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ये कहानी साहिबा जुल्फिकार नाम की एक शादी शुदा लड़की की है. जो पेशे से एक लेडी डॉक्टर है. और आज तक अपनी जिंदगी के 28 साल गुज़ार चुकी है. साहिबा पैदा तो बनारस सिटी के पास एक गाँव में हुई मगर पाली बढ़ी वो बनारस सिटी में थी. Incest Porn
साहिबा के उस के अलावा एक बड़ी बहन और एक छोटा भाई हैं. साहिबा की बहन मुमताज उस से एक साल बड़ी है.जब कि उस का भाई आज़म अहमद साहिबा से एक साल छोटा है. साहिबा ने मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने के बाद बनारस के सरकारी हॉस्पिटल में हाउस जॉब स्टार्ट कर दी.
पढ़ाई के दौरान ही साहिबा के वालदान ने दोनो बहनों की शादी के लिए रिश्ता पक्का कर दिया था और फिर एमबीबीएस करने के तकरीबन एक साल बाद साहिबा और उस की बहन की एक ही दिन शादी हो गई. साहिबा की बहन मुमताज तो शादी के फॉरन बाद अपने हज़्बेंड के साथ मारीशस चली गई. जब के साहिबा ब्याह कर रामपुर के करीब एक गाँव में चली आई.
साहिबा के हज़्बेंड जुल्फिकार अपने इलाक़े के एक बहुत बड़े ज़मींदार थे. साहिबा ने मेडिकल कॉलेज के हॉस्टिल में रहने के दौरान अपनी कुछ क्लास फेलो लड़कियों के मुक़ाबले शादी से पहले अपने आप को सेक्स से दूर रखा था. इसलिए साहिबा अपनी शादी की रात तक बिल्कुल कंवारी थी.
शादी के बाद साहिबा सुहाग रात को अपने रूम में सजी सँवरी बैठी थी. जुल्फिकार कमरे में आए और साहिबा के पास आ कर बेड पर बैठ गये. साहिबा जो कि अपना घूँघट निकाल कर मसेहरी पर बैठी हुई थी. वो अपने शोहर जुल्फिकार को अपने साथ बेड पर बैठा हुआ महसूस कर के शरम के मारे अपने आप में और भी सिकुड सी गई.
जुल्फिकार ने जब साहिबा को यूँ शरमाते देखा तो कहने लगा कि साहिबा मेरी जान आज मुझ से शरमाओ मत अब में कोई गैर थोड़े ही हूँ तुम्हारे लिए अब तो हम दोनो मियाँ बीवी हैं. फिर थोड़ी देर जुल्फिकार ने साहिबा से इधर उधर की बाते कीं. जिस की वजह से साहिबा की जुल्फिकार से झिझक थोड़ी कम होने लगी.
थोड़ी देर बातें करने के बाद जुल्फिकार ने जब देखा कि अब साहिबा थोड़ी कम शरमा रही है तो उस ने आगे बढ़ कर साहिबा के गुदाज बदन को अपनी बाहों में भर लिया. जिस की वजह से साहिबा तो शरम से और सिमट कर रह गई.
एक मर्द का हाथ अपने जिश्म से पहली बार टच होता महसूस करके रुबीना के जिश्म में एक मस्ती सी छाने लगी। मकसूद ने रुबीना को ऊपर किया और पहले रुबीना के बालों के जूड़े को खोला और फिर रुबीना की ज्वेलरी उतारनी शुरू कर दी। ज्वेलरी उतारने के बाद मकसूद ने रुबीना के होंठों को किस किया।
ज्यों ही मकसूद के होंठ रुबीना के होंठों से मिले तो रुबीना के जिश्म में गर्मी की एक ऐसी लहर उठी, जो एक पल में सीधे उसके कोमल मम्मों के निपलों को खड़ा करती हुई उसकी सील-बंद चूत तक पहुँच गई, और उसकी चूत को पानी-पानी कर गई।
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रुबीना भी आखीरकार, एक जवानी से भरपूर लड़की थी। जिसने अपनी शादीशुदा सहेलियों से सुहागरात के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। उसके दिल में भी शादी की पहली रात के कुछ अरमान थे। इसलिये वो भी अपनी शर्मो हया को भुलाकर कुछ ही देर बाद मकसूद का साथ देने लगी।
मकसूद के होंठों और उसकी गरमजोश हरकतों ने रुबीना को मदहोश कर दिया, और इस मदहोशी के आलम में उसे पता ही नहीं चला की कब और कैसे मकसूद ने उसे और अपने आपको कपड़ों की कैद से आजाद कर दिया था। रुबीना ने जब पहली बार अपने शौहर को इस तरह अपने सामने पूरा नंगा देखा तो उसने शर्म के मारे अपनी नजरें झुका ली।
पलंग पर रुबीना मकसूद के सामने पूरी नंगी बैठी हुई थी। रुबीना के खूबसूरत कोरे बदन को देखकर मकसूद की आँखों में चमक आ गई। मकसूद ने एक पल अपनी बीवी के जिश्म का गौर से भरपूर जायजा लिया, और फिर रुबीना के जवान ब्राउन निपल को मुँह में भरकर चूसने लगा।
अपने निपलों पर मकसूद का मुँह करते ही रुबीना सिसक गई। और फिर कमरे में वो खेल शुरू हुवा जो हर नये मियां-बीवी अपनी शादी की पहली रात को एक दूसरे के साथ करते हैं। मकसूद ने रुबीना के गालों, होंठों और मम्मों को चूस-चूसकर और अपनी उंगलियों के साथ उसकी कुँवारी चूत से खेलकर रुबीना को मजे से बेहाल कर दिया।
काफी देर अपनी बीवी के जिश्म को प्यार करने के बाद मकसूद ने रुबीना की टांगों को फैलाया और फिर अपना लण्ड रुबीना की कुँवारी फुद्दी पर रखा और धीरे-धीरे अंदर डालने की कोशिश करने लगा। रुबीना की कुँवारी चूत अपने शौहर का बड़ा लण्ड ले ही नहीं पा रही थी, और वो चिल्ला उठी- “हाईई नहीं मकसूद आह्ह… प्लीज़्ज़… निकाल दो, मुझे बहुत दर्द हो रहा है…” और अपने शौहर को रुकने का कह रही थी।
मगर मकसूद उसकी बात सुनने को तैयार नहीं था। मकसूद ने एक झटका दिया और पूरा लण्ड अपनी बीवी की चूत में डाल दिया। दर्द की शिद्दत से रुबीना के तो आँसू ही निकल गये। पर वो चीख भी नहीं सकी। क्योंकी मकसूद ने रुबीना के मुँह में मुँह डालकर उसके मुँह को बंद कर दिया था।
जब दर्द की शिद्दत थोड़ा कम हुई तो मकसूद ने अपना मुँह रुबीना के मुँह से हटाते हुये कहा- “ऐसा करना पड़ता है, वर्ना तुम दर्द नहीं सह पाती। अब आगे दर्द नहीं होगा। क्योंकी अब तुम्हारी सील फट गई है, और उसमें से खून भी निकल रहा है…” फिर मकसूद ने अपने झटकों की स्पीड बढ़ा दी।
अब रुबीना को भी दर्द कम होने के साथ-साथ मजा आने लगा और वो सिसकते हुये कहती रही- “जानू धीरे डालो मजा आने लगा है…”
जुल्फिकार अपनी बीवी की बात सुन के जोश में आ गया और तेज़ तेज़ झटके देने लगा और साथ ही साहिबा के मम्मो और निपल्स को भी काट रहा था. उस ने तो साहिबा के मम्मो ऑर निप्पलो को काट काट कर सूजा दिया. आख़िर कुछ टाइम की चुदाई के बाद जुल्फिकार साहिबा की चूत में ही डिस्चार्ज हुआ और साहिबा के उपर ही लेट गया.
इस के बाद जुल्फिकार पूरी रात ना खुद सोया और ना ही साहिबा को सोने दिया और उसे हर ऐंगल से चोदा .कभी घोड़ी बना कर तो कभी खड़ा करके, कभी सीधा और कभी साइड से. सुहाग रात को जुल्फिकार ने साहिबा को सेक्स का एक ऐसा नया और मजेदार चस्का लगाया कि वो अपने शोहर और सेक्स की दिवानी हो गई.
साहिबा की शादी शुदा जिंदगी का आगाज़ बहुत अच्छा हुआ था और वो अपने ससुराल में बहुत खुश थी. हालाँकि साहिबा के ससुराल में किसी चीज़ की कोई कमी नही थी. मगर फिर भी साहिबा का दिल अपनी नौकरी छोड़ने को नही कर रहा था.
साहिबा ने जब अपने शोहर जुल्फिकार और ससुराल वालों से इस बारे में बात की. तो उस के शोहर या ससुराल वालों को उस की नोकरी जारी रखने पर कोई ऐतराज नही था. इसलिए शादी के बाद साहिबा ने अपना ट्रान्स्फर हॉस्पिटल रामपुर में करवा कर अपनी जॉब जारी रखी.
अपनी शादी के 6 महीने बाद ही साहिबा को इस बात का ईलम हो गया. कि अक्सर बड़े ज़मींदारों की तरह उस के शोहर जुल्फिकार भी उन के खेतों में काम करने वाले अपने मजदूरों की बिवीओ से लेकर गाँव की कई और औरतों से नाजायज़ ताल्लुक़ात रखते हैं.
साहिबा को इस बात के बारे में पता चलने के बाद दुख तो बहुत हुआ. लेकिन साहिबा ना तो अपने शोहर को इन कामों से रोक नही सकती थी. और ना ही उस में इतनी हिम्मत थी कि वो अपने शोहर से इस बारे में कोई बात भी करती. खुद एक ज़मींदार घराने से ताल्लुक होने की वजह से साहिबा ये बात खूब जानती थी. कि उन जैसे ज़मींदार घरानों में ये सब कुछ चलता है.
इसलिए साहिबा ने शुरू शुरू में ना चाहते हुए भी अपने शोहर के इन नाजायज़ कामों को नज़र अंदाज करना शुरू कर दिया. साहिबा की शादी को अभी 8 महीने ही गुज़रे थे कि एक दिन वो हॉस्पिटल से जल्दी घर आ गई.
साहिबा जब अपनी गाड़ी से उतार कर हवेली में आई तो हवेली में काफ़ी खामोशी थी. उस ने घर में काम करने वाली एक नौकरानी से पूछा कि सब लोग किधर हैं तो नौकरानी ने बताया कि उस के सास ससुर उस की दोनो ननदों के साथ सहर शॉपिंग के लिए गये हैं.
साहिबा काफ़ी थकि हुई थी इसलिए वो घर के उपर वाली मंज़िल पर अपने रूम की तरफ चल पड़ी. ज्यूँ ही साहिबा अपने रूम के पास पहुँची तो उसे अपने रूम से अजीब सी आवाज़े सुनाई दी. जिस को सुन कर साहिबा थोड़ी हेरान हुई.
साहिबा ने कमरे के बंद दरवाज़े को आहिस्ता से हाथ लगाया तो पता चला कि दरवाज़ा तो अंदर से बंद है. साहिबा को कुछ शक हुआ कि ज़रूर कोई गड़ बड है. उस ने की होल से कमरे के अंदर देखने की कोशिश की पर उसे कुच्छ नज़र नही आया.
इतनी देर में साहिबा को ख़याल आया कि कमरे के दूसरी तरफ एक खिड़की बनी हुई है. जिस पर एक परदा तो लगा हुआ है मगर वो कभी कभी हवा की वजह से थोड़ा हट जाता है. और अगर वो कोशिश करे तो उस जगह से वो कमरे के अंदर झाँक सकती है.
साहिबा ने इधर उधर नज़र दौड़ाई तो उसे एक कोने में एक पुरानी कुर्सी पड़ी हुई नज़र आई. साहिबा फॉरन गई और उस कुर्सी को कमरे की खिड़की के नीचे रखा और फिर खुद कुर्सी पर चढ़ गई. ये साहिबा की खुशकिस्मती थी या फिर बदक़िस्मती कि खिड़की का परदा वाकई थोड़ा सा हटा हुआ था.
जिस वजह से साहिबा को कमरे के अंदर झाँकने का मोका मिल गया. कमरे में नज़र डालते ही अंदर का मंज़र देख कर साहिबा की तो जैसे साँसे ही रुक गई. साहिबा ने देखा कि कमरे में उस के सुहाग वाले बेड पर उस का शोहर जुल्फिकार घर की एक नौकरानी को घोड़ी बना कर पीछे से चोद रहा था.
हालाँकि साहिबा ने अपने शोहर की इन हरकतों के बारे में बहुत पहले सुन तो बहुत कुछ रखा था. मगर आज तक वो इन बातों को सुन कर दिल ही दिल में कुढती रही थी. ये हक़ीकत है कि किसी बात या काम के बारे में सुनने और उस उस काम को अपनी आँखों के सामने होता हुआ देखने में बहुत फरक होता है. इसलिए आज अपनी आँखो के सामने और अपने ही बेड पर एक नौकरानी को अपने शोहर से चुदवाते हुए देख कर साहिबा के सबर का पैमाना लबरेज हो गया और वो गुस्से से पागल हो गई.
“जुल्फिकार ये आप क्या कर रहे हैं” साहिबा ने गुस्से में फुन्कार्ते हुए अपने शोहर को खिड़की से ही मुखातिब किया.
अपनी चोरी पकड़े जाने पर जुल्फिकार और नोकारानी की तो सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गई.और उन दोनो के जिस्मों में से तो जैसे जान ही निकल गई. और उन दोनो ने अपनी चुदाई फॉरन रोक दी. जुल्फिकार को तो समझ ही नही आ रहा था कि वो क्या कहे और क्या करे.
“आप दरवाजा खोलिए में अंदर आ कर आप से बात करती हूँ” साहिबा ये कहती हुई कुर्सी से नीचे उतर कर कमरे की तरफ चल पड़ी. जितनी देर में साहिबा चक्कर काट कर कमरे के दरवाज़े पर पहुँची. जुल्फिकार नौकरानी को उस के कपड़े दे कर कमरे से रफू चक्कर कर चुका था.
जुल्फिकार ने साहिबा के कमरे में आने के बाद उस से अपने किए की माफी माँगनी चाही. मगर साहिबा आज ये सब कुछ अपनी नज़रों के सामने होता देख कर साहिबा अपने शोहर को किसी भी तौर पर माफ़ करने को तैयार नही थी.
उस दिन साहिबा और जुल्फिकार की पहली बार लड़ाई हुई और फिर साहिबा ने गुस्से में अपना समान पॅक किया और अपना घर छोड़ कर बनारस अपने माता पिता के पास चली आई. साहिबा और जुल्फिकार की नाराज़गी को एक महीने से ज़्यादा गुज़र गया और इस दौरान साहिबा अपने अम्मी अब्बू के घर में ही रही.
इस दौरान फॅमिली के बड़े बुजुर्गों ने साहिबा और जुल्फिकार को समझा बुझा कर उन दोनो की आपस में सुलह करवा दी और यूँ साहिबा को चार-ओ-नचार वापिस जुल्फिकार के पास आना ही पड़ा. अभी साहिबा को दुबारा अपने शोहर के पास वापिस आए हुए चार महीने गुज़र चुके थे.
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वैसे तो साहिबा ने घर के बुजुर्गों के कहने पर अपने शोहर से सुलह तो कर ली थी. मगर साहिबा को अब अपने शोहर से वो पहले वाला लगाव और प्यार नही रहा था. जुल्फिकार अब भी उसे हफ्ते में एक दो बार चोदता था. मगर साहिबा चूँकि अभी तक नोकरानि वाली वाकिये को भुला नही पा रही थी.
इसलिए उसे अब जुल्फिकार के साथ चुदाई का वो पहले जैसा मज़ा नही आता था. लेकिन अब कुछ भी हो उसे एक फर-मा-बर्दार बीवी बन कर अपनी जिंदगी तो गुज़ारना थी. इसलिए वो इस वकिये को भुलाने के लिए चुप चाप अपनी लाइफ में बिजी हो गई.
हॉस्पिटल में काम के दौरान साहिबा ये बात अच्छी तरह जानती थी. कि उस के कुछ मेल साथी डॉक्टर्स हॉस्पिटल की नर्सों को ड्यूटी के दौरान चोदते हैं. बनारस में अपनी हाउस जॉब और फिर रामपुर में शादी के बाद भी उस के कुछ साथी डॉक्टर्स ने साहिबा के साथ जिन्सी ताल्लुक़ात कायम करने की कोशिश की थी. मगर हर दफ़ा साहिबा ने उन की ये ऑफर ठुकरा दी.
अब जब से साहिबा ने अपने शोहर को रंगे हाथों अपनी नौकरानी को चोदते हुए पकड़ा था. तब से साहिबा के दिल ही दिल में एक बग़ावत जनम लेने लगी थी. अब नज़ाने क्यों उस का दिल चाह रहा था. कि जिस तरह उस के शोहर ने शादी के बाद भी दूसरी औरतों से नाजायज़ ताल्लुक़ात रख कर साहिबा के प्यार की तोहीन की है.
इसी तरह क्यों ना साहिबा भी किसी और मर्द से चुदवा कर अपने शोहर से एक किस्म का इंतिक़ाम ले. साहिबा के दिल में इस तरहके बागी याना ख़यालात जनम तो लेने लगे थे. लेकिन सौ बार सोचने के बावजूद साहिबा जैसी शरीफ लड़की में इस किस्म के ख़यालात को अमली-जामा पहना ने की कभी हिम्मत नही पड़ी थी.
फिर साहिबा की जिंदगी में अंजाने और हादसती तौर पर एक ऐसा वाकीया हुआ जिस ने साहिबा की जिंदगी में सब कुछ बदल कर रख दिया. साहिबा का ससुराली गाँव रामपुर से तक़रीबन एक घंटे की दूरी पर है. साहिबा के शोहर और ससुराल वाले गाँव में रहने के बावजूद खुले ज़हन के लोग हैं और वो आम लोगो की तरह अपने घर की औरतों पर किसी किस्म की सख्ती नही करते.
इसलिए साहिबा खुद ही अपनी कार ड्राइव कर के रोज़ाना अपने गाँव से शहर अपनी जॉब पर आती जाती थी. जिस पर उस के शोहर और ससुराल वालो को किसी किसम का कोई ऐतराज नही था. साहिबा की ड्यूटी ज़्यादा तर सुबह के टाइम ही होती. और वो अक्सर शाम का अंधेरा होने से पहले पहले अपने गाँव वापिस चली आती.
ये सिलसला कुछ दिन तो ठीक चलता रहा. मगर फिर कुछ टाइम बाद साहिबा के हॉस्पिटल के दो डॉक्टर्स का एक ही साथ दूसरे शहरो में तबादला हो गया. जिस की वजह से हॉस्पिटल में काम का बोझ बढ़ गया और अब साहिबा को जॉब से फारिग होते होते रात को काफ़ी देर होने लगी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
चूँकि साहिबा के गाँव का रास्ता रात के वक़्त महफूज नही था. जिस की वजह से साहिबा के शोहर जुल्फिकार साहिबा का रात के वक़्त अकेले घर वापिस आना पसंद नही करते थे. इसलिए जब कभी भी साहिबा लेट होती तो वो अपने शोहर को फोन कर के बता देती.
तो फिर या तो साहिबा के शोहर खुद साहिबा को लेने हॉस्पिटल पहुँच जाते. या फिर गाँव से अपने ड्राइवर को साहिबा को लेने के लिए भेज देते. इसी दौरान साहिबा के छोटे भाई आज़म ने भी अपनी एमबीबीएस की स्टडी मुकम्मल कर ली तो उस की हाउस जॉब भी रामपुर में साहिबा के ही हॉस्पिटल में स्टार्ट हो गई.
साहिबा ने अपने भाई आज़म को अपने घर में आ कर रहने की दावत दी. मगर आज़म ना माना और उस ने हॉस्पिटल के पास ही एक छोटा सा फ्लॅट किराए पे लिए लिया. उस फ्लॅट में एक बेड रूम वित अटेच्ड बाथरूम था.जिस के साथ एक छोटा सा किचन और लिविंग रूम था. जो कि आज़म की ज़रूरत के हिसाब से काफ़ी था.
अब आज़म के अपनी बहन साहिबा के हॉस्पिटल में जॉब करने की वजह से साहिबा को एक सहूलियत ये हो गई. कि जब कभी एमर्जेन्सी की वजह से साहिबा को रात के वक़्त देर हो जाती.या साहिबा का शोहर या ड्राइवर रात को किसी वजह से उसे लेने ना आ पाते तो साहिबा गाँव अकेले जाने की बजाय वो रात अपने छोटे भाई आज़म के पास उस के फ्लॅट में ही रुक जाती.
स्टार्ट में आज़म की ड्यूटी रात में होती और साहिबा दिन में ड्यूटी करती थी. इसलिए जब कभी भी साहिबा आज़म के फ्लॅट पर रुकती तो एक वक़्त में उन दोनो बहन भाई में से कोई एक ही फ्लॅट पर होता था. फिर कुछ टाइम गुज़रने के बाद आज़म की ड्यूटी भी चेंज हो कर सुबह की ही हो गई.
आज़म की ड्यूटी का टाइम चेंज होने से अब मसला ये हो गया कि जब साहिबा एक आध दफ़ा लेट ऑफ होने की वजह से आज़म के पास रुकी तो फ्लॅट में एक ही बेड होने की वजह से आज़म को कमरे के फर्श पर बिस्तर लगा कर सोना पड़ा.
एक बहन होने के नाते साहिबा ये बात बखूबी जानती थी कि आज़म को बचपन ही से फर्श पर बिस्तर लगा कर सोने से नींद नही आती थी. आज़म ने एक आध दफ़ा तो जैसे तैसे कर के फर्श पर बिस्तर लगा कर रात गुज़ार ही ली.
फिर कुछ दिनो बाद आज़म ने साहिबा को बताए बगैर एक और बेड खरीदा और उस को ला कर अपने बेड रूम में रख दिया. चूं कि साहिबा तो कभी कभार ही आज़म के फ्लॅट पर रुकती थी. इसलिए जब आज़म ने अपनी बहन से दूसरा बेड खरीदने का ज़िक्र किया तो साहिबा को उस का दूसरा बेड खरीदने वाली हरकत ना जाने क्यों एक फज़ूल खर्ची लगी.
जिस पर साहिबा आज़म से थोड़ा नाराज़ भी हुई. फिर दूसरे दिन साहिबा ने अपने भाई के फ्लॅट में जा कर बेड रूम में रखे हुए बेड का मुआयना किया तो पता चला कि चूँकि बेड रूम का साइज़ पहले ही थोड़ा छोटा था. इसलिए जब कमरे में दूसरा बेड रख गया तो रूम में जगह कम पड़ गई. जिस की वजह से कमरे में रखे हुए दोनो बेड एक दूसरे के साथ मिल से गये थे.
साहिबा “आज़म ये क्या तुम ने तो बेड्स को आपस में बिल्कुल ही जोड़ दिया है बीच में थोड़ा फासला तो रखते.”
आज़म: “में क्या करता कमरे में जगह ही बहुत कम है बाजी”
“चलो गुज़ारा हो जाए गा, मैने कौन सा इधर रोज सोना होता है” कहती हुई साहिबा कमरे से बाहर चली आई.
वैसे तो हर रोज साहिबा की पूरी कोशिस यही होती कि वो रात को हर हाल में अपने घर ज़रूर पहुँच जाय .मगर कभी कबार ऐसा मुमकिन नही होता था. इस के बाद फिर जब कभी साहिबा अपने भाई के पास रात को रुकती. तो वो दोनो बहन भाई रात देर तक बैठ कर अपने घर वालो और अपने रिश्तेदारों के बारे में बातें करते रहते.
इस तरह साहिबा का अपने भाई के साथ टाइम बहुत अच्छा गुज़र जाता था. ऐसे ही दिन गुज़र रहे थे. कहते हैं ना कि वक़्त सब से बड़ा मरहम होता है. इसलिए हर गुज़रते दिन के साथ साथ साहिबा का रवईया आहिस्ता आहिस्ता अपने शोहर से दुबारा थोड़ा बहतर होने लगा था.
उन दिनो गन्नों की बुआई का सीज़न चल रहा था. जिस वजह से जुल्फिकार दिन रात अपने खेतों में बिजी रहते थे. इसलिए पिछले दो हफ्तों से वो और साहिबा आपस में चुदाई नही पाए थे. लेकिन आज सुबह जब साहिबा गाड़ी में बैठ कर हॉस्पिटल के लिए निकल रही थी. तो जुल्फिकार उस के पास आ कर कहने लगा कि काम ख़तम हो गया है और अब में फ्री हूँ. फिर उस ने आँख दबा कर साहिबा को इशारा किया “आज रात को” और खुद ही हंस पड़ा.
साहिबा ने जुल्फिकार की बात का कोई जवाब नही दिया और खामोशी से अपनी गाड़ी चला दी. बेशक साहिबा जुल्फिकार के सामने खामोश रही थी. मगर हॉस्पिटल की तरफ गाड़ी दौड़ाते हुए साहिबा ने बेखयाली में जब अपनी चूत पर खारिश की. तो उसे अपनी टाँगों के बीच अपनी चूत बहुत गीली महसूस हुई.
साहिबा समझ गई कि अंदर ही अंदर आज काफ़ी टाइम बाद उस की फुद्दी को खुद ब खुद लंड की तलब हो रही थी. उस रोज ना चाहते हुए भी बे इकतियार साहिबा सारा दिन बार बार अपनी घड़ी को देखती रही कि कब दिन ख़तम हो और कब वो घर जाय और अपने शोहर का लंड अपनी फुद्दी में डलवाए.
आज उस के दिल में एक अजीब सी एग्ज़ाइट्मेंट थी. और उस दिन दोपहर के बाद दो मेजर सर्जरी भी थीं सो काम भी बहुत था. खैर दूसरी सर्जरी के दौरान साहिबा को उम्मीद से ज़यादा टाइम लग गया और वो बुरी तरह थक भी गई थी. दो घंटे और थे और फिर वो होती और उस का शोहर और पूरी रात…
रात को अचानक साहिबा की आँख खुली. उस का बदन कमरे में गर्मी की शिद्दत से पसीना पसीना हो रहा था. साहिबा को अहसास हुआ कि उस की कमीज़ उतरी हुई है और वो सिर्फ़ ब्रा और शलवार में अपने बेड पर लेटी हुई है.
गर्मी की शिद्दत की वजह से ना जाने कब और कैसे साहिबा ने अपनी कमीज़ उतार दी इस का उसे खुद भी पता नही चला. साहिबा अभी भी नींद की खुमारी में थी और इस खुमारी में साहिबा ने महसूस किया उस के हाथ में उस के शोहर का लंड था.
जिसे वो खूब सहला रही थी. और शलवार में मौजूद उस के शोहर का लंड साहिबा के हाथों में झटके मार रहा था. इतने में रुबीना का दूसरा हाथ जुल्फिकार के पेट से हल्का सा टच हुआ तो साहिबा को अंदाज़ा हुआ कि उस की तरह उस के शोहर की कमीज़ भी उतरी हुई है.
साहिबा अपने शोहर के लंड को अपने काबू में पा कर मुस्कराने लगी मगर सोते हुए भी उसने लंड को नही छोड़ा. कमरे में अंधेरा था. जिस की वजह से कोई भी चीज़ दिखाई नही दे रही थी. मगर साहिबा को कमरे में गूँजती हुई अपने हज़्बेंड की तेज तेज़ सांसो से पता चल रहा था कि वो भी जाग रहे हैं.
साहिबा ने अपने शोहर के लंड पर नीचे से उपर तक हाथ फेरा तो उस के शोहर के मुँह से एक ज़ोरदार सी “सस्स्स्स्स्स्सस्स” सिसकारी निकली गई. सिसकारी की आवाज़ से लगता था आज साहिबा का शोहर कुछ ज़यादा ही गरम हो रहा था.
साहिबा को भी अपने हाथ में थामा हुआ अपने शोहर का लंड आज कुछ ज़यादा ही लंबा, मोटा और सख़्त लग रहा था. खास कर लंड की मोटाई से तो आज ऐसे महसूस हो रहा था कि लंड जैसे फूल कर डबल हो गया हो. साहिबा को पूरे दिन की सख़्त मेहनत का अब फल मिल रहा था.
वो आज पूरा दिन हॉस्पिटल में बहुत ही बिजी रही थी. और फिर शाम को दूसरी सर्जरी में कॉंप्लिकेशन्स की वजह से साहिबा को हॉस्पिटल में काफ़ी देर हो गई थी और साहिबा को ऐसे लग रहा था कि वो आज रात अपने घर नही जा पाएगी… इतनी रात…. इतनी रात…..
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अचानक साहिबा के दिमाग़ ने झटका खाया और वो नीद से पूरी तरह जाग गई. उफ्फ रात को तो में बहुत लेट हो गयी थी और फिर मेने घर फोन किया था कि में घर नही आ पाऊँगी… फिर में अपने भाई के फ्लॅट पर…. सोते सोते ये सोच कर ही अचानक साहिबा के पूरे जिस्म में एक झुरझरी सी दौड़ गई….
“में अपने शोहर के साथ नही…. बल्कि मे अपने सगे भाई….. नही नही नही….. नही…………” सर्दी की ठंडी रात में भी साहिबा का बदन पसीने से तरबतर हो गया.
“ये हुआ कैसे” साहिबा सोच रही थी.
जब वो आज़म के फ्लॅट में आई थी तो उस का भाई सोया हुया था. फ्लॅट की एक चाभी साहिबा पास भी थी. साहिबा ने दरवाज़ा खोला और कपड़े चेंज किए बिना ही लेट गई और लेटते ही उसे नींद आ गई. फ्लॅट में आते वक़्त साहिबा इतना थकि हुई थी. जिस की वजह से उसे डर था कि नींद के मारे वो कहीं रास्ते में ही ना गिर जाए.
तो फिर क्या रात में भाई ने. “नही, एसा नही हो सकता… मेरा भाई एसा नही है! तो फिर कैसे?”
साहिबा सोच रही थी… “कैसे मेरे हाथ में अपने भाई का लंड आ गया … अगर उसने कोई ग़लत हरकत नही की.”
साहिबा ने जब आँखे खोल कर गौर से देखा तो उसे अंदाज़ा हुआ कि रात को नींद की वजह से वो करवटें बदलते बदलते ना जाने किस तरह अपने भाई के बेड पर चली आई है. हालाँकि दोनो बेड पूरे जुड़े हुए नही थे. लेकिन वो इतने करीब थे कि नींद में करवटें बदलते हुए इंसान एक बेड से दूसरे बेड पर ब आसानी जा सकता था.
“तो इसका मतलब में ही… अपने भाई के बेड पर…. उसका लंड हाथ में लेकर ….उफफफफफफफफ्फ़ नही…वो क्या सोचता होगा मेरे बारे में?…. साहिबा अपनी नींद के खुमार में अपने आप से ही बातें किए जा रही थी.
साहिबा ने अपने भाई की तरफ से कोई हलचल महसूस नही की. लगता था शायद आज़म को अंदाज़ा हो गया था कि उस की बहन साहिबा अब शायद जाग गयी है और ये जो कुछ उन के बीच हुआ वो सब नींद में होने की वजह से हो गया था. दोनो बहन भाई के बीच में मुश्किल से दो फीट का फासला होगा और वो दोनो चुप चाप लेटे हुए थे.
साहिबा की समझ में कुछ नही आ रहा था कि वो क्या करे. वो ये सोच कर शर्म से पानी पानी हो रही कि उस का भाई उस के बारे में क्या सोचेगा. कमरे में बिल्कुल सन्नाटा था. रह रह का साहिबा अपने दिल-ओ-दिमाग़ में अपने आप को मालमत कर रही थी.
”ये तूने क्या कर दिया? अब आज़म क्या सोचता होगा? मेरी बड़ी बहन एसी है… अपने भाई के लंड को…?
साहिबा अभी इन ही सोचो में गुम थी कि उसे एक और झटका लगा. साहिबा ने अभी भी अपने भाई का लंड पकड़ा हुआ था. जब कि उसे नींद से जागे हुए कोई पंद्रह मिनिट हो गये थे. साहिबा ने सोचा कि वो जल्दी से अपना हाथ आज़म के लंड से हटा ले मगर उस वक़्त सूरतेहाल एसी थी कि वो चाहते हुए भी एसा भी न कर सकी. साहिबा डर रही थी कि अगर वो कोई हरकत करती है तो उस का भाई कुछ बोल ना पड़े.
“क्या करूँ” साहिबा ये सोच रही थी मगर उस की समझ में कुछ नही आ रहा था. ऐसे ही पड़े पड़े कोई एक आध मिनिट और गुज़र गया और साहिबा का हाथ अभी तक आज़म के लंड पर था. आज़म का लंड अब कुछ ढीला हो गया था मगर फिर भी साहिबा को अपने भाई आज़म का लंड साइज़ में काफ़ी बड़ा महसूस हो रहा था.
आधी रात को अंधेरे कमरे में बेड पर साथ साथ सीधे लेटे दोनो बहन भाई जाग तो रहे थे. मगर उन दोनो में कोई नही जानता था कि वो अब करें तो क्या करें.
“जुल्फिकार के लंड के मुक़ाबले में आज़म का लंड काफ़ी लंबा मोटा है” उफफफ्फ़ में भी क्या सोच रही हूँ अपने ही भाई के लंड के बारे में…. साहिबा ने अपने आप को कोसा. मगर सच में है तो बहुत बड़ा…. उफ्फ पूरा खड़ा हो कर तो…… मुझे एसा नही सोचना चाहिए साहिबा ने अपने आप को फिर डांता. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
“भाई तो तस्सली करा देता होगा सच में…. हाईए कितना लंबा है मोटा तो बाप रेरर….किसी कंवारी लड़की की तो….” सोचते सोचते कब साहिबा ने अपना हाथ आज़म के लंड के गिर्द कस दिया, उसे पता ही ना चला. साहिबा के हाथ ने जैसे ही आज़म के लंड को कसा तो आज़म के मुँह से सिसकारी फुट पड़ी. और उस के सोते हुए लंड ने फिर झटका खाया और फिर से एक दाम खड़ा होने लगा.
आज़म की सिसकी को सुन कर साहिबा एक दम हडबडा कर अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर निकल आई और उस ने फॉरन अपने भाई के लंड को अपने हाथ से छोड़ दिया. मगर जब एक जवान कुँवारा मर्द हो और साथ मे एक खूबसूरत जवान शादी शुदा औरत जो उस की सग़ी बहन हो.
और वो औरत जब रात की तन्हाई में एक ही बिस्तर पर आधी नंगी लेटी हुई उस जवान मर्द के लंड को सहला रही हो. तो एक भाई होने के बावजूद आज़म अपने आप को कैसे काबू में कैसे रखता. इसलिए जब आज़म ने अपने लंड को अपनी बहन के हाथ से निकलता हुआ महसूस किया तो उस ने फॉरन ही साहिबा की तरफ करवट बदली.
आज़म ने साहिबा को पकड़ कर अपनी तरफ कैंचा और फिर अपनी बहन के हाथ को पकड़ कर उसे दुबारा अपने लंड पर रख दिया. साथ ही आज़म का लेफ्ट हॅंड सरकता हुआ साहिबा की टाँगो के बीच आया और उस ने अपना हाथ पहली बार अपनी बहन की शादी शुदा चूत पर रख दिया.
आज़म का हाथ फुद्दी पर लगते ही साहिबा का बदन अकड सा गया. साहिबा ने आज़म को रोकने के लिए थोड़ी मज़ामत करते हुए आज़म के हाथ को अपनी चूत से हटाने की कोशिश की. मगर वो उसे रोक नही पाई और आज़म का हाथ बेताबी से अपनी बहन की फूली हुई चूत पर फिसलता रहा.
साहिबा पिछले दो हफ्तों से अपने शोहर जुल्फिकार से नही चुदि थी इसलिए आज साहिबा के बदन मे आग लगी हुई थी. और उस की फुद्दि से पानी बहने लगा था. साहिबा की फुद्दि लंड माँग रही थी और लंड साहिबा के हाथ मे था..
उस के अपने सगे छोटे भाई का लंबा चौड़ा लंड. जवानी की गर्मी और सेक्स की हवस ने उन दोनो बहन भाई की सोचने और समझने की सालिहात जैसी ख़तम कर दी थी और शरम का परदा गिरना सुरू हो गया था. आज़म के हाथ उस की बहन की पानी छोड़ती हुई फुद्दी से खेलने में मसरूफ़ रहे. जिन के असर से साहिबा का बदन अब ढीला पड़ने लगा.
जब आज़म ने महसूस किया कि उस की बहन थोड़ी ढीली पड़ गई है तो उस का होसला भी बढ़ गया. और उस का हाथ अपनी बहन की फुद्दी को छोड़ कर उस के मम्मे पर आया और ब्रा के उपर से अपनी बहन के जवान तने हुए मम्मो पर हाथ फेरने लगा.
उधर आज़म के बहकते हाथों ने साहिबा की फुद्दी में भी हलचल मचा दी थी. इसलिए उस को भी अब अपने आप पर कंट्रोल नही रहा और फिर साहिबा का हाथ भी खुद ब खुद तेज़ तेज़ उस के अपने भाई के लंड पर दुबारा चलने लगा. उपर से नीचे तक साहिबा अपने भाई के लंड को मुट्ठी में भर कर निचोड़ रही थी.
अब आज़म ने अपने हाथ से साहिबा के मम्मे को मसलने शुरू कर दिए, जितना ज़ोर से वो साहिबा के मम्मे को मसलता उतने ही ज़ोर से उस की बहन साहिबा उस के लंड को पकड़ कर खींचती और दबाती. ऐसा लग रहा था जैसे अंधेरे कमरे में दोनो बहन भाई आपस में कोई मुकाबला कर रहे हों. पूरे कमरे में दोनो की आहें, कराहें और सिसकियाँ गूँज रही थीं.
आज़म ने साहिबा को थोड़ा सा उठाया और उस ने अपने हाथ साहिबा की कमर पर ले जा कर अपनी बहन के ब्रा की हुक खोल दी. बहन के ब्रा की हुक खोलते ही एक बेसबरे बच्चे की तरह आज़म ने ब्रा को खींच कर निकाला और अपनी बहन के बदन से दूर फेंक दिया. अब साहिबा अपने भाई के सामने कमर से उपर पूरी नंगी थी.
हालाँकि कमरे में बहुत अंधेरा था लेकिन साहिबा अपने भाई की नज़रें अपने जिस्म पर महसूस कर रही थी. आज़म ने अपना मुँह नीचे झुकाया और अपनी बहन के राइट मम्मे को जीभ से चाटने लगा. भाई का मुँह अपने मम्मे पर लगते ही साहिबा तो जैसे सिहर उठी. उस ने अपने भाई का सिर पकड़ कर अपने मम्मे पर दबाया तो आज़म ने मुँह खोला और अपनी बहन के तने हुए निपल को मुँह लगा कर चूसने लग गया.
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“आज़म… आज़म ए तू की कर दित्ता है.. शीयी” साहिबा फरहत-ए-जज़्बात में पंजाबी ज़ुबान में चिल्ला उठी.
मगर आज़म ने अपनी बहन की बात का कोई जवाब नही दिया और ज़ोर ज़ोर से साहिबा के निपल को काटते हुए उसे चूस्ता रहा, बीच बीच में उसे बदल कर दूसरे मम्मे को चूसने लग जाता. आज़म एक मम्मा चूस्ता तो दूसरा मसलता. साहिबा अपने भाई का वलिहाना प्यार महसूस कर के मज़े के मारे पागल हो रही थी..
पंद्रह मिनिट मम्मे चूस्ते हो गयी थे और साहिबा अब बेसूध होती जा रही थी. तभी साहिबा ने अपने भाई का हाथ अपनी सलवार के नाडे पर महसूस किया. आज़म ने साहिबा का मम्मा मुँह से निकाला और फिर अपनी बहन की शलवार का नाडा पकड़ कर एक ही झटके में खोल दिया.
चुदाई की हवस में डूबी हुई साहिबा ने भी बिना सोचे समझे अपनी कमर उठा कर अपने आप को पूरा नगा करने में अपने ही भाई की मदद की. अगले ही पल साहिबा ने अपने भाई की उंगलियाँ अपनी पैंटी के एलस्टिक में महसूस की और फिर दूसरे झटके में साहिबा की पैंटी भी उस के बदन से अलहदा हो गयी .
अब साहिबा पूरी से नंगी थी. आज से पहले वो ये कभी सोच भी नही सकती थी कि उस का अपना भाई उसे कभी इस तरह ना सिर्फ़ नंगी करे गा बल्कि वो खुद उस के हाथों नंगी होने में उस की मदद करेगी. लेकिन वो सब कुछ जो सोचा नही था हो रहा था और तेज़ी से हो रहा था.
अपनी बहन को मुकम्मल नंगा करने के बाद आज़म ने भी अपनी शलवार उतार कर नीचे फैंक दी. साहिबा बिस्तर पर अपनी टांगे फैलाए पड़ी थी. खुद को नंगा करते ही एक भी लम्हा ज़ाया किए बैगर आज़म फॉरन अपनी बहन साहिबा की खुली टाँगों के बीच आया और अपना लंड अपनी बहन की चूत के मुँह पर टिका दिया.
अपने भाई के मोटे ताज़े और जवान लंड का अपनी गरम प्यासी चूत के साथ टकराव महसूस करते ही साहिबा की चूत जो पहले ही बूरी तरह से गीली थी, वो कांप सी गयी. साहिबा ने बे इकतियार अपनी बाँहे अपने भाई की कमर के गिर्द लपेट दीं.
साहिबा से अब इंतज़ार नही हो रहा था. वो चाहती थी कि अब उस का भाई अपना लंड उस की चूत के अंदर डाल कर उसे बस चोद ही डाले. आज़म अपना लंड अपनी बहन की फुद्दी में डालने की बजाय फुद्दी के होंठो पर के उपर ही अपना लंड रगड़ने लगा.
शायद वो अपनी बहन की फुद्दी की प्यास और बढ़ाने के लिए जान बुझ कर एसा कर रहा था. साहिबा के लिए वाकई ही ये बात अब नकाबिले बर्दास्त होने लगी थी और वो हवस के तूफान में अंधी हो कर अपने भाई पर बरस पड़ी.
“ये क्या कर रहा है. अंदर डाल…अंदर डाल जल्दी से…ही…अब बर्दाश्त नही होता! जल्दी कर!”
आज़म ने जब अपनी बहन के मुँह से ये इल्फ़ाज़ सुने तो एक पल के लिए वो अंधेरे में ही साहिबा का मुँह तकने लगा. शायद उसे यकीन नही हो पा रहा था कि उसकी बहन जिसे वो बचपन से जानता है एसा भी बोल सकती है.
लेकिन साहिबा अपने होशो हवास गँवा चुकी थी. और अब बिस्तर पर आज़म के सामने एक बहन नही बल्कि एक प्यासी औरत पड़ी थी. जिस के बदन की आग आज बहुत उँचाई पर पहुँच चुकी थी. और ये आग अब उस वक़्त सिर्फ़ आज़म के लंड से ही बुझ सकती थी.
“भाईईईईईईई क्या सोच रहे हो.. इसे जल्दी से अंदर डाल… वरना में पागल हो जाऊंगी” साहिबा लगभग चिल्ला उठी थी.
अपनी बहन के चिल्लाने पर आज़म जैसे नींद से जाग उठा. उस ने जल्दी से लंड अपनी बहन की फुद्दि के मुँह पर टिकाया और साहिबा की पतली कमर को अपने हाथों से मज़बूती से थाम लिया. साहिबा ने मदहोशी में अपनी आँखे बंद कर ली, और उस लम्हे के लिए खुद को तैयार कर लिया जिस का उसे अब बेसबरी से इंतज़ार था.
आज़म ने दबाव बढ़ाया और उस का मोटा लंड उस की बहन फुद्दी के लिप्स को फैलाता हुआ फुद्दी के अंदर जाने लगा. पिछले तकरीबन एक साल से साहिबा अपनी शोहर से खूब चुदि थी मगर अपने भाई के मोटे लंड का एहसास ही कुछ और था.
शादी शुदा होने के बावजूद साहिबा की फुद्दि काफ़ी टाइट थी और आज़म के लंड की मोटाई ज़्यादा होने की वजह से आज़म को अपना लंड बहन की चूत में डालते वक़्त खूब ज़ोर लगाना पड़ रहा था. साहिबा को अपने भाई के मोटे लंड को अपनी चूत के अंदर लेते वक़्त हल्की हल्की तकलीफ़ तो हो रही थी.
लेकिन जोश में होने की वजह से उसे अब किसी भी तकलीफ़ की परवाह नही थी. बल्कि उसे तो इस तकलीफ़ में भी एक मज़ा आ रहा था. साहिबा ने अपने भाई के कंधे थाम लिए और अपनी कमर पूरे ज़ोर से उपर उठाते हुए भाई की मदद करने लगी. लंड की टोपी अंदर घुसा कर आज़म रुका फिर उसने साहिबा की कमर पर अपने हाथ कस लिए और एक करारा धक्का मारा.
“हाए…हाए…. आज़म….मार दित्ता तू मेनू…उफ़फ्फ़…बहुत मोटा है तेरा” साहिबा ने फिर मज़े से कराहते हुए कहा.
आज़म के उस एक धक्के में उस का आधा लंड उस की बहन की फुद्दी में पहुँच चुका था. आज़म ने लंड बाहर निकाला और फिर एक ज़ोरदार धक्का मारा. इस बार लंड और अंदर तक चला गया, इसी तरह वो पूरा लंड एकदम से अंदर डाल कर आहिस्ता आहिस्ता अपनी बहन को चोदने लगा.
कुछ ही मिनिट्स में आज़म का लंड साहिबा की फुद्दि की जड़ तक पहुँच चुका था. साहिबा ने अपनी टांगे अपने भाई की कमर के गिर्द लपेट दी. साहिबा के मुख से फूटने वाली हल्की कराहे उस के भाई का हॉंसला बढ़ा रही थीं और वो हर धक्के पर अपनी पूरी ताक़त लगा रहा था. और साहिबा… मज़े की इस हालत में पहुँच चुकी थी. कि इस हालत को लफ़ज़ो में बयान करना उस के लिए ना मुमकिन था.
“आराम से आज़म…. इतना भी ज़ोर मत लगा कि मेरी कमर टूट जाए….. तेरे पास ही हूँ जितना चाहे तू मुझे……”
“क्या करूँ बाजी… उफ्फ तुम्हारी इतनी टाइट है….. कंट्रोल नही…. होता………. एसा मज़ा जिंदगी में पहले कभी नही आया.”
“नही रे तेरा ही इन्ना मोटा है के….. देख तो कैसे फँसा हुया है…. उफ्फ कैसे रगड्र रहा है मेरी फू….”
साहिबा के मुँह से फुद्दि का लफ़्ज निकलते निकलते रह गया. साहिबा ने कभी भी अपने शोहर के साथ सेक्स करते हुए ऐसी ज़ुबान का इस्तेमाल नही किया था. मगर आज अपने भाई के साथ इतनी गर्म जोशी से सेक्स करते वक़्त साहिबा शरम-ओ-हेया की सभी हदें पार कर जाना चाहती थी.
फुद्दि और लंड की जंग जारी थी. फुद्दि में लगा तार पड़ रहे ज़ोरदार धक्कों से ज़ाहिर हो रहा था. कि आज़म को अपनी बहन की फुद्दी चोदने में कितना मज़ा आ रहा था. वो हर धक्के में लंड साहिबा की फुद्दि की जड़ तक डाल देता. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
उस का लंड साहिबा की बच्चे दानी पर ठोकर मार रहा था. हर धक्के के साथ उसके टटटे साहिबा फुददी के नीचे ज़ोर से टकराते. साहिबा भी अपने भाई की ताल से ताल मिलाते हुए अपनी कमर उछालती हुई अपनी फुद्दि अपने भाई के लंड पर पटकने लगी.
साहिबा ने आज़म के कंधे मज़बूती से थाम लिए और अपनी टाँगे उसके चुतड़ों के गिर्द कस दी और अपने भाई के हर धक्के का जवाब भी उतने ही जोश से देने लगी जितने जोश से वो अपनी बहन को चोद रहा था. हर धक्के के साथ साहिबा के मुख से सिसकारियाँ फुट रही थी. दोनो बहन भाई के जिस्मों के टकराने और लंड की गीली फुद्दि में हो रही आवाज़ाही से पूरे कमरे में आवाज़ें गूँज़ रही थी.
“और ज़ोर लगा आज़म! और ज़ोर से! हाए एसा मज़ा पहले कभी नही आया! और ज़ोर लगा कर डालो मेरी चूत में भाई.”
साहिबा के मुँह से निकलने वाले अल्फ़ाज़ ने आग में घी का काम किया. आज़म एक बेकाबू सांड़ की तरह अपनी बहन साहिबा को चोदने लगा. सॉफ ज़ाहिर था कि उसे अपनी बहन के मुँह से निकले उन गरम अल्फाज़ो को सुन कर कितना मज़ा आया था. और उसके जोश में कितना इज़ाफ़ा हो गया था. जिस की वजह से उस का हर धक्का उस की बहन की फुद्दि को फाड़ कर रख देने वाला था.
“सबाश भाई…चोद मुझे…और ज़ोर से धक्का मार…. पूरा अंदर तक डाल अपना लंड मेरी फुद्दि में.”
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आज साहिबा ने सब रिश्ते नाते भुला कर दुनियाँ की सब हदें पार कर लीं और इसका इनाम भी उसे खूब मिला. आज़म अपने दाँत पिसते हुए बुलेट ट्रेन की रफ़्तार से अपनी बहन की फुद्दी चोदने लगा. साहिबा के जिस्म में जैसे करेंट दौड़ रहा था. फुद्दि के अंदर पड़ रही चोटों से मज़े की लहरें उठ कर पूरे बदन में फैल रही थी. जिस वजह से साहिबा अपना जिस्म अकड़ाने लगी. साहिबा अब जल्दी ही छूटने वाली थी.
“हाए! मार दित्ता मेनू!…. उफफफ्फ़ अपनी बहन को….. चोद रहा है या…. पिछले…. किसी जनम का… बदला ले रहा है.”
“नही मेरी बहना! …में तो… तुझे…. दिखा रहा हूँ असली…. चुदाई कैसे… होती है. कैसे एक मर्द……. औरत की तस्सली करता है.”
“हाए…. देखना कहीं….. तस्सल्ली करते करते….. मेरी फुद्दी ना फाड़ देना.”
साहिबा ने अपनी बाहें अपने भाई की गर्दन पर लपेट दीं और अपनी टाँगे भाई की कमर पर और भी ज़ोर से कस दीं. साहिबा की कमर अब हिलनी बंद हो चुकी थी. दोनो भाई बहन बुरी तरह से हांफ रहे थे. साहिबा को अपनी टाइट फुद्दि में अपने भाई का लंड फूलता हुआ महसूस हुआ, लगता था वो भी फारिग होने के करीब ही था.
“आज़म… में छूटने….. वाली हूँ… मेरे साथ साथ तू भी… हाई….हाई… उफफफ्फ़…. भाई…भाईईईईईईई!” और साहिबा की चूत फारिग होने लगी, फुद्दि से गाढ़ा रस निकल कर भाई के लंड को भिगोने लगा. साहिबा की फुद्दि बुरी तरह से खुलते और बंद होते हुए अपने भाई के लंड को कस रही थी.
आज़म ने पूरा लंड बाहर निकाल कर पूरे ज़ोर से अंदर पेला, ऐसे ही दो तीन ज़ोरदार धक्के मारने के बाद एक हुंकार भरते हुए साहिबा के उपर ढह पड़ा. आज़म के लंड से गाढ़ी मलाई निकल कर उस की बहन की चूत को भरने लगी. उन दोनो की हालत बहुत बुरी थी.
साहिबा को एक अंजानी ख़ुसी का अहसास अपने पूरे जिस्म में महसूस हो रहा था. उसे लग रहा था जैसे उस का जिस्म एकदम हल्का हो कर आसमान में उड़ रहा हो. वो पल कितने मजेदार थे, एसा सुख, एसा करार उस ने ज़िंदगी में पहली बार महसूस किया था.
आहिस्ता आहिस्ता साहिबा की फुद्दि ने फड़कना बंद कर दिया. उधर आज़म का लंड भी अब पूर सकून हो चुका था और आहिस्ता आहिस्ता उस का लंड भी सॉफ्ट होता जा रहा था. आज़म अभी तक अपनी बहन के उपर ही गिरा पड़ा था. और उस के जिस्म के बोझ तले साहिबा के लिए अब हिलना भी मुश्किल था.
थोड़ी देर बाद आज़म साहिबा के उपर से उठ कर उस के बराबर में लेट गया. जब दिमाग़ से चूत की गर्मी कम हुई तो तब साहिबा के होशो हवास वापिस लोटने लगे और अब साहिबा का सामना एक होलनाक हक़ीक़त से हो रहा था.
अब उसे ये एहसास हो रहा था कि उन दोनो भाई बहन ने कैसा गुनाह कर दिया है. साहिबा ने जब उन अल्फ़ाज़ को अपने दिल में दोहराया जो उस ने कुछ लम्हे पहले आज़म से सेक्स करते हुए उस को कहे थे तो साहिबा के पूरे बदन में झुरजूरी सी दौड़ गयी.
“में इतनी बेशर्म और बेहया कैसे बन गयी? मेरे मुँह से वो अल्फ़ाज़ कैसे निकल गये? कैसे में भूल गयी कि में अब शादी शुदा हूँ? में क्यों खुद को ये गुनाह करने से रोक नही पाई?”
साहिबा के दिल में अब ये तमाम सवाल उठ रहे थे. जिन का कोई भी जवाब उसे सूझ नही रहा था. सब से बड़ा सवाल तो ये था कि अब में अपने भाई आज़म का सामना कैसे करूँगी!
“वो मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा? कैसे में एक बाज़ारु औरत की तरह उस से पेश आ रही थी! मेरा काम तो अपने भाई को ग़लत रास्ते पर जाने से रोकना था मगर में तो खुद…… खुदा मुझे इस गुनाह के लिए कभी माफ़ नही करेगा” साहिबा दिल ही दिल में खुद को दुतकार रही थी.
उधर बिस्तर पर आज़म की तरफ से भी कोई हलचल नही हो रही थी. शायद उसे भी अपनी बहन साहिबा की सोच का अंदाज़ा हो गया था. जिस वजह से शायद उसको भी अफ़सोस हो रहा था और वो भी अपनी बहन की तरह अपने किए पर अब पछता रहा था.
साहिबा ऐसे ही सोचों में गुम बिस्तर पर पड़ी रही. कोई रास्ता कोई हल उसे नही सूझ रहा था. साहिबा जितना अपने किए हुए गुनाह के बारे में सोच रही थी उतना ही उसे खुद से नफ़रत हो रही थी. ऐसी ही सोचों में गुम काफ़ी वक़्त गुज़र गया.
कमरे में गूँजती आज़म की हल्की हल्की साँसों की आवाज़ से लग रहा था कि वो सो गया है. लेकिन साहिबा की आँखों में तो नींद का नामोनिशान तक ना था. आख़िर कर साहिबा उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गयी. ये सोचते हुए कि शायद नहा कर बदन को कुछ राहत मिले. या नहाने से शायद उस गुनाह की गंदगी उस के बदन से थोड़ी बहुत उतर जाए.
जिस से साहिबा का जिस्म अब भरा पड़ा था. साहिबा इन ही ख़यालों में डूबी हुई बाथरूम में गयी और दरवाज़ा बंद कर के बाथरूम का बल्ब ऑन किर दिया. साहिबा ने जब बाथरूम के आयने में अपनी शकल देखी तो उसे खुद खुद पर ही रहम आने लगा.
साहिबा के पूरे बाल बिखरे हुए थे, होंठ थोड़े सूज गये थे, आँखे एकदम सुर्ख हो गयी थीं और उनमे उदासी सी झलक रही थी. साहिबा ने अपनी एसी हालत पहली बार देखी थी. वो बिना कपड़े पहने ही बाथरूम में चली आई थी.
वैसे भी कमरे में अंधेरा होने की वजह से कपड़े ढूँढने के लिए साहिबा को लाइट जलानी पड़ती. जो वो आज़म के जाग जाने के डर से नही करना चाहती थी. साहिबा की निगाहें आईने में अपने चेहरे से नीचे होते हुए अपने मम्मों पर टिक गयी.
उस के निपल अभी भी अकडे और खड़े हुए थे और वो एक दम सूज गये थे. आज़म के मसल्ने की वजह से साहिबा के मम्मे एकदम सुर्ख हो गये थे. साहिबा ने एक गहरी साँस ली और आयने के सामने से हटते हुए शवर की नीचे चली गयी.
शवर का मुँह खोलते ही साहिबा के बदन पर ठंडा पानी पड़ा तो उस ने फ़ौरन एक राहत की साँस ली. पानी के नीचे खड़े होते ही साहिबा के हाथ उस के जिस्म पर घूमने लगे. जिस्म पर घूमते हुए जैसे ही साहिबा का हाथ उस की फुद्दी पर गया तो उस का पूरा हाथ उस की फुद्दि के अंदर से बह कर बाहर आने वाले उस के अपनी चूत और उस के सगे भाई के लंड के रस से भीग गया.
साहिबा जल्दी जल्दी हाथ चलाते हुए अपनी फुद्दी सॉफ करने लगी. जैसे वो अपने किए हुए गुनाह का सबूत मिटा देना चाहती हो. मगर उस गुनाह की छाप तो साहिबा के तन बदन पर पड़ चुकी थी. अब वो अपने आप को जितना भी सॉफ करती मगर रस था कि निकलता ही जा रहा था.
हार कर साहिबा ने शवर का पाइप निकाला और उसे एक हाथ से पकड़ कर अपनी फुद्दि के मुँह पर रखा और दूसरे हाथ से अपनी फुद्दि के होंठों को फैलाया जिस से वो अंदर तक सॉफ हो जाए. थोड़ी देर बाद साहिबा ने शवर के पानी से बाथरूम में बने हुए टब को भरा और फिर वो टब में लेट गयी.
साहिबा का दिल अब हर गुज़रते पल के साथ अब कुछ पुरसकून होता जा रहा था. अंदर चल रहा तूफान अब ठंडा पड़ रहा था. साहिबा टब में लेटी लेटी ये सोचने लगी कि कल जब दिन के उजाले में अपने भाई का सामना करूँ गी तो खुद को कैसे संभालूंगी.
एक सवाल जो अब भी साहिबा के दिल में गूँज रहा था. जिससे वो पीछा नही छुड़ा पा रही थी वो ये था कि क्या आज़म भी उस की तरह ही अपने किए पर पछता रहा था. अगर उसके मन दिल में पछतावा नही हुआ और कहीं उसने दुबारा कोशिस की तो……. नही ये दुबारा नही हो सकता. में उसे कभी दुबारा खुद को छूने नही दूँगी.
“हालाकी पिछली बार ग़लती मेरी अपनी थी. इस काम का स्टार्ट जाने अंजाने में खुद मैने किया था. लेकिन वो सब एक ग़लती थी मगर फिर भी अगर आज़म ने सोचा कि मेने खुद जान बुझ कर उससे अपने नाजायज़ ताल्लुक़ात बनाए हैं और में फिर से उससे चुदवाना चाहती हूँ तो? यही सवाल था यो साहिबा को बार बार परेशान किए जा रहा था.
काफ़ी टाइम बाद साहिबा टब से बाहर निकली. अब वो काफ़ी हद तक सम्भल चुकी थी. वो अब पुरसकून थी या फिर ये आने वाले तूफान के पहले की खामोशी थी. साहिबा ने अपना बदन पोंच्छा .अब उस के पहनने के लिए कुछ भी नही था सिवाय बाथरूम में लटके हुए एक टॉवल के. मगर वो छोटा सा तोलिया भी साहिबा के बदन को ढकने के लिए नाकाफ़ी था.
साहिबा फिर से आयने के सामने खड़ी हो गयी और अपने बदन को आयने में दुबारा देखने लगी. साहिबा का दूध सा मखमली बदन बल्ब की रोशनी में दमक रहा था. साहिबा ने अपने बालों में उंगलियाँ फेरते हुए जब उन्हे झटका तो साहिबा के मोटे मोटे माममे उच्छल पड़े .
साहिबा को अपने मम्मों पर अभिमान था. बिल्कुल गोल मटोल उपर हल्के गुलाबी रंग का घेरा और उन पर गहरे गुलाबी रंग के निपल. साहिबा ने अपने दोनो हाथ अपने मम्मों पर रखे और उन्हे आहिस्ता आहिस्ता सहलाया. उफफफ्फ़ कैसे तने हुए जवान मम्मे थे उस के.
“कुछ भी हो एक बात तो है आज़म याद ज़रूर रखेगा इस रात को” चाहे उसकी बहन हूँ लेकिन मेरी जैसी उसे पूरी जिंदगी में दोबारा चोदने को कभी नही मिलेगी……उफ्फ ये में क्या सोच रही हूँ इतना कुछ हो जाने के बाद भी?” साहिबा खुद को दुतकारा.
मगर बात थी तो सच. दूध जैसा गोरा रंग, गोल मटोल मोटे मम्मे, पतली सी कमर और बाहर को निकली गोल गान्ड जिसे देख कर किसी की आँखों में हवस का नशा चढ़ सकता था. “आज़म की तो एक तरह से लॉटरी ही लग गयी थी वरना उसे तो सपने में भी मेरे जैसी चोदने को ना मिले” सोचते हुए साहिबा मुस्करा पड़ी.
इन ही ख़यालो में गुम साहिबा ने जब आहिस्ता आहिस्ता से अपने निप्प्लो को मसला तो उस के मुँह से कराह फुट पड़ी. कैसे मेरा सगा भाई इन्हे ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था… और जब उसने इन्हे मुँह में लिया था…. उफ्फ मेरी तो जान ही निकल गयी थी……. लगता था बहुत दिनो से भूखा था और फिर जब इतने दिनो के भूखे को चावलों से भरी थाली मिल जाए तो वो तो टूट ही पड़ेगा…..
बेचारा आख़िर करता भी तो करता क्या…. बहन जब हो ही इतनी खूबसूरत……… और उपर से चुदाई की प्यासी भी हो तो……. हाए कैसे सांड़ की तरह चोद रहा था…. जैसे उसकी बहन नही कोई रंडी है… उफ़फ्फ़ साहिबा संभाल खुद को तू फिर से वही सब कुछ…… साहिबा को अपने अंदर से एक आवाज़ सुनाई दी…….
हाए मेरी माँ में क्या करूँ!… उफ्फ कैसे मसल रहा था मेरे मम्मों को और जब वो मेरे मम्मे चूस रहा था (साहिबा अपने निपल मसलने लगी)…. हाए एसा लग रहा कि जैसे मेरी जान निकल जाएगी…….. और जब वो हमच हमच कर अपनी कमर उछाल उछाल कर अपना लंड मेरी फुद्दि में डाल रहा था और में खुद भी कैसे कमर उछाल उछाल कर….
और में कैसे लफ्ज़ बोल बोल कर उसे उकसा रही थे ताकि वो मुझे, अपनी बहन को और ज़ोर लगा कर चोदे… हाए रब्बा… कितना मज़ा आया था आज़म से अपनी फुद्दि मरवा कर….कितना माल छूटा था उसके लंड से… पूरी फुद्दिईई भर दी थी…… एक बार तो आज़म ने जन्नत की सैर करवा दी.. उफफफफफफफ्फ़.”
साहिबा की आँखों के सामने वो सीन आ गया जब आज़म पागलों की तरह उसे चोद रहा था और साहिबा का हाथ खुद ब खुद नीचे उस की अपनी चूत पर चला गया. साहिबा को एक ज़ोरदार झटका लगा जब साहिबा ने महसूस किया कि उस का हाथ पूरा गीला हो गया है अपनी चूत से निकले रस की वजह से.
साहिबा अपने भाई आज़म के साथ हुई अपनी चुदाई को याद कर फिर से बहुत ज़यादा गरम होने लगी. साहिबा एकदम से आयने के सामने से हट गयी. वो खुद से ही डर गयी थी. साहिबा ने हड़बड़ाहट में बाथरूम का दरवाजा खोल दिया. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
साहिबा समझी थी कि कमरे में अंधेरा होगा इसलिए अगर आज़म जाग भी रहा होगा तो वो उसे देख नही पाएगा… मगर साहिबा का अंदाज़ा ग़लत निकला. बाथरूम की लाइट कमरे मे भी जा रही थी और साहिबा देख रही थी. कि आज़म ना सिरफ़ जाग रहा है बल्कि उसका हाथ उपर नीचे हो रहा था.
साहिबा की नज़र घूमती हुई उसके हाथ पर टिक गयी जो उसके लंड के गिर्द कसा हुया था. दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुन कर आज़म ने बाथरूम की तरफ देखा और जब उसने वहाँ अपनी बहन साहिबा को एकदम नंगी खड़ी देखा तो……
साहिबा को भी बाथरूम में खड़े खड़े ख़याल आया कि वो एकदम नंगी है तो उस ने पास लटका हुआ तोलिया उठा कर उसे अपने आगे कर लिया और अपने मम्मे और फुद्दि को छुपाने की नाकाम कोशिश करने लगी.
आज़म की नज़रें अपनी बहन पर टिकी हुई थीं, वो नज़रें फाडे उसे देख रहा था. साहिबा शरम से पानी पानी हो गयी. कुछ सूझ नही रहा था. चाहती तो बाथरूम का दरवाज़ा या फिर लाइट बंद कर लेती मगर वो चाहते हुए भी अपनी जगह से हिल भी ना सकी.
साहिबा ने अपनी नज़रें ऊपर उठाई तो देखा कि आज़म पूरी बेशरमी से आँखें फाडे साहिबा के बदन का मुयायना कर रहा था. उस की आँखे जिन्सी हवस में डूबी होने की वजह से सुर्ख हो रही थीं. और उसका हाथ और भी तेज़ी से उसके लंड पर फिसल रहा था.
दोनो बहन भाई की आँखें आपस में टकराई. पिछली पूरी चुदाई चूँकि अंधेरे में हुई थी. इसलिए दोनो उस वक़्त एक दूसरे को नही देख पाए था. साहिबा ने अपनी नज़रें घुमाई और अपने भाई के लंड को रोशनी में पहली बार गौर से देखा और सिहर गयी.
आज़म ने जब देखा कि उस की बहन उसके लंड को देख रही है तो उसने अपने लंड से हाथ हटा लिया “उफ़फ्फ़ इतना मोटा…. ये मेरी फुद्दि के अंदर था? ….उफ़फ्फ़ …टोपी कितनी मोटी है…. ये मेरी फुद्दि के अंदर घुसा कैसे होगा” साहिबा को यकीन नहीं हो पा रहा था कि इतना मोटा लंड उस की फुद्दी के अंदर घुसा हुआ था.
साहिबा ने फिर से लंड की तरफ देखा. लंड ज़ोर ज़ोर से झटके मार रहा था जैसे बहुत गुस्से में हो. साहिबा ने अपने भाई के लंड से अपनी तवज्जो हटा कर आज़म की आँखों में आँखे डालीं तो उसने अपने भाई की आँखों में अपने लिए हवस का एक तूफान देखा.
लेकिन हवस के साथ साथ साहिबा ने अपनी नशीली जवानी अपने मादक बदन की तारीफ भी अपने भाई की आँखों में देखी. मगर जिस चीज़ ने साहिबा का ध्यान अपनी तरफ खींचा हुआ था आज़म की आँखों में एक इल्तिजा, एक ख्वाहिश, एक चाहत, एक भूख जिस की वजह से आज़म तड़प रहा था.
साहिबा ने एक गहरी साँस ली और अपने हाथों से तौलिया छोड़ दिया. तौलिया छोड़ते ही साहिबा फिर से अपने भाई आज़म के सामने पूरी नंगी हो गयी. अपनी बहन को इस तरह अपने सामने नगा होते देख कर आज़म का चेहरा हज़ार वॉट के बल्व की तरह चमक उठा.
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उस का लंड झटके मारते हुए आज़म के पेट पर चोट मार रहा था लगता था जैसे और मोटा और लंबा होता जा रहा था. आज़म के उस मोटे लंड ने साहिबा को मदहोश कर दिया था. हालाँकि साहिबा जानती थी कि उन दोनो बहन भाई ने बहुत बड़ा गुनाह किया था लेकिन गुनाह का अहसास अब साहिबा के दिल में पहले की निसबत कम हो गया था. साहिबा ये भी जानती थी कि उन्हो ने ग़लती की है लेकिन वो अब अपने भाई आज़म को बिल्कुल कसूरवार नही समझ रही थी. ना ही किसी हद तक खुद को भी.
शायद साहिबा के दिल में इस बात से तस्सली थी कि साहिबा ने आख़िर कार आज अपने बेवफा शोहर से इंतिक़ाम ले लिया है. एक एसा शोहर जो खुद चाहे कितनी ही औरतों से सेक्स करे लेकिन उसे औरत बिल्कुल सती सावित्री चाहिए होती है. साहिबा अपने शोहर के सामने बोल तो नही सकती थी. लेकिन आज उस ने अपने ही भाई से चुदवा कर अपने शोहर से बराबरी कर ली थी. शायद यही वजह थी कि वो इतनी जल्दी अपने गुनाह की तकलीफ़ को भूल चुकी थी. और फिर साहिबा अपने भाई के लंड पर नज़रें जमाए हुए अपने कदम बेड की तरफ बढ़ाने लगी.
Sagar says
Mast mat h …Bhai countinue karo part Sahiba ki 2nd chidai bhai se fir gaand bhi marwayi