Hot XXX Aurat Chudai
मेरा नाम मधुर है। आज से करीब 6-7 साल पहले मेरे जीवन में घटी एक हसीन घटना का जिक्र करना चाहता हूँ। मेरी पहली पोस्टिंग गाजीपुर में हुई थी। गाजीपुर एक छोटा-सा कस्बा था। मैंने अपने एक मित्र से, जिन्हें मैं अमरेश भैया कहता था, क्वार्टर देखने को कह रखा था। Hot XXX Aurat Chudai
उन्होंने ही मेरे लिए क्वार्टर देख रखा था। मेरा और उनका क्वार्टर पास-पास था, पर आँगन दोनों का एक ही था। उस रात मुझे अमरेश भैया के यहाँ खाना था। शाम को खाना खाते समय अमरेश भैया ने अपने परिवार से मेरा परिचय कराया। बड़ा लड़का सोनू 6 साल का और लड़की सोनिया 3 साल की।
भाभी का नाम रश्मि था। जो दिखने में अत्यंत सुंदर थी। उम्र करीब 27-28 साल होगी। गोरा रंग, बड़ी-बड़ी आँखें, लंबे बाल, भरी हुई मांसल देह। लंबाई होगी करीब 5 फुट 4 इंच। हल्के बैंगनी रंग के कुर्ते और क्रीम रंग की सलवार में बला की खूबसूरत लग रही थी।
“नमस्ते……” मेरा ध्यान टूटा, मैंने भी अभिवादन का उत्तर दिया। अमरेश भैया ने कहा, ये तुम्हारी भाभी हैं और ये है मधुर। यही पड़ोस में रहेगा। मैंने देखा रश्मि भाभी जितनी सुंदर थीं, उतना ही उनका व्यवहार गरिमामय था। उन्होंने मुझसे बस इतना ही कहा कि कोई तकलीफ हो तो बोलिएगा।
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मैं उनके व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रभावित हुआ। शायद इसलिए भी कि वो इतनी सुंदर थीं। मैं एक सीधा-सादा, सामान्य कद-काठी का युवक था। नई-नई नौकरी लगी थी। उम्र भी कोई ज्यादा नहीं थी, यही कोई 23-24 साल। हाइट 5 फुट 2 इंच। साँवला रंग।
बस मुझमें यही खासियत थी कि मैं स्त्रियों का बहुत सम्मान करता था। धीरे-धीरे मैं रश्मि भाभी के परिवार से करीब होता गया। अमरेश भैया के बच्चे अक्सर मेरे घर पर ही खेलते थे। मैं भी उनके घर पर आने-जाने लगा था। रश्मि भाभी भी मुझसे काफी खुल गई थीं। मुझे भी उनसे बातें करने में बहुत अच्छा लगता था।
अमरेश भैया को नौकरी के सिलसिले में अक्सर दौरे पर जाना पड़ता था। उस समय उनके ऑफिस का चौकीदार रात में उनके यहाँ सोता था। चूँकि मैं भी वहाँ पड़ोस में रहने लगा था, इसलिए अमरेश भैया अपने परिवार के प्रति निश्चिंत रहते थे। मैं रश्मि भाभी के साथ काफी देर रात तक बातें किया करता था।
अक्सर हम अपने घर-परिवार के बारे में बातें करते थे। उन्होंने ही मुझे बताया था कि वो पॉलिटिकल साइंस में एम.ए. हैं। और यह भी कि उनकी और अमरेश भैया की उम्र में 15 साल का अंतर है। वो मुझे अपने स्कूल के दिनों की बातें भी बताती थीं। अक्सर मैं उनके यहाँ ही खाना खा लिया करता था।
हमारे बीच कभी सेक्स या इस तरह की कोई बात नहीं होती थी। मेरे मन में भी उनके प्रति बुरा विचार कभी नहीं आया। पर पता नहीं क्यों, मुझे हमेशा उनके साथ या पास रहने, उनसे बातें करने का बहुत मन होता था। उस दिन ऑफिस से शाम 6 बजे घर लौटा।
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हाथ-मुँह धोकर कपड़े बदलकर कुछ देर आराम किया। बाहर हल्की बूँदा-बाँदी हो रही थी। मैं रश्मि भाभी के घर चला गया। भाभी ने बताया कि भैया बाहर गए हैं। मैंने चाय पी और भाभी से बातें करने लगा। उन्होंने मुझसे कहा कि चलिए, किचन में बैठिए, मैं खाना भी बनाऊँगी और आपसे बातें भी होती रहेंगी।
मैं उनके साथ किचन में चला गया। बाहर बारिश बढ़ गई थी। आँधी के साथ-साथ बिजली भी कड़कने लगी थी। रश्मि भाभी ने मुझसे कहा, आज यहीं खाना खा लीजिए। हमने साथ में खाना खाया, बातें भी करते रहे। 10 बजे चौकीदार के आने का समय था। 11 बज गए थे, वो नहीं आया था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
भाभी ने मुझसे कहा कि लगता है आँधी-पानी में वो आज नहीं आ सकेगा, आप यहीं सो जाइए। मैं अंदर ही अंदर बहुत खुश हुआ कि आज रश्मि भाभी से और अधिक देर तक बात करने का मौका मिलेगा। भाभी ने मुझसे उनके बिस्तर पर ही सोने को कहा।
बीच में दोनों बच्चे और दोनों तरफ हम लेटे। बाहर तेज बारिश होने लगी थी। हम बातें करते-करते कब सो गए, पता नहीं। अचानक रात को मेरी नींद टूटी। मुझे महसूस हुआ कि मेरी हथेली नींद में ही भाभी की हथेली से स्पर्श कर रही है। मेरे सारे शरीर में सिहरन दौड़ गई, पर मैंने हाथ नहीं हटाया, बल्कि अपनी पूरी हथेली को भाभी की हथेली पर धीरे से रख दिया।
काफी देर तक जब मैंने देखा कि भाभी भी अपना हाथ नहीं हटा रही हैं, तो मैंने अपने हाथों को उनकी कलाइयों से होते हुए बाहों तक पहुँचा दिया। भाभी के कोई प्रतिक्रिया न व्यक्त करने पर मेरी हिम्मत बढ़ी। और मैंने सारी मर्यादाओं को ताक पर रखकर भाभी के गोरे-गोरे नाजुक गालों को अपनी उंगलियों से सहलाना शुरू कर दिया।
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मुझे लगा भाभी को भी ये सब अच्छा लग रहा है, इसलिए वो दाहिने करवट पर लेटी थीं, पीठ के बल लेट गईं। इससे मुझे उनके गालों और होंठों को अपनी उंगलियों के स्पर्श से सहलाने में सुविधा हो रही थी। कुछ देर इसी तरह सहलाने के बाद मैं बिस्तर से उठा और भाभी के सिरहाने खड़े होकर उनके मस्तक, आँखों, गालों पर अपने होंठ रख दिए और अपने होंठों से उन्हें सहलाने लगा।
श्ह्ह्ह… भाभी के मुँह से एक हल्की-सी सिसकारी निकली। मैंने अपने तड़पते होंठ उनके गुलाबी मांसल होंठों पर रख दिए और उन्हें चूसने लगा। मुझे आश्चर्य हुआ कि भाभी ने मेरे माथे को अपने दोनों हाथों से पकड़कर सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगीं।
मैं उनके दोनों उन्नत उरोजों पर हाथ फेरना शुरू किया तो उनके मुँह से हल्की-सी सिसकारी निकलने लगी। बाहर अभी भी बहुत तेज बारिश हो रही थी। मैंने धीरे-धीरे रश्मि भाभी के ब्लाउज के हुक खोले तो उनके बड़े-बड़े, गोरे, पुष्ट वक्ष उछलकर बाहर आ गए और उस पर सुगठित भूरे निप्पल मुझे पागलपन की हद तक ले जा रहे थे।
मेरी सारी शर्म समाप्त हो चुकी थीं। मैं उनके पुष्ट बड़े-बड़े उरोजों को अपने दोनों हाथों से मसलने लगा। कमरे के हल्के लाल नाइट लैंप की रोशनी में मैंने देखा कि भाभी बिल्कुल उत्तेजित अप्सरा-सी लग रही हैं। मैंने उनके कड़े हो चुके निप्पलों को अपनी उंगलियों से मसलता रहा, फिर उन्हें अपने मुँह में लेकर चूसने लगा।
बीच-बीच में अपने दाँतों से भी उनके निप्पलों को हल्के से काट रहा था। ऐसा लग रहा था कि उन्हें भी मेरा ऐसा करना अच्छा लग रहा है। मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए और बिल्कुल नग्नावस्था में उनके बगल में लेट गया और उन्हें अपनी बाहों में कसकर जकड़ लिया।
मेरा सीना उनके दोनों उरोजों पर था। मैं अपने सीने से उनके दूध को मसलने लगा। वो तरप रही थीं, मैं भी। फिर मेरे हाथ उनके पेटीकोट के बंधन तक चले गए और मैंने उसका एक सिरा पकड़कर खींच दिया। पेटीकोट ढीला हो गया। मैंने उनके पेटीकोट को नीचे खिसकाकर अपने गर्म होंठों को उनके पेट पर रख दिया। और पागलों की तरह उनके पेट और सारे बदन को चूमने लगा।
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बाहर तेज बारिश हो रही थी और हम दोनों यहाँ पसीने से लथपथ हो रहे थे। मैंने उनके पेटीकोट को नीचे उतारने की कोशिश की, पर वो नहीं उतर रहा था। भाभी ने अपने हिप्स को थोड़ा ऊपर उठाया तो पेटीकोट आसानी से नीचे उतर आया और मेरे सामने दुनिया की सबसे कीमती चीज थी, रश्मि भाभी की उभरी हुई योनि, हल्के भूरे बालों के साथ मेरे सामने थी।
मैं आपे से बाहर हो गया और भाभी की योनि को अपनी उंगलियों से खोलकर अपनी लपलपाती हुई जीभ को उसमें डाल दिया और योनि को चूसने लगा। बाहर तेज गड़गड़ाहट के साथ बारिश हो रही थी। भाभी तड़प रही थीं। वो अपनी दोनों जाँघों को फैलाकर अपने नितंबों को बार-बार ऊपर उठा रही थीं। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
जिससे मुझे उनकी योनि को और अधिक अंदर तक चूसने में मदद मिल रही थी। अब मेरे सब्र का बाँध टूट चुका था… रश्मि भाभी का भी। मैंने अपनी सारी मान-मर्यादाओं और हदों को ताक पर रखकर अपने लपलपाते, प्यासे 7 इंच लंबे, कड़े तथा मोटे हो चुके शिश्न को रश्मि भाभी के तड़पते हुए प्यासे योनि द्वार पर रखकर उनकी योनि के अंदर धकेल दिया।
वो तड़प उठीं। उनके मुँह से एक घुटी हुई-सी चीख निकल गई, आआआह। और फिर हमारे तड़पते शरीर पता नहीं कब तक अंतरंग वासना के अथाह सागर में डूबते चले गए। दूसरे दिन सुबह जब नींद खुली तो देखा भाभी चाय का प्याला लेकर खड़ी हैं।
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मैंने उनसे चाय का प्याला बिना उनकी ओर देखे लिया। चाय पिया। भाभी अपने नित्य कर्म में व्यस्त थीं। मेरी हिम्मत उनकी ओर देखने की नहीं थी। मैं रात के जागरण और आंतरिक ग्लानि से बेचैन हो रहा था। भाभी की प्रतिक्रिया जानने के लिए मैंने हिम्मत करके उनसे बिना उनकी ओर देखे कहा, भाभी, मैं जा रहा हूँ। उन्होंने बस इतना ही कहा, हाँ। मैं अपने कमरे में आकर काफी देर तक चुपचाप लेटा रहा। उस दिन न मैं ऑफिस गया और न ही खाना बनाया।
दिनभर चुपचाप घर में लेटा रहा और अपने किए पर पछताता रहा, अपने आप को कोसता रहा। अब मैं भाभी के घर नहीं जाता था और न ही कोई बातचीत होती थी। भाभी की ओर से भी बातचीत की कोई पहल नहीं होती थी। इससे मेरी बेचैनी और भी बढ़ गई थी। मुझे हमेशा ये लगता रहा कि कहीं भाभी भैया से सब बोल न दें। आगे क्या हुआ? क्या रश्मि भाभी ने भैया से सब कुछ कहा? क्या हुआ हमारे रिश्तों का? ये सब जानने के लिए मैं कहानी का दूसरा भाग जल्दी भेजूँगा।
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