Desi Mahila Chudai Story
मेरा नाम जीतेन्द्र है मैं एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में कर्मचारी हूँ। आये दिन ऑफिस के काम से मुझे मुंबई से बाहर जाना पड़ता है। एक दिन मुझे काम के सिलसिले में हरियाणा जाना पड़ा। वहाँ एक प्राइवेट ऑफिस में मुझे उनके खाता-बही की जाँच करनी थी। हरियाणा पहुँचकर अगले दिन मैं उस ऑफिस में गया। Desi Mahila Chudai Story
ऑफिस का मालिक मिस्टर किरपाल सिंह था, जो करीब 42 साल के थे। मैं उनके ऑफिस पहुँचा। उनका घर और ऑफिस साथ-साथ ही था। उन्होंने मेरे लिए पानी मँगवाया, तो एक महिला, जो लगभग 35 साल की होगी, गोरा रंग, सुडौल फिगर वाली, पानी लेकर आई। मिस्टर किरपाल सिंह ने परिचय करवाया, “ये मेरी पत्नी आकृति हैं।”
मैं तो बस उनकी पत्नी को देखता ही रह गया, क्योंकि दोनों की पर्सनैलिटी में जमीन-आसमान का फर्क था। आकृति काफी आकर्षक महिला थी। चाय-पानी लेने के बाद हम अपने काम में लग गए। शाम को काम खत्म करके जब मैं होटल जाने लगा, तो किरपाल बोले, “साहब, रात का खाना मेरे घर ही खा लो।”
मैंने कहा, “आज नहीं, कल शाम का खाना आपके साथ होगा।” फिर मैं होटल चला आया। फ्रेश होकर मैं व्हिस्की का पैग पी रहा था और टीवी पर ‘वर्दी’ पिक्चर देख रहा था। उसमें जब जैकी श्रॉफ माधुरी दीक्षित को खींचकर अपने ऊपर लेटा देता है, तब हल्की-सी झलक से माधुरी के स्तन दिखते हैं।
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उस सीन को देखते-देखते मुझे आकृति की याद आई। आकृति को याद करके मैं अपना लंड हिला रहा था। अगले दिन मैं फिर मिस्टर किरपाल के ऑफिस गया। वहाँ फिर आकृति चाय और पानी लेकर आई। हम दिनभर काम करते रहे और शाम को उनके घर खाना खाने का न्योता था।
मैं और मिस्टर किरपाल पहले कुछ पैग व्हिस्की के पिए, फिर खाने के लिए नीचे बैठ गए। उनकी पत्नी हमें खाना परोस रही थी। मैं और मिस्टर किरपाल आमने-सामने बैठे थे। आकृति जब परोसते वक्त झुकती, तो उसके ब्लाउज से उसके मोटे-मोटे उरोज दिखाई पड़ रहे थे।
मैं एकटक उसके ब्लाउज से उसके स्तनों के दर्शन कर लेता था। तीन-चार बार ऐसा हुआ। एक बार जब मैं उसके उरोजों को एकटक देख रहा था, तभी वह भी मुझे देखने लगी। हम दोनों की नजरें जब आपस में टकराईं, तो मैंने मुस्कुराते हुए धीरे से “सॉरी” कहा। वह मुस्कुराकर चली गई।
थोड़ी देर बाद वह आकर मिस्टर किरपाल के पीछे खड़ी होकर मेरी ओर देख रही थी। मैंने उसकी ओर देखा, तो वह मुस्कुरा रही थी। खाना खाने के बाद मिस्टर किरपाल मुझे होटल तक छोड़ने आए। सुबह जब मैं नहा-धोकर तैयार हो रहा था, तभी किरपाल का फोन आया।
उन्होंने कहा, “साहब, मुझे जरूरी काम से माल लेने के लिए दिल्ली जाना पड़ रहा है। लेकिन आप चिंता न करें, मेरी पत्नी आपको खाता-बही दिखा देगी। अगर आपको कोई शंका हो, तो मुझे फोन कर लेना, मैं समझा दूँगा।” मैंने कहा, “ठीक है।” करीब 10 बजे मैं उनके ऑफिस पहुँच गया। आकृति ने दरवाजा खोला और अंदर आने को कहा।
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मैंने पूछा, “किरपाल जी गए क्या?” उसने कहा, “हाँ, एक घंटे पहले ही निकल गए।” बाद में मैं सारी फाइलें और बिल बुक लेकर जाँच करने बैठ गया। थोड़ी देर बाद आकृति चाय लेकर आई। मैंने चाय ली और उसकी ओर देखा। वह मुस्कुराई और मेरे सामने बैठ गई। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
हम थोड़ी देर बात करने लगे। बात करते-करते उसने अचानक पूछा, “कल खाते समय क्या देख रहे थे आप?” मैंने अनजान बनते हुए पूछा, “कब?” तो वह बोली, “आपने सॉरी क्यों कहा था?” मैंने हिम्मत करके पूछा, “तुम्हें कोई सुंदर चीज दिख जाए, तो तुम देखोगी या नहीं?”
उसने जवाब दिया, “जी भरकर देखूँगी, हाथ लगाकर देखूँगी।” ऐसा बोलकर वह चली गई। मेरी भी थोड़ी हिम्मत बढ़ी। थोड़ी देर बाद हिम्मत करके मैं उसके पीछे किचन में गया। वह खाना बनाने की तैयारी कर रही थी। मैंने पीछे से उसकी कमर में हाथ डाले और उसके स्तनों को पकड़ लिया। वह घबरा गई।
वह बोली, “ये क्या कर रहे हो आप?” मैंने कहा, “कल जो खूबसूरत चीज मैंने पूरी तरह से देखी नहीं, उसे हाथ लगाकर देख रहा हूँ।” वह मेरी ओर घूम गई और साड़ी का पल्लू ब्लाउज से हटाते हुए बोली, “लो, देख लो, जी भरकर देखो।” मैंने एक हाथ उसके स्तन पर रखा और ब्लाउज के ऊपर से ही दबाने लगा।
उसने मेरे गले में हाथ डाला और मेरे होंठों को अपने करीब लाकर चुंबन करने लगी। हम दोनों गर्म होने लगे। थोड़ी देर बाद मैंने उसका ब्लाउज खोल दिया। वह बोली, “चलो, बेडरूम में चलते हैं।” मैंने उसे उठाया और बेडरूम में ले गया। वहाँ जाकर हम दोनों काबू में न रह सके। मैंने उसका ब्लाउज उतार दिया।
फिर मैंने अपने कपड़े निकाल दिए और पूरा नंगा हो गया। वह भी अब सिर्फ पेटीकोट में थी। मैंने कहा, “इसे क्यों पहन रखा है?” ऐसा कहकर मैंने एक झटके से उसके पेटीकोट का नाड़ा खींच लिया। पेटीकोट गिरकर पैरों के पास आ गया। एक संगमरमर का दूध में नहाया हुआ बदन मेरे सामने था।
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मेरा लंड पूरा तन गया था। मेरे लंड को देखकर उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। वह बोली, “बाप रे, कितना मोटा और लंबा है! ऐसा तो मैंने आज तक नहीं देखा।” वह मेरे पैरों के पास घुटनों के बल बैठ गई। कुछ देर तक लंड को हाथ में पकड़कर सहलाती रही।
फिर उसने मेरा लंड मुँह में ले लिया और चूसने लगी। 15 मिनट चूसने के बाद अचानक मेरे लंड ने उसके मुँह में पानी छोड़ दिया। वह मस्ती में चट-चटकर पानी पीने लगी और फिर से मेरे लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी। कुछ ही मिनटों में मेरा लंड फिर से पूरी तरह से कड़क हो गया।
मैंने उसे बेड पर लिटाया और उसके ऊपर जाकर मेरा लंड उसकी चूत पर रखा। मैंने जोर से धक्का दिया। वह चीख पड़ी। थोड़ी देर मैं वैसे ही लंड डाले पड़ा रहा और उसके स्तनों को चूस रहा था। फिर मैं आहिस्ता-आहिस्ता लंड अंदर-बाहर करने लगा। दोनों को मजा आ रहा था।
वह बोल रही थी, “जीतेन्द्र, मेरे राजा, और जोर से करो, फाड़ दो मेरी चूत, प्लीज, मुझे मसल डालो आज। आआआआआआआ ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह!” करीब 40-50 धक्कों के बाद मैं झड़ गया। इस दौरान वह दो बार झड़ चुकी थी। जैसे ही मैं हटा, वह खड़ी होकर बाथरूम में जा रही थी।
मैंने उसे खींचा और बेड पर ले आया। उसे लिटाकर मैंने उसके मुँह में लंड दे दिया। वह फिर चूसने लगी। थोड़ी देर बाद जब लंड तन गया, तो मैंने उसे टेबल के सहारे उल्टा खड़ा किया और मेरे लंड पर खूब सारा थूक लगाकर उसकी गुदा के छेद पर सुपाड़ा लगाया।
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वह बोल पड़ी, “प्लीज, गाँड मत मारो, बहुत दर्द होता है। मैंने कभी नहीं करवाया।” मैंने कहा, “दर्द थोड़ी देर होगा, फिर मजा आएगा।” लेकिन वह नहीं मान रही थी। मैंने उसी दौरान अपने लंड को धक्का दे दिया। वह आधा लंड उसकी गाँड में घुस गया। वह चीख पड़ी, “मार गई, आआआआआआआआआ, बाप रे!” उसकी आँखों में आँसू आ गए थे। वह गिड़गिड़ा रही थी, “मत करो!” मैंने दूसरा धक्का दिया और पूरा लंड उसकी गाँड में घुस गया। थोड़ी देर मैं रुका। मैंने उसकी चूत के दाने को सहलाया और उसके स्तनों को मसल रहा था।
थोड़ी देर में वह गर्म हो गई। मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए। करीब 20 से 25 मिनट तक मैंने उसकी गाँड मारी। फिर हम अलग हो गए। दोनों साथ में बाथरूम में जाकर पेशाब किए। हम अपना काम करने लगे। शाम के 5 बजे मैंने काम पूरा किया और रात खाना खाने के बाद सुबह तक करीब 4-5 बार उसे चोदा और गाँड भी मारी। वह बहुत खुश थी। मैंने उनकी फाइल में कोई रिमार्क नहीं लगाया। जब किरपाल वापस आया, तो वह बहुत खुश था।
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