Sexy Dehati Gori Chudi
गंवार प्रेमी प्रेमिका सेक्स हेल्लो दोस्तों मैं आपका अपना दोस्त सतीश. कैसे है आप सब लोग दोस्तों आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामना. दोस्तों आपने मेरी कामुकता से भरी अन्तर्वासना कहानी 3 में पढ़ा होगा की कैसे धर्मेन्द्र और सरिता मेरे सामने ही अपनी चुदाई का खेल खेलने लगे और वो देख कर मैं गरम होने लगा. अब आगे – Sexy Dehati Gori Chudi
जब मैंने सरिता के नंगे स्तन देखे तो मैं पागल सा हो गया। मेरा मन किया की मैं भी अंदर घुस जाऊं और सरिता की चूचियों को चूसने लगूं और उसकी फूली हुई निप्पलों को काट कर लाल करदूँ। पर सब मुझे छोटा मानते थे।
धर्मेन्द्र लगा हुआ था तो मेरा नंबर कहा लगने वाला था? खैर, मैं मन मारकर अपने लण्ड को हिलाता हुआ, जो अंदर चल रहा था वह अद्भूत दृश्य देखने में जुट गया। धर्मेन्द्र के दोनों हाथ सरिता को चरम सीमा रेखा पर पहुंचाने में ब्यस्त थे।
सरिता की आँखें बंद थीं और वह पूरी तरह से धर्मेन्द्र के एक हाथ से उंगली चोदन और दूसरे हाथ से अपने स्तनों को जोश से दबवाने का उन्माद भरा आनंद अपनी आखें बंद कर महसूस कर रही थी। मुझे लगा की उसके बदन में अचानक जैसे कोई भूत ने प्रवेश किया हो ऐसे सरिता का बदन कांपने लगा।
मैं अचम्भे में पड गया की यह सरिता को क्या हो गया। सरिता के मुंहसे आह… आह… निकलने लगी। सरिता जो कुछ समय पहले धर्मेन्द्र से भाग रही थी अब धर्मेन्द्र को चोदने के लिए बिनती कर रही थी।
उस के मुंह से बार बार, “ओह… धर्मेन्द्र… आह… ओह… आह.. मुझे चोदो और.. और…” सरिता का बदन इतने जोर से हिलने लगा की साथ साथ मेरा पूरा पलंग भी उसके साथ हिल रहा था। और फिर अचानक एक झटके में वह शांत हो गयी।
इतनी फुर्ती से सरिता की टांगों के बिच में उसकी चूत में से अपने हाथ और उँगलियों को अंदर बाहर करते हुए धर्मेन्द्र भी थोड़ा सा थक गया था। थोड़ी देर के लिए दोनों शांत हो गए। मैंने देखा की सरिता पलंग पर से थोड़ी उठी और उसने धर्मेन्द्र को उसकी बाहों में लेने के लिए अपनी बाहें उठायीं।
धर्मेन्द्र खड़ा हुआ। उसका लंबा घंट जैसा लण्ड एकदम्म कड़क खड़ा हुआ था। वह अपना लण्ड एक हाथ से सेहला रहा था। सरिता ने धर्मेन्द्र का लण्ड अपनी एक हथेली में पकड़ा और उसे हिलाती हुई वह पलंग पर ठीक तरह से लम्बी होती हुई लेट गयी और तब उसने धर्मेन्द्र को उसके ऊपर चढने के लिए इंगित किया। “Sexy Dehati Gori Chudi”
धर्मेन्द्र सरिता के लेटे हुए नंगे बदन को देखता ही रहा। सरिता की हलके फुल्के बालों से छायी हुई उभरी हुई चूत उसके मोटे लण्ड को ललकार रही थी। धर्मेन्द्र ने लेटी हुई सरिता की टांगों को अपनी टांगों के बिच में लेते हुए अपने घुटनों के बल दो हाथ और दो पाँव पर झुक कर सरिता के नंगे बदन को निहार ने लगा।
नग्न लेटी हुई सरिता गज़ब लग रही थी। सरिता ने अपने दोनों हाथों को लंबाते हुए धर्मेन्द्र का सर अपने हाथों में लिया और धर्मेन्द्र का मुंह अपने मुंह से चिपका कर उसके होंठ अपने होठों से चिपका दिए।
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दोनों पागल प्रेमी एकदूसरे से चिपक गए और एक अत्यंत गहरे घनिष्ठ अन्तरङ्ग चुम्बन में लिप्त हो गए। धर्मेन्द्र का लण्ड तब दोनों के बदन के बिच सरिता की जांघों के बिच था। वह सरिता की गीली चूत पर जोर दे रहा था। उनका चुम्बन पता नहीं कितना लंबा चला।
थोड़ी देर के बाद सरिता ने धर्मेन्द्र का मुंह अपने मुंह से अलग किया। मुझे दोनों की गहरी साँसे कमरे के बाहर खड़े हुए भी सुनाई पड़ रही थी। इतना लंबा चुम्बन करने के समय दोनों की साँसे रुकी हुई थी सो अब धमनी की तरह ऑक्सीजन ले रही थी। “Sexy Dehati Gori Chudi”
सरिता ने धर्मेन्द्र की आँखों में आँखें मिलाई और थोड़ा सा मुस्कुरा कर बोली, ‘देख पगले! कुछ पाने के लिए मेहनत तो करनी पड़ती है। अब मुझे देखता ही रहेगा या फिर अपनी मर्दानगी का अनुभव मुझे भी कराएगा? मैं भी तो देखूं, तू कैसा मर्द है?”
धर्मेन्द्र चुप रहा। उसने फिर झुक कर सरिता के लाल होठों पर अपने होंठ रख दिए और थोड़ा सा उठकर अपने घोड़े से लण्ड को ऊपर उठाया। सरिता ने धर्मेन्द्र का लण्ड अपनी हथेली में लिया और उसे हलके से हिलाते हुए धीरे से अपनी चूत के केंद्र बिंदु पर रखा।
फिर थोड़ा ऊपर सर करके सरिता धर्मेन्द्र के कानों में बोली, “देख, अब तू तेरे यह मरद को धीरे धीरे ही घुसेड़ियो। तेरा लण्ड कोई छोटा नहीं है। मेरी बूर को फाड़ न दे।” सरिता फिर पहली बार धर्मेन्द्र से डरी, दबी हुई प्यार भरे लहजे में बोली.
“देख यार, अच्छी तरह उसे गीला करके हलके हलके डालियो। ध्यान रखना अब मैं और मेरी यह चूत सिर्फ मेरी नहीं है। यह तेरी भी है। अब यह जनम जनम के लिए तेरी हो गयी। जब तू चाहे इसका मजा ले सकता है।”
धर्मेन्द्र सरिता को देखता ही रहा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था की उस दिन तक जो सरिता उसकी रातों की नींद हराम कर रही थी और जो सरिता उससे भाग रही थी उस को अपने पास फटक ने नहीं दे रही थी. “Sexy Dehati Gori Chudi”
वही सरिता कैसे उससे इतने प्यार से भीगी बिल्ली की तरह अपनी टांगें उठाकर उसे बिनती कर रही थी और उससे चुदवाने के लिए उत्सुक हो रही थी। धर्मेन्द्र को भी एहसास हुआ की अब वह कोई साधारण छैला नहीं रहा। अब उसकी सपनों की रानी उस दिन से तन और मन से उसकी हो गयी थी।
अब उसे सरिता के पीछे दौड़ने की जरुरत नहीं थी। वह जान गया की जवानी की जो आग उसके बदन में लगी हुई थी वही आग सरिता के बदन में भी लगी हुई थी। उस सुबह वह सरिता के पीछे भागने वाला सड़क छाप रोमियो नहीं बल्कि सरिता का प्रेमी बन गया था।
सरिता अब जनम जनम की उसकी संगिनी बनाना चाहती थी। धर्मेन्द्र भी तो यही चाहता था। पर शायद धर्मेन्द्र प्यार की जो शरारत भरी हरकतें सरिता ने उसके साथ और उसने सरिता के साथ तब तक की थीं उसकी उत्तेजना खोना भी नहीं चाहता था।
धर्मेन्द्र ने भी उसी प्यार भरे लहजे में कहा, “देख मेरी छम्मो। तुझे तो मेरी बनना ही है। मैं तुझे छोडूंगा नहीं। पर इसका मतलब यह नहीं है की हमारे बिच जो यह लुका छुपी कहो या पकड़म पकड़ी का खेल चलता आ रहा था वह ख़तम हो जाए। यह तो जारी रहना चाहिए। तुझे तेरे पीछे भागके पकड़ कर चोदने ने का जो मजा है वह मैं खोना नहीं चाहता।” “Sexy Dehati Gori Chudi”
यह सुनकर सरिता का अल्हडपन सुजागर हो गया। वह धर्मेन्द्र के नंगे पेट पर अपना अंगूठा मार कर बोली, “साले, एक तरफ मुझे चोदना चाहता है, और फिर कहता है की मैं भाग जाऊं और तू मुझे पकड़ ने आये? अरे साले तू सरिता को नहीं जानता।
मेरे पीछे भागने वाले बहुत हैं। तू मुझे क्या पकड़ता। यह तो मुझे तुझ पर तरस आ गया और मैं जानबूझ कर तुझसे पकड़ी गयी। अब चल जल्दी कर वरना मैं कहीं भाग निकली तो तू फिरसे हाथ मलता रह जाएगा।“
धर्मेन्द्र अपनी मुस्कान रोक न सका। उसे अच्छा लगा की उसकी सरिता कोई साधारण औरत नहीं थी की वह किसी भी मर्द की चगुल में आसानी से फँसे। उसे यह भी यकीन हो गया की आगे की उसकी राह उतनी आसान नहीं रहने वाली की जब उसका जी चाहे तो सरिता उससे चुदने के लिए अपने पाँव फैलाकर सो जायेगी।
उसे वही मशक्कत करनी पड़ेगी जो उसने तब तक की थी। धर्मेन्द्र ने कहा, “ठीक है मेरी रानी। अब ज़रा मैं तेरी जवानगी का और तु मेरी मर्दानगी का मजा तो लें! हाँ मैं तेरा जरूर ध्यान रखूंगा तू चिंता मत करियो। ” “Sexy Dehati Gori Chudi”
ऐसा कह कर धर्मेन्द्र ने अपना कड़ा छड़ जैसा मोटा लण्ड सरिता की फैली हुई टांगों के बिच में उसकी उभरी हुई चूत के होठोंको के केंद्र बिंदु पर धीरे से सटाया। सरिता ने अपनी उँगलियों से अपनी चूत के होठों को फैलाया.
और धर्मेन्द्र के फौलादी लण्ड को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर थोड़ी देर के लिए अपनी चूत पर रगड़ा ताकी दोनों का पुरजोर झर रहा पूर्व रस से धर्मेन्द्र का लण्ड और उसकी चूत पूरी तरह सराबोर हो जाए और सरिता को धर्मेन्द्र के लण्ड के अंदर घुसनेसे ज्यादा पीड़ा न हो।
उसके बाद सरिता ने अपना पेंडू को ऊपर की और धक्का देकर धर्मेन्द्र को यह संकेत दिया की वह उसका लण्ड अंदर घुसेड़ सकता है। धर्मेन्द्र ने जैसे ही अपना लण्ड सरिता की चूत में थोड़ा सा घुसेड़ा की अनायास ही सरिता के मुंह से निकल गया, “धीरे से साले यह मेरी चूत है। तेरे बाप का माल नहीं है।”
धर्मेन्द्र अपनी हंसी रोक न सका। उसने एक धक्का मारा और अपना लण्ड थोड़ा और घुसेड़ा। सरिता अपनी आखें मूँदे धर्मेन्द्र के छड़ का उसकी चूत में घुसने का इंतजार कर रही थी। मुझे दोनों की यह प्रेमक्रीड़ा का पूरा आनंद लेना था। मेरा लण्ड भी एकदम कड़क और खड़ा हो गया था। “Sexy Dehati Gori Chudi”
मैं दरवाजे करीब पहुँच गया और छुप कर दोनों को देखने लगा। मेरा पलंग दरवाजे के एकदम करीब ही था और मुझे दोनों प्रेमियों की हर हरकत साफ़ दिख रही थी और उनका वार्तालाप साफ़ सुनाई दे रहा था। मैं सोच रहा था की शायद वह दोनों मुझे देख नहीं रहे थे।
पर मैंने एक बार देखा की सरिता अपनी टांगें उठाकर धर्मेन्द्र के कन्धों पर रखे हुई थी और उसकी फैली हुई चूत मैं साफ़ देख रहा था तो उसने मुझे आँख मारी। मैं हतप्रभ रह गया। शायद मुझे सरिता ने चोरी से छिप कर उन दोनों को देखते हुए पकड़ लिया था।
पर उसके बाद जब धर्मेन्द्र ने अपना लण्ड सरिता की चूत में थोड़ा और घुसेड़ा तब सरिता के मुंह से सिसकारी निकल ही गयी। उसे बोले बिना रहा नहीं गया, “साले कितना मोटा है तेरा लण्ड। मेरी चूत फाड़ देगा क्या? साले धीरे धीरे डाल।”
सरिता की दहाड़ सुन कर मुझे हँसी आगयी। मैं अपने मन में सोच रहा था, “यह लड़की कमाल की है. चुदते हुए भी अपनी दादागिरी और अल्हड़पन से वह बाज नहीं आती। कोई और लड़की इसकी जगह होती तो चुप रहकर चुदने का मजा ले रही होती।”
धर्मेन्द्र ने उसका कोई जवाब न देते हुए एक हल्का धक्का और मारा की उसका आधा लण्ड सरिता की चूत में घुस गया। सरिता के मुंहसे आह.. निकल पड़ी पर वह और कुछ न बोली। धर्मेन्द्र ने फिर अपना लण्ड वापस खींचा और फिर एक धक्का और दिया। “Sexy Dehati Gori Chudi”
उस बार सरिता ने अपनी आँखें जोर से भिंच दीं। शायद उसने सोचा जो होता है होने दो। धर्मेन्द्र ने जब एक आखिरी धक्का और दिया और तब उसका फैला हुआ मोटा लण्ड सरिता की चूत में करीब करीब घुस ही गया तब सरिता के मुंह से कई बार “आह… आह… आह…” निकल गयी पर उस “आह..” में दर्द कम और रोमांच ज्यादा लग रहा था।
जब धर्मेन्द्र ने सरिता को चोदने ने की गति थोड़ी सी बढ़ाई तो सरिता के मुंह से बार बार “आह… आह… उँह…” निकलने लगा। वह दर्द की पुकार नहीं बल्कि सरिता को अपनी पहली चुदाइ का जो अद्भुत अनुभव हो रहा था उसका जैसे पुष्टिकरण था।
शायद उसके मन में यह भाव आरहा होगा की तब तक उसने धर्मेन्द्र को उकसाने की जेहमत की थी, वह इस चुदवाने के उन्मत्त अनुभव से सार्थक नजर आ रही थी। एक लड़की जो पहली बार चुदने में अद्भुत अनुभव पाने की आशा रखती है, जब उसे चुदने के समय वैसा ही अनुभव होता है तो उसके मन का जो हाल हो रहा होगा वह सरिता की यह “आह.. हम्फ … उँह…” से प्रतिपादित हो रहा था।
धर्मेन्द्र की शक्ल भी देखते ही बनती थी। वह आँखें मूंदे सरिता की चिकनाहट भरी गीली चूत में अपना मोटा लण्ड पेले जा रहा था। वह भी सरिता को चोदने का अद्भुत अनुभव का आनन्द ले रहा था। उसके हाथ सरिता के दोनों पके हुए फल सामान गोलाकार स्तनों को कस के दबा रहे थे। “Sexy Dehati Gori Chudi”
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सरिता के स्तनों को धर्मेन्द्र इतनी ताकत से पिचका रहा था जो उसकी उत्तेजना और आतंरिक उत्तेजित मनोदशा का प्रतिक था। मुझे लगा की कहीं धर्मेन्द्र के नाख़ून सरिता के स्तनों को काट न दे। सरिता के स्तन धर्मेन्द्र के दबाने से एकदम लाल दिख रहे थे। सरिता के स्तनों की निप्पलं फूली हुई और धर्मेन्द्र की हथेली से बाहर निकलती साफ़ दिख रही थीं।
धर्मेन्द्र का पूरा फुला हुआ लण्ड सरिता की चूत में ऐसे अंदर बाहर हो रहा था की देखते ही बनता था। दोनों के रस से लिपटा हुआ धर्मेन्द्र का लण्ड सुबह के प्रकाश में चमक रहा था। सरिता की चूत दोनों के रस से भरी हुई थी। धर्मेन्द्र का लण्ड जैसे ही सरिता की चूत में जाता तो एकदम उनका रस चूत में से बाहर निकल पड़ता।
मैं जहां खड़ा था वहाँ से सरिता की चूत की ऊपर वाली गोरी पतली त्वचा जो लण्ड के बाहर निकलने पर बाहर की और खिंच आती थी और जब धर्मेन्द्र का लण्ड सरिता की चूत में घुसता था तो वह पतली सी त्वचा की परत वापस सरिता की चूत में धर्मेन्द्र के लण्ड के साथ साथ चली जाती थी। “Sexy Dehati Gori Chudi”
मेरा कमरा उन दोनों की चुदाइ की “फच्च फच्च” आवाज से गूंज रहा था। दोनों की “उन्ह… आह… ओफ्….. हम्म… ” की आवाज “फच्च फच्च” की आवाज से मिलकर मेरे कमरे में एक अद्भुत ड्रम के संगीतमय आवाज जैसी सुनाई दे रही थी।
मैं अपने जीवन में पहली बार किसी की चुदाई का दृश्य देख रहा था। मुझे पता नहीं था की किसी औरत की चुदाइ देखना इतना उत्तेजक हो सकता है। धर्मेन्द्र और सरिता दोनों के चेहरे के भाव अनोखे थे।
धर्मेन्द्र उत्तेजना से भरा अपनी सहभोगिनि को कैसे ज्यादा से ज्यादा उन्माद भरे तरीके से चोद सके उस उधेड़बुन में था. और साथ साथ स्वयं भी उसी उन्माद का अनुभव भी कर रहा था। जब की सरिता पलंग पर लेटी हुई, धर्मेन्द्र के करारे लण्ड का उसकी चूत की गहराईयों में होते हुए प्रहार का आनंद अपनी आँखें मूँदे ले रही थी।
उन दोनों में सो कौन ज्यादा उत्तेजित था यह कहना नामुमकिन था। जैसे जैसे धर्मेन्द्र ने अपने लण्ड को सरिता की चूत में पेलने की गति बढ़ाई वैसे ही सरिता के मुंह से आह… आह… ओह… हूँ… आअह्ह्ह… इत्यादि आवाजें जोर से निकलने लगी। “Sexy Dehati Gori Chudi”
सरिता को किसी भी तरह के दर्द का एहसास नहीं हो रहा था यह साफ़ लगता था। धर्मेन्द्र के इतने मोटे लण्ड ने सरिता की चूत को पूरा फैला दिया था और उसका लण्ड अब आसानी से सरिता की चूत में भाँप चालक कोयले के इंजन में चलते पिस्टन की तरह अंदर बाहर हो रहा था।
इतना ही नहीं, ऐसा लग रहा था जैसे सरिता भी अपना पेडू उछाल उछाल कर धर्मेन्द्र के लण्ड को अपनी चूत के कोने कोने से वाकिफ कराना चाहती थी. धीरे धीरे सरिता की आह… की सिसकारियां बढ़ने लगीं। धर्मेन्द्र का लण्ड जैसे जैसे सरिता की चूत की गहराईयों को भेदने लगा वैसे वैसे सरिता की चीत्कारियाँ और बुलंद होती चली गयीं।
सरिता जोर से धर्मेन्द्र को “हाय… ओफ्फ… ओह… ऊँह…” के साथ साथ “ऊँह…साले…”
तो कभी “ओह…क्या चोदता है।“
और फिर थोड़ी देर बाद फिरसे, ” ओफ्फ… गजब का चोदू निकला तू तो यार। “ चोद, और जोर से चोद। आह…मजा आ गया।” की आवाजें और तेज होने लगी।
“ऊई माँ….. मर गयी रे….. यह मुझे क्या हो गया है….? अरे बापरे…. आह…. ऑय….. ” सरिता की आवाजें सुनकर ऐसा लग रहा था की वह झड़ने वाली थी। उधर धर्मेन्द्र के माथे से पसीने की बूंदें बहनी शुरू हो गयी थी।
धर्मेन्द्र ने भी अपनी आँखें मुंद ली थीं और वह बस अपने पेंडू को जोर से धक्का देकर अपना लण्ड फुर्ती से पेल रहा था और उसके ललाट पर बनी सिकुड़न से यह साफ़ लग रहा था की वह भी अपने चरम पर पहुँचने वाला था। “Sexy Dehati Gori Chudi”
थोड़ी ही देर में धर्मेन्द्र भी, “आह….. सरिता रे….. आह… ऑफ…. मैं झड़ रहा हूँ रे… अब रोका नहीं जा रहा….” ऐसी आवाज के साथ ऐसा लगा जैसे अपने वीर्य का एक बड़ा फव्वारा उसके लण्ड से पिचकारी सामान छूट पड़ा। उधर सरिता भी, “हाय रे… मैं भी….. गयी काम से….. जाने दे… छोड़ साले… जो होगा देखा जाएगा…. ”
कहते ही सरिता एकदम थरथराती हुई बिस्तर पर मचलने लगी। उसके मुंह से हलकी सी सिसकारियां निकलने लगी। धर्मेन्द्र ने अपना लण्ड सरिता की चूत में ही रखते हुए अपना सर निचे झुका कर सरिता के होठों पर अपने होंठ रख दिए और सरिता को अपनी बाहों में लेकर वह उसे बेइंतेहा चूमने लगा।
ऐसा लग रहा था जैसे अपने प्रेम का महा सागर सरिता की चूत में उंडेलकर धर्मेन्द्र सरिता को अपने से अलग करना नहीं चाहता था। सरिता भी अपनी गोरी गोरी नंगी टाँगें धर्मेन्द्र के कमर को लपेटे हुए उसके पुरे बदन को ऐसे चिपक रही थी जैसे एक बेल गोल घूमते हुए एक पेड से चिपक जाती है। “Sexy Dehati Gori Chudi”
दोनों पाँवको कस कर दबाने से धर्मेन्द्र का लण्ड सरिता की चूत में और घुसता जा रहा था। सरिता की कमर से निचे की और धर्मेन्द्र के लण्ड की मलाई बह रही थी और मेरी चद्दर को गीला कर रही थी। “Sexy Dehati Gori Chudi”
दोनों झड़ चुके थे और अत्यंत उत्तेजना पूर्ण चुदाई करने से साफ़ थके हुए भी थे और गहरी साँसे ले रहे थे। धर्मेन्द्र का बदन गर्मी में परिश्रम के कारण पसीने तरबतर था। सरिता धर्मेन्द्र को अपने से अलग नहिं करना चाहती थी।
अपनी नंगी टांगों के अंदर धर्मेन्द्र के धड़ को अपने अंदर और दबाते हुए सरिता बोली, “साले, अब तूने जब अपनी मलाई मेरे अंदर ड़ाल ही दी है तो मैं तेरे बच्चे की माँ भी बन सकती हूँ। अब तो मैं तुझे नहीं छोडूंगी। पहले मैं तुझे पास फटकने नहीं देती थी। अब मैं तुझे दूर जाने नहीं दूंगीं। अब तो मैं तेरे बच्चे की माँ ही बनना चाहती हूँ। अगर आज नहीं बनी तो फिर सही। पर मैं अब तेरे बच्चे की ही माँ बनूँगी। तू क्या बोलता हे रे?”
धर्मेन्द्र सरिता की कोरी गंवार भाषा सुनकर हंस पड़ा और बोला, “अरे यहां कौन तुझे छोड़ने वाला है, साली? अब तो मैं तुझे माँ बना कर ही छोडूंगा। साली तुझे मैं ब्याह के घर ले आऊंगा और रोज चोदुँगा और कभी नहीं छोडूंगा। अब मुझसे भागके दिखा साली। बड़ी भाग जाती थी पहले।”
मेरे से उन दोनों प्रेमियों की बाते सुनकर हंसी रोकी नहीं जा रही थी। धर्मेन्द्र और सरिता ने मुझे देखा तो था ही। धर्मेन्द्र ने मुड़कर मेरी और देखा और बोला, “छोटे भैया, देखा न? बड़ी भगति थी छमियाँ मुझसे। अब कैसे फँस गयी साली? देखा न कैसे उछल उछल कर चुदवा रही थी साली? पहले से ही उसको मेरा लण्ड चाहिए था। पर मांगने की हिम्मत नहीं थी।” “Sexy Dehati Gori Chudi”
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मैं उन दोनों प्रेमियों के प्रेम के सामने नत मस्तक हो गया। गँवार, रूखी और तीखी जबान में भी वह एक दूसरे को कितना प्यार कर रहे थे। अचानक मैंने देखा की घर में चारो और पानी बह रहा था। जो पाइप धर्मेन्द्र ने टंकी में रखी थी उससे टंकी भर गयी थी और उसमें से पानी ऊपर से बहता हुआ पूरे घर में फ़ैल गया था। बल्कि मैं भी कुछ समय से पानी में ही खड़ा था। पर उन दो प्रेमियों की चुदाई देख कर कुछ भी ध्यान नहीं रहा था।
अचानक मैंने एक अद्भुत दृश्य देखा। धर्मेन्द्र और सरिता की चुदाई का सरिता की चूत से निकला हुआ धर्मेन्द्र के प्रेम रस की बूंदें टपक कर चारों और फैले हुए पानी में गिर और उसमें मिल कर एक नया ही रंग पैदा कर रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे धर्मेन्द्र की पाइप में से सरिता की चूत की टंकी में भरा हुआ प्रेम रस अब पुरे घर में फ़ैल रहा था। तब अचानक ही मुझे दरवाजे पर माँ की दस्तक और आवाज सुनाई दी। वह चिल्ला कर बोल रही थी, “अरे दरवाजा तो खोलो।” माँ कैसे जानती की सरिता ने अपना दरवाजा तो खोल ही दिया था। “Sexy Dehati Gori Chudi”