Hijabi Pussy Fucking
दोस्तो, एक बात तो मैं ज़रूर कहना चाहूँगा कि वासना बड़ी कमाल की चीज़ है जो न सिर्फ कहानियों के द्वारा आपका मनोरंजन कराती है बल्कि जो लिखते हैं उन्हें भी ऐसे मौके भी उपलब्ध करा देती है, जिसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। पिछले दिनों मुझे ऐसे तो ढेरों मेल आए, पर एक हुमायूँ साहब का मेल मुझे खास आकर्षित कर गया जो मेरा स्म्पर्क नम्बर चाहते थे। Hijabi Pussy Fucking
वजह कुछ अधिक सीरियस थी, बहरहाल मैंने थोड़ी टाल-मटोल के बाद उन्हें मेरा नम्बर दिया और फिर बात-चीत शुरू हुई। वो मुझसे किसी सिलसिले में मुलाकात करना चाहते थे, मैंने अपनी एहतियात के लिए कुछ शर्ते रखीं और फिर उन्हें मुलाकात के लिए बुला लिया। वो बाकायदा दिल्ली आकर मुझे मिले। उनसे जो बातचीत हुई, वो तो काफी लम्बी थी। मगर जो लब्बोलुआब था वो पेश कर रहा हूँ।
“मैंने आपकी कहानी पढ़ी, अच्छी थी मगर जो बात मुझे आप तक खींच लाई, वो ये थी कि मैं एक समस्या में हूँ और मुझे लगता है कि आप मेरी मदद कर सकते हैं। दरअसल मुस्लिम होने की वजह से मेरी आप से बात करने की हिम्मत हुई वरना मैं शायद कभी ऐसा सोच भी नहीं पाता।
मसला यह है कि मेरी एक छोटी बहन है जिसकी शादी पांच साल पहले हुई थी, लेकिन अभी एक साल पहले एक रोड एक्सीडेंट में उसके पति की मौत हो गई और अब वो बेवा के रूप में मेरे ही घर ही रह रही है। मेरे माँ-बाप की हम दो ही औलादें थीं, अभी इस वक़्त मेरे घर में मेरी बीवी सायरा के सिवा दो बच्चे अहसान और वहाज ही हैं और अब मेरी बहन हुमैमा भी साथ ही रहती है।
समस्या यह है कि अभी वो सिर्फ 25 साल की है और यह उम्र कोई सब्र करके बैठ जाने वाली नहीं होती। उसकी उमंगें, उसकी जिस्मानी ख्वाहिशें ठण्डी तो नहीं पड़ जाएँगी इस उम्र में और उसका जो मरहूम शौहर था, वो अपने पीछे जो भी छोड़ के मरा है वो सब अब मेरी बहन का ही है। उसके सास ससुर पहले ही जन्नत-नशीं हो चुके हैं और वो अकेला ही था।
लिहाज़ा अब जो करोड़ से भी ऊपर की जायदाद है, वो सब उसी की है और यह बात खानदान, रिश्तेदारी और मोहल्ले के ढेरों लोग जानते हैं और वो हुमैमा पर नज़रें गड़ाए बैठे हैं। अब जवान लड़की है, किसके बहकावे में आ जाए कहा नहीं जा सकता और फिर क्या अंजाम हो सकता है, उसका खुदा जाने..
क्योंकि जो पैसे के लालच में उससे शादी करेगा, वो आगे कुछ भी कर सकता है। मेरी समझ में हुमैमा को बचाने का एक ही रास्ता है, आखिर जिस हाल में वो है उसमें उसके जिस्म की भूख ही तो उसे किसी के पास ले जाएगी। मैं जानता हूँ कि आपको सुन कर अजीब लगेगा लेकिन मैं सोचता हूँ कि अगर मैं ही उसके लिए यह इंतज़ाम कर दूँ तो शायद उसके कदम बहकने से बच जाएँ और वो किसी बुरे अंजाम से सुरक्षित रहे।
आगे देखा जाएगा कि उसके लिए और क्या किया जा सकता है, लेकिन इस वक़्त तो मैं आपसे ही यह उम्मीद लेकर आया हूँ कि इस सिलसिले में आप मेरी मदद करेंगे। आपकी मदद के बदले ऐसा नहीं कि मैं आपको कुछ दूँगा नहीं, आप कोई उजरत न लेना चाहें तो भी मैं अपनी तरफ से तो ज़रूर ही करूँगा। बस आपको दिल्ली को छोड़ कर हैदराबाद रहना होगा। अगर आपकी नौकरी की वजह से कोई प्रॉब्लम है तो मैं वहाँ नौकरी का भी इन्तजाम कर दूँगा। बताइये, आप मेरी मदद करेंगे या मैं मायूस होकर वापस लौट जाऊँ?”
मैंने सोचने के लिए एक दिन का समय माँगा और फिर एक दिन बाद मैंने उन्हें फैसला सुना दिया कि मैं उनके साथ ही हैदराबाद चल रहा हूँ। मैंने कुछ घरेलू समस्या बता कर अपनी तैनाती हैदराबाद में कराने की कोशिश की थी और मुझे 6 महीने के लिए वहाँ शिफ्टिंग मिल गई थी। और इस तरह मैं निजामों के शहर में आ गया।
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हुमायूँ साहब के घर मैं उनके साथ ही करीब दस बजे पहुँचा था, जो कि निशात गंज में था। बंगले टाइप का घर था जो यूँ तो एक मंजिला ही था लेकिन ऊपर एक कमरा, बरामदा भी बना हुआ था जो अब मेरे काम आने वाला था। साइड की दीवारें इतनी तो ऊंची थी कि सड़क से कुछ न दिखे, बाकी आस-पास के ऊंचे मकानों के छतों से तो खैर देखा जा सकता था, लेकिन ऐसे बड़े शहरों में फुर्सत ही किसे रहती है।
हुमायूँ साहब की उम्र करीब चालीस की रही होगी तो उस लिहाज से हुमैमा और उनके बीच काफी बड़ा अंतर था। लेकिन उनकी बीवी सायरा उनके आस-पास की ही लगीं, वो और हुमैमा बाकी तो दिखने में समान ही थीं लेकिन चेहरे से उम्र का अंतर पता चलता था। जहाँ हुमैमा के चेहरे पर मासूमियत थी वहीं सायरा के चेहरे पर परिपक्वता झलकती थी।
बाकी चूचियों और चूतड़ों का आकार एक सा था। कमर शायद हुमैमा की कम रही हो लेकिन उसके ढीले कपड़ों से कुछ पता नहीं चलता था, चेहरे दोनों के खूबसूरत थे। दोनों बच्चे 10 और 8 साल के थे और सीधे-सादे से थे। उन दोनों औरतों में से जहाँ सायरा ने मेरा स्वागत अजीब सी बेरुखी से किया वहीं हुमैमा ने तो मुझे जैसे देखना भी गंवारा न किया।
ऐसा लगा ही नहीं जैसे मेरे आने से उसकी सेहत पर कुछ असर पड़ा हो, हुमायूँ भाई के मुताबिक सायरा को इस बात की खबर नहीं थी कि मैं यहाँ क्यों आया हूँ। उसके और बाकी घर के लोगों की नज़र में मैं उनका बस एक किरायेदार था, जो अब उनके साथ ऊपर ही रहने वाला था और जिसका नाश्ता-खाना भी उन्हें ही करके देना था और उसकी कीमत लेनी थी।
बहरहाल मैंने वहाँ रहना शुरू कर दिया और हुमायूँ भाई की बहन पर डोरे डालने शुरू किये। मैं सुबह जब तक घर रहता, इसी कोशिश में रहता कि किसी तरह उसे आकर्षित कर पाऊँ और शाम को जब घर आता तो सोने तक इसी कोशिश में लगा रहता और इसके लिए हुमायूँ भाई के बच्चों का सहारा लेता जो धीरे-धीरे मुझसे घुलने-मिलने लगे थे।
लेकिन मैंने पाया कि सायरा मेरी कोशिशों को पलीता लगा देती थी, उसकी आँखों में अजीब उद्दंडतापूर्ण लापरवाही रहती थी और वो सीधे तो मुझसे कुछ नहीं कहती लेकिन असके अंदाज़ से लगता था कि मुझे पसंद नहीं करती थी और हुमैमा पर तो जैसे कोई असर ही नहीं पड़ता था, न पसंद और न ही नापसंद।
इसी तरह जब हफ्ता गुज़र गया और गाड़ी आगे न बढ़ी तो एक दिन मैंने अपनी सीमा लांघने की ठानी। मैंने अक्सर पाया था कि अपने धुले कपड़े वह लोग ऊपर ही सुखाते थे और अब मैं पहचानने भी लगा था के कौन से कपड़े किसके थे, तो एक दिन मैंने ऊपर फैली हुमैमा की सलवार के नीचे छुपी उसकी पैंटी बरामद की।
मैं पहले भी चेक कर चुका था कि दोनों ननद-भाभी अपनी चड्डियाँ अपनी सलवार या कुर्ते के नीचे छिपा कर सुखाती थीं और जल्दी से मुठ्ठ मार कर सारा माल उसमें पोंछा और उसे वापस उसकी जगह टांग दिया। शाम के अँधेरे में हुमैमा आई और अपने कपड़े लेकर चली गई, लेकिन थोड़ी ही देर में हंगामा मच गया। वो धमर.. धमर करते गुस्से से आगबबूला होती ऊपर आई और अपनी चड्डी मेरे मुँह पर फेंक मारी।
“यह क्या है?” उसकी आँखें सुर्ख हो रही थीं।
“क्या है?” जानते बूझते मैंने अनजान बनने की कोशिश की।
उसने मेरे हाथ से चड्डी छीनी और उसमें लगे वीर्य के नम दाग दिखाते हुए चिल्लाई, “यह क्या है?”
“मुझे क्या पता क्या है… ! तुम्हारी चीज़ है तुम जानो।”
“तुम्हारा दिमाग ख़राब हुआ है, मैं समझती थी कि कोई शरीफ इंसान हो, इसीलिए भाई ने रखा है लेकिन तुम तो एक नम्बर के कमीने हो.. ये गंदगी करके मेरे कपड़ों में पोंछ दिया, शर्म नहीं आती…!” वह गुस्से में जाने क्या-क्या बोलती रही और मैं सुनता रहा !
फिर वो रोती हुई नीचे चली गई और मैं शर्मिंदा हो कर रह गया। नीचे उसके रोने की आवाज़ें आती रहीं और मैं सुनता रहा। मुझे लग रहा था कि अब सायरा आएगी मुझे ज़लील करने लेकिन वो नहीं आई। फिर जब हुमायूँ भाई आए तो उनसे दास्तान बताई गई और वो उनके हिसाब से मुझे समझाने ऊपर आए।
“वो यह सब सोच भी नहीं सकती थी इसलिए ऐसे रियेक्ट किया लेकिन यकीन करो कि आज रात में जब वह सोयेगी तो उसका दिमाग इसी में अटका रहेगा और कल तुम्हें वो किसी और नज़र से देखेगी।”
“और भाभी?”
“उसकी फ़िक्र मत करो, वो जैसी भी है मुझसे बाहर नहीं जा सकती।”
इसके बाद बात खत्म और मैं अगले दिन के इंतज़ार में। अगली सुबह जब वह ऊपर कपड़े फैलाने आई तो मैं जानबूझ कर उसके सामने गया। उस वक़्त मैं सिर्फ चड्डी में था और मेरा उभार साफ़ प्रदर्शित हो रहा था। उसने मुझे देखा, नीचे देखा और बिना कोई रिएक्शन दिए भावहीन चेहरा लिए कपड़े फैला कर नीचे चली गई।
इसके बाद तो मैंने भी ठान लिया कि अब ये रोये या लड़े लेकिन मैं इसके सामने ऐसे ही रहूँगा और अक्सर तब, जब वो कपड़े फैलाने या उतारने आती तो मैं उसके सामने चड्डी में ही रहता और यहाँ तक कि अपना सामान भी टाइट ही रखता कि ऊपर से साफ़ पता चले।
मैंने एक बात तो महसूस की कि अब वो वैसी बेरूख सी नहीं लगती जैसे पहले लगती थी लेकिन अपनी दिलचस्पी किसी तरह ज़ाहिर भी नहीं करती थी। एक शाम मैंने फिर मुठ्ठ मार कर उसकी चड्डी में पोंछ कर टांग दिया और अपने कमरे की खिड़की से उसकी प्रतिक्रिया देखने लगा।
उसने जब कपड़े समेटे तभी महसूस कर लिया कि मैंने फिर वही हरकत की थी लेकिन इस बार उसने नीम अँधेरे में चड्डी को गौर से देखा, फिर मुड़ कर मेरे कमरे की दिशा में देख कर मेरा अंदाज़ा लगाया और फिर चड्डी को नाक के पास ले जाकर सूंघने लगी और सूंघते हुए ही नीचे चली गई।
मैंने राहत की मील भर लम्बी सांस ली कि मेरा मिशन अब सफल होने वाला था। एक शाम मैंने फिर मुठ्ठ मार कर उसकी चड्डी में पोंछ कर टांग दिया और अपने कमरे की खिड़की से उसकी प्रतिक्रिया देखने लगा। उसने जब कपड़े समेटे तभी महसूस कर लिया कि मैंने फिर वही हरकत की थी.
लेकिन इस बार उसने नीम अँधेरे में चड्डी को गौर से देखा, फिर मुड़ कर मेरे कमरे की दिशा में देख कर मेरा अंदाज़ा लगाया और फिर चड्डी को नाक के पास ले जाकर सूंघने लगी और सूंघते हुए ही नीचे चली गई। मैंने राहत की मील भर लम्बी सांस ली कि मेरा मिशन अब सफल होने वाला था। दो दिन बाद मुझे अपने कमरे के बंद दरवाज़े के नीचे एक चिट्ठी पड़ी मिली।
जिसमे लिखा था, “मैं भी वही चाहती हूँ जो तुम चाहते हो लेकिन मेरी शर्म मुझे ऐसा करने से रोकती है। आज शाम सभी लोग फ़िल्म देखने जाने वाले हैं, मैं कोई बहाना करके घर रुक जाऊँगी, तुम आओगे तो दरवाज़ा खुला मिलेगा, मैं अपने कमरे में रहूँगी लेकिन बिल्कुल अँधेरे में, मेरी हिम्मत नहीं कि मैं रोशनी में ऐसा कर सकूँ। तुम्हें भी याद रखना होगा कि अँधेरे को कायम रहने दोगे।”
उस रोज़ काम पर मेरा मन बिल्कुल न लगा और मैं शाम होते ही घर की तरफ भागा, लेकिन फिर भी पहुँचते-पहुँचते सात बज गए। दरवाज़ा वाकई खुला मिला जो मैंने अन्दर होते ही बंद कर लिया,घर में सन्नाटा छाया हुआ था। मैंने हुमैमा के कमरे की तरफ देखा, अँधेरा कायम था। मैं आहिस्ता से उसके कमरे में घुसा, कपड़ों कि सरसराहट बता गई कि वह मेरे इंतज़ार में थी, बाहर की रोशनी में बेड पर एक साया पसरा दिखा। मैं आहिस्ता से चल कर उसके पास बैठ गया।
“मैं कब से इस पल के इंतज़ार में था।”
“बोलो मत, वक़्त इतना भी नहीं है।” उसने सरसराते हुए कहा।
फिर मैंने देर करने के बजाय उसे दबोच लिया। वह लता की तरह मुझसे लिपट गई। मैंने अपनी गर्म हथेलियों की छुअन से उसकी चूचियाँ और कमर सब रगड़ डाली। उसने भी बड़ी बेकली से मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका दिए और एक प्रगाढ़ चुम्बन की शुरुआत हो गई। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैंने अपनी ज़ुबान उसके मुँह में दे दी जिसे वह बड़ी मस्ती में चूसने लगी। फिर अपनी ज़ुबान उसने मुझे दी तो मैंने भी उसके होंठ और ज़ुबान जी भर के चूस लिए। मेरा एक हाथ उसकी दाहिनी चूची पर रेंग रहा था और दूसरा उसके बालों को थामे था। फिर मैंने उसे खुद से अलग किया।
“कपड़े उतारो।”
उसने कोशिश नहीं की, मैंने ही जल्दी-जल्दी उसके सारे कपड़े उतार फेंके, यहाँ तक कि चड्डी भी न रहने दी और फिर खुद के भी सारे कपड़े उतार डाले। अब बेड पर हम दोनों नंग-धडंग एक-दूसरे से लिपटने लगे, मैं उसे बुरी तरह चूम रहा था चुभला रहा था और वो उसी बेकरारी से मुझे चूम कर जवाब दे रही थी।
ऐसा लग रहा था जैसे बरसों की प्यासी हो और आज सारी प्यास बुझा लेना चाहती हो। उसकी नरम-नरम चूचियाँ.. उसकी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही मुलायम थीं, शायद वैधव्य में अपने हाथों से ही मसलती रहती थी लेकिन निप्पल मज़ेदार थे और किशमिश जैसे मस्त थे जिन्हें चूसने में मज़ा आ गया।
जिस वक़्त मैं एक हाथ से उसके एक चूचे को चूस रहा था और दूसरे को मसल रहा था, वह पैरों से मुझे जकड़ने की कोशिश करती, मेरे बालों को मुट्ठियों में भींचे थी और सिसकारते हुए अपने हाथ से ही अपनी चूची मेरे मुँह में ठूँसने को ऐसे तत्पर थी, जैसे खिला ही देना चाहती हो।
चूचियों को चूसते हुए मैंने अपना घुटना उसकी जांघों के जोड़ पर लगाया तो चिपचिपा हो गया, तब मैंने एक हाथ नीचे ले जाकर उसकी चूत को छुआ तो वहाँ से कामरस की धारा बह रही थी। अब उसकी चूची छोड़ कर मैंने उसे चूमते हुए नीचे सरका और वहीं रुका जहाँ उसके कामरस के ख़रबूज़े जैसी महक मेरे नथुनों से टकराई।
मैंने वहीं मुँह घुसा दिया। अब ज़ुबान से जो कामरस चाटना शुरू किया तो उसकी सीत्कारें और तेज़ हो गई और बदन में ऐंठन पड़ने लगी। उसकी कलिकाएँ मध्यम आकर की थीं, जिन्हें मैं ज़ुबान और अपने होंठ से दबा के पकड़ कर खींचने लगा और साथ में उसके क्लिटोरिस हुड को भी छेड़े जा रहा था और वो किसी नागिन की तरह मचलने लगी थी।
फिर मैंने अपनी बिचल्ली ऊँगली उसके गीले छेद में अन्दर सरका दी, वह एकदम से तड़प उठी और उसके मुँह से एक ज़ोर की ‘आह’ जारी हुई। मुँह से लगातार उसकी चूत पर हमला करते मैंने अपनी ऊँगली अन्दर-बाहर करनी शुरू की तो उसकी कराहें और तेज़ हो गयीं। उसने एक हाथ से बिस्तर की चादर दबोच ली थी, तो दूसरे हाथ से मेरे सर के बाल नोचे जा रही थी।
जब मुझे लगा कि अब वो जाने वाली है, तो मैंने मुँह हटा लिया और ऊँगली भी निकाल ली। ऐसा लगा जैसे उसकी जान निकल गई हो, पर जल्दी ही मैंने उसकी खुली बुर के छेद पर अपना लंड रख कर अन्दर सरका दिया। उसने मुझे दबोचना चाहा लेकिन मैंने उसे दूर ही रखा और बाकायदा उसकी टांगों के बीच बैठ कर दो तीन बार में लंड गीला कर के पूरा अन्दर ठांस दिया।
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वह होंठ भींचे ज़ोर-ज़ोर से कराह रही थी और मैंने उसके पांव पकड़ कर धक्के लगाने शुरू किये। ऐसा लग रहा था जैसे हर धक्के पर उसके अन्दर कोई करेंट प्रवाहित हो रहा हो। अपनी तरफ से वह कमर उचका-उचका कर हर धक्के का जवाब देने की कोशिश कर रही थी।
फिर उसी पोजीशन में वह ऐंठ गई और मुझे अपने ऊपर खींच कर दबोच लिया और कांप-कांप कर ऐसे झड़ने लगी, जैसे बरसों का दबा लावा अब फूट-फूट कर निकल रहा हो। पर अभी मेरा नहीं हुआ था, मैंने उसे फिर से चूमना, सहलाना शुरू किया और लंड बाहर निकाल कर फिर अपनी ऊँगली से उसकी कलिकाओं को छेड़ने लगा और चूचियों को चूसने लगा।
जल्दी ही वह फिर तैयार हो गई और मैंने इस बार उसे बेड से नीचे उतार लिया। एक पांव नीचे और एक पांव ऊपर और इस तरह हवा में खुली चूत में मैंने अपना लंड ठूंस कर उसके नरम गद्देदार चूतड़ों पर, जो धक्के मारने शुरू किये, तो उसकी ‘आहें’ निकल गईं और जल्दी ही वह खुद भी अपनी गाण्ड आगे-पीछे करके सहयोग करने लगी।
इसी तरह वह सिस्कार-सिस्कार कर चुदती रही और मैंने हांफते हुए चोदता रहा और जब लगा के अब निकल जाएगा तो लंड उसकी बुर से बाहर निकाल कर उसके चूतड़ पर दबा दिया और जो ‘फच-फच’ करके माल निकला, वह उसके चूतड़ों पर मल दिया। फिर दोनों बिस्तर पर गिर कर हाँफ़ने लगे।
“सुनो, मैं बिना गाँड़ मारे नहीं रह सकता। तुम्हें अच्छा लगे या बुरा, दर्द हो या छेद फट ही क्यों न जाए मैं बिना मारे छोड़ूँगा नहीं।”
उसने कोई जवाब नहीं दिया। वह पड़ी रही और मैं उसी हालत में उठ कर कमरे से निकला और रसोई में आ गया। तेल ढूंढने में ज्यादा देर न लगी, मैं उसे लेकर वापस उसके पास पहुँचा और उस पर चढ़ कर फिर उसे गरम करने लगा। थोड़ी ही कोशिश में वह मचलने लगी और बुर जो उसने पोंछ ली थी, वो फिर से रसीली हो गई।
मैंने इस बार सीधे अर्ध उत्तेजित लंड को उसकी बुर में डाला और धक्के लगाने लगा। वह गर्म होने लगी और उसकी बदन की लहरें मुझे बताती रही। जब उसे चुदने में खूब मज़ा आने लगा और मेरा लंड भी पूर्ण उत्तेजित हो गया तो मैंने लंड निकल कर उसे कुतिया की तरह चौपाया बना लिया और अब तेल में ऊँगली डुबा डुबा कर उसकी गा्ण्ड के कसे छेद में करने लगा।
शुरू में वह कसमसाई पर फिर एडजस्ट कर लिया और य़ू ही एक के बाद दो और दो के बाद तीन ऊँगलियाँ तक उसके कसे चुन्नटों से भरे छेद में डाल दी। जब मुझे लगा कि अब लंड जाने भर का रास्ता बन गया है, तो लंड को तेल से नहला कर मैंने ठूँसना शुरू किया, जैसे ही सुपाड़ा अन्दर गया, वह जोर से कराह कर आगे खिसकी.. लेकिन मैं भी होशियार था। मैंने उसकी कमर थाम ली थी और निकलने नहीं दिया, उलटे तेल की चिकनाहट के साथ पूरा लंड अन्दर ठेल दिया।
“उई ई ई .. ऊँ ऊँ …ओ..!
“बस हो गया, डरो मत, तुम अपने हाथ से अपनी क्लिटोरिस सहलाओ, चूत गरम रहेगी तो मरवाने का भी मज़ा आएगा।”
उसने ऐसा ही किया और फिर जब मैंने उसके गुदाज नरम चूतड़ों पर थाप देते हुए उसकी गाँड़ में लंड पेलना शुरू किया, तो थोड़ी ही देर में उसे मज़ा आने लगा और इसके बाद फिर उसे नीचे चित लिटा कर, फिर उसकी टांगें उठा कर उसके घुटने पेट से मिला दिए तो उसकी गाँड़ का छेद इतना ढीला हो चुका था कि उसने मेरे लंड का कोई विरोध ना किया और आसानी पूरा अन्दर निगल लिया।
फिर कुछ ज़ोर-ज़ोर के धक्कों के बाद मेरा फव्वारा छूट ही पड़ा और मैंने पूरी ‘ट्यूब’ उसकी गाण्ड में खाली कर दी और उसके बगल में गिर कर हाँफ़ने लगा। इतनी मेहनत और दो बार के डिस्चार्ज ने इतनी हालत खस्ता कर दी कि होश ही न रहा। होश जब आया जब बाहर घन्टी बजी।
जल्दी-जल्दी दोनों ने कपड़े पहने और मैं ही बाहर निकल कर दरवाज़ा खोलने पहुँचा, पर ये देख कर हैरान रह गया कि बाहर हुमायूँ भाई के साथ उनके दोनों बच्चे तो थे लेकिन उनकी बीवी सायरा के बजाय उनकी बहन हुमैमा भी मौजूद थी।
“अरे तुम… सायरा कहाँ है?”
मेरी एक ठंडी सांस छूट गई और मैंने आहिस्ता से सर हिला कर कमरे की तरफ इशारा किया और जीने से ऊपर बढ़ आया। मेरे लिए समझना मुश्किल नहीं था कि कमरे में मेरे लौड़े के नीचे जरीना थी और मेरे साथ क्या हुआ था, लेकिन अजीब कमीनी औरत थी कि इतना चुदने के बाद भी हेकड़ी बरक़रार थी और क्या मज़ाल कि उसके चेहरे से ऐसा लगता कि मुझसे चुद चुकी हो।
बहरहाल जो मेरा शिकार थी, वह पच्चीस साल की बेवा, वो वैसे ही नरमी तो दिखा रही थी लेकिन चुदने जैसा कोई इशारा नहीं दे रही थी, उसके चक्कर में ही मैं रात को अपने कमरे का दरवाज़ा खुला रख के ही सोता था कि उसे आने में दिक्कत न हो और अँधेरे में ही अपनी शर्म छुपा कर चली आए।
फिर भाभी की चुदाई के चार रोज़ बाद एक रात ऐसा मौका भी आया… जब रात के किसी पहर मेरी आँख खुल गई। खुलने का कारण मेरे लंड का खड़ा होना और उसका गीला होना था। मैंने अपनी इंद्रियों को सचेत कर के सोचा तो समझ में आया कि कोई मेरे लंड को अपने गीले-गीले मुँह में लिए लॉलीपॉप की तरह चूसे जा रहा था।
मैंने देखने की कोशिश की पर साये से ज्यादा कुछ न दिखा। अब ऐसी खुली हरकत तो ज़ाहिर था कि सायरा ही कर सकती थी, लेकिन मुझे क्या, ननद न सही भाभी ही सही, एक अदद चूत ही तो चाहिए। मैंने हाथ बढ़ा कर उसे ऊपर खींच लिया। और उसे जकड़ कर उसके होंठों का रसपान करने लगा। वो भी मेरे होंठों और ज़ुबान से खेलने लगी, मैंने दोनों हाथों से उसकी चूचियाँ गूंथनी शुरू की, तो उसकी कराह निकल गई।
“क्या लगा लिया, उस दिन नरम लग रही थी आज तो कुछ सख्त लग रही हैं?”
मैंने उसके कुर्ते को ऊपर करते हुए कहा। वह कुछ नहीं बोली। मैंने उसका कुरता उसके सर से ऊपर करके निकाल दिया और उसकी सलवार भी उतार दी। खुद तो वैसे भी चड्डी में ही सोता था। अब दो नंगे बदन की रगड़ा-रगड़ी माहौल में आग भरने लगी।
थोड़ी देर ब्रा के ऊपर से मैं उसके निप्पल कुचलता रहा और वह हौले-हौले सिसकारती रही, फिर उसके स्पंजी वक्षों को ब्रा की कैद से आज़ाद करके दोनों मटर के दानों जैसे निप्पलों को खींचने, चुभलाने लगा। फिर मेरे हाथों के इशारे पर वो औंधी लेट गई और मैं उसकी पीठ पर लद कर दोनों हाथ आगे ले जाकर उसकी चूचियों को दबाते हुए उसकी गर्दन मोड़ कर उसके होंठों को चूसने लगा। उसने भी एक हाथ से मेरा चेहरा थाम लिया था।
इसके बाद मैं नीचे सरकने लगा। और बिल्कुल नीचे पहुँच कर उसकी पैंटी को नीचे सरका कर उसके नरम-नरम चूतड़ों को चाटने दबाने लगा और पीछे से ही हाथ डाल कर उसकी गर्म भट्टी की तरह दहकती बुर को छुआ तो जैसे वह सिहर गई। चिपचिपा पानी भरा हुआ था।
मैं उसी हालत में उसे रखे खुद चित लेट गया और अपना मुँह नीचे से उसकी चूत पर ले आया और ज़ुबान से उसकी कलिकाओं से छेड़छाड़ करने लगा। वह मचलने लगी… दोनों हाथों से मैंने उसके डबल-रोटी जैसे चूतड़ थाम रखे थे और जब ऊपरी कलिकाओं को काफी गर्म कर चुका, तो ज़ुबान को नुकीला और कड़ा करके उसके छेद में उतार दिया।
वह ‘सिस्स’ करके रह गई। मैंने धीरे धीरे उसे जीभ से चोदने लगा और वह हौले-हौले ‘आह-आह’ करती रही। फिर ऐसा वक़्त भी आया जब वह बुरी तरह मचलने लगी और मुझे नीचे से धकेल दिया, पर करवट न बदली और वैसे ही औंधी पड़ी कराहती रही।
मैं सीधा होकर उसकी पीठ पर चढ़ आया और दाहिने घुटने से उसकी जांघ पर दबाव बना कर उसे इतनी दूर ठेल दिया कि नीचे उसकी बुर खुल सके और फिर हाथ से लंड को पकड़ कर उसके छेद पर रखा और अन्दर ठेल दिया। वह एकदम से अकड़ गई…
पर मैंने उसे निकलने न दिया और उल्टा हाथ उसकी गर्दन के नीचे से निकाल कर उसके चेहरे को अपनी तरफ करके उसके होंठों से अपने होंठ चिपका कर चूसने लगा, तो दूसरे हाथ से उसकी दाहिनी चूची को भी ज़ोर-ज़ोर से भंभोड़ने लगा। लंड जब उसके पानी से भीग गया तो बाहर निकाल कर वापस पूरा अन्दर ठेल दिया और उसके नरम गद्देदार चूतड़ों का आनंद लेते हुए उसी अवस्था में धक्के लगाने लगा।
वह पहले ही चरम पर पहुँच चुकी थी, इसलिए कुछ ही धक्कों में उसकी चूत बहने लगी और मेरे लंड को नहला गई। मैं भी रुका नहीं बल्कि उसी हालत में धक्कों की स्पीड बढ़ाता चला गया और आखरी धक्के इतनी ज़ोर-ज़ोर से लगाए कि बेड बुरी तरह हिल कर रह गया। ऐसा हो ही नहीं सकता कि नीचे उसके यूँ हिलने की आवाज़ें न गई हों।
फिर मैं उसकी चूत में ही झड़ गया और उसके चूतड़ों पर अपना पेट कस के सारा माल अन्दर ही निकाल दिया। आधी रात के वक़्त की यह चुदाई मुझे इतना थका गई कि मेरे होश ही न बजा रहे और पता भी न चला कि मैं कब नींद के आगोश में जा समाया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
सुबह जब आँख खुली तो तबियत में भारीपन था और मन ही नहीं हो रहा था कि काम पर जाऊँ। जैसे-तैसे उठा तो ग्यारह बज चुके थे। बिस्तर झाड़ा तो एक बाली मिली, शायद कल रात की धींगा-मुश्ती में रह गई थी। उसे लिए नीचे पहुँचा तो सन्नाटा छाया हुआ था और सायरा अकेली रसोई में थी। मैं उसके पास पहुँचा तो मुझे देखने लगी।
“बाली रह गई थी रात में !” मैंने उसे बाली थमाते हुए कहा।
उसने हैरानी से मुझे देखा और फिर बाली देखने लगी।
“कहाँ रह गई थी?”
“रात में जब तुम ऊपर थी।” मैंने आहिस्ता से कहा कि कहीं हुमैमा न सुन ले।
“ओह ! यह मेरी नहीं, हुमैमा की है और मैं रात में ऊपर नहीं गई।”
मैं अवाक सा उसे देखता रहा और फिर हैरानी से हुमैमा के कमरे की तरफ देखा।
“वह घर नहीं है, बच्चों को लेकर अपनी फूफी के यहाँ गई है ! तो कल रात वह चुदी है तुमसे।”
“कमाल है, जब मैंने उसे समझ कर चोदा तो तुम निकली और जब तुम्हें समझ कर चोदा तो वो निकली। तुम्हें पता है कि मैं यहाँ क्यों आया हूँ।”
“हाँ, पता है… मेरे लिए।”
“क्या?” मैंने हैरान हो कर उसे देखा।
“हाँ… तुम्हारे भाई साहब आज तक मेरी प्यास नहीं बुझा पाये, बच्चे तो जैसे-तैसे करके हो ही जाते हैं, लेकिन औरत को संतुष्ट कर पाना हर किसी के बस का नहीं होता। कभी गलत संगत में अपनी खराबी कर ली थी। शादी के बाद से ही यह हाल है कि एक तो ठीक से खड़ा नहीं होता, ऐसा लगता है कि घुसाने के टाइम मुड़-तुड़ कर बाहर ही रह जाएगा.
अपनी सील तोड़ने के लिए मुझे खुद बैंगन इस्तेमाल करना पड़ा था और अपनी बुर को इतना ढीला करना पड़ा था कि हुमायूँ साहब अपने उस ‘लुंज-पुंज’ से उसे चोद पाएँ लेकिन धीरे-धीरे जब उम्र चढ़नी शुरू हुई तो दूसरी दिक्कत आ गई कि खड़ा हुआ नहीं कि झड़े नहीं। मुद्दतें हो जाती हैं मुझे अपनी प्यास बुझाए और इसी की वजह से मेरे मिजाज़ में भी चिड़चिड़ापन आ गया है।
अब मेरी बर्दाश्त से बाहर हो चला था, कहाँ तक मैं घर की इज्जत और उनकी मान-मर्यादा का ख्याल रखती। मैं अब बाग़ी होने लगी थी, तभी उन्होंने यह रास्ता निकाला कि कम से कम घर की बात घर में ही रहे।”
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“पर उन्होंने तो कहा था के मुझे उनकी बेवा बहन के लिए यहाँ रुकना है कि कहीं वो बहक कर खुद का कोई अहित न कर ले।”
“हाँ, उनका मर्दाना आत्म-सम्मान.., मर्द जो ठहरे, अपनी हार सीधे-सीधे कैसे स्वीकार कर लेते और बहरहाल बात तो हुमैमा की भी थी, आखिर जायदाद किसे प्यारी नहीं होती, किसी और से सैट हो कर चली गई, तो सब गया हाथ से और यहीं चुदती रहेगी, तो बाहर किसी को देखेगी भी नहीं।”
“उसे पता है कि मैं तुम्हारे लिए लाया गया हूँ?”
“नहीं, पर मैं बता दूँगी कि उसके भाई ने हम दोनों के ही लिए एक मर्द का इंतज़ाम किया है और अब तो वो तुमसे चुद भी चुकी है, तो उसे भला क्या इंकार होगा।”
“पर मुझे झूठ बोल कर यूँ उल्लू बनाना पसंद नहीं आया और इस बात का बदला तो मैं हुमायूँ भाई से लेकर ही रहूँगा।”
“कैसे?”
“तुम अब उन्हें फोन लगाओगी और बताओगी के मुझे सब पता चल चुका है और अब मैं तुम्हें अभी ही चोदने जा रहा हूँ और तुम अपनी चुदाई की दास्तान उन्हें फोन पर सुनाओगी और वो फोन नहीं काटेंगे… फोन काटा तो मैं बाहर सब को सच बता कर यहाँ से चला जाऊँगा।”
वह हँसी.. उसके चेहरे पर चमक आ गई। हाँलाकि मेरी तबियत बहुत अच्छी नहीं थी लेकिन फिर भी मैं उसे गुसलखाने में पकड़ लाया। फोन उसके हाथ में ही था। उसने नम्बर मिलाया और हुमायूँ भाई को बताने लगी। उधर से कोई आवाज़ न आई और मैंने शावर चला दिया, हम दोनों के कपड़े भीग गए।
फोन उसने पानी से दूर ही रखा था, वो फोन पर वो सब बोलती रही जो मैं करता रहा। मैंने उसके कपड़े उतार दिए और अपने भी… फिर कम स्पीड में शावर चला कर बहते पानी में उसके भरे-भरे गुब्बारे दबाने, चूसने लगा। उसकी पीठ पर ज़ुबान फिराई और हाथ आगे किए, उसके पेट को सहलाता रहा।
वह फोन पर बताती तो रही, पर जिस क्षण उसे तेज़ आनन्द की लहर कचोटती, उसका स्वर लहरा जाता या चुप हो जाती। नीचे होते उसके चूतड़ों को चाटने लगा और दोनों मोटी फाँकों को अलग कर के उसकी गांड के छेद में उंगली कर दी। वो सिसक उठी और मैं उसकी टांगों को थोड़ा फैला कर आगे से उसकी पानी से भीगी बुर में मुँह डाल कर उसे मुँह से चोदने लगा और हाथ की उंगली से उसकी गुदा के छेद को।
उसके लिए फोन सम्भाल कर बात करते रहना मुश्किल हो गया और आवाज़ लहराने लगी। जब वह इतनी गर्म हो गई कि उसके लिए बात करना मुमकिन न रह गया तो मैंने अपना मुँह और ऊँगली हटा ली और खुद खड़ा हो गया और उसे नीचे झुका लिया। उसने मेरा इशारा समझने में देर नहीं की। फोन पर बताया कि क्या करने जा रही थी और मेरे लंड को मुँह में ले कर चूसने लगी।
फोन पर उसकी ‘गूं.. गूं.. और चप.. चप..’ हुमायूँ भाई को सुनाई दे रही होगी। जब लंड काफी टाइट हो गया तो मैंने उसे हटा दिया और कमोड पकड़ कर झुका दिया, एक पाँव नीचे फर्श के टाइल पर तो दूसरा कमोड की सीट पर और मैंने पीछे से उसके चूत में अपना लंड सरका दिया।
अब वो कुछ और बोलने के काबिल तो नहीं थी बस फोन मुँह के पास रखे ‘आह-आह… ओह’ करती रही और मैं उसके चूतड़ों को पकड़े धक्के पर धक्के लगाता रहा। इस चुदाई में मैंने कोई और आसन नहीं अख्तियार किया, बस पैर की पोजीशन ही बदलवाई और इसी तरह लगातार धक्के लगाता रहा।
धीरे धीरे मैं चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया और साथ ही वो भी और जिस घड़ी एक तेज़ कराह के साथ हम दोनों झड़े, फोन उसके हाथ से छूट गया और फर्श पर बिखर गया। मैंने अपने अंतिम पड़ाव पर उसके चूतड़ों में अपनी उँगलियाँ धंसा कर उसे अपने लंड पर ऐसे भींचा था, जैसे उसे खुद में ही समा लेना चाहता हूँ…
उसने भी फोन छोड़ कर कमोड की सीट को दोनों मुट्ठियों में जकड़ लिया और इस तरह हमारी चुदाई संपन्न हुई। ननद-भाभी की चूत के दर्शन सुलभ हुए तो वारे न्यारे हो गए और बाद में जब दोनों के बीच सब कुछ साफ़ हो गया तो मेरी उँगलियाँ समझो कि घी में तैर गईं।
दोनों ने समझौता कर लिया था और अब यह होता था कि भाई साहब ने बीवी और बहन को समझो, मेरे हवाले कर दिया था और अब एक रात मेरे साथ सायरा सोती थी तो एक रात हुमैमा। ऐसे ही महीना गुज़र गया। इस बीच कम्पनी के गुड़गांव ऑफिस से एक मेरी ही उम्र का लड़का राजीव हैदराबाद शिफ्ट हुआ था और हफ्ते भर में ही मेरी उससे बड़ी अच्छी छनने लगी थी।
दोनों ही अपने घरों से दूर एक नए शहर में अकेले थे तो दोस्ती हो जाना कोई बड़ी बात नहीं थी और हमारे बीच अंतरंग बातें भी साझा होने लगी। वह भी एक नंबर का चोदू था लेकिन यहाँ उसके पास कोई जुगाड़ नहीं था और वो मुझे उकसाता था कि मैं ही उसके लिए कुछ जुगाड़ करूँ।
मैंने डरते-डरते सायरा से उसके लिए बात की तो मुझे सीधे धमकी सुनने को मिल गई कि अगर मैं किसी दोस्त को इस नियत से घर भी लाया तो समझो मेरा पत्ता यहाँ से कटा। फिर मैंने हुमैमा से बात की तो जैसे तूफ़ान ही आ गया। वह तो ऐसे भड़की जैसे मैंने पता नहीं कौन सा गुनाह कर दिया।
बकौल उसके यह उसकी मज़बूरी थी कि वो मेरे साथ सो रही थी लेकिन मैं इससे आगे ऐसा सोच भी कैसे सकता हूँ और वो भी एक दूसरे धर्म लड़के के साथ? छि: छि: … और वो मुझे लटी-पटी सुना कर ऐसे गई कि तीन दिन तो अपनी शकल ही न दिखाई और करीब सात-आठ दिन मुझे उसकी चूत के दर्शन भी न हुए।
इस बीच तीन बार सायरा से काम चलाया। लेकिन कहते हैं न एक बार जब चूत को लंड की लत लग गई तो चुदाई का तय वक़्त होते ही उसमें अपने आप ‘चुल्ल’ मचने लगती है और फिर कुछ सही गलत, अच्छा बुरा नहीं दिखता। आठ दिन जैसे तैसे गुज़ार कर आखिरकार फिर वो मेरे पास वापस आ ही गई.
लेकिन राजीव से चुदने को अब भी तैयार नहीं थी और अपनी जीत होते देख मैंने भी इस प्रकरण को एंड नहीं किया और उसे लैपटॉप और मोबाइल पर ‘एमएमऍफ़’ यानि दो मर्द और एक औरत की चुदाई वाली फ़िल्में दिखा-दिखा कर उस अकूत आनन्द के बारे में बता-बता कर उसकी कल्पनाओं को अपने मनमाफिक उड़ान देता रहा।
कहते हैं न कि बात चाहे कितनी भी गन्दी और घिनौनी क्यों न हो लेकिन बार-बार कानों में पड़ती है तो मन को उसे सुनने की आदत हो जाती है और फिर विरोध भी शनै: शनै: क्षीण हो कर ख़त्म हो जाता है और ऐसा ही हुमैमा के साथ भी हुआ। जो बात पहली बार सुन कर वो आगबबूला हो गई थी करीब पंद्रह दिन के बाद उसी बात पर उसने यह पूछ लिया कि वो (राजीव) पूरी दुनिया को बताएगा तो नहीं?
मुझे तो जैसे मुँह-मांगी मुराद मिल गई। मैंने उसे भरोसा दिलाया कि वो मेरा खास दोस्त था और बेहद भरोसे का इंसान था और वैसे भी वो परदेसी है एकाध महीने के बाद वापस गुड़गांव चला जाएगा तो किसी को बता कर भी क्या हासिल कर लेगा। फिर मैंने यह खुशखबरी राजीव को सुनाई…
वह पट्ठा भी सुन कर प्रसन्न हो गया कि चलो उसके लंड के लिए कुछ जुगाड़ तो हुआ। मैंने हुमैमा को स्कीम समझाई और सायरा को भी पटाया कि अब रात का सेक्स बहुत हो चुका, मैंने दिन के उजाले में हुमैमा को देख-देख कर चोदना चाहता हूँ। वह ऐसा करे कि किसी दिन अपने परिवार को लेकर अपने मायके, जो चौक में था, वहाँ चली जाए और रात को ही वापस लौटे।
पहले तो मानी नहीं, लेकिन जब थोड़ा गुस्सा दिखाया और चले जाने को कहा तो लंड हाथ से निकलते देख फ़ौरन तैयार हो गई और रविवार के दिन का प्लान बना लिया। फिर वह मुरादों वाला रविवार भी आया। सायरा सुबह ही अपने परिवार को लेकर निकल गई और दस बजे मैंने राजीव को बुला लिया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
वह जब आया तो हम दोनों नीचे ही बैठे थे। दिखने में बंदा मुझसे भी हैंडसम था और उसे प्रथम दृष्टया देख कर हुमैमा की आँखों में डर, अरुचि, मज़बूरी या अप्रियता के भाव न आए, बल्कि उसकी आँखें शर्म से झुक गईं तो मुझे तसल्ली हुई कि अब ऐन मौके पे पट्ठी बिदकेगी नहीं। उधर हुमैमा को देख कर राजीव भी गदगद हो गया। इसमें भी कोई शक नहीं कि वह ज़बरदस्त माल थी।
बहरहाल, हुमैमा को मैं नीचे ही छोड़ कर उसे ऊपर अपने कमरे में ले आया और हम इधर-उधर की बातें करने लगे। राजीव उतावला हो रहा था लेकिन मैं हुमैमा को मानसिक रूप से तैयार होने के लिए थोड़ा समय देना चाहता था। करीब आधे घंटे बाद मैंने उसे आवाज़ देकर ऊपर बुलाया।
उसने मेरी पुकार का उत्तर तो दिया, लेकिन ऊपर न आई… मैंने दो बार और बुलाया लेकिन वह ऊपर न आई तो मैंने राजीव से कहा- नीचे ही चलना पड़ेगा बेटा। इसके बाद अपने प्रोग्राम के लिए मैंने जो नीचे जुगाड़ करके रखी थी वो सम्भाले राजीव के साथ नीचे पहुँचा तो वह अपने कमरे में पहुँच चुकी थी।
जिस वक़्त हम दरवाज़े की चौखट पर पहुँचे वह अपने बेड के पायताने बैठी अपने पांव के अंगूठे से फर्श को कुरेद रही थी और चेहरा नीचे झुका रखा था। दुपट्टा कायदे से सीने पर व्यवस्थित था। मैं उसके पास आ बैठा और उसे अपने कंधे से लगा कर उसका सर सहलाने लगा।
मेरे इशारा करने पर राजीव भी हुमैमा के दूसरी तरफ उसके पास आ बैठा और उसकी वजह से हुमैमा जैसे और भी सिमट गई। मैंने उसके पहलू से हाथ अन्दर घुसा कर उसकी एक चूची सहलानी शुरू की और दूसरे हाथ से उसका चेहरा थाम कर उसके होंठ चूसने लगा। राजीव ने यह देख उसकी जाँघ पर हाथ रखा लेकिन उसने झटक दिया।
राजीव ने मुझे देखा तो मैंने आँखों के इशारे से उसे कोशिश करते रहने को कहा और खुद अपने हाथ से उसका दुपट्टा हटा कर अलग फेंक दिया। राजीव ने फिर उसकी जाँघ पर हाथ रखा… हुमैमा ने फिर उसका हाथ झटकना चाहा, लेकिन इस बार मैंने थोड़ी फुर्ती दिखाते हुए अपने दोनों हाथ उसकी बगलों में घुसा कर ऊपर किए तो उसके दोनों हाथ स्वमेव ही मेरे कन्धों पर आ गए और फिर मैंने अपने होठों से उसके होंठ समेट लिए और उसकी ज़ुबान से किलोल करने लगा।
अब राजीव थोड़ा और सरक के हुमैमा से एकदम सट गया और सीधे हाथ से उसकी जाँघें सहलाते हुए, उलटे हाथ से हुमैमा की कमर थाम ली। इस नए स्पर्श से हुमैमा एकदम से सिहर गई। उसकी झुरझुरी मैंने भी महसूस की। उसने हिलने, कसमसाने की कोशिश की लेकिन हम दोनों के बंधन ऐसे सख्त थे कि फिर ढीली पड़ गई और राजीव के नए अजनबी हाथों को जैसे आत्मसात कर लिया।
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राजीव ने सीधे अपने हाथ को उसके निचले तन पर फिराते हुए, दुपट्टा हटने के बाद कपड़ों के ऊपर से भी टेनिस बॉल जैसे उसके उरोज़ों पर ले आया। हुमैमा ने फिर झुरझुरी ली, लेकिन मैंने उसे छूटने न दिया और आरम्भिक कसमसाहट के बाद जैसे अवरोध ख़त्म हो गया और राजीव बड़े प्यार से उसकी चूचियों को सहलाने, दबाने लगा।
मैंने तो हुमैमा के हाथों को ऊपर किए अपने हाथ उसकी पीठ पर रखे। उसकी गर्दन और पीठ सख्ती से थाम रखी थी, लेकिन राजीव कुछ देर ऊपर से उन स्पंजी चूचियों का मर्दन करने के पश्चात् उसकी कुर्ती के अन्दर हाथ घुसा कर, उसकी त्वचा से स्पर्श करते हुए अब उसकी ब्रा तक पहुँच गया था और उसे ऊपर खिसकाने की कोशिश कर रहा था।
त्वचा पर उसकी गर्म हथेलियों की रगड़ ने पहले तो हुमैमा को सिहराया, फिर इसी रगड़ ने उसे उत्तेजित करना शुरू कर दिया। जब राजीव उसकी ब्रा को ऊपर खिसका कर उसकी नग्न चूचियों तक पहुँचने में कामयाब रहा। अपने सधे हुए हाथों से उन नरम गुदाज गेंदों को सहलाते, दबाते उसके चुचूकों को मसलने और छेड़ने लगा, तो हुमैमा के शरीर में एकाएक बढ़ी उत्तेजना मैं साफ़ अनुभव करने लगा।
उसके चुम्बन में प्रगाढ़ता और आक्रामकता आ गई। उसकी सहायता के लिए मैंने न सिर्फ अपने हाथों को उसकी पीठ पर रखे हुए हुमैमा की ब्रा के हुक खोल दिए बल्कि हाथ नीचे करके उसकी कुर्ती को एकदम से ऐसा ऊपर उठाया के उसकी भरी-भरी चूचियां राजीव की आँखों के आगे एकदम से अनावृत हो गईं और वह दोनों हाथों से उन पर जैसे टूट पड़ा।
उत्तेजना के अतिरेक से हुमैमा की आँखें बंद सी हो गईं। मैंने उसके होठों को छोड़ कर उसके गालों, गर्दन और कान को चूमते, चुभलाते और रगड़ते राजीव को संकेत किया और उसने साथ लाये सामान से शहद निकाल लिया। यह शहद उसने हुमैमा की दोनों भूरी-गुलाबी घुंडियों पर मल दिया और फिर एक चूची को उसने अपने मुँह में समेट लिया और ज़ुबान से उसकी घुंडी पर लगा शहद चूसने लगा।
एक हाथ से न सिर्फ वह हुमैमा की दूसरी चूची सहला रहा था, बल्कि उसकी घुंडी पर शहद भी मल रहा था। मैं हुमैमा के चेहरे को चूम रहा था और रगड़ रहा था, उसकी पीठ को सहला रहा था और राजीव एक-एक कर के दोनों चूचियों और घुंडियों पर शहद मल-मल कर उन्हें चूस रहा था।
हुमैमा की सांसें उखड़ने लगी थीं। उसके सारे शरीर में लहरें सी दौड़ने लगी थीं और साँसें भारी हो कर ‘सी-सी’ में बदल गई थीं। राजीव ने ही उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और उसे नीचे करने की कोशिश की, लेकिन इस हाल में भी हुमैमा ने अपनी सलवार थाम ली और उसे नीचे नहीं होने दिया।
मैंने उसके हाथ फिर बांध लिए और इस बार राजीव को सफलता मिल गई। उसने सलवार नीचे कर दी और खाली हाथ से पैंटी के ऊपर से ही उसकी पाव-रोटी जैसी फूली हुई चूत पर हाथ फिराया तो हुमैमा कांप गई। राजीव के साथ ही मैंने भी अपना हाथ वहाँ पहुँचाया, तो उसकी पैंटी गीली मिली।
राजीव तो नहीं, पर मैंने ही उसके चूतड़ों की तरफ हाथ ले जाकर उसकी पैंटी की इलास्टिक में उंगली फँसाई और उसे थोड़ा उचका कर पैंटी को नीचे खिसकाने लगा। अवरोध डालने के लिए हुमैमा ने ताक़त लगाई, लेकिन राजीव ने भी नीचे हाथ डाल कर उसके चूतड़ों को ऊपर उठा दिया और पैंटी चूतड़ से नीचे हो गई और फिर दोनों जाँघों पर हम दोनों ने दबाव डाल कर उसकी पैंटी को उसके घुटनों तक पहुँचा दिया।
और.. यूँ राजीव को उसकी मखमली बुर के दर्शन हुए और मुझे भी दिन के उजाले में पहली बार हुमैमा की उस चूत के दीदार हुए, जिसे मैं रातों के अँधेरे में कई बार अपनी ज़ुबान से भी चख चुका था। आज बुर बिल्कुल सफाचट थी। लगता था जैसे सुबह ही शेविंग की हो… यानि मन से बंदी तैयार थी इस नए अनुभव के लिए।
बालों की जगह हल्का हरापन था और चूँकि हम बैठे या यह कहो कि अधलेटी अवस्था में थे तो बुर के पूरे दर्शन तो नहीं हो पा रहे थे, लेकिन ऊपर से जो आधी दिख रही थी उतनी भी कम शानदार नहीं थी। उत्तेजना में हल्का सा उठा छोटा मांस और नीचे रक्षा कवच जैसी क्लियोटोरिस-वाल गहरे रंग में उत्तेजना के कारण अपने पूरे वजूद में दिख रही थी। मेरे साथ राजीव भी इस नज़ारे से मस्त हो गया।
उसने अपनी उँगलियाँ नीचे ले जाकर उसकी सम्पूर्ण योनि पर फिराई तो हुमैमा काँप कर रह गई और उधर योनि से बहा चिपचिपा पदार्थ उसकी ऊँगलियों से लग गया। उसने अपनी ऊँगलियों को नाक के पास ला कर सूंघा और ऐसा लगा जैसे उस महक से राजीव मस्त हो गया हो।
राजीव की आँखें बंद हो गईं, कुछ पल के लिए और उसने अपने होंठों से हुमैमा की घुंडी निकाल कर ज़ुबान से उस लिसलिसे कामरस को चखा और फिर उसे उसी चूची पर लगा कर फिर उस पर अपनी ज़ुबान रगड़ने लगा। अब हुमैमा के चेहरे गर्दन से होकर मैं भी झुकते हुए उसकी बाईं चूची पर पहुँच गया।
अब हुमैमा पीछे की तरफ इतना झुक गई कि उसे सहारे के लिए अपने हाथ बिस्तर पर टिका देने पड़े। और हम दोनों शहद मल-मल कर उसकी घुंडियों और चूचियों को ऐसे चूसने लगे जैसे कोई भूखे बच्चे दूध पीने में लगे हों। यूँ तो उसकी चूत अनावृत थी लेकिन अभी हम सिर्फ उसे ऊपर से ही सहला रहे थे और इतने में भी हुमैमा की गहरी-गहरी सिसकारियाँ छूटने लगी थीं।
दोनों घुन्डियाँ उत्तेजना से एकदम कड़ी होकर रह गई थीं। फिर मैं अपने पैर समेट कर बिस्तर पर ऊपर आ गया और हुमैमा की पीठ के पीछे होकर उसे अपने सीने से लगाते हुए ऐसे सम्भाल लिया कि एक हाथ से उसका चेहरा दबाव बना कर अपनी तरफ मोड़ लिया और उँगलियाँ शहद से भीगा कर उसके होंठ और चेहरे को गीला कर दिया और अपनी बेक़रार जीभ से उसे चाटने लगा.
तो दूसरे हाथ से उसकी चूत को सहलाते हुए उसके दाने को उँगलियों से गर्म करने लगा। और इस पोज़ीशन में राजीव अपने दोनों हाथ और मुँह से हुमैमा की गदराई चूचियों का स्तनपान करने लगा। साथ ही उसने अपनी पैंट और चड्डी नीचे खिसका कर अपना लंड बाहर निकाल लिया था, जो उत्तेजना से कड़ा हो कर अपने पूरे आकार में फनफना रहा था।
मुझे कहने में कोई हिचक नहीं कि उसका लंड मेरे मुकाबले न सिर्फ लम्बा था, बल्कि मुझसे मोटा भी था और उसका रंग भी इतना गोरा था कि वह किसी को भी पसंद आ सकता। जब उसने हुमैमा का हाथ थाम कर उसे अपने लंड पर रखा तो हुमैमा ने चौंक कर आँखें खोलीं और उसे देखा और फ़ौरन अपना हाथ वापस खींच लिया.
लेकिन इस एक पल में मुझे उसकी आँखों में लहराए जो भाव दिखे, वो यह सन्देश दे गए कि उसे राजीव का लंड भा गया था और फिर शर्म से उसने फिर आँख बंद कर लीं और हम फिर अपने काम में लग गए। यहाँ भी मुझे ही राजीव की मदद करनी पड़ी। मैंने हुमैमा का हाथ ले जाकर उसके लंड पर रख कर ऐसा दबाया कि उसे संकेत समझ कर लंड हाथ में लेना पड़ा और वो उसे पकड़े ही रहती अगर राजीव उसके हाथ को ऊपर-नीचे न करता।
बहरहाल अब मैं हुमैमा के चेहरे और होंठों को चूसे डाल रहा था, राजीव उसकी चूचियों को मसल-मसल कर घुंडियों का हाल बेहाल किए दे रहा था और हुमैमा खुद धीरे-धीरे राजीव के लंड को सहला और दबा रही थी। जब ऐसे ही कुछ देर हो गई तो मैंने भी अपना लोअर नीचे खिसका कर अपना सामान बाहर निकाल लिया.
और हुमैमा की गर्दन पर दबाव डाल कर उसे इतना झुका दिया कि वो अधलेटी सी हो कर बाएं करवट हो कर झुकी और मेरे लंड तक पहुँच गई। पहले तो नए शख्स के सामने शर्म के कारण चेहरा इधर-उधर हटाया, लेकिन मेरे ज़ोर डालने पर उसे मुँह में ले ही लिया और उस पर अपनी जीभ रोल करने लगी।
पर इस अवस्था में उसकी दोनों चूचियाँ नीचे हो कर राजीव के आक्रमण से सुरक्षित हो गईं। तो राजीव ने उसके नग्न गोरे और चमकते हुए चूतड़ों पर ध्यान दिया। वो पीछे से उसके चूतड़ों के बिलकुल करीब हो कर दोनों हाथों से डबल-रोटी जैसे मुलायम और गद्देदार चूतड़ों को फैला कर पीछे से उसकी गाण्ड का गुलाबी छेद और पीछे ख़त्म होती उसकी बुर को देखने लगा, जो मुझे तो नहीं दिख रही थी लेकिन मुझे पता है कि उसके कामरस से नहायी पड़ी होगी.
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उस रस से उसने अपनी उंगली अच्छे से गीली की और फिर हुमैमा की गाण्ड के छेद को कुरेदने लगा। छेद पर उसकी ऊँगली का स्पर्श पाते ही हुमैमा एकदम कसमसाई लेकिन मैंने उसकी पीठ पर दबाव डाल कर उसे रोक लिया। और उसी जद्दोजहद के बीच राजीव ने अपनी चिकनाई से भरी ऊँगली उसकी गाण्ड के छेद में अन्दर उतार दी।
हुमैमा उंगली अन्दर होते ही मचली और उसके मुँह से एक ‘आह’ निकल गई। अब ये तो तय था कि मेरे जैसे गाण्ड के शौक़ीन से चुदने के बाद किसी लड़की का पिछला छेद बचने वाला तो था नहीं और राजीव की ऊँगली मेरे लंड से मोटी तो थी नहीं। इसलिए हुमैमा को कोई फर्क अगर पड़ना था तो बस यही कि उसकी उत्तेजना एकदम से अपने चरम पर पहुँच गई.
और वो ज़ोर-ज़ोर से मेरे लंड पर आक्रमण करने लगी और उतने ही ज़ोर से राजीव भी उसके शरीर की ऐंठन को पढ़ कर अपनी ऊँगली उसकी गाण्ड में अन्दर-बाहर करने लगा। और हुमैमा की नाक से फूटती साँसों का बेतरतीब क्रम बता रहा था कि वो अपने चरम पर पहुँच चुकी थी और फिर देखते-देखते वह लंड मुँह से निकाल कर एकदम से अकड़ गई और अपना चेहरा बिस्तर की चादर में छुपा लिया।
कुछ पल के लिए हम तीनों ही अलग हो कर हांफते हुए अपने आपको सँभालने लगे। अब मैं हुमैमा के पास ही अधलेटी अवस्था में था और बीच में हुमैमा एकदम औंधी पड़ी थी और उसके चूतड़ों के पास राजीव कुहनी के बल लेता उसकी गाण्ड को निहार रहा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
हुमैमा की चूचियाँ भले अब भी नग्न थी और बिस्तर की चादर से रगड़ खा रही थीं, लेकिन पीठ पर उसकी कुर्ती नीचे सरक कर कमर तक पहुँच गई थी और उसकी सलवार और पैंटी उसके घुटनों पर थी जिससे उसके चूतड़ वैसे ही नग्न और आमंत्रण देते लग रहे थे।
तीन-चार मिनट में ही राजीव ने इस आमंत्रण को स्वीकार कर लिया और उसके चूतड़ों को सहलाने लगा। दो मिनट की राजीव की मालिश के बाद हुमैमा के जिस्म में जैसे जान आई। उसने चेहरा उठा के मुझे देखा और फिर जैसे शरमा कर चेहरा नीचे कर लिया। मैंने उसे बगलों में हाथ देकर उठाया और इस तरह चूमने लगा जैसे इसी ज़रिये से मैं उसका आभार प्रकट कर रहा होऊँ।
कुर्ती सरक कर नीचे जाने को हुई तो मैंने उसे थाम कर ऐसा ऊपर किया कि जिस्म से अलग करके ही छोड़ा। साथ ही उसकी ब्रा को भी उसकी बाहों से निकाल फेंका। मैंने यह पाया कि अब वह अवरोध नहीं उत्पन्न कर रही थी, जिससे पता चलता था कि इस रगड़ा-रगड़ी से वो मानसिक रूप से पूरी तरह डबल डोज़ के लिए तैयार हो चुकी थी।
इस तरह का सहवास हालांकि भारतीय समाज में आम नहीं है और किसी सीधी-सादी घरेलू लड़की या महिला के लिए तो असम्भव हद तक मुश्किल भी लेकिन अगर धीरे-धीरे सब्र और इत्मीनान से कोशिश की जाए, तो किसी ऐसी लड़की को भी मानसिक रूप से तैयार किया जा सकता है।
और हुमैमा के इस समर्पण को देख राजीव ने भी उसकी सलवार पैंटी समेत नीचे की और उसके पंजों से निकाल कर नीचे ही डाल दी। अब हम दो कमीने मर्दों के बीच वो बेचारी एकदम नग्न अवस्था में अधलेटी शर्मा रही थी और उसकी शर्म देख कर मुझे भी ये अन्याय लगा कि हम उसके सामने कपड़ों में रहें।
मैंने राजीव को कपड़े उतारने को बोला और हुमैमा को अलग कर के अपने सारे कपड़े उतार फेंके। अब ठीक था… हम तीनों ही मादरजात नग्न थे और मेरे इशारे पर राजीव भी ऐसा सट गया था कि हम तीनों ही एक-दूसरे से रगड़ रहे थे। राजीव ने उसका चेहरा थाम कर उसे चूमने की कोशिश की.
लेकिन हुमैमा ने शर्म से चेहरा घुमा लिया और वो पीछे से उसकी गर्दन पीठ पर चुम्बन अंकित करने लगा। जबकि मैंने सामने से उसके कान की लौ चुभलाते हुए उसकी ढीली पड़ गई चूचियों को दबाने, सहलाने लगा। ऐसा नहीं था कि राजीव के हाथ खामोश थे… वह भी उसे सहलाए, दबाए और रगड़े जा रहा था।
इस बार उसने इशारा किया जिसे समझ कर मैंने हुमैमा को घुमा कर सीधा किया और इस स्थिति में ले आया कि उसकी पीठ अधलेटी अवस्था में मेरे पेट से सट गई और उसके नितम्ब बेड के किनारे ऐसे पहुँच गए कि जब राजीव बिस्तर से नीचे उतर कर उसकी टांगों के बीच बैठा तो उसका चेहरा हुमैमा की सामने से खुली चूत से बस कुछ सेंटीमीटर के फासले पर था।
उसने दोनों हाथों से हुमैमा का पेट और पेड़ू सहलाते हुए अंगूठे से उसकी क्लियोटोरिस को छुआ व सहलाया और फिर ज़ुबान लगा दी। हुमैमा ‘सिस्कार’ कर कुछ अकड़ सी गई और अपनी मुट्ठी में मेरी जाँघ दबोच ली। अब राजीव ने उसके नितम्बों के नीचे से हाथ डाल कर उसकी जाँघें दबा लीं और अपनी थूथुन हुमैमा की चूत में घुसा कर उसे चाटने और कुरेदने लगा।
बहुत ज्यादा देर नहीं लगी जब हुमैमा का शरीर कामज्वर से भुनने लगा। मैं उसे अपने से सटाये उसके वक्षों को मसल रहा था और उसे बीच-बीच में चूम रहा था, लेकिन उसे अपने लंड को मुँह में नहीं लेने दे रहा था। मैं नहीं चाहता था कि मेरी उत्तेजना अपने समय से पहले चरम पर पहुँच जाए।
जब लगा कि अब वो काफी गर्म हो चुकी है तो मैंने उसे खुद से अलग किया और राजीव को ऊपर जाने को बोला। राजीव उठ कर ऊपर हो गया और मैं नीचे उसकी जगह… मैंने हथेली से हुमैमा की कामरस और राजीव की लार से बुरी तरह गीली हो चुकी बुर को पोंछा और फिर खुद अपनी जीभ वहाँ टिका दी।
साथ ही अपनी बिचल्ली ऊँगली उसके छेद में अन्दर सरका दी। ऊँगली अन्दर जाते ही हुमैमा ऐसा ऐंठी कि उसी पल उसके पास अपना चेहरा ले गए राजीव को थाम लिया और राजीव और हुमैमा ऐसे प्रगाढ़ चुम्बन में लग गए, जैसे अब वह कोई और ही न हो, कोई सगा हो।
मैं अपने काम में लगा था। न सिर्फ जुबां से उसके दाने और क्लियोटोरिस को रगड़ रहा था बल्कि ऊँगली से उसकी बुर भी चोद रहा था और हुमैमा की उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी। हुमैमा को चूसते राजीव की निगाह मुझसे मिली तो मैंने उसे आँखों ही आँखों में लंड चुसाने को कहा.
और उसने अपना चेहरा पीछे कर के खुद घुटनों के बल हो कर अपना लंड हुमैमा के होंठों के एकदम करीब कर दिया। हुमैमा की निगाहें उस हाल में भी मेरी तरफ गईं और मेरे प्रोत्साहित करने पर उसने राजीव के लंड को अपने मुँह में जगह दे दी। राजीव की आँखें आनन्द से बंद हो गईं और उसने हुमैमा का सर थाम लिया।
मैं नीचे हुमैमा की चूत चाटने में और ऊँगली से चोदने में मस्त था और वो लार बहा-बहा कर राजीव का लन्ड चूसने में मस्त थी। पर राजीव के लिए भी यूँ लन्ड चुसाना घातक हो सकता था इसलिए उसने भी स्थिति को समझते हुए अपना लन्ड निकाल लिया और हुमैमा मुँह खोले ही रह गई।
हुमैमा अब पूरी तरह गर्म हो चुकी थी और चुदने के लिए लगातार सिस्कार-सिस्कार कर ऐंठ रही थी। मैं उठ गया और अपने लंड को थोड़ा थूक से गीला कर के उसकी चूत पर रखा और हल्के से अन्दर सरकाया, सुपाड़े के अन्दर जाते ही हुमैमा की ‘आह’ छूटी और तीन बार में अन्दर-बाहर कर के मैंने समूचा लंड अन्दर सरका दिया और उसके घुटने थाम कर धक्के लगाते हुए उसे चोदने लगा।
अब राजीव उसकी पीठ से टिक गया और उसकी हिलती हुई चूचियों को अपने हाथों से सम्भाल कर उन्हें दबाते और सहलाते पीछे से उसके होंठों को चूसने लगा। थोड़ी देर के धक्के के बाद मैंने राजीव को आने को कहा। वो नीचे आ गया और मैंने अलग हट गया। अब हुमैमा बिस्तर पर पीठ के बल लेट गई और राजीव उसकी जाँघों के बीच आ गया।
मेरे लन्ड के अन्दर-बाहर होने से उसका छेद तो अन्दर तक खुल ही चुका था, लेकिन फिर भी राजीव का लंड न सिर्फ मुझसे लम्बा था बल्कि मोटा भी था इसलिए जब उसने आधा लंड पेला, तभी हुमैमा की ज़ोर की ‘कराह’ निकल गई। कुछ सेकेण्ड रुक कर राजीव ने भी अपने लंड के हिसाब से जगह बना ही ली और हचक कर चोदने लगा।
मेरे मुकाबले उसके चोदने में ज्यादा जोश और ज्यादा आक्रामकता थी। उसका कारण भी था कि वो उसके लिए एकदम नया और फ्रेश माल थी, जबकि मैं तो दो महीने से उसे चोद रहा था और इस नए-पन का मज़ा हुमैमा को भी भरपूर आ रहा था।
उसका चेहरा उत्तेजना से सुर्ख हो रहा था, साँसें मादक सीत्कारों में बदल गई थी, आँखें जैसे चुदाई के नशे में खुल ही नहीं पा रही थीं और अपनी उत्तेजना को वो बिस्तर की चादर अपनी मुट्ठियों में दबोच कर उसमें जज़्ब कर देने कि कोशिश कर रही थी।
थोड़ी देर की चुदाई के बाद राजीव हटा तो मैं उसकी चूत पर चढ़ गया। हालांकि राजीव के लंड ने जो जगह बनाईं वो उसके लंड निकालते ही एकदम से कम न हो पाई और मेरे लंड डालने पर ऐसा लगा जैसे कोई कसाव ही न रहा हो और उसकी चूत बिलकुल बच्चा पैदा कर चुकी औरत जैसी हो गई हो।
शायद हुमैमा के आनन्द में भी विघ्न आई, लेकिन बहरहाल, मैं चोदने से पीछे न हटा और हुमैमा की सिसकारियाँ कम तो हुईं लेकिन ख़त्म न हुईं। मेरे बाद जब राजीव ने फिर अपना लौड़ा घुसाया तो उसकी सिसकारियाँ फिर उसी अनुपात में बढ़ गईं।
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फिर राजीव ने ही लण्ड निकाल कर उसे उठाया और उल्टा कर के ऐसा दबाया कि हुमैमा का बायां गाल बिस्तर से सट गया और कंधे, पीठ नीचे हो गई, ऊपर सिर्फ उसके चौपायों की तरह मुड़े घुटनों के ऊपर रखी गाण्ड ही रह गई। उसके आगे-पीछे के दोनों छेद अब हवा में बिलकुल सामने थे।
कहने की ज़रुरत नहीं कि उसके दोनों छेद एकदम मस्त कर देने वाले थे, लेकिन जहाँ गाण्ड का छेद अभी सिमटा हुआ अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था वहीं बुर का छेद इतनी चुदाई के बाद बिल्कुल खुल चुका था और उसने राजीव के लन्ड को निगलने में ज़रा भी अवरोध न दिखाया।
जब राजीव उसके दोनों चूतड़ों को उँगलियों से दबोचे गचा-गच अपना लंड उसकी चूत में पेल रहा था, तब मैं हुमैमा की पीठ सहला रहा था। फिर जब राजीव हटा तो मैं उसकी गाण्ड के स्पर्श के साथ चूत चोदने पर उतर आया। हालांकि राजीव के मोटे लण्ड से चुदने के बाद मुझे वो मज़ा नहीं आ पा रहा था, लेकिन अब छोड़ भी तो नहीं सकता था।
बहरहाल कुछ देर की चुदाई के बाद राजीव ने तो झड़ने के टाइम उसे ऐसे दबोचा के हुमैमा उसके लन्ड से निकल ही ना पाई और पूरी बुर राजीव के वीर्य से भर गई। झड़ने और लण्ड बाहर निकलने के बाद वह तो हुमैमा के बगल में ही गिर कर हांफने लगा। लेकिन उसने मेरा रास्ता दुश्वार कर दिया। पूरी बुर उसके वीर्य से भरी हुई थी।
तो मैंने एक बार लण्ड अन्दर कर के राजीव के वीर्य से अपने लण्ड को सराबोर किया और हुमैमा की गाण्ड के छेद में उतार दिया और गाण्ड के कसाव और गर्माहट ने कुछ ही धक्कों में मेरा पानी भी निकाल दिया और मैंने उसकी गाण्ड अपने सफ़ेद पानी से भर दी।
फिर मैं भी बिस्तर पर पसर गया और वह भी हम दोनों के बीच में ही फैल कर हांफने लगी। आँखें उसकी अभी भी बंद थी लेकिन चेहरे पर परम संतुष्टि के भाव थे। हम करीब आधे घंटे तक ऐसे ही बेसुध पड़े रहे। इसके बाद मैं ही पहले उठा और हुमैमा को सहारा देकर उठाया और उसे उसी नंगी हालत में चलाते हुए बाथरूम ले आया। पीछे से राजीव भी आ गया।
अब कपड़े तो वैसे भी तन पर नहीं थे। मेरे कहने पर हुमैमा ने हमारे सामने ही पेशाब किया और हमने भी साथ ही उसकी धार से धार मिलाई। तत्पश्चात, मैंने ही शावर चालू कर दिया और हम नहाने लगे। हुमैमा ने तो हमें नहीं नहलाया, लेकिन हम दोनों ने मिल कर उसे बड़ी इत्मीनान से ऐसे नहलाया जैसे बच्चे को नहलाते हैं।
उसके दोनों छेदों में ऊँगली डाल-डाल के सारी ‘मणि’ बाहर निकाली और साबुन से दोनों छेद अच्छी तरह धोए और उसके साथ चिपट और रगड़ कर खुद भी नहाते रहे। इस अति-उत्तेजक स्नान में सिर्फ हुमैमा ही नहीं बल्कि हम दोनों भी गरम हो गए और उसे गोद में उठा कर वापस बिस्तर पर ले आए।
अब जब राजीव उसके चूचों पर लदा, उसके होंठ चूस रहा था तो मैंने वह मलाई निकाल ली जो मैं अपने साथ ही लाया था। पहले मैंने अपने लंड पर मलाई थोपी। फिर मेरा अनुसरण करते हुए राजीव ने और हम दोनों घुटनों के बल बैठे हुमैमा के चेहरे के इतने पास आ गए कि दोनों के लण्ड उसके गालों को छूने लगे और उसे मलाई चाटने को कहा।
शरमाई तो वह अब भी… लेकिन पहले की तरह आँखें बंद नहीं की, बल्कि चुपचाप पहले मेरा और बाद में राजीव का लण्ड मुँह में लेकर चूसने लगी। भले हम स्नान से उत्तेजित हो गए हों लेकिन अभी हमारे लण्ड पूर्ण उत्तेजित नहीं थे और हमने इस बहाने उसे ढेर से मलाई खिलाई। तब कहीं जाकर हमारे लौड़े पूर्ण रूप से तन पाए कि उसकी गाण्ड का मज़ा ले सकें।
इसके बाद थोड़ी मलाई छोड़ कर बाकी जो भी थी हमने उसके पेट, कंधे, गर्दन और खास कर चूचियों और जाँघों पर मल दीं और दोनों ऊपर-नीचे हो कर कुत्तों की तरह उसे चाटने में जुट गए। अब आनन्द के अतिरेक से हुमैमा की आँखें मुंद गईं और वह हौले-हौले सिसकारने लगी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
जब सारे शरीर से मलाई साफ़ हो गई तो बची मलाई मैंने आधी तो उसकी चूत में मली और भर दी और बाकी आधी उसकी गाण्ड के छेद के अन्दर और बाहर मल दी। अब मैंने राजीव को सीधा लेटने को कहा और उसके ऊपर हुमैमा को कुतिया की तरह ऐसे व्यवस्थित किया कि उसकी चूत बिलकुल राजीव के मुँह पर आ गई और राजीव का लण्ड हुमैमा के मुँह में।
राजीव अब उसकी चूत के अन्दर बाहर भरी मलाई चाटने लगा जो कि पक्का उसके रस से मिल कर कुछ ज्यादा ही स्वादिष्ट हो गई होगी और मैंने उसके चूतड़ थाम कर उसकी गाण्ड का छेद चाटने लगा। साथ ही जीभ नुकीली करके छेद के अन्दर भी उतार देता था। उत्तेजना में हुमैमा राजीव के लण्ड को मुँह में लिए पागलों की तरह चूसने लगी।
लेकिन चूँकि अभी हम दोनों ही एक बार झड़ चुके थे तो जल्दी झड़ने का सवाल ही नहीं था इसलिए राजीव को भी उसकी लंड चुसाई से कोई फर्क नहीं पड़ना था। लेकिन इस चाटम-चाट में मेरे और राजीव के चेहरे इतने पास थे कि हम एक-दूसरे की साँसें महसूस कर सकते थे।
कुछ देर बाद हुमैमा अपना एक हाथ उठा कर अपने चूतड़ सहलाने लगी जो कि मेरे लिए इशारा था कि वह अब बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। मैंने सीधे होकर अपना लण्ड थूक से गीला करके उसके गुलाबी दुपदुपाते हुए छेद पर रखा और थोड़ा ज़ोर लगा कर अन्दर उतार दिया।
कुछ देर बाद हुमैमा अपना एक हाथ उठा कर अपने चूतड़ सहलाने लगी जो कि मेरे लिए इशारा था कि वह अब बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। मैंने सीधे होकर अपना लण्ड थूक से गीला करके उसके गुलाबी दुपदुपाते हुए छेद पर रखा और थोड़ा ज़ोर लगा कर अन्दर उतार दिया।
हुमैमा की एक गहरी सांस छूट गई और उसने राजीव का लंड बाहर निकाल कर अपनी आँखें बंद की और अपने शरीर के निचले हिस्से में लण्ड और जुबान से पैदा आनन्द की लहरों को एकाग्र होकर अनुभव करने लगी। लेकिन इस तरह की गाण्ड मराई में मेरी गोलियाँ राजीव की नाक से टकरा रही थीं लेकिन उसने भी आज किसी ऐतराज़ अवरोध को खातिर में नहीं लाना था।
वह अपना काम करता रहा और मैं हुमैमा की गाण्ड मारता रहा। कुछ देर की चुदाई के बाद हुमैमा ने आँखें खोल कर मुझे देखा। वह कुछ बोली नहीं लेकिन मैं उसकी आँखों की भाषा समझ सकता था और मैं हट गया और राजीव को ऊपर आने को बोला।
खुद नीचे होकर हुमैमा के नीचे राजीव की जगह पहुँच गया और राजीव बाहर निकल कर मेरी जगह। मैंने उसकी बहती हुई बुर को हाथ से ही साफ़ किया और फिर खुद जुबान लगा दी। मेरे चेहरे के बिल्कुल पास हुमैमा की गाण्ड का खुला हुआ छेद था, बल्कि राजीव का केले जैसा लन्ड भी जो वो नोक से हुमैमा को घुसा रहा था।
अब ज़ाहिर है कि मेरी बनाई जगह उसके लिए अपर्याप्त थी, तो वह ऐसे लग रहा था जैसे फंस गया हो। हुमैमा को भी पता था कि राजीव के लण्ड से उसकी गाण्ड का हाल बुरा होने वाला था और उसे दर्द सहना पड़ेगा, लेकिन अब जब मिला ही था तो वह इस लण्ड को हर तरह से ग्रहण कर लेने में पीछे नहीं रहना चाहती थी।
मैंने राजीव को थोड़ा पीछे सरका कर अपना ढेर सा गाढ़ा थूक हुमैमा के पानी सहित हुमैमा के छेद पर उगल दिया, जिससे छेद एकदम से चिकना होकर चमक उठा और अब जब राजीव ने टोपी सटा कर ज़रा सा ज़ोर लगाया तो हुमैमा का छल्ला खुद को फैलने से न बचा पाया और राजीव की टोपी एकदम से अन्दर हो गई।
दर्द से हुमैमा ज़ोर से कराही और स्वाभाविक रूप से आगे सरकी ताकि राजीव के लण्ड को निकाल फेंके। लेकिन उसी पल में मैंने और राजीव ने उसे रोक लिया और उसने भी अपनी बर्दाश्त की क्षमता को उपयोग करते हुए खुद को ढीला छोड़ दिया। राजीव ने कुछ देर लण्ड अन्दर रख कर जो बाहर निकाला तो मेरे एकदम समीप ‘पक्क’ की आवाज़ हुई.
और राजीव का सुपाड़ा बाहर आते ही हुमैमा का छेद एकदम इस हद तक खुला रह गया कि उसकी चूत में जुबान घुसाते हुए मुझे छेद के अन्दर के गुलाबी भाग तक के दर्शन हो गए। पऱ अगले पल में राजीव ने फिर अपना लण्ड छेद से सटा कर दबाया तो फिर हुमैमा कराही और लण्ड का अगला भाग अन्दर हो गया।
इस बार राजीव ने दो इंच और अन्दर सरकाया, कुछ पल रोक कर छेद को एडजस्ट होने का मौका दिया और फिर बाहर निकाल लिया, छेद फिर उसी तरह खुला और मैंने एक बार और अपना गाढ़ा थूक उसमें उगल दिया। तीसरी बार राजीव ने जब हुमैमा की गाण्ड में अपना लण्ड घुसाया तो अपेक्षाकृत आसानी से घुस गया.
और इस बार राजीव ने लण्ड बाहर न निकाल कर धीरे-धीरे ऐसा अन्दर सरकाया कि उसकी गोलियाँ मेरी नाक के पास आ गईं और उसका समूचा लन्ड हुमैमा की गाण्ड में अन्दर तक धंस गया। बर्दाश्त करने में हुमैमा का पसीना छूट गया और वह हांफने लगी।
यह तो मैं लगातार उसकी चूत में घुसा, उसे गर्म कर रहा था जिससे वह इस दर्द से लड़ पा रही थी वरना उसे पक्का आफत आ जाती। मेरी चटाई उसे उस दर्द के एहसास से बाहर ले आई और फिर राजीव ने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए। अजीब नज़ारा था। मेरी आँखों से सिर्फ डेढ़ इंच दूर एक मोटा लम्बा लंड एक कसे हुए छेद में अन्दर-बाहर हो रहा था।
उसकी गोलियाँ हिलती हुई मेरे चेहरे से दूर होती और फिर पास आ जाती। धीरे-धीरे हुमैमा उस दर्द से उबर गई और चूतड़ खुद ही आगे-पीछे करने लगी, तो मुझे अब उसकी चूत की चटाई की आवश्यकता न लगी और मैं उसके नीचे से निकल आया और राजीव को हटा कर खुद लन्ड घुसा दिया।
मुझे छेद बुर की तरह ही एकदम ढीला और फैला हुआ लगा जो मेरे लण्ड को मज़ा न दे पाया, साथ ही मैंने हुमैमा के शरीर में भी मायूसी सी महसूस की जैसे राजीव के लण्ड को लेने के बाद मेरे लन्ड से मज़ा न आ रहा हो। लेकिन बहरहाल हिस्सेदारी ज़रूरी थी और इसी वजह से मैंने अपने धक्कों में कोताही न की, राजीव पास ही बैठ कर हाथ से उसकी चूत सहलाने लगा।
फिर कुछ देर में मैं हटा तो राजीव ने हुमैमा की गाण्ड की पेलाई चालू कर दी। अब हुमैमा को भी भरपूर मज़ा आने लगा था। उसने एक बार फिर मेरी तरफ निगाहें घुमा कर इशारा किया। जिसे राजीव तो न समझा लेकिन मैं बखूबी समझा और मैंने राजीव को सीधा लेट जाने को कहा।
मेरे आदेश के मुताबिक राजीव बिस्तर पर पीठ के बल लेट गया और मेरे सहारे से हुमैमा सीधी हो गई। फिर मेरे हाथों की हरकत के हिसाब से संचालित हो कर वो राजीव के लण्ड पर ऐसे बैठी कि राजीव का खड़ा लण्ड उसकी चूत में जगह बनाते हुए अन्दर उतर गया।
पूरा लण्ड अन्दर लेने के बाद हुमैमा राजीव के ऊपर ऐसे झुकी कि उसके होंठ राजीव के होंठों से टकराने लगे और राजीव भी उन्हें चूसने से कहाँ बाज़ आने वाला था। पर इस पोज़ीशन में उसके दोनों छेद मेरे ठीक सामने हो गए। बुर में राजीव का लण्ड ठुँसा हुआ था और गाण्ड मुझे बुला रही थी।
मैंने छेद में अपना लण्ड उतार दिया। हुमैमा के अगले छेद में राजीव का मोटा और भारी लण्ड होने के कारण उसके पिछले छेद में जगह कम बची थी जिससे मेरे लण्ड पर भी वैसे ही कसाव महसूस हो रहा था जैसे पहले होता था। और यूँ दो लंडों को एकसाथ अपने दोनों छेदों में लेकर हुमैमा को तो जैसे जन्नत नसीब हो गई।
उसने राजीव के चेहरे से अपना चेहरा हटा लिया और आँखें बंद करके इस आनन्द को पूरी तरह महसूस करके सिसकारने लगी और इसी स्थिति में हम दोनों धक्के लगाने लगे। राजीव इस तरह नीचे होने के कारण ठीक से धक्के नहीं लगा पा रहा था तो हुमैमा ने ही खुद को ऐसे आगे-पीछे करना शुरू किया कि हम दोनों के लंडों को धक्के मिलने लगे और इस तरह वह बेचारी घोर चुदक्कड़ कन्या तब अपने दोनों छेदो को चुदाती रही जब तक कि थक न गई।
थोड़ी देर के बाद हमने जगह बदली। मुझे राजीव के लण्ड से खाली हुई हुमैमा की बुर फिर एकदम ढीली और फैली लगी लेकिन जैसे ही उसने हुमैमा की गाण्ड में अपना लण्ड पेला, एकदम से कसाव महसूस हुआ। अब थकी हुमैमा तो धक्के न लगा पाई, राजीव ही आगे-पीछे हो कर ऐसे तूफानी धक्के लगाने लगा कि मेरे लन्ड को अपने आप धक्के मिलने लगे।
हुमैमा ने अपनी आँखें फिर भींच ली थी, पर उसके चेहरे पर छाए बेपनाह आनन्द के भाव मुझसे छिपे नहीं थे। जब राजीव भी कुछ थक गया तो हम दोनों ही अलग हो गए। अब मैं बेड के किनारे बैठा और अपने ऊपर हुमैमा को ऐसे बिठाया कि उसकी गाण्ड मेरे लण्ड पर फिट हो गई.
और मैंने उसके घुटनों के नीचे से हाथ निकाल कर उसकी टाँगें ऐसे फैलाईं कि उसकी चूत राजीव के सामने आ गई और उसने भी अपना लन्ड पेलने में ज़रा भी देर नहीं की और यूँ हम दोनों ही आगे-पीछे से धक्के लगाते हुमैमा को बुरी तरह पेलते रहे।
उसकी इस घड़ी बेसहारा हो गई चूचियां बुरी तरह हिलती उछलती रहीं। जब इस तरह राजीव थक गया तो वो मेरी जगह बैठ गया और मैं उसकी जगह खड़े हो क़र हुमैमा को चोदने लगा। इस बीच शायद हुमैमा का पानी तीन बार छूट चुका था और अब भी वो वैसे ही मज़ा ले रही थी।
इसी तरह जब पोजीशन बदल-बदल कर उसे चोदते हम तीनों ही थक गए, तो तीनों ही बिस्तर पर ऐसे लेट गए कि उसके दोनों तरफ लन्ड घुसाए मैं और राजीव चिपके थे और बीच में हुमैमा सैंडविच बनी हुई थी। हुमैमा का मुँह राजीव की तरफ था और वो उसके होंठ चूसने में लगा था और मैं हुमैमा की गाण्ड मारते पीठ से चिपका उसकी चूचियों को मसल रहा था।
इसी तरह जब हुमैमा के शरीर में चरम आनन्द की लहरें महसूस हुईं तो हम भी उसी पल में चरमोत्कर्ष पर पहुँच गए और तीनों ही एक साथ आवाज़ें निकालते ऐसे झड़े कि हम दोनों के बीच भींचने से हुमैमा की हड्डियां तक चरमरा गईं और उसकी बुर और गाण्ड एक साथ ढेर सारे माल से भर गई।
जब हम दोनों के लन्ड एकदम वीर्य से खाली होकर ‘ठुनकने’ लगे तो दोनों ने ही लण्ड बाहर निकाल लिए और चित लेट कर बुरी तरह हांफने लगे। इस ताबड़तोड़ चुदाई ने हम तीनों को ही इस बुरी तरह थका डाला था कि जब निपट कर हम बिस्तर पर फैले तो दिमाग पर नशा सा सवार था और हमें पता भी न चला कि कब हम नींद के आगोश में चले गए।
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मुझे नहीं पता कि कितनी देर बाद मेरी नींद टूटी लेकिन जब उठा तो आवाज़ें कानों में पड़ रही थीं और सामने नज़ारा यह था कि हुमैमा डॉगी स्टाइल में झुकी हुई थी, उसका चेहरा मेरे सामने था और आनन्द के कारण अजीब सा हो रहा था और वह मुझे देख रही थी। जबकि राजीव पलंग के नीचे खड़ा उसकी चूत में अपना लण्ड पेले उसके चूतड़ों को थामे आंधी तूफ़ान की तरह उसे चोद रहा था. और उसकी जाँघों से हुमैमा की गाण्ड के टकराने से ‘थप.. थप..’ की पैदा होती आवाज़ कमरे में गूँज रही थी। इसी आवाज़ ने मुझे जगाया था।
मैं तो हुमैमा को चोदते ही रहता था लेकिन राजीव के लिए हुमैमा नया माल थी और हुमैमा के लिए भी राजीव एक नया और अलग ज़ायका था इसलिए ज़ाहिर था कि वह नहीं बाज़ आने वाले थे। अच्छा है कि राजीव जी भर के उसे चोद ले… उसकी भी ख्वाहिश पूरी हो जाए। मेरे होंठों पर मुस्कराहट आ गई और मुझे मुस्कराते देख हुमैमा भी मुस्कराने लगी और मैं अधलेटा हो कर उसे राजीव के हाथों चुदते देखने लगा। कमरे में हुमैमा की चूत पर चलते राजीव के लन्ड की ‘पक.. पक..’ और दोनों की जाँघें और चूतड़ टकराने से पैदा होती ‘थप.. थप..’ वैसे ही गूंजती रही।