Dehati Big Lund
दोस्तों मैं मेहर, आपने मेरी कहानी के पिछले भाग तांगेवाले के मोटे लंड के लिए बेवफा बन गई 1 में पढ़ा था की गाँव जाने के लिए मैं अपनी सास और देवर के साथ स्टेशन से रात में एक टांगे पर जा रही थी. और तांगावाला मुझे अपने साथ बिठा कर लंड चुसाने लगा. और फिर वो मुझे अपने एक दोस्त के ढाबे पर ले जा कर चोद रहा था. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, अब आगे – Dehati Big Lund
टाँगेवाला बोला, “लगता है कि मेरा दोस्त… वही ढाबेवाला… बाहर खड़ा अपना लंड हिला रहा था और उससे अब और इंतज़ार नहीं हो रहा है… आने दो… उस बेचारे को भी बुला लेते हैं और तुझे भी अब अपने वादे के मुताबिक उस ढाबेवाले से चुदाना पड़ेगा… तो फिर साली… तू तैयार है ना हम दोनों का लंड एक साथ खाने के लिये?”
“हाँ बहनचोद! अब जो वादा किया है वो तो निभाना ही पड़ेगा ना… लेकिन एक बार मुझे अपने आपको ज़रा ढक तो लेने दे… नहीं तो पता नहीं तेरा दोस्त मेरे बारे में क्या सोचेगा!” ये कहते हुए मैं अपनी चोली पहनने के लिये उठी.
तो टाँगे वाला मुझे चोली पहनने से रोकते हुए बोला, “अब कपड़े पहनने से क्या फायदा फिर पाँच मिनट के बाद तो खोलने ही हैं तो क्यों ये तकलीफ दे रही है अपने आप को… अगर ढकना ही है तो अपनी चुनरी से ढक ले!”
मुझे भी उसका मशवारा पसंद आया और तमाम कपड़े पहनने के बजाय मैंने चुनरी से खुद को ढक लिया और बगैर स्लिप (पेटीकोट) के अपना लहंगा पहन कर ढाबेवाले के लिये दरवाज़ा खोला। मैंने जब दरवाज़ा खोला तो टाँगेवाले का दोस्त मेरे जिस्म को मुँह खोले और आँखें फाड़े ऐसे देखता रह गया जैसे कि उसने ज़िंदगी पहले कोई औरत ना देखी हो।
टाँगेवाले ने अपने दोस्त को अंदर बुलाया और बोला, “अबे चुतिये! इस तरह से क्या देख रहा है… ये कुत्तिया तो अब पूरी की पूरी हमारी ही है! इसे हम जिस तरह से भी चाहें चोद सकते हैं… गाँड मार सकते हैं… और… और जो कुछ भी करना चाहें कर सकते हैं… ये हमें ना नहीं बोल सकती। ले तेरे को इसके मम्मे दबाने हैं तो जा… बिंदास होकर इसके मम्मों को जी भर के दबा… ये तुझे कुछ भी नहीं बोलेगी… क्यों राँड… करेगी ना सब कुछ?”
मेरे पास दूसरा कोई रास्ता तो था नहीं इसलिये मैंने मुस्कुराते हुए रज़ामंदी में गर्दन हिला दी। ये देख कर ढाबेवाला इस कदर खुश हुआ जैसे उसकी ज़िंदगी भर की ख्वाहिश पूरी हो गयी हो। वो धीरे से मेरे करीब आया और बेहद हिचकिचाते हुए मेरी चुनरी खींची जिसने मेरे नंगे मम्मों को ढका हुआ था।
अब मेरे मम्मे उसकी नज़रों के सामने इस तरह नंगे हो गये जैसे बेहद प्यारे सो दो कबूतर अपनी चोंचों से अपने करीब आने वाली किसी भी चीज़ को चूमने को तैयार हों। ढाबेवाला बहुत ही धीरे-धीरे मेरे मम्मे सहलाने लगा जैसे उसे इस बात का खौफ हो कि अगर वो मेरे बड़े-बड़े मम्मों के साथ बेरुखी से पेश आया तो मैं एतराज़ करुँगी और उसे और आगे बढ़ने नहीं दूँगी।
ये देख कर टाँगेवाला बोला, “अरे तुझे बोला था ना – इसके मम्मों को जी भर कर दबा… तो ऐसे औरतों के जैसे क्यों हाथ लगा रहा है… मर्द के जैसे पूरी ताकत के साथ भींच इनको… तो इस साली छिनाल को भी मज़ा आयेगा नहीं तो मादरचोद कहेगी कि मेरे दोस्त ने इसको अच्छे से इस्तेमाल नहीं किया!”
ये सुनकर ढाबेवाला मेरे और करीब आ गया और पूरी ताकत से मेरे मम्मों को दबाने और मेरे निप्पलों को चिकोटते और खिंचते हुए मरोड़ने लगा। मैंने नोटिस किया कि उस आदमी ने जो धोती पहनी हुई थी उसके नीचे उसका लंड खड़ा होने लगा था।
वो बेचारा खुद को फुसफुसाने से रोक नहीं सका, “ऊऊऊहह हाय… क्या मम्में हैं इस औरत के… जी करता है कि रात भर यूँ ही दबाता रहूँ… हाय क्या चूचियाँ हैं इसकी! अपने गाँव में ऐसे लाल निप्पल किसी के भी नहीं होंगे! हाय मेरे दोस्त! तू क्या माल लाया है चुन कर… आज तो मज़ा आ जायेगा… सच में इसकी चूत और गाँड को तो मज़े से रौंद-रौंद कर चोद कर ही मज़ा आयेगा!”
इस दौरान शहरी माल के साथ चुदाई के मज़े करने की उन देहातियों की तड़प का मैं भी लुत्फ लेने लगी थी। एक खास बात मुझे समझ आ रही थी कि इस सर-ज़मीन पर हर इंसान कुछ बदलाव चाहता है। जैसे कि कोई देहाती किसी शहरी माल को चोदने के लिये कोई भी कीमत देने को तैयार हो जायेगा और कोई शहरी मर्द भी किसी देहातन की चूत लेने के लिये कुछ भी करेगा।
खुद मैं भी तो पढ़ी लिखी शहरी औरत होकर इन गैर-मज़हबी और देहाती मर्दों के लंड लेने के लिये अपनी इज़्ज़त और अपना सोशल-स्टेटस भुल गयी थी। जबकि हकीकत में, किसी भी सूरत में सब एक जैसे ही होते हैं… बस लिबास और ज़ुबान का फर्क होता है। वर्ना तो खुदा ने सभी को एक जैसा ही बनाया है। किसी ने ठीक फरमाया है कि अंधेरे में सभी बिल्लियाँ काली होती हैं।
खैर, मैंने टाँगेवाले की तरफ नज़र डाली जो आराम से चटाई पर लेटा हुआ हमारी तरफ देखते हुए अपना लंड सहला रहा था। लुंगी तो उसने मुझे चोदने से पहले ही उतार दी थी और उसी हालत में नंगा लेटा हुआ अपना लंड सहलाते हुए आराम से बीढ़ी पी रहा था।
उसने कहीं से ठर्रे का पव्वा निकाल लिया था और बोतल से ही मुँह लगा कर चुस्कियाँ लेते हुए बोला, “बहुत ज़ोर की मूत लगी है ओये राँड… मेरा मूत पीयेगी?” उसने इस तरह से कहा कि मैं घबरा गयी। “अपने भाइयों से चुदी है कभी… वैसे तेरे पड़ोसी तो रोज़ाना चोदते होंगे तुझे?”
मैं शर्मसार होते हुए थोड़े गुस्से से बोली, “छी… ऐसा कुछ नहीं है… ऐसे बोलोगे तो मैं टाँगे पर चली जाऊँगी!” लेकिन ये तो मैं ही जानती थी कि मेरी धमकी कितनी खोखली थी क्योंकि उनके लौड़ों से अपनी प्यास बुझाने के लिये तो उस वक्त मैं कितनी भी ज़िल्लत बर्दाश्त करने को तैयार थी।
ढाबेवाला भी पीछे नहीं रहा और बोला, “अच्छा फिर तेरा ससुर या टाँगे पर बैठा देवर तो चोद ही देता होगा… क्यों है ना!”
“नहीं ऐसा कुछ नहीं है… देवर तो बिल्कुल लल्लू है… कईं बार कोशिश की है लेकिन वो नामुराद लिफ्ट ही नहीं लेता!” मैं भी नरम पड़ कर उनके साथ उस गुफ़्तगू में शामिल हो गयी। उन अजनबियों को ये सब बताते हुए मुझे बेहद अच्छा महसूस हुआ।
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टाँगेवाला बोला, “तू तो असली राँड है… अपने सगे देवर से चूत चुदवाना चाहती है… लाऊँ उसे उठा कर…. ससुर से तो मरवाती ही होगी ना?”
“नहीं… ये क्या कह रहे हो… छी! ससुर नहीं हैं और देवर को बुलाने की कोई जरूरत नहीं है… वैसे वो सगा देवर नहीं है!”
“ठीक है पर मूत तो पीयेगी ना? पहले किसी का मूत पीया है कभी?”
“तुम लोग मुझे इतना ज़लील क्यों कर रहे हो…? जो करना है जल्दी करो नहीं तो वो बुड्ढी भी जाग जायेगी!”
वैसे वो मुझे क्या ज़लील करते जब मैं खुद ही उन दो अजनबियों के सामने बगैर स्लिप के पतला सा झलकदार लहंगा और उँची पेन्सिल हील के सैंडल पहने करीब-करीब नंगी खड़ी थी और अपनी रज़ामंदी से उन्हें अपने जिस्म से खेलने की हर तरह की आज़ादी दे रखी थी।
मुझे मालूम था कि अब मैं उस मक़ाम तक आ गयी थी जहाँ से वापस मुड़ना मेरे बस में नहिं था। मेरे अंदर दबी हुई हवस और जिस्म की चुदासी आग ने मुझ पे इस हद तक अपना इख्तयार कर लिया था कि अब अपनी चूत की प्यास बुझाने के अलावा मुझे और कुछ होश नहीं था।
“साली मूत नहीं पीना तो दारू तो पी ले… शहरी राँड है तू… दारू तो तू पीती ही होगी… ले दो घूँट लगा ले!” टाँगेवाला बोतल मेरी तरफ पकड़ाते हुए बोला।
“नहीं… मैं ये ठर्रा नहीं पीती… अब तुम…” मैं मना करने लगी तो ढाबेवाला मेरी बात काटते हुए थोड़ा ज़ोर से बोला, “साली नखरा मत कर… अब विलायती दारू नहीं है यहाँ… हमारे साथ दो-चार घूँट देसी दारू पी लेगी तो मर नहीं जायेगी… मूत पीने से तो अच्छा ही है ना… बोल साली ठर्रा पीती है कि जबरदस्ती मूत पिलाऊँ तुझे अपना…!”
अब मेरे पास कोई रास्ता नहीं था। मैं चुप रही और ढाबेवाले ने अपने दोस्त के हाथ से बोतल ले कर मेरे होंठों से लगा दी। मैंने हिचकिचाते हुए अपने होंठ खोल दिये और उसने तीन-चार बड़े-बड़े घूँट मेरे हलक में डाल दिये।
जब वो देसी शराब मेरे हलक में लगी तो जलन और दम सा घुटने की वजह से मैं अपने सीने पे मुक्के मारते हुए लंबी साँसें भरने लगी। कुछ ही पलों में मुझे शराब का सुरूर और अपना सिर हल्का सा घूमता महसुस होने लगा। दर असल मुझे वो सुरूर बेहद खुशनुमा लगा और मैंने वो पव्वा अपने हाथों में ले लिये और धीरे-धीरे चुस्कियाँ लेने लगी।
ढाबेवाला ने इस दौरान मेरे लहंगे का नाड़ा खोल कर उसे मेरे जिस्म से जुदा कर दिया। अब मैं सिर्फ हाई हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी खड़ी देसी शराब की चुस्कियाँ ले रही थी और उसने मेरे जिस्म से चिपक कर मुझे बेरहमी से मसलना शुरू कर दिया था।
उसने अपनी धोती में से अपना लंड निकाल लिया था और उसे मेरी नंगी जाँघों पर रगड़ रहा था। ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ करते हुए मेरे मम्मों को चाटत चूसते हुए टाँगेवाले से बोला, “अरे यार तू क्या बैठा देख रहा है… आजा तू भी मज़ा कर ले… आ दोनों मिल कर इस शहरी मेम की चूत और गाँड को चोदते हैं!”
“अरे यार पहले तू तो पूरा मज़ा ले ले… तब तक मैं भी तुझे मज़े लेते देख कर थोड़ा गरम हो जाता हूँ… फिर दोनों मिलकर इसे साथ-साथ चोदेंगे… वैसे इसकी चूत के साथ इस राँड को भी पानी-पानी कर दिया है… साली दारू पी कर मस्त हो गयी है!” और फिर अपने लतीफे पे खुद ही हंसने लगा।
“मैं इसकी गाँड में अपना गरम लौड़ा डाल कर इसकी गाँड मारूँगा और तू इसकी चूत का भोंसड़ा बनाना!”
मैं उस लम्हे के बारे में सोचने लगी जब दो बड़े-बड़े लंड एक ही वक्त में मेरे दोनों छेदों में एक साथ चोदेंगे। ये ख्याल आते ही मेरे जिस्म में सनसनाहट भरी लहरें दौड़ने लगी। ढाबेवाले ने दो उंगलियाँ मेरी चूत में घुसेड़ दीं और मेरी चूत को उंगलियों से चोदने लगा। हर गुज़रते लम्हे के साथ वो बेकाबू सा होता जा रहा था।
मैंने उससे कहा, “हाय मादरचोद… थोड़ा धीरे-धीरे उंगली घुसा… इतनी जल्दी क्या है… आज की पूरी रात मैं तुम दोनों की ही हूँ… चाहे जैसे मुझे चोदना… मैं एतराज़ नहीं करुँगी… थोड़ा प्यार से सब करेगा तो तुझे भी मज़ा आयेगा और मुझे भी!”
लेकिन उसने तो जैसे कुछ सुना ही नहीं और पहले जैसे ही मेरी चूत बेरहमी से अपनी उंगलियों से चोदना ज़ारी रखा। दरवाज़े पर अचानक ज़ोर से दस्तक हुई और किसी ने ढाबेवाले को आवाज़ दी। इस तरह अचानक किसी के आने से मैं हैरान हो गयी और ढाबेवाले से पूछा रात को इस वक्त उसे कौन बुला रहा है।
वो बोला कि शायद चाय पीने के लिये कोई गाहक आया होगा। उसने अपनी धोती ठीक की और मुझे ज़रा इंतज़ार करने को बोला। फिर जाकर उसने थोड़ा सा दरवाजा खोला और अपने गाहक से पूछा कि उसे क्या चाहिये। ढाबेवाला का अंदाज़ा सही था।
बाहर दो लोग खड़े थे और उन्हें चाय ही चाहिये थी। ढाबेवाले ने साफ मना कर दिया कि ढाबा बंद हो चुका है और इस वक्त उन्हें चाय नहीं मिल सकती। लेकिन वो उससे बार-बार इल्तज़ा करने लगे कि बाहर ठंड-सी हो रही है और चाय के लिये आसपस और कोई दुकान भी नहीं है।
अचानक टाँगेवाला जो ये सब सुन रहा था, उसने अपने दोस्त को अंदर बुलाया और उसे धीरे से कुछ कहा जो मैं सुन नहीं सकी। मैं तो वैसे भी अपने मज़े में इस बे-वक्त खलल पड़ने से बेहद झल्ला गयी थी और पव्वे में बचे हुए ठर्रे की चुस्कियाँ ले रही थी।
टाँगेवाले की बात सुनकर वो ढाबेवाला फिर बाहर गया और अपने गाहकों से बोला कि जब तक उसकी बीवी चाय बनाती है वो लोग कुछ देर इंतज़ार करें। मैं हैरान थी कि ये उसकी बीवी कहाँ से आ गयी लेकिन तभी जब टाँगेवाले ने मुझे उन बेचारे गाहकों के लिये चाय बनाने को कहा तो मैं समझी।
मैं ये करने के लिये तैयार तो नहीं थी और मुझे देसी शराब की खुमारी भी अब पहले जयादा हो गयी थी लेकिन मुझे मालूम था कि उसकी बात मानने के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं था। मैंने शराब के पव्वे को खाली करते हुए आखिरी घूँट पीया और पहनने के लिये अपनी चोली उठायी.
लेकिन टाँगेवाले ने इशारे से मुझे वो चोली पहनने को रोकते हुए सिर्फ लहंगा और चुनरी पहन कर बाहर जाके चाय बनाने को कहा। पहले मैंने ज़रा सी हिचकिचाहट ज़ाहिर की लेकिन दो-दो लौड़ों से मस्ती भरी चुदाई का मंज़र दिखा कर टाँगेवाले ने मुझे राज़ी कर लिया। वैसे भी मेरे लिये तो अपने जिस्म की नुमाईश का ये बेहतरीन मौका था।
मैं तो बस इसलिये नराज़ थी कि वो दो कमीने इस वक्त कहाँ से अचानक टपक पड़े थे और मेरा सारा मज़ा किरकिरा हो गया था। खैर मुस्कुराते हुए मैंने बगैर स्लिप (पेटीकोट) के ही अपना झलकदार लहंगा पहना और उससे भी ज्यादा झलकदार चुनरी से अपने मम्मे ढके। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
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इतने में ढाबेवाला कमरे में वापस आ गया और मैं वैसे ही बाहर बैठे उन दो कमीनों के लिये चाय बनाने बाहर निकली। वैसे मैं नशे में बहुत ज्यादा धुत्त तो नहीं थी लेकिन फिर भी इतनी मदहोश तो थी ही कि हाई हील के सैंडलों में मुझे अपने कदम थोड़े डगमगाते से महसूस हो रहे थे।
जैसे ही मैंने कदम बाहर रखे, उन दोनों की हैरान नज़रें मेरे मम्मों पर जम गयी। उन दोनों ने भी शायद इस दूर-दराज़ गाँव के सुनसान इलाके में दिलकश औरत के इतने शादाब और सैक्सी नंगे जिस्म के नज़ारे की उम्मीद नहीं की होगी। मैं करीब-करीब नंगी ही तो थी।
मैंने देखा कि उनमें से एक तो सत्रह-अठारह साल का बच्चा ही था और दूसरा लड़का भी इक्कीस बाइस साल से ज्यादा उम्र का नहीं था। दोनों शायद या तो भाई या फिर दोस्त होंगे। उनकी मोटर-बाइक भी हमारे टाँगे के करीब ही खड़ी थी।
मुझे देखते ही मेरी और मेरे मम्मों की तरफ इशारा करते हुए वो दोनों कुछ खुसर-फुसर करने लगे। जब मैंने अपने मम्मों की तरफ देखा तो मेरी बारीक सी चुनरी में से मेरे मम्मे और निप्पल साफ नज़र आ रहे थे जिन्हे देख कर उनकी पैंटों में तंबू खड़े हो गये।
अपनी मस्ती-भरी हालत उनसे छिपायी नहीं जा रही थी और उनकी पैंटों में जवान लौड़े शान से खड़े हुए नज़र आ रहे थे। जब बड़े वाले लड़के ने मुझे उसके लंड के तंबू को घूरते हुए देखा तो पैंट के ऊपर से अपना लंड मसलने लगा और अपने दोस्त के कान में कुछ बोला।
शायद यही कह रहा होगा कि “देख इस राँड को… कैसे बेहयाई से अपने मम्मे दिखा रही है और फिर हमारे खड़े हो रहे लौड़ों को देख कर खुश हो रही है…!” मैं वहाँ उनके सामने खड़ी इस तरह चाय बनाने लगी जैसे कुछ हुआ ही ना हो।
“वैसे साली इस इलाके की गाँव की नहीं लगती… मेक-अप और पहनावे से तो शहरी मेम लग रही है और ऐसे लहंगे और ऊँची ऐड़ी वाली सैंडल तो शहरी औरतें ही पहनती हैं!” उनमें से छोटा वाला लड़का मेरे पैरों की तरफ इशारा करते हुए बोला।
जिस तरह से मैंने उनके लौड़ों के तम्बुओं को घूरते हुए देखा था उससे शायद उनकी हिम्मत बढ़ गयी थी और वो खुल कर बातें करने लगे थे। मेरे जिस्म का खुला जलवा देख कर बड़ा वाला कुछ ज्यादा ही गरम होता नज़र आ रहा था.
और अपने दोस्त से इस बार ज़रा ऊँची आवाज़ में बोला, “शहर की हो या गाँव की… पर देख तो इस औरत के मम्मे… आहहहह साले कितने मोटे-मोटे हैं… इस ढाबेवाले की तो ऐश होगी… रात भर इन्हें ही दबाता रहता होगा… हाय काश ये एक बार मुझे भी दबाने को मिल जायें तो मज़ा आ जायेगा यार!”
टाँगेवाले के कहने पर इस हद तक अपने जिस्म की नुमाईश करने में पहले मैं जो हिचकिचा रही थी अब इसमें बेहद मज़ा आ रहा था। उस लड़के की बात का जवाब देते हुए मैं फर्ज़ी गुस्से से बोली, “तुम लोग अपने-अपने घर जाकर अपनी माँ-बहनों के मम्मे क्यों नहीं देखते… उनके तो हो सकता है कि मेरे से भी बड़े हों!” मेरा जवाब सुनकर वो दोनों चुप हो गये और उसके आगे कुछ नहीं बोले।
जब चाय तैयार हो गयी तो मैंने दो गिलासों में चाय भरी और उन्हें देने के लिये उनके करीब गयी।छोटा वाला लड़का मेरे मम्मों की तरफ देखते हुए मुझसे बोला, “क्यों भाभीजी! चाय में दूध तो पूरा डाला है ना?” और अपने दोस्त की तरफ देख कर आँख मार दी। उसका दोस्त भी कमीनेपन से मुस्कुरा दिया।
मैंने अदा से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “सब कुछ पूरा डाला दिया है मैंने… लेकिन अगर चाय में फिर भी कुछ बाकी हो तो बोल देना, वो और भी डल दूँगी!”
फिर मैं वहाँ से हट कर वापस स्टोव के पास जाकर खड़ी हो गयी। मैंने नोटिस किया कि उन लड़कों की नज़रें मेरा ही पीछा कर रही थीं। ऐसा लग रहा था कि ऊपर वाले ने उनकी खुशकिस्मती से अचानक जो ये हसीन मौका उन्हें बख्शा था उसका ये दोनों लड़के पूरी हद तक फायदा उठाना चाहते थे।
अपनी हवस भरी नज़रों से दोनों मेरे खुबसूरत और हसीन जिस्म का मज़ा ले रहे थे। उनकी नज़रें खासतौर पे मेरे मम्मों और मेरी गाँड पे चिपकी हुई थीं। बगैर पेटिकोट के उस जालीदार लहंगे में से यकीनन मेरी टाँगें और मोटी गाँड उन्हें साफ नज़र आ रही थी।
उनमें से छोटा वाला फिर से बोला, “अरे भाभी जी… आपने चाय में चीनी तो बहुत थोड़ी डाली है… क्या चीनी और मिलेगी?”
मेरे खयाल से चाय में चीनी तो सही थी लेकिन किसी भी बहाने से वो दोनों मुझे अपने करीब बुलाना चाहते थे जिससे उन्हें मेरे मम्मों का बेहतर नज़ारा मिल सके। बहरहाल मैं फिर भी चीनी लेकर उनके करीब गयी उनकी चाय के गिलासों में चीनी डालने के लिये झुकी।
जैसे ही मैं झुकी वैसे ही चुनरी मेरे कंधे से फिसल गयी और मेरा एक मम्मा उनकी हवस भरी नज़रों के सामने पूरा नंगा हो गया। मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था और अचानक इस वाक़ये से मैं हैरान रह गयी लेकिन लड़कों के लिये तो अब बर्दाश्त से कुछ ज्यादा ही बाहर हो गया था।
उन दोनों ने खड़े हो कर अचानक मुझे दोनों तरफ से दबोच लिया। बड़ा लड़का जो पहले मेरे मम्मों की तारीफ कर रहा था, वो इस मौके का फायदा उठाते हुए मेरे मम्मों को मसलते हुए मेरे निप्पल मरोड़ने लगा। मैंने बचाव के लिये दिखावा करते हुए चिल्लाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मेरा मुँह बंद कर दिया था और अपने अरमान पूरे करने लगे।
मैं भी सिर्फ दिखावा ही कर रही थी क्योंकि हकीकत में तो मैं भी कहाँ उनकी गिरफ्त से छूटना चाहती थी। छोटे लड़के ने अपनी पैंट की ज़िप खोल कर अपना लंड बाहर निकाल लिया और पीछे से मेरे चूतड़ों पर रगड़ने लगा। नेट के लहंगे के ऊपर से अपनी गाँड पे उसके लंड का एहसास बेहद मज़ेदार था।
मेरे जिस्म में या यूँ कहूँ कि चूत में शोले भड़कने लगे। मैं नहीं जानती कि अंदर कमरे में से वो टाँगेवाला और ढाबेवाला ये नज़ारा देख रहे थे कि नहीं मगर मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि वो दोनों देख रहे हैं और ये खयाल मेरी मस्ती में और इज़ाफा कर रहा था कि मैं दो लड़कों के बीच जकड़ी हुई अपना जिस्म मसलवा रही हूँ और दो और मर्द मुझे ये सब करते देख रहे हैं।
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इस दौरान बड़े लड़के को मेरे मुँह से शराब की बदबू आ गयी और वो मेरे मम्मे मसलते हुए बोला, “वाह भाभी जी! आपने तो शराब पी रखी है… इसी लिये खुलकर जलवे दिखा रही थी।” उन कमीने ज़ालिम लड़कों से अपना जिस्म मसलवाते, चूसवाते, चटवाते हुए मेरी चुदास इस क़दर उबाल मारने लगी कि अब बीच में वापसी मुमकिन नहीं थी। मैं सब भुला कर ज़ोर से कराहने लगी।
मेरी चुनरी एक तरफ ज़मीन पर पड़ी थी और लहंगा कमर तक उठा हुआ था। वो दोनों पूरी शिद्दत से मेरे मम्मे और गाँड मसलने और चूमने में मसरूफ थे और उन दोनों के लौड़े मेरी चूत और चूतड़ों पर रगड़ रहे थे। तभी अंदर से हमें ढाबेवाले के ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ सुनायी दी, “अरे क्या तुम लोगों की चाय अभी तक पूरी नहीं हुई… क्या रात भर चाय ही पीते रहने का इरादा है… चलो जल्दी करो हमें भी सोना है!”
ये सुनकर दोनों लड़के घबरा गये और बेहद बेमन से मेरे जिस्म से अलग हुए। उनके चेहरों से साफ ज़ाहिर था कि अगर थोड़ा वक्त उन्हें और मिलता तो यकीनन मुझे वहीं खड़े-खड़े चोद देते। ज़रा सी देर में मेरा मज़ा दूसरी दफा किरकिरा रह गया।
पहले जब ढाबेवाला मेरे जिस्म में आग भड़का रहा था तो ये दोनों नामकूल लड़के अचानक टपक पड़े थे और अब इन लड़कों के साथ जब मेरी मस्ती परवान चढ़ रही थी तो ढाबेवाले ने खलल डाल दिया। बहरहाल मैं भी उन लड़कों से बोली, “अरे तुम लोग भी अजीब हो… ज़रा सा मज़ाक क्या कर लिया तुम लोग तो मेरे मम्मों और गाँड के पीछे ही पड़ गये… अब जल्दी दफ़ा हो जाओ यहाँ से… मेरा आदमी बाहर आ गया तो वो तुम्हारी हड्डी-पसली एक कर देगा!”
ये सुनकर दोनों वहाँ से जल्दी से खिसक गये लेकिन मेरे जिस्म से अलग होने से पहले दोनों अपने लौड़ों का पानी निकालने में ज़रूर कामयाब हो गये। मेरे पीछे खड़े छोटे लड़के ने पीछे से मेरे लहंगे पर अपने लंड की पिचकारी छोड़ी और दूसरे ने आगे से अपने लंड की तमाम क्रीम की फुहारें मेरे पैरों और सैंडलों पर छिड़की।
उन लड़कों के जाने के बाद मैं कमरे में दाखिल हुई तो टाँगेवाला और उसका दोस्त बेसब्री से मेरा इंतज़ार करते हुए देसी शराब के एक नये पव्वे से ठर्रा पी रहे थे। मैंने देखा कि उनके लंड बिल्कुल तन कर खड़े हुए थे जिससे साफ ज़ाहिर था कि बाहर उन लड़कों के साथ मुझे मज़े करते हुए ये दोनों देख रहे थे।
मैंने देखा कि टाँगेवाला अपने तने हुए हलब्बी लंड पे कोई तेल लगा रहा था। जैसे ही उसने मुझे अंदर दाखिल होते देखा तो खुशामदीद करते हुए बोला, “आ मेरी शहरी राँड! तू तो इतनी बड़ी छिनाल निकली कि हमें भूल कर उन छोकरों के साथ ही चुदवाने को तैयार हो गयी… देख तेरी गाँड मारने के लिये मैं अपने लौड़े को तैयार कर रहा हूँ! आ जल्दी से मेरे इस प्यारे लौड़े को अपनी कसी हुई गाँड में लेकर अपना वादा पूरा कर मेरी जान!”
ढाबेवाला भी बोला, “और मेरा लंड भी देख कैसे तेरे मुँह में जाने के लिये तरस रहा है… देख कैसे इसके मुँह में से लार टपक रही है! साली कुत्तिया राँड… उन दोनों छोकरों के लौड़ों का रस निकालने से बाज़ नहीं आयी तू!” उसका इशारा मेरे लहंगे पे पीछे गाँड के ऊपर और मेरे पैरों और सैंडलों पे लगा उन लड़कों के लौड़ों के रस की तरफ था।
मैंने देखा कि इन दोनों के लौड़े अब तक खतरनाक शक्ल इख्तियार कर चूके थे और ये दोनों अपने अज़ीम लौड़ों से जमकर मेरी चूत रौंद कर चोदने को तैयार थे। उन्हें और उकसाने के लिये मैंने ठर्रे का आधा भरा पव्वा उठाया और होंठों से लगा कर गटागट सारी शराब पी गयी.
और फिर भर्रायी आवाज़ में बोली, “अरे मेरे दिलबरों… मादरचोदों… तुम्हारे लंड रेडी हैं तो देखो मेरी भी चूत तुम्हारे लंड खाने को कैसे मुँह खोले तैयार है… मैं भी पूरी मस्ती में हूँ… बोलो कैसे लोगे मेरी चूत और गाँड? एक साथ या बरी-बारी से!”
“साली कुत्तिया! अब तो जो भी करेंगे साथ-साथ ही करेंगे! तीनों मिलकर तिकड़ी-चुदाई करेंगे!” टाँगेवाला बोला।
मैं तो खुद बेहद शौक से उनकी ये बात मानने को रज़ामंद थी। इस वक्त देसी शराब का नशा भी परवान चढ़ चुका था और बेहद मखमूर और मस्ती के आलम में थी लेकिन पूरी तरह मदहोश या बेखबर भी नहीं हुई थी। मैंने अपना लहंगा और चुनरी उतार कर एक तरफ फेंक दिये और सिर्फ ऊँची पेंसिल हील के सैंडल पहने, अपने चूतड़ों पे हाथ रखे हुए नशे में झूमती हुई खड़ी हो गयी।
टाँगेवाला बोला, “ले पहले तू मेरे यार का लंड चूस!”
मैं अपने घुटने ज़मीन पर टिका कर ढाबेवाले के सामने कुत्तिया की तरह झुक गयी और उसका फड़कता हुआ लंड अपने मुँह में लिया। तभी मुझे एहसास हुआ कि टाँगेवाले ने मेरे पीछे से आकर मेरे चूतड़ हाथों में जकड़ कर मसलने शुरू कर दिये।
उस वक्त मेरे मुँह में ढाबेवाले का लंड भरा होने की वजह से मैं इस दो तरफा हमले पे कोई एतराज़ नहीं कर सकती थी और वैसे भी मुझे कोई एतराज़ था भी नहीं। मेरे चूतड़ मसलते हुए टाँगेवाला मेरी गाँड का छेद भी रगड़ने लगा. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
और खुद से ही बड़बड़ाने लगा, “आहह हाऽऽऽ आज तो कुँवारी गाँड मारने को मिली है… हाय तेरी गाँड का छेद कितना कसा हुआ है तेरा आदमी तो पूरा ही चूतिया है… साला हिजड़ा… जिसने आज तक ऐसी मस्त और कसी हुई गाँड नहीं मारी… ऊऊऊममम क्या चूतड़ हैं तेरे… इनमें तो मुँह मार कर सारा दिन और रात तेरी इस मस्त अनचुदी भूरी गाँड को मैं चूसता रहूँ… ऊपअफ़फ़ क्या नरम गोलाइयाँ हैं… एक-एक चूतड़ को खा जाने का मन करता है!”
टाँगेवाला अपने बड़े हाथों से बेहद बेरहमी से मेरे हर एक चूतड़ को दबाते हुए मसल रहा था। फिर दोनों चूतड़ फैला कर अलग कर के वो अपनी ज़ुबान मेरी गाँड के छेद पर फिराते हुए अंदर घुसेड़ने की कोशिश करने लगा और अपने होंठ गाँद के छेद पर कसके चिपकाते हुए शिद्दत से चूसने लगा जैसे कि उसकी जान उसपे टिकी हो।
इस वहशियाना चुसाई के बेरहम हमले का असर सीधे मेरी रस बहाती हुई चूत पर हो रहा था। उधर ढाबेवाला चींख रहा था, “हाय मेरे दोस्त! इस राँड का मुँह इतना गरम है कि लगता है कि इसकी चूत में ही लंड पेल रहा हूँ… हाय इसकी चूत कितनी गरम होगी… हायऽऽऽ आज तो मज़ा आ जायेगा! चूस साली कुत्तिया… तुझे तो मैं गालियाँ दे-दे कर… तेरे दोनों मम्मे खींच-खींच कर चोदुँगा… साली बापचुदी कुत्तिया… उफ़फ़फ़… हाय मेरी जान ज़रा मुँह और खोल ना… साली तेरी छतियों को चोदूँ!
मैं कुछ बोले बगैर उनकी मर्ज़ी के हिसाब से उन्हें अपने जिस्म से खेलने दे रही थी। दरअसल एक साथ दो-दो मर्दों के लौड़ों अपने हुस्न की गिरफ्त में करके बेहद अच्छा लग रहा था और कुछ भी बोलकर मैं उनसे मिलने वाला मज़ा किरकिरा नहीं करना चाहती थी।
ढाबेवाले का सब्र अब खत्म होने लगा था और वो अपना लंड जल्द से जल्द मेरी चूत में घुसेड़ने की तलब में मुझसे चटाई पर लेटने को बोला ताकि वो मुझे चोद सके। लेकिन टाँगेवाला मेरी गाँड छोड़ने को तैयार नहीं था इसलिये उन्होंने फैसला किया कि ढाबेवाला मेरे नीचे लेट कर नीचे से मेरी चूत में लंड चोदेगा और टाँगेवाला पीछे से मेरी सवारी करते हुए मेरी गाँड मारेगा।
मैं तो खुद कब से उनके लौड़े एक साथ अपनी चूत और गाँड में लेने की आरज़ू कर रही थी लेकिन फिर भी मैं उन्हें तड़पाने के लिये झूठा नखरा करते हुए बोली, “अरे तुम दोनों एक साथ करोगे तो मेरी चूत और गाँड दोनों फट जायेंगी… इसलिये प्लीज़ एक-एक करके मेरे साथ मज़े लो… पर एक साथ मत चोदो… नहीं तो मैं मर जाऊँगी!
“चुप साली… छोड़ ये सब मरने-जीने की बातें… तुझे तो दो क्या एक साथ चार-चार आदमी भी चोदें तो भी तेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला… पहले दर्जे की राँड है तू तो… अपने शौहर के सामने ही दूसरे मर्दों से सारी-सारी रात चुदवाती होगी तू तो… इसलिये तू चिंता मत कर… और वैसे भी हम तुझे इतने प्यार से चोदेंगे कि तुझे कुछ भी पता नहीं चलेगा… चल जल्दी से मेरे दोस्त के ऊपर कुत्तिया के जैसी हो जा… फिर देख तुझे कितना मज़ा आता है… और वैसे भी तूने वादा किया है कि हम दोनों दोस्तों को एक साथ मज़ा करायेगी!”
मैं मुस्कुराते हुए अदा से बोली, “वादा तो किया था पर मुझे क्या खबर थी कि तेरे साथ-साथ तेरे दोस्त का लौड़ा भी घोड़े के जैसा है और फिर तुम तो मुझे भले ही प्यार से चोदोगे पर अपने इन लौड़ों के साइज़ का क्या करोगे… ये तो इतने ही बड़े ही रहेंगे ना… इन्हें तो छोटा नहीं कर सकते हो!”
मैं शराब के नशे में मदमस्त थी और मेरा सिर घूम रहा था और आवाज़ भी ऊँची होने के साथ ज़रा लड़खड़ा रही थी। मुझे नखरा करते देख ढाबेवाला बेहद गुस्सा हो गया क्योंकि वो मेरी चूत चोदने के लिये बेकरार हो रहा था.
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और बोला, “साली कुत्तिया छिनाल… बहन की लौड़ी… अब क्यों नखरे कर रही है… बड़ा लंड चाहिये था तभी तो हमारे से चुदवाने को आयी है… छोटा लंड चाहिया था तो अपने मरद से ही चुदवाना था… हमारे पास क्यों आयी है अपनी माँ चुदाने के लिये? अभी पाँच मिनट पहले तो दारू पी कर बहुत उड़ रही थी कि एक साथ मेरी चूत और गाँड मारोगे या बारी-बारी से… अब क्या हो गया छिनाल… नशा उतर गया तो और दारू दूँ… चल जल्दी से चुदाने को तैयार हो जा नहीं तो अभी ये घोड़े का चाबुक तेरे भोंसड़े में घुसेड़ दूँगा… साली खड़े लंड पर नखरा कर रही है!”
ऐसा कह कर ढाबेवाले ने खड़े होकर गुस्से में टाँगेवाले का चाबुक उठा लिया। मुझे लगा कि अब अगर मैंने और नखरा किया तो वो अपनी धमकी पे अमल करने से बाज़ नहीं आयेगा। मैं कुत्तिया की तरह झुक गयी और मुस्कुरा कर आँख मारते हुए उसे अपनी चूत पेश करते हुए बोली, “तू तो नाराज़ हो गया… ले मादरचोद इतनी आग लगी तो है पहले तू ही चोद ले…!”
ढाबेवाले ने एक पल भी ज़ाया नहीं किया और अपना हलब्बी लौड़ा पीछे से मेरी चूत में घुसेड़ कर अंदर तक चोदने लगा। आगे झुक कर मेरे दोनों मम्मों को पकड़ते हुए वो मुझे अपने हर धक्के के साथ पीछे खींचने लगा। उसका लंड मेरी चूत में बच्चेदानी तक ठोक रहा था।
पहले मैं टाँगेवाले के अज़ीम लौड़े से चुदवा चुकी थी इसलिये अब ढाबेवाले का हलब्बी लौड़ा लेने में आसानी हो रही थी। उसने ज़ोर-ज़ोर से लंबे-लंबे धक्के मारने शुरू कर दिये। ऐसा लग रहा था जैसे कि वो अपनी गोटियों का सारा माल जल्दी से जल्दी मेरी चूत में निकालने के लिये बेकरार था। इतने में टाँगेवाला मेरे सामने आया और अपना लौड़ा मुझे पेश कर दिया। मैंने मुँह खोल कर जितना मुमकिन हो सकता था उतना लंड अपने हलक तक ले लिया और चूसने लगी।
“साली तुम शहरी औरतें जितनी मस्त होती हो उतना ही नखरा भी करती हो… पहले देसी दारू पीने को मना कर रही थी और फिर बाद में खुद ही शौक से गटागट इतनी दारू पी गयी… अब देख जब हम दोनों एक साथ चोदेंगे तो तू ही मज़े से चुदवायेगी गाँड और चूत एक साथ… मैं तो कहता हूँ एक बार मूत पी कर भी देख ले… उसका भी चस्का लग जायेगा तुझे!”
मेरे खयाल में उस टाँगेवाला का लंड चूसना उस रात की सबसे खास और बेहतरीन चीज़ थी। उसका लौड़ा इतना बड़ा होने के साथ-साथ इस कदर प्यारा और लज़ीज़ था कि कोई भी चुदासी औरत अपनी तमाम ज़िंदगी उस नौ इंच के गोश्त को चूसते और उससे चुदते हुए गुज़ार सकती थी।
टाँगेवाला कराहने लगा, “हाँ चूस इसे साली राँड साली बापचुदी… और ज़ोर से चूस फिर तुझे सारी ज़िंदगी ऐसा लौड़ा चूसने को नहीं मिलेगा! इसे ऐसे ही प्यार से चूसेगी तो मैं भी तेरी गाँड प्यार से मारूँगा आआहहहऽऽऽऽ हाऽऽऽय… और चूस साली राँड… तेरी माँ के भोंसड़े में घोड़े का लंड… आआआऽऽऽऽ!” किसी बेइंतेहा चुदासी कुत्तिया की तरह मैं दीवानगी और वहशियानेपन से उसका लंड चूस रही थी।
करीब पाँच मिनट मुझसे लंड चुसवाने के बाद टाँगेवाला बोला, “बड़ी मादरचोद औरत है तू साली… क्या लौड़ा चूसती है… तेरे बाप ने तुझे सिखाया होगा… क्यों… चल अब मेरा लंड छोड़… इसे तेरी गाँड में घुसाने का वक्त आ गया है!” ये कहते हुए वो अपना लंड मेरे मुँह में से निकाल कर मेरे पीछे की तरफ चला गया।
टाँगेवाला बोला, “अबे साले… अभी तक इसकी ले ही रहा है… फाड़ दे साली की चूत… चल हट… अभी तक मैं होता तो इसकी चूत और गाँड दोनों एक हो जाते… चल हट… राँड के नीचे लेट और नीचे से चूत मार इसकी… बहुत प्यार आ रहा है इस गुदमरानी पर… अरे मैं सब जानता हूँ… इस जैसी औरत का तो एक आदमी से काम नहीं चलने वाला…
ऊपफ गाँड देखी ना तूने इसकी और इसकी चूत… अभी भी लगता है कि भोंसड़ी की चूत कुँवारी ही है… इसका शौहर तो इसकी गुलामी करता होगा… इसकी सैंडल के तलवे चाटता होगा और खुद इसके लिये नये-नये मर्दों का इंतज़ाम करता होगा!” अब तक मुझे भी उनकी ये ज़लील बातें अच्छी लगने लगी थीं। मेरे बारे में ये सब ज़लील बातें बोलकर ये दोनों मुस्टंडे शायद अपनी खुद की मस्ती में इज़ाफा कर रहे थे।
“क्या कह रहा है… सच में?” ढाबेवाला मेरे नीचे लेटते हुए बोला और छोटे बच्चे की तरह मेरे मम्मे पकड़ कर फिर से चूसने लगा। मैंने उसके हलब्बी लौड़े पर बैठ कर उसे अपनी चूत में ले लिया। ज़रा वक्त तो लगा पर आहिस्ता से मैंने उसका तमाम लौड़ा चूत में ले लिया और उसके गोटे मुझे गाँड के करीब महसूस होने लगे।
टाँगेवाले ने पीछे से दो उंगलियाँ मेरी गाँड में घुसा दीं। उसकी दोनों उंगलियों को मेरी गाँड में घुसने में ज्यादा दिक्कत नहीं आयी। ये देख कर वो बेहद खुश हुआ और बोला, “देख साली कुत्तिया! अब तो तेरी गाँड भी लंड खाने के लिये तैयार हो गयी… ले अब संभाल मेरा मूसल अपनी गाँड में!”
ये कहते ही टाँगेवाले ने अपना लौड़ा मेरी गाँड में घुसा दिया। अपनी गाँड में उसके लंड के इस तरह ज़बरन घुसने का दर्द मुझसे बर्दाश्त ही नहीं हुआ और बहुत ज़ोर से चींखने की कोशिश की। लेकिन टाँगेवाले को शायद पहले से ही ये अंदाज़ा था कि मैं चीखुँगी इसलिये उसने अपना हाथ मेरे मुँह पे दबा कर उसे बंद कर रखा था।
मुझसे बिल्कुल रहा नहीं गया और मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। लेकिन मेरे आँसुओं और दर्द से बेखबर वो दोनों हरामज़ादे मुझे चोदने में लगे रहे। मुझे लगा जैसे दो गरम-गरम फौलादी डंडों ने मेरी चूत और गाँड एक साथ छेद दी हों।
ढाबेवाला नीचे से बेहद तेज़ रफ्तार से मुझे चोद रहा था और साथ में मेरे लटक रहे मम्मों को चूसते हुए बेरहमी से मसल रहा था और निप्पलों को खींच-खींच कर मरोड़ रहा था। ढाबेवाला मेरे मम्मे चूसते हुए बड़बड़ाने लगा, “हाय काश इन मम्मों में दूध होता तो मज़ा आ जाता… फिर तो आज चोदते-चोदते दूध भी पी लेता!”
ये सुनकर मैं बोली, “अरे भड़वे… दूध पीना था तो अपनी अम्मी के पास क्यों नहीं गया?”
टाँगेवाला बोला, “क्यों कुत्तिया… अब तेरा दर्द कहाँ गया… अब तो साली कुत्तिया तू मज़े ले-ले कर गाँड मरवा रही है!” तब मुझे एहसास हुआ कि मेरा दर्द गायब हो चुका था और मैं एक साथ अपनी चूत और गाँड में डबल धक्कों का मज़ा लेते हुए ज़ोर-ज़ोर से आहें भर रही थी।
थोड़ी देर के बाद मेरी चूत में ढाबेवाले के लंड की मलाई का इखराज शुरू हो गया और मस्ती में बोला, “आआआहहहऽऽऽ हाय… ले मेरा पानी पी ले राँड… हाआआऽऽऽय मैं तो गया… चल रंडी साली कुत्तिया… ले मेरा सारा पानी पी जा अपने भोंसड़े में… आहहाआऽऽऽऽ!” मेरी चूत में अपने लंड का पानी भरके ढाबेवाला फारिग हुआ और मेरे नीचे से खिसक कर अलग गया।
दूसरी तरफ टाँगेवाला अभी भी मेरे पीछे शिद्दत से डटा हुआ था। मेरी चूत में से ढाबेवाले की मलाई रिसते हुए टपक रही थी और टाँगेवाला मेरी गाँड मारते हुए अपनी एक उंगली मेरी रिसती चूत में घुसा कर उसमें उंगली करने लगा। ढाबेवाले के हलब्बी लंड से पहले ही मेरी चूत दो बार फारिग होकर अपना पानी छोड़ चुकी थी इसलिये टाँगेवाले के उंगली करने से चूत में जलन होने लगी थी।
टाँगेवाले को मैं अपनी चूत में से उंगली हटाने के लिये बोली, “अरे चूतिये… मेरी गाँड तो मार ही रहा ना… वो क्या कम है जो मेरी चूत में भी उंगली डाल रहा है… क्या एक ही रात में पूरा वसूल करना है… चल जल्दी से चूत में से उंगली निकाल वरना गाँड से भी हाथ धो बैठेगा!”
टाँगेवाला भी अब बुलंदी पर पहुँचने के करीब था और कुछ ही पलों में उसके लंड का माल मेरी चूत में इखराज़ हो गया। कम से कम आधा कप जितनी मलाई उसने मेरी गाँड में छोड़ी होगी। उसकी गाढ़ी मलाई से मुझे अपनी गाँड लबालब भरी हुई महसूस हो रही थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
अपनी तमाम मनि मेरी गाँड में इखराज़ करके वो चटाई पर बैठ गया। मैंने उसकी तरफ देखा तो बहुत थका हुआ नज़र आया। मैं भी थोड़ी देर वहीं लेट गयी। थोड़ी देर बाद टाँगेवाला मुझसे बोला, “मेमसाब! कैसा लगा आपको दो-दो लौड़ों से एक साथ चुदवा कर?”
उसका सवाल सुनकर मेरे होंठों पर मुस्कान आ गयी क्योंकि वो फिर मुझे इज़्ज़त से मेमसाब और आप कह कर बुला रहा था। मैं आह भरते हुए बोली, “सुभान अल्लाह! ऐसा मज़ा ज़िंदगी में कभी नहीं मिला था… मेरे शौहर तो कभी मुझे ऐसे चोद ही नहीं सकते… सच में मज़ा आ गया… चुदाई, गाँड-मराई और वो ठर्रा भी… अभी तक नशा बरकरार है…!”
फिर वो बोला, “तो फिर कब मिल रही हो हमें?”
मैंने कहा, “कभी नहीं! जो हुआ उसे एक हसीन ख्वाब समझ कर भुल जाओ… आज के बाद मैं तुम्हें कभी भी नहीं मिलुँगी… और कभी मिल भी गये तो दूर से ही सलाम… ठीक है ना?”
“ठीक है मेमसाब! आप कहती हैं तो आपकी बात तो माननी ही पड़ेगी… पर एक आखिरी इच्छा भी पूरी कर देती तो…?” वो बोला।
“अब भी कुछ बाकी रह गया है क्या… हर तरह से तो चोद दिया तुम दोनों ने मुझे… अब और क्या चाहते हो?” मैंने हंसते हुए कहा।
“वो क्या है कि आपके मुँह में मूतने की इच्छा बाकी रह गयी!” वो मेरे करीब आते हुए बोला।
ढाबेवाला भी ये सुनकर गुज़ारिश करते हुए बोला, “जी मेमसाब… हमारी ये इच्छा भी पूरी कर दो तो मज़ा आ जायेगा!”
“तुम दोनों फिर बकवास करने लगे… मैं नशे में ज़रूर हूँ पर इतना होश तो बाकी है मुझमें!” मैं झल्लाते हुए बोली।
“देखो आप फिर नखरा करने लगीं… एक बार चख कर तो देखो… अगर मज़ा ना आये तो मैं जबर्दस्ती नहीं करुँगा… पर कोशिश तो आपको करनी ही पड़ेगी… ऐसे तो हम आपको नहीं छोड़ेंगे…!” उसके नर्म लहज़े में थोड़ी सख्ती भी थी और मैं जानती थी कि ये दोनों अपनी मरज़ी पूरी करके ही मानेंगे और नशे की वजह से शायद मैं भी ज्यादा ही दिलेर हो रही थी।
मैंने सोचा कि दोनों ने मुझे चोद कर इतना मज़ा दिया और बेइंतेहा तस्कीन बख्शी है तो मेरा भी इतना फर्ज़ तो बनता ही है! वैसे कोशिश करने में हर्ज़ ही क्या है… क्या मालूम मुझे भी अच्छा ही लगे और थोड़ा सा पी कर देखुँगी… अगर अच्छा नहीं लगा तो इन्हें रोक दूँगी और सब थूक दूँगी!
ये सोच कर मैंने हिचकिचाते हुए मंज़ूरी दे दी, “ठीक है… पर जब मैं रुकने को कहूँ तो और ज़बर्दस्ती ना करना!” हैरानी की बात ये है कि हकीकत में मुझे ज़रा भी घिन्न या नफरत महसूस नहीं हो रही थी… बस ज़रा सी हिचकिचाहट थी।
“अरे आपको ज़रूर मज़ा आयेगा… ऐसा चस्का लग जायेगा कि आज के बाद रोज़-रोज़ अपना ही मूत पीने लगोगी…!” मेरी रज़ामंदी देख कर टाँगेवाला खुश होते हुए बोला और मेरे करीब आकर मेरे चेहरे के सामने खड़ा हो गया। अभी भी मैं बस ऊँची पेंसिल हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी फर्श पर बैठी हुई थी।
उसने अपना लंड मेरे होंठों पर रखा तो और मैंने उसका आधा-खड़ा लंड अपने मुँह में लिया जोकि अभी कुछ पल पहले ही मेरी गाँड में से निकला था। मैं उस गंदे लंड को शौक से लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी जो उसकि मनि और मेरी खुद की गलाज़त से सना हुआ था।
फिर उसने अपना लंड ज़रा पीछे खींच लिया जिससे अब सिर्फ उसका सुपाड़ा मेरे मुँह में था और उसने धीरे से गरम-गरम पेशाब की ज़रा सी धार छोड़ी। मैंने हिचकिचाते हुए उसे अपने मुँह में ही घुमाया तो उसका ज़ायका बुरा नहीं लगा और मैं उसे पी गयी। खट्टा सा और ज़रा सा कड़वा और तीखा ज़ायका था।
मैंने कोई एतराज़ नहीं किया तो टाँगेवाले ने इस दफा थोड़ा ज्यादा मूत मेरे मुँह में छोड़ा। मैंने एक बार फिर उसका मूत अपने मुँह में घुमा कर उसका ज़ायका लिया तो पिछली बार से ज्यादा बेहतर लगा। उसके बाद तो मैंने इशारे से उसे और मूतने को कहा और वो लगातार लेकिन धीरे-धीरे मेरे मुँह में अपने मूत की धार छोड़ने लगा और मैं खुशी से गटगट पीने लगी।
जब उसका मूतना बंद हुआ तो उसने लंड का सुपाड़ा मेरे मुँह से बाहर निकाल लिया। अपने हाथ के पीछे से अपने होंठ पोंछते हुए मैंने ढाबेवाले को अपने करीब आने को कहा, “अब तुझे क्या मूतने के लिये दावातनामा भेजूँ… चल आजा और करले अपनी ख्वाहिश पूरी!”
टाँगेवाला बोला, “देखा मेमसाहब! मैं जानता था कि आपको स्वाद बहुत अच्छा लगेगा! देखो कैसे गट-गट पी गयी और खुद ही मेरे दोस्त को भी अपने मुँह में मूतने के लिये बुला रही हो!”
मैं कुछ नहीं बोली, बस मुस्कुराते हुए उसे देख कर आँख मार दी। इतने में ढाबेवाला भी मेरे सामने खड़ा था। मैंने उसका लंड पकड़ कर अपने मुँह में अंदर लिया और चार-पाँच चुप्पे लगाये और फिर सिर्फ उसका सुपाड़ा अपने मुँह में लेकर उसपे अपने होंठ कस दिये।
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फिर अपनी नज़रें उठा कर उसके चेहरे की तरफ देखते हुए “ऊँहह” करके घुरघुरा कर उसे मूतने के लिये इशारा किया। ढाबेवाला अपने दोस्त की तरह मुहतात नहीं था और मेरे मुँह में तेज़ी से मूतने लगा। मैंने बेहद कोशिश की लेकिन मैं उतनी तेज़ी से उसका मूत पी नहीं पा रही थी और थोड़ा सा मूत मेरे होंठों के किनारों से बाहर मेरे जिस्म पर बहने लगा। ढाबेवाले का मूत पीने के बाद मैंने एक कपड़े से अपना जिस्म पोंछा और फिर अपने कपड़े पहने।
बाहर आकर देखा तो मेरी सास और देवर आभी भी आराम से गहरी नींद सो रहे थे, इस बात से बिल्कुल अंजान कि अंदर छोटे से कमरे में क्या गुल खिल रहे थे। ये देख कर मैं मुस्कराये बगैर ना रह सकी। खैर, ये पहली दफा मैंने अपने शौहर से बेवफाई करके किसी गैर-मर्द या कहो कि दो गैर-मर्दों से चुदवाया था। इसके बाद तो मेरे हौंसले बुलंद हो गये और और मैं इसी तरह अक्सर गैर-मर्दों से चुदवाने का सिलसिला शुरू हो गया और इन दो सालों में अब तक अस्सी-नब्बे लंड मेरी चूत और गाँड की सैर कर चुके हैं।