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पापा आप बहुत गंदे हो – भाग 3

मई 27, 2024 by hamari

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नमस्कार दोस्तों, कैसे है आप सब लोग. मैं विवेक मल्होत्रा आप सभी का फिर से स्वागत करता हूँ. दोस्तों आपने मेरी कहानी के पिछले भाग पापा आप बहुत गंदे हो – भाग 2 में पढ़ा होगा की उस अनजान लड़की ने हमे अपनी कहानी बताई की कैसे उसके सगे बाप ने उसका जिस्मानी फायदा उठाया और अब आगे- Beti Sath Jabardasti Chudai

एक महीने से पापा से दूर रहने की वजह से मैं इतनी व्याकुल हो गयी थी कि मैं उन्हें रास्ते में ही नोचने खसोटने लगी। उन्हें चूम कर, छेड़ कर इतना गर्म कर दिया की मजबूरन उन्हें गाड़ी रोक कर मेरी चुदाई करनी पड़ी। वे 13 दिन हमारे लिए बहुत शानदार रहे।

पहले ही दिन पापा सुबह ही उठ गए। सुबह सुबह मैं सो रही थी तभी पापा ने मेरे पास आकर अपना लंड मेरे गाल से सटाने लगे. मैं शायद कोई सपना देख रही थी इसीलिए मैंने अपना मुंह खोल दिया, पापा ने मेरे मुंह में अपना लंड घुसा दिया और पेलने लगे.

मैं सपने में ही पापा का लंड चूसने लगी, पापा को बहुत मजा आ रहा था इसीलिए वो कस कस कर धक्के लगाने लगे। धक्कों की वजह से मेरी नींद खुल गई, मुझे देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि पापा को सुबह-सुबह क्या हो गया है। मैं भी खुश होकर पापा का लंड चूसने लगी, मैं उनके लंड को पूरा अंदर तक लेकर चूस रही थी।

पापा इतना उत्तेजित हो गए कि सुबह-सुबह ही मेरे मुंह में झर गए। सुबह-सुबह ही मैं नाश्ते के बदले उनका पूरा बीज पी गई. पापा ने मुझे पूरी नंगी कर दिया और बोले- आज से 13 दिन तक तुम कोई भी कपड़ा नहीं पहनोगी और मेरी रखैल बनकर रहोगी. मैं तुम्हें हर जगह, हर तरीके से चोदना चाहता हूं! यह कह कर पापा ने मुझे गोद में उठा लिया और बाथरूम में ले गए.

सुबह सुबह का समय था, पापा ने मुझे सीट पर बैठा दिया और मेरे मुंह में अपना लंड घुसा दिया और बोले- मेरी जान तुम पॉटी भी करती रहो और मेरा लंड भी चूसती रहो, आज मैं सारा दिन तुम्हें चोदूंगा इसलिए सुबह से ही शुरुआत कर रहा हूं!

मैंने कुछ देर तक पॉटी की और पापा का लंड चूसती रही. फिर मैंने अपनी गांड साफ किया। कुछ ही देर बाद पापा ने मुझे सीट के सहारे झुका दिया और फिर मेरी चूत में लंड घुसा दिया और मुझे कुतिया की तरह जोर जोर से पेलने लगे. वे मुझे इतनी तेजी से चोद रहे थे कि मैं आगे की तरफ झुक जा रही थी.

कुछ देर चोदने के बाद फिर उन्होंने मुझे सीट पर बैठा दिया और मेरे चेहरे पर मुट्ठ मारने लगे. कुछ ही देर में मेरे पापा का पूरा माल मेरे चेहरे पर था. फिर पापा उंगलियों से अपने वीर्य को मेरे मुंह में डालने लगे, मैं धीरे-धीरे उनका सारा रस चाटने लगी. 5 मिनट में ही उन्होंने मेरा चेहरा पूरा साफ कर दिया.

फिर पापा खड़े हुए और मेरे मुंह पर पेशाब करने लगे, पेशाब कर कर के उन्होंने मेरा पूरा चेहरा साफ कर दिया और कुछ पेशाब मुझे पिला भी दिया. मुझे उनका पेशाब बहुत खराब लगा. फिर पापा ने मुझे नहलाया और खुद भी नहा कर हम दोनों बाहर आए।

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बाथरूम से नहा कर बाहर आने के बाद भी पापा ने मुझे कपड़े नहीं पहनने दिये, बोले- बेटी, नाश्ता बना दो!

जब मैं नाश्ता बनाने लगी तो फिर पीछे से उन्होंने मुझे पकड़ लिया और अपना लंड मेरी चूत में डाल कर चोदने लग गए. किचन में ही नाश्ता बनाने के दौरान ही मुझे चोदते रहे, फिर जब नाश्ता बन गया, तब डाइनिंग टेबल पर उन्होंने नाश्ता लगाया और मुझे अपने लंड पर बिठा दिया. हम नाश्ता करने लगे.

इस दौरान उनका लंड मेरी चूत के अंदर था, वह मुझे बांहों में लेकर चोद रहे थे, नाश्ते के साथ साथ कभी कभी मेरी चूचियों को चूसने लगते शायद नाश्ते के साथ साथ उनको दूध की भी जरूरत थी. फिर कभी मेरे चेहरे को भी चूसने लगते और गालों को भी काटने लगते!

कुछ ही देर में हम लोगों ने नाश्ता कर लिया, नाश्ता करते ही उन्होंने मुझे टेबल पर ही झुका दिया और चोदने लगे, 10 मिनट तक चोदने के बाद जब उनके लंड से बीज निकलने वाला था तो उन्होंने उस बीज को मेरे ब्रेड पर गिरा दिया और मुझे खाने को बोले.

ब्रेड में मक्खन की जगह उनका वीर्य लगा हुआ था जिसे मैंने बड़ी मुश्किल से खाया। नाश्ता करने के बाद मुझे बेडरूम में ले गए, मुझे नंगी कर डांस करने को कहा. मैं डांस करने लगी। डांस करने के दौरान पापा ने मुझे चोदना शुरू कर दिया। पापा कुछ देर मुझे चोदते और फिर छोड़ देते।

फिर 10:15 मिनट तक सिर्फ मेरी चूचियों और चूत के साथ खेलते और फिर मुझे बिठाकर मेरे मुंह में लंड पेलने लगते। जब लंड पूरा खड़ा हो जाता तो फिर से मुझे चोदना शुरु करते। पापा का लंड जल्दी नहीं झड़ता था इसीलिए वे एक ही बार में आधा आधा घंटा तक पेलते रहते थे।

इस तरह शाम तक उन्होंने मुझे कई बार बुरी तरह से पेला. शाम तक मैं पूरी तरह थक चुकी थी मेरी बुर बुरी तरह जल रही थी, शाम को मैंने पापा को बोल दिया- पापा, अब आज अपनी बेटी की चूत को छोड़ दीजिएगा, मैं आपका लंड चूसकर शांत कर दूंगी.

रात में मैंने उनका लंड चूस कर रस निकाल दिया और पी गई. फिर दूसरे दिन सुबह सुबह ही पापा ने नींद में ही मुझे चोदना शुरु कर दिया. इस तरह 13 दिन तक पापा ने दिन रात मेरी चुदाई की, पापा मुझे कभी कुतिया बनाते तो कभी खड़ा करके हर तरह से चुदाई करते थे।

हम बाप बेटी दिन रात चुदाई करते रहे। 14वें दिन मम्मी वापस लौटीं। उस वक़्त 4 बज रहे थे, घर में सिर्फ मैं और पापा थे, उस दिन पापा ऑफिस नहीं गए थे। मैं पापा का लंड चूस रही थी जब दरवाज़े का बेल बजी। हम उस समय ये भूल गए थे कि मम्मी आज वापस आने वाली है।

बेल की आवाज़ सुनकर पापा टॉवल लपेटकर दरवाज़ा खोलने चले गये। मैं बिस्तर पर नंगी बैठी उनके आने का इंतज़ार करती रही। लगभग 5 मिनट बाद मेरे रूम का दरवाज़ा खुला। मैं सोच रही थी कि पापा ही होंगे। दरवाज़ा खुलते ही मेरे मुंह से निकला- ओहह पापा, जल्दी आओ न… मैं…

मेरे आगे के शब्द हलक में ही घुट कर रह गये जब मेरी नज़र दरवाज़े पर खड़ी मम्मी पर पड़ी। मेरे हाथ जो पापा को बाँहों में भरने के लिए उठे थे नीचे झूल गये। मम्मी की आँखों से चिंगारियाँ निकल रही थी, उनके गुस्से से भरे चेहरे को देखकर मेरी साँस रुक सी गयी थी, मैं डर के मारे थर थर काँप रही थी।

“किसका इंतज़ार कर रही थी नंगी होकर?” मम्मी चिल्लायी।

“कलमुही… कौन है तेरा यार जिसके साथ तू मेरे पीठ पीछे गुलछर्रे उड़ा रही है? लेकिन इस घर में तो अभी तुम और तुम्हारे बाप के अलावा कोई नहीं। कहीं तू…” मम्मी बोलते बोलते रुक गयी।

मैंने कोई जवाब न देकर चुपचाप अपनी नज़रें झुका ली। मम्मी एकदम से पलटी और बाहर चली गई। मुझे समझते देर नहीं लगी कि अब पापा की बारी है। मैंने जल्दी से कपड़े पहनी और बाहर आ गयी।

“अब गूंगे क्यों बने हुए हो… जवाब क्यों नहीं देते? कहते क्यों नहीं कि तुमने अपनी ही बेटी के साथ मुंह काला किया?”

पापा चुप थे, मम्मी का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर था। जब पापा ने कोई जवाब नहीं दिया तो वो मेरी ओर पलटी- और तू हरामज़ादी… तुझे शर्म नहीं आयी अपने ही बाप को अपना खसम बनाने में? उस हरामी को तो जवान चूत मिल रही थी, वो बहक गया होगा… लेकिन तू… तुझे तो सोचना चाहिए था कि जिसके सामने तू अपनी चूत खोल रही है वो तेरा बाप है… इसी के लंड की पैदाइश है।

वो बोली और मुझे बालों से पकड़कर घसीटने लगी। मैं दर्द से चीख़ पड़ी। पापा से मेरा दर्द देखा नहीं गया, वो आगे बढ़े और मम्मी का हाथ जोर से झटक दिया। उनका झटका इतना अचानक था कि मम्मी खुद को संभाल नहीं पाई और फर्श पर लम्बी होती चली गयी।

मम्मी कराहती हुयी उठी और लड़खड़ाते कदमों से पापा की ओर बढ़ी फिर चीख़ी- तुमने मुझे धक्का दिया? मैं तुम्हें… वो इतने गुस्से में थी कि उनसे बोला भी नहीं जा रहा था।

“जो करना है कर लो, जिसे बताना चाहो बता दो। मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। उल्टा तुम्हें इस घर से बाहर होना पड़ेगा। तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। पुलिस… कानून सब मेरी जेब में रहते हैं। तुम्हारी बात कोई नहीं सुनेगा। तुम्हारी बात केवल रास्ते पर चलने वाले लोग सुनेंगे और उनसे मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला!”

पापा आगे बोले- आज तक हम बाप बेटी छुप कर प्यार करते थे, अब तुम्हारी आँखों के सामने करेंगे। तुम मुझे नहीं रोक सकती। हाँ, मैं चाहूँ तो एक कॉल करुँगा और तुम्हें पागल करार देकर पागलखाने भिजवा सकता हूँ। अब तुम फैसला करो की तुम शांति से इस घर में रहना चाहती हो या पागलखाने में।”

मम्मी आँखें फाड़े पापा को घूरती रही। पापा की धमकी का पूरा असर हुआ था, वो गुस्से से पलटी और अपने रूम के अंदर चली गई। मैं हक्की बक्की मम्मी पापा का तकरार देख रही थी। मम्मी के जाने के बाद पापा मेरे पास आए- तुम चिंता मत करो… ये पागल औरत हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। ये ज़्यादा चूँ चा करेगी तो इसे पागलखाने भिजवा दूँगा।

पापा की बात सुनकर मेरे अंदर का सारा डर ग़ायब हो गया। पापा सोफ़े पर बैठकर सिगरेट पीने लगे, मैं अपने रूम में आ गई, मम्मी अपने रूम में बैठी रोती रही, वो डिनर के वक़्त भी बाहर न निकली। पापा ने उन्हें बुलाना जरूरी नहीं समझा।

पापा सोफ़े पर बैठकर सिगरेट पीने लगे, मैं अपने रूम में आ गई, मम्मी अपने रूम में बैठी रोती रही, वो डिनर के वक़्त भी बाहर न निकली। पापा ने उन्हें बुलाना जरूरी नहीं समझा। रात के 12 बज चुके थे। मैं अपने बिस्तर पर लेटी आज की घटना के बारे में सोच रही थी कि अचानक दरवाजे पर आहट हुई। मेरी नज़र उठी तो दरवाज़े पर पापा को खड़ा पाया।

“पापा…” मैं हैरानी से बोली।

“तू क्या सोच रही थी मैं अपनी प्यारी बेटी को अकेली छोड़ दूँगा। नहीं शोभा… अब हम कभी अलग नहीं होंगे। अच्छा ही हुआ कि तेरी मम्मी को पता चल गया है। अब हम निडर होकर एक दूसरे से प्यार करेंगे।” कहते हुए पापा ने मेरे एक बूब को कस के दबा दिया।

मैं अपने पापा से लिपट गई- लेकिन मम्मी?

मैं कुछ बोलते बोलते रुक गयी।

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“उसकी चिंता छोड़ो, इस शहर के पुलिस, जज, सभी पावरफुल आदमी मेरे हाथ में हैं। वो वही करेंगे जो मैं चाहूँगा।” पापा अपना पजामे को कमर से नीचे सरकाते हुए बोले। फिर अपनी चड्डी को भी सरका कर लंड बाहर कर निकाल लिया. मैं पापा के लंड को देखने लगी।

उन्होंने मुझे गर्दन से पकड़ा और मेरा सर अपने लंड पर झुका दिया। मैं उनके लंड को मुंह में भर कर चूसने लगी। पापा प्यार से मेरे बालों को सहलाते रहे। आज मैं पूरी अज़ादी से पापा का लंड चूस रही थी, आज मुझे किसी का डर नहीं था।

मैं उनके लंड को अपने होंठों से पुचकारती रही दुलारती चूसती रही, पापा कमर उचका उचका कर लंड चुसवाते रहे। करीब 5 मिनट तक मैं पापा का लंड चूसती रही, पापा लंड चुसवाते हुए मेरे चूचियों को टीशर्ट के ऊपर से ही मसलते रहे। फिर उन्होंने मुझे खड़ा किया और मुझे नंगी करने लगे।

मुझे नंगी कर लेने के बाद वो खुद भी नंगे हो गये। उनके बिस्तर पर बैठते ही मैं उछल कर उनके गोद में बैठ गयी। पापा ने मेरे एक बूब को हाथ में भर कर मसल दिया तो दूसरे को मुंह में भर कर चूसने लगे। मैं प्यार से उनके सर को सहलाती हुई उन्हें अपनी छाती में दबाने लगी।

पापा बिल्कुल बच्चों की तरह मेरे बूब्स पर बारी बारी से मुंह मारते रहे, कभी कभी दाँतों से हल्के से काट भी देते तो मैं मस्ती में भर कर चिहुंक पड़ती। पापा ने मेरे बूब्स को चूसते हुए अपनी एक उंगली मेरी गांड में घुसा दिया और तेजी से उंगली अंदर बाहर करने लगे, मैं मस्ती में डूबकर पापा के लंड को सहलाने लगी।

अब मैं बहुत व्याकुल हो उठी थी। मैं एकदम से उठी और अपनी चूत पापा के चेहरे के पास ले गयी और टाँगें फैलाकर खड़ी हो गयी। पापा एक नज़र मेरे चेहरे पर डाल कर फिर मेरी गीली चूत को निहारने लगे। पापा की जीभ बाहर निकली और मेरी चूत के ऊपर रेंगने लगी।

मैं मदहोशी में उनके सर को अपनी चूत में दबाते हुए सिसकने लगी। मेरी चूत से बहते पानी की एक एक बूँद को पापा बड़े प्यार से चाट रहे थे। मेरी चूत आज जरूरत से ज़्यादा पानी छोड़ रही थी। मैंने पापा को बिस्तर पर गिराया और एक झटके में उनके मोटे लंड पर चूत रख कर बैठती चली गयी।

‘फच…’ के आवाज़ के साथ मेरे पापा का लंड मेरी चूत में धँसता चला गया। जड़ तक उनके लंड को निगलने के बाद मैं अपनी गांड उछालने लगी। 13 दिनों में ही पापा ने मुझे हर आसन में चुदने का ज्ञान दे चुके थे, यह मेरा पसंदीदा आसन था।

मैं हुमच हुमच कर उनके लंड पर धक्के मारने लगी, पापा मेरे बूब्स को मसलते हुए सिसकारियाँ भरते रहे। 15 मिनट उनकी जांघों पर उछलने के बाद मेरी पिचकारी छुटी, मैं चीखती हुयी पापा के ऊपर ढह गयी। उस रात पापा मुझे 5 बजे तक पेलते रहे।

हम बाप बेटी आनन्द में डूबे चीखते चिल्लाते एक दूसरे से गुत्थम गुत्था होते रहे। हमारी चीख़ें और हंसी के ठहाके इतने तेज होते थे कि मम्मी के कमरे तक असानी से पहुंचती होगी लेकिन अब हमें उनका भय जरा भी नहीं था। हम पूरे बिन्दास होकर रात भर एक दूसरे की सवारी करते रहे। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

कभी वो मेरे मुंह पर मूत देते तो कभी मैं उनके मुंह पर मूत देती। ऐसे ही यह सिलसिला 20 दिनों तक चलता रहा। एक दिन पापा मुझे शॉपिंग कराने ले गये और ढेर सारी सेक्सी ट्रांसपेरेंट छोटी छोटी ड्रेस खरीद कर दी। मैं घर पहुंचकर उन सभी कपड़ों को बारी बारी से पहन कर पापा को दिखाने लगी।

उन सेक्सी कपड़ों में देखकर पापा की आँखों में लाल डोरे तैरने लगे, वे बोले- शोभा आज रात हमें एक पार्टी में जाना है। मैं पापा की बात सुनकर चौंक गयी, मैं आज तक कभी किसी पार्टी में नहीं गई थी। मुझे पार्टी के रूप में सिर्फ अपना बर्थडे पार्टी ही याद था जिसमें सिर्फ 3 लोग ही होते थे… मम्मी, पापा और मैं खुद! आज पापा के मुंह से पार्टी की बात सुनकर मेरा चेहरा उतर गया।

“तुम ये वाली ड्रेस पहन लो… इसमें तुम बहुत अच्छी लगोगी।” पापा मेरे भावनाओं की परवाह किये बगैर मुझसे बोले।

मैंने अनमने भाव से सहमति में सर हिलाया। मैं उस ड्रेस को पहन कर तैयार हो गयी और जब हॉल में पहुंची तो पापा भी तैयार बैठे थे। मैं उस ड्रेस में खुद को कम्फर्टेबल नहीं महसूस कर रही थी। एक तो वो ड्रेस बहुत छोटी थी, वो ड्रेस सिर्फ मेरे नितम्बों को ढकने में ही कामयाब थी और ऊपर से मेरे बूब्स आधे बाहर निकल रहे थे।

हम लगभग 8 बजे पार्टी में पहुंचे, वहां काफी भीड़ थी। मैं जैसे ही वहां पहुंची कई प्यासी नज़रों को अपनी ओर घूरते पाया। मैं डर के पापा का हाथ पकड़ कर उनसे सट कर चलने लगी। पापा मुझे बारी बारी से वहां मौजूद लोगों से परिचय कराते रहे।

मुझसे मिलने वाला हर आदमी मुझे ऐसे घूर कर देख रहा था जैसे खा जाना चाहता हो। मैं डरी सहमी पापा के साथ अनमने भाव से उन लोगों से मिलती रही। पापा ने ठीक ही कहा था कि उनकी पहचान बहुत पावरफुल लोगों से थी। पार्टी में मौजूद हर इंसान किसी न किसी बड़े औहदे से सम्बन्ध रखता था।

वहां कोई पुलिस का बड़ा अफसर था तो कोई जज, डॉक्टर, पॉलिटिशियन तो कोई बड़ा बिजनेसमैन। लेकिन मुझे उनमें जरा भी दिलचस्पी नहीं थी। मैं तो बस जल्द से जल्द उस पार्टी के ख़त्म हो जाने की प्रार्थना कर रही थी। मुझे वो शोरगुल का माहौल बहुत बुरा लग रहा था।

जोर जोर से बजता डीजे का साऊंड मेरे कान के परदे फाड़ रहा था। वहां मौजूद हर आदमी का बस एक ही काम था… ड्रिंक डांस और नए आने वाले लोगों से हाथ मिलाना बात करना। मेरी समझ से परे थी ये बात… लोग इस बोरिंग काम के लिए इतने पैसे क्यों बर्बाद करते है। मैं अभी अपने इन्ही ख्यालों में खोयी थी की एक लड़की बहुत कम कपड़ों में लिपटी हुई हमारे ओर आयी और पापा से कस के लिपट कर उनके गालों में किस किया- हाय अंकल… कैसे हैं आप?

“एब्सोल्यूटली फाइन… खुशबू इससे मिलो… ये है मेरी बेटी शोभा!” पापा मेरी और इशारा करते हुए उस लड़की से बोले।

“हाय… शोभा!” खुशबू अपना हाथ बढ़ाती हुई बोली।

“हाय…” मैं एक टूक बोलकर चुप हो गयी, मुझे उसका पापा से लिपटना बहुत बुरा लगा था। रात लगभग 2 बजे तक पार्टी चलती रही। मैं उतनी देर में कितनी बोर हो गयी थी बता नहीं सकती। घर पहुँचते ही बिस्तर पर गिर पड़ी, थकी होने के कारण नींद भी जल्दी आ गयी। अगले रोज मेरे स्कूल से आने के बाद पापा भी जल्दी घर आ गये, आते ही मुझे तैयार होने को कहा।

“क्या आज भी पार्टी में जाना है… पापा?” मैंने उदास होकर पापा से पूछा।

“नहीं बेटा… आज हम घूमने जा रहे हैं और डिनर भी बाहर ही करेंगे।”

पाप की बात सुनकर मैं ख़ुशी से झूम उठी और जल्दी से तैयार होकर बाहर हॉल में आ गयी। कुछ ही देर में पापा भी तैयार होकर बाहर आ गये। ठीक एक घंटे बाद हम एक आलिशान होटल के अंदर घुसे।

“पापा हम तो घूमने जाने वाले थे न… फिर आप होटल क्यों आये?” जब मैं समझने में नाक़ाम रही तो पापा से पूछ बैठी।

“शोभा… मुझे एक दोस्त से मिलना है, फिर घूमने चलेंगे, आओ मेरे साथ!” वो मेरा हाथ पकड़कर होटल के लिफ्ट की ओर बढ़ गये।

लिफ्ट के रुकने के बाद हम बाहर निकले, फिर कुछ गैलरी में चलने के बाद पापा एक रूम के बाहर रुक गये। उन्होंने दरवाज़े में दस्तक दी, कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला। दरवाज़े में 45 की उम्र के एक अंकल खड़े थे, मुझे उनकी सूरत जानी पहचानी लग रही थी। शायद मैंने उन्हें कल रात की पार्टी में देखा था।

मैं पापा के साथ अंदर गयी, अंदर पहुँचते ही मैं चौंक पड़ी… बिस्तर पर एक आधी नंगी लड़की लेटी हुयी थी। और ये वही लड़की थी जो पार्टी में पापा से लिपट रही थी और जिसका नाम पापा ने खुशबू बताया था। हमारे अंदर पहुँचते ही वह लड़की बिस्तर से उठी और पापा के तरफ लपकी। फिर पापा के गले में बाहें डाल कर उनके होंठों को चूसने लगी।

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मैं हैरानी से उसे देखती रह गयी, उसने मेरी मौजूदगी की भी परवाह नहीं की। पापा भी उसके होंठों को चूसते हुए उसकी एक चूची को दबाने लगे और दूसरे हाथ से अपनी पैन्ट की चैन सरकाने लगे। मैं अभी आँखें फाड़े पापा और खुशबू का खेल देख रही थी कि अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मेरी गांड को सहला रहा हो।

मैं तेजी से मुड़ी तो हैरान रह गयी, ये वही अंकल थे जिन्होंने दरवाज़ा खोला था। मेरे मुड़ते ही उनके होंठों पर एक पैशाचिक मुस्कान दिखाई दी। मैं कुछ कहती उससे पहले उन्होंने अपना एक हाथ मेरी चूत पर रख दिया। फिर जीन्स के ऊपर से ही जोर से मेरी चूत को दबा दिया।

“यह क्या कर रहे हैं आप?” मैं गुस्से में बोली और आगे हट गई।

“क्यों… क्या तुम्हें अच्छा नहीं लगा?” वो बोले और मेरी तरफ तेजी से बढ़े।

मैं घबराकर पापा की तरफ मुड़ी लेकिन जैसे ही मेरी नज़र पापा पर पड़ी मैं हैरान रह गयी। पापा का मोटा लम्बा लंड बाहर निकला हुआ था और खुशबू उसे अपने मुंह में भर कर चूस रही थी। मैं ये सब बरदाश्त नहीं कर पाई… मेरे पापा पर कोई और अधिकार जमाये मुझे अच्छा नहीं लगा।

मैं तेजी से आगे बढ़ी और पापा के पास पहुँच गयी- पापा ये आप क्या कर रहे हैं?

पापा ने अपनी बंद आँखों को खोला और मुझे देखते हुए मुस्कुराये फिर बोले- शोभा… तुम भी खुशबू के पापा के साथ एन्जॉय करो। जाओ उनके पास… उन्हें देखो… वो कितने बेचैन हो रहे हैं तुम्हें प्यार करने के लिये।

मैंने एक सरसरी सी निगाह खुशबू के पापा की तरफ डाली तो आँखें आश्चर्य से फ़ैल गई। वो अपना लंड बाहर निकाले हिला रहे थे लेकिन मैं वापस पापा की तरफ मुड़ी- पापा, मैं आपसे प्यार करती हूँ। मैं उनके साथ ये सब नहीं कर सकती, मुझे ये पसंद नहीं, प्लीज पापा घर चलो।

मेरी बात सुनकर पापा खुशबू से अलग हुये, फिर मुझे बाँहों में भर मेरे होंठों को चूमते हुए बोले- ठीक है, जैसा तुम कहोगी मैं वही करूंगा लेकिन इस वक़्त मैं बहुत गर्म हूँ, बिना चुदाई किये मुझसे रहा नहीं जाएगा।

“तो फिर मुझे चोदिये पापा… मैं हूं ना… मेरे होते आप किसी और को चोदो, मुझे यह पसंद नहीं।” ये कहकर मैं झुकी और पापा का लंड मुंह में भरकर चूसने लगी।

पापा मेरे बालों को सहलाते हुए सिसकारी भरते रहे। लंड चूसते हुए मेरी नज़र खुशबू की तरफ घूमी तो मेरा पूरा शरीर मस्ती से झनझना उठा। खुशबू की जीन्स घुटनों तक सरकी हुई थी और उसके पापा घुटनों के बल बैठे उसकी चूत चाट रहे थे, खुशबू अपनी कमर हिला हिला कर अपनी चूत अपने पापा से चटवा रही थी।

अचानक उसकी नज़र मुझसे टकरायी, मुझे अपनी ओर देखती पाकर उसने एक कामुक सिसकारी भरी, फिर वो अलग हुई और अपने बाकी के कपड़े उतारने लगी। उसे नंगी होती देख उसके पापा भी कपड़ों में न रह सके। मैं उन दोनों की तेजी देखकर हैरान थी।

खुशबू ने अपने पापा को बिस्तर पर धकेल कर गिराया और उनके लंड को चूसने लगी। उसके पापा बिस्तर पर लेटे हुए थे लेकिन उसके दोनों पाँव फर्श पर थे। खुशबू उनकी टाँगों के बीच फर्श पर बैठी हुई लंड चूस रही थी। कुछ देर लंड चूसने के बाद वो उठी और अपने पापा का लंड पकड़कर अपनी चूत में घिसने लगी।

फिर अपनी गर्दन घुमाकर मुझे देखा, अगले ही पल उसने लंड को अपनी चूत के छेद पर टिकाया और एक करारा झटका… “आ… आह्ह…” उसके मुंह से चीख़ निकली। उसका धक्का इतना तेज था की एक ही झटके में उसके पापा का पूरा लंड उसकी चूत में समा गया था।

उसने पलट कर मुझे देखा जैसे मुझे चिढ़ा रही हो। वो सच में सेक्स में माहिर थी उसकी हरकतें बहुत कामुक थी। उसके इस कामुकता भरे सीन को देखकर मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया। वो मुस्कुराती हुई अपने पापा के लंड पर धक्के लगाने लगी। उसकी चीखों से पूरा रूम गूंज रहा था।

मैंने पापा को देखा, वो भी फटी फटी आँखों से उधर ही देख रहे थे। मैं जलभुन गयी और उस जलन से मेरा पूरा बदन सुलग उठा। मैं एकदम से खड़ी हुई और पलक झपकते ही अपने शरीर से सारे कपड़े उतार फेंके, फिर पापा को भी नंगा करती चली गई। पापा को नंगा करने के बाद मैं अपनी चूत सहलाती हुई पापा को देखने लगी। पापा मेरा इशारा समझ गए वो मेरी टांगों के नीचे बैठ गए और अपनी जीभ निकाल कर मेरी चूत पर रख दी।

पापा मेरी चूत चाटते हुए अपनी एक उंगली मेरी चूत में घुसा कर जोर से अंदर बाहर करने लगे। मैं सिसकारी भरती हुई उनका सर अपनी चूत में दबाने लगी। पापा मेरी चूत को कुछ देर चाटने के बाद ऊपर उठे और मेरे बूब्स को मसलते हुए मेरी गर्दन को चूमने लगे, मेरी आँखें मस्ती से बंद होने लगी।

“शोभा…” अचानक पापा की आवाज़ से मेरी आँख खुली।

“जी पापा?” मैं काँपते स्वर में बोली।

“आज मुझे खुशबू को चोदने का मन कर रहा है, प्लीज एक बार मुझे उसे चोदने दो। फिर कभी किसी दूसरी लड़की को नहीं चोदूँगा।”

मैं पापा को देखने लगी, वो मेरी आँखों में झाँकते हुए मेरे बूब्स दबाते रहे।

“लेकिन… पापा…”

“प्लीज शोभा… मान जाओ!”

“ओ के… पापा… लेकिन सिर्फ एक बार!” मैं थोड़ा उदास होते हुए बोली।

“लेकिन खुशबू मुझसे तभी चुदेगी जब तुम उसके पापा से चुदोगी। प्लीज मेरी ख़ुशी के लिए एक बार तिवारी अंकल से प्यार कर लो।”

मैं उस वक़्त पापा की बाँहों में मस्ती में डूबी हुई थी फिर भी उनका प्रस्ताव मुझे बुरा लगा! लेकिन मैं उन्हें खोना नहीं चाहती थी… सिर्फ एक बार ही की तो बात है। यह सोचकर मैं पापा से अलग हुयी और तिवारी अंकल के पास चली गई।

खुशबू मुझे अपनी ओर आती देख अपने पापा के ऊपर से उठी और मुस्कुराती हुई मेरे पापा की ओर बढ़ गई। तिवारी अंकल बिस्तर पर उठ बैठे और मुझे देखते हुए अपने लंड को सहलाने लगे, मैं उनके पास बगल में जाकर बैठ गयी।

“इसे मुंह में लो शोभा…” वो लंड हिला कर बोले।

मैं झिझक के साथ उनके विशाल लंड को देखती रही। अचानक अंकल ने मुझे गरदन से पकड़ा और अपने लंड पर झुका लिए फिर एक हाथ से अपना लंड पकड़कर मेरे होंठों पर रगड़ने लगे। फिर अपने लंड के सुपारे से मेरे होठों को खोलने लगे लेकिन वो नाक़ाम रहे।

अचानक उन्होंने मेरा गर्दन दबा दिया मैं चीखी… उसी वक़्त अंकल ने मेरे खुले मुंह में अपना लंड घुसा दिया। मुझे न चाहते हुए भी उनका लंड चूसना पड़ा, मैं धीरे धीरे उनका लंड चूसने लगी। तभी अचानक अंकल उठे और घुटनों के बल बिस्तर पर खड़े हो गये, फिर मुझे अपनी टाँगों के बीच खींच लिया, मैं उनकी टाँगों के नीचे पीठ के बल लेटी हुई थी।

उन्होंने दोनों हाथों से मेरा चेहरा थाम कर ऊपर उठाया और अपना मोटा लंड मेरे मुंह में डाल कर मेरा मुंह में पेलने लगे। तिवारी अंकल का लंड मेरे गले तक पहुँच रहा था, मेरी साँस घुटती हुई सी महसूस हुई लेकिन उन्हें परवाह नहीं थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

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मैं उन्हें जोर का धक्का देकर आगे धकेलने की कोशिश करने लगी लेकिन मैं नीचे लेटी होने की वजह से मेरी शक्ति कम हो गयी थी। कुछ देर मेरा मुंह चोदने के बाद उन्होंने अपना गीला लंड बाहर निकाला, फिर मेरी कमर को पकड़ कर मेरी गांड अपनी ओर कर लिया।

“शोभा डॉगी बन जाओ!” वो मेरी गांड सहलाते हुए बोले।

मैंने यह सोचकर राहत की साँस ली कि अब वो मेरी चूत चोदकर जल्दी से मुझे छुट्टी देंगे, मैं बिना देर किये बिस्तर पर हाथों और घुटनों के बल हो गयी। अंकल मेरे आगे आये और मेरे नितम्बों को चाटने लगे फिर मेरी गांड में थूक दिए और अपनी एक उंगली गांड के छेद में घुसा कर अंदर बाहर करने लगे।

मेरे मुंह से दर्द भरी सिसकारी निकल गई। अचानक मुझे मेरी गांड के छेद पर अंकल के लंड का अहसास हुआ। मैंने पलट कर उन्हें देखा, वो मुस्कुराये और इससे पहले की मैं कुछ समझ पाती, उन्होंने पूरी ताक़त से अपना लंड मेरी गांड में पेल दिया।

“आ… ई…!” मैं गला फाड़ कर चीखी।

अंकल का लंड मेरी गांड में घुस चुका था। मुझे ऐसा लगा जैसे कोई गर्म मोटा लोहा मेरी गांड में घुसा हुआ हो। अभी मैं अपने दर्द में क़ाबू पाने की कोशिश कर ही रही थी कि अंकल ने एक और करारा धक्का मारा, मैंने चीखते हुए पापा की तरफ मदद के लिए नज़र घुमायी… लेकिन पापा के होंठों पर मुस्कान देखकर मैं हैरान रह गई।

फिर एक बाद के बाद एक कई ताबड़तोड़ धक्के मार कर अंकल ने अपना बड़ा लंड पूरा मेरी कुंवारी गांड के अंदर उतार दिया। मेरी आँखों से आंसू बह चले। अंकल बेरहमी से मेरी गांड मार रहे थे लेकिन मेरे पापा मेरे अच्छे पापा ये देखकर मुस्कुरा रहे थे।

उधर पापा ने भी खुशबू को कुतिया बना दिया था और उसके गांड में अपना लंड घुसा दिया था. इधर तिवारी अंकल मेरे गांड में जैसे जैसे लंड पेलते वैसे वैसे मेरे पापा भी खुशबू की गांड मार रहे थे. फिर हम दोनों को खुशबू के पापा और मेरे पापा एक ही जगह हम दोनों का मुंह कर दिया.

और पीछे से हम दोनों की गांड मारने लगे मुझे बहुत दर्द हो रहा था क्योंकि मेरी गांड में पहली बार लंड घुसा था लेकिन खुशबू को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, वह कई बार गांड मरा चुकी थी और बहुत मज़े से गांड मरा रही थी. गांड मराते हुए वह इतनी सेक्सी आवाज निकाल रही थी मेरे पापा को और जोश आ रहा था.

इधर तिवारी अंकल मेरी गांड पर थप्पड़ मारने लगे थे, वे मुझसे बदला ले रहे थे कि मैंने उनको शुरू में इंकार किया था इसीलिए वे पूरे गुस्से से मेरी गांड मार रहे थे, मुझे बहुत तेज दर्द हो रहा था लेकिन मैं अपने पापा के लिए सब कुछ बर्दाश्त कर रही थी. मैं तड़पती रही, रोती रही।

कुछ देर मेरी गांड के ऊपर उछलने के बाद अंकल शांत हुये। उस दिन मैं चल भी नहीं पा रही थी, पापा सहारा देकर गाड़ी तक लाये फिर हम घर वापस आ गये। मैं देर रात तक रोती रही। जिस पापा को मैं अपनी जान से ज़्यादा प्यार करती थी… मेरे वही पापा मुझे दूसरे के सामने लिटाकर तकलीफ दे रहे थे।

उस दिन के बाद तो ये सिलसिला चल पड़ा। हर दूसरे तीसरे दिन पापा मुझे होटल ले जाते और कोई न कोई मेरे शरीर की सवारी करता। बदले में पापा भी किसी की बहन, बेटी चोद लेते थे। मैं मजबूर थी… मैं उनकी आदी हो चुकी थी, मैं उनके बगैर नहीं जी सकती थी। मैं तकलीफ सहती हुई उनकी बात मानती रही।

कभी कभी तो मेरे साथ एक से अधिक लोग चिपक जाते और अपनी गर्मी मेरे शरीर में निकालते। मैं मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत थक जाती और अपनी उस थकान को पापा के साथ बिस्तर पर निकालती… जब वो मुझे प्यार से चूमते, पुचकारते तो मैं अपना सारा दुःख भूल जाती।

धीरे धीरे मेरी ऐसी हालत हो गयी कि जिस दिन पापा मेरे साथ सेक्स नहीं करते मुझे ऐसा लगता मैं मर जाऊँगी। एक दिन मैं अपने रूम में बैठी हुई अपनी किस्मत पर रो रही थी। उस वक़्त शाम के 7 बजे थे, पापा ऑफिस से नहीं लौटे थे।

मैं अपने ख्यालों में खोयी हुयी थी कि अचानक मुझे मम्मी का ख्याल आया। पिछले 6 महीने से मेरी मम्मी से कोई बात नहीं हुई थी और उन्हें देखे हुए तो महीना हो गया था। मम्मी खाना भी अकेले में ही ख़ाती थी। मैं उठी और उनके रूम के तरफ बढ़ गई।

उनके रूम का दरवाज़ा भिड़ा हुआ था लेकिन लॉक नहीं था, मेरे हाथ लगाते ही दरवाज़े का पट खुलता चला गया। जैसे ही मेरी नज़र मम्मी पर पड़ी मैं शॉकड रह गई। मम्मी बिस्तर में मुंह छुपाये रो रही थी, उनके एक हाथ में व्हिस्की का गिलास था। दरवाज़ा खुलने की आहट से मम्मी ने अपनी गर्दन घुमा कर मुझे देखा।

फिर अपने आँसुओं को पौंछती हुई बोली- तू… अब क्या लेने आयी है? सब कुछ तो छीन चुकी हो मुझसे। मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करुँगी शोभा… तुमने मेरे कोख को गाली दी है… मेरी बेटी होकर तुमने मेरे अधिकार पर डाका डाला है.

“मम्मी…” मैं भर्राये गले से बोली। मुझसे मम्मी की हालत देखी नहीं गयी, उनका सुन्दर चेहरा मुरझा गया था, आँखें ऐसी सूजी हुई थी जैसे वो सालों से सोना भूल गयी हो। मुझे ज़िन्दगी में पहली बार मम्मी के दुःख का एहसास हुआ।

“मुझे मम्मी मत कह… मैं तेरी माँ नहीं सौतन हूँ। जा चली जा यहाँ से… मुझे तुम लोगों की जरूरत नहीं है। मैं अकेली जी सकती हूँ.” वो काँपती स्वर में बोली।

मैं उन्हें बेबसी से देखती रह गयी कि मेरी मम्मी क्या से क्या हो गयी थी।

“तुम लोग यह मत समझना कि मैं अकेली हूँ, मुझसे कोई बात करने वाला नहीं है। मैं अकेली नहीं हूँ मेरे साथ ये बोतल है… यही मेरी सबसे अच्छी साथी है कभी मुझे अकेला नहीं छोड़ती। तुम जाओ अपने पापा के पास… वो तुम्हारा इंतज़ार कर रहा होगा।” मम्मी की आँखों में आंसू भर आए।

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“मुझे माफ़ कर दो मम्मी… मुझसे भूल हो गयी।”

‘शोभा, पिछले 6 महीने से मैं अकेली इस कमरे में बैठी पागलों की तरह दीवारो को घूरती रही हूँ और बंद कमरे के अंदर से तुम लोगों की हंसी और ठहाके सुन सुन कर रोती रही हूं।”

“मम्मी, उन बातों को भूल जाओ… अब मैं आपको अकेली नहीं रहने दूंगी।”

“मैं जानती हूँ कि इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं, सारी गलतियाँ तुम्हारे बाप की है। उसी ने तुम्हें बहकाया होगा। मैं यह भी जानती हूँ कि वो तुम्हें बाहर कहाँ ले जाता होगा… उसने पहले मुझसे ये सब करना चाहा था पर जब मैंने इन्कार किया तो वो पापी तुम्हारे आगे पड़ गया और अपने मक़सद में कामयाब भी हो गया।”

“मम्मी…” मैं हैरानी से बोली।

“शोभा मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ। तुम्हारे बगैर मैं बहुत अकेली हो गयी हूँ शोभा… वादा करो तुम फिर कभी अपने पापा के पास नहीं जाओगी, हमेशा मेरे साथ राहोगी। वादा करो शोभा…” मम्मी मेरा हाथ पकड़ के अपनी छाती में दबाती हुई बोली।

“मैं आपको छोड़ कर नहीं जाऊँगी मम्मी… मैं आपसे वादा करती हूँ।” मैं उनसे लिपटती हुई बोली।

“मैं तुम्हें लेकर यहाँ से कहीं दूर चली जाऊँगी जहाँ उस पापी आदमी का साया तक न हो। मैं तुम्हारी ख़ुशी के लिए मेहनत करूँगी… तुम्हें पढ़ाऊँगी, तुम्हारे सारे ख्वाब पूरा करूँगी… बस मुझे छोड़ कर मत जाना!”

“ठीक है मम्मी, आप जैसा कहेंगी मैं वैसा ही करुँगी। अब आइये खाना खा लीजिये… पता नहीं आपने कितने दिनों से ढंग से खाना खाया है या नहीं!”

“हाँ चलो… आज मैं तुम्हें अपने हाथों से खाना खिलाऊँगी।”

मैं और मम्मी बाहर निकले और किचन में आ गई। नौकरानी खाना बनाकर घर जा चुकी थी। मम्मी खाना निकाल कर मुझे खिलाने लगी। उनके हाथों से खाते हुए मुझे मेरा बचपन याद आ गया जब मम्मी रोज सुबह शाम अपने गोद में बिठाकर खाना खिलाती थी। मेरी आँखों से आंसू बहने लगे।

“तू क्यों रो रही है पगली… अब तुम्हें रोने की जरूरत नहीं। अब मैं तुम्हें हमेशा मुस्कुराते हुए देखना चाहती हूं!”

“आज बरसों बाद आपके हाथ से खाना खाकर मैं अपनी ख़ुशी संभाल नहीं पा रही हूँ मम्मी… मुझे बचपन के दिन याद आ रहे हैं।”

मम्मी मेरे आँसू पौंछती हुई मुझे खाना खिलाती रही, मैं भी मम्मी को अपने हाथों से खाना खिलाती रही। खाने के बाद मैं वापस मम्मी के रूम में आ गयी और उनकी गोद में सर रख कर बातें करने लगी। बातें करते हुए कब आँख लग गयी मैं जान नहीं पायी। अचानक पापा की जोरदार आवाज़ से मेरी आँख खुली।

वो दरवाज़े पर खड़े थे और गुस्से से मुझे घूर रहे थे- शोभा तुम यहाँ क्या कर रही हो… तुम्हें डर नहीं लगा इस पागल औरत के पास आने में?

“मम्मी पागल नहीं है… ये बहुत अच्छी हैं। आज इन्होंने मुझे अपने हाथों से खाना खिलाया।”

“क्क्या… तुमने इसके हाथ से खाना खाया… बेवक़ूफ़ लड़की, यह औरत तुमसे नफरत करती है कल को तुम्हारे खाने में ज़हर भी मिला सकती है। तुम्हें इसके साये से भी दूर रहना चाहिये… उठो यहाँ से और अपने रूम में जाओ!”

मैंने मम्मी को देखा, उनकी आँखों से चिंगारियाँ निकल रही थी। ऐसा लगता था जैसे वो पापा को अपनी नजरों से ही जलाकर भस्म कर देना चाहती हों।

नहीं… पापा, आज मैं मम्मी के साथ सोऊँगी।” मैं शांत स्वर में बोली।

“नहीं… नहीं, शोभा मैं तुम्हें ऐसी गलती करने नहीं दूँगा।” वो बोले और अंदर आकर मेरा हाथ पकड़ कर खींचने लगे।

मम्मी ने मुझे रोकने के लिए मेरा दूसरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचने लगी। मैंने मम्मी को देखा, वो पीड़ा और उम्मीद भरी नज़रों से मुझे ही देख रही थी। उनकी नज़र मुझसे फरियाद कर रही थी, मुझे पापा के साथ जाने से रोक रही थी।

अपने पापा का हाथ झटक दिया मैंने- पापा, आज मैं मम्मी के साथ सोऊँगी, चाहे कुछ भी हो जाए… मैं मम्मी को छोड़कर नहीं जाऊँगी।

पापा ने कोई जवाब नहीं दिया… बस आगे बढ़े और मुझे अपने मजबूत बाँहों में उठाकर रूम से बाहर जाने को मुड़े। मम्मी ने पापा की यह हरकत देखी तो झटके से बिस्तर से उठ खड़ी हुई और लपक कर पापा के पास चली गई। मम्मी अपनी पूरी शक्ति लगाकर मुझे पापा से अलग करने की कोशिश करने लगी।

पापा को मम्मी पर ग़ुस्सा आ गया उन्होंने एक जोर का धक्का मम्मी को दिया। मम्मी वापस बेड पर आ गिरी। जब तक मम्मी उठती पापा रूम से बहार निकल चुके थे। वो मुझे मेरे रूम के अंदर ले आये और दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया।

मुझे बिस्तर पर पटक कर मुझ पर टूट पड़े, एक एक करके मेरे शरीर से सारे कपड़े नोच डाले फिर खुद भी नंगे हो गये। मुझे पापा का व्यवहार आज बहुत बदला हुआ लग रहा था। वो मुझसे चिपक कर मुझे चूमने चाटने लगे। मैं विरोध करती रही।

पापा ने मेरी टाँगों को फैलाकर अपना मुंह मेरी चूत पर रख दिया, अपनी चूत पर उनकी जीभ का स्पर्श पाते ही मेरी सारी अकड़ ढीली पड़ गई। पापा कुत्ते की तरह मेरी चूत चाट रहे थे। मैं सिसकारी भरते हुए एक ही शब्द बड़बड़ाये जा रही थी- पापा तुम गंदे हो।

मेरी सिसकारियों के बीच मम्मी की आवाज़ भी सुनाई पड़ रही थी। वो कभी गुस्से में बंद दरवाज़े को ठोकर मारती तो कभी खिड़की के पास से गन्दी गन्दी गालियाँ बकती। लेकिन पापा के साथ अब मैं भी उनकी आवाज़ को अनदेखा कर रही थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

पापा की जीभ मेरी चूत की गहरायी में घुस कर हलचल मचा रही थी और मैं सिसकारी भरते हुए उनके सर को अपनी चूत पर दबाती जा रही थी। कुछ देर पापा अलग हुए और अपना लंड मेरे मुंह के पास ले आए… मैं बिना समय गंवाये लंड को मुंह में भरकर चूसने लगी।

मम्मी खिड़की से ये सारे नज़ारे देखकर पागलों की तरह चीख़ रही थी। कुछ देर लंड चुसवाने के बाद पापा मुझे डॉगी स्टाइल में करके मेरे पीछे आ गये। फिर मेरी गांड में थूक लगा कर अपना मोटा लंड गांड की छेद में रख कर दबाव बढ़ाने लगे।

दबाव पड़ते ही उनके लंड का टोपा मेरी गांड में घुस गया। मैं दर्द से हल्का कराही। फिर पापा मेरे बूब्स को मसलने लगे… बूब्स को मसलते हुए उन्होंने एक जोरदार शॉट मारा और अपना लंड एक ही धक्के में जड़ तक मेरी गांड में घुसा दिया।

“आह्ह… पापा…” मैं दर्द से चीख पड़ी।

मेरी आवाज़ बाहर मम्मी के कानों तक भी चली गयी थी। दरवाज़े पर उनकी ठोकर अचानक तेज हो गयी। साथ ही पापा की ठोकर मेरी गांड में अचानक तेज हो गई, वो पागलों की तरह सटासट मेरी गांड मारते रहे। उन्हें मेरी चीखों और मम्मी की गालियों ने और क्रूर बना दिया था।

लगभग 5 मिनट तक वो मेरी गांड से चिपके रहे फिर उनका गर्म लावा मुझे अपनी गांड में गिरता महसूस हुआ। अपनी सारी गन्दगी मेरी गांड में छोड़ने के बाद पापा अलग हुए और कपड़े पहन कर रूम से बाहर निकले। मैं बिस्तर पर बैठी कराहती हुई धीरे धीरे अपने कपड़े पहनने लगी।

पापा जैसे ही दरवाज़ा खोलकर बाहर निकले, उनकी दर्द भरी चीख़ मेरे कानों से टकरायी… मैं फुर्ती से कपड़े पहन कर बाहर निकली… बाहर निकलते ही जो नजारा मैंने देखा, मेरी आँखें भय से बाहर उबल पड़ी। पापा ज़मीन पर गिरे पड़े थे और मम्मी अपने हाथों में सब्जी काटने वाला चाक़ू उनके शरीर पर बरसाती जा रही थी।

मम्मी बिल्कुल होश में नहीं लग रही थी, वो पापा के पूरे शरीर को चाक़ू के वार से छलनी कर चुकी थी। मम्मी का यह भयानक रूप देखकर मैं डर से थर थर काँपने लगी, फिर एक कोने में जाकर बैठ गई। उसके बाद मुझे कुछ भी होश नहीं रहा… कब पुलिस आयी कब पंचनामा हुआ।

जब मुझे होश आया तो मैं हॉस्पिटल में थी। मेरी मानसिक स्थिति सही नहीं थी इसलिए मुझे डॉक्टर्स की देखभाल में रखा गया था। वहीं मुझे पता चला कि माँ को पुलिस ने जेल में डाल दिया है। कुछ दिन हॉस्पिटल में रहने के बाद मैं उब गयी… मेरे शरीर मरदाना स्पर्श के लिए तड़पने लगा।

दस दिन में ही मैं व्याकुल हो गयी और एक दिन हॉस्पिटल से भाग निकली। हॉस्पिटल से निकल कर छुपते छुपाते मैं पहले अपने घर गयी वहां कुछ देर मम्मी पापा के कमरों में बैठी रही फिर बाहर निकली किसी ऐसे इंसान की तलाश में जो मेरे पिता की कमी दूर कर सके।

मुझे उस दिन पिता के प्यार की उनके स्पर्श की बहुत तलब हो रही थी। उसी दिन जब मैं हाईवे में खड़ी थी तो इन अंकल की गाड़ी आयी। इनको देखते ही मेरे मन की मुराद जैसे पूरी हो गयी। मैं बिना देर किये जबरदस्ती इनकी गाड़ी में घुस गयी उसके बाद क्या हुआ ये सब आप जानते हैं। शोभा ने अपनी बात पूरी की।

सब कुछ सुनने के बाद डॉक्टर खड़ा हुआ और चहलकदमी करने लगा। कुछ देर तक सिगरेट फूंकने के बाद डॉक्टर मुझे लेकर रूम के अंदर गये.

“कहिये डॉक्टर क्या बात है… आप मुझसे अकेले में क्या कहना चाहते हैं?” मैंने बेचैन होकर पूछा।

“विवेक जी, अगर आप चाहते हैं कि शोभा सामान्य जीवन जिए तो आपको उससे शादी करनी होगी।” डॉक्टर गम्भीर होकर बोला- मैं ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि यह इंसानियत के नाते आपका कर्त्तव्य है… बल्कि इसलिए भी कह रहा हूँ कि शोभा का इलाज़ आपके अलावा किसी भी डॉक्टर्स या इंसान के पास नहीं है।

“यह आप क्या कह रहे हैं डॉक्टर… म…मैं भला शोभा से शादी कैसे कर सकता हूँ? उसकी उम्र का तो मेरा एक बेटा है। लोग क्या कहेंगे?”

“लोगों की चिंता छोड़िये… उन्हें जवाब देने के लिए मैं हूँ। किसी इंसान की दम तोड़ती ज़िन्दगी को सहारा देना कोई गलत नहीं विवेक जी! और फिर आप भी अकेलेपन का जीवन जी रहे हैं। और यह भी मत भूलिये कि आपने उसके साथ रात भी गुजारी है।”

लेकिन डॉक्टर…?” मैं कुछ कहते कहते रुका।

“विवेक जी ज़्यादा मत सोचिये… वो बहुत दुखी लड़की है… उसके साथ बहुत बुरा हुआ है। हम इंसान सिर्फ खाने कमाने के लिए इंसान नहीं कहे जाते हैं… इंसानियत के काम आना ही इंसान की सही पहचान है। और फिर वो आप में अपने पिता की छवि देखती है। आप मेरी बात मान लीजिये… इसमें आप दोनों का भला है।”

“ठीक है, जैसा आप कहेंगे, मैं करने को तैयार हूँ। लेकिन उसने फिर से मुझ पर जानलेवा हमला किया तो?” मैंने घबराकर पूछा।

“सिर्फ एक बात का ध्यान रखना है विवेक जी… बस यूँ समझ लीजिये कि वो एक छोटी बच्ची है और आपको उसकी हर बात प्यार से माननी है। जब उसकी खाने की इच्छा हो तो उसे खुद से खाना खिलायें… जब उसे सेक्स की इच्छा हो, तभी उसके साथ सेक्स करें और वो भी प्यार से जैसे कि उसके पिता शुरू में उसके साथ करते थे। धीरे धीरे उसकी जिन्दगी सामान्य होती चली जाएगी।”

“उसके ठीक होने में कितना समय लगेगा डॉक्टर?”

“6 महीने या ज़्यादा से ज़्यादा एक साल या फिर उसके माँ बनने तक… जैसे ही वो माँ बनेगी, वो पूरी तरह से ठीक हो चुकी होगी। बस तब तक मेरी बातों का ध्यान रखें।”

“ओके डॉक्टर…” मैंने हामी भरी।

“आइये अब बाहर चलें।”

हम दोनों बाहर आये तो शोभा वैसे ही सोफ़े पर बैठी किसी सोच में डूबी हुई थी। दोनों उसके पास पहुंचे।

“शोभा… क्या सोच रही हो।” डॉक्टर ने पूछा।

“मम्मी की याद आ रही है… पता नहीं वो कैसी होगी!”

“तुम फ़िक्र मत करो!” डॉक्टर उसके काँधे पर हाथ रखते हुए बोले- हम कल तुम्हारी मम्मी से मिलने चलेंगे।

“क्या सच में आप मेरी मम्मी से मिलाने ले जाएंगे?” वो खुश होते हुए बोली।

“हाँ और तुम्हारी बीमारी भी नार्मल है। बस तुम्हें एक काम करना होगा।”

“आप जो कहेंगे मैं करूँगी डॉक्टर… आप बस एक बार मुझे मम्मी से मिला दीजिये।”

इसे भी पढ़े – पापा आप बहुत गंदे हो – भाग 1

“हम कल तुम्हारी मम्मी से जरूर मिलेंगे। लेकिन उससे पहले मैं तुम्हारे सामने एक प्रस्ताव रखना चाहता हूँ… अगर तुम मुझ पर भरोसा करती हो तो विवेक से शादी कर लो। ये बेचारे अकेले हैं।”

“शादी…” शोभा ने आश्चर्य से डॉक्टर को देखा। उसकी आँखें ख़ुशी से डबडबा गई। उसने तो कभी सोचा भी नहीं था कि उसकी हक़ीकत जानने के बाद कोई उससे शादी भी कर सकता है।

“हाँ… ये तुम्हें बहुत प्यार करते हैं। इनका एक बेटा भी है जो बाहर पढ़ाई कर रहा है। तुम इनके घर हमेशा खुश रहोगी। तुम पूरे अधिकार से जो चाहिए इनसे माँग सकती हो।”

“आप जैसा कहेंगे, डॉक्टर मैं करने को राज़ी हूं।”

“ठीक है, तो पहले हम कल सुबह मंदिर में जाकर शादी का कार्यक्रम निपटायेंगे। फिर तुम्हारी मम्मी के पास जाएंगे। वहीं तुम अपनी मम्मी से मिल भी लेना और आशीर्वाद भी ले लेना। तुम्हें दुल्हन के रूप में देखकर तुम्हारी मम्मी बहुत खुश होंगी।”

“मैं आपका ये एहसान कभी नहीं भुला सकूँगी।” शोभा ने डॉक्टर से कहा।

“अगर तुम किसी की गुणगान करना चाहती हो तो विवेक जी की करो! अगर इन्होंने मुझे न बुलाया होता तो ये सब न होता! तुम हमेशा इनका साथ निभाना।”

कुछ देर बाद डॉक्टर वहां से बाहर निकल गया। अगले रोज़ हम तीनों मंदिर पहुंचे। पुजारी ने शोभा और मेरी शादी करा दी। शादी सम्पन होने के बाद हम तीनों जेल पहुंचे और वहां शोभा की मम्मी से मुलाकात की, फिर मैंने और शोभा ने उनसे आशीर्वाद भी लिया। अपनी बेटी को दुल्हन के रूप में देखकर सच में उसकी आँखें ख़ुशी से भीग गयी। कुछ दिनों के बाद शोभा पूरी तरह से ठीक हो गई।वह आज मेरे साथ खुशहाल जिंदगी बिता रही है। हमदोनो का दो बच्चे भी है एक लड़का और एक लड़की।

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