Desi Lonely Mom Taboo
हेल्लो फ्रेंड्स, कैसे है आप सभी, दोस्तों मैं आप सब के सेवा में फिर से हाज़िर हूँ. तो लड़के निकाल ले अपना लंड अपने हाथों में और लड़कियां मुली या बैगन लेकर अपनी पेंटी खोल ले. आपनी कहानी के पिछले भाग परिवार में चुदाई की अनोखी कहानी 3 में पढ़ा की सन्नो की माँ अपने बेटे अमर साथ सुहागरात मनाने के लिए तड़पने लगी थी अब आगे – Desi Lonely Mom Taboo
शाम 6 बजे अमर और मैं अमर की नई टैक्सी में बैठकर जयपुर के लिये रवाना हो गये। गाड़ी ड्राईव करते हुए बीच बीच में अमर कनखियों से मुझे देखकर मुस्कुरा देता, और अपना एक हाथ मेरी जाँघों पर रख देता। हम दोनों किसी किशोर नवयुवक नवयुवती की तरह व्यवहार कर रहे थे।
मिड-वे बहरोड़ पर जब एक रेस्टॉरेण्ट पर अमर ने गाड़ी रोकी तो गाड़ी से उतरने से पहले अमर ने मुझे अपनी बाँहों में भरकर मुझे जोरों से होंठों पर किस कर लिया, और मेरे मुँह में अपनी जीभ घुसा दी। हम दोनों की जीभ एक दूसरे की जीभ के साथ अठखेलियाँ करने लगी।
अमर ने गाड़ी की हैडलाईट बंद कर दी, और अंदर की लाईट ऑन नहीं की, पार्किंग में कोई लाईट नहीं थी।मैंने अमर को अपनी बाँहों में भर लिया, और उसकी छाती पर अपने मम्मों को दबाने लगी, अमर मेरे चूतड़ों को अपने हाथों में भरकर मसल रहा था।
मैं उसके लण्ड को अपनी चूत में लेने को बेताब थी। लेकिन उस मिड-वे की कार पार्किंग में ऐसा करना सुरक्षित नहीं था। अमर ने एक हाथ नीचे ले जाकर मेरे पेटीकोट के अंदर घुसा दिया, और पेटीकोट और साड़ी दोनों को ऊपर कर दिया।
अमर ने मुझे कार की अगली सीट पर ही घोड़ी बनाकर मेरी पैण्टी को नीचे खींच कर उतार दिया, और मेरी गाँड़ की दोनों गोलाईयों को अपने हाथों से अलग करते हुए मेरी चूत और गाँड़ के छेदों को निहारने लगा। अमर ने जैसे ही मेरी चूत और गाँड़ के छेदों में उँगली घुसानी शुरू की, मैं किसी चुदासी कुतिया की तरह आवाजें निकालने लगी।
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अमर का अँगूठा मेरी ग़ाँड़ के छेद को सहला रहा था, तो उसकी उँगलियां मेरी चूत की फ़ाँकों के साथ खेल रही थीं। कुछ देर बाद उसकी पहली और बीच वाली उँगली मेरी पनिया रही चूत के अंदर घुसने लगी। अपने बेटे के इस तरह मेरी गाँड़ और चूत में उँगली घुसाने को मैं ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर पायी, और वहीं कार पर्किंग में ही मैं एक बार जोरदार तरीके से झड़ गयी।
समाज की वर्जनाओं को हम दोनों माँ बेटे कब की धता बता चुके थे, और अब हम दोनों के बीच शर्म लाज लिहाज का कोई बंधन नहीं था। जिस वासना और हवस के लावा को हम दोनों ने किसी तरह तब तक दबाया हुआ था, उसका ज्वालामुखी अब फ़ूट चुका था।
”मम्मी, अब मुझसे नहीं रहा जाता,” अमर मेरी चूत में उँगली घुसाते हुए,मेरे कानों के पास धीमे से बोला, उसकी आवाज काँप रही थी, ”मेरे लण्ड को अपनी चूत में घुसवा लो ना मम्मी।”
मैं अमर की हालत समझ सकती थी, लेकिन रात के अंधेरे में जब भी कोई कार आती तो उसकी हैडलाईट की रोशनी में कोई भी हमारी हरकतें देख सकता था, इसलिये मैंने अमर को समझाया, ”अमर बेटा, मन तो मेरा भी बहुत हो रहा हैं चुदने का, लेकिन इस तरह यहाँ पर किसी ने देख लिया तो अच्छा नहीं होगा, तुम जयपुर पहुँच के जी भर के चोद लेना, लेकिन अब जल्दी से टॉयलेट कर के यहाँ से चलते हैं।” ऐसा बोलकर मैंने अमर के होंठों को किस कर लिया।
किसी तरह अमर ने अपने को काबू में किया, और हम दोनों कार लॉक करने के के बाद पेशाब करने के लिये चल दिये। जिस तरह कुछ मिनट पहले अमर ने मुझे मेरी गाँड़ और चूत में उँगली घुसाकर मुझे झड़ने पर मजबूर किया था, उसके बाद मानो मेरी टाँगों में से जान ही निकल गयी थी, और मुझसे ठीक से चलना मुश्किल हो रहा था।
हमने डिनर वहीं मिड-वे रेस्टोरेन्ट पर ही किया और फ़िर जयपुर की तरफ़ चल दिये। जयपुर में हम पहले भी रह चुके थे इसलिये अमर को वहाँ के सभी होटल की अच्छी जानकारी थी। एक अच्छे से बजट होटल में हमने एक कमरा ले लिया। अमर गाड़ी को पार्क करने पार्किंग में चला गया, और जब तक वो चैक इन की फ़ॉर्मेलीटी को खत्म करता, मैं रूम में आकर बाथरूम में नहाने के लिये चली गयी।
नहाते हुए अपनी चूत को अमर से चुदवाने कि उत्सुकता के विचारों से ही मेरा दिमाग घूम रहा था। अमर आज पहली बार किसी की चूत मारने वाला था, और वो भी अपनी मम्मी की, ये वाकई में हम दोनों के लिये एक बड़ा अवसर था।
अपने बेटे का लण्ड मेरी चूत में घुसाने का विचार केवल इस वजह से मुझे इतना ज्यादा उत्तेजित नहीं कर रहा था कि ये सामाजिक मान्यताओं के खिलाफ़ था बल्कि जिन परिस्थितियों में हम माँ बेटे के ये रिश्ते बने थे, वो मुझे ज्यादा उत्साहित और उत्तेजित कर रहे थे।
अब हम सिर्फ़ माँ बेटे ना रहकर दो प्रेमी बन चुके थे। प्रेमी नाम का शब्द ही मुझे अंदर ही अंदर बेहद उत्तेजित कर रहा था। जब से हम दोनों माँ बेटे के शारीरिक सम्बंध बने थे, तब से हम दोनों की एक दूसरे के प्रति भावनायें, और अटूट बंधन और ज्यादा गहरा हो गया था।
मेरे जीवन में अभी तक कोई रिश्ता इतना गहरा और सतुष्टीपूर्ण नहीं हुआ था, और ये सब अपने आप हुआ था। शायद इसी वजह से मैं थोड़ा नर्वस भी हो रही थी। नहाने के बाद मैंने अपने गदराये बदन पर बॉडी लोशन लगा लिया, जिसकी वजह से मेरी गोरी त्वचा और ज्यादा निखर उठी, और फ़िर नंगे बदन ही होटल रूम के बैड पर आकर बैठ गयी।
मेरे अंदर उत्साह उत्तेजना और घबराहट सब एक साथ हो रही थी। पता नहीं क्यों मुझे थोड़ी टेन्शन भी हो रही थी, हाँलांकि ऐसा नहीं था कि मेरी चूत में पहली बार कोई लण्ड घुसने वाला हो, लेकिन ऐसा बहुत सालों बाद होने वाला था। अमर ने मेरे जीवन में कुछ नया, उत्साह, उत्तेजना और खुशी का संचार कर दिया था।
पिछले कुछ हफ़्तों से जब पहली बार से मैंने अमर को मेरी गाँड़ मारने की इजाजत दी थी, तब से मेरे जीवन का सबसे अच्छा समय शुरू हुआ था। हम दोनों माँ बेटे का सैक्स गजब का होता था, जिसमें एक तीव्रता, उत्साह होने के साथ साथ अन्तरंगता थी।
अमर के पापा की डैथ के बाद चुदाई का सुख मैं भूल ही गयी थी। किसी गर्म खून के जवान मर्द के नीचे आने का मजा ही कुछ और था। और यदि वो जवान मर्द इतना प्यार करने वाला, और ध्यान रखने वाला हो तो फ़िर तो सोने पे सुहागा था।
अपने सगे बेटे से चुदने में जो मजा आने वाला था, मैं उसी के बारे में सोच रही थी। अमर जिस तरह मेरी चूत को चाटकर, चूत के दाने को सहला कर, मेरे मम्मों को दबाकर, निप्प्ल मसलकर, मेरी गाँड़ में अपना मूसल जैसा लण्ड पेलकर उसको अपने वीर्य के पानी से भर देता, ये सब मुझे बहुत आनंद देता।
हम दोनों माँ बेटे एक दूसरे के पहले की तुलना में बेहद करीब आ चुके थे, हम दोनों को एक दूसरे का साथ पसंद आता। एक दूसरे के साथ चिपक कर बैठना, जब चाहे एक दूसरे को बाँहों में भर लेना और एक दूसरे को कनखियों से निहारना आम बन चुका था।
मैं मन ही मन उन सभी सवालों को नकार देती जो बीच बीच में मेरे जेहन में आते, जैसे अमर की शादी के बाद हमारे इस नाजायज रिश्ते का क्या होगा? मैं किसी तरह अपने मन में उठते नकारात्मक सवालों को नजरअंदाज करने का प्रयास करती।
लेकिन हमारे शारीरिक सम्बंधो के इस मुकाम पर पहुँचने के बाद इस तरह के सवाल या कहें तो मेरे मन में बसे डर का सामना कर पाना मुश्किल हो रहा था। मुझे किसी तरह की कोई जलन की भावना नहीं थी, कि अमर की पत्नि मेरा स्थान ले लेगी। मैं अमर को बेहद प्यार करती थी लेकिन मेरी मंशा ये कतई नहीं थी कि अमर की सारी जिंदगी में सिर्फ़ अकेली मैं ही एक अकेली औरत रहूँ।
देर सबेर अमर की शादी होना निश्चित थी, और मैं चाहती थी कि अमर अपनी पत्नि और होने वाले बच्चों के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत करे। मैं अमर से सच्चा प्यार करने लगी थी, और हमेशा करते रहने वाली थी। लेकिन क्या अमर शादी के बाद मुझे इतना ही प्यार करेगा?
ये ही सवाल मुझे बार बार परेशान कर रहा था। मैं अमर के साथ स्थापित सम्बधों को खत्म होते नहीं देखना चाहती थी। ये नाजुक रिश्ता मेरे लिये बेशकीमती हो चला था। कहीं मुझे लगता कि मुझे डरने की आवश्यकता नहीं है। मैं जब भी अमर की आँखों में देखती तो शारीरिक आकर्षण के साथ साथ मुझे उसकी आँखों में मेरे प्रति निश्चल प्यार दिखायी देता।
जो कुछ शारीरिक सम्बंध हम दोनों बना चुके थे, या फ़िर बनाने वाले थे उन सब यादों को भुला पाना असम्भव था। मुझे तो पता था कि मैं इन यादों को सारे जीवन सहेज कर रखने वाली थी। मुझे इस बात का एहसास था कि अमर के प्रति तीव्र आकर्षण ही मुझे सता रहा था। मेरा अपने बेटे अमर के प्रति प्यार ही मेरे डर की वजह बन रहा था।
अपना सिर झटकते हुए मैंने इस तरह के विचारों को दिमाग से बाहर निकालने का प्रयास किया। और मन ही मन मैंने अपने आप को ऐसी बेवकूफ़ी भरी बातें सोचने के लिये कोसा, ऐसी बेतुकी बातें सोचना व्यर्थ था। मैं किसी भी हालत में उस दिन को बर्बाद होने नहीं देना चाहती थी। ये मेरा नहीं मेरे बेटे अमर की खुशी का सवाल था।
मैंने अपने आप को आदमकद शीशे में देखत हुए अपने आप से बुदबुदाई, ”एकदम छिनाल लग रही हूँ ना।’’
”छिनाल नहीं मम्मी, आप तो मेरी जान हो, दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत।”
अमर रूम में आ गया था, और मुझे इस तरह नंगा देखकर मुस्कुरा रहा था। अमर का गठीला बदन बेहद आकर्षक लग रहा था, उसने अपनी शर्ट की स्लीव कोन्ही तक ऊपर चढा रखी थी। उसका इस तरह मुझे दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत बोलना मुझे रोमांचित कर गया, और मेरे दिमाग में आ रहे सारे शको-शुभा दूर हो गये। जैसे ही हम दोनों की नजर आपस में टकरायीं, मेरे बदन में खुशी की एक लहर सी दौड़ गयी। नंगे बदन इठला कर चलते हुए मैंने अपने आप को अमर की मजबूत बाँहों में समर्पित कर दिया।
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”आ गया अमर बेटा?” मैंने अमर के गले में अपनी बाँहें डालते हुए कहा, अमर ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और वो मेरी नंगी पींठ और मेरी गाँड़ की मोटी मोटी गोलाईयों पर हाथ फ़िराने लगा।
”हाँ बस अभी आया,” अमर अपनी पैण्ट में लण्ड के बने तम्बू को मेरी चूत के अग्रभाग पर दबाते हुए बोला। उसकी उँगलियां मेरे गदराये नंगे बदन को मेहसूस कर रही थीं। ”अब और इन्तजार नहीं होता मम्मी।”
”आह्ह, मेरा बेटा!” मैं घुटी हुई आवाज में बोली, अमर की आँखों में वासना के लाल डोरे तैरते हुए देख मुझे बेहद अच्छा लग रहा था। अपने आप को अमर को समर्पित करते हुए, मैंने उसे किस करने के लिये अपनी ओर खींच लिया।
हम दोनों एक दूसरे को इस तरह बेतहाशा चूमने लगे मानो कितने समय बाद मिले हों। चूमना बंद करते हुए जब मैंने अमर की चौड़ी छाती को नंगा करने के लिये उसकी शर्ट के बटन खोलने शुरू किये तो मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा और मेरी साँसें उखड़ने लगी।
जब अमर अपनी बैल्ट को खोल रहा था, तो मैं उसके सामने घुटनों के बल बैठकर उसकी पैण्ट के हुक को खोलकर उसकी चैन खोलने लगी। मैंने अपना गाल उसके अन्डरवियर में लण्ड के बने तम्बू पर फ़िराते हुए कहा, ”अपनी मम्मी को उतारने दो बेटा।”
मैंने एक झटके में उसकी पैण्ट और अन्डरवियर को नीचे खींच दिया जिससे उसका फ़नफ़नाता हुए लण्ड बाहर निकल आया, और फ़ुंकार मारने लगा। जैसे ही मैंने उसके लण्ड के सुपाड़े पर अपना गाल छूआ, उसके लण्ड से निकल रहे चिकने लिसलिसे पानी से मेरा गाल गीला हो गया।
मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और एक संतुष्टीभरी गहरी साँस लेकर मैं अमर के लण्ड को स्वादिष्ट लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी। जब मैं अपने मुलायम होंठों को अपने बेटे अमर के तने हुए लण्ड, जिसकी नसें फ़ूल रही थीं, उस पर दबाकर हल्के हल्के कामुक अंदाज में चूम रही थी तो मेरी चूत की प्यास किसी रण्डी की तरह बलवती होने लगी थी, और मेरी चूत की फ़ांकें, चूत के रस से पनियाने लगी थी।
अमर के मोटे लण्ड को अपने होंठों के बीच लेकर मुझे बहुत मजा आ रहा था। सब कुछ भूल कर मैं अपने बेटे के लण्ड से निकल रहे चिकने पानी की बूँदों को अपनी जीभ से चाट रही थी, और उसके आकर्षक लण्ड की पूरी लम्बाई पर अपनी जीभ फ़िराते हुए पर्र पर्र की आवाजों में डूबी जा रही थी।
जैसे ही अमर के लण्ड को उसकी मम्मी ने जड़ से पकड़ कर, चूमते चाटते हुए धीमे धीमे मुठियाना शुरू किया तो अमर के मुँह से कामक्रीड़ा के आनंद से भरी आह ऊह की आवाज निकलने लगी। हमेशा की तरह अमर को अपना लण्ड मेरे मुँह में घुसाकर चुसवाने में बेहद मजा आ रहा था।
लेकिन उस दिन मैं उसके लण्ड को सॉफ़्ट और सैक्सी अंदाज में, उसके लण्ड को थूक से गीला करके, जीभ से नीचे से ऊपर तक चाटते हुए चूस रही थी। मैंने बस उसके लण्ड का सुपाड़ा ही मुँह के अंदर लिया था, लेकिन उतना ही बहुत था।
अपनी माँ से अपने लण्ड को चुसवाते हुए अमर अपने हाथों की उँगलियों से मेरे बालों में कंघी करने लगा, और मेरे बालों को मेरे कान के पीछे कर दिया, जिससे वो अपनी मम्मी का खूबसूरत चेहरा देखते हुए, अपने लण्ड को अपनी मम्मी के मुँह में घुसा कर होंठों के बीच अंदर बाहर होता देखने का आनंद ले सके।
कुछ देर बाद मैं इस कदर चुदासी हो चुकी थी कि मुझसे और ज्यादा बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था। मेरे चूसते रहने के कारण अमर के लण्ड से चिकने पानी की बूँदें रह रह कर बाहर आ जातीं, और मैं हर बूँद का चाट लेती, लेकिन उन चिकने पानी की बूँदों को देखकर मेरी चूत अमर के लण्ड के वीर्य के पानी के लिये तरस उठती।
अमर के लण्ड से निकले वीर्य को पीने की चाह के आगे मैं हार गयी, और फ़िर मैने अमर के लण्ड के बैंगनी रंग के लण्ड के सुपाड़े को अपने होंठों के बीच लेकर उसके थूक से सने पूरे लोहे जैसे सख्त लण्ड को अपने मुँह के अंदर ले लिया।
जैसे ही अमर के लण्ड का सुपाड़ा मेरे गले से जाकर टकराया, उसने मेरे सिर को पकड़ लिया और उसकी आँखें खुद-ब-खुद बंद हो गयीं। उसका लण्ड जो मैंने जड़ से पकड़ रखा था, उसको छोड़ दिया, और उसके लण्ड को मेरे गले में अंदर तक घुस जाने के लिये आजाद कर दिया, अब मेरे होंठ उसके लण्ड की जड़ पर टकरा रहे थे।
अमर का लण्ड पूरा अपने मुँह में लेकर, मैं अपने एक हाथ को अपनी चूत के फ़ूले हुए दाने पर ले जाकर उसको घिसने लगी, और दूसरे हाथ को अमर की गाँड़ पर रखकर उसको अपनी तरफ़ खींचने लगी। कुछ सैकण्ड ऐसे ही अमर के लण्ड को पूरा अपने मुँह में रखकर, उसको फ़िर से अपने मुँह में अंदर बाहर करके फ़िर से उसको मुँह से चोदने लगी।
अपनी मम्मी के गर्म गर्म मुँह में अपने लण्ड को घुसाकर अमर जन्नत की सैर कर रहा था। मेरे सिर को अपने हाथों से पकड़े हुए, अमर अपनी गाँड़ को आगे पीछे करने लगा, और मेरे मुँह की चुदाई के साथ ताल में ताल मिलाने लगा। और कुछ देर बाद अमर बुदबुदाया, ”मैं झड़ने ही वाला हूँ… मम्मी…”
जैसे ही अमर के लण्ड से निकली वीर्य की पिचकारी मेरे गले से जाकर टकरायी, मैंने अपनी उँगली चूत के दाने को मसलते हुए, चूत में अंदर तक घुसा दी, और अमर के साथ मैं खुद भी झड़ गयी। अमर के लण्ड से मेरे गले में जो घुटन हो रही थी, वो मुझे और ज्यादा मजा दे रही थी।
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अमर का लण्ड मेरे मुँह में पूरा घुसा हुआ था, और वीर्य की पिचकारी पर पिचकारी मेरे गले में छोड़े जा रहा था, जिसको मैं साथ साथ निगले जा रही थी। जब अमर का लण्ड फ़ड़कना बंद हो गया, और मैंने उसके लण्ड से निकली वीर्य की आखिरी बूँद चाट ना ली, तब जाकर मैंने उसके लण्ड को अपने होंठों के बीच से नहीं निकलने दिया।
और फ़िर सारा वीर्य चाटने के बाद मैंने उसकी गोलीयों को टट्टों के ऊपर से चूम लिया, और फ़िर अपने होंठों पर जीभ फ़िराकर साफ़ करते हुए मैंने अमर की तरफ़ देखा। ”वाह मम्मी मजा आ गया,” अपनी मम्मी को लण्ड से निकलती वीर्य की आखिरी बूँद चाटते हुए देख अमर बोला, ”इतना अच्छा वाला तो पहली बार झड़ा हूँ!”
अमर जब ये बोल रहा था, तो मैंने अपने घुटनों के बल बैड पर बैठते हुए, उसके सिंकुड़ते हुए लण्ड को अपने मम्मों के बीच दबा लिया। ”मुझे भी बहुत मजा आया बेटा!” मैंने कहा, और फ़िर उसके लण्ड को अपने मम्मों के बीच लेकर, मम्मों को उसके लण्ड ऊपर नीचे करने लगी, और बीच बीच में उसके सुपाड़े के अग्र भाग को अपनी जीभ से चाट लेती.
मैं उसके लण्ड को खड़ा ही रखना चाहती थी। अमर ने अपने हाथों से मेरे मम्मों को साइड से पकड़कर, लण्ड के ऊपर दबाते हुए, मेरे मम्मों को चोदने लगा। इस बीच मेरा भी एक हाथ मेरी चूत पर पहुँच गया, और मैं उस हाथ की ऊँगलियों को चूत की पनिया रही फ़ाँकों पर लगे जूस से गीला करने लगी।
“ये देखो?” मैंने अमर को अपनी चुत में डूबी ऊँगली दिखाते हुए कहा। और अमर की वासना में लिप्त आँखों के सामने ही अपनी जीभ से चाटकर साफ़ कर दिया, और मेरी जीभ अमर के लण्ड से निकले वीर्य और मेरी चूत के रस के मिश्रित स्वाद का मजा लेने लगी।
अमर ऐसा होता देख और ज्यादा उत्तेजित हो गया, और तेजी से अपने लण्ड को मेरे मम्मों के बीच की दरार में अंदर बाहर करने लगा। अपने बेटे के लण्ड को अपने मम्मों के बीच की मुलायम खाई में फ़ँसाकर, मैं एक बार फ़िर से अपनी ऊँगली से चूत से टपक रहे रस में भिगोने लगी।
और एक बार फ़िर से मादक आवाज निकालते हुए और अमर को तरसाते हुए उस ऊँगली को चाटा तो अमर गुर्राते हुए और जोरों से मेरे मम्मे चोदने लगा। अमर का लण्ड हर सैकेण्ड और ज्यादा कड़क होता जा रहा था, और मैं उसे अपनी मादक और कामुक अदाओं से और ज्यादा तरसा रही थी।
”म्म्म्म्ह्ह्ह्… टेस्टी है,” मैं कामुक अंदाज में बोली, और चूत के रस में गीली दूसरी ऊँगली को अपने होंठों पर रख लिया, ”तुमको पता है, मेरी चूत का रसीला पानी बहुत टेस्टी है… और अब तुम्हारे वीर्य से मिक्स होकर तो और भी ज्यादा अच्छा लग रहा है, बेटा।”
”हाँ मुझे पता है मम्मी,” मेरे मम्मों के बीच अपने लण्ड को जोरों से पेलता हुआ अमर बोला, ”आपकी चूत तो वाकई में बहुत टेस्टी है मम्मी।” और एक पल के लिये मेरे मम्मों को चोदना रोक कर वो बोला, ”मेरा तो मन कर रहा है अभी इसी वक्त आपकी चूत के रस को थोड़ा चाट ही लूँ।
इससे पहले की मैं सम्भल पाती, अमर ने मेरी टाँगों के बीच अपना चेहरा घुसा दिया, और अपने होंठों से मेरी चूत की फ़ाँकों पर लगे रस को अपनी जीभ से चाटने लगा। लेकिन ऐसा करते हुए उसको संतुष्टी नहीं मिली, तो अमर ने मुझे गोदी में उठा लिया, और मेरे गुदाज माँसल चूतड़ों को मसलते हुए मुझे बैड पर लिटा दिया।
मैं किसी कच्ची कुँवारी लड़की की तरह उसकी इस हरकत से अचम्भित होते हुए खिलखिलाने लगी। जैसे ही मैं बैड पर लेती, मैंने अपनी टाँगें फ़ैला कर चौड़ी कर दिया, और जैसा वो चाहे वैसा करने के लिये, अमर के सामने मैंने अपने आप को प्रस्तुत कर दिया।
अमर के फ़ुँकारते हुए लण्ड को देखकर, मेरे मन में जल्द से जल्द उसको अपनी चूत में घुसवाने का मन करने लगा, और इसी इच्छा में मैं अपने होंठों को अपने दाँतों से काटने लगी। हाँलांकि उस वक्त अमर मन ही मन कुछ और ही करने की सोच रहा था।
”आप तो बहुत ज्यादा पनिया रही हो मम्मी!” अमर मेरी केले के तने मानिंद चिकनी जाँघों पर हाथ फ़िराते हुए, मेरी टाँगों के बीच आते हुए बोला। अमर मेरी पनिया कर रस से भीगी हुई चूत की दोनों फ़ाँकों और चूत के दाने को देखकर विस्मित हो रहा था। एक पल को उसकी नजर मेरी परोसी हुई सुंदर चूत से हटकर, ऊपर फ़ूले हुए चूत के दाने पर जाकर टिक गयी, और फ़िर वो मेरे शर्मा कर लाल हुए चेहरे को देखने लगा।
”मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि मैं अपने जीवन में पहली बार किसी चूत को चोदने जा रहा हूँ,” वो वासना में डूबकर उत्तेजित होकर हाँफ़ते हुए बोला, उसको अभी भी अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था। ”और वो चूत भी किसी और की नहीं आपकी है, मम्मी, बहुत मजा आ रहा है।”
अपने मम्मों को अपने हाथों से मसलते हुए, और अपनी टाँगों को और ऊपर उठाकर चौड़ा करते हुए, मैं अपने बेटे के सामने अपनी चूत चोदने के लिये परोस रही थी, मैंने फ़ुसफ़ुसाते हुए कहा, ”हाँ… बेटा… हाँआआ… चूस लो, चोद लो अपनी मम्मी की चूत को, जैसे चाहे जो चाहे कर लो बेटा हाँआआ!”
जैसे ही अमर अपनी जीभ लपलपाता हुआ मेरी चूत की तरफ़ बढा, मैं आनंदातिरेक में आहें भरने लगी। और जैसे ही उसने मेरी चूत को चाटना शुरू किया, मेरी आँखें स्वतः ही बंद हो गयी और मेरा पूरा बदन उत्तेजना में काँपने लगा।
उसने मेरी चूत की दोनों फ़ाँको को अपने मुँह में भर लिया, और सपर सपर कर मेरी चूत को चुमते हुए चूसने लगा। बेहद उत्तेजित होने के कारण, कुछ ही सैकण्ड में मेरी चूत ने झड़ते हुए अमर के मुँह पर ही पानी छोड़ दिया, और मैं चरमोत्कर्ष पर पहुँचते हुए अपनी निप्पल को मींजते हुए जोर जोर से आहें भरने लगी।
”ओह्ह्ह्ह्ह्… अमर बेटाआआ, हाँआआआ…!”
जैसे ही मैं अपनी गाँड़ को उठाकर उसके खुले मुँह की तरफ़ उछालने लगी, अमर पागलों की तरह अपनी मम्मी की चूत को चाटकर खाने लगा, और बरसों से किसी चूत के रस के प्यासे की तरह चूत के पानी को पीने लगा।
चूत के रस का स्वाद, मेरा कामुक अंदाज में कराहना, और अंततः अपनी मम्मी की चूत में लण्ड घुसाकर चोदने की आशा के साथ अमर मेरी चूत को दोगुने जोश के साथ चूसने लगा, और फ़िर उसने पहले एक और फ़िर दूसरी ऊँगली मेरी चूत में घुसा दी।
”हाँ बेटा, ऐसे ही!” मैं धीमे से बोली, लग रहा था कि मैं फ़िर से झड़ने वाली थी। ”बस ऐसे ही… ऐसे ही ऊँगली घुसाते रहो, बस ऐसे ही चाटते रहो! आहह्ह… तुम तो बहुत अच्छे से मजा दे रहे हो बेटा, अपनी मम्मी को!”
अमर पहले भी कई बार मेरी चूत को चूस और चाट चुका था, इसलिये वो मेरी हर हरकत से वाकिफ़ था, इसलिये इससे पहले कि मैं एक बार और झड़ जाती, अमर ने मेरी चूत को चाटना बंद कर दिया। मैं एक पल को नाखुश हो गयी। लेकिन फ़िर जैसे ही अमर ने अपनी जीभ से मेरी चूत के दाने को सहलाया, मेरे सारे बदन में एक तरंग सी दौड़ गयी और मेरे मुँह से जोर की आहह्ह निकल गयी।
”आह अमर बेटा!” मैं आनंदातिरेक में पूरे बदन को हिलाते हुए बोली, मेरा बेटा जो मजा मुझे दे रहा था वो अविस्मर्णीय था। जैसे ही अमर ने मेरी चूत में दो ऊँगलियाँ घुसाकर, चूत के दाने को अँगूठे से मसलना शुरू किया, मैंने बैडशीट को अपनी मुट्ठी में भर कर पकड़ लिया, और चीखते हुए बोली, ”आह्ह्ह्ह मेरा बेटा… हे भगवान…”
जब अमर ने मेरी चूत में ऊँगली घुसाना और जीभ से चाटना बंद किया, तब वासना मुझ पर पूरी तरह हावी हो चुकी थी। जब मैंने अपनी मस्ती में बंद आँखो को खोला तो अमर को मेरे चेहरे की तरफ़ देखते हुए पाया। जब वो मेरी नंगी गोरी चिकनी चौड़ा कर फ़ैली हुई टाँगों के बीच झुका तो उसके मुँह और ठोड़ी पर मेरे चूत का रस लगा हुआ था, और उसका लण्ड फ़नफ़ना रहा था।
”आप बहुत मस्त हो मम्मी, झड़ते हुए आप एक दम मदमस्त हो जाती हो,” वो मेरी जाँघों को सहलाते हुए मुस्कुराते हुए बोला।
”मूउआआ… मेरा प्यारा बेटा,” मैं बुदबुदाई। ”तू तो मेरा बहुत प्यारा बेटा है, मेरी कितनी तारीफ़ करता है और कितना अच्छा सैक्स करता है, मैं तो झड़ने को मजबूर हो जाती हूँ बेटा!”
ये सुनकर वो थोड़ा हँसा, मैं भी उसके साथ हँस पड़ी। मैंने उसकी नजर को मेरे चेहरे से हटकर मेरे मम्मों को घूरते हुए पाया, और उसके लण्ड को चूत की लालसा में फ़ुँकार मारते हुए देखकर मुझे मन ही मन खुशी हो रही थी। वो थोड़ा गम्भीरता से बोला, ”सचमुच मम्मी, मुझे आपके साथ प्यार, सैक्स करने में बहुत मजा आता है।
जब आप झड़ती हो ना, तब आप के चेहरे पर सुकून और प्रसन्नता देखकर मुझे अच्छा लगता है। उसकी आवाज में और आँखों मुझे सच्चाई प्रतीत हो रही थी, और शब्द मानो उसके दिल से निकल रहे थे। मैंने उसकी बात सुनकर सहमती में बस ”हाँ बेटा,” ही बोल पायी।
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मैं उसके प्यार का कोई सबूत नहीं माँग रही थी, लेकिन उसकी बातें मुझे अच्छी लग रही थीं। अपनी बाँहें फ़ैलाकर और टाँगें चौड़ी कर के मैं उसको आमंत्रित करने लगी, और मुस्कुराते हुए फ़ुसफ़ुसाते हुए बोली, ”आ इधर आ, चिपक जा मुझसे, जकड़ ले मुझे।” अमर ने मेरे ऊपर आते हुए, अपनी माँ के खूबसूरत गठीले बदन को अपनी बाँहों में भर कर जकड़ लिया, और मैं भी उससे लिपट गयी। हमारे होंठ स्वतः ही पास आ गये, और हम दोनों प्रगाढ चुंबन लेने लगे।
मेरे मम्मे उसकी छाती से दब रहे थे, मैं चूमते हुए कराह रही थी और उसका लण्ड मेरी पनियाती चूत के मुखाने पर टकरा रहा था। जब हम माँ बेटे कामक्रीड़ा में मस्त थे, तब मैं अपनी गाँड़ को ऊपर ऊँचकाते हुए अपनी चूत की दोनों भीगी हुई फ़ाँकों को उसकी लण्ड की पूरी लम्बाई पर घिसते हुए, फ़ड़क रहे चूत के दाने को लण्ड के दबाव से मसलने लगी। ऐसा करते हुए हम दोनों मस्ती में डूबकर, एक दूसरे के जिस्म की जरूरत को पूरा करने का मनोयोग से प्रयास कर रहे थे। मेरी चूत में तो मानो आग लगी हुई थी। दोस्तों आगे की चुदाई अगले भाग में…