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बुर में बैंगन घुसा कर पानी निकाला

जनवरी 21, 2025 by hamari

Bahan Chudai Satya Katha

मैं 19 साल की थी और मेरा भाई राघव मुझसे सिर्फ़ एक साल छोटा 18 साल का था. हमलोग एक ग़रीब परिवार से है और अपने घर गाँव से दूर शहर मे रहते है. थोड़ा फॅमिली बॅकग्राउंड बताना ज़रूरी होगा. पापा की मौत के 6 महीने बाद राघव का जन्म हुआ था. 20-22 साल की मेरी माँ जवानी मे ही विधवा हो गयी लेकिन किसी तरह सिलाई-कताई करके हमे पाला-पोसा. Bahan Chudai Satya Katha

भाई राघव को ड्राइविंग का शौक था और उसने जैसे-तैसे ड्राइविंग लाइसेन्स भी बनवा लिया. माँ के जान-पहचान से राघव को एक सेठ ने ड्राइवर रख लिया. अब राघव उनके यहाँ कार चलता था जिससे घर मे आमदनी बढ़ गयी थी. मैं राघव से बड़ी थी.

लेकिन सिर्फ़ एक साल का फ़र्क होने की वजह से वो मुझे दीदी ना बोल कर सीमा ही बोलता था. हमारे घर मे एक पुराना मोटर-साइकिल भी था जिससे राघव घर के छोटे-मोटे काम कर देता था. एक दिन मैं घर पर खड़ी मोटर-साइकिल पर यू ही बाइक चलाने का एक्टिंग कर रही थी.

राघव ने देखा तो बोला – क्या बात है सीमा, बाइक चलाने सीखना चाहती हो क्या?

मैं- क्या तुम मुझे सीखा दोगे? मैं भी मज़ाक मे बोली.

इतने मे राघव ने मोटर-साइकिल निकाला और मुझे ज़बरदस्ती बिठा कर मैदान मे चला आया. माँ पीछे से चिल्लती रह गयी. मैदान मे आकर उसने बाइक रोकी और मुझे आगे बिठा कर खुद मेरे पीछे बैठ गया. बड़े होने के बाद पहली बार राघव मुझसे इतना सट कर बैठा था.

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जैसे ही उसने किक मारी और मेरे हाथ से ही एक्शिलेटर बड़ाई बाइक उच्छल गयी और मैं राघव के सीने पर लड़ गयी. स्कर्ट उस कर कमर पर आ गयी, मैं घबरा कर चिल्लाई — राघव.. ..! फिर राघव ने बाइक संभाला तो मैं बोली – तुमने मुझे ड्रेस भी चेंज करने नही दिया, स्कर्ट मे कोई बाइक चलती है क्या?

राघव- तो क्या हुआ, ड्रेस से क्या होता है, बाइक चलाओ ना, अभी तो कम-से-कम ड्रेस पर ध्यान मत दो.. तुम लड़की लोग होती ही ऐसी हो.. दुनिया इधर से उधर हो जाए मगर ड्रेस और मेक-अप ठीक होना चाहिए.

अब मेरी बोलती बंद हो गयी, मैं किसी तरह से बाइक चला तो रही थी लेकिन पीछे से राघव के सटने से अटपटा भी लग रहा था. उस दिन मैं ज़्यादा नही चला पाई और घर लौट गयी. उस दिन के बाद मुझे ड्राइविंग का शौक चड़ गया. अगले दिन जब मैं सलवार सूट मे बाइक चलाने गयी.

तो राघव ने दुपट्टा हटवा दिया, कहा ये दुपट्टा कही बाइक मे फस गया तो एक्सीडेंट हो जाएगा. मेरा सारा ध्यान बाइक चलाने मे था लेकिन मैं महसूस कर रही थी की राघव का लंड टाइट हो रहा है और वो मुझे कमर पर कस कर पकड़े हुए है. मैं बता नही सकती मुझे कैसा लग रहा था.

कई बार हॅंडल ठीक करने के करम मे उसका हाथ मेरी ठोस चुचियो पर भी चला जाता था. राघव बिल्कुल नॉर्मल था लेकिन मैं नॉर्मल नही लग रही थी, फिर भी मैं विरोध नही करती थी. 7-8 दिन बाइक चलाने के बाद मैं बोली – राघव क्यो ना तुम हमे कार चलाने ही सीखा दो, बाइक मे गिरने का डर लगता है.

असल मे मैं सोची की कार मे मुझे राघव के साथ सटना नही पड़ेगा और ड्राइविंग भी सिख लूँगी, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. संयोग से पहले ही दिन फिर मैं स्कर्ट-टी-शर्ट मे आ गयी. राघव कार लेकर उसी मैदान मे आया, मैं ड्राइविंग सीट पर बैठी और राघव बगल वाली सीट पर.

वो मेरी तरफ झुक कर कार स्टार्ट किया और क्लच-गियर के बारे मे बताने लगा, एसे मे उसका कंधा मेरी चुचियो पर टीका हुआ था और मेरे चेहरे से उसका सिर टच कर रहा था. फिर कार स्टार्ट हुई और एक झटके मे आगे बढ़ गयी और फिर बंद भी हो गयी. राघव तेज़ी से कार से उतरा और मेरा तरफ का गेट खोलकर मेरी ही सीट पर आ बैठा.

अब तो मैं लगभग उसकी गोद मे थी, मेरे हाथो से सटा हुआ उसका हाथ भी स्टियरिंग पर था और उसकी कोहनी मेरी चुचियो पर रग़ाद खा रही थी. फिर कार स्टार्ट करने से पहले राघव नीचे झुक कर मेरे पैरो को क्लच और ब्रेक पर रखने लगा. मेरी नंगी टांगो मे उसके कोहनी के टच से अजीब फीलिंग हो रही थी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

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फिर वो जैसे ही सीधा हुआ उसके हाथ से मेरा स्कर्ट उपर उठ गया और मेरी पेंटी सॉफ दिख गयी, मैं जल्दी से उसे ठीक की और राघव को देखने लगी, वो झेप गया. एक दो राउंड कार चलाने के बाद अचानक जोरदार बारिश होने लगी और हमलोग बीच मैदान मे कार रोक दिए. कार रोकने के बाद भी राघव वैसे ही चिपका बैठा रहा तो मैं बोली – अब तो अलग सीट पर बैठो…

राघव- कैसे निकलु, बारिश हो रही है ना, और फिर मैं अपनी बड़ी बहन की गोद मे बैठा हू, इसमे ग़लत क्या है…

राघव एक दम नॉर्मल बिहेव कर रहा था, पर मैं अनईज़ी फील कर रही थी, फिर मैं अंदर ही अंदर पिछली सीट पर चली गयी, बाहर घनघोर बारिश हो ही रही थी. बातें बनाते हुए राघव भी पिछली सीट पर आ गया और मेरे से सट कर बैठ गया, फिर बोला – उस दिन बाइक से तेरे घुटनो मे चोट लगी थी ना, अब जख्म कैसा है?

कहते ही स्कर्ट सरकाकर वो मेरा जख्म देखने लगा, जख्म अंदर की ओर घुटनो से उपर तक करीब 3-4 इंच था. वो उसे सहलाने लगा, उसकी उंगली मेरी जाँघ के अंदरूनी हिस्से मे फिरने लगा. हे भगवान! मैं ना तो कुछ बोल पा रही थी ना ही उसे रोक पा रही थी, कुछ ही देर मे मैं अपनी उपरी जाँघ पर उसकी पूरी हथेली को महसूस करने लगी.

ये क्या! राघव की उंगली तो मेरी पेंटी को टच करने लगी, वो भी बुर वाले हिस्से पर, मैं काँपने लगी, साँसे तेज़ हो गयी, धड़कन बढ़ गयी. अचानक उसने मेरा सिर अपनी गोद पर रख दिया और पैर उठा कर सीट पर कर दिया, मैं तो पुतले की तरह एक दम ढीली हो गयी थी.

उसकी गोद मे गिरते ही मुझे पहली बार किसी पुरुष गंध का एहसास हुआ और गालो पर उसके खड़े लंड की चुभन फील हुई. राघव ने पहले मेरे गालो को सहलाया और मेरा एक हाथ अपनी पीठ पर रख दिया, उसका दूसरा हाथ मेरे जाँघो को सहलाने लगा, मैं लगभग बेहोश थी, मेरे दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया था.

उसकी उंगली मेरी पेंटी के किनारे से अंदर की ओर जाने लगी, मुझे 105 डिग्री फीवर की कंपकपि आ गयी, मेरी दोनो चुचियाँ उसके जाँघ से दबी हुई थी. बुर से कुछ गरम तरल प़ड़ार्थ निकलता महसूस हुआ, शायद पेंटी का चुत वाला हिस्सा भींग चुका था, फिर राघव की एक उंगली पेंटी के उपर से ही मेरी बुर मे घुसने लगी.

उसका लंड पेंट के अंदर टेंट की तरह खड़ा हो गया था. लेकिन जैसे ही राघव ने मुझे उठा कर अपने सीने से सटाया और मेरे लिप्स पर किस करना चाहा, मुझे होश आ गया और मैने उसे परे धकेल दिया. बारिश थम चुकी थी लेकिन गजब की बात ये की राघव के चेहरे पर कोई अपराध-बोध नही था.

हम वापस घर आ गये और उस रात जब मैं मम्मी को पकड़ कर सोई तो मेरी चुचियाँ मम्मी की चुचियो को अंजाने ही दबाने लगी, मेरा हाथ बार-2 मेरी बुर पर जा रहा था और पेंटी भी कुछ नीचे सरक गयी थी. अब जब भी मैं अकेली होती मुझे कार का वो सीन परेशान करने लगता था, साथ ही मेरी बुर मे अजीब सी सुरसुरी पैदा हो जाती थी, समझ मे नही आता की क्या करू.

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मैं राघव से दूर-2 रहने लगी थी, डर लग रहा था की कही भाई-बेहन का रिश्ता कलंकित ना हो जाए. एक दिन मेरे मोबाइल पर मेसेज आया – “क्यो तड़प रही हो, जवानी को कितने दिन ठुकराओगी, आज नही तो कल बुर की आग को शांत करना ही होगा, कोई लंड नही मिल रहा तो घर पर बैंगन से ही ट्राइ करो, मज़ा आ जाएगा” ये मेसेज राघव ने ही भेजा था.

उस मेसेज के बाद से बैंगन देखते ही मेरी बुर फड़कने लगती. आख़िर एक दिन जब घर पर सब्ज़ीवला आया तो लगभग दौड़ती हुई मैं निकली और बोली – भैया एक किलो बैंगन दे दो.

मम्मी बोली – सीमा, तुम तो बैंगन की सब्जी खाती ही नही हो, फिर क्यो ले रही हो?

मैं- एक नया डिश ट्राइ करना है मम्मी.

बोलकर मैं अच्छे-2 और लंबे-2 बैंगन चुनने लगी. अगर राघव वहा होता तो समझ जाता की मैं बैंगन को एसे पकड़ रही थी जैसे किसी लंड को पकड़ रही हू. उसी दिन मैं सेक्स के इंद्रजाल मे एसे घिरी की मम्मी की नज़र बचा कर मैं एक लम्बा सा बैंगन लेकर बाथरूम मे घुस गयी.

फटाफट अपने सारे कपड़े उतरी खुद को उपर से नीचे तक निहारने और सहलाने लगी, अब ज़्यादा देर बर्दास्त करना मुश्किल हो रहा था, मैने बैंगन को प्यार से चूमा और उसे अपनी रसीली बुर मे घुसाने लगी, लेकिन ये क्या! ये तो अंदर जा ही नही रहा था.

जबकि अपने अंदाज़ा से मैं करीब 1.5 इंच घेरा वाला और करीब 7-8 इंच लम्बा बैंगन ही लाई थी. संयोग से मेरी नज़र बाथरूम मे तेल की कटोरी पर पड़ी, एक आइडिया लगाई और थोड़ा तेल चुत पर थोड़ा तेल बैंगन पर डाली, फिर ज़ोर लगा कर बैंगन को बुर मे घुसाई तो वो फिसलता हुआ मेरी बुर मे चला गया.

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लेकिन मेरे मूह से चीख निकल गयी- उई मा… मम्मी… मेरी बुर फट चुकी थी और लग रहा था जैसे बुर मे कोई गरम लोहा घुस गया हो, मैं डर और दर्द से अपनी चुचिया दबाने लगी. बैंगन अपने-आप फिसल कर नीचे गिर गया, थोड़ी राहत मिली. उधर मम्मी चीख सुनकर बाथरूम के दरवाजे पर आई-  क्या हुआ सीमा?

तब तक मैं संभाल चुकी थी, बोली — कुछ नही मम्मी, वो ज़रा फिसल गयी थी, अभी नहा कर आती हू. मैं बैंगन से चुदने का ख्याल छोड़ चुकी थी. मैं बैंगन को उठा कर बाथरूम की छोटी खिड़की से फेकने ही वाली थी की मेरे अंदर का सेक्स फिर उभर गया. डरते-2 मैने बैंगन को फिर से बुर के अंदर डाला.

पहले एक इंच, फिर 3 इंच तक और फिर एक झटके मे लगभग 6 इंच तक, थोड़ा दर्द तो हुआ लेकिन बुर के अंदर कही कुछ मस्ती-सी भी आई, मैं बैंगन का पूछ पकड़ कर उसे घूमाने लगी, चुत मे आनंद की एक लहर दौड़ गयी, जब आधा बैंगन बाहर निकली तो देखी की उस पर खून लगा है जो तेल से मिक्स होकर हरे-हरे बैंगन पर लाल-लाल मोतियो की तरह चमक रहा था.

चुदाई का नशा चढ़ने लगा था और मैं बैंगन को अंदर-बाहर करने लगी. मुश्किल से 1-2 मिनिट मे ही लगा की मेरी बुर से कुछ छुटा, असल मे मैं झड़ गयी थी और मस्ती से अपने होठ काटने लगी, एक हाथ चुचियो को मसलने लगा और अंजाने ही पूरा बैंगन बुर मे समा चूका था. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

अब तो बैंगन मेरी रोज की ज़रूरत बन गयी थी. एक बार घर पर कुछ गेस्ट आ गये तो मुझे बैंगन से चुदने का मौका नही मिल पा रहा था. मेरी बुर मे खुजली हो रही थी, जब बर्दास्त करना मुश्किल हो गया तो मैं चुपके से एक मुड़ा हुआ बैंगन लेकर बाथरूम मे घुस गयी और उसे आधा बुर मे घुसा कर पेंटी चढ़ा ली.

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स्कर्ट के कारण बाहर से कुछ पता नही चलता था लेकिन क्या बताउ यारो, मैं तो दिन भर गान-गाना रही थी, सच मे एसी मस्ती तो चुदने मे भी नही थी, चलते-फिरते मेरी बुर के अंदर बैंगन अपना काम कर रहा था, मैं दिन भर मे 3-4 बार झड़ चुकी थी, वो भी सब के सामने. सिर्फ़ झड़ने वक्त मेरी आँखे एक पल को बंद हो जाती थी जिसे कोई गौर नही कर पाता था. आख़िर रात मे मैं उसे बुर से निकल कर सब्जी मे मिला दी जिसे साहबो ने मज़े से खाया. सोते समय एक बड़ा और मोटा सा बैंगन लेकर अपने कमरे मे बंद हो गयी.

और उसे अपनी बुर मे घुसा कर चुदती रही, नींद आने तक मैं 4-5 राउंड चुद गयी. मैं पूरी तरह से चुद़क्कड़ बन चुकी थी वो भी बिना भाई-बहन के रिश्ते को कलंकित किए हुए, लेकिन भाई राघव का एहसान तो मानना ही पड़ेगा की उसी ने मुझे बैंगन से संभोग का रास्ता दिखाया. सहेलियो, अब तक नही की हो तो एक बार बैंगन का फ़ॉर्मूला ट्राइ करके देखो, मज़ा आ जाएगा. नेक्स्ट पार्ट मे बताउँगी की कैसे अपनी बुर को बैंगन गाजर और मूली का सलाद खिलाते-2 आख़िर मे मैं भाई राघव से चुद ही गयी.

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