुई और बोली “अमित, बहुत देर हो गयी बेटे, अब घर चलना चाहिए” घर जाते समय जब मैं कार चला रहा था तो माँ मुझ से सट कर मेरे कंधे पर सिर रखकर बैठी थी मैंने कनखियों से देखा कि उस के होंठों पर एक बड़ी मधुर मुस्कान थी.
बीच में ही मैंने एक गली में कार रोक कर आश्चर्यचकित हुई माँ को फिर आलिंगन में भर लिया और उसे बेतहाशा चूमने लगा इस बार मैंने अपना हाथ उसके स्तनों पर रखा और उन्हें प्यार से टटोलने लगा माँ थोड़ी घबराई और अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करने लगी “अमित, हमें यह नहीं करना चाहिए बेटे”.
मैंने अपने होंठों से उसका मुँहा बंद कर दिया और उसका गहरा चुंबन लेते हुए उन कोमल भरे हुए स्तनों को हाथ में लेकर हल्के हल्के दबाने लगा बड़े बड़े मांसल उन उरोजो का मेरे हाथ में स्पर्श मुझे बड़ा मादक लग रहा था इन्हीं से मैंने बचपन में दूध पिया था माँ भी अब उत्तेजित हो चली थी और सिसकारियाँ भरते हुए मुझे ज़ोर ज़ोर से चूमने लगी थी फिर किसी तरह से उसने मेरे आलिंगन को तोड़ा और बोली “अब घर चल बेटा”.
मैंने चुपचाप कार स्टार्ट की और हम घर आ गये घर में अंधेरा था और शायद सब सो गये थे मुझे मालूम था कि मेरे पिता अपने कमरे में नशे में धुत पड़े होंगे घर में अंदर आ कर वहीं ड्राइंग रूम में मैं फिर माँ को चूमने लगा. उसने इस बार विरोध किया कि कोई आ जाएगा और देख लेगा.
मैं धीरे से बोला “अम्मा, मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ, ऐसा मैंने किसी और औरत या लड़की को नहीं किया मुझसे नहीं रहा जाता, सारे समय तुम्हारे इन रसीले होंठों का चुंबन लेने की इच्छा होती रहती है और फिर सब सो गये हैं, कोई नहीं आएगा”.
माँ बोली “मैं जानती हूम बेटे, मैं भी तुझे बहुत प्यार करती हूँ पर आख़िर मैं तुम्हारे पिता की पत्नी हूँ, उनका बाँधा मंगल सूत्र अभी भी मेरे गले में है” मैं धीरे से बोला “अम्मा, हम तो सिर्फ़ चुंबन ले रहे हैं, इसमें क्या परेशानी है?”
माँ बोली “पर अमित, कोई अगर नीचे आ गया तो देख लेगा” मुझे एक तरकीब सूझी “अम्मा, मेरे कमरे में चलें? अंदर से बंद करके सिटकनी लगा लेंगे बापू तो नशे में सोए हैं, उन्हें खबर तक नहीं होगी”.
माँ कुछ देर सोचती रही सॉफ दिख रहा था कि उसके मन में बड़ी हलचला मची हुई थी पर जीत आख़िर मेरे प्यार की हुई वह सिर डुला कर बोली “ठीक है बेटा, तू अपने कमरे में चल कर मेरी राह देख, मैं अभी देख कर आती हूँ कि सब सो रहे हैं या नहीं”.
मेरी खुशी का अब अंत ना था अपने कमरे में जाकर मैं इधर उधर घूमता हुआ बेचैनी से माँ का इंतजार करने लगा कुछ देर में दरवाजा खुला और माँ अंदर आई उसने दरवाजा बंद किया और सिटकनी लगा ली. मेरे पास आकर वह काँपती आवाज़ में बोली “तेरे पिता हमेशा जैसे पी कर सो रहे हैं पर अमित, शायद हमें यह सब नहीं करना चाहिए इसका अंत कहाँ होगा, क्या पता मुझे डर भी लग रहा है”.
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मैंने उसका हाथ पकडकर उसे दिलासा दिया “डर मत अम्मा, मैं जो हूँ तेरा बेटा, तुझ पर आँच ना आने दूँगा मेरा विश्वास करो किसी को पता नहीं चलेगा” माँ धीमी आवाज़ में बोली “ठीक है अमित बेटे” और उसने सिर उठाकर मेरा गाल प्यार से चूम लिया. मैंने अपनी कमीज़ उतारी और अम्मा को बाँहों में भरकर बिस्तर पर बैठ गया.
और उसके होम्ठ चूमने लगा हमारे चुंबनो ने जल्द ही तीव्र स्वरूप ले लिया और ज़ोर से चलती साँसों से माँ की उत्तेजना भी स्पष्ट हो गई मेरे हाथ अब उसके पूरे बदन पर घूम रहे थे मैंने उसके उरोज दबाए और नितंबों को सहलाया आख़िर मुझ से और ना रहा गया और मैंने माँ के ब्लओज़ के बटन खोलने शुरू कर दिए.
एक क्षण को माँ का शरीर सहसा कड़ा हो गया और फिर उसका आखरी संयम भी टूट गया अपने शरीर को ढीला छोड़कर उसने अपने आप को मेरे हवाले कर दिया इसके पहले कि वह फिर कुछ आनाकानी करे, मैंने जल्दी से बटन खोल कर उसका ब्लओज़ उतार दिया इस सारे समय मैं लगातार उसके कोमल मुख को चूम रहा था.
ब्लओज़ उतरने पर माँ फिर थोड़ा हिचकिचाई और बोलने लगी “ठहर बेटे, सोच यह ठीक है या नहीं ” अब पीछे हटने का सवाल ही नहीं था इसलिए मैंने उसका मुँह अपने होंठों से बंद कर दिया और उसे आलिंगन में भर लिया अब मैंने उसकी ब्रेसियार के हुक खोलकर उसे भी निकाल दिया माँ ने चुपचाप हाथ उपर करके ब्रा निकालने में मेरी सहायता की.
उसके नग्न स्तन अब मेरी छाती पर सटे थे और उसके उभरे निपलो का स्पर्श मुझे मदहोश कर रहा था उरोजो को हाथ में लेकर मैं उनसे खेलने लगा बड़े मुलायम और मांसल थे वे झुक कर मैंने एक निपल मुँह में ले लिया और चूसने लगा माँ उत्तेजना से सिसक उठी उसके निपल बड़े और लंबे थे और जल्द ही मेरे चूसने से कड़े हो गये.
“अम्मा, मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ मुझे मालूम है कि अपने ही माँ के साथ रति करना ठीक नहीं है, पर मैं क्या करूँ, मैं अब नहीं रह सकता”. उसके शरीर को चूमते हुए मैं नीचे की ओर बढ़ा और अपनी जीभ से उसकी नाभि चाटने लगा वहाँ का थोड़ा खारा स्वाद मुझे बहुत मादक लग रहा था.
माँ भी अब मस्ती से हुंकार रही थी और मेरे सिर को अपने पेट पर दबाए हुई थी उसकी नाभि में जीभ चलाते हुए मैंने उसके पैर सहलाना शुरू कर दिए उसके पैर बड़े चिकने और भरे हुए थे अपना हाथ अब मैंने उसकी साड़ी और पेटीकोट के नीचे डाल कर उसकी मांसल मोटी जांघें रगडना शुरू कर दीं.
मेरा हाथ जब जांघों के बीच पहुँचा तो माँ फिर से थोड़ी सिमट सी गयी और जांघों में मेरे हाथ को पकड़ लिया कि और आगे ना जाऊ मैंने अपनी जीभ उसके होंठों पर लगा कर उसका मुँह खोला और जीभ अंदर डाल दी अम्मा मेरे मुँह में ही थोड़ी सिसकी और फिर मेरी जीभ को चूसने लगी अपनी जांघें भी उसने अलग कर के मेरे हाथ को खुला छोड़ दिया.
मेरा रास्ता अब खुला था मुझे कुछ देर तक तो यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मेरी माँ, मेरे सपनों की रानी, वह औरत जिसने मुझे और मेरे भाई बहनों को अपनी कोख से जन्मा था, वह आज मुझसे, अपने बेटे को अपने साथ रति क्रीडा करने की अनुमति दे रही है.
माँ के पेटीकोट के उपर से ही मैंने उसके फूले गुप्ताँग को रगडना शुरू कर दिया अम्मा अब कामवासना से कराह उठी उसकी योनि का गीलापन अब पेटीकोट को भी भिगो रहा था मैंने हाथ निकाल कर उसकी साड़ी पकडकर उतार दी और फिर खड़ा होकर अपने कपड़े उतारने लगा कपड़ों से छूटते ही मेरा बुरी तरह से तन्नाया हुआ लोहे के डंडे जैसा शिश्न उछल कर खड़ा हो गया.
मैं फिर पलंग पर लेट कर अम्मा की कमर से लिपट गया और उसके पेटीकोट के उपर से ही उसके पेट के निचले भाग में अपना मुँहा दबा दिया अब उसके गुप्ताँग और मेरे मुँह के बीच सिर्फ़ वह पेटीकोट था जिसमें से माँ की योनि के रस की भीनी भीनी मादक खुशबू मेरी नाक में जा रही थी अपना सिर उसके पेट में घुसाकर रगडते हुए मैं उस सुगंध का आनंद उठाने लगा और पेटीकोट के उपर से ही उसके गुप्ताँग को चूमने लगा.
मेरे होंठों को पेटीकोट के कपड़े में से माँ के गुप्ताँग पर उगे घने बालों का भी अनुभव हो रहा था उस मादक रस का स्वाद लेने को मचलते हुए मेरे मन की सांत्वना के लिए मैंने उस कपड़े को ही चूसना और चाटना शुरू कर दिया. आख़िर उतावला होकर मैंने अम्मा के पेटीकोट की नाडी खोली और उसे खींच कर उतारने लगा. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
माँ एक बार फिर कुछ हिचकिचाई “ओ मेरे प्यारे बेटे, शायद हमें यह नहीं करना चाहिए, रुक जा मेरे लाल मैं तेरी माँ हूँ, प्रेमिका या पत्नी नहीं हूँ”. मैंने उसका पेट चूमते हुए कहा “अम्मा, मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूँ, तुम मेरे लिए संसार की सबसे सुंदर औरत हो माँ और बेटे के बीच काम संबंध अनुचित है यह मैं जानता हूँ पर दो लोग अगर एक दूसरे को बहुत चाहते हों तो उनमें रति क्रीडा में क्या हर्ज है?”
तृप्त होने के बाद वह कुछ संभली और मुझे उठाकर अपने उपर लिटा लिया मेरे सीने में मुँह छूपाकर वह शरमाती हुई बोली “अमित बेटे, निहाल हो गयी आज मैं, कितने दिनों के बाद पहली बार इस मस्ती से मैं झडी हूँ”.
“अम्मा, तुमसे सुंदर और सेक्सी कोई नहीं है इस संसार में कितने दिनों से मेरा यह सपना था तुमसे मैथुन करने का जो आज पूरा हो रहा है” माँ मुझे चूमते हुए बोली “सच में मैं इतनी सुंदर हूँ बेटे कि अपने ही बेटे को रिझा लिया?” मैं उसके स्तन दबाता हुआ बोला “हाँ माँ, तुम इन सब अभिनेत्रियों से भी सुंदर हो”.
माँ ने मेरी इस बात पर सुख से विभोर होते हुए मुझे अपने उपर खींच कर मेरे मुँह पर अपने होंठ रख दिए और मेरे मुँह में जीभ डाल कर उसे घुमाने लगी; साथ ही साथ उसने मेरा लंड हाथ में पकड़ लिया और अपनी योनि पर उसे रगडने लगी उसकी चुनमूनियाँ बिलकुल गीली थी वह अब कामवासना से सिसक उठी.
और मेरी आँखों में आँखें डाल कर मुझ से मूक याचना करने लगी मैंने माँ के कानों में कहा “अम्मा, मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ, अब तुझे चोदना चाहता हूँ”. अम्मा ने अपनी टाँगें पसार दीं यह उसकी मूक सहमति थी साथ ही उसने मेरा लंड हाथ में लेकर सुपाडा खुद ही अपनी चुनमूनियाँ के मुँह पर जमा दिया.
उसका मुँह चूसते हुए और उसकी काली मदभरी आँखों में झाँकते हुए मैंने लंड पेलना शुरू किया मेरा लंड काफ़ी मोटा और तगडा हो गया था इसलिए धीरे धीरे अंदर गया उसकी चुनमूनियाँ किसी गुलाब के फूल की पंखुड़ियों जैसी चौडी होकर मेरा लंड अंदर लेने लगी.
अम्मा अब इतनी कामातूर हो गई थी कि उससे यह धीमी गति का शिश्न प्रवेश सहन नहीं हुआ और मचल कर सहसा उसने अपने नितंब उछाल कर एक धक्का दिया और मेरा लंड जड तक उसकी चुनमूनियाँ में समा गया माँ की चुनमूनियाँ बड़ी टाइट थी मुझे अचरज हुआ कि तीन बच्चों के बाद भी मेरी जननी की योनि इतनी संकरी कैसे है.
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उसकी योनि की शक्तिशाली पेशियों ने मेरे शिश्न को घूँसे जैसा पकड़ रखा था मैंने लंड आधा बाहर निकाला और फिर पूरा अंदर पेल दिया गीली तपी उस चुनमूनियाँ में लंड ऐसा मस्त सरक रहा था जैसे उसमें मक्खन लगा हो. इसके बाद मैं पूरे ज़ोर से माँ को चोदने में लग गया.
मैं इतना उत्तेजित था कि जितना कभी जिंदगी में नहीं हुआ मेरे तन कर खड़े लंड में बहुत सुखद अनुभूति हो रही थी और मैं उसका मज़ा लेता हुआ अम्मा को ऐसे हचक हचक कर चोद रहा था कि हर धक्के से उसका शरीर हिल जाता माँ की चुनमूनियाँ के रस में सराबोर मेरा शिश्न बहुत आसानी से अंदर बाहर हो रहा था.
हम दोनों मदहोश होकर ऐसे चोद रहे थे जैसे हमें इसी काम एक लिए बनाया गया हो माँ ने मेरी पीठ को अपनी बाँहों में कस रखा था और मेरे हर धक्के पर वह नीचे से अपने नितंब उछाल कर धक्का लगा रही थी हर बार जब मैं अपना शिश्न अम्मा की योनि में घुसाता तो वह उसके गर्भाशय के मुँह पर पहुँच जाता.
उस मुलायम अंदर के मुँह का स्पर्श मुझे अपने सुपाडे पर सॉफ महसूस होता अम्मा अब ज़ोर ज़ोर से साँसें लेते हुए झडने के करीब थी जानवरों की तरह हमने पंद्रह मिनट जोरदार संभोग किया फिर एकाएक माँ का शरीर जकड गया और वह काँपने लगी. माँ के इस तीव्र स्खलन के कारण उसकी योनि मेरे लंड को अब पकड़ने छोड़ने लगी.
और उसी समय मैं भी कसमसा कर झड गया इतना वीर्य मेरे लंड ने उसकी चुनमूनियाँ में उगला कि वह बाहर निकल कर बहने लगा काफ़ी देर हम एक दूसरे को चूमते हुए उस स्वर्गिक आनंद को भोगते हुए वैसे ही लिपटे पड़े रहे. माँ के मीठे चुंबनो से और मेरी छाती पर दबे उसके कोमल उरोजो और उनके बीच के कड़े निपलो की चुभन से अब भी योनि में घुसा हुआ मेरा शिश्न फिर धीरे धीरे खड़ा हो गया.
जल्द ही हमारा संभोग फिर शुरू हो गया इस बार हमने मज़े ले लेकर बहुत देर कामक्रीडा की माँ को मैंने बहुत प्यार से हौले हौले उसके चुंबन लेते हुए करीब आधे घंटे तक चोदा हम दोनों एक साथ स्खलित हुए अम्मा की आँखों में एक पूर्ण तृप्ति के भाव थे मुझे प्यार करती हुई वह बोली “अमित, तेरा बहुत बड़ा है बेटे, बिलकुल मुझे पूरा भर दिया तूने.”
मैं बहुत खुश था और गर्व महसूस कर रहा था कि पहले ही मैथुन में मैंने अम्मा को वह सुख दिया जो आज तक कोई उसे नहीं दे पाया था मैं भरे स्वर में बोला “यह इसलिए माँ कि मैं तुझपर मरता हूँ और बहुत प्यार करता हूँ” माँ सिहर कर बोली “इतना आनंद मुझे कभी नहीं आया मैं तो भूल ही गई थी कि स्खलन किसे कहते हैं.”
मैं माँ से लिपटा रहा और हम प्यार से एक दूसरे के बदन सहलाते हुए चूमते रहे “अमित, मेरे राजा, मेरे लाल, अब मैं जाती हूँ हमें सावधान रहना चाहिए, किसी को शक ना हो जाए.” उठ कर उसने अपना बदन पोंच्छा और कपड़े पहनने लगी मैंने उससे धीमे स्वर में पूछा “अम्मा, मैं तुम्हारा पेटीकोट रख लूँ? अपनी पहली रात की निशानी?” वह मुस्करा कर बोली “रख ले राजा, पर छुपा कर रखना”.
उसने साड़ी पहनी और मुझे एक आखरी चुंबन देकर बाहर चली गई. मैं जल्द ही सो गया, सोते समय मैंने अपनी माँ का पेटीकोट अपने तकिये पर रखा था उसमें से आ रही माँ के बदन और उसके रस की खुशबू सूँघते हुए कब मेरी आँख लग गयी, पता ही नहीं चला. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
अगले दिन नाश्ते पर जब सब इकट्ठा हुए तो माँ चुप थी, मुझसे बिलकुल नहीं बोली मुझे लगा कि लो, हो गई नाराज़, कल शायद मुझसे ज़्यादती हो गई जब मैं काम पर जा रहा था तो अम्मा मेरे कमरे में आई “बात करना है तुझसे” गंभीर स्वर में वह बोली. “क्या बात है अम्मा? क्या हुआ? मैंने कुछ ग़लती की?”
मैंने डरते हुए पूछा “नहीं बेटे” वह बोली “पर कल रात जो हुआ, वह अब कभी नहीं होना चाहिए” मैंने कुछ कहने के लिए मुँहा खोला तो उसने मुझे चुप कर दिया. “कल की रात मेरे लिए बहुत मतवाली थी अमित और हमेशा याद रहेगी पर यह मत भूलो कि मैं शादी शुदा हूँ और तेरी माँ हूँ यह संबंध ग़लत है”.
मैंने तुरंत इसका विरोध किया “अम्मा, रूको” उसकी ओर बढकर उसे बाँहों में भरते हुए मैं बोला “तुम्हे मालूम है कि मैं तुम्हे कितना प्यार करता हूँ और यह भी जानता हूँ कि तुम भी मुझे इतना ही चाहती हो इस प्यार को ऐसी आसानी से नहीं समाप्त किया जा सकता”.
मैंने उसका चुंबन लेने की कोशिश की तो उसने अपना सिर हिलाकर नहीं कहते हुए मेरी बाँहों से अपने आप को छुडा लिया मैंने पीछे से आवाज़ दी “तू कुछ भी कह माँ, मैं तो तुझे छोड़ने वाला नहीं हूँ और ऐसे ही प्यार करता रहूँगा” रोती हुई माँ कमरे से चली गई.
इसके बाद हमारा संबंध टूट सा गया मुझे सॉफ दिखता था कि वह बहुत दुखी है फिर भी उसने मेरी बात नहीं सुनी और मुझे टालती रही मैंने भी उसके पीछे लगाना छोड़ दिया क्योंकि इससे उसे और दुख होता था. माँ अब मेरे लिए एक लड़की की तलाश करने लगी कि मेरी शादी कर दी जाए उसने सब संबंधियों से पूछताछ शुरू कर दी.
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दिन भर अब वह बैठ कर आए हुए रिश्तों की कुंडलियाँ मुझसे मिलाया करती थी ज़बरदस्ती उसने मुझे कुछ लड़कियों से मिलवाया भी मैं बहुत दुखी था कि मेरी माँ ही मेरे उस प्यार को हमेशा के लिए खतम करने के लिए मुझपर शादी की ज़बरदस्ती कर रही है.
आख़िर मैंने हार मान ली और एक लड़की पसंद कर ली वह कुछ कुछ माँ जैसी ही दिखती थी पर जब शादी की तारीख पक्की करने का समय आया तो माँ में अचानक एक परिवर्तन आया वह बात बात में झल्लाती और मुझ पर बरस पड़ती उसकी यह चिडचिडाहट बढ़ती ही गई मुझे लगा कि जैसे वह मेरी होने वाली पत्नी से बहुत जल रही है.
आख़िर एक दिन अकेले में उसने मुझसे कहा “अमित, बहुत दिन से पिक्चर नहीं देखी, चल इस रविवार को चलते हैं” मुझे खुशी भी हुई और अचरज भी हुआ “हाँ माँ, जैसा तुम कहो” मैंने कहा मैं इतना उत्तेजित था कि बाकी दिन काटना मेरे लिए कठिन हो गया यही सोचता रहा कि मालूम नहीं अम्मा के मन में क्या है शायद उसने सिर्फ़ मेरा दिल बहलाने को यह कहा हो.
रविवार को माँ ने फिर ठीक वही शिफान की सेक्सी साड़ी पहनी खूब बनठन कर वह तैयार हुई थी मैं भी उसका वह मादक रूप देखता रहा गया कोई कह नहीं सकता था कि मेरे पास बैठ कर पिक्चर देखती वह मेरी माँ है पिक्चर के बाद हम उसी बगीचे में अपने प्रिय स्थान पर गये.
मैंने माँ को बाँहों में खींच लिया मेरी खुशी का पारावार ना रहा जब उसने कोई विरोध नहीं किया और चुपचाप मेरे आलिंगन में समा गई मैंने उसके चुंबन पर चुंबन लेना शुरू कर दिए मेरे हाथ उसके पूरे बदन को सहला और दबा रहे थे माँ भी उत्तेजित थी और इस चूमाचाटी में पूरा सहयोग दे रही थी.
आख़िर हम घर लौटे आधी रात हो जाने से सन्नाटा था माँ बोली “तू अपने कमरे में जा, मैं देख कर आती हूँ कि तेरे बापू सो गये या नहीं” मैंने अपने पूरे कपड़े निकाले और बिस्तर में लेट कर उसका इंतजार करने लगा दस मिनट बाद माँ अंदर आई और दरवाजा अंदर से बंद करके दौड कर मेरी बाँहों में आ समाई.
एक दूसरे के चुंबन लेते हुए हम बिस्तर में लेट गये मैंने जल्दी अम्मा के कपड़े निकाले और उसके नग्न मोहक शरीर को प्यार करने लगा मैंने उसके अंग अंग को चूमा, एक इंच भी जगहा कहीं नहीं छोडी उसके मांसल चिकने नितंब पकडकर मैं उसके गुप्ताँग पर टूट पड़ा और मन भर कर उसमें से रसते अमृत को पिया.
दो बार माँ को स्खलित करा के उसके रस का माँ भर कर पान करके आख़िर मैंने उसे नीचे लिटाया और उसपर चढ बैठा अम्मा ने खुद ही अपनी टाँगें फैला कर मेरा लोहे जैसा कड़ा शिश्न अपनी योनि के भगोष्ठो में जमा लिया मैंने बस ज़रा सा पेला और उस चिकनी कोमल चुनमूनियाँ में मेरा लंड पूरा समा गया माँ को बाँहों में भर कर अब मैं चोदने लगा.
अम्मा मेरे हर वार पर आनंद से सिसकती हम एक दूसरे को पकड़ कर पलंग पर लोट पोट होते हुए मैथुन करते रहे कभी वह नीचे होती, कभी मैं इस बार हमने संयमा रख कर खूब जमकर बहुत देर कामक्रीडा की आख़िर जब मैं और वह एक साथ झडे तो उस स्खलन की मीठी तीव्रता इतनी थी कि माँ रो पडी “ओहा अमित बेटे, मर गयी” वह बोली “तूने तो मुझे जीते जागते स्वर्ग पहुँचा दिया मेरे लाल”.
मैंने उसे कस कर पकडते हुए पूछा “अम्मा, मेरी शादी के बारे में क्या तुमने इरादा बदल दिया है?” “हाँ बेटा” वह मेरे गालों को चूमते हुए बोली “तुझे नहीं पता, यह महीना कैसे गुज़रा मेरे लिए जैसे तेरी शादी की बात पक्की करने का दिन पास आता गया, मैं तो पागल सी हो गयी आख़िर मुझसे नहीं रहा गया, मैं इतनी जलती थी तेरी होने वाली पत्नी से मुझे अहसास हो गया कि मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ, सिर्फ़ बेटे की तरह नहीं, एक नारी की तरह जो अपने प्रेमी की दीवानी है”.
मैने भी उसके बालों का चुंबन लेते हुए कहा “हाँ माँ, मैं भी तुझे अपनी माँ जैसे नहीं, एक अभिसारिका के रूप में प्यार करता हूँ, मैं तुझसे अलग नहीं रह सकता” माँ बोली “मैं जानती हूँ अमित, तेरी बाँहों में नंगी होकर ही मैंने जाना कि प्यार क्या है अब मैं सॉफ तुझे कहती हूँ, मैं तेरी पत्नी बनकर जीना चाहती हूँ, बोल, मुझसे शादी करेगा?”
मैं आनंद के कारण कुछ देर बोल भी नहीं पाया फिर उसे बाँहों में भींचते हुए बोला “अम्मा, तूने तो मुझे संसार का सबसे खुश आदमी बना दिया, तू सिर्फ़ मेरी है, और किसीकी नहीं, तुम्हारा यहा मादक खूबसूरत शरीर मेरा है, मैं चाहता हूँ कि तुम नंगी होकर हमेशा मेरे आगोश में रहो और मैं तुम्हें भोगता रहूं”.
“ओह मेरे बेटे, मैं भी यही चाहती हन, पर तुमसे शादी करके मैं और कहीं जा कर रहना चाहती हूँ जहाँ हमें कोई ना पहचानता हो तू बाहर दूर कहीं नौकरी ढूँढ ले या बिज़ीनेस कर ले मैं तेरी पत्नी बनकर तेरे साथ चलूंगी यहाँ हमें बहुत सावधान रहना पड़ेगा अमित पूरा आनंद हम नहीं उठा पाएँगे”.
माँ की बात सच थी मैं उसे बोला “हाँ अम्मा, तू सच कहती है, मैं कल से ही प्रयत्न शुरू कर देता हूँ”. हम फिर से संभोग के लिए उतावले हो गये थे माँ मेरी गोद में थी और मैंने उसके खूबसूरत निपल, जो कड़े होकर काले अंगूर जैसे हो गये थे, उन्हें मुंह में लेकर चूसने लगा. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
अम्मा ने मुझे नीचे बिस्तर पर लिटा दिया और खुद मेरे उपर चढ कर मेरा लंड अपनी चुनमूनियाँ के मुँह पर रख कर नीचे होते हुए उसे पूरा अंदर ले लिया फिर वह झुककर मुझे चूमते हुए उछल उछल कर मुझे चोदने लगी मैं भी उसके नितंब पकड़े हुए था उसकी जीभ मेरी जीभ से खेलने लगी और सहसा वह मेरे मुँह में ही एक दबी चीख के साथ स्खलित हो गयी.
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अब मैं उसे पटक कर उस पर चढ बैठा और पूरे ज़ोर के साथ उसे चोद डाला झडने के बाद भी मैं अपना लंड उसकी चुनमूनियाँ में घुसेडे हुए उसपर पड़ा पड़ा उसके होंठों को चूमता रहा और उसके शरीर के साथ खेलता रहा अम्मा अब तृप्त हो गई थी पर मेरा लंड फिर खड़ा होने लगा था माँ ने हँस कर लाड से कहा “तू आदमी है या सांड़?” और फिर झुककर मेरा शिश्न मुँह में लेकर चूसने लगी.
पहली बार माँ के कोमल तपते मुँह को अपने लंड पर पाकर मैं ज़्यादा देर नहीं रह पाया और उसके मुँह में ही स्खलित हो गया माँ ने झडते शिश्न को मुँह से निकालने की ज़रा भी कोशिश नहीं की बल्कि पूरा वीर्य पी गयी. दूसरे ही दिन मैं एक सराफ़ के यहाँ से एक मंगल सूत्र ले आया सबसे छुपा कर रखा और साथ ही एक अच्छी रेशम की साड़ी भी ले आया.
मौका देखकर एक दिन हम पास के दूसरे शहर में शापिंग का बहाना बना कर गये माँ ने वही नयी साड़ी पहनी थी. वहाँ एक छोटे मंदिर में जाकर मैंने पुजारी से कहा कि हमारी शादी कर दे पुजारी को कुछ गैर नहीं लगा क्योंकि अम्मा इतनी सुंदर और जवान लग रही थी कि किसी को यह विश्वास ही नहीं होता कि वह मेरी माँ है माँ शरमा कर मेरे सामने खडी थी.
जब मैंने हार उसके गले में डाला फिर मैंने अपने नाम का मंगल सूत्र उसे पहना दिया एक अच्छे होटल में खाना खाकर हम घर आ गये. रात को सब सो जाने के बाद अम्मा वही साड़ी पहने मेरे कमरे में आई आज वह दुल्हन जैसी शरमा रही थी मुझसे लिपट कर बोली “अमित, आज यह मेरे लिए बड़ी सुहानी रात है, ऐसा प्रेम कर बेटे कि मुझे हमेशा याद रहे आख़िर आज से मैं तेरी पत्नी भी हूँ”.
मैंने उसके रूप को आँखें भर कर देखते हुए कहा “अम्मा, आज से मैं तुम्हे तुम्हारे नामा से बुलाना चाहता हूँ, शकुन्तला अकेले में मैं यही कहूँगा सबके सामने माँ कहूँगा” माँ ने लज्जा से लाल हुए अपने मुखडे को दुलाकर स्वीकृति दे दी फिर मैं माँ की आँखों में झाँकता हुआ बोला “शकुन्तला रानी, आज मैं तुम्हें इतना भोगुँगा कि जैसा एक पति को सुहागरात में करना चाहिए आज मैं तुम्हें अपने बच्चे की माँ बना कर रहूँगा तू फिकर मत कर, अगले माह तक हम दूसरी जगह चले जाएँगे”.
अम्मा ने अपना सिर मेरी छाती में छुपाते हुए कहा “ओहा अमित, हर पत्नी की यही चाह होती है कि वह अपने पति से गर्भवती हो आज मेरा ठीक बीच का दिन है मेरी कोख तैयार है तेरे बीज के लिए मेरे राजा”. उस रात मैंने अम्मा को मन भर कर भोगा उसके कपड़े धीरे धीरे निकाले.
और उसके पल पल होते नग्न शरीर को मन भर कर देखा और प्यार किया पहले घंटे भर उसके चुनमूनियाँ के रस का पान किया और फिर उस पर चढ बैठा. उस रात माँ को मैंने चार बार चोदा एक क्षण भी अपना लंड उसकी चुनमूनियाँ से बाहर नहीं निकाला सोने में हमें सुबह के तीन बज गये इतना वीर्य मैंने उसके गर्भ में छोड़ा क़ि उसका गर्भवती होना तय था.
उसके बाद मैं इसी ताक में रहता कि कब घर में कोई ना हो और मैं अम्मा पर चढ जाऊ माँ भी हमेशा संभोग की उत्सुक रहती थी पहल हमेशा वही करती थी वह इतनी उत्तेजित रहती थी कि जब भी मैं उसका पेटीकोट उतारता, उसकी चुनमूनियाँ को गीला पाता.
जब उसने एक दिन चुदते हुए मुझे थोड़ी लजा कर यह बताया कि सिर्फ़ मेरी याद से ही उसकी योनि में से पानी टपकने लगता था, मुझे अपनी जवानी पर बड़ा गर्व महसूस हुआ. कभी कभी हम ऐसे गरम जाते कि सावधानी भी ताक पर रख देते एक दिन जब सब नीचे बैठ कर गप्पें मार रहे थे.
मैंने देखा कि अम्मा उपर वाले बाथरूम में गयी मैं भी चुपचाप पीछे हो लिया और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया माँ सिटकनी लगाना भूल गयी थी मैं जब अंदर गया तो वह पॉट पर बैठकर मूत रही थी मुझे देखकर उसकी काली आँखें आश्चर्य से फैल गईं.
उसके कुछ कहने के पहले ही मैंने उसे उठाया, घुमा कर उसे झुकने को कहा और साड़ी व पेटीकोट उपर करके पीछे से उसकी चुनमूनियाँ में लंड डाल दिया “बेटे कोई आ जाएगा” वह कहती रह गयी पर मैंने उसकी एक ना सुनी और वैसे ही पीछे से उसे चोदने लगा पाँच मिनट में मैं ही झड गया पर वे इतने मीठे पाँच मिनट थे कि घंटे भर के संभोग के बराबर थे.
मेरे शक्तिशाली धक्कों से उसका झुका शरीर हिल जाता और उसका लटकता मंगलसूत्र पेम्डुलम जैसा हिलने लगता झड कर मैंने उसके पेटीकोट से ही वीर्य सॉफ किया और हम बाहर आ गये माँ पेटीकोट बदलना चाहती थी पर मैंने मना कर दिया दिन भर मुझे इस विचार से बहुत उत्तेजना हुई कि माँ के पेटीकोट पर मेरा वीर्य लगा है और उसकी चुनमूनियाँ से भी मेरा वीर्य टपक रहा है.
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हमारा संभोग इसी तरह चलता रहा एक बार दो दिन तक हमें मैथुन का मौका नहीं मिला तो उस रात वासना से व्याकुल होकर आख़िर मैं माँ और बापू के कमरे में धीरे से गया बापू नशे में धुत सो रहे थे और माँ भी वहीं बाजू में सो रही थी. सोते समय उसकी साड़ी उसके वक्षस्थल से हट गयी थी.
और उसके उन्नत उरोजो का पूरा उभार दिख रहा था साँस के साथ वे उपर नीचे हो रहे थे मैं तो मानों प्यार और चाहत से पागल हो गया माँ को नींद में से उठाया और जब वह घबरा कर उठी तो उसे चुप रहने का इशारा कर के अपने कमरे में आने को कहा कर मैं वापस आ गया.
दो मिनट बाद ही वह मेरे कमरे में थी मैं उसके कपड़े उतारने लगा और वह बेचारी तंग हो कर मुझे डाँटने लगी “अमित, मैं जानती हूँ की मैं तुम्हारी पत्नी हूँ और जब भी तुम बुलाओ, आना मेरा कर्तव्य है, पर ऐसी जोखिम मत उठा बेटे, किसी ने देख लिया तो गडबड हो जाएगा”.
मैंने अपने मुँह से उसका मुँह बंद कर दिया और साड़ी उतारना छोड़ सिर्फ़ उसे उपर कर के उसके सामने बैठ कर उसकी चुनमूनियाँ चूसने लगा क्षण भर में उसका गुस्सा उतर गया और वह मेरे सिर को अपनी जांघों में जकड कर कराहते हुए अपनी योनि में घुसी मेरी जीभ का आनंद उठाने लगी इसके बाद मैंने उसे बिस्तर पर लिटा कर उसे चोद डाला.
मन भर कर चुदने के बाद माँ जब अपने कमरे में वापस जा रही थी तो बहुत खुश थी मुझे बोली “अमित, जब भी तू चाहे, ऐसे ही बुला लिया कर मैं आ जाऊन्गि”. अगली रात को तो माँ खुले आम अपना तकिया लेकर मेरे कमरे में आ गयी.
मैंने पूछा तो हँसते हुए उसने बताया “अमित, तेरे बापू को मैंने आज बता दिया कि उनकी शराब की दुर्गंध की वजह से मुझे नींद नहीं आती इसलिए आज से मैं तुम्हारे कमरे में सोया करूंगी उन्हें कोई आपत्ति नहीं है इसलिए मेरे राजा, मेरे लाल, आज से मैं खुले आम तेरे पास सो सकती हू”.
मैंने उसे भींच कर उसपर चुंबनो की बरसात करते ऊए कहा “सच अम्मा? आज से तो फिर हम बिलकुल पति पत्नी जैसे एक साथ सो सकेंगे” उस रात के मैथुन में कुछ और ही मधुरता थी क्योंकि माँ को उठ कर वापस जाने की ज़रूरत नहीं थी और मन भर कर आपस में भोगने के बाद हम एक दूसरे की बाँहों में ही सो गये अब सुबह उठ कर मैं माँ को चोद लेता था और फिर ही वह उठ कर नीचे जाती थी.
कुछ ही दिन बाद एक रात संभोग के बाद जब माँ मेरी बाँहों में लिपटी पडी थी तब उसने शरमाते हुए मुझे बताया कि वह गर्भवती है मैं खुशी से उछल पड़ा आज माँ का रूप कुछ और ही था लाज से गुलाबी हुए चेहरे पर एक निखार सा आ गया था. मुझे खुशी के साथ कुछ चिंता ही हुई दूर कहीं जाकर घर बसाना अब ज़रूरी था साथ ही बापू और भाई बहन के पालन का भी इंतज़ाम करना था.
शायद कामदेव की ही मुझपर कृपा हो गयी एक यह कि अचानक बापू एक केस जीत गये जो तीस साल से चल रहा था इतनी बड़ी प्रॉपर्टी आख़िर हमारे नाम हो गयी आधी बेचकर मैंने बैंक में रख दी कि सिर्फ़ ब्याज से ही घर आराम से चलता साथ ही घर की देख भाल को एक विधवा बुआ को बुला लिया इस तरफ से अब मैं निश्चिंत था.
दूसरे यह कि मुझे अचानक आसाम में दूर पर एक नौकरी मिली मैंने झट से अपना और माँ का टिकट निकाला और जाने की तारीख तय कर ली माँ ने भी सभी को बता दिया कि वह नहीं सह सकती कि उसका बड़ा बेटा इतनी दूर जाकर अकेला रहे यहाँ तो बुआ थी हीं सबकी देखभाल करने के लिए इस सब बीच माँ का रूप दिन-बा-दिन निखर रहा था. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
ख़ास कर इस भावना से उसके पेट में उसी के बेटे का बीज पल रहा है, माँ बहुत भाव विभोर थी. हम आख़िर आकर नई जगह बस गये यहाँ मैंने सभी को यही बताया कि मैं अपनी पत्नी के साथ हू हमारा संभोग तो अब ऐसा बढ़ा कि रुकता ही नहीं था सुबह उठ कर, फिर काम पर जाने से पहले दोपहर में खाने पर घर आने के बाद, शाम को लौटकर और फिर रात को जब मौका मिले, मैं बस अम्मा से लिपटा रहता था, उस पर चढा रहता था.
माँ की वासना भी शांत ही नहीं होती थी कुछ माह हमने बहुत मज़े लिए फिर आठवें माह से मैंने उसे चोदना बंद कर दिया मैं उसकी चुनमूनियाँ चूस कर उसे झडा देता था और वह भी मेरा लंड चूस देती थी घरवालों को मैंने अपना पता नहीं दिया था, बस कभी कभी फ़ोन पर बात कर लेता था.
आख़िर एक दिन माँ को अस्पताल में भरती किया दूसरे ही दिन चाँद सी गुडिया को उसने जन्म दिया माँ तो खुशी से रो रही थी, अपने ही बेटे की बेटी उसने अपनी कोख से जनी थी वह बच्ची मेरी बेटी भी थी और बहन भी माँ ने उसका नाम मेरे नाम पर राज़ी रखा. इस बात को बहुत दिन बीत गये हैं अब तो हम मानों स्वर्ग में हैं माँ के प्रति मेरे प्यार और वासना में ज़रा भी कमी नही हुई है, बल्कि और बढ़ गई है.
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एक उदाहरण यह है कि हमारी बच्ची अब एक साल की हो गयी है और अब माँ का दूध नहीं पीती पर मैं पीता हू माँ के गर्भवती होने का यह सबसे बड़ा लाभ मुझे हुआ है कि अब मैं अपनी माँ का दूध पी सकता हू. इसकी शुरूवात माँ ने राज़ी छह माह की होने के बाद ही की एक दिन जब वह मुझे लिटा कर उपर चढ कर चोद रही थी तो झुककर उसने अपना निपल मेरे मुँह में देकर मुझे दूध पिलाना शुरू कर दिया था. उस मीठे अमृत को पाकर मैं बहुत खुश था. पर फिर भी माँ को पूछ बैठा कि बच्ची को तो कम नहीं पड़ेगा.
वह बोली “नहीं मेरे लाल, वह अब धीरे धीरे यह छोड़ देगी पर जब तूने पहली बार मेरे निपल चूसे थे तो मैं यही सोच रही थी कि काश, मेरे इस जवान मस्त बेटे को फिर से पिलाने को मेरे स्तनों में दूध होता आज वह इच्छा पूरी हो गयी”. माँ ने बताया कि अब दो तीन साल भी उसके स्तनों से दूध आता रहेगा बशर्ते मैं उसे लगातार पीऊँ अंधे को चाहिए क्या, दो आँखें, मैं तो दिन में तीन चार बार अम्मा का दूध पी लेता हू ख़ास कर उसे चोदते हुए पीना तो मुझे बहुत अच्छा लगता है.
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