Online Sexy Wife
उस दिन मेरी शादी की 11वीं सालगिरह थी। सचिन ने मुझे बड़ा सरप्राइज देने का वादा किया था। मैं बहुत उत्सुक थी। कई बार सचिन से पूछ भी चुकी थी कि वो मुझे क्या सरप्राइज देने वाले हैं? पर वो भी तो पूरे जिद्दी थे। मेरी हर कोशिश बेकार हो रही थी। सचिन ने बोल दिया था कि इस बार सालगिरह घर में ही मनायेंगे किसी बाहर के मेहमान को नहीं बुलायेंगे बस हम दोनों और हमारे दो बच्चे। Online Sexy Wife
मैं ब्यूटी पार्लर से फेशियल करवाकर बच्चों के आने से पहले घर पहुँच गई। हम मध्यम वर्गीय परिवारों की यही जिन्दगी होती है। मैंने शाम होने से पहले ही सचिन के आदेशानुसार उनका मनपसंद खाना बनाकर रख दिया। बच्चे कालोनी के पार्क में खेलने के लिये चले गये। मैं खाली वक्त में अपनी शादी के एलबम उठाकर बीते खुशनुमा पलों को याद करने लगी। तभी दरवाजे पर घण्टी बजी और मेरी तंद्रा भंग हुई।
मैं उठकर दरवाजा खोलने गई तो सचिन दरवाजे पर थे। वो जैसे ही अन्दर दाखिल हुए, मैंने पूछा- आज छुट्टी जल्दी हो गई क्या?
और मुड़कर सचिन की तरफ देखा। पर यह क्या? सचिन तो दरवाजे पर ही रुके खड़े थे।
मैंने पूछा- अन्दर नहीं आओगे क्या?
वो बोले- आऊँगा ना, पर पहले तुम एक रुमाल लेकर मेरे पास आओ दरवाजे पर।
मेरे मना करने पर वो गुस्सा करने लगे। आखिर में हारना तो मुझे ही था, मैं रुमाल लेकर दरवाजे पर पहुँची।
पर यह क्या उन्होंने तो रुमाल मेरे हाथ से लेकर मेरी आँखों पर बांध दिया, मुझे घर के अन्दर धकेलते हुए बोले- अन्दर चलो।
अब मुझे गुस्सा आया- “मैं तो अन्दर ही थी, आप ही ने बाहर बुलाया और आँखें बंद करके घर में ले जा रहे हो… आज क्या इरादा है?” मैंने कहा।
“हा..हा..हा..हा..” हंसते हुए सचिन बोले 11 साल हो गये शादी को पर अभी तक तुमको मुझे पर यकीन नहीं है। वो मुझे धकेल कर अन्दर ले गये और बैडरूम में ले जाकर बंद कर दिया। मैं बहुत विस्मित सी थी कि पता नहीं इनको क्या हो गया है? आज ऐसी हरकत क्यों कर रहे हैं? क्योंकि स्वभाव से सचिन बहुत ही सीधे सादे व्यक्ति हैं। अभी मैं यह विचार कर ही रही थी कि सचिन दरवाजा खोलकर अंदर दाखिल हुए और आते ही मेरी आँखों की पट्टी खोल दी।
मैंने पूछा, “यह क्या कर रहे हो आज?”
सचिन ने जवाब दिया, “तुम्हारे लिये सरप्राइज गिफ्ट लाया था यार, वो ही दिखाने ले जा रहा हूँ तुमको !”
सुनकर मैं बहुत खुश हो गई, “कहाँ है….?” बोलती हुई मैं कमरे से बाहर निकली तो देखा ड्राइंग रूम में एक नई मेज और उस पर नया कम्प्यूटर रखा था। कम्प्यूटर देखकर मैं बहुत खुश हो गई क्योंकि एक तो आज के जमाने में यह बच्चों की जरूरत थी। दूसरा मैंने कभी अपने जीवन में कम्प्यूटर को इतने पास से नहीं देखा था।
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मेरा मायका तो गाँव में था, पढ़ाई भी वहीं के सरकारी स्कूल में हुई थी… और शादी के बाद शहर में आने के बाद भी घर से बाहर कभी ऐसा निकलना ही नहीं हुआ। हाँ, कभी कभार पड़ोस में रहने वाली मिन्नी को जरूर कम्प्यूटर पर काम करते या पिक्चर देखते हुए देखा था।
पर सचिन के लिये इसमें कुछ भी नया नहीं था, वो पिछले 15 साल से अपने आफिस में कम्प्यूटर पर ही काम करते थे। मुझे कई बार बोल चुके थे कि तुम कम्प्यूटर चलाना सीख लो पर मैं ही शायद लापरवाह थी। परन्तु आज घर में कम्प्यूटर देखकर मैं बहुत खुश थी। मैंने सचिन से कहा- इसको चलाकर दिखाओ।
उन्होंने कहा- रूको मेरी जान, अभी इसको सैट कर दूँ, फिर चला कर दिखाता हूँ।
तभी बच्चे भी खेलकर आ गये और भूख-भूख चिल्लाने लगे। मैं तुरन्त रसोई में गई। तभी दोनों बच्चों का निगाह कम्प्यूटर पर पड़ी। दोनों खुशी से कूद पड़े, और सचिन से कम्प्यूटर चलाने के जिद करने लगे। सचिन ने बच्चों को कम्प्यूटर चला कर समझया और समय ऐसे ही हंसी-खुशी बीत गया। कब रात हो गई पता ही नहीं चला।
मैं दोनों बच्चों को उनके कमरे में सुलाकर नहाने चली गई। सचिन कम्प्यूटर पर ही थे। मैं नहाकर सचिन का लाया हुआ सैक्सी सा नाइट सूट पहन कर बाहर आई क्योंकि मुझे आज रात को सचिन के साथ शादी की सालगिरह जो मनानी थी, पर सचिन कम्प्यूटर पर व्यस्त थे।
मुझे देखते ही खींचकर अपनी गोदी में बैठा लिया, मेरे बालों में से शैम्पू की भीनी भीनी खुशबू आ रही थी, सचिन उसको सूंघने लगे। उनका एक साथ कम्प्यूटर के माऊस पर और दूसरा मेरे गीले बदन पर घूम रहा था। मुझे उनका हर तरह हाथ फिराना बहुत अच्छा लगता था। पर आज मेरा ध्यान कम्प्यूटर की तरफ ज्यादा था क्योंकि वो मेरे लिये एक सपने जैसा था।
सचिन ने कहा, “तुम चला कर देखो कम्प्यूटर !”
“पर मुझे तो कम्प्यूटर का ‘क’ भी नहीं आता मैं कैसे चलाऊँ?” मैंने पूछा।
सचिन ने कहा, “चलो तुमको एक मस्त चीज दिखाता हूँ।” उनका बांया हाथ मेरी चिकनी जांघों पर चल रहा था। मुझे मीठी मीठी गुदगुदी हो रही थी। मैं उसका मजा ले रही थी कि मेरी निगाह कम्प्यूटर की स्क्रीन पर पड़ी। एक बहुत सुन्दर दुबली पतली लड़की बाथटब में नंगी नहा रही थी। लड़की की उम्र देखने में कोई 20 के आसपास लग रही थी। उसका गोरी चिट्टा बदन माहौल में गर्मी पैदा कर रहा था।
साथ ही सचिन मेरी जांघ पर गुदगुदी कर रहे थे। तभी उस स्क्रीन वाली लड़की के सामने एक लम्बा चौड़ा कोई 6 फुट का आदमी आकर खड़ा हुआ… आदमी का लिंग पूरी तरह से उत्तेजित दिखाई दे रहा था। लड़की ने हाथ बढ़ा का वो मोटा उत्तेजित लिंग पकड़ लिया…
वो अपने मुलायम मुलायम हाथों से उसकी ऊपरी त्वचा को आगे पीछे करने लगी। मैं अक्सर यह सोचकर हैरान हो जाती कि इन फिल्मों में काम करने वाले पुरुषों का लिंग इतना मोटा और बड़ा कैसे होता है और वो 15-20 मिनट तक लगातार मैथुन कैसे करते रह सकते हैं। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैं उस दृश्य को लगातार निहार रही थी… उस लड़की की उंगलियाँ पूरी तरह से तने हुए लिंग पर बहुत प्यार से चल रही थी… आह… तभी मुझे अहसास हुआ कि मैं तो अपने पति की गोदी में बैठी हूँ ! उन्होंने मेरा बांया स्तन को बहुत जोर से दबाया जिसका परिणाम मेरे मुख से निकलने वाली ‘आह…’ थी।
सचिन मेरे नाइट सूट के आगे के बटन खोल चुके थे…. उनकी उंगलियाँ लगातार मेरे दोनों उभारों के उतार-चढ़ाव का अध्ययन करने में लगी हुई थी। मैंने पीछे मुड़कर सचिन की तरफ देखा तो पाया कि उसके दोनों हाथ मेरे स्तनों से जरूर खेल रहे थे परन्तु उनकी निगाह भी सामने चल रहे कम्प्यूटर की स्क्रीन पर ही थी।
सचिन की निगाह का पीछा करते हुए मेरी निगाह भी फिर से उसी स्क्रीन की तरफ चली गई। वो खूबसूरत लड़की बाथटब से बाहर निकलकर टब के किनारे पर बैठी थी। पर ये क्या…. अब वो मोटा लिंग उस लड़की के मुँह के अन्दर जा चुका था, वो बहुत प्यार से अपने होठों को आगे-पीछे सरकाकर उस आदमी के लिंग को लॉलीपाप की तरह बहुत प्यार से चूस रही थी।
मैंने महसूस किया कि नीचे मेरे नितम्बों में भी सचिन का लिंग घुसने को तैयार था। वो पूरी तरह से उत्तेजित था। मैं खड़ी होकर सचिन की तरफ घूम गई, सचिन ने उठकर लाइट बंद कर दी और मेरा नाइट सूट उतार दिया। वैसे भी उस माहौल में बदन पर कपड़ों की जरूरत महसूस नहीं हो रही थी।
मैंने कम्प्यूटर की स्क्रीन की रोशनी में देखा सचिन भी अपने कपड़े उतार चुके थे। उनका लिंग पूरा तना हुआ था। उन्होंने मुझे पकड़ कर वहीं पड़े हुए सोफे पर लिटा दिया… वो बराबर में बैठकर मेरा स्तनपान कर रहे थे, मैं लगातार कम्प्यूटर पर चलने वाले चलचित्र को देख रही थी… और वही उत्तेजना अपने अन्दर महसूस भी कर रही थी।
बाथटब पर बैठी हुई लड़की की दोनों टांगें खुल चुकी थी और वो आदमी उस लड़की की दोनों टांगों के बीच में बैठकर उस लड़की की योनि चाटने लगा। मुझे यह दृश्य, या यूँ कहूँ कि यह क्रिया बहुत पसन्द थी, पर सचिन को नहीं। हालांकि सचिन ने कभी कहा नहीं पर सचिन से कभी ऐसा किया भी नहीं। इसीलिये मुझे ऐसा लगा कि शायद सचिन को यह सब पसन्द नहीं है।
वैसे तो सचिन से मेरा रोज ही सोने से पहले एकाकार होता था। परन्तु वो पति-पत्नी वाला सम्भोग ही होता था, जो हमारे रोजमर्रा के कामकाज का ही एक हिस्सा था, उसमें कुछ भी नयापन नहीं था। पर जब उत्तेजना होती थी… अब वो भी अच्छा लगता था।
अब तक सचिन ने मेरी दोनों टांगें फैला ली थी परन्तु मेरी निगाह कम्प्यूटर की स्क्रीन से हट ही नहीं रही थी। इधर सचिन का लिंग मेरी योनि में प्रवेश कर गया… तो मुझे… आह…. अहसास हुआ कि… मैं कितनी उत्तेजित हूँ… सचिन मेरे ऊपर आकर लगातार धक्के लगा रहे थे…
अब मेरा ध्यान कम्प्यूटर की स्क्रीन से हट चुका था… और मैं अपनी कामक्रीड़ा में मग्न हो गई थी… तभी सचिन के मुँह से ‘आह….’ निेकली और वो मेरे ऊपर ही ढेर हो गये। दो मिनट ऐसे ही पड़े रहने के बाद वो सचिन ने मेरे ऊपर से उठकर अपना लिंग मेरी योनि से बाहर निकाला और बाथरूम में जाकर धोने लगे।
तब तक भी उस स्क्रीन पर वो लड़की उस आदमी से अपनी योनि चटवा रही थी ‘उफ़्फ़… हम्मंह…’ की आवाज लगातार उस लड़की के मुँह से निकल रही थी वो जोर जोर से कूद कूद कर अपनी योनि उस आदमी के मुँह में डालने का प्रयास कर रही थी। तभी सचिन आये और उन्होंने कम्प्यूटर बंद कर दिया।
मैंने बोला, “चलने दो थोड़ी देर?”
सचिन ने कहा, “कल सुबह ऑफिस जाना है बाबू… सो जाते हैं, नहीं तो लेट हो जाऊँगा।”
अब यह कहने कि हिम्मत तो मुझमें भी नहीं थी कि ‘आफिस तो तुमको जाना है ना तो मुझे देखने दो।’ मैं एक अच्छी आदर्शवादी पत्नी की तरह आज्ञा का पालन करने के लिये उठी, बाथरूम में जाकर रगड़-रगड़ कर अपनी योनि को धोया, बाहर आकर अपना नाइट सूट पहना और बैडरूम में जाकर बिस्तर पर लेट गई।
मैंने थोड़ी देर बाद सचिन की तरफ मुड़कर देखा वो बहुत गहरी नींद में सो रहे थे। उत्सुकतावश मेरी निगाह नीचे उसके लिंग की तरफ गई तो पाया कि शायद वो भी नाइट सूट के पजामे के अन्दर शान्ति से सो रहा था क्योंकि वहाँ कोई हलचल नहीं थी।
मेरी आँखों के सामने अभी भी वही फिल्म घूम रही थी। शादी के बाद पिछले 11 सालों में केवल 3 बार सचिन के साथ मैंने ऐसी फिल्म देखी, पता नहीं ऐसा मेरे साथ ही था, या सभी के साथ होता होगा पर उस फिल्म को देखकर मुझे अपने अन्दर अति उत्तेजना महसूस हो रही थी।
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हालांकि थोड़ी देर पहले सचिन के साथ किये गये सैक्स ने मुझे स्खलित कर दिया था। पर फिर भी शरीर में कहीं कुछ अधूरापन महसूस हो रहा था मुझे पता था यह हर बार की तरह इस बार भी दो-तीन दिन ही रहेगा पर फिर भी अधूरापन तो था ही ना… वैसे तो जिस दिन से मेरी शादी हुई थी उस दिन से लेकर आज तक मासिक के दिनों के अलावा कुछ गिने-चुने दिनों को छोड़कर हम लोग शायद रोज ही सैक्स करते थे यह हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुका था।
पर चूंकि सचिन ने कभी मेरी योनि को प्यार नहीं किया तो मैं भी एक शर्मीली नारी बनी रही, मैंने भी कभी सचिन के लिंग को प्यार नहीं किया। मुझे लगता था कि अपनी तरफ से ऐसी पहल करने पर सचिन मुझे चरित्रहीन ना समझ लें। सच तो यह है कि पिछले 11 सालों में मैंने सचिन का लिंग हजारों बार अपने अंदर लिया था पर आज तक मैं उसका सही रंग भी नहीं जानती थी…
क्योंकि सैक्स करते समय सचिन हमेशा लाइट बंद कर देते थे और मेरे ऊपर आ जाते थे। मैंने तो कभी रोशनी में आज तक सचिन को नंगा भी नहीं देखा था। मुझे लगता है कि हम भारतीय नारियों में से अधिकतर ऐसी ही जिन्दगी जीती हैं… और अपने इसी जीवन से सन्तुष्ट भी हैं।
परन्तु कभी कभी इक्का-दुक्का बार जब कभी ऐसा कोई दृश्य आ सामने जाता है जैसे आज मेरे सामने कम्प्यूटर स्क्रीन पर आ गया था तो जीवन में कुछ अधूरापन सा लगने लगता है जिसको सहज करने में 2-3 दिन लग ही जाते हैं। हम औरतें फिर से अपने घरेलू जीवन में खो जाती हैं और धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो जाता है।
फिर भी हम अपने जीवन से सन्तुष्ट ही होती हैं। क्योंकि हमारा पहला धर्म पति की सेवा करना और पति की इच्छाओं को पूरा करना है। यदि हम पति को सन्तुष्ट नहीं कर पाती हैं तो शायद यही हमारे जीवन की सबसे बड़ी कमी है। परन्तु मैं सचिन को उनकी इच्छाओं के हिसाब से पूरी तरह से सन्तुष्ट करने का प्रयास करती थी।
यही सब सोचते सोचते मैंने आँखें बंद करके सोने का प्रयास किया। सुबह बच्चों को स्कूल भी तो भेजना था और सचिन से कम्प्यूटर चलाना भी सीखना था। परन्तु जैसे ही मैंने आँखें बन्द की मेरी आँखों के सामने फिर से वही कम्प्यूटर स्क्रीन वाली लड़की और उसके मुँह में खेलता हुआ लिंग आ गया।
मैं जितना उसको भूलने का प्रयास करती उतना ही वो मेरी नींद उड़ा देता। मैं बहुत परेशान थी, आँखों में नींद का कोई नाम ही नहीं था। पूरे बदन में बहुत बेचैनी थी जब बहुत देर तक कोशिश करने पर भी मुझे नींद नहीं आई तो मैं उठकर बाथरूम में गई नाइट सूट उतारा और शावर चला दिया।
पानी की बूंद बूंद मेरे बदन पर पड़ने का अहसास दिला रही थी। उस समय शावर आ पानी मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। काफी देर तक मैं वहीं खड़ी भीगती रही और फिर शावर बन्द करके बिना बदन से पानी पोंछे ही गीले बदन पर ही नाइट सूट पहन कर जाकर बिस्तर में लेट गई।
इस बार बिस्तर में लेटते ही मुझे नींद आ गई। सुबह 6 बजे रोज की तरह मेरे मोबाइल में अलार्म बजा। मैं उठी और बच्चों को जगाकर हमेशा की तरह समय पर तैयार करके स्कूल भेज दिया। अब बारी सचिन को जगाने की थी। सचिन से आज कम्प्यूटर चलाना भी तो सीखना था ना। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैं चाहती थी कि सचिन मुझे वो फिल्म चलाना सिखा दें ताकि सचिन के जाने के बाद मैं आराम से बैठकर उस फिल्म का लुत्फ उठा सकूँ। पर सचिन से कैसे कहूँ से समझ नहीं आ रहा था। खैर, मैंने सचिन को जगाया और सुबह की चाय की प्याली उनके हाथ में रख दी। वो चाय पीकर टॉयलेट चले गये और मैं सोचने लगी कि सचिन से कैसे कहूँ कि मुझे वो कम्प्यूटर में फिल्म चलाना सिखा दें।
तभी मेरे दिमाग में एक आइडिया आया। मैं सचिन के टॉयलेट से निकलने का इंतजार करने लगी। जैसे ही सचिन टायलेट से बाहर आये मैंने अपनी योजना के अनुसार अपनी शादी वाली सी डी उनके हाथ में रख दी और कहा, “शादी के 11 साल बाद तो कम से कम अपने नये कम्प्यूटर में यह सी डी चला दो, मैं तुम्हारे पीछे अपने बीते लम्हे याद कर लूँगी।”
सचिन एकदम मान गये और कम्प्यूटर की तरफ चल दिये।
मैंने कहा, “मुझे बताओ कि इसको कैसे ऑन और कैसे ऑफ करते हैं ताकि मैं सीख भी जाऊँ।”
सचिन को इस पर कोई एतराज नहीं था। उन्होंने मुझे यू.पी.एस. ऑन करने से लेकर कम्प्यूटर के बूट होने के बाद आइकन पर क्लिक करने तक सब कुछ बताया, और बोले, “ये चार सी डी मैं इस कम्प्यूटर में ही कापी कर देता हूँ ताकि तुम इनको आराम से देख सको नहीं तो तुमको एक एक सी डी बदलनी पड़ेगी।”
मैंने कहा, “ठीक है।”
सचिन ने सभी चारों सी डी कम्प्यूटर में एक फोल्डर बना कर कापी कर दी और फिर मुझे समझाने लगे कि कैसे मैं वो फोल्डर खोल कर सी डी चला सकती हूँ। मैं अपने हाथ से सब कुछ चलाना सीख रही थी। जैसे-जैसे सचिन बता रहे थे 2-3 बार कोशिश करने पर मैं समझ गई कि फोल्डर में जाकर कैसे उस फिल्म को चलाया जा सकता है। पर मुझे यह नहीं पता था कि वो रात वाली फिल्म कौन से फोल्डर में है और वहाँ तक कैसे जायेंगे।
मैंने फिर सचिन से पूछा, “कहीं इसको चलाने से गलती से वो रात वाली फिल्म तो नहीं चल जायेगी।”
“अरे नहीं पगली! वो तो अलग फोल्डर में पड़ी है।” सचिन ने कहा।
“पक्का ना…?” मैंने फिर पूछा।
तब सचिन ने कम्प्यूटर में वो फोल्डर खोला जहाँ वो फिल्म पड़ी थी और मुझसे कहा, “यह देखो ! यहाँ पड़ी है वो फिल्म बस तुम दिन में यह फोल्डर मत खोलना।”
मेरी तो जैसे लॉटरी लग गई थी। पर मैंने शान्त स्वभाव से बस, “हम्म….” जवाब दिया। मेरी निगाह उस फोल्डर में गई तो देखा यहाँ तो बहुत सारी फाइल पड़ी थी। मैंने सचिन से पूछा। तो उन्हानें ने बताया, “ये सभी ब्लू फिल्में हैं। आराम से रोज रात को देखा करेंगे।”
“ओ…के… अब यह कम्प्यूटर बंद कैसे होगा…” मैंने पूछा क्योंकि मेरे लायक काम तो हो ही चुका था।
सचिन ने मुझे कम्प्यूटर शट डाउन करना भी सिखा दिया। मैं अब वहाँ से उठकर नहाने चली गई, और सचिन भी आफिस के लिये तैयारी करने लगे। सचिन को आफिस भेजने के बाद मैंने बहुत तेजी से अपने घर के सारे काम 1 घंटे में निपटा लिये। फ्री होकर बाहर का दरवाजा अन्दर से लॉक किया।
कम्प्यूटर को सचिन द्वारा बताई गई विधि के अनुसार ऑन किया। थोड़े से प्रयास के बाद ही मैंने अपनी शादी की फिल्म चला ली। कुछ देर तक वो देखने के बाद मैंने वो फिल्म बन्द की और अपने फ्लैट के सारे खिड़की दरवाजे चैक किये कि कोई खिड़की खुली हुई तो नहीं है।
सबसे सन्तुष्ट होकर मैंने सचिन का वो खास वाला फोल्डर खोला और उसमें गिनना शुरू किया कुल मिलाकर 80 फाइल उसके अन्दर पड़ी थी। मैंने बीच में से ही एक फाइल पर क्लिक कर दिया। क्लिक करते ही एक मैसेज आया। उसको ओ.के. किया तो फिल्म चालू हो गई।
पहला दृश्य देखकर ही मैं चौंक गई। यह कल रात वाली मूवी नहीं थी। इसमें दो लड़कियाँ एक दूसरे को बिल्कुल नंगी लिपटी हुई थी। यह देखकर तो एकदम जैसे मुझे सन्निपात हो गया! ऐसा मैंने पतिदेव के मुँह से कई बार सुना तो था… पर देखा तो कभी नहीं था। तभी मैंने देखा दोनों एक दूसरे से लिपटी हुई प्रणय क्रिया में लिप्त थी।
एक लड़की नीचे लेटी हुई थी… और दूसरी उसके बिल्कुल ऊपर उल्टी दिशा में। दोनों एक दूसरे की योनि का रसपान कर रही थी… मैं आँखें गड़ाये काफी देर तक उन दोनों को इस क्रिया को देखती रही। स्पीकर से लगातार आहहह… उहह… हम्मम… सीईईईई…. की आवाजें आ रही थी।
मध्यम मध्यम संगीत की ध्वनि माहौल को और अधिक मादक बना रही थी। मुझे भी अपने अन्दर कुछ कुछ उत्तेजना महसूस होने लगी थी। परन्तु संस्कारों की शर्म कहूँ या खुद पर कन्ट्रोल… पर मैंने उस उत्तेजना को अभी तक अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। परन्तु मेरी निगाहें उन दोनों लड़कियों की भावभंगिमा को अपने लगातार अंदर संजो रही थी।
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अचानक ऊपर वाली लड़की ने पहलू बदला नीचे वाली नीचे आकर बैठ गई। उसने नीचे वाली लड़की की टांगों में अपनी टांगें फंसा ली! “हम्म्मम…!” की आवाज के साथ नीचे वाली लड़की भी उसका साथ दे रही थी… आह… दोनों लड़कियाँ आपस में एक दूसरे से अपनी योनि रगड़ रही थी।
ऊफ़्फ़….!! मेरी उत्तेजना भी लगातार बढ़ने लगी। परन्तु मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ? कैसे खुद को सन्तुष्ट करूँ? मुझे बहुत परेशानी होने लगी। वो दोनों लड़कियाँ लगातार योनि मर्दन कर रही थी। मुझे मेरी योनि में बहुत खुजली महसूस हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी योनि के अन्दर बहुत सारी चींटियों ने हमला कर दिया हो… योनि के अन्दर का सारा खून चूस रही हों…
मैंने महसूस किया कि मेरे चुचूक बहुत कड़े हो गये हैं। मुझे बहुत ज्यादा गर्मी लगने लगी। शरीर से पसीना निकलने लगा। मेरा मन हुआ कि अभी अपने कपड़े निकाल दूं। परन्तु यह काम मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं किया था इसीलिये शायद हिम्मत नहीं कर पा रही थी.
मेरी निगाहें उस स्क्रीन हटने को तैयार नहीं थी। मेरे बदन की तपिश पर मेरा वश नहीं था। तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा था। जब मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ। तो मैंने अपनी साड़ी निकाल दी। योनि के अन्दर इतनी खुजली होने लगी। ऊईईईई….मन ऐसा हो रहा था कि चाकू लेकर पूरी योनि को अन्दर से खुरच दूं।
दोनों लड़कियाँ आपस में एक दूसरे से अपनी योनि रगड़ रही थी। ऊफ़्फ़….!! मेरी उत्तेजना भी लगातार बढ़ने लगी। परन्तु मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ? कैसे खुद को सन्तुष्ट करूँ? मुझे बहुत परेशानी होने लगी। वो दोनों लड़कियाँ लगातार योनि मर्दन कर रही थी।
मुझे मेरी योनि में बहुत खुजली महसूस हो रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी योनि के अन्दर बहुत सारी चींटियों ने हमला कर दिया हो….योनि के अन्दर का सारा खून चूस रही हों… मैंने महसूस किया कि मेरे चुचूक बहुत कड़े हो गये हैं। मुझे बहुत ज्यादा गर्मी लगने लगी। शरीर से पसीना निकलने लगा।
मेरा मन हुआ कि अभी अपने कपड़े निकाल दूं। परन्तु यह काम मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं किया था इसीलिये शायद हिम्मत नहीं कर पा रही थी मेरी निगाहें उस स्क्रीन हटने को तैयार नहीं थी। मेरे बदन की तपिश पर मेरा वश नहीं था। तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा था।
जब मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ। तो मैंने अपनी साड़ी निकाल दी। योनि के अन्दर इतनी खुजली होने लगी। ऊईईईई… मन ऐसा हो रहा था कि चाकू लेकर पूरी योनि को अन्दर से खुरच दूँ। तभी स्क्रीन पर कुछ परिवर्तन हुआ, पहली वाली लड़की अलग हुई, उसने पास रखी मेज की दराज खोलकर पता नहीं प्लास्टिक या किसी और पदार्थ का बना लचीला कृत्रिम लिंग जैसा बड़ा सा सम्भोग यन्त्र निकाला और पास ही रखी क्रीम लगाकर उसको चिकना करने लगी।
“ओह…!” सम्भोग के लिए ऐसी चीज मैंने पहले कभी नहीं देखी थी… पर मुझे वो नकली लिंग बहुत ही अच्छा लग रहा था। जब तक वो लड़की उसको चिकना कर रही थी तब तक मैं भी अपना ब्लाउज और ब्रा उतार कर फेंक चुकी थी। मुझे पता था कि घर में इस समय मेरे अलावा कोई और नहीं है इसीलिये शायद मेरी शर्म भी कुछ कम होने लगी थी।
तभी मैंने देखा कि पहली लड़की से उस सम्भोग यन्त्र का अग्र भाग बहुत प्यार से दूसरी लड़की की योनि में सरकाना शुरू कर दिया। आधे से कुछ कम परन्तु वास्तविक लिंग के अनुपात में कहीं अधिक वह सम्भोग यन्त्र पहली वाली लड़की के सम्भोग द्वार में प्रवेश कर चुका था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैंने इधर उधर झांककर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा… और खुद ही अपने बायें हाथ से अपनी योनि को दबा दिया। “आह…” मेरे मुँह से सीत्कार निकली। मेरी निगाह कम्प्यूटर की स्क्रीन पर गई, ‘उफफफफ…’ मेरी तो हालत ही खराब होने लगी। पहली लड़की दूसरी लड़की के सम्भोग द्वार में वो सम्भोग यन्त्र बहुत प्यार से आगे पीछे सरका रही थी…
दूसरी लड़की भी चूतड़ उछाल-उछाल कर अपने कामोन्माद का परिचय दे रही थी, वह उस यन्त्र को पूरा अपने अन्दर लेने को आतुर थी। परन्तु पहले वाले लड़की भी पूरी शरारती थी, अब वो भी दूसरी के ऊपर आ गई और उस यन्त्र का दूसरी सिरा अपनी योनि में सरका लिया। “ऊफफफफफ….” क्या नजारा था।
दोनों एक दूसरे के साथ सम्भोगरत थी। अब दोनों अपने अपने चूतड़ उचका उचका कर अपना अपना योगदान दे रही थी। सीईईई… शायद कोई भी लड़की दूसरी से कम नहीं रहना चाहती थी… इधर मेरी योनि के अन्दर कीड़े चलते महसूस हो रहे थे। मैंने मजबूर होकर अपना पेटीकोट और पैंटी भी अपने बदन से अलग कर दी।
अब मैं अपनी स्क्रीन के सामने आदमजात नंगी थी। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे जीवन में पहली बार मैं ऐसे नंगी हुई हूँ। पर मेरी वासना, मेरी शर्म पर हावी होने लगी थी। मुझे इस समय अपनी योनि में लगी कामाग्नि को ठण्डा करने का कोई साधन चाहिए था बस… और कुछ नहीं…
काश… उन लड़कियों वाला सम्भोग यन्त्र मेरे पास भी होता तो मैं उसको अपनी योनि में सरकाकर जोर जोर से धक्के मारती जब तक कि मेरी कामज्वाला शान्त नहीं हो जाती पर ऐसा कुछ नहीं हो सकता था। मैंने अपने दायें हाथ की दो उंगलियों से अपने भगोष्ठ तेजी से रगड़ने शुरू कर दिए।
मेरी मदनमणि अपनी उपस्थिति का अहसास कराती हुई कड़ी होने लगी। जीवन में पहली बार था कि मुझे ये सब करना पड़ रहा था। पर मैं परिस्थिति के हाथों मजबूर थी। अब मेरे लिये कम्प्यूटर पर चलने वाली फिल्म का कोई मायने नहीं रह गया, मुझे तो बस अपनी आग को ठण्डा करना था। मुझे लग रहा था कि कहीं आज इस आग में मैं जल ही ना जाऊँ !
11 साल से सचिन मेरे साथ सम्भोग कर रहे थे… पर ऐसी आग मुझे कभी नहीं लगी थी… या यूँ कहूँ कि आग लगने से पहले ही सचिन उसको बुझा देते थे। इसलिये मुझे कभी इसका एहसास ही नहीं हुआ। मैंने कम्प्यूटर बन्द कर दिया और घर में पागलों की तरह ऐसा कुछ खोजने लगी जिसको अपनी योनि के अन्दर डालकर योनि की खुजली खत्म कर सकूँ।
मन्दिर के किनारे पर एक पुरानी मोमबत्ती मुझे दिखाई और तो मेरे लिये वही मेरा हथियार या कहिये कि मेरी मर्ज का इलाज बन गई। मैं मोमबत्ती को लेकर अपने बैडरूम में गई। मैंने देखा कि मेरे चुचूक बिल्कुल कड़े और लाल हो चुके थे। आह… कितना अच्छा लग रहा था इस समय अपने ही निप्पल को प्यार सहलाना !
हम्म… मैंने अपने बिस्तर पर लेटकर मोमबत्ती का पीछे वाला हिस्सा अपने दायें हाथ में पकड़ा और अपने बायें हाथ से योनि के दोनों मोटे भगोष्ठों को अलग करके मोमबत्ती का अगला धागे वाला हिस्सा धीरे से अपनी योनि में सरकाना शुरू किया। उई मांऽऽऽऽऽ… क्या आनन्द था।
मुझे यह असीम आनन्द जीवन में पहली बार अनुभव हो रहा था। मैं उन आनन्दमयी पलों का पूरा सुख भोगने लगी। मैंने मोमबत्ती का पीछे की सिरा पकड़ कर पूरी मोमबत्ती अपनी योनि में सरका दी थी…. आहह हह हह… अपने जीवन में इतना अधिक उत्तेजित मैंने खुद को कभी भी महसूस नहीं किया था।
मैं कौन हूँ…? क्या हूँ…? कहाँ हूँ…? कैसे हूँ…? ये सब बातें मैं भूल चुकी थी। बस याद था तो यह कि किसी तरह अपने बदन में लगी इस कामाग्नि को बुझाऊँ बस… हम्म अम्म… आहह… क्या नैसर्गिक आनन्द था। बायें हाथ से एक एक मैं अपने दोनों निप्पल को सहला रही थी… आईई ई… एकदम स्वर्गानुभव… और दायें हाथ में मोमबत्ती मेरे लिये लिंग का काम कर रही थी।
मुझे पुरूष देह की आवश्यकता महसूस होने लगी थी। काश: इस समय कोई पुरूष मेरे पास होता जो आकर मुझे निचोड़ देता… मेरा रोम रोम आनन्दित कर देता… मैं तो सच्ची धन्य ही हो जाती। मेरा दायें हाथ अब खुद-ब-खुद तेजी से चलने लगा था। आहह हह… उफ़्फ़फ… उईई ई… की मिश्रित ध्वनि मेरे कंठ से निकल रही थी।
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मैं नितम्बों को ऊपर उठा-उठा कर दायें हाथ के साथ…ऽऽऽ… ताल…ऽऽऽ… मिलाने… का… प्रयास…ऽऽऽऽ…. करने लगी। थोड़े से संघर्ष के बाद ही मेरी धारा बह निकली, मुझे विजय का अहसास दिलाने लगी। मैंने मोमबत्ती योनि से बाहर निकाली, देखा पूरी मोमबत्ती मेरे कामरस गीली हो चुकी थी। मोमबत्ती को किनारे रखकर मैं वहीं बिस्तर पर लेट गई। मुझे तो पता भी नहीं चला कब निद्रा रानी ने मुझे अपनी आगोश में ले लिया।
दरवाजे पर घंटी की आवाज से मेरी निद्रा भंग की। घंटी की आवाज के साथ मेरी आँख झटके से खुली। मैं नग्नावस्था में अपने बिस्तर पर पड़ी थी। खुद को इस अवस्था में देखकर मुझे बहुत लज्जा महसूस हो रही थी। धीरे धीरे सुबह की पूरी घटना मेरे सामने फिल्म की तरह चलने लगी। मैं खुद पर बहुत शर्मिन्दा थी। दरवाजे पर घंटी लगातार बज रही थी। मैं समझ गई कि बच्चे स्कूल से आ गये हैं।
मैं सब कुछ भूल कर बिस्तर से उठी, कपड़े पहनकर तेजी से दरवाजे की ओर भागी। दरवाजा खोला तो बच्चे मुझ पर चिल्लाने लगे। मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। आज तो लंच भी नहीं बनाया अभी तक घर की सफाई भी नहीं की। मैं बच्चों के कपड़े बदलकर तेजी से रसोई में जाकर कुछ खाने के लिये बनाने लगी। घर में काम इतना ज्यादा था कि सुबह वाली सारी बात मैं भूल चुकी थी।
शाम को सचिन ने आते ही पूछा- आज शादी वाली सीडी देखी थी क्या?
तो मैंने जवाब दिया, “हाँ, पर पूरी नहीं देख पाई।”
समय कैसे बीत रहा था पता ही नहीं चला। रात को बच्चों को सुलाने के बाद मैं अपने बैडरूम में पहुँची तो सचिन मेरा इंतजार कर रहे थे। वही रोज वाला खेल शुरू हुआ। सचिन ने मुझे दो-चार चुम्बन किये और अपना लिंग मेरी योनि में डालकर धक्के लगाने शुरू कर दिये।
मैं भी आदर्श भारतीय पत्नी की तरह वो सब करवाकर दूसरी तरफ मुँह करके सोने का नाटक करने लगी। नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी। आज मैं सचिन से कुछ बातें करना चाह रही थी पर शायद मेरी हिम्मत नहीं थी, मेरी सभ्यता और लज्जा इसके आड़े आ रही थी।
थोड़ी देर बाद मैंने सचिन की तरफ मुँह किया तो पाया कि सचिन सो चुके थे। मैं भी अब सोने की कोशिश करने लगी। पता नहीं कब मुझे नींद आई। अगले दिन सुबह फिर से वही रोज वाली दिनचर्या शुरू हो गई। परन्तु अब मेरी दिनचर्या में थोड़ा सा परिवर्तन आ चुका था।
सचिन के जाने के बाद मैं रोज कोई एक फिल्म जरूर देखती… अपने हाथों से ही अपने निप्पल और योनि को सहलाती निचोड़ती। धीरे धीरे मैं इसकी आदी हो गई थी। हाँ, अब मैं कम्प्यूटर भी अच्छे से चलाना सीख गई थी। एक दिन सचिन ने मुझसे कहा कि मैं इंटरनैट चलाना सीख लूँ तो वो मुझे आई डी बना देंगे जिससे मैं चैट कर सकूँ और अपने नये नये दोस्त बना सकूँगी। फिर भविष्य में बच्चों को भी कम्प्यूटर सीखने में आसानी होगी।
उन्होंने मुझे पास के एक कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट में इंटरनैट की क्लास चालू करा दी। आठ-दस दिन में ही मैंने गूगल पर बहुत सी चीजें सर्च करना और आई डी बनाना भी सीख लिया। मैंने जीमेल और फेसबुक पर में अपनी तीन-चार अलग अलग नाम से आई डी भी बना ली। एक महीने में तो मुझे फेक आई डी बनाकर मस्त चैट करना भी आ गया।
परन्तु मैंने अपनी सीमाओं का हमेशा ध्यान रखा। अपनी पर्सनल आई डी के अलावा सचिन को कुछ भी नहीं बताया। उसमें फ्रैन्डस भी बस मेरी सहेलियाँ ही थीं। मैं उस आई डी को खोलती तो रोज थी पर ज्यादा लोगों को नहीं जोड़ती थी। अपनी सभ्यता हमेशा कायम रखने की कोशिश करती थी।
इंटरनेट प्रयोग करते करते मुझे कम से कम इतना हो पता चल ही गया था कि फेक आई डी बना कर मस्ती करने में कोई भी परेशानी नहीं है, बस कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए। ऐसे ही चैट करते करते एक दिन मेरी आई डी पर अभिषेक की रिक्वेस्ट आई।
मैंने उनका प्रोफाइल देखा कही भी कुछ गंदा नहीं था। बिल्कुल साफ सुथरा प्रोफाइल। मैंने उनको एैड कर लिया। 2 दिन बाद जब मैं चैट कर रही थी। तो अभिषेक भी आनलाइन आये। बातचीत शुरू हुई। उन्होंने बिना लाग-लपेट के बता दिया कि वो पुरूष हैं, शादीशुदा है और 38 साल के हैं।
ज्यादातर पुरूष अपने बारे में पूरी और सही जानकारी नहीं देते थे इसीलिये उनकी सच्चाई जानकर अच्छा लगा। मैंने भी उनको अपने बारे में नाम, पता छोड़कर सब कुछ सही सही बता दिया। धीरे धीरे हमारी चैट रोज ही होने लगी। मुझे उनसे चैट करना अच्छा लगता था। क्योंकि एक तो वो कभी कोई व्यक्तिगत बात नहीं पूछते…
दूसरे वो कभी भी कोई गन्दी चैट नहीं करते क्योंकि वो भी विवाहित थे और मैं भी। तो हमारी सभी बातें भी धीरे-धीरे उसी दायरे में सिमटने लगी। मैंने उनको कैम पर देखने का आग्रह किया तो झट ने उन्होंने ने भी मुझसे कैम पर आने को बोल दिया। मैंने उनको पहले आने का अनुरोध किया तो वो मान गये, उन्होंने अपना कैम ऑन किया।
मैंने देखा उनकी आयु 35 के आसपास थी। मतलब वो मुझसे 2-3 साल ही बड़े थे। उनको कैम पर देखकर सन्तुष्ट होने के बाद मैंने भी अपना कैम ऑन कर दिया। वो मुझे देखते ही बोले, “तुम तो बिल्कुल मेरे ही एज ग्रुप की हो। चलो अच्छा है हमारी दोस्ती अच्छी निभेगी।”
धीरे धीरे मेरी उनके अलावा लगभग सभी फालतू की चैट करने वालों से चैट बन्द हो गई। हम दोनों निश्चित समय पर एक दूसरे के इंतजार करने लगे। वो कभी कभी हल्का-फुल्का सैक्सी हंसी मजाक करते…. जो मुझे भी अच्छा लगता। हाँ उन्होंने कभी भी मेरा शोषण करने का प्रयास नहीं किया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
अगर कभी किसी बात पर मैं नाराज भी हो जाती तो वो बहुत प्यार से मुझे मनाते। हाँ वो कोई हीरो नहीं थे। परन्तु एक सर्वगुण सम्पन्न पुरूष थे। एक दिन उन्होंने मुझसे फोन पर बात करने को कहा तो मैंने मना कर दिया। उन्होंने बिल्कुल भी बुरा नहीं माना। पर जब मैं चैट खत्म करने लगी तो उन्होने स्क्रीन पर अपना नम्बर लिख दिया…
और मुझसे बोले, “कभी भी मुझसे बात करने का मन हो या एक दोस्त की जरूरत महसूस हो तो इस नम्बर पर फोन कर लेना पर मुझे अभी बात करने की कोई जल्दी भी नहीं है।”
मैंने उनका नम्बर अपने मोबाइल में सेव कर लिया। वो बात उस दिन आई गई हो गई। उसके बाद हम फिर से रोज की तरह चैट करने लगी। एक दिन जब मेरा नैट पैक खत्म हो गया। मैं तीन दिन लगातार सचिन बोलती रही। पर उन्होंने लापरवाही की और रीचार्ज नहीं करवाया।
मुझे रोज अभिषेक से चैट करने की लत लग गई थी। अब मुझे बेचैनी रहने लगी। एक दिन मजबूर होकर अभिषेक को फोन करने की बात सोची पर ‘पता नहीं कौन होगा फोन पर’ यह सोच कर मैंने अपने मोबाइल से अभिषेक को मिस काल दिया। तुरन्त ही उधर से फोन आया। मैंने फोन उठाकर बात करनी शुरू की।
अभिषेक- हैल्लो !
मैं- हैल्लो !
अभिषेक- कौन?
मैं- पल्लवी !
अभिषेक- कौन?
मैं- अच्छा जी, 4 दिन चैट नहीं की तो मुझे भूल गये।
अभिषेक- ओह, तो तुम्हारा असली नाम पल्लवी है पर तुमने तो अपनी आई डी नंदिनी के नाम से बनाई है और वहाँ अपना नाम भी नंदिनी ही बताया था।
मुझे तुरन्त अपनी गलती का अहसास हुआ पर क्या हो सकता था अब तो तीर कमान से निकल चुका था।
मैं- वो मेरी नकली आई डी है।
अभिषेक- ओह, नकली आई डी? और क्या क्या नकली है तुम्हारा?
मुझे उनकी बात सुन कर गुस्सा आ गया।
मैं- जी और कुछ नकली नहीं है। लगता है आपको मुझ पर यकीन ही नहीं है।
अभिषेक- अभी तुमने ही कहा कि आई डी नकली है, और रही यकीन की बात तो अगर यकीन ना होता हो हम इतने दिनों तक एक दूसरे से बात ही ना करते। चैट पर तो लोग 4 दिन बात करते दोस्तों को भूल जाते हैं। पर मैं हमेशा दोस्ती निभाता हूँ और निभाने वालों को ही पसन्द भी करता हूँ।
मैं- अच्छा जी ! मेरे जैसी कितनी से दोस्ती निभा रहे हो आजकल आप?
अभिषेक- चैट तो दो से होती है पर दोनों ही तुम जैसे अच्छी पारिवारिक महिला हैं। क्योंकि अब हम इस उम्र में नहीं है कि बचकानी बातें कर सकें। तो मैच्योर लोगों से ही मैच्योर दोस्ती करनी चाहिए।
मैं अभिषेक की सत्यवादिता की कायल थी फिर भी मैंने और जानकारी लेनी शुरू की।
मैं- अच्छा, यह बताओ आपने अपने जीवन में कितनी महिलाओं से यौन सम्बन्ध बनाया है?
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अभिषेक ने सीधे सीधे जवाब दिया- सात के साथ! 3 शादी से पहले और 4 शादी के बाद। परन्तु मैंने आजतक किसी का ना तो शोषण करना ठीक समझा और ना ही किसी से सम्बन्धों का गलत प्रयोग करने की कोशिश की। हाँ मैंने कभी भी पैसे देकर या लेकर सम्बन्ध नहीं बनाया। क्योंकि मैं मानता हूँ सैक्स प्यार का ही एक हिस्सा है और जिसको आप जानते नहीं जिसके लिये आपके दिल में प्यार नहीं है उसके साथ सैक्स नहीं करना चाहिए।
मैं पूरी तरह उनसे सन्तुष्ट थी। अब हम इसी तरह हम रोज अब मोबाइल पर बातें करने लगे। कभी कभी फोन सैक्स भी करते। एक दिन अभिषेक ने मुझे बताया कि उनकी मीटिंग है और वो तीन दिन बाद दिल्ली आ रहे हैं।
मैंने पूछा, “मीटिंग किस समय खत्म होगी?”
उन्होंने जवाब दिया, “मीटिंग को 4 बजे तक खत्म हो जायेगी। पर मेरी वापसी की ट्रेन रात को 11 बजे है तो मैं शाम को तुमसे मिलना चाहता हूँ। कहीं भी किसी कॉफी शाप में बैठेंगे, एक घंटा और एक दूसरे से मीठी-मीठी बातें करेंगे। क्या तुम बुधवार शाम को चार से पांच का टाइम निकाल सकती हो मेरे लिये?”
मैंने हंसते हुए कहा, “यह भी पूछने की बात है क्या? मैं तो हमेशा से आपने मिलना चाहती थी पर आप सिर्फ़ एक घंटा मेरे लिये निकालोगे, यह मुझे नहीं पता था।”
उन्होंने कहा, “तुम घरेलू औरत हो और ज्यादा घर से बाहर भी नहीं जाती हो, मैं तो ज्यादा समय निकाल लूंगा पर तुम बताओ क्या घर से निकल पाओगी….? और क्या बोलकर निकलोगी?”
अब तो मेरी बोलती ही बंद हो गई। बात तो उनकी सही थी। शायद मैं ही पागल थी जो ये सब नहीं सोच पाई थी। पर मैं उनकी सोच का दाद दे रही थी। कितना सोचते हैं अभिषेक मेरे बारे में ना? हम रोज बात करते और बस उस एक घंटा मिलने की ही प्लानिंग करने लगे। आखिर इंतजार की घड़ी समाप्त हुई और बुधवार भी आ ही गया।
सचिन के जाते ही मैंने अभिषेक के मोबाइल पर फोन किया। तो उन्होंने कहा, “बस एक घंटे में गाड़ी दिल्ली स्टेशन पर पहुँच जायेगी… और हाँ, अभी फोन मत करना मेरे साथ और लोग भी हैं हम तुरन्त मीटिंग में जायेंगे। मीटिंग खत्म करके मैं उनसे अलग हो जाऊँगा… फिर 4 बजे के आसपास मैं तुमको फोन करूँगा।”
मेरे पास बहुत समय था। मैंने पहले खुद ही अपना फेशियल किया। मेनिक्योर, पेडिक्योर करके मैंने खुद को संवारना शुरू किया। शाम को 4 बजे मुझे अभिषेक से पहली बार मिलना था… मैं बहुत उत्साहित थी… मैं चाहती थी कि मेरी पहली छाप ही उन पर जबरदस्त हो…
अपने मैकअप किट से वीट क्रीम निकालकर वैक्सिंग भी कर डाली… नहा धोकर फ्रैश हुई, अपने लिये नई साड़ी निकाली, फिर सोचा कि अभी तैयार नहीं होती शाम को ही हो जाऊँगी… अगर अभी तैयार हुई तो शाम तक तो साड़ी खराब हो जायेगी। मैंने फिर से नाइट गाऊन ही पहन लिया।
अब मैं शाम होने का इंतजार करने लगी। समय काटे नहीं कट रहा था.. मेरे पास बहुत समय था। मैंने पहले खुद ही अपना फेशियल किया। मेनिक्योर, पेडिक्योर करके मैंने खुद को संवारना शुरू किया। शाम को 4 बजे मुझे अभिषेक से पहली बार मिलना था… मैं बहुत उत्साहित थी…
मैं चाहती थी कि मेरी पहली छाप ही उन पर जबरदस्त हो…. अपने मैकअप किट से वीट क्रीम निकालकर वैक्सिंग भी कर डाली…. नहा धोकर फ्रैश हुई, अपने लिये नई साड़ी निकाली, फिर सोचा कि अभी तैयार नहीं होती शाम को ही हो जाऊँगी… अगर अभी तैयार हुई तो शाम तक तो साड़ी खराब हो जायेगी। मैंने फिर से नाइट गाऊन ही पहन लिया।
अब मैं शाम होने का इंतजार करने लगी। समय काटे नहीं कट रहा था.. मैंने फिर से कम्प्यूटर चला कर वही पोर्न मूवी चला ली। पर आज मेरा मन उसमें भी नहीं लग रहा था। मेरे मन में अजीब सा उत्साह था। शादी से पहले जब सचिन मुझे देखने आये थे… तब तो मैं बिल्कुल अल्हड़ थी, इतना उत्साहित तो तब भी नहीं थी मैं….
मैं अपने बैड पर बैठकर विचार करने लगी, अभिषेक से मिलकर एक घंटे में क्या क्या बातें करूँगी? कैसे उनके साथ बैठूँगी, कैसे वो मुझसे बात करेंगे आदि आदि। मुझे पता ही नहीं लगा ये सब सोचते सोचते कब मेरी आँख लग गई। दरवाजे पर घंटी बजी… तो मेरी आँख खुली मैंने घड़ी में समय देखा।
बच्चों के आने का टाइम हो चुका था। मैंने तुरन्त उठकर दरवाजा खोला। बच्चों को ड्रैस चेंज करवा कर खाना खिलाना, होमवर्क करवाना फिर ट्यूशन भेजना बस टाइम का पता ही नहीं चला कैसे तीन बज भी गये। बच्चों को ट्यूशन भेजकर मैं तैयार होने लगी। अभिषेक के फोन का भी इंतजार था… अभी मैं पेटीकोट ही पहन रही थी कि दरवाजे पर घंटी बजी…
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“इस समय कौन होगा?” मैं सोचने लगी।
घंटी दोबारा बजी तो मैंने फिर से नाइट गाउन पहना और दरवाजा खोलने गई। दरवाजा खोला तो देखा बाहर सचिन खड़े थे। मैं उनको 3 बजे दरवाजे पर देखकर चौंक गई।
वो अन्दर आये तो मैंने पूछा, “क्या हुआ? आप इस टाइम, सब ठीक-ठाक ना?”
सचिन बोले, “हां, यार वो आज 9 बजे रात की ट्रेन से मुझे जयपुर जाना है कल वहाँ मेरी मीटिंग है एक कस्टमर से। तो तैयारी करनी थी इसीलिये जल्दी आ गया।”
मैंने पूछा, “तो किस टाइम जाओगे स्टेशन?”
सचिन बोले, “टिकट करवा ली है, अब 7 बजे निकलूंगा सीधे स्टेशन के लिये।”
अब मैं तो फंस गई। अभिषेक मेरा इंतजार करेंगे। घर से कैसे निकलूँ, यही विचार कर रही थी कि मेरे मोबाइल की घंटी बजी। मैं समझ गई कि अभिषेक का ही फोन होगा पर अब कैसे बात करूं अभिषेक से, और क्या जवाब दूं अभिषेक को… सोचने का भी टाइम नहीं था। फोन बजकर खुद ही बंद हो गया। सबसे पहले मैंने फोन उठाकर उसको साइलेंट पर किया। तभी सचिन ने पूछा, “किसका फोन था?”
मैंने जवाब दिया, “कुछ नहीं वो कम्पनी वालों के फोन आते रहते हैं, मैं तो दुखी हो जाती हूँ।”
सचिन ने कहा, “बाद में मुझे याद दिलाना, मैं डी एन डी एक्टीवेट कर दूँगा।”
“हम्म्म्म्म्म्म….” बोलती हुई मैं मोबाइल लेकर टायलेट में चली गई।तब तक देखा अभिषेक की 3 मिस कॉल आ चुकी थी। मैंने सबसे पहले अभिषेक को मैसेज किया कि मेरे पति घर आ गये हैं। मैं थोड़ी देर में निकल कर फोन करती हूँ। फिर सोचने लगी कि क्या तरकीब निकालूं।
पर मैं उस समय खुद को बहुत बेचारा महसूस कर रही थी। सचिन 7 बजे घर से जाने वाले थे। तो मैं 7 से पहले तो घर से निकल ही नहीं सकती थी और 7 बजे के बाद अंधेरा हो जाता तो बच्चों को घर में अकेला छोड़कर मैं 7 बजे के बाद भी घर से नहीं निकल सकती थी।
मैं एक पारिवारिक महिला ही जिम्मेदारियों में फंस चुकी थी। मेरे पास अब अभिषेक से मिलने का कोई रास्ता नहीं था… और वो इतनी दूर से आये थे सिर्फ मेरे लिये रात की ट्रेन से टिकट कराई मैं उनसे ना मिलूं ये भी ठीक नहीं था। समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या करूं। मैं बहुत देर से टाइलेट में थी तो बाहर जाना भी जरूरी था। मैं मोबाइल को छुपाकर धीरे से बाहर निकली।
“पल्लवी, चाय पीने का मन है यार। तुम चाय बनाओ मैं ब्रैड लेकर आता हूँ।” बोलते हुए सचिन घर से बाहर चले गये। मेरी तो जैसे सांस में सांस आई। उनके बाहर जाते ही मैंने दरवाजा अन्दर से बंद किया और अभिषेक को फोन किया। पहली ही घंटी पर अभिषेक का फोन उठा वो बोले, “कहाँ हो यार? मैं कब से तुम्हारा वेट कर रहा हूँ।”
मैंने पूछा, “कहाँ हो आप?”
मुझे उनको यह बताने में बहुत ही शर्म महसूस हो रही थी कि मैं नहीं आ पाऊंगी… पर बताना तो था ही। इसीलिये मैं बातें बना रही थी। उन्होंने बताया, “कश्मीरी गेट मैट्रो स्टेशन के नीचे काफी शॉप पर हूँ। यहीं तो मिलने को बोला था ना तुमने।”
अब मैं क्या करती, मैंने उनको सच-सच बताने का फैसला किया, “सुनो, मैं आज नहीं आ पाऊँगी।” “कोई बात नहीं, पर क्या कारण जान सकता हूँ? अगर तुम बताना चाहो तो।” उन्होंने बिल्कुल शान्त स्वभाव से पूछा।
मैंने उनको सारी बात बता दी।
तो अभिषेक बोले, “तुम्हारा पहला फर्ज पति का साथ देना है, तुम उनके जाने की तैयारी करो। जब वो चले जायेंगे 7 बजे तब मुझसे बात करना मेरी ट्रेन रात को 11 बजे की है।” मैंने कहा, “पर 7 बजे अंधेरा हो जाता है मैं घर से उस समय नहीं निकल पाऊँगी।”
“अरे यार, तुम टैंशन मत लो। मैं कब तुमको बाहर निकलने को बोल रहा हूँ। मैं तो सिर्फ फोन पर बात करने को बोल रहा हूँ। अभी तुम अपने पति पर ध्यान दो।” बोलकर अभिषेक ने ही फोन काट दिया।
सच में अभिषेक कितने अच्छे, मैच्योर और कोआपरेटिव इंसान, हैं ना। मैं सोचने लगी… और चाय बनाने चली गई। तब तक बच्चे भी वापस आ गये और सचिन भी। मैंने सभी को चाय ब्रैड खिलाकर जल्दी जल्दी खाना बनाने की तैयारी शुरू कर दी। और सचिन अपनी पैकिंग करने लगे।
समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। मैंने सचिन के लिये रात का खाना पैक कर दिया। सात बजे सचिन ने अपना बैग उठाया और चलने लगे। मैंने सचिन को विदा किया और बच्चों की तरफ देखा दोनों ही टीवी में व्यस्त थे। मैंने दूसरे कमरे में जाकर तुरन्त अभिषेक को फोन किया।
उधर से अभिषेक की आवाज आई, “हैल्लो, हो गई क्या फ्री?”
“हाँ जी, फ्री सी ही हूँ… पर इस समय बच्चों को घर में अकेला छोड़कर नहीं निकल सकती।” मैंने कहा।
“अरे अरे, तुम टैंशन मत लो, कोई बात नहीं अगर किस्मत में इस बार तुमसे मिलना नहीं लिखा तो क्या हुआ? अगली बार देखते हैं।” अभिषेक बोले।
“पर मैं बहुत उदास हूँ, मेरा बहुत मन है आपसे मिलने का, आप एक काम कर सकते हो क्या?” मैंने कुछ सोचते हुए पूछा।
“हां, बताओ।” अभिषेक ने कहा।
“मैं बच्चों को जल्दी सुलाने की कोशिश करती हूँ।, आप 8 बजे तक मेरे घर ही आ जाओ। मैं आपको अपने हाथ का बना खाना भी खिलाऊंगी… और तसल्ली से बैठकर बातें भी होंगी। आपकी ट्रेन 11 बजे है ना आप 10.30 पर भी निकलकर आटो से जाओगे तो 11 बजे तक पुरानी दिल्ली स्टेशन पहुँच ही जाओगे।” मैंने कहा।
अभिषेक मेरी बात से सहमत हो गये। मैंने उनको अपने घर का पता समझाया और तुरन्त आटो करने को बोला। उन्होंने ‘ओ के’ बोलकर फोन काटा। मैंने बच्चों को खाना खिलाकर तुरन्त सोने का आदेश दे दिया। थोड़ी सी कोशिश करने के बाद ही दोनों बच्चे सो गये। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैं तुरन्त बच्चों के कमरे से बाहर आई, अभिषेक को फोन किया तो वो बोले की आटो में हूँ। उतर कर फोन करता हूँ। मेरे पास अब ज्यादा समय नहीं था। मैं तेजी से तैयार होने लगी। अभी मैं साड़ी बांधकर हल्का सा मेकअप कर ही रही थी कि अभिषेक का फोन आया।
मैंने फोन उठाया तो एकदम ही अभिषेक बोले, “अरे, देखो शायद मैं तुम्हारी बिल्डिंग के बाहर ही हूँ।”
मैंने खिड़की खोलकर देखा तो अभिषेक बिल्कुल मेरे फ्लैट के नीचे ही खड़े थे। मैंने उनको ऊपर देखने को कहा। वो मेरी तरफ देखते ही मुस्कुराये। मैं बहुत खुश थी मैंने उनको मेरे फ्लैट तक बिना शोर या आवाज किये आने को कहा। वो धीरे से सीधे मेरे फ्लैट के दरवाजे पर आये। मैंने दरवाजा पहले से ही खोल रखा था… उनको अन्दर लेकर मैंने दरवाजा बन्द कर दिया। अब सब ठीक था कोई परेशानी नहीं थी। उन्होंने अन्दर आते ही मुझे गले लगाया। मैं बहुत खुश थी।
उन्होंने कहा, “बहुत सुन्दर लग रही हो।”
मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा मिलते ही चालू हो गये। आप बैठो सब्जी तैयार है मैं पहले आपके लिये गर्म गर्म रोटी बनाती हूँ।” अभिषेक मना करने लगे। पर मैं जबरदस्ती करती हुई रसोई में चली गई। वो भी मेरे पीछे पीछे वहीं आ गये।
मैंने कहा, “आप बाहर बैठो मैं आती हूँ।”
अभिषेक बोले, “समय कम है हमारे पास मैं यहीं तुम्हारे साथ बात भी करता रहूँगा और तुम खाना भी बना लेना। वैसे भी इस साड़ी में मस्त लग रही हो। तुम्हारा तो किडनैप करना पड़ेगा।”
मैंने जवाब दिया, “ऐसे तो कभी कभी मिल भी सकते हैं किडनैप करोगे तो एक बार में ही काम खत्म।”
वो हंसते हुए बोले, “लगता है आज ही वैक्स भी किया है बाजू बहुत चिकनी चिकनी लग रही है।”
और मेरे पीछे से खड़े होकर मेरी दोनों बाजुओं पर अपने हाथ फिराने लगे…
“सीईईई ईईय…” मैं सीत्कार उठी। मैंने वहीं खड़े-खड़े अपने नितम्बों को पीछे करके उनको पीछ की तरफ धकेला।
अभिषेक बोले, “ये क्या कर रही हो? बीच में तुम्हारी साड़ी आ गई नहीं तो पता है तुम्हारे कूल्हे कहाँ जा टकराएँ हैं? अगर कुछ गड़बड़ हो जाती तो…?”
“हा… हा… हा… हा… हो जाने दो…!” मैंने हंसते हुए अभिषेक को छेड़ा।
अभिषेक बोले, “नहीं, वक्त नहीं है… 9 बजने वाले हैं… और मुझे अपनी ट्रेन भी पकड़नी है। मैं तो बस तुमसे मिलने आया हूँ और कुछ नहीं।”
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अभिषेक मेरे सबसे अच्छा दोस्त बन गये थे… पता नहीं क्यों पर मैं अभिषेक के साथ बिल्कुल भी झिझक महसूस नहीं कर रही थी बल्कि मैं तो बहुत ज्यादा सहज महसूस कर रही थी अभिषेक के साथ। इतना तो मैंने कभी सचिन के साथ भी महसूस नहीं किया था। पर मैं पता नहीं आज किस मूड में थी। पर अभिषेक को कुछ कहूँ भी तो कैसे कहीं वो मुझे गलत ना समझ लें। रोटी बनाकर मैं डायनिंग पर दोनों के लिये खाना लगाने लगी, अभिषेक भी मेरी मदद कर रहे थे जबकि सचिन ने तो आज तक मेरे साथ घर के काम में हाथ भी नहीं लगाया।
मैं तो अभिषेक के व्यवहार की कायल होने लगी थी। खाना खाते-खाते ही 9.30 हो गये। अभिषेक 10 बजे तक वापस जाना चाहते थे। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि उसको कैसे रोकूं। मैंने अभिषेक को बोला कि आप 10.30 तक भी निकलोगे तब भी आपको ट्रेन मिल जायेगी। अभी तो आपसे बहुत सारी बातें करनी हैं। अभी आप जल्दी मत करो। वो मेरी बात मान गये और रिलैक्स होकर बैठ गये। दोस्तों अभी के लिए इतना ही, अब मुझे इजाजत दीजिये. आगे की कहानी मैं आपको कल बताउंगी, तब तक पढ़ते रहिये हमारी वासना डॉट नेट.