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दोस्त की कुंवारी भतीजी पर जवानी चढ़ गई

मई 29, 2024 by hamari

Young Girl Painful

मैं आपका दोस्त जन्मेजय आज अपनी जिन्दगी के कुछ हसीन पल आपके साथ बांटने आया हूँ। मुझे भगवान ने, खासतौर पर कामदेव ने भरपूर आशीर्वाद दिया है तभी तो मेरी जिन्दगी में कभी भी मस्ती की कमी नहीं आई। जब चाहा, जिसको चाहा उसको अपना बना लिया और चुदाई के भरपूर मजे लिए। Young Girl Painful

आज की कहानी उन हसीन पलों की है जब एक कमसिन कुंवारी चूत मेरे लंड को नसीब हुई। हुआ कुछ यूँ…. आज से करीब बारह साल पहले की बात है। मैं काम के सिलसिले में कानपुर गया हुआ था। काम तो एक दिन का ही था पर कानपुर एक बहुत ही खूबसूरत जगह है, घूमने का मन हुआ तो मैंने रात को रुकने का फैसला किया।

कानपुर में मेरे एक दोस्त नितेश का परिवार रहता था। नितेश के पिता जी, जिन्हें मैं ताऊ जी कहता था, वो अब नहीं रहे थे, पर ताई जी, उनका बड़ा बेटा नरेन्द्र अपने परिवार के साथ रहता था। नरेन्द्र के परिवार में नरेन्द्र की पत्नी अंजू, उनकी बेटी सृष्टि जो लगभग तब अठारह या उन्नीस साल की होगी और नरेन्द्र का बेटा अरुण जो बारह साल का था।

नितेश भी नरेन्द्र के साथ ही रहता था। मेरी नितेश के साथ बहुत अच्छी पटती थी क्यूंकि नितेश बचपन में कुछ साल हमारे पास ही रहा था। जब मैंने नितेश को बताया कि मैं कानपुर आ रहा हूँ तो वो ही मुझे जिद करके अपने साथ नरेन्द्र भाई के घर ले गया।

मैं सुबह ही कानपुर पहुँच गया था। नितेश का पूरा परिवार मुझे देख कर बहुत खुश हुआ। लगभग दो साल के बाद मैं उन सब से मिला था। तब घर पर सिर्फ ताई जी और अंजू भाभी ही थे। कुछ घर परिवार की बातें हुई और फिर मैं नितेश के साथ वो काम करने चला गया जिसके लिए मैं कानपुर आया था।

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दोपहर तक मेरा काम हो गया तो नितेश मुझे फिल्म दिखाने ले गया और फिर शाम को हम दोनों भाई के घर पहुंचे। नरेन्द्र भाई अभी तक नहीं आये थे। जब नितेश ने बेल बजाई तो सृष्टि ने दरवाजा खोला। मैं तो सृष्टि को देखता ही रह गया। दो साल पहले देखा था मैंने सृष्टि को। तब वो बिल्कुल बच्ची सी लगती थी।

पर आज देखा तो सृष्टि को देखता ही रह गया। सृष्टि ने एक टी-शर्ट और एक खुला सा पजामा पहना हुआ था। कहते हैं ना कमीने लोगों की नजर हमेशा आती लड़की के चूचों पर और जाती लड़की के चूतड़ों पर ही पड़ती है।

वैसा ही मेरे साथ भी हुआ, मेरी पहली नजर सृष्टि की उठी हुई छातियों पर पड़ी। बदन पर कसी टी-शर्ट में उसकी चूचियाँ अपनी बनावट को भरपूर बयाँ कर रही थी, एकदम किसी कश्मीरी सेब के आकार की खूबसूरत चूचियाँ देख कर मेरा तो दिल मचल गया।

तभी दिल के किसी कोने से एक दबी हुई सी आवाज आई ‘जन्मेजय यह तू क्या कर रहा है, वो तेरे दोस्त की भतीजी है।’ ऐसा ख्याल आते ही मैं कुछ देर के लिए संभला और नितेश के साथ उसके कमरे में जाकर लेट गया।

कुछ देर बाद सृष्टि ट्रे में दो गिलास पानी के लेकर नितेश के कमरे में आई, उस समय नितेश बाथरूम में था। जब वो मुझे पानी देने लगी तो एक बार फिर से मेरी नजर उसकी चूचियों पर अटक गई, मैंने पानी ले लिया और पीने लगा।

पानी पीने के बाद मैंने खाली गिलास सृष्टि की तरफ बढ़ा दिया। जब सृष्टि गिलास लेकर वापिस जाने लगी तो ना जाने कैसे मेरे मुँह से निकल गया- सृष्टि, तुम तो यार क़यामत हो गई हो… बहुत खूबसूरत लग रही हो!

सृष्टि ने पलट कर मेरी तरफ अजीब सी नजरों से देखा। एक बार तो मेरी फटी पर जब सृष्टि ने मुझे थोड़ा मुस्कुरा कर थैंक यु कहा तो मेरी तो जैसे बांछें खिल गई, मुझे लगा कि काम बन सकता है पर याद आ जाता कि ‘नहीं यार, कुछ भी हो, है तो मेरे खास दोस्त की भतीजी।’

रात को करीब नौ बजे नरेन्द्र भाई भी आ गए, फिर ड्राइंग रूम में बैठ कर सब बातें करने लगे। अंजू भाभी और सृष्टि रसोई में खाना बना रहे थे। जहाँ मैं बैठा था, वहाँ से रसोई के अन्दर का पूरा हिस्सा दिखता था। मैं अपनी जगह पर बैठा बैठा सृष्टि को ही ताड़ रहा था।

मैंने गौर किया की सृष्टि भी काम करते करते मुझे देख रही है। एक दो बार हम दोनों की नजरें भी मिली पर वो हर बार ऐसा दिखा रही थी कि जैसे वो अपने काम में व्यस्त है। एक दो बार मैंने अंजू भाभी के बदन का भी निरीक्षण किया तो वो भी कुछ कम नहीं थी।

कानपुर की आधुनिकता का असर साफ़ नजर आता था अंजू भाभी पर भी। रसोई में काम करते हुए उन्होंने भी एक टी-शर्ट और पजामा ही पहना हुआ था जिसमें उनके खरबूजे के साइज़ की मस्त चूचियाँ और बाहर को निकले हुए मस्त भारी भारी कूल्हे नुमाया हो रहे थे।

एक बार तो मन में आया कि अंजू भाभी ही मिल जाए क्यूंकि देवर भाभी का रिश्ता में तो ये सब चलता है। पर सृष्टि के होते भाभी का भरापूरा बदन भी मुझे फीका लग रहा था, बस बार बार नजर सृष्टि के खूबसूरत जवान बदन पर अटक जाती थी।

रात को लगभग साढ़े दस बजे सबने खाना खाया। खाना खाते समय सृष्टि मेरे बिल्कुल सामने बैठी थी। मैं तो उस समय भी उसकी खूबसूरती में ही खोया रहा। सृष्टि भी बार बार मुझे ‘चाचू.. चावल लो… चाचू सब्जी लो… चाचू ये लो… चाचू वो लो…’ कह कह कर खाना खिला रही थी।

जब भी वो ऐसा कहती तो मेरे अन्दर एक आवाज आती ‘ये सब छोड़ो, जो दो रसीले आम टी-शर्ट में छुपा रखे है उनको चखाओ तो बात बने।’ खाना खाया और फिर सोने की तैयारी शुरू हो गई। तभी सृष्टि ने नितेश को आइसक्रीम खाने चलने को बोला पर नितेश ने थका होने का बोल कर मना कर दिया।

अरुण और सृष्टि दोनों आइसक्रीम खाने जाना चाहते थे। जब नितेश नहीं माना तो नरेन्द्र भाई बोल पड़े- जन्मेजय, तुम चले जाओ बच्चों के साथ। तुम भी आइसक्रीम खा आना और साथ ही घूमना भी हो जाएगा। मैं तो पहले से ही इस मौके की तलाश में था, मैंने हाँ कर दी।

मैं और अरुण घर से बाहर निकल गये और थोड़ी ही देर में सृष्टि भी अपनी स्कूटी लेकर बाहर आ गई। मैं तो पैदल जाना चाहता था पर वो बोली- आइसक्रीम वाला थोड़ा दूर है तो स्कूटी पर जल्दी पहुँच जायेंगे। पर अब समस्या यह थी कि छोटी सी स्कूटी पर तीनों कैसे बैठें।

सृष्टि बोली- अरुण को आगे बैठा लो और तुम स्कूटी चलाओ, मैं पीछे बैठती हूँ।

अरुण भी इसके लिए राजी हो गया। मैंने अरुण को आगे बैठाया और तभी सृष्टि भी अपने पाँव दोनों तरफ करके मेरे पीछे बैठ गई। छोटी सी स्कूटी पर तीन लोग… सृष्टि मेरे पीछे बैठी तो अचानक मुझे उसकी मस्त चूचियों का एहसास अपनी कमर पर हुआ।

मेरे लंड महाराजा तो एहसास मात्र से हरकत में आ गये। थोड़ी दिक्कत तो हो रही थी पर फिर भी मैंने स्कूटी आगे बढ़ा दी। जैसे ही स्कूटी चली सृष्टि मुझ से चिपक कर बैठ गई, उसकी चूचियाँ मेरी कमर पर दब रही थी जिनका एहसास लिख कर बताना मुश्किल था।

तभी एक कार वाला हमारे बराबर से गुजरा तो मुझसे स्कूटी की ब्रेक दब गई। यही वो क्षण था जब सृष्टि ने मेरी कमर को अपनी बाहों के घेरे में लेकर जकड़ लिया। मेरा तो तन-बदन मस्त हो गया था… सृष्टि के स्पर्श से पहले ही चिंगारियाँ फ़ूट रही थी.

पर जब सृष्टि ने मुझे ऐसे पकड़ा तो आग एकदम से भड़क गई। अब सृष्टि की दोनों चूचियाँ मेरी कमर पर गड़ी जा रही थी। मैंने अचानक मेरा एक हाथ पीछे करके अपनी पीठ पर खुजाने का बहाना किया और यही वो समय था जब मेरा हाथ सृष्टि की चूची को छू गया।

‘क्या हुआ चाचू…’ कह कर सृष्टि थोड़ा पीछे हुई।

‘कुछ नहीं, पीठ पर कुछ चुभ रहा है… और थोड़ी खारिश सी हो रही है।’ कहकर मैं फिर से अपनी पीठ खुजाने लगा।

वैसे तो जब मैंने अपना हाथ दुबारा पीछे किया तो सृष्टि भी पीछे को हो गई थी पर स्कूटी पर ज्यादा जगह नहीं थी तो मेरा हाथ फिर से एक बार उसकी चूची पर पड़ा। तभी सड़क पर एक छोटा सा खड्डा आ गया और मैंने ब्रेक दबा दी जिससे सृष्टि भी आगे की तरफ आई और मेरा हाथ सृष्टि की चूची और मेरी पीठ के बीच में दब गया।

मैंने भी मौका देखा और सृष्टि की चूची को अपने हाथ में पकड़ कर हल्के से दबा दिया। ‘क्या करते हो चाचू…’ सृष्टि थोड़ा कसमसा कर पीछे को हुई, अब मैंने अपना हाथ आगे कर लिया। मैंने थोड़ा मुड़ कर पीछे सृष्टि की तरफ देखा तो उसके चेहरे पर शर्म भरी मुस्कान नजर आई।

तभी आगे मार्किट शुरू हो गई और हम एक आइसक्रीम पार्लर पर पहुँच गए और आइसक्रीम आर्डर कर दी। अरुण अपनी पसंद की आइसक्रीम देखने में व्यस्त था, मैं और सृष्टि अपनी स्कूटी के पास ही खड़े हो गए।

‘आप बड़े ख़राब है चाचू…’ सृष्टि ने थोड़ा शर्माते हुए कहा।

‘क्यों मैंने क्या किया?’

‘आपको सब पता है कि आपने क्या किया!’

‘अरे कुछ बताओ भी.. मैंने ऐसा क्या किया?’

‘आपने मेरी वो दबा दी…’ वो थोड़ा शर्माते हुए बोली।

उसके चेहरे की मुस्कान बयाँ कर रही थी कि आग ना सही पर चिंगारी तो उधर भी है।

‘अरे… वो क्या… कुछ बताओगी मुझे?’

‘छोड़ो… मुझे शर्म आती है।’

‘अब बता भी दो जल्दी.. नहीं तो अरुण आ जाएगा!’

‘ये…’ जब सृष्टि ने अपनी चुचियों की तरफ इशारा करके कहा तो मेरे तो लंड की हालत ही ख़राब हो गई।

‘तुम्हें अच्छा नहीं लगा…’ मैंने सृष्टि की आँखों में झांकते हुए पूछा.

तो वो बोली कुछ नहीं पर उसने जिस अदा से अपनी आँखें झुकाई, मैं तो बस जैसे उसी में खो गया। तभी अरुण आइसक्रीम लेकर आ गया और हम तीनों आइसक्रीम खाने लगे। आइसक्रीम खा कर मैंने काउंटर पर पैसे दिए और बचे हुए पैसे से एक चॉकलेट ले ली। जब मैं पैसे देकर वापिस आया तो अरुण वहाँ नहीं था, सृष्टि ने बताया कि वो कैंडी लेने गया है। मैंने भी मौका देखते हुए चॉकलेट सृष्टि की तरफ बढ़ा दी, उसने चॉकलेट ले ली और थैंक यू बोला।

‘बस थैंक यू…’ मैंने मुँह बनाते हुए कहा।

‘तो और क्या चाहिए आपको…?’ उसके इस जवाब से मैं मन ही मन सोचने लगा की कह दूँ कि मुझे तो तेरी जवानी का रस चाहिए पर कुछ झिझक सी थी।

उसने जब दुबारा यही सवाल किया तो मैंने पूछ लिया- जो मांगूंगा, दोगी?

उसने जब हाँ में सर हिलाया तो मेरे मुँह से ना जाने कैसे निकल गया- अगर मैं तुम्हें किस करना चाहूँ तो…?

पहले तो वो चौंक कर मेरी तरफ देखने लगी और फिर लापरवाह से अंदाज में बोली- कर लेना… किस लेने से क्या होता है..

‘पक्का… मुकर तो नहीं जाओगी?’

सृष्टि ने बड़ी अदा के साथ कहा- वो तो वक्त बताएगा।

मैं अभी कुछ बोलने ही वाला था कि अरुण आ गया, फिर हम घर की तरफ चल दिए। सृष्टि अब भी मुझ से अपनी चूचियाँ चिपका के ही बैठी थी। सृष्टि के साथ हुई बातचीत और सृष्टि के गुदाज मम्मो के स्पर्श ने मेरी पैंट के अन्दर हलचल मचा दी थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

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कुछ दूर चलने के बाद मैंने जानबूझ कर फिर से अपना एक हाथ अपनी पीठ की तरफ किया तो मेरा हाथ सृष्टि ने पकड़ लिया और खुद ही मेरी पीठ खुजाने लगी। मेरी हँसी छुट गई तो सृष्टि ने मेरी पीठ पर चुंटी काट ली।

मैंने अपना हाथ छुड़वाया और कुछ दूर चलने के बाद फिर से अपना हाथ पीठ की तरफ किया तो हाथ सीधा सृष्टि की चुचियों को स्पर्श करने लगा। सृष्टि के मन में भी शायद कुछ हलचल थी तभी तो उसने मेरा हाथ अपने चूचियों और मेरी पीठ के बीच में दबा दिया। मैं कुछ देर तो एक हाथ से स्कूटी चलाता रहा।

तभी अरुण बोला- चाचू, आप हैंडल छोड़ो.. मैं स्कूटी चलाता हूँ।

‘क्या तुम चला लेते हो?’

‘चला तो लेता हूँ पर दीदी मुझे चलाने ही नहीं देती।’ अरुण ने सृष्टि की शिकायत की।

मैंने अब स्कूटी का हैंडल अरुण के हाथ में दिया और फिर दोनों हाथ साइड में कर लिए। अरुण थोड़ा धीरे धीरे डर डर कर चला रहा था। अब मेरे दोनों हाथ फ्री थे। मैंने फिर से अपना बायाँ हाथ पीछे किया तो हाथ फिर से सृष्टि की चूची को छूने लगा।

इस बार सृष्टि ने मेरे हाथ से अपना शरीर दूर नहीं किया था। मैं अब धीरे धीरे सृष्टि की चूची को सहलाने लगा था। बीच बीच में कभी कभी हल्का हल्का दबा भी देता था। सृष्टि कुछ नहीं बोल रही थी बस उसने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया।

मैं समझ चुका था कि सृष्टि को अपनी चूचियों पर मेरे हाथ का स्पर्श अच्छा लग रहा है। जब अरुण ने अचानक ब्रेक मारी तो मेरी तन्द्रा भंग हुई, घर आ चुका था। हम स्कूटी से उतर गये, अरुण भाग कर घर के अन्दर चला गया और सृष्टि स्कूटी को उसकी जगह पर खड़ी करने लगी।

मैं तब सृष्टि के साथ ही था, वो बार बार मेरी तरफ ही देख रही थी, उसकी आँखों में एक अजीब सा नशा साफ़ नजर आ रहा था। जब वो स्कूटी को खड़ा करके मुड़ी तो मैं अपने आप पर कण्ट्रोल नहीं कर पाया और मैंने सृष्टि को अपनी बाहों में भर कर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।

सृष्टि थोड़ा कसमसाई और मुझे अपने से दूर करने लगी। मैं एक रसीले चुम्बन के बाद सृष्टि से अलग हुआ। सृष्टि शर्मा कर एकदम से घर के अन्दर भाग गई, मैं सृष्टि के रसीले होंठों की मिठास को महसूस करता हुआ कुछ देर वहीं खड़ा रहा और फिर मैं भी घर के अन्दर चला गया।

वक़्त लगभग साढ़े ग्यारह का हो रहा था, मैं नितेश के कमरे में गया तो वो सो चुका था, मैंने भी बैग में से लोअर निकाला और कपडे बदल लिए। बाथरूम में जाकर कुछ देर लंड को सहलाया और समझाया कि जल्द ही तुझे एक कुंवारी चूत का रस पीने को मिलेगा। जब लंड नहीं समझा तो उसको जोर जोर से मसलने लगा।

पांच मिनट बाद ही लंड के आँसू निकलने लगे और फिर वो शांत होकर अंडरवियर के अन्दर जाकर आराम करने लगा। बाथरूम से बाहर आकर जब मैं कमरे का दरवाजा बंद करने लगा तो मुझे टीवी चलने की आवाज सुनाई दी। जब मैं कमरे से बाहर आया तो देखा की अरुण और सृष्टि बैठे टीवी देख रहे थे, टीवी पर को मूवी चल रही थी, दोनों उसको देखने में व्यस्त थे।

‘अरे सोना नहीं है क्या तुम दोनों को?’ नरेन्द्र भाई की आवाज सुन कर मैं वापिस जाने लगा पर तभी मुझे सृष्टि की आवाज सुनाई दी.

‘पापा.. कल छुट्टी है हम दोनों की और मेरी मनपसंद मूवी आ रही है… प्लीज देखने दो ना..’

‘ठीक है पर ध्यान से टीवी बंद करके सो जाना… कभी पिछली बार की तरह टीवी खुला ही छोड़ कर सो जाओ!’

‘आप चिंता ना करो.. मैं बंद कर दूंगी.. पक्का!’

‘ओके गुड नाईट बेटा’ कह कर नरेन्द्र भाई अपने कमरे में चले गये और उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया।

नरेन्द्र भाई के जाते ही मेरा मन सृष्टि के पास बैठने का हुआ तो मैं भी कमरे से निकल कर सृष्टि के पास बैठ गया। मेरे और सृष्टि के बीच में अरुण बैठा था। सृष्टि ने मेरी तरफ देखा और फिर शर्मा कर अपनी आँखें झुका ली। उसकी आँखे झुकाने की अदा ने सीधा मेरे दिल पर असर किया।

सृष्टि और अरुण सोफे पर बैठे थे, ‘कहो ना प्यार है’ मूवी चल रही थी।

मेरे आने के बाद से सृष्टि मूवी कम और मुझे ज्यादा देख रही थी। कुछ कुछ यही हालत मेरी भी थी, हम दोनों के दिलो की धड़कन बढ़ चुकी थी पर अरुण के वहाँ रहते चुपचाप बैठे थे। ‘यार ये लाइट बंद कर दो ना… ऐसे टीवी देखने में मज़ा नहीं आ रहा है।’

मैंने जानबूझ कर अरुण से कहा तो वो उठ कर लाइट बंद करने चला गया। जैसे ही वो लाइट बंद करके वापिस आकर बैठने को हुआ तो मैंने उसको पानी लाने के लिए बोल दिया।

‘क्या चाचू… मूवी देखने दो ना… आप पानी दीदी से ले लो!’

सृष्टि ने थोड़ा गुस्से से उसको पानी लाने के लिए बोला तो वो झुँझलाता हुआ रसोई में गया और पानी की बोतल निकाल कर ले आया। इस दौरान मैं सृष्टि की तरफ खिसक गया, अरुण आया और आकर साइड में मेरी सीट पर बैठ गया। सृष्टि मेरी इस हरकत पर मुस्कुराई और फिर शर्मा कर नजरें टीवी की तरफ घुमा ली।

अरुण अब टीवी में ध्यान लगाए मूवी देख रहा था, मैंने मौका देखते हुए अपना एक हाथ सृष्टि के हाथ पर रख दिया। उसने अपना हाथ छुड़वाना चाहा पर मैंने पकड़े रखा। कुछ देर ऐसे ही उसके हाथ को सहलाता रहा और फिर थोड़ी सी हिम्मत करके मैंने वो हाथ सृष्टि की जांघों पर रख दिया।

सृष्टि ने मेरा हाथ वहाँ से हटाने की कोशिश की पर जितना वो हटाने की कोशिश करती मैं और जोर से उसकी जांघों को दबा देता। वो ज्यादा जोर भी नहीं लगा सकती थी क्यूंकि ऐसा करने से अरुण को शक हो जाता।

जब वो मेरा हाथ नहीं हटा पाई तो उसने अपना हाथ हटा लिया, मेरे लिए मैदान साफ़ था, मैंने धीरे धीरे सृष्टि की जांघों को सहलाना शुरू किया और हाथ को धीरे धीरे उसकी चूत की तरफ ले जाने लगा। अपनी जांघों पर मेरे हाथ के स्पर्श से सृष्टि मदहोश होने लगी थी।

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जब मैं उसकी जांघों को सहला रहा था, तभी मुझे अंदाजा हो गया की सृष्टि ने नीचे पेंटी नहीं पहनी हुई है। यह सोचते ही मेरे लंड ने फुंकारना शुरू कर दिया। जांघो को सहलाते सहलाते जब मैंने सृष्टि की चूत को छूने की कोशिश की तो सृष्टि ने अपनी जांघे भींच ली और मेरे हाथ को चूत पर जाने से रोक दिया।

मैंने बहुत कोशिश की पर कामयाब नहीं हो पाया। जबरदस्ती कर नहीं सकता था क्यूंकि अरुण वहाँ था। जब मैं चूत को नहीं छू पाया तो मैंने अपना हाथ सृष्टि की पेट की तरफ कर दिया और टी-शर्ट के नीचे से हाथ डाल कर उसके पेट पर घुमाने लगा। सृष्टि ने रोकने की कोशिश की पर बेकार…

अब मेरा हाथ सृष्टि के नंगे पेट पर आवारगी कर रहा था, मज़ा सृष्टि को भी आ रहा था। धीरे धीरे पेट को सहलाते हुए मेरा हाथ ऊपर सृष्टि की चूचियों की तरफ बढ़ रहा था और फिर सृष्टि की नंगी चूचियों का पहला स्पर्श मेरे हाथों को हुआ। सृष्टि की चूचियों पर भी छ पहले मर्द का हाथ था।

सृष्टि रोकने की कोशिश कर रही थी पर मुझ पर तो सृष्टि की जवानी का नशा चढ़ चुका था, मैं खुद पर कण्ट्रोल नहीं कर पा रहा था। अचानक सृष्टि ने अरुण को आवाज दी। अरुण का नाम सुनकर जैसे मैं नींद से जागा।

सृष्टि के गर्म अंजू शरीर से खेलते हुए मैं तो अरुण को बिल्कुल भूल ही गया था। सृष्टि की आवाज के साथ ही मेरी नजर भी अरुण की तरफ घूम गई। देखा तो अरुण सोफे की बाजू पर सर टिका कर सो रहा था। सृष्टि की आवाज सुनकर वो उठ गया।

‘अगर नींद आ रही है तो अन्दर दादी के पास जाकर सो जाओ…’ सृष्टि ने अरुण को कहा।

‘नहीं मुझे मूवी देखनी है!’

‘अरे जब नींद आ रही है तो जाके सो जाओ… मूवी तो फिर भी आ जायेगी।’ मैंने भी अरुण को भेजने के इरादे से कहा पर वो नहीं माना।

कुछ ही देर में अरुण फिर से सो गया तो मैंने अरुण को उठाया और उसको कमरे में भेज दिया। अब शायद अरुण को ज्यादा नींद आ रही थी, तभी तो वो बिना कुछ बोले ही उठ कर कमरे में चला गया। अरुण के जाते ही सारी रुकावट ख़त्म हो गई, मैंने तुरन्त सृष्टि का हाथ पकड़ा और उसको अपनी तरफ खिंच कर बाहों में भर लिया।

सृष्टि थोड़ा कसमसाई और उसने छूटने की कोशिश की पर मैं अब कण्ट्रोल नहीं कर सकता था, मैंने तुरन्त अपने होंठ सृष्टि के होंठो पर रख दिए। लगभग पांच मिनट तक मैं सृष्टि के होंठो को चूसता रहा, सृष्टि भी पूरा सहयोग कर रही थी, अब तो वो मेरी बाहों में सिमटती जा रही थी। मेरा एक हाथ उसकी टी-शर्ट के अन्दर जा चुका था और सृष्टि की तनी हुई चूचियों को सहला रहा था।

‘चाचू… यहाँ ये सब ठीक नहीं है… कोई अगर बाहर आ गया तो मुश्किल हो जायेगी!’

‘तो फिर कहाँ…???’

‘कोई कमरा तो खाली नहीं है…’ सृष्टि ने थोड़ी परेशान सी आवाज में कहा।

फिर थोड़ा सोच कर बोली- चाचू… छत पर चले… वहाँ कोई नहीं आएगा।

मैं तो उसकी जवानी का रसपान करने के लिए मरा जा रहा था तो मेरे मना करने का तो कोई मतलब ही नहीं था। मैंने उसको अपनी गोद में उठा लिया और छत की तरफ चल दिया। करीब साठ किलो की सृष्टि मुझे फूल जैसी हल्की लग रही थी। सीढ़ियों के पास जाकर सृष्टि ने मुझे नीचे उतारने के लिए कहा।

गोद से उतर कर वो पहले नरेन्द्र के कमरे के पास गई और देखा कि नरेन्द्र और अंजू भाभी सो चुके थे, फिर दादी के कमरे में देखा तो वो भी सो रहे थे। तब तक मैंने भी नितेश के कमरे में देखा तो नितेश भी खराटे मार रहा था।

सृष्टि वापिस सीढ़ियों के पास आ गई तो मैंने उसको वहीं सीढ़ियों पर ही पकड़ कर किस करना शुरू कर दिया और ऐसे ही किस करते करते हम दोनों छत पर पहुँच गए। छत पर खुले आसमान के नीचे हम दोनों आपस में प्यार करने में मग्न थे।

मैंने सृष्टि को अपने से अलग करके चारों तरफ देखा तो सब तरफ सुनसान था। रात के करीब एक बजे का समय था तब। वैसे तो सब घरों की छतें आपस में मिली हुई थी पर किसी भी छत पर कोई नजर नहीं आ रहा था।

शहरों में वैसे भी लोग खुली छतों पर सोना कम ही पसंद करते है। सृष्टि ने छत पर पड़ी एक चटाई को बिछाया और उस पर बैठ गई। क्यूंकि छत पर और कुछ था भी नहीं तो मैं भी चटाई पर ही सृष्टि के पास बैठ गया।

‘चाचू… वैसे जो हम कर रहे है वो ठीक नहीं है… आप मेरे चाचू है और…’ इस से ज्यादा वो कुछ बोल ही नहीं पाई क्यूंकि मैंने अपने होंठो से उसके होंठ बंद कर दिए थे।

कुछ देर उसके होंठ चूसने के बाद मैंने अपने होंठ हटाये और उसको बोला- सृष्टि… मुझे तुमसे प्यार हो गया है… और प्यार में सब जायज़ है… और फिर तुम भी तो मुझ से प्यार करने लगी हो…

‘हाँ चाचू… मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ… आप बहुत अच्छे है… मैं तो आपको अपने बचपन से ही बहुत पसंद करती हूँ।’

‘तो सब कुछ भूल कर सिर्फ प्यार करो…’ कहकर मैंने फिर से उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और एक हाथ से उसकी टी-शर्ट को ऊपर उठा कर उसकी एक चूची को बाहर निकाल लिया। चाँद की चांदनी में सृष्टि की गोरी गोरी चूची किसी मक्खन के गोले जैसी लग रही थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

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मैंने चुम्बन करते करते सृष्टि को लेटा दिया और खुद उसके बराबर में लेट कर उसकी चूची को मसलता रहा, होंठ और चेहरे को चूमते चूमते मैंने सृष्टि की कानों की लटकन को और उसके गले को चूमना शुरू कर दिया।

सृष्टि आँखें बंद किये आनन्द के सागर में गोते लगा रही थी, उसके बदन में मस्ती भरती जा रही थी, उसके हाथ मेरे सर पर मेरे बालों में घूम रहे थे और बीच बीच में मादक सिसकारी सी फ़ूट पड़ती थी सृष्टि के मुँह से।

कुछ देर बाद मैंने नीचे का रुख किया और अपने होंठ सृष्टि के दूध जैसे गोरे पेट पर रख दिए और सृष्टि के नाभि स्थल और आसपास के क्षेत्र को चूमने लगा। मेरे ऐसा करने से सृष्टि को गुदगुदी सी हो रही थी, तभी तो वो बीच बीच में मचल जाती थी।

मैंने अपने होंठों को ऊपर की तरफ सरकाया और उसकी चूची को चाटने लगा। अब मैंने उसकी दोनों तन कर खड़ी चूचियों को नंगी कर दिया, चूचियों को चाटते चाटते मैंने जब अपनी जीभ उसकी चूची के तन कर खड़े चूचुक पर घुमाई तो सृष्टि के पूरे शरीर में एक झुरझरी सी उठी और उसका बदन अकड़ गया।

मैं समझ गया था की मेरी जीभ का असर सृष्टि की चूत तक पहुँच गया है और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया है। और सच में था भी ऐसा ही। जब मैंने अपना एक हाथ उसके पजामे के ऊपर से ही उसकी चूत पर रखा तो पजामा चूत के पानी से इतना गीला हो चुका था कि लगता था जैसे सृष्टि ने पजामे में पेशाब कर दिया हो।

मैंने अपना हाथ सृष्टि के पजामे में घुसा दिया और ऊँगली से उसकी चूत के दाने को सहलाने लगा। सृष्टि मस्ती से बेहाल हो गई थी और मेरे सर को जोर से अपनी चूचियों पर दबा रही थी। मेरा लंड भी पजामे को फाड़ कर बाहर आने को मचल रहा था।

मैंने सृष्टि को बैठाया और पहले उसकी टी-शर्ट को उतारा और फिर सीधा लेटा कर उसके पजामे को भी उसके गोरे-गोरे बदन से अलग कर दिया। यही समय था जब पहली बार मैं उसकी कमसिन कुंवारी चूत को अपनी आँखों के सामने नंगी देखा था।

नर्म नर्म रोयेदार भूरी भूरी झांटों के बीच छोटी सी गुलाबी चूत… चूत देखते ही मेरे लंड ने तो जैसे बगावत कर दी। मैंने भी बिना देर किये अपने कपड़े उतार कर एक तरफ रख दिए और झुक कर सृष्टि की चूत को सूंघने लगा। एक मादक खुशबू से मेरे बदन में वासना की ज्वाला बुरी तरह से भड़क उठी थी।

मैंने बिना देर किये सृष्टि की गोरी गोरी जाँघों को चूमना और चाटना शुरू कर दिया। सृष्टि के मुँह से मादक सिसकारियाँ फूट रही थी। जाँघों को चूमते चूमते मैंने अपने होंठ सृष्टि की कुंवारी चूत पर रख दिए। मेरे होंठों के स्पर्श से एक बार फिर उत्तेजना के मारे सृष्टि की चूत ने पानी छोड़ दिया।

मैं ठहरा चूत का रसिया… मेरे लिए तो कुंवारी चूत का ये पानी अमृत समान था, मैं जीभ से सारा पानी चाट गया। चूत चाटते हुए मैंने सृष्टि का एक हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया। मेरे लंड की लम्बाई और मोटाई का अंदाजा लगते ही सृष्टि उठ कर बैठ गई। शायद अब से पहले उसको मेरे लंड की लम्बाई और मोटाई का एहसास ही नहीं था।

‘चाचू… ये तो बहुत बड़ा और मोटा है…’ सृष्टि ने हैरान होते हुए कहा।

‘तो तुम क्यों घबराती हो मेरी जान… ये तो तुम्हें प्यार करने की ख़ुशी में ऐसा हो गया है।’

‘प्लीज इसे मेरे अन्दर मत डालना… मैं नहीं सह पाऊँगी आपका ये!’

‘घबराओ मत… कुछ नहीं होगा…’

मैंने उसको समझाते हुए दुबारा लेटा दिया और लंड को उसके मुँह के पास करके फिर से उसकी चूत चाटने लगा। मैंने सृष्टि को लंड सहलाने और चूमने को कहा तो उसने डरते डरते मेरे लंड को अपने अंजू अंजू हाथों में पकड़ लिया और धीरे धीरे सहलाने लगी।

मेरे कहने पर ही वो बीच बीच में अपनी जीभ से मेरे लंड के टमाटर जैसे सुपारे चाट लेती थी पर मुँह में लेने से घबरा रही थी। मैं भी कोई जोर-जबरदस्ती करके उसका और अपना मज़ा खराब नहीं करना चाहता था। मैं उसकी चूत के दाने को उंगली से सहलाते हुए जीभ को उसकी चूत में घुसा घुसा कर चूस और चाट रहा था।

लगभग दस मिनट ऐसे ही चूसा चुसाई का प्रोग्राम चला और फिर सृष्टि भी तड़प उठी थी मेरा लंड अपनी कुंवारी चूत में लेने के लिए… मेरे लिए भी अब कण्ट्रोल करना मुश्किल हो रहा था। मैंने सृष्टि को लेटा कर उसकी दोनों टांगों को चौड़ा किया और खुद उसकी टांगों के बीच में आकर मैंने अपने लंड का सुपारा उसकी चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया।

अपनी चूत पर मेरे मोटे लंड का एहसास करके सृष्टि घबरा रही थी, उसकी घबराहट को दूर करने के लिए मैं सृष्टि के ऊपर लेट गया और कभी उसके होंठ तो कभी उसकी चूची को चूसने लगा, नीचे से लंड भी सृष्टि की चूत पर रगड़ रहा था।

रगड़ते रगड़ते ही मैंने लंड को चूत पर सही से सेट करके थोड़ा दबाव बनाया तो सृष्टि की रस से भीग कर चिकनी हुई चूत के मुहाने पर मेरा सुपारा अटक गया। मुझे अपने आप पर गुस्सा आया कि जब पता था की एक कमसिन कुंवारी चूत का उद्घाटन करना है तो क्यों नहीं मैं तेल या कोई क्रीम साथ लेकर आया।

पर अब क्या हो सकता था, सोचा चलो थूक से ही काम चला लेते है। इतना तो मैं समझ चुका था कि चुदाई में सृष्टि बहुत शोर मचाएगी क्यूंकि आज उसकी चूत फटने वाली थी। मैं दुबारा से नीचे उसकी चूत पर आया और फिर से उसकी चूत चाटने लगा। चाटते हुए ही मैंने ढेर सारा थूक सृष्टि की चूत के ऊपर और अन्दर भर दिया।

मैंने पास में पड़े अपने और सृष्टि के कपड़े उठा कर एक तकिया सा बनाया और उसकी गांड के नीचे दे दिया जिससे उसकी चूत थोड़ा ऊपर की ओर होकर सामने आ गई। मैंने लंड दुबारा सृष्टि की चूत पर लगाया और एक हल्का सा धक्का लगाया तो सृष्टि दर्द के मारे उछल पड़ी।

रात का समय था और अगर सृष्टि चीख पड़ती तो पूरी कॉलोनी उठ जाती। मैंने रिस्क लेना ठीक नहीं समझा और अपनी जेब से रुमाल निकाल कर उसको गोल करके सृष्टि के मुँह में ठूस दिया। सृष्टि मेरी इस हरकत पर हैरान हुई पर मैंने उसको बोला कि ऐसा करने से तुम्हारी आवाज बाहर नहीं आएगी।

वो मुँह में कपड़े के कारण कुछ बोल नहीं पा रही थी। मैंने अब बिना देर किये किला फतह करने की सोची और दुबारा से लंड को चूत पर रख कर एक जोरदार धक्के के साथ अपने लंड का सुपाड़ा सृष्टि की कमसिन कुंवारी चूत में घुसा दिया।

सृष्टि दर्द के मारे छटपटाने लगी पर रुमाल मुँह में होने के कारण उसकी आवाज अन्दर ही घुट कर रह गई। मैंने उचक कर फिर से एक जोरदार धक्का लगा कर लगभग दो इंच लंड उसकी चूत में घुसा दिया। सच में सृष्टि की चूत बहुत टाइट थी, दो तीन इंच लंड घुसाने में ही मुझे पसीने आ गए थे।

मुझे पता था कि अब अगले ही धक्के में सृष्टि का शील भंग हो जाएगा तो मैंने लंड को वापिस खींचा और अपनी गांड का पूरा जोर लगा कर धक्का मारा और लंड शील को तोड़ता हुआ लगभग पाँच इंच चूत में घुस गया। धक्का जोरदार था सो सृष्टि सह नहीं पाई और थोड़ा छटपटा कर लगभग बेहोशी की हालत में चली गई।

मैंने नीचे देखा तो सृष्टि की चूत से खून की एक धारा सी फूट पड़ी थी जो मेरे लंड के पास से निकाल कर नीचे पड़े कपड़ों पर गिर रही थी। मैंने जल्दी से उसकी गांड के नीचे से कपड़े निकाल कर साइड में किये और जितना लंड अन्दर गया था उसको ही आराम आराम से अन्दर बाहर करने लगा।

लंड तो जैसे किसी शिकंजे में फंस गया था, बड़ी मुश्किल से लंड अन्दर बाहर हो रहा था। कुछ देर मैं ऐसे ही करता रहा और फिर करीब पांच मिनट के बाद सृष्टि को कुछ होश सा आया। उसकी आँखों से आँसुओं की अविरल धारा बह रही थी, उसने कपड़ा मुँह से निकालने की विनती की तो मैंने रुमाल उसके मुँह से निकाल दिया।

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‘चाचू… प्लीज बाहर निकालो इसको… बहुत दर्द हो रहा है, मैं नहीं सह पाऊँगी।’ सृष्टि ने रोते रोते कहा।

‘अरे तुम तो वैसे ही घबरा रही थी… देखो तो ज़रा पूरा घुस गया है और अब मेरी स्वीटी जान को दर्द नहीं होगा क्योंकि जो दर्द होना था वो तो हो चुका, अब तो सिर्फ मजे ही मजे हैं।’

‘नहीं चाचू… मुझे अभी भी दर्द हो रहा है।’

मैंने उसको लंड अन्दर बाहर करके दिखाया कि देखो अब लंड ने अपनी जगह बना ली है और अब दर्द नहीं होगा। इन पांच मिनट में लंड ने सच में इतनी जगह तो बना ही ली थी कि सटासट तो नहीं पर आराम से लंड जितना चूत में घुस चुका था वो अन्दर बाहर हो रहा था।

जो दर्द सृष्टि को महसूस हो रहा था वो चूत फटने का दर्द था। चूत मेरे लंड के करारे धक्के के कारण किनारे से थोड़ा सा फट गई थी जिसमें धक्के लगने से दर्द होता था। मैंने फिर से लंड एक सधी हुई स्पीड में चूत के अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया, हर धक्के के साथ सृष्टि कराह उठती थी।

चार-पांच मिनट तो सृष्टि हर धक्के पर कराह रही थी पर उसके बाद उसकी दर्द भरी कहराहट के साथ साथ मादक आहें भी निकलने लगी थी। वैसे तो अभी भी मेरा लगभग दो इंच लंड बाहर था पर मुझे पता था कि जितना भी लंड उसकी चूत में गया है वो भी उस कमसिन हसीना के लिए ज्यादा था।

मैंने अब धक्कों की स्पीड तेज करनी शुरू कर दी थी। सृष्टि की चूत ने भी कुछ पानी छोड़ दिया था जिससे चूत अब चिकनी हो गई थी। अब तो सृष्टि भी अपनी गांड को कभी कभी उठा कर लंड का स्वागत करने लगी थी। अब दर्द के बाद सृष्टि को भी मज़ा आने लगा था।

मेरे धक्कों की स्पीड बढ़ती जा रही थी और हर धक्के के साथ मैं थोड़ा सा लंड और सृष्टि की चूत में सरका देता जिससे कुछ ही धक्कों के बाद मेरा पूरा लंड सृष्टि की चूत में समा गया और सृष्टि की भूरी भूरी रेशमी झांटों से मेरी काली घनी झांटों का मिलन हो गया।

चुदाई एक्सप्रेस अब अपनी अधिकतम स्पीड पर चल रही थी, तभी सृष्टि का बदन अकड़ने लगा, वो झड़ने वाली थी और कुछ ही धक्कों के बाद सृष्टि की चूत से पानी की धार निकल कर मेरे आंड गीले करने लगे थे। झरने के बाद सृष्टि थोड़ा सा सुस्त हुई पर उसके झड़ने से मुझे फायदा यह हुआ कि चूत अब पहले से ज्यादा चिकनी हो गई और लंड अब सटासट चूत में अन्दर बाहर हो रहा था।

करीब दो मिनट सुस्त रहने के बाद सृष्टि की चूत में फिर से हलचल होने लगी और वो हर धक्के के साथ अपनी गांड उठा उठा कर चुदवाने लगी ‘आह्ह्ह… उम्म्म्म… चाचू… बहुत मज़ा आ रहा है अब तो… जोर जोर से करो… ओह्ह्ह्ह… आह्ह्ह्ह… आईईई… उम्म्म… चोदो… जोर से चोदो मुझे… मेरे प्यारे चाचू… फाड़ दो… बहुत मज़ा…. आ रहा है चाचू..’ सृष्टि मस्ती के मारे बड़बड़ा रही थी.

और मैं तो पहले ही मस्त हुआ शताब्दी एक्सप्रेस की स्पीड पर चुदाई कर रहा था। चुदाई लगभग पंद्रह मिनट तक चली और फिर सृष्टि जैसे ही दुबारा झड़ने को हुई तो मेरा लंड भी सृष्टि की चूत में अपने गर्म गर्म पानी से ठंडक पहुँचाने को तैयार हो गया।

बीस पच्चीस धक्के और लगे और फिर सृष्टि और मैं दोनों ही एक साथ झड़ गये। जैसे ही सृष्टि को अपनी चूत में मेरे वीर्य का अहसास हुआ वो मस्ती के मारे हवा में उड़ने लगी और उसने मुझे कसकर अपनी बाहों में भर लिया और टांगों को भी मेरे कूल्हों पर लपेट कर अपने से ऐसे जकड़ लिया जैसे वो मेरे लंड को अपनी चूत से अलग ही ना करना चाहती हो।

हम दोनों ही जोरदार ढंग से झड़े थे। सृष्टि अपनी पहली चुदाई के जोश में और मैं अपने लंड को मिली कमसिन चूत को फाड़ने के जोश में! हम दोनों आधा घंटा भर ऐसे ही लिपटे रहे, दोनों को जैसे पूर्ण संतुष्टि के कारण नींद सी आने लगी थी।

तभी अचानक बाहर से कोई कार गुजरी और उसके हॉर्न ने जैसे हमें नींद से उठाया, हम दोनों एक दूसरे से अलग हुए। सृष्टि तो अभी भी टांगें चौड़ी किये सीधी लेटी हुई थी और चूत से मेरा वीर्य उसकी चूत के पानी से मिलकर बह रहा था। देख कर लगता था कि जैसे मेरे लंड से बहुत पानी निकला था।

मैंने सृष्टि को उठाया, उसने उठकर अपनी चूत और मेरे लंड को साफ़ किया। घड़ी देखी तो उसमें रात के तीन बज रहे थे। लगभग दो घंटे से हम दोनों छत पर चुदाई एक्सप्रेस पर सवार थे। समय का पता ही नहीं लगा कि कब बीत गया।

सृष्टि उठ कर कपड़े पहनने लगी तो मेरा ध्यान गया कि उसकी टी-शर्ट पर चूत से निकले खून के निशान थे। मैंने उसको वो दिखाए और समझाया की नीचे जाकर इन कपड़ों को धो कर डाल दे। खून देख कर वो थोड़ा घबराई पर फिर उसने खून वाले हिस्से को चूम लिया।

तब तक मैंने भी अपना पजामा पहन लिया था। सृष्टि ने भी पजामा तो पहन लिया पर टी-शर्ट नहीं पहनी। अब हम दोनों का ऊपर का बदन नंगा था। वो एकदम से आई और मुझसे लिपट गई, मैंने भी उसके होंठो पर होंठ रख दिए।

कुछ देर ऐसे ही रह कर मैंने सृष्टि को टी-शर्ट पहनने को बोला तो उसने मना कर दिया। मैंने बहुत समझाया की ऐसे ठीक नहीं है पर वो नहीं मानी। फिर हम नीचे की तरफ चल दिए। अन्दर बिलकुल शांति थी, नाईट बल्ब की लाइट में हम सीढ़ियाँ उतरने लगे।

मूसल जैसे लंड से चुदाई के कारण सृष्टि चल नहीं पा रही थी। सीढ़ियाँ उतरते हुए तो सृष्टि की आह्ह निकल गई। मैंने बिना देर किये उसको गोद में उठाया और नीचे लेकर आया। नीचे आकर सृष्टि बाथरूम में घुस गई और मैं भी बिना देर किये नितेश के कमरे में चला गया।

अँधेरे के कारण मैं सृष्टि की चूत की हालत तो नहीं देख पाया पर जब मैंने अपना लंड देखा तो हल्का सा दर्द महसूस हुआ। लंड कई जगह से छिल सा गया था। पर खुश था एक कमसिन कुंवारी चूत की शील तोड़ कर।

सुबह हम दोनों ही देर से उठे, दस बज चुके थे, नरेन्द्र भाई ऑफिस जा चुके थे, अंजू भाभी रसोई में थी, नितेश भी दिखाई नहीं दे रहा था, ताई जी ड्राइंग रूम में बैठी थी।

भाभी से सृष्टि के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसको बुखार और सर दर्द है। मैं उसके कमरे में गया तो उसने दूसरी टी-शर्ट पहनी हुई थी और वो बेड पर लेटी हुई थी।

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‘देखो ना चाचू… क्या हाल कर दिया तुमने मेरा… अभी तक दर्द हो रहा है।’

मैं उसके पास बेड पर बैठ गया और एक हाथ उसकी चूची पर रख दिया और धीरे धीरे सहलाने लगा। सृष्टि ने भी मेरे हाथ के ऊपर अपना हाथ रख दिया।

‘कहाँ दर्द हो रहा है मेरी जान को?’

‘क्या चाचू आप भी ना… और कहाँ दर्द होगा… वहीं हो रहा है जहाँ आपने रात को…’ कहते हुए सृष्टि शर्मा गई।

मैंने बिना देर किये दूसरा हाथ उसकी चूत पर रख दिया। हाथ लगते ही सृष्टि की दर्द के मारे आह्ह्ह निकल गई। मैंने हाथ लगा कर देखा तो चूत वाला हिस्सा सूज कर डबल रोटी जैसा हो गया था। मैंने उसके पजामे को उतार कर देखना चाहा तो सृष्टि में मुझे रोकने की कोशिश की पर मैंने फिर भी उसके पजामे को थोड़ा सा नीचे किया और उसकी चूत देखने लगा।

रात को मस्ती में मैंने शायद ज्यादा ही जोर से चोद दिया था, चूत बुरी तरह से सूजी हुई थी और चूत का मुँह बिल्कुल लाल हो रहा था। मैंने बिना देर किये उसकी चूत पर एक प्यार भरा चुम्मा लिया और फिर पजामा दुबारा ऊपर कर दिया।

‘सृष्टि… मन तो नहीं है पर मुझे वापिस जाना है!’

मेरी बात सुनते ही सृष्टि ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- मुझे छोड़ कर चले जाओगे?

‘नहीं मेरी जान… पर वापिस तो जाना ही पड़ेगा ना.. मैं ज्यादा दिन तो यहाँ नहीं रह सकता ना!’

मेरी बात सुनते ही सृष्टि की आँखों में आँसू आ गये। मैंने उसको जल्दी ही वापिस आने का वादा भी किया पर वह मुझे अपने से दूर नहीं करना चाहती थी। उसकी आँखें ही बता रही थी कि वो मुझ से कितना प्यार करने लगी थी।

तभी बाहर नितेश की आवाज सुनाई दी, मैं जल्दी से कमरे से बाहर निकल गया। नितेश को जब मैंने वापिस जाने की बात कही तो वो भी मुझे रुकने के लिए बोलने लगा और फिर तो ताई जी और अंजू भाभी भी मुझे रुकने के लिए कहने लगी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

जाना तो मैं भी नहीं चाहता था, सृष्टि का प्यार मुझे रुकने के लिए बाध्य कर रहा था। मैंने अपने घर पर फ़ोन करके दो दिन बाद आने का बोल दिया। जिसे सुनकर सभी खुश हो गये और जब सृष्टि को पता लगा कि मैं दो दिन रुकने वाला हूँ तो उसकी ख़ुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा।

फिर मैं नितेश के साथ घूमने निकल गया और रास्ते में मैंने नितेश की नजर बचा कर एक मेडिकल स्टोर से दर्द और सूजन कम करने वाली गोली ली। करीब दो घंटे बाद हम घर पहुंचे और मैंने सबकी नजर बचा कर वो गोलियाँ सृष्टि को दे दी। फिर एक तो घंटे नितेश और मैं रूम में बैठ कर मूवी देखते रहे।

शाम को पांच बजे जब हम कमरे से बाहर आये तो सृष्टि भी ड्राइंग रूम में अपनी दादी के साथ बैठी थी। गोलियाँ लेने से उसको आराम मिल गया था और सूजन भी कम हो गई थी। सभी बैठे थे कि अरुण ने पार्क चलने की जिद की और फिर नितेश, मैं, सृष्टि और अरुण चारों घूमने निकल पड़े और रॉक गार्डन और सुखना झील पर घूम कर रात को करीब साढ़े नौ बजे घर वापिस आये।

सृष्टि अब बिल्कुल ठीक थी। सारा समय सृष्टि मेरे साथ साथ ही रही। जब मैंने उसको रात के प्रोग्राम के बारे में पूछा तो उसने शर्मा कर गर्दन नीचे कर ली और जब मैंने दोबारा पूछा तो उसने शरमा कर हाँ में गर्दन हिला दी।

घर आये तो नरेन्द्र भाई आ चुके थे और भाभी ने भी खाना बना लिया था। सबने खाना खाया और ग्यारह बजे तक सभी साथ में बैठ कर बातें करते रहे। मैं और सृष्टि ही थे जिन्हें उन सब पर गुस्सा आ रहा था कि ये लोग सो क्यों नहीं जाते ताकि हम अपना प्यार का प्रोग्राम शुरू कर सकें।

फिर सबसे पहले नितेश अपने कमरे में गया और फिर अरुण भी… दोनों घूम घूम कर थक गए थे। फिर ताई जी भी अपने कमरे में चली गई। जब मैं भी उठ कर कमरे की तरफ चला तो सृष्टि ने आँखों आँखों में पूछा कि ‘कहाँ जा रहे हो?’ तो मैंने उसको थोड़ी देर बाद आने का इशारा किया।

कमरे में गया तो नितेश सो चुका था और उसके खराटे चालू थे। दस पंद्रह मिनट के बाद मैंने कमरे का दरवाजा खोल कर देखा तो नरेन्द्र और भाभी भी अपने कमरे में जा चुके थे और सृष्टि अकेली बैठी टीवी देख रही थी।

मैं जाकर सृष्टि के पास बैठ गया। हम दोनों ने एक दूसरे को किस किया और फिर सृष्टि उठ कर गई और पहले अपने पापा के कमरे में देखा कि वो सो गये है या नहीं… फिर दादी के कमरे में देखा और नितेश को तो मैं देख कर ही आया था।

सबके सब सो चुके थे। आते ही सृष्टि मेरे गले से लग गई और मुझे ‘आई लव यू’ बोला। मैंने भी उसको ‘आई लव यू’ बोला और उसको अपनी बाहों में भर कर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। सृष्टि ने मुझे रोका और ऊपर चलने का इशारा किया। सृष्टि भी चुदने को बेताब थी।

मैंने उसको अपनी गोद में उठाया और ऐसे ही उसको लेकर छत पर चला गया। आज छत का नजारा कुछ बदला हुआ था। आज छत पर चटाई की जगह एक पुराना गद्दा पड़ा हुआ था। सृष्टि आज पूरी तैयारी के करके आई थी।

जब मैं गद्दे पर बैठने लगा तो सृष्टि ने मुझे रोका और एक कोने में रखे हुए एक लिफ़ाफ़े से उसने गुलाब की पंखुड़ियाँ निकाल कर गद्दे पर बिखेर दी। मैं हैरान हुआ उसको देख रहा था। ये सब करने के बाद सृष्टि मेरे पास आई और मेरे गले से लग गई, मुझे रुकने के लिए थैंक यू बोला।

मैंने भी उसको अपनी बाहों में भर लिया और एक बार फिर से हम दोनों के होंठ आपस में मिल गए। दोनों ही बहुत देर तक एक दुसरे को चूमते चाटते रहे और इसी बीच दोनों ने ही एक दूसरे के कपड़े उतार कर साइड में डाल दिए। अब हम दोनों जन्मजात नंगे थे।

मैंने सृष्टि के नंगे बदन को गद्दे पर गुलाब की पंखुड़ियों पर लेटाया और उसके अंग अंग को चूमने लगा और उसकी चूचियों को मसलने लगा। बहुत देर तक मैंने उसकी चूचियों को मसला और चूसा, फिर मैंने उसकी चूत की तरफ का रुख किया।

दवाई असरदार थी, चूत की सुजन बिल्कुल ख़त्म हो चुकी थी और चूत अब अपने सामान्य रूप में थी। मैंने बिना देर किये अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटना शुरू किया, सृष्टि मस्ती से लहरा उठी थी। जब मैं उसकी चूत चाट रहा था तो सृष्टि ने भी हाथ बढ़ा कर मेरा लंड पकड़ लिया और धीरे धीरे सहलाने लगी।

‘जन्मेजय… मेरी जान… अब देर ना करो… आज मुझ से सब्र नहीं होगा!’ आज सृष्टि ने पहली बार मुझे मेरे नाम से पुकारा था।

कण्ट्रोल तो मुझ से भी नहीं हो रहा था, मैं उठा और उसकी टाँगें चौड़ी करके बीच में बैठ कर जब मैंने मेरे लंड का लाल लाल सुपाड़ा उसकी चूत पर टिकाया तो उसने मुझे रोका। जब मैंने कारण पूछा तो उसने शरमाते हुए गद्दे के नीचे से वैसलीन की डब्बी निकाल कर मुझे पकड़ा दी।

एक दिन में ही यह लड़की कितनी सयानी हो गई थी। मैंने मेरे लंड पर और उसकी चूत पर अच्छे से वैसलीन लगाईं और दुबारा से लंड उसकी चूत पर टिकाया तो उसने मुझे फिर रोका। मैं पूछा तो उसने गद्दे के नीचे से कोहिनूर कंडोम का पैकेट निकाल कर मेरे हाथ में थमा दिया।

‘यह तुम्हें कहाँ मिल गया?’

‘मम्मी के कमरे से निकाला है… मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहती… अगर मैं प्रेगनेंट हो गई तो..’

लड़की कुछ ज्यादा ही समझदार हो गई थी। मैंने उसको लंड पर कंडोम लगाने का कहा तो उसे लगाना नहीं आया। मैंने खुद कंडोम अपने लंड पर चढ़ाया और फिर तनतनाया हुआ लंड सृष्टि की चूत पर रख दिया। मैंने उसकी आँखों में देखते हुए चुदाई स्टार्ट करने की परमिशन मांगी तो उसने आँखों के इशारे से हामी भरी।

अब देर नहीं कर सकता था, मैंने लंड को धीरे से चूत पर दबाया तो सृष्टि को दर्द महसूस हुआ, दर्द की लकीरें उसके चेहरे पर नजर आ रही थी। मैंने एक जोरदार धक्का लगाया तो वैसलीन की चिकनाई के कारण लगभग दो तीन इंच लंड चूत में समा गया।

सृष्टि ने खुद अपने हाथ से अपने मुँह को बंद करके अपनी चीख को रोका, उसकी आँखों में आँसू आ गए थे। मैंने अपनी गलती को समझते हुए उसको सॉरी बोला और फिर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और फिर धीरे धीरे लंड को उसकी चूत में सरकाने लगा।

दो तीन मिनट की जद्दोजहद बाद मैंने किसी तरह आराम आराम से अपना पूरा लंड सृष्टि की चूत की गहराइयों में उतार दिया। सृष्टि को दर्द तो हुआ था पर ज्यादा नहीं। पूरा लंड अन्दर जाने के बाद मैं कुछ देर के लिए रुका और सृष्टि की चूचियों को चूसने लगा। बीच बीच में मैं उसके चूचुक पर दांतों से काट भी लेता था। ऐसा करने से उसकी सिसकारी निकल जाती, मेरे ऐसा करने से वो चूत का दर्द भूल गई।

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मैंने धीरे धीरे चुदाई शुरू की और कुछ ही देर में सृष्टि भी अपने चूतड़ उठा उठा कर लंड लेने लगी। पहले धीरे धीरे करते हुए मैंने अपनी स्पीड बढ़ानी शुरू कर दी और कुछ ही देर में धुँआधार चुदाई शुरू हो गई। फिर तो बीस मिनट तक मैंने सृष्टि की जबरदस्त चुदाई की। सृष्टि कम से कम दो बार झड चुकी थी और फिर मैंने भी ढेर सारा वीर्य कंडोम में इकट्ठा कर दिया। उस रात तीन बार मैंने सृष्टि को चोदा और सुबह चार बजे हम दोनों नीचे आये। उसके अगली रात को भी तीन बार मैंने सृष्टि की चुदाई की।

फिर उससे अगले दिन मेरे घर से फ़ोन आ गया और फिर मैं वापिस अपने घर के लिए निकल पड़ा। जब मैं वापिस जाने के लिए चला तो सृष्टि मुझसे लिपट कर बहुत रोई थी। उसके बाद भी एक दो बार मैं कानपुर गया और सृष्टि की जमकर चुदाई की। सृष्टि मुझसे शादी के सपने देखने लगी थी जो हमारे रिश्ते में संभव नहीं था। बस यही कारण था की मैंने सृष्टि से थोड़ी दूरी बना ली, उसने भी कुछ दिन मेरा इंतज़ार किया और फिर मुझे बेवफा समझकर भुला दिया।

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  1. Deepak Singh says

    मई 30, 2024 at 1:51 पूर्वाह्न

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