Aunty Malish Porn
तो कैसे है आपलोग, मुमानी-भांजे की सेक्स कहनी लेकर मैं फिर एक बार आपके सामने आया हूं। मैं आपका जुनैद, तो चलिए शुरू करते है बिना किसी भकचोदी के। रविवार का दिन था, सुबह के 11 बज रहे थे, घरपर मैं, मेरा छोटा भाई, और मेरे मम्मी-पापा हम सब बैठ कर नाश्ता कर रहे थे। लगभग 11.10 के करीब मम्मी के मोबाइल पर एक फोन आया। Aunty Malish Porn
मम्मी “जुनैद ज़रा उठ तो देख किसका फोन आया है।” मैंने समोसे का एक बड़ा का टुकड़ा मुँह में भर दिया और उठ कर बैडरूम में गया, मोबाइल पलंग पर उल्टा पड़ा हुआ था, मैंने देखा किसका फ़ोन आया है नाम पढ़ा और मम्मी से कहा कि लो फिरदौस मुमानी का फ़ोन आया है और वापीस अपने जगह पर बैठ गया।
मैं फिरसे नाश्ता करने लग गया। वहा मम्मी के गप्पे फिरदौस मुमानी के साथ चल रहे थे फ़ोन पर और मैं बैठे बैठे नाश्ता करते हुए टीवी देख रहा था। काफी देर मम्मी ने फिरदौस मुमानी और मेरे मामू से बात करने के बाद मम्मी ने मुझे अपने कान पर अपना फोन थमा दिया, मेरा बिल्कुल भी बात करने का मूड नही था, “ले अपने मामू से बात कर देख वो क्या कह रहे है”, मम्मी मुझसे कहने लगी।
मैंने जैसे तैसे फोन सम्भाला और नीची स्वर में बड़े ही आलस के साथ मामू को सलाम किया, “वालैकुम अस्सलाम भांजे” जवाब में मामू ने कहा। “और भांजे, कैसी है तेरी तबियत, कैसी चल रही है तेरी कॉलेज में एमबीए की पढ़ाई?” “हा एकदम ठीक हु, तबियत भी एकदम मस्त है और कॉलेज तो एकदम मजेमें चल रहा है।”, मैंने जवाब दिया।
“बच्चे कैसे है? उनके स्कूल की पढ़ाई कैसे चल रही है, कोई दिक्कत तो नही आ रही?”, मैंने पूछ। “वो भी एकदम बढ़िया है, आजकल उन्हें टूशन्स भेज रहा हु तो पढ़ाई की कोई चिंता नही रही अब।” “फिरदौस मुमानी कैसी है, कई दिनों से उनसे बात नही हुई, उनके पैरों का दर्द ठीक हुआ या नहीं?”, मैंने कहा।
“नहीं भांजे, इसीलिए तो तुझसे मैं फ़ोन पर बात करना चाहता था, अब तू तो जनता है, तेरी फिरदौस मुमानी तो दिन भर बैच्चों के पीछे और घर के कामो में कितनी भाग दौड़ करती रहती है, और मैं भी दिन भर काम पर चला जाता हूं, शाम को आकर थके हारे सो जाता हूं.
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अगर तुझे वक़्त हो तो तू यह कुछ दिनों के लिए आजा और फिरदौस को अपने साथ अस्पताल ले जा, आखिर तू अपने लाडली मुमानी के लिए इतना तो कर ही सकता है, उम्मीद करता हु की तू कोई बहाना नही देगा।”, मामू मुझसे कहने लगे।
“ठीक है मामू परसो सुबह की ट्रेन पकड़कर मैं दोपहर तक घर पर आ जाऊँगा आप फिक्र मत करो। चलो अब फोन रखता है ध्यान रखिये, परसो मुलाकात होगी, खुदा हाफिज।”, और फोन काँट दिया। वैसे तो मुझे मामू के घर जाने बहुत बोर होता था, वहां मनोरंजन का कोई साधन भी नही था, उनके बच्चे भी कुछ काम के नही थे और वहा के मेरे सारे दोस्त भी एकदम भटके हुए थे।
जैसे तैसे मैंने सोमवार को अपनी बैग भारी, कुछ कपड़े दाल दिए, तभी मम्मी मेरे पास आई और एक डब्बा दिया और बोली कि तेरे मुमानी को ये डब्बा याद से दे दियो आम का अचार है इसमें फिरदौस को बहुत पसंद है, वो खुश हो जाएंगी और बाकी सारी तैयारी की और अगले दिन यानी मंगलवार को सुबह 7 बजे की ट्रेन पकड़ कर मैं मामू के शहर पहुंच गया।
रेलवे स्टेशन पर उतर कर, मैंने राजस्थानी मिठाई की दुकान से बैच्चों के लिए काजू कतली खरीदा अपने बैग में रखा और झट पट रिक्शा पकड़ कर घर के दरवाजे पर उतरा। रिक्शा वाले भैया को उसका किराया दिया और वो चला गया। घर की सीढ़ी चढ़ी और दरवाज़े पर पहुंच कर घंटी 2-3 बार बजाई, “अरे आई आई, जुनैद रुको थोड़ा मेरी रोटी जल जायेंगी।”, अंदर से आवाज़ आई।
मैं जब घरपर पहुंचा तो घड़ी में लग भग 10.30 बज रहे थे, कुछ ही पल में फिरदौस मुमानी ने दरवाज़ा खोला और चेहरे पर एक मुस्कान के साथ फिरदोस मुमानी ने मेरा स्वागत करते हुए बोली “अरे आओ आओ जुनैद, अस्सलामु अलैकुम, अंदर आओ, कैसा रहा सफर, बड़ी देर करदिये तुमने आने मे?”
“हा मुमानी, रास्ते मे रिक्शा जल्दी नही मिल रही थी, इसलिए कुछ देर तक पैदल चला और फिर रिक्शा पकड़ कर आगया। बाकी सफर एकदम अच्छा रहा कोई दिक्कत नही आई।”, मैंने जवाब दिया। “हा यहा कभी कभी रिक्शा जल्दी नही मिलपाती, जानेदो आगए घरपर, कैसे हो तुम?”, फिरदौस मुमानी मेरे हाथ मे पानी का गिलास देते हुए बाते करने लगी।
“मैं एकदम बढ़िया हु, आप सुनाओ आप कैसे है, मामू कह रहे थे कि पैरो का दर्द अबतक गया नही” “हा ना अब क्या करे, इन्हें तो बिल्कुल वक़्त नही मिल पाता काम के सिलसिले में और मैं भी अकेली पैड जाती हूँ, इसलिए अबतक डॉक्टर को दिखा भी नही पाई”, फिरदौस मुमानी ने जवाब दिया।
ये लो मुमानी यह कहकर मैंने पानी का गिलास फिरदौस मुमानी के हाथ मे थमाया और बैग की चैन खोलकर मिठाई का डिब्बा निकालकर वो भी उनके हाथों में थमा दिया। “अरे इसकी क्या ज़रूरत थी, तुम यहाँ आए यह ही काफी है”.
फिरदौस मुमानी बोली, “रहने दो बच्चे आएंगे तब उन्हें दो वरना वो कहेंगे कि उनके भाई आई तो कुछ भी नही लाए, बड़े उम्मीद से देखते है कोई भी बच्चे जब कोई मेहमान बाहर से आता है तो”, यह सुनकर फिरदौस मुमानी मुस्कुराते हुए बोली “चलो ठीक है, भाई के हाथ की मिठाई खा कर बच्चे बीबी खुश हो जाएंगे.
अब जाओ और हाथ मुँह धो कर फ्रेश हो जाओ तब तक मैं खाना बनाकर किचन का सारा काम खत्म करदेती हु फिर सब साथ मे बैठकर खाना खाएंगे। मैं उठा अपने कपड़े बदले और हमाम में जाकर हाथ मुँह धो आया तभी बच्चे स्कूल से लौटे, “जुनैद भाई आए, जुनैद भाई आए” की आवाज़ ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते हुए बच्चे घरमें लौटे और दहलीज में ही बस्ता फेंक कर दोनों ही मुझसे गलेसे लिपट गए।
दोपहर के करीब 2 बजे मैं, दोनो बच्चे और फिरदौस मुमानी खाना खाने साथ मे बैठे, मुमानी ने खानेमें मटर पनीर की सब्ज़ी बनाई थी, मैंने जैसे ही उसे चखा तो मुँह में स्वाद की लहर सी आगयी, एकदम लज़ीज़, “क्या बात है मुमानी, आज तो आपने मटर पनीर की सब्ज़ी बहोत ही बढ़िया बनाई है, खाते ही मुँह में स्वाद की मानो जैसे पार्टी हो गई”.
“हा भाई अम्मी मटर पनीर बहोत मस्त बनाती है”, मुमानी के बड़े बेटे ने कहा। मैं ये बतादूँ की मेरी फिरदौस मुमानी को दो बच्चे थे दोनो लड़के ही थे, बड़ा वाला चौथे कक्षा में पढ़ता था तो चोटा वाला पहली कक्षा में पढ़ता था। मैं उनको हमेशा अपने साथ घुमाने ले जाता था और चॉकलेट दिलाता रहता था तो वह भी मुझसे प्यार से पेश आते और मुझ काफी चाहते थे।
फर शाम हुई मैं बाहर टहलने निकला तो देर तक घर नही आया, रास्ते मे मुझे कुछ दोस्त बीबी मिलगये तो मैं वही घर से थोड़ी दूर मैदान में दोस्तो के साथ मिल जुल कर गप्पे लड़ाते हुए बैठ गया। जैसे कि मैंने कहा कि मेरे दोस्त थे एकदम भटके हुए वो अक्सर शौख के तौर पर कभी सिगारेट पिया करते थे कभी गांजा फुक करते थे तो कभी कुछ नशा किया करते थे.
मैं बैठा बैठा वही अपने दोस्तों के साथ गप्पे लड़ा रहा था कि अचानक अशोक ने एक आंटी को बाजार की थैली ले जाते हुए ताड़ना शुरू किया, “अरे जुनैद, ज़रा उधर तो देख क्या माल जा रहा है, काले बुरखे में”, मैं हड़बड़ाहट में देखने लगा, पर मुझे वो दिखाई नही दी। “कहा है वो अशोक मुझे नही दिख रही है”, मैंने अशोक से कहा।
“क्या जुनैद तू भी पागल है एकदम, जल्दीसे देखना चाहिए था ना, ऐसा माल तो कभी नही देखा मैंने अपनी ज़िंदगी मे, क्या लचकती हुई कमर थी और चलते हुए उसके नितंब तो मेरे आंखों को जैसे कहरहे थे की आ अशोक मुझसे खेलने लग जा, कसम भगवान की अगर एक रात के लिए मुझे वो मिल जाए तो……”, अशोक ने मुझ से कहा।
मैंने उसे कहा भाई अबतो मुझे वो माल देखना ही है जल्दी से मोटरसाइकिल निकाल। मैं और अशोक मोटरसाइकिल पर बैठ गए अशोक ने गाड़ी को किक मारकर शुरू की, और हम दोनो बाजार में जाकर उस औरत को पीछे से घूरने लगे, उसका फिगर देखकर मेरा भी मन ललचाने लगा। मेरे लिंग में भी कमाल की हलचल होने लगी।
“अरे भाई दूर से मज़ा काम आरहा है, चल तो ज़रा मोटरसाइकिल नज़दीक ले आज तो उसे आंखों से पी लेना है मैंने”, मैंने अशोक से कहा और हम उस औरत के पास जाकर खड़े हो गए। जैसे ही हम उसे फिरसे पीछे से ताड़ने लगे उतने में वो औरत पलटी, चेहरा देखा तो पता चला कि वो मेरी ही फिरदौस मुमानी है। मैं चौक गया।
“चल चल चल चल, अशोक जल्दी यहा से गाड़ी निकाल।” “अरे भाई पर हुआ क्या?” “तू गाड़ी निकाल, चल यह से।” हम वापिस मैदान में आए तो मैंने उसे बताया कि जिसे हम पूरी हवस के नज़रो से कुत्तो की तरह ताड़ रहे थे वो मेरी मामी थी। “अरे भाई, सॉरी जुनैद, वो गलती से मैंने ऐसे देख लिया, भाई माफ कर दे।”
“कोई ना, मैं वैसे भी कौनसा दूध का धुला हुआ हूं, कोई बात नही, चल छोड़।”, मैंने अशोक से कहा। यह कहकर मैं खुद मन ही मन मे सोचने लगा कि इतने दिनों से मैं फिरदौस मुमानी के साथ रहता हूं, आज तक मैन क्यों नही मुमानी के बारेमे सोचा ऐसे, क्यों नही मैंने उन्हें गंदी नज़रो से देखा। मैं अपने ही खयालो में खो गया और वहां से निकल आया।
रात को मैं दोस्तो से मिलकर घूम फिर कर देरसे घर आया, करीब 11 बज रहे थे, मामू घर पर आ गए थे, जैसे ही मैं अंदर आया तो फिरदौस मुमानी बोली, “कहा रह गए थे तुम जुनैद हम कबसे तुम्हरा खाने पर इंतेज़ार कर रहे थे, बच्चे तो रुक नही पाए वो तो सो भी गए।” “हा मुमानी, दोस्तो के साथ बैठा था, काफी दिनों बाद मिले तो वक़्त का पता ही नही चला”, मैंने मुमानी से कहा।
फिर हम साथ मे खाना खाने बैठे, मैं, मामू और मुमानी। खाना खाने के बाद मुमानी रसोई में अपना काम खत्म करने चली गयी और मैं मामू के साथ गप्पे लगते हुए बैठा था। काम खत्म करकर मुमानी अपने कमरे में जाकर कपड़े चेंज कर आई और मेरा बिस्तर दूसरे कमरे में लगा दिया और मुमानी सोने चली गयी।
मामू और मैं बैठे बैठे बाते ही कर रहे थर की उतने में मामू बोल पड़े “देखा जुनैद, फिरदौस दिन भर कितना काम करती रहती है, शाम को थक कर सो जाती है, और मैं भी दिन भर बिजी रहता हूं, तू एक काम कर कल दोपहर को तेरी मुमानी को अस्पताल ले जा मैं कल काम से मुम्बई जा रहा हु परसो सुबह तक लौट आऊंगा, तब तक तू इन तीनो का खयाल रख।”
“ठीक है मामू आप फिक्र मत करो मैं कल ले जाऊंगा”, मैंने मामू से कहा और सोने चला गया। मामू भी उठे और सोने चले गए। मैं कमरे में गया लाइट बंध की फैन फुल स्पीड पर सेट किया और कम्बल ओढ़कर सोनेकी कोशिश करने लगा। कुछ देर करवटे बदली मगर नींद ही नही आ रही थी.
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मेरे आंखों के सामने बाजार में देखी फिरदौस मुमानी की लचकती हुई कमर और हिलते हुए नितंब आरहे रहे थे बहोत देर तक सोनेकी कोशिश करने के बाद मैंने अपना फ़ोन चाकू किया और वक़्त देखा तो घड़ी में 1 बज रहे थे फिर मैं पोर्न वेबसाइट पर गया कुछ अश्लील वीडियो देखें और मुठ मार कर अपना पानी फिरदौस मुमानी के याद में बहाया.
वही अलमारी में पड़ा हुआ मुमानी के दुपट्टे से अपना वीर्य पोछ लिया और सो गया। अगले दिन मैं करीब 9 बजे उठा तो देखा मामू सुबह सुबह ही मुम्बई चले गए थे और मुमानी नहा कर रसोई में काम करने लग गई और बच्चे स्कूल 8 बजे अपने वक़्त पर चले गए।
दोपहर का खाना खाकर बच्चोंको ट्यूशन छोड़ कर हम अस्पताल में चले गए डॉक्टर से मिले तो डॉक्टर ने कहा कि कोई बड़ी बात नही है काम के दबाव के कारण पैरो में दर्द हो रहा है कुछ दवाइया लिखी और पैरों पर तेल की मालिश करने को कहा। घर आते आते शाम हो गयी.
तो मैंने मुमानी से कहा कि अब इतनी देर हो गयी है अब आप कहा फिरसे रसोई में जाकर खाना बनाओगी ऐसा करता हु आज के दिन मैं होटल से खाना लेकर आता हूँ आज बाहर का खाना खाएंगे। मुमानी भी मान गयी और मैंने जैसा कहा वैसा ही किया। रात के करीब 8 बज रहे थे हमने साथ मे कहना खाया और बच्चे खाना खाकर बिस्तर में सोने चले गए।
मुमानी भी अपने कमरे में कपड़े बदलकर बिस्तर में लेट गयी और मैं मोबाइल में टाइमपास करते हुए इंस्टाग्राम के वीडियो देख रहा था तब अचानक याद आया कि डॉक्टर ने मुमानी को पैरो पर तेल की मालिश करने की सलाह दी थी जैसे ही मुझे याद आया तो मैं लपक कर मुमानी के कमरे में गया फिरदौस मुमानी आंख बंद कर कर लेटी हुई थी.
मैंने उन्हें आवाज़ दिया, “मुमानी आप सो गई क्या?” “अरे नही नही, बस लेटी हुई हु इतनी जल्दी कहा नींद आती है”, मुमानी अपना दुपट्टा सम्भालते हुए मुझसे कहने लगी। “मुमानी आप शायद भूल गयी, डॉक्टर ने आपको पैरों पर तेल की मलिश करने को कहा है वो करलो”, मैंने कहा। “नही अभी मन नही है मैं थक गई हूं थोड़ी देर लेटना चाहती हूँ”, मुमानी ने जवाब दिया।
“लाओ मैं मालिश करदेता हु आप आराम से लेटी रहो”, मैंने कहा। तब हल्के आवाज़ में मुमानी ने “ठीक है, तुम कर दो।” कहा। मैं जाकर तेल की बोतल ले आया और पलंग के पास अपने घुटनों पर बैठ गया। मुमानी ने गाउन पहन रखी थी और सीने पर दुपट्टा था, तेल लगाने के लिए मैंने उनका गाउन घुटनो तक ऊपर करदिया और उनके पैरों पर बोतल से तेल लगाकर मालिश करने लगा।
पहले दाहिने पैर पर मालिश की फिर बाए पैर पर मालिश करने लगा, मैंने पूछा “मुमानी अब कैसा काग रहा है?” मुमानी हल्के आवाज़ में कहने लगी “ओह्ह, आह, अब बेहतर लग रहा है, जैसे तुम्हारे हाथों में जादू है दर्द कम हो रहा है” मैंने देखा कि मुमानी तो आरामसे मेरे हाथों की मालिश का मज़ा ले रही है और होश में नही है.
मेरा भी मन कल जो बाज़ार में हुआ उसके बाद मुमानी पर ललचा रहा था इसलिए मैंने भी पूरे मन से मुमानी के पैरों की घुटने के नीचे मालिश की। कुछ देरतक मालिश करने के बाद मैंने मुमानी से पुछा “बस या और?” तो मुमानी बोली और करो अच्छा लग रहा है इसपर मैंने मुमानी की गाउन और कमर तक ऊपर तक उठा दी और मेरे आंखों के सामने मुमानी के गोरे गोरे तांग थे.
उनकी जांगे एकदम भारी हुई मेरे मन को मोक्ष की प्राप्ति कर रही थी मैन उनपर और तेल लगाया और उनके मंडी पर मालिश करना शुरू करदिया, मुमानी को काफी सुकून मिल रहा था। मगर मेरा मन तो कुछ और ही चाह रहा था मुमानी की खूबसूरत टांगो और जंगो के अलावा मुझे उनकी पैंटी भी दिख रही थी जो उन्होंने पहनी हुई थी.
मालिश करते करते कभी गलती बताकर मैं उनकी पैंटी पर भी हाथ मार दिया, तभी मुमानी अचानक थोड़ी क्रोधकी आवाज़ में बोलती “जुनैद ठीक से करो अपना हाथ संभालकर।” “जी मुमानी, आप चिंता मत कीजिये गलती से हुआ” कहकर मैं फिर जांघो पर मालिश करने लग जाता।
इतना सब देखनेके बाद, पिछली रात को मुठ मरनेके बाद, और मुमानी पर मेरा ललचाता हुआ मन इन सबपर मुझे मुमानी के साथ खेलने का बड़ा मन कर रहा था, मुमानी के साथ संभोग करने की वासना आरही थी। मैंने चालाकी से तेल की बोतल मुमानी के पैंटी पर उँड़ेल दी और उसे साफ करने के बहाने मुमानी के पैंटी पर हाथ लगाकर उसकी बुर को चुने का रास्ता बनाया।
जैसे कि तेल साफ करने के बहाने मैंने उनकी बुर पर हाथ लगाया तो मुझे उनके बुर की दरार महसूस हुई कोई देरी न करते हुए मैं उससे खेलने लगे। मुमानी ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली “ये क्या कर रहे तुम जुनैद, हाथ कहा है तुम्हरा उसे हटाओ वहासे” मैंने उनकी बातोंको अनसुना किया और उनकी बुर में उँगली डालकर अंदर बाहर करने लगा।
मुमानी उह आह की आवाज़ कर कर मुझे खुदसे छुड़ाने लगी मगर मैं नही रुकने वाला था अब। मुमानी ने लाख कोशिश की मगर मैंने उनके बुर के साथ अब शिद्दर से खेलना शुरू करदिया। “जुनैद तुम मुझे मरवाओगे, मैं तुम्हरे मामू के साथ निकाह में हूं, मैं उन्हें धोका नही दे सकती, ये सब जो तुम कर रहे हो वो बहोत गलत है, गुनाह है।”
मैंने सारी बातोंको अनसुना किया और मुमानी के दोनों टैंगो के बीच आगया और उनकी पैंटी उतार कर अपने जीभ से उनके बुर के ऊपर के दाने को चूसने लगा उनके बुर में जीभ डालकर सुकून देने लगा। “रुक जाओ जुनैद, बच्चे बगल में सो रहे है, हमारा रिश्ता इस तरह का नही है जो तुम कर रहे हो, तुम्हरे मामू को पता चलेगा तो वो मुझे पीट डालेंगे और तुम्हे भी।”
मुमानी ने खूब जान छुड़ाने की कोशिश की। तभी मैंने अपनी पैंट खोली और अपना खड़ा लंड मुमानी की बुर में अपना थूक लगा कर अंदर तक घुसा दिया। जैसे ही उन्हें ये महसूस हुआ, मैंने ज़ोर से उनके मुँह से एक “आहSSS…!!!!” की आवाज़ सुनी जो मुमानी ने ली।
फिर क्या था, मुमानी मेरे नीचे लेटी हुई थी मैं उनके ऊपर लेटकर खूब ज़ोर ज़ोर से उत्तेजना से मुमानी को धक्के मारने शुरू किए और हमारी चुदाई की शुरुवात हुई। “मेरी प्यारी मुमानी, आप अपने भांजे की इतनी खिदमत करती हो अब मेरी बारी है मेरी प्यारी मुमानी को अपने खिदमत से सुकून देनेका।” ये कहा और उनके स्तन को दबाते हुए मुमानी को ओंठो से ओंठो की पप्पी देने लगा।
यू हमारी किसिंग शुरू हुई। मुमानी तो जैसे पूरी तरह से मुझे समर्पित हो गयी थी और जमके मेरे लंड का मज़ा अपने बुर से लेने लगी। तभी मुझे खयाल आया कि ये 69 के बारेमे काफी सुना है लेकिन कभी ट्राय करने का मौका नही मिल पाया मैंने सोचा की अब मौका है सोचते रहा तो सोसहते ही रह जाऊंगा.
मैंने कि झट से मुमानी के चूत से अपना लंड बाहर निकाला और अपना सिर मुमानी के टांगो के बीच करलिया और उनकी चूत चाटने लगा मेरा खड़ा हुआ लंड मुमानी के आंखों पर छू रहा था अब मुमानी तो इस हाल में थी नही के वो खुद से मेरे लंड को अपने मुँह में डाले तो मैंने ही कहा मेरी प्यारी मुमानी ज़रा ऊना मुँह तो खोलो मुझे तुम्हे किस करना है.
मुमानी ने मुँह खोला और मैंने झट से अपने हाथ से मुमानी के मुँह में अपना लंड घुसेड़ दिया। पहले मेरा लंड मुमानी के बुर की सैर करकर बाहर आ चुका था और अब वो उनके मुँह में घुसा हुआ था जैसे ही मुमानी को उनके बुर का स्वाद मिला वो कुछ परेशान सी हुई और कहने लगी, “ये क्या अजीब सा स्वाद मेरे मुँह में आ रहा है?”
“मुमानी ये मेरा लॉलीपॉप है, बचपन मे तो आपने उसे बहोत चूसा होगा अब मेरा लॉलीपॉप भी चूसकर देखो”, और अपने जांगो से लंड को धक्का देकर मुमानी के गले के अंदर तक अपना लंड डाल दिया और फिरसे मुमानी की बुर को और उनके बुरके दाने को चूसने चाटने लगा। “ओ मेरी फिरदौस, मेरी कुतिया, तुम्हरे बुर का स्वाद तो कल के मटर पनीर से भी बेहतर लग रहा है।”
लगभग 5-6 मिनट तक युही एक दूसरे के यौन अंग को एकदूसरे के मुँह में देकर हम आपस मे प्रेम की अपरंपार सीमाओं को छूते रहे। फिर मैंने फिरदौस मुमानी के मुँह से मेरा लंड बाहर निकाला एयर कहा, “बस मेरी रज्जो, आज मेरे लंड का सारा पानी अपने मुँह से ही निकलोगी क्या?” चलो जल्दीसे उठो और मुझे तुंहर सुंदरता को छूने दो।
फिरदौस मुमानी का हाथ पकड़ा उन्हें उठा कर घुटनो के बल बिस्तर ओर खड़ा किया। उनकी गाउन उतार दी साथ ही साथ उन्होंने भी मेरी शर्ट के बटन खोलदिए और एकदूसरे के नंगे बदन से लिपट गए मैंने भी अपना खड़ा लंड मुमानी के दोनों पैरो के बीच उनकी चूत से सटा कर उनके बाहों में लिपट गया, उस वक़्त दो बदन और दो यौन अंग एकदूसरे से लिपट हुए से लग रहे थे।
मैंने मुमानी के गर्दन में हाथ डालकर उनकी छोटी पीछे की और ज़ोर से खींची जिससे उनका चेहरा ऊपर की ओर उठा और मैं उनके गर्दन पर चूमने लगा, उनके कानों पर हल्के दांतों से काटा। मुमानी के मुँह में अपनी जीभ डाली और चुम्बन करने लगा, उनके जीभ को चूसने लगा, ओठोंको चूसने लगा.
उधर मुमानी के हाथ मेरे लंड को मसलने लगे औऱ जैसे ही हमारी किस शिद्दत से होने लगती मुमानी के हाथ मेरे लंड पर ज़ोर ज़ोर से मसलने लग जाते। तो मैं भी बदले में मुमानी के बुर में उंगली करके उसे छेड़ता। अब मुमानी मेरे सामने खुलकर जिस्म देने लगी मैन भी खुले दिलसे मुमानी के जिस्म को प्यार किया और उनकी ब्रा खोली।
उनके दाने को चूसा और स्तन के साथ खेलना शुरू किया। बच्चे बगल ही में सो रहे थे लेकिन वो क्या जाने की उनकी माँ उन्ही का बगल में उनके ही भाई के साथ रासलीला खेल रही थी। मैंने मुमानी को अपने सामने झुकाया और उनके मुँह में फिर एक बार अपना लंड दिया और वो उसे चूसने लगगयी.
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उसके बाद मुमानी खुद ही घोड़ी बन गयी और कहने लगी “जुनैद अब अपने इस हथियार को मेरे बुर में डालकर मुझे अपने रॉकेट की सैर करवा ही दो” मैंने मुमानी के बुर में अपना लंड डाला और जम कर धक्के देना शुरू किया, मैं ज़ोर ज़ोर से धक्के देने लगा ही था कि उह आह करते हुए वो बोली के अरे मेरी चूत को आज फाड् दोगे क्या? मैं बोला कि जब मुमानी कितनी हॉट हो तो उसकी चूत फाड़ना बनता ही है। पूरे डेढ़ घंटे तक मैं मेरी फिरदौस मुमानी को पेलता रहा अलग अलग आसान में कभी वो मेरे नीचे तो कभी वो मेरे उपर कभी लेट कर तो कभी खड़े खड़े।
मेरा मक़सद तो बस मुमानी को चोद कर बेहाल करदेना था जिसमे मैं सफल भी हुआ। “उई मा, उई मा, आह-ऊह, मार डाला रे जुनैद तुमने तो मुझे” मुमानी चुदते हुए आहे भर भर के कहने लगी। ओह फिरदौस अब मेरा पानी आने ही वाला है तुम कहा लेना चाहती हो प्यारी मुमानी? मैंने कहा। अब मेरी चूत फाड़ ही डाली है तुमने तो उसी में डाल दो, उन्होंने कहा और मैंने सारा पानी मेरे लंड से उनकी चूत को भर दिया। मुमानी आज तो कसम से मज़ा ही आगया, हम दोनों अगर ऐसे ही एकदूसरे की मेहमाननवाज़ी करे तो और इस दुनिया से क्या ही चाहिए।
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