Village Incest
रविन्द्र सिंह अपने गाँव में सबसे आमीर आदमी है। उसकी बीवी का देहांत हो चुका था। मगर उसका एक बेटा हिमांशु और छोटी बेटी निवेदिता दोनों ही उसके कहने से बाहर थे। पैसों की कोई कमी ना होने के कारण हिमांशु सारा दिन घर से बाहर रंडी-बाजी करता, और देर रात से घर आता। Village Incest
उधर रविन्द्र सिंह की बेटी निवेदिता भी एक नंबर की चालू लड़की थी। वो घर से तो कॉलेज जाती, मगर कभी किसी लड़के के साथ तो कभी किसी लड़के के साथ होटल में घुसी रहती थी। उसका रंग तो थोड़ा सांवला था, मगर देखने में एक दम हॉट और सेक्सी थी।
किसी को भी चूत दे देती थी, यहाँ तक कि अपने भाई के दोस्तों और अपने पापा के दोस्तों से भी चुद चुकी थी। अगर रविन्द्र सिंह की बात की जाए, तो वो भी अपने जमाने में कुछ कम नही था। उसने भी गाँव की बहुत सारी औरतों को चोदा था.
और एक बार तो जब वो अपने गाँव की एक औरत को अपने घर में चोद रहा था, तो हिमांशु और निवेदिता दोनों ने उसको देख लिया था। तभी से रविन्द्र सिंह उनको कुछ भी ग़लत करने से रोक नहीं पाया, और अब तो जवानी की दहलीज पार करते ही दोनों ने अय्याशी की हदें ही पार कर दी थी।
एक बार जब हिमांशु ने निवेदिता को अपने ही किसी दोस्त के साथ एक होटल में देख लिया, तो उसने घर आकर निवेदिता को डांटना चाहा। हिमांशु गुस्से से निवेदिता के रूम में गया, और जैसे ही उसने दरवाजा खोला, तो निवेदिता जांघों तक कपड़े की निक्कर और शर्ट पहन कर पेट के बल बैड पर लेटी हुई थी।
उसकी मोटी जांघे और ऊपर को उठे हुए चूतड़ और चूतड़ों की मदमस्त गोलाई देख कर हिमांशु की नज़र डगमगा गयी। निवेदिता की एक टाँग सीधी और दूसरी को उसने एक साइड को मोड़ रखा था, जिससे उसकी टाँगों के बीच वाला हिस्सा चोड़ा हो चुका था।
भले ही निवेदिता की चूत उस निक्कर के निचले हिस्से से नही दिख रही थी, मगर निक्कर के दोनों साइड से दिख रही निवेदिता की छोटी-छोटी झांटे और चूत की दरार के साथ चिपकी हुई निक्कर किसी गरम चूत का एहसास करवा रही थी।
हिमांशु जितने गुस्से से अंदर आया था, उतना ही वो अपनी बहन का नीचे वाला हिस्सा देख कर शांत हो गया था। फिर वो धीरे-धीरे निवेदिता के पास आया, और निवेदिता की मदमस्त जवानी को अपनी निगाहों से मापने लगा। जितनी सेक्सी और हॉट उसको अपनी बहन दिख रही थी, उसने अभी तक ऐसी किसी भी लड़की को नहीं चोदा था।
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उसकी पतली कमर और फिर उपर को उठे हुए चूतड़ देख कर एक बार निवेदिता के चूतड़ों को मसलने का उसका मन हुया। मगर फिर उसको एहसास हुआ, कि वो अपनी बहन को ही ऐसी गंदी निगाहों से देख रहा था। हिमांशु ने जल्दी से अपनी नज़र को हटाया, और निवेदिता के चेहरे की तरफ देखा।
निवेदिता की आँखे बंद थी, और वो गहरी नींद में सो रही थी। हिमांशु ने निवेदिता को आवाज़ लगाई, मगर दिन भर की चुदाई से थक चुकी निवेदिता को कहाँ आवाज़ सुनने वाली थी। हिमांशु ने फिर से एक बार निवेदिता को आवाज़ लगाई, मगर फिर भी कुछ फ़ायदा नही हुया।
तब हिमांशु ने निवेदिता के कंधे को हाथ से हिलाया, तो पेट के बल लेटी हुई निवेदिता ने अपनी करवट बदली, और सीधी होकर लेट गयी। मगर अब तो कुछ और ही नज़ारा हिमांशु की आँखों के सामने आ चुका था। निवेदिता की शर्ट के उपर वाले दो बटन खुले थे, और उसके दोनों बूब्स का बीच वाला आधा हिस्सा साफ नज़र आ रहा था।
उसकी सोने की चेन दोनों बूब्स के बीच में दबी हुई थी। निवेदिता ने ब्रा नहीं पहन रखी थी, इसलिए उसकी शर्ट के अंदर से ही उसके दोनों निप्पल तने हुए दिख रहे थे। निवेदिता के मोटे चूचों को देख कर हिमांशु की आँखे उसके चूचों पर ही टिक गयी।
फिर वो अपनी बहन के एक-एक अंग को बड़ी शिद्दत से देखने लगा। निवेदिता के खुले हुए बाल, उसका सुंदर चेहरा, मदमस्त गोल-गोल मोटे चूचे, और फिर नीचे से शुरू होती उसकी पतली कमर और एकदम सीधा स्पॉट पेट, और बीचो बीच बनी हुई सेक्सी नेवल देखकर हिमांशु का मन हुया कि वो निवेदिता के पेट को अपने होंठों से चूम ले।
मगर वो ऐसा नही कर पाया, और उसकी नज़र निवेदिता की चूत की तरफ बढ़ने लगी। निवेदिता की निक्कर अब उसकी चूत के और भी साथ चिपक गयी थी, और उसकी फूली हुई चूत अब निक्कर के महीन कपड़े से साफ दिखाई पढ़ रही थी।
दोनों जांघों के बीच में फसी निक्कर और फूला हुआ चूत का हिस्सा हिमांशु के लंड को एक बार झटका दिला चुका था। उसने अपने हाथ से लंड को सहलाना शुरू कर दिया, और एक बार फिर से निवेदिता के चेहरे की तरफ देखा। निवेदिता अब भी सो रही थी.
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निवेदिता का सुडोल बदन और उसकी जवानी देख कर हिमांशु को अपने दोस्तों से जलन हो रही थी, और वो उनको खुशनसीब भी समझ रहा था, जिन्होनें इतनी खूबसूरत कयामत को अपना लंड खिलाया था, और निवेदिता ने भी उनसे निवेदिता-निवेदिता अपनी चुदाई करवाई थी।
हिमांशु के मन में निवेदिता के लिए काम वासना का तूफान उमड़ रहा था। मगर वो डर रहा था कि अगर निवेदिता जाग गयी तो वो कभी भी अपने भाई के साथ सेक्स करने के लिए राज़ी नही होगी। वो निवेदिता को हाथ भी नही लगा पा रहा था, और उसके बदन से अपनी नज़र भी नही हटा पा रहा था।
फिर उसकी नज़र दरवाजे पर पड़ी। दरवाजा खुला हुआ था। उसने जल्दी से दरवाजा बंद किया, और फिर से निवेदिता के नज़दीक आकर खड़ा हो गया, और अपने लंड को सहलाने लगा। कुछ ही पलों में उसका लंड इतना टाइट हो गया, कि अब उसे पैंट के अंदर रख पाना उसे मुश्किल लग रहा था।
निवेदिता घोड़े बेच कर सो रही थी, जिससे हिमांशु का हौंसला और भी बढ़ रहा था, और उस पर अब तक वो यह भी जान चुका था कि निवेदिता पहले भी चुद चुकी थी, इस लिए उसको चोदने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। हिमांशु ने अपना लंड पैंट से बाहर निकाला, और निवेदिता के चेहरे की तरफ देख कर लंड को आगे पीछे हिलाया.
और फिर निवेदिता के चेहरे के पास बैठ गया, और उसने धीरे से निवेदिता के बूब्स पर अपना हाथ रख दिया। निवेदिता की तरफ से कोई हिल-जुल ना देख कर उसने निवेदिता की शर्ट के बाकी बटन भी खोलने शुरू कर दिए, और धीरे-धीरे उसके सारे बटन खुल गये।
अब निवेदिता की दोनों चूचे हिमांशु के सामने नंगे खुले पड़े थे। वो आहिस्ता से झुका, और निवेदिता के एक चूचे के निपल को अपने मुँह में ले लिया और एक हाथ से दूसरे चूचे को पकड़ कर दबाने लगा। अब निवेदिता की तरफ से हिल-जुल हुई। उसे अपने बूब्स पर सरसराहट महसूस हुई, तो उसने अपने बूब्स पर अपना हाथ घुमाया.
जिससे डर कर हिमांशु जल्दी से पीछे हट गया, और निवेदिता के चेहरे की तरफ देखने लगा। मगर निवेदिता अब भी सो रही थी। हिमांशु ने फिर से अपनी पैंट से बाहर निकाले हुए लंड को हाथ में पकड़ा और हिलाने लगा। उसका लंड निवेदिता का मदमस्त बदन देख कर लोहे की रॉड जैसा हो चुका था, और ऐसे तप रहा था कि उसको अब निवेदिता की चूत का पानी ही ठंडा कर सकता था,
अब हिमांशु से और नही रहा गया, और उसने अपने मन में निवेदिता को चोदने की ठान ली। उसने जल्दी से अपनी पैंट उतारी और निवेदिता की दोनों टाँगों के नज़दीक बैठ गया। फिर वो उसकी निक्कर की इलास्टिक में अपनी उंगली फसा कर उसको नीचे सरकाने लगा.
और उसके चूतड़ों के नीचे दबी हुई निक्कर को खींच कर उसकी जांघों तक ले आया, और फिर उसके पांव से निकाल दिया। निवेदिता अब हिमांशु के सामने बिल्कुल नंगी पड़ी थी, हिमांशु का तना हुया लंड झटकों के साथ उपर नीचे हो रहा था। हिमांशु ने निवेदिता की टाँगों को चौड़ा किया, और उसकी दोनों टाँगों के बीच में बैठ गया, और अपने लंड का सुपाड़ा उसकी चूत के उपर टिका कर चूत के साथ रगड़ने लगा।
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निवेदिता को ऐसे महसूस हुआ, जैसे सपने में कोई उसकी चुदाई करने वाला था, और उसकी चूत कुछ ही देर में हल्का-हल्का पानी छोड़ती हुई गीली हो गयी। मगर चूत के साथ हो रही हिल-जुल के कारण निवेदिता की नींद भी खुलने लगी थी, और वो अपने बदन को अंगड़ाई ले के कसने लगी थी।
हिमांशु को भी पता चल गया था, कि निवेदिता की नींद खुलने वाली थी। उसने सोचा कि अगर निवेदिता जाग गयी, तो उसका लंड खड़े का खड़ा ही रह जाएगा, और निवेदिता उसको अपने साथ कभी सेक्स नहीं करने देगी। इस लिए उसने निवेदिता के पूरी तरह उठने से पहले ही अपना तना हुआ लंड निवेदिता की चूत में पेल दिया।
निवेदिता की गीली चूत में नाग जैसा काला लंड बिना किसी अड़चन के फनफनाता हुआ अंदर घुस गया, और लंड के पीछे लटक रहे दो गोल-गोल अंडे चूत के मुँह के पास जाकर सट गये। वैसे तो निवेदिता ऐसे कई लंड अपनी चूत में ले चुकी थी, और उसकी चूत का मुँह भी खुल चुका था।
इस लिए उसको दर्द तो होने वाला नहीं था, मगर अचानक हुए इस परहार से निवेदिता एक बार उछल पड़ी, और अपने बदन को कसते हुए अपनी चूत को अपनी टाँगों में समेटना चाहा। मगर टाँगों के बीच में तो हिमांशु था, इस लिए उसने अपने दोनों हाथ भी अपनी चूत की तरफ बड़ा लिए।
निवेदिता के हाथों में हिमांशु का लंड आ गया, और उसकी आँखें भी खुल चुकी थी। अपने भाई का लंड अपनी चूत में घुसा देख निवेदिता के होश उड़ गये, और वो जल्दी से पीछे हटने लगी। मगर हिमांशु ने निवेदिता की कमर को कस के पकड़ रखा था।
उसने लंड को बाहर निकलने ही नही दिया, बल्कि एक और झटका लगते हुए निवेदिता की उपर ही लेट गया। निवेदिता अपने भाई की आँखों में देखने लगी और हिमांशु अब बिना कुछ बोले ही निवेदिता को चोदने लगा। निवेदिता की चूत में लंड अंदर-बाहर होने लगा था.
तो निवेदिता ने भी अपना नीचे वाला होंठ अपने दाँतों के नीचे दबा लिया, और फिर लम्बी-लम्बी साँसे लेते हुए मुँह से आअह्ह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह की आवाज़ें निकालने लगी। उसने अपने दोनों हाथों से बैड की चादर को पकड़ लिया, और अपने जिस्म को कसते हुए अपनी चुदाई का मज़ा लेने लगी।
निवेदिता तो पहले से ही ताकतवर लंड की दीवानी थी, और हिमांशु का अकड़ा हुए लोहे की रॉड जैसा लंड उसकी चूत में था। फिर वो भला ऐसे लंड को कैसे मना कर सकती थी। वो जान चुकी थी की उसके भाई का लंड उसकी चूत के लिए ही बना था।
अब वो भी अपनी कमर को हिमांशु के झटकों के साथ हिला-हिला कर अपनी चुदाई का मज़ा लेने लगी। उसके ऐसा करने से हिमांशु को भी मज़ा आने लगा, और उसने निवेदिता के होंठों को अपने मुँह में ले लिया, और अपने हाथों से निवेदिता को बूब्स को मसलने लगा।
निवेदिता की सिसकारियाँ कमरे में गूंजने लगी थी, और उसकी चूत में से फच-फच की आवाज़ें आने लगी थी। कुछ देर ऐसे ही चोदने के बाद हिमांशु ने अपना लंड निवेदिता की चूत से निकाला, और बैड के नीचे खड़ा हो गया। फिर उसने निवेदिता को भी पकड़ कर खड़ा कर दिया।
निवेदिता भी समझ गयी थी, कि अब पोज़िशन बदलने का समय हो गया था। निवेदिता भी अपने भाई के साथ नीचे खड़ी हो गयी, और फिर दोनों ने एक दूसरे को अपनी बाहों में भर लिया, और एक दूसरे के मुँह में मुँह डाल कर होंठ चूसने लगे।
फिर हिमांशु ने निवेदिता को बैड की तरफ घुमाया, और उसको घोड़ी बन जाने को कहा। निवेदिता अपने दोनों हाथ बैड के उपर रखते हुए अपने भाई के सामने घोड़ी की तरह झुक गयी। उसकी गांड को देखकर हिमांशु तो जैसे पागल हुए जा रहा था।
उसने फिर से अपना लंड हाथ में पकड़ा और निवेदिता की चूत के मुँह के उपर टिकाते हुए झटका मारा। निवेदिता की खुली हुई चूत में आधा लंड घुस गया। निवेदिता ने भी अपनी कमर को पीछे की तरफ दबा दिया, तांकि हिमांशु का लंड उसकी चूत में आसानी से घुस सके।
हिमांशु ने अपने दोनों हाथों से निवेदिता के चूतड़ पकड़ लिए, और उनको दबा-दबा कर निवेदिता की चुदाई करने लगा। निवेदिता भी अपनी कमर को हिला-हिला कर हिमांशु का साथ देने लगी। निवेदिता की चूत पूरी तरह गीली हो चुकी थी, और उसकी चूत में से फच-फच की आवाज़ हिमांशु को और भी उत्तेजित कर रही थी।
वो ज़ोर-ज़ोर से निवेदिता को चोदने लगा। निवेदिता की चूत ने भी अपना काम रस छोड़ना शुरू कर दिया था, और हिमांशु भी कुछ ही देर में झड़ने वाला था। निवेदिता ने और झुकते हुए अपने सिर को बैड के उपर रख दिया, जिससे निवेदिता की गांड और उपर उठ गयी, और उसकी चूत हिमांशु के और भी सामने आ गयी, और चौड़ी भी हो गयी।
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हिमांशु ने निवेदिता की पतली कमर को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और निवेदिता को खींच-खींच कर धक्के लगाने लगा। और फिर उसने निवेदिता की चूत में ही अपना वीर्य छोड़ दिया। उसके आखरी धक्के इतने तेज थे, कि निवेदिता की चीख तक निकल गयी, मगर कमरे से बाहर नहीं जा पाई। इस जबरदस्त चुदाई के बाद दोनों थक चुके थे, और वो वहीं पर बैड पर गिर गये, और एक दूसरे की आँखों में आँखें डाल कर देखने लगे। दोनों की आँखों से ही शरम नाम की चीज़ गायब थी, बस हवस ही दिख रही थी।
कुछ ही देर में वो दोनों एक दूसरे के नंगे बदन से खेलने लगे, और एक बार फिर से वो चुदाई के लिए तैयार हो गये। ऐसा हर रोज होने लगा था। कभी निवेदिता हिमांशु के कमरे में सोती, तो कभी हिमांशु निवेदिता के कमरे में सोता। आख़िर कितने दिन तक यह सब चोरी-चोरी होता। एक दिन रविन्द्र सिंह ने अपनी आँखों से यह सब देख लिया। मगर वो दोनों भाई बहन से इस बारे में कोई बात नहीं कर पाया। उसको एक ही रास्ता नज़र आया, कि अब हिमांशु की शादी कर दी जाए, क्योंकि निवेदिता तो अभी पढ़ती थी।