Bhai Bahan Wali Chudai
अर्पिता को जैसे ही उसके भाई का फोन आया, वो उसी वक़्त अपने ऑफीस से निकल पड़ी..उसकी माँ पिछले 20 दिनों से हॉस्पिटल में है..उन्हें हार्ट अटॅक आया था..पर अब धीरे-2 सुधार हो रहा है..पर फिर भी डॉक्टर्स कह रहे हैं की 10 दिन और लगेंगे.. अर्पिता एक प्राइवेट फर्म मे नौकरी करती थी और हॉस्पिटल मे उसका छोटा भाई दुष्यंत रहता था.. Bhai Bahan Wali Chudai
वो एक आवारा किस्म का लड़का था और अपनी डील -डोल की वजह से गुंडागर्दी भी सीख गया था वो..इसलिए उसकी दोस्ती भी ऐसे लड़को के साथ ही थी..पर जब से उनकी माँ हॉस्पिटल मे थी वो आवारगार्दी कर ही नही पाता था..इसलिए 5:30 होते ही वो अपनी बहन को फोन खड़का देता और उसके आते ही अपने दोस्तो के साथ निकल जाता..ज़िम्मेदारी का ज़रा भी एहसास नही था उसमे..
दिल्ली में रोहिणी की एक डी डी ऐ कॉलोनी मे घर था उनका..बस यही 2 मंज़िला घर था जो उनके पिताजी छोड़ गये थे…उपर वाले हिस्से में दो बेडरूम और नीचे किचन और ड्रॉयिंग रूम. अर्पिता की उम्र तो शादी के लायक हो चुकी थी पर घर की पूरी ज़िम्मेदारी उसके उपर थी…इसलिए वो अभी शादी के बारे मे दूर -2 तक सोच भी नही सकती थी..
वो थी तो काफ़ी सुंदर पर बिना मेकअप के और सादे कपड़ो मे रहने की वजह से कोई उसपर ज़्यादा ध्यान नही देता था..लड़को को वो खुद ही अपने पास फटकने नही देती थी..क्योंकि प्यार-व्यार के चक्कर मे पड़कर वो अपनी ज़िम्मेदारियो से दूर नही होना चाहती थी.
कुल मिलाकर काफ़ी समझदार और घरेलू किस्म की सुंदर सी लड़की थी अर्पिता…. और उसका भाई दुष्यंत, शक्ल से ही गुंडा टाइप का..हल्की दादी मूँछ मे रहता था हमेशा..बिखरे हुए बाल..सिगरेट की लत्त भी थी उसको…इसलिए होंठ भी चेहरे की तरह काले हुए पड़े थे..
पर अपने मोहल्ले मे काफ़ी दबदबा था उसका..और वो अपने कसरती बदन को बुरे कामो मे इस्तेमाल करके थोड़ी बहुत कमाई भी कर लेता था…पर वो पैसे वो अपने दोस्तो और शराब मे ही उड़ाता.. घर का खर्चा चलाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ और सिर्फ़ अर्पिता की ही थी.
उनके घर का खर्चा वैसे ही बड़ी तंगी मे चल रहा था.. उपर से माँ की बीमारी ने भी काफ़ी पैसे ख़त्म कर दिए.. और साथ ही साथ दीवाली भी आने वाली थी..सिर्फ़ दस दिन बाद..ऐसी हालत मे अर्पिता बस यही सोच रही थी की कैसे चलेगी ये जिंदगी.. पर उसे नही पता था की आने वाली दीवाली उसके लिए क्या-2 सर्प्राइज़ लाने वाली है..
अर्पिता के हॉस्पिटल पहुँचते ही दुष्यंत फ़ौरन वहाँ से निकल गया…इतनी जल्दी मचाते हुए अर्पिता ने उसे पहली बार देखा था.. रात के समय हॉस्पिटल मे किसी के भी रहने की मनाही थी..वैसे भी देखभाल के लिए नर्सेस रहती ही थी..इसलिए अर्पिता भी घर आ जाती थी..
घर पहुंचकर उसने अपना लोवर और एक हल्की सी टी शर्ट पहनी और खाना बनाने मे लग गयी..वो रात के समय अपने अंडरगार्मेंट्स भी उतार देती थी..यही नीयम था उसका रोज का..10 बजे तक दुष्यंत भी आ जाता था और दोनों मिलकर खाना खाते थे…
सुबह वो ऑफीस निकल जाती और दुष्यंत नहा धोकर हॉस्पिटल के लिए…पिछले दो महीने से यही नीयम चल रहा था.. पर आज 11 बजने को हो रहे थे और दुष्यंत का कहीं पता नही था…अर्पिता को भी काफ़ी भूख लगी थी..उसने उसका नंबर कई बार ट्राइ किया पर हर बार वो काट देता…
आख़िर मे जाकर जब उसने फोन उठाया तो सिर्फ़ इतना कहकर फोन रख दिया की ‘दीदी, दस मिनिट मे आया बस…’ दस मिनिट के बाद जब दुष्यंत आया तो वो काफ़ी खुश लग रहा था…पर अर्पिता के गुस्से वाले चेहरे को देखकर वो सहम सा गया और चुपचाप अपने कमरे मे जाकर चेंज करने लगा..और कपड़े बदल कर नीचे आया.
अर्पिता : “ये हो क्या रहा है आजकल…ये जानते हुए भी की माँ हॉस्पिटल में है, तुम इतनी रात को मुझे अकेला छोड़कर बाहर रहते हो..आख़िर गये कहाँ थे..और मेरा फोन क्यो काट रहे थे..”
दुष्यंत : “वो…मैं …जुआ खेलने गया था…”
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वैसे तो जुआ खेलना उसका हमेशा का काम था, पर माँ हॉस्पिटल में है, ऐसी हालत मे भी वो जुआ खेलने से बाज नही आ रहा, ये अर्पिता से बर्दाश्त नही हुआ..उसके मुँह मे जो भी आया, वो उसे कहती चली गयी..काफ़ी भला-बुरा सुनने के बाद अचानक दुष्यंत ने अपनी जेब से 500 के लगभग 20-30 नोट निकाल कर उसके सामने रख दिए.. और उन्हे देखते ही अर्पिता की ज़ुबान पर एकदम से ताला सा लग गया..
दुष्यंत (मुस्कुराते हुए) : “ये जीते है मैने..दीदी, आपको पता है ना दीवाली आने वाली है…और इसी टाइम ऐसी बड़ी-2 गेम्स चलती है…और जब आप फोन पर फोन कर रहे थे,मेरी एक बड़ी सी गेम फंसी हुई थी…इसलिए फोन काट रहा था..और जैसे ही ये पैसे जीता, मैं वहाँ से निकल आया..”
इतने पैसे एकसाथ देखकर अर्पिता हैरान थी…वो महीना भागा-दौड़ी करके सिर्फ़ 15000 कमाती थी…और उसके भाई ने लगभग उससे दुगने पैसे कुछ ही घंटो मे लाकर उसके सामने रख दिए थे.. वो जुए को हमेशा से बुरा मानती थी…पर उनके जो हालात थे, उसमे पैसे अगर जुआ खेलकर भी आए, तो उसे उसमे कोई प्राब्लम नज़र नही आ रही थी..
दुष्यंत ने वो सारे पैसे ज़बरदस्ती अर्पिता के हाथों मे रख दिए और बोला : “दीदी, मैं उतना भी बुरा नही हू जितना आप मुझे समझती हो…मुझे भी माँ की फ़िक्र है..अब मुझे आप की तरह कोई जॉब तो देगा नही, इसलिए जो मेरी समझ मे आता है, मैं करता हू…और ये पहली बार नही है की मैने जुए में पैसे जीते हैं, पर हाँ , इतने पैसे एक साथ पहले कभी नही जीते..पर पहले मैं उन पैसों को उड़ा देता था..पर आज के बाद ऐसा नही करूँगा..मैं भी आपकी मदद करूँगा..
अपने भाई की ऐसी समझदारी भरी बाते सुनकर अर्पिता एक दम से अपनी सीट से उठी और दुष्यंत के सिर को अपनी छाती से लगाकर सिसकने लगी : “मुझे माफ़ कर देना मेरे भाई…मैने तुझे इतना बुरा-भला कहा..मैं वो माँ की वजह से इतनी परेशान थी की जो मेरे मुँह मे आया, वो कहती चली गयी…”
ये दुष्यंत के लिए पहला मौका था जब उसकी बहन के मुम्मे उसके चेहरे पर दबे पड़े थे…उसने आज तक अपनी बहन के बारे मे कोई ग़लत बात नही सोची थी..पर आज जिस तरह से उसने दुष्यंत के सिर को पकड़कर अपनी छाती से लगाया था..
और जब दुष्यंत को ये महसूस हुआ की अर्पिता ने पतली सी टी शर्ट के अंदर कुछ भी नही पहना है तो उसे ऐसा एहसास हुआ की उसका चेहरा सीधा उसके नंगे मुम्मो के उपर रखा हुआ है…इतने नर्म और मुलायम थे उसके मुम्मे …और उसके जिस्म से निकल रही एक कुँवारी सी खुश्बू…वो तो बस अपनी आँखे बंद करके उस सुगंध को सूंघता ही रह गया..
अर्पिता बोलती जा रही थी : “पर दुष्यंत, ये पैसा हराम का है…आगे से कोशिश करना की अपनी मेहनत का ही पैसा घर लाया करो..”
उसकी बात से सॉफ जाहिर था की वो इन पैसो को अभी के लिए मना नही कर रही …करती भी कैसे..उसे पता था की उनसे हॉस्पिटल के बिल्स आसानी से दिए जा सकते हैं..
दुष्यंत ने अपना सिर उपर उठाया और बोला : “नही दीदी, आप ऐसा क्यो सोच रही है… ये दीवाली के दिन है, इन दिनों में जुए से जीते गये पैसे मेहनत किए हुए पैसों से कम थोड़े ही होते हैं…और आप कैसे कह सकती है की इसमे मेहनत नही है, इसमे बहुत दिमाग़ लगता है..और दिमाग़ लगाकर कमाई हुई रकम भी तो मेहनत से कमाए हुए पैसो के बराबर हुई ना..”
अर्पिता के पास उसकी बात का कोई जवाब नही था.. उसके दोनो हाथों मे दुष्यंत का चेहरा था..जो उसकी दोनो छातियों के बीच से झाँकता हुआ उसकी तरफ देख रहा था..इतने करीब से और इतने प्यार से तो उसने आज तक नही देखा था अपने भाई को…
उसने नीचे झुककर उसके माथे को चूम लिया और बोली : “ठीक है…पर मुझसे वादा कर, दीवाली के बाद तू ये जुआ नही खेलेगा..सिर्फ़ इन्ही दिनों के लिए खेल ले बस…और अपनी लिमिट मे रहकर..और बाद मे कोई अच्छा सा काम करके मेरी घर चलाने मे मदद करेगा..”
दुष्यंत : “ठीक है दीदी…अब जल्दी से खाना लगाओ…बड़ी भूख लगी है मुझे..”
और फिर हंसते हुए अर्पिता उसके लिए खाना परोसने लगी..
खाना खाते हुए अचानक अर्पिता ने कहा : “तुम रम्मी खेलते हो या पत्ते पर पत्ता ..”
दुष्यंत खाना खाते-2 अचानक रुक गया और ज़ोर-2 से हँसने लगा , और बोला : “हा हा हा, दीदी आप भी ना, ये बच्चों वाले खेल तो घर पर खेले जाते हैं..”
अर्पिता ने भी ये बात इसलिए कही थी क्योंकि वो खुद अपने भाई के साथ बचपन मे यही खेल खेलती थी..और कई बार क्या, हमेशा ही दुष्यंत को उसमें हरा देती थी..
दुष्यंत : “हम लोग खेलते हैं, तीन पत्ती ..यानी फ्लेश ”
अर्पिता : “ये कैसे होता है….”
दुष्यंत : “उम्म्म…..आप ऐसा करो…खाना खाने के बाद में आपके रूम मे आता हू…वहीं दिखाता हूँ की ये कैसे होता है..”
अर्पिता भी खुश हो गयी….वैसे भी खाना खाने के बाद वो रात को 12 बजे तक जागती रहती थी…ऐसे मे अपने भाई के साथ कुछ वक़्त गुजारने की बात सुनकर वो काफ़ी खुश हुई..और उसने खुशी-2 हाँ कर दी. किचन समेटने के बाद वो अपने कमरे मे गयी, जहाँ पहले से ही दुष्यंत अपने हाथ मे ताश की गड्डी लेकर उसका इंतजार कर रहा था.
आने से पहले अर्पिता अपना मुँह अच्छी तरह फेस वॉश से धोकर आई थी…ये काम वो रोज रात को करती थी…अपने चेहरे को चमका कर रखती थी वो हमेशा..इसलिए जब वो दुष्यंत के पास पहुँची तो उसका चेहरा ऐसे चमक रहा था जैसे वो अभी नहा धोकर आई है..
और मुँह धोने की वजह से उसकी टी शर्ट भी आगे से गीली हो गयी थी..और इसलिए उसके उभारों वाली जगह टी शर्ट से चिपक कर पारदर्शी हो गयी थी..पर निप्पल्स वाली जगह से नही, सिर्फ़ उपर-2 से..पर इतना गीलापन भी काफ़ी था दुष्यंत के लंड की नोक पर गीलापन लाने के लिए..
आज उसके साथ लगातार दूसरी बार ऐसी घटना हो रही थी ,आज से पहले उसने अपनी बड़ी बहन को ऐसी नज़रों से देखा ही नही था…दोनो अलग-2 और अपने मे मस्त रहते थे..पर आज जिस तरह से उसने दुष्यंत के सिर को अपने सीने से लगाया और अब अपनी गीली चुचियों के दर्शन भी करवा रही है..ऐसे मे इंसान का अपने लंड पर बस चलना काफ़ी मुश्किल हो जाता है.
अर्पिता धम्म से आकर उसके सामने पालती मार कर बैठ गयी और बोली : “हांजी …अब बताओ…क्या होता है ये तीन पत्ती”.
दुष्यंत : “जीतने भी खेलने वाले होते हैं, उन्हे 3-3 पत्ते बाँट दिए जाते हैं…और जिसके पत्ते बड़े होंगे, वही जीत जाएगा..”
अर्पिता : “बस….इतना सा …ये तो बड़ी आसान सी गेम है…बिल्कुल बच्चों वाली…हा हा ..”
वो तो ऐसे बिहेव कर रही थी जैसे वो एक ही बार मे सीख चुकी है..
दुष्यंत : “ये इतना भी आसान नही है, जितना लग रहा है…चलो,मैं पत्ते बाँटकर दिखाता हूँ …”
और दुष्यंत ने गड्डी कटवाई और फिर 3-3 पत्ते आपस मे बाँट लिए..अर्पिता ने फ़ौरन पत्ते उठा लिए.
दुष्यंत : “अरे….दीदी , ऐसे एकदम से नही उठाते…पहले ब्लाइंड चलनी पड़ती है… और अगर आपके पत्ते अच्छे हुए तो आप चाल चल सकती हो”.
और फिर दुष्यंत उसे ब्लाइंड और चाल के बारे मे बताने लगा..और ब्लाइंड और चाल के बारे मे अच्छी तरह से समझ कर वो बोली : “कोई बात नही…अगली बार से ध्यान रखूँगी..पर इन पत्तो का क्या करू…ये बड़े कहलाएँगे या नही..”
इतना कहकर उसने अपने तीनों पत्ते दुष्यंत के सामने फेंक दिए…वो तीनों इक्के थे..
दुष्यंत : “वाव दीदी…इक्के की ट्रेल…पहली बार मे ही आपके पास इक्के की ट्रेल आई ..बहुत बाड़िया…आपको पता है, इनके आगे कुछ भी नही चलता..ये सबसे बड़े होते हैं…सामने वाले के पास चाहे कुछ भी हो, आपसे जीत नही सकता…”
अर्पिता (आँखे घुमाते हुए ) : “कुछ भी….आ हाँन…”
और ना चाहते हुए भी अर्पिता की नज़रें घूमती हुई दुष्यंत के शॉर्ट्स की तरफ चली गयी…और वहाँ पर उठ रहा तंबू उसकी नज़रों से छुपा नही रह सका.. अर्पिता को तो अपनी आँखो पर विश्वास ही नही हुआ…ऐसा उसने जान बूझकर नही किया था..ऐसे ही उसकी नज़रें घूमती हुई वहाँ चली गयी थी..और वो इतनी भी नासमझ नही थी की इतने बड़े उभार का मतलब ना समझ सके..
असल मे वो दुनिया के सामने तो भोली भाली बनकर रहती थी…पर अपनी जिंदगी मे वो एक नंबर की ठरकी थी..वो होती है ना घुन्नी टाइप की लड़कियाँ, जो अपने आप को दुनिया की नज़रों से छुपा कर रखती है…पर अंदर से बड़ी चालू होती है…ठीक वैसी ही थी अर्पिता भी..उसने आज तक कभी भी सेक्स नही किया था..
पर सेक्स से जुड़ी बाते उसे हमेशा उत्तेजित करती थी..स्कूल / कॉलेज में भी वो लड़को से दूर रहती थी..पर रोज रात को उन्ही लड़को के बारे मे सोच-सोचकर फिंगरिंग किया करती थी…ये उसका अभी तक का नीयम था, इसलिए उसे सोते-2 रोज 12 बज जाते थे…
अपने मोबाइल पर चेट पर चेटिंग करना..फेक नाम से एफ बी पर अकाउंट भी बनाया हुआ था उसने और उसमें वो लड़को से रोज रात को चेटिंग करती थी…अपने मोबाइल से अपनी चूत की और मुम्मों की पिक्स उन्हे भेजकर उत्तेजित भी करती थी…पर किसी से फोन पर बात नही करती थी और ना ही किसी के सामने खुलकर आती थी..यानी अपना चेहरा हमेशा छुपा कर ही रखती थी..
और जब दुष्यंत ने ये बात बोली तो अपनी आदत से मजबूर उसकी नज़रें उसके लंड वाली जगह पर चली ही गयी… और फिर ना जाने क्या सोचकर उसने अपनी नज़रें घुमा ली…पर उनमे आ चुका गुलाबीपन दुष्यंत से छुपा न रह सका..
दुष्यंत : “क्या हुआ दीदी…आप एकदम से चुप सी क्यों हो गयी…”
अर्पिता : “बस…ऐसे ही…उम्म्म्म एक बात पूछू तुझसे दुष्यंत…”
दुष्यंत : “हाँ दीदी…पूछो…”
अर्पिता : “मैं तुझे कैसी लगती हू…”
दुष्यंत : “आप….मतलब…आप तो अच्छी ही हो दीदी…इसमे पूछने वाली क्या बात है…”
अर्पिता : “अरे नही बुद्धू ….मेरा पूछने का मतलब…देखने में …कैसी हूँ मैं …”
इतना कहकर उसने अपनी ज़ुल्फो मे हाथ फेरा..अपने खुले हुए बाल पीछे किए…और अपना सीना बाहर की तरफ़ निकाल कर ऐसे पोज़ दिया जैसे कोई फोटो सेशन हो रहा हो वहाँ… दुष्यंत की नज़रें अर्पिता की हर हरकत पर थी…उसके नाज़ुक हाथों का जुल्फे पकड़कर पीछे करना…अपने चेहरे पर उँगलियों को फेरना, बालों को कान के पीछे अटकाना..सब वो ऐसे देख रहा था जैसे वो सब अर्पिता उसके लिए ही कर रही हो..
दुष्यंत अपनी बहन की सुंदरता देखकर हैरान हुए जा रहा था…उसे पता तो था की वो सुंदर है..पर इतनी सेक्सी भी है, ये आज ही पता चला उसको..अभी तो उसने कोई मेकअप नही किया हुआ..अपने गुलाबी होंठों पर लाल लिपस्टिक , आँखो मे अर्पिता और चेहरे पर मेकअप करने के बाद तो ये कयामत ही लगेगी.
अर्पिता : “क्या सोचने लगे अब….बोलो ना..”
दुष्यंत (झेंपता हुआ सा) : “बोल तो दिया दीदी…आप अच्छी हो…चलो अब आगे देखो…मैं दोबारा पत्ते बाँट रहा हू…”
और दुष्यंत ने बात बदलते हुए फिर से 3-3 पत्ते बाँट दिए..ये काम उसने इसलिए भी किया था की अर्पिता की ऐसी बातें सुनकर उसके लंड ने अपना पूरा आकार ले लिया था और वो अंडरवीयर में ऐसे फँस गया था की उसे सही करने के लिए वो अपने हाथ नीचे भी नही कर पा रहा था…क्योंकि अपनी बड़ी बहन के सामने वो कैसे अपने लंड को हाथ लगाता भला..इसलिए उसने बात बदलने में ही भलाई समझी ताकी उसका लंड नीचे बैठ जाए. अब की बार अर्पिता ने पत्ते नही उठाए..
अर्पिता : “पर तुमने तो कहा था की ब्लाइंड चलने के लिए पैसे चाहिए होते है…अब क्या हम दोनो भी पैसो से खेलें क्या …”
दुष्यंत : “नही…उसके बदले कुछ भी रख देते है…”
इतना कहकर वो इधर उधर देखने लगा…
अर्पिता के मन मे तब तक एक बात आ चुकी थी, वो बोली : “एक काम करते है…ब्लाइंड या चाल के बदले हम एक दूसरे से सवाल करेंगे…और सामने वाला उसके जवाब बिल्कुल सच मे देगा…बोलो मंजूर है…”
दुष्यंत को समझ नही आया की उसकी बहन करना क्या चाहती है…पर वो समझ चुका था की अर्पिता उसे फंसाना चाहती है , जो भी था,उसमें वो फंसना नही चाहता था.
दुष्यंत : “क्या दीदी…आप भी ना…इसमे मज़ा नही आएगा…रूको…में पैसे लेकर आता हू…उससे ही खेलते है…या फिर माचिस की तिल्लिया लेकर आता हू, उन्हे आपस मे बाँट लेंगे, उनसे खेलेंगे…”
अर्पिता : “नही…अब तो मैं ऐसे ही खेलूँगी…वरना तुम उठाओ ये पत्ते और जाओ अपने कमरे मे…मुझे भी नींद आ रही है..”
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दोनो ही सूरत मे अर्पिता अपना फायदा देख रही थी…अगर वो खेलने के लिए मान जाता तो वो उससे अपनी पसंद के सवाल करके कुछ सच उगलवाती…और अगर वो चला जाता तो रोज रात की तरह चेटिंग वगेरह करते हुए मुठ मारती …और वैसे भी आज वो कुछ ज़्यादा ही उत्तेजित हो रही थी…पता नही क्यो.
वापिस जाने की बात सुनते ही दुष्यंत हड़बड़ा सा गया…आज पहली बार तो उसे अपनी बड़ी बहन को ऐसे देखने का मौका मिला था..और उपर से वो थोड़ा नॉटी भी बिहेव कर रही थी…ऐसे मे वापिस जाना मतलब हाथ में आया मौका खो देने जैसा ही था.
हमेशा अपनी ‘बहन’ को ‘बहन’ की नज़र से देखने वाला दुष्यंत अचानक से ही उसे एक ‘लड़की’ की नज़र से देखने लग गया..और देखे भी क्यो ना..खूबसूरत तो थी ही वो..अपनी अदाओं का जादू वो ऐसे चला रही थी जैसे कोई किसी को पटाने के लिए करता है…अब उसकी समझ में ये नही आ रहा था की उसकी हरकतों को वो क्या समझे…पर जो भी था अभी तक तो दुष्यंत को मज़ा ही आ रहा था…और ऐसे मज़े को वो खोना नही चाहता था..
दुष्यंत : “ठीक है दीदी….जैसा आप कहो…”
और वो फिर से वही बैठ गया और पत्ते बाँटने लगा..अर्पिता के होंठों पर विजयी मुस्कान तैर गयी.
अर्पिता ने भी आज से पहले अपने भाई के बारे मे ऐसा नही सोचा था…पर वो सोच रही थी की कैसे वो अब तक रोज रात को इस कमरे मे सोते हुए अपनी चूत की मालिश करती है और बिल्कुल साथ वाले कमरे में ही उसका जवान भाई भी सोता है…
उसके इतनी पास रहते हुए वो ये सब काम करती है..सिर्फ़ एक दीवार ही तो है बीच मे…और अगर वो दीवार भी ना हो तो…और वो उसके सामने ही नंगी होकर अपनी चूत रगड़ रही हो तो….ये सोचते ही उसके पूरे बदन में एक सिहरन सी दौड़ गयी….उसके होंठ काँपने लगे…उपर वाले भी …और नीचे वाले भी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
दुष्यंत : “अब क्या हुआ दीदी…..आपकी ब्लाइंड है…पूछो ..क्या पूछना है…”
पूछना तो अर्पिता बहुत कुछ चाहती थी..पर फिर भी अपने होंठों को दांतो से काटकर बड़ी मुश्किल से अपने आप पर काबू किया और बोली : “तेरी….तेरी…एक गर्लफ्रेंड थी ना…वो अभी भी है क्या…और क्या नाम है उसका..”
दुष्यंत की आँखे गोल हो गयी…उसने तो सोचा भी नही था की ये बातें इतनी पर्सनल भी हो सकती है…
और ये अर्पिता को कैसे पता चला की उसकी एक गर्लफ्रेंड है …ये बात तो उसने आज तक उसे नही बताई…वो ज़्यादा बाते करता ही नही था अर्पिता के साथ..इसलिए वो हैरान हो रहा था की ये अर्पिता आज एकदम से क्यों उसकी पर्सनल जिंदगी के बारे मे पूछ रही है..
दुष्यंत : “वो….थी या नही थी…आप क्यो पूछ रही हो…और आपको कैसे पता की मेरी एक जी एफ थी..”
अर्पिता : “गेम का रूल है ये…तुझे बताना पड़ेगा…मुझे कैसे पता वो बात रहने दे…”
दुष्यंत फँस चुका था…वो सोचने लगा की अगर उसे ये बात पता है तो उसके सामने झूठ बोलने का कोई फायदा नही है..
दुष्यंत : “जी…वो अभी भी है…और उसका नाम आरती है…”
आरती का नाम सुनते ही अर्पिता का दिमाग़ सुन्न सा हो गया…ये तो उसकी बचपन की सहेली थी…जिसके साथ वो पिछले 2 सालो से बात नही कर रही…दोनो मे किसी बात को लेकर इश्यू हो गया था इसलिए.. पर उसका खुद का भाई, उसकी सबसे करीबी सहेली के साथ लगा हुआ है, ये उसने सोचा भी नही था.
अर्पिता : “आरती के साथ…..ओह्ह्ह्ह माय गॉड …पर ये कब से चल रहा है…मुझे तो पता भी नही..”
दुष्यंत : “आप एक ही बार मे दो सवाल नही पूछ सकती…अब मेरी ब्लाइंड है..यानी सवाल पूछने की बारी अब मेरी है..”
दुष्यंत अपने आप को बड़ा समझदार समझ रहा था उस वक़्त…उसने मुस्कुराते हुए वही प्रश्न अपनी बहन से भी पूछ लिया : “आपका कोई बाय्फ्रेंड है क्या…या कभी रहा हो…क्या नाम है उसका..”
अर्पिता ने सपाट चेहरे से उत्तर दिया : “नही…कोई था ही नही तो नाम किसका बताऊ ..”
बेचारा दुष्यंत अपना सा मुँह लेकर रह गया.
वैसे इन बातो का कोई मतलब नही था…दोनो भाई बहन ने आज से पहले कभी इस विषय पर बात नही की थी…उन्हे थोड़ा अटपटा भी लग रहा था…पर मज़ा भी बहुत आ रहा था…ख़ासकर अर्पिता को..वो तो समझ चुकी थी की इस गेम के ज़रिए वो आज सब कुछ उगलवा लेगी दुष्यंत से..जो वो हमेशा से उससे पूछना चाहती थी..पर शरम के मारे कभी पूछने की हिम्मत ही नही हुई.
अर्पिता : “अब मेरी बारी…अब ये बताओ…आरती के साथ तुमने क्या -2 किया है..”
ये उसकी ब्लाइंड थी..
दुष्यंत (झल्लाकर) : “आप भी ना दीदी…ये कैसे सवाल पूछ रही है…मुझे शर्म आ रही है..”
अर्पिता : “एक लड़का होकर भी तू ऐसे शरमा रहा है…रहने दे..मुझे नही खेलनी ये गेम शेम ..तू जा अपने कमरे में ..मुझे वैसे भी नींद आ रही है..”
ये तो जैसे उसके स्वाभिमान पर चोट कर दी थी अर्पिता ने…वो एकदम से तैश मे आकर बोला : “मुझे कोई शरम-वरम नही आती …ये तो तुम्हारा लिहाज कर रहा हू..वरना मुझे ये बाते बताने मे कोई फ़र्क नही पड़ता..”
अर्पिता (चटखारे लेते हुए) : “तो बता ना…चुप क्यों है अभी तक…बोल, क्या-2 किया है तुम दोनो ने अभी तक..”
अर्पिता फुल टू मूड में आ चुकी थी अब तक…और शायद ये भी भूल चुकी थी की वो क्या पूछ रही है और किससे…
दुष्यंत : “हमने….वो किस्सस वगैरह …हग्स….उम्म…..एंड फकिंग भी ….”
लास्ट का वर्ड यानी फकिंग सुनते ही अर्पिता एकदम से सुलग कर रह गयी…दो साल पहले तक, जब तक दोनो की दोस्ती थी, उन्होने यही डिसाईड किया था की अपनी शादी से पहले किसी को भी वो सब नही करने देंगी…पर ये आरती कितनी चालू निकली…इन दो सालो मे वो कितनी बदल गयी है…कहाँ से कहाँ पहुँच गयी…अपना वादा तोड़ दिया…और चुदवा भी ली…और वो भी उसके खुद के भाई से…
अर्पिता को गुस्सा तो बहुत आया..पर वो कर भी क्या सकती थी…उसकी अपनी लाइफ थी..वो जैसे चाहे , वैसे चलाए…वो बेकार मे ही गुस्सा करके अपना खून जला रही है. वो थोड़ा नॉर्मल हुई…पर ‘फकिंग’ शब्द सुनने के बाद वो अपने भाई से नज़रें नही मिला पा रही थी…और ये जानकार भी की छोटा होते हुए भी उसका भाई उससे आगे निकल गया है…
यानी किसी के साथ संबंध बना लिया है उसने…और एक वो है…अभी तक अपनी कुँवारी चूत की घर बैठकर मालिश कर रही है बस… उसके मन मे आया की ‘काश….ऐसी कोई जगह होती..जहाँ कभी भी , कोई भी जाकर चुद सके..बिना कोई सवाल पूछे..बस वहाँ जाए, और चुदाई करनी या करवानी शुरू कर दे…तो वो भी वहाँ जाती और अपने प्यासे जिस्म की प्यास बुझा लेती…’
ऐसे बे-सिर-पैर के ख़याल अक्सर उसके दिमाग़ मे आते रहते थे. अब दुष्यंत की बारी थी…पर उसकी समझ में नही आ रहा था की वो पूछे भी तो क्या पूछे …उसकी बहन ने वो काम अभी तक नही किए थे…तो कैसे वो आगे की बाते पूछे..वो पूछना चाहता था की ‘दीदी,आपने किसी के साथ कोई संबंध नही रखा,पर क्या आपने आज तक मूठ भी नही मारी..आपको कुछ होता नही है क्या अंदर से…’
पर वो ऐसा पूछ नही पाया…
फिर अचानक वो बोला : “आप ये बताओ…ये कैसे पता चला की मेरी एक गर्लफ्रेंड है…मैने तो आज तक आपको बताया नही..और आरती से तो आपकी 2 सालो से बोलचाल बंद है..फिर पता कैसे चला..”
अर्पिता ने सिर झुकाते हुए धीरे से कहा : “वो….मैने….कई बार…तुम्हारे मोबाइल पर मैसेजस पड़े हैं…इसलिए…”
दुष्यंत : ओह तेरी…..तो ऐसे पता चला अर्पिता को…’
और अर्पिता को उसका नाम शायद इसलिए नही पता था क्योंकि उसने अपने मोबाइल मे आरती को ”शोना” के नाम से सेव किया हुआ था..और ये नया नंबर था, इसलिए अर्पिता समझ नही पाई की ये ”शोना” असल मे उसकी पक्की सहेली आरती ही है.
दुष्यंत : “चलो कोई बात नही…अब तो आपको पता चल ही गया है…अब आप फिर से ब्लाइंड यानी कुछ और पूछना चाहती हो तो पूछो …वरना अपने पत्ते खोलकर चाल चलो…”
अर्पिता के पास तो काफ़ी सवाल थे…पर पहली बार मे ही वो सब पूछकर वो दुष्यंत को भगाना नही चाहती थी…उसने अपने पत्ते उठा लिए..पर ये पत्ते उसकी समझ मे नही आए… दुष्यंत ने भी अपने पत्ते उठा कर देखे…उसके पास 5 का पेयर आया था…वो खुश हो गया..पर अर्पिता के प्रश्नवाचक चेहरे को देखकर बोला : “क्या हुआ दीदी…पत्ते ठीक नही आए क्या…”
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अर्पिता : “पता नही…ये देखो ज़रा…”
उसने अपने पत्ते सामने फेंक दिए…वो थे इक्का, बादशाह और बेगम…
दुष्यंत : “यार दीदी….आप तो कमाल हो…पता है ये क्या है….सबसे बड़ी सीक्वेंस …इनको तो सिर्फ़ और सिर्फ़ ट्रेल ही काट सकती है..जो बड़ी मुश्किल से आती है…जैसी आपके पास पिछली बार आई थी..इक्के की.”
और फिर दुष्यंत ने अर्पिता को सभी तरह के पत्तो के बारे मे बताया की क्या बड़ा होता है…क्या छोटा…सुच्ची किसे कहते हैं…कलर…पेयर ..सीक्वेंस …सभी की जानकारी दी उसने..
दुष्यंत : “ये गेम तो आप जीत गयी…”
अर्पिता : “अब पैसे तो रखे नही है हमने …फिर मुझे क्या मिलेगा…”
वो मंद -2 मुस्कुरा भी रही थी ये बोलते हुए…
दुष्यंत को उसकी हँसी का जो मतलब नज़र आ रहा था..वो कहना नही चाहता था…और ये भी नही बोलना चाहता था की जीतने के बाद वो क्या माँगने की बात कर रही है…
दुष्यंत : “वो बाद मे बता देना…अभी मुझे कुछ और देखना है…”
अर्पिता : “क्या ???”
और जान बूझकर अर्पिता ने अपने दोनो हाथ अपनी छातियों पर रख लिए…जैसे दुष्यंत उन्हे ही देखने की बात कर रहा हो.. और फिर दुष्यंत के मासूमियत से भरे चेहरे पर पसीना देखकर वो खुद ही हंस-हंसकर लोट-पोट हो गयी…
अर्पिता : “हा हा हा ….दुष्यंत तू भी ना….कितना बड़ा भोंदू है…पता नही तूने वो सब कैसे किया होगा आरती के साथ…वो तो तुझे कक्चा खा गयी होगी…”
दुष्यंत : “मुझे …और वो….आप ये बात कैसे कह सकती हो …”
वो ताश की गड्डी को पीटता हुआ बोला.
अर्पिता : “मुझे पता है…वो ऐसी ही है शुरू से…जिस तरह की बाते वो करती थी की ये करेगी…वो करेगी…मैं तो सोच भी नहीं सकती थी वो सब…और वो बोल भी देती थी…उसकी बातें सुनकर ही मुझे पता चल गया था की इसके हाथ जो भी पहला शिकार आएगा…वो उसका क्या हाल करेगी…और मुझे क्या पता था की उसका शिकार मेरा भाई ही होकर रहेगा…हा हा”
और वो फिर से अपना पेट पकड़कर ज़ोर-2 से हँसने लगी. अब दुष्यंत अपनी बहन को क्या बताता…पहली बार उसने आरती की चूत यहीं मारी थी…वो भी इसी बेड पर, जहाँ वो इस समय खेल रहे थे..अर्पिता ऑफीस गयी हुई थी और माँ किसी काम से मार्केट… ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
उस समय उसने आरती की ऐसी चीखे निकलवाई थी की वो आज भी याद करके सहम जाती है…बाद में तो उसे दुष्यंत के मोटे लंड की आदत पड़ गयी…पर बाद मे भी हर बार वो उसकी रेल बनाकर ही चुदाई करता था…वो हारकर पस्त हो जाती है..पर दुष्यंत अपनी हार नही मानता…और शायद इसलिए वो पिछले 1 साल से किसी और की तरफ देखती तक नही है…ऐसी चुदाई करने वाला बी एफ आसानी से थोड़े ही मिलता है आख़िर.
दुष्यंत : “चलो , छोड़ो अब ये सब सच बुलवाने वाली गेम्स…मेरे दिमाग़ मे कुछ आ रहा है…वो चेक करने दो पहले मुझे…”
और फिर से उसने दोनों को 3-3 पत्ते बाँटे…और फिर बिना ब्लाइंड या चाल चले दुष्यंत ने दोनो के पत्ते पलट कर सीधे कर दिए.. दुष्यंत ने अपने पत्ते देखे…ऐसे ही थे.. बेकार से…पर अर्पिता के पत्ते इस बार भी कमाल के थे…उसके पास पान का कलर आया था… दुष्यंत ने फिर से पत्ते बाँटे और फिर से उन्हे पलट कर सीधा किया…इस बार भी अर्पिता के पास इकके का पेयर आया… वो फिर से पत्ते बाँटने लगा.
अर्पिता : “ये तू कर क्या रहा है…मुझे भी तो बता ज़रा…”
दुष्यंत : “रूको दीदी. …बस थोड़ी देर और…”
और उसके बाद दुष्यंत ने 3 बार और पत्ते बाँटे …और हर बार अर्पिता के पत्ते भारी थे…और हर बार उसके पास चाल खेलने लायक ही पत्ते आ रहे थे…कभी पेयर …कभी कलर…कभी सीक्वेंस …
आख़िर मे दुष्यंत बोला : “दीदी…लगता है आपके अंदर कोई शक्ति छुपी है…या कोई वरदान है ,आप देख रही हो ना…हर बार आपके पत्ते कितने जबरदस्त आ रहे हैं…”
अर्पिता : “हाँ तो….”
दुष्यंत (अपने चेहरे पर चालाकी भरी मुस्कान लाते हुए) : “दीदी …मेरे पास एक प्लान है..”
अर्पिता : “प्लान….? कैसा प्लान…और किसलिए..”
दुष्यंत : “देखो दीदी…आजकल दीवाली का टाइम है..और इस टाइम सभी लोग जुआ खेलते हैं…वैसे जुआ खेलने वाले तो पूरा साल खेलते हैं पर इन दिनों और भी ज़्यादा और बड़ी-2 गेम्स होती है …और इसलिए वो कल में इतने पैसे जीत कर लाया था…”
अर्पिता : “हाँ …तो ..? “
दुष्यंत : “तो अगर हम लोग ये जुआ खेले…मेरा मतलब है की तुम…तो शायद काफ़ी पैसे आ सकते हैं…मेरे जितने भी दोस्त है वो सब खेलने वाले हैं…उनके साथ खेलेंगे..और मुझे पूरा विश्वास है की आप ही जीतोगे ..आप देख रहे हो ना, किस तरह के पत्ते आते हैं हर बार आपके पास…”
अर्पिता का तो दिमाग़ ही घूम गया उसकी बात सुनकर..
अर्पिता : “तू पागल हो गया है….तू चाहता है की में तेरी तरह जुआ खेलूं ..और वो भी तेरे उन आवारा दोस्तों के साथ…तुझे शर्म नही आएगी की तेरी बहन बाहर जाकर जुआ खेले…कभी सुना है तूने की कोई लड़की जुआ खेलती है…तुझे पता भी है की कितनी बदनामी होगी हमारी…”
बोलते-2 उसकी आवाज़ काफ़ी तेज हो गयी थी गुस्से की वजह से. दुष्यंत आराम से सब सुनता रहा और आख़िर मे बोला : “दीदी….सबसे पहले तो ये ख्याल मन से निकाल दो की लड़कियाँ ये काम नही करती…ये दीवाली के दिन है…और इन दिनों लड़कियाँ और औरतें ही सबसे ज़्यादा खेलती हैं…
चाहे शगुन के लिए ही सही पर इन दिवाली के दिनों में जुआ खेलना शुभ माना जाता है..और आपको कहीं बाहर नही जाना है खेलने, मैं उन्हे यहीं बुला लूँगा…अपने घर पर..और आपको मेरे होते हुए किसी से भी डरने की जरुरत नही है…आप शायद नही जानती की मेरा कितना दबदबा है इस मोहल्ले में…कोई आपकी तरफ आँख उठा कर भी नही देख सकता…”
अर्पिता उसकी बात सुनती रही..शायद उसको वो सब सही लग रहा था अब..
अर्पिता (थोड़े नरम स्वर मे) : “पर…माँ हॉस्पिटल में है और हम लोग ऐसे घर मे बैठकर जुआ खेलेंगे…माना की तेरे दोस्त तेरे सामने नही बोलेंगे…पर पीछे से तो हर कोई यही कहेगा ना की माँ हॉस्पिटल मे है और इन्हे जुआ खेलने की पड़ी है..”
दुष्यंत : “ये सब मै माँ के लिए ही कर रहा हू…कल मेरी डॉक्टर् से बात हुई थी..उन्हे घर लाने के लिए..तो उन्होने कहा था की या तो 10 दिन तक उनका हॉस्पिटल मे रहकर इलाज करवा लो…या फिर घर लेजाकर एक इंजेक्शन रोज लगवाना, 5 दीनो तक..जो करीब 3000 का एक है..हम उन्हे कल ही घर ले आएँगे…और इन पैसों से उनका घर पर ही इलाज करवाएँगे..”
अर्पिता को उसकी बात मे तर्क नज़र आया…क्योंकि ये बात डॉक्टर ने उसे भी कही थी…पर इतने पैसे कहाँ से लाती वो, यही सोचकर उसने उस बात पर ज़्यादा ध्यान नही दिया था..कहने को तो ये सरकारी हॉस्पिटल था पर उसमे भी उनके पैसे लग ही रहे थे….और रोज -2 आने-जाने की मशक्कत भी अलग से करनी पड़ती थी.अगर माँ को घर ले आएँ तो ये सारी चिंता और परेशानी ख़त्म हो जाएगी.
अर्पिता : “पर असली में खेलते हुए अगर मैं हार गयी तो, मेरा मतलब है की अगर खेलते हुए लक्क ने मेरा साथ नही दिया तो ??”
दुष्यंत : “आप उसकी चिंता मत करो , मै सब संभाल लूंगा.”
अर्पिता चुप हो गयी….दुष्यंत समझ गया की वो उसकी बातों पर विचार कर रही है.
दुष्यंत : “दीदी…आप इतना मत सोचो…आजकल तो सभी के घर पर जुआ चलता है…कल भी मै अपने दोस्त गुल्लू के घर पर ही खेल रहा था…और उसकी बीबी को तो आप जानती ही हो, रूबी, वो भी खेल रही थी उसके साथ…अब ऐसा त्योहार का माहोल हो तो घर की औरतों का भी थोड़ा बहुत एंटरटेनमेंट हो जाता है…”
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अर्पिता तो पहले ही मान चुकी थी…दुष्यंत बेकार मे अभी तक उसे मनाने के लिए इधर-उधर की बातें कर रहा था..
वो जैसे ही बोला ‘और वो जो मेरा दोस्त है ना…..’
अर्पिता : “ओके ..बाबा …समझ गयी….अब चुप कर जा….समझ गयी मैं…”
अर्पिता ने हंसते हुए कहा तो दुष्यंत भी खुशी के मारे उछल पड़ा…और प्रेम भाव मे आकर वो अर्पिता से लिपट गया..
दुष्यंत : “ओह …दीदी ….मुझे पता था की आप ज़रूर समझोगी…भले ही ये ग़लत तरीका है पैसे कमाने का..पर हमें इस समय इन पैसो की बहुत ज़रूरत है…”
अर्पिता की साँसे तेज हो गयी…दरअसल दुष्यंत के जिस्म से निकल रही मर्दाना खुशबु उसे सम्मोहित सी कर रही थी…ऐसा लग रहा था की जैसे कोई नशा है जो दुष्यंत के शरीर से निकल कर उसकी सांसो मे समा रहा है..और ये सब महसूस करते-2 कब उसके निप्पल बाहर निकल कर दुष्यंत को चुभने लग गये.
उसे भी पता नही चला…और दुष्यंत को लगा की शायद उसके गले मे पड़ा हुआ लॉकेट चुभ रहा है उसके सीने मे..पर फिर उसे याद आया की वो तो काफ़ी उपर बँधा है…और तब उसे एहसास हुआ की ये कोई लोकेट नही बल्कि कुछ और है…जो दोनो तरफ से एक बराबर चुभ रहा है..और उसे समझते देर नहीं लगी की वो क्या है.
अब उत्तेजित होने की बारी दुष्यंत की थी…उसने लाख कोशिश की पर उसके लंड ने उसकी एक नही मानी और एकदम से तन कर खड़ा हो गया..जिसे अर्पिता ने भी अपने पेट पर महसूस किया.. और ये था उसके शरीर पर किसी खड़े लंड का पहला एहसास… ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
भले ही रात के समय वो कितने ही लड़को के लंड खड़े करके मज़े लेती थी पर उनके एहसास को महसूस करने का ये पहला अवसर था उसके लिए और इस एहसास ने उसके शरीर को पसीने से भिगो दिया..और चूत को भी महका दिया. दोनो एकदम से अलग हो गये…और एक दूसरे से नज़रें चुराते हुए इधर-उधर देखने लगे..
दुष्यंत : “ओके ..दीदी …अब मै चलता हू…अपने रूम मे..गुड नाइट. और हां आप कल ऑफीस की छुट्टी कर लेना..हम दोनो सुबह ही हॉस्पिटल चलेंगे और माँ को घर ले आएँगे……”
अर्पिता : “ओक….मै सुबह ऑफीस में फोन कर दूँगी…गुड नाइट..”
उस रात अर्पिता ने अपने वर्चुअल आशिकों से कोई भी बात नही की…पर जम कर अपनी बिना बालों वाली चूत को रगड़ा…इतना रगड़ा की उसपर लाल निशान पड़ गये..और जब वो झड़ी तो उसके शरीर के कंपन से पूरा पलंग हिल गया.. और वो ये सोचकर मुस्कुरा उठी की जब वो किसी के लंड की वजह से झड़ेगी तो शायद ये पलंग टूट ही जाएगा..
दुष्यंत भी अपने कमरे मे जाकर पूरा नंगा हो गया..और अपने हाथ में लंड लेकर ज़ोर-2 से हिलाने लगा..वो चाहता नही था की इस समय उसकी बहन अर्पिता का ख़याल भी आए..इसलिए वो अपनी आँखे बंद करके आरती के बारे में सोचने लगा..उसके नंगे शरीर के बारे मे सोचने लगा..
उसे कैसे चोदा था वो याद करने लगा..पर अपने ऑर्गैस्म के करीब जाते-2 कब आरती का चेहरा अर्पिता मे बदल गया, वो भी समझ नही पाया…और अंत मे आकर जब उसके लंड से पिचकारियाँ निकली तो उस सफेद पानी के साथ -2 उसके मुँह पर भी अर्पिता का ही नाम था..
”अहह ….ओह अर्पिता…… उम्म्म्मममममममममम”.
फिर वो सब कुछ साफ़ करके सो गया…ऐसे ही नंगा. अगली सुबह अर्पिता की नींद जल्दी खुल गयी…जो उसकी हमेशा की आदत थी…भले ही उसे आज ऑफीस नही जाना था पर नहा धोकर वो 8 बजे तक तैयार हो गयी…घर की सफाई भी कर ली…वो रोज 8 बजे तक निकल ही जाती थी घर से..और दुष्यंत घर पर सोता रहता था… वो 10 बजे उठता और करीब 12 बजे तक हॉस्पिटल पहुंचता था रोज…यही था दोनो का नियम पिछले एक महीने से…
अर्पिता नीचे किचन मे अपने लिए चाय बना ही रही थी की बाहर का दरवाजा खुलने की आवाज़ आई…उसने बाहर भी झाड़ू लगाया था इसलिए दरवाजा खुला ही रह गया था.. वो किचन से निकल कर जब तक बाहर निकली तो उसने देखा की आरती जल्दी से अंदर घुसी और उसने दरवाजा अंदर से बंद किया और हिरनी की तरह छलाँगें लगाती हुई वो उपर दुष्यंत के कमरे की तरफ चल दी..
उसने एक टी शर्ट और स्कर्ट पहनी हुई थी , जिसमे वो बड़ी सेक्सी लग रही थी. अर्पिता के चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान तैर गयी…आरती को शायद नही पता था की आज अर्पिता घर पर ही है…और शायद उसके ऑफीस चले जाने के बाद पीछे से घर पर आना उसका रोज का नियम था…
अर्पिता ने सोचा ‘अच्छा, तो ये कारण है दुष्यंत के रोज इतनी लेट हॉस्पिटल पहुंचने का, आरती कभी मेरे सामने तो घर पर आ नहीं सकती , इसलिए मेरे ऑफिस जाने के बाद के टाइम पर ही आई है ,अब मज़ा आएगा…उपर का सीन देखने लायक होगा’. उसने जल्दी से गैस को बंद किया और दबे पाँव उपर चल दी.. अपनी पुरानी सहेली और अपने प्यारे भाई को रंगे हाथों पकड़ने. आरती भागती हुई सी दुष्यंत के रूम मे पहुँची..वो चादर तान कर सो रहा था..
आरती : “गुड मॉर्निंग जानू…देखो मैं आ गयी…”
पर वो जाग रहा होता तो जवाब देता न…रात को वो ना जाने कितनी देर तक अपनी बहन और जुए के बारे मे सोचता रहा था..
आरती : “अब ये नाटक छोड़ो…मुझे पता है तुम जाग रहे हो…नीचे का दरवाजा तुमने मेरे लिए ही खोलकर रखा था ना आज…”
पर फिर भी कोई जवाब नही मिला.. आरती आगे बड़ी और उसने एक ही झटके मे दुष्यंत की चादर खींच कर अलग कर दी.. और जो उसने सामने देखा, उसे अपनी आँखो पर विश्वास नही हुआ.. दुष्यंत मादरजात नंगा होकर सो रहा था…और उसका 8 इंच का लंड पूरा खड़ा होकर हुंकार रहा था..अब ये मॉर्निंग इरेक्शन था या फिर वो कोई सपना देखा रहा था, ये अलग बात थी.
पर आरती की आँखो मे एक अजीब सी चमक आ गयी..वो तो वैसे भी उसके लंड की दीवानी थी और अभी भी चुदवाने के लिए ही आई थी..उसने दुष्यंत को ऐसी गहरी नींद मे सोते हुए आज तक नही देखा था..और ना ही कभी नंगा सोते हुए..वो हमेशा शॉर्ट्स और टी शर्ट पहन कर ही सोता था..
पर उसे क्या पता की कल रात को क्या-2 हुआ दुष्यंत के साथ…और अपनी बहन अर्पिता के बारे मे सोचकर मूठ मारने के बाद उसने कपड़े पहनने की जहमत भी नही उठाई और ऐसे ही सो गया..ये भी बिना सोचे समझे की सुबह किसी ने देख लिया तो क्या सोचेगा..
आरती के होंठ सूख गये उसके लंड को देखकर..पर नीचे के होंठ गीले हो गये..उसका एक हाथ अपनी चूत पर चला गया…और दूसरे से वो अपनी ब्रेस्ट को मसलने लगी…और धीरे-2 चलती हुई वो दुष्यंत के पलंग पर बैठ गयी.. इसी बीच अर्पिता भी उपर आ चुकी थी…और दरवाजे के बाहर छुपकर वो उनकी रासलीला देख रही थी.
पर जब उसने अंदर देखा तो उसके होश ही उड़ गये…उसका भाई पलंग पर नंगा लेटा हुआ था..यानी सो रहा था…और उसका लंड बिल्कुल उपर की तरफ मुँह करके हुंकार रहा था…ये अर्पिता की जिंदगी का पहला लंड था जो उसने अपनी आँखो से देखा था…और वो भी अपने खुद के भाई का…उसकी भी हालत आरती जैसी हो गयी…उपर के होंठ सूख गये और नीचे के गीले हो गये.
आरती तो निश्चिंत थी की उन दोनो के अलावा कोई भी घर पर नही है…और किसी और के एकदम से आने की भी आशा नही है..क्योंकि दरवाजा वो खुद बंद करके आई है. अर्पिता ने देखा की आरती के होंठ थरथरा रहे हैं…जैसे वो दुष्यंत के लंड को अपने मुँह मे लेकर चूसना चाहती हो…वो बाहर खड़ी होकर खुद इतनी उत्तेजित हो रही थी, अंदर खड़ी हुई आरती का पता नही क्या हाल हो रहा होगा..
अचानक अर्पिता ने देखा की अपने दोनो हाथ उपर करके आरती ने अपनी टी शर्ट को उतार कर नीचे फेंक दिया…नीचे उसने एक सेक्सी सी ब्रा पहनी हुई थी…जिसमे उसके 32 साइज़ के बूब्स क़ैद थे…फिर अर्पिता के देखते ही देखते आरती ने अपनी स्कर्ट भी उतार दी…और अब वो उसके भाई के कमरे मे सिर्फ़ ब्रा-पेंटी मे खड़ी थी..
पेंटी की हालत देखकर अर्पिता समझ गयी की वो कितनी ज़्यादा उत्तेजित है…क्योंकि वो पूरी तरह से गीली हो चुकी थी. आज पहली बार अर्पिता ने अपनी सहेली को ऐसी हालत मे देखा था…कपड़ो में तो वो साधारण सी ही लगती थी…पर अब उसका कसा हुआ बदन किसी लिंगरी मॉडेल से कम नही लग रहा था…बिल्कुल सही आकार के बूब्स थे उसके…सपाट पेट और भरी हुई सी गांड…
वो उसकी सुंदरता का अवलोकन कर ही रही थी की आरती ने एक और दुसाहसी कदम उठाते हुए पहले अपनी पेंटी और फिर ब्रा भी खोल कर नीचे गिरा दी..और अब वो पूरी नंगी होकर खड़ी थी उस छोटे से कमरे मे…जहाँ उसका भाई गहरी नींद मे सोया हुआ था…
अर्पिता समझ गयी की अब ये क्या करने वाली है…वैसे भी कल रात को ही दुष्यंत ने बता दिया था की वो उसके साथ फकिंग कर चुका है…इसलिए उसे अभी चुदाई के लिए तैयार होते देखकर अर्पिता को ज़्यादा आष्चर्य नही हुआ.. आरती ने अपना हाथ अपनी चूत पर रगड़ा और ढेर सारा शहद निकाल कर दुष्यंत के लंड पर मल दिया…
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और फिर अपना मुँह नीचे करके उसने उस शहद से डूबे भुट्टे को अपने मुँह मे लिया और ज़ोर-2 से चूसने लगी… दुष्यंत का शरीर कुछ देर के लिए कसमसाया…पर शायद गहरी नींद में था वो..इसलिए कुछ और नही किया…पर उसका सिर इधर-उधर होने लगा था…क्योंकि नींद मे ही सही, उसे ये एहसास हो रहा था की उसका लंड चूसा जा रहा है…
फिर आरती ने एक मिनट तक चूसने के बाद उसे बाहर निकाला और दुष्यंत के पलंग पर चढ़ गयी ..उसके दोनों तरफ टांगे करते हुए उसने उसके लंड को ठीक अपनी चूत के उपर रखा और धप्प से उपर बैठ गयी.. ”अहह……. उम्म्म्मममममममममम ………… ओह …. दुष्यंत ………….. ”
और अपने लंड पर दबाव का एहसास और आरती की चीख सुनकर दुष्यंत की नींद एकदम से खुल गयी..और सोते हुए वो ये सपना देखा रहा था की उसका लंड अर्पिता चूस रही है..और चुदाई भी वो करवा रही है…इसलिए आँखे खुलने से पहले उसके मुँह से एक उत्तेजना से भारी आवाज़ निकली : “ओह ….. अर्पिता ……….”
और फिर जब उसने आँखे खोलकर देखा की असल मे उसके उपर आरती है तो उसके तो जैसे होश ही उड़ गये…
दुष्यंत : ” ये…ये क्या ….. आरती …… तू ….यहाँ ….और ये क्या है ….. श तेरी ……”
और आरती उसे शक भारी नज़रों से देखते हुए ,गुस्से मे भरकर बोली : “क्या बोला तू अभी….अर्पिता बोला था न …”
तब तक दुष्यंत की नज़र बाहर छुपकर उनकी चुदाई देख रही अर्पिता पर जा चुकी थी..और उसे समझते देर नही लगी की असल मे हो क्या रहा है वहाँ…
वो एकदम से बोला : “अरी बेवकूफ़…अपने पीछे देख…अर्पिता दीदी खड़ी है..उन्हें देखकर बोला था मैं.”
और इतना कहते हुए उसने नीचे गिरी हुई चादर अपने और आरती के नंगे जिस्म पर खींच ली.. अर्पिता भी समझ गयी की अब छुपने का कोई फायदा नही है…वो बाहर निकल कर अंदर आ गयी.. और आरती की हालत तो ऐसी हो रही थी जैसे कोई चोर चोरी करते हुए पकड़ा गया हो… ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
एक तो उसकी पुरानी सहेली , उपर से उससे बोलचाल बंद…और साथ ही वो उसके घर पर ही उसके भाई से चुदवाती हुई पकड़ी गयी..इससे ज़्यादा शरम की और क्या बात हो सकती है… अर्पिता के लिए ऐसे दुष्यंत के कमरे मे खड़े रहना थोड़ा अजीब सा था…
कल रात को उनके बीच वो बात चीत न हुई होती तो शायद दुष्यंत के देख लेने के बाद वो भागकर नीचे चली जाती और बाद मे इस घटना के बारे मे कोई बात भी नही करती…पर अब दोनो के बीच हालात बदल चुके थे.. दूसरी तरफ दुष्यंत को भी ज़्यादा डर नही लगा…क्योंकि इतनी अंडरस्टैंडिंग तो हो ही चुकी थी उनमें कल रात , जब वो अपनी बहन को देखकर और उसकी बहन उसको देखकर और वैसी बाते करके कितने उत्तेजित हो रहे थे…
अर्पिता : “तो ये सब होता है रोज मेरे जाने के बाद…”
आरती ने अपना चेहरा चादर के अंदर छुपा लिया…बेचारी अपना मुँह तक नही दिखा पा रही थी अपनी पुरानी सहेली को.. अर्पिता ने एकदम से हंसते हुए कहा : “इट्स ओके आरती ….. ऐसे शरमाने की या डरने की कोई ज़रूरत नही है… मुझे दुष्यंत ने सब बता दिया है तुम दोनों के बारे में …”
आरती ने एकदम से अपना सिर चादर से बाहर निकाला…और दुष्यंत के चेहरे को घूरने लगी..
दुष्यंत : “अरे …. कल रात ही बात हुई थी तुम्हे लेकर…इसलिए बताना पड़ा…डोंट वरी … दीदी से डरने की कोई बात नही है..”
अर्पिता : “हाँ …आरती ….और मै किचन मे ही थी…जब तुम उपर आई…इसलिए मैने जब तक उपर आकर देखा की तुम क्या कर रही हो तो…..आधे से ज़्यादा मामला निपट चुका था….”
उसके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी.. उसकी बात सुनकर आरती के साथ-2 दुष्यंत भी शरमा गया.
अर्पिता : “अब जल्दी से बाकी का काम निपटा लो दुष्यंत …और तैयार हो जाओ…हॉस्पिटल भी जाना है…में नीचे नाश्ता बना रही हू…”
इतना कहकर वो नीचे उतर गयी…उन दोनों को उसी हालत मे छोड़कर.. पर अर्पिता ने नीचे उतरने के 5 मिनट बाद ही आरती भी नीचे उतरी और अर्पिता से बिना कुछ बोले बाहर निकल गयी.शायद उन्होंने अर्पिता के घर पर रहते चुदाई के इरादे को त्याग दिया था.
आधे घंटे बाद दुष्यंत भी तैयार होकर नीचे आ गया…और दोनो हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े.. रास्ते मे दोनो के बीच आरती वाले मामले को लेकर कोई बात नही हुई…बस नॉर्मल बातें होती रही..और जुए के बारे में भी बातें हुई. शाम तक दोनो अपनी माँ को डिसचार्ज करवाकर घर ले आए…
और उन्होने संभलकर उन्हे उपर वाले कमरे मे भी पहुँचा दिया..डॉक्टर्स के परामर्श के अनुसार अब उन्हे अगले 5 दीनो तक वो इंजेक्शन लगना था..आज का वो लगवा कर ही आए थे….इसलिए 8 बजते-2 अर्पिता ने खाना भी बना दिया और उन्हे खाना खिला कर सुला भी दिया.. दुष्यंत बाहर गया हुआ था…अर्पिता नीचे ड्रॉयिंग रूम मे बैठकर टीवी देख रही थी की बाहर की बेल बजी.. उसने दरवाजा खोला तो बाहर दुष्यंत अपने 2 दोस्तों के साथ खड़ा था.
दुष्यंत : “आ जा भाई ….अपना ही घर समझ …. ”
और अर्पिता को उनका परिचय करवाते हुए बोला : “दीदी …ये मेरे दोस्त है …. ये कमलेश, इसको तो आप जानती ही हो…. और ये है अमित …”
दोनो ने अर्पिता को नमस्ते की और अंदर आकर बैठ गये. दोनो भाई बहन ने पहले से डिसाईड कर लिया था की कैसे वो योजना के अनुसार खेलने के लिए मैदान में उतरेगी..
सो अंदर आते ही दुष्यंत शुरू हो गया : “दीदी ….अब आपके कहने पर ही में आज घर पर आकर खेल रहा हू…थोड़ा बहुत शोर शराबा हुआ तो आप बुरा मत मानना ..”
अर्पिता : “अब तेरी दीवाली के दिनों मे जुआ खेलने की जिद्द है तो में क्या कर सकती हू … जब तूने खेलना ही है तो घर पर ही खेल ना… माँ की तबीयत खराब हुई तो में अकेली कहाँ भागूँगी .तू घर पर रहेगा तो मुझे तसल्ली रहेगी..”
ये सब बातें वो अपनी बनाई योजना के अनुसार कर रहे थे.. उसके बाद वो तीनों वहीं टेबल के चारो तरफ बैठ गये…और पत्ते बाँटने लगे..
अर्पिता भी दुष्यंत के पास जाकर बैठ गयी और बोली : “अब मैने बोर तो होना नही है….में भी तुम्हारे पास बैठकर ये खेल देखूँगी..”
दुष्यंत कुछ बोल पता, इससे पहले ही कमलेश बोल पड़ा : “हां …हां ..अर्पिता ..क्यों नही …ज़रूर बैठो ….”
उसकी आँखो की चमक बता रही थी की वो अर्पिता को ऐसे पत्तो के खेल मे इंटरस्ट लेते देखकर कितना खुश हो रहा था…अब उसकी खुशी के पीछे मंशा क्या थी,ये तो वो ही जाने, पर उसकी बात सुनकर अर्पिता भी हँसती हुई सी दुष्यंत के साथ बैठ गयी..
और फिर शुरू हुआ..जुआ. जो आगे चलकर कितना मजेदार और कामुक होने वाला था, ये उनमें से कोई भी नही जानता था. अर्पिता सोफे के साइड मे हाथ रखने वाली जगह पर बैठी थी…दुष्यंत के कंधे पर हाथ रखकर…उसके उपर झुकी हुई सी..दुष्यंत को उसकी गर्म साँसे अपने कान और चेहरे पर सॉफ महसूस हो रही थी.. दुष्यंत ने पत्ते बाँटे..और सभी ने बूट के 100 रुपय बीच मे रख दिए..
और उसके बाद सभी ने 2 बार ब्लाइंड भी चली 100-100 की.. सबसे पहले अमित ने अपने पत्ते उठा कर देखे..और देखने के साथ ही उसने 200 की चाल चल दी. चाल देखते ही कमलेश ने भी अपने पत्ते उठा कर देखे..पर देखने के साथ ही पैक भी कर दिया.. अब बारी थी दुष्यंत की. दुष्यंत ने मुड़कर अर्पिता की तरफ देखा…उसने सिर हिला कर उसे इशारा किया और अगले ही पल दुष्यंत ने फिर से ब्लाइंड चल दी.
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अमित बोला : “ओहो ….. इतना कॉन्फिडेन्स ….आज क्या हो गया तुझे…”
और हंसते हुए उसने फिर से 400 की चाल चल दी…डबल करते हुए. अब तो दुष्यंत को भी डर सा लगने लगा..उसने अपने पत्ते उठा कर देखे…एक-2 करते हुए.. पहला पत्ता था इक्का.. दूसरा निकला बादशाह… दुष्यंत का दिल ज़ोर-2 से धड़कने लगा…वो सोचने लगा की अगला पत्ता कोई भी आ जाए…बेगम आए तो सबसे बढ़िया …वरना..एक और इक्का…या एक और बादशाह …कलर तो बन नही सकता था…क्योंकि अभी तक के दोनो पत्ते अलग-2 थे..
उसने भगवान का नाम लेते हुए तीसरा पत्ता भी देखा… गुलाम निकला.. शिट यार….ऐसा कैसे हो सकता है…शायद…मैं खेल रहा हू इसलिए…अर्पिता खेलेगी तो उसके पास पत्ते आएँगे ना अच्छे …मैं बेकार में ही इतना आगे खेल गया..पर फिर भी,शो माँगने लायक तो थे ही उसके पत्ते..
और उसने 400 बीच मे फेंक कर शो माँग लिया.. अमित ने अपने पत्ते सामने फेंक दिए..उसके पास पान का कलर था.. दुष्यंत ने अपने पत्ते नीचे पटक दिए.. अमित ने हंसते हुए सारे पैसे उठा लिए.. अर्पिता ने झुक कर अमित के पत्ते उठा कर देखे..शायद वो ये देखने की कोशिश कर रही थी की कही बीच मे पान के अलावा कोई दूसरा लाल रंग ना हो…
पर इतना ही समय काफ़ी था, अमित की तीखी नज़रों ने उसके गले की गहराई नाप ली…उसकी ब्लेक ब्रा मे कसे हुए उसके दोनो मुम्मे किसी टेनिस बॉल्स की तरह अपने जाल मे फँसे हुए दिख गये उसे…उसने गहरी मुस्कान के साथ कमलेश की तरफ देखा…वो भी शायद उस गहराई को देख चुका था…दोनों के चेहरों पर कुटिलता से भरी हँसी आ गयी..और आँखो ही आँखो मे उन्होने अर्पिता की जवानी से भरी छातियों का गुणगान कर दिया..
अगली गेम शुरू हुई…इस बार दो ब्लाइंड चलने के बाद कमलेश ने पत्ते देखे और पेक कर दिया..दो और ब्लाइंड चलने के बाद दुष्यंत ने पत्ते उठा लिए…वो अभी के लिए ज़्यादा रिस्क नही लेना चाहता था…पर उसके पास बड़े ही बेकार पत्ते आए…7, 3, 5. उसने बिना शो माँगे ही पैक कर दिया… अमित ने फिर से हंसते हुए सारे पैसे उठा लिए.
दुष्यंत : “आज तो लगता है इसी का दिन है…दो गेम में ही डेड -दो हज़ार जीत गया…”
अमित : “दुष्यंत भाई, ये तो वक़्त-2 की बात है…कल तुम्हारा दिन था…आज मेरा दिन है…और वैसे भी, अभी तो खेल शुरू हुआ है…शायद तुम जीत जाओ आगे चलकर…”
दुष्यंत ने मन मे सोचा ‘वो तो होना ही है…एक बार अर्पिता को आने दो बीच मे..फिर देखना, तुम्हारी जेब कैसे खाली करवाता हूँ मैं…”
अगला खेल शुरू हुआ..तभी दुष्यंत बोला : “मैं ज़रा बाथरूम होकर आता हू…तुम मेरे पत्ते अर्पिता को बाँट दो…तब तक ये खेल लेगी…”
इसमे भला उन दोनो को क्या परेशानी हो सकती थी..उनके तो चेहरे और भी ज़्यादा चमक उठे.. दुष्यंत उठकर उपर चला गया.. अर्पिता सोफे पर बैठी..उसका दिल अब जोरो से धड़क रहा था..अमित ने गड्डी को अर्पिता की तरफ बढ़ाया .ताकि वो उसे काट सके..जैसे ही अर्पिता ने गड्डी पर हाथ रखा, अमित ने उसके हाथ के उपर अपना हाथ रखकर उसे दबोच लिया..
अमित : “अर्रे…अर्रे ….ऐसे नही….इतने पत्ते मत निकालो…थोड़ा आराम से…आधे से कम काटो…आराम से…”
और ये सब कहते-2 वो अर्पिता के नर्म और मुलायम हाथ को अपने कठोर हाथों से सहला भी रहा था.. अर्पिता भी उसके ऐसे स्पर्श के महसूस करके कसमसा उठी..उसके शरीर के रोँये खड़े हो गये…क्योंकि आज तक उसे किसी ने इस तरह से छुआ नही था..कल अपने भाई का स्पर्श और अब इस अमित का…दो दिन मे दो मर्दों के शरीर ने उसे छुआ था..ये एक कुँवारी लड़की के लिए एक शॉक से कम नही होता..
अर्पिता ने थोड़े से ही पत्ते उठाए और ताश को काट कर नीचे रख दिया.अमित ने पत्ते बाँटे. बूट के बाद सभी ने 3-3 बार ब्लाइंड चली..अर्पिता वैसे तो निश्चिन्त ही थी, क्योंकि उसे पता था की उसके पत्ते अच्छे ही निकलेंगे..पर एक डर भी लग रहा था..की कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए…
और ऐसा सोचते-2 उसने एकदम से अपने पत्ते उठा लिए…उन्हे देखकर उसकी समझ मे कुछ नही आ रहा था…एक बादशाह था…दूसरी बेगम….और तीसरा दस. दुष्यंत ने तो कहा था की उसके पत्ते हमेशा चाल चलने लायक होते हैं…उसने गेम समझ तो ली थी..पर अभी तक सही से वो अपने दिमाग़ मे बिठा नही पाई थी..पर फिर भी दुष्यंत की बात को याद करते हुए उसने चाल चल दी ..
कमलेश तो अर्पिता के हुस्न का दीदार करने मे मस्त था…वो उसकी छातियों को टकटकी लगाकर देखे जा रहा था..और उसका साइज़ क्या होगा ये सोचने मे मग्न था…उसके निप्पल किस पॉइंट पर होंगे, वो उसकी रूपरेखा बना रहा था…ब्रा तो वो देख ही चुका था उसकी, ब्लैक कलर की..अगर वो ब्रा में ही बैठकर खेले तो कितना मज़ा मिलेगा..
और कमलेश को अपनी तरफ ऐसे देखते देखकर अर्पिता का दिल भी हिचकोले खा रहा था…और उसके दोनो निप्पल एकदम से सख़्त होकर सूट के कपड़े मे उभर आए… और कमलेश का अंदाज़ा बिल्कुल सही निकला, उसने जिस जगह पर सोचा था, वहीं पर उसे हल्के-2 निप्पल्स उभरते हुए दिख गये..वो अपनी क़ाबलियत पर खुश हो गया.
पर अर्पिता को चाल चलते देखकर उसने एकदम से अपने पत्ते उठाए…उसके पास इक्का और दो छोटे पत्ते थे…चाल चलने या शो माँगने का सवाल नही था, क्योंकि अमित ने अभी तक अपने पत्ते देखे भी नही थे.. कमलेश ने पेक कर दिया. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
अब अमित की बारी थी….उसने अपने पत्ते उठाए…उसके पास इक्का, बादशाह और दुग्गी थी…उसका एक मन तो हुआ की पेक कर दे…क्योंकि सामने से चाल आ चुकी थी…पर वो इतने पैसे जीत चुका था अभी तक की शो माँगकर भी वो ही फायदे में ही रहता…और वैसे भी वो देखना चाहता था की अर्पिता के पत्ते कैसे हैं…उसे खेलना भी आता है या नही..
और उसने 400 बीच मे फेंक कर शो माँग लिया.. और अर्पिता के पत्ते देखकर वो ज़ोर-2 से हँसने लगा..और सारे पैसे बीच मे से उठा कर अपनी तरफ कर लिए…कमलेश भी अर्पिता के पत्ते देखकर मुस्कुरा दिया और बोला : “अभी तुम्हे सही से खेलना आता नही है अर्पिता…या फिर तुम ब्लफ खेल रही थी…”
तब तक उपर से दुष्यंत भी आ गया…उसने भी बीच मे पड़े अर्पिता और अमित के पत्ते देखे…उसे तो विश्वास ही नही हो रहा था की अर्पिता अपनी पहली ही गेम में हार गयी…उसने तो क्या-2 सोचा हुआ था..पर ऐसे अर्पिता को हारता हुआ देखकर उसे अपनी सारी प्लानिंग फैल सी होती दिख रही थी..
दुष्यंत : “अरे नही….ब्लूफ भला ये क्या जाने…हम दोनो बस घर बैठकर थोड़ा बहुत खेल लेते हैं, बस वही आता है इसे…चलो, एक बार और बाँटो पत्ते…देखते हैं की इसकी कैसी किस्मत है …”
अर्पिता के साथ एक बार और खेलने की बात सुनकर कमलेश और अमित मुस्कुरा दिए…पर अर्पिता ने धीरे से दुष्यंत के कान मे कहा : “नही दुष्यंत…तुम ही खेलो…मुझे नही लगता की मैं कल की तरह जीत पाऊँगी ..वो शायद कोई इत्तेफ़ाक था…ऐसे ही बेकार मे अपने पैसे मत बर्बाद करो…”
दुष्यंत फुसफुसाया : “नही दीदी….एक और गेम खेलो…शायद इस बार अच्छे पत्ते आ जाए..प्लीज़ …मेरे कहने पर…”
और दुष्यंत के ज़ोर देने पर अर्पिता फिर से खेलने लगी. उसके निप्पल का साइज़ और भी ज़्यादा बड़ चुका था…शायद परेशानी में भी लड़कियो के निप्पल खड़े हो जाते हैं, जैसे उत्तेजना के वक़्त होते हैं… वो दोनो हरामी तो उसकी छातियों पर लगे छोटे-2 बल्ब देखकर अपने लंड सहला रहे थे…दुष्यंत का ध्यान इस बात पर नही था अभी…उसे तो चिंता सता रही थी की अगली गेम वो जीतेगा या नही..
पत्ते फिर से बाँटे गये…बूट के बाद 2-2 बार ब्लाइंड भी चली गयी…कमलेश ने फिर से अपने पत्ते उठाए…और पहली बार वो अपने पत्ते देखकर खुश हुआ…और उसने 200 की चाल चल दी.. कमलेश के बाद अमित ने भी अपने पत्ते देखे और चाल चल दी.. दुष्यंत ने अर्पिता को भी अपने पत्ते उठाने के लिए कहा..
अर्पिता ने काँपते हाथों से एक-2 करके अपने पत्ते उठाए.. पहला 7 नंबर था.. दूसरा पत्ता 9 नंबर था…और अभी तक के दोनो पत्ते हुक्म के थे.. दुष्यंत मन ही मन खुश हो रहा था…उसे तो जैसे पूरा विश्वास था की इस बार या तो 8 आएगा, जिसकी वजह से 7,8,9 का सीक़वेंस बन जाएगा…या फिर एक और हुक्म का पत्ता आएगा जिसकी वजह से कलर बन सकेगा…अगर दोनो मे से कुछ भी नही आया तो पेयर बनाने के लिए 7 या 9 में से कुछ भी आ जाएगा..
पर जैसे ही अर्पिता का तीसरा पत्ता देखा, उसका दिल धक से रह गया..वो ईंट का 4 था.. ये तो हद ही हो गयी…ऐसे बेकार पत्ते तो उसके पास भी नही आते थे…और ये अब अर्पिता के पास आ रहे हैं…ऐसा कैसे हो सकता है…क्यों कल की तरह अर्पिता के पास अच्छे पत्ते नही आ रहे…क्यों वो हार रही है… उसने अपने दाँत पीस लिए और अर्पिता को पेक करने के लिए कहा..
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अर्पिता ने पत्ते फेंक दिए..और दुष्यंत से धीरे से बोली : “मैने कहा था ना…कल शायद कोई इत्तेफ़ाक था…तुम बेकार मे मुझसे खिलवा रहे हो और हार भी रहे हो…”
और इतना कहकर वो भागती हुई सी किचन मे चली गयी…ये कहकर की चाय बना कर लाती हूँ सबके लिए.. दुष्यंत कुछ नही बोल पाया.. इसी बीच कमलेश और अमित चाल पर चाल चल रहे थे…दोनो ही झुकने को तैयार नही थे…दुष्यंत भी समझ गया की दोनो के पास अच्छे पत्ते आए होंगे…
बीच मे लगभग 8 हज़ार रुपय इकट्ठे हो चुके थे…आख़िर मे जाकर अमित ने शो माँगा..कमलेश ने अपने पत्ते दिखाए…उसके पास सीक़वेंस आया था..5,6,7 और कमलेश के पास कलर था, ईंट का..उसने अपना माथा पीट लिया…वो जीते हुए पैसो के अलावा अपनी जेब से भी 3 हज़ार हार चुका था.. कमलेश ने हंसते हुए सारे पैसे समेत लिए..
कमलेश : “हा हा हा …सो सुनार की और एक लोहार की …”
दुष्यंत बोला : “मैं ज़रा अर्पिता को देखकर आता हू, उसे शायद लग रहा है की उसकी वजह से मैं हार गया…”
कमलेश : “हाँ भाई…जाओ …मना कर लाओ उसको …ऐसे दिल छोटा नही करते….मैं भी तो इतनी गेम हारने के बाद जीता हूँ ..वो भी जीतेगी..जाओ बुला लाओ उसको…तब तक हम इंतजार करते है…”
दुष्यंत भागकर किचन मे गया…अर्पिता रुंआसी सी होकर चाय बना रही थी..
दुष्यंत : “क्या दीदी…आप भी ना….ऐसे अपना मूड मत खराब करो…”
अर्पिता एक दम से रो पड़ी और दुष्यंत से लिपट गयी : “मैने कहा था ना, मुझसे नही होगा ये…तुमने बेकार मे अपने इतने पैसे बर्बाद किए मेरी वजह से…ऐसे ही चलता रहा तो कल वाले सारे पैसे हार जाओगे…माँ का इलाज कैसे करवाएँगे…”
दुष्यंत उसकी पीठ सहलाता हुआ बोला : “ऐसा मत सोचो दीदी ….चलो चुप हो जाओ…कोई ना कोई बात तो ज़रूर है…मेरा अंदाज़ा खाली नही जाता ऐसे…”
और फिर कुछ देर चुप रहकर वो बोला : “दीदी…ये टोटके बाजी वाला खेल होता है…अगर तुम जीत रहे हो तो तुमने क्या पहना था ये याद रखो..किस सीट पर बैठे थे वो याद रखो….”
अर्पिता : “मतलब ??”
दुष्यंत : “मतलब ये की तुम शायद उन्ही चीज़ो की वजह से जीत रही थी जो उस वक़्त वहाँ मोजूद थी…जैसे तुम्हारे कपड़े…तुमने कल रात को अपना नाइट सूट पहना हुआ था..वही पहन कर आओ…शायद उसकी वजह से तुम जीत रही थी कल…”
अर्पिता : “तू पागल हो गया है…तेरे सामने अलग बात थी..पर इन दोनो के सामने मैं नाइट सूट क्यो पहनू ….नही मैं नही पहनने वाली….मुझसे नही होगा..”
अब भला वो अपने भाई से क्या बोलती की वो नाइट सूट क्यो नही पहनना चाहती..उसका गला इतना चोडा है की उसकी क्लीवेज साफ दिखाई देती है उसमे…और उसकी कसी हुई जांघों की बनावट भी उभरकर आती है उसमे क्योंकि उसका पायज़ामा काफ़ी टाइट है…
दुष्यंत : “दीदी …आप समझने की कोशिश करो…मैने कहा ना, इनसे घबराने की ज़रूरत नही है…इन्हे भी अपना भाई समझो…जाओ जल्दी से पहन कर आओ…मैं चाय लेकर जाता हुआ अंदर…”
और अर्पिता की बात सुने बिना ही वो चाय लेकर अंदर आ गया…बेचारी अर्पिता बुरी तरह से फँस चुकी थी…वो बड़बड़ाती हुई सी उपर अपने कमरे मे चल दी…अपना नाइट सूट पहनने… अगली गेम से पहले सभी चाय पीने लगे…कमलेश ने पत्ते बाँटने के लिए गड्डी उठाई ही थी की दुष्यंत बोला : “रूको …अर्पिता को भी आने दो…वो बेचारी समझ रही है की उसकी वजह से मैं हार गया…एक-दो गेम और खेलने दो बेचारी को…शायद जीत जाए…वरना रोती रहेगी की उसकी वजह से मैं हार गया..”
उन दोनो को भला क्या परेशानी हो सकती थी…वो तो खुद अर्पिता के हुस्न को देखते हुए खेलना चाहते थे…
अमित बोला : “पर अर्पिता आएगी कब ?”
तभी उसके पीछे से आवाज़ आई : “आ गयी मैं …”
और सभी की नज़रें अर्पिता की तरफ घूम गयी…और उसे उसकी नाइट ड्रेस मे देखकर सभी की आँखे फटी रह गयी… छोटी सी टाइट टी शर्ट और टाइट पायज़ामे में वो सेक्स बॉम्ब जैसी लग रही थी…वो दोनो तो आँखो ही आँखो मे उसे चोदने लगे… और दुष्यंत अगली गेम में जीतने वाले पैसों के बारे मे सोचने लगा..
अब तो दुष्यंत को पूरा भरोसा था की अगली गेम अर्पिता ही जीतेगी..उसने अर्पिता को अपनी सीट पर बिठाया और बोला : “चलो ….अब आप खेलो दीदी …..देखना , इस बार आप जीतकर रहोगी…”
बैठने के साथ ही उसकी दोनो बॉल्स झटके से उपर नीचे हुई…और उसकी क्लिवेज और भी ज़्यादा उभरकर बाहर आ गयी..दुष्यंत की नज़रें तो पत्तो पर थी पर कमलेश और अमित के मुँह से तो पानी ही टपकने लगा बाहर…उन्होने अपनी जीभ को होंठों पर फेर कर सारा रस निगल लिया.. अगली गेम शुरू हो गयी सबने बूट के बाद 3-3 ब्लाइंड भी चल दी.. अगली ब्लाइंड की बारी अर्पिता की थी…दुष्यंत ने 100 के बदले सीधा 500 की ब्लाइंड चल दी..
हैरान होते हुए कमलेश ने भी 500 की ब्लाइंड चल दी.. पर अमित इस बार डर सा गया…उसने अपने पत्ते उठा कर देखे…10 नंबर था उसका सबसे बड़ा…उसने बुरा सा मुँह बनाते हुए पॅक कर दिया. दुष्यंत ने फिर से 500 की ब्लाइंड चली..अब तो कमलेश ने भी अपने पत्ते उठा लिए…उसके पास सबसे बड़ा पत्ता बादशाह था…उसने रिस्क लेना सही नही समझा और पेक कर दिया..
उसके पेक करते ही दुष्यंत खुशी से चिल्ला उठा : “देखा अर्पिता, मैने कहा था…आप जीत गयी…”
पैसे भले ही ज़्यादा नही आए थे…पर पहली जीत थी वो अर्पिता की, दोनों मन ही मन खुश हो गए की उनका टोटका काम कर गया अब तो अर्पिता भी दुष्यंत की कपड़े बदलने वाली बात को सही मान रही थी, उसने कल भी यही कपड़े पहने थे और जीत रही थी…और अभी से पहले दूसरे कपड़े मे वो हार रही थी, पर कल वाले कपड़े पहनते ही वो फिर से जीत गयी…
दुष्यंत ने बीच मे रखे सारे पैसे अपनी तरफ खिसका लिए.. और साथ ही साथ सारे पत्ते भी उठा कर वापिस गड्डी में लगा दिए..अभी तक किसी ने भी अर्पिता के पत्ते देखे नही क्योंकि सामने से शो ही नही माँगा गया था.. दुष्यंत ने अर्पिता के पत्ते उठाए और गड्डी में डालने से पहले उन्हे देखा.
वो थे 2,5, 7 इतने छोटे पत्ते और वो भी बिना कलर के…उसने उपर वाले का शुक्र मनाया की सामने से किसी ने शो नही माँगा , वरना ये गेम भी वो हार जाते…क्योंकि उसे पूरा विश्वास था की दोनो में से किसी ना किसी के पत्ते तो उससे बड़े ही होते… पर ऐसा क्यों हुआ….वो तो समझ रहा था की अर्पिता के कपड़े बदल लेने के बाद वो जीतेगा…
पर उसका ये टोटका काम क्यो नही आया…ये उसकी समझ में नहीं आ रहा था. उसने मन ही मन कुछ सोच लिया और अगली गेम शुरू हुई. और पत्ते बाँटने के बाद 2-2 ब्लाइंड चली गयी , पर इस बार दुष्यंत ने तीसरी ब्लाइंड चलने से पहले ही अर्पिता के पत्ते उठा कर देख लिए. अर्पिता के पास थे 9,गुलाम और बादशाह वो भी बिना कलर के.. पर फिर भी उसने रिस्क लेते हुए 200 की चाल चल दी.
अमित : “क्या हुआ दुष्यंत…पिछली बार तो 500 की ब्लाइंड चल रहा था…और अब जीतने के बाद 100 से आगे ही नही बड़ा…सीधा चाल चल दी…”
दुष्यंत कुछ नही बोला…वो तो अपनी केल्कुलेशन मे लगा हुआ था. पर चाल बीच मे आ चुकी थी, इसलिए अमित ने अपने पत्ते उठा कर देखे…और देखने के साथ ही चाल चल दी. कमलेश ने अपने पत्ते देखे और उसने भी मंद-2 मुस्कुराते हुए चाल चल दी. दुष्यंत ने तो ब्लफ खेला था..उसके पास वैसे भी चाल चलने लायक पत्ते नही थे…उसने फ़ौरन पेक कर दिया..
अब खेल शुरू हुआ कमलेश और अमित के बीच…दोनो चाल पर चाल चल रहे थे…और आख़िर मे जब बीच मे लगभग 6 हज़ार रुपय इकट्ठे हो गये तो कमलेश ने शो माँग लिया… अमित ने अपने पत्ते सामने फेंके.. वो थे 3,4,5 की सीक़वेंस.. उसे देखते ही कमलेश ठहाका लगाकर हंस दिया…उसने अपने पत्ते सामने फेंक दिए उसके पास थे 9,10,11 की सीक़वेंस.
वो जैसे ही सारे पैसे अपनी तरफ करने लगा, अमित ने रोक दिया और बोला : “मेरे पत्ते दोबारा देख भाई…इतना खुश मत हो अभी…”
कमलेश और दुष्यंत ने फिर से अमित के पत्तो की तरफ देखा..वो थे तो 3,4,5 पर साथ ही साथ वो कलर मे भी थे…लाल पान का कलर..यानी प्योर सीक़वेंस.
कमलेश बुदबुदाया : “साला…हरामी…आज तो इसकी किस्मत अच्छी है..”
और अब ठहाका लगाने की बारी अमित की थी…उसने सारे पैसे बीच में से अपनी तरफ खिसका लिए.
अगली गेम शुरू होने को ही थी की दुष्यंत बोल पड़ा : “यार…अभी और रहने देते हैं…माँ को दवाई भी देनी है और उन्हे इंजेक्शन भी लगाना है…बाकी कल खेलेंगे..”
अर्पिता बोलने ही वाली थी की दवाई और इंजेक्शन तो दे ही चुके हैं…पर दुष्यंत ने उसे इशारे से चुप करवा दिया. अब वो दोनो भी क्या बोल सकते थे…मन मसोस कर दोनो वहाँ से चले गये. अगले दिन आने का वादा करके, उनके जाते ही अर्पिता बोली : “तुमने ऐसा क्यो बोला…माँ को दवाई और इंजेक्शन तो दे ही चुके हो..और हम एक गेम भी तो जीत ही चुके थे..”
दुष्यंत : “दीदी…वो गेम जो हमने जीती थी, उसमे पत्ते बड़े ही बेकार आए थे…वो तो शुक्र है की उन दोनो ने भी पेक कर दिया, वरना वो गेम भी हम हार जाते…”
अर्पिता : “पर तुमने तो कहा था की कल वाले कपड़े पहन कर आओ, तो जीत जाएँगे…मैने तो पहले ही कहा था की ये सब तुक्का था…कल और बात थी…आज खेलने में सब सामने आ गया…”
दुष्यंत उसकी बाते सुनता रहा…और कुछ देर चुप रहने के बाद बोला : “दीदी …. वो …..आपने ये कल वाले ही कपड़े पहने है ना..”
अर्पिता : “हाँ ….ये वही है….”
दुष्यंत (झिझकते हुए) : “और अंदर….”
उसकी आवाज़ बड़ी ही मुश्किल से निकली उसके मुँह से….नज़रें ज़मीन पर थी उसकी.
अर्पिता : “अंदर…? मतलब ….”
पर अगले ही पल उसका मतलब समझ कर वो झेंप सी गयी…दुष्यंत उसके अंडरगारमेंट्स के बारे मे पूछ रहा था.. अर्पिता ने अपने दिमाग़ पर ज़ोर दिया, उसने अभी ब्लेक कलर की ब्रा और पेंटी पहनी हुई थी …पर कल….कल तो दुष्यंत के साथ खेलते हुए उसने अंदर कुछ भी नही पहना था.. अब ये बात वो दुष्यंत को कैसे बोलती..पर शायद ये वजह भी हो सकती है उसके हारने की..शायद कल वो बिना अंडरगारमेंट्स के थी, इसलिए जीत रही थी…
अर्पिता : “तुम्हारे टोटके के हिसाब से क्या कल वाले कपड़े सेम तो सेम वही होने चाहिए…तभी मैं जीतूँगी क्या ??”
दुष्यंत ने हाँ में सिर हिला दिया.
अर्पिता : “चलो…वो भी देख लेते हैं ….तुम यही बैठो…मैं अभी आई…”
और इतना कहकर वो भागकर उपर अपने कमरे मे चली गयी.. अब दुष्यंत उसे क्या बोलता, वो तो अच्छी तरह जानता था की कल अर्पिता ने अंदर कुछ भी नहीं पहना हुआ था…उसके खड़े हुए निप्पल उसे अभी तक याद थे…आज तो उसने ब्रा पहनी हुई थी…उसकी बगल मे बैठकर वो ये तो अच्छी तरह से देख चुका था…
पर उस वक़्त उसके मन मे ये बात नही आई थी..पर लास्ट गेम जो उसने जीती थी, उसके बाद उसके दिमाग़ मे वो बात कोंधी थी..पर उनके सामने ये कैसे बोलता, इसलिए आज के लिए अपने दोस्तों को भगा दिया था उसने…और उनके जाने के बाद बड़ी ही मुश्किल से उसने अर्पिता को ये बोला…
अपनी बड़ी बहन को उसके अंडरगारमेंट्स के लिए बोलना आज दुष्यंत के लिए बड़ा मुश्किल था…पर अपनी तसल्ली के लिए वो ये देख लेना चाहता था की जो वो सोच रहा है वो सही है तो शायद कल वाली गेम में वो जीत जाएँ. तभी उपर से अर्पिता वापिस नीचे आती हुई दिखाई दी दुष्यंत को…
और उसकी नज़रें सीधा उसकी ब्रेस्ट वाली जगह पर जा चिपकी…और उसकी आशा के अनुरूप वहाँ ब्रा का नामोनिशान नही था …उसकी गोल मटोल छातियाँ उस छोटी सी टी शर्ट मे अठखेलियाँ करती हुई उछल कूद मचा रही थी..और साथ ही साथ उसके खड़े हुए निप्पल उनकी सुंदरता मे चार चाँद लगा रहे थे..
अर्पिता आकर दुष्यंत के सामने बैठ गयी, और बोली : “चलो…अब एक बार फिर से पत्ते बाँटो …मैं भी देखना चाहती हू की तुम्हारी बात मे कितनी सच्चाई है..”
दुष्यंत ने बड़ी ही मुश्किल से अपना ध्यान उसकी छातियों और खड़े हुए निप्पल्स से हटाया..और पत्ते बाँटने लगा…पत्ते बाँटने के बाद उसने पहले अपने पत्ते उठा कर देखे, उसके पास 5 का पेयर आया था..यानी चाल चलने लायक थे वो..और फिर उसने अर्पिता के पत्ते पलट कर देखे…
अर्पिता के पास बादशाह का पेयर आया था.
दुष्यंत की आँखो मे चमक आ गयी, वो बोला : “देखा….मैने कहा था ना…”
अर्पिता : “ये भी शायद इत्तेफ़ाक से आ गये हो…एक बार और बाँटो..”
दुष्यंत : “अब तो मुझे पूरा विश्वास है, जितनी बार भी बँटवा लो ये पत्ते, हर बार तुम ही जीतोगी कल की तरह..”
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उसने फिर से पत्ते बाँटे…और इस बार भी अर्पिता ही जीती…उसके पास चिड़ी का कलर आया था.. दुष्यंत ने गड्डी अर्पिता को दी और उसे पत्ते बाँटने के लिए कहा…अर्पिता ने पत्ते बाँटे और इस बार भी वही जीती…दुष्यंत के पास सबसे बड़ा पत्ता इक्का था…और अर्पिता के पास इकके का पेयर..
अगली 4 गेम्स भी अर्पिता ही जीती…दुष्यंत ने जगह बदल कर भी देखि..गड्डी को अच्छी तरह से फेंटकर भी पत्ते बांटे ..हर तरह से बदलाव करके देख लिया, पर वो अर्पिता से हर बार हार ही रहा था…उसने चार जगह पत्ते बांटकर भी देखे,पर उसमे भी सिर्फ अर्पिता के पत्ते बड़े निकले और हर बार हारने के बाद उसके चेहरे पर एक अलग ही खुशी आ जाती..
अंत मे दुष्यंत बोला : “देखा लिया ना दीदी…मेरी बात बिल्कुल सही निकली…आज जब आप कपड़े बदल कर आई तो उसी वक़्त अगर ब्रा -पेंटी उतार कर आ जाती तो शायद आज हम बहुत पैसे जीत जाते…”
यानी उसका भाई ये अच्छी तरह से नोट कर रहा था की कल उसने अंदर कुछ नही पहना हुआ था..अपने भाई के मुँह से सीधा अपनी ब्रा पेंटी का शब्द सुनकर उसका चेहरा शर्म से लाल सुर्ख हो उठा…और उसके चेहरे पर एक अलग ही तरह की मुस्कान आ गयी..पर वो कुछ बोली नही.. दुष्यंत समझ गया की शायद उसने कुछ ज़्यादा ही बोल दिया है.
दुष्यंत : “सॉरी दीदी….वो मुझे शायद ऐसे नही बोलना चाहिए था..” और इतना कहकर वो अपनी जगह से उठा और लगभग भागता हुआ सा उपर अपने कमरे की तरफ चल दिया. ऐसे भागकर जाने की एक वजह और भी थी, अर्पिता से इस तरह बात करते हुए वो बुरी तरह से उत्तेजित हो चुका था और उसका लंड टेंट बना चुका था उसके पायजामे में. दोस्तो इसके आगे की कहानी अगले भाग में, क्या दुष्यंत अपनी दीदी अर्पिता की चूत चोद पाया और चोदा तो किस तरह चोदा ये जानने के लिए पढ़ते रहिये हमारी वासना डॉट नेट.