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ऑफ़िस के काम से मुझे यूपी के एक छोटे से कस्बे में जाना पड़ा. हमारी कंपनी एक मल्टी नैशनल कंपनी है. कंपनी की ओर से मुझे होटल, खाने पीने और सफ़र के सारे ख़र्चे मिल जाते हैं. जैसा कि हर आम आदमी का ये उसूल है कि कंपनी को चूतिया बनाओ और पैसे बचाओ. वैसे ही मैं भी ऑफ़िस से मिले पैसों को बचाने की कोशिश करता हूं और फिर उन पैसों से ऐश करता हूं. Body Massage Porn
उस कस्बे में मुझे कंपनी के प्रॉडक्ट की रिसर्च करनी थी. सबसे पहले तो मैने सोचा कि कोई बहुत ही सस्ता सा होटल या गेस्ट हाउस ढूंढ़ा जाए और वहां के मैनेजर को पटा कर बहुत बड़ा सा बिल बनाया जाए, ताकि ऑफ़िस में सबमिट करके पैसे बना सकू. मावली पोरा जाने के लिए मुझे रेल स्टेशन उतरना था.
स्टेशन उतर कर मैने रिक्शे वाले को तलाश करना शुरू किया. शाम हो चली थी. स्टेशन के बाहर रिक्शे वाले नहीं थे, लोग इक्का ले कर खड़े थे. ट्रांसपोर्ट का यहां यही साधन था. मैने एक नौजवान इक्का वाले को बुलाया और पूछा कि जाने का वो क्या लेगा. वो बोला, साब कुछ भी दे देना. आप जैसे साब लोग तो यहां कभी कभी ही आते हैं. आप तो हमारे मेहमान हैं. कुछ भी दे देना.
मैं उसकी इक्का में बैठ गया. इक्का चल पड़ी. उसने किसी फ़िल्मी इक्का वाले की तरह एक स्थानीय गीत गाना शुरू कर दिया. धीरे धीरे अंधेरा छाने लगा था. मैंने उससे पूछा… तुम्हारा नाम क्या है.
वो बोला… साब वैसे तो हमारा नाम हरि प्रसाद है, लेकिन लोग हमें हरिया कहते हैं. फिर उसने पूछा… साब, यहां किससे मिलने आए हो ?
किसी से भी नहीं. मैं अपनी कंपनी के काम से आया हूं. दो दिन रहूंगा.”
किस के घर पर रहोगे ?
घर पर कहां. होटल में.
वो हंस कर बोला, “होटल कहां है यहां साब, एक गेस्ट हाउस है….”
” हां तो वहीं रह लूंगा.”
मेरी बात मानिए साब तो यहां के डाक बंगले में रहिए… सस्ता पड़ेगा.
” डाक बंगले में ? पर वो तो सरकारी होता है.”
“काहे का सरकारी साब… जब भी आप जैसा कोई साब यहां आता है, वहीं रहता है… वहां का चौकीदार कुछ पैसे ले कर रहने, खाने पीने का प्रबंध कर देता है.
” ठीक है तो मुझे वहीं ले जाओ.” लगभग बीस मिनट के बाद मावली पोरा गांव आ गया. इक्का वाला मुझे डाक बंगले ले गया और बोला, “साब आप यहीं ठहरो, मैं दिनू को बुला कर लाता हूं…”
दिनू कौन?” मैंने पूछा. वही इस डाक बंगले का चौकीदार.” वो चला गया और फिर थोड़ी देर बाद एक बूढ़े आदमी को साथ ले कर आ गया.
साब ये दिनू है. आप बात कर लीजिए.”
मैंने कहा, “ कितने पैसे लोगे भाई दो रात गुजारने के?”
वो चापलूसी से मुस्कुराया और बोला…“साब आप तो हमारे मेहमान हैं… कुछ भी दे देना.”
मैं हंस कर बोला…“ यहां जो भी आता है, गांव वालों का मेहमान होता है क्या… चलो बताओ, कितना लोगे ?”
वो कुछ झिझकते हुए बोला… “सौ रुपये दे देना साब.”
मैं मन ही मन में खुश हो गया. कंपनी को दो हज़ार का चूना लगाऊंगा. मैंने कहा, ठीक है… ये बताओ, कुछ खाने पीने को मिलेगा क्या अभी?
वो बोला, क्यों नहीं साब… अभी हम अपनी लड़की को बोल देते हैं… फटाफट तैयार कर देगी. आप क्या खाते हैं… बैजिटेरियन या नान बैजिटेरियन ?
मुझे फिर हंसी आ गई…. नॉन वेज मिल जाए तो मजा आ जाए.
अभी लो साब…. अभी आपके लिए एक देसी मुर्गी तैयार कर देते हैं. आप आराम करो जब तक.
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मैने इक्का वाले को दस रुपये दिए. वो खुश हो कर चला गया. चौकीदार मुझे डाक बंगले में ले गया. मैने देखा कि डाक बंगला अच्छा खासा था. एक साफ सुथरा बेड था और रूम भी काफी बड़ा था. उसने पंखा चालू कर दिया और खाने का इंतज़ाम करने चला गया.
सफ़र की थकान उतारने के लिए मैंने सोचा नहा धो कर फ्रेश हो लिया जाए. बाथ रूम गया तो पानी नहीं था. मैं चौकीदार का इंतज़ार करने लगा. इतने में दरवाज़े पर नज़र गई तो आंखे चौंधिया गईं. एक बीस बाईस साल की लड़की कमर पर पानी का घड़ा लिए खड़ी थी.
मैं उसे देखता ही रह गया. ऐसा लगा जैसे चांद निकल आया हो. वो अंदर आ गई और बोली…. बापू ने भेजा है… मोरी में पानी नहीं है… ये रखने आई हूं. मैं थूक निगल कर बोला… रख दो. वो बाथ रूम में पानी का घड़ा रखने चली गई और मैं सोचने लगा, ऐसे पिछड़े गांव में भी हुस्न है !
पानी रख कर वो सर झुकाए मेरे सामने से चली गई और मैं उसकी मस्त चाल और कमर के नीचे के भाग को मतवाले अंदाज़ में हिलता देखता रह गया. मैं बिस्तर पर लेट गया. नहाने का इरादा मैंने छोड़ दिया. एक घड़े पानी में क्या नहाऊं. थोड़ी देर बाद चौकीदार आया और बोला… साब, खाना थोड़ी देर में तैयार हो जाएगा…. हमारी बेटी आ कर दे जाएगी. और कुछ चाहिए तो उसे बोल देना..
लगभग एक घंटे बाद वो लड़की खाने पीने का सामान ले कर आ गई. उसने सलीके से टेबल पर खाना लगा दिया और फिर मेरी तरफ़ देखने लगी. मैने कहा, ठीक है. मैं खा लूंगा. वो चली गई. मैने खाना शुरू किया. खाना अच्छा पका था. भूख लगी थी, शायद इसलिए खाना अच्छा लग रहा था.
थोड़ी देर बाद वो बरतन लेने चली आई और सब सामान समेट कर चली गई. मैंने दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया. पांच मिनट बाद दरवाज़े पर दस्तक हुई. मैने उठ कर दरवाज़ा खोला तो वही खड़ी थी. मैंने हैरत से पूछा… क्या बात है ? ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
वो बोली… और कुछ तो नहीं चाहिए ?
नहीं, और क्या है… चाय मिल सकती है क्या ?
चाय तो नहीं है साब….सुबह मिलेगी. तो और कुछ नहीं चाहिए. वो अंदर चली आई.
मैं हैरत से उसे देखने लगा. वो मुस्कुराई और मेरी आंखों में देखती हुई बोली. आप थक गए होगे, मालिश करवा लीजिए.
मालिश??? कौन करेगा मालिश ???
मैं और कौन ?
क्या ?
हां साब. हम बहुत अच्छा मालिश करते हैं.
मैं उसे देखने लगा. वो लगातार मुस्कुरा रही थी. मुझे ये समझते देर न लगी कि ये लड़की काफ़ी अनुभवी लगती है. फिर भी मैंने उससे पूछा…. किस तरह की मालिश करती हो ?
साब, हम दो तरह की मालिश करते हैं…. गरम और ठंडा.
गरम क्या होता है और ठंडा क्या ?
गरम मालिश में हम तेल लगाते हैं और ठंडे में ऐसे ही.
मेरे बदन में झुरझुरी सी आ गई. मैने दरवाज़े की तरफ़ देखते हुए कहा… तुम्हारे पिताजी को मालूम है कि तुम इस तरह मालिश करती हो.
अरे उन्होंने ही तो भेजा है. कहा है कि मेहमान को कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए.
अंधा क्या चाहे दो आंखें. मैं अपनी खुशी को दबाते हुए बोला… ठीक है, तो कर दो…. मालिश.
गरम या ठंडा?
दोनों ही कर दो…. देखें क्या फर्क है दोनों में.
वो मुस्कुराई और दरवाज़ा बंद करने चली गई. मेरा सारा जिस्म हल्के हल्के कांपने लगा. मैं आगे होने वाली घटना को याद करके थरथराने लगा.
कपड़े उतार दो साब, वो बोली….
मेरा हलक सूखने लगा. लड़खड़ाते हुए लहजे में मैंने पूछा… कक्क…क्या ? कपड़े…
उतार दो. मालिश क्या यूं ही करवाओगे ?
हां… हां… ठीक है. मेरी हालत ख़राब हो रही थी. मैंने कांपते हाथों से अपना शर्ट उतारा और उसे देखने लगा.
वो हंसी और बोली… लेट जाइए.
अच….छा !
मैं चित हो कर बिस्तर पर लेट गया. वो भी पलंग पर चढ़ गई. फिर उसने अपने घाघरे की नाड़ी में ठंसी हुई तेल की बोलत निकाली और उसे खोलने लगी.
मैने बच्चों की तरह पूछा… तेल है ? कौनसा तेल है ?
सरसों का… बहुत अच्छा होता है मालिश के लिए.
हां, मैने भी सुना है. उसने मेरी छाती पर थोड़ा से तेल उंडेला और हल्के हल्के मलने लगी. मेरी रग रग में बिजली सी दौड़ गई. उसके हाथ बहुत कोमल और गर्म थे, या पता नहीं तेल ही गर्म था. धीरे धीरे वो अपना हाथ मेरे पेट तक ले गई और फिर मेरी नाभि में उंगली करने लगी. मेरी घबराहट कम होने लगी और मुझे मज़ा आने लगा.
मैं उसे लगातार देख रहा था. वो काफ़ी सुंदर थी. आंखें किसी हिरनी की तरह काली और गहरी थी और अब उसमें लाली सी छाने लगी थी. मैंने देखा कि उसके गाल भी सुर्ख हो रहे हैं. वो धीमे धीमे मुस्कुरा रही थी. उसके दोनों हाथ मेरी छाती और पेट को मल रहे थे. फिर उसने धीरे से अपनी उंगलियां मेरी पैंट के अंदर डाल दी और उसके हाथों में मेरे लंबे लंबे झांट आ गए.
वो हंस कर बोली…. काटते नहीं हैं क्या ? कितने लंबे हैं. टाइम नहीं मिलता.
उसने मेरी पैंट का ज़िप खोलना शुरू किया. मैं इसी इंतज़ार में था. मैं चुपचाप पड़ा रहा. उसने ज़िप खोल कर मेरी पैंट के बटन भी खोल दिए और अंडर वेयर के ऊपर से मेरे लंड को सहलाने लगी. इससे पहले मेरा लंड कभी इतनी जल्दी नहीं जागा था. ऐसे झट से तन गया कि लगा अभी अंडर वेयर को फाड़ कर बाहर आ जाएगा. मेरी नस नस में करंट दौड़ने लगा. मुझे अजीब सी बेचैनी होने लगी.
वो अब मेरी जांघों पर बैठ गई और फिर उसने दोनों हाथों से मेरी पैंट को दोनों ऊपरी सिरों को पकड़ा और धीरे धीरे उसे नीचे उतारने लगी. पेंट के साथ अंडर वेयर भी उतरने लगी. मैं सर से पैर तक गर्म हो गया. पैंट खिसकते खिसकते घुटनों तक आ गई और फिर उसने पूरी तरह मुझे नंगा कर दिया. मेरी ज़बान सूखने लगी और मैं अपने होंठों पर ज़बान फेरने लगा.
वो मेरी हालत देख कर मुस्कुरा रही थी. बोली, * इससे पहले कभी मालिश नहीं करवाई क्या आपने ?
‘नन..नहीं, कभी नहीं.’
ये पहली मालिश है?
हां बिल्कुल पहली.
वो खिलखिला कर हंसने लगी. मैं लगातार अपने होंठों पर ज़बान फेर रहा था. वो बोली… पानी पिएंगे ?
मैंने ना में सिर हिलाया. वो फिर मुस्कुराई और मुझ पर झुक गई. उसने अपने रसीले होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. मुझे ऐसा लगा, जैसे मुझे अमृत मिल गया हो. वो मेरे ऊपरी होंठ को चूसने लगी. आश्चर्य की बात थी कि उसकी सांसों में गुलाब जैसी खुशबू थी. शायद वो पहले से तैयारी करके आई थी. फिर उसने मेरे होंठों को अपने मुंह में ले लिया और खूब ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी. उसके दायें हाथ ने मेरे लंड को थाम रखा था और वो हल्के हल्के उसे रगड़ रही थी.
मुझसे बरदाश्त न हुआ और मैंने कहा, मुझे तो नंगा कर दिया, तुम भी तो कपड़े उतारो.
वो बोली… नहीं ये नहीं…
मैं बोला… क्या मतलब ?
मतलब क्या ? मैं सिर्फ मालिश करने आई हूं. करवाने नहीं.
मुझे लगा, कहीं खड़े लंड पे धोखे’ वाली बात तो नहीं. वो मेरे शक को भांपते हुए बोली…. आपका काम यूं ही हो जाएगा साब…. बस आप देखते रहिए.
वो अपनी ज़बान से मरी ठड्डियों को चाटते चाटते मेरी छाती तक आई. मेरी चूचियों को मुंह में कुछ देर दबाने के बाद और उसे चूसने के बाद वो चाटते चाटते मेरी नाभि तक चली आई. और फिर…. मैं जिस पल का इंतज़ार कर रहा था, वही हुआ…. उसने झट से मेरे लंड को अपने मुंह में दबा लिया. मेरी तो चीख़ निकलते निकलते रह गई. पहले कभी किसी ने मुझे ब्लो जॉब नहीं किया था.
हल्के हल्के वो मेरे पूरे लंड को अपने मुंह में लेने लगी और अंदर बाहर करने लगी. उसकी लार से मेरा लंड एकदम चिकना हो गया और मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मैं अभी झड़ जाऊंगा. और वही हुआ. जैसे किसी स्रोत से पानी फूट पड़ता है. मेरे लंड से स्पर्म का ऐसा फव्वारा छूटा कि उसके होंठों से होता हुआ गालों को छूता हुआ दीवार से जा टकराया.
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अरे बाप रे…. वो घबरा कर बोली…. ये क्या ? ।
मैं भी चौंक सा गया था…. बोला… ऐसा पहली बार हुआ है न मेरे साथ… पता नहीं… क्या कर दिया तुमने.
वो अपने होंठों और गालों को अपने पल्लू से पोंछते हुए बोली…. इतनी जल्दी टायं टायं फिस्स. ।
मेरे शरीर की गर्मी अब ठंडी होने लगी थी. उसने फिर अपने नरम नरम हाथों से मेरे लंड को पकड़ा और मेरे गीले गीले लंड को मसलने लगी. फिर उसने अपनी मुट्ठी में मेरे लंड को पकड़ा और हस्त मैथुन करने लगी. मेरा लंड फिर खड़ा हो गया. वो मुस्कुराई और बोली… चलो…फिर तैयार हो गया तुम्हरा बबुआ.
मैने उसका हाथ अपने लंड से हटाया और नकली गुस्से से बोला… हाथ से ही करती रहोगी क्या ?
हां… दूसरा काम करने का अनुमती नहीं है हमको.
किसकी अनुमति चाहिए.
हमरे बापू की.
अरे बापू को मारो गोली… उन्हें क्या मालूम कि तुमने दूसरा काम किया भी है कि नहीं.
नहीं उनको मालूम पड़ जाएगा.
कैसे मालूम पड़ेगा… तुम्हारे घाघरे में झांक कर देखेंगे क्या ?
हां साब, वो ऐसा ही करते हैं…. हमरी बुर में उंगली डार कर परखते हैं.
अरे… ये तुम्हारा बाप तो गायनोकॉलाजिस्ट लगता है.
उसने फिर मेरे लंड को पकड़ लिया और मसलने लगी. मेरा लंड जो ढीला हो रहा था, फिर तनने लगा. मैंने फिर उसका हाथ अपने लंड से हटाया और बोला… नहीं… तुम्हें वो दूसरा काम करना ही होगा… नहीं तो तुम जाओ.
ठीक है चले जाते हैं….
वो उठने लगी तो मैं घबरा गया. कहीं सचमुच न चली जाए. मैंने जल्दी से कहा. अच्छा ठीक है यार… चलो.. वही करो.
वो हंसने लगी और बोली… हाथ से या मुंह से. मुंह से…
लेकिन मैं भी कुछ करना चाहता हूं.
क्या ?
तुम भी काफ़ी थक गई होगी… कहो तो मालिश कर दें.
नहीं बाबा… हम जानते हैं… मालिश वालिश क्या… आप वही करना चाहते हो.
नहीं… मैं अपना लंड तुम्हारी चूत तक नहीं ले जाऊंगा… सिर्फ़ हाथ से.
हमने कभी ऐसा नहीं करवाया किसी से.
तो अब करवा लो.
कहीं कुछ हो न जाए.
क्या होगा…? सिर्फ़ मज़ा आएगा. मैं उसे बोलने का ज़्यादा मौका नहीं देना चाहता था. मैने झट से अपना हाथ उसकी चूत पर रख दिया. उसके मुंह से एक सिस्कारी निकली…. ओह…अफ ! मैने अपने पंजे से उसके घाघरे पर से ही उसकी फूली हुई चूत को पकड़ लिया और हिलाने लगा. उसकी आंखों में नशा सा छाने लगा…
वो बोली… नहीं साब… कुछ गड़बड़ न हो जाए.
मैने उसकी बात नहीं सुनी और नीचे से उसके घाघरे के अंदर हाथ ले गया. दोनों जांघों के बीच उसकी चूत बड़ी मुलायम और कुंवारी सी थी. मैं सिर्फ महसूस कर रहा था. देखने का मौका नहीं मिला था. मैंने अपनी उंगली उसकी चूत की दरार में डाल दी. भीगी हुई उसकी चूत का स्पर्श मुझे किसी और ही दुनिया में ले गया. मुझे ख़ुद भी नशा होने लगा.
ये कैसा एहसास !!! उसकी आंखें बंद सी होने लगीं…. उसने आसानी के लिए अपनी दोनों टांगों को फैला लिया. चूत की दरार खुल सी गई. मैंने घाघरा ऊपर उठाया और आंखें फाड़ फाड़ कर उसकी गुलाबी चूत को देखने लगा. हल्का हल्का पानी सा रिस रहा था उसकी दरारों से. देखने से ही पता चलता था कि इस खूबसूरत चूत ने पहले किसी लंड का मज़ा नहीं चखा था. या अगर चखा भी होगा तो एक या दो बार.
मैने उससे कहा… ऐसा तो हो नहीं सकता कि तुम पहली बार मेरी मालिश कर रही हो. इससे पहले भी कई बार तुमने कितनों की मालिश की होगी… तो क्या किसी ने भी तुम्हें नहीं चोदा ?
हमने चोदने दिया ही नहीं… वो अपने होंठों को काटते हुए बोली.
और अगर मैं कोशिश करूं तो…
करके देखो.
मैं उसकी चूत पर झुक गया और धीरे से अपनी ज़बान उसकी चूत के दाने पर रख दी. वो मस्ती सहन न करते हुए उफ कर बैठी. मैने धीरे धीरे उसके दाने को अपनी जीभ से सहलाना शुरू किया. वो “आह, ओह” करने लगी. उसकी आंखें बंद थीं. और वो ज़्यादा मज़ा लेने के लिए अपनी चूतड़ों को मेरे मुंह पर धक्का देने लगी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
अब मुझे सिर्फ अपनी ज़बान बाहर निकाले रखनी थी. उसकी चूत बार बार मेरी ज़बान पर आती और हट जाती. उसे इतना मज़ा आने लगा कि उसने मेरे बाल पकड़ लिए और मेरे सर को आगे पीछे करने लगी. मेरा मुंह बार बार उसकी चूत से टकराने लगा. मुझे शरारत सूझी और मैंने अपनी ज़बान को मुंह में बंद कर दिया. वो बेचैन हो गई और सिसकते हुए बोली… साब… डाल दो डाल दो…
मैने पूछा … क्या डाल दो.
अपनी जीभ….
कहां..
हमरी बुर में … जल्दी..
नहीं …. जीभ नहीं..
भगवान के लिए साब…
मेरी जीभ थक गई है….।
तो अंगुली ही डाल दो…. घुसा दो.
उंगली में दर्द हो रहा है… ।
अरे साब, काहे को इतरा रहे हो.
मैं हंस कर बोला… तुम भी तो इतरा रही थी…
अच्छा जो करना है करो.
निकालू लंड ? ।
घुसा दो… जल्दी.
मैने उसे बिस्तर पर चित लिटा दिया और उसके घाघरे को अच्छी तरह से ऊपर कर दिया. अब उसकी प्यारी सी चूत उभर कर मेरे सामने आ गई थी…. मुझे फिर नशा होने लगा. दिल चाहा कि फिर चाटने लगूं….लेकिन मैं अपने लंड को भी नाराज़ नहीं करना चाहता था.
मैंने उसकी दोनों टांगों को अपने कंधे पर रखा और उसकी चूतड़ से सट कर बैठ गया. अब मेरा लंड उसकी चूत को छू रहा था. उसकी आंखें बंद थी. मैंने धीरे से अपने लंड का सिर उसकी चूत के दाने पर रख दिया. उसके मुंह से एक आह निकल गई. मैं अपने लंड के सिरे से उसकी दाने को रगड़ने लगा.
उसकी सिसकारियां बढ़ने लगीं. मैंने देखा कि उसकी चूत से धीरे धीरे चिकना द्रव निकल रहा है. ल्युब्रिकेंट की कोई ज़रूरत नहीं. अब मुझे भी सहन नहीं हो रहा था. मैंने अपने लंड को उसकी चूत के छोटे से छेद में रखा और धीरे से धक्का दिया. हल्की सी पचाक की आवाज़ के साथ आधा लंड उसकी चूत में घुस गया.
ऐसा लगा जैसे स्वर्ग मिल गया हो. वो चीख़ पड़ी. मैने फिर धक्का मारा. मेरा ६ इंच का लंड पूरी तरह उसकी चूत में समा गया. इतनी चिकनी चूत थी कि क्या बताऊं. एक बार मैंने मक्खन के कटोरे में यूं ही फ़न के लिए अपना लंड घुसाया था. बस ऐसा ही लगा मुझे. वो दांत पीसते हुए बोली…. आगे पीछे करो साब…
मैंने धीरे धीरे अपना लंड उसकी चूत में अंदर बाहर करना शुरू किया. वो भी अपनी चूतड़ उठा उठा कर मेरी मदद करने लगी. फचाक फचाक की आवाज़ आने लगी. मैं डर रहा था कि कहीं कोई आ न जाए. मुझे दरवाज़े की तरफ़ देखते हुए वो बोली… चिंता न करो साब…. कोई नहीं आएगा… आप जोर जोर से धक्का मारो.
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मैंने अपनी स्पीड तेज़ कर दी. अब मेरा लंड किसी पिस्टन की तरह फटाफट आगे पीछे हो रहा था और उसकी चूत उसका खूब मज़ा ले रही थी. मैने उसकी टांगों को अपने कंधों से नीचे उतारा और उससे कहा…पलट जाओ. वो घबरा कर बोली… क्यों… पीछे से धक्का मारता हूं. गांड में तो नहीं डालोगे ना. नहीं नहीं… चूत में ही डालूंगा… लेकिन पीछे से. देखना बड़ा मज़ा आएगा.
वो पलट गई. मैंने उसके पेट के नीचे हाथ डाल कर उसे उठाया. वो कसमसाने लगी. बोली, क्या करते हो. मैं बोला… कभी गाय को देखा है, बैल से चुदवाते हुए. हट… मैं कोई गाय हूं क्या… सुनो, जैसा मैं करता हूं…वैसा ही करो. मैने उसके दोनों घुटने मोड़े और उसे कुतिया की तरह दोनों हाथ और पैरों पर खड़ा किया.
वो मुड़ मुड़ कर पीछे देखने लगी. कुतिया की तरह खड़ी वो बड़ी अच्छी लग रही थी. मैंने उसकी गांड को देखा जो बड़ी खूबसूरत और सुडौल थी. मैंने उसकी गांड के दोनों भागों पर अपना हाथ फेरा. ऐसा लगा जैसे किसी चिकने फ़र्श पर हाथ फेर रहा हूं. वो फिर बोली… देखो गांड में न डालना.
मैं अपने दोनों घुटनों पर खड़ा हो गया… अब मेरा लंड उसकी चूत के बराबर आ गया था. मैंने अपना तना हुआ लंड पीछे से उसकी चूत में डाला जो बड़ी आसानी से अंदर चला गया. वो अपनी गांड को खुद ही आगे पीछे करने लगी. मेरा लंड उसकी चूत में अंदर बाहर होने लगा. जैसे दोनों जहान की खुशियां मिल गई.
लगभग दस मिनट तक मैं उसे धीरे धीरे चोदता रहा. वो भी मज़े लेती रही. उसे पता चल गया कि डॉगी स्टाइल में चुदवाने का क्या मज़ा होता है. और उसने बोल ही दिया… ये तो बड़ा अच्छा तरीका है साब. मारो जोर जोर से… और जोर से. । मैं बड़ी ताकत से उसे चोदने लगा. उसकी सिसकारियां बढ़ने लगीं.
बीस मिनट बाद मेरे लंड से फव्वारा छूटा और उसकी चूत में पता नहीं कहां चला गया. मैने अपने लंड को उसकी चूत में कस कर दबाया और वीर्य की आख़िरी बूंद भी उसकी चूत में निचोड़ दी. फिर में निढाल हो कर चित लेट गया और अपनी आंखें बंद कर लीं. वो डॉगी स्टाइल में ही रही और अपनी गांड उठाए तकिए पर पड़ गई.
दस मिनट हम यूं ही पड़े रहे. फिर मैंने अपनी आंखें खोलीं तो देखा, वो भी अपनी आंखें मूंदे हुए थी और उसी तरह गांड उठाए लेटी थी. मैंने जब उसकी उठी हुई गांड और नीचे से झांकती गुलाबी चूत और उससे अब भी धीरे धीरे टपकते अपने वीर्य को देखा तो मेरा लंड फिर चौंकने लगा. मैने अपनी पहली उंगली उसकी गांड के छेद में डाली तो वो उछल पड़ी और सीधी हो गई. फिर चित लेट कर बोली… बहुत समय हो गया साब…. अब मैं जाऊंगी.
थोड़ी देर और रुक जाओ.’ मैंने कहा… ‘एक बार और !’ ‘नहीं, आप तो कल भी हैं न… अब कल… और हां… सौ रुपये तैयार रखना….आज के. और कल भी मजा करना है… तो कल के सौ रुपये अलग से. मुझे ये समझते देर न लगी कि ये उसकी पहली चुदाई नहीं थी… मुझे अच्छा बेवकूफ बनाया था उसने.
दूसरी सुबह मैं देर तक सोता रहा. आंख तब खुली, जब कोई ज़ोर ज़ोर से दरवाज़ा पीट रहा था. मैने एक गंदी सी गाली दी और बिस्तर से नीचे उतरा. दरवाज़ा खोला तो डाक बंगले का चौकीदार खड़ा था. हम तो समझे बाबू, तुम गए !” वो मुझे ग़ौर से देखता हुआ बोला. कहां ऊपर !”
मैंने चिढ़ कर कहा. ग्यारह बज गए हैं बाबू साब…. इतनी देर तक सोते हो क्या?” तुम्हें क्या ?” “अरे बुरा क्यों मानते हो साब. तुम उठे नहीं, तो हमें घबड़ाहट होने लगी थी.” “अरे तो ग्यारह ही तो बजे हैं सुबह के….कौन सा गजब हो गया.”
साब यहां गांव में लोग ६ बजे सुबह ही उठ जाते हैं.” * मैं तो इस गांव का नहीं हूं… शहर में सब देर से उठते हैं..”
नाश्ता ले आऊ क्या ?” * हां, लेकिन पहले दो तीन बाल्टी पानी दे जाओ, कल से नहाया नहीं…”
नहा धो कर और नाश्ता करके मैं अपनी रिसर्च के सिलसिले में गांव में निकला. मुझे अपनी कंपनी के प्रॉडक्ट की गांव भर में रिसर्च करके रिपोर्ट तैयार करनी थी और कल सुबह ही शहर की ट्रेन पकड़नी थी. अपना काम ख़त्म करते करते शाम हो गई.
दोपहर का खाना मैंने गांव के ही एक घटिया से होटल में खाया. शाम को जब डाक बंगले में लौटा तो देखा चौकीदार की लड़की गांव के छोरों के साथ कबड्डी खेल रही थी. मुझे देख कर वो झट मेरे पास आई और बोली… कबड्डी खेलेंगे साब ?
मैंने पहले तो उसे फिर वहां मौजूद बच्चों को देख कर कहा…. ‘तुम कबड्डी खेलती हो ? और वो भी लड़कों के साथ ?” “ हां तो क्या हुआ. बचपन से खेलती आ रही हूं…”
अच्छा ठीक है. अगर एक कप गर्मा गरम चाय मिल जाए, तो बड़ा अच्छा हो.” * क्यों नहीं, निकालिए दो सौ रुपये !”
क्या ? दो सौ रुपये ?? इतनी मंहगी चाय !” चाय तो मुफ्त में मिलेगी साब…. सौ रुपये कल रात की मालिश के.”
और दूसरे सौ रुपये ?’ * आज नहीं कराएंगे क्या मालिश ?” मेरे बदन में झुरझुरी सी आ गई. मैंने उसे सर से पांव तक देखते हुए कहा…“ क्यों नहीं… मगर मुझे कल ही सुबह की ट्रेन पकड़नी है.”
कल सुबह ना… मैं रात को जल्दी आ जाऊंगी.” ** अच्छा…तो जाओ चाय ले आओ.” पहले दो सौ रुपये !” उसने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा.
अरे तो मैं कहीं भागा जा रहा हूं क्या?” मैंने चिढ़ कर कहा. ** कायदे की बात है साब.” मैने जेब में हाथ डाला और दो सौ रुपये निकाल कर उसके हाथ पर रख दिए और बोला, “और अगर रात को नहीं आई तो ?’
मूठ मार कर सो जाना.” वो दांत निकाल कर बोली और वहां से भाग गई.
मैं डाक बंगले में आया. बहुत थका हुआ था. सोचा कि नहा लूं. मगर बाथ रूम फिर किसी विधवा की सूनी चूत की तरह उजड़ा हुआ था. मैं पलंग पर आ कर लेट गया. दरवाज़े पर आहट हुई तो मैंने सर घुमा कर देखा और चकरा गया. पंद्रह सौलह साल की एक लड़की एक हाथ में चाय का कप और दूसरे में बिस्किट की प्लेट पकड़े खड़ी थी. इससे पहले कि मैं कुछ कहता वो अंदर आ गई और टेबल पर चाय और बिस्किट रख दिए. मैं उसे ध्यान से देखने लगा.
तो वो बोली…“ हमारा नाम रज्जो है साब.”
अच्छा… बड़ा अच्छा नाम है. तुम क्या उसकी बहन हो… (मुझे अभी तक चौकीदार की लड़की का नाम भी नहीं मालूम था).
किसकी?” तुम चौकीदार की लड़की हो?”
हां.’
तुम्हारी बड़ी बहन का क्या नाम है?
उसका तो नाम शालू है!”
अच्छा…. तुम भी बड़ी अच्छी हो.
अब हम जाएं.
हां, लेकिन शालू को भेज दो.
वो चली गई. थोड़ी देर बाद शालू आई और कमर पर हाथ रख कर बोली…“क्या चाहिए?”
मैं ये जानना चाहता था कि तुम आ रही हो न रात को.
बोलो तो अभी से आ जाऊं?
तुम इतना गुस्सा क्यों करती हो? पैसे मिल गए इसलिए क्या?
“हम बेमान नहीं है साब… हराम के पैसे नहीं चाहिए हमको.”
“ठीक है… खाने का क्या ?”
भूख लगी है तो अभी भेज देती हूं.
“वो तुम्हारी बहन भी बहुत अच्छी है.”
“उसका तो नाम भी नहीं लेना साब!”
मैंने कहां उसका नाम लिया… वैसे क्या नाम है उसका?”
क्या करोगे नाम जान कर?
मुझे मालूम है, रज्जो नाम है उसका.”
अच्छा मैं खाना ले कर आती हूं. ये कह कर वो चली गई. मैं समझा कि जल्द आ जाएगी. पर आई दो घंटे बाद. मेरे मन में शंका का भूत मंडरा रहा था. उसे देख कर जान में जान आई और मैने शिकायत करते हुए कहा…“इतनी देर लगा दी.” ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
वो मेरी बात अनसुनी करते हुए बोली….“ खाना खा लो…. और ये बताओ कि कब आऊं?”
इधर ही रुको, जाने की क्या ज़रूरत है.
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वो पास ही पलंग पर बैठ गई और फिर कुछ देर बाद बोली. “एक लड़की और है यहां… बिजली. बहुत अच्छी है. बोलो तो उसको भी ले आऊं.”
मेरे हलक में खाना अटक गया.
वो मुझे ध्यान से देखती हुई बोली… “क्या हुआ?”
“ कुछ नहीं, अच्छी है तो… ले आओ. मुझे क्या ?”
“यूं ही फोकट में ?”
मैं भी कोई फोकट चोदू नहीं हूं…” मुझे गुस्सा आ गया… दे दूंगा उसको भी सौ रुपये, और क्या ?”
“नहीं नहीं.” वो जल्दी से बोली. “ उसको मत देना, मुझे देना.”
“क्यों, तुम्हें तो दे दिया न?”
हां पर, वो सौ रुपये मुझे देना, उसमें से पचास में रखेंगी और पचास उसको देंगी.”
“बहुत सयानी हो.”
बचपन से ही.” वो बोली और फिर उठ कर चली गई.
जैसे ही मैं खाना खा कर फ़ारिग़ हुआ, वो एक लड़की को ले कर आ गई. मैंने देखा वो भी बड़ी अच्छी थी. अच्छा तो ये है बिजली.
नमस्ते बाबू जी.” बिजली हाथ जोड़ कर बोली. यहां क्या सभी लड़कियां यहीं काम करती हैं ? मैने शालू से पूछा.
“सब नहीं साब, सबके ऐसे नसीब कहां?” ये बोल कर वो हंसने लगी.
बिजली ने भी उसका साथ दिया. फिर शालू दरवाज़ा बंद करने चली गई और मैंने बिजली से पूछा. तुम भी मालिश करती हो?”
नहीं हम तो… वो बोलते बोलते रुक गई.
शालू बोली… “ये डायरेक्ट काम करती है साब… मालिश का झगड़ा ही नहीं.”
मैने ग़ौर से बिजली को देखा तो वो मुझे इतनी बुरी नहीं लगी. उसके कपड़े ढीले ढाले थे, जिससे उसके बदन का अंदाज़ा नहीं हो रहा था.
मैने दोनों से कहा, “ देखो मुझे सुबह जल्द उठना है… इसलिए…”
दोनों लड़कियों ने एक दूसरे को देखा और खिलखिला कर हंस पड़ीं. उन्हें बात बात पर हंसने की आदत थी. ‘‘लेट जाओ साब.” शालू बोली. मैं लेट गया तो शालू ने फिर तेल की वही बोतल निकाली और बोली…“ मालिश तो करेंगे ना ?” “इस वक़्त तो सचमुच मालिश का ही जी चाह रहा है… बहुत थक गया हूं.
बिजली मेरे करीब आ कर बैठ गई और मेरी शर्ट के बटन खोलने लगी. शर्ट उतारने के बाद उसने मेरी पैंट की तरफ़ हाथ बढ़ाया. पैंट की ज़िप खोल कर उसने अंडरवेयर के साथ पकड़ कर पैन्ट को नीचे घसीटा और दूसरे ही पल मैं नंगा हो गया, पूरी तरह. लंड तो पहले ही तन कर खड़ा हो गया था.
बिजली ने अपने हाथ का बाल्शित बना कर मेरे लंड को नापा और शालू से कहा…“ कल्लन से दो उंगल कम है!” मेरी झांटें जल गईं. मैंने बुरा मानते हुए कहा. “ कौन है ये कल्लन मादरचोद ?” वो दोनों फिर खिलखिला कर हंसने लगीं. शालू बोली.
कल्लन हमारे गांव का मुखिया है….और बिजली का रखवाला.” ** और तुम्हारा?” मैंने शालू से पूछा…जो अब सरसों का तेल मेरी छाती और पीठ पर मल रही थी. उसने अपने बालों को पीछे झटकते हुए कहा… “अरे वो बड़ा हरामी है… उसकी बात मत करो.”
बिजली ने भी थोड़ा सा तेल अपने हाथों में ले लिया और मेरे लंड के टिप पर उंडेल दिया. फिर उसने अपनी दोनों मुलायम उंगलियों से उसे मसलना शुरू कर दिया. बिजली के इस मसाज से मेरे रोम रोम में बिजली सी कौंधने लगी. वो बड़ी नज़ाकत से लंड के सिरे को मसल रही थी. मुझे मज़ा तो आने लगा, पर न जाने क्यों मेरे दांतों में सनसनी सी होने लगी.
फिर बिजली ने थोड़ा तेल और लिया और पूरे लंड को उससे भिगो दिया. मेरा लंड चक चक करने लगा. अब उसने मुट्ठी बना कर मेरे पूरे लंड को अपनी गिरफ़्त में ले लिया और आगे पीछे करने लगी. पता नहीं ये तेल का कमाल था या बिजली के नाजुक हाथों का, मैं बिस्तर पर तड़पने लगा.
बिजली हैरान हो कर बोली. “क्या बाबू जी… तुम तो लौंडो जैसा मचल रहे हो…’ मैंने उसका हाथ अपने लंड से हटाया और बोला…“यकीन मानो, ये सब मैं पहली बार करवा रहा हूं… तजुर्बा नहीं है.” शालू मेरे हाथों को पकड़ कर बोली…“ क्यों झूट बोल रहे हो साब, रात को क्या किया था…? अच्छा अब उल्टे हो कर लेट जाओ… पीठ पर मालिश कर देती हूं.’
मैं उल्टा हो कर लेट गया तो बिजली बोली… “वाह साब, तुम्हारी चूतड़ तो बड़ी चिकनी है.’ मुझे शर्म सी आई और मैंने चादर से अपना पिछला भाग छुपा लिया. दोनों ज़ोर ज़ोर से हंसने लगीं. अब शालू और बिजली दोनों ने मेरी पीठ की मालिश शुरू कर दी. उनके नरम नरम हाथों से मेरी थकान मिटने लगी.
वो बड़ी खूबसूरती से मेरे शरीर की मालिश कर रही थीं. फिर शालू ने झटके से मेरे पैरों पर पड़े चादर को हटा लिया और बोतल का सारा तेल मेरी गांड के फांकों में उंडेल दिया और फिर ठहाके लगाने लगीं. मैने भी कुछ नहीं कहा, असल में मुझे भी मज़ा आने लगा था. अब पता नहीं किसकी उंगली थी, जो मेरी गांड के छेद से छेड़छाड़ कर रही थी.
चिकने तेल में डूबी नाजुक उंगली धीरे धीरे मेरी गांड के छेद में अंदर बाहर होने लगी. ये एक नया अनुभव था मेरे लिए. मेरा लंड इतना सख़्त हो गया, जैसे अभी फट पड़ेगा. मैने सिर घुमा कर देखा तो वो बिजली थी, जो ये हरकत कर रही थी. मुस्कुरा कर बोली…* कैसा लग रहा है बाबू जी?” मेरे मुंह से आवाज़ नहीं निकली.
अब उसकी उंगली तेज़ी से गांड के छेद में अंदर बाहर हो रही थी और मैं सनसनाहट से कांप रहा था. शालू मेरे पीठ पर लगातार रगड़े लगा रही थी. एक पल को दिमाग़ में ख़याल आया कि ये गांव तो स्वर्ग है, इसे छोड़ कर कहीं जाना बेवकूफी है. बिजली की उंगली लगातार मेरी गांड के छेद में अंदर बाहर हो रही थी.
शालू ने मेरे पेट के नीचे अपना हाथ घुसाया. मैंने अपना पेट ऊपर कर लिया. अब मेरा लंड शालू के हाथ में था. तेल से चिकने हाथ ने लंड को यूं पकड़ लिया जैसे बाज़ चिड़िया को दबोच लेता है. दो तरफ़ा हमले से मैं पूरी तरह सरेंडर हो गया. ऊपर से गांड में उंगली और नीचे से लंड की मालिश.
मुझे से सहन नहीं हुआ और मैं उठ कर बैठ गया. दोनों मुस्कुरा मुस्कुरा कर मुझे देखने लगीं. मैं गहरी गहरी सांस लेता हुआ तकिए से टेक लगा कर बैठ गया. शालू ने फिर मेरा लंड पकड़ लिया और धीरे धीरे उसे सहलाने लगी. । बिजली मेरे करीब आ गई और उसने अपने तपते होंठ मेरे ख़ुश्क होंठों पर रख दिए.
फिर वो मेरे होठों को चूसने लगी. उसके दोनों हाथ मेरे निप्पलों को मसल रहे थे. सेक्स का ये अनोखा मज़ा मैं पहली बार ले रहा था. कल रात को इतना मज़ा नहीं आया था. मैंने अपनी आंखें बंद कर लीं. बिजली मेरे होंठों को चूसती जा रही थी. फिर वो मेरी ठोड़ी को चूसने लगी और फिर गले से होती हुई मेरे निप्पलों तक आ गई और उसे दांतों से हलके हलके काटने लगी.
मेरे दांतों में फिर सनसनी होने लगी. अचानक मुझे एहसास हुआ कि शालू ने मेरे लंड को अपने मुंह में ले लिया है. उसकी गरम गरम ज़बान मेरे लंड को मसलने लगी और थूक से मेरा लंड इतना चिकना हो गया कि बार बार फिसल कर शालू के मुंह से बाहर आने लगा.
या शायद वो जानबूझ कर ऐसा कर रही थी. एक तो तेल की चिकनाई और ऊपर से शालू का अमृत भरा मुंह, अगले ही पल लंड का सारा रस बाहर आ गया और शालू एक झटके से पीछे हो गई. कुछ रस उसने पी भी लिया. मेरा लंड अब उसके हाथ में था. उसने लंड को ज़ोर ज़ोर से दबाया और सारा बचा खुचा रस निचोड़ दिया.
मुझे बड़ा अच्छा लगा. अब बिजली ने मेरे लंड को पकड़ लिया और उसे झंडे की तरह हिलाने लगी. शायद वो उसे मुरझाने नहीं देना चाहती थी. मैं तकिए से टेक लगा कर बैठा था. अब मैं पूरी तरह लेट गया. दोनों मेरे शरीर को देखने लगीं. फिर न जाने बिजली को क्या सूझी कि वो मेरे बाजू में ही लेट गई और मुझे करवट बदलने कहा.
मैं दूसरी तरफ़ करवट बदल कर लेट गया. उसने फिर मेरी गांड में अपनी उंगली डाल दी. मैंने पलट कर कहा… “ये तुम बार बार ऐसा क्यों कर रही हो?’ वो बोली…“ मजा आ रहा है कि नहीं ??” मैं कुछ नहीं बोला… बोलता भी क्या. अचानक मैं उछल पड़ा. ऐसा लगा जैसे मेरी गांड के छेद पर कोई सांप रंग गया हो. दोनों लड़कियों की हंसी छूट पड़ी और दोनों अपना मुंह दबाए ऐसे हंसने लगीं, जैसे अब कभी चुप नहीं होगी.
बिजली ने अपनी गरमा गरम जीभ मेरी गांड के छेद से टकराई थी. बिजली हंसती हुई बोली….“ क्या हुआ साब ?”
नहीं कुछ नहीं.” ठीक था ना ?” हां, ठीक तो था, पर अचानक था…!”
अच्छा वैसे ही पलट जाओं..” बिजली बोली. मैं पलट गया और उसने फिर अपनी लहराती सांप जैसी गरम जीभ मेरी गांड के सुराख पर रख दी. फिर धीरे धीरे उसने गांड की फांकों के बीच अपनी जीभ को फेरना शुरू किया. मुझे तो जैसे जन्नत मिल गई. पर साथ ही हाथ पैर ऐसे थरथरा रहे थे जैसे सर्दी लग गई हो. दू
सरी तरफ़ से शालू ने फिर मेरे लौड़े को थाम लिया और मुट्ठी में रगड़ने लगी. ये सिलसिला कुछ देर चलता रहा और आखिर मैं फिर झड़ गया. वीर्य को अपने हाथों में ले कर शालू ने उसे मेरे सारे लंड पर मल दिया और हलके हलके मसाज करने लगी. अब मेरा लंड सोने लगा था.
शालू ने अपना हाथ हटा लिया. मैंने बिजली को भी अलग किया, जिसने मेरी गांड को चाट चाट कर बिलकुल चिपचिपा कर दिया था. कुछ देर तक मैं यूं ही पड़ा रहा. शालू बोली… “अब जाएं क्या साब हम लोग?” मैं चोंक कर बोला… क्यों…? नहीं नहीं… रुको अभी. अभी असली काम कहां हुआ है.”
मैं फिर अपने आपको फिर तैयार करने लगा. वो दोनों मुझे देख रही थीं. मैने मुस्कुरा कर कहा. “अब मैं तुम लोगों की मालिश करूंगा. चलो कपड़े उतारो.” मेरे ये कहने की देर थी कि दोनों ने फटाफट अपने कपड़े उतार दिए और पूरी तरह नंगी हो कर मेरे सामने खड़ी हो गईं.
मैने दोनों की चूत की तुलना करनी शुरू की. शालू की चूत बहुत मस्त थी. कुंवारी और तंग तंग सी. वो खड़ी थी, इसलिए उसकी चूत सिर्फ एक दरार सी नज़र आ रही थी. जबकि बिजली की चूत अनुभवी थी और फूली हुई थी. उसकी चूत का हर भाग खुला खुला सा था और चूत के होंठ चीख चीख कर ऐलान कर रहे थे कि इस चूत को काफ़ी लौड़ों ने घिस डाला है.
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मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि शुरूआत कैसे करूं. ये समस्या भी अनुभवी बिजली ने हल कर डाला. उसने कहा, “साब, आप हट जाओ बिस्तर पर से. हम लेटेंगे यहां.” मैं पलंग से उठ कर खड़ा हो गया, मेरा तना हुआ लंड धीरे धीरे झटके खा रहा था. शालू और बिजली दोनों पास पास लेट गए और बिजली ने कहा, “साब अब चढ़ जाओ, पहले शालू की बुर में अपना डंडा डालो, पांच बार धक्के मारो और फिर मेरी बुर में घुसाओ और पांच बार धक्के मारो.”
मुझे उसका आइडिया पसंद आया और मैं सबसे पहले शालू पर चढ़ गया. उसने अपनी टांगे लंबी कर रखी थी, और चूंकि उसकी चूत बहुत टाइट थी, इसलिए मुझे अपना मोटा लंड उसकी चूत में डालने में दिक्कत हो रही थी. शालू की समझ में भी ये बात आ गई और उसने अपनी दोनों टांगें फैला दीं.
एक तकिया ले कर उसे चूतड़ के नीचे रख दिया. अब उसकी चूत किसी फूल की तरह उभर कर मेरे सामने थी. मेरे मुंह में पानी आ गया. मैने अपनी ज़बान होंठों पर फैरी अपना लंड उसकी चूत की कलियों के बीच रख दिया. शालू ने मस्त हो कर अपनी आंखें बंद कर लीं.
धीरे धीरे मैंने अपने लंड के सिरे को उसके भीगे, रस भरे दरार में घिसना शुरू किया. ऐसा करने से उसकी चूत से और भी चिकना द्रव निकलने लगा. कुछ देर अपना लंड उसकी चूत के दरार पर घिसता रहा. वो बेचैन हो कर अपना सिर दाएं बाएं करने लगी. बिजली झुंझला कर बोली…” जल्दी करो बाबूजी, ये क्या खेल खेल रहे हो?”
मैं उसकी बात अनसुनी करके अपना काम करता रहा. मुझे इस तरह उसकी चूत की घिसाई करने में मज़ा आ रहा था. बिजली तंग आकर उठ गई और बोली… “अरे हमें जाना भी है बाबूजी…. रात भर यहीं नहीं रहना है.” मैंने उसके सीने पर हाथ रख कर उसे दोबारा लिटाया और फिर दोबारा शालू की चूत को रगड़ने लगा.
फिर मुझे ख़याल आया कि वाक़ई देर हो रही है. मैंने अपना लंड शालू की चूत के बिलकुल बीचो बीच रखा और धीरे से पुश किया. मेरा लंड बड़े आराम से अंदर जाने लगा. जैसे जैसे लंड अंदर घुसने लगा, सारे शरीर में। बिजली सी दौड़ने लगी. जब पूरा लंड चूत के अंदर समा गया तो मैंने फिर उसे बाहर निकाला और फिर उसी तरह धीरे से पुश किया.
लंड फिर पूरा का पूरा अंदर चला गया. धक्के मारो साब…” बिजली बोली. । मैंने अपना लंड बाहर निकाला और बोला… “इतनी नाजुक चूत को मैं धक्का नहीं मार सकता….” ये कह कर मैं अब बिजली की तरफ़ बढ़ा. वो भी संभल कर सही तरह से लेट गई. उसकी चूत के नीचे तकिया वकिया रखने की कोई ज़रूरत नहीं थी.
वो तो वैसी ही फूल कर कुप्पा हो रही थी. मैंने शालू की तरह उसकी चूत पर भी अपना लंड रखा. मगर धक्का मारने या पुश करने की ज़रूरत ही पेश नहीं आई. बिजली ने खुद ही अपनी गांड ऊपर करके मेरे लंड को अपनी चूत के अंदर ले लिया. पचक की आवाज़ के साथ मेरा लंड उसकी चूत में पूरी तरह समा गया. ऐसा लगा जैसे मैंने किसी तंदूर में अपना लंड डाल दिया हो. इतनी गर्म थी उसकी चूत !
अब मैं ऊपर से धक्के मार रहा था और बिजली नीचे से अपनी गांड उचका उचका कर मेरी मदद कर रही थी. उसे चुदाई का ख़ासा एक्सपीरिएंस था. मुझे शालू से भी ज़्यादा बिजली की चूत में मज़ा आने लगा. मैं धक्के मारता मारता बोला…“ बिजली तुम तो सचमुच बिजली हो… तुम्हारी चूत में तो मस्ती का ख़ज़ाना भरा है….
” वो उसी तरह अपनी गांड उचकाती हुई और हांफते हुए बोली…. “थोड़ा टेढ़ा हो जाओ साब, अपने लंड को थोड़ा आड़ा कर लो… फिर देखो कैसे और मजा आता है..
.’ मैंने उसकी बात मानी और अपने लंड को उसकी चूत में थोड़ा तिरछा कर दिया और उसी दिशा में लंड को चूत में अंदर बाहर करने लगा. अरे वाह… ये तो कयामत की चुदाई है… बहुत मज़ेदार, बहुत लज्जतदार. चूंकि इससे पहले मैं दो बार झड़ चुका था, इसलिए इस बार काफ़ी समय लग रहा था.
मैंने अब शालू की तरफ़ देखा, वो हम दोनों को दिलचस्पी से चुदाई करते हुए देख रही थी और दो उंगलियां अपनी चूत में डाल कर उन्हें अंदर बाहर कर रही थी. मैं बिजली के ऊपर से उतरा और शालू पर चढ़ गया. तकिए को उसकी गांड के नीचे सही किया. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
फिर थोड़ा आड़ा हो कर अपने लंड को उसकी चूत के बीच में रखा और धीरे से पुश किया. लंड ने जाने से इनकार कर दिया. वजह वही थी, यानी शालू की चूत बिजली की चूत की तरह लंबी चौड़ी और गहरी नहीं थी, बड़ी संकरी थी. मैंने एक दो बार और कोशिश की कि अपने आड़े लंड को उसकी चूत में घुसा सकें.
मगर सफलता नहीं मिली. शालू मेरी नाकामी देख कर अंदर ही अंदर हंस रही थी. मुझे गुस्सा आया और मैंने ज़ोर लगा कर अपने लंड को उसकी चूत में घुसेड़ने की कोशिश की. थोड़ा सा लंड अंदर गया. बिजली भी ये सब देख रही थी. उसने कहा, “अरे साब तेल लगाओ तेल..
.” मगर तेल तो कब का ख़त्म हो चुका था. मैंने इशारे से बिजली को बताया कि तेल नहीं है. बिजली उठी और उसने मुझे शालू की चूत से अलग किया और फिर शालू की चूत को दो उंगलियों से चौड़ा करके उसके अंदर थूकने लगी. दो तीन बार थूक कर वो बोली… “ अब प्रयास करो साब.”
मैंने अपना लंड फिर शालू की चूत पर आड़ा रखा और हलके से धक्का मारा. वाह, ये तो आधे से ज़्यादा लंड अंदर चला गया. शालू की हलकी सी चीख निकल गई. बिजली ने मेरे कंधों पर हाथ रखा और ज़ोर से दबाया. लंड पूरा शालू की चूत में घुस गया. शालू फिर अपना सिर दाएं बाएं करने लगी.
लंड को चूत में आगे पीछे करने में थोड़ी तकलीफ तो हो रही थी, मगर इतनी लज्जत मिल रही थी कि क्या बताऊँ? थोड़ी देर तक मैं शालू को यूं ही चोदता रहा और वो भी आंखें बंद करके मजे लेती रही. फिर बिजली बोली…. अब मेरी बारी साब. मैंने बिजली की ओर रुख किया तो शालू ने मेरे हाथ पकड़ लिए और बोली…“ पहले मेरा काम तो तमाम करो.” मैं बिजली को देखने लगा.
वो मुस्कुराई और बोली…. “ठीक है, खतम करो साली को.” मैंने दोबारा अपना तनतनाया हुआ लौड़ा शालू की चूत में डाला, जो अब आसानी से अंदर चला गया. इतनी देर चुदाई करने से उसकी चूत का मुंह अच्छी तरह खुल गया था. मैने जल्दी जल्दी उसे चोदना शुरू किया. धीरे धीरे मेरी रफ़्तार बढ़ने लगी और शालू की सांसें भी उसी गति से चलने लगीं.
जब क्लाइमेक्स पर पहुंचा और लंड का सारा रस बाहर आया तो महसूस हुआ कि सारे शरीर से स्वाद की लहरें निकल कर शालू की चूत में समा रही हैं…. जैसे कोई किसी फल की छिलका उतारता है, वैसे ही। जिस्म की सारी थकान उतर गई. जब तक वीर्य की एक एक बूंद न निकल गई, मैं उसे झटके मारता रहा.
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इतना सारा रसीला पदार्थ उसकी चूत से बाहर निकला कि मैं हैरान रह गया. ये रस सिर्फ मेरे लंड का ही नहीं था, इसमें शालू की चूत का रस भी शामिल था. बिजली ने शालू की चूत पर हाथ रख कर सारे वीर्य को मुट्ठी में ले लिया और अपनी छातियों पर मलने लगी. उसे देख कर शालू भी वैसा ही करने लगी. मैं उन दोनों के बीच में लेट गया और कुछ देर हम यूं ही पड़े रहे. फिर शालू उठ कर बोली…. अब हम लोग जाते हैं…. जल्दी से पैसे दे दो…. कल शायद आप न मिलो…” मैं उठा और पर्स से पैसे निकाले. सौ सौ के दो नोट थे.
मैने शालू से कहा… “तुम लोगों ने मेरे साथ जो काम किया है, उसे मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकता…. इसलिए सौ के बजाए दो सौ दे रहा हूं…. सौ तुम्हारे और सौ बिजली के.” दोनों खुश हो गईं. शालू ने कहा…. “अब कब आना होगा साब ?” बिजली भी मेरा हाथ पकड़ कर बोली… “हां बाबूजी… तुम बहुत अच्छे हो… अगर दोबारा आए तो हमें अच्छा लगेगा…” मैं मन ही मन में सोचने लगा, इस साल माउंट आबू में छुट्टियां मनाने का प्रोग्राम बनाया था…! मगर ऐसा पिकनिक स्पॉट सारे देश में कहां मिलेगा !!!
Naushad Ahamad says
Kafi time ke baad ek achhi kahani padhi hai lekin kafi kuch banawati bhi hai jaise ke masala lagay hai lekin theek story hai pasand aayi