Sexy Girl Bathing
हेल्लो दोस्तों, मैं सौरभ फिर से आपका हमारी वासना पर स्वागत करता हूँ, आपने मेरी कहानी के पिछले भाग औरत का सबसे बड़ा गहना उसकी कुंवारी चूत 2 में आपने पढ़ा था कि मैं अपने दोस्त की दीदी प्रिया के साथ रहने लगा और उसने अपने आत्महत्या की कोशिश करने का कारण बताया. और मैं उसकी हेल्प करने का निश्चय किया. अब आगे – Sexy Girl Bathing
लेकिन प्रिया के शरीर का रंग अभी भी ज्यादा नहीं बदला था, इसलिए अब मैंने उसे पूरी बाडी पर लेप लगाने को कहा। जाहिर सी बात है.. उससे खुद लगाते तो बनता नहीं और थकान की वजह से उसे रोज-रोज खुद से लगाने का मन भी नहीं करता, इसलिए उसने मुझे लगाने को कहा।
मैंने तभी कहा- सोच लो मेरे सामने पूरे कपड़े उतारने पड़ेंगे.. तभी लगाते बनेगा!
वो सोच में पड़ गई.. और चुप ही रही।
फिर मैंने बात को संवारते हुए कहा- अब मुझसे शर्माने झिझकने की जरूरत नहीं है.. और मुझे अपनी हद का पता है, तुम निश्चिंत होकर कपड़े उतारो और लेट जाओ।
मैंने लेप और मालिश के लिए एक अच्छा सा टेबल लगा रखा था, जिसमें अभी तक प्रिया लेट कर मुझसे पैर, सर और हाथों की मालिश करवाया करती थी। उस टेबल पर आज पहली बार वो सिर्फ अंतर्वस्त्र में लेटी हुई थी। उसने कपड़े बहुत संकोच करते हुए उतारे थे, इसलिए मेरा एकदम खुला व्यवहार प्रिया को नाराज कर सकता था।
उसे बिना कपड़ों के या कम कपड़ों में मैंने स्वीमिंग के वक्त ही देखा था, उस वक्त भी पहली बार मेरा रोम-रोम झंकरित हो उठा था। अब इतने करीब से ऐसी हालत में प्रिया को देखना मेरे सब्र का इम्तिहान था। फिर भी मैंने मन ही मन भगवान से प्राथना की कि हे प्रभु मुझे खुद पर काबू पाने की शक्ति दें। क्योंकि जवान लड़का निर्वस्त्र लड़की को देख कर खुद को कैसे संभालेगा.. आप सोच सकते हैं।
अब सबसे पहले मैंने उसे उल्टा लेटने को कहा और लेप उसके पैरों से होते हुए जांघों तक और गर्दन से होते हुए कमर तक लगाया। इस बीच ब्रा की परेशानी तो आई, पर अभी उसे उतारने को कहना उचित नहीं था। मैंने अब प्रिया को सीधा किया और उसके पेट, चेहरे, कंधे में अच्छी तरह से लेप लगाया।
शायद प्रिया के शरीर में झुरझुरी सी हुई होगी, क्योंकि ऐसा करते हुए मेरे रोंये तो खड़े हो गए थे.. लिंग भी अकड़ गया था। मैंने लेप के सूखने तक उसे ऐसे ही लेटे रहने को कहा और मैं बाथरूम में जाकर फिर हल्का हो आया।
यह सिलसिला तीन-चार दिन ही चला था कि अब मैंने प्रिया को ब्रा उतारने को भी कह दिया। वो मुझे चौंक कर देखने लगी.. पर उसने मना नहीं किया, लेकिन उतारी भी नहीं। मैं समझ गया कि मुझे ही कुछ करना होगा, मैंने आज लेप लगाते वक्त ब्रा का हुक खोल दिया।
प्रिया- सौरभ नहीं.. रुक जाओ..
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अभी उसने इतना ही कहा, पर उसके कहने से पहले हुक खुल चुका था। अभी उसके शरीर में पेंटी बाक़ी थी, लेकिन उसके लिए जल्दबाजी करना उचित नहीं था। मैंने बैक साईड पर लेप लगाया, आज उसकी चिकनी आजाद पीठ पर लेप लगाने का अलग ही आनन्द आ रहा था।
फिर मैंने प्रिया को सीधा किया, अब जैसे ही मैंने ब्रा को शरीर से अलग करने की कोशिश की, प्रिया ने मेरा हाथ झट से पकड़ लिया। मैंने प्रिया की आँखों में.. और प्रिया ने मेरी आँखों में देखा.. हम दोनों ने आँखों ही आँखों में बातें की, उसने अपना सर ‘नहीं’ में हिलाया और मैंने ‘हाँ’ में, फिर मैंने थोड़ा जोर लगा कर ब्रा हटा दी।
उस वक्त उसने भी अपने हाथों की पकड़ ढीली कर दी, पर आँखें बहुत जोर से बंद कर लीं। इस वक्त उसकी धड़कनें बहुत तेज हो गई थीं, क्योंकि पर्वत मालाओं में भूकंप जैसा कंपन साफ नजर आ रहा था। फिर मैंने लेप को उसके पेट और गले के अलावा उसके उरोजों पर लगाना शुरू किया।
प्रिया के मम्में भारी तो पहले से ही थे और अब इतने दिनों की मेहनत से वो बहुत सुडौल भी हो गए थे, शायद अब प्रिया की मरी हुई सेक्स भावना भी जागने लगी थी। मैं यह इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि उसके चूचुक कड़क होकर आसमान की ओर उठ गए थे, छूने पर सख्ती का भी एहसास हो रहा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैंने पहले प्रिया के मम्मों के चारों ओर लेप को लगाते हुए हाथों को चूचुक की ओर आहिस्ते से बढ़ाया और ऐसी ही प्रक्रिया हर दिशा से की, शायद उसे सहलाने वाला एहसास हुआ हो। क्योंकि मैं चाहता भी यही था, इसलिए जानबूझ कर मैं अपने तजुर्बे का इस्तेमाल कर रहा था।
फिर मैंने बहुत ही तन्मयता से उसके पूरे शरीर में लेप लगाया, लेकिन आज मेरा लिंग ज्यादा ही अकड़ने लगा और उम्म्ह… अहह… हय… याह… एक बार तो उसे बिना छुए ही मेरी निक्कर चिपचिपे द्रव्य से भीग गई। इतने के बाद भी कुछ ही पलों में मेरा लिंग पुनः फुंफकारने लगा था।
मैं नहीं चाहता था कि प्रिया को मेरी हालत का पता चले और मुझे यकीन था कि प्रिया ने भी अपने आपको बड़ी मुश्किल से ही संभाला होगा। फिर मैंने एक जुगत लगाई ताकि बाथरूम में जाकर हल्का होने की जरूरत ना पड़े। अब तक प्रिया बहुत सुडौल और आकर्षक हो चुकी है, लेकिन मैं प्रिया को जिस रूप में देखना चाहता हूँ, वो अभी बाक़ी है।
इसलिए सारे उपक्रम निरंतर जारी थे। वैसे भी हेल्थ के संबंध में कहा जाता है कि व्यायाम और शरीर को लेकर सारी जागरूकता उम्र के हर पड़ाव में निरंतर रहनी चाहिए। आप सब तो जानते ही हैं कि प्रिया के शरीर में लेप लगाते हुए मेरी हालत कैसी हो जाती थी और मुझे बाथरूम जाकर स्खलित होना पड़ता था।
इसलिए मैंने एक प्लान किया और मैंने प्रिया के शरीर में लेप के साथ-साथ आँखों पर भी आलू और खीरे की गोल टुकड़े रख दिए, इससे आँखों के पास के डार्क सर्कल मिटते हैं और इससे मेरा फायदा ये था कि अब प्रिया मुझे देख नहीं सकती थी। जबकि मैं उसके निर्वस्त्र शरीर को देखते हुए उसके सामने ही अपने लिंग का घर्षण कर सकता था।
अब मैं रोज ही प्रिया के शरीर पर लेप लगाने के बाद उसके आँखों पर खीरा-आलू के टुकड़े रख देता और नस फाड़ने को आतुर हो चुके लिंग को प्रिया के सामने ही निक्कर से से निकाल कर रगड़ने लगता था। प्रिया को इस बात का पता चलता था या नहीं..
मैं नहीं जानता और ना ही जानना चाहता था, क्योंकि उस वक्त मैं कामांध हो चुका होता था। फिर भी मेरी शराफत यही थी कि मैंने प्रिया को हवस का शिकार नहीं बनाया। कई बार स्खलन के दौरान मेरे मुँह से हल्की आवाजें निकल जाती थीं और मेरे लिंगामृत की बूँदें भी प्रिया के ऊपर ही छिटक जाती थीं।
यह सिलसिला लगभग पंद्रह दिनों तक चला। अब तक हमारी छुट्टी के तीन महीने भी बीत गए, अब हमें सारी चीजों के साथ साथ ऑफिस के लिए भी वक्त निकालना था और जिन्दगी बहुत ज्यादा वयस्त होने लगी। इन 15 दिनों में प्रिया के व्यवहार में बहुत परिवर्तन आ गया था, आता भी क्यों नहीं.. क्योंकि अब वो सुंदर सी.. स्फूर्ति भरी, सबकी नजरों को भाने वाली लड़की जो बन चुकी थी।
उसके ऑफिस में तो कई लोगों ने उसके शारीरिक परिवर्तन और रंग में बदलाव की वजह से उसे पहचाना भी नहीं। एक रविवार को जब मैं लेप लगा रहा था, प्रिया ने मुझसे कहा- सौरभ मेरे शरीर का एक हिस्सा अभी भी लेप और खूबसूरती से वंचित है, उसे कब खूबसूरत बनाओगे?
इतना कहते ही वो खुद शरमा भी गई। मैं समझ गया कि ये पेंटी वाले हिस्से को लेकर कह रही है, क्योंकि उसके शरीर में लेप के दौरान एक मात्र वही कपड़ा शेष रह जाता था। उसे उतारना तो मैं भी चाहता था.. लेकिन जल्दबाजी नहीं कर रहा था। आज मेरे से पहले ही प्रिया का धैर्य टूट गया, मैं बहुत खुश था और हतप्रभ भी।
मैंने कहा- हाँ प्रिया.. आज से वहाँ भी लेप लगा दूंगा।
वो कुछ न बोली, वो हमेशा की तरह अपने बाक़ी कपड़ों को उतार कर लेट गई।
अब मैंने पहले उसकी पीठ की ओर से लेप लगाना शुरू किया, पहले कंधों पर मालिश करते हुए चिकनी पीठ और सुडौल हो चुकी कमर पर लेप लगाया। उसके शरीर में कंपन हो रही थी और मेरे रोंये भी खड़े हो जाते थे। हालांकि उत्तेजना रोज ही होती थी, पर आज पेंटी भी उतरने वाली है..
यही सोच कर शायद हम दोनों ही नर्वस हो रहे थे, या कहो कि अतिउत्तेजित हो रहे थे। मैंने प्रिया की जांघों पिंडलियों और पंजों पर लेप लगाया, फिर प्रिया को सीधा लेटाया और उसके चेहरे से होते हुए तने हुए उरोजों पर लेप लगाया।
आज मैंने लेप लगाते हुए उसके उरोजों को दबा भी दिया, इस पर वो थोड़ा कसमसाई तो.. पर उसने कुछ कहा नहीं। इस तरह मेरी हिम्मत बढ़ रही थी, मैंने अब उसके सपाट पेट पर लेप लगाया और उसकी नाभि में उंगली रख कर घुमा दी तो वो फिर कसमसा के रह गई।
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अब मैं उसके पैरों की तरफ खड़ा होकर उसके पंजों से ऊपर की ओर बढ़ते हुए लेप लगाने लगा और उसकी जांघों सहलाते, दबाते हुए उसकी पेंटी के नीचे वाली इलास्टिक तक अपने हाथों के अंगूठे को ले जाने लगा। मुझे पेंटी में चिपकी उसकी योनि रोज नजर आती थी.
पर आज वहाँ मुझे गीलेपन का एहसास हो रहा था, इसका मतलब आज प्रिया की योनि अतिप्रसन्नता में रस बहाने लगी थी। अब मैंने अपने दोनों हाथ प्रिया के पेट पर रखे और नीचे की ओर सरकाते हुए, कमर को सहलाते, दबाते हुए, पेंटी में अपनी उंगलियाँ फंसाई और गोल लपेटने जैसा करते हुए, पेंटी को फोल्ड किया।
जैसे ही दो-तीन इंच पेंटी फोल्ड हुई प्रिया की क्लीन सेव योनि के ऊपर का हिस्सा दिखने लगा। मैं पेंटी को फोल्ड करना रोक कर.. उस जगह को आहिस्ते से ऐसे छूने लगा, जैसे मैं किसी नवजात शिशु को सहला रहा होऊँ।
अब पहली बार प्रिया के मुंह से ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ की आवाज निकली और मेरी बेचैनी बढ़ गई। मैंने पेंटी को और फोल्ड किया.. अब लगभग पूरी पेंटी फोल्ड हो गई और मुझे प्रिया की कयामत भरी योनि के प्रथम दर्शन मिल गए। पर उसकी जांघें अभी भी आपस में चिपकी हुई थीं, इसलिए योनि की सिर्फ दरार नजर आ रही थी।
प्रिया की थोड़ी सांवली पर बालों रहित मखमली योनि बहुत ही उत्तेजक लग रही थी। पेंटी से ढकी उस जगह की चमक और आभा का वर्णन मेरे बस का नहीं, इसलिए वह कल्पना आप ही कीजिए। आप बस इतना जान लीजिए कि बिना कुछ किए ही मैं स्खलित हो गया पर लिंग राज ने स्खलन के बावजूद तनाव नहीं छोड़ा था।
अब मैंने योनि की दरार के नीचे अपनी उंगली लगाई और जिस तरह हम दो लकड़ी के ज्वांइट को भरने फेविकोल लगाते हैं.. वैसे ही उसके कामरस की एक बूंद को उसकी योनि के ऊपर तक आहिस्ते से फिरा दिया। मेरा इतना करना था कि प्रिया कसमसा उठी और वो ‘ओह… सौरभ.. बस..’ इतना ही कह पाई।
अब मैंने उसकी पेंटी में फिर से उंगली फंसाई और प्रिया की मदद से पेंटी को अलग कर दिया और बड़े गौर से उस हसीन जगह का मुआयना करने लगा। मैं उस पल को वहीं ठहरा देना चाहता था, जिसकी चाहत में मैं ये सारे उपक्रम कर रहा था। हालांकि मैं सारी चीजें प्रिया के लिए कर रहा था, पर मेरा भी स्वार्थ था, यह भी सच है।
अब मैंने दोनों हाथों की उंगलियों को उसकी योनि के दोनों ओर ले जाकर योनि को दबाया और योनि के लबों के जोड़ को आपस में रगड़ा। मैं यह सब इतने प्यार से कर रहा था कि प्रिया की सिसकारियाँ निकलने लगीं। फिर मैंने उसके पैरों को मोड़ कर फैला दिया, उसकी गुलाब की पंखुड़ियों जैसी फांकों को देख कर मन मचल उठा.
पर मैंने खुद पर काबू किया और लेप को पेंटी से ढके भागों पर बड़े इत्मिनान से लगाने लगा। प्रिया ने अपने ऊपर काबू पाने के लिए टेबल को कस के जकड़ लिया था। मैंने प्रिया शरीर के हर हिस्से में लेप लगाया फिर आलू-खीरा काट लाया और जब मैं उसे प्रिया की आँखों में रखने वाला था, तब प्रिया ने मेरा हाथ पकड़ लिया।
उसने कहा- सौरभ तुम मेरी आँखों में ये लगाकर क्या करते हो.. मैं सब जानती हूँ!
मैं स्तब्ध था, मेरे पास कहने को कुछ नहीं था।
तब उसी ने फिर कहा- ऐसी परिस्थितियों में तुम्हारा ऐसा करना स्वाभाविक ही है। तुम अच्छे इंसान हो.. इसलिए अब तक मुझसे दूर रहे, कोई और होता तो सबसे पहले मेरे शरीर से खेलने की ही बात सोचता और शायद ऐसे ही लोगों की वजह से सेक्स के प्रति मेरी रुचि खत्म हो गई थी। हम दोनों जानते हैं कि सेक्स दो शरीर का मिलन नहीं होता.
ये तो आत्माओं, विचारों, भावनाओं का, मिलन होता है। मेरे अन्दर सेक्स की भावना को तुमने जागृत किया है, मेरे खोये हुए आत्मविश्वास को तुमने जगाया है, मेरी तन्हाई को दूर किया है, जीवन में आनन्द लेकर जीना सिखाया है, मेरे शरीर का रोम-रोम और आत्मा का सूक्ष्म अंश भी तुम्हारा ऋणी है। मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ सौरभ.. तुम जो चाहो कर सकते हो।
ऐसा कहते हुए उसकी आँखों से अश्रुधार बह निकली।
मैंने उसे संभाला और कहा- मैं तो सिर्फ तुम्हारे चेहरे पर खुशी देखना चाहता हूँ, अन्दर की खुशी..! बस और कुछ नहीं, सिर्फ उतना ही मेरा लक्ष्य है।
उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा- थैंक्स सौरभ तुम बहुत अच्छे हो!
वो मुझसे लिपट गई। हम दोनों ऐसे ही बैठे रहे और बहुत देर बाद उसने अपना सर उठाया और मेरी आँखों में देखते हुए कहा- सौरभ एक बात कहूं..?
मैंने ‘हाँ’ में अपना सर हिलाया.. तो उसने कहा- मुझे बचा हुआ अंतिम सुख भी दे दो।
मैंने कहा- मैं कुछ समझा नहीं..!
उसने कहा- समझ तो तुम गए हो.. पर स्पष्ट सुनना चाहते हो.. तो सुनो, मैं तुम्हारे साथ संभोग करना चाहती हूँ, ऐसी कामक्रीड़ा करना चाहती हूँ.. जैसा कामदेव और रति ने भी न किया हो। मैं मुस्कुरा उठा..
मैंने कहा- देखो प्रिया हम दोनों ही पहले भी सेक्स कर चुके हैं और मैंने प्रिया से यह भी कहा कि मैं तुम्हारे साथ कामक्रीड़ा के चरम तक पहुँचना चाहता हूँ और वो तभी हो सकता है, जब हमारे मन में एक दूसरे के अतीत को जानने के बाद भी कोई गिला शिकवा न हो।
तो प्रिया ने कहा- सौरभ तुमने मेरे लिए जो किया, उसके बाद तो तुम मेरे सब कुछ हो गए हो। अगर तुम चाहते ही हो कि मैं तुम्हारा अतीत जानूं, तो तुम मुझे वो बातें फिर कभी बता देना, पर अभी नहीं..! अभी तो बस मुझे इस लम्हे को जी लेने दो और तुम मेरा यकीन करो मुझे तुम्हारे किसी अतीत से कोई परेशानी नहीं है।
ये बातें हम मालिश टेबल पर ही कर रहे थे, यहाँ से प्रिया को नहाने जाना था। अब मैं खुशी से झूम उठा और मैंने प्रिया को अपनी गोद में उठा लिया। पहले यह संभव नहीं था.. पर अब प्रिया का बीस किलो वजन कम हुआ है और अब वह 56 किलो की 5.3 इंच हाईट वाली गहरे पेट.
पिछाड़ी निकली हुई, सीना उभरा हुआ और शक्ल तीखी, आँखें नशीली, निप्पल काले.. परंतु घेराव कम वाली माल बन चुकी थी। कुल मिला कर अब प्रिया आकर्षक सुंदरी बन चुकी थी और किसी सुंदरी का भार.. किसी भी नौजवान को भारी नहीं लगता, तो मैंने भी प्रिया को गोद में उठा लिया।
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प्रिया ने भी अपनी बांहों का हार मेरे गले में डाल लिया और कहा- अब क्या इरादा है जनाब..?
मैंने भी कहा- बस देखते जाओ जानेमन.. थोड़ी देर में सब पता चल जाएगा।
मैंने उसे कुर्सी पर बिठा दिया और आँखों पर आलू-खीरा रख कर उसे बैठे रहने को कहा। अब मैं दूसरी तैयारी करने लगा.. वास्तव में मैं इस पल को और हसीन बनाना चाहता था, चूंकि अभी प्रिया को नहाना ही था तो मैंने अपना रोमांस बाथरूम में ही करने का प्लान बनाया।
मैं प्रिया को पहले शाही स्नान कराने के बाद ही उससे सेक्स करना चाहता था। इसलिए मैं दूध, गुलाब जल और गुलाब की पंखुड़ियों को तलाशने लगा। हम लोग दूध के पैकेट घर में हफ्ते में दो बार लाते थे.. एक बार में सात पैकेट लाने से सुबह शाम के हिसाब से तीन चार दिन चल जाता था और मैं आज ही दूध के पैकेट लेकर आया था।
अब मैंने सारे पैकेट फ्रिज से निकाले और एक बाल्टी में तीन पैकेट फाड़ कर डाल लिए और बाकी के पांच पैकेट बिना फाड़े ही बाथरूम में रख आया। बाल्टी को मैंने पानी से भर दिया और प्रिया के कमरे में रखी गुलाब जल की बोतल को भी बाल्टी में उड़ेल दिया। अब गुलाब कहाँ से लाता.. क्योंकि जो चाहो वो हो जाए.. ऐसा संभंव नहीं है.
तो मैंने बालकनी में खिले गेंदे के कुछ फूल को ही बिखरा कर पानी में डाल दिया। अब पानी शाही स्नान के लिए तैयार था। शाही स्नान में और भी चीजें होती होंगी, पर मैं उस समय जितना कर सकता था किया। इसके बाद मैंने पहले अपने पूरे कपड़े उतारे और प्रिया को फिर से गोद में उठा लिया, उसने मेरी आँखों में आँखें डालकर अपने होंठों में मुस्कुराहट बिखेरी।
प्रिया के खुले शरीर से मेरा खुले शरीर का स्पर्श पहली बार हुआ था, इसलिए दोनों के शरीर में झुरझुरी सी हुई। मैंने उसे बाथरूम में ले जाकर एक पीढ़े पर बिठाया, बाथरूम बड़ा था.. इसलिए हमें कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। चूंकि हम लोगों के अलावा वहाँ और कोई नहीं था, इसलिए दरवाजा भी खुला ही था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
प्रिया ने मेरी तैयारी देखी और खुश हो गई- सौरभ तुम बहुत अच्छे हो यार, सच में तुम बहुत अच्छे हो..
पता नहीं उसने ऐसा कितनी बार कहा होगा, क्योंकि मैं ये शब्द पांच मिनट तक लगातार सुनते रहा। फिर मैंने ही उसके मुंह पर हाथ रख कर उसे चुप कराया। तभी उसकी नजर बाल्टी में गेंदे के फूल की पत्तियों के ऊपर पड़ी तो उसे हंसी आ गई।
मैंने तुरंत कहा- गुलाब के फूल नहीं मिले.. तो इसे डाल दिया!
उसने ‘कोई बात नहीं..’ कहते हुए कहा कि जाओ मेरे अलमारी को देख आओ शायद तुम्हें कुछ मिल जाए।
मैंने कहा- बाद में देख लूँगा यार!
उसने कहा- नहीं अभी जाओ!
मुझे उसकी जिद माननी पड़ी, मैंने उसकी अलमारी खोली.. उसके कपड़ों के ऊपर जो रखा था, उसे देख कर मैं पागल सा हो गया.. उसे लेकर मैं प्रिया की ओर दौड़ पड़ा और प्रिया के सामने पहुँच कर ‘आई लव यू टू प्रिया..’ कहते हुए उसे अपनी बांहों में भर लिया।
दरअसल उस अलमारी में प्रिया ने मेरे लिए गुलाब का बंच, चॉकलेट, घड़ी, पर्स और एक सफेद कागज रखा था, जिसमें उसने लिपिस्टिक लगा कर किस का निशान बनाया था और ‘आई लव यू सौरभ..’ लिखा था। मैं खुश इसलिए था क्योंकि मैंने प्रिया से इतने प्यार की उम्मीद नहीं की थी। खैर.. हमने अपनी भावनाओं पर काबू किया।
प्रिया ने कहा- लो अब गुलाब की पत्तियां मिल गईं ना.. अब डाल दो इसे पानी में!
मैंने वैसा ही किया, दो-तीन गुलाब बचा कर बाक़ी तोड़ कर उनकी पत्तियां पानी में डाल दीं।
अब मैंने दूध के पांच पैकेटों में से एक पैकेट प्रिया के सर के ऊपर रख कर फाड़ा और उसके शरीर के सूख चुके लेप को दूध से भिगो भिगो कर रगड़ना शुरू किया। प्रिया आनन्द के सागर में डूबी जा रही थी, उसकी नजरें कभी मेरी नजरों से मिलतीं, तो शरमा उठती और कभी वो मेरे फनफनाते लिंग को चोर नजरों से निहारती जा रही थी।
मैंने दूध से उसकी मालिश का सिलसिला जारी रखा, अब मैंने बारी-बारी सारे दूध के पैकेटों को प्रिया के ऊपर उड़ेलते हुए, प्रिया के हर अंग की मालिश की। पहले उसके उरोजों को सहलाया, मसला, पुचकारा, पीठ पर उंगलियाँ घुमाईं और अब बारी थी योनि की.
मैंने उसके लिए प्रिया को खड़ा किया और उसके सामने घुटनों पर बैठ गया और उसकी कमर को जकड़ कर मालिश करने लगा। मेरी नजर उसकी योनि पर टिकी थी। मैंने योनि को नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे सहलाना शुरू किया..
तभी प्रिया ने मेरे बाल पकड़ के खींचे, मैं समझ गया कि अब खुद पर काबू करना इसके बस का नहीं.. पर मैं अपने कार्य में लीन था। हालांकि मेरा लिंग भी महाकाय हो चुका था, पर लेप लगाते वक्त वीर्यपात हो जाने से अभी दुबारा फव्वारे पर नियंत्रण था।
मैंने योनि की दूध से मालिश करते वक्त अपनी एक उंगली योनि में डाल कर मालिश कर दी, दो चार बार ही उंगली को आगे पीछे किया होगा कि मुझे अन्दर से गर्म लावे का एहसास होने लगा। उसकी योनि रो पड़ी.. रस की नदी जांघों पर बह आई, दूध और उसका रंग एक ही था इसलिए कितना बहा.. ये कहना मुश्किल है।
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पर बहती धार देख कर मेरे मुँह में पानी आ गया, लेकिन अभी सब मैला-कुचैला होने की वजह से मैं अपने आपे में ही रहा। अब प्रिया की हालत खड़े रहने की नहीं थी और मुझे भी उसे बैठाना ही था क्योंकि अभी उसका स्नान बाकी था।
मैंने उसे पीढ़े पर बिठाया और उसके ऊपर पानी डालने लगा। मैं प्रिया के सामने खड़ा था और वो मेरे सामने बैठी थी, मतलब मेरा लिंग ठीक उसकी नजरों के सामने था, जब प्रिया के सर से पानी नीचे की ओर बहता था.. तब दूध और पानी उसके बालों, गालों से होते हुए सीने की घाटियों पर.. और वहाँ से नीचे आकर अथाह समुद्र में खो जाती थी।
उस वक्त एक अलग ही नजारा था, ये देख कर मेरा लिंग झटके मारने लगा। प्रिया ने मेरी बेचैनी समझ कर पहली बार मेरा लिंग अपने हाथों में लिया, शायद वो खुद भी बहुत बेचैन थी इसीलिए वो मेरे लिंग को बहुत जोरों से दबा रही थी और आगे-पीछे कर रही थी।
इधर प्रिया के चिकने शरीर का स्पर्श मुझे पागल कर रहा था। प्रिया की पकड़ मेरे लिंग पर और मजबूत हुई और रगड़ की वजह से मैं पांच मिनट में फूट पड़ा। मेरे लिंग से निकला बहुत सारा वीर्य प्रिया के चेहरे पर गया.. वो थू-थू करने लगी।
मैंने कहा- इतना क्यों घिना रही हो.. लोग तो इसे पी भी जाते हैं।
तो उसने कहा- वो सब फिल्मों में होता है.. हकीकत में ये सारी चीजें घिनौनी ही लगती हैं।
‘नहीं प्रिया.. ऐसा नहीं है, ये भी कामक्रीड़ा का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है, ये बात मैं तुम्हें प्रेक्टिकल करके बताऊंगा।’
प्रिया ने दिखावे में मुंह बनाया और मैंने उसे जल्दी से नहलाया। उसी वक्त उसने मेरे ऊपर भी पानी डाल दिया तो अब हम दोनों ही शाही स्नान का मजा लेने लगे। हम जल्द ही नहा कर एक-दूसरे को तौलिया से पोंछने लगे, अभी शरीर पूरा नहीं सूखा था..
फिर भी मैंने प्रिया को फिर से गोद में उठाया और हॉल वाले बेड पर ले आया। यहाँ रोशनदान से और खिड़की से खूब प्रकाश आ रहा था, रूम के बाहर फुलवारी और उसके बाद बड़ा गेट जो हमेशा बंद रहता था, इसलिए खिड़की बंद करने की आवश्यकता नहीं थी।
प्रिया को मैंने बिना कपड़ों के कई बार देखा था.. पर आज वो दूध से नहा कर निकली थी। उसके बाल भीगे हुए थे और चेहरे पर शर्म उसकी खूबसूरती पर चार चांद लगा रहे थे। मुझे वो रति, मेनका, रंभा जैसी अप्सरा नजर आ रही थी और मैं खुद के भीतर कामदेव को महसूस कर रहा था।
प्रिया ने अपने एक हाथ से बाल का पानी झड़ाना शुरू किया.. अय..हय.. उसके उरोजों का हिलना देख कर मैंने अपना धैर्य खो दिया और मैंने बेड पर चढ़कर उसे गले लगा लिया। प्रिया का हर अंग फूलों सा नाजुक और मुलायम लग रहा था।
मैंने प्रिया के हर एक अंग को चूमना चाटना चाहा, प्रिया ने भी अपनी बांहों में मुझे लपेट लिया और मेरे बराबर ही प्रतिउत्तर देने लगी, हमारी आवाजें, सिसकारियों में बदल गईं। अब मैंने प्रिया को खुद से अलग किया और उसे बेड पर सीधा लेटा दिया।
मैंने प्रिया को खुद से अलग किया और बेड पर सीधा लेटाकर मैं खुद उसके पैरों की ओर आकर घुटनों पर बैठ गया। मैंने प्रिया को नीचे से ऊपर तक निहारा प्रिया का रंग काले से गेहुँआ हो गया था.. उसका पेट अन्दर की ओर हो गया था, गला सुराहीदार, होंठ कंपकंपाते हुए उसको बेहद हसीन बना रहे थे।
मैंने इस नजारे को अपनी आँखों में हमेशा के लिए कैद करने की नाकाम कोशिश की। उसकी त्वचा इतनी मुलायम लग रही थी कि मेरा उसकी शरीर के हर हिस्से को चाटने का मन हुआ.. और आज मैंने अपने मन की बात सुनी।
सबसे पहले मैंने प्रिया के पैरों के अंगूठे को जीभ से सहलाया और धीरे-धीरे पूरा अंगूठा मुंह में भर के चूसने लगा। प्रिया के लिए यह सब नया था.. वो हड़बड़ा कर उठ गई, पर उसे आनन्द भी आ रहा था, उसकी सिसकारियों और शरीर की कंपन साफ पता चल रही थी।
मैंने उसके दोनों पैर के अंगूठे बड़े मजे से चूसे.. फिर उसकी दोनों टांगों पर बारी-बारी जीभ फिराने लगा। मैं अपनी जीभ उसके पंजों से शुरू करके उसकी जांघों तक फिराता था, जिससे वो एकदम से सिहर रही थी। फिर मैं खिसक कर ऊपर आ गया और उसके पेट और नाभि में जीभ घुमाने लगा, प्रिया पागल हुए जा रही थी।
मैंने जीभ को ऊपर की ओर बढ़ाते हुए उसके उरोज और निप्पल तक पहुँचाई। जब जीभ निप्पल तक पहुँचती थी, तब मैं अचानक ही उसके पूरे उरोज को खाने जैसा प्रयास करता था। प्रिया ने आँखें बंद कर ली थीं और ‘आई लव यू सौरभ..’ की रट लगाने लगी, मैं अपने ही काम में व्यस्त रहा।
जब मैंने उसके कंधों, कान और गाल को चूमा तो वो सिहर उठी। उसने मुझे जकड़ना चाहा और तभी मैंने उसके मुंह में जीभ डाल दी। मैं उसे उत्तेजक चुंबन देना चाह रहा था और वो मेरे हर हमले का जबाव मुझसे बढ़ कर दे रही थी।
उसने मेरे कानों में कहा- सौरभ अब देर किस बात की..!
मैंने उसकी आँखों को देखा.. उसमें वासना ही वासना भरी थी, पर मैं अभी कुछ और चाहता था, इसलिए मैंने उठ कर अपनी दिशा बदली। अब मैंने उसके चेहरे की ओर अपनी कमर और उसकी कमर की ओर अपना चेहरा रखा। इस दौरान मैंने प्रिया को खुद के उभारों को दबाते देखा।
मैंने फिर नाभि से जीभ फिराना चालू किया और इस बार मेरे जीभ का अंतिम पड़ाव प्रिया की योनि का ऊपरी सिरा था। प्रिया ने मेरा सर पकड़ लिया और कराहने लगी, मैंने भी अपना जौहर दिखाते हुए योनि के चारों ओर जीभ घुमाई और योनि की दरारों में जीभ फेरने लगा। प्रिया के शरीर की झुरझुरी साफ महसूस हो रही थी, प्रिया ने मेरे बाल और जोर से खींचे.. शायद कुछ बाल उखड़ भी गए हों।
तभी मैंने कुछ देर रुककर प्रिया से कहा- प्रिया लिंगराज के लिए अपने मुंह का द्वार खोल दो..!
प्रिया ने कहा- क्या सौरभ.. और क्या-क्या कराओगे मुझसे!
इतना ही कह कर वो मेरे लिंग पर जीभ फिराने लगी.. पहले तो उसने खांसने का नाटक किया.. फिर जल्द ही लिंग को मुंह की गहराइयों तक ले जाकर चूसने लगी। मन तो प्रिया का पहले ही उसे चूसने का हो रहा होगा.. पर शायद मेरे कहने का इंतजार कर रही थी।
क्योंकि कोई भी इंसान जो सेक्स के लिए तड़प रहा हो उसके सामने सात इंच का तना हुआ गोरा लिंग लहरा रहा हो.. तो मन तो करेगा ही.. और अभी तो मेरे लिंग का आकार उत्तेजना की वजह से और ज्यादा भी हो गया था। अब हम दोनों 69 की पोजीशन में मुख मैथुन में लगे हुए थे।
प्रिया ने एक बार फिर साथ छोड़ दिया और उसी वक्त उसने मेरा लिंग अपने दांतों में जकड़ लिया। मैं चीख पड़ा, प्रिया कांपते हुए झड़ गई, उसके अमृत की कुछ बूँदें मेरे जीभ में लगीं, पर मैंने सारा रस नहीं पिया क्योंकि मुझे अच्छा नहीं लगता।
अब प्रिया ने लिंग से दांतों की पकड़ ढीली की.. तब मैंने अपना लिंग उसके मुंह से निकाल लिया। मेरा लिंग दर्द की वजह से थोड़ा सिकुड़ गया था। वैसे अच्छा ही हुआ.. नहीं तो मेरा भी स्खलन अब तक हो चुका होता। फिर दोनों लिपट कर कुछ देर लेट गए, प्रिया ने मुझे न जाने कितनी बार चूमा और थैंक्स कहा।
कुछ देर ऐसे ही उसके उरोजों और शरीर से खेलने के बाद मैं एक बार फिर जोश में आ गया था। प्रिया की भट्ठी भी दुबारा जलने लगी थी। इसी बीच प्रिया बाथरूम से होकर आ गई और अब उसकी योनि भी साफ थी। हम एक बार फिर जल्दी से मुख मैथुन की मुद्रा में आ गए और जैसे ही मुझे अपने लिंग में पूर्ण तनाव महसूस हुआ.
मैंने प्रिया के टांगों को फैलाया और उसकी योनि पर अपना लिंग टिका कर बैठ गया। मैंने प्रिया की योनि को अपने लिंग से सहलाया.. प्रिया ने बिस्तर को जकड़ लिया था, मानो वह हमले के लिए तैयारी कर रही हो।
उसकी योनि ने मेरा मार्ग आसान करने के लिए चिपचिपा द्रव्य छोड़ दिया था, अब मैंने प्रिया की आँखों में देखा और अपनी भौंहे उचका कर शरारती इशारा किया तो प्रिया शरमा गई और ‘धत’ कहते हुए मुंह घुमा लिया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
अब मैंने लिंग को उसके योनि में प्रवेश करा दिया.. अन्दर के गर्म लावे को मेरा लिंग साफ-साफ महसूस कर सकता था। प्रिया की आँखें बंद करते हुए एक ‘आह..’ भरी और इसी सिसकारी के साथ प्रिया ने लिंग को अपने अन्दर ले लिया। हालांकि उसकी सील पहले से टूटी हुई थी.. पर योनि की कसावट अभी भी बरकरार थी।
मैंने कमर धीरे-धीरे हिलाया और उसे छेड़ा- गाजर इससे भी मोटी थी क्या?
प्रिया ने ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ के साथ लड़खड़ाते हुए कहा- आह्ह.. बड़ा बेशर्म है रे तू.. बड़ी थी या छोटी.. मैं नहीं जानती.. पर ये जरूर है कि आज जैसा मजा मैंने जिन्दगी के किसी पल में नहीं लिया!
और इतना कहने के साथ ही उसके मासूम आंसू गालों पर ढलक आए। प्रिया उस वक्त और भी बला की खूबसूरत लगने लगी, प्रिया की आँखें वासना से लाल हो गई थीं और उसने मुझसे निवेदन के लहजे में कहा- सौरभ अब और बर्दाश्त नहीं होता.. आज मुझे ऐसे रगड़ो कि जिन्दगी भर न भूल पाऊं.. और हाँ सौरभ, मैंने आज से अपनी जिन्दगी तुम्हारे नाम कर दी है, अब कभी मुझसे दूर न होना।
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इतना सुनकर मेरे अन्दर का जोश बढ़ गया.. मैंने प्रिया से कहा- तुम चिंता छोड़ कर सिर्फ आनन्द लो! मैं अपना घोड़ा तेज दौड़ाने लगा… कमरा आआआअ… ऊऊऊउउउ की मादक आवाजों से गूँजने लगा। प्रिया के पूरे शरीर को मैं बार-बार सहला रहा था, प्रिया ने अपने उरोज खुद थाम रखे थे, अब हम दोनों के बीच शर्म नाम की कोई चीज नहीं थी। सम्भोग की गति बढ़ने लगी.. फिर और ज्यादा बढ़ने लगी.. और तब तक बढ़ती रही, जब तक तूफान शांत न हो गया, हम दोनों एक साथ ही स्खलित हुए थे।
दोनों ऐसे ही लेटे रहे और आँखें मुंद गईं। जब शाम चार बजे नींद खुली.. तो होश आया कि आज दोपहर हमने खाना ही नहीं खाया है, फिर भी हम दोनों ने बाथरूम से आकर खाना बनाने के पहले एक राऊंड और रतिक्रिया किया और बहुत आनन्द लिया। फिर खाना खाने बाहर गए और रात को फिर एक बार ये दौर चला। अब हम लगभग रोज ही एक बार सेक्स कर लिया करते थे। एक से ज्यादा भी नहीं करते थे क्योंकि इससे रुचि खत्म हो जाती।
Raman deep says
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