• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer

HamariVasna

Hindi Sex Story Antarvasna

  • Antarvasna
  • कथा श्रेणियाँ
    • Baap Beti Ki Chudai
    • Desi Adult Sex Story
    • Desi Maid Servant Sex
    • Devar Bhabhi Sex Story
    • First Time Sex Story
    • Group Mein Chudai Kahani
    • Jija Sali Sex Story
    • Kunwari Ladki Ki Chudai
    • Lesbian Girl Sex Kahani
    • Meri Chut Chudai Story
    • Padosan Ki Chudai
    • Rishto Mein Chudai
    • Teacher Student Sex
  • Girlfriend Boyfriend Sex Story
  • Bhai Bahan Sex Stoy
  • Hindi Sex Story
  • माँ बेटे का सेक्स
  • अपनी कहानी भेजिए
  • ThePornDude
You are here: Home / Kunwari Ladki Ki Chudai / हस्तमैथुन करती लड़की की चूत में केला फंस गया 2

हस्तमैथुन करती लड़की की चूत में केला फंस गया 2

मार्च 6, 2024 by hamari

Hostel Porn

हेल्लो दोस्तों, मैं माधुरी आपके सामने फिर से अपने मन का बोझ हल्का करने आई हूँ. दोस्तों आपको मैंने अपनी कहानी के पिछले भाग हस्तमैथुन करती लड़की की चूत में केला फंस गया 1 में बताया था, की मैं हॉस्टल में रहती थी और मैं बहुत सभ्य और मासूम लड़की हूँ, पर मेरे साथ एक बहुत ही चालू लड़की छवि रहती थी. और उसी के कहने पर मैं पहली बार हस्तमैथुन करने गई और मेरी चूत में केला फंस गया, और उसने अपने एक बॉयफ्रेंड को बुलाया मदद करने के लिए. अब आगे- Hostel Porn

मुझे तुरंत ग्लानि हुई ! छी: ! मैंने कितने गंदे शब्द सोचे। मैं कितनी जल्दी कितनी बेशर्म हो गई थी !

“माधुरी, मजाक की बात नहीं। बी सीरियस।” छवि ने अचानक मूड बदल कर मुझे चेतावनी दी। उसका हाथ मेरे योनि पर आया और एक उंगली गुदा के छेद पर आकर ठहर गई।

“तुम इसके लिए तैयार हो ना?”

मेरी चुप्पी से परेशान होकर उसने कहा,”चुप रहने से काम नहीं चलेगा, यह छोटी बात नहीं है। तुम्हें बताना होगा तैयार हो कि नहीं। अगर तुम्हें आपत्ति्जनक लगता है तो फिर हम छोड़ देते हैं ! बोलो?”

मेरी चुप्पी यथावत् थी।

छवि ने अरुण से पूछा- बोलो क्या करें? यह तो बोलती ही नहीं।

“क्या कहेगी बेचारी ! बुरी तरह फँसी हुई है। शी इज टू मच इम्बैरेस्ड !” कुछ रुककर वह फिर बोला,”लेकिन अब जो करना है उसमें पड़े रहने से काम नहीं चलेगा। उठकर सहयोग करना होगा।”

“माधुरी, सुन रही हो ना। अगर मना करना है तो अभी करो।”

“माधुरी, तुम…. मैं नहीं चाहता, लेकिन इसमें तुम पर… कुछ जबरदस्ती करनी पड़ेगी, तुम्हें सहना भी होगा।” अरुण की आवाज में हमदर्दी थी। या पता नहीं मतलब निकालने की चतुराई।

कुछ देर तक दोनों ने इंतजार किया,”चलो इसे सोचने देते हैं। लेकिन जितनी देर होगी, उतना ही खतरा बढ़ता जाएगा।”

सोचने को क्या बाकी था ! मेरे सामने कोई और उपाय था क्या?

मेरी खुली टांगों के बीच योनिप्रदेश काले बालों की समस्त गरिमा के साथ उनके सामने लहरा रहा था।

मैंने छवि के हाथ के ऊपर अपना हाथ रख दिया- जो सही समझो, करो !

“लेकिन मुझे सही नहीं लग रहा।” अरुण ने बम जैसे फोड़ा,” मुझे लग रहा है, माधुरी समझ रही है कि मैं इसकी मजबूरी का नाजायज फायदा उठा रहा हूँ।”

बात तो सच थी मगर मैं इसे स्वीकार करने की स्थिति में नहीं थी। वे मेरी मजबूरी का फायदा तो उठा ही रहे थे।

“खतरा माधुरी को है। उसे इसके लिए प्रार्थना करनी चाहिए। पर यहाँ तो उल्टे हम इसकी मिन्नतें कर रहे हैं। जैसे मदद की जरूरत उसे नहीं हमें है।”

उसका पुरुष अहं जाग गया था। मैं तो समझ रही थी वह मुझे भोगने के लिए बेकरार है, मेरा सिर्फ विरोध न करना ही काफी है। मगर यह तो अब…

“मगर यह तो सहमति दे रही है !”, छवि ने मेरे पेड़ू पर दबे उसके हाथ को दबाए मेरे हाथ की ओर इशारा किया। उसे आश्चर्य हो रहा था।

“मैं क्यों मदद करूँ? मुझे क्या मिलेगा?”

सुनकर छवि एक क्षण तो अवाक रही फिर खिलखिलाकर हँस पड़ी,”वाह, क्या बात है !”

अरुण इतनी सुंदर लड़की को न केवल मुफ्त में ही भोगने को पा रहा था, बल्कि वह इस ‘एहसान’ के लिए ऊपर से कुछ मांग भी रहा था। मेरी ना-नुकुर पर यह उसका जोरदार दहला था।

“सही बात है।” छवि ने समर्थन किया।

“देखो, मुझे नहीं लगता यह मुझसे चाहती है। इसे किसी और को ही दिखा लो।”

मैं घबराई। इतना करा लेने के बाद अब और किसके पास जाऊँगी। अरुण चला गया तो अब किसका सहारा था?

“मेरा एक डॉक्टर दोस्त है। उसको बोल देता हूँ।” उसने परिस्थिति को और अपने पक्ष में मोड़ते हुए कहा।

इसे भी पढ़े – नई माँ को बेटे ने बाप साथ मिलकर चोदा

मैं एकदम असहाय, पंखकटी चिड़िया की तरह छटपटा उठी। कहाँ जाऊँ? अन्दर रुलाई की तेज लहर उठी, मैंने उसे किसी तरह दबाया। अब तक नग्नता मेरी विवशता थी पर अब इससे आगे रोना-धोना अपमानजनक था। मैं उठकर बैठ गई। केले का दबाव अन्दर महसूस हुआ।

मैंने कहना चाहा,”तुम्हें क्या चाहिए?”

पर भावुकता की तीव्रता में मेरी आवाज भर्रा गई।

छवि ने मुझे थपथपाकर ढांढस दिया और अरुण को डाँटा,”तुम्हें दया नहीं आती?”

मुझे छवि की हमदर्दी पर विश्वास नहीं हुआ। वह निश्चय ही मेरी दुर्दशा का आनन्द ले रही थी।

“मुझे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए।”

“क्या लोगे?”

अरुण ने कुछ क्षणों की प्रतीक्षा कराई और बात को नाटकीय बनाने के लिए ठहर ठहरकर स्पष्ट उच्चारण में कहा,”जो इज्जत इन्होंने केले को बख्शी है वह मुझे भी मिले।”

मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया। अब क्या रहेगा मेरे पास? योनि का कौमार्य बचे रहने की एक जो आखिरी उम्मीद बनी हुई थी वह जाती रही। मेरे कानों में उसके शब्द सुनाई पड़े, “और वह मुझे प्यार और सहयोग से मिले, न कि अनिच्छा और जबरदस्ती से।”

पता नहीं क्यों मुझे अरुण की अपेक्षा छवि से घोर वितृष्णा हुई। इससे पहले कि वह मुझे कुछ कहती मैंने अरुण को हामी भर दी। मुझे कुछ याद नहीं, उसके बाद क्या कैसे हुआ। मेरे कानों में शब्द असंबद्ध-से पड़ रहे थे जिनका सिलसिला जोड़ने की मुझमें ताकत नहीं थी। मैं समझने की क्षमता से दूर उनकी

हरकतों को किसी विचारशून्य गुड़िया की तरह देख रही थी, उनमें साथ दे रही थी। अब नंगापन एक छोटी सी बात थी, जिससे मैं काफी आगे निकल गई थी। ‘कैंची’, ‘रेजर’, ‘क्रीम’, ‘ऐसे करो’, ‘ऐसे पकड़ो’, ‘ये है’, ‘ये रहा’, ‘वहाँ बीच में’, ‘कितने गीले’, ‘सम्हाल के’, ‘लोशन’, ‘सपना-सा है’…………… वगैरह वगैरह स्त्री-पुरुष की मिली-जुली आवाजें, मिले-जुले स्पर्श।

बस इतना समझ पाई थी कि वे दोनों बड़ी तालमेल और प्रसन्नता से काम कर रहे थे। मैं बीच बीच में मन में उठनेवाले प्रश्नों को ‘पूर्ण सहमति दी है’ के रोडरोलर के नीचे रौंदती चली गई। पूछा नहीं कि वे वैसा क्यों कर रहे थे, मुझे वहाँ पर मूँडने की क्या आवश्यकता थी।

लोशन के उपरांत की जलन के बाद ही मैंने देखा वहाँ क्या हुआ है। शंख की पीठ-सी उभरी गोरी चिकनी सतह ऊपर ट्यूब्लाइट की रोशनी में चमक रही थी। छवि ने जब एक उजला टिशू पेपर मेरे होंठों के बीच दबाकर उसका गीलापन दिखाया तब मैंने समझा कि मैं किस स्तर तक गिर चुकी हूँ।

एक अजीब सी गंध, मेरे बदन की, मेरी उत्तेजना की, एक नशा, आवेश, बदन में गर्मी का एहसास… बीच बीच में होश और सजगता के आते द्वीप। जब छवि ने मेरे सामने लहराती उस चीज की दिखाते हुए कहा, ‘इसे मुँह में लो !’

तब मुझे एहसास हुआ कि मैं उस चीज को जीवन में पहली बार देख रही हूँ। साँवलेपन की तनी छाया, मोटी, लंबी, क्रोधित ललाट-सी नसें, सिलवटों की घुंघचनों के अन्दर से आधा झाँकता मुलायम गोल गुलाबी मुख- शर्माता, पूरे लम्बाई की कठोरता के प्रति विद्रोह-सा करता। मैं छवि के चेहरे को देखती रह गई। यह मुझे क्या कह रही है!

“इसे गीला करो, नहीं तो अन्दर कैसे जाएगा।” छवि ने मेरा हाथ पकड़कर उसे पकड़ा दिया।

“माधुरी, यू हैव प्रॉमिस्ड।”

मेरा हाथ अपने आप उस पर सरकने लगा। आगे-पीछे, आगे-पीछे।

“हाँ, ऐसे ही।” मैं उस चीज को देख रही थी। उसका मुझसे परिचय बढ़ रहा था।

“अब मुँह में लो।”

मुझे अजीब लग रहा था। गंदा भी……….।

“हिचको मत। साफ है। सुबह ही नहाया है।” छवि की मजाक करने की कोशिश……..।

मेरे हाथ यंत्रवत हरकत करते रहे।

“लो ना !” छवि ने पकड़कर उसे मेरे मुँह की ओर बढ़ाया। मैंने मुँह पीछे कर लिया।

“इसमें कुछ मुश्किल नहीं है। मैं दिखाऊँ?”

छवि ने उसे पहले उसकी नोक पर एक चुम्बन दिया और फिर उसे मुँह के अन्दर खींच लिया। अरुण के मुँह से साँस निकली। उसका हाथ छवि के सिर के पीछे जा लगा। वह उसे चूसने लगी। जब उसने मुँह निकाला तो वह थूक में चमक रहा था। मैं आश्चर्य में थी कि सदमे में, पता नहीं।

छवि ने अपने थूक को पोंछा भी नहीं, मेरी ओर बढ़ा दिया- यह लो।

“लो ना…….!” उसने उसे पकड़कर मेरी ओर बढ़ाया। अरुण ने पीछे से मेरा सिर दबाकर आगे की ओर ठेला। लिंग मेरे होंठों से टकराया। मेरे होंठों पर एक मुलायम, गुदगुदा एहसास। मैं दुविधा में थी कि मुँह खोलूँ या हटाऊँ कि “माधुरी, यू हैव प्रॉमिस्ड” की आवाज आई।

मैंने मुँह खोल दिया। मेरे मुँह में इस तरह की कोई चीज का पहला एहसास था। चिकनी, उबले अंडे जैसी गुदगुदी, पर उससे कठोर, खीरे जैसी सख्त, पर उससे मुलायम, केले जैसी। हाँ, मुझे याद आया। सचमुच इसके सबसे नजदीक केला ही लग रहा था।

कसैलेपन के साथ। एक विचित्र-सी गंध, कह नहीं सकती कि अच्छी लग रही थी या बुरी। जीभ पर सरकता हुआ जाकर गले से सट जा रहा था। छवि मेरा सिर पीछे से ठेल रही थी। गला रुंध जा रहा था और भीतर से उबकाई का वेग उभर रहा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

“हाँ, ऐसे ही ! जल्दी ही सीख जाओगी।”

मेरे मुँह से लार चू रहा था, तार-सा खिंचता। मैं कितनी गंदी, घिनौनी, अपमानित, गिरी हुई लग रही हूँगी।

अरुण आह ओह करता सिसकारियाँ भर रहा था। फिर उसने लिंग मेरे मुँह से खींच लिया।

“ओह अब छोड़ दो, नहीं तो मुँह में ही………”

मेरे मुँह से उसके निकलने की ‘प्लॉप’ की आवाज निकलने के बाद मुझे एहसास हुआ मैं उसे कितनी जोर से चूस रही थी। वह साँप-सा फन उठाए मुझे चुनौती दे रहा था। उन दोनों ने मुझे पेट के बल लिटा दिया। पेड़ू के नीचे तकिए डाल डालकर मेरे नितम्बों को उठा दिया। मेरे चूतड़ों को फैलाकर उनके बीच कई लोंदे वैसलीन लगा दिया। कुर्बानी का क्षण ! गर्दन पर छूरा चलने से पहले की तैयारी।

“पहले कोई पतली चीज से!”

छवि मोमबत्ती का पैकेट ले आई। हमने नया ही खरीदा था। पैकेट फाड़कर एक मोमबत्ती निकाली। कुछ ही क्षणों में गुदा के मुँह पर उसकी नोक गड़ी। छवि मेरे चूतड़ फैलाए थी। नाखून चुभ रहे थे। अरुण मोमबत्ती को पेंच की तरह बाएँ दाएँ घुमाते हुए अन्दर ठेल रहा था।

मेरी गुदा की पेशियाँ सख्त होकर उसके प्रवेश का विरोध कर रही थीं। वहाँ पर अजीब सी गुदगुदी लग रही थी। जल्दी ही मोम और वैसलीन के चिकनेपन ने असर दिखाया और नोक अन्दर घुस गई। फिर उसे धीरे धीरे अन्दर बाहर करने लगा।

मुझसे कहा जा रहा था,”रिलैक्सन… रिलैक्सव… टाइट मत करो… ढीला छोड़ो… रिलैक्स … रिलैक्स…..”

मैं रिलैक्स करने, ढीला छोड़ने की कोशिश कर रही थी। कुछ देर के बाद उन्होंने मोमबत्ती निकाल ली। गुदा में गुदगुदी और सुरसुरी उसके बाद भी बने रहे। कितना अजीब लग रहा था यह सब ! शर्म नाम की चिड़िया उड़कर बहुत दूर जा चुकी थी।

“अब असली चीज !” उसके पहले अरुण ने उंगली घुसाकर छेद को खींचकर फैलाने की कोशिश की, “रिलैक्स … रिलैक्स .. रिलैक्स…..”

इसे भी पढ़े – नौकरी देने के बहाने मेरा यौन शोषण हुआ

जब ‘असली चीज’ गड़ी तो मुझे उसके मोटेपन से मैं डर गई। कहाँ मोमबत्ती का नुकीलापन और कहाँ ये भोथरा मुँह। दुखने लगा। अरुण ने मेरी पीठ को दोनों हाथों से थाम लिया। छवि ने दोनों तरफ मेरे हाथ पकड़ लिए, गुदा के मुँह पर कसकर जोर पड़ा, उन्होंने एक-एक करके मेरे घुटनों को मोड़कर सामने पेट के नीचे घुसा दिया गया।

मेरे नितम्ब हवा में उठ गए। मैं आगे से दबी, पीछे से उठी। असुरक्षित। उसने हाथ घुसाकर मेरे पेट को घेरा… अन्दर ठेलता जबर्दस्तब दबाव… ओ माँ.ऽऽऽऽऽऽऽ… पहला प्यार, पहला प्रवेश, पहली पीड़ा, पहली अंतरंगता, पहली नग्नता… क्या-क्या सोचा था। यहाँ कोई चुम्बन नहीं था, न प्यार भरी कोई सहलाहट, न आपस की अंतरंगता जो वस्त्रनहीनता को स्वादिष्ट और शोभनीय बनाती है। सिर्फ रिलैक्स… रिलैक्स.. रिलैक्सप का यंत्रगान…..

मोमबत्ती की अभ्*यस्त* गुदा पर वार अंतत: सफल रहा- लिंग गिरह तक दाखिल हो गया। धीरे धीरे अन्दर सरकने लगा। अब योनि में भी तड़तड़ाहट होने लगी। उसमें ठुँसा केला दर्द करने लगा।

“हाँ हाँ हाँ, लगता है निकल रहा है!” छवि मेरे नितम्बों के अन्दर झाँक रही थी।

“मुँह पर आ गया है… मगर कैसे खींचूं?”

लिंग अन्दर घुसता जा रहा था। धीरे धीरे पूरा घुस गया और लटकते फोते ने केले को ढक दिया।

“बड़ी मुश्किल है।” छवि की आवाज में निराशा थी।

“दम धरो!” अरुण ने मेरे पेट के नीचे से तकिए निकाले और मेरे ऊपर लम्बा होकर लेट गया। एक हाथ से मुझे बांधकर अन्दर लिंग घुसाए घुसाए वह पलटा और मुझे ऊपर करता हुआ मेरे नीचे आ गया। इस दौरान मेरे घुटने पहले की तरह मुड़े रहे।

मैं उसके पेट के ऊपर पीठ के बल लेटी हो गई और मेरा पेट, मेरा योनिप्रदेश सब ऊपर सामने खुल गए।

छवि उसकी इस योजना से प्रशंसा से भर गई, ”यू आर सो क्लैवर !”

उसने मेरे घुटने पकड़ लिए। मैं खिसक नहीं सकती थी। नीचे कील में ठुकी हुई थी। मेरी योनि और केला उसके सामने परोसे हुए थे। छवि उन पर झुक गई। ‘ओह…’ न चाहते हुए भी मेरी साँस निकल गई। छवि के होठों और जीभ का मुलायम, गीला, गुलगुला… गुदगुदाता स्पर्श।

होंठों और उनके बीच केले को चूमना चूसना… वह जीभ के अग्रभाग से उपर के दाने और खुले माँस को कुरेद कुरेदकर जगा रही थी। गुदगुदी लग रही थी और पूरे बदन में सिहरनें दौड़ रही थीं। गुदा में घुसे लिंग की तड़तड़ाहट,योनि में केले का कसाव, ऊपर छवि की जीभ की रगड़… दर्द और उत्तेजना का गाढ़ा घोल…

मेरा एक हाथ छवि के सिर पर चला गया। दूसरा हाथ बिस्तर पर टिका था, संतुलन बनाने के लिए। अरुण ने लिंग को किंचित बाहर खींचा और पुन: मेरे अन्दर धक्का दिया। छवि को पुकारा, “अब तुम खींचो…..” छवि के होंठ मेरी पूरी योनि को अपने घेरे में लेते हुए जमकर बैठ गए। उसने जोर से चूसा। मेरे अन्दर से केला सरका….

एक टुकड़ा उसके दाँतों से कटकर होंठों पर आ गया। पतले लिसलिसे द्रव में लिपटा। छवि ने उसे मुँह के अन्दर खींच लिया और “उमऽऽऽ, कितना स्वादिष्ट है !” करती हुई चबाकर खा गई। मैं देखती रह गई, कैसी गंदी लड़की है ! मेरी चूत मस्त गरम हो चुकी थी, मेरे सिर के नीचे अरुण के जोर से हँसने की आवाज आई। उसने उत्साठहित होकर गुदा में दो धक्के और जड़ दिये। छवि पुन: चूसकर एक स्लाइस निकाली।

अरुण पुकारा, ”मुझे दो।”

पर छवि ने उसे मेरे मुँह में डाल दिया, “लो, तुम चखो।”

वही मुसाई-सी गंध मिली केले की मिठास। बुरा नहीं लगा। अब समझ में आया क्यों लड़के योनि को इतना रस लेकर चाटते चूसते हैं। अब तक मुझे यह सोचकर ही कितना गंदा लगता था पर इस समय वह स्वाभाविक, बल्कि करने लायक लगा। मैं उसे चबाकर निगल गई।

छवि ने मेरा कंधा थपथपाया,”गुड….. स्वादिष्ट है ना?”

वह फिर मुझ पर झुक गई। कम से कम आधा केला अभी अन्दर ही था।

“खट खट खट” …… दरवाजे पर दस्तक हुई।

मैं सन्न। वे दोनों भी सन्न। यह क्या हुआ?

“खट खट खट” ….. “अरुण, दरवाजा खोलो।”

मनीष उसके हॉस्टल से आया था। उसको मालूम था कि अरुण यहाँ है। किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। लड़कियों के कमरे में लड़का घुसा हुआ और दरवाजा बंद? क्या कर रहे हैं वे !!

“खट खट खट…. क्या कर रहे हो तुम लोग?”

जल्दी खोलना जरूरी था। छवि बोली, “मैं देखती हूँ।” अरुण ने रोकना चाहा पर समय नहीं था। छवि ने अपने बिस्तर की बेडशीट खींचकर मेरे उपर डाली और दरवाजे की ओर बढ़ गई। मनीष छवि की मित्र मंडली में काफी करीब था। किवाड़ खोलते ही “बंद क्यों है?” कहता मनीष अन्दर आ गया।

छवि ने उसे दरवाजे पर ही रोककर बात करने की कोशिश की मगर वह “अरुण बता रहा था माधुरी को कुछ परेशानी है?” कहता हुआ भीतर घुस गया। मुझे गुस्सा आया कि छवि ने किवाड़ खोल क्यों दिया, बंद दरवाजे के पीछे से ही बात करके उसे टालने की कोशिश क्यों नहीं की। उसकी नजर चादर के अन्दर मेरी बेढब ऊँची-नीची आकृति पर पड़ी।

“यह क्या है?” उसने चादर खींच दी। सब कुछ नंगा, खुल गया….. चादर को पकड़कर रोक भी नहीं पाई। उसकी आँखें फैल गर्इं।

मुझे काटो तो खून नहीं। कोई कुछ नहीं बोला। न छवि, न मेरे नीचे दबा अरुण, न मैं।

मनीष ढिठाई से हँसा, “तो यह परेशानी है माधुरी को… इसे तो मैं भी दूर कर सकता था।” वह अरुण की तरह जेंटलमैन नहीं था।

‘नहीं, यह परेशानी नहीं है !’ छवि ने आगे बढ़कर टोका।

“तो फिर?”

“इसके अन्दर केला फँस गया है। देखते नहीं?”

इसे भी पढ़े – तलाक के डर से इज्जत उतरवाती रही

अरुण मेरे नीचे दुबका था। मेरे दोनों पाँव सहारे के लिए अरुण की जांघों के दोनों तरफ बिस्तर पर जमे थे। टांगें समेटते ही गिर जाती। मनीष बिना संकोच के कुछ देर वहाँ पर देखा। फिर उसने नजर उठाकर मुझे, फिर माधुरी को देखा।

हम दोनों के मुँह पर केला लगा हुआ था। मुझे लग गया कि वह समझ गया है। व्यंग्य भरी हँसी से बोला, “तो केले का भोज चल रहा है!!” उंगली बढ़ाकर उसने मेरे मुँह पर लगे केले को पोछा और मेरी योनि की ओर इशारा करके बोला, “इसमें पककर तो और स्वादिष्ट हो गया होगा?”

हममें से कौन भला क्या कहता?

“मुझे भी खिलाओ।” वह हमारे हवाइयाँ उड़ते चेहरे का मजा ले रहा था।

“नहीं खिलाना चाहते? ठीक है, मैं चला जाता हूँ।”

रक्त शरीर से उठकर मेरे माथे में चला आया। बाहर जाकर यह बात फैला देगा। पता नही मैंने क्या कहा या किया कि छवि ने मनीष को पकड़कर रोक लिया। वह बिस्तर पर चढ़ी, मेरे पैरों को फैलाकर मेरी योनि में मुँह लगाकर चूसकर एक टुकड़ा काट ली। मनीष ने उसे टोका, ‘मुँह में ही रखो, मैं वहीं से खाऊँगा।’ उसने छवि का चेहरा अपनी ओर घुमा लिया।

दोनों के मुँह जुड़ गए।

यह सब क्या हो रहा था? मेरी आंखों के सामने दोनों एक-दूसरे के चेहरे को पकड़कर चूम चूस रहे थे। छवि उसे खिला रही थी, वह खा रहा था।

मनीष मुँह अलग कर बोला, “आहाहा, क्या स्वाद है। दिव्य, सोमरस में डूबा, आहाहा, आहाहा… दो दो जगहों का।” फिर मुँह जोड़ दिया।

दो दो जगहों का? हाँ, मेरी योनि और छवि के मुख का। सोमरस। मेरी योनि की मुसाई गंध के सिवा उसमें छवि के मुँह की ताजी गंध भी होगी। कैसा स्वाद होगा? छि: ! मैंने अपनी बेशर्मी के लिए खुद को डाँटा। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

“अब मुझे सीधे प्याले से ही खाने दो।”

छवि हट गई। मनीष उसकी जगह आ गया। मैंने न जाने कौन सेी हिम्मत जुटा ली थी। जब सब कुछ हो ही गया था तो अब लजाने के लिए क्या बाकी रहा था। मैंने उसे अपने मन की करने दिया। अंतिम छोटा-सा ही टुकड़ा अन्दर बचा था। अंतिम कौर।

“मेरे लिए भी रहने देना।” मेरे नीचे से अरुण ने आवाज लगाई। अब तक उसमें हिम्मत आ गई थी।

“तुम कैसे खाओगे? तुम तो फँसे हुए हो।” मनीष ने कहकहा लगाया, “फँसे नहीं, धँसे हुए…..”

छवि ने बड़े अभिभावक की तरह हस्तक्षेप किया, “मनीष, तुम अरुण की जगह लो। अरुण को फ्री करो।”

क्या ????

हैरानी से मेरा मुँह इतना बड़ा खुल गया। छवि यह क्या कर रही है?

मनीष ने झुककर मेरे खुले मुँह पर चुंबन लगाया, “अब शोर मत करो।”

उसने जल्दी से बेल्ट की बकल खोली, पैंट उतारी। चड़ढी सामने बुरी तरह उभरी तनी हुई थी। उभरी जगह पर गीला दाग।

वह मेरे देखने को देखता हुआ मुसकुराया, “अच्छी तरह देख लो।” उसने चड्डी नीचे सरका दी। “यह रहा, कैसा है?”

इस बार डर और आश्चर्य से मेरा मुँह खुला रह गया।

वह बिस्तर पर चढ़ गया और मेरे खुले मुँह के सामने ले आया,”लो, चखो।”

मैंने मुँह घुमाना चाहा पर उसने पकड़ लिया,”मैंने तुम्हारा वाला तो स्वाद लेकर खाया, तुम मेरा चखने से भी डरती हो?”

मेरी स्थिति विकट थी, क्या करूँ, लाचार मैंने छवि की ओर देखा, वह बोली, “चिंता न करो। गो अहेड, अभी सब नहाए धोए हैं।”

मुझे हिचकिचाते देखकर उसने मेरा माथा पकड़ा और उसके लिंग की ओर बढ़ा दिया।

मनीष का लिंग अरुण की अपेक्षा सख्त और मोटा था। उसके स्वभाव के अनुसार। मुँह में पहले स्पर्श में ही लिसलिसा नमकीन स्वाद भर गया। अधिक मात्रा में रिसा हुआ रस। मुझे वह अजीब तो नहीं लगा, क्योंकि अरुण के बाद यह स्वाद और गंध अजनबी नहीं रह गए थे लेकिन अपनी असहायता और दुर्गति पर बेहद क्षोभ हो रहा था।

मोटा लिंग मुँह में भर गया था। मनीष उसे ढिठाई से मेरे गले के अन्दर ठेल रहा था। मुझे बार बार उबकाई आती। दम घुटने लगता। पर कमजोर नहीं दिखने की कोशिश में किए जा रही थी। छवि प्यार से मेरे माथे पर हाथ फेर रही थी लेकिन साथ-साथ मेरी विवशता का आनन्द भी ले रही थी।

जब जब मनीष अन्दर ठेलता वह मेरे सिर को पीछे से रोककर सहारा देती। दोनों के चेहरे पर खुशी थी। छवि हँस रही थी। मैं समझ रही थी उसने मुझे फँसाया है। अंतत: मनीष ने दया की। बाहर निकाला। आसन बदले जाने लगे। मुझे जिस तरह से तीनों किसी गुड़िया की तरह उठा उठाकर सेट करने लगे उससे मुझे बुरा लगा।

इसे भी पढ़े – बॉयफ्रेंड साथ होटल में पहली चुदाई

मैंने विरोध करते हुए मनीष को गुदा के अन्दर लेने से मना कर दिया,”मार ही डालोगे क्या?”

मुझे अरुण की ही वजह से अन्दर काफी दुख रहा था। मनीष के से तो फट ही जाती। और मैं उस ढीठ को अन्दर लेकर पुरस्कृत भी नहीं करना चाहती थी। केला इतनी देर में अन्दर ढीला भी हो गया था। जितना बचा था वह आसानी से अरुण के मुँह में खिंच गया।

वह स्वाद लेकर केले को खा रहा था। उसके चेहरे पर बच्चे की सी प्रसन्नता थी। उसने छवि की तरह मुझे फँसाया नहीं था, न ही मनीष की तरह ढीठ बनकर मुझे भोगने की कोशिश की थी। उसने तो बल्कि आफर भी किया था कि मैं नहीं चाहती हूँ तो वह चला जाएगा।

पहली बार वह मुझे तीनों में भला लगा। योनि खाली हुई लेकिन सिर्फ थोड़ी देर के लिए। उसकी अगली परीक्षाएँ बाकी थीं। अरुण को दिया वादा दिमाग में हथौड़े की तरह बज रहा था,‘जो इज्जत केले को मिली है वह मुझे भी मिले।’ समस्या की सिर्फ जड़ खत्म हुई थी, डालियाँ-पत्ते नहीं। काश, यह सब सिर्फ एक दु:स्वप्न निकले। मां संतोषी !

लेकिन दु:स्वप्न किसी न समाप्त होने वाली हॉरर फिल्म की तरह चलता जा रहा था। मैं उसकी दर्शक नहीं, किरदार बनी सब कुछ भुगत रही थी। मेरी उत्तेजना की खुराक बढ़ाई जा रही थी। अरुण मेरी केले से खाली हुई योनि को पागल-सा चूम, चाट, चूस रहा था। उसकी दरार में जीभ घुसा-घुसाकर ढूँढ रहा था।

गुदगुदी, सनसनाहट की सीटी कानों में फिर बजनी शुरू हो गई। होश कमजोर होने लगे। क्या, क्यों, कैसे हो रहा है….. पता नहीं। नशे में मुंदती आँखों से मैंने देखा कि मेरी बाईं तरफ मनीष, दार्इं तरफ छवि लम्बे होकर लेट रहे हैं।

उन्होंने मेरे दोनों हाथों को अपने शरीरों के नीचे दबा लिया है और मेरे पैरों को अपने पैरों के अन्दर समेट लिया है। मेरे माथे के नीचे तकिया ठीक से सेट किया जा रहा है और ….. स्तनों पर उनके हाथों का खेल। वे उन्हें सहला, दबा, मसल रहे हैं, उन्हें अलग अलग आकृतियों में मिट्टी की तरह गूंध रहे हैं।

चूचुकों को चुटकियों में पकड़कर मसल रहे हैं, उनकी नोकों में उंगलियाँ गड़ा रहे हैं। दर्द होता है, नहीं दर्द नहीं, उससे ठीक पहले का सुख, नहीं सुख नहीं, दर्द। दर्द और सुख दोनों ही। वे चूचुकों को ऐसे खींच रहे हैं मानों स्तनों से उखाड़ लेंगे। खिंचाव से दोनों स्तन उल्टे शंकु के आकार में तन जाते हैं।

नीचे मेरी योनि शर्म से आँखें भींचे है। अरुण उसकी पलकों पर प्यार से ऊपर से नीचे जीभ से काजल लगा रहा है। उसकी पलकों को खोलकर अन्दर से रिसते आँसुओं को चूस चाट रहा है। पता नहीं उसे उसमें कौन-सा अद़भुत स्वाद मिल रहा है। मैं टांगें बंद करना चाहती हूँ लेकिन वे दोनों तरफ से दबी हैं।

विवश, असहाय। कोई रास्ता नहीं। इसलिए कोई दुविधा भी नहीं। जो कुछ आ रहा है उसका सीधा सीधा बिना किसी बाधा के भोग कर रही हूँ। लाचार समर्पण। और मुझे एहसास होता है- इस निपट लाचारी, बेइज्जंती, नंगेपन, उत्तेजना, जबरदस्ती भोग के भीतर एक गाढ़ा स्वाद है, जिसको पाकर ही समझ में आता है।

शर्म और उत्तेजना के गहरे समुद्र में उतरकर ही देख पा रही हूँ आनन्दानुभव के चमकते मोती। चारों तरफ से आनन्द का दबाव। चूचुकों, योनि, भगनासा, गुदा का मुख, स्तनों का पूरा उभार, बगलें… सब तरफ से बाढ़ की लहरों पर लहरों की तरह उत्तेकजना का शोर।

पूरी देह ही मछली की तरह बिछल रही है। मैं आह आह कर कर रही हूँ वे उन आहों में मेरी छोड़ी जा रही सुगंधित साँस को अपनी साँस में खीच रहे हैं। मेरे खुलते बंद होते मुँह को चूम रहे हैं। मनीष, छवि, अरुण…. चेहरे आँखों के सामने गड्डमड हो रहे हैं, वे चूस रहे हैं, चूम रहे हैं, सहला रहे हैं,… नाभि, पेट,, नितंब, कमर, बांहें, गाल, सभी… एक साथ..।

प्यार? वह तो कोई दूसरी चीज है- दो व्यक्तियों का बंधन, प्रतिबद्धता। यह तो शुद्ध सुख है, स्वतंत्र, चरम, अपने आप में पूरा। कोई खोने का डर नहीं, कोई पाने का लालच नहीं। शुद्ध शारीरिक, प्राकृतिक, ईश्वर के रचे शरीर का सबसे सुंदर उपहार।

ह: ह: ह: तीनों की हँसी गूंजती है। वे आनन्दमग्न हैं। मेरा पेट पर्दे की तरह ऊपर नीचे हो रहा है, कंठ से मेरी ही अनपहचानी आवाजें निकल रही हैं। मैं आँखें खोलती हूँ, सीधी योनि पर नजर पड़ती है और उठकर अरुण के चेहरे पर चली जाती है, जो उसे दीवाने सा सहला, पुचकार रहा है।

उससे नजर मिलती है और झुक जाती है। आश्चर्य है इस अवस्था में भी मुझे शर्म आती है। वह झुककर मेरी पलकों को चूमता है। छवि हँसती है। मनीष, वह बेशर्म, कठोर मेरी बाईं चुचूक में दाँत काट लेता है। दर्द से भरकर मैं उठना चाहती हूँ। पर उनके भार से दबी हूँ। छवि मेरे होंठ चूस रही है।

अरुण कह रहा है,”अब मैं वह इज्जत लेने जा रहा हूँ जो तुमने केले को दी।”

मैं उसके चेहरे को देखती हूँ, एक अबोध की तरह, जैसे वह क्या करने वाला है मुझे नहीं मालूम।

छवि मुझे चिकोटी काटती है, ”डार्लिंग, तैयार हो जाओ, इज्जत देने के लिए। तुम्हारा पहला अनुभव। प्रथम संभोग, हर लड़की का संजोया सपना।”

अरुण अपना लिंग मेरी योनि पर लगाता है, होंठों के बीच धँसाकर ऊपर नीचे रगड़ता है।

छवि अधीर है,”अब और कितनी तैयारी करोगे? लाओ मुझे दो।”

उठकर अरुण के लिंग को खींचकर अपने मुँह में ले लेती है। मैं ऐसी जगह पहुँच गई हूँ जहाँ उसे यह करते देखकर गुस्सा भी नही आ रहा।

छवि कुछ देर तक लिंग को चूसकर पूछती है,”अब तैयार हो ना? करो !”

मनीष बेसब्र होकर होकर अरुण को कहता है,”तुम हटो, मैं करके दिखाता हूँ।”

मैं अपनी बाँह से पकड़कर उसे रोकती हूँ। वह मुझे थोड़ा आश्चर्य से देखता है। छवि झुककर मेरे योनि के होंठों को खोलती है। मनीष मेरा बायाँ पैर अपनी तरफ खींचकर दबा देता है, ताकि विरोध न कर सकूँ। मैं विरोध करूंगी भी नहीं, अब विरोध में क्या रखा है, मैं अब परिणाम चाहती हूँ।

इसे भी पढ़े – चाची ने मना किया तो मुझे चोदने लगे चाचा

अरुण छेद के मुँह पर लिंग टिकाता है, दबाव देता है। मैं साँस रोक लेती हूँ, मेरी नजर उसी बिन्दु पर टिकी है। केले से दुगुना मोटा और लम्बा। छेद के मुँह पर पहली खिंचाव से दर्द होता है, मैं उसे महत्व नहीं देती। अरुण फिर से ठेलता है, थोड़ा और दर्द। वह समझ जाता है मुझे तोड़ने में श्रम करना होगा।

छवि को अंदाजा हो रहा है, वह उसका चेहरा देख रही है। वह उसे हमेशा मनीष की अपेक्षा अधिक तरजीह देती है। मुझे यह बात अच्छी लगती है। मनीष जबर्दस्ती घुस आया है। छवि पूछती है,”वैसलीन लाऊँ?” पर इसकी जरूरत नहीं, चूमने चाटने से पहले से ही काफी गीली है।

अरुण बोलता है,”इसको ठीक से पकड़ो।”

दोनों मुझे कसकर पकड़ लेते हैं। अरुण, एक भद्रपुरुष अब एक जानवर की तरह जोर लगाता है, मेरे अन्दर लकड़ी-सी घुसती है, चीख निकल जाती है मेरी। मैं हटाने के लिए जोर लगाती हूँ, पर बेबस। अरुण बाहर निकालता है, लेकिन थोड़ा ही। लिंग का लाल डरावना माथा अन्दर ही है। मेरा पेट जोर जोर से ऊपर नीचे हो रहा है।

मेरी सिसकियाँ सुनकर छवि दिलासा दे रही है,”बस पहली बार ही…… ”

मनीष- असभ्य जानवर क्रूर खुशी से हँस रहा है, कहता है, ”बस, अबकी बार इसे फाड़ दे।”

छवि उसे डाँटती है। ललकार सुनकर अरुण की आँखों में खून उतर आया है। मुझे मर्दों से डर लगता है, कितने भी सभ्य हों, कब वहशी बन जाएँ, ठिकाना नहीं।

छवि अरुण को टोकती है,”धीरे से !”

मगर अरुण के मुँह से ‘हुम्म’ की-सी आवाज निकलती है और एक भीषण वार होता है। मेरी आँखों के आगे तारे नाच जाते हैं, मनीष और छवि मुँह बंद कर मेरी चीख दबा देते हैं। कुछ देर के लिए चेतना लुप्त हो जाती है… मेरी आँखें खुलती हैं, नजर सीधी वहीं पर जाती है।

अरुण का पेडू मेरे पेडू से मिला हुआ है। लिंग अदृश्य है। मेरे ताजे मुंडे हुए पेडू में उसके पेड़ू के छोटे छोटे बालों की खूंटियाँ गड़ रही हैं। सब मेरा चेहरा देख रहे हैं। छवि से नजर मिलने पर वह मुसकुराती है। अरुण धीरे धीरे लिंग निकालता है। लिंग का माथा लाल खून में चमक रहा है। मुझे खून देखकर डर लगता है। आँसू निकल जाते हैं, यह मेरा क्या कर डाला।

लेकिन छवि प्रफुल्लित है, वह ‘बधाई हो’ कहकर मेरा गाल थपथपाती है।

मनीष ताली बजाता है,”क्या बात है यार, एकदम फाड़ डाला !”

अरुण मानों सिर झुकाकर प्रशंसा स्वीकार करता है। सभी मुस्कुरा रहे हैं, मैं सिर घुमा लेती हूँ। मनीष बढ़ता है और मेरी योनि से रिस रहे रक्त को उंगली पर उठाता है और उसे चाट जाता है,”आइ लाइक ब्ल्ड” (मुझे खून पसंद है।)

छवि उसे देखती रह जाती है, कैसा आदमी है !

मनीष उत्साह में है,”तगड़ा माल तोड़ा है तूने याऽऽऽऽर…… ”

बार-बार बहते खून को देख रहा है। अरुण आवेश में है, खून और मनीष की उकसाहटें उसे भी जानवर बना देती हैं। वह फिर से लिंग को मेरी योनि पर लगाता है और एक ही धक्के में पूरा अन्दर भेज देता है। मैं विरोध नहीं करती, हालाँकि अब मेरे हाथ पैर छोड़ दिए गए हैं, पर अब बचाने को क्या बचा है?

छवि भी उत्साहित है,”अब मालूम हो रहा होगा इसको असली सेक्स का स्वाद। इतने दिन से मेरे सामने सती माता बनी हुई थी। आज इसका घमण्ड टूटा। जब से इसे देखा था तभी से मैं इस क्षण का इंतजार कर रही थी।” मनीष भी साथ देता है।

रक्त और चिकने रसों की फिसलन से ही लिंग बार बार घुस जा रहा है, नहीं तो रास्ता बहुत तंग है और इतना खिंचाव होता है कि दर्द करता है। केले से दुगुना लम्बा और मोटा होगा। मैं सह रही हूँ। योनि को ढीला छोड़ने की कोशिश कर रही हूँ ताकि दर्द कम हो।

अरुण मेरे ऊपर लेट गया है और मुझमें हाथ घुसाकर लपेट लिया है, मुझे चूम रहा है, कोंच रहा है कि उसके चुम्बनों का जवाब दूँ। मेरी इच्छा नहीं है लेकिन….। वह जितना हो सकता है मुझमें धँसे हुए ही ऊपर-नीचे कर रहा है। मुझे छूटने, साँस लेने, योनि को राहत देने का मौका ही नहीं मिलता।

इससे अच्छा तो है यह जल्दी खत्म हो। मैं उसके चुम्बनों का जवाब देती हूँ। मेरी जांघों पर उसकी जांघें सरक रही हैं, मेरे हाथ उसकी पीठ के पसीने पर फिसल रहे हैं। मेरी गुदा के अगल बगल नितम्बों पर जांघें टकरा रही हैं- थप थप थप थप। रह-रहकर गुदा के मुँह पर फोते की गोली चोट कर जाती है।

उससे गुदा में मीठी गुदगुदी होती है। मनीष और छवि मेरे स्तन चूस रहे हैं, मेरे पेट को, नितम्बों को सहला रहे हैं। अचानक गति बढ़ जाती है, शायद अरुण कगार पर है, जोर जोर की चोट पड़ने लगी है, योनि में चल रहा घर्षण मुझे कुछ सोचने ही नहीं दे रहा, हाँफ रही हूँ, हर तरफ चोट, हर तरफ से वार। दिमाग में बिजलियाँ चमक रही हैं।

“अब मेरा झड़ने वाला है।”

“देखो, यह भी पीक पर आ गई है।”

“अन्दर ही कर रहा हूँ।”

“तुम केला निकालने आए हो या इसे प्रेग्नेंट करने?”

“याऽऽर… अन्दर ही कर दे। मजा आएगा।”

मनीष उसे निकालने से रोक रहा है। “साली की मासिक रुक गई तब तो और मजा आ जाएगा।”

“आह, आह, आह” मेरे अन्दर झटके पड़ रहे हैं।

“गुड, गुड, गुड, छवि, तुम इसकी क्लिेटोरिस सहलाओ। इसको भी साथ फॉल कराओ।”

एक हाथ मेरे अन्दर रेंग जाता है। अरुण मुझ पर लम्बा हो गया है। मुझे कसकर जकड़ लेता है। जैसे हड़डी तोड़ देगा। भगनासा बुरी तरह कुचल रही है। ओऽऽऽह… ओऽऽऽह… ओऽऽऽह…..

गुदा के अन्दर कोई चीज झटके से दाखिल हो जाती है।

मैं खत्म हूँ………

मैं खत्म हूँ………

मैं खत्म हूँ………

जिंदगी वापस लौटती है। छवि सीधे मेरी आँखों में देख रही है, चेहरे पर विजयभरी मुस्कान, बड़ी ममता से मेरी ललाट का पसीना पोछती है, होंठों के एक किनारे से मेरी निकल आई लार को जीभ पर उठा लेती है। लगता है वह सचमुच वह मुझे प्यार करती है? बहुत तकलीफ होती है मुझे इस बात से। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

वह रुमाल से मेरी योनि, मेरी गुदा पोंछ रही है। मेरा सारा लाज-शर्म लुट चुका है। फिर भी पाँव समेटना चाहती हूँ। छवि रुमाल उठाकर दिखाती है। उसमें खून और वीर्य के भीगे धब्बे हैं।

वह उसे अरुण को दे देती है,”तुम्हारी यादगार।”

मैं उठने का उपक्रम करती हूँ, मनीष मुझे रोकता है,”रुको, अभी मेरी बारी है।”

“तुम्हारी बारी क्यों?” छवि आपत्ति करती है।

“क्यों? मैं इसे नहीं लूँगा?”

“तुमने क्या इसे वेश्या समझ रखा है?” छवि की आवाज अप्रत्याशित रूप से तेज हो जाती है।

‘क्यों ? फिर अरुण ने कैसे लिया?”

“उसने तो उसे समस्या से निकाला। तुमने क्या किया?”

मनीष नहीं मानता। “नहीं मैं करूँगा।”

अरुण कपड़े पहन रहा है। उसका हमदर्दी दोस्त के प्रति है। कमीज के बटन लगाते हुए कहता है, ”करने दो ना इसे भी।”

छवि गुस्से में आ जाती है, “तुम लोग लड़की को क्या समझते हो? खिलौना?” छवि मुझे बिस्तर से खींचकर खड़ी कर देती है, ”तुम कपड़े पहनो।”

फिर वह उन दोनों की ओर पलट कर बोलती है, ”लगता है तुम लोगों ने मेरे व्यवहार का गलत मतलब निकाला है। सुनो मनीष, जितना तुम्हें मिल गया वही तुम्हारा बहुत बड़ा भाग्य है। अब यहीं से लौट जाओ। तुम मेरे दोस्त हो। मैं नहीं चाहती मुझे तुम्हारे खिलाफ कुछ करना पड़े।

मनीष कहता है,”यह तो अन्याय है। एक दोस्त को फेवर करती हो एक को नहीं।”

छवि, ”तुम मुझे न्याय सिखा रहे हो? जबरदस्ती घुस आए और …..”

मनीष,”अरुण को तो बुलाकर दिलवाया, मैं खुद आया तब भी नहीं? यह क्या तुम्हारा यार लगता है?”

छवि की तेज आवाज गूंजी,”तुम मुझे गाली दे रहे हो?”

अरुण को भी उसके ताने से से क्रोध आ जाता है,”मनीष, छोड़ो इसे।”

“चुप रह बे ! तू क्या छवि का भड़ुआ है? एक लड़की चुदवा दी तो बड़ा पक्ष लेने लगा।”

पानी सिर से ऊपर गुजर जाता है। दोनों की एक साथ ‘खबरदार’ गूंज जाती है, मारने के लिए दौड़े अरुण को छवि रोकती है। मनीष पर उसकी उंगली तन जाती है,”खबरदार एक लफ्ज भी आगे बोले, चुपचाप यहाँ से निकल जाओ। मत भूलो कि लड़कियों के हॉस्टल में एक लड़की के कमरे में खड़े हो। यहीं खड़े खड़े अरेस्ट हो जाओगे।”

मैं जल्दी-जल्दी कपड़े पहन रही हूँ।

कमरे की चिल्लाहटें बाहर चली जाती हैं, दस्तक होने लगती है,”क्या़ बात है छवि, दरवाजा खोलो !”

अब मामला मनीष के हाथ से निकल चुका है, वह कुंठा में अपने मुक्के में मुक्का मारता है।

मैं सुरक्षित हूँ। मेरा खून चखने वाले उसे राक्षस को एक लात जमाने की इच्छा होती है !

दुर्घटना से उबर चुकी हूँ। लेकिन स्थाई जख्म के साथ।

छवि निर्देश देती है,”कोई कुछ नहीं बोलेगा। सब कोई एकदम सामान्य सा व्य़वहार करेंगे।”

इसे भी पढ़े – हॉस्टल की लड़की पैसे लेकर चुदवाने लगी 2

छवि दरवाजा खोलकर साथियों से बात कर रही है,’हाय अल्का, हाय प्रीति…. कुछ नहीं, हम लोग ऐसे ही सेलीब्रेट कर रहे थे। एक खास बाजी जीतने की।” मेरा कलेजा मुँह को आ जाता है, कहीं बता न दे। पर छवि को गेंद गोल तक ले जाने फिर वहाँ से वापस लौटा लाने में मजा आता है। ऐसे सामान्य ढंग से बात कर रही है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। बड़ी अभिनय-कुशल है। उस दिन छवि ने अपने करीबी दोस्त मनीष को खो दिया- मेरी खातिर। उस वहशी से मेरी रक्षा की। एक से बाद एक अपमान के दौर में एक जगह मेरे छोटे से सम्मान को बचाया।

उसने मुझे केले के गहरे संकट से निकाला। कितना बड़ा एहसान किया उसने मुझपर ! लेकिन किस कीमत पर? मेरे मन और आत्मा में जो घाव लगा, मैं किसी तरह मान नहीं पाती कि उसके लिए छवि जिम्मेदार नहीं थी। बल्कि उसी ने मेरी दुर्दशा कराई। उसी के उकसावे पर मैंने केले को आजमाया था। मेरी उस छोटी सी गलती को छवि ने पतन की हर इंतिहा से आगे पहुँचा दिया। फिर भी पहला दोष तो मेरा ही था। मैंने छवि से दोस्ती तोड़ देनी चाही- बेहद अप्रत्यक्ष तरीके से, ताकि अहसान फरामोश नहीं दिखूँ।

ये Hostel Porn की कहानी आपको पसंद आई तो इसे अपने दोस्तों के साथ फेसबुक और Whatsapp पर शेयर करे………………

अपने दोस्तों के साथ शेयर करे-

Related posts:

  1. रंडी की नथ उतारने की रस्म पूरी हुई
  2. हॉस्टल की लड़की पैसे लेकर चुदवाने लगी 2
  3. कुंवारी लड़की को कामुक किया अंकल ने
  4. मामा ने प्रजनन का पाठ पढ़ा कर पेला मुझे 2
  5. ठरकी बुड्ढे ने कुंवारी माल को चोद लिया
  6. दोस्त की खूबसूरत बहन की चूत बहुत गरम थी

Filed Under: Kunwari Ladki Ki Chudai Tagged With: Anal Fuck Story, Blowjob, Boobs Suck, College Girl Chudai, Hardcore Sex, Hindi Porn Story, Kamukata, Kunwari Chut Chudai, Mastaram Ki Kahani, Pahli Chudai, Sexy Figure

Reader Interactions

Comments

  1. Raman deep says

    मार्च 6, 2024 at 2:47 अपराह्न

    कोई लड़की भाभी आंटी तलाकशुदा महिला जिसकी चूत प्यासी हो ओर मोटे लड से चुदवाना चाहती हो तो मुझे कॉल और व्हाट्सएप करे 7707981551 सिर्फ महिलाएं….लड़के कॉल ना करे
    Wa.me/917707981551?text=Hiii Raman

Primary Sidebar

हिंदी सेक्स स्टोरी

कहानियाँ सर्च करे……

नवीनतम प्रकाशित सेक्सी कहानियाँ

  • Train Me Chut Marwai Sexy Aurat Ne
  • माँ बेटे ने ट्रेन में जोरदार चुदाई की
  • Ration Leke Chut Chudwa Liya
  • प्यासी विधवा टीचर ने मासूम स्टूडेंट से चुदवाया
  • Summer Vacation Me Sexy Maje Kiye Cousin Ne

Desi Chudai Kahani

कथा संग्रह

  • Antarvasna
  • Baap Beti Ki Chudai
  • Bhai Bahan Sex Stoy
  • Desi Adult Sex Story
  • Desi Maid Servant Sex
  • Devar Bhabhi Sex Story
  • First Time Sex Story
  • Girlfriend Boyfriend Sex Story
  • Group Mein Chudai Kahani
  • Hindi Sex Story
  • Jija Sali Sex Story
  • Kunwari Ladki Ki Chudai
  • Lesbian Girl Sex Kahani
  • Meri Chut Chudai Story
  • Padosan Ki Chudai
  • Rishto Mein Chudai
  • Teacher Student Sex
  • माँ बेटे का सेक्स

टैग्स

Anal Fuck Story Bathroom Sex Kahani Blowjob Boobs Suck College Girl Chudai Desi Kahani Family Sex Hardcore Sex Hindi Porn Story Horny Girl Kamukata Kunwari Chut Chudai Mastaram Ki Kahani Neighbor Sex Non Veg Story Pahli Chudai Phone Sex Chat Romantic Love Story Sexy Figure Train Mein Chudai

हमारे सहयोगी

क्रेजी सेक्स स्टोरी

Footer

Disclaimer and Terms of Use

HamariVasna - Free Hindi Sex Story Daily Updated