Daughter Virgin Pussy Fuck
दोस्तों मैं विवेक मल्होत्रा आप सभी का एक बार फिर से स्वागत करता हूँ. आपने मेरी कहानी के पहले भाग पापा आप बहुत गंदे हो – भाग 1 में पढ़ा होगा की मैं एक विधुर हूँ हूँ और मेरा एक बेटा जो हॉस्टल में रहता है. घर जाते समय हाईवे पर मुझे एक लड़की मिली जो मुझसे चुदवाने के टाइम पापा बोल रही थी. और फिर उसने मुझे पर हमला कर दिया फिर मैंने एक मनोचिकित्सक को बुलाया जिसने उससे बात की फिर वो अपनी कहानी बताने लगी, अब आगे- Daughter Virgin Pussy Fuck
मेरा नाम शोभा चौधरी है, मेरे पापा का नाम राजवीर चौधरी और मम्मी का नाम कुसुम चौधरी है। हमारी फैमिली काफी रॉयल फैमिली है। हमारे घर में किसी चीज की कमी नहीं है सिवाये प्यार के! लेकिन जब मैं छोटी थी, तब हमारे घर में भी प्यार बसता था। पर जैसे जैसे मैं बड़ी होती गयी, मेरे घर से प्यार और शांति भी ग़ायब होने लगी।
मैंने पहली बार मम्मी पापा को आपस में लड़ते हुए देखा, मैं अपने रूम में पढ़ाई कर रही थी जब मम्मी की आवाज़ सुनाई दी, मैं अपने रूम से निकल कर मम्मी पापा के रूम तक गयी और खिड़की के पास खड़ी होकर देखने लगी। मम्मी खूब गुस्से में लग रही थी जबकि पापा डरे सहमे एक ओर खड़े दिखाई दिए।
वो किस बात पर लड रहे थे, यह तो मैं नहीं जान पायी लेकिन इतना जान गयी थी कि मम्मी किसी बात पर पापा से ग़ुस्सा हैं! मुझे पहली बार अपने घर का माहौल बहुत ख़राब लगा। मैं वापस अपने रूम में आ गयी। और मम्मी पापा के बारे में सोचने लगी.
उसके बाद तो रोज़ ही घर में मम्मी पापा के झगड़े होने लगे, मम्मी पापा की रोज़ रोज़ की लड़ाई से मैं बहुत अकेली हो गयी, पहले रोज़ मैं मम्मी पापा के साथ बैठकर बात करती थी, अपनी फरमाईश रखती थी, लेकिन अब मैं उनसे दूर दूर रहने लगी, किसी चीज की फरमाईश करना तो बहुत दूर अब तो मैं मम्मी पापा के पास जाते हुए भी डरती थी।
मम्मी भी रोज़ रोज़ की लड़ाई से बहुत अपसेट रहने लगी, अपसेट में रहने की वजह से मम्मी ने मेरा फिकर करना छोड़ दिया, पहले मम्मी रोज़ मुझे स्कूल के लिए तैयार करती, अपने हाथों से नहलाती, मेरा नाश्ता बना कर देती, लेकिन अब वो सब कुछ बंद हो चुका था, मैं खुद ही नहाती, खुद ही तैयार होती और स्कूल जाती।
इसी तरह से मेरे बचपन के 5 साल और बीत गये, अब मैं 18 साल की हो चुकी थी। इन 5 सालों में घर की हालत पहले से ज़्यादा बिगड़ चुकी थी, मम्मी पापा अब अलग अलग सोने लगे थे, अक्सर जब मैं रात को बाथरूम जाने के लिए उठती तो पापा को हॉल में सोफ़े पर सोये हुए देखती, मैं इतना जान गयी थी की मम्मी पापा को पसंद नहीं करती इसलिये पापा सोफ़े पर सोते हैं।
अब मैं 18 साल की हो चुकी थी लेकिन मैं दूसरी लड़कियों की तरह नहीं थी, मेरी उम्र की लड़कियाँ अक्सर औरत मर्द के रिश्ते को समझने लगती हैं, लंड, चूत और चुदाई के बारे में भी जान जाती हैं लेकिन मैं इन चीजों से अन्जान थी, मैं तो यह भी नहीं जानती थी की मेरी कमर के नीचे और जांघों के बीच के जिस हिस्से से मैं रोज़ मूतती हूँ उसे क्या कहते हैं.
मैं बिल्कुल कोरी थी… मेरा मानसिक स्तर किसी छोटे बच्चे जितना ही था, क्यूंकि मम्मी पापा ने मुझे 8 साल से जैसे अकेली छोड़ दिया था और मेरा कोई दोस्त सहेली भी नहीं थी, मैं स्कूल में भी हमेशा अकेली रहती, किसी से कोई दोस्ती नहीं, कोई मेलजोल नहीं, मैं किसी से दोस्ती करने में डर महसूस करती थी।
अब मैं अकेली रहने की आदि हो चुकी थी। यही कारण है कि मेरा मानसिक विकास नहीं हो पाया। बस एक चीज जो मैं अपने आप में परिवर्तन महसूस कर रही थी वो थी कि मेरी छाती, मेरे बूब्स टेनिस के बॉल के साइज की हो गयी थी.
मैं अक्सर उन्हें छू कर देखती और सोचती कि ये मेरी छाती पर क्या उठ रहा है, कहीं मुझे कोई बीमारी तो नहीं हो गयी है? कई बार मेरे मन में आया कि मैं मम्मी पापा को बताऊँ लेकिन मैं उनसे नहीं कह पायी। एक दिन मैं सुबह सोकर उठी तो घर में महाभारत शुरू थी.
हॉल में मम्मी पापा एक दूसरे को अपनी आवाज़ से दबाने की कोशिश करने में लगे हुए थे, मुझे स्कूल के लिए देरी हो रही थी तो मैं उन लोगों पर ज़्यादा ध्यान न देकर अपने बाथरूम की तरफ बढ़ गयी, बाथरूम में जैसे ही मैं अन्दर गई, लाइट जलाई लेकिन रोशनी नहीं हुई… शायद लाइट खराब हो गयी थी.
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“अब मैं क्या करूँ…” मैं सोच में पड़ गयी, ‘बिना नहाये स्कूल में कैसे जाऊँगी?’ मैंने अपने आप बड़बड़ाते हुए बोली।
“क्यूं न मैं पापा के बाथरूम को यूज कर लूं!” मुझे यही ठीक लगा।
मैं अपने कपड़े उठा कर पापा के बाथरूम पहुँच गयी और अपने कपड़े उतार कर बाथ लेने लगी. मैं बचपन से ही नंगी नहाती आयी थी, मैं पापा के बाथरूम में भी अपने सारे कपड़े उतार कर नंगी हो गयी और शावर लेने लगी। मैं अपने बदन पर गिरते पानी की फुहार को अपने हाथों से पूरे बदन पर मलने लगी।
फिर शैम्पू अपने हाथों में लेकर बालों पर लगने लगी, मैं अपनी आँखें बंद किये शैम्पू लगा रही थी. कुछ देर बाद जैसे ही मेरी आँख खुली, मेरी नज़र दरवाज़े पर गयी, जहाँ पापा खड़े मुझे फटी फटी आँखों से देख रहे थे। मेरे दोनों हाथ अभी भी मेरे बालों में फंसे हुए थे।
मैं पापा को इस तरह घूरते देख कर बहुत डर गयी- सॉरी पापा… मेरे बाथरूम में लाईट नहीं जल रही है, इसलिए मैंने आपका बाथरूम यूज कर रही हूँ. मैं पापा की डांट से बचने के लिये उनके पूछने से पहले बोल पड़ी।
“ओके… कोई बात नहीं बेटा!” पापा ने हकलाते हुए कहा, उनकी नज़र मेरे चेहरे से नीचे उतर कर मेरी छाती पर ठहर गयी।
पापा की बात सुनकर मैंने राहत की साँस ली और फिर से नहाने लगी। पापा अभी भी दरवाज़े पर खड़े थे, उनके बदन पर सिर्फ एक ट्रॉउज़र था, ऊपर से वो बिल्कुल नंगे थे।
“क्या हुआ पापा?” मैंने पापा से पूछा।
“शोभा… क्या मैं तुम्हें नहला दूँ?” पापा प्यार से मुझे देखते हुए बोले।
वो कभी भी इतने प्यार से बात नहीं करते थे। मुझे थोड़ी हैरानी हुई.
“तुम्हारे बदन में कितना मैल जमा हुआ है, लगता है तुम्हें ठीक से नहाना नहीं आता!” वो अंदर आते हुए बोले।
मैं पापा को देखने लगी, पापा पहले से बिल्कुल बदल गए थे, उनके चेहरे में जहाँ पहले ग़ुस्सा और उदासी होती थी, अब उसमें एक अनोखी चमक और ख़ुशी दिखाई दे रही थी, पहले उनके शब्दों में जहाँ कड़वाहट के सिवाये कुछ न होता था, अब उनमें प्यार और मिठास थी।
और सबसे बड़ा बदलाव जो मुझे दिखाई दिया वो उनकी कमर के नीचे और जांघों के बीच में था, वहां पर कुछ फूला हुआ लग रहा तो मेरा सारा ध्यान वहीं पर जाकर अटक गया। मैं उनकी जांघों के बीच से नज़र हटाकर पापा को देखने लगी, अब वो बिल्कुल मेरे पास खड़े थे।
“क्या सोच रही है? मैं तुम्हें आराम से नहलाऊंगा. प्रोमिस!” पापा गर्म साँस छोड़ते हुए मुझसे बोले।
“ठीक है पापा…” मैं धीरे से पापा से बोली।
पापा बिना देर किये साबुन उठाकर मेरी पीठ पर लगाने लगे, उनका हाथ साबुन लगाते हुए जब मेरी गांड तक पहुंचा तो पापा के हाथों में थरथराहट सी हुई, लेकिन मैं इसका कारण नहीं जान पायी, अब पापा मेरे चूतड़ों पर हाथ चलाने लगे, उन्हें जोर से दबाने और सहलाने लगे. अचानक पापा मेरे आगे आ गए और अपने हाथ मेरी छाती पर रख कर साबुन लगाने लगे, पापा ने साबुन लगाते हुए मेरी छाती के एक उभार को अपने हाथ में भर लिया।
“आह्ह…” पापा का हाथ पड़ते ही मेरे मुंह से एक आह निकल गयी।
“क्क्या हुआ… दर्द हुआ क्या?” पापा अपना हाथ हटाते हुए बोले।
“नहीं पापा… दर्द नहीं हुआ… वो तो वो तो…” मैं इससे आगे बोल ही नहीं पाई।
“वो तो क्या…” पापा मेरी आँखों में देखते हुए बोले।
“पता नहीं पापा… मेरे मुंह से अपने आप ही आह निकल गयी।” मैं पापा को देखती हुई बोली।
पापा मेरी बात सुनकर फिर से अपना हाथ मेरी उभार पर रख दिए और धीरे धीर सहलाने लाग, उनके हाथों के छुअन से मेरे पूरे बदन में एक गुदगुदी सी फैल गई, जो मेरे लिए बिल्कुल नया अनुभव था, मैं नहीं जान पाई कि जिन उभारों को मैं रोज़ छूती थी, उन्हें पापा के द्वारा छुए जाने से मुझे इतना मजा क्यों आ रहा है।
“शोभा… कैसा लग रहा है तुम्हें?” पापा मेरे उभारों को धीरे से दबाते हुए बोले।
“बहुत अच्छा लग रहा है पापा…” मैं नहीं जान पाई क्यों… पर ये कहते हुए मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया.
अब पापा दोनों हाथों से मेरी छाती को दबाने लगे, मेरी आँखें अपने आप बंद होती चली गई, मैं अपनी छाती आगे करके पापा से अपने उभारों को दबवाने लगी। अचानक पापा का एक हाथ मेरे उभार से फिसल कर मेरी जांघों के नीचे जहाँ से मैं पेशाब करती थी, वहां पहुँच गया।
पापा अपने हाथ से उस जगह को सहलाने लगे और मेरे पूरे बदन में एक मस्ती सी दौड़ गयी, मेरी जाँघें अपने आप सटने लगी और मैं पापा से लिपटती चली गई। कुछ देर मेरे उरोज को दबाने और चूत को सहलाने के बाद पापा अलग हुये।
उनका अलग होना मुझे अच्छा नहीं लगा, मैं पापा से और प्यार चाहती थी लेकिन पापा मेरी भावनाओं को दरकिनार कर अपने कपड़े उतारने में व्यस्त थे। जैसे ही वो पूरे नंगे हुए मेरी आँखें हैरत से फटी की फटी रह गयी, मेरी नज़र उनके जांघों के बीच जम गई।
“क्या देख रही है?” पापा मुझे अपनी ओर देखते पाकर मुझे बोले- इसे लंड कहते है… यह मरदों का सबसे कीमती अंग होता है।
मेरी दृष्टि अभी भी उनके लंड पर चिपकी हुई थी। अचानक पापा मेरे क़रीब आए और मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया, मैं उनके लंड को सहलाने लगी। फिर पापा मेरे आगे आये और मुझे अपने से चिपका लिया, उनका लंड मेरी कमर पर चुभने लगा। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
पापा एक हाथ मेरे बूब्स पर रख कर दबाने लगे और दूसरे हाथ से मेरी चुत सहलाने लगे, मेरी आँखें मस्ती में बंद होने लगी। कुछ देर उस अवस्था में रहने के बाद पापा ने अपने हाथ को मेरे जांघों के बीच जोड़ पर जमा कर मुझे ऊपर खींच लिया। उनके ऐसा करने से मैं हवा में उठ गयी थी। उनका दूसरा हाथ अभी भी मेरे बूब्स पर था।
कब उनका लंड मेरे दोनों जांघों के बीच आ गया था जो अकड़ कर कभी कभी मेरी चुत को छू जाता था। पापा अपने हाथों से धीरे धीरे मेरी चुत सहलाते रहे और दूसरे हाथ से मेरे बूब्स बारी बारी दबाते रहे। मेरे मुंह से सिसकारियां निकलने लगी। मुझे जो मजा आज मिल रहा था वो कभी नहीं मिला था, मैं मन ही मन पापा को थैंक्स बोल रही थी।
“शोभा अपनी दोनों जांघों को सटा लो!” अचानक पापा की आवाज़ से मैंने आँख खोली।
मैंने वैसा ही किया, अपनी दोनों जांघों को आपस में सटा लिया। दोनों जांघों को आपस में सटाने से पापा का लंड मेरे जांघों के बीच दब गया था। पापा धीरे धीरे आगे पीछे होने लगे। उनके आगे पीछे होने से उनका लंड मेरी जांघों में रगड़ खाने लगा।
पापा आगे पीछे होते हुए मेरी चुत और बूब्स भी मसलते जा रहे थे। साथ ही मेरी गर्दन और गालों को भी चूम रहे थे। कुछ देर बाद पापा ने मुझे फर्श पर खड़ा कर दिया और मुझे देखते हुए अपना लंड जोर जोर से हिलाने लगे। उनका हाथ बहुत तेजी से उनके लंड पर आगे पीछे हो रहा था।
मैं हैरान थी कि पापा यह क्या कर रहे हैं, मैं बस फटी फटी आँखों से उन्हें देखती रही। ऐसा करते हुए वो बहुत जोर जोर से हिल भी रहे थे और उनका चेहरा भी बनने बिगड़ने लगा था। उनकी नज़रें कभी मेरे बूब्स पर तो कभी मेरी चुत पर तो कभी मेरे चेहरे पर फिसल रही थी।
अचानक उनके मुंह से ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ की आवाज़ें निकलने लगी और फिर उनके लंड से एक अचानक सफ़ेद धार बाहर निकली और सीधे मेरे पेट पर और जांघों में आकर लगी। मैं आश्चर्य से उस चिपचिपी चीज को हाथ लगा कर देखने लगी, वो काफी गरम था। मैंने पापा की ओर देखा, वो फर्श पर बैठे हाँफ रहे थे। कुछ देर बाद पापा उठे और शावर चला दिया और मुझे नहलाने लगे।
मैं उस दौरान भी पापा से सटने की भरसक कोशिश करती रही। 15 मिनट में हम दोनों ही नहा कर तैयार हुये। मैं जब तक अपने कपड़े पहन कर तैयार हुई, पापा भी कपड़े पहन चुके थे। मैं उन्हें ही देख रही थी। उनके कपड़े पहनने के बाद मैं उनसे जाकर लिपट गई, उन्होंने मेरे माथे को चुम लिया- शोभा… तू यह बात अपनी मम्मी को मत बताना!
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“क्यों पापा?”
“अगर उसे मालूम हो गया तो वो फिर कभी तुझे मेरे साथ नहाने नहीं देगी।” वो धीरे से फुसफुसाए।
“आप चिंता मत कीजिये पापा, मैं मम्मी को ये बात कभी नहीं बताऊँगी… पर आप रोज़ मुझे नहलाएंगे न?”
“हाँ रोज़ नहलाऊँगा, अब तू अपने कमरे में जा!”
कमरे में जाने वाली बात सुनकर मैं उदास हो गयी- पापा, मैं कुछ देर और आपके साथ रहना चाहती हूँ, आप मुझे बहुत अच्छे लगते हो पापा!
“तुम भी मुझे बहुत अच्छी लगती हो। पर बेटी ये सब तुम्हारी मम्मी से छिपा कर करना होगा। तुम्हारी मम्मी मुझे खुश रहते नहीं देख पाती है। जब देखो मुझसे लड़ने आ जाती है।”
ठीक है पापा… आप जैसा कहेंगे मैं वही करुँगी।” मैं बोलकर जाने लगी।
पर मेरा मन जाने को नहीं कर रहा था। मैं जैसे ही मुड़ने को हुई पापा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे अपनी छाती से चिपका लिया। मैं उनकी छाती में किसी गुड़िया की तरह सिमटती चली गई। पापा मुझे अपने छाती से चिपकाये हुए मेरी ओर देखने लगे। फिर अचानक अपना चेहरे झुकाकर मेरे होंठों को चूसने लगे।
मुझे उनके होंठों का स्पर्श अंदर तक गुदगुदाता चला गया। वो एक हाथ से मेरे बूब्स भी मसलते रहे, फिर मुझसे अलग हुए और जाने को कहा। जब मैं जाने लगी तो उन्हें मेरी गांड में अपना हाथ घुमाया और मुस्कुराकर मुझे देखने लगे। मैं भी जवाब में मुस्कुरा दी।
लगभग एक घंटे बाद मैं अपने स्कूल पहुंची। आज मैं बहुत खुश थी… शायद अपने पूरे लाइफ में इतनी खुश कभी न थी जितनी कि आज थी। आज मुझे बरसों पहले खोया हुआ पापा का प्यार मिल गया था। आज मैं पूरे स्कूल में उछलती कूदती रही।
मुझे हर पल ऐसा महसूस होता रहा जैसे मैं आकाश में उड़ रही हूँ। मैं आज जब भी किसी से मिलती, पूरे कॉन्फिडेंस से बात करती। मेरे साथ पढ़ने वाली लड़कियाँ मेरे इस बदले हुए रूप से हैरान थी लेकिन मुझे उनकी परवाह नहीं थी।
मैं खुश थी कि अब रोज मुझे पापा का मेरे अच्छे पापा का प्यार मिलेगा। मेरा आज पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगा। बार बार घड़ी देखती रही और घण्टी बजने का इंतज़ार करती रही। आखिरकार वो समय आया, घंटी बजते ही मैं स्कूल से बाहर निकली, मेरा ड्राइवर गाड़ी लेकर आ चुका था, मैं गाड़ी में बैठ कर घर के लिए चल पड़ी, रास्ते भर पापा के ही बारे में सोचती रही।
मैं जब घर पहुंची तो 4 बज रहे थे। मैं जानती थी कि पापा 8 बजे से पहले नहीं आते हैं… फिर भी घर में घुसते ही मेरी नज़रें पापा को ढूँढने लगी। मैं सबसे पहले अपने रूम में गयी, फिर बारी बारी से घर का हर कोना घूमी… लेकिन जब पापा थे ही नहीं तो मिलेंगे कैसे।
मैं निराश होकर अपने रूम में जाकर बैठ गयी और पापा का इंतज़ार करने लगी। लगभग 8 बजे पापा आए। वो जब आये मैं हॉल ही में बैठी थी। पापा को देखते ही उछल कर उनके पास चली गयी और उनसे लिपट गयी। मेरी हरकत पर पापा थोड़ा घबरा भी गये, फिर खुद को सम्भालते हुए मेरे माथे पर एक किस किया और मुझे लेकर सोफ़े पर बैठ गये।
“तुम्हारी मम्मी कहाँ है?” उन्होंने पूछा।
“अपने रूम में…” मैंने चहकते हुए जवाब दिया।
“शोभा अभी तुम अपने कमरे में जाओ, मैं थोड़ी देर बाद फ्रेश होकर आता हूं।”
“ओके…” मैं बोल कर तुरंत अपने रूम में चली गयी।
लगभग एक घंटे बाद पापा आये और मेरे पास बैठ गये, उन्होंने पहले मुझे प्यार से चूमा और फिर बुक निकालने को कहा। मैं पढ़ाई के मूड में बिल्कुल नहीं थी पर मैं पापा को नाराज़ नहीं करना चाहती थी। कुछ देर पढ़ाने के बाद पापा ने मुझे खींच कर अपने गोद में बिठा लिया और मेरे होंठों को चूसने लगे। उनके होंठों के छुअन से मैं मस्ती में भर गयी। पापा मेरे होंठों को चूसते हुए अपने दोनों हाथों से मेरी गांड सहलाने लगे। वो अपने हाथों से स्कर्ट के ऊपर से ही गांड को दबाने और सहलाने लगे।
मुझे बहुत मजा आ रहा था, “पापा आप बहुत अच्छे हैं.” मैं बड़बड़ायी।
“तुम्हें अच्छा लग रहा है?” वो मेरी गांड को दबाते हुए बोले।
“हाँ पापा, बहुत अच्छा लग रहा है.”
अब पापा अपना हाथ मेरे टीशर्ट के अंदर डाल के मेरे बूब्स सहलाने लगे, मैंने अपनी आँखें बंद कर ली मुझे बहुत मजा आ रहा था, मैं भी उनका सहयोग करने लगी। वो मेरे होंठों को चूसते हुए अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल कर घुमाने लगे, मैं भी अपनी जीभ उनके मुंह के अन्दर डालने लगी, पापा मेरी जीभ अपने होंठों में दबा के चूसने लगे।
हम दोनों की गर्म सांसें एक दूसरे के चेहरे से टकराने लगी, कभी मैं उनका जीभ चूसने लगती तो कभी वो मेरा जीभ चूसने लगते। कुछ देर के बाद पापा अलग हुए और खड़े हो गये तो मैं हैरानी से उन्हें देखने लगी- क्या हुआ पापा?
“शोभा… अभी के लिए इतना बहुत है। अभी तुम्हारी मम्मी जाग रही है… उसके सोने के बाद मैं रात में आउंगा, फिर तुम्हें प्यार करुँगा।”
“कुछ देर और रुको न पापा… मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।” मैं मचलती हुई बोली।
मैं पापा से हरदम चिपकी रहना चाहती थी लेकिन पापा मुझे रात में मिलने का वादा करके चले गये। मैं दुखी मन से उठी और दरवाज़ा बंद करके बैठ गयी। कुछ देर बाद नौकरानी डिनर लगाने के बाद मुझे बुलाने आयी। मैं डिनर करते समय भी पापा को ही देखती रही।
डिनर के बाद मैं अपने बिस्तर पर आकर लेट गयी और पापा के बारे में सोचने लगी कि पापा कितने अच्छे हैं… मुझे कितना प्यार करते है… फिर मम्मी क्यों उनसे लड़ती रहती हैं… जरूर मम्मी ही गलत होगी। वो मुझसे भी ठीक से बात नहीं करती।
मैं यूँ ही मम्मी पापा के बारे में सोचते सोचते सो गई, कितनी देर सोयी रही मुझे याद नहीं। अचानक किसी के छूने से मेरी आँख खुली तो मैं ख़ुशी से उछल पड़ी… मेरे पापा मेरे बिस्तर पर सिर्फ अंडरवियर पहने लेटे हुए थे और मुझे ही देख रहे थे। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैं उनसे लिपट गयी। पापा मुझे अपने सीने से लगा कर मेरे होंठों को चूमने लगे, मैं भी उनके होंठों को चूमने लगी। पापा एक हाथ से मेरे स्तन को दबाने लगे और दूसरे हाथ से मेरी गांड सहलाने लगे। मैं नहीं जान पा रही थी कि क्या हो रहा है लेकिन जो भी हो रहा था मुझे बहुत मजा दे रहा था.
मुझे पापा ने अपने ऊपर खींच लिया, मैं उनके ऊपर लेट गई और उनके मुंह के अंदर होंठ डाल के उनका जीभ चूसने लगी। पापा एक से हाथ अभी भी मेरी गांड मसल रहे थे और दूसरे हाथ से मेरे छोटे छोटे बूब्स को दबा रहे थे। अचानक उन्होंने दो उँगलियों से मेरी एक निप्पल को दबा दिया.
मेरे मुंह से आह निकल गयी मेरा पूरा बदन मस्ती से भर गया मेरी कमर के नीचे कुछ पिघलता सा लगा, मेरे पूरे बदन में एक अज़ीब सी मस्ती भर गयी, मेरी कमर खुद ब खुद पापा की कमर से रगड़ खाने लगी। मैं उनसे और ज्यादा चिपकने लगी और अपने बदन को उनके बदन से रगड़ने लगी।
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पापा अपना हाथ मेरे गांड से हटा कर मेरी टीशर्ट उठाने लगे, मैंने उनका सहयोग किया और अपना टीशर्ट उतार कर रख दिया, अब मैं ऊपर से बिल्कुल नंगी थी क्यूंकि मैंने ब्रा नहीं पहनी थी। मैं फिर से उनके ऊपर लेट गयी और अपने छोटे बूब्स पापा की छाती से रगड़ने लगी और उनके होंठों को चूसने लगी.
पापा के दोनों हाथ मेरे कन्धों पर थे वो मेरे कन्धों और पीठ को सहलाते हुए मेरे होंठों को चूस रहे थे। पापा के दोनों हाथ मेरी पीठ को सहलाते हुए धीरे धीरे नीचे की ओर जा रहे थे मुझे उनके हाथों का स्पर्श बहुत अच्छा लग रहा था, मैं भी उनके होंठों को चूसने लगी.
पापा ने अपने दोनों हाथों से मेरी स्कर्ट हटा कर और पेंटी को सरका कर जांघों तक कर दिया। फिर मेरे दोनों नितम्बो को दबाने और मसलने लगे। मैं पूरी तरह से खुद को उनके हवाले कर चुकी थी, मुझे कुछ भी होश नहीं था, मैं एक नए सुख के सागर में डुबती जा रही थी।
अचानक पापा ने अपनी एक उंगली मेरी गांड के छेद में घुसाने लगे, एक हाथ से उन्होंने मेरे गांड के छेद को फ़ैलाया और दूसरे हाथ की उंगली उसमें डालने लगे, अभी आधी उंगली ही मेरी गांड के अंदर गयी थी और मेरे मुंह से आह निकल गयी।
“दर्द हुआ क्या बेटी?” पापा अपनी उंगली को रोकते हुए बोले।
“नहीं पापा… अच्छा लग रहा है, पूरी उंगली घुसाइये ना!” मेरे कहने के साथ ही पापा उठ कर बैठ गये।
फिर उन्होंने मेरी स्कर्ट और पेंटी मेरे शरीर से उतार कर अपनी जवान बेटी को पूरी नंगी कर दिया। मुझे नंगी करने के बाद पापा अपने कपड़े भी उतारने लगे, थोड़ी ही देर में वो भी नंगे हो गये। उन्होंने फिर से मुझे अपने ऊपर खींच कर लिटा लिया और फिर से मेरी गांड में उंगली घुसाने लगे.
इस बार उनकी पूरी उंगली मेरी गांड में घुस चुकी थी मेरी गांड एकदम टाइट हो गयी थी। पापा धीरे धीरे अपनी उंगली अंदर बाहर करने लगे, उनकी उंगली के अंदर बाहर होने से मुझे बहुत मज़ा आ रहा था, मेरे मुंह से सिसकारियाँ निकलने लगी।
पापा दूसरा हाथ मेरी चूत पे ले गए और सहलाने लगे, पापा का लंड खड़ा होकर मेरी जांघों से रगड़ खाने लगा। पापा बड़े आराम आराम से मेरी गांड में उंगली करते रहे और मेरी चूत सहलाते रहे. कुछ देर बाद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी चूत से कुछ बह रहा है, मैं बुरी तरह से तड़पने लगी.
मैंने अपनी कमर से पापा का हाथ हटा दिया और पापा का लंड अपने चूत के नीचे रख कर अपनी चूत उनके लंड से रगड़ने लगी। मैं पूरी तरह से जल रही थी मुझे पहले कभी ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ था. कुछ देर बाद पापा उठकर बैठ गये, मैं भी उठ कर बैठ गयी, उन्होंने मुझे बिस्तर पर खड़ा कर दिया और मेरे क़रीब आकर मुझे कमर से थाम लिया.
उनके हाथ मेरे दोनों नितम्बों पर थे और उनका चेहरा मेरी चूत के पास… अचानक पापा अपनी जीभ निकल कर मेरी चूत को चाटने लगे, मेरी चूत में अभी तक झांटें नहीं आई थी, वो अपनी जीभ को नीचे से लेकर ऊपर तक घुमाने लगे.
उनके ऐसा करने से मेरी चूत की खुजली और बढ़ गयी, मैंने अपनी टांगें और चौड़ी कर दी और पापा का सर अपनी चूत पर दबाने लगी। पापा की जीभ मेरी चूत के छेद पर घूम रही थी। मेरे मुंह से आहें निकलनी शुरू हो गयी। अचानक पापा ने अपना चेहरा हटा लिए और मुझे बेड पर बिठा दिए फिर अपना लंड मेरे चेहरे के पास ले आए- इसे हाथ में पकड़ के सहलाओ शोभा… अच्छा लगेगा!
मैंने दोनों हाथों से पापा का लंड पकड़ लिया। उनका लंड इतना बड़ा था कि मेरे दोनों हाथों में नहीं समा रहा था.
पापा ने कहा- शोभा, इसे मुंह में लो!
मैंने बिना देर किये अपना चेहरा झुका कर अपने होंठों को लंड के सुपारे से सटा दिया। मैं धीरे धीरे अपने होंठों को सुपारे से रगड़ने लगी, दो मिनट बाद मैंने अपना मुंह खोला और उनका लंड अंदर ले लिया। लंड मोटा होने की वजह से सिर्फ सुपारा ही अंदर जा पाया था।
मैं उनके सुपारे को मुंह में भर कर चूसने लगी. पापा ने अपना हाथ धीरे से मेरे सर पर रख दिया और मेरे बालों को सहलाने लगे और दूसरे हाथ से मेरी चूचियों को मसलने लगे। मुझे उनके लंड का स्वाद बड़ा ही अज़ीब लग रहा था पर मुंह में लेकर चूसने में अच्छा भी लग रहा था। पापा धीरे धीरे मेरा सर अपने लंड पर दबाने लगे, अब उनका आधा लंड मेरे मुंह के अंदर था, उनका लंड मेरे गले तक पहुँच गया था।
मैं कुछ देर शांत पड़ी रही तो पापा ने कहा- शोभा, अपना मुंह लंड के ऊपर नीचे करो!
मैं अपना मुंह ऊपर नीचे करके पापा का लंड चूसने लगी। दो मिनट बाद पापा के मुंह से आह आह आवाज़ निकलनी शुरू हो गयी, मैंने अपना मुंह बाहर खींच लिया।
“क्या हुआ? आपको दर्द हुआ क्या?” मैं डरती हुई बोली।
वो बोले- नहीं तुम चूसती रहो, मुझे अच्छा लग रहा है!
मैंने फिर से अपना मुंह खोला और पापा का लंड अंदर ले लिया और चूसने लगी। लगभग 15 मिनट के बाद पापा ज़ोर ज़ोर से आहें भरने लगे और फिर अचानक उनके लंड से एक जोर की पिचकारी निकली और मेरा पूरा मुंह उनके वीर्य से भर गया।
मैं झट से अपना मुंह बाहर खींच लेना चाहती थी लेकिन पापा ने ज़ोर से मेरा सर अपने लंड पर दबा दिया और पूरा वीर्य निकालने के बाद ही अपना हाथ हटाया। मेरा पूरा मुंह गीला हो गया था आधा वीर्य तो मेरे पेट के अंदर चला गया था। मैंने अपना चेहरा उठा कर पापा से कहा- यह क्या पापा… आपने मेरा मुंह गन्दा कर दिया?
पापा ने कहा- शोभा इसे पी जाओ, यह सेहत के लिए अच्छा होता है!
मैं पापा का सारा वीर्य पी गयी और फिर से चेहरा झुका कर पापा के लंड को चाटने लगी। उनका लंड पूरा साफ़ करने के बाद मैंने अपना चेहरा ऊपर उठाया और पापा को देखा, उनके चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे। मैं उनके करीब जाकर उनके होठों को किस करने लगी, उन्होंने मुझे अपनी जांघों पे बिठाया और मुझे किस करने लगे और अपना एक हाथ अपनी बेटी चूत पर रख कर चूत सहलाने लगे।
दो मिनट बाद मैं फिर से मस्ती में डूब गयी, मैं ज़ोर से पापा के होंठों को चूसने लगी। उन्होंने अपनी एक उंगली मेरी चूत के अंदर डाल दी तो मैं एकदम से उछल पड़ी। मेरी चूत में अब से पहले तक उंगली नहीं गयी थी। पापा धीरे धीरे अपनी उंगली चूत के अंदर बाहर करने लगे और मैं मस्ती में भर कर नाचने लगी।
मैं कस कर उनसे लिपट गयी और अपनी दोनों जांघों को एक दूसर से चिपका लिया। पापा की उंगलियों की रफ़्तार और तेज़ हो गई, मैं मस्ती में झूमने लगी मुझे बहुत मजा आ रहा था ऐसा मजा मुझे पहले कभी नहीं मिला था।
लगभग 5 मिनट बाद मेरा बदन अकड़ने लगा, मेरे शरीर से कुछ पिघल कर मेरी चूत तक जा रहा था, अचानक मैं पापा से कस के लिपट गयी और अपनी चूत को उनके हाथों में दबाने लगी- यआह्ह्ह्ह… पा… पा… आआआ!
मेरी चूत से एक तेज़ फुहार निकली और पापा की बाँहों में फैल गयी। मैं एक चीख मार कर पापा की बांहों में झूल गयी। मैं चरम तक पहुँच चुकी थी। कुछ देर यूँही पापा से लिपटी रही फिर अपना चेहरा नीचे करके पापा के हाथों को देखा उनका हाथ सफ़ेद गम से भर गया था।
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मैं एकदम से घबरा गयी और पापा से बोली- ये क्या निकला है पापा?
“घबराओ नहीं, ये चूत का पानी है… ये हर मरद औरत के पेशाब करने के रास्ते से तब निकलता है जब वह सेक्स करता है या अपने हाथों से अपने अंग को छेड़ता है.”
मैं निश्चिंत हो गयी और पापा से बोली- पापा, मुझे बहुत मजा आया! क्या आप रोज़ मुझे ऐसे ही प्यार करेंगे?
“हाँ बेटी… जब भी तुम चाहोगी! लेकिन अभी तुमने पूरा मजा नहीं लिया है, पूरा मजा उस दिन आएगा जब मेरा लंड अपने चूत के अंदर लोगी!”
“पापा तो अपना लंड मेरी चूत में डालो न… मैं पूरा मजा लेना चाहती हूँ.”
“अभी तुम बहुत छोटी हो, अभी तुम मेरा लंड नहीं ले सकती, तुम्हें बहुत दर्द होगा, तुम वो दर्द नहीं सह पाओगी। कुछ दिन और इंतज़ार करो, फिर मैं तुम्हें सेक्स का सही मजा दूँगा.”
“ओके पापा, जब आपको लगे कि मैं आपका लंड अंदर ले सकती हूँ तब आप मुझे पूरा मजा दीजियेगा.”
पापा बोले- ठीक है… फिलहाल जब तक तुम उस लायक नहीं हो जाती, तब तक तुम ऐसे ही मज़े लेती रहो और हाँ… अपनी मम्मी को भूलकर भी इस बारे में कुछ मत बताना!
“ठीक है पापा!”
कुछ देर इधर उधर की बात करने के बाद हम दोनों बाप बेटी नंगे ही लिपट के सो गये। इसी तरह मैंने पापा के साथ बिस्तर में खेलते कुदते दो साल बिता दिए. इस बीच पापा ने मुझे पूरी तरह से चुदाई के लिए तैयार कर लिया था। हालाँकि वो चाहते तो मुझे कभी भी चोद सकते थे। मैं उनसे चुदने के लिए तैयार थी लेकिन उन्होंने सब्र से काम लिया।
इन 2 सालों में पापा ने मुझे मसल के, रगड़ के मेरे कमसिन शरीर को भरपूर जवान लड़की की तरह कर दिया था। मेरा शरीर पहले से ज़्यादा भर गया था और मेरी चूचियों में भी गज़ब का उभार आया था। मेरी कमर पतली थी लेकिन मेरी गांड की शेप पीछे से बला की उभार लिए हुए थी।
मेरा रूप देखकर मेरे साथ पढ़ने वाले लड़कों के लंड तन जाते थे। हर कोई मुझे चोदना चाहता था लेकिन मैं सिर्फ पापा से चुदवाना चाहती थी। मैं घर पहुँच कर अपने रूम में घुसते ही अपनी जीन्स और टीशर्ट उतार कर फेंक देती और नंगी होकर अपने बदन को चूमती, सहलाती और मसलती… इस वक्त मेरे ख्यालों में सिर्फ पापा ही होते थे।
मम्मी इस बात से पूरी तरह अन्जान थी कि उनकी पीठ के पीछे हम बाप बेटी क्या क्या कर रहे हैं। अब उनका पापा से झगड़ा भी पहले से कम हो गया था। लेकिन उनमें दूरियाँ अभी भी थी… मम्मी पहले से अधिक शराब की आदी हो गयी थी, वो अक्सर खोयी खोयी रहती।
पर मैं उन पर ज़्यादा ध्यान न देकर अपने में मस्त रहती और उस दिन के बारे में सोचती जब पापा का लंड मेरी चूत में घुस कर मुझे सेक्स का असली मजा देने वाला था। आखिर वो दिन भी आ गया। उस दिन पापा ऑफिस से 8 बजे ही आ गए थे लेकिन हर रोज़ की तरह आज मुझसे एकांत में नहीं मिले… मुझसे दूर दूर रहने का प्रयास कर रहे थे।
मैं अगर उनके पास जाती तो वो उठकर कहीं और चले जाते। मैं दुखी हो गयी… पापा की बेरुख़ी मैं सहन नहीं कर पा रही थी। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मुझसे क्या गलती हो गयी जो पापा मुझसे दूर हो रहे हैं। डिनर के टेबल पर भी पापा की नज़रें एक बार भी मेरी तरफ नहीं उठी।
मैं जल्दी से डिनर करके अपने रूम में आ गयी और बिस्तर पर गिर कर रोने लगी और सोचने लगी ‘क्यों मेरे अच्छे पापा मुझसे बात नहीं कर रहे हैं… क्या वो हमेशा के लिए मुझसे रूठ गए हैं? क्या मुझे पहले की तरह फिर से अकेले रहना पड़ेगा?’
यही सब बाते सोचते सोचते कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता ही न चला। लगभग एक बजे मुझे ऐसा लगा कि कोई मुझे छू रहा है… कोई मुझे आवाज़ दे रहा है। मेरी आँख खुली तो मेरे पापा मेरे बिस्तर पर बैठे थे। उन्हें अपने पास देखते ही मैं उनसे लिपट गयी और रोने लगी।
“शोभा… क्या हुआ, क्यों रो रही हो?” पापा मेरे आंसू पौंछते हुए बोले।
“पापा क्या आप मुझसे नाराज़ हो?” मैं सिसकते हुए बोली।
“नहीं बेटी… मैं भला अपनी जान से प्यारी बेटी से क्यों नाराज़ होऊँगा?”
“तो फिर आप मुझसे बात क्यों नहीं कर रहे थे… पता है मैं कितना रोई हूं.”
“ओह… मुझसे गलती हो गयी। दरअसल मैं तुम्हारी मम्मी की वजह से तुमसे बात नहीं कर रहा था।”
“मुझे लगा आप मुझसे फिर कभी बात नहीं करोगे… मुझे फिर से अकेला रहना पड़ेगा।”
“नहीं शोभा… जब तुम्हें कभी अकेला नहीं रहना पड़ेगा। मैं हर पल तुम्हारे साथ हूँ… और आज तो तुम्हें बिल्कुल नहीं रोना चहिये… आज हमारे लिए बहुत खास दिन है।”
“ख़ास दिन… वो क्या पापा?”
“आज…” वो मेरी चूत पर हाथ रखते हुए बोले- तुम्हारी चूत का उद्घटान है। आज इसमें मेरा लंड अंदर घुसेगा और तुम्हें प्यार का असली मजा मिलेगा।
“क्या सच में पापा?” मैं बोली और पापा का हाथ पकड़ कर अपने शॉर्ट्स के अंदर कर दिया।
पापा मेरा इशारा समझ गये, पापा अपने हाथों का दबाव मेरी चूत पर डालने लगे। मैं थोड़ा आगे सरक कर पापा के होंठों को चूसने लगी। पापा भी मेरे होंठों को अपने होंठों में दबा कर चूसने लगे। फिर अपना दूसरे हाथ से मेरे एक बूब्स को टीशर्ट के ऊपर से ही कस के दबा दिए।
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“आउच…” मैं दर्द से बिलबिलायी, फिर पापा की छाती पर हल्के हल्के घूंसे मारती हुयी बोली- पापा आहिस्ते से बूब्स दबाओ न… मुझे दर्द होता है।
“तुम्हें दर्द होता है?” पापा बोले और फिर से उसी जोर से मेरा दूसरा बूब्स भी दबा दिया।
मैं फिर से चीख़ पड़ी- आई हेट यू पापा!
मैं गुस्से में पापा को घूरती हुयी बोली।
“बट आई लव यू बेटी!” वो मुस्कराए और अगले ही पल अपनी एक उंगली मेरी चूत में डाल दी।
“आह्ह…” मेरे मुंह से दर्द भरी सिसकारी निकली।
मैंने इस बार गुस्से में भर कर पापा को धक्का दिया और उन पर चढ़ गयी। फिर उनके बालों को नोचती हुयी उनके होंठों को चूसने और काटने लगी। पापा भी जोश में भर कर मेरे टीशर्ट के अंदर दोनों हाथ डालकर मेरे बूब्स मसलने लगे।
मैं दो मिनट तक उनके होंठों को कुचलती रही फिर अपना चेहरा उठाकर उनको देखा, पापा की आँखें लाल हो रही थी, उनके हाथ अभी भी मेरे बूब्स को धीरे धीरे दबा रहे थे। मेरी आँखें भी लाल नशीली हो उठी थी। मैंने एकदम से अपने टीशर्ट को नीचे से पकड़ी और एक ही झटके में उतार कर एक और फेंक दिया।
वही हाल मैंने अपनी ब्रा का भी किया, फिर पापा के दोनों हाथों को अपने बूब्स पर रखकर दबाने लगी। पापा मेरी नशीली आँखों में झाँकते हुए मेरे बूब्स मसलने लगे। मैं आँखें बंद किये अपनी चूचियों को दबवाती रही। अचानक से पापा उठ बैठे। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
फिर मेरे देखते ही देखते अपने बदन से सारे कपड़े उतार फेंके। मैंने भी उनका अनुसरण किया, पलक झपकते ही मैंने अपना शॉर्ट्स निकाल बाहर किया। अब हम दोनों पिता पुत्री एक दूसरे के सामने पूरे नंगे बैठे थे। पापा अचानक से बिस्तर पर उठ खड़े हुए और अपना लंड हाथ से पकड़ कर हिलाकर मुझे दिखाया।
मैं घुटनों के बल सरक कर पापा के पास चली गयी और बिना देर किये उनका लंड मुंह में भर लिया। मेरे गर्म होंठों का स्पर्श पाते ही पापा के मुंह से ‘आह्ह’ निकल गयी। मैं अब लंड चूसने में इतनी अभ्यस्त हो गयी थी कि पापा का लम्बा पूरा लंड मुंह के अंदर ले लेती थी।
मैं पूरा लंड अंदर लेती और जब मुंह से बाहर लाती तो अपने होंठों का दबाव बढ़ा देती। मैं उनका लंड ठीक वैसे ही चूस रही थी जैसे तेल लगे हाथों से लंड की मालिश करते हैं। यह तरीका भी पापा ने ही मुझे बताया था, मैं नहीं जानती उन्होंने कहाँ देखा या सीखा था। बिल्कुल वैसे ही जैसे आइसक्रीम को होंठों से दबाकर चूसते हैं।
लगभग 5 मिनट तक लंड चूसने के बाद पापा ने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और मेरी चूत पर अपनी लंबी जीभ निकाल कर टूट पड़े। वो मेरे चूत को चाटते हुए मेरी चूत की फांकों पर अपनी जीभ घुसा देते और अंदर से निकलते रस को चूसने लगते।
मैं उनकी इस हरकत से छटपटा उठती और पापा का सर अपनी चूत में दबा देती। वैसे तो पापा पहले भी मेरी चूत चाट चुके थे पर आज उनकी जीभ से जो मजा मिल रहा था वो पहले कभी नहीं मिला। आज पापा की हर हरकत और दिन से तेज थी।
शायद ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि और दिन वो मुझे बहुत प्यार से आराम से मेरे साथ मेरे शरीर के अंगों से खेलते थे लेकिन आज उनके हर हरकत में आक्रमकता थी और यही चीज मुझे मस्त किये जा रही थी। 5 मिनट की चूत चटायी में मैं 3 बार झड़ चुकी थी।
“पापा… अब मैं नहीं रुक सकती। प्लीज अपना लंड मेरी चूत में घुसाओ और मुझे प्यार का असली मजा चखाओ।”
मेरी बात सुनकर पापा ने अपना चेहरा उठाकर मुझे देखा, फिर मुस्कुराते हुए बोले- ठीक है बेटी, एक बार और मेरे सूखे लंड को अपने होंठों से गीला करो। फिर तुम्हें प्यार का असली मजा चखाता हूं!
मैं उनकी बात सुनकर झपट्टा मारने वाले अन्दाज़ में उठी और उनके लंड को हाथों से पकडकर मुंह के अंदर भर लिया। मैं अपने मुंह में थूक जमाकर उनके लंड को अच्छी तरह से गीला किया और फिर बिस्तर पर पसर गई। ये सब मैंने इतना जल्दी किया कि पापा मेरी फुर्ती और व्याकुलता देखकर हैरान रह गये। फिर वो मुस्कुराते हुए झुके और मेरी चूत पर एक प्यार भरा किस देकर अपना लंड मेरी चूत से रगड़ने लगे।
“ओहह पापा… मेरे अच्छे पापा! अपना लंड जल्दी से मेरी चूत में डालो न।”
मेरी बात अभी पूरी ही हुयी थी कि पापा ने हल्का सा धक्का दिया और फच के साथ उनके लंड का सुपारा मेरी चूत में घुस गया। मैं एकदम से ‘आउच…’ की आवाज़ के साथ आगे खिसक गयी। मुझे अचानक दर्द का अहसास हुआ पर मैं अपने होंठों को चबाती हुयी शांत पड़ी रही।
कुछ देर बाद पापा अपने लंड को अंदर पेलने लगे, मेरा दर्द बढ़ने लगा। धीरे धीरे प्यार से पापा अपना लंड मेरी चूत की गहराई में उतारते रहे। मैं अपनी साँस रोके उनके लंड को अपनी चूत के अंदर लेती रही। 5 मिनट लगे होंगे, पापा का पूरा लंड जड़ तक मेरी चूत में घुस चुका था।
इस बीच मुझे कितना दर्द हुआ, ये सिर्फ मैं ही जानती हूँ। बेटी की छोटी सी चूत पापा के विशाल लंड में कस चुकी थी। उनके जरा सा हिलने से ही ऐसा लगता था जैसे मैं मर जाऊँगी। पापा कुछ देर शांत पड़े रहे रहे मैं कभी आँख खोलकर उन्हें देखती तो कभी आँखें बंद करके अपने होंठों को चबाती हुयी अपना दर्द पीती।
पांच मिनट तक चुपचाप रहने के बाद मेरा दर्द कम हो गया। अब पापा धीरे से अपना लंड बाहर को खींचने लगे तो मैं फिर से कराह उठी, पूरा लंड बाहर निकालने के बाद पापा फिर से लंड अंदर घुसाने लगे। वैसे 4 से 5 बार करने के बाद उन्होंने अपनी रफ़्तार बढ़ायी।
मैं भी उनके ताल से ताल मिलाती चली गई। पापा मेरी चूचियों को मसलते चूमते हुए मेरी कोमल चूत पर जोरदार प्रहार करते रहे। उनके हर धक्के से मेरा रोम रोम मस्ती से भरकर झूम उठता। मैं उनके हर धक्के के बदले अपनी गांड नीचे से उछाल कर जवाब देती।
लगभग 15 मिनट तक लंड अंदर बाहर करने के बाद पापा ने एक तेज धार मारी और मेरी चूत को अपने गर्म लावा से भर दिया। उनके गर्म चूत से मेरे अंदर ऐसी गुदगुदी उठी कि मैं खुद को संभाल नहीं पायी, मेरे शरीर में एक अचानक मस्ती की लहर दौड़ी और फिर सारी मस्ती मेरी चूत के रास्ते से बाहर निकलने लगी।
मेरा शरीर बिजली का करेंट लगे इंसान की तरह झटके खाने लगा। फिर मैं शांत पड़ गयी। पापा मेरे ऊपर ढह चुके थे, मैं भी ढीली हो चुकी थी। हम दोनों का शरीर पसीने से नहा चुका था। अब मुझे पापा का शरीर भारी लगने लगा तो पापा से बोली- पापा अब मुझे तकलीफ हो रही है। आपका शरीर कितना भारी है।
मेरे होंठों पर पापा ने एक किस किया और एक ओर लुढ़क गये। उनके लुढ़कते ही मैं फुर्ती से उनके ऊपर चढ़ गयी और उनके होंठों को चूम लिया- आई लव यू पापा! आप बहुत अच्छे हो। आज मुझे बहुत मजा आया। आप ऐसे ही रोज मुझे प्यार करोगे न?
“हाँ… रोज प्यार करुँगा। लेकिन वही एक बात हमेशा ध्यान में रखना… तुम्हारी मम्मी को यह मालूम नहीं होना चहिये।”
“मैं यह बात कभी नहीं भूलूँगी। उनके भूत को भी यह मालूम नहीं होने दूँगी।”
उन्होंने मेरी बात सुनकर मेरे बूब्स को दबा दिया, मैं झुककर उनके होंठों को चूसने लगी। अब यह रोज की बात हो गयी थी। रोज ही पापा मम्मी के सोने के बाद आते और मेरे साथ नंगे होकर ये गर्म खेल खेलते। मैं पापा की दीवानी बन गयी थी, एक रात भी मैं उनके बगैर गुजारूं, ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकती थी।
मैं पापा की हर वो ज़ायज़ नाज़ायज़ बात मानती जो वो कहते। जब भी वो मुझे अकेले देखते, दिन हो या रात… अपना लंड मेरे मुंह में डाल देते। मैं खुद भी उनकी इतनी आदी हो गयी थी कि मम्मी के घर से बाहर जाते ही उन पर टूट पड़ती। मैं हर पल उनके सामने बिछने को तैयार रहती।
इसी तरह 3 माह बीत गये। पापा और मेरा ये खेल रात दिन अपने शवाब पर बना हुआ था। मैं प्रेग्नंट न हो जाऊ इसलिए पापा मुझे दवाइयाँ भी देते रहते थे। लेकिन कभी भी कंडोम का इस्तेमाल नहीं करते थे। एक दिन मेरी तबीयत ख़राब हुई, मेरे पेट में दर्द सा हो रहा था।
शायद कुछ उल्टा सीधा खा लेने से हुआ था। पापा उस वक़्त घर पर नहीं थे, मम्मी ने मुझे परेशान देखा तो मुझे अपनी एक सहेली डॉक्टर के पास ले गयी। मम्मी के साथ कहीं जाना मुझे अच्छा नहीं लगता था लेकिन उस वक़्त मैं मजबूर थी।
उस दिन उस लेडी डॉक्टर ने जाने मम्मी से क्या कहा पर उनकी आँखें गुस्से से लाल हो गयी। जैसे ही हम घर पहुंचे पापा आ चुके थे। उनके सामने ही मम्मी मुझ पर टूट पड़ी… गालियाँ चाँटे… सब मुझे खाने को मिला।
पापा मम्मी की बात सुनकर अपने रूम से बाहर निकले और मम्मी से पूछा- क्या हुआ ? क्यों चिल्ला रही हो?
“पूछो अपनी बेटी से… किसको अपना खसम बनाया है इस कलमुही ने? तुम्हें तो अपने घर में झाँकने की फुर्सत ही कहाँ है!”
मम्मी की बात सुनकर पापा का चेहरा पीला पड़ गया। मैं सोच रही थी कि पापा मुझे मम्मी से बचाएँगे लेकिन वो एक तरफ दुबके खड़े रहे। उस दिन पहली बार मुझे पता चला कि जो मैं पापा के साथ अब तक करती रही, वो गलत था। शायद इसलिए पापा खामोश थे और डरे सहमे मेरी ओर देख रहे थे।
उन्हें यह चिंता हो रही थी कि कहीं मैं मम्मी के सामने पापा का भेद न खोल दूँ। लेकिन मैं ऐसा कुछ भी नहीं करने वाली थी। मैं पापा के प्यार की आदी हो चुकी थी उन्हें मम्मी के सामने लाकर मैं उनसे दूर नहीं होना चाहती थी। मैं खामोश सुनती रही, गालियाँ और चाँटे ख़ाती रही लेकिन अपनी जुबान नहीं खोली।
पापा दूर खड़े अपनी बेबसी पर सर खुजाते रहे। आखिरकार थक हार कर मम्मी सोफ़े पर बैठ गयी और रोने लगी। मैं भी सिसकती हुई अपने कमरे में चली गयी। उसके बाद हॉल में क्या हुआ मुझे मालूम नहीं। उस पूरे दिन पापा मेरे कमरे में नहीं आए।
डिनर में मैं एक बार फिर मम्मी पापा के सामने हुई। लेकिन वहां पूरी शांति थी कोई कुछ भी बोलने में अपना अपमान समझ रहा था। कुछ देर के बाद मम्मी मेरे रूम में आयी और मेरा सर अपनी गोद में लेकर मुझे दुलारने लगी। एक लम्बे अरसे बाद आज मम्मी मुझे वैसे ही प्यार कर रही थी जैसे मेरे बचपन में किया करती थी।
मुझे उनका स्नेह से भरा हाथ बहुत अच्छा लगा और मैं मम्मी के गोद में सर छुपा कर सुबकने लगी। मम्मी मुझे प्यार से दुलारती रही फिर बोली मुझे समझाने लगी। उस दिन मुझे मम्मी का प्यार अच्छा लगा। लेकिन उनके प्यार में उनके छूने में मुझे उतना अच्छा नहीं लगता था जितना की पापा के छूने और प्यार करने से मिलता था।
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उस रात मम्मी देर तक मेरे साथ रही ढेर सारी नसीहतें दी फिर चली गई। अब पहले की तरह मम्मी मेरा पूरा ख्याल रखने लगी। मेरे जागने से लेकर सोने तक मेरी हर जरुरत का ख्याल रखती। मैं अब उनसे बोर होने लगी थी क्योंकि उनकी वजह से पापा मेरे क़रीब नहीं आ पा रहे थे। मैं जितना उनसे दूर रहने की कोशिश करती वो उतना ही मुझसे चिपकने लगी थी। पूरा 1 माह बीत गया। मैं पापा के प्यार को फिर से नहीं हासिल कर सकी।
कुछ देर के लिए मम्मी इधर उधर जाती तो हम दीवानों की तरह एक दूसरे को चूमने चाटने लगते लेकिन चुदाई को तरसते रहते। एक दिन तक़दीर ने हमें वो मौका दिया। मेरी नानी की मृत्यु का समाचार मिला। हम लोग उनकी अन्तिम क्रिया में शामिल होने गए। नाना नानी भी मुंबई में ही रहते थे। दोपहर तक नानी का अन्तिम संस्कार हो गया। मम्मी 13 दिनों के लिए वहीं रुक गयी, मैं पापा के साथ घर के लिए लौट पड़ी। दोस्तों कहानी अभी बाकि है, आगे शोभा के साथ और क्या क्या हुआ पूरी कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिये हमारी वासना डॉट नेट.