School Girl Sex Kahani
सर- श्रेष्ठा ये क्या है? इस बार भी फेल.. आख़िर तुम करती क्या हो..? पढ़ाई में तुम्हारा ध्यान क्यों नहीं लगता। जब स्कूल-टेस्ट में ये हाल है तो बोर्ड के इम्तिहान में क्या खाक लिखोगी? School Girl Sex Kahani
ये सर हैं मनीष जिनकी उम्र 35 साल है और ये साइन्स के टीचर हैं.. थोड़े कड़क मिज़ाज के हैं। इनका कद और जिस्म की बनावट अच्छी है.. और एकदम फिट रहते हैं।
श्रेष्ठा- सॉरी सर प्लीज़.. मुझे माफ़ कर दो.. अबकी बार अच्छे नम्बर लाऊँगी.. प्लीज़ प्लीज़…
दोस्तो, यह है श्रेष्ठा सिंह.. अच्छे ख़ासे पैसे वाले घर की एक मदमस्त यौवन की मालकिन.. जिसकी उम्र 18 साल, कद 5’3″.. छोटे सुनहरे बाल.. गुलाब की पंखुड़ी जैसे पतले गुलाबी होंठ.. भरे हुए गोरे गाल.. नुकीले 30″ के मम्मे.. पतली कमर और 32″ की मदमस्त गाण्ड।
स्कूल में कई लड़के श्रेष्ठा पर अपना जाल फेंक रहे हैं कि काश एक बार उसकी मचलती जवानी का मज़ा लूट सकें.. मगर वो तो तितली की तरह उड़ती फिरती थी। कभी किसी के हाथ ना आई ! और हाँ आपको यह भी बता दूँ कि गंदी बातों से दूर-दूर तक उसका वास्ता नहीं था। वो शरारती थी.. मगर शरीफ़ भी थी। उसको चुदाई वगैरह का कोई ज्ञान नहीं था।
सर- नो.. अबकी बार तुम्हारी बातों में नहीं आऊँगा.. कल तुम अपने मम्मी-पापा को यहाँ लेकर आओ.. बस अब उनसे ही बात करूँगा कि आख़िर वो तुम पर ध्यान क्यों नहीं देते।
श्रेष्ठा- सर आप मेरी बात तो सुनिए.. बस साइन्स में मेरे नम्बर कम आए हैं और बाकी सब विषयों में मेरे अच्छे नम्बर आए हैं।
सर- जानता हूँ इसी लिए तो हर बार तुम्हारी बातों में आ जाता हूँ.. तुम बहुत अच्छी लड़की हो.. सब विषयों में अच्छे नम्बर लाती हो.. मगर ना जाने विज्ञान में तुम पीछे क्यों रह गई.. आज तो मुझे बता ही दो आख़िर बात क्या है?
श्रेष्ठा- व..वो.. सर आप तो जानते ही हो.. मैं रट्टा नहीं मारती.. सारे विषयों को समझ कर याद करती हूँ.. विज्ञान का पता ही नहीं चलता क्या लिखा है… क्यों होता है.. बस इसी उलझन में रहती हूँ तो ये सब हो जाता है और नम्बर कम आ जाते हैं।
सर- क्या.. अरे तुम क्या बोल रही हो..? मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा ठीक से बताओ मुझे।
श्रेष्ठा- वो.. वो.. सर मानव अंगों के बारे में मेरी सहेलियाँ पता नहीं क्या-क्या बोलती रहती हैं.. बड़ा गंदा सा बोलती हैं.. म…म..मुझे अच्छा नहीं लगता.. बस इसलिए मैं विज्ञान में इतनी रूचि नहीं लेती हूँ।
श्रेष्ठा की बात सुनकर मनीष सर के होंठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई।
सर- अच्छा तो ये बात है.. ऐसा करो शाम को तुम किताब लेकर मेरे घर आना.. वहाँ बताना ठीक से.. अभी मेरा क्लास लेने का वक्त हो रहा है.. देखो आ जाना नहीं तो कल तुम्हारे पापा से मुझे मिलना ही होगा।
श्रेष्ठा तो फँस गई थी.. अब मनीष शाम को उसका फायदा उठाएगा.. आप यही सोच रहे हो ना.. मेरे प्यारे दोस्तों देश बदल रहा है.. सोच बदलो.. खुद देख लो। शाम को 6 बजे श्रेष्ठा मनीष सर के घर पहुँच जाती है।
सर- अरे आओ आओ.. श्रेष्ठा बैठो.. अरे तनु ज़रा यहा आना.. देखो श्रेष्ठा आई है, मैंने बताया था ना तुमको…
तनुजा- जी अभी आई।
दोस्तो, यह है तनुजा वर्मा.. यह मनीष सर की पत्नी है, दिखने में बड़ी खूबसूरत है, इसका फिगर 34″ 32″36″ है। इनकी शादी को 3 साल हो गए हैं। दोनों बेहद खुश रहते हैं।
तनुजा- हाय श्रेष्ठा कैसी हो?
श्रेष्ठा- मैं एकदम ठीक हूँ मैम!
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सर- श्रेष्ठा, ये है मेरी पत्नी तनुजा.. सुबह तुमने अपनी प्राब्लम मुझे बताई थी ना.. मैंने तनु को सब बताया है.. अब मैं नहीं ये ही तुम्हारी मदद करेंगी। चलो तुम दोनों बातें करो मैं थोड़ी देर में बाहर जाकर आता हूँ ओके..।
श्रेष्ठा- ओके सर थैंक्स।
तनुजा- हाँ तो श्रेष्ठा.. अब बताओ तुम्हारी प्राब्लम क्या है और देखो किसी भी तरह की झिझक मत रखना.. सब ठीक से बताओ ओके..
श्रेष्ठा- ओके मैम बताती हूँ।
तनुजा- अरे ये मैम-मैम क्या लगा रखा है मुझे दीदी भी बोल सकती हो.. अब बताओ तुम्हारी सहेलियाँ क्या बोलती हैं?
श्रेष्ठा- व..ववो दीदी… मैंने उनसे एक बार पूछा ये योनि और लिंग किसे कहते हैं तब उन्होंने मेरा बड़ा मज़ाक उड़ाया और मेरे यहाँ हाथ लगा कर कहा.. इसे योनि कहते हैं और इसकी ठुकाई करने वाले डंडे को लिंग कहते हैं।
श्रेष्ठा ने अपना हाथ चूत पर रखते हुए यह बात बोली तो तनुजा की हँसी निकल गई।
श्रेष्ठा- दीदी आप भी ना मेरा मज़ाक उड़ा रही हो.. जाओ मैं आपसे बात नहीं करती। इसी लिए मैं किसी से इस बारे में बात नहीं करती हूँ।
तनुजा- अरे तू तो बुरा मान गई.. देख मेरा इरादा तेरा मजाक उड़ाने का नहीं था.. बस ये सोच कर हँसी आ गई कि तुम किस दुनिया से आई हो जो इतनी भोली हो.. अब सुनो मैं जो पूछू उसका सही जबाव देना और जो बोलूँ उसको ध्यान से सुनना।
श्रेष्ठा- ठीक है दीदी आप कहो।
तनुजा- सबसे पहले यह बता कि तेरी उम्र क्या है.. और तुम्हारे घर में कौन-कौन है.. तुम सोती किसके साथ हो?
श्रेष्ठा- दीदी मैं 18 की हूँ.. मैं पापा-मम्मी की इकलौती बेटी हूँ.. हमारा घर काफ़ी बड़ा है। मैं करीब 6 साल से अलग कमरे में सोती हूँ.. नहीं तो पहले मम्मी के कमरे में ही सोती थी।
तनुजा- अच्छा यह बात है.. तुम सेक्स के बारे में क्या जानती हो.. किसी से कुछ सुना होगा… वो बताओ।
श्रेष्ठा- ये सेक्स क्या होता है दीदी.. मुझे नहीं पता.. हाँ मेरी सहेलियाँ अक्सर बातें करती हैं.. बस उनसे मैंने सुना था कि लड़कों का पोपट होता है.. और लड़की का पिंजरा.. मगर मेरे कभी कुछ समझ नहीं आया।
तनुजा- ओह ये बात है.. तेरी सहेलियाँ कोडवर्ड में बातें करती हैं और तुम सच में बहुत भोली हो। अच्छा ये बताओ क्या कभी किसी ने तुम्हारे सीने पर हाथ रखा है या इनको छुआ या दबाया है..? तुमने किसी लड़के को पेशाब करते देखा है?
श्रेष्ठा- छी छी.. दीदी आप भी ना.. मैं क्यों किसी को पेशाब करते देखूँगी और आज तक किसी ने मुझे नहीं छुआ है।
तनुजा- अच्छा ये बात है.. तभी तुम ऐसी हो.. अब अपने अंगों के नाम बताओ.. मैं भी तो देखूँ तुम क्या जानती हो।
तनुजा ने श्रेष्ठा के गुप्तांगों के नाम उससे पूछे।
श्रेष्ठा- दीदी ये सीना है.. ये फुननी है और ये पिछवाड़ा बस।
तनुजा- अरे भोली बहना.. अब सुन ये सीना को मम्मों.. चूचे या कच्ची लड़की के अमरूद भी बोलते हैं और इसको चूत या बुर बोलते हैं समझी और ये पिछवाड़ा नहीं.. एस या गाण्ड है.. जिसको मटका-मटका कर तुम चलती हो और लड़कों के लौड़े खड़े हो जाते हैं।
तनुजा बोलने के साथ श्रेष्ठा के अंगों पर हाथ घुमा-घुमा कर मज़े ले रही थी। श्रेष्ठा को बड़ा अजीब लग रहा था मगर उसको मज़ा भी आ रहा था।
श्रेष्ठा- उफ़फ्फ़ आह दीदी ये लौड़ा क्या होता है?
तनुजा- अरे पगली दुनिया की सबसे अच्छी चीज़ के बारे में नहीं जानती..? लड़कों की फुननी को लौड़ा बोलते है जो चूत के लिए बना है.. बड़ा ही सुकून मिलता है लौड़े से।
श्रेष्ठा- दीदी कसम से.. मुझे इन सब बातों के बारे में कुछ भी पता नहीं था.. थैंक्स आपने मुझे बताया.. मगर मेरी एक बात नहीं समझ आ रही इन सब बातों का मेरे इम्तिहान में फेल होने से क्या सम्बन्ध?
तनुजा- अरे श्रेष्ठा.. तू सब विषयों में अच्छी है क्योंकि तुझे उन सबकी समझ है.. मगर विज्ञान में तू अनजान है क्योंकि तुझे कुछ पता नहीं.. ये चूत.. लौड़ा और चुदाई सब विज्ञान का ही तो हिस्सा हैं। अब देख मैं कैसे तुझे सेक्स का ज्ञान देती हूँ और देखना अबकी बार कैसे तेरे नम्बर अच्छे आते हैं.. बस तू मेरी बात मानती रहना, जैसा मैं कहूँ वैसा करती रहना।
श्रेष्ठा- ओके दीदी.. मैं आपकी सब बात मानूँगी.. बस मेरे नम्बर अच्छे आने चाहिए।
तनुजा ने आधा घंटा तक श्रेष्ठा को लड़की और लड़के के बारे में बताया और उसको जाते समय एक सेक्स की कहानी वाली किताब भी दी।
श्रेष्ठा- दीदी ये क्या है?
तनुजा- ये असली विज्ञान है.. रात को अपने कमरे में कुण्डी लगा कर सारे कपड़े निकाल कर इस किताब को पढ़ना.. और कल शाम को आ जाना.. बाकी सब कल समझा दूँगी।
श्रेष्ठा- सारे कपड़े निकाल कर.. नहीं दीदी मुझे शर्म आ रही है।
तनुजा- अरे पगली मैं किसी के सामने नंगी होने को नहीं बोल रही हूँ.. अकेले में ये करना है और नहाते वक्त क्या कपड़े पहन कर नहाती हो जो इतना शर्मा रही हो..? पास नहीं होना है क्या..?
श्रेष्ठा- सॉरी दीदी.. जैसा आपने कहा, वैसा कर लूँगी।
श्रेष्ठा वहाँ से अपने घर चली जाती है। रात को 10 बजे खाना खाकर श्रेष्ठा अपने कमरे में चली जाती है। उसने हल्के हरे रंग की नाईटी पहनी हुई थी.. वो शीशे के सामने खड़ी होकर अपने आपको देखने लगती है। उसके दिमाग़ में तनुजा की कही बातें घूम रही थीं।
श्रेष्ठा ने अपनी नाईटी निकाल कर रख दी अब वो ब्रा-पैन्टी में थी.. उसके चूचे ब्रा से बाहर निकलने को मचल रहे थे। गोरा बदन शीशे के सामने था.. जिसे देखकर शीशा भी शर्मा रहा था। पैन्टी पर चूत की जगह गीली हो रही थी.. शायद श्रेष्ठा कुछ ज़्यादा ही तनुजा की बातें सोच रही थी। दोस्तो, इस बेदाग जिस्म पर काली ब्रा-पैन्टी भी क्या सितम ढा रही थी। इस वक़्त कोई ये नजारा देख ले तो उसका लौड़ा पानी छोड़ दे।
श्रेष्ठा- ओह्ह.. दीदी अपने सच ही कहा था कि अपने नंगे बदन को शीशे में देखो.. मज़ा आएगा।
कसम से वाकयी में.. मेरे पूरे जिस्म में आग लग रही है.. बड़ा मज़ा आ रहा है। श्रेष्ठा ने कमर पर हाथ ले जाकर ब्रा का हुक खोल दिया और अपने मचलते चूचे आज़ाद कर दिए। सुई की नोक जैसे नुकीले चूचे आज़ाद हो गए दोस्तों श्रेष्ठा के निप्पल हल्के भूरे रंग के.. एकदम खड़े हो रहे थे।
अगर कोई गुब्बारा इस समय उसकी निप्पल को छू जाए तो उसकी नोक से फूट जाए। अब श्रेष्ठा का हाथ अपनी पैन्टी पर गया वो धीरे-धीरे उसको जाँघों से नीचे खिसकने लगी और उसकी चूत ने अपना दीदार करवा दिया। उफ़फ्फ़ क्या.. बताऊँ आपको.. सुनहरी झाँटों से घिरी उसकी गुलाबी चूत.. जो किसी बरफी की तरह नॉकदार और फूली हुई थी।
उसकी चूत से रस निकल रहा था.. जिसके कारण उसकी फाँकें चमक रही थीं और हल्की-हल्की एक मादक खुशबू आने लगी। श्रेष्ठा ने अपने चूचों पर हाथ घुमाया और धीरे-धीरे अपनी चूत तक ले गईउसकी आँखें बंद थीं और चेहरे के भाव बदलने लगे थे। इससे साफ पता चल रहा था कि उसको कितना मज़ा आ रहा होगा।
थोड़ी देर श्रेष्ठा वैसे ही अपने आपको निहारती रही और उसके बाद गंदी कहानी की किताब लेकर बिस्तर पर पेट के बल लेट गई और कहानी पढ़ने लगी। वो कहानी दो बहनों की थी कि कैसे बड़ी बहन अपने बॉय-फ्रेंड से चुदवाती है और अपनी छोटी बहन के साथ समलैंगिक सम्बन्ध बनाती है.. आख़िर में उसका बॉय-फ्रेंड उसकी मदद से उसकी छोटी बहन की सील तोड़ता है।
कहानी पढ़ते-पढ़ते ना चाहते हुए भी श्रेष्ठा का हाथ चूत पे जा रहा था और वो कभी सीधी.. कभी उल्टी हो कर किताब पढ़ रही थी और चूत को रगड़ रही थी। करीब आधा घंटा तक वो किताब पढ़ती रही और चूत को रगड़ती रही। दोस्तो, श्रेष्ठा तो चुदाई से अंजान थी..
मगर ये निगोड़ी जवानी और बहकती चूत तो सब कुछ जानती थी.. हाथ के स्पर्श से चूत एकदम गर्म हो गई और श्रेष्ठा कामवासना की दुनिया में पहुँच गई। अब उसकी चूत किसी भी पल लावा उगल सकती थी। उसको ये सब नहीं पता था.. बस उसे तो असीम आनन्द की प्राप्ति हो रही थी। वो ज़ोर-ज़ोर से चूत को मसलने लगी और बड़बड़ाने लगी।
श्रेष्ठा- आह.. आह.. दीदी उफ़फ्फ़ आपने ये कैसी कहानी की किताब दे दी आहह.. मेरी फुननी तो.. नहीं.. नहीं… अब इसे चूत ही कहूँगी.. आआ.. आह मेरी चूत तो जलने लगी है आहह.. हाथ हटाने को दिल ही नहीं कर रहा.. उफफफ्फ़ उउउ आआहह..
श्रेष्ठा अपने चरम पर आ गई.. तब उसने पूरी रफ्तार से चूत को मसला और नतीजा आप सब जानते ही हो.. पहली बार श्रेष्ठा की चूत ने वासना को महसूस करके पानी छोड़ा। दोस्तो, कुछ ना जानने वाली श्रेष्ठा ने रात भर में पूरी किताब पढ़ डाली और 3 बार बिना लौड़े के अपनी चूत से पानी निकाला और थक-हार कर नंगी ही सो गई।
सुबह श्रेष्ठा काफ़ी देर तक सोती रही उसकी मम्मी ने उसे जगाया.. तब वो जागी आज वो बड़ा हल्का महसूस कर रही थी और उसके चेहरे की ख़ुशी साफ बता रही थी कि रात के कार्यक्रम से उसको बड़ा सुकून मिला है। नहा-धो कर वो स्कूल चली गई.. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
रोज की तरह आज भी कुछ लड़के गेट पर उसके आने का इंतजार कर रहे थे ताकि उसकी मटकती गाण्ड और उभरे हुए चूचों के दीदार हो सकें। रोज तो श्रेष्ठा नज़रें झुका कर चुपचाप चली जाती थी.. मगर आज उसने सबसे नज़रें मिला कर एक हल्की मुस्कान सबको दी और गाण्ड को हिलाती हुई अपनी क्लास की तरफ़ चली गई।
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शिवम्- उफ़फ्फ़ जालिम.. आज ये क्या सितम ढा गई मुझ पे.. साला आज सूरज कहाँ से निकला था.. मेरी जान ने आज नज़रें मिलाईं भी और हँसी भी।
गोपाल- हाँ यार क्या क़ातिल अदा के साथ मुस्कुराई थी.. मेरा तो दिल करता है.. अभी उसके पास जा कर कहूँ.. आ सेक्स की देवी.. अपने इन मखमली होंठों से छू कर मेरे लौड़े को धन्य कर दो।
शिवम्- अबे साले चुप.. मैं तो ये कहूँगा कि आ स्वर्ग की अप्सरा.. एक बार मेरे लौड़े को अपनी चूत और गाण्ड में ले कर मेरा जीवन सफल कर दो।
अभिषेक- चुप भी करो सालों.. हवस के पुजारियों.. वो आज हँसी.. इसका मतलब हम में कोई तो है.. जिससे वो फंसी.. अब पता लगाना होगा कि वो सेक्स बॉम्ब किसके लौड़े पर फटेगा।
तीनों खिलखिला कर हँसने लगते हैं। दोस्तों इन के बारे में आपको बताने की जरूरत नहीं.. आप खुद जान गए होंगे कि ये श्रेष्ठा के साथ ही स्कूल में पढ़ते हैं। बाकी की जानकारी जब इनका खास रोल आएगा तब दे दूँगी। फिलहाल स्टोरी पर ध्यान दो। श्रेष्ठा का दिन एकदम सामान्य गया.. मनीष सर ने भी उससे कुछ बात नहीं की। वो आज बहुत खुश थी।
हाँ इसी बीच वो तीनों मनचले जरूर उससे बात करने को मचलते रहे। मगर श्रेष्ठा ने उनको भाव नहीं दिया, शाम को उसी वक़्त श्रेष्ठा पढ़ने के बहाने तनुजा के घर की ओर निकल गई। श्रेष्ठा ने आज गुलाबी से रंग की एक चुस्त जींस और नीली टी-शर्ट पहनी हुई थी। उसको देख कर रास्ते में ना जाने कितनों की ‘आह’ निकली होगी और क्या पता कौन-कौन आज उसके नाम से अपना लौड़ा शान्त करेगा।
तनुजा- अरे आओ आओ.. श्रेष्ठा बैठो आज तो बहुत खिली-खिली लग रही हो।
श्रेष्ठा- क्या दीदी आप भी ना…
तनुजा- मैंने कल क्या समझाया था.. तुझे शर्म को बाजू में रख कर मुझसे बात किया करो.. ओके.. चल, अब बता कल क्या-क्या किया और स्टोरी कैसी लगी?
श्रेष्ठा इधर-उधर नज़रें घुमाने लगी।
तनुजा- अरे इधर-उधर क्या देख रही है..? बता ना…
श्रेष्ठा- वो सर कहीं दिखाई नहीं दे रहे?
तनुजा- क्यों कल का सारा किस्सा मनीष को बताएगी क्या.. वो बाहर गए हैं.. चल अब बता…
श्रेष्ठा का चेहरा शर्म से लाल हो गया मगर फिर भी उसने हिम्मत करके रात की सारी बात तनुजा को बता दी।
तनुजा- अरे वाहह.. क्या बात है पहली बार में ही तूने हैट्रिक मार दी.. चल अच्छा किया.. अब बता तुझे क्या समझ नहीं आया?
श्रेष्ठा- दीदी स्टोरी तो मस्त थी.. मगर उसमें बहुत सी बातें मेरे ऊपर से निकल गईं.. जैसे आज तो तेरी सील तोड़ दूँगा.. अब ये सील क्या होती है और हाँ.. एक जगह लिखा था आज तेरे रसीले चूचों का सारा रस पी जाऊँगा.. दीदी ये चूचे तो समझ आ गए.. मगर इनमें रस कहाँ होता है?
तनुजा के चेहरे पर एक कामुक मुस्कान आ गई।
तनुजा- अरे मेरी मासूम बहना.. सील का नहीं पता.. अब सुन तेरी चूत में अन्दर एक पतली झिल्ली है.. उसे सील कहते हैं… जब पहली बार लौड़ा चूत में जाता है ना.. तब लौड़े के वार से वो झिल्ली टूट जाती है। उसी को सील तोड़ना कहते हैं।
श्रेष्ठा- ओह्ह.. अच्छा और रस?
तनुजा- तू सुन तो सही यार.. देख जब लड़का मम्मों को चूसता है.. यानी निप्पल को चूसता है तब उसमें से आता कुछ नहीं मगर उसको और लड़की को मज़ा बहुत आता है.. बस लड़का उसी को रस कहता है।
श्रेष्ठा- अच्छा ये बात है.. मगर सच कहूँ अब भी ये बात मेरी समझ के बाहर है।
तनुजा- मेरी जान ऐसे तो तू कभी कुछ नहीं सीख पाएगी.. देख इसका आसान तरीका यही है कि मैं तुम्हें प्रेक्टिकल करके समझाऊँ तभी तू कुछ समझ पाएगी।
श्रेष्ठा- हाँ दीदी ये सही रहेगा।
तनुजा- तो चल कमरे में चल कर अपने सारे कपड़े निकाल.. मैं भी नंगी हो जाती हूँ, तभी मज़ा आएगा।
श्रेष्ठा- छी.. नहीं दीदी.. मुझे बहुत शर्म आ रही है… मैं आपके सामने बिना कपड़ों के कैसे आऊँगी?
तनुजा- अरे यार तू तो ऐसे शर्मा रही है जैसे मैं कोई लड़का होऊँ? यार.. मैं भी तो नंगी हो रही हूँ ना.. और तेरे पास ऐसा क्या है जो मेरे पास नहीं है.. अब चल।
बेचारी श्रेष्ठा क्या बोलती.. चल दी उसके पीछे-पीछे।
कमरे में जाकर तनुजा ने कहा- तू दो मिनट यहीं बैठ मैं अभी आई।
श्रेष्ठा- दीदी, सर तो नहीं आ जाएँगे ना और प्लीज़ उनसे कुछ मत बताना.. वर्ना स्कूल में उनके सामने जाने की मेरी हिम्मत ना होगी।
तनुजा- अरे तू पागल है क्या.. ऐसी बातें किसी को बताई नहीं जाती और मनीष तो बहुत सीधा आदमी है.. तभी तो तुमको मेरे पास ले आया ताकि मैं तुझे ठीक से समझा सकूँ.. अब चल तू बैठ.. मैं अभी आई।
उस दिन स्कूल से जब मनीष घर आया।
तनुजा- अरे आओ मेरे पतिदेव क्या बात है बड़े थके हुए लग रहे हो।
मनीष- नहीं.. ऐसी कोई बात नहीं है.. तुमसे एक बात करनी है बैठो यहाँ।
तनुजा वहीं सोफे पर बैठ जाती है और मनीष उसको श्रेष्ठा के साथ हुई पूरी बात बता देता है।
तनुजा- हे राम इतनी भी क्या नादान है वो लड़की… जो ये सब नहीं जानती? और तुमने शाम को उसे यहाँ क्यों बुलाया? क्या इरादा है मुझ से मन भर गया क्या.. जो उस कमसिन कली को समझाने के बहाने भोगना चाहते हो?
मनीष- तनु तुम भी ना.. बस बिना मतलब की बकवास करने लगती हो.. मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है.. बस वो आए तब उसे तुम समझा देना और कुछ नहीं…
तनुजा- ओह्ह.. ये बात है… अच्छा मान लो अगर वो तुमसे चुदवाना चाहे तो क्या तुम अपना लौड़ा उसकी चूत में डालोगे?
तनुजा की बात सुनकर मनीष का बदन ठंडा पड़ गया और श्रेष्ठा को चोदने की बात से ही उसका लौड़ा पैन्ट में तन गया जिसे तनुजा ने देख लिया।
मनीष- क्या बकवास कर रही हो तुम..? मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा।
तनुजा- ओए होये.. मेरा राजा.. ये नखरे! कुछ नहीं करोगे तो ये लंड महाराज क्यों फुंफकार रहा है हाँ?
मनीष ने पैन्ट में लौड़े को ठीक करते हुए तनुजा की तरफ़ घूर कर देखा।
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तनुजा- अच्छा बाबा ग़लती हो गई बस.. मगर एक बात कहूँ अगर वो खुद चुदवाने को राज़ी हो जाए तो मुझे कोई दिक्कत नहीं यार.. मैं तुमसे प्यार करती हूँ और जानती हूँ एक कच्ची कली को चोदने का सपना हर मर्द का होता है.. अब मुझसे क्या शर्माना।
मनीष- अच्छा ठीक है.. सुनो.. श्रेष्ठा बहुत सुन्दर है.. मानता हूँ कि उसको देख कर कोई भी उसको भोगने की चाहत करेगा मगर तुम तो जानती हो मैं कोई गली का गुंडा नहीं जो छिछोरी हरकतें करूँगा.. हाँ अगर वो खुद से राज़ी हो और तुम्हें कोई दिक्कत ना हो तब मैं उसे जरूर चोदना चाहूँगा।
मनीष की बात सुनकर तनुजा के होंठों पर एक क़ातिल मुस्कान आ गई।
तनुजा- ये हुई ना बात.. अब बस तुम अपनी तनु का कमाल देखो.. कैसे मैं उस कच्ची कली को लाइन पर लाती हूँ ताकि वो आराम से तुमसे चुदने को राज़ी हो जाए।
(दोस्तो, यह थी उस दिन की बात और श्रेष्ठा के सामने मनीष बाहर जरूर गया था मगर दूसरे दरवाजे से अन्दर आकर उनकी सारी बातें उसने सुन ली थीं। अब आज क्या हुआ चलो आपको बता देती हूँ।) तनुजा कमरे से निकल कर दूसरे कमरे में गई जहाँ मनीष पहले से ही बैठा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
तनुजा- काम बन गया.. अब सुनो मैं उसके साथ थोड़ा खेल लेती हूँ… तुम खिड़की से उसके नंगे जिस्म को देख कर मज़ा लो.. ओके.. अब मैं जाती हूँ वरना उसको शक हो जाएगा।
मनीष- ओके मेरी जान.. जाओ आज तुमको भी कच्ची चूत का रस पीने को मिल जाएगा हा हा हा हा।
तनुजा- धीरे हँसो.. वो सुन लेगी.. अब मैं जाती हूँ।
श्रेष्ठा- ओह दीदी आप कहाँ चली गई थीं।
तनुजा- अरे कुछ नहीं.. अब चल.. हो जा नंगी.. मस्ती का वक्त आ गया है।
श्रेष्ठा- आप भी निकालो.. दोनों साथ में निकालते हैं।
तनुजा ने तो नाईटी पहनी हुई थी और अन्दर कुछ नहीं पहना था झट से निकाल कर बगल में रख दी।
श्रेष्ठा- हा हा हा दीदी आप भी ना अन्दर कुछ नहीं पहना और आपके मम्मों को तो देखो कितने बड़े हैं।
तनुजा- मेरी जान, तेरी उम्र में मेरे भी इतने ही थे.. ये तो मनीष ने दबा-दबा कर इतने बड़े कर दिए।
श्रेष्ठा- दीदी आप भी ना कुछ भी बोल देती हो.. सर ने क्यों दबाए.. उम्र के साथ बढ़ गए होंगे।
तनुजा- अरे पगली तू उम्र की बात करती है तुम से कम उम्र की लड़की के मम्मों को तुझ से बड़े मैंने देखे हैं. अब क्या कहेगी तू?
श्रेष्ठा- सच्ची दीदी.. मगर ऐसा क्यों?
तनुजा- अरे पगली तेरे सर ने इनको दबा-दबा कर इनका रस चूसा है। वे कहते थे कि आम का स्वाद आता है।
श्रेष्ठा खिलखिला कर हँसने लगती है।
तनुजा- अब हँसना बंद कर और निकाल अपने कपड़े।
श्रेष्ठा ने पहले अपनी टी-शर्ट निकाली तब सफेद ब्रा में से उसके नुकीले मम्मे ब्रा को फाड़ कर बाहर आने को बेताब दिखने लगे। मनीष खिड़की पर खड़ा ये नजारा देख रहा था।
तनुजा- वाउ यार.. क्या मस्त मम्मे हैं.. अब ज़रा इन्हें आज़ाद भी कर दे।
श्रेष्ठा बस मुस्कुरा कर रह गई और उसने पैन्ट का हुक खोल कर नीचे सरकाना शुरू किया.. तब उसकी गोरी जांघें बेपरदा हो गईं और सफेद पैन्टी में उसकी फूली हुई चूत दिखने लगी। तनुजा बस उसको देखती रही और श्रेष्ठा अपने काम में लगी रही। अब उसने ब्रा के हुक खोल दिए और अपने रस से भरे हुए चूचे आज़ाद कर दिए।
मनीष का तो हाल से बहाल हो गया और होगा भी क्यों नहीं.. ऐसी मस्त जवानी को.. वो अपने सामने नंगा होते देख रहा था। अब उसने अपनी पैन्टी भी निकाल दी। सुनहरी झाँटों से घिरी गुलाबी चूत अब आज़ाद हो गई थी। तनुजा तो बस उसके यौवन को देखती ही रह गई.. मगर जब उसकी नज़र झाँटों पर गई।
तनुजा- अरे ये क्या… इतनी मस्त चूत पर ये झांटें क्यों..? मेरी जान, ऐसी चूत को तो चिकना रखा करो ताकि लौड़ा टच होते ही फिसल जाए।
श्रेष्ठा सवालिया नजरों से तनुजा की ओर देखती है।
तनुजा- अरे पगली चूत पर जो बाल होते हैं उन्हें झांट कहते हैं। अब इतना भी नहीं पता क्या और कभी इनको साफ नहीं किया क्या तुमने?
श्रेष्ठा- दीदी, अब आप के साथ रहूँगी तो सब सीख जाऊँगी और इनको साफ कैसे करते हैं? मैंने तो कभी नहीं किया..
तनुजा- ओह्ह.. तभी इतनी बड़ी खेती निकल आई है.. वैसे मानना पड़ेगा गुलाबी चूत पर ये सुनहरी झांटें किसी भी मर्द को रिझाने के लिए काफ़ी हैं लेकिन मुझे तो चूत को चिकना रखना ही पसन्द है। जब पहली बार मनीष ने मेरी चूत देखनी चाही थी.. मैंने भी झांटें साफ नहीं की हुई थीं। किसी तरह बहाना बना कर दूसरे दिन एकदम चकाचक चमकती चूत उसको दिखाई थी। वो तो देखते ही लट्टू हो गया था।
श्रेष्ठा- ओह दीदी.. आप भी ना बेचारे सर को अपने जाल में फँसा लिया हा हा हा हा!
तनुजा- अरे पगली सारे मर्दों को चिकनी चूत बहुत पसन्द आती है और खास कर तेरी जैसी कच्ची कली की चूत तो चिकनी ही रहनी चाहिए.. चल सबसे पहले तुझे झांटें साफ करना सिखाती हूँ।
श्रेष्ठा- ठीक है दीदी.. कहाँ चलना है अब?
तनुजा- अरे कहाँ का क्या मतलब है.. बाथरूम में… चल तू वहाँ कमोड पर बैठ जाना.. मैं साफ कर दूँगी।
श्रेष्ठा- ओह्ह.. दीदी आप कितनी अच्छी हो जो मुझे सब सिखा रही हो।
तनुजा- अच्छा एक बात तो बता.. तू 18 साल की हो गई है तुझे वो तो आती है ना.. मेरा मतलब मासिक धर्म जो हर महीने आता है।
श्रेष्ठा- हाँ दीदी इसका मुझे पता है लेकिन जब मैं 13 साल की थी मुझ पेट में बहुत दर्द हुआ.. बुखार भी हो गया.. दो दिन तक ऐसा चला.. तब माँ ने मुझे सब समझाया कि अब तुझे पीरियड शुरू होंगे.. तू खून देख कर डरना मत.. बस उस दिन से सब पता चल गया।
तनुजा- चल कुछ तो पता चला तुझे.. आ बैठ यहाँ.. मैं अभी वीट लगा कर तेरी चूत को चमका देती हूँ।
श्रेष्ठा- दीदी बाथरूम का दरवाजा तो बन्द करो.. कोई आ गया तो?
तनुजा- अरे यार घर में सिर्फ़ हम दोनों हैं और कमरे की कुण्डी बन्द है ना.. कोई कैसे आएगा..? अब चुपचाप बैठ जा यहाँ।
श्रेष्ठा इसके बाद कुछ नहीं बोली.. 15 मिनट में तनुजा ने उसके चूत के बाल के साथ-साथ उसके हाथ-पाँव के भी बाल उतार दिए। उसको एकदम मक्खन की तरह चिकना बना दिया। श्रेष्ठा ने पानी से अपने आपको साफ किया और तौलिया से जिस्म पौंछ कर बाहर आ गई और बिस्तर पर सीधी लेट गई।
तनुजा- मेरी जान.. कल तूने स्टोरी पढ़ के चूत को ठंडा किया था ना.. अब देख आज मैं तुझे कैसे मज़ा देती हूँ।
(दोस्तो, मनीष अब भी खिड़की के पास ही खड़ा था.. उसने अपना 8″ का लौड़ा पैन्ट से बाहर निकाल लिया था और श्रेष्ठा को देख कर उसे सहलाने लगा था। वो कुछ बड़बड़ा भी रहा था।
मनीष- उफ्फ.. साली क्या चूत है तेरी.. साला लौड़ा बेकाबू हो गया… तेरे रसीले चूचे तो मुझे पागल कर रहे हैं… काश अभी इनको चूस-चूस कर तेरा सारा रस पी जाऊँ।)
तनुजा ने श्रेष्ठा के पैरों को मोड़ कर उसकी चूत पर एक चुम्बन कर लिया। श्रेष्ठा सिहर गई और जल्दी से बैठ गई।
श्रेष्ठा- छी.. छी.. दीदी ये आप क्या कर रही हो.. ये गंदी जगह पर चुम्बन क्यों कर रही हो?
तनुजा- अरे तुझे क्या पता पगली.. दुनिया में कामरस से बढ़कर कुछ नहीं है और ऐसी अनछुई कच्ची चूत का रस तो किसी नसीब वाले को ही मिलता है.. काश मैं लड़का होती तो आज तेरी सील तोड़ कर पूरा लौड़ा अन्दर घुसा देती.. हाय री मेरी फूटी किस्मत.. अब तो तेरी चूत चाट कर ही अपने आपको धन्य समझ लूँगी।
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इतना बोल कर तनुजा चूत को अपनी जीभ से चाटने लगी।
श्रेष्ठा- आहह उफ़फ्फ़ दीदी आहह.. उई मज़ा आ गया आहह आई उफ़फ्फ़ आराम से दीदी आहह.. काटो मत ना आहह..
तनुजा जीभ की नोक को चूत के अन्दर तक घुसाने की कोशिश कर रही थी, मगर कुँवारी चूत में जगह कहाँ थी। अब तनुजा चूत के दाने को जीभ से चाटने और चूसने लगी।
श्रेष्ठा- आह आह… ये आ.. आपन..ने आहह.. क्या कर दिया आहह.. मेरे आहह..प पु पूरे जिस्म में करंट जैसा लग र..र..रहा है।
तनुजा ने अपना मुँह ऊपर किया और श्रेष्ठा को आँख मारते हुए कहा।
तनुजा- मेरी जान, इसे चूत का दाना कहते हैं जिसको छूने से चूत की आग भड़क जाती है और किसी आग की भट्टी की तरह चूत जलने लगती है.. यही सही समय होता है लौड़ा घुसाने का.. इस वक्त कितनी भी छोटी चूत क्यों ना हो.. बड़े से बड़े लौड़े को अन्दर ले लेती है.. मेरा बहुत मन कर रहा है कि तेरे मम्मों का रस पिऊँ मगर ये मैंने किसी और को देने का वादा किया है।
आख़िर की लाइन तनुजा ने धीरे से बोली ताकि श्रेष्ठा सुन ना सके।
श्रेष्ठा- दीदी आहह.. चाटो ना प्लीज़ आहह.. मज़ा आ रहा था ऐसे मुझे गर्म करके आप बीच में नहीं छोड़ सकती.. आह्ह प्लीज़।
तनुजा- देखा मेरा काम था तुझे गर्म करने का और अब तू एकदम गर्म हो गई है.. आजा अब तू भी मेरी चूत को चाट कर मज़ा ले।
श्रेष्ठा- नहीं दीदी ये मुझसे नहीं होगा.. मुझे घिन आ रही है प्लीज़ आप अच्छा चाट रही थीं.. आ जाओ ना।
तनुजा- अच्छा तुझे चाटने से घिन आएगी और चटवाने में बड़ा मज़ा आ रहा है.. ऐसा कर 69 के पोज़ में आ जा.. मेरी तू चाट तेरी मैं चाट कर मज़ा देती हूँ।
श्रेष्ठा पर सेक्स का खुमार छा गया था.. उसे अब अच्छे बुरे की कहाँ पहचान थी। बस तनुजा की बातों में आ गई। अब दोनों एक-दूसरे की चूत को चाट रही थीं। शुरू में श्रेष्ठा को अच्छा नहीं लगा.. मगर तनुजा जिस तरीके से उसकी चूत चूस रही थी। वो मजबूर हो गई और बैसे ही वो तनुजा की चूत चाटने लगी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
(दोस्तों, इन दोनों के चक्कर में आप मनीष को भूल गए.. बेचारा बाहर खड़ा बड़ी रफ्तार से लौड़े को आगे-पीछे कर रहा था।) ये दोनों 10 मिनट तक एक-दूसरे की चूत चाटती रहीं। फिर तनुजा अपनी ऊँगली से श्रेष्ठा की चूत चोदने लगी.. उसको थोड़ा दर्द तो हुआ मगर मज़ा बहुत आ रहा था।
आख़िरकार श्रेष्ठा की चूत ने पानी छोड़ दिया, जिसे तनुजा चाटने लगी। उसी पल तनुजा ने भी श्रेष्ठा के मुँह पर पानी छोड़ दिया। श्रेष्ठा को घिन आई और उसने मुँह हटा लिया मगर तनुजा उसके मुँह पर बैठ गई ना चाहते हुए भी श्रेष्ठा को रस पीना पड़ा। दोनों अब अलग होकर शान्त पड़ गईं। उधर मनीष भी हल्का हो चुका था।
श्रेष्ठा- छी दीदी.. आप बहुत गंदी हो.. चूत का पानी पी गईं और मुझे भी पिला दिया.. उह कितना अजीब सा स्वाद था।
तनुजा- अबे बस उल्टी करेगी क्या बिस्तर पे..? भूल जा उसको.. ये बता मज़ा आया कि नहीं तुझे।
श्रेष्ठा- दीदी सच बताऊँ.. जब आप चूत चाट रही थी ना.. बड़ा मज़ा आ रहा था और आपने जब ऊँगली अन्दर डाली.. मेरे तो बदन में से जान ही निकल गई थी.. कसम से बहुत मज़ा आया।
तनुजा – इसकी जगह लंड अन्दर गया होता तो तुझे और मजा आता।
श्रेष्ठा- दीदी आप कब से लंड के बारे में बोल रही हो आख़िर ये होता कैसा है.. जरा मुझे भी तो दिखाओ।
तनुजा- ओये होये.. मेरी प्यारी बहना, बड़ी जल्दी है तुझे लंड देखने की.. तुझे अगर अभी देखना है तो बुला लूँ.. तेरे मनीष सर को.. उनका लंड देख लेना।
श्रेष्ठा- दीदी आप भी ना.. सर को बताने के लिए मैंने मना किया है।
तनुजा- तो मेरी रानी, मेरे पास कौन सा लंड है.. जो तुझे निकाल कर दिखा दूँ.. मेरे पास तो ये चुदी हुई चूत है… इसे ही देख ले हा हा हा हा हा।
श्रेष्ठा भी तनुजा के साथ हँसने लगी।
तनुजा- चल तेरी तमन्ना मैं आज पूरी कर ही देती हूँ तू यहीं बैठ.. मैं अभी दूसरे कमरे से तेरे लिए लंड लेकर आई।
श्रेष्ठा- दीदी ये आप क्या बोल रही हो… प्लीज़ किसी को मत बुलाना प्लीज़ प्लीज़।
तनुजा- अरे पगली मैं तो ट्रिपल-एक्स डीवीडी लाने जा रही हूँ.. उसमें लंड देख लेना और चुदाई कैसे होती है.. वो भी तुझे पता चल जाएगा।
श्रेष्ठा- दीदी आप ऐसे ही जा रही हो.. कपड़े तो पहन लो।
तनुजा- यार मनीष तो देर से आएगा और दूसरा कोई यहाँ है नहीं.. तो कपड़ों की क्या जरूरत है.. बस अभी आई।
तनुजा वहाँ से निकल कर दूसरे कमरे में चली गई.. बाहर मनीष खड़ा था। वो भी उसके पीछे-पीछे चला गया।
मनीष- मेरी जानेमन.. क्या कमाल का खेल खेला है तुम दोनों ने.. मेरी तो हालत ख़स्ता हो गई.. साला लौड़ा है की बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था.. इसे हाथ से शान्त किया। फिर भी देखो कैसे फुफकार मार रहा है।
तनुजा- अरे मेरे राजा… सब्र करो संभालो अपने आपको.. श्रेष्ठा अभी चुदाई के लिए तैयार नहीं है… कहीं जल्दबाज़ी में बना बनाया काम बिगड़ ना जाए।
मनीष- अरे मेरी प्यारी तनु.. कैसे करूँ सब्र.. साली क्या मस्त लड़की है.. उसकी चूत देख कर मेरा तो दिमाग़ घूम गया। पुरानी याद ताज़ा हो गई.. याद है मैंने कैसे तुम्हारी सील तोड़ी थी।
तनुजा- हाँ सब याद है.. अब मुझे जाने दो वरना उसको शक हो जाएगा।
तनुजा डीवीडी लेकर वापस श्रेष्ठा के पास चली गई और डीवीडी चालू करके उसके पास बिस्तर पर बैठ गई। श्रेष्ठा बड़ी गौर से फिल्म देख रही थी। उसका मुँह आश्चर्य से खुला हुआ था। फिल्म में एक आदमी एक स्कूल-गर्ल के मम्मों को चूसता है और अपना लंबा लौड़ा उसे चुसवाता है। लड़की भी मज़े से लौड़े को चूस रही थी। उसके बाद वो आदमी उसे घोड़ी बना कर खूब चोदता है।
श्रेष्ठा- ओह्ह.. माँ.. ये क्या हो रहा है.. लंड ऐसा होता है.. इतना बड़ा..? मैंने तो बच्चे की फुन्नी देखी है .. मगर बड़ी होकर ये ऐसी हो जाती है.. कभी सोचा भी नहीं था।
तनुजा- हाँ प्यारी.. यही है लौड़ा.. इसी में सारी दुनिया का मज़ा है.. देख वो छोटी सी लड़की कैसे मज़े से चुद रही है.. उसको कितना मज़ा आ रहा होगा।
श्रेष्ठा- हाँ दीदी उसको तो मज़ा आ रहा है मगर मुझको डर लग रहा है.. इतना मोटा लौड़ा उसकी चूत में जा रहा है.. उसको दर्द तो हो रहा होगा ना?
तनुजा- अरे नहीं.. देख अगर उसको दर्द होता तो वो रोती ना.. मगर वो तो मज़े से चुद रही है और बार-बार बोल रही है.. ‘फक मी.. फक मी हार्ड…’ कुछ समझी बुद्धू.. चुदाई में मज़ा बहुत आता है।
तनुजा ने बहुत कोशिश की मगर श्रेष्ठा चुदने को राज़ी ना हुई। फिर तनुजा ने दूसरा पासा फेंका।
तनुजा- चल किसी आदमी से मत चुदाना.. तुझे पता है रबड़ का भी लौड़ा आता है जिससे तुम खुद चुदाई का मज़ा ले सकती हो और किसी आदमी के सामने तुम्हें नंगी भी नहीं होना पड़ेगा।
श्रेष्ठा- ओह्ह.. सच दीदी.. मुझे कल पक्का दिखाना.. अभी तो बहुत वक्त हो गया.. मुझे घर भी जाना है वरना मम्मी गुस्सा हो जाएगी।
श्रेष्ठा ने अपने कपड़े पहने और वहाँ से निकल गई। उसके जाने के बाद मनीष कमरे में आया उसने उन दोनों की बातें सुन ली थीं।
मनीष- तनु, ये तुमने उसको क्या बोल दिया कि नकली लंड से उसको चोदोगी … फिर मेरा क्या होगा जान.. तुमने मुझे कच्ची कली को चोदने का सपना दिखाया.. अब नकली लौड़े की बात कर रही हो।
तनुजा- अरे मेरा राजा.. आप बहुत भोले हो अपने वो कहावत नहीं सुनी क्या.. हाथी के दाँत दिखाने के और होते हैं और खाने के और… बस कल देखना.. मैं कैसे नकली को असली बना देती हूँ.. अब आ जाओ देखो मैंने अब तक कपड़े भी नहीं पहने हैं.. आज तो आप बड़े जोश में हो.. जरा मेरी चूत को मज़ा दे दो।
मनीष- अरे क्यों नहीं मेरी रानी.. चल बन जा घोड़ी.. आज तुझे लंबी सैर कराता हूँ।
तनुजा पैरों को मोड़ कर घोड़ी बन गई और मनीष ने एक ही झटके में अपना लौड़ा उसकी चूत में घुसा दिया।
तनुजा- आहह.. उई मज़ा आ गया राजा.. अब ज़ोर-ज़ोर से झटके मारो उफ्फ.. फाड़ दो चूत को.. अई आह्ह..
मनीष के दिमाग़ में श्रेष्ठा घूम रही थी और उसी कारण वो दे दनादन तनुजा की चूत में लौड़ा घुसा रहा था।
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तनुजा- आह्ह.. अई वाहह.. मेरे राजा आ..आज बड़ा मज़ा दे रहे हो.. अई लगता है श्रेष्ठा समझ कर तुम मुझे चोद रहे हो.. अई उई अब तो रोज उसका नंगा जिस्म तुमको दिखना पड़ेगा.. अई ताकि तुम रोज इसी तरह मेरी ठुकाई करो।
मनीष- उहह उहह.. ले रानी उहह.. अरे नहीं ऐसी कोई बात नहीं है.. आज तुम बहुत चुदासी लग रही हो ओह्ह ओह्ह।
लगभग 30 मिनट तक ये चुदाई का खेल चलता रहा.. दोनों अब शान्त हो गए थे।
तनुजा- जानू मज़ा आ गया.. आज तो काफ़ी दिनों बाद ऐसी मस्त चुदाई की तुमने.. अच्छा अब सुनो… कल किसी भी हाल में एक नकली लंड ले आना.. उसका साइज़ तुम्हारे लंड के जैसा होना चाहिए।
मनीष- ठीक है.. ले आऊँगा मगर तुम उसकी चूत की सील नकली लौड़े से तोड़ोगी.. तो मेरा क्या होगा यार.. ऐसी मस्त चूत का मुहूर्त मुझे करना है।
तनुजा- तुम ले आना बस.. मैंने कहा ना सब मुझ पर छोड़ दो.. कल देखना मैं क्या करती हूँ।
मनीष ने तनुजा की बात मान ली और आगे कुछ नहीं बोला। वो उठ कर बाथरूम में चला गया।
(दोस्तो, अब यहाँ कुछ नहीं है.. चलो, श्रेष्ठा के पास चलते हैं।)
घर जाकर श्रेष्ठा ने अपनी मम्मी को बोल दिया कि टयूशन में वक्त लग गया और रात का खाना खाकर अपने कमरे में जा कर सो गई। अगले दिन भी श्रेष्ठा जब स्कूल गई, तब गेट पर तीनों उसके आने का इन्तजार कर रहे थे, मगर आज श्रेष्ठा ने उनको नज़रअंदाज कर दिया और सीधी निकल गई।
दोस्तो. अब स्कूल के पूरे 8 घंटे की दास्तान सुनोगे क्या.. चलो सीधे मुद्दे पर आती हूँ। शाम को श्रेष्ठा ने पीले रंग का टॉप और काला स्कर्ट पहना हुआ था। जब वो तनुजा के घर की ओर जा रही थी.. तब रास्ते में एक कुत्ता एक कुतिया को चोद रहा था।
श्रेष्ठा ने जब उनको देखा उसे बड़ा मज़ा आया। ये सब देख कर उसको कल वाला वीडियो याद आ गया और ना चाहते हुए भी उसका हाथ चूत पर चला गया। श्रेष्ठा भूल गई कि वो बीच सड़क पर खड़ी कुत्ते की चुदाई देख रही है और अपनी चूत को मसल रही है। तभी वहाँ से एक 60 साल का बूढ़ा गुजरा, उसने सब देखा और श्रेष्ठा के पास आ गया।
बूढ़ा- बेटी इस तरह रास्ते में खड़ी होकर ये हरकत ठीक नहीं.. अगर इतनी ही खुजली हो रही है तो चलो मेरे साथ घर पर.. कुछ मलहम लगा दूँगा।
उसकी बात सुनकर श्रेष्ठा को अहसास हुआ कि उसने कितनी बड़ी ग़लती कर दी। वो बिना कुछ बोले वहाँ से भाग खड़ी हुई और सीधी तनुजा के घर जाकर ही रुकी।
तनुजा- अरे क्या हुआ..? ऐसे भागते हुए क्यों आई हो.. इतना हाफ़ रही हो.. यहाँ बैठो मैं पानी लेकर आती हूँ।
श्रेष्ठा वहीं बैठ गई.. तनुजा ने उसे पानी पिलाया और उससे भागने का कारण दोबारा पूछा।
तब श्रेष्ठा ने उसको सारी बात बताई।
तनुजा- हा हा हा हा तू भी ना कुत्ते की चुदाई में ये भी भूल गई कि कहाँ खड़ी है और तेरी चूत में खुजली होने लगी.. हा हा हा हा और वो बूढ़ा क्या बोला.. मलहम लगा देगा.. अगर तू उसके साथ चली जाती ना.. तो आज बूढ़े के मज़े हो जाते हा हा हा हा।
श्रेष्ठा- दीदी आप भी ना.. कुछ भी बोलती रहती हो.. पता नहीं मुझे क्या हो गया था। अच्छा ये सब जाने दो.. आप आज मुझे वो नकली लंड दिखाने वाली थीं ना.. कहाँ है वो?
तनुजा- अरे वाह.. बेबी लंड देखने के लिए बड़ी उतावली हो रही है.. चल कमरे में… मैंने वहीं रखा है।
दोनों कमरे में चली जाती हैं। श्रेष्ठा बिस्तर पर बैठ जाती है और तनुजा अलमारी से लौड़ा निकाल लेती है.. जो दिखने में एकदम असली जैसा दिख रहा था। लौड़े के साथ दो गोलियाँ भी थीं। श्रेष्ठा तो बस उसको देखती ही रह गई।
तनुजा- क्यों बेबी कैसा लगा..? है ना.. एकदम तगड़ा लौड़ा।
श्रेष्ठा- हाँ दीदी.. ये तो वो फिल्म जैसा एकदम असली लगता है.. ज़रा मुझे दिखाओ मैं इसे हाथ से छूकर देखना चाहती हूँ।
तनुजा- अरे इतनी भी क्या जल्दी है.. ऐसे थोड़े तुझे हाथ में दूँगी.. आज तो खेल खेलूँगी तेरे साथ..
ये देख शहद की बोतल.. इसमें से शहद निकाल कर इस लौड़े पे लगाऊँगी.. उसके बाद तू इसको चूसना.. तब असली जैसी बात लगेगी.. समझी मेरी जान…
श्रेष्ठा- ओके दीदी.. बड़ा मज़ा आएगा आज तो…
तनुजा ने बगल में रखी दो काली पट्टी उठाईं और श्रेष्ठा को दिखाते हुए बोली।
तनुजा- मज़ा ऐसे नहीं आएगा.. ये देखो आज ‘ब्लाइंड-सेक्स’ करेंगे। एक पट्टी तेरी आँखों पर और दूसरी हाथ पर बांधूंगी उसके बाद असली मज़ा आएगा।
श्रेष्ठा- ये पट्टी से क्या मज़ा आएगा दीदी.. नहीं ऐसे ही करेंगे ना।
तनुजा- नहीं मैंने कहा ना.. तुम पहली बार लौड़ा चूसने जा रही हो.. अगर आँखें खुली रहेगीं तो ये नकली लौड़ा तुझे दिखेगा और तेरे अन्दर लौड़े वाली मस्ती नहीं आएगी। मगर आँखें बन्द रहेगीं.. तब तू ये सोचना कि तू असली लौड़ा चूस रही है। तब मज़ा दुगुना हो जाएगा और ये देख इस लौड़े के साथ ये बेल्ट भी है.. मैं इसे अपनी कमर पर बाँध लूँगी। इससे मैं आदमी बन जाऊँगी और मेरी चूत की जगह ये लौड़ा आ जाएगा.. क्यों अब बोल क्या बोलती है।
श्रेष्ठा- हाँ दीदी.. आपने सही कहा.. इस तरह ज़्यादा मज़ा आएगा मगर ये हाथ तो खुले रहने दो ना।
तनुजा- नहीं मेरी जान हाथ बाँधने जरूरी हैं वरना तुझे ऐसा लगेगा कि लौड़े को हाथ से पकडूँ और जैसे ही तू लौड़ा पकड़ेगी असली वाली बात ख़तम हो जाएगी।
श्रेष्ठा- ओके दीदी.. जैसा आपको ठीक लगे.. चलो पट्टी मेरी आँखों पर बाँध दो।
तनुजा- अरे मेरी जान पहले ये कपड़े तो निकाल.. उसके बाद ये पट्टी बाँधूंगी।
तनुजा खुद भी नंगी हो गई और श्रेष्ठा को भी नंगा कर दिया। उसके बाद उसके दोनों हाथ पीछे करके पट्टी से बाँध दिए उसकी आँखों पर भी अच्छे से पट्टी बाँध दी। दोस्तो, ये तनुजा का प्लान था ताकि मनीष अन्दर आ जाए और श्रेष्ठा उसको देख ना सके। श्रेष्ठा बिस्तर पर घुटनों के बल बैठ गई तनुजा ने मनीष को इशारा कर दिया वो अन्दर आ गया। वो एकदम नंगा था उसने पहले ही दूसरे कमरे में कपड़े निकाल दिए थे। उसका लौड़ा भी एकदम तना हुआ था।
श्रेष्ठा- दीदी अब तो लौड़ा मेरे मुँह में दे दो.. बड़ा मन कर रहा है चूसने का।
तनुजा- हाँ यार देती हूँ.. पहले कमर पर बाँध तो लूँ.. उसके बाद शहद डाल कर तेरे मुँह में दूँगी।
तनुजा ने मनीष के लौड़े पर अच्छे से शहद लगा दिया और मनीष बिस्तर पर चढ़ गया। लौड़े की टोपी को श्रेष्ठा के खुले मुँह में हल्के से फँसा दिया। श्रेष्ठा तो इसी इंतजार में थी, वो झट से अपनी जीभ से टोपी को चाटने लगी। आनन्द के मारे मनीष की आँखें बन्द हो गईं.. तनुजा वहीं पास में बैठी अपनी चूत सहला रही थी। श्रेष्ठा लौड़े को जीभ से चाट रही थी और टोपी को अपने होंठों में दबा कर चूस रही थी। उसको बहुत मज़ा आ रहा था।
तनुजा- अरे मेरी जान पूरा मुँह में ले.. तब असली मज़ा आएगा.. इतने से क्या होगा?
श्रेष्ठा ने तनुजा की बात सुनकर पूरा लौड़ा में भर लिया और चूसने लगी। मनीष को भी काफ़ी मज़ा आ रहा था और आएगा क्यों नहीं एक कमसिन कली जिसके पतले होंठों में उसका लौड़ा फँसा हुआ था। अब मनीष लौड़े को आगे-पीछे करने लगा।
एक वक्त तो लौड़ा पूरा श्रेष्ठा के गले तक पहुँच गया और उसी वक़्त श्रेष्ठा ने झट से मुँह हटा लिया और मनीष ने जैसे ही लौड़ा आगे किया उसकी गोटियाँ श्रेष्ठा के मुँह के पास आ गईं.. श्रेष्ठा को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। वो गोटियों को चूसने लगी.. तब उसको थोड़ा अजीब सा लगा और उसने मुँह हटा लिया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
तनुजा- अरे क्या हुआ रानी चूस ना।
श्रेष्ठा- दीदी मुझे ये लौड़ा एकदम असली जैसा लग रहा है और शहद के साथ-साथ कुछ नमकीन सा और भी पानी मेरे मुँह में आ रहा है इसकी गोटियों की चमड़ी भी बिल्कुल असली लग रही है।
तनुजा- अरे पगली ये सब आँख बन्द होने का कमाल है.. असली लंड कहाँ से आएगा? तू चूसती रह.. इसके बाद देख.. आज मैं तेरे निप्पल और चूत को नए अंदाज से चुसूंगी।
बेचारी भोली-भाली श्रेष्ठा तनुजा की बातों में आ गई और दोबारा से लौड़ा चूसने लगी।
करीब 5 मिनट बाद मनीष ने इशारे से तनुजा को कहा- अब इसको लेटा दो.. मैं इसके चूचों को मसलना और चूसना चाहता हूँ।
तनुजा- बस श्रेष्ठा अब मेरी बारी है तू सीधी लेट जा.. अब मैं तुझे स्वर्ग की सैर कराती हूँ।
श्रेष्ठा- मैं कैसे लेटूं दीदी.. मेरे हाथ तो पीछे बँधे हैं।
तनुजा ने उसके हाथ खोल दिए उसको सीधा लिटा कर बिस्तर के दोनों बगल से उसके हाथ बाँध दिए।
श्रेष्ठा- अरे अरे.. ये क्या कर रही हो दीदी अब तो मेरे हाथ खुले रहने दो ना…
तनुजा- नहीं मेरी जान.. आज तू ऐसे ही मज़ा ले.. बस अब कुछ मत बोल.. देख मैं तुझे कैसे मज़े देती हूँ.. इतना बोल कर तनुजा ने मनीष को इशारा कर दिया कि टूट पड़ो इस सेक्स की मलिका पर..
मनीष को तो बस इसी मौके का इन्तजार था। वो श्रेष्ठा के ऊपर लेट गया और सबसे पहले उसके मखमली होंठों को चूसने लगा। उसका अंदाज ऐसा था कि श्रेष्ठा भी उसका साथ देने लगी। वो दोनों एक-दूसरे के होंठ चूसने लगे.. मगर मनीष सिर्फ़ होंठों से ही थोड़े खुश होने वाला था.. थोड़ी देर बाद वो नीचे खिसकने लगा और अब उसके होंठों में श्रेष्ठा के निप्पल थे। वो दोनों हाथों से उसके कड़क चूचे दबा रहा था और निप्पल चूस रहा था.. जैसे कोई भूखा बच्चा अपनी माँ का दूध पी रहा हो।
श्रेष्ठा- आह आआ दीदी अई मज़ा आ गया उह.. धीरे से दबाओ ना उफ़फ्फ़.. दर्द होता है अई काटो मत ना… दीदी आइ मज़ा आ रहा है।
दोस्तो, तनुजा का प्लान तो अच्छा था मगर एक पॉइंट ऐसा था जिसके कारण श्रेष्ठा को थोड़ा शक हुआ कि कहीं तनुजा की जगह उसके ऊपर कोई आदमी तो नहीं है ना। ना ना.. टेंशन मत लो.. आपको सोचने की जरूरत नहीं है.. मैं खुद बता देती हूँ आपको।
जब मनीष होंठ चूस रहा था उसका सीना श्रेष्ठा के मम्मों को दबा रहा था और उसके सीने के बाल श्रेष्ठा महसूस कर रही थी उसने मन में सोचा भी कि अगर दीदी मेरे ऊपर हैं तो उनके मम्मों और मेरे मम्मों को आपस में टकराने चाहिए.. मगर ये तो एकदम सपाट सीना है और बाल भी हैं। मगर ना जाने क्या सोच कर वो चुप रही। अब मनीष मम्मों से नीचे उसके पेट तक चूमता हुआ आ गया.
और आख़िर कर वो अपनी असली मंज़िल यानी चूत तक पहुँच गया। मनीष की गर्म साँसें श्रेष्ठा अब अपनी चूत पर महसूस कर रही थी और छटपटा रही थी कि कब दीदी के होंठ चूत पर टिकेंगे और कब उसको सुकून मिलेगा। मनीष ने चूत के होंठों को कस कर अपने मुँह से भींच लिया। श्रेष्ठा की सिसकी निकल गई। मनीष बड़े प्यार से चूत को चूस रहा था और अपनी जीभ से अन्दर तक चाट रहा था.. श्रेष्ठा एकदम गर्म हो गई थी।
श्रेष्ठा- अया ऐइ उफ़फ्फ़.. दीदी आह.. प्लीज़ चूत के अन्दर ऊँगली करो.. ना आ आहह.. चूत में बहुत बेचैनी हो रही है।
तनुजा- मेरी जान तेरी चूत की आग अब ऊँगली से ठंडी नहीं होने वाली.. इसको तो अब लौड़े की जरूरत है.. बोल क्या बोलती है।
श्रेष्ठा- दीदी आहह.. डाल दो ना.. आहह.. आपके पास तो इतना मस्त लौड़ा है आहह.. पूछ क्यों रही हो.. अई आहह.. शायद मेरी किस्मत में यही लिखा था कि अपने सर से ही अपनी सील तुड़वाऊँ आहह.. प्लीज़ मनीष सर, आहह अब रहा नहीं जाता.. डाल दो ना आहह..
श्रेष्ठा की बात सुनकर तनुजा और मनीष दोनों ही भौंचक्के रह गए.. दोनों का मुँह खुला का खुला रह गया।
तनुजा- त..त..तू.. ये क..क्या.. बोल रही है व..मनीष यहाँ क..क..कहाँ है?
श्रेष्ठा- अई आह.. दीदी आह.. मानती हूँ मुझे चुदाई का तनुभव नहीं है.. मगर इतनी भी भोली नहीं हूँ कि औरत और मर्द के शरीर में फ़र्क ना महसूस कर सकूँ और दूसरी बात आपकी आवाज़ मेरे बगल से आ रही है जबकि आपके हिसाब से आप मेरी चूत चाट रही हो.. आह्ह.. अब ये पट्टी खोल दो.. मुझे कोई ऐतराज नहीं कि सर मेरी चूत की सील तोड़ें.. प्लीज़ आह्ह..
मनीष और तनुजा की नज़रें मिलीं और आँखों ही आँखों में दोनों की बात हो गई। मनीष ने पहले श्रेष्ठा के हाथ खोले.. उसके बाद आँखों की पट्टी निकाल दी।
श्रेष्ठा- ओह.. सर आपका लौड़ा कितना मोटा और बड़ा है.. उफ़फ्फ़ जब मेरे मुँह में था.. कसम से बड़ा मज़ा आ रहा था.. मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि इस तरह विज्ञान के चक्कर में चुदाई का ज्ञान मिल जाएगा.. पहले मुझे कुछ पता नहीं था.. मगर इन दो दिनों में मुझे पता चल गया कि चुदाई में जो मज़ा है.. वो किसी और चीज़ में नहीं है।
तनुजा- मेरी जान मैं तो कब से कह रही थी कि मनीष को बुलाऊँ क्या.. मगर तुम ही हो कि बस मना कर रही थीं।
श्रेष्ठा- दीदी सच कहूँ.. तो जब आप सर का नाम लेती थीं.. मेरी चूत में पानी आ जाता था.. मगर शर्म के मारे आपसे कुछ बोल ना पाती थी.. अभी जब लौड़ा चूस रही थी.. तब मुझे पक्का पता चल गया कि ये लौड़ा नकली नहीं.. असली है और सर के सिवा यहाँ कौन आ सकता था.. इनके सीने के बाल भी मैंने महसूस किए थे।
मनीष- ओह.. मेरी रानी… तुम जितनी सुन्दर हो.. उतनी ही समझदार भी हो।
तनुजा- अब बातों में क्यों वक्त खराब कर रहे हो.. जल्दी से लौड़ा अन्दर डालो ना.. इसकी चूत में..
श्रेष्ठा- रूको सर.. उस वक्त तो मेरी आँखें बन्द थीं और हाथ भी बँधे हुए थे.. पर अब मैं आपके लौड़े को छू कर देखना चाहती हूँ.. खुली आँखों से.. इसे चूसना चाहती हूँ.. आहह.. क्या मस्त कड़क हो रहा है।
श्रेष्ठा ने लौड़े को अपने मुलायम हाथों में ले लिया और बड़े प्यार से सहलाने लगी। मनीष की तो किस्मत ही खुल गई थी.. श्रेष्ठा अब एकदम कामुक अंदाज में लौड़े को चूसने लगी।
मनीष- उफ़फ्फ़.. श्रेष्ठा तेरे होंठों के स्पर्श से कितना मज़ा आ रहा है.. जब मुँह में इतना मज़ा आ रहा है तो तेरी चूत में कितना मज़ा आएगा.. आह.. चूस जान, आज तेरी चूत का मुहूर्त है.. कर दे एकदम गीला मेरे लंड को उफ्फ.. आज तो बड़ा मज़ा आएगा..
श्रेष्ठा ने लौड़े को चूस कर एकदम गीला कर दिया।
तनुजा- बस भी कर अब.. क्या चूस कर ही पानी निकालेगी.. चल सीधी लेट जा.. तेरी चूत को खोलने का वक्त आ गया है।
श्रेष्ठा- हाँ दीदी.. मगर सर का लौड़ा बहुत बड़ा है.. ये अन्दर कैसे जाएगा और मुझे दर्द भी होगा ना…
तनुजा- अरे पगली.. मैंने तुझे क्या समझाया था.. चूत कितनी भी छोटी क्यों ना हो.. बड़े से बड़े लौड़े को खा जाती है.. पहली बार तो सभी को दर्द होता है.. लेकिन उसके बाद चुदवाने का लाइसेंस मिल जाता है.. तू कभी भी कहीं भी किसी से भी चुदवा सकती है, जान.. बस थोड़ा सा दर्द झेल ले.. फिर देख दुनिया की सारी खुशियाँ एक तरफ और चुदाई से मिली ख़ुशी एक तरफ.. डर मत.. मनीष बहुत एक्सपर्ट खिलाड़ी है.. बड़े आराम से तेरी सील तोड़ेगा।
ये दोनों बातें कर रही थीं तभी मनीष श्रेष्ठा की चूत को चूसने लगा.. उसके दाने को जीभ से टच करने लगा।
श्रेष्ठा- आह आह आह.. उफ़फ्फ़ सर.. ये आपने क्या कर दिया.. आहह.. मेरी चूत में आग भड़क गई है.. ऊह.. डाल दो.. अब जो होगा देखा जाएगा उफ्फ.. आज कर दो मेरी चूत का मुहूर्त आह…
मनीष ने मौके का फायदा उठा कर तनुजा के दोनों पैर मोड़ दिए और लौड़े की टोपी को चूत पर सैट किया। तनुजा ने ऊँगलियों से चूत की दोनों फांकें खोल दीं जिसके कारण टोपी चूत की फांकों में फँस गई। तनुजा ने जल्दी से अपने होंठ श्रेष्ठा के होंठों पर रख दिए और मनीष को इशारा कर दिया।
मनीष ने कमर पर दबाव बना कर एक झटका मारा.. लौड़ा चूत की दीवारों को चौड़ा करता हुआ अन्दर घुस गया। अभी एक इन्च ही घुसा था कि श्रेष्ठा ‘गूं-गूं’ करने लगी… वो जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी। अभी तो उसकी सील भी नहीं टूटी थी.. बस लौड़ा जा कर सील से टच हुआ था।
मनीष ने कमर को पीछे किया और ज़ोर से आगे की ओर धक्का मारा। अबकी बार आधा लौड़ा सील को तोड़ता हुआ चूत में समा गया। श्रेष्ठा की तो आँखें बाहर को निकल आईं.. उसका सर चकराने लगा। मनीष ने देरी ना करते हुए आधा लौड़ा पीछे खींचा और पूरी रफ्तार से वापस चूत में घुसा दिया।
अबकी बार लौड़ा चूत की जड़ तक घुस गया था। मनीष की गोटियाँ श्रेष्ठा के चूतड़ों से टकरा गई थीं। श्रेष्ठा तो सोच भी नहीं सकती थी कि अचानक उस पर दर्द का पहाड़ टूट पड़ेगा। अभी बेचारी पहले के दर्द से ही परेशान थी कि 5 सेकंड में ही दूसरा तगड़ा झटका उसको मिल गया।
उसकी आँखों से आँसू बहने लगे और चीखें ऐसी कि अगर तनुजा ने कस कर उसके होंठ अपने होंठों से ना भींचे होते.. तो शायद बाहर दूर-दूर तक उसकी आवाज़ पहुँच जाती। मनीष लौड़ा जड़ तक घुसा कर अब बिल्कुल भी नहीं हिल रहा था और बस श्रेष्ठा के मम्मों को चूस रहा था। लगभग 5 मिनट तक ऐसे ही चलता रहा श्रेष्ठा अब शान्त पड़ गई थी। तब तनुजा बैठ गई और श्रेष्ठा के सर पर हाथ घुमाने लगी।
श्रेष्ठा- दीदी आहह.. अई उउउ उउउ प्लीज़.. मुझे बचा लो अई.. सर प्लीज़ बहुत दर्द हो रहा है आ.. निकाल लो आहह…
तनुजा- अरे मेरी जान.. अब निकाल कर क्या फायदा.. तेरी सील तो टूट गई. जितना दर्द होना था हो गया.. अब बस थोड़ी देर में तुझे मज़ा आने लगेगा और तू खुद कहेगी कि और ज़ोर से चोदो मुझे…
श्रेष्ठा- आहह.. दीदी मुझे नहीं पता था इतना दर्द होगा वरना मैं कभी ‘हाँ’ नहीं करती आहह..
कुछ देर मनीष ने श्रेष्ठा के मम्मों को चूसा तो श्रेष्ठा को कुछ दर्द से राहत सी मिलती लगी।
मनीष- अरे रानी.. कुछ नहीं हुआ है, बस थोड़ी देर रुक जा.. उसके बाद मज़े ही मज़े हैं.. अब तुझे दर्द कम हुआ ना..
श्रेष्ठा- आहह.. हाँ सर अब थोड़ा सा कम हुआ है।
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मनीष अब धीरे-धीरे लंड को आगे-पीछे करने लगा और श्रेष्ठा के निप्पलों को चूसने लगा। श्रेष्ठा को दर्द तो हो रहा था.. वो सिसक रही थी मगर अब उसमें ना जाने कहाँ से हिम्मत आ गई थी.. बस वो चुपचाप चुद रही थी। दस मिनट तक मनीष उसे धीरे-धीरे चोदता रहा। फिर श्रेष्ठा का दर्द कम हो गया और उसकी चूत पानी छोड़ने लगी जिसके कारण लौड़ा आसानी से आगे-पीछे हो रहा था।
श्रेष्ठा- आहह.. सर दर्द हो रहा है.. उई मेरी चूत में अई.. आह्ह.. कुछ हो रहा है.. उफ़फ्फ़ अई मेरा पानी छूटने वाला है.. उई ज़ोर से आहह.. ज़ोर से क..करो आह..
मौके का फायदा उठा कर मनीष अब रफ्तार से झटके मारने लगा था। श्रेष्ठा चरम सीमा पर थी और अब उसकी चूत ने लावा उगल दिया था.. उसका बदन झटके खाने लगा था। वो काफ़ी देर तक झड़ती रही.. मगर मनीष अब भी दे दनादन शॉट पर शॉट मार रहा था। तनुजा ने अपनी चूत को रगड़ना शुरू कर दिया.. वो भी एकदम गर्म हो गई थी।
मनीष- ओह्ह ओह्ह.. श्रेष्ठा आहह.. क्या टाइट चूत है तेरी.. आह्ह… मज़ा आ गया.. लौड़ा बड़ी मुश्किल से आगे-पीछे हो रहा है आह्ह… श्रेष्ठा आह..
लगभग 10 मिनट तक मनीष उसको चोदता रहा.. श्रेष्ठा दोबारा गर्म हो गई। उसकी चूत में अब दर्द के साथ-साथ मीठा-मीठा करंट भी दौड़ रहा था.. वो दोबारा चरम पर पहुँच गई थी और पहुँचती भी कैसे नहीं 8″ का लौड़ा ताबड़तोड़ उसकी चूत में अन्दर-बाहर हो रहा था।
श्रेष्ठा- आह आह आह सर प्लीज़.. ज़ोर से आह्ह… मेरी चूत में बहुत खुजली हो रही है आआह आह्ह…
मनीष- आह.. ले मेरी दीपा रानी ओह्ह ओह्ह ओह्ह.. मेरा भी पानी निकलने वाला है.. आह्ह… आज तेरी चूत को पानी से भर दूँगा … 18 सालों से ये प्यासी थी.. आज इसकी प्यास बुझा दूँगा आह्ह… आह…
मनीष के लौड़े से पानी की तेज धार निकली और श्रेष्ठा की चूत की दीवारों से जा टकराई.. गर्म-गर्म वीर्य के अहसास से उसकी चूत ने भी पानी छोड़ दिया। अब दोनों शान्त पड़ गए.. दोनों के पानी का मिलन हो गया। काफ़ी देर बाद मनीष को तनुजा ने ऊपर से हटाया।
तनुजा- मनीष अब उठो भी क्या ऐसे ही पड़े रहोगे.. बेचारी को सांस तो लेने दो।
मनीष जब ऊपर से हट कर बगल में हुआ.. तो बिस्तर पर खून लगा हुआ था। उसका लौड़ा भी वीर्य और खून से लथपथ था। श्रेष्ठा को कोई होश ही नहीं था.. वो तो बस आराम से लेटी हुई थी।