Village Shop Me Sex
वंदना कक्षा 11 की छात्रा थी। वंदना और खुशी की दोस्ती मशहूर थी, शादी व्याह हो या तीज त्योहार दोनोँ साथ ही देखी जाती थी। खुशी बहुत शरारती थी वह खास कर उन लोगोँ को पागल बनाती थी जो उसे ललचाई हुई नजर से देखते थे, बस मीठी मीठी बातेँ करना और स्कर्ट को अदा से उठाकर जांघ दिखाना, बस फिर तो हर आदमी उसके इशारे पर बंदर की तरह नाचने लगता। Village Shop Me Sex
इस खेल मेँ सीखा भी कभी कभार अहम रोल निभा देती। कई बार एैसा करते रहने पर भी उनकी घंटी कोई नहीँ बचा सका इस बात पर उन दोनोँ को बहुत नाराज था। खुशी की दोस्ती ने वंदना को भी चंचल और निडर बना दिया था। बस शरारतेँ करना, उछलना कूदना और लोगोँ को अपने मटकते कूल्हे दिखाकर आकर्षित करना उनका मुख्य शौक था।
रमाकांत सिंह रिटायर फौजी था, बॉर्डर की लड़ाई मेँ टांग पर गोली लगने की वजह से वह रिटायर हुआ था। उम्र 55 के करीब पहुंच चुकी थी लेकिन डील डॉल वही पुख्ता था, 50 किलो की बोरी एक ही झटके मेँ उठाकर फेंक देता था।
आदमी बहुत दमदार था पत्नी का स्वर्गवास हो चुका था, दो पुत्र थे वह भी अपने अपने काम धंधोँ मेँ लग कर अपना अपना परिवार संभाल रहे थे। गवर्मेंट से अच्छी खासी पेंशन मिल जाती थी परंतु शौकिया तौर पर उसने अपने मकान में एक परचून की दुकान खोल रखी थी। वंदना और खुशी पर उसकी बहुत नज़र थी।
गोली लगने की वजह से वह थोड़ा लंगड़ा कर चलता था, करीब एक साल से वंदना और खुशी तितली की तरह रमाकांत सिंह के आसपास मंडरा रही थीं। बहुत से महंगे महंगे गिफ्ट वे रमाकांत सिंह से एैंठ चुकी थी। जब भी रमाकांत सिंह उन पर हाथ रखता, तो वह मछली की तरह से फिसलकर दूर खड़ी हो जाती। बेचारा बुढ़े सियार की तरह इन छोटे छोटे अंगूरोँ को देखकर लार टपकाता रह जाता।
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लोगोँ ने उसे बहुत बार समझाया कि अंगूर खट्टे हैँ पर वह यह बात मानने को तैयार ही नहीँ था। बस वो अपने होठोँ से टपकती लार को साफ करते हुए यही कहता कि,”बकरी की माँ कब तक खैर मनाएगी, इस छुरी के नीचे एक ना एक दिन तो जरुर आएगी”। बस इसी वाक्य के साथ वह अपना लंड सहलाता हुआ खामोश बैठ जाता।
मोहल्ले से कुछ ही दूर उसका मकान था, दुकान के साथ एक छोटा सा स्टोर भी था। जब कभी भी वंदना या खुशी उसकी दुकान पर पहुंचती तो रमाकांत सिंह की बांछै खिल जाती। वह एक साइड से अपनी लुंगी खिसका कर, टांग पर टांग रखकर बड़े मजे से बैठ जाता।
इस तरह उसका लिंग मुंड थोड़ा सा बाहर चमकने लगता। बस इस तरह वह अपना काम करता और वंदना या खुशी अपना मतलब सीधा कर चलती बनती। ऐसे बहुत दिन गुजर गए और बहुत सारा सामान वंदना और खुशी ने ऐंठ लिया तो रमाकांत सिंह बहुत झुंझलाया, ”अब तो हिसाब बराबर कर ही लेना चाहिए” बस वह ठान कर बैठ गया।
वंदना भी उस दिन कुछ फुर्सत से थी, वह बैठे बैठे सोच रही थी क्योँ ना रमाकांत सिंह से पटा कर एक चॉकलेट खाई जाए। बस मौका देखकर वह रमाकांत सिंह की दुकान पर जा पहुंची। हमेशा की तरह उसे देख कर रमाकांत सिंह खुश हो गया। “हूँ… कैसे याद आई रमाकांत की बेबी ?” वह वंदना की मस्त चूचियाँ देखते हुए मुस्कुराया।
“बस रमाकांत जी, वक्त बेवक्त आपकी याद आ ही जाती है।”
“हाय मर जाऊँ!” वह चलता हुआ बोला, ”अब कैसे याद आई हमारी?”
“बस ऐसे ही तुंहारे ख्याल मेँ गुम थी, फिर सोचा कि चलो चॉकलेट के बहाने रमाकांत जी को देख आया जाए.”
“कुर्बान जाऊँ तेरी जवानी पर”, वह अपने हाथ मलता हुआ उठ खड़ा हुआ, आज तो मैंने तेरे लिए ऐसी चॉकलेट का इंतजाम किया है कि बस तुझे खाते ही मजा आ जाएगा.”
“ऐसी बात है क्या?” वंदना खुश होते हुए बोली, ”जल्दी से दे दो फिर, मुझे देर हो रही है”।
“क्योँ जल्दी मचा रही है ?”, वह दुकान से बाहर आ गया, ”यह चॉकलेट मैंने सिर्फ तेरे ही लिए संभाल कर रखी है, खुशी भी मांग रही थी पर मैने टाल दिया।”
इतना कह कर रमाकांत ने दुकान का शटर गिराया और दुकान के पिछवाड़े मेँ बने स्टोर की तरफ चल पड़ा।
“यह कहाँ जा रहे हो तुम ?”, वंदना ने हैरान होकर पूछा, ”क्या चाकलेट दुकान पर नहीँ है?”
“वह सिर्फ तेरे लिए है, भला मैँ उसे दुकान पर कैसे रख सकता था। स्टोर मेँ संभाल कर रखा है, चल मैँ तुझे दे देता हूँ।”
वंदना अच्छी तरह जानती थी कि वह बहुत ठरकी है। वह बस इसी वजह से थोड़ा झिझक रही थी।
“नहीँ तो फिर रहने दो, फिर कभी ले लूंगी”, ऐसा कह कर वंदना ने निकल जाना चाहा।
“ओह हो मैंने अब तेरी वजह से ही दुकान बंद कर दी है और तू कहती है कि फिर कभी, अभी नहीँ तो फिर कभी नहीँ, अच्छे बच्चे जिद नहीँ करते चुप चाप मेरे पीछे आ जा.”
वंदना ना चाहते हुए भी दुकान के पिछवाड़े मेँ बने उस स्टोर की तरफ चल दी। शायद उसने यही सोचा होगा कि ये बुड्ढा भला मेरा क्या बिगाड़ लेगा। जो होगा देखा जाएगा, इसे तो मैँ आसानी से देख लूँगी। रमाकांत सिंह ने दरवाजा खोला और भीतर चला गया पर वंदना बाहर ही खड़ी रही।
“अरे अंदर आ ना, बाहर खड़ी क्या सोच रही है? चॉकलेट नहीँ लेनी क्या?”
“बस मैँ यहीं ठीक हूँ, तुम चॉकलेट मुझे यहीँ लाकर दे दो.”
“तू कैसी बहकी बहकी बातेँ कर रही है वंदना, तू तो ऐसे रही है जैसे मैँ तुझे खा ही जाऊँगा.”
“नहीँ ऐसी बात नहीँ है, बस यूँ ही.”
“चल बाबा अब बहुत हुआ”.
वह वापस पलटा और वंदना का हाथ पकड़ कर जल्दी से अंदर की ओर बढ़ गया। उसके हाथ की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वंदना कुछ सोच पाती उस से पहले ही भीतर तक पहुंच गई। भीतर पहुंचते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया।
“दरवाजा क्योँ बंद किया रमाकांत?”, वंदना ने हैरान होकर पूछा।
“बस… घबराती क्योँ है ?”, वह मुस्कुराता हुआ बोला, ”अभी पता चल जाएगा कि मैंने दरवाजा क्योँ बंद किया”|
“मैँ कुछ समझना नहीँ चाहती तुम जल्दी से मुझे चॉकलेट दो, घर जाना है देर हो रही है.”
तब वह वंदना के ठीक सामने खड़ा हो गया, उसकी आंखोँ की चमक समझना अब वंदना के बस की भी बात नहीँ थी। वह बस उसे देखकर मुस्कुरा रहा था और वंदना अपनी पलकेँ झपकाती उसे देख रही थी। बस रमाकांत सिंह ने इसी तरह मुस्कुराते हुए अपनी लुंगी हटा दी, वंदना का कलेजा धक्क से रह गया।
उसकी सांस एक पल के लिए रुक गई। उसकी आंखोँ के सामने एक काली, मोटी सी, लंबी सी चीज अजीब ढंग से अठखेलियाँ कर रही थी। रमाकांत वैसे ही खड़ा हो कर मुस्कुरा रहा था। वंदना वैसे उस चीज को थोड़ा बहुत जानती थी, उसने उसके बारे मेँ खुशी से सुना था। फिर भी अचानक से उसके ऐसे सामने आ जाने पर वह एक दम से सकपका गई।
वह अनजान बनते हुए बोली, ”क्या है यह?”
“चॉकलेट है”, रमाकांत ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
“चॉकलेट ऐसी होती है क्या” वंदना ने हकलाते हुए पूछा।
“अरे पागल… असली चॉकलेट ऐसी ही होती है”, वह अपने पीले पीले दांत दिखा कर हंसता हुआ अपना लंड सहलाने लगा।
“नहीँ यह चॉकलेट मेँ नहीँ ले सकती”, वह दरवाजे की तरफ मुड़ते हुई बोली, ”तुझे मुबारक तेरी चॉकलेट अब मैँ चलती हूँ”|
रमाकांत ने छलांग मार कर फटाक से वंदना को दबोच लिया, ”कहाँ जा रही है छिपकली, पूरे छह महीने से तू और तेरी सहेली मेरा खून पी रही हो, आज तो मैँ तुझे छोड़ूंगा नहीँ”, रमाकांत सिंह ने उसे अपने बाजुओं मेँ कस लिया और उठा कर बेड पर ला पटका।
“यह क्या बदतमीजी है, रमाकांत.”
“बड़ी भोली है तू” वह मुस्कुराता हुआ बोला “जरा सा काम है, और तू इसे बदतमीजी कहकर अपना और मेरा टाइम खराब कर रही है.”
वंदना उसकी बात अब पूरी तरह समझ चुकी थी, वह समझ चुकी थी कि रमाकांत सिंह किस हमले की तैयारी कर रहा है। लेकिन पराई अमानत इस तरह लुटा देना भी कहां की समझदारी थी। वैसे भी वंदना ने कई चालू लड़कियोँ से सुन रखा था कि ऐसे बुड्ढे बहुत ठरकी होते हैँ.
वह पराई अमानत को बुरी तरह से नोंच खसोट डालते हैँ। लड़की लहू लोहान हो जाती है और यह लोग खून की होली खेल कर बहुत खुश होते हैँ। वंदना इसी ख्याल से सहम गई, उसने अपनी अस्त व्यस्त स्कर्ट को ठीक करते हुए अपनी जांघो के बीच पैंटी मेँ कसी छुपी अपनी चूत छुपा ली।
वह गुस्से से मैँ बोली, ”मैं भोली भाली कुछ नहीँ हूँ बहुत तेज लड़की हूँ, अगर कुछ उल्टा सीधा किया तो मुझसे बुरा कोई नहीँ होगा समझा.”
“हाय तेरी कसम, तू गुस्से मेँ बहुत सुंदर लगती है.”
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उसने एक बार फिर अपनी लुंगी हटा कर अपना लिंग सहलाया। वह उसके हाथ में काले सांप की तरह फुंकार रहा था, उसकी गंजी खोपड़ी चमक रही थी। वंदना उसे देख कर फिर से सहम गई, ”देख रमाकांत मैँ सच कहती हूँ, मेरा गुस्सा बहुत खराब है”।
“आज मैँ तेरा गुस्सा ही तो देखना चाहता हूँ.”
“मैँ शोर मचा दूंगी”, वंदना ने उसे धमकाया।
“मैँ यही तो चाहता हूँ, कि तू शोर मचा दे” वह हंसता हुआ बोला,”तभी तो मेरा इंतकाम पूरा होगा, बहुत दिनोँ से तुम दोनोँ रंडियोँ ने मुझे बहुत उल्लू बनाया”।
“शोर मचा कर सारा मोहल्ला इक्ट्ठा कर ले, मैँ सबसे कह दूंगा कि तू पैसा लेकर धंधा करती है। मेरा तो कुछ नहीँ बिगड़ेगा पर तेरी खूब बदनामी होगी”।
“पर मैँ तो ऐसी नहीँ हूँ”, वंदना ने रुआंसी हो कर कहा, ”तू धोखे से मुझे यहाँ लाया है, मैंने तो तुझसे कोई पैसा नहीँ लिया।”
“तो अब ले ले मेरी जान”, वह अपनी जेब से 100 100 के नोट निकलता हुआ बोला, ”मैँ तो तुझे नोटो से तोल दूंगा।”
इतना कहकर उसने वह नोट वंदना की तरफ उछाल दिए। वह बेड पर इधर उधर बिखर गए। फिर वह वंदना के पास आकर बैठ गया, ”पैसा बड़े काम की चीज है, बड़ी से बड़ी जरुरत मेँ काम आता है |”
“मैँ क्या करुंगी इनका”, वंदना ने हकलाते हुए पूछा।
“इसे खर्च करना तो तेरी इच्छा पर निर्भर करता है”, वह बोला, ”अगर मेरी बात नहीँ मानी तो तुझे दोहरा नुकसान हो सकता है, पैसा और इज्ज़त एक साथ ही चली जाएगी… मेरी रानी।”
हरे हरे दस नोट देखकर वंदना की नीयत कुछ डीली हुयी। रमाकांत ठीक कह रहा था, इन पैसोँ से बहुत दिन तक खूब मौज उड़ाई जा सकती थी। अगले हफ्ते स्कूल पिकनिक भी जाने वाली थी, मैडम ने बताया था एक लड़की का खर्च 500 है।
वंदना और खुशी के घर वालोँ ने साफ मना कर दिया था। दोनोँ सहेलियाँ दिल मार कर रह गई थी। रमाकांत सिंह एक ही झटके मैँ उसे हज़ार रुपए दे रहा था। और वैसे उसकी बात नहीँ मानी तो वह ऐसा इल्जाम लगाने की बात कर रहा था कि वंदना कहीं मुंह दिखाने के लायक भी नहीँ रहती।
अब रमाकांत की बात मानने के अलावा वंदना के पास और कोई चारा भी नहीँ था। क्योंकि लोग रमाकांत की ही बात मानते, सभी कहते कि वंदना इतनी भी बच्ची नहीँ थी जो रमाकांत उसे जबरदस्ती कमरे मेँ उठा कर ले जाए, बेड पर बैठाए, चारोँ तरफ नोट भी बिखरा दे और वंदना कुछ समझ भी न पाए। वंदना की इज्जत की धज्जियाँ उढ़ सकती थी।
“अगर मैँ तुम्हारी बात मान भी लेती हूँ, तो इसकी क्या गारंटी है कि तुम यह रुपए मुझे ही दे दोगे.”
“कैसी बच्चोँ जैसी बात करती है”, रमाकांत अपने हाथ मसलता हुआ बोला, ”तेरी कसम यह सब रुपए तेरे ही हैँ।”
वंदना ने बिखरे हुए नोट समेट कर अपनी अंटी में रख लिए।
“अब एक बात तुझे मेरी भी माननी होगी”, वंदना ने कहा।
“क्या”, रमाकांत सिंह ने उसे अपनी तरफ खींच कर गोद में बैठाते हुए पूछा।
वंदना थोड़ी देर के लिए खामोश हो गई, रमाकांत सिंह की आंखेँ वंदना की गोल मटोल चूचियोँ पर ही गड़ी हुई थी।
“तुझे ऊपर ही ऊपर से जो करना है कर ले”, वंदना ने झिझकते हुए अपने दिल की बात कह दी।
“बहुत चालू लड़की है तू”, वह बोला, ”ठीक है ऊपर ही ऊपर से सही, लेकिन तुझे भी मेरी एक बात माननी होगी”।
“क्या”?
“तुझे अपने सारे कपड़े उतारने होंगे.”
“नहीँ मैँ अपने कपड़े नहीँ उतारूंगी, बस तुझे ऐसे ही अपने दिल की भड़ास निकालनी होगी.”
“ऐसे तो कुछ भी मजा नहीँ आएगा… मेरी रानी.”
“मैँ कुछ नहीँ जानती, अगर मेरी बात मंजूर है तो ठीक नहीँ तो आप पकड़ो अपने पैसे मैँ भी देखती हूँ तो मुझे कैसे रोकता है”, वंदना उठकर खड़ी हो गई।
रमाकांत उसके तेवर देखकर सोच मेँ पड़ गया।
“अच्छा ठीक है”, थोड़ी देर की खामोशी के बाद वह बोला, ”तेरी बात मुझे मंजूर है”।
रमाकांत सिंह बहुत घाघ आदमी था, लड़की के कपड़े उसी के हाथ से कैसे उतरवाने हैं, वह यह बात खूब अच्छी तरह जानता था। उसने वंदना को पूरी तरह अपने जाल मेँ फंसा लिया था। वह अच्छी तरह जानता था कि सीखा उसके चंगुल से बचकर नहीँ जा सकती। इसलिए उसने वंदना की शर्त कबूल कर ली।
बातचीत अच्छी तरह तैय होने के बाद उसने वंदना को उठाकर पुनः अपनी गोद मेँ बैठा लिया। उसके स्पर्श और कामुक बातोँ से वंदना पहले ही कुछ कुछ उत्तेजित हो चुकी थी, उस पर बुड्ढे को पागल बना कर मन ही मन बहुत खुश होने से भी उसकी उत्तेजना बहुत हो गयी थी।
इधर रमाकांत सिंह ने भी पूरी तरह ठान ली थी कि वह वंदना की जवानी का गुरुर चकनाचूर कर के ही दम लेगा। रमाकांत शर्ट के ऊपर से ही उसकी छातीयां दबाता हुआ उसके गोरे गोरे गाल चूमने लगा। वंदना का सारा शरीर गुदगुदा उठा, दिल की धड़कन तेज हो गई और जांघों के बीच कुछ कुछ होने लगा।
“कैसा लग रहा है वंदना बेबी.”
“हूं… बस अब तक तो अच्छा ही लग रहा है, अजीब सी गुद गुदी हो रही है.”
रमाकांत इसी तरह 10 मिनट तक वंदना की चूचियोँ के साथ उलझा रहा। वंदना की छातियां उसके सख्त हाथों की रगड़ से फूलने लग गईं थीं। अब उन में मीठा मीठा दर्द होने लगा था। योनि की छत से चिपचिपा पदार्थ लीक करने लगा था।
बस अब अपने आप ही वंदना का दिल चाहने लगा था कि वह अपनी शर्ट उतार दे तो ज्यादा अच्छा रहेगा। उसने धीरे धीरे अपनी शर्ट के बटन खोलने शुरु कर दिए। रमाकांत के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई। धीरे धीरे खुलते शर्ट के एक एक बटन के साथ उसकी मुस्कान और भी गहरी होती चली जा रही थी।
वह कुछ इस तरह मुस्कराया कि उसके चेहरे की झुर्रियोँ से पसीना टपक पड़ा। शर्ट हटने के बाद सफेद रंग की एक सस्ती सी ब्रा मेँ ढकी हुईं, गोल मटोल चुचियाँ रमाकांत के सामने आ गयीं। वंदना की चूचीयां बिल्कुल गोल थी, कुछ टेनिस बाल के जैसी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
रमाकांत ने कहा, ”जानेमन अगर गर्मी लग रही है तू क्योँ नहीँ इसे भी उतार देती। आख़िर ऊपर ही ऊपर से करते हुए मैँ भला तुंहारा क्या बिगाड़ सकता हूँ”।
वंदना ने सोचा इसमेँ तो कोई भी बुराई नहीँ है। भला मेरी नंगी चूचींयों के साथ यह क्या कर सकता है। धीरे से अपने हाथो को पीछे अपनी पीठ पर ले जाकर वंदना ने अपनी ब्रा के हुक को खोल दिया। अब वंदना की गोल मटोल भक्क गोरी छातियाँ रमाकांत के सामने थी।
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ठीक बीचोंबीच भूरे रंग के गोल धब्बे थे, जिन पर काली मिर्च की बराबर के छोटे छोटे निप्पल उभरे हुए थे। ठोस छातियाँ देखकर तो रमाकांत की लार बूढ़े सियार की तरह टपक पड़ी। वह किसी हद तक अपने मकसद मेँ कामयाब हो चुका था।
वंदना अपनी शर्ट उतार कर बड़े गौर से बारी बारी अपनी फूली हुई चुचियाँ देख रही थी। उसे ताज्जुब हो रहा था, उसकी चुचिंयां सामान्य से अधिक फूली हुयी थीं। वैसे रमाकांत चाहता तो ज़बरदस्ती भी वंदना के कपड़े उतार सकता था। लेकिन वह बहुत चालाक और मंझा हुआ खिलाड़ी था।
हर कदम फूंक फूंक कर रखना और अपने मकसद मेँ कामयाब होना उसने फौज मेँ रहकर ही सीख लिया था। उसे यकीन था कि वह इसी तरह आहिस्ता आहिस्ता दुश्मन का सारा किला फतह कर लेगा। पहले भी इसी तरह आहिस्ता आहिस्ता उसने गई छोटे छोटे किलोँ की धज्जियाँ, अपनी पुरानी खूंसट पर मज़बूत तोप से उड़ा रखी थी।
फिर उसने अपने होंठ, बहुत हौले से वंदना की चुचिंयो से सटा दिए और उसके निप्पल को मुंह मेँ दबाकर धीरे धीरे चूसने लगा। रमाकांत ने अपने होंठ वंदना की छातीयों पर क्या रखे, वंदना तो कंप कंपा उठी। उसके पूरे शरीर से मस्ती की झुरझुरी उठने लगी और उसके मुंह से एक कामुक सिसकी के साथ कुछ कामुक शब्द फूटे।
“उंउउउउ… रमाकांत… बड़ा अच्छा लग रहा है.”
एक लंबी पुचकरी के साथ उसकी छाती छोड़ते हुए रमाकांत ने जवाब दिया,”तूने तो बेकार ही शर्त रख रखी है, वरना मैँ तो तुझे यही बैठे बैठे पेरिस और लंदन की सैर करा सकता हूँ”।
“नहीँ… मैँ इंडिया मेँ ही ठीक हूँ”, वंदना ने घबराकर जवाब दिया।
वंदना जानती थी की रमाकांत सिंह उसे किस तरीके से पैरिस और लंदन घुमा सकता है। उसने खूब अच्छी तरह सुन रखा था कि जम्बू जैट की रफ्तार कितनी तेज़ होती है। उसके झटके सहना हर लड़की के बस की बात नहीँ होती।
कभी कभी तो वह इतना ऊपर उड़ जाता है कि बादलों को ही फाड़ कर रख देता है। एैसे समय डर के मारे बेचारी लड़की की चीखें निकल जाती हैं। पर जंबू जैट फिर भी अपनी मंजिल पर जाकर ही दम लेता है। बेचारी वंदना ने बस ऊपर ऊपर की सैर की शर्त शायद इसीलिए रखी थी।
कई बार दुकान पर ही बैठे बैठे रमाकांत सिंह अपनी लूंगी एक तरफ हटाकर वंदना को अपना जंबो जेट दिखा चुका था। कुछ देर पहले ही बड़ी भयानक सूरत मेँ वह वंदना को फिर नजर आया था। बस तभी से कुछ सहम सी गई थी। उसे अपनी तो फिकर बिल्कुल नहीँ थी, पर पराई अमानत का तो कुछ ख्याल रखना था।
जिसे वह अपनी जांघों के बीच छुपा कर रमाकांत सिंह की गोद मेँ बैठी हुयी थी। उधर रमाकांत अपने काम पर पूरी तरह मुस्तैद था। अबकी बार वह उसकी एक चूची, किसी कच्चे आम की तरह चूसने में लगा था वहीं दूसरे हाथ को कब बड़ी होशियारी से उसने वंदना की चूत तक पहुंचा कर उसे सहलाने भी लगा था, यह तो नशे में मदहोश वंदना को पता भी नहीं चला।
वह पूरी पूरी चूची मुंह मेँ भरकर पुचकारियों के साथ बाहर छोड़ रहा था। उसकी पुच पुच की आवाज वंदना के कानोँ के पर्दे फाड़ रही थी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे हजारोँ चीटियां उसके शरीर पर रेंग रहीं हों। उसकी पलके बोझिल होती जा रही थी।
बहुत अजीब सा नशा था, वंदना इस नशे मेँ पहली बार डूबती जा रही थी। रमाकांत ने उसकी छातीयां निचोड़ कर रख दी थी। तभी वंदना उछल पड़ी। अब वह बैड पर आ गिरी थी और रमाकांत अपने दांत दिखाता हुआ हंस रहा था।
“क्या हुआ रानी… इतनी जोर से तुम क्योँ उछली.”
“सी… तुमने ही तो मुझे इस तरह उछलने के लिए मजबूर किया है”, वंदना उसे घूरते हुई बोली। उसे रमाकांत पर पड़ी ज़ोर का गुस्सा आ रहा था।
रमाकांत ने वंदना की मदहोशी का फायदा उठा कर उसकी चूत मेँ तीन उंगली एक साथ घुसा दीं थीं। यह हमला पेंटी के समेत हुआ था। वंदना की पैंटी भी उसकी चूत में एक इंच भीतर तक घिसट आई थी। पैंटी बुरी तरह से चूत मेँ एक गांठ की तरह फस गई थी, जिसे बड़ी मुश्किल से खींच कर वंदना ने अपनी चूत से बाहर निकाला।
“अंगुलिमार डाकू की तरह हरकत की है तूने” वह अपनी चूत पर पैंटी सही करती हुई बोली।
“अच्छा नहीँ लगा क्या”, उसने हंसते हुए पूछा।
“3 उंगलियाँ एक साथ” वंदना ने कहा,” मैँ एक पतली दुबली बेचारी लड़की, तुम्हारी तीन मोटी उंगलियोँ से तो भैंस भी उछल पड़ती”।
“हा हा हा, भैंस उछलती तो है… और उछल उछल कर मज़े भी लेती है”, अपने लन्ड को धीरे-धीरे सहलाते हुए रमाकांत ने पूछा, ”कभी देखा है कैसे?”
“नहीं देखा.”
“चल आज मैं तुम्हें दिखाता हूं… रानी.”
“नहीं मुझे नहीं देखना, और अब मुझे जाने दे ना मेरी माँ इन्तजार कर रही होंगी”, रमाकांत सिंह को अपने लन्ड को सहलाते देख, अपनी नजरें नीची करती हुई वंदना बोली।
गौर करने वाली बात यह थी कि रमाकांत सिंह वंदना के सामने बार-बार अपने लन्ड को कभी सहलाता, कभी हिलाता, कभी उसकी खाल को आगे पीछे करता। दरअसल रमाकांत सिंह यह जानता था कि नई लड़कियोँ के दिल मेँ हमेशा लन्ड को लेकर मिलीजुली भावनायें रहती हैं। जहां एक ओर उनके दिल में अत्यधिक उत्सुकता होती है, वहीं दूसरी ओर एक अजीब सा भय भी रहता है।
और वह जानता था कि जितनी ज्यादा से ज्यादा देर तक वह वंदना के सामने अपने लिंग को रखेगा उतना ही वंदना के दिल से उसका डर समाप्त होता चला जाएगा। और बिल्कुल ऐसा ही धीरे धीरे हो भी रहा था, जहाँ वंदना एक और जाने के लिए कह रही थी, वहीं दूसरी ओर वह छुपी हुई चोर नज़रों से रमाकांत सिंह के काले फुंकारते लिंग को ही देखे जा रही थी।
“इतनी जल्दी से ही जाने की बातें न करो मेरी रानी, मुझे पता है आज तेरी माँ शाम से पहले नहीं फ़ारिग होने वाली” रमाकांत सिंह बोला, ”तेरी माँ जिनके यहां काम करती है, आज उनके घर बहुत मेहमान आये हैं”।
“उं हुं, फिर भी, जाने दो ना, अब और क्या करोगे.”
रमाकांत सिंह बोलने से ज्यादा करने वालों मैं से था। सो वंदना की बात का जवाब, बात से देने के बजाय उसने आगे बढ़ कर, पलंग पर पैर लटका कर बैठी वंदना को हौले से पीछे की तरफ धक्का दे कर गिरा दिया। वंदना उत्सुकतावश कुछ नहीं बोली। उसने सोचा देखूं तो भला क्या करता है यह।
रमाकांत सिंह ने घुटनों के बल नीचे बैठकर वंदना की गोरी, शीशे के जैसी चिकनी पिंडलियों को अपने काले खुरदरे हाथों से पकड़ कर सहलाते हुये हौले-हौले से चूमना शुरू कर दिया। वंदना के सारे शरीर में एक बार फिर से गुदगुदी होनी शुरू हो गयी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
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वह फिर से उसी अजीब सी मदहोशी की हालत मैं पहुंचने लगी जिसमें वह कुछ देर पहले थी। अब रमाकांत उसकी गोरी चिट्टी, कुछ केले के तने जैसी भारी और चिकनी जांघों को अपने होंठों से चूम रहा था। अपने दोनों हाथों से उसने वंदना की पतली सी कमर को थाम रखा था।
अपनी जीभ का इस्तेमाल करने हुये रमाकांत सिंह निरंतर परन्तु धीरे-धीरे वंदना की परायी अमानत की तरफ बढ़ते जा रहा था। रमाकांत ने बहुत ऐहतियात के साथ वंदना की कमर व पेट के हल्के हल्के सहलाते हुए, अपनी नाक को बहुत धीरे से वंदना की चूत के ऊपर रखा और तुरंत ही वापस खींच लिया।
वह वंदना की प्रतिक्रिया देखना चाहता था। और हुआ वही जिसका उसे अनुमान था, वंदना रमाकांत सिंह की हरकतों की मस्ती में इतना मदहोश हो चुकी थी कि उसे पता भी न चला कब रमाकांत सिंह ने पैंटी के उपर से ही वंदना के पेडू और चूत के ऊपरी भाग को चूमना… होंठों से सहलाना शुरू कर दिया।
वंदना की चूत में मानो सैलाब सा आ गया। उसने चुदायी के बहुत किस्से सुन रखे थे, बहुत सी दीदी, मौसी जब शादी के बाद अपनी सुहागरात के किस्से सुनाती तब खुशी और वंदना पर कोई ध्यान भी न देता। और इस तरह दोनों चुदायी के बारे में कुछ जानती थी।
परन्तु आज तक के भी, उनके द्वारा सुने गये किसी भी किस्से में वंदना ने एैसा नहीं सुना था कि कोई अपने मुँह, अपने होंठ… अपनी जीभ का उपयोग एैसे भी कर सकता है। उत्तेजना की एक तेज लहर वंदना के दिमाग़ से ले कर रूह तक उठने लगी। उसका पूरा शरीर हौले-हौले थरथराने लगा।
उसकी योनि की दीवारें अचानक फैलने – सिकुड़ने लगीं। वहां एैसी बरसात होने लगी मानों बरसों के प्यासे किसी मुसाफिर को वे तृप्त कर देना चाहती हों। पैंटी के ऊपर से ही वंदना की चूत के साथ अपनी कारीगरी दिखाते रमाकांत सिंह ने हल्की गीली वंदना की पैंटी को योनिरस से सराबोर होते साफ महसूस किया।
अपने जीवन मेँ पहली बार वंदना ने ऐसी भावनाओं को महसूस किया था। पहली बार मदहोशी के ऐसे आलम से वंदना गुजर रही थी। वंदना को अब कुछ भी होश नहीं था। बस रमाकांत सिंह की लपलपाती जीभ के करतब को अपनी चूत पर महसूस करती हुई वंदना मानो सातवेँ आसमान पर ही पहुंच गई थी।
रमाकांत बहुत धीरे से अपनी जीभ को ऊपर… और ऊपर करता हुआ वंदना की नाभि तक ले आया था। और अब वह उसके नग्न पेट पर धीरे धीरे अपनी जीभ को चलाते हुए अपने गरम गरम होंठों को, बहुत धीरे धीरे नीचे की ओर खिसकाते जा रहा था।
इस अजीब से नशे मेँ वंदना इतना गुम हो गई थी कि उसे पता भी न चला कब रमाकांत सिंह ने बहुत हौले से अपने दांतोँ मेँ उसकी पैंटी की इलास्टिक को फंसा लिया। बहुत ही सावधानी से रमाकांत सिंह ने अपनी दोनोँ उंगलियों और अपने दांतों की मदद से धीरे धीरे वंदना की बेचारी पैंटी को उसकी कमर से नीचे खिसकाना शुरु कर दिया।
वंदना को इस सब मेँ इतना मजा आ रहा था कि अब वह अपनी सारी शर्तेँ भूल चुकी थी। वह अब भूल चुकी थी जम्बो जेट की सवारी करने पर कैसे उसे नुकसान हो सकता है। वह भूल चुकी थी कि उसने कोई शर्त भी रखी थी।
इस सब मेँ अब उसे इतना मजा आ रहा था कि जब रमाकांत को उसकी पेंटी उतारने मेँ थोड़ी परेशानी हुई तब वंदना ने अनजाने मेँ ही सही पर बहुत हलके से अपनी कमर उठाकर उसकी सहायता कर दी। कब वंदना की पैंटी उसके घुटनो तक पहुंची यह वंदना को पता भी न चला।
“रमाकांत… आहहहहहह… ये कैसा जादू कर दिया है तूने मुझ पर… ज़ालिम.”
“डरो नहीं मेरी रानी”, रमाकांत वंदना की गोरी चिकनी जांघों को अलग करते हुए बोला, ”डर के आगे ही जीत है.”
अब वंदना की सुंदर गुलाबी चूत रमाकांत सिंह की कुत्ते जैसी नज़रोँ के आगे थी। जहाँ चांद और सूरज की रोशनी भी कभी नहीँ पढ़ी थी, रमाकांत सिंह वहाँ धीरे से झुक गया। वंदना की चूत पर हल्के-हल्के भूरे रोंये ही थे। उन भूरे रोंयों के बीच गुलाबी सी चूत बहुत ही सुंदर लग रही थी। जगह सचमुच बहुत छोटी थी, रमाकांत ने जब उसे अपनी उंगली से टटोला तो वंदना ज़ोर से तड़प उठी।
“क्या कर रहे हो रमाकांत… सीईईईईईईई… ऐसे न तड़पाओ मुझे.”
उसने एक बार फिर वंदना को उत्तेजना से पूरा खड़ा अपना लिंग दिखाया और फिर वह वंदना की चूत पर अपनी जीभ के साथ टूट पड़ा। वंदना को अब पहले से कही ज्यादा आनंद मिल रहा था। वह बेड पर जल बिन मछली की भांति तड़पने लगी।
रमाकांत सिंह से इस खेल का मंजा हुआ खिलाड़ी था। वह जानता था कि उसे कब क्या करना है। वह बार बार वंदना के मूत्र स्थान को अपने दांतो मेँ दबा दबा कर चूस रहा था। कभी अपनी जीभ को वंदना की कुंवारी अनछुई चूत में घुसाने की कोशिश करता।
वंदना की तड़प देखने लायक थी। एैसा लग रहा था मानो वंदना कोइ नागिन है और किसी सपेरे ने उसे जादू के जोर से ऐसा बांध दिया है कि वह न तो भाग सकती है ओर ना ही प्रतिरोध कर सकती है। वंदना के लिये तो मानो ये लम्हे एक प्यास, एक तड़प ले कर आए थे जो वंदना ने पहले कभी महसूस नहीं की थी।
बह एक अनजानी सी प्यास से इतनी व्याकुल हो चुकी थी कि अपनी छातीआँ खुद ही दबा रही थी। रमाकांत की हर एक हरकत उसकी प्यास बुझाने की बजाए बढाते ही जा रही थी। एक बार उसने एक नजर रमाकांत की तरफ डाली जो कुत्ते की तरह उसकी चूत को चाट रहा था।
बहुत धीरे से उसने अपने दोनोँ हाथोँ को रमाकांत के बालोँ मेँ फंसा दिया और उसके सिर को ज्यादा तेजी से अपनी चूत पर दबाने लगी। रमाकांत भी इसी तरह उसकी छोटी सी चूत को अपनी लंबी और खुरदुरी जीभ से चाटते रहा। वह बार बार उसके भगनासे को अपनी जीभ के छोर से सहला देता।
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अब हालत इतनी बिगड़ चुकी थी कि वंदना के सब्र का प्याला छलक उठा। उसकी योनि से सफेद सफेद झाग के बुलबुले उठ रहे थे। एक बार तो उसका दिल चाहा कि रमाकांत सिंह की गर्दन पकड़कर उसे अपनी इस छोटी सी जगह मेँ घुसा दूं। लेकिन वंदना अपनी बेबसी पर बहुत मजबूर थी।
“सीहहहहहह… रमाकांत, ये कैसी आग लगा दी है तुने ज़ालिम”, वंदना ने अपनी तेज तेज चल रही सांसों को किसी तरह तरतीब में लाते हुए कहा, ”इसे बुझा दे, नहीं तो मैं मर जाउंगी। मेरा पूरा जिस्म जल रहा है, कुछ कर ओ ज़ालिम बुड्ढे”।
तभी अचानक रमाकांत सिंह अपने हाथों से अपना मुँह साफ करता हुआ खड़ा हो गया और अपनी लुंगी को ठीक करते हुये पास ही पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। इधर रमाकांत सिंह ने बढे़ आराम के साथ, लापरवाही जताते हुए वहीं मेज़ की दराज में पड़े बीड़ी के बंडल से निकाल कर, एक बीड़ी सुलगाई, उधर वंदना अपनी बड़ी बडी आखें फैला कर आश्चर्य के साथ उसे देख रही थी।
वंदना को एैसा लगा मानो उसे सातवें आसमान से उठा कर किसी ने बड़ी बेरहमी के साथ ज़मीन पर पटख़ दिया हो। जैसी किसी के मन ना होने पर भी उसके आगे, चार तरह की सब्जी, दो तरह की दाल, अचार, सलाद, रायता, खीर, पूरी, रोटी आदि से सजी हुई थाली रख दी हो और जब वह रुचि पूर्वक उसे खाने लगे तभी उसके आगे से वह थाली खींच ली जाए। वंदना बहुत ही हैरान हुई।
“क्या हुआ रमाकांतssssssss ?”, उसने बहुत हैरानी के साथ पूछा।
रमाकांत बोला, ”बस रानी… मुझे इतना ही करना है”।
“साले… कुत्ते… हरामी, पहले तो जब मैँ मना कर रही थी तब तू ही कुत्ते के जैसे जीभ लपलपाता और दुम हिलाता मेरे पीछे पड़ गया”, वंदना मानो आग बबूला होते हुए बोली, ”और अब जब मेरे सारे तन बदन मेँ आग लग गई है, मेरी रग रग मेँ चीटियां सी दौड़ रही हैँ… हरजाई… तुझे मस्ती सूझ रही है !!! ओ ज़ालिम अब जल्दी से मेरी आग बुझा.”
“रानी, यह सब इतना आसान नहीँ है जितना तुम समझ रही हो। अभी तुम कुंवारी, कच्ची कली हो, कहीँ कुछ उल्टा सीधा हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे”, रमाकांत सिंह बोला, ”बहुत ही मुश्किल होता है ऐसी आग को बुझाना। बहुत ऐहतियात बरतनी पडती है, बहुत कुछ सहना-करना पड़ता है, तेरी अभी उमर ही क्या है… न… तू नहीं सहन कर पाएगी।”
“हरामजादे… जब बुझा ही नहीँ सकता था तो फिर तूने एैसी आग लगाई ही क्योँ”, वंदना बेख्याली में ही रमाकांत सिंह को गालियाँ देते हुए बोली, ”अब मैँ कुछ नहीँ जानती, चाहे जैसे भी करके मेरी शांति कर.”
“बेबी… ऊपरवाले की दया से ऐसी तो कोई आग है ही नहीं जिसे तुम्हारा ये रमाकांत बुझा न सके”, रमाकांत सिंह ने हल्की परन्तु बहुत ही कुत्ती मुसकुराहट के साथ कहा,”पर ऐसा करने के लिए अब मेरी कुछ शर्तें हैं।”
“शर्तें… कैसी शर्तें ?”
“जानेमन, अब तुम्हारी आग को बहुत ही एहतियात के साथ अगर बुझाना है तो इसके लिये मुझे बहुत मेहनत करना पड़ेगी। अब जब इतनी मेहनत करुंगा तो बदले में मेरा भी तो कुछ फायदा होना चाहिये ना ???”
“हम्मममममम.”
“बेबी, अब तुम्हें भी कुछ दाम खर्च करने पड़ेंगे”, रमाकांत सिंह बोला, ”अब अगर अपनी जवानी की इस आग को शान्त करना है तो कुछ मुझे भी तो बदले मेँ मिलना चाहिए.”
वंदना बोली, ”साले हरामी, मैँ सब समझ रही हूँ, बोल तुझे कितने पैसे चाहिए?”
रमाकांत सिंह ने बड़ी आराम से अपनी वही तीनों उंगलियां जिन्हें उसने कुछ देर पहले वंदना की चूत में घुसाने की कोशिश की थी, को दिखाते हुए कहा, ”तीन हज़ार”!
वंदना ने रमाकांत सिंह के ही दिए हुए हजार रुपए उसके मुंह पर मारे और फिर बोली, ”अभी तो मेरे पास यह हजार रुपए ही हैँ बाकी मैं बाद में दे दुंगी, अभी इन्हें रख ले… और मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ कैसे भी करके मेरी चूत की आग को ठंडी कर”।
रमाकांत सिंह ने बहुत ही गहरी मुस्कान के साथ बोला, ”तू और तेरी वो रांड सहेली, आज तक मेरा हिसाब तो साफ कर नहीं पायीं, घंटा दो हजार रुपये देगी तू मुझे। चूतिया समझा है क्या ?”
वंदना का पूरा बदन बुखार के जैसे तप रहा था। उसकी चूत जैसे भट्टी की तरह दहक रही थी। रह रह कर एक अनजानी सी खारिश उसकी योनि में उठ रही थी। वह सच में अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए रमाकांत सिंह से मिन्नतें करते हुए बोली,”कैसे भी कर के मेरी नैया पार लगा दे रमाकांत, तू जो बोलेगा वो मैं करुंगी.”
कुछ देर सोचने का अभिनय करते हुए रमाकांत सिंह बोला, ”चल मैं तेरे दो हजार रुपए माफ कर दूंगा, पर फिर मेरी शर्त यह है कि तुझे जो भी मैँ कहूँ वैसा करना पड़ेगा और जब मैं कहूँ तब किसी तरह खुशी को भी यहाँ लेकर आना पड़ेगा.”
“बिल्कुल ले आऊंगी जालिम… जो तू बोलेगा वह करुंगी… जैसे तू बोलेगा वैसे मैँ राजी, बस कैसे भी करके मेरी प्यास बुझा नहीँ तो मैँ मर जाउंगी.”
रमाकांत सिंह ने हंसते हुए धीरे धीरे वंदना के पास आकर, उसके चेहरे को अपने दोनोँ हाथोँ में भर कर, उसकी बड़ी बड़ी काली-काली आँखों में झांकते हुए बोला, ”अरे तुम्हें ऐसे थोड़े ही न मर जाने देंगे बेबी”।
और रमाकांत सिंह ने धीरे से झुक कर वंदना के प्राकृतिक रूप से ही गुलाबी-गुलाबी होंठों में से एक… नीचे वाले होंठ को अपने होंठों में दबाकर चूषने लगा। गौरतलब बात यह थी कि जहां वंदना लगभग नगीं सिर्फ एक स्कर्ट पहने, अपनी बुरी तरह रिसती बुर के साथ पलंग पर बैठी थी.
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वहीं रमाकांत सिंह ने अभी तक अपने शरीर से एक भी कपड़ा नहीं उतारा था। रमाकांत सिंह बहुत घाघ इंसान था, वह जानता था कि कब धैर्य का दामन पकड़े पकड़े खुद वंदना के ही हाथों से उसके कपड़े उतरवाने हैं और कब अपने कपड़े उतार कर खुद धैर्य की ही माँ चोद देनी है।
फिर रमाकांत ने अपनी टी शर्ट और पुरानी सी लुंगी उतार फैंकी। एक बार फिर से उसका लम्बा काला लन्ड वंदना की आँखों के सामने लहरा रहा था। पर अब वंदना को उससे उतना डर नहीं लग रहा था। बल्कि अब तो वंदना उसे छू कर पकड़ कर महसूस करना चाहती थी।
जड़ से सिरे तक उसकी लम्बाई कुछ 11-12 इन्च तो रही ही होगी। वैसे तो रमाकांत सिंह का लन्ड एकदम काला था, परन्तु उसका मुन्ड (सुपाड़ा) काफी हद तक गुलाबी रंग का था और शीशे के जैसे चमक रहा था। सफेद और काले बालोँ के बीच उसका लंड झूलता हुआ साफ दिखाई दे रहा था। उसे यू लटकता मटकता देख वंदना के शरीर से झुरझुरी सी छूट गई।
रमाकांत सिंह आकर वंदना के बगल में ही बेड पर लेट गया। उसका लंड छत की तरफ एकदम तना हुआ था। उसे देखकर वंदना का मन बहुत जोर से उसे पकड़ने का हुआ… और सिखाने अपने आप को रोका भी नहीँ। उसने अपने हाथ को बढ़ाकर रमाकांत के लंड को अपनी गोरी-चिट्टी नाजुक सी हथेली मेँ थाम लिया।
“उफफफफफ… यह तो दहकते हुए अंगारे के जैसा गर्म है” वंदना बोली, ”इतना गर्म कैसे हो गया है यह ?”
रमाकांत सिंह ने कहा, ”बेबी यह भी एक प्रकार का थर्मो मीटर है, जो हमारा टेम्परेचर और पास बैठी हुई लड़की की सुन्दरता बता देता है। जितना यह तना हुआ हो समझ लो उतनी ही सुन्दर पास बैठी लड़की होगी।”
वंदना रमाकांत की यह बात सुनकर शर्मा गई। तब रमाकांत ने वंदना की चिकनी पीठ पर हाथ फिराते हुए अपने हाथ को उसके सर तक पहुंचाया। फिर रमाकांत सिंह ने वंदना के बालों को अपनी मुट्ठी में जकड़ कर उसके सिर का पूरा कन्ट्रोल अपने हाथ में ले लिया।
इस प्रकार रमाकांत जैसे चाहे वैसे, जितना चाहे उतना वंदना के सिर को उपर-नीचे, दांये-बांये कर सकता था। फिर रमाकांत ने वंदना के सिर को अपने लंड के ऊपर झुकाना शुरु कर दिया। वंदना एकदम से चौंकी। उसे समझ नहीं आया कि रमाकांत आखिर चाहता क्या है। यह जगह तो पुरुषोँ के पेशाब करने की जगह है, या फिर इसका इस्तेमाल चूत की कुटायी करने के लिये होता है। इसे भला मुंह की तरफ लाने का क्या कारण ?
इस से पहले कि वंदना और कुछ सोच पाती रमाकांत ने उसके सिर को पूरा झुकाकर उसके नरम, रसीले, पतले – पतले, गुलाबी होठोँ के बीच अपने काले, लंबे, लंड को ठूंस दिया। पक-धप की हल्की सी आवाज़ हुई और रमाकांत का लिंग फिसलता हुआ वंदना के कंठ में जा फंसा।
वंदना को तो जैसे उल्टी ही आ गई। जैसे तैसे उसने अपने आप को पलटी करने से रोका और अपने मुंह मेँ से उस भयंकर काले लंड को बाहर निकालने लगी। अभी वह अपना मुँह पूरा उठा भी ना पाई थी कि रमाकांत ने वापस एक झटके से अपना लंड उसके मुँह मेँ घुसेड़ दिया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
वंदना की आंखे फैल गईं, नथुने फूल गए। वह हैरान परेशान रमाकांत की झांटों मे उलझी पड़ी थी। ऐसा होगा, उसने यह कभी सोचा भी नहीँ था। रमाकांत सिंह ने तो वंदना की बोलती ही बंद कर दी थी। वह बड़ी बड़ी आंखोँ से किसी निरीह पशु की तरह रमाकांत की ओर देख रही थी।
“सीsssssss… टुकुर टुकुर क्या देख रही है मेरी इमरती… तूने और तेरी सहेली ने मेरा बहुत खून पिया है, आज तो मैँ तुझे अपनी लिमका पिला कर ही छोड़ूंगा.”
वंदना बेचारी इस बात का क्या जवाब देती, रमाकांत पहले ही उसकी बोलती बंद कर चुका था। बस इन्हीं मजबूरियोँ से लड़ती वह बेचारी रमाकांत का मोटा लंड मुख मैथुन किये जा रही थी। रमाकांत अपना लंड उसके गले की गहराई तक पहुंचा कर बड़े प्यार से आहिस्ता आहिस्ता बाहर खींचता.
और अगले ही पल मेँ एक करारे झटके के साथ फिर वापस उसे उसके गले की गहराइयोँ तक भेज देता। थोड़ी देर तक तो वंदना को यह काम करने मेँ बहुत कठिनाई हुई। रमाकांत लंबी लंबी सिसकियाँ लेता हुआ अपनी कमर का भी भरपूर इस्तेमाल कर रहा था।
अब वंदना के होंठ भी चिपचिपा उठे थे, पुच-पुच की आवाज हर तरफ गूंज रही थी। थोड़ी देर मेँ ही वंदना को भी यह सब अच्छा लगने लगा। उसका कंट्रोल अब पूरा हो गया था और अब उसे कोई उलटी नहीँ लग रही थी। उसे बल्कि अब लंड का नमकीन-नमकीन सा स्वाद बहुत अच्छा लग रहा था।
वह अपने होंठ उस पर अड़ा कर उसे खूब अच्छी तरह चूस रही थी। कभी अपने दांतो से उसके सुपाड़े को बहुत हौले से चुभलाती, तो कभी अपनी जीभ से उसके मुंड पर गोल गोल घेरे बनाती। उसे चूसना तब वंदना को बहुत ही अच्छा लग रहा था।
अब वंदना के बालों को पकड़ कर रखने की कोई ज़रूरत नहीं रह गयी थी। रमाकांत के छोड़ते ही वंदना के लम्बे काले बाल लहराकर नीचे गिर गये। इधर वंदना रमाकांत के लनड में उलझी पड़ी थी उधर रमाकांत ने अपनी उंगलियों को धीरे-धीरे वंदना की काम रस से बुरी तरह गीली चूत को सहलाना शुरू कर दिया।
करीब 5 मिनट तक रमाकांत सिंह का लन्ड वंदना के होंठ, नर्म जीभ और गले की गहराइयों को नापता रहा। रमाकांत सिंह ने अब वंदना की सराबोर चूत में अपनी मोटी, खुरदुरी सी उंगली घुसेड़ दी। लन्ड चूसने में पूरी तरह डुबी वंदना चिहूंक पड़ी।
पर अब उसकी चूत इतनी गरम हो रखी थी कि वंदना को परेशानी होने के बावजूद बहूत आराम मिला। रमाकांत सिंह ने महसूस किया कि वंदना की चूत सच में भट्टी के माफिक गरम थी। स्तिथि यह थी कि जब अन्दर का जाएज़ा लेने के लिए रमाकांत ने अपनी उंगली से गुफा की दीवारों को इधर-उधर टटोला, तो वंदना की चूत और भी तेज़ी से आंसू बहाने लगी।
“सीहहहहहह… चल मेरी कटोरी, अब इसको तेरे दूसरे मुंह में ठूंसने का वक्त आ गया है”, कहते हुये रमाकांत सिंह ने वंदना के पतले, गुलाबी होंठों से अपना लन्ड बाहर खींच लिया। “टककक” शीतल पेय के ढक्कन खुलने जैसी अावाज़ के साथ रमाकांत का लिंग बाहर निकला।
“उंहहहहह… वंदना एैसे कुनमुनाई मानो किसी बच्चे से उसकी मनपसंद चाकलेट छीन ली गई हो.”
रमाकांत ने वंदना को बिल्कुल ही पलट दिया। अब वंदना उस गुदगुदे गद्दे पर घुटने मोड़कर बिल्कुल ऐसे झुकी हुई थी जैसे मुर्गी अंडा देते समय झुकती है। उसके चुत्तड़ ऊपर उठे हुए थे और उसका सिर बिल्कुल बेड के सिरहाने से सटा हुआ था।
इस स्थिति में वह चाह कर भी आगे नहीं सरक सकती थी। फिर रमाकांत ने अपना लंड पकड़ कर उसके मुंड को बहुत ही प्यार से वंदना की छोटी और तंग सी नज़र आने वाली गुलाबी सी चूत पर रख दिया। चूत पर रमाकांत के लंड का गरम-गरम स्पर्श पाते ही एक बार सिर्फ वंदना के पूरे शरीर ने झुरझुरी ली।
“आहहहहहहह… सीsssss… जरा प्यार से, आराम से करना रमाकांत.”
रमाकांत कुछ नहीँ बोला पर उसने वंदना के नर्म नर्म कूल्हों को अपनी हथेलियों से हल्का सा दबा कर बहुत धीरे से अपना लंड उसकी चूत मेँ फंसाने की कोशिश की। बहुत धीरे से रमाकांत का लंड वंदना की चूत के उपर पड़ी परदेनुमा खाल को फैलाते हुए मुंहाने पर अड़ गया।
सिपाही ने अपनी कमान संभाल ली थी। अब तो बस हमले की देरी थी और किला फतेह हो जाना था। वंदना की पतली सी कमर को रमाकांत ने अपने मजबूत हाथों से यूं पकड़ रखा था जैसे कि कोई खिलौना। वंदना को अच्छी तरह से गांठ लेने के बाद रमाकांत सिंह ने अपनी कमर को एक करारा झटका दिया।
और उसके काले कलूटे लन्ड का मोटा सा सुपाड़ा वंदना की चूत को फैला कर, ”पट” की आवाज़ के साथ उसमें फंस गया। वंदना बेचारी दर्द से बिलबिला कर रह गई। उसके वहमो गुमान में भी न था कि जिस काम को करने के लिये सारी दुनिया मरी जाती है उसे करने पर इतना दर्द होता है।
दर्द बहुत ज्यादा था। वंदना तो उठ कर भागना चाहती थी लेकिन एक तो बेड का सिरहाना होने की वजह से वह आगे नहीँ खिसक सकती थी। दूसरे रमाकांत ने उसकी कमर को बहुत अच्छे से पकड़ कर उसे किसी कुतिया की तरह अच्छे से गांठ रखा था।
“आआआईईईईईईईईई….. साले, हरामी, ज़ालिम… छोड़ देssssss, मुझे जाने दे.”
“क्यूं वहन की लौंड़ी, थोड़ी देर पहले हाथ जोड़कर कह रही थी मेरी चूत फाड़ दो। और अब नखरे दिखा रही है। रांड साली… चुप.”
कोई 1 मिनट तक यूंही चूत को लन्ड का अभ्यस्त हो लेने देने के बाद रमाकांत ने एक और करारा झटका मारते हुये अपना 12 इन्च के लगभग का लन्ड, आधे से ज्यादा वंदना की कुंवारी चूत में ठूंस दिया। बेदर्दी से आगे बढ़ते हुए लिंग को कौमार्य झिल्ली की बाधा का सामना तो करना पड़ा परन्तु उसके रोके कौन सा लन्ड आज तक रुका है भला?
झटका बहुत करारा था। वंदना की आंखोँ के आगे अंधेरा छा गया। उसकी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे ही रह गई। वंदना एक पल को जैसे अपने होश खो बैठी। “उईईईईई माँ… मर गई मैं”, वंदना की तड़पती चीख से पूरा कमरा गूंज उठा।
ऐसी भयंकर पीड़ा हो रही थी कि उसका पूरा शरीर ऐंठ गया। हाथ-पांव सुन्न से पड़ गये। वह बेचारी अभी इस दर्द से उबर भी ना पाई थी कि रमाकांत सिंह ने तीसरा और अंतिम भयंकर झटका मारते हुए अपना एक फुटा काला भुसंड लंड वंदना की कुंवारी, अनछुई, नाजुक सी चूत की पूरी गहराई मेँ उतार दिया।
अब तो वंदना को बिल्कुल भी होश नहीँ रहा। दर्द के मारे उसकी आंखोँ से आंसू निकल रहे थे और उसकी आंखे कुछ हद तक बंद भी हो चुकी थीं। रमाकांत सिंह इस पीड़ा को अच्छी तरह जानता था। वह उसी तरह से खड़ा-खड़ा अपनी हथेलियों की मदद से वंदना की गांड और चूत फैलाता हुआ अपने काले लंड को बहुत हौले-हौले थोड़ा बहुत आगे पीछे करने लगा।
वंदना तड़प रही थी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसकी चूत मेँ छुरा घोंप रहा हो। योनि की कच्ची दीवारेँ बुरी तरह से छिल गई थीं। धीरे-धीरे रमाकांत ने अपने लंड को ठीक जगह पर पहुंचा दिया। अब वह झुककर वंदना की गोरी नंगी पीठ को धीरे-धीरे चूमता हुआ, अपनी जीभ और होठोँ से सहला रहा था।
साथ ही अपने दोनो हाथोँ को आगे ले जाकर उसने वंदना की दोनोँ चुचियाँ को एक साथ पकड़ लिया। वह वंदना की चूचियों को प्यार से धीरे – धीरे, कभी जोर- जोर से भींचने लगा। कभी वह उसके निप्पल को खींचता और कभी अपनी उंगली-अंगूठे के बीच उन्हें ज़ोर से दबाता।
वंदना की अत्याधिक गीली चूत और रमाकांत के जबरदस्त अनुभव की वजह से वंदना जल्दी ही बेहतर महसूस करने लगी। उसे धीरे धीरे अपनी चूत मेँ गुदगुदी का एहसास होने लगा। अब रमाकांत बहुत धीरे धीरे अपने लंड को वंदना की चूत मेँ एक या दो इंच तक अंदर बाहर कर रहा था।
उसे पता था कब और कितना झटका देना है। अब रमाकांत सिंह ने अपने हाथ पीछे लाकर वंदना का पिछवाड़ा पकड़ लिया था। उन्हें दबाता सहलाता और वंदना के रसीले गाल चूषता हुआ वह उसे चोदने लगा। उसका एक एक वार वंदना के अंग-अंग मेँ मस्ती जगा रहा था। बुड्ढे इस मामले मेँ बहुत ज़ालिम होते हैँ, उस दिन वंदना को इस बात का अच्छा तजुर्बा हो रहा था। वह बार बार अपनी आँखेँ घुमा-घुमा कर रमाकांत को गालियाँ दे रही थी।
“हरामी की औलाद……… साले, कमीने, तूने मुझ पर जरा भी रहम नहीँ किया। लगता है मेरी चूत फट गई है।”
वंदना की जांघों से खून टपक रहा था। लेकिन दोनोँ ही चोदने को जारी रखना चाहते थे। दोनों इतना मस्त हो चुके थे कि रुकने का सोचना भी किसी को गवारा ना था। रमाकांत का दिल वंदना की गालियाँ सुन सुनकर डोल रहा था।
“आह… सी… बस कर साले ठरकी… हाय मर जाऊंगी….. रमाकांत थोड़ा धीरे… बस थोड़ा धीरे….. देख तो ले यह क्या टपक रहा है।”
अपना पूरा जोर लगाकर रमाकांत काम मेँ लगा हुआ था। दांत भींजकर उसने बड़ी मुश्किल से उस तंग, छोटी सी जगह मेँ अपना जम्बो – जेट उड़ाना चालू रखा हुआ था। वह छोटा सा कमरा वंदना को कभी पैरिस तो कभी लंदन दिखाई दे रहा था।
ठांप-ठा़ंप लगातार चोदने की आवाज़ से पूरे कमरे मेँ एक अजीब सा माहौल बन गया था। इसी तरह से लगभग एक घंटे तक रमाकांत सिंह वंदना की ऐसी तैसी करता रहा। इस बीच वंदना तीन बार स्खलित हुई और अब चौथा एपिसोड चल रहा था। वह अब इस अड़ियल बुड्ढे से अपनी जान छुड़ाना चाहती थी।
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लेकिन रमाकांत अब भी दांत भींच कर अपने काम पर लगा पड़ा था। वंदना ने रमाकांत के हाथ जोड़े और मिन्नतेँ की तब रमाकांत ने अपनी गति को और ज्यादा बढ़ाया। अपनी कमर का भरपूर इस्तेमाल करते हुए, साथ ही अपने लंड को वंदना की चूत मेँ गोल-गोल घुमाते हुए वंदना के ही साथ चौथी बार मेँ यह ज़ालिम बुड्ढा स्खलित हुआ। रमाकांत की पकड़ ढीली पड़ते ही वंदना ने अपने कपड़े पहनकर वहां से भाग निकलने में ही अपनी भलाई समझी। वरना रमाकांत सिंह का क्या भरोसा दूसरे राउंड की ही शुरुआत कर देता।
वंदना जैसे तैसे अपने घर पहुंची। सारी रात उसकी चूत एक फोड़े की तरह दुखती रही। सुबह सवेरे जब वंदना बाथरुम मेँ पहुंची तो जल्दी से अपनी चूत देखी। वह बिल्कुल नीली हो रही थी। उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उसे किसी बुरी तरह कूटा हो। अपनी चूत की ऐसी बिगड़ी हुई हालत देख कर उसे रमाकांत पर बहुत ही गुस्सा आया। रमाकांत ने उसकी चूत को इस तरह पीटा था कि वह एक टूटे फूटे डिब्बे की तरह दिखाई दे रही थी। “साला कुत्ता……… ज़ालिम बुड्ढा”, वंदना होठों ही होठोँ मेँ बस बुदबुदा कर रह गई।
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