Hidden Bathroom Sex
सभी पाठकों को आदाब ! आपकी सेवा में मैं अपनी एक दोस्त की कहानी लेकर हाज़िर हूँ, जो उसने मुझे बताई मैं उनकी कहानी उन्हीं के शब्दों में लिख रहा हूँ, कहानी कैसी लगी, ज़रूर बताएँ। दोस्तों मेरा नाम शहनाज़ हैं। मेरी उम्र 25 साल है, 5.3 लम्बाई, रंग साफ़, फिगर 34 का सीना 28 की कमर और 36 के कुल्हे और कबूल सूरत हूँ। Hidden Bathroom Sex
शादी हुए तीन साल हो गए, डेढ़ साल की बेटी है। पति सरकारी नौकरी में हैं, अच्छे हैं, सीधे-सादे, वैसे तो मैं बुलंदशहर की रहने वाली हूँ और पति मुरादाबाद के, पर नौकरी के चलते इधर-इधर होते रहते हैं और अब फ़िलहाल हम दिल्ली ओखला में हैं। यह तो हुआ मेरा परिचय और अब आते हैं असली कहानी पर।
मुरादाबाद मुझे तो कोई खास नहीं लगा, मगर मेरे पति को पसन्द है, वो यहीं रहना चाहते हैं तो खुद का मकान भी खरीद लिया था और उन दिनों उस नए घर में पहले की वायरिंग हटा कर नई अन्डरग्राउंड वायरिंग करा रहे थे मनोज नाम के एक मिस्त्री से। इन्हीं दिनों में मेरे जीवन में किसी गेर मर्द की परछाई पड़ी.
वरना मेरी बाईस की उम्र में शादी होने तक किसी ने मेरी जवानी की झलक भी नहीं पाई थी और सील भी पति ने ही तोड़ी थी जो मुझसे उम्र में तेरह साल बड़े हैं। हालांकि वो बहुत कम सेक्स कर पाते हैं और जल्दी ही ठनडे पड़ जाते हैं मगर चूंकि मैंने कभी किसी और के साथ शरीर का सुख नहीं भोगा था इसलिए न जानने की वजह से शिकायत भी कभी नहीं हुई।
बहरहाल, मनोज तीस के आस-पास का साधारण शरीर और ठीकठाक सूरत वाला युवक था, पति सुबह चले जाते और वो दिन भर छेनी-हथौड़ी से दीवार तोड़ता रहता। मैं घर के कामों में मसरूफ़ रहती या बेटी के साथ मस्त रहती। वैसे तो मुझे वो नज़रें झुकाए रहने वाला, सीधा सादा शरीफ इन्सान लगा, पर एक दिन दोपहर को नहाते वक़्त मैंने महसूस किया क़ि मुझे वो चाबी के छेद से देख रहा है।
मैंने तौलिया लपेटा और दरवाज़े तक आई। मुझे ऐसा लगा जैसे वो दरवाज़े के पास से हटा हो। मैंने दरवाज़ा खोल कर बाहर झाँका तो वो सामने की दीवार पर कुछ करता दिखा। मेरी नज़र उसकी पैंट पर गई तो वहाँ उभरी हुई नोक साफ़ नज़र आई। गुस्से से मेरे तन बदन में आग लग गई, दिल तो किया के अभी तबियत से झाड़ दूँ, पर जैसे-तैसे सब्र करके वापस दरवाज़ा बंद किया और स्नान पूरा किया।
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उस दिन वो मुझसे नजरें ही चुराता रहा और मुझे रह-रह कर गुस्सा आता रहा। अगले दिन भी उसने वही हरकत की जब मैं अपने बेडरूम में कपड़े बदल रही थी। मैंने महसूस किया मेरे अंदर दो तरह की कशमकश चल रही थी, एक तरफ तो मुझे गुस्सा आ रहा था और दूसरी तरफ मन में यह अहंकार भी पैदा हो रहा था कि मैं हूँ देखने लायक… वह मुझे देखे और ऐसे ही जले। इससे ज्यादा क्या कर लेगा मेरा।
ज़िन्दगी में पहली बार किसी गेर मर्द के द्वारा खुद को नंगी देखे जाने का एहसास भी अजीब था। शादी से पहले ऐसा होता तो शायद एहसास और कुछ होता पर अब तो मैं कुँवारी नहीं थी। मुझे अपनी सोच पर शर्म और हंसी दोनों आई। खैर उस दिन भी मैंने कुछ नहीं कहा और तीसरे दिन नहाते वक़्त मैं मानसिक रूप से पहले से ही देखे जाने के लिए तैयार थी।
मैं खास उसे दिखाने के लिए नहाई मल-मल कर, अपने उरूजों को उभार कर, मसल कर, चूत के बालों को भी दरवाज़े की ओर रुख करके ही साफ़ किया ताकि वो ठीक से देख सके। मैं ये सोच-सोच कर मन ही मन मुस्कराती रही कि पता नहीं बेचारे का क्या हाल हो रहा होगा।
उस दिन उसने नज़रें नहीं चुराईं, बल्कि मुझे देख कर खा जाने वाले अंदाज़ में मुस्कराया, पर मैंने तब कोई तवज्जो नहीं दी। उसी दिन चार बजे के करीब मैं बेटी के साथ लेटी टीवी देख रही थी, तब बाहर उसका शोर बंद हुआ तो मुझे कुछ शक सा हुआ, मैंने बाहर झांक कर देखा तो वो नहीं था, बाथरूम का दरवाज़ा बंद दिखा, शायद वो उसमें था।
मैंने चाबी वाले छेद से वैसे ही देखने की कोशिश की जैसे वह मुझे देखता होगा। वह कमोड के सामने अपना लंड थामे खड़ा उसे सहला रहा था, पता नहीं पेशाब कर चुका था या करना था अभी, पर उसका लंड खड़ा होने की हालत में था और उसके लंड का आकार देख कर मेरी सिसकारी छूट गई।
मेरे पति का लंड करीब चार साढ़े चार इंच लम्बा और डेढ़ इंच मोटा था और बेटी के जन्म से पहले वो भी बहुत लगता था। उससे बड़े तो सिर्फ पति की दिखाई ब्लू फिल्मों में ही देखे थे जो किसी और दुनिया के लगते थे। बेटी के जन्म के बाद से चूत इतनी ढीली हो गई थी कि चुदाई के वक़्त पानी से गीली हो जाने पर कई बार तो घर्षण करते वक़्त कुछ पता ही नहीं चलता था।
अब इस वक़्त जो लंड मेरे सामने था वो ब्लू फिल्मों जैसा ही कल्पना की चीज़ था। अर्ध-उत्तेजित हालत में भी दो इंच से ज्यादा मोटा और आठ इंच तक लम्बा, पूरा खड़ा होने पर और भी बड़ा होता होगा। मेरे पूरे बदन में सिहरन दौड़ गई और ऐसा लगा जैसे एकदम से किसी किस्म का नशा सा चढ़ गया हो। जिस्म पर पसीना आ गया।
चूत में भी अजीब सी कसक का एहसास हुआ और मैं वहाँ से हट आई। अपने कमरे में पहुँच कर बिस्तर पर लेट कर हांफने लगी। तब से लेकर पूरी रात और अगली सुबह तक उसका विकराल लंड मेरे दिमाग में घूमता रहा और अगले दिन जब वह काम पर आया तो मेरी नज़र किसी न किसी बहाने से उसकी पैंट पर ही चली जाती, उसने भी येह महसूस कर लिया था।
अगले दिन मैंने पति के जाने के बाद उससे पूछा- तुम्हारा काम कब तक का है? उसने बताया कि अभी तीन दिन और लगेंगे। फिर उसने पूछा मैडम आपका नाम किया है मैं कियो वो एसे ही मैडम बताओ तो। मैने बताया मेरा नाम शहनाज़ है वो बोला मस्त नाम है मैने उसकी तरफ मुंह बनाया और कामों में लग गई।
मतलब अभी तीन दिन उसे और झेलना पड़ेगा, मेरी अब तक की ज़िंदगी एक पतिव्रता स्त्री की तरह ही गुजरी थी, मगर अब वो मेरे दिमाग में खलल पैदा कर रहा था। जैसे-तैसे करके दोपहर हुई, मैं बार-बार ध्यान हटाती, मगर रह-रह कर उसका मोटा सा लंड मेरी आँखों के आगे आ जाता। दोपहर में मैं नहाने के लिए बाथरूम में घुसी तो दिमाग में कई चीज़ें चल रही थीं।
दिमाग इतना उलझा हुआ था कि दरवाजे की कुण्डी लगाना तक याद न रहा। फिर नहाने के वक़्त भी दिमाग अपनी जगह नहीं था, झटका तब लगा जब किसी के दरवाज़े पर जोर देने से वो खुल गया। मैंने पीछे घूम कर देखा तो सामने ही मनोज खड़ा फटी-फटी आँखों से मुझे घूर रहा था। “क्या है? तुम अन्दर कैसे आये?”
मुझे एकदम से तो गुस्सा आया पर साथ ही मन में एक डर भी समा गया। “कुछ नहीं मैडम, बस आपको नहाते हुए सामने से देखना चाहता था।” “दिमाग ख़राब हो गया है क्या? बाहर जाओ फ़ौरन…जाओ।” मैं एकदम से ऐसे घबरा सी गई थी कि खुद को समेटने के लिए घुटनों के बल बैठ गई थी, अपना सीना हाथों से छुपाये थी और टांगें चिपका ली थीं कि चूत न दिखे।
“कोई बात नहीं मैडम, मैं किसी को बताऊँगा थोड़े ही, आप नहाओ न।” वो मेरे पास आ कर बैठ गया और मेरे कंधे पकड़ लिए। “मैं साहब को बता दूँगी, जाओ यहाँ से।” बेबसी से मेरी आँखों में आँसू आ गए। पर वह नहीं गया और मेरे अपने वक्षों को ढके हाथ हटाने के लिए जोर लगाने लगा।
मैंने उसे हाथ खोल कर उसे दूर धकेलने की कोशिश की, मगर वो मुझसे ज्यादा ताक़तवर था, नहीं हटा बल्कि फिर मेरी कलाइयाँ पकड़ कर ऐसा जोर लगाया कि मैं बाथरूम के गीले फर्श पर फैल गई। मेरी समझ में नहीं आ रह था कि मैं कैसे खुद को बचाऊँ। “मुझे छोड़ दो…प्लीज़ !” “हाँ मैडम, छोड़ दूँगा, आप डरो नहीं, कुछ नहीं होगा… मैं अभी चला जाऊँगा।”
वह मुझ पर छाता चला गया। उसने मेरे ऊपर लदते हुए मेरे हाथ ऊपर करते हुए, एक हाथ से उन्हें जकड़ लिया और दूसरे हाथ से मेरे स्तन मसलने लगा और मेरे होंठ चूसने की कोशिश करने लगा। मैंने चेहरा इधर-उधर करके अपने होंठों को बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन बचा न सकी और उसके होंठों ने मेरे होंठ पा ही लिए।
मुझे सिगरेट की गंध आई, पर अब बचना मुश्किल था। अपने तन पर एक अजनबी के बदन के एहसास के साथ यह एहसास भी था कि जो हो रहा था, वह अनचाहे मैंने ही होने का मौका दिया था। बदन में अजीब सी सनसनाहट भर रही थी। मेरा तनाव ढीला पड़ते देख उसने दोनों हाथों से मेरे वक्षों को आटे की तरह गूंथना शुरू कर दिया।
मैंने फिर एक कमज़ोर से विरोध के साथ उसे अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी न मिली। उसने मेरी बाँहों को अपनी पकड़ में लेकर अपने होंठों से मेरे होंठ आज़ाद किये और मेरी ठोढ़ी और गर्दन से होते मेरे भरे-भरे वक्ष तक पहुँच गया और निप्पलों को एक-एक कर चूसने लगा। अब मेरे जिस्म में भी चिंगारियाँ उठने लगीं।
मगर अब भी मेरे शरीर में विरोध रूपी ऐंठन बाकी थी, जिसे वह भी महसूस कर रहा था इसलिए उसने अपनी पकड़ ढीली न होने दी और मेरे वक्षों से अपना मुँह हटाया तो उन्हें दोनों हाथों से थाम कर खुद एकदम से नीचे चला गया और जब मेरी नाभि के नीचे तक पहुँच गया, तो हाथ सीने से हटा कर मेरी जाँघों में ऐसे फँसा लिए कि मैं पैर न चला सकूँ।
फिर वो होंठों से चूमने लगा और मैंने अगले कुछ पलों में उसकी खुरदरी जीभ का अनुभव अपनी चूत के ऊपरी हिस्से पर किया। एकदम से मेरी सिसकारी छूट गई। कुछ देर की चटाई में ही मैं ढीली पड़ गई और मेरा विरोध कमज़ोर पड़ते देख उसने भी अपनी पकड़ ढीली कर दी और अब एक हाथ तो ऊपर ले आया, जिससे मेरे उरूजों को सहला सके और दूसरे हाथ की बीच वाली उंगली मेरी चूत के गर्म छेद में उतार दी।
मुझे ऐसा लगा जैसे चिंगारियाँ सी उड़ने लगी हों। थोड़ी देर में ही मैं आग का गोला हो गई, जायज़ नाजायज़, सही गलत, अपना गुस्सा, नफरत सब कुछ भूल गई और रह गया तो दिमाग में बस यही कि वो ब्लू फिल्मों जैसा विकराल लंड अब मेरे पास है। जब उसने यह महसूस कर लिया कि मैं अच्छी तरह गर्म हो गई हूँ, तब उसने मुझे छोड़ा।
बाथरूम के गीले फर्श के कारण उसके कपड़े भी जहाँ-तहाँ गीले हो गए थे, मैं देखती रही और उसने मुझे अपनी बांहों में उठा लिया और बाथरूम से बाहर निकाल लाया। मैंने अब कोई ऐतराज़ करने वाली हरकत नहीं की। वह मुझे बेडरूम में ले आया और बिस्तर पर डाल दिया। बेटी अपने पालने में सो रही थी। फिर उसने अपने कपड़े उतारे।
मेरे दिमाग पर एक अजीब सा नशा हावी हो रहा था और बदन में एक आनन्दभरी सनसनाहट भर रही थी। मेरी नज़र उसके जिस्म के उसी हिस्से पर थी जहाँ मेरे मतलब की चीज़ थी। फिर वो मुझे दिखी, अब इस वक़्त पूरी उत्तेजित हालत में उसकी लम्बाई उतनी ही विशाल थी, जितनी मैंने अपनी कल्पना में कई बार देख डाली थी।
मेरी नज़रों ने उसे बता दिया कि मुझे वह चीज़ बहुत पसन्द आई थी, तो मनोज ने मुझे उठा कर बैड पर बिठा दिया और मेरे सर के पास आकर खड़ा हो गया और अपना मोटा सा लंड मेरे चेहरे पर रगड़ने की कोशिश करने लगा। मैं समझ रही थी कि वह क्या चाहता था, मगर मैं अपना चहरा इधर उधर करने लगी।
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उसने मेरे पीछे से बाल पकड़ कर मेरा चेहरा एक जगह रोक कर उसे मेरे होंठों पर रगड़ने लगा तो मैने अपने होंठ बन्द कर लिये मगर जैसे ही उसने ज़ोर लगया तो मेरे होंट खुद-ब-खुद खुल गए और उसके लंड का टोपा सरकता हुआ मेरी ज़ुबान पर जा लगा।
तो मुझे उबकाई सी होने को हुई तो मैने मुंह से लंड को निकाल दिया पर मनोज ने फिर मेरे मुंह मे घुसा दिया तो मैने उस गैर मर्द के लंड को अपने मुँह में कबूल कर लिया। फिर मुझे खुद ही यह एहसास न रहा कि कब मैं उस पूरे लंड को मज़े ले-ले कर पूरी दिलचस्पी से लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी… मनोज एक हाथ से मेरा सर संभाले था, तो दूसरे हाथ से मेरी चूत को सहला रहा था, मेरी चूत के दाने को रगड़ रहा था।
कुछ देर बाद अचानक एक ‘पक’ की आवाज़ के साथ मनोज ने अपना लंड बाहर खींच लिया और मेरी टांगों के बीच पहुँच गया। मैं थोड़ी घबराहट के साथ इस हमले के लिए तैयार हो गई। “कुछ चिकनाहट के लिए लगा लूँ क्या मैडम जी, आप को दर्द न हो !” उसने बड़े प्यार से कहा। “नहीं, ज़रूरत नहीं, मैं एक बच्चा पैदा कर चुकी हूँ।”
उसने अपने लंड के टोपे को मेरी चूत पर कुछ देर रगड़ा और फिर छेद पर टिका कर हल्का सा धक्का दिया। मगर इस हल्के धक्के के बावजूद भी मेरी ‘कराह’ निकल गई और उसका लंड करीब एक इंच तक मेरी चूत में धंस गया। उसने इससे ज्यादा घुसाने की कोशिश करने के बजाय खुद को मेरे बदन पर गिरा लिया और एक हाथ से एक उरूज दबाते हुए दूसरे उरूज को अपने मुँह में भर लिया और निप्पल को चूसने लगा।
मेरे हाथ भी खुद-बखुद उसकी पीठ पर फिरने लगे। दर्द पर आनन्द हावी होने लगा। मैं महसूस कर रही थी कि उसका विकराल लंड लगातार मेरी चूत को धीरे-धीरे फैलाता अन्दर सरक रहा है। मैंने आँखे भींच ली थी और खुद को उसके हवाले कर दिया था। फिर शायद आधा अन्दर घुसाने के बाद, वो ऊपर से हट कर अन्दर घुसाए-घुसाए ही वापस उसी पोजीशन में बैठ गया।
फिर उसने लंड को वापस खींचा, ऐसा लगा जैसे राहत मिल गई हो लेकिन यह राहत अक्ष्ण्भर थी, उसने वापस एक जोरदार धक्का मारा और इस बार तीन चौथाई लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अन्दर धंस गया। इस आत्मघाती हमले से मैं खुद को संभाल न पाई और मेरी चीख निकल गई। मैंने छूटने की कोशिश की, उसे धकेलने की कोशिश की, लेकिन इस बार उसने मेरी जाँघों को मजबूती से थाम लिया था।
तीन चौथाई अन्दर डालने के बाद फिर वापस खींच कर एक और ज़ोरदार धक्का मारा और पूरा ही अन्दर धंसा दिया। मेरी जान सी निकल गई, जिस्म पर पसीना छलछला आया। इस बार चीख तो मैंने रोक ली थी मगर सर चकरा गया था। वो फिर मेरे ऊपर लद कर मेरे उरूजों से खिलवाड़ करने लगा। मैं समझ रही थी, वो मुझे मौका दे रहा था ताकि मेरी चूत मे उसके लंड के हिसाब से जगह बन सके।
थोड़ी देर की रगड़ा-रगड़ी के बाद उसने अपना चेहरा मेरे चेहरे के पास लाकर कहा- कैसा लग रहा है शहनाज़ जानेमन, मुझे पता है कि तुम्हें मेरा लंड बहुत पसंद आया है ! बोलो न?” “ठीक है ! अब बकवास मत करो।” “अब बकवास लग रही है और अभी तो ऐसे चूस रही थी, जैसे छोड़ने का इरादा ही न हो?” मैंने खिसिया कर चेहरा घुमा लिया।
अपने बदन पर उसके नंगे बदन की सरसराहट और चूत में ठुंसे हुए लंड के एहसास से… मुझे अपना दर्द भूलते देर न लगी। आनन्ददायक लहरें उस दर्द पर हावी होती गई और मैं उसकी पीठ सहलाने लगी, अपनी टांगों को और फैला कर उसकी कमर पर चढ़ा लिया।
उसे समझते देर न लगी कि अब मैं पूरी तरह तैयार थी, इस चुदाई के लिए और वो उठ गया, उसने फिर पहले जैसी पोजीशन बनाई और अपने हाथ के पंजों को मेरे चूत्ड़ों पर कस कर पूरा लिंग बाहर निकाल लिया और फिर वापस अन्दर एक धक्के से घुसाया… अब मेरी चूत उसे स्वीकार कर उसके हिसाब से जगह बना चुकी थी और उसका लोड़ा भी मेरे रस से सराबोर था।
सो आराम से चूत की दीवारों को एक आनन्द भरी रगड़ देता जड़ तक सरकता चला गया। उसके लंड की ठोकर मुझे अपनी बच्चेदानी पर महसूस हुई। कुछ धक्कों के बाद जब लंड आसानी से अंदर बाहर होने लगा तो उसने कूल्हों को छोड़ के अपने हाथों से मेरे पेट पर पकड़ बना ली.
हर धक्के के बाद ऐसा लगता जैसे बाहर जाते वक़्त लंड के साथ उस पर कसी हुई मेरी चूत भी बाहर निकल जाना चाहती है पर मनोज फिर उसे अन्दर ठूंस देता। हर धक्के पर मेरी ‘आह’ निकल जाती। मैंने चेहरा एक तरफ़ घुमा रखा था और मुट्ठियों में बेड की चादर भींच ली थी, पर वो मेरे जिस्म में उठती आनन्द की लहरों को महसूस कर सकता था, जो उसे और उत्तेजित कर रही थी।
“जिस दिन से काम पर आया हूँ, कसम से ईमान डोला हुआ है। आज जाकर मेरे पप्पू को तसल्ली हुई है। एक बच्चे के बाद भी इतनी कसी हुई है। लगता है साहब जी सामान कुछ ख़ास नहीं।” “तेरे से आधा है।” मेरे मुँह से बेसाख्ता ही निकल गया। “हाँ, होगा ही !” वह अजीब से अंदाज़ में हंसा- इसीलिए तो इतनी भूखी निगाहों से देख रही थी।
मैंने कुछ नहीं कहा और उन ‘गचागच’ लगते धक्कों से पागल होती रही, मेरे मुँह से उल्टे-सीधे शब्द निकलना चाहते थे, पर बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को कंट्रोल किया हुआ था। बस ‘आह-आह’ करती रही और वो ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाता रहा और इसी तरह मैं अपने चरमसुख पर पहुँच कर बुरी तरह ऐंठ गई।
चूत से निकले काम-रस ने उसके बेरहमी से वार करते लंड को नहला दिया। उसके लिए रास्ता कुछ और आसान हो गया। फिर कुछ देर के ठण्डे पलों के बाद मैं फिर से गर्म हो गई और अपनी गांड उठा-उठा कर उसे पूरा अन्दर कर लेने की कोशिश करने लगी।
तब उसने लिंग को एक झटके के साथ बाहर निकाल लिया और मेरी चूत से फक की आवाज़ आई। “क्या हुआ मैने कहा?” “एक ही पोज़ में कराओगी क्या? घोड़ी बन जाओ, उसमें ज्यादा मज़ा आता है।” मुझे पता है ज्यादा मज़ा आता है, पर फिर भी एक डर था उसके लंड की लम्बाई मोटाई का, बहरहाल मैंने विरोध करने का मौका तो कहीं पीछे छोड़ दिया था। मैं घोड़ी बन गई।
उसने मेरी कमर पर दबाव बना कर मुझे अपने हिसाब से नीचे कर लिया, अब मेरी चूत उसके सामने हवा में खुली थी, मगर वो उंगली मेरी गांड के छेद पर फिरा रहा था। “वहाँ नहीं, प्लीज़, मैं मर जाऊँगी…” मैंने बेड पर लेट जाना चाहा मगर उसने मेरी कमर थाम ली थी। “नहीं, डरो मत शहनाज़ मेरी जान, अभी इसका नंबर नहीं है।” वह हँसते हुए बोला।
“शक्ल से तो बड़े शरीफ लगते हो, पर हो बड़े कमीने किस्म के इन्सान।” “एक इसी मामले में तो हर कोई साधू सन्त, सब कमीने होते हैं और तुम जैसी शरीफ औरतें हम कमीनों को ही पसंद करती हैं।” सही कह रहा था कमीना ! फिर एक ठोकर में उसने मेरी खुली हवा में फैली चूत में अपना लंड ठूंस दिया और मेरे कूल्हों को थाम कर बेरहमी से धक्के लगाने शुरू कर दिए।
जब मैं वापस फिर अपने चरम पर पहुँचने लगी तो इस बार अपना मुँह बंद न रख पाई। “और ज़ोर से मनोज और ज़ोर से… हाँ-हाँ ऐसे ही… मनोज ऐसे ही… और और… फक मी हार्ड… कम ऑन , बास्टर्ड फक मी हार्ड…!” “लो और लो मेरी जान शहनाज़… यह लो… पर यह पीछे वाला छेद भी चखूँगा… इसे भी चोदूँगा… बोलो न शहनाज़, डालने दोगी ना?” “हाँ हाँ… उसे भी मत छोड़ना… डाल देना उसमें भी !”
उसने धक्के लगाते-लगाते अपनी एक उंगली मेरी गांड में सरका दी और साथ में उसे भी अन्दर-बाहर करने लगा… इससे धक्कों की तूफानी रफ़्तार कुछ थम सी गई। “गांड में कुँवारेपन का कसाव नहीं है शहनाज़ जान, मतलब इसमें भी डलवाती हो न!” “हाँ… हाँ…पर तुम कल कर लेना इसमें… वादा करती हूँ… पर आज आगे ही करो प्लीज़।” “नहीं, आज ही, कल का क्या भरोसा… अभी वक़्त है, एक राउंड अभी और हो जायेगा। जल्दी बोलो !”
“नहीं, आज नहीं कल… अब करो न ठीक से।” “आज, वरना…!” उसने एकदम से अपना लंड बाहर निकाल लिया और भक की आवाज़ हुई। मैं तड़प कर रह गई… मैंने घूम कर उसे देखा। वो अजीब सौदेबाज़ी वाले अंदाज़ में मुझे देख रहा था। “ओके, पहले अभी करो… दूसरे राउंड में कर लेना।” मैंने हार मानते हुए कहा।
उसने फिर मेरे कूल्हों पर पकड़ बनाई और लंड अन्दर घुसा दिया। एक मस्ती भरी ‘कराह’ मेरे मुँह से निकल गई और मनोज ने फिर तूफानी रफ़्तार से जो धक्के लगाए तो मुझे अपनी चरमसीमा पर पहुँचते देर न लगी मगर वो भी साथ में ही चरम पर पहुँच गया। “मेरा निकलने वाला है… कहाँ निकालूँ?” “मैं अँग्रेज़ नहीं, जहाँ हो वहीं निकालो।” और उसने ज़ोर से कांपते हुए मुझे कमर से भींच लिया।
पहले मेरा पानी छूटा और फिर उसके लंड से गर्म वीर्य की पिचकारी छूटी और उसने मेरी चूत को अपने गर्म पानी से भर दिया। फिर दोनों ही कराहते हुए बेड पर फैल गए। एकदम से दिमाग पर ऐसा नशा छाया के नींद सी आ गई। फिर कुछ पलों बाद होश आया तो हम दोनों एक-दूसरे से लिपटे पड़े थे और मनोज अब फिर से मेरी छातियाँ सहला रहा था।
मैंने उसे दूर करने की कोशिश की पर कर न सकी और वह हाथ नीचे ले जाकर फिर उसी ज्वालामुखी के दहाने से छेड़-छाड़ करने लगा। मैं कसमसा कर रह गई। कुछ देर की कोशिश के बाद मैं फ़िर से गर्म हो गई और खुद को उसके हवाले कर दिया। “कुछ चिकनी चीज़ है, जैली या तेल?” “सरसों का तेल है… वो रखी है शीशी।”
उसने ड्रेसिंग टेबल से शीशी उठाई और उंगली पर लेकर मेरी गांड के छेद पर लगाने लगा, सामने बैठ कर मेरी टाँगें मेरे सीने तक पहुँचा दी और तेल को छेद में डालने लगा… कुछ देर में ही छेद बेहद चिकना हो गया और उसकी 3 उँगलियाँ तक अन्दर जाने लगीं। फिर उसी पोज़िशन में लेट कर वह अपनी जीभ से मेरी चूत के दाने को सहलाने चुभलाने लगा और उंगली को गांड के छेद में चलाता रहा।
जब मैं बुरी तरह गरम हो कर सिसकारने, ऐंठने लगी तो वो उठ कर मेरे सर के पास चला आया और अपना मुरझाया हुआ लंड मेरे होंठों के आगे कर दिया। अब इन्कार की गुंजाईश कहाँ बची थी, मैंने लपक कर उसके लंड के टोपे को अपने मुँह में ले लिया और उसकी ऊपर की खाल पीछे करके पूरा ऊपर से नीचे तक लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी।
कुछ ही देर में वो लोहे की रोड जैसा हो गया तो वह फिर मेरे पैरों के बीच पहुँच गया। “जैसे पहले पोजीशन बनाई थी वैसे ही बनो अब।” मैं फिर से घोड़ी जैसी पोज़िशन में हो गई और उसने मेरे कुल्हे थाम कर उन्हें अपने हिसाब से कर लिया और फिर अपने लंड के टोपे को छेद पर रख के हल्के से दबाया… टोपा अन्दर फंस गया और मेरी सांस गले में.
मैं संभल पाती उससे पहले एक झटका लगा कर उसने आधा लंड अन्दर कर दिया। मेरे मुँह से एकदम से चीख निकल गई, मैं झटके से आगे होने को हुई लेकिन उसने कूल्हे पकड़ रखे थे। मैं कराह कर रह गई। उसने फिर कुछ देर लंड अन्दर रहने दिया और एक हाथ नीचे डाल कर चूत के दाने को सहलाने लगा।
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फिर थोड़ी सनसनाहट पैदा हुई तो दर्द से ध्यान हटा और उसने इसी हालत में धीरे-धीरे सरकाते हुए पूरा लंड अन्दर डाल दिया मेरी तो सांस ही रुक गयी। “गया पूरा शहनाज़ जान… अब संभालो।” कुछ धक्के उसने बड़े प्यार से धीरे-धीरे लगाए और रास्ता बनते ही उसकी रफ़्तार तेज़ होती गई, अब उसने दोनों हाथों से मेरे कुल्हे पकड़ लिए और ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने लगा। मैं भी गर्म होती गई… और हर धक्के पर एक कराह छोड़ते मैं जल्दी ही फिर अपने चरम पर पहुँच कर बह गई और पीछे के छेद का कसाव उसे भी मार गया।
वो पहले जितनी देर न टिक सका और जल्दी ही मेरे कूल्हों को मुट्ठियों में भींच कर सारा माल अन्दर निकाल दिया और फिर पूरा माल मेरी गांड मे भरते ही अलग हट कर ढेर हो गया। यह था मेरी जिंदगी में पहला परपुरुष, गैर मर्द… और पहला अवैध सम्भोग, लेकिन मनोज ने मुझे एक अलग दुनिया दिखा दी जो मुझे इतनी भायी कि फिर तो मैं कई अलग-अलग आसनों मे चुदती चली मर्दों गई। दोस्तों यह थी मेरी दोस्त की सेक्स कहानी। आशा करता हूं कि आप सबको पसंद आई होगी कृपया मेल से प्रतिक्रिया जरुर दें man650490@gmail.com
Salman says
Please story ka name change na kiya karo
Raaj Ansari says
Hello