Paki Village Girl
मेरा नाम इफ्तिखार है। मेरी उम्र इस वक़्त 27 साल है। मैं एक गोरा चिट्टा तंदरुस्त बांका जवान हूँ और इस वक़्त अपनी फैमिली के साथ मैं रावलपिंडी में रहता हूँ। आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ, उस का आगाज़ पाकिस्तान के सूबे मुल्तान के शहर शुजाबाद सिटी के पास वाकीया एक छोटे से गाँव में हुआ। Paki Village Girl
आज से चंद साल पहले ज़मींदारा कॉलेज शुजाबाद से ग्रेजुएट करने के बाद जब मुझे एक जानने वाले की मेहरबानी से लाहौर में एक प्राइवेट कंपनी में जॉब मिली तो मैं अपने गाँव को खुदा हाफ़िज़ कह कर लाहौर चला आया और अपने दो दोस्तों के साथ एक फ्लैट में रहने लगा।
मुझे लाहौर में जॉब शुरू किए अभी तक़रीबन 6 महीने ही हुए थे कि गाँव से आने वाली एक मनहूस खबर ने मेरे दिल को तोड़ दिया। खबर यह थी कि शुजाबाद शहर से अपने गाँव जाते हुए मेरे अब्बू के ट्रेक्टर का एक ट्रक से एक्सीडेंट हो गया है और इस एक्सीडेंट में मेरा 23 साला छोटा भाई समीम और मेरे 55 साला अब्बू चौधरी दोनो का इंतकाल हो गया था।
यह खबर 50 साल से कुछ ऊपर मेरी अम्मी साजिया और मेरी 24 साला छोटी बहन तरन्नुम के लिए तो बुरी थी ही। मगर उन दोनों के साथ मेरे लिए ज्यादा बुरी इसलिए थी कि ना सिर्फ़ अब मुझे लाहौर जैसी बड़ी सिटी को छोड़ कर वापिस अपने गाँव जाना पड़ गया था.
बल्कि साथ ही साथ अपने वालिद की सारी ज़मीन की देखभाल और अपने घर को संभालने की सारी ज़िम्मेदारी मेरे कंधों पर आन पड़ी थी। बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेटर में ग्रॅजुयेशन करने के बाद खेतीबाड़ी करने को मेरी हरगिज़ दिल नही था।
मगर अपने वालिद का एकलौता बेटा रह जाने की वजह से अपनी ज़मीन की देखभाल चाहे मजबूरी में ही सही अब मुझे ही करनी थी। इसलिए अपने भाई और वालिद के कफ़न दफ़न के बाद मैंने अपनी ज़मीन को संभाल लिया और अब मैं पिछले 6 महीने से दिन रात खेती बाड़ी में मसरूफ़ हो गया।
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वैसे तो अपनी ज़िंदगी में मेरे वालिद हमारी ज़मीन पर ज्यादातर सब्ज़िया ही उगाते थे। मगर उनकी मौत के बाद मैंने कोई अलग फसल लगाने के लिए सोचा और चंद दूसरे लोगों से स्लाह मशवरा करने के बाद मैंने अपनी ज़मीन पर गन्ना लगा दिया।
अगस्त के महीने में गन्ने की फसल खड़ी तो हो गई मगर इसके बावजूद उसे काटने के लिए मुझे एक महीना और इंतज़ार करना था। इस दौरान चूँकि फसल की रखवाली के इलावा मुझे खेतों पर और कोई काम नही था। इसलिए मैंने अपने कुछ नौकरों को कुछ टाइम के लिए छुट्टी दे दी और सिर्फ़ रात की निगरानी के लिए दो आदमियों को रख लिया।
जोकि रात को डेरे पर रहते और सुबह होते ही अपने घर वापिस चले जाते। चूँकि हमारी ज़मीन हमारे गाँव के बाकी लोगों की ज़मीनों और मकानों से काफ़ी हट कर दूर थी। इसलिए मैं एक बार जब अपने घर से निकल कर अपनी ज़मीन पा आ जाता तो फिर मेरी घर वापसी शाम से पहले नही होती थी।
गन्ने की काशत के बाद अब मेरी रुटीन यह बन गई थी कि सुबह सुबह डेरे पर चला आता और मैं सारा दिन अपने उस डेरे पर बैठकर अपने खेतों की निगरानी करता जिसे मेरे वालिद ने अपनी ज़िन्दगी में बनाया था। अब्बू ने यह डेरा हमारी सारी ज़मीन के बिल्कुल सेंटर में बनाया था। जिसमें दो कमरे बने हुए थे।
उन दोनो कमरों में से एक में ट्यूबवेल लगा हुआ था जिससे मैं अपनी सारी फसल को पानी देता था। इस कमरे की छत की उचाई कम थी। जबकि दूसरा कमरा आराम करने के लिए बनाया गया था और इस कमरे की छत ट्यूबवेल वाले कमरे से काफ़ी उँची थी।
ट्यूबवेल वाले कमरे की पिछली तरफ लकड़ी की एक सीड़ी लगी हुई थी जिसके ज़रिये ऊपर चढ़कर ट्यूबवेल की छत पर जाया जा सकता था। यहाँ पर एक रोशनदान भी बना हुआ था जोकि आराम करने वाले बड़े कमरे को हवादार बनाने के लिए था।
इस रोशनदान पर लकड़ी की एक छोटी सी खिड़की लगी हुई थी जो हमेशा बंद ही रहती। जबकि रोशनदान के बाहर की तरफ स्टील की एक जाली भी लगी हुई थी। इस रोशनदान की बनावट कुछ इस तरह की थी कि अगर कोई इंसान ट्यूबवेल की छत पर खड़े होकर बड़े कमरे के अंदर झाँकता तो कमरे के अंदर मौजूद लोगों को बाहर खड़े शक्स की मौजूदगी का इल्म नही हो सकता था।
ट्यूबवेल की छत पर भी एक सीढ़ी रखी हुई थी। जिसके जरिए आराम वाले कमरे की उँची छत पर चढ़ा जा सकता था। इस छत से चूँकि हमारी पूरी ज़मीन पर नज़र रखी जा सकती थी। इसलिए दिन में अक्सर मैं सीढ़ियों के जरिए ऊपर चला जाता और छत पर बैठ कर अपनी फसल की हिफ़ाज़त करता रहता।
हर रोज़ दोपहर में मेरी छोटी बहन तरन्नुम मेरे लिए घर से खाना लाती और जब तक मैं खाने से फ़ारिग ना हो जाता वो भी मेरे साथ ही कमरे में सामने वाली चारपाई पर बैठ कर अपने मोबाइल फोन से खेलती रहती। जब मैं खाना खा कर फारिग हो जाता तो तरन्नुम बर्तन समेट कर घर वापिस चली जाती और मैं कमरे में जा कर आराम कर लेता।
यह रुटीन पिछले दो महीने से चल रही थी। कभी कभार ऐसा भी होता कि तरन्नुम की जगह मेरी अम्मी रुखसाना मेरे लिए खाना ले आतीं। लाहौर से वापिस अपने गाँव आ कर अब पिछले 6 मंथ से मेरी ज़िंदगी एक ही डगर पर चल रही थी। जिसकी वजह से मैं अब थोड़ा बोर होने लगा था और मेरी इस बोरियत की सब से बड़ी वजह चूत से महरूमी थी।
असल में लाहौर में काम के दौरान मैंने अपने रूम मेट्स के साथ मिल कर बड़ी उम्र की दो गश्तियों का बंदोबस्त कर लिया था और फिर जितना अर्सा मैं वहाँ रहा, हफ्ते में कम से कम दो दफ़ा तो उन औरतों में से एक की चूत का ज़ायक़ा चख़ ही लेता था।
इस लिए यह ही वजह थी कि गाँव में आकर मैं औरत के मज़े से महरूम हो गया था। वैसे तो मैंने डेरे पर दो तीन नंगी फोटोस वाले मैग्ज़िनस छुपा कर रखे हुए थे जिनको मैं लाहौर से अपने साथ लाया था। इसलिए जब भी मेरा दिल चाहता तो मैं मौका पाकर डेरे पर बने कमरे में जाता और चारपाई पर लेट कर उन मैग्ज़िनस में मौजूद लड़कियों की गंदी फोटोस को देख देखकर मुट्ठ लगाता और अपने जिस्म की आग को हल्का कर लेता था।
बेशक़ मैं मुट्ठ लगा कर फ़ारिग तो हो जाता मगर मेरे लौड़े को औरत की चूत का ऐसा नशा लग चूका था कि अब मेरे लौड़े को एक गरम फुद्दी की शिद्दत से तलब हो रही थी। मेरा लौड़ा मेरी शलवार में सुबह सुबह खड़ा होकर हर रोज़ किसी गरम फुद्दी की माँग करता मगर मैं थप्पड़ मार मार कर अपने लौड़े को खामोश कर देता था।
वो कहते हैं ना कि “सौ साल बाद तो रुड़ी की भी सुनी जाती है” बिल्कुल यह मेरे साथ हुआ कि जिस गरम और प्यासी चूत की मेरे लौड़े को तलाश थी। वो उसे मेरी बहन तरन्नुम की सहेली मेहविश की शकल में आख़िर एक दिन मिल ही गई।
मेहविश वैसे तो मेरी बहन तरन्नुम से उम्र में एक साल बड़ी थी मगर गाँव में हमारे घर साथ साथ होने की वजह से उन दोनो में बचपन ही से बहुत अच्छी दोस्ती थी। जबकि स्कूल की पहली क्लास से लेकर मेट्रिक तक इकट्ठे एक ही क्लास में पड़ने की वजह से जवान होते होते उन दोनो की दोस्ती ज्यादा गहरी होती चली गई।
मेरी बहन की सहेली होने की हैसियत से मेहविश का अक्सर हमारे घर आना जाना लगा रहता था। मेहविश जब भी मेरी बहन तरन्नुम को मिलने हमारे घर आती तो तरन्नुम उसे लेकर अपने कमरे में चली जाती। जहाँ दोनो सहेलियाँ बैठ कर काफ़ी देर तक गपशप करती रहती थीं।
मेहविश चूँकि उम्र में तरन्नुम से एक साल बड़ी थी। इसलिए उसके घर वालों को उसकी शादी की शायद कुछ ज्यादा ही जल्दी थी। यही वजह थी कि जिन दिनों मैं जिम्मीदारा कॉलेज में ब.ए. कर रहा था तो उसी दौरान मेहविश की शादी हो गई।
उसके सुसराल वाले चूँकि मुल्तान के पास एक गाँव में रहते थे इसलिए शादी के बाद मेहविश हमारे गाँव से रुखसत हो कर अपने शोहर के साथ मुल्तान में रहने लगी। अब जिन दिनों मेरा लौड़ा किसी औरत की फुद्दी में जाने के लिए तडप रहा था तो उनी दिनों मेहविश अपने माँ बाप को मिलने अपने गाँव वापिस आई तो उस दौरान वो मेरी बहन तरन्नुम को भी मिलने हमारे घर चली आई।
उस दिन मैं भी इतफ़ाक से डेरे से जल्दी घर वापिस आ गया था। इसलिए तरन्नुम के साथ मेहविश के साथ मेरी भी मुलाक़ात हो गई। मैंने उस दिन मेहविश को तक़रीबन दो साल बाद देखा तो उस को देखती ही मैं उसके हुस्न का दीवाना हो गया। मेहविश शादी के इन दो सालों में लड़की से एक भरपूर औरत बन चुकी थी।
उसकी कमीज़ में से उसके गोल गोल मोटे मुम्मे बहुत ही मज़ेदार नज़र आ रहे थे। जिनको देखते ही मेरे मुँह में पानी आ गया था। जबकि मेहविश की शलवार में पोषीदा उस की लम्बी गुंदाज राणों को देखते ही मेरा लौड़ा उस की राणों के दरमियाँ मौजूद चूत के बारे में सोचकर एकदम मेरी शलवार में हिलने लगा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
तरन्नुम और मेहविश हमारे घर के सेहन में ही बैठकर आपस में बातों में मशगुल हो गईं थी। जबकि इस मौके का फ़ायदा उठाते हुए मैं इस दौरान मेहविश के जिस्म को भूखी नजरों से देखाने में लगा रहा। मेहविश ने तरन्नुम से बातों के दौरान अपने जिस्म पर पड़ने वाली मेरी गरम नजरों को महसूस तो कर लिया था।
मगर उसने अपने चेहरे से मुझे यह महसूस नही होने दिया कि मेरा यूँ ताड़ना उसे अच्छा लगा है या नही। दूसरे दिन दोपहर को मैं डेरे के कमरे में चारपाई पर लेट कर आराम कर रहा था तो तरन्नुम मेरे लिए खाना ले कर आई तो उस दिन मेरी बहन तरन्नुम के साथ उस वक़्त मेहविश भी थी।
मेहविश को यूँ दुबारा अपने सामने देख कर मेरे लौड़े में एक अजीब सी हलचल मच गई। मैं जब खाना खाने बैठा तो तरन्नुम और मेहविश सामने वाली चारपाई पर बैठ कर आपस में बातें करने लगा। इस दौरान मैंने महसूस किया कि तरन्नुम से बातों के दौरान मेहविश चोरी चोरी मेरी तरफ भी देख रही थी।
इस दौरान मेरी नज़र एक दो दफ़ा मेहविश की नज़र से मिली। तो उसकी नजरों में मेरे लिए जो हवस का पैगाम था उसे पड़ना मेरे लिए कुछ मुश्किल नही था। “हाईईईईईईईईई लगता है कि मेहविश भी मेरी तरह चुदाई की आग में जल रही है” अपनी बहन की सहेली की आखों में चुदाई की प्यास देख कर मेरे दिल में ख्याल आया और मेरी शलवार में मेरा लौड़ा गरम हो गया।
मैं रोटी से फारिग हुआ तो तरन्नुम ने बर्तन उठाए और मेहविश को साथ लेकर घर चली गई। जबकि मैं चारपाई पर लेट कर मेहविश के बारे में सोचने लगा। दूसरे दिन मेहविश फिर मेरी बहन तरन्नुम के साथ मुझे रोटी देने आई।
उस दिन खाने के बाद तरन्नुम ने बर्तन समेटे और उन्हें धोने के लिए अकेली ही बाहर ट्यूबवेल की तरफ चली गई। जिसकी वजह से अब कमरे में सिर्फ़ मैं और मेहविश ही रह गए थे। तरन्नुम के बाहर जाते ही मैंने मौका गनीमत जाना और मेहविश की तरफ देखा तो वो भी मेरी तरफ ही देख रही थी।
“तुम्हारा शोहर कैसा है मेहविश” मेहविश को अपनी तरफ देखते ही मैंने अपने आप में हिम्मत पैदा की और अपनी चारपाई सरकाकर उसके नज़दीक होते हुए यह सवाल कर दिया।
“ठीक हैं वो” मेहविश ने जवाब तो दिया मगर मुझे अपने नज़दीक आते देख मेहविश एकदम घबरा गई और उस की साँसें ऊपर नीचे होने लगीं।
“तू खुश तो है ना उसके साथ” मैंने मेहविश के करीब होते हुए उसके नरम हाथ को अपने हाथ में पकड़ते हुए पूछा।
मेहविश ने कोई जवाब नही दिया तो मेरा हौसला बढ़ा और मैंने उस की कमर में हाथ डाल कर उसके गुंदाज जिस्म को अपने करीब खींच लिया। अब उसका जिस्म मेरे जिस्म से जुड़ गया और हम दोनो के मुँह एक दूसरे के आमने सामने आ गए।
“छोड़ो मुझे तरन्नुम आती ही होगी” अपने आपको मेरी बाहों के घेरे में आते देखकर मेहविश एकदम घबरा गई और मेरी बाहों से निकलने की कोशिश करते हुए बोली।
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मेहविश की बात को नज़रअंदाज़ करते हुए मैंने अपने मुँह को आगे बढ़ाया और अपने होंठ मेहविश के गरम होंठों पर रख दिए। एक लम्हे के लिए मेहविश ने छुडवाने की नाकाम सी कोशिश की मगर इसके साथ ही उसने अपने मुँह को खोला तो मेरी ज़ुबान उसके मुँह में दाखिल हो कर उसकी ज़ुबान से टकराने लगी।
आज इतने महीने बाद एक औरत के जिस्म को छूने और लबों को चाटते हुए मुझे बहुत मज़ा आया तो मैंने मस्ती में आते हुए मेहविश के जिस्म के गिर्द अपनी बाहों को कसा। जिसकी वजह मेहविश का जिस्म मेरे जिस्म के साथ चिमटता चला गया और साथ ही उसके गुंदाज मुम्मे मेरी छाती में दबते चले गए।
इससे पहले के मैं और आगे बढ़ता मेहविश ने एकदम मुझे धक्का देते हुए अपने आपको मेरे बाजुओं की ग्रिफ्त से अलग किया और फिर जल्दी से कमरे के दरवाज़े के पास जाकर कांपती आवाज़ में बोली “तुम्हे तमीज़ होनी चाहिए कि शादीशुदा औरतों से कैसे पेश आते हैं”।
“अगर एक चांस दो तो मैं तुम्हे बता सकता हूँ कि शादीशुदा औरतों के साथ पेश आने की मुझे कितनी तमीज़ है, वैसे अब दुबारा कब मिलोगी मुझे” मेहविश की बात का जवाब देते हुए मैंने उसकी तरफ देख कर बेशर्मी से शलवार में खड़े हुए अपने लौड़े पर हाथ फेरा और उससे सवाल किया।
“कल, इसी वक़्त और इसी जगह” मेरी इस हरकत पर मेहविश ने शर्माते हुए एकदम अपनी नज़रें नीचे कीं और फिर मेरी बात का जवाब देते हुए तेज़ी के साथ कमरे से बाहर निकल गई।
मेहविश के कमरे से बाहर निकलते ही मैंने शलवार में खड़े हुए लौड़े को हाथ में थामा और ख़ुशी से झूमते हुए कहा “ले भाई तेरी तो सुन ली गई है यार”|
मेरा लौड़ा इस वक़्त पत्थर की तरह सख्त हो चूका था इसलिए मेरे लिए सब्र करना बहुत ही मुश्किल हो रहा था।
थोड़ी देर बाद जब कमरे की खिड़की से मैंने मेहविश को मेरी बहन तरन्नुम के साथ घर वापिस जाता देखा तो मैंने फ़ोरन दरवाज़े को कुण्डी लगाई और अपनी शलवार उतार कर मेहविश के नाम की मुट्ठ लगाने लगा। दूसरे दिन मैं सुबह ही सुबह मेहविश के इंतज़ार में बैठ गया।
मुझे यकीन था कि मेहविश आएगी जरुर मगर इसके साथ मेरा अंदाज़ा यह भी था कि वो मेरी बहन तरन्नुम के घर वापिस जाने के बाद ही मेरे पास आएगी। लेकिन जब मैंने मेहविश को तरन्नुम के साथ ही आते देखा तो मुझे बहुत की मायूसी हुई और मेरा खड़ा लौड़ा मूत्र की झाग की तरह बैठ गया।
मैंने तरन्नुम के हाथ से खाने के बर्तन लिए और अपनी चारपाई पर खामोशी के साथ बैठ कर खाना खाने में मशरूफ हो गया। जबकि मेहविश मेरी बहन तरन्नुम के साथ दूसरी चारपाई पर बैठ कर गपशप करने लगी। अभी मेरा खाना ख़तम होने में थोड़ी ही देर बाकी बची थी कि इतने में तरन्नुम चारपाई से उठी.
और बोली ”भाई मुझे एक बहुत जरूरी काम याद आ गया है, इसलिए मुझे फ़ोरन ही जाना पड़ेगा, वैसे तो मेरी वापसी 10, 15 मिनिट्स में हो जाएगी, मगर आप फ़िक्र ना करें, आपके खाने के बाद मेहविश बर्तनों को संभाल लेगी”।
इतना कहते ही तरन्नुम एकदम चारपाई से उठकर बाहर की तरफ चल पड़ी और जाते जाते वो कमरे के दरवाज़े को अपने पीछे से बंद करती हुई बाहर निकल गई। अपनी बहन को यूँ अचानक कमरे से बाहर जाता देखकर मुझे बहुत हैरत हुई और मैंने फौरन मेहविश की तरफ देखा तो वो मेरी ही तरफ देखते हुए मुस्कारने लगी।
“यह क्यों इस तरह अचानक उठ कर बाहर चली गई है, क्या बताया है तुमने तरन्नुम को” मेहविश के चेहरे पर मुस्कराहट देखकर मेरा माथा ठनका और मैंने फौरन उस से पूछा।
“मैं ने कुछ नही बताया उसे, बस इतना ही कहा है कि मैंने तुमसे तन्हाई में कोई जरूरी बात करनी है, तुम जानते हो कि तरन्नुम और मैं बहुत अच्छी सहेलियाँ है” मेहविश ने मेरी बात का जवाब दिया।
“मेहविश ने मेरी बहन को असल बात यक़ीनन नही बताई होगी” मेहविश के जवाब सुनते ही मैंने अपने आपसे कहा और यह बात सोचकर मेरे दिल को इत्मीनान सा हो गया।
वैसे भी असल बात यह थी कि मेहविश को एक बार फिर अपने साथ कमरे में अकेला पा कर मेरे लौड़े में इतनी गर्मी चड़ गई थी कि अब मेरे दिमाग में फुद्दी लेने के इलावा किसी और बात की सोच ही खत्म हो चुकी थी। अभी मैं अपनी सोच में ही गुम था कि इतने में मेहविश अपनी चारपाई से उठी और मेरे करीब आने लगी।
हालांकि मुझे शिद्दत से आज एक चूत की तलब हो रही थी और शायद मेहविश को एक लौड़े की प्यास थी। मगर इसके बावजूद मेहविश को यूँ अपनी तरफ आते देखकर ना जाने क्यों तो मेरी सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गई और कल के मुकाबले आज मैं खुद घबरा गया।
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“क्या बात है तुम इतने परेशान क्यों हो गए हो एकदम” मेहविश ने चारपाई पर मेरे करीब आकर बैठते हुए पूछा।
मेहविश को यूँ अपने पास बैठा देखकर मुझे इतनी घबराहट हुई कि मैं उसे कोई जवाब नही दे पा रहा था।
“तुम कल मुझ से मेरे शोहर के बारे में पूछ रहे थे ना, तो मैं तुम्हें यह बताना चाहती हूँ कि मैं अपने शोहर को बहुत मिस कर रही हूँ इफ्तिखार” मेहविश ने अपने मुँह को मेरे मुँह के नज़दीक करते हुए सरगोशी की और फिर एकदम अपने होंठो को मेरे होंठो पर रख दिया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मेहविश के होंठो को अपने होंठों से चिपकते हुए महसूस करते ही मुझे होश आया तो मैं भी मेहविश के गुंदाज जिस्म को अपनी बाहों में कसते हुए उसके लबों को चूमने लगा।
“हाईईईईईईईईईईईईईईईईई मुझे अपने शोहर की शिद्दत से तलब हो रही है, क्या तुम मेरे शोहर की कमी को पूरा करोगे इफ्तिखार” मेरी गरमजोशी को देखते हुए मेहविश गरम हो गयी और उसने अपना मुँह खोल कर अपनी ज़ुबान को मेरी ज़ुबान से टकराने के दौरान मुझ से सवाल किया।
“हाँ मैंने कल भी यही कहा था कि अगर तुम मुझे मौका दो तो मैं तुम्हें तुम्हारे शोहर की कमी महसूस नही होने दूंगा मेरी जान” यह कहते हुए मैंने मेहविश के होंठों पर अपने होंठों का दबाव बढ़ाते हुए उसे चारपाई पर लेटा दिया।
इसके साथ ही मैंने मेहविश की मोटी गांड की पहाड़ियों पर हाथ रखते हुए उसके जिस्म को अपनी तरफ खिंचा तो उसकी चूत मेरी शलवार में अकड़े हुए मेरी लौड़े से टकरा गई। “हाईईईईईईईईईईई क्याआआआआआ गरम और सख्त लौड़ा है तुम्हराआआआआआआ” मेरे सख्त लौड़े को यूँ अपनी प्यासी चूत से टकराते हुए महसूस कर मेहविश के मुँह से सिसकी फूटी।
इधर यूँ ही हमारी क़िस्सिग का सिलसिला तेज़ हुआ तो इसके साथ ही मेहविश ने अपने एक हाथ को नीचे किया और उसने मेरे सख्त लौड़े को श्लवार के ऊपर से अपनी ग्रिफ्त में लेकर किस्सिंग के दौरान ही मेरे लौड़े की मुट्ठ लगाना शुरू कर दी।
“हाआआआआआआआ” आज इतने अरसे बाद अपने तने हुए लौड़े पर किसी औरत के नर्म नाजुक हाथ महसूस करते ही मेरे मुँह से भी सिसकी निकली और मेरा लौड़ा और सख्त हो गया। अब मैंने भी मेहविश के हाथ के मज़े से होते हुए अपने हाथ को निचे ले जाकर शलवार के ऊपर से ही मेहविश की गरम चूत को अपनी मुट्ठी में दबोचा तो स्वाद के मारे वो भी अपने मुँह से “ओह हाईईईईईईईईईईई” की आवाज़ें निकालने लगी।
थोड़ी देर मेहविश के होंठो को चूमने और उसकी चूत को अपने हाथ से रगड़ने के बाद मैंने उसकी शलवार का नाडा खोलकर पहले उस की शलवार और फिर साथ ही उस की कमीज़ भी उतार कर चारपाई पर फैंक दी और फिर मैं मेहविश से थोड़ा अलग हो कर उसके जिस्म का दीदार करने लगा।
अब कमरे में मेहविश सिर्फ़ अपने ब्रेज़ियर में मेरे सामने अधनंगी पड़ी थी और मैं उसकी हल्के वालों वाली चूत और उसके ब्रेज़ियर में से छलकते अधनंगे मुम्मों का दीदार करते हुए अपने होंठों पर अपनी ज़ुबान फेर रहा था।
“अब सारा दिन यूँ ही मेरे जिस्म को ताड़ते ही रहोगे या मेरी चूत में अपना लौड़ा डाल कर मेरी फुद्दी की आग को ठंडा भी करोगे” मुझे यूँ बुत बन कर प्यासी नजरों से अपनी तरफ देखती हुए पाकर मेहविश बैचेनी से बोली और उसके साथ ही उस ने अपने हाथों को पीछे ले जाकर अपनी ब्रेज़ियर की हुक भी खोल दी तो उसके मोटे जवान मुम्मे पहली बार मेरी नजरों के सामने नंगे हो गए।
“चुदाई का तो अपना मज़ा होता ही है मगर किसी प्यासी औरत के जवान खुबसूरत जिस्म को ताड़ने का भी अलग ही स्वाद है मेरी जान, वैसे फ़िक्र ना करो आज तुम्हारी चूत चोदे बिना तुम्हे यहाँ से जाने नही दूंगा मैं” मेहविश की बात का जवाब देते हुए मैंने अपने कपड़े उतारे और खुद भी मेहविश के सामने पूरा नंगा हो गया।
“उफफफफफफफ्फ़ तुम्हारा लौड़ा तो मेरे शोहर से भी थोड़ा मोटा और लंबा है इफ्तिखार, हाईईईईईई तुम्हारी बीवी बहुत क़िस्मत वाली होगी जिसे इतना सेहतमंद और जवान लौड़ा ज़िन्दगी भर नसीब होगा” अपनी शलवार कमीज़ उतार कर मैं यूँ ही नंगा हुआ तो मेरे लौड़े को देखकर मेहविश की आँखों में एक चमक आई और वो सिसकरते हुए बोल पड़ी।
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मेहविश की बात सुनते ही मैं आगे बढ़ा और मैंने मेहविश के मोटे मुम्मों को पहली बार अपने हाथ में थाम कर प्यार से उसका मम्मा दबाते हुए एक बार फिर से मेहविश के लबों का रस पीने लगा। मैं ने मेहविश के मम्मे दबाते हुए उसके पिंक निप्पल अपने हाथों से मसलते हुए उन्हें अपनी उँगलियों में लेकर खींचा.
तो वो मेरे हाथ के मज़े से बेहाल होते हुए सिसकियाँ लेते हुए बोली “आअहह आहह दबाओ मेरे मुम्मम्म्मे… आहह… इफ्तिखार मेरे मुम्मम्म्मे को चूसूओ”। मेहविश की बात सुनते ही मैंने फौरन अमल किया और मेहविश का एक मम्मा पकड़कर उस को पागलों की तरह चूसने लग गया.
और साथ ही साथ उसके दूसरे मम्मे को भी अपने हाथ से दबाने लग गया और मेरे मुम्मा चूसाई के दौरान मेहविश अपनी आँखें बंद करके सिसकियाँ लेती रही। मेहविश के मुम्मों को चूसते हुए मैं अपने एक हाथ से उस की फुद्दी को छुआ तो मुझे अंदाज़ा हो गया कि मेरी छेड़छाड की वजह से मेहविश की फुद्दी पानी पानी हो रही थी।
मेरा हाथ चूत से लगते ही मेहविश तो जैसे पागल हो गई और वो मेरे सर को वालों से पकड़ कर अपने मम्मों पर ज़ोर से दबाते हुए बोली “आहह बहुत मज़ा आ रहा है, मेरी चूत में अपनी उंगली डालल्ल्ल्ल्ल्लो इफ्तिखार”।
मेहविश की यह फरमाइश सुनते ही मैंने अपने हाथ की उंगली उस की फुद्दी में डाली और उस की फुद्दी को अपने उंगली से चोदने लगा। अब मैं मेहविश के मम्मे को चूस भी रहा था और साथ साथ मेहविश की फुददी में फिंगरिंग कर रहा था और मेहविश मज़े से चला रही थी “ऊऊऊओह उफफफफफफफफफफफ्फ़, हाईईईईईईई”।
मेहविश की चूत में अपनी उंगली डाल कर अब मैं अपनी उंगली को गोल गोल घूमाने लगा था कि इतने में उसने मेरी हाथ को दोनो टाँगों में ज़ोर से दबाया और लंबा सा साँस ले कर अपनी आँखें बंद करते हुए ऐसे चुप हो गई जैसे उस की साँस ही रुक गई हो।
मेहविश की यह हालत देख कर एक बार तो मैं भी घबरा गया। मगर जब मैंने देखा कि वो अपने होंठ दाँतों में दबा रही है तो मैं समझ गया कि उस को मेरी ऊँगली से अपनी चूत चुदवाते हुए मज़ा आ रहा है। कुछ देर बाद मेहविश के मुम्मे से मुँह हटा कर मैं चारपाई से उठ कर ज़मीन पर बैठ गया।
ज़मीन पर बैठते ही मैं ने चारपाई पर लेटी मेहविश की टांगों को अपने हाथों से चौड़ा किया और एकदम से अपने मुँह को आगे करते हुए अपनी गरम ज़ुबान को चारपाई पर लेटी मेहविश की पानी छोडती चूत के लबों के दरमियाँ रख दिया।
“ओह यह कियआआआ मज़ा दिया है तुम ने मुझे” अपनी चूत से मेरी गरम ज़ुबान लगते ही मेहविश तडप कर एकदम चारपाई से उछली।
इसके साथ उसने अपने हाथ से मेरे मूँह को हटाते हुए अपनी टाँगों को भींचने की कोशिश की। लेकिन मैंने उसके दोनो हाथ अपने हाथों में पकड़ लिए और अपने मुँह को ज़ोर से उस की चूत पर प्रेस करते हुए अपनी ज़ुबान उस की चूत के अंदर डाल दी।
मेहविश की गरम फुद्दी मुझे पागल कर रही थी। इसलिए अब मैं चारपाई से नीचे ज़मीन पर बैठ कर चारपाई पर लेटी मेहविश की चूत को मज़े ले ले कर चाटने मैं मसरूफ़ हो गया। मेरी ज़ुबान के मज़े से बेहाल होते हुए अब मेहविश ने मुझे सिर से पकड़ा हुआ था और मैं बहुत मज़े से मेहविश की फुददी चूस रहा था।
जबकि मेहविश चारपाई से ऊपर उछल उछल कर अपनी चूत को मेरे मुँह पर ज़ोर ज़ोर से मारते हुए सिसकियाँ निकाल रही थी “आआआ, हाए, हहियीईई”। थोड़ी ही देर की चूत चटाई के बाद मेहविश का जिस्म ज़ोर ज़ोर से काँपने लगा और उसकी चूत से पानी का एक झरना बहता हुआ पूरा का पूरा मेरे मूँह में उतर गया और वो फारिग हो गई।
मेहविश को अपने मुँह के मज़े से फारिग करवाते ही मैं एकदम ज़मीन से उठकर चारपाई के साथ खड़ा हुआ और बोला ”अब मैं नीचे लेटता हूँ और तुम मेरे ऊपर बैठ कर मेरे लौड़े को अपनी फुद्दी में डालो” मेहविश से यह बात कह कर मैं चारपाई पर लेट गया तो मेरा लौड़ा तन कर ऊपर छत की तरफ देखने लगा।
मेरी बात पर अमल करते हुए मेहविश मेरे ऊपर चढ़ गई और फिर अपने जिस्म को ढीला छोड़ते हुए नीचे को हुई तो नीचे से मेरा तना हुआ लौड़ा आहिस्ता आहिस्ता मेहविश की गरम चूत में समाने लगा।
“हाईईईईईईईईईई क्याआ मज़ेदार लौड़ा है तुम्हारा, उउफफफ्फ़ क्या बताऊं कितना मज़ा आ रहा हाईईईईईईई मुझे” सिसकियाँ लेती मेहविश आहिस्ता आहिस्ता मेरे लौड़े पर बैठ गई तो मेरा लौड़ा उसकी फुद्दी में पूरे का पूरा समा गया।
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“उफफफफफफफफफफफ्फ़ किय्आआआआ गरम और तंग चूत है तुम्हारीईईईईईईईईईईईईईईईईईई” इतने महीनो बाद मेरे लौड़े को भी जब एक गरम चूत का स्वाद मिला तो मज़े के मारे मैं भी सिसका उठा।
मेरे लौड़े को अपनी चूत में लेते ही, हवस के मारे मेहविश इतनी गरम हुई कि अब वो मेरे लौड़े पर बैठ कर तेज़ी के साथ ऊपर नीचे होने लगी और अपनी चूत को पागलों की तरह मेरे तने हुए लौड़े पर ज़ोर ज़ोर से मारने लगी। जिस की वजह से उसके मोटे बड़े मुम्मे हवा में इधर उधर उछलने लगे।
मेहविश के इस जोश और उसके हवा में उछलते मुम्मे देख कर मुझे भी जोश आया और मैंने भी उसके बड़े मुम्मों को अपने हाथों में पकड़कर मसलते हुए अपनी गांड को चारपाई से उठा उठा कर नीचे से उस की चूत में अपना लौड़ा घुसाना शुरू कर दिया।
अब कमरे में आलम यह था कि मेहविश मेरे लौड़े पर बैठ कर ज़ोरदार तरीके से ऊपर नीचे हो रही थी। जबकि मैं अपनी गांड को उठा उठा कर नीचे से अपनी बहन की सहेली की ज़ोरदार तरीके से चुदाई कर रहा था। मेहविश की मोटी गांड के मेरे टांगों से टकराने और नीचे से मेरा लौड़ा भी ज़ोरदार तरीके से उसकी फुद्दी में घुसने की वजह से “थप थप” की आवाज़ें कमरे में गूंज गूंज कर हम दोनो के जोश में इज़ाफा कर रही थीं।
थोड़ी देर मेहविश को इस तरीके से चोदने के बाद मैं बोला “अब तुम नीचे लेटो और मैं तुम्हारे ऊपर चढ़ कर तुम्हारी फुद्दी को चोदुंगा मेरी जान”।
मेरी बात सुनते ही मेहविश ने मेरे लौड़े को अपनी फुद्दी से निकाला और चारपाई पर मेरे बराबर लेट गई। चारपाई पर मेहविश के लेटते ही मैंने उठकर उसकी टांगों को अपने हाथों में थाम कर खोला और उसकी चूत को देखने लगा।
“उउफफफफफफफफ्फ़ मेहविश की फुददी मेरी चुदाई की वजह से काफ़ी गीली हो चुकी थी और उसमें से चूत का पानी टपक टपक कर उसकी राणों को भिगो रहा था। मेहविश की टांगों को अपने सामने चौड़ा करते हुए मैं अपना लौड़ा अपने हाथ में पकड़ा और अपना टोप्पा मेहविश की फुददी पर रख कर उसकी चूत के दाने को लौड़े की टोपी से मसलने लगा।
“हाईईईईईईईईईई क्यों तडपा रहे हो मुझे, अब्ब्ब्ब्बब्ब्ब्ब्बब्बबब डाल भी दो अंदरररर” मेरे लौड़े की रगड़ को अपनी चूत के भीगे लबों पर महसूस करते ही मेहविश मचल उठी।
“उफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ तुम्हारी चूत वाक्या ही मेरे लौड़े के लिए तडप रही है, तो यह लो मेरी रानी” मेहविश की सिसकी भरी इल्तिज़ा सुनते ही मैं आगे बढ़ा और एक झटके में अपना पूरा लौड़ा एक बार फिर मेहविश की प्यासी चूत में उतार दिया।
“हाईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई मारर्र्रररर दिया तुम ने ज़ालिमम्म्ममममममम”।
मेरे ज़ोरदार घस्से की वजह से जैसे ही मेरा लौड़ा फिसलता हुआ मेहविश की फुद्दी की तह तक पहुंचा तो मज़े के मारे मेहविश एक बार फिर सिसक उठी। अब मैंने मेहविश की दोनो टांगों को चौड़ा कर अपने कंधों पर रखा और उसके ऊपर चढ़ का ज़ोर ज़ोर से उसकी फुद्दी की चुदाई में मसरूफ़ हो गया।
मैं अब तेज़ी के साथ अपना लौड़ा मेहविश की फुददी में डाल रहा था और वो नीचे से अपनी गांड को ऊपर उठा उठा कर मेरे लौड़े को अपनी प्यासी चूत में जज़ब करती जा रही थी। कमरे में हमारी चुदाई की वजह से पैदा होने वाली “पूच पुच और थप थप की आवाजों के साथ चारपाई की “चें चें” भी माहौल को बहुत की रंगीन बना रही थी।
अब हम दोनो हर बात से बेफ़िक्र हो कर सिर्फ़ अपनी अपनी जिन्सी हवस को मिटाने के जोश में अपने लौड़े और फुद्दी का मिलाप करवाने में मगन थे। थोड़ी ही देर बाद मेहविश ने अपने हाथ मेरे बालों में फेरते हुए मुझे ज़ोर से पकड़ा और अपने सीने से लगा लिया।
इतने में एक “अहहहहहः हुनननननणणन” की टूटती हुई आवाज़ उसके मूँह से निकली और वो ज़ोर से काँपी और फिर साथ ही उसका जिस्म एकदम ढीला पड़ गया और वो एक बार फिर फारिग हो गई। मेहविश को यूँ फारिग होते देखकर मेरे लौड़े को भी जोश आया और मैंने भी एक झटके में “आअहह” करते हुए अपने सारा पानी मेहविश की गरम प्यासी फुद्दी में खारिज़ कर दिया।
मेरे लौड़े से बहुत पानी निकला जिससे मेहविश की सारी चूत भर गई और मैं एकदम निढाल होकर मेहविश के ऊपर ही लेट गया। थोड़ी देर मैं और मेहविश इस तरह लेट कर अपनी अपनी बिखरी साँसों को बहाल करते रहे।
“उफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ इफ्तिखार यकीन मानो मेरे शोहर ने मुझे आज तक इतने मज़ेदार तरीके से नही कभी चोदा, जितने मज़ेदार अंदाज़ में तुमने मेरी फुद्दी मारी है, तुम्हारे अंदाज़ा से लगता है कि तुम आज से पहले भी काफ़ी दफ़ा किसी की चूत मार चुके हो, कहाँ से सिखा है यह सब” अपनी बिखरी साँसों की संभलते ही मेहविश मेरे जिस्म के नीचे से बोली और उसने एक ही साँस में इतने सारे सवाल एक साथ कर दिए।
“तुम्हारे सारे सवालों का जवाब मैं बाद में दूंगा, अब जल्दी से अपने कपड़े पहन लो, क्योंकि तरन्नुम अभी वापिस आती ही होगी” अपने लौड़े की गर्मी दूर करते ही मुझे अपनी बहन तरन्नुम का ख्याल दिमाग में एकदम आया और मैं तेज़ी के साथ चारपाई से उठकर अपने कपड़े पहनते हुए मेहविश से बोला।
“तुम उसकी फ़िक्र मत करो, उसकी वापसी में अभी आधा घंटा बाकी है” मेरी बात सुनकर मेहविश ने बड़ी आराम से मेरी बात का जवाब दिया और उसी तरह नंगी हालत में चारपाई पर लेटी रही। मेहविश की बात और उसका बेफिक्री अंदाज़ देखते हुए मुझे बहुत ही हैरानी हुई. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
तो मैं सवालिया नजरों से उसकी तरफ देखते हुए पूछा “क्याआआआ तुमने तरन्नुम को यह सब कुछ बताया है मेहविश”।
“नही मैंने उससे ऐसी कोई बात नही की, मगर मैं जानती हूँ कि वो एक समझदार लड़की है” मेरी बात का जवाब देते हुए मेहविश के चेहरे पर एक मुस्कराहट फैलती चली गई।
मेहविश की बात सुनकर मैंने एक बार फिर हैरानी के साथ उसे देखा। मगर अबकी बार मैं खामोश रहा क्योंकि उसकी बात का मेरे पास कोई जवाब नही था।
“असल में ग़लती मेरी ही है, मुझे यह अंदाज़ा नही था कि तरन्नुम को इस बात की भीनक पड़ जाएगी, कि मैं उसकी सहेली के साथ क्या हरकत करने जा रहा हूँ, मुझे चाहिए था कि मैं मेहविश को किसी और वक़्त डेरे पर बुलाता” अपने लौड़े का पानी निकल जाने के बाद जब मेरे दिमाग से मनी उतरी तो मेरे ज़ेहन में अब यह बात आई, मगर अब पछताने के सिवा क्या हो सकता था।
“इफ्तिखार तुम्हारी बहन अब बच्ची नही कि इन बातों को ना समझ सके, मगर यह बात मत भूलो कि तरन्नुम तुम्हारी बहन होने के साथ साथ मेरी एक बहुत अच्छी सहेली भी है, इसलिए तुम फ़िक्र मत करो” मेरे चेहरे पर फैली परेशानी को देखते हुए मेहविश चारपाई से उठी और अपने कपड़े पहनते हुए इत्मीनान भरे लहजे में मुझे समझाने लगी।
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वो कहते हैं ना कि “अब पछताए क्या होत, जब चिड़िया चुग गई खेत” इसलिए मैंने भी इस बारे में परेशान होना मुनासिब ना समझा और ख़ामोशी के साथ वापिस चारपाई पर आ बैठा। मेहविश ने इस दौरान अपने कपड़े पहने और फिर कमरे का दरवाज़ा खोल कर खुद भी सामने वाली चारपाई पर आ बैठी और मेरे साथ इधर उधर की बातें करने लगी। तरन्नुम के बारे में मेहविश का अंदाज़ा सही था क्योंकि वाक्या ही तरन्नुम की वापसी हमारी चुदाई के खत्म होने के ठीक आधे घंटे बाद ही हुई।
तरन्नुम को कमरे में आता देखकर ना चाहने के बावजूद मैंने उसके चेहरे को पढने की कोशिश की मगर अपनी बहन तरन्नुम के चेहरे पर छाई संजीदगी को देख कर मुझे किसी भी किस्म का अंदाज़ा लगाने में बहुत दिक्कत हुई। मेहविश की तरन्नुम के बारे में कही जाने वाली बात के बाद मेहविश के सामने अपनी बहन का सामना करना मेरे लिए एक मुश्किल काम था। इसलिए तरन्नुम के कमरे में आते ही मैं दूसरे ही लम्हे खुद उठ कर कमरे से बाहर निकल गया। मेरे कमरे से बाहर जाने के बाद तरन्नुम ने सारे बर्तन समेटे और फिर वो दोनो भी कमरे से निकल कर चुप चाप वापिस गाँव की तरफ चल पड़ीं।