Free Kamuk Kahani
मैं तीस साल का युवक हूँ कद 5’6″ एवं स्मार्ट हूँ, विश्वविद्यालय से स्नातक किया है, इंजीनियर बनाने की चाहत थी पर बन नहीं पाया परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसी थी पर भवन निर्माण के काम करने की चाहत थी सो वह काम करने लगा। ठेकेदारी से नवनिर्माण एवं पुराने मकानों में सुधार एवं सजावट का काम करके भी आजीविका ठीक से चल जाती है. Free Kamuk Kahani
उन्हें वास्तु के हिसाब से सुधार करना एवं नया रूप देना हमारे शौक एवं कमाई दोनों को पूरा करता है। इस काम के लिए मैंने ऑफिस नहीं बनाया बल्कि मोबाइल से ही मुझे इतने ऑर्डर मिलते रहते हैं कि काम करने का समय तय करना मुश्किल हो जाता है। जब समय मिलता है तो सेक्स कहानियाँ पढ़ता हूँ एवं सेक्सी साईट पर सर्फिंग अच्छा लगता है।
अब मतलब की बात पर आते हैं! मेरे साथ हुई एक खूबसूरत घटना जो एकदम सत्य है, आपको लिख रहा हूँ। तो हुआ यूँ पिछले साल मार्च को दोपहर में मेरे मोबाईल पर फोन आया जो मिस्टर एम.के. तिवारी ब्रांच मैंनेजर का था जो पास की तहसील के एक बैंक में कार्यरत हैं.
उन्होंने पूछा- मैं अपने पुराने बाथरूम को नए तरीके से बनाना चाहता हूँ, क्या तुम इसे बना सकते हो? इसका क्या खर्चा होगा?
क्यूंकि मेरा अन्य जगह पर काम चल रहा था तो मैंने कह दिया कि शाम सात बजे तक आ जाऊँगा।
उन्होंने कहा- ठीक है।
काम में व्यस्तता के कारण समय का पता ही नहीं चला और रात के आठ बज गए। तिवारी जी का फोन आया तो मैंने उन्हें सॉरी कहकर अगले दिन आने को कह दिया।
तो उन्होंने कहा- सुबह दस बजे तक जरूर आ जाना!
और फोन कट गया। अगली सुबह नौ बजे बाइक से मैं निकल पड़ा लेकिन पाँच किलोमीटर ही चला था कि टायर पंचर हो गया। साढ़े दस तक पंचर बनवाकर 11 बजे तिवारी साहब के घर पहुँचा। पुराना लेकिन शानदार मकान बना था। गेट के बाहर बाइक को छोड़कर अन्दर गया, बगीचे में सुन्दर पौधे और फूल लगे थे। मुख्य दरवाजे पर पहुँच कर घण्टी बजाई तो थोड़ी देर में एक महिला ने दरवाजा खोला जो इतनी खूबसूरत थी कि मैं उसे देखता रह गया।
उसने पूछा- क्या काम है?
मैंने कहा- तिवारी साहब से मिलना है बाथरूम की रिपेयरिंग के लिए!
तो वह बोली- मैं मिसेज़ शोभा तिवारी (बदला हुआ नाम) हूँ, साहब बैंक चले गए है आप अन्दर आकर बाथरूम देख लीजिये। उसके बाद बैंक जाकर साहब से मिल लेना।
वो मुझे अन्दर ले गई और बैठक में बिठाकर रसोई की ओर चली गई। शोभा तिवारी ने उस समय आसमानी रंग की झालरदार और सुन्दर मेक्सी पहनी थी, जिसका गला बहुत ही गहरा था, अन्दर की गोलाइयों के बीच की घाटी साफ दिखाई दे रही थी, उनकी उम्र 32 के आसपास होगी फिगर 34-30-36 होगा.
पीछे से उसकी चाल और उसकी गाण्ड की गोलाइयों को देखकर मन विचलित होने लगा। मन पर काबू करके मैंने मकान का जायजा लिया, अन्दर से भी बहुत शानदार कोठी थी, सारा सामान करीने से सजा हुआ था। तभी वो ट्रे में पानी का गिलास और जूस लाई और मेज़ पर रख दिया।
रखते समय मम्मों की झलक देख कर मेरे लिंग में तनाव पैदा होने लगा। मैं जूस पीने लगा तो उसने बताया कि साहब को दो दिन के दौरे पर जाना है आप बाथरूम में लगने वाले सामान की लिस्ट बनाकर साहब को उनके जाने के पहले बैंक में दे देना।
फिर मैं उनके साथ बाथरूम देखने के लिए चलने लगा। सामने गैलरी में दो दरवाजे दिखे, एक साहब के बेडरूम में खुलता है और दूसरा बाथरूम में! बाथरूम का दरवाजा खोला तो उसमें से तेज गंध आई जैसे वहाँ पर हवा का आना-जाना न हो। अन्दर जाकर देखा तो 8 बाई 10 का कमरा था।
मेरे हिसाब से इतनी जगह बाथरूम के लिए पर्याप्त होती है। इसमें एक दीवार की ओर टोयलेट सीट लगी थी उसके सामने की दीवार पर 1 बाई 1 फ़ुट का छोटा रोशनदान लगा था, बीच की एक दीवार पर नल और सामने की दूसरी दीवार पर पुराना सा शॉवर लगा था। कुल मिला कर पुराने समय का बाथरूम था।
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मैंने पूछा- मैडम, आप को कैसा बाथरूम बनवाना है?
बोली- मुझे यहाँ पर मार्डन टाइप बाथटब जिसमे हैंड-शॉवर, ठंडा-गर्म पानी के नल हों, एक दीवार पर सुन्दर सा शॉवर जो बाथरूम के मध्य में हो, वाशबेसिन, सुन्दर से नल, 5 फीट ऊँचाई तक सुन्दर टाइल्स, जमीन पर मारबल और अच्छा सा दरवाजा!
तब मैंने कहा- मैडम, अगर आप बुरा न मानें तो मैं एक सुझाव देना चाहता हूँ।
तो वो बोली- हाँ जरूर! इसीलिए तो आपको बुलाया है!
तब मैंने कहा- मैडम बाकी सब तो आपने सही चुना है, मैं चाहता हूँ कि आपके बाथरूम में रोशनदान बड़ा हो हवा और रोशनी के लिए, क्यूंकि रोशनदान के नीचे की दीवार खाली है। मैं चाहता हूँ कि यहाँ पर आदमकद दर्पण लगना चाहिए क्यूंकि नहाते वक्त अपने आप को दर्पण में देखना बड़ा ही सुखद और आनंददायक लगता है!
यह सुनते ही उसके होंठों पर हल्की मुस्कान, गालों पर लाली छा गई और शायद शर्म के कारण चेहरा घुमाकर दूसरी ओर देखने लगी। मैंने सोचा कि बाथरूम में जाकर दर्पण का मुआयना करूँ और निकलूँ! बाथरूम में गया तो रोशनदान के नीचे दर्पण दीवार के सहारे रखा था, उसके ऊपर पानी व साबुन की बूंदें थी, कुछ सादे पानी की बूंदें थी, पूरा बाथरूम साबुन की महक से महक रहा था।
मैंने बाथरूम का जायजा लिया तो एक तरफ सूखे ब्रा पेंटी पड़े हुए थे जिन पर पानी के छींटे दिखाई दे रहे थे, टोयलेट सीट के पास शेविंग का सामान रखा था, खूंटी पर सुबह वाली मेक्सी टंगी थी। अब कुछ कुछ बातें मेरी समझ में आ रही थी। शोभा का लजाना, शर्माना यानि वो कल्पना में खो गई थी कि दर्पण के सामने नहाने में कैसी लगूंगी और दर्पण के आने के बाद वह इतना उत्तेजित हुई होगी कि अपने आप को नहाने से रोक नहीं पाई होगी।
दर्पण इतना बड़ा था कि उसमें सामने की पूरी दीवार भी दिखाई दे रही होगी। उसके बाद शोभा ने अपने आप को शांत करने के लिए उसने ऊँगली से या जैसे भी हस्तमैथुन भी किया होगा। अब मेरे दिमाग ने सोचा कि शायद ऐसा न हो और यह कोरी हमारी कल्पना हो!
और यदि यह सच हुआ तो निश्चित है की शोभा की प्यास मुठ से नहीं बुझी होगी और बहुत कुछ हो सकता है। अब पता यह लगाना है कि इन दो बातों में से सच क्या है। तभी शोभा वहाँ आ गई लेकिन जैसे ही उसकी नजर ब्रा पेंटी और शेविंग किट पर पड़ी, वो एकदम से हड़बड़ा गई, ऐसे खड़ी हो गई कि मुझे वह सब न दिख सके, कहा- चलो, बाहर बैठते हैं।
मैं बाहर आ गया, कुछ देर में शोभा भी आ गई, अबकी बार फिर उसके गालों पर लाली और शर्म दिख रही थी, आकर मेरे सामने बैठ गई पर नजरें नहीं मिला रही थी। मैंने लोहा गर्म देखकर सोचा कि वार कर दो, जो होगा देखा जायेगा, बात नहीं बनी तो माफी मांगकर मना लूँगा। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पढ़ रहे है.
अब मुझे हर कदम फूंक-फूंक कर रखना था, बात की शुरुआत मैंने की, पूछा- कैसा लगा दर्पण आपको?
नाख़ून कुरेदते हुए बोली- अच्छा!
मैंने कहा- और दर्पण में देखते हुए नहाना कैसा लगा?
कुछ गुस्से में बोली- यह आप क्यों पूछ रहे हैं.
मैंने कहा- देखिये, आप बुरा न मानें, लगता है आप दर्पण का पूरा मजा लेकर नहाई तो हैं ही, जैसा मैंने बाथरूम में देखा, इसलिए पूछ लिया। वैसे मैडम पूरा बाथरूम बनकर तैयार होने दीजिए, तब आप बाथरूम का असली आनन्द ले पाएँगी।
शोभा ने बात को बदलते हुए पूछा- आपके घर में कौन कौन है?
मैंने कहा- मैं और मेरी बीवी जो अभी मायके गई हुई है। हमारा बाकी परिवार गाँव में रहता है।
उस समय शाम के सात बज गए थे, मैंने धुंए में वार किया- घर जाकर खाना बनाना पड़ेगा, इसलिए चलता हूँ मैडम.. सुबह मिस्त्री और बेलदार को लेकर दस बजे तक आ जाऊँगा।
तो शोभा ने कहा- खाना यहीं खा लो! साहब तो आएँगे नहीं, उनके हिस्से का रखा है!
मैं यही चाह रहा था पर दिखावा किया- साहब के हिस्से का…?
बात अधूरी छोड़ दी…
शोभा बोली- जब वो नहीं है और उनके हिस्से का तुम खा लोगे तो इससे किसी को क्या फर्क पड़ेगा!
कहते हुए अचानक झेंप गई यह सोचकर कि मैंने यह क्या कह दिया।
मैंने कहा- जैसा आप कहें!
अब मैं समझ गया था कि शोभा मुझे रोक रही है, वो भी रात को जबकि वह अकेली है। अब शुरुआत मुझे ही करनी होगी अपनी बातों का जाल फेंककर। फिर मैंने यहाँ-वहाँ की बातें करके उसे खोलने की कोशिश की, कुछ चुटकले भी सुनाये तो वह खुलकर हंसने भी लगी। फ़िर कुछ वयस्क चुटकले, फिर कुछ अश्लील भी सुनाए। रात के साढ़े आठ हो चुके थे.
मैंने कहा- मैडम, इतनी रात को कोई आ गया तो क्या सोचेगा?
मैडम ने कहा- यहाँ कोई नहीं आता, हमारे सारे रिश्तेदार दूरदराज में हैं, तुम ही हो जो हमारे दोस्त बन गए हो, नहीं तो यहाँ साहब के मिलने वाले भी नहीं आते।
अब मैं निश्चिंत हो गया और अगला जाल फेंका, मैंने कहा- मैडम, एक बात पूछूँ अगर आप नाराज न हो तो?
हंसकर बोली- पूछो!
मैंने कहा- आपने बाथरूम में नहाते वक्त क्या महसूस किया?
बोली- अंकित, तुम फिर वही बात करने लगे?
मैंने कहा- मैडम, अगर हमें दोस्त माना है तो प्लीज़ बताओ न!
बोली- इससे क्या होगा?
मैंने कहा- मैं अपने अनुभव को बढ़ाना चाहता हूँ बस।
शोभा बोली- बाथरूम में गई, नहाई और बाहर आ गई बस।
मैंने कहा- मत बताएं, पर मैं सब जानता हूँ…
बोली- क्या जानते हो?
मैंने कहा- बात कुछ प्राइवेट है, जोर से बोल नहीं सकता, दीवार के भी कान होते हैं, सच सुनना चाहो तो मैं आपके पास आकर बताऊँ?
तो बोली- ठीक है, पर शैतानी नहीं करना। समझे?
मैंने कहा- ठीक है!
और शोभा के बगल में सोफ़े पर बैठ गया, मैंने कहा- दिल थामकर सुनना और बीच में रोकना नहीं, यदि मेरी बात गलत लगे तब बोलना!
बोली- ठीक है!
अब मैंने कहा- मैडम, सुबह जब मैंने आपसे दर्पण के बारे में कहा था तो आप शर्मा गई थी और मन में इस तरह से नहाने का ख्याल आया था, सच है?
तो बोली- हाँ!
मैंने कहा- शाम को जब सामान के साथ दर्पण आया तो आपने फोन किया था मैंने कह दिया कि आधा घंटे में आऊँगा, आपने सारा सामान बैठक में रखवा दिया लेकिन दर्पण को बाथरूम रखवा दिया क्यूंकि आप जल्द से जल्द अपनी कल्पना को साकार करना चाहती थी! सही है?
बोली- सही है।
‘उसके बाद आपने बाथरूम में जाकर अपने आप को निहारा और इच्छा हुई कि अभी नहा लिया जाये! आपने अपने कपड़े उतार कर खूंटी पर टांग दिए फिर ब्रा-पेंटी में अपने आपको निहारने लगी!’
यह सुनकर शोभा खड़ी होकर जाने लगी, मैं भी यही चाहता था, मैंने तुरंत उनका हाथ पकड़ लिया और बोला- पहले बोलो हाँ या ना?
बोली- हाँ!
हाथ तो मैं पकड़ ही चुका था, खींच कर बिठाने लगा तो मुँह फेरकर बैठ गई।
मैंने आगे कहा- उसके बाद आपने ब्रा-पेंटी उतारकर रख दिए और दर्पण में अपने नंगे जिस्म को हर दिशा से देखा। तुम्हारी आँखों में एक नशा सा छा रहा था, तुम उत्तेजित हो गई थी, एक हाथ तुम्हारी दोनों टांगों के बीच कुछ सहला रहा था, दूसरा सीने को सहला रहा था?
इतना सुनकर वो फिर खड़ी होकर जाने का प्रयास करने लगी, हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो मैंने फिर खींच लिया। अबकी बार वो मेरे सीने से आकर टकराई तो मैंने उसे कमर से भी पकड़ लिया, मैंने कहा- बोलो सच है?
बोली- हाँ!
‘फिर तुम्हें आईने में अपने सुन्दर जिस्म पर बढ़े हुए बाल दिखे जो तुम्हारी सुन्दरता में रुकावट बन रहे थे तो तुम शेविंग किट उठाकर ले आई और नीचे के एवं बगलों के बाल साफ किये। तब तुम्हारी उत्तेजना चरम पर पहुँच गई थी तो तुमने शावर चालू किया और ठण्डे पानी के नीचे खड़ी हो गई और नहाने लगी। बोलो, सच है?’
तो बोली- प्लीज़ छोड़ दो मुझे!
मैंने कहा- पहले जबाब दो तो आगे की बात भी बताएँ!
अब वह अचंभित थी!
मैंने कहा- बोलो?
उसने कहा- हाँ!
अब मेरे हाथ उसके बदन को धीरे से दबाने लगे थे क्यूंकि वह तो कहानी का चरमोत्कर्ष सुनने को बेताब थी।
‘फिर मैडम, नहाने से भी जब आपको ठंडक नहीं मिली तो आपने मजबूरी में वह रास्ता अपनाया…!’
इस बात को मैंने अधूरा छोड़ दिया।
वो समझ गई होगी कि मेरा मतलब मुठ से है..
‘फिर आप साबुन लगाकर नहाई, नहाकर जैसे ही चुकी, आपके घर की घण्टी बजी, आपने जल्दी से कपड़े पहने और दरवाजा खोला तो सामने मैं खड़ा था!’
इस समय मेरे होंठ उसके गालों पर रेंग रहे थे और हाथ वक्ष पर!
मैंने पूछा- यह सच है या नहीं?
अबकी बार उसने पूरी ताकत लगाकर अपने को छुड़ा लिया और… मेरे होंठ उसके गाल पर थे और हाथ चुची पर!
मैंने पूछा- सच है या नहीं?
अब उसने पूरी ताकत से खुद को छुड़ा लिया और… दौड़ कर बेडरूम में चली गई।
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मैंने सोचा कि हाथ छोड़कर मैंने गलती की है, सोचा, अब क्या करूँ? फिर दिमाग ने कहा- सब कुछ यहाँ पर थोड़े हो सकता है! बेडरूम में जाओ, बाकी का काम तो वहीं पर होगा!
अभी रात के 9:30 बजे थे, मैं तुरंत ही शोभा के बेडरूम में पहुँचा, बड़ा सुन्दर कमरा था, डबलबेड, ड्रेसिंग टेबल, नक्काशी वाली अलमारी, एक मेज पर कंप्यूटर रखा था, कोने में एक सुन्दर सा छत्र वाला लेम्प रखा था। कमरा में ए.सी. भी लगा हुआ था। शोभा बिस्तर पर बेसुध सी पड़ी हुई थी, सांसें धौंकनी की तरह चल रही थी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पढ़ रहे है.
स्तन बड़े बड़े गोलों के रूप में कपड़ों से बाहर निकलने को बेताब थे, एक हाथ को कोहनी से मोड़कर कलाई से आँखों को ढक रखा था, मेक्सी घुटनों से ऊपर को सरक गई थी जिससे गोरी, मांसल एवं चिकनी जांघें क़यामत ही ढा रही थी। एक पल ऐसा लगा कि मेक्सी को ऊपर उठाकर चूत को चोद डालूँ पर जल्दबाजी में बात बिगड़ सकती थी.
मैंने कहा- मैडम, क्या हुआ? आप इस तरह क्यूँ भाग आई?
और उनसे सटकर बैठ गया, उसके हाथ को पकड़कर हटाया, तब भी उसने आँखें नहीं खोली। मैंने लगे हाथ गालों पर चुम्बन कर दिया। उसका सारा बदन ऐसे कांप रहा था जैसे ठण्ड के दिन हों! कहने लगी- प्लीज़, मुझे मत बहकाओ! मैंने आज तक अपने पति से बेवफाई नहीं की, न ही करना चाहती हूँ! मैं ऐसी औरत नहीं हूँ जैसी तुम समझ रहे हो!
मैंने सोचा- यह डायलोग तो हर उस औरत ने पहली बार जरूर बोला है जिसे मैंने पहले चोदा है। लगता है सारी औरतें एक जैसी होती हैं, मैंने कहा- मैडम, आपका रूप है ही ऐसा सुन्दर, यह गोरा रंग, सुन्दर चेहरा, कटीले नयन, सुतवां नाक, सुर्ख होंठ, सुराहीदार गर्दन, पहाड़ के शिखर जैसे तुम्हारे वक्ष, पतली कमर, उभरे गोल नितम्ब, मक्खन जैसी चिकनी गोरी मांसल टांगें! इन्हें देखकर इन्सान तो क्या देवता भी भटक जाये!
तो शोभा ने कहा- अंकित, मैं कोई भी गलत काम नहीं करना चाहती। प्लीज़, छोड़ दो मुझे!
मैंने कहा- शोभा जी, मैं आपकी मर्जी के बगैर कोई भी काम नहीं करूँगा, मुझे सिर्फ आपके इस भरपूर यौवन, सुन्दर जिस्म और लाजबाब हुस्न को बेपर्दा देखने की इजाजत दो जिसे मैं सिर्फ देखना और सहलाना चाहता हूँ, चूमना चाहता हूँ क्यूंकि आप जैसी सुन्दर हसीना मैंने आज तक इतने करीब से नहीं देखी।
तो उसने इतना ही कहा- मुझे डर लग रहा है!
मैं उससे सटकर लेट गया और उसके गले और कान के पास चूमने लगा। शोभा ने सिसकारी लेना शुरू कर दिया था। अब मेरा एक हाथ उसके कपड़ों के अन्दर वक्ष पर घूम रहा था, दूसरा हाथ पीठ के नीचे था जो उसकी मेक्सी की बेल्ट खोल रहा था। शोभा कसमसा रही थी, मैं समझ गया था कि अब दिल्ली दूर नहीं है!
बेल्ट खोलकर मैंने उसकी मेक्सी को उतारना चाहा तो उसने मेरे हाथ पकड़ लिए। मेक्सी ऊपर गले तक आ गई थी, संतरे जैसे चूचे ब्रा में से दिख रहे थे। मैंने अपना मुँह उन पर रखा और होंठों से दबाने लगा तो शोभा ने अपने आप को शिथिल छोड़ दिया।
मैंने मौका देखकर मेक्सी सर से बाहर निकाल दी। शोभा ब्रा-पेंटी में क़यामत सी हसीना लग रही थी। मेरा लंड तो बहुत देर से पैंट में बैचैन हो रहा था। मुझे अपने कपड़े भी उतारने थे, मैंने कहा- शोभा जी, बहुत गर्मी लग रही है, ए.सी. ऑन कर लूँ क्या?
वो बोली- कर लो!
मैं बिस्तर से उतरकर अपनी शर्ट और जींस को जल्दी से उतार और ए.सी. चालू करके बिस्तर पर आ गया। शोभा घुटने मोड़कर अपनी पेंटी और हाथों से ब्रा को ढके हुए थी। अब मैं सीधा उसके ऊपर आ गया, होंठ से होंठ, सीने से सीना, लंड से चूत, टांगों से टाँगें दबा ली थी।
धीरे से पीठ को सहलाते हुए ब्रा के हुक को खोल दिया और ब्रा को हटा दिया। अब अनावृत तने हुए स्तन मेरी आँखों के सामने थे, नीचे मेरा लंड 90 अंश का कोण बना रहा था जिससे चूत की दरार पर दबाव पड़ने से शोभा के पैर थोड़े से फ़ैल गए थे और लंड चड्डी सहित अन्दर को धंस सा गया था।
शोभा के मुँह से आ..ह.. से ..सी… सी… की आवाज आने लगी थी, बोली- तुमने वादा किया है कि हद पार नहीं करोगे?
मैंने कहा- मुझे याद है कि देखना चूमना और सहलाना है, आगे कुछ नहीं करना है!
मैंने एक स्तन को मुँह में भर लिया, दूसरे को हाथ से मसलने लगा। मुझे लग रहा था कि मेरे लंड के आँसू आने लगे थे, यह समझ नहीं आ रहा था कि गम के हैं या ख़ुशी के! वो बाहर आने को तड़प रहा था।
मैंने सोचा कि यदि शोभा को चोदा तो हो सकता है मेरा लंड समय से पहले ही शहीद हो जाए, इसको एक बार स्खलित कर देना ही उचित होगा।
मैंने शोभा से कहा- मैं बाथरूम जा रहा हूँ।
बाथरूम में जाकर शोभा की संतरे जैसी गोलाइयों को याद करके मुठ मारा, बहुत सारा माल निकला, फिर लंड को अच्छी तरह से धोया, पेशाब किया और कमरे में आ गया। शोभा अपने हाथ से चूत को मसल रही थी, दूसरे हाथ से चुची को! मुझे देखकर उसने हाथ हटा लिए। मैं चड्डी उतारकर फिर से शोभा के ऊपर था.
स्तनों को चूस चूस कर लाल कर दिया मैंने, फिर सहलाते हुए नीचे को आ रहा था, एक हाथ स्तन पर दूसरा नाभि के पास सहला रहा था, होंठ ऊपर से नीचे चुम्बन का काम कर रहे थे। धीरे धीरे चेहरे को चूत के सामने ले आया कमर पर हाथ फिराते हुए पेंटी पर ले गया। पेंटी चूत के स्थान पर फूली थी और नीचे की ओर बुरी तरह से चूत रस से भीग गई थी। मैंने पेंटी को नीचे खिसकाना चाही तो शोभा ने टांगें आपस में भींच ली।
मैंने कहा- सिर्फ चूमना है! पेंटी को निकाल लेने दो प्लीज़!
बड़ी मुश्किल से वो राजी हुई, एक झटके से पेंटी निकाल फेंकी। अब शोभा मेरे सामने एकदम निर्वस्त्र एवं बेपर्दा लेटी हुई थी, मैं उसकी चूत के दर्शन करने लगा, एकदम नई और कोरी लग रही थी, त्वचा एकदम मुलायम थी, थोड़ी देर पहले ही तो शेविंग हुई थी चूत को खोलकर देखा तो गुलाबी छिद्र कमल की पंखुड़ी जैसा दिखाई दिया।
मैंने चूत का चूमा लिया तो शोभा चिहुंक उठी और मेरे सर को थाम लिया। मैंने चूत के ऊपर मदनमणि को जीभ से सहला दिया, होंठों से भी दबाकर खींचा। अब कमरे की शांति शोभा की आहों से भंग हो रही थी, मेरा लंड फिर से खड़ा होने लगा था।
अब शोभा मुझे अपनी ओर खीच रही थी, मैंने शोभा को बिस्तर पर ही खड़ा करके निहारा फिर पूरे शरीर को चूम डाला। अब शोभा से ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था, वो मेरी बाँहों में झूल गई। मैंने उसे बिस्तर पर लिटाया और उसके ऊपर आकर स्तन दबाने लगा, वे सच में बहुत कठोर हो गए थे।
मैं स्तनाग्र को मुँह में लेकर चूसने लगा। मेरा लंड पूरी तरह से तन्ना गया था, वह तो अपने लिए जगह खोजने में लगा था और धीरे धीरे मदनमणि को ठोकर मार रहा था। शोभा की आह रुकने का नाम नहीं ले रही थी। मैं भी यही चाहता था!
अबकी बार दोनों चूचियों को दोनों हाथ से पकड़ कर अपने होंठों को शोभा के होंठ पर रख कर जीभ को मुँह में डाल दिया। वह मेरी जीभ को सिसकारते हुये चूस रही थी। मैंने मौका देखकर लंड को सही स्थान पर लेकर थोड़ा दबाव डाला तो सुपारे का आगे का भाग चूत के मुँह पर फिट हो गया।
मैं शोभा की मर्जी का इंतजार कर रहा था वादा जो किया था। अब शोभा ने मुझे जोरों से भींचना चालू कर दिया, नाखून भी गड़ा डाले! मैं स्तन और मुखचोदन में ही अपना ध्यान केन्द्रित किये हुए था। अब शोभा कसमसा रही थी, अपने चूतड़ हिलाने की कोशिश कर रही थी। मैंने थोड़ी सी ढील दी तो उसने गाण्ड को झटके से ऊपर उठा दिया और आधा लंड चूत मे समां गया।
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मैंने कहा- शोभा जी ये…??
जानबूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया।
तो शोभा ने इतना ही कहा- प्लीज़ अंकित…
मैं समझ गया पर अंजान बनकर कहा- क्या?
उसने कुछ नहीं कहा बस एक और झटका नीचे से लगा दिया, मेरा सात इंच का लवड़ा उसकी चूत में समां गया था। मैंने अब भी कोई हरकत नहीं की तो उसने मुझे पकड़कर ऐसे पलटी लगाई कि वो ऊपर और मैं नीचे आ गया। अब वह बिना रुके अपनी गाण्ड उठा-उठा कर मुझे चोद रही थी.
पूरा कमरे में हम दोनों की सिसकारियाँ गूंज रही थी। थोड़ी ही देर में उसका बदन अकड़ने लगा, मुँह से बड़ी तेज अजीब सी आवाज आने लगी थी। वो हाँफते हुए मेरे सीने पर गिर पड़ी, मैं उसकी पीठ को सहलाता रहा, मेरा लंड चूत के अन्दर फड़फड़ा रहा था। अबकी बार मैंने पलटी लगाई, शोभा नीचे, मैं ऊपर!
फिर धक्के लगाना चालू कर दिया। थोड़ी देर बाद मैंने शोभा को बेड के किनारे पर सरका दिया और पैर बेड से नीचे लटकाने को कहा। मैं बेड के नीचे खड़ा होकर धक्के लगाने लगा। मेरा पूरा लंड चूत के अन्दर तक जाने लगा, हर वार में शोभा की आह निकल रही थी, हर पल धक्के की रफ़्तार बढ़ती जा रही थी।
कुछ देर बाद मैंने कहा- शोभा, अब मैं झरने वाला हूँ, क्या करूँ?
बोली- अन्दर ही कर दो!
फिर मैंने उसकी टांगों को ऊपर उठाकर सीने की तरफ मोड़ दी और तेजी से गहरे धक्के मारने लगा और फिर लंड ने फूलना शुरू कर दिया। इतने में शोभा का शरीर फिर से अकड़ने लगा, वो मुझसे चिपक गई। तभी मेरा वीर्य पिचकारी की तरह शोभा की चूत में छूटने लगा।
पांच मिनट तक ऐसे ही लेटे एक दूसरे को प्यार करते रहे, फिर उठकर बाथरूम गए और अपने आप को साफ किया। इस समय रात के सवा गयारह बजे थे। फिर हमने एक साथ खाना खाया। शोभा अब भी मुझसे नजरें नहीं मिला रही थी।
मैंने कहा- शोभाजी, अगर आप कहें तो मैं रात को यहीं रुक जाऊँ? सुबह 5 बजे चला जाऊँगा।
उसने कहा- ठीक है!
खाना खाकर बेडरूम में गए तो फिर इच्छा होने लगी, फिर से चुदाई का कार्यक्रम चालू हो गया। मैंने उससे लंड को मुँह में लेने को कहा तो उसने हाथ से तो सहला दिया पर मुँह में नहीं लिया। फिर उसको घोड़ी बनाकर और भी कई प्रकार से चोदा। रात के दो बजे तक की चुदाई में मेरा लंड में और शोभा की चूत में दर्द भी होने लगा था।
शोभा ने 5बजे मुझे जगाया, शायद वह रात भर सोई नहीं थी। शायद अपने द्वारा की गई गलती के लिए शर्मिंदा थी। उसने मुझसे वादा लिया कि आज की रात जो भी हुआ हम दोनों को इसे भुलाना पड़ेगा, इस नियत से कभी तुम हमारे घर नहीं आओगे, न ही किसी से इस बात का जिक्र करोगे।
मैंने वादा किया- ऐसा ही होगा।
फिर मैं बाइक उठाकर चला गया सुबह काम जो शुरू करना था। गाड़ी चलाते हुए सोच रहा था कि अभी तो बाथरूम का दर्पण लगा नहीं और इतना कुछ हो गया जब बाथरूम तैयार होगा और उसमें दर्पण लगेगा तो फिर क्या होगा। फिर ऐसा हुआ भी! शोभा ने ही मुझे बुलाया था!
मैं आपको बता दूँ कि मैंने कभी किसी को मजबूर करके सेक्स नहीं किया। जिसके साथ सेक्स किया, हमेशा उसकी रजामंदी से! चाहे वह गृहिणी हो या कुंवारी लड़की, यदि सामने वाली चाहती है तो सेक्स करना बुरा नहीं है, न ही दोबारा सेक्स करने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए। कुल मिलकर आपसी सहमति से ही सेक्स को सुखद बनाया जा सकता है। प्यार और सेक्स एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
तो पिछली रात में शोभा के साथ रात भर सेक्स किया, शायद इतना सुखद सेक्स पहली बार किया था, इच्छा दोनों की थी पर पहल मुझे करनी पड़ी थी। मतलब एक तरफा नहीं था, दोनों तरफ आग बराबर लगी हुई थी बस औरतें कह नहीं पाती, इशारा जरूर कर देती हैं, यदि समझ गए तो ठीक नहीं तो रास्ता अपना अपना। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पढ़ रहे है.
सुबह 5 बजे जब मैंने जाने की बात की तो जाने से पहले उसने वादा लिया कि मैं दोबारा कभी भी इस बात की मांग नहीं करूँगा, न ही किसी से इसका जिक्र करूँगा। वादा करके मैं उसके घर से चला गया क्यूंकि दस बजे से बाथरूम का काम शरू करना था तो मिस्त्री, बेलदार को लेकर पुनः शोभा तिवारी के घर आ गया।
मिस्त्री को बाथरूम का पूरा नक्शा समझाया और एक कुर्सी पर बैठ गया। पुराना निर्माण को तोड़ा जाने लगा, मुझे बैचैनी हो रही थी, शोभा बच्चों के बेडरूम में थी। मुझे लगता था कि उससे आँखें तो चार होती ही रहेंगी। परन्तु वह नहीं आई, मैं धीरे से उठा, शोभा के पास गया और उसे बुलाया।
उसने पूछा- क्या बात है?
मैंने कहा- प्यास लगी है!
उसने एक जग में पानी और गिलास दे दिया, बात कुछ नहीं की।
मैंने कहा- शोभाजी, मुझसे बात नहीं करोगी?
तो बोली- क्या बात करना है?
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और कमरे में चली चली गई। मैं पानी लेकर आया, फिर कुर्सी पर बैठ गया, सोचने लगा कि शायद शोभा ने रात में अन्तर्वासना में बह कर वह सब किया होगा और अब ग्लानि महसूस कर रही है। मुझे इसका ख्याल रखना पड़ेगा कि उसे कोई ठेस न पहुँचे।
मैं आँखें बंद किये बैठा था कि तभी मुझे पायल की झनझनाहट सुनाई दी। मैंने देखा शोभा थी। उसने मुझे मुझे इशारे से बुलाया, कमरे में ले गई और आलमारी खोलकर 5000 रूपये मेरे हाथ पर रख दिए, बोली- यह तुम रख लो कल की बात को भुलाने के लिए।
शायद मुझ पर भी विश्वास नहीं था उसे, मैंने कहा- शोभाजी, मैं इतना गया गुजरा नहीं हूँ, आप अपने रूपये अपने पास रखें और मेरा विश्वास करें!
रूपये वापस करके मैं बाहर आ गया, मिस्त्री को बोलकर मैं घर चला गया, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था।
शाम को मिस्त्री घर आया, बताया- तोड़ने का काम ख़त्म, क़ल से निर्माण शुरू करना है।
मिस्त्री ने मेरे बताये अनुसार काम चालू कर दिया, दो दिन तक मैं वहाँ नहीं गया।
तीसरे दिन दोपहर में शोभा का फोन आया- अंकित जी, आप क्यूँ नहीं आ रहे हैं? केवल मिस्त्री और मजदूर काम कर रहे हैं, उन्हें गॉइड कौन करेगा?
मैंने कहा- उसकी आप चिंता न करें, मिस्त्री को मैं समझा देता हूँ, उसी हिसाब से वह काम करता है।
शोभा ने कहा- मेरी बात का बुरा मान गए?
मैंने कहा- नहीं!
तो शोभा ने कहा- दोस्त बनकर तो आ सकते हो!
शायद शोभा सामान्य हो गई थी, मैंने कहा- क़ल जरूर आऊँगा।
चौथे दिन टीम के साथ दस बजे शोभा तिवारी के घर पहुँचा, तिवारी जी बैंक जाने की तयारी कर रहे थे, मुझसे बोले- आओ अंकित!
मैंने कहा- जी!
टीम को काम पर लगा दिया और तिवारी जी के पास आ गया। उन्होंने आवाज लगाई- शोभा दो कप चाय तो बना देना!
पूछने लगे- किसी और चीज की जरुरत हो तो बताना!
मैंने कहा- जी।
चाय खत्म करके टीम का काम देखने आ गया। सब अपने अपने काम में लगे थे, तिवारी जी बैंक चले गए।
दोपहर में हिम्मत करके मैं शोभा के पास गया, कहा- पानी चाहिए!
तो बोली- बैठो, लाती हूँ।
मैं बैठक मैं बैठ गया।
पानी देकर पूछा- चाय पियोगे?
मैंने कहा- नहीं, घर जा रहा हूँ, एक काम का ठेका है, वहाँ जाना है।
मिस्त्री को बोलकर वहाँ से चला गया। पांचवें दिन शोभा की मिस काल आई, शायद शोभा मुझसे कुछ कहना चाहती हो, फिर उसने पता नहीं क्या सोचकर फोन कट कर दिया। मैंने भी काल रिटर्न नहीं किया। छठे दिन काम लगभग पूरा हो गया था, मिस्त्री ने बताया।
तो शाम को छह बजे तिवारी जी के घर पहुँचा, तिवारी जी बैंक से अभी आये थे, मेरे साथ बाथरूम देखने आये, कहने लगे- तुमने बहुत सुन्दर बाथरूम बना दिया है। पूरा बाथरूम चमचमा रहा था, दर्पण को दीवार पर लगा कर प्लास्टर और पुट्टी से बेलबूटा बना दिए थे, ऊपर बड़ा रोशनदान से रोशनी हवा आ रही थी.
दर्पण के सामने की दीवार से लगा बाथटब, बीच में आमने सामने की दीवार पर ठण्डे-गर्म पानी के कलात्मक नल, शावर और वाश बेसिन फिट कर दिए गए थे, जमीन में मार्बल, दीवार पर टाइल्स लग चुके थे। दर्पण में अपना पूरा प्रतिबिम्ब दिख रहा था, बाथटब भी पूरा दिख रहा था, यानि नहाने वाला अपने आप को नहाते हुए देख सकता है।
तिवारी जी बोले- काम कब ख़त्म होगा?
मैंने कहा- काम तो लगभग पूरा हो गया, फ़ाइनल टच में 1-2 घण्टे लगेंगे, यानि क़ल दोपहर तक हो जायेगा।
तभी शोभाजी ने आवाज लगाई तो तिवारी जी मुझे लेकर बैठक में आ गए। शोभा ने हम दोनों को चाय दी, चाय देते समय मुझसे बात भी कर रही थी, थोड़ा मुस्कुराई भी थी। तिवारी जी ने जेब से 5000 रूपये देकर कहा- आप अपना पेमेंट चुकता ले लीजिये, क़ल दोपहर मैं बैंक चला जाऊँगा, शाम को आ पाऊँगा। परसों दिन में दौरे पर रहूँगा।
मैंने रूपये रख लिए और आज्ञा ली। मिस्त्री व मजदूरों को लेकर आ गया। सुबह मिस्त्री का फोन आया कि वो काम पर नहीं आ सकता, बच्चे को बुखार है।
मैंने कहा- ठीक है।
सोचा, आज दूसरी जगह का काम की रूपरेखा बना लेंगे।
फिर मैंने तिवारी जी को फोन लगाकर माफ़ी मांगी सारी बात बताकर कहा- आपका काम क़ल हो जायेगा!
वो बोले- कोई बात नहीं।
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सारा दिन दूसरी साईट की तैयारी में निकल गया, दूसरे दिन सुबह मिस्त्री को लेकर शोभा के घर गया। तिवारी जी शायद दौरे पर चले गए थे, तो दरवाजा शोभा ने खोला, उसने नारंगी रंग की साड़ी पहनी थी, बला की खूबसूरत लग रही थी। मिस्त्री अपना काम करने लगा, मैं चेक कर रहा था कि कोई कमी तो नहीं रह गई है।
तभी शोभा ने मुझे बैठक में बुलाया और अपनी गलती के किये क्षमा मांगी।
मैंने कहा- कौन सी गलती?
तो बोली- मैं तुम्हें समझ नहीं पाई थी, यह सोचकर कि कहीं तुम मुझे काम करने के बहाने रोज आकर गलत काम यानि सेक्स को मजबूर न करो या मुझे ब्लैकमेल न करो! ऐसे तो मैं बदनाम हो जाती। इसलिए मैं डर रही थी और तुम्हें रूपये देकर तुम्हारा मुँह बंद करना चाह रही थी, सॉरी! एक दिन यही बताने को मैंने तुम्हें फोन किया था, फिर सोचा कि तुम व्यस्त न हो, इसलिए कट कर दिया था, तुम बहुत अच्छे दोस्त हो, कभी फोन लगाऊँ तो मुझसे बात करोगे या नहीं?
मैंने कहा- शोभा जी, उस रात को मैं एक सुन्दर सपने की तरह मानता हूँ, जो रात गई तो बात गई, मेरी तरफ से तुम निश्चिंत रहना।
तब तक मिस्त्री का काम हो गया था, मिस्त्री से मैंने कहा- तुम गाड़ी को गेट से बाहर निकालो, मैं मैडम को बाथरूम दिखाकर आता हूँ।
मिस्त्री चाभी लेकर बाहर चला गया, मैं शोभा को लेकर बाथरूम मैं गया और पूछा- कैसा लगा?
बोली- कल्पना से भी ज्यादा सुन्दर!
हम दोनों दर्पण में दिख रहे थे, इच्छा हुई कि एक बार चूम लूँ पर मन को काबू में रखकर मैंने कहा- शोभा जी, मैं चलता हूँ, अब आप बाथरूम इस्तेमाल कर सकतीं हैं।
और अपना हाथ बढ़ा दिया। शोभा ने हाथ बढ़ाकर मुझसे हाथ मिलाया, मैं बाहर निकल गया। गेट से मुड़कर देखा तो शोभा मुस्कुरा रही थी। मैं और मिस्त्री निकल कर अपनी साईट पर पहुँच गए, मिस्त्री को वहाँ का सारा काम समझा कर अगले दिन से काम लगाने को कहा और अपने अपने घर चले गए। शाम के चार बजे थे, बीवी मायके से नहीं लौटी थी तो बियर फ्रिज से निकालकर पीने लगा।
साढ़े चार बजे फोन पर काल आई, देखा तो शोभा का नंबर था, बोली- अंकित जी, आपसे काम है, समय हो तो तुरंत आ जाओ।
मुझे कुछ नहीं सूझा, कहा- ठीक है!
फोन कट गया, मैं समझ गया कि आज शोभा ने फिर बाथरूम का दर्पण के सामने स्नान कर लिया होगा। तिवारी जी हैं नहीं, सो मुझे बुलाया है।
साढ़े पाँच बजे मैं उसके घर पहुँचा तो उसने दरवाजा खोला। उसने लोअर और टॉप पहना था, बाल खुले थे, होंठों पर लिपस्टिक लगी थी, बदन से परफ़्यूम की खुशबू आ रही थी, आँखें लाल लग रही थी।
मैंने कहा- कहिये?
बोली- अन्दर तो आओ!
अन्दर जाकर मैं सोफे पर बैठ गया, वो मेरे पास बैठ गई।
मैंने पूछा- कैसे याद किया?
बोली- बस याद आ रही थी!
मैंने कहा- शोभा जी, आपने तो मना किया था कि कभी भी इस प्रकार सोचने के लिए भी।
तो शोभा बोली- तुम में यही तो खास बात है कि मुझे ही इस प्रकार सोचने पर मजबूर कर दिया।
मैं समझ गया कि मेरे हिसाब से यदि औरत को उसके हाल पर छोड़ दो तो जरुरत पर वह खुद बुला लेती है, जबरन चोदने की कोशिश करो तो बिचक जाती है।
अब मेरे लिए औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं थी, मैंने शोभा के हाथों को पकड़कर चूम लिया, पूछा- तिवारी जी कब आयेंगे?
बोली- रात दस बजे तक!
मैंने उसे अपनी ओर खींच लिया, वह मेरे पहलू में पके फल की तरह आ गिरी।
मैंने उसे चूमना शुरु किया, धीरे धीरे टॉप उतार दिया, ब्रा भी अलग कर दी, वह लता की तरह मुझसे लिपट गई। आज शायद शर्म नहीं लग रही थी उसे! मेरी शर्ट को खोलकर उसने अलग कर दी, मेरे सीने पर हाथ फिरा कर लिपट गई। फिर मैं उसे बाँहों में उठाकर बेडरूम में ले गया उसके सारे कपड़े उतारकर उसके ऊपर छा गया। वो सिसकारने लगी।
फिर उसने मेरी पैंट उतार दी, चड्डी हटा कर लंड को थामकर चूमने लगी। मैं उसकी चूत को चूम रहा था, उसकी चूत से पानी रिस रहा था तो ज्यादा देर वह बर्दाश्त नहीं कर पाई, बोली- अंकित, अब मत तड़पाओ! जल्दी से अपना मेरे अन्दर डाल दो। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पढ़ रहे है.
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मैंने अपना लंड उसकी चूत पर रखा और एक धक्का लगाया तो लंड चूत के अन्दर चला गया। मैं उसके स्तन को मसलने और चूसने लगा, उसके मुँह से आह… सी… अंकित…करो… सी… आह… जैसी आवाजें निकल रही थी, साथ अपनी गाण्ड को उचकाकर लंड को अधिक से अधिक अन्दर लेने की कोशिश करने लगी।
मैंने भी धक्के मारने शुरु कर दिए। दस मिनट में उसका शरीर अकड़ने लगा, मैंने भी धक्के तेज कर दिए। वो मुझसे लिपट कर शांत पड़ गई, थोड़ी देर में मेरा भी छुट गया। थोड़ी देर ऐसे ही पड़े हम एकदूसरे को चुमते रहे, फिर हम नंगे ही बाथरूम में अपने आप को साफ करने गए।
दोनों एकदूसरे को साफ कर रहे थे। दर्पण में हम दोनों नंगे एकदूसरे को देख कर फिर उत्तेजित हो गए, मेरा लंड फिर खड़ा हो गया। हमने शावर चालू किया और नहाते हुए खड़े खड़े ही चूत में लंड डालकर शोभा को गोद में ले लिया। उसने अपनी टांगों को मेरी कमर में लपेट लिया।
कुछ देर बाद शोभा को घोड़ी बनाकर चोदा, वो दर्पण में मुझे पीछे से चोदते हुए देख कर बहुत उत्तेजित हो रही थी। जब वो चरम पर पहुँच गई तो जमीन पर चित्त लेट गई, अपने पैर मोड़ कर ऊपर कर लिए और बोली- जोर से करो अंकित! बहुत अच्छा लग रहा है। दस मिनट में मेरा माल निकल गया। हम एक बार फिर नहाए और बेडरूम आकर अपने कपड़े पहने। तब तक रात के आठ बज चुके थे। शोभा ने खाना लगा दिया, हमने साथ खाना खाया।
शोभा बोली- अंकित, मैं कभी याद करुँगी तो तुम इसी तरह मेरे पास आ सकते हो?
तो मैंने कहा- जरूर, लेकिन परिस्थिति के अनुसार! यानि यदि मैं आने की स्थिति में हूँ तो जरूर आऊँगा।
साढ़े आठ पर मैंने कहा- शोभा, अब मुझे चलना चाहिए!
अनमने ढंग से बोली- ओके।
मैंने उसे चूमा और अपने घर चला आया।
मेरे हालचाल पूछने के लिए हफ्ते में एकाध फोन वो जरूर लगा लेती है। मैं चाहकर भी फोन नहीं लगाता कि मालूम नहीं कौन फोन उठा ले। एक दिन मोबाईल पर शोभा का फोन आया, बोली- अंकित, तुमसे मिले कितने दिन गुजर गए, तुमने एक भी फोन नहीं किया?
मैंने कहा- मैं तुम्हारे फोन के इंतजार के सिवा कुछ नहीं कर सकता था, कारण तुम्हे पता है कि मैं इसलिए फोन नहीं लगाता कि पता नहीं फोन कौन उठा ले। फिर मैंने कहा भी था की जब तुम्हारा फोन आएगा तभी बात करूँगा अन्यथा तुम्हें तंग नहीं करूँगा। खैर छोड़ो, तुम्हारा फोन आया, विश्वास नहीं हो रहा है, तुमसे बात करके बहुत ख़ुशी हो रही है, आज तुम्हें हमारी याद कैसे आ गई?
बोली- अंकित तुमसे बात करने की इच्छा हमेशा होती रहती है पर मन को मारकर रखना पड़ता है, आज कंट्रोल नहीं हुआ तो फोन लगाना पड़ा। कारण मेरे पति 15 दिन पहले कम्पनी की तरफ से एक माह की ट्रेनिंग पर पुणे गए हुए हैं, 15 दिन और बाकी हैं, उन्हें बीच में आने के लिए छुट्टी नहीं मिल रही है, मुझे बहुत बुरा लग रहा है, शरीर की आग मुझे जलाये दे रही है, तब मुझे तुम्हारे अलावा कोई दूसरा रास्ता समझ में नहीं आया। क्या तुम हमारे यहाँ आकर इस जलती आग को ठंडा नहीं करोगे?
मैंने फ़ौरन हाँ करने का सोचा परन्तु रुक गया, सोचा कि एकदम नहीं, थोड़ा परेशान करो, मैंने कहा- अभी तो नहीं आ सकता, कुछ जरूरी काम हैं।
बोली- अंकित, क्या तुम मेरे लिए थोड़ा सा समय नहीं निकाल सकते प्लीज…?
मेरा तो अब तक खड़ा भी हो गया था, मैंने कहा- देखूँगा, थोड़ी देर से फोन लगाकर बताता हूँ।
बोली- अंकित, मैं इंतजार कर रही हूँ, जल्दी फोन करना प्लीज…
फिर फोन कट गया। मैंने सोचा, इन्सान और जानवर में कोई ज्यादा फर्क नहीं है, जानवरों में मादा एक निश्चित समय पर गर्मी पर होती है लेकिन नर उसे देख कर कभी भी गर्म हो जाता है और लार टपकाने लगता है फिर मैथुन के लिए पीछे लग जाता है। मेरा मन भी बहक चुका था, अपने आप पर काबू नहीं कर प़ा रहा था और ऐसा मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहता था, फिर शोभा जैसी सुंदरी के साथ यह मौका कभी मिले या न मिले सोचकर फोन लगा ही दिया।
शोभा ने फोन उठाकर सीधा सवाल किया- कब आ रहे हो?
मतलब वो मेरा जबाब जानती थी, मैंने कहा- कब आना है?
बोली- शाम को आना और रात यहीं रुकना है।
मैंने कहा- आज तो नहीं आ पाऊँगा, क़ल आ रहा हूँ!
बोली- एक दिन और इंतजार कराओगे?
मैंने कहा- जरूरी काम है, क़ल पक्का आ रहा हूँ शाम की गाड़ी से!
बोली- मैं लेने आ जाऊँगी!
मैंने कहा- नहीं मैं आ जाऊँगा, घर मेरा देखा हुआ है, तुम परेशान मत होना।
दूसरे दिन शाम को शोभा के घर पहुँचने के दस मिनट पहले फोन से बता दिया कि मैं पहुँचने वाला हूँ!
तो बोली- हाँ आ जाओ!
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जब उसके घर की गली में कदम रखा तो दिल की धड़कनें तेज हो गई और जब उसको गेट पर खड़े देखा तो दिल का दौरा आते आते बचा, कारण उसकी सुन्दरता थी। आज उसने जामुनी रंग की साड़ी पहनी थी जिस पर जरी वर्क था, वैसी ही बिंदी और लाल लिपस्टिक! उसका वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर पा रहा हूँ, एकदम पतिव्रता लग रही थी। बोली- हल्लो अंकित!
और गेट खोल दिया। मैं अन्दर आया तो गेट बंद कर दिया और मकान का दरवाजा खोल दिया। मैं घर के अन्दर आ गया, वो भी अन्दर आ गई और दरवाजे की सिटकनी लगा कर मुझसे ऐसी लिपटी जैसे वर्षों के बिछड़े प्रेमी मिले हों। मैंने भी उसे भींच लिया, उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए नितम्बों तक हाथ चलने लगा। वो चुम्बन पर चुम्बन किये जा रही थी, छोड़ ही नहीं रही थी।
मैंने कहा- शोभा, पानी नहीं पिलाओगी?
तब उसने मुझे छोड़ा, उसका चेहरा देखा तो लगा कुछ पलों ही में उसकी आँखें नशीली हो गई थी, खुमारी जैसी छा गई थी। वो अदा से देखते हुए पानी लेने चली गई, साड़ी में उसके नितम्बों की मटकन अलग ही मजा दे रही थी। मैंने बाथरूम जाकर मुँह-हाथ धोए, फिर बैठक में आकर बैठ गया।
वो पानी लेकर आई और मुझसे सटकर बैठ गई, बोली- अंकित कुछ खाने को लेकर आते हैं!
मैंने कहा- जानू, पहले तुम्हें खायेंगे, खाना के लिए तो रात बाकी है।
सोफ़े पर बैठे बैठे ही मुझसे लिपटने लगी। सारा काम बड़ा ही आसान था, साड़ी में से होकर एक हाथ उसकी पेंटी के अन्दर तक पहुँच गया, दूसरा हाथ ब्लाउज़ के अन्दर की गोलाइयों को नाप रहा था, होंठों से होंठ और जीभ से जीभ का मिलन चल रहा था।
शोभा ने मेरी पैंट की जिप खोलकर लंड को बाहर निकाल लिया और बड़े प्यार से सहलाने-चूमने लगी। मैं तो जैसे जन्नत की सैर कर रहा था बस, हर पल आनन्द बढ़ता ही जा रहा था, हम दोनों अपने होशोहवास खो चुके थे। एक घंटा कब निकल गया, पता ही नहीं चला, होश तब आया जब शोभा के नाख़ून हमारी पीठ और गर्दन पर जोरों से चुभ रहे थे।
हमें यह समझ नहीं आया कि हम दोनों के कपड़े कब उतर गए। दोनों जन्मजात नंगे चुदाई में रत कमरे में बिछे हुए कालीन पर थे। शांत कमरे में सिर्फ दोनों की आहों, सीत्कारों के स्वर उभर रहे थे। शोभा की आँखें बंद थी, मैं समझ गया कि शोभा चरम को प्राप्त कर झर गई है। एक दो मिनट में मैं भी झरने वाला था, शोभा से कहा- शोभा, निरोध नहीं लगाया, मैं भी झरने वाला हूँ, क्या करूँ?
बोली- अन्दर ही झरना प्लीज!
मैं बोला- तुम्हारा महीना कब आया था?
बोली- बीस दिन पहले!
मुझे राहत मिल गई यह सोचकर कि गर्भ ठहरने का कोई खतरा नहीं है। फिर मैंने शोभा के घुटने मोड़कर टांगों को ऊपर किया और जोरों से पूरा का पूरा लंड उसकी चूत में डालने लगा। शोभा नीचे से चूतड़ों को उठा उठा कर सहयोग करने लगी, उसे भी मजा आ रहा था।
पच्चीस तीस धक्कों के बाद मैं झरने लगा, पिचकारी की पहली धार निकलने पर ऐसा महसूस हुआ जैसे जिन्दगी बस यहीं पर थम जाये, फिर हर धार के आनन्द को शोभा ने भी ऐसे लूटा कि वो तो भाव- विभोर ही हो गई थी। मैं लंड को अन्दर को दबाकर निढाल सा उसके ऊपर पसर गया, वो मुझे और मैं उसको चूमता रहा।
फिर हम दोनों उठकर बाथरूम में गए और साथ में नहाए। इच्छा तो नहाते वक्त भी हुई लेकिन सोचा कि जल्दी क्या है रात तो बाकी है। कपड़े पहनकर मैं बैठक में टीवी चालू करके समाचार देखने लगा, शोभा ने सुन्दर काली ब्रा पेंटी पहन कर मेक्सी पहन ली, बोली- खाना क्या खाओगे?
मैंने कहा- परांठे और चावल जीराफ्राई।
किचन में जाकर उसने पहले पापड़ तले फिर फ्रिज से पानी और वोदका की आधी भरी बाटल लेकर आई, बोली- अंकित, पहले थोड़ा ठंडा हो जाये!
उसने दोनों के लिए पेग बना दिए, मैंने पूछा- पहले से मंगा रखी थी क्या?
तो बोली- मेरे पति की है, कभी कभी उनके साथ एक आध पेग ले लेती हूँ।
मैं बोला- आकर पूछेंगे तो…?
शोभा- बोल दूँगी, नींद नहीं आती थी तो मैंने पी ली, तुम चिंता नहीं करो।
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अपना पेग ख़त्म करके वो रसोई में चली गई। मैंने दूसरा पेग बनाया टीवी देखते हुए पीने लगा। तब तक हल्का सुरूर आने लगा था।
आधे घंटे में रसोई से शोभा आई, बोली- खाना तैयार है!
फिर से पेग बनाने लगी, मैंने अपना मना कर दिया- यदि तुम चाहो तो ले लो!
बोली- एक और!
मैंने कहा- मैं यहाँ गम गलत करने नहीं खुशियाँ बाँटने आया हूँ।
वो बोतल उठाकर रख आई और खाना लगा दिया। हमने साथ खाना खाया फिर शोभा बोली- बेडरूम में चलो, मैं भी वहीं आती हूँ।
थोड़ी देर में शोभा अपने कामों से फारिग होकर बेडरूम में आ गई, हम बिस्तर पर लेट कर एक-दूसरे को सहलाते हुए बातें करने लगे। मैं उसे गर्म करने में लग गया। वो भी मुझे सहलाने-चूमने लगी। एक बार फिर नग्न होकर हम दोनों वासना के समुन्दर में गोते लगाने लगे, एक-दूसरे के शरीर के हर अंग को हम दोनों आपस में चूम-चाट रहे थे, हर अंग से खेल रहे थे, लग रहा था जैसे दुनिया में हम बस यही काम करने के लिए आये हैं। कितना असीम सुख मिल रहा था, बयाँ करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। दोनों ही एक साथ स्खलित हुए.
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