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परिवार में चुदाई की अनोखी कहानी 1

दिसम्बर 14, 2023 by hamari

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मेरे परिवार में मेरे पापा, मम्मी मेरी गिफ़्टी दीदी और मैं चार लोग हैं। हम लोग नोएडा में रहते हैं। मेरे पापा और मम्मी दोनों सरकारी जॉब में हैं। दीदी की पिछले साल ही शादी हुई है, जीजू की लन्दन में किसी विदेशी बैंक में अच्छी जॉब है, लेकिन जीजू शादी के बाद दीदी को वीजा प्रॉब्लम के कारण लन्दन नहीं ले जा पाये हैं. Maa Beta Porn XXX

दीदी अभी भी हमारे साथ ही रहकर अपनी सॉफ़्ट्वेयर कम्पनी में जॉब कर रही है। जीजू हर दो तीन महिने में आते जाते रहते हैं। मेरे घर पर झाड़ू पोंछा सफ़ाई का काम करने वाली सन्नो को जब भी मम्मी पापा घर पर ना होते, और दीदी जॉब पर गयी होती.

तो मैं उसको एक हजार का नोट देकर उस से अपना लण्ड चुसवाया करता था। सन्नो की अभी शादी नहीं हुई थी, एक बार मैंने उससे अपना लण्ड चुसवाते हुए पूछा कि किस किस से चुदी है वो, तो उसने झिझकते हुए अपनी आपबीती सुना दी।

सन्नो की आप बीती उसकी खुद की जुबानी

मेरा नाम सन्नो है, मेरे परिवार में मेरी मम्मी, पापा और मेरा छोटा भाई अमर है, पहले हम जयपुर में रहते थे, कुछ साल पहले ही नोएडा आये हैं। मेरी उम्र 20 साल की है और मेरे छोटे भाई की उम्र 19 साल की। पापा एक फ़ैक्ट्री में मजदूरी करते थे और मम्मी बड़े बड़े घरों में सफ़ाई पोंछे का काम करती थी।

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दो साल पहले पापा की एक रोड एक्सीडेन्ट में डैथ हो गयी थी, उसके बाद से मैंने मम्मी के साथ कोठियों में सफ़ाई पोंछे का काम करना शुरु कर दिया था। हम एक कच्ची बस्ती में रहते हैं, हमारे घर में दो कमरे हैं, जब तक पापा थे तब तक मम्मी पापा एक कमरे में, और मैं और अमर दूसरे कमरे में सोया करते थे।

जब मैं और अमर छोटे थे तब बाकी सभी भाई बहनों की तरह डॉक्टर डॉक्टर खेलते हुए एक दूसरे के शरीर की संरचना को समझने की कोशिश करते। हाँलांकि डॉक्टर डॉक्टर खेलते हुए ना जाने कब से अमर मुझे चोद रहा है मुझे याद नहीं, लेकिन फ़िर भी जब पहली बार हमारे यौनांगों ने एक दूसरे के यौनांगों को छुआ था उसकी मुझे अभी भी अच्छी तरह से याद है।

हम उस समय बच्चे नहीं थे, और बहुत बड़े हो चुके थे, और वो छोटे भाई अमर के साथ पहली अविस्मरणीय चुदाई, मुझे याद है किस तरह मेरी छोटी सी चूत ने अमर के खड़े लण्ड के सुपाड़े को अपने अंदर लेकर उसको बेतहाशा जकड़ लिया था।

जब हम छोटे थे तब जब भी कभी रात में बगल के कमरे में मम्मी पापा चुदाई करते, तो मैं और अमर आधे सोते हुए उनकी चुदाई की आवाजें साफ़ सुना करते। मम्मी हम दोनों को बैड पर सुला कर चली जातीं और फ़िर शुरु होता मम्मी पापा की चुदाई का खेल.

चुदते हुए मम्मी जोर जोर से कराहने की आवाज निकाला करती थीं, और फ़िर दोनों के हांफ़ते हुए तेज तेज साँस लेने की आवाज सुनाई देती। हर रात ऐसा ही होता कि जब हम जाग रहे होते, तभी पापा मम्मी को कुतिया बहन की लौड़ी और भी गंदी गंदी गाली देते हुए उनके ऊपर चोदने के लिये चढ जाते.

और फ़िर दूसरे कमरे से आ रही मम्मी के कराहने की आवाज के साथ साथ खटिया के चरमराने की आवाज सुना करते। जब पापा मम्मी को चोद रहे होते, तो अमर अपने पाजामे में हाथ घुसा कर अपना लण्ड सहलाया करता। क्योंकि मैं और अमर एक ही बैड पर सोया करते थे इसलिये मैं उसकी सब हरकतों से वाकिफ़ थी।

कई बार जब मम्मी दरवाजा ठीक से बंद करना भूल जातीं तब मैं और अमर दरवाजे की झिर्री में से मम्मी पापा की चुदाई को देखा करते। पापा मम्मी को बहुत अच्छे से चोदा करते थे। वो मम्मी के ऊपर चढ जाते और मम्मी चुदने के लिये अपनी टांगे ऊपर उठा कर फ़ैला लेती.

पापा मम्मी की चूत में लण्ड घुसाने से पहले उसके ऊपर ढेर सारा थूक लगाते, और फ़िर आगे झुककर उसमें अपना फ़नफ़नाता हुआ लण्ड एक झटके में पेल देते। और फ़िर शुरू होती चुदाई की हर झटके के साथ वो ऊह्ह आह्ह, जो हम दोनों भाई बहनों को मंत्र मुग्ध कर देतीं।

मम्मी अपनी गाँड़ उछाल उछाल कर पापा का चुदाई में भरपूर सहयोग देतीं। दो बच्चे पैदा करने के बाद मम्मी की चूत ढीली हो चुकि थी, इसलिये चुदाई शुरू होने के कुछ देर बाद जब वो पूरी तरह गीली हो जाती तो पापा के लण्ड के हर झटके के साथ उसमें से फ़च फ़च की आवाज आती, और मम्मी के कराहने की आवाज तेज होने लगती।

हम उनकी चुदाई की आवाज सुनकर ही समझ जाते कि उनकी चुदाई कब चरम पर पहुँचने वाली है, और कब पापा अपने लण्ड का पानी मम्मी की चूत में छोड़ने वाले हैं। कभी कभी तो मम्मी पापा की चुदाई इतनी लम्बी चला करती थी कि मैं और अमर दरवाजे के पास खड़े होकर देखते हुए थक जाते।

बहुत बार मम्मी पापा से विनती किया करतीं, इसको ऐसे ही अंदर डाल के चोदते रहो, और भी ना जाने क्या क्या चुदते हुए खुशी में मम्मी लगातार बड़बड़ाया करती थीं। पापा मम्मी की बात मानते हुए जब तक लण्ड को मम्मी की चूत में अंदर बाहर करते रहते जब तक कि मम्मी उनको जोर से अपनी बाँहों में जकड़कर जोर से चीखते हुए झड़ नहीं जाती थीं।

जब पापा सुनिश्चित कर लेते की मम्मी झड़ चुकि हैं तो उसके बाद पापा अपने लण्ड से पानी निकालने के लिये अपनी मन मर्जी चुदाई शुरु किया करते थे। फ़िर उनके लण्ड के झटकों की स्पीड तेज हो जाती, और वो बेतहाशा ताबड़ तोड़ अपने लण्ड का बेरहमी से मम्मी की गद्दे दार चूत पर प्रहार करने लगते।

और फ़िर जल्द ही झड़ते हुए मम्मी के बड़े बड़े मम्मों पर अपना सिर टिका लेते, और उनका लण्ड मम्मी की चूत की सुरंग में बच्चे पैदा करने वाला जूस ऊँडेल रहा होता। और फ़िर पापा मम्मी के ऊपर से उतरकर सीधे लेटकर सो जाते, और कुछ ही मिनटों में खर्राटे भरने लगते।

जैसे ही उनकी चुदाई खत्म होती, मैं और अमर जल्दी से अपने बैड पर आकर लेट जाते, क्योंकि चुदाई के तुरंत बाद मम्मी आगे से खुला गाउन पहन कर हमारे रुम में चैक करने आतीं कि हम दोनों ठीक से सो रहे हैं। जब मम्मी हमारे ऊपर हमको चादर या कम्बल से उढाने के लिये झुकतीं तो मैं और अमर सोने का बहाना बनाया करते।

बहुत बार ऐसा भी होता कि मम्मी अपने गाऊन के सामने वाले बटन बंद किये बिना ही हमारे कमरे में आ जाया करतीं और मम्मी के लटकते हुए बड़े बड़े मम्मे हमको दिखाई दे जाया करते। जब मम्मी हमारे बैड के पास आया करतीं तो उनके बदन में से चुदाई के बाद चूत के रस और पापा के वीर्य की मिश्रित गंध सुंघायी देती।

एक रूटीन की तरह वो इसके बाद बाथरूम जातीं और हम उनके मूत की कमोड में गिरने की आवाज सुनते। ऐसी रोमांचक चुदाई देखने के बाद मेरा और अमर का भी मन एक दूसरे के बदन के साथ खेलने का करता, लेकिन हम सो जाया करते। लेकिन अब हमारा डॉक्टर डॉक्टर का खेल और ज्यादा आगे बढने लगा था.

और हम दोनों जब भी कुछ मिनटों के लिये अकेले होते, तो हम एक दूसरे के अन्डर वियर में हाथ डाल देते और एक दूसरे के गुप्तांगों के साथ खेलने लगते। मैं अमर के लण्ड को पकड़कर सहलाने लगती और अमर मेरी छोटी सी चूत के अन्दरुनी काले काले होंठों को जो बाहर की तरफ़ निकले हुए थे उनको सहलाने लगता।

अमर के चेहरे पर आ रहे भाव देखकर ही मैं समझ जाती कि ऐसा करके उसको कितना मजा आ रहा होता। ऐसे ही हमारी जिन्दगी चले जा रही थी, तभी एक दिन हमारे ऊपर कहर टूट पड़ा, मेरे पापा का देहान्त एक रोड एक्सीडेन्ट में हो गया था।

मेरी मम्मी ने बड़े पैसे वाले लोगों के घर में काम करके हमारा भरण पोषण किया। जैसा कि आपको पता है कि पहले हम जयपुर की एक अविकसित कॉलोनी में दो कमरे के घर में रहते थे। पापा की डैथ के बाद, हमने एक कमरा किराये पर उठा दिया, और हम तीनों एक ही कमरे में रहने लगे।

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मैं भी मम्मी के साथ कोठियों में सफ़ाई पोंछा और कपड़े धोने के लिये जाने लगी, और अमर एक प्लास्टिक फ़ैक्ट्री में फ़ैक्ट्री के मालिक की गाड़ी का ड्राईवर बन गया। किसी तरह हमारा गुजर बसर हो रहा था। मम्मी मुझे अकेले किसी घर में काम करने के लिये नहीं भेजती थीं, वो मुझे अपने साथ साथ ही घरों में काम कराने के लिये ले जातीं।

जब मैं जवान होने लगी तो मेरे उभार कुर्ते में से साफ़ नजर आते और मैं उनको दुपट्टे से ढकने का प्रयास करती रहती। मैं और मम्मी जिस भी घर में काम करने जाते उस घर के मर्दों की नजरें मेरे जिस्म को ऊपर से नीचे तक देखती रहतीं, जब मैं पोंछा लगाने को झुकतीं तो उनकी नजरें मेरे कुर्ते के गले में से अंदर झाँकती हुई प्रतीत होतीं।

लेकिन धीरे धीरे मुझे भी समझ आने लगा था कि मुझे इसी दुनिया में इन्ही लोगों के बीच रहना है, और मुझे अब इन सब चीजों की आदत सी पड़ गयी थी। सिटी बस में चढते उतरते समय या बस के अन्दर भीड़ में सभी मर्द मेरे बदन के साथ जो स्पर्श सुख का आनंद लेते थे, वो मैं अनजान बनकर नजरअंदाज करने लगी थी।

हाँलांकि अब मै भी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी, और जब भी बस में भीड़ का फ़ायदा उठाकर कोई मेरी चुँचियों या मेरे चूतड़ों को दबाता या सहलाता तो मेरे अन्दर भी कभी कभी भूचाल सा आने लगता। लेकिन जिस तरह से हमारे घर की परिस्थितियाँ थी उस में मुझे अपनी शादी होने के जल्द ही आसार नजर नहीं आ रहे थे।

जवानी की दस्तक होते ही मेरे बदन में बदलाव आने शुरू हो गये थे, माहवारी शूरु होने के साथ साथ मेरे उभार नजर आने लगे थे। चुँचियां अपने नैचुरल आकार लेने लगी थीं, मेरी चूत के ऊपर बालों के रोयें अब झाँटों का रूप लेने लगे थे। शरीर के अन्दर जो बदलाव आ रहे थे, उनका असर मेरे जेहन पर भी होने लगा था।

जब भी मैं बाथरुम में नहाने को जाती तो अपनी चूँचियों को अपनी चूत के दाने को सहलाने में मुझे बहुत मजा आता। मेरे पास पहनने के लिये ज्यादा कपड़े नही थे, और जो थे वो भी सभी होली दिवाली पर उपहार के तौर पर दिये हुए हुए थे, उन महिलाओं द्वारा जिनके घर मैं और मम्मी काम करने जाया करते थे।

जैसा मैंने पहले भी बताया कि हमारे घर में बस एक ही कमरा था, जिस में मैं मम्मी और अमर एक साथ सोया करते थे। सर्दियों मे सब अलग अलग खटिया पर अपनी अपनी रजाई में, और गर्मियों मे एक साथ जमीन पर कूलर के सामने।

जिस तरह मुझ पर जवानी चढ रही थी उसी तरज अमर पर भी जवानी चढनी शुरु हो गयी थी, और जब कभी सुबह मैं उससे पहले उठ जाती तो देखती कि उसके लण्ड ने उसके पाजामें मे टैण्ट बना रखा होता। मम्मी रात को सिर्फ़ पेटीकोट और ब्लाउज पहन कर सोतीं, शायद माहवारी बंद होने के बाद से ही उन्होने पैण्टी पहनना छोड़ दिया था.

और मैं किसी का दिया हुआ गाउन, जिसने आगे की तरफ़ बट्न थे, और अमर पाजामा और टी-शर्ट पहन कर सोता। एक बार गर्मियों की रात में एक बजे जब मैं पानी पीने के लिये मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि अमर ने मम्मी का पेटीकोट ऊपर कमर तक उठाया हुआ था.

और उनकी काली काली झाँटों से ढकी चूत को देखकर हाँफ़ता हुआ अपने एक हाथ से अपने लण्ड को पकड़कर जल्दी जल्दी मुट्ठ मार रहा था। मैंने उस वक्त चुप रहने में ही भलाई समझी और कुछ देर बाद जब अमर अपने लण्ड से पानी निकालकर फ़ारिग होने के बाद थक कर सो गया.

तो मैं पानी पी कर सो गयी। उस रात के बाद मैं रोजाना सोने का नाटक करने लगी और चुपचाप रहकर अमर को मुट्ठ मारते हुए देखा करती, कभी वो मम्मी का पेटीकोट ऊपर कर देता और उनकी चिकनी गोरी जाँघों को देख उत्तेजित होकर मुट्ठ मारता, तो कभी पेटीकोट को पूरा ऊपर कर के उनकी गोल गोल गाँड़ को देख कर मुट्ठ मारता.

तो कभी जब मम्मी पैर चौड़ा कर सो रही होतीं तो उनकी चूत के दर्शन करते हुए, अपनी जिस्म की आग को लण्ड हिलाकर उसका पानी निकालकर शांत करता। ये उसका रोजाना का रूटीन बन चुका था। एक रात मैंने देखा कि उसने मम्मी के ब्लाउज के बटन खोल दिये और फ़िर उनकी गोल गोल मम्मों को देखकर उसने अपने लण्ड को मुठियाते हुए पानी निकाला और फ़िर सो गया.

कुछ देर बाद मम्मी भी अपने ब्लाउज के बटन बंद कर के चुपचाप सो गयीं, तो मुझे लगा कि जरुर दाल में कुछ गड़बड़ है, और शायद मम्मी भी इस खेल में शामिल हैं। मैंने अगले दिन जब अमर फ़ैक्ट्री चला गया तो मम्मी से अकेले में पूछा कि क्या उनको पता है कि अमर रात में क्या कुछ करता है.

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तो उन्होने बताया कि कुछ महीने पहले एक रात को उन्होने अमर को उनका पेटीकोट ऊपर कर मुट्ठ मारते हुए पकड़ लिया था, और अगले दिन उसको समझाया भी लेकिन जो कुछ मम्मी ने आगे बोला वो सुनकर मैं भी चुप हो गयी।

मम्मी ने बताया, ”लड़कों कि ये उम्र होती ही ऐसी है, इस उम्र में उनको नाते रिश्तों का कोई ख्याल नहीं रहता, उनके दिमाग में बस एक ही चीज घूमती रहती है और वो है सैक्स। इस उम्र में लड़के अपनी जिस्म की प्यास बुझाने को किसी भी हद तक जा सकते हैं।

इस उम्र में जब बाकि सब लड़के पढ लिख रहे होते हैं, तब अमर मेहनत कर अपने परिवार का भरण पोषण करने में जिस तरह हमारी मदद कर रहा है, ये सब सोचकर ही मैंने भी उसकी इन सब हरकतों को नजर अंदाज करना शुरु कर दिया है.

और रात में यदि वो मेरे बदन के किसी हिस्से को पाँच दस मिनट देखकर अपनी जिस्म की आग को शांत कर शांति से सो जाता है, तो इसमें कुछ बुरा भी नहीं है। यदि मान लो वो दोस्तों के साथ रण्डियों के पास जाना शुरु कर दे और उन पर अपनी मेहनत की कमाई उन पर उड़ाने लगे, उससे तो ये अच्छा ही है।”

मुझे मम्मी की बातें सुनकर थोड़ा अटपटा तो जरूर लगा लेकिन फ़िर कुछ देर सोचने के बाद मैं भी इसी निश्कर्ष पर पहुँची कि जो हो रहा था, उसको वैसे ही होने देना चाहिये। कुछ दिनों के बाद मेरी बुआ की बेटी की शादी थी, हमारी बुआ जयपुर में ही रहती थीं.

और मम्मी ने बुआ की मदद करने के लिये मुझे उनके घर शादी से कुछ महीनों पहले भेज दिया। शादी होने के बाद जब मैं फ़िर से अपने घर लौट आयी, तो लौटने के बाद मुझे सबसे ज्यादा उत्सुकता रात में अमर के मम्मी का पेटीकोट उठाकर मुट्ठ मारते हुए देखने की थी।

रात होने के बाद जब मैं आँखें बंद कर सोने का नाटक कर रही थी, तो कुछ देर बाद मैंने देखा, अमर अपनी जगह से उठा और मम्मी के पास जाकर बैठ गया। कुछ देर वैसे ही मम्मी के बदन को निहारने के बाद उसने अपना पाजामा और कच्छा उतारकर पास में रख दिया.

और फ़िर मम्मी के ब्लाउज के बटन खोलने लगा, बलाउज के सारे बटन खोलकर उसने मम्मी के दोनों मम्मों को नंगा कर दिया, और फ़िर अपने लण्ड को सहलाने लगा। कुछ देर बाद उसने मम्मी के पेटीकोट के नाड़े को खोला और पेटीकोट को नीचे खिसकाने लगा.

मम्मी ने अपनी गाँड़ थोड़ी सी ऊपर उठाकर उसको पेटीकोट को उतारने में उसकी मदद की, अब मम्मी सिर्फ़ बाँहों मे ब्लाऊज पहने उसके सामने नंगी लेटी हुई थीं। कुछ देर मम्मी के नग्न बदन को निहारते हुए अपने लण्ड को सहलाने के बाद अमर ने मम्मी की दोनों टाँगों को चौड़ा किया.

और फ़िर उनके बीच आकर अपने लण्ड को अपने थूक से चिकना कर, मम्मी की चूत के मुँह पर रख दिया, और फ़िर एक झटके के साथ उसको अंदर घुसाकर मम्मी को चोदने लगा, कुछ देर बाद उसने अपने दोनों हाथों से मम्मी के मम्मों को अपनी हथेलियों में भरकर उनको मसलने लगा.

और फ़िर मम्मी की चूत में अपने लण्ड के झटके मारने लगा, कुछ देर बाद जब उसके लण्ड से वीर्य का पानी निकल गया तो वो चुपचाप अपने कपड़े पहन कर अपनी जगह जाकर सो गया। थोड़ी देर बाद, मम्मी भी उठीं अपने ब्लाउज के बटन लगाये, अपना पेटीकोट पहना और फ़िर सो गयीं।

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अगले दिन सुबह जब मैं उठी तो सब कुछ नॉर्मल था, अमर काम पर जा चुका था, मैं मम्मी के पास जाकर चुपचाप खड़ी हो गयी। शायद मम्मी मेरी मंशा समझ गयीं और मेरे बिना कुछ पूछे बोलीं, ”रात को तूने सब कुछ देख लिया ना, चलो अच्छा ही हुआ, ये बात कब तक छुपने वाली थी।

हाँ, मुझे पता है कि जो कुछ मैं और अमर कर रहे हैं वो गलत है, लेकिन यदि ऐसा करके हम दोनों को खुशी होती है, तो मेरी बला से भाड़ में जाए दुनिया।” मैंने किसी तरह हिम्मत करके पूछा, ”आप तो उस कह रही थीं कि आप अमर की खुशी के लिये करती हो, तो क्या आप को भी उसके साथ करवाने में मजा आता है।”

कुछ देर खामोश रहने के बाद मम्मी ने जो कुछ मुझे बताया वो सुनकर मैं निरुत्तर हो गयी। कुछ देर खामोश रहने के बाद मम्मी ने जवाब दिया, ”बेटा ये जिस्म की जरूरत है, ये रिश्ते नाते सब भूल जाती है, तुझे तो पता ही है कि जब से तेरे पापा खतम हुए है, मेरी चूत में किसी का लण्ड नहीं गया.

मैं अगर बाहर किसी गैर मर्द से चुदवाना शुरु कर देती तो कभी ना कभी सब को पता चल ही जाता, और फ़िर कितनी बदनामी होती, ये सब सोचकर ही मैंने निर्णय लिया कि क्यों ना अमर से ही अपने जिस्म की आग को बुझाया जाये, बात घर की घर में रहेगी और किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा।

जिस तरह से अमर रात को मेरे कपड़े उघाड़कर मेरे जिस्म के उन हिस्सों को देखकर अपना लण्ड हिलाता था, तो मेरी चूत में आग सी लग जाती थी, मुझे लगता क्यों ये अपना लण्ड हिला रहा है, क्यों नहीं इसको मेरी चूत में डालकर उसकी आग अपने लण्ड के पानी से बुझा देता।

तुझे याद होगा सन्नो जब पापा के देहांत के बात हमने तुझे कुछ महीनों के लिये बुआ के घर भेज दिया था, ये उन दिनों की बात है। सन्नो बेटी तेरे पापा के देहांत के बाद, मैं तो किसी तरह संभल गयी थी, लेकिन घर परिवार की सारी जिम्मेदारी के बोझ के तले अमर मुर्झाता जा रहा था, जब भी एक माँ अपने बेटे की सूनी सूनी आँखें देखती तो उसका कलेजा गले को आ जाता।

एक 18-19 साल के लड़के की मानो सारी दुनिया उजड़ गयी थी, उसके सारे सपने चकनाचूर हो गये थे। वो बहुत थोड़ा खाना खाता, उसकी आँखों से नींद कोसों दूर जा चुकी थी। उसने अपने दोस्तों के साथ घूमना फ़िरना छोड़ दिया था। वो उन दिनों बस कमरे में ही रहा करता था।

एक माँ कुछ दिनों तक इन्तजार करती रही कि समय अमर के दिल के घाव भर देगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। दिन पर दिन और हफ़्ते पर हफ़्ते बीतते जा रहे थे। मुझे पता था कि अमर उम्र के जिस दौर से गुजर रहा है, जरूर उसकी जिस्मानी जरूरतें भी होंगी। जो भी कारण हो जिस्मानी या मानसिक लेकिन एक बात निश्चित थी कि अमर डिप्रेशन में जा रहा था।

मुझे पता था कि दिन भर वो बैड पर लेटा रहता और रात में मुट्ठ मार कर अपने बदन की गरमी को निकाला करता था, रात में मेरे सोने के बाद मेरे गुप्तांगों को देखकर या छूकर मुट्ठ मारते हुए मैं उसे बहुत बार देख चुकी थी, क्यों कि हम दोनों एक ही कमरे में सोया करते थे।

मुझे पता था कि इस उम्र में लड़को के लिये मुट्ठ मारकर पानी निकालना नॉर्मल था, लेकिन तेरे पापा के गुजर जाने के बाद जिस तरह वो मेरे अंगों को देखकर मुठियाता था वो थोड़ा मुझे भी अजीब लगता था। वो मेरा पेटीकोट ऊपर कर के मेरी चूत को देखकर जब मुट्ठ मार रहा होता तो उसके कराहने में एक मजा आने की जगह एक अजीब सी कसक होती.

जब वो पानी छोड़ने वाला होता तो वो आनंदित होने की जगह वो अंदर ही अंदर रो रहा होता। एक रात मैं अधखुली आँखों से अमर को मुट्ठ मारते हुए देख रही थी, वो जमीन पर मेरे बगल में लेट कर मेरे ब्लाउज के बटन खोलकर मेरे मम्मों को देखकर मुठिया रहा था.

और जब तक अपने लण्ड को हिलाता रहा, जब तक कि उसके लण्ड ने उसके पेट और छाती पर लावा नहीं उंडेल दिया, लेकिन वो फ़िर से अपने लण्ड को हिलाता रहा जब तक कि वो फ़िर से टाईट हिकर खड़ा नहीं हो गया, और वो फ़िर से जब तक मुट्ठ मारता रहा जब तक कि दोबारा उसके लण्ड ने पानी नहीं छोड़ दिया।

उसके बाद वो अपनी जगह जाकर सो गया, लेकिन मेरे दिमाग में उसके मुट्ठ मारने की तस्वीर ही घूम रही थी। ऐसा नहीं था कि मैंने अमर का औजार पहली बार देखा था, लेकिन पूरी तरह से खड़ा साफ़ साफ़ पहली बार ही देखा था, और पहली बार ही उसमें से वीर्य की धार निकलते हुए देखी थी।

लेकिन जो कुछ अमर कर रहा था वो नैचुरल नहीं था, इस तरह वो अपना शरीर बर्बाद कर रहा था। वो अपने मन का गुबार बाहर निकालने के लिये हस्त मैथुन को इस्तेमाल कर रहा था। वो जबर्दस्ती मुट्ठ मार रहा था, और वो इसको एन्जॉय भी नहीं कर रहा था।

मुझे लगा कि मुझे जल्द ही कुछ करना होगा, नहीं तो अमर अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेगा। मेरे दिमाग में बस अमर के खड़े हुए लण्ड से निकलते वीर्य की पिचकारी की तस्वीर घूमती रहती, अमर का लण्ड उसके पापा से भी बड़ा है। मुझे अमर में उसके पापा की जवानी के दिन दिखायी देने लगे।

मैं शायद अमर को प्यार करने लगी थी, लेकिन कहीं ना कहीं मुझे पता था कि ये गलत है। लेकिन मेरा जिस्म मेरे दिमाग की बात नहीं सुन रहा था, और अमर के लण्ड की कल्पना करते करते मेरी चूत पनियाने लगती, मेरी चूत को भी तो तेरे पापा की मौत के बाद कोई लण्ड नहीं मिला था।

मेरे बदन में कुच कुछ होने लगता, मेरा चेहरा लाल पड़ जाता, मेरा मन करता कोई मुझे अपनी बाँहों में भर ले और मुझे जी भर के चोदे, मेरी चूत का कचूमर निकाल दे। हाँ ये बात सही थी कि मेरा बेटा अमर ही मेरी चूत को पनियाने पर मजबूर कर रहा था।

किसी तरह अपनी फ़ड़फ़ड़ाती हुई चूत में ऊँगली घुसाकर उसको घिसकर, अमर के मुट्ठ मारते हुए द्रष्य की कल्पना करते हुए अपने जिस्म की आग को ठण्डा करने का प्रयास करती। अगले कुछ दिनों तक मैं अमर की ईमोशनल प्रोब्लम का निदान ढूँढने की जगह अपने अंदर चल रहे अन्तर्द्वन्द पर काबू करने का प्रयास करने लगी.

जब भी अमर फ़ैक्ट्री से लौटकर घर आता, तो मैं उसके साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने का प्रयास करती। मैं उसके लिये उसका मन पसंद खाना बनाती जिससे वो कुछ ज्यादा खा ले और उसकी भूख खुल जाये। थोड़ा कुछ तो बेहतर हो रहा था, लेकिन रात में अमर का अपनी मम्मी के गुप्तांगों को नंगा देखकर मुट्ठ मारना बदस्तूर जारी था। और मैं हर रात उसको ऐसा करते हुए देखती।

रात में अमर को मुट्ठ मारते देख कर मैं गर्म हो जाती और अगले दिन सुबह नहाते हुए मैं भी अपनी चूत में ऊँगली घुसाकर अपनी आग बुझाती। समस्या का समाधान अब दिखाई देने लगा था, कि अमर को चुदाई के लिये एक औरत के जिस्म की जरुरत थी.

आखिर वो कब तक मुट्ठ मारता, उसको एक जीती जागती औरत जो उसे चूम सके चाट सके उसके जिस्म की जरुरत पूरी कर सके, एक ऐसी औरत चाहिये थी। मेरी नजर में शायद अब एक यही उपाय बचा था। कभी कभी मुझे लगता कि शायद अपने बेटे अमर के लिये वो औरत मैं ही हूँ, मैं उसकी मदद कर सकती हूँ, मैं उसको छू सकती थी, मैं उसे प्यार कर सकती थी.

इसमें कोई शक नहीं था। लेकिन फ़िर कभी मेरे दिमाग में ख्याल आता कि नहीं ये गलत है, माँ बेटे के बीच ऐसा नहीं होना चाहिये। मुझे अपने सगे बेटे के साथ चुदाई करने में कोई बुराई नहीं दिखायी देती थी, आखिर हम दोनों व्यस्क थे, और हमको अपने मन का करने का अधिकार था।

लेकिन उस सीमा रेखा को पार करने में एक झिझक जरुर थी। यदि उन दोनों के बीच जिस्मानी रिश्ते बन गये, तो फ़िर उस माँ बेटे के रिश्ते का क्या होगा। कहीं वो एक समस्या का समाधान ढूँढते एक नयी समस्या ना खड़ी कर दें। कभी कभी मेरे मन में विचार आता कि मेरी चूत और मम्मों को देखकर मुट्ठ मारना एक अलग बात है.

लेकिन क्या अमर उसके साथ चुदाई करने को तैयार होगा। ये सोचकर ही मैं घबरा जाती। यदि अमर इसके लिये तैयार ना हुआ तो। लेकिन जब भी मैं नहाते हुए अपने 42 वर्ष के गदराये नंगे जिस्म को देखती तो मेरा मन कह उठता, अमर उसको अस्वीकार कर भोगे बिना नहीं रह सकता।

हाँलांकि मेरे मम्मे अब वैसे नुकीले तो नहीं थे जैसे कि मेरी 20 साल की उम्र में चुँचियाँ थीं, लेकिन फ़िर भी मेरे मम्मे बहुत बड़े बड़े और मस्त गोल गोल थे, जिन पर आगे निकले हुए निप्प्ल उनकी शोभा दो गुनी कर देते थे। मेरा पेट भी अब पहले जैसा सुडौल नहीं था.

लेकिन फ़िर भी रामदेव का योगा कर के मैं अपने आप को शेप में रखने का प्रयास करती थी। मेरा पिछवाड़ा बहुत भारी था, और ये मेरी पर्सनलीटी में चार चाँद लगा देता था। मैं जहाँ भी जाती मर्दों की नजर बरबस मेरी गाँड़ पर टिक ही जाती थी।

शाम को जब मैं अमर के फ़ैक्ट्री से लौटने का इन्तजार करती तो मन ही मन उसके साथ सैक्स करने के विचार मेरे मन में आ ही जाते। मैं फ़िर भलाई बुराई गिनने में लग जाती, लेकिन किसी भी निश्कर्ष पर पहुँचना मेरे लिये मुश्किल होता जा रहा था, और मैं झिझक और जिस्म की आग के बीच मानो फ़ँस गयी थी। लेकिन फ़िर कुछ ऐसा हुआ, जिससे अपने आप ही सब कुछ होता चला गया।

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एक रात हम दोनों के सोने के बाद, इस से पहले कि मेरे कपड़े हटा कर गुप्तांगों को देख कर मुट्ठ मारने के लिये अमर मेरे पास आता, उससे पहले ही मैं अपने बाल खोलकर और सारे कपड़े उतारकर लेट गयी। जब कुछ देर बार अमर मेरे पास आया तो मैं उठ कर बैठ गयी, और उससे बोली, ”बहुत हो चुका ये लुका छुपी का खेल, अब जो कुछ करना है मेरी आँखों के सामने करो, लो हो गयी मैं पूरी नंगी, अब निकाल लो उसको पाजामे में से और हिला कर निकाल लो अपना पानी।” ”गौर से जी भर के देखो, तुम्हारी माँ अभी भी कितनी जवान है।”  

इससे पहले कि अमर कुछ बोलता मैंने आगे बढकर उसके पाजामे का नाड़ा खोलकर उसके अन्डर वियर को नीचे खिसका दिया, और उसके खड़ा हुआ लण्ड मेरी आँखों के सामने था। ”घबराओ मत अमर, अब हमको इस विषय पर बात करना जरूरी हो गया था।” अमर चुपचाप मेरे पास बैठा हुआ मेरे नग्न बदन की नुमाईश का इत्मीनान से दीदार कर रहा था। मैंने अमर के हाथों को अपने हाथों के बीच ले लिया, और फ़िर अपने और पास खिसका कर उसको बैठा लिया। दोस्तों अभी कहानी बाकि है आगे क्या हुआ जानने के लिए कहानी का अगला भाग पढ़े…

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